बेटा शब्द भी बड़े कमाल का शब्द होता है दोस्तो. मांबाप किसी को ले कर चिंतित रहें या न रहें, पर इस शब्द को ले कर बड़े चिंतित रहते हैं. इस के होने से ले कर इस के बाप बन जाने के बाद तक भी. या कहें मांबाप जब तक यहां से प्रस्थान नहीं कर जाते.

इतिहास उठा कर देख लीजिए. दशरथ से ले कर धृतराष्ट्र तक, धृतराष्ट्र से ले कर अपने दोस्त तक, बेचारे सब बाप अपने बेटों को ले कर परेशान ही रहे. सारी उम्र कट गई उन की अपने बेटों को स्थापित करतेकरते. इस चक्कर में कई बेचारे बाप बेटों को स्थापित करतेकरते खुद विस्थापित हो गए. उस के बाद भी किसी बाप ने आज तक उन विस्थापित बापों से कोई सीख नहीं ली.

काल बदले, युग बदले, पर बेटों को ले कर मांबापों की चिंता कम होने के बजाय और भी बढ़ी ही है, बल्कि आज तो यह हाल है कि मांबाप अपने बेटों को ले कर कुछ अधिक ही चिंतित दिखते हैं. जब देखो अपना वर्तमान छोड़, बस, उन के भविष्य के बारे में डूबे दिखते हैं.

इसी चिंता में डूबे हुए एक अदद बेटे के बाप मेरे पास आए. आते ही अपना दुख कम करने के लिए अपना दुखड़ा सुनाने लगे, ‘यार, बहुत कोशिश कर ली. बेटा है कि लिखनापढ़ना तो सीखा ही नहीं, बोलना भी नहीं सीख रहा. इतना बड़ा हो गया. अब तुम ही कुछ बताओ कि बेटे को कैसे बोलना सिखाऊं? कम से कम बोलना सीख जाता तो...’

मामला पेचीदा था. बेटे का भी और बाप का भी. मैं ने चुटकी लेते कहा, तो तुम्हें और क्या चाहिए मेरे दोस्त. ऐसे बेटे आज की तारीख में कम लोगों को ही मिलते हैं वरना आज के बेटे तो पैदा होते ही बाप को कहने लग जाते हैं कि कैसे बाप हो तुम भी? क्या है तुम्हारे घर में? अगर मेरा ऐसे ही वैलकम करना था तो क्यों बुलाया मुझे अपने घर में? भले ही बाप ने 10 बेटियों के बाद 11वीं बार में इसे बुलाया होे.

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