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वार्डन सिरिल ने जबसे पूनम को अंकुर की तस्वीर दिखायी थी, उसकी हालत अजीब सी हो रही थी. उसको समझ में नहीं आ रहा था कि उसके दिल में जो भावनाओं का जो ज्वार उठ रहा है, उसे किसके साथ बांटे. किससे कहे अपने दिल की पीर. डौक्टर सूर्यकांत को वह अपने मन-मन्दिर का देवता मान चुकी थी. उनके अलावा किसी अन्य पुरुष की तो उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह जानती थी कि वह उनके काबिल नहीं है. ये तो उनका अहसान था कि एक गरीब बेसहारा लड़की को उन्होंने इतना अपनापन दिया. उसकी इतनी मदद की. उनका अहसान तो वह सात जनम लेकर भी नहीं उतार सकती थी. वो तो अपने देवता के चरणों में खुद को मिटा देना चाहती थी. उसके दिल में तो बस डौक्टर सूर्यकांत की छवि बसी थी और उनके अलावा वह किसी दूसरे की ओर देख भी नहीं सकती थी. किसी अन्य को बर्दाश्त ही नहीं कर सकती थी. उसकी हालत बड़ी विक्षिप्त सी हो रही थी. वो रात भर रोती रही और अपनी डायरी के पन्ने काले करती रही. उसके मनोभाव, उसके जज़्बात, उसकी हर भावना डायरी के पन्नों में सिमटती जा रही थी.

सुबह बड़ी देर तक दरवाजा खटखटाने के बाद भी जब वह न खुला तो चपरासियों की मदद से वार्डन सिरिल को दरवाजा तुड़वाना पड़ा. वह घबरायी हुई अन्दर पहुंची तो पूनम बिस्तर पर पड़ी उल्टी सांसें ले रही थी. आननफानन में उन्होंने एम्बुलेंस बुलवायी, डॉक्टर सूर्यकांत को फोन किया और अस्पताल में पूरे वक्त वह खुदा से पूनम की सलामती की दुआएं मांगती बेचैनी से इधर से उधर घूमती रहीं.

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