वैसे, इस बार प्रधानमंत्री ने तो लौकडाउन घोषित नहीं किया है. हो सकता है कि जल्दी खत्म हो जाए. मुनीमजी के माथे से पसीने की बूंदें झलझला रही थीं. उन का मन हुआ कि वे सेठजी को फोन लगा कर बता दें कि उस के पास वसूली और दिनभर की आवक के पैसे सुरक्षित रखे हैं और तिजोरी की चाबी भी उसी के पास है.
‘‘अब रहने दो. रात हो गई है. सुबह देखते हैं,’’ सोच कर उस ने करवट बदल ली. सुबह उस की नींद अपने नियमित समय पर ही खुल गई थी. उसे सुबह जल्दी दुकान पर जाना होता था, इसलिए वह जल्दी उठ कर तैयार हो जाता. सुमन उस के सामने नाश्ते की प्लेट रख देती और भोजन का डब्बा भी. वह भोजन दुकान पर ही दोपहर को कर लेता था. कई बार तो उस का डब्बा खुल ही नहीं पाता था. ज्यों का त्यों वापस घर आ जाता. सुमन भरे डब्बे को देखती तो नाराज होती, ‘‘मैं इतनी सुबह उठ कर तुम्हारे लिए खाना बनाती हूं. और आप के पास इतना भी समय नहीं होता कि खाना खा लें.’’
वह कुछ नहीं बोलता, चुप ही रहा आता. सेठजी उस से कभी खाने की नहीं पूछते, उलटे यदि वह कहे कि सेठजी मैं डब्बा खा लूं, तो भी वे नाकभौं सिकोड़ लेते.आज वह दुकान पर जाने को तैयार तो हो गया, पर उसे कहीं जाना ही नहीं था. लौकडाउन लग चुका था, सामने चौराहे पर पुलिस बैठी थी. उसे सेठजी के पैसे का ध्यान आया. उस ने अलमारी खोल कर पैसे टटोले, फिर इतमीनान से बैठ गया. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा ले, पर ‘‘रहने दो, उन का फोन आने दो’’ सोच कर रह गया.
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