शाम ढलते-ढलते पूनम डौक्टर सूर्यकांत के साथ गांव पहुंच गयी. अपने बाबा को सामने देखकर वह हर्ष के अतिरेक में उनके सीने से जा लगी. न जाने कितनी देर तक बाप बेटी खुशी के आंसुओं में डूबे खड़े रहे. डौक्टर भी बड़ी देर तक बाप-बेटी के इस मिलन को देखकर भावुक होता रहा. साड़ी के पल्लू से अपने आंसू पोछती हुई पूनम जब बाबा से अलग हुई तो उसने गौर किया कि बाबा अब कितने स्वस्थ दिखने लगे थे. गाल भरे-भरे से हो रहे थे और उन पर लाली भी उभर आयी थी. बदन भी काफी भर गया था. उसका दिल डौक्टर को दुआएं देते नहीं भर रहा था, जिनकी वजह से एक मरता हुआ परिवार फिर से जी उठा था. यही हाल बाबा का भी था. बेटी को इतना खुश और उजले-उजले कपड़ों में देखकर बाप का दिल डौक्टर के अहसानों तले दब गया था. वो हाथ जोड़कर डौक्टर की ओर बढ़े और इससे पहले कि वह उसके कदमों पर झुक सकें, डौक्टर ने उन्हें कन्धों से पकड़ कर अपने सीने से लिपटा लिया.
‘मास्टर जी... फिर आप वही बच्चों जैसी हरकत करने लगे... अरे इतने दिनों के बाद पूनम घर आयी है और आप रो रहे हैं...?’ डौक्टर ने उन्हें हंसाने की कोशिश की.
‘डौक्टर साहब...’ बूढ़े की जुबान लड़खड़ा गयी.
‘बस अब रोना-धोना बन्द कीजिए... जाओ पूनम, मेरे और बाबा के लिए जरा चाय बना लाओ....’ उसने पूनम को आदेश दिया.
डौक्टर सूर्यकांत का इस तरह अपनेपन से बोलना पूनम को भीतर तक छू गया. वो भागती हुई रसोई की तरफ चली गयी.
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