अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक ने पूनम को चौंका दिया. अनजानी आशा से उसकी छाती धाड़-धाड़ बजने लगी. उसके हर्ष की सीमा न रही जब उसने दरवाजे पर डौक्टर सूर्यकांत को खड़ा पाया. हल्के नीले रंग की शर्ट और काली पैंट में वह सचमुच एक फरिश्ते के समान लग रहा था.
‘क्या मैं अन्दर आ जाऊं...?’ उसने मजाकिया लहज़े में पूछा.
‘जी... आइये न...’ पूनम खुशी से कंपकपाते स्वर में बोली और उसने आगे बढ़कर उसका बैग थाम लिया.
‘अब कैसे हैं तुम्हारे बाबा..?’
‘जी, पहले से बहुत अच्छे हैं... आइये...’ वह उसे लेकर भीतर वाले कमरे की ओर बढ़ गयी.
‘नमस्ते डौक्टर साहब...’ मास्टर जी ने उसे देखा तो खुशी से हाथ जोड़े उठने की कोशिश करने लगे.
‘अरे-अरे... आप लेटे रहिए... अब तो आप काफी अच्छे लग रहे हैं. ऐसे ही समय से दवाएं वगैरह लेते रहिए... देखिएगा महीने भर में आप दौड़ने लगेंगे....’ वह स्टूल खींचकर उनके पलंग के पास बैठ गया. उसने बैग खोल कर अपना आला निकाला और उन्हें चेक करने लगा.
‘बेटा, जा दौड़कर चाय बना ला डौक्टर साहब के लिए...’ बूढ़े ने पूनम से कहा.
‘जी...’ पूनम जल्दी से रसोई की तरफ चली गयी.
ताकत का इंजेक्शन देने के बाद डौक्टर सूर्यकांत मास्टर जी से बतियाने लगा.
‘आगे दवाएं वैसे ही लेते रहिएगा... मैं बीच-बीच में आता रहूंगा...’ उसने मास्टर जी से कहा.
‘डौक्टर साहब, मैं आपके एहसान का बदला कभी नहीं...’ मास्टर जी की आवाज लड़खड़ा गयी. आंखों में आंसू भरे वह उसके पैरों की तरफ झुक गये.
‘अरे-अरे... ये क्या कर रहे हैं? आप तो मुझे शमिन्दा कर रहे हैं मास्टर जी... मैंने तो सिर्फ अपना फर्ज़ निभाया है.....’ उसने उन्हें पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया.