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खुद की तलाश : भाग 2

मानसी को  झटका लगा. अभी उम्र ही क्या है विभा की. बच्ची है वह. पर इस से पहले कि वह अपना मंतव्य व्यक्त करती, मां ने बात आगे बढ़ा दी, ‘‘विभोर की अभीअभी सरकारी नौकरी पक्की हुई है. अशोकजी, तुम्हारे पापा के पुराने दोस्त हैं, इस खातिर रिश्तों की बाढ़ पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. विभोर सैटल होना चाहता है.’’

मां ने बात जारी रखी, ‘‘विभा की दिलचस्पी पढ़ाई और कैरियर में नहीं है. जबरदस्ती उसे आगे पढ़ने भी नहीं भेज सकते. घर में वह पुस्तकें पढ़ने में, पेंटिंग आदि करने में मग्न है, लेकिन कितने दिन चलेगा? उस की सहेलियों को तो तुम जानती ही हो. कहीं कुछ उलटासीधा न कर बैठे.’’

मानसी को याद हो आए विभा के कालेज के प्रसंग. आए दिन कोई न कोई उसे कुछ न कुछ थमा देता. वैलेंटाइन डे के आसपास तो सारा घर टौफीचौकलेट और अन्य गिफ्टों से भर जाता. कुछ पत्र भी तो थे जो उस ने मानसी को गोपनीयता में दिखाए थे. उन मतवाले आशिकों की ऊटपटांग कविताओं की दोनों बहनों ने मिल कर खाल उधेड़ी थी.

‘‘मैं सम झ रही हूं मां पर इस का यह तो मतलब नहीं कि आप लोग मेरी जिंदगी से खिलवाड़ कर लें,’’ उस ने अपनी बात रखी. ‘‘तू नहीं सम झी रे मानू,’’ मां ने प्यार से फटकारा, ‘‘अगर तु झे वाकई शादी नहीं करनी तो हम विभा की बात चलाएं?’’

मानसी स्तब्ध रह गई. ‘‘अब वह पहले जैसा जमाना तो रहा नहीं कि बड़ीछोटी की शादी सीक्वैंस में ही हो,’’ मां ने चुप्पी तोड़ी. फिर शरारत भरी निगाहों से मानसी को देखते हुए उन्होंने कहा,‘‘वैसे भी मेरी मानसी पूर्णत: आत्मनिर्भर है,’’

‘जिस लड़की ने अपने हरेक परिधान तक का चुनाव भी स्वयं किया हो, अपने विषयों का चुनाव खुद किया, अपने जीवन का हर चुनाव अपनी मरजी से किया हो उस से उसे यह अपेक्षा कैसे रखी जा सकती है कि वह अपने जीवनसाथी का चुनाव किसी और को करने देगी.’ मां की बातों के निहितार्थ को सम झने में तीव्रबुद्धि मानसी को देर नहीं लगी. उस के जीवन में ऐसा कोई नहीं था. फिर शायद मां की ठिठोली का ही नतीजा था कि वह गुलाबी हो गई. अंतत: उस ने विभोर के रिश्ते को अस्वीकार कर के विभाविभोर के रिश्ते को मौन स्वीकृति दे दी. अभी कुछ माह ही हुए थे शादी को संपन्न पर जैसे ही विभा अपने हनीमून के र

ंगीन किस्से उसे सुनाने लगती, मानसी को लगता कि इतना लंबा अरसा बीतने के बाद भी विभा इतना रस ले कर कैसे सब सुना सकती है. बाली गए थे वे दोनों हनीमून पर. हालांकि मानसी ने भारत के बाहर कदम भी नहीं रखा पर फिर भी उसे ऐसा लगता था मानो उस ने बाली की संपूर्ण यात्रा कर ली हो. यह नहीं तो सब के साथ बैठ कर कभी किसी पार्टी की व्याख्या करना, कभी किसी गैटटुगैदर की. इतना समय आखिर मिलता कैसे है किसी को?

जब उस के नौकरी जौइन करने का समय आया तो उस ने चैन की सांस ली. अपने घर से इतनी दूर आ कर उसे शुरू में तो बहुत अच्छा लगा. आज तक कभी साउथ इंडिया नहीं देखा था. बैंगलुरु जैसे शहर में रहना उसे खूब आनंददायक लगा. न ज्यादा गरमी, न ज्यादा सर्दी. उस के शहर पटना से तो काफी बेहतर था. पर धीरेधीरे नए माहौल, नए पकवान का रंग फीका होने लगा और घर की याद सताने लगी. हालांकि पढ़ाई के लिए वह दिल्ली में रहती थी पर जब मौका लगा घर निकल गई. यहां नई भाषा, नई संस्कृति के बीच उसे पराएपन का एहसास होने लगा. सिर्फ यह संतोष था कि काम में मन लग गया था.

कुछ बातों को ले कर उस की अपने हैड से अनबन होने लगी है. उसे कभीकभी लगता है कि उस के एचओडी उस के औरत होने के कारण उस पर ऐसी कई जिम्मेदारियां लाद देते हैं, जो उन के अनुसार औरतों को शोभा देती हैं. मसलन, कालेज की ऐनुअल फेस्ट आयोजित करना. ऐसा नहीं है कि उसे इस से कोई परेशानी है पर जब विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय साहित्यक सम्मेलन व्यवस्थित करने का उस ने अनुरोध किया था तब उसे संकेतात्मक ढंग से सम झा दिया गया था कि देश के साहित्यकारों को एकत्रित करने का भार उस से वहन नहीं होगा.

मन बहलाने के लिए विभा को फोन लगाया तो मनोदशा और बिगड़ गई. मुहतरमा अपनी ननद के साथ किसी पार्टी में जाने की तैयारी में व्यस्त थीं, ‘‘अरे दीदी, इतनी सुंदर साड़ी भेंट दी है जीजी ने मु झे दीवाली पर, मैं क्या बताऊं.’’

उस का खून जल उठा. एक विभा है जो दिनरात मौजमस्ती में लगी रहती है और एक वह है जो यहां घर से इतनी दूर सड़ रही है. उस की बचपन से ही अपने में मग्न रहने की आदत के कारण उस की किसी से इतनी मित्रता नहीं हुई थी कि उसे दीवाली के लिए निमंत्रण मिलते. वैसे भी यहां लोग दीवालीहोली कम ही मनाते हैं. मां ने बुलाया था घर, पर क्या करती छुट्टी ही नहीं थी इतनी. रहरह कर उस का ध्यान विभा पर चला जाता कि वह यहां नितांत अकेली है और विभा ने उस का रिप्लेसमैंट भी खोज लिया. घर बसाना यही उस का सपना था.

‘मैं तो उस से बिलकुल अलग किस्म की जीव हूं. फिर आजकल उस के बनसंवर कर नित पार्टी में सब के आकर्षण का केंद्र बनने से, उस के घरपरिवार में मानसम्मान पाने से मु झे बुरा क्यों लग रहा है? आखिर क्यों?’ ‘हां मैं स्वीकारती हूं कि मैं मानसी, अपनी छोटी बहन से ईर्ष्या कर रही हूं,’ उस का मन बोल उठा. ‘पर क्यों? ये सब तो मेरा ही चुनाव है,’ मस्तिष्क ने जवाब दिया. सारी रात दिल और दिमाग के वादविवाद में गुजर गई. उसे स्मरण हो आया कि

कैसे उस ने जब घर में बताया था कि वह बैंगलुरु में नौकरी का प्रस्ताव स्वीकार चुकी है तब दादी ने कितना बवाल मचाया था. अपने कपड़े पैक कर वह मम्मीपापा और दादी के सामने दृढ़तापूर्वक उन के सवालों के जवाब दे रही थी. उस के मम्मीपापा ने उस की इच्छा का सम्मान किया. उस के साहस और उस की महत्त्वकांक्षा को सलाम किया. जब वे संतुष्ट हो गए कि वह इतनी दूर, अकेले सुरक्षित रह सकेगी तो उन्होंने शुभकामनाओं और आशीर्वाद के साथ उसे विदा किया. अब क्या हो गया उस के उस साहस को?

बैंगलुरु में रह कर विभा के सुखद जीवन की कल्पना मात्र से उसे इतनी तकलीफ होती थी और अब यहां आ कर अपनी आंखों से ये सब देखना उस के लिए असहनीय हो गया. मन शांत होने पर उसे एहसास हुआ कि वह विभा के सुख के कारण दुखी नहीं थी, अपितु अपने जीवन से दुखी है. उस ने संकल्प किया कि वह जल्द ही वापस जाएगी और अपने कैरियर पर ध्यान केंद्रित करेगी. उस का कार्य ही एक ऐसी वास्तु थी और साहित्य एक मात्र वह साधन था, जो उसे प्रसन्नता प्रदान करते थे. देखते ही देखते वक्त पंख लगा कर उड़ गया. इधर उस के कैरियर ने रफ्तार पकड़ी और उधर विभा की जिंदगी ने भी. इन 5 वर्षों में क्या कुछ नहीं बदल गया. इंसान की सभी योजनाएं क्रियान्वित हों, जरूरी नहीं है. वक्त के साथ विभा दो बच्चों की मां बन गई और मानसी ने यूएस से फैलोशिप के पश्चात पीएचडी कर ली. वहीं प्रोफैसर बन जिंदगी का लुत्फ उठाने लगी.

एक अच्छी शिक्षिका होने के नाते उस की ख्याति दिनबदिन बढ़ती जा रही थी. विद्यार्थी ही नहीं शिक्षक भी उस की बुद्धि का लोहा मानते थे. इस के साथसाथ दुनियाभर की साहित्यिक गोष्ठियों में भी वह सम्मिलित होने लगी थी. उस की रचनाओं के चर्चे होने लगे थे. उस का अपना सर्कल बन गया, पार्टियों में जाना भी शुरू कर दिया. बहुत लोगों से मुलाकात होती रहती.

 

अच्छे लोग : भाग 5

प्रेम विवाह में जीवन की कठिनाइयां बाद में दिखाई देती हैं. मातापिता की सहमति से तय वैवाहिक संबंधों में कठिनाइयों को दूर करने के रास्ते तलाशे जा सकते हैं, लेकिन प्रेम विवाह में पतिपत्नी ही इन्हें दूर कर सकते हैं. कोई और रिश्तेदार उन के बीच में नहीं आता. अब तुम सोचो, तुम्हें क्या करना है?’’

अखिला मानसिक रूप से परेशान थी. वह समझती थी कि लड़ाईझगड़े से मामले सुलझ जाते हैं और पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से तलाक मिल जाता है. यहां तो मामला ही उलटा पड़ गया था. उस की सारी गोटियां उलटी पड़ गई थीं. कुछ भी आसान नहीं लग रहा था. कोर्ट में मामला पता नहीं कितने दिन तक  चलेगा? तब तक वह बूढ़ी नहीं हो जाएगी? उस का प्रेमी कब तक उस का इंतजार करेगा? वह समझती थी, ढकाछिपा रहेगा और घरेलू हिंसा की आड़ में उसे तलाक मिल जाएगा. परंतु उस की सारी पोल खुल गई थी.

अब अगर वह अपने मामले को वापस ले लेती है, तब भी प्रियांशु से तलाश लेने का उस के पास कोई आधार नहीं बनता? उस का मामला झूठ साबित हो गया था. मांगने से क्या प्रियांशु उसे तलाक देगा? उसे और उस के मातापिता को जेल भिजवा कर उस ने अच्छा तो नहीं किया था, परंतु यही बात उस के पक्ष में जाती थी. उस के कर्म का देखते हुए शायद वह उसे तलाक दे दे. प्रियांशु उस के साथ बाकी जीवन क्यों व्यतीत करेगा? क्या उसे माफ कर देगा? फिर भी, उसे अभी भी आशा की किरण नजर आ रही थी.

उस की मानसिक स्थिति कुछ ऐसी थी कि वह सही निर्णय नहीं ले पा रही थी. उस ने पापा से कहा, ‘‘इतना सब होने के बाद क्या मैं प्रियांशु के साथ सामान्य जीवन व्यतीत कर पाऊंगी.’’‘‘लगता तो नहीं है, परंतु अगर तुम स्वयं को सुधार सकती हो, तो मैं समझता हूं कि रमाकांतजी का परिवार तुम्हें माफ  कर देगा. वे बहुत अच्छे लोग हैं.’’

वह सोच में पड़ गई, फिर बोली, ‘‘अगर वे मुझे तलाक दे दें?’’अवनीश ने आंखें चौड़ी कर उसे देखा, ‘‘प्रेम का भूत अभी तक तुम्हारे सिर से नहीं उतरा.’’‘‘पापा, आप ने शादी के पहले मेरी कोई बात नहीं सुनी, इसीलिए मुझे इतना प्रपंच करना पड़ा. अब मेरी सुन लीजिए, शायद बात बन जाए. मुझे नहीं लगता कि मैं प्रियांशु के साथ खुश रहूंगी. मैं ने उसे इतना कष्ट दिया है, उस के मांबाप को जेल भिजवाया है. ऊपर से भले कुछ न कहें, परंतु अंदर से कभी माफ नहीं करेंगे.’’

‘‘तुम नहीं सुधरोगी,’’ अवनीश गुस्से से उठ कर अपने कमरे में चले गए. अखिला की मम्मी की समझ में नहीं आ रहा था, कैसी बेटी उन्होंने जनी थी. वह अंदर ही अंदर गुस्से से उफन रही थी, परंतु कुछ करने की स्थिति में नहीं थी. बेटी उसे अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही थी.घर का माहौल बहुत विषैला हो गया था.

अवनीश अपनी बेटी के कृत्य से बहुत दुखी थे. वे अकेले ही रमाकांत के घर गए. सब के सामने उन्होंने हताश स्वर में कहा, ‘‘रमाकांत भाई, बुजुर्ग सही कह गए हैं, आदमी अपनी औलाद से हार जाता है. मैं हार गया, अखिला को समझाना कुदरत के भी वश में नहीं है.’’‘‘क्या चाहती है वह?’’ रमाकांत ने स्पष्ट रूप से पूछा.

‘‘किसी भी तरह प्रियांशु से तलाक चाहती है.’’कुछ पल के लिए सब के बीच डरावना सन्नाटा पसरा रहा. इस सन्नाटे के बीच, बस, सब के दिल धडक़ रहे थे और सांसों की सरसराहट इस बात का यकीन दिला रही थी कि सभी जिंदा थे.

रमाकांत का दिल पहले से ही चकनाचूर था. अखिला के अंतिम निर्णय से पारिवारिक जीवन के सुखचैन की अंतिम किरण भी बुझ गई थी. मरे से स्वर में उन्होंने कहा, ‘‘अब भी अगर वह नहीं सुधरना चाहती तो कोई कुछ नहीं कर सकता. उसे आग से खेलने का शौक है, तो अंगारे खाती रहे. बस, हमें छुटकारा दे दे. हमारी तरफ से कोई अड़चन नहीं है. हम संबंधविच्छेद कर लेंगे.’’‘‘नहीं पापा,’’ अचानक प्रियांशु की गंभीर आवाज गूंजी.‘‘क्यों?’’ रमाकांत के मुंह से निकला.

‘‘क्योंकि ऐसी झूठी और फरेबी लड़कियों को सबक सिखाना बहुत आवश्यक है. विवाह एक सोचासमझा बंधन माना जाता है. सुखी दांपत्य जीवन एक अच्छे परिवार व समाज की सुदृढ़ नींव बनता है. हम अखिला जैसी लड़कियों के ओछे व्यवहार से विवाह जैसी संस्था को नष्ट नहीं कर सकते. उसे यह बताना जरूरी है कि वैवाहिक संबंधों को बिना कारण तोडऩा इतना आसान नहीं है कि वह आजाद हो कर अपने प्रेमी से शादी कर ले. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा.’’

‘‘बेटा, यह क्या कह रहे हो तुम?’’ अखिला हमारे साथ नहीं रहना चाहती है, तो हम क्यों उस की राह का रोड़ा बनें? इस से हमें भी परेशानी होगी.’’‘‘परेशानी तो होगी, परंतु उस की राह का रोड़ा बने बिना उसे सुधारा भी नहीं जा सकता. वह बेवकूफ है. उस ने मेरे साथ ब्याह किया है. फिर भी दांपत्य जीवन में आग लगा कर वह प्रेमी के साथ घर बसाने के सपने देख रही है. सो, उसे समझना होगा, यह इतना आसान नहीं है. तलाक मिलने तक वह बूढ़ी हो जाएगी. हमारी न्यायिक प्रक्रिया बहुत जटिल है. तलाक लेने की प्रक्रिया तो और भी अधिक जटिल है. हमारा कानून विवाह को महत्त्व होता है, तलाक को नहीं,’’ प्रियांशु ने कहा.

‘‘इस से तो हम भी सालोंसाल कानूनी पचड़े में फंसे रहेंगे. हमारा पारिवारिक जीवन कष्टप्रद हो जाएगा,’’ रमाकांत ने कुछ सोचते हुए कहा.‘‘परंतु हम गलत परंपरा को बढ़ावा भी नहीं दे सकते. अखिला शादी के पहले कुछ भी कर लेती, परंतु एक बार वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद उस की गलत हरकतों को हम मान्यता नहीं दे सकते. हमारे परिवार से उसे कोई तकलीफ नहीं थी, फिर भी उस ने हमें मुसीबत के जाल में फंसा दिया. इस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.

जानिए रोज चावल खाने के फायदे

हमारे रोज के खान पान का चावल अहम हिस्सा है. चावल के बिना खाने की कल्पना मुश्किल है. ये एक हल्का आहार है पर इसे खाने के बाद काफी देर तक फिर भूख नहीं लगती. अक्सर जिन लोगों को डाइटिंग करनी होती है, चावल से दूरी बना लेते हैं.

क्या आपको पता है कि चावल में विभिन्न प्रकार के विटामिन और मिनरल्स पाए जाते हैं. इसमें नियासिन, विटामिन डी, कैल्श‍ियम, फाइबर, आयरन, थायमीन और राइबोफ्लेविन पर्याप्त मात्रा में होता है. ये तत्व हमारे शरीर के लिए बेहद फायदेमंद हैं.

आम तौर पर जब लोगों के पेट में दिक्कत होती है तो उन्हें खिचड़ी खाने के लिए कहा जाता हैं. क्योंकि ये बहुत जल्दी हजम होती है. हर खाद्य पदार्थ की ही तरह चावल भी काफी स्‍वास्‍थ्‍य वर्धक होता है बस जरूरत है कि इसे एक हिसाब में खाया जाए. अस्थमा और मधुमेह के मरीजों को चावल से परहेज करनी चाहिए.

अल्‍जाइमर को ठीक करने में है मददगार

अल्जाइमर की बीमारी में चावल काफी फायदेमंद है. इसे खाने से आपके दिमाग में न्यूरोट्रांसमीटर का विकास तेज हो जाएगा, जो अल्‍जाइमर रोगियों की बीमारी के खिलाफ लड़ने में सहायक होता है.

खाएं ब्राउन राइस

सफेद चावल की तुलना में भूरा चावल, जिसे हम ब्राउन राइस भी कहते हैं, काफी भायदेमंद होता है. इसमें मौजूद तत्व शरीर के लिए काफी लाभकारी होते हैं.

शरीर को मिलती है उर्जा

एक कटोरी चावल खाने से शरीर को जितनी उर्जा मिलती है को किसी अन्य खाद्य पदार्थ की तुलना में ज्यादा होती है. इससे शरीर को प्रचूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स मिलता है. दिमाग को अच्छी तरह से काम करता है. इसके साथ ही इससे आपके शरीर में मेटाबौलिंज्म एक्टिव रहते हैं और आपको काफी उर्जा मिलती है.

रखे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित

अगर आपको ब्लड प्रेशर की परेशानी रहती है तो आपको रोज चावल खाना चाहिए. इसमें सोडियम की मात्रा नहीं होती, इससे दिल की बीमारी का खतरा काफी कम होता है.

नो कोलेस्ट्रौल लेवल

चावल में कोलेस्ट्रौल की मात्रा ना के बराबर होती है. अगर आप मोटा नहीं होना चाहते, आपको चावल खाना चाहिए.

शरीर रखे ठंडा

चावल खाने से पेट ठंडा रहता है. इससे पेट की कई परेशानियां अपने आप खत्म हो जाती है. शरीर के तापमात को नियंत्रित रखता है चावल.

कैंसर का खतरा होता है कम

ब्राउन राइस खाने से शरीर को अघुलनशील फाइबर पाए जाते हैं, जो शरीर में कैंसर का खतरा काफी कम करता है.

त्‍वचा में आता है निखार

कई जानकार बताते हैं कि त्वचा में निखार लाने के लिए चावल का प्रयोग नियमित तौर पर करना चाहिए. चावल का पानी जिसे आम भाषा में माड़ कहते हैं, पीने से त्वचा की समस्याएं दूर होती हैं. इसमें एंटीऔक्‍सीडेंट होता है जो कि झुर्रियों को दूर रखता है.

मेरे घर का माहौल जरूरत से ज्यादा स्ट्रिक्ट है, इसके बावजूद मेरी बहन का एक बौयफ्रैंड है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 27 वर्ष का हूं और बिहार का रहने वाला हूं. मेरी एक 22 वर्षीया बहन है जिस का अभी अभी पटना के एक मैडिकल कालेज में दाखिला हुआ है. मैं अपनी बहन से बहुत परेशान हो चुका हूं. हमारे घर का माहौल जरूरत से ज्यादा स्ट्रिक्ट है. बावजूद इस के मेरी बहन का एक बौयफ्रैंड है. बौयफ्रैंड के बारे में मुझे मेरी मौसी की बेटी ने बताया. बात की तह तक पहुंचने के लिए मैं ने अपनी बहन का फोन चोरी से चैक किया तो पता लगा सचमुच वह रिलेशनशिप में है. जिस लड़के के साथ वह रिलेशनशिप में है. मुझे उस के बारे में कुछ नहीं पता. इस से बड़ी परेशानी यह है कि अगर मम्मी पापा को यह सब पता चला तो उस की पढ़ाई भी छुड़वाई जा सकती है. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं उसे समझाऊं तो समझाऊं कैसे. क्या मुझे उस से इस बारे में बात करनी चाहिए? पर मैं उस से बात क्या करूं?

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जवाब

आप एक समझदार व्यक्ति हैं, यह तो आप की बात पढ़ कर ही पता चलता है. साधारणतया इस तरह की चीजों में भाई पूरे घर में ढोल पीट देते हैं. खैर, मुददे पर आते हैं. आप को इस विषय पर अपनी बहन से बात करनी ही चाहिए. आप शांत जगह पर अपनी बहन के साथ जा कर बैठिए, उसे बताइए कि आप उस के रिलेशनशिप के बारे में उस से बात करना चाहते हैं. हो सकता है वह यह सुन कर असहज महसूस करे या उसे कुछ अजीब लगे. लेकिन, आप उसे यह बात क्लियर कर दें कि आप उसे डांटने या मारपीट करने के लिए यह सब नहीं पूछ रहे. उस के बौयफ्रैंड के बारे में जानिए. पता लगाइए कि वह किस तरह का लड़का है. चाहे तो आप उस से मिल भी लीजिए.

आप को अपनी बहन और उस के बौयफ्रैंड को समझना होगा कि वे दोनों कुछ ऐसा न करें जिस से फिलहाल आप के मातापिता को कुछ पता लगे. साथ ही अपनी बहन को यह भी समझाएं कि उस का इस वक्त पढ़ाई पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. वह बड़ी है और रिलेशनशिप में रहना गलत नहीं है, लेकिन यदि वह पढ़ाई पर गौर नहीं करेगी तो उस का कैरियर खराब हो जाएगा और पापा को पता लगा तो और भी ज्यादा परेशानी होगी. आप उसे यह सब समझाइए, यकीनन वह आप की बात समझेगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

एक अकेली: परिवार के होते हुए भी क्यों अकेली पड़ गई थी सरिता?

सरिता घर से निकलीं तो बाहर बादल घिर आए थे. लग रहा था कि बहुत जोर से बारिश होगी. काश, एक छाता साथ में ले लिया होता पर अपने साथ क्याक्या लातीं. अब लगता है बादलों से घिर गई हैं. कभी सुख के बादल तो कभी दुख के. पता नहीं वे इतना क्यों सोचती हैं? देखा जाए तो उन के पास सबकुछ तो है फिर भी इतनी अकेली. बेटा, बेटी, दामाद, बहन, भाई, बहू, पोतेपोतियां, नाते-रिश्तेदार…क्या नहीं है उन के पास… फिर भी इतनी अकेली. किसी दूसरे के पास इतना कुछ होता तो वह निहाल हो जाता, लेकिन उन को इतनी बेचैनी क्यों? पता नहीं क्या चाहती हैं अपनेआप से या शायद दूसरों से. एक भरापूरा परिवार होना तो किसी के लिए भी गर्व की बात है, ऊपर से पढ़ालिखा होना और फिर इतना आज्ञाकारी.

बहू बात करती है तो लगता है जैसे उस के मुंह से फूल झड़ रहे हों. हमेशा मांमां कह कर इज्जत करना. बेटा भी सिर्फ मांमां करता है.  इधर सरिता खयालों में खो जाती हैं: बेटी कहती थी, ‘मां, तुम अपना ध्यान अब गृहस्थी से हटा लो. अब भाभी आ गई हैं, उन्हें देखने दो अपनी गृहस्थी. तुम्हें तो सिर्फ मस्त रहना चाहिए.’  ‘लेकिन रमा, घर में रह कर मैं अपने कामों से मुंह तो नहीं मोड़ सकती,’ वे कहतीं.  ‘नहींनहीं, मां. तुम गलत समझ रही हो. मेरा मतलब सब काम भाभी को करने दो न…’

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ब्याह कर जब वे इस घर में आई थीं तो एक भरापूरा परिवार था. सासससुर के साथ घर में ननद, देवर और प्यार करने वाले पति थे जो उन की सारी बातें मानते थे. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी पर बहुत पैसा भी नहीं था. घर का काम और बच्चों की देखभाल करते हुए समय कैसे बीत गया, वे जान ही न सकीं.

कमल शुरू से ही बहुत पैसा कमाना चाहते थे. वे चाहते थे कि उन के घर में सब सुखसुविधाएं हों. वे बहुत महत्त्वा- कांक्षी थे और पैसा कमाने के लिए उन्होंने हर हथकंडे का इस्तेमाल किया.   पैसा सरिता को भी बुरा नहीं लगता था लेकिन पैसा कमाने के कमल के तरीके पर उन्हें एतराज था, वे एक सुकून भरी जिंदगी चाहती थीं. वे चाहती थीं कि कमल उन्हें पूरा समय दें लेकिन उन को सिर्फ पैसा कमाना था, कमल का मानना था कि पैसे से हर वस्तु खरीदी जा सकती है. उन्हें एक पल भी व्यर्थ गंवाना अच्छा नहीं लगता था. जैसेतैसे कमल के पास पैसा बढ़ता गया, उन (सरिता) से उन की दूरी भी बढ़ती गई.

‘पापा, आज आप मेरे स्कूल में आना ‘पेरैंटटीचर’ मीटिंग है. मां तो एक कोने में खड़ी रहती हैं, किसी से बात भी नहीं करतीं. मेरी मैडम तो कई बार कह चुकी हैं कि अपने पापा को ले कर आया करो, तुम्हारी मम्मी तो कुछ समझती ही नहीं,’ रमा अपनी मां से शर्मिंदा थी क्योंकि उन को अंगरेजी बोलनी नहीं आती थी.

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कमल बेटी को डांटने के बजाय हंसने लगे, ‘कितनी बार तो तुम्हारी मां से कहा है कि अंगरेजी सीख ले पर उसे फुरसत ही कहां है अपने बेकार के कामों से.’  ‘कौन से बेकार के काम. घर के काम क्या बेकार के होते हैं,’ वे सोचतीं, ‘जब घर में कोई भी नौकर नहीं था और पूरा परिवार साथ रहता था तब तो एक बार भी कमल ने नहीं कहा कि घर के काम बेकार के होते हैं और अब जब वे रसोईघर में जा कर कुछ भी करती हैं तो वह बेकार का काम है,’ लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा.

उस दिन के बाद कमल ही बेटी रमा के स्कूल जाने लगे. पैसा आने के बाद कमल के रहनसहन में भी काफी बदलाव आ गया था. अब वे बड़ेबड़े लोेगों में उठनेबैठने लगे थे और चाहते थे कि पत्नी भी वैसा ही करे. पर उन को ऐसी महफिलों में जा कर अपनी और अपने कीमती वस्त्रों व गहनों की प्रदर्शनी करना अच्छा नहीं लगता था.  एक दिन दोनों कार से कहीं जा रहे थे. एक गरीब आदमी, जिस की दोनों टांगें बेकार थीं फिर भी वह मेहनत कर के कुछ बेच रहा था, उन की गाड़ी के पास आ कर रुक गया और उन से अपनी वस्तु खरीदने का आग्रह करने लगा. सरिता अपना पर्स खोल कर पैसे निकालने लगीं लेकिन कमल ने उन्हें डांट दिया, ‘क्या करती हो, यह सब इन का रोज का काम है. तुम को तो बस पर्स खोलने का बहाना चाहिए. चलो, गाड़ी के शीशे चढ़ाओ.’

उन का दिल भर आया और उन्हें अपना एक जन्मदिन याद आ गया. शादी के बाद जब उन का पहला जन्मदिन आया था. उन दिनों उन के पास गाड़ी नहीं थी. वे दोनों एक पुराने स्कूटर पर चला करते थे. वे लोग एक बेकरी से केक लेने गए थे. कमल के पास ज्यादा पैसे नहीं थे पर फिर भी उन्होंने एक केक लिया और एक फूलों का गुलदस्ता लेना चाहते थे. बेकरी के बाहर एक छोटी बच्ची खड़ी थी. ठंड के दिन थे. बच्ची ने पैरों में कुछ भी नहीं पहना था. ठंड से वह कांप रही थी. उस की हालत देख कर वे रो पड़ी थीं. कमल ने उन को रोते देखा तो फूलों का गुलदस्ता लेने के बजाय उस बच्ची को चप्पलें खरीद कर दे दीं. उस दिन उन को कमल सचमुच सच्चे हमसफर लगे थे. आज के और उस दिन के कमल में कितना फर्क आ गया है, इसे सिर्फ वे ही महसूस कर सकती थीं.

तब उन की आंखें भर गई थीं. उन्होंने कमल से छिपा कर अपनी आंखें पोंछ ली थीं.  सरिता की एक आदत थी कि वे ज्यादा बोलती नहीं थीं लेकिन मिलनसार थीं. उन के घर में जो भी आता था वे उस की खातिरदारी करने में भरोसा रखती थीं पर कमल को सिर्फ अपने स्तर वालों की खातिरदारी में ही विश्वास था. उन्हें लगता था कि एक पल या एक पैसा भी किसी के लिए व्यर्थ गंवाना नहीं चाहिए.

सरिता की वजह से दूरदूर के रिश्तेदार कमल के घर आते थे और उन की तारीफ भी करते थे. ‘सरिता भाभी तो खाना खिलाए बगैर कभी भी आने नहीं देती हैं’ या फिर ‘सरिता भाभी के घर जाओ तो लगता है जैसे वे हमारा ही इंतजार कर रही थीं’, ‘वे इतने अच्छे तरीके से सब से मिलती हैं’ आदि.  लेकिन उन की बेटी ही उन्हें कुछ नहीं समझती है. रमा ने कभी भी मां को अपना हमराज नहीं बनाया. वह तो सिर्फ अपने पापा की बेटी थी. इस में उस का कोई दोष नहीं है. उस के पैदा होने से पहले कमल के पास बहुत पैसा नहीं था लेकिन जिस दिन वह पैदा हुई उसी दिन कमल को एक बहुत बड़ा और्डर मिला था और उस के बाद तो उन के घर में पैसों की रेलमपेल शुरू हो गई.

कमल समझते थे कि यह सब उस की बेटी की वजह से ही हुआ है. इसलिए वे रमा को बहुत मानते थे. उस के मुंह से निकली हर बात पूरा करना अपना धर्म समझते थे. जिस से रमा जिद्दी हो गई थी. सरिता उस की हर जिद पूरी नहीं करती थी, जिस के चलते वह अपने पापा के ज्यादा नजदीक हो गई थी.  धीरेधीरे रमा अपनी ही मां से दूर होती गई. कमल हरदम रमा को सही और सरिता को गलत ठहराते थे. एक बार सरिता ने रमा को किसी गलत बात के लिए डांटा और समझाने की कोशिश की कि ससुराल में यह सब नहीं चलेगा तो कमल बोल पड़े, ‘हम रमा का ससुराल ही यहां ले आएंगे.’

उस के बाद तो सरिता ने रमा को कुछ भी कहना बंद कर दिया. कमल रमा की ससुराल अपने घर नहीं ला सके. हर लड़की की तरह उसे भी अपने घर जाना ही पड़ा. जब रमा ससुराल जा रही थी तो सब रो रहे थे. सरिता को भी दुख हो रहा था. बेटी ससुराल जा रही थी, रोना तो स्वाभाविक ही था.  सरिता को मन के किसी कोने में थोड़ी सी खुशी भी थी क्योंकि अब उन का घर उन का अपना बनने वाला था. अब शायद सरिता अपनी तरह अपने घर को चला सकती थीं. जब से वे इस घर में आई थीं कोई न कोई उन पर अपना हुक्म चलाता था. पहले सास का, ननद का, फिर बेटी का घर पर राज हो गया था, लेकिन अब वे अपना घर अपनी इच्छा से चलाना चाहती थीं.

रमा अपने घर में खुश थी. उस ने अपनी ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बना लिया था. जिस बात की सरिता को सब से ज्यादा फिक्र थी वैसी समस्या नहीं खड़ी हुई. सरिता भी खुश थीं, अपना घर अपनी इच्छा से चला कर, लेकिन उन की खुशी में फिर से बाधा पड़ गई. रमा घर आई और कहने लगी, ‘पापा, मां तो बिलकुल अकेली पड़ गई हैं. अब भैया की शादी कर दो.’  सरिता चीख कर कहना चाहती थीं कि अभी नहीं, कुछ दिन तो मुझे जी लेने दो. पर प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाईं और कुछ समय बाद रमा माला को ढूंढ़ लाई. माला उस के ससुराल के किसी रिश्तेदार की बेटी थी.

माला बहुत अच्छी थी. बिलकुल आदर्श बहू, लेकिन ज्यादा मीठा भी सेहत को नुकसान देता है. इसलिए सरिता उस से भी कभीकभी कड़वी हो जाती थी. माला बहुत पढ़ीलिखी थी. वह सरिता की तरह घरघुस्सू नहीं थी. वह मोहित के साथ हर जगह जाती थी और बहुत अच्छी अंगरेजी भी बोल लेती थी, इसलिए मोहित को उसे अपने साथ हर जगह ले जाने में गर्व महसूस होता था. उस ने रमा को भी अपना बना लिया था. रमा उस की बहुत तारीफ करती थी, ‘मां, भाभी बहुत अच्छी हैं. मेरी पसंद की हैं इसलिए न.’

सरिता को हल्के रंग के कपड़े पसंद थे. आज तक वे सिर्फ कपड़ों के मामले में ही अपनी मालकिन थीं लेकिन यहां भी सेंध लग गई. माला सरिता को सलाह देने लगी, ‘मां, आप इतने फीके रंग मत पहना करें, शोख रंग पहनें. आप पर अच्छे लगेंगे.’  कमल कहते, ‘अपनी सास को कुछ मत कहो, वे सिर्फ हल्के रंग के कपड़े ही पहनती हैं. मैं ने कितनी बार कोशिश की थी इसे गहरे रंग के कपड़े पहनाने की पर इसे तो वे पसंद ही नहीं हैं.’

‘कब की थी कोशिश कमल,’ सरिता कहना चाहती थीं, ‘एक बार कह कर तो देखते. मैं कैसे आप के रंग में रंग जाती,’ पर बहू के सामने कुछ नहीं बोलीं.

आज सुबह रमा को घर आना था. उन्होंने रसोई में जा कर कुछ बनाना चाहा. पर माला आ गई, ‘मां, लाइए मैं बना देती हूं.’

‘नहीं, मैं बना लूंगी.’

‘ठीक है. मैं आप की मदद कर देती हूं.’

उन्होंने प्यार से बहू से कहा, ‘नहीं माला, आज मेरा मन कर रहा है तुम सब के लिए कुछ बनाने का. तुम जाओ, मैं बना लूंगी.’

माला चली गई. पता नहीं क्यों खाना बनाते समय उन्हें जोर से खांसी आ गई. मोहित वहां से गुजर रहा था. वह मां को अंदर ले कर आया और माला को डांटने के लिए अपने कमरे में चला गया. सरिता उस के पीछे जाने लगीं ताकि उसे समझा सकें कि इस में माला का कोई दोष नहीं है. वे कमरे के पास गईं तो देखा दोनों भाईबहन बैठे हुए हैं. रमा आ चुकी थी और उन से मिलने के बजाय पहले अपनी भाभी से मिलने चली गई थी.

उन्होंने जैसे ही अपने कदम आगे बढ़ाए, रमा की आवाज उन के कान में पड़ी, ‘मां को भी पता नहीं क्या जरूरत थी किचन में जाने की.’

तभी मोहित बोल पड़ा, ‘पता नहीं क्यों, मां समझती नहीं हैं, हर वक्त घर में कुछ न कुछ करती रहती हैं जिस से घर में कलह बढ़ती है, मेरे और माला के बीच जो खटपट होती है उस का कारण मां ही होती हैं.’

‘क्या मैं माला और मोहित के बीच कलह का कारण हूं,’ सरिता सोचती ही रह गईं.

तभी माला की अवाज सुनाई पड़ी, ‘मैं तो हर वक्त मां का खयाल रखती हूं पर पता नहीं क्यों, मां को तो जैसे मैं अच्छी ही नहीं लगती हूं. अभी भी तो मैं ने कितना कहा मां से कि मैं करती हूं पर वे मुझे करने दें तब न.’

‘मैं समझती हूं, भाभी. मां शुरू से ही ऐसी हैं,’ रमा की आवाज आई.

‘मां को तो बेटी समझ नहीं पाई, भाभी क्या समझेगी,’ सरिता चीखना चाहती थीं पर आवाज जैसे गले में ही दब गई.

‘अच्छा, तुम चिंता मत करो, मैं समझाऊंगा मां को,’ यह मोहित की आवाज थी.

‘कभी मां की भी इतनी चिंता करनी थी बेटे,’ कहना चाहा  सरिता ने पर आदत के अनुसार फिर से चुप ही रहीं.

‘मैं देखती हूं मां को, कहीं ज्यादा तबीयत तो खराब नहीं है,’ माला बोली.

‘जब अपने ही मुझे नहीं समझ रहे तो तू क्या समझेगी जिसे इस घर में आए कुछ ही समय हुआ है,’ सरिता के मन ने कहा.

इधर, आसमान में बिजली के कड़कने की तेज आवाज आई तो वे खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं. दरअसल, दोपहर का खाना खाने के बाद जब वे बाजार जाने के लिए घर से निकली थीं तो सिर्फ बादल थे पर जब जोर से बरसात होने लगी तो वे एक बारजे के नीचे खड़ी हो गई थीं. और अब फिर सोचने लगीं कि अगर वे भीग कर घर जाएंगी तो सब क्या कहेंगे? रमा अपनी आदत के अनुसार कहेगी, ‘मां को बस, भीगने का बहाना चाहिए.’

कमल कहेंगे, ‘कितनी बार कहा है कि गाड़ी से जाया करो पर नहीं’.  मोहित कहेगा, ‘मां, मुझे कह दिया होता, मैं आप को लेने पहुंच जाता.’

बहू कहेगी, ‘मां, कम से कम छाता तो ले ही जातीं.’

सरिता ने सारे खयाल मन से अंतत: निकाल ही दिए और भीगते हुए अकेली ही घर की तरफ चल पड़ीं.

Bigg Boss 15 में नहीं नजर आएंगे Tejasswi Prakash के ये खास दोस्त, फैंस हुए उदास

सलमान खान के रियलिटी शो बिग बॉस 15 में आएं दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलते रहता है, जिस वजह से इस शो की टीआरपी में फेर बदल होती रहती है. हाल ही में इस शो को लेकर खबर आ रही थी कि मेकर्स इस शो की टीआरपी को बढ़ाने के लिए वाइल्ड कार्ड एंट्री करवाने जा रहे हैं.

जिसमें एक नाम टीवी एक्टर शिविंग नारंग का नाम सामने आ रहा है. बता दें कि तेजस्वी प्रकाश के खास दोस्त है शिविंग नारंग. घर में उनकी एंट्री होने से तेजस्वी और करण की दोस्ती पर फर्क जरूर पड़ेगा. इस खबर के आने के बाद से हर कोई काफी ज्यादा एक्साइटेड नजर आ रहा है.

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कुछ वक्त पहले कयास लगाएं जा रहे थें तो उस वक्त शिविंग ने मना कर दिया था बिग बॉस में एंट्री लेने का कोई इरादा नहीं है. जिसके बाद से शिविंग ने हाल ही में एक इंस्टा पोस्ट डाला है जिसमें उन्होंने लेिखा है कि खबर आ रही है कि बिग बॉस में मेरी एंट्री को लेकर बहुत सारी खबरें आ रही हैं. हालांकि मैं आपको बता दूं कि इस शो में मैं नहीं आ रहा हूं.

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सभी कंटेस्टेंट को मेरी तरफ से शुभकामनाएं, आपको बता दें कि शिविन और तेजस्वी काफी अच्छे दोस्त हैं, और उन दोनों को लेकर काफी ज्यादा खबरें भी आ रही थीं, जिसमें उन दोनों को डेट करने की खबर भी आ रही थी.

इसके अलावा भी वह दोनों कई सारे गाने में भी एक साथ नजर आ चुके हैं. दोनों को एक साथ देखना लोगों को काफी ज्यादा पसंद भी आता है.

वैसे अब देखना है कि शिविन और तेजस्वी के रिश्ते का क्या अंजाम होगा.

Udaariyaan : अंगद मान को सपोर्ट करेगी तेजो, फतेह को आएगा गुस्सा

करण वी ग्रोवर के सीरियल उड़ारियां में आ जाने से कई सारी चीजों में बदलाव आ गया है, अब तक आपने देखा होगा कि इस सीरियल में जैस्मिन तेजो की बहुत ज्यादा बेइज्जती करती है. जैस्मिन कहती है कि तेजो घर में सभी को बेवकूफ बना रही है.

जैसे ही जैस्मिन की बात तेजो सुनती है और वह वहां से चुपचाप चली जाती है, तेजो अपनी बात को अंगद मान से भी नहीं बताती है. और अकेले में जाकर रोने लगती है.

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जैसे ही तेजो को रोते हुए फतेह देखता है उसका खून खौल जाता है गुस्से से, फतेह को लगता है कि अंगद ने तेजो को रुलाया है, इसी बीच सीरियल उड़ारियां में बहुत बड़ा टविस्ट आने वाला है. आने वाले एपिसोड़ में आप देखेंगे कि अंगद का मार मारकर फतेह हुलियां खराब कर देगा.

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अंगद मान का हालत देखकर तेजो घबरा जाएगी, फतेह की इस हरकत के बारे में जानते ही तेजो भड़क जाएगी, अंगद के चोट पर दवाई लगाने के बाद फतेह से मिलने तेजो जाएगी. तेजो फतेह को देखकर उसे धमकी देते हुए कहेगी की तुम अंगद से दूरी बनाकर रखो. आगे सवाल करेगी कि किस हक से तुम हमारे बारे में सोच रहे हो. तुम्हें तो जैस्मिन का ख्याल रखना चाहिए.

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हालांकि तेजो को इस बात का सच्चाई पता चल जाता है कि अंगद मान के साथ जो कुछ भी हुुआ है उसके पीछे जैस्मिन का हाथ है.

फैमिली कोर्ट: अल्हड़ी के माता पिता को जब हुआ गलती का एहसास

‘‘नमस्कार जज अंकल,’’ मैं ट्रेन में सीट पर सामान रख कर बैठा ही था कि सामने बैठी एक खूबसूरत व संभ्रांत घर की लगने वाली युवती ने मुझे प्यार व अपनत्व वाली आवाज में अभिवादन किया. मुझे आश्चर्य हुआ कि यह युवती कौन है और यह कैसे जानती है कि मैं जज हूं? और साथ में अंकल का भी संबोधन? हो सकता है कि यह मेरे किसी भूतपूर्व कलीग जज की बेटी हो या फिर उस की नजदीकी रिश्तेदार हो. मैं यह सब सोच ही रहा था कि उस ने मुझे प्रश्नवाचक मुद्रा में देख कर मुसकरा कर कहा, ‘‘जज अंकल, आप मुझे नहीं पहचानेंगे. मैं जब आप के कोर्ट में आई थी तब मैं सिर्फ 10 वर्ष की थी. उस समय आप सूर्यपुर में जिला फैमिली कोर्ट में जज थे.’’ अरे यह तो बहुत वर्षों पुरानी बात है और मुझे रिटायर हुए भी 5 साल हो गए. किसी को भी इतनी पुरानी बातें कहां से याद आएंगी? और मेरी कोर्ट में तो दिन में सैकड़ों लोग आते थे.

सब के बारे में कैसे कोई याद रख पाएगा? सोचते हुए मैं उसे अभी तक प्रश्नवाचक दृष्टि से देख रहा था और वह शायद समझ गई थी कि मैं उसे अभी तक पहचान नहीं पाया हूं. ‘‘अंकल मैं अल्हड़ी, उस समय आप के कोर्ट में मेरे मम्मीपापा के तलाक का केस चल रहा था और उस केस की कार्यवाही के दौरान आप ने एक दिन मुझ से पूछा था कि बेटा, तुम्हें किस के साथ रहना है? उस ने मुझे याद कराया.वह आगे कुछ बोलती कि मेरे मुंह से अचानक निकला, ‘‘अरे अल्हड़ी.’’ इस लड़की व इस के मम्मीपापा केस को मैं कैसे भूल सकता हूं? रोज के झगड़े निबटातेनिबटाते मुझे कई बार उकताहट भी होती थी.

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पर मेरी फैमिली कोर्ट में ड्यूटी के दौरान एक केस ऐसा भी आया था जिस के परिणाम से मैं बहुत खुश था. इस केस का अंत आश्चर्यजनक व सुखद था. मैं तो क्या इस केस से संबंधित जो भी था, वह इस छोटी लड़की को कैसे भूल सकता है? ‘‘अरे बेटा अल्हड़ी तुम कैसी हो? तुम्हारे मम्मीपापा कैसे हैं?’’ मुझे सच में उस से मिल कर खुशी हुई. और ज्यादा खुशी तो उसे खुश देख कर हुई. मैं सच में जानना चाहता था कि क्या उस के मम्मीपापा अभी भी साथ रह रहे हैं? ‘‘अंकल, मैं आप के कारण बहुत खुश हूं. मेरे मम्मीपापा तो एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पाते. मैं इस साल सिविल सर्विस में चयनित हुई हूं और प्रशिक्षण के लिए शिमला जा रही हूं. आप उस दिन व्यक्तिगत रुचि नहीं लेते तो शायद मैं भी सिंगल पेरैंट की प्रौब्लमैटिक चाइल्ड होती,’’ उस ने मुझ से भावुक हो कर कहा.‘‘नहीं बेटा, अगर उस दिन तुम कोर्ट में समझदार बच्ची की तरह नहीं बोलतीं, तो शायद तुम्हारे मातापिता जिंदगी की सचाई समझ नहीं पाते और अपने व्यक्तिगत अहम से जिंदगी भर का नुकसान कर लेते. बेटा, तुम सच में बहुत समझदार लड़की हो,’’ मैं ने अपनत्व से कहा.

मैं उस समय सूर्यपुर की फैमिली कोर्ट में जज था और उस दिन अल्हड़ी के मातापिता के तलाक का केस था. पतिपत्नी को मैं ने उन की बच्ची सहित बुलाया था.दोनों ने आते ही शुरू से ही तलाक की मांग जोरदार तरीके से की. पर यह एक जिंदगी भर का फैसला था जिस से कई सारी जिंदगियां जुड़ी  हुई थीं, इसलिए मैं ने उन्हें 1 महीने का विचारने का समय दिया था. पर वे लोग तलाक पर अडिग थे. अब प्रश्न केवल यह था कि बच्ची किस के साथ रहेगी. मैं हमेशा यह प्रश्न बच्चों पर ही छोड़ता था. अल्हड़ी 10 साल की बच्ची थी. देखने में सुंदर और साथ में बहुत ही मासूम. उस का चेहरा बता रहा था कि वह कोर्ट में आने से पहले बहुत रोई होगी. वह गवाह के कठघरे में आई तो मैं ने हमेशा की तरह उस से भी पूछा कि बेटा किस के साथ रहना चाहती हो? सामान्यतया बच्चा जिस के करीब होता है उस के साथ रहने को कहता है, क्योंकि बच्चे को यह पता नहीं होता है कि क्या हो रहा है.उस ने कुछ देर बाद बोलना शुरू किया, ‘‘मेरा जन्म इन्हीं से हो क्या यह मेरा फैसला था? यदि मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में होता तो मैं शायद ही इन के द्वारा जन्म लेती. मेरे जन्म के लिए ये लोग साथ रह सकते थे, तो पालने के समय ये लोग किस अधिकार से अलग हो सकते हैं? जब मेरे जन्म का फैसला मेरे हाथ में नहीं था, तो पलने का फैसला मैं कैसे कर सकती हूं? जज अंकल, आप जो भी फैसला करें वह मुझे मंजूर है,’’ उस ने अपने आंसू रोकते हुए बेबसी से कहा.

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एक छोटी सी बच्ची के मुंह से इतनी गंभीर बात सुन कर पूरे कोर्टरूम में सन्नाटा छा गया. शायद मुझे जिंदगी में पहली बार पिनड्रौप साइलैंस का मतलब समझ में आ रहा था.

अचानक कोर्टरूम में जोरजोर से हिचकहिचक कर रोने की आवाज सुनाई दी. अल्हड़ी के मातापिता दोनों जोरजोर से रो रहे थे. ‘‘मुझे तलाक नहीं चाहिए जज साहब. मेरा पति भले ही दारू पिए, मुझे मारे या फिर बाहर गुलछर्रे उड़ाए, मैं उस के साथ रहने चली जाऊंगी. मेरे जीवन या मेरी भावनाओं से ज्यादा मेरी बेटी की जिंदगी जरूरी है. उसे अपने मां और पिता दोनों की छत्रछाया की जरूरत है,’’ तलाक लेने पर अड़ने वाली उस की मां यामिनी बोली.‘‘मुझे माफ कर दो यामिनी, मैं बच्ची की कसम खा कर कहता हूं अब मैं कभी दारू नहीं पिऊंगा,’’ हाथ जोड़ कर अपनी पत्नी से माफी मांगते हुए उस का पिता बोला. हद से ज्यादा कू्रर दिखने वाला व्यक्ति आज जैसे दया का पात्र लग रहा था. ‘‘जज साहब, हम अपनी तलाक की अर्जी वापस लेते हैं,’’ दोनों ने हाथ जोड़ कर मुझ से कहा. ‘‘बहुत अच्छी बात है. बच्ची का सुखद भविष्य इसी में है. कोर्ट आशा रखती है कि आप लोग हमेशा साथ रहेंगे और एक दूसरे से अच्छा बरताव करेेंगे. किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे रेल की पटरियों को जोड़ने वाले स्लीपर की तरह होते हैं,’’ मैं ने खुशी जताते हुए मुकदमे के अंत पर मुहर लगाई. सच बताऊं मेरी जिंदगी में इतना दिलचस्प केस कोई और नहीं था. उस दिन सच में मेरी कोर्ट फैमिली कोर्ट लग रही थी, जहां एक फैमिली का मिलन हुआ था.

स्वस्ति – भाग 1: स्वाति ने स्वस्ति को कौन सा पाठ पढ़ाया

‘‘स्वाति दीदी और नकुल जीजाजी आ रहे हैं. आप उन्हें जा कर ले आना. मेरे औफिस में एक प्रतिनिधि मंडल आ रहा है. मेरा जाना संभव नहीं हो सकेगा,’’ स्वस्ति अपने पति सुकेतु से बोली.

‘‘मैं नहीं जा सकूंगा. फोन कर दो. टैक्सी कर के आ जाएंगे,’’ सुकेतु ने स्वयं में डूबे हुए उत्तर दिया.

‘‘विवाह के बाद पहली बार हमारे घर आ रहे हैं, बुरा मान जाएंगे. आप की दीदी आई थीं, तो आप सप्ताह भर घर से काम करते रहे थे. अब 1 दिन भी नहीं कर सकते?’’

‘‘दीदी हमारी सुखी गृहस्थी देखने आई थीं. हम कितने सुखी दिखे कह नहीं सकता, पर यह अवश्य कह सकता हूं कि वे काफी निराश लग रही थीं. मैं ने तो तभी सोच लिया था जैसे हम अपना कार्य स्वयं करते हैं, अपना पैसा अलग रखते हैं, मित्र अलग हैं, वैसे ही संबंधी भी

अलग ही रहने चाहिए. है कि नहीं?’’ सुकेतु लापरवाही से बोला तो स्वस्ति खून का घूंट पी कर रह गई.

6 वर्षों तक प्रेम की पींगें बढ़ाने के बाद सुकेतु और स्वस्ति का विवाह हुआ था. दोनों के विवाह को 1 वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था पर विवाहपूर्व का प्रगाढ़ प्रेम कब का काफूर हो चुका था. दोनों एकदूसरे को नीचा दिखाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे. मधुयामिनी के समय ही दोनों में इतना झगड़ा हुआ था कि पांचसितारा होटल के प्रबंधक ने बड़ी शालीनता से दोनों को होटल छोड़ कर जाने की सलाह दे डाली थी.

‘‘हम ने पूरे सप्ताह के लिए अग्रिम किराया दे रखा है,’’ स्वस्ति क्रोधित स्वर में बोली जबकि सुकेतु चुप खड़ा देखता रहा.

‘‘आप ठीक कह रही हैं महोदया. पर हम अपने दूसरे अतिथियों को नाराज करने का खतरा नहीं उठा सकते. रही आप के अग्रिम किराए की बात, तो आप ने हमारे फर्नीचर और कपप्लेटों पर जो कृपा की है उस का हरजाना तो चुकाना ही पड़ेगा. शेष रकम हम लौटा देंगे,’’ उत्तर मिला.

दोनों चुपचाप अपने कक्ष में चले गए थे और अपने आगे के कार्यक्रम पर विचार करना चाहते थे. पर विचार करते तो कैसे, दोनों के बीच अबोला जो पसर गया था.

सुकेतु सोफे पर ही पसर गया था. पर आंखों से नींद कोसों दूर थी. स्वस्ति नर्मगुदगुदे बिस्तर पर भी करवटें बदलती रही थी. दोनों के बीच एक शब्द का भी आदानप्रदान नहीं हुआ था.

अगले दिन हालचाल जानने के लिए दोनों के मातापिता के फोन आए तो दोनों में स्वत: ही बोलचाल हो गई थी. किसी तरह दोनों ने वह समय गुजारा था, क्योंकि वापसी के टिकट पहले से ही बुक थे. अत: पहले जाना संभव नहीं था.

कुछ औपचारिकताओं के लिए उन्हें सुकेतु के मातापिता के यहां रुकना पड़ा था. दोनों के उतरे चेहरे देख कर सुकेतु की मां का माथा ठनका था.

‘‘क्या हुआ? कोई समस्या है क्या? तुम दोनों ही बड़े तनाव में लग रहे हो?’’ थोड़ा सा एकांत मिलते ही उन्होंने पूछ लिया था.

‘‘मां समझ में नहीं आता, क्या कहूं, क्या नहीं? लगता है मैं अपने जीवन की सब से बड़ी भूल कर बैठा हूं. हम दोनों का साथ रहना संभव नहीं लगता.’’

‘‘क्या कह रहे हो? पिछले 6 वर्षों से तो तुम उस के दीवाने बने घूम रहे थे. याद है मैं ने कितना समझाया था कि पहले अपनी छोटी बहन का विवाह हो जाने दो, फिर तुम्हारा विवाह करेंगे पर तब तुम ने एक नहीं सुनी थी.’’

‘‘ठीक कह रही हो मां. सच पूछो तो स्वस्ति की कलई तो अब खुली है. लगता ही नहीं है कि कभी हम दोनों एकदूसरे के प्यार में पागल थे,’’ सुकेतु बुझे स्वर में बोला था.

‘‘क्या सोचा था क्या हो गया. सोचा था तुम दोनों खुश रहोगे तो हम भी आनंदित रहेंगे पर यहां तो सब कुछ उलटपुलट होता दिख रहा है. किसी ने ठीक ही कहा है, सोना जानिए कसे-मनुष्य जानिए बसे. दुख तो इस बात का है कि तुम

6 वर्षों में भी स्वस्ति को नहीं समझ पाए.’’

‘‘इन छोटी बातों को दिल से नहीं लगाया करते, मां. थोड़े दिन और देखते हैं. ऐसा ही रहा तो अलग हो जाएंगे.’’

‘‘खबरदार, जो कभी फिर ऐसी बात मुंह से निकाली. हमारे खानदान में आज तक किसी ने तलाक की बात जबान से नहीं निकाली. इधर तुम्हारी शादी को 4 दिन हुए हैं और तुम लगे अलग होने की बातें करने,’’ मां बिगड़ गई थीं.

‘‘मैं भी तुरंत अलग नहीं होने जा रहा हूं. हमारा प्रेम 6 वर्ष पुराना है. विवाह कम से कम 6 माह तो चलना ही चाहिए. हर परिवार में कोई न कोई कार्य पहली बार अवश्य होता है. यों भी विवाह का अर्थ आजीवन कारावास तो है नहीं कि हर हाल में साथ निभाना ही पड़ेगा,’’ सुकेतु अनमने स्वर में बोल कर चुप हो गया था पर मां के चेहरे की उदासी उसे देर तक झकझोरती रही थी.

आज स्वस्ति से बहस होने के बाद मां से बात करने की तीव्र इच्छा हुई तो उस ने फोन मिला ही लिया.

‘‘क्या बात है सुकेतु, आज मां की याद कैसे आ गई?’’ मां उस का स्वर सुनते ही पहचान गई थीं.

‘‘क्या कह रही हैं मां. याद तो उस की आती है, जिसे भुला दिया गया हो. आप तो हर समय साए की तरह मेरे साथ रहती हैं.’’

‘‘अच्छा लगा सुन कर और सुनाओ क्या चल रहा है?’’

‘‘कल स्वस्ति की दीदी और जीजाजी पधार रहे हैं. काफी खुश लग रही है. मुझ से कहने लगी कि मैं उन्हें जा कर ले आऊं. उसे औफिस में काम है. मैं ने तो साफ कह दिया तुम्हारी दीदी है तुम जानो. मैं भी बहुत व्यस्त हूं,’’ और सुकेतु हंस दिया.

 

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