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अंत भला तो सब भला : भाग 3

अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया. उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था. संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी. वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.

‘‘कौन हो तुम  मेरे घर में किसलिए आना हुआ ’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.

‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.

‘‘मेरे घर मेें तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है… अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो…मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी. तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.

उन के ड्राइंगरूम में कदम रखते ही संगीता का सामना शिखा से हो गया.

‘‘मैं अकारण अपने घर आए मेहमान का अपमान नहीं करती हूं. तुम बैठो, वे नहा रहे हैं,’’ उसे यह जानकारी दे कर शिखा घर के भीतर चल दी.

‘‘प्लीज, आप 1 मिनट मेरी बात सुन लीजिए,’’ संगीता ने उसे अंदर जाने से रोका.

‘‘कहो,’’ अपने होंठों पर मुसकान सजा कर शिखा उस की तरफ देखने लगी.

‘‘मैं…मैं उस दिन के अपने खराब व्यवहार के लिए क्षमा मांगती हूं,’’ संगीता को अपना गला सूखता लगा.

‘‘क्षमा तो मैं तुम्हें कर दूंगी पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो…यह ठीक है कि तुम मुझे नहीं जानती थीं पर अपने पति को तुम ने चरित्रहीन क्यों माना ’’ शिखा ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस दिन मुझ से बड़ी भूल हुई…वे चरित्रहीन नहीं हैं,’’ संगीता ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘मेरी पूछताछ का भी यही नतीजा निकला था. फिर तुम ने हम दोनों पर शक क्यों किया था ’’

‘‘उन दिनों मैं काफी परेशान चल रही थी…मुझे माफ कर…’’

‘‘सौरी, संगीता. तुम माफी के लायक नहीं हो. तुम्हारी उस दिन की बदतमीजी की चर्चा मैं ने आज तक किसी से नहीं की है पर अब मैं सारी बात अपने पति को जरूर बताऊंगी.’’

‘‘प्लीज, आप उन से कुछ न कहें.’’

‘‘मेरी नजरों में तुम कैसी भी सहायता पाने की पात्रता नहीं रखती हो. मुझे कई लोगों ने बताया है कि तुम्हारे खराब व्यवहार से रवि और तुम्हारे ससुराल वाले बहुत परेशान हैं. अपने किए का फल सब को भोगना ही पड़ता है, सो तुम भी भोगो. शिखा को फिर से घर के भीतरी भाग की तरफ जाने को तैयार देख संगीता ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं आप से वादा करती हूं कि मैं अपने व्यवहार को पूरी तरह बदल दूंगी…अपनी मां और बहन का कोई भी हस्तक्षेप अब मुझे अपनी विवाहित जिंदगी में स्वीकार नहीं होगा…मेंरे अकेलेपन और उदासी ने मुझे अपनी भूल का एहसास बड़ी गहराई से करा दिया है.’’

‘‘तब रवि जरूर वापस आएगा… हंसीखुशी से रहने की नई शुरुआत के लिए तुम्हें मेरी शुभकामनाएं संगीता…आज से तुम मुझे अपनी बड़ी बहन मानोगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘थैंक यू, दीदी,’’ भावविभोर हो इस बार संगीता उन के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उमेश साहब के प्रयास से 4 दिन बाद रवि के दिल्ली तबादला होने के आदेश निकल गए. इस खबर को सुन कर संगीता अपनी सास के गले  लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उसी दिन शाम को रवि के बड़े भैया उमेश साहब का धन्यवाद प्रकट करने उन के घर काजू की बर्फी के डिब्बे के साथ पहुंचे.

‘‘अब तो सब ठीक हो गया न राजेश ’’

‘‘सब बढि़या हो गया, सर. कुछ दिनों में रवि बड़ी पोस्ट पर यहीं आ जाएगा. संगीता का व्यवहार अब सब के साथ अच्छा है. अपनी मां और बहन के साथ उस की फोन पर न के बराबर बातें होती हैं. बस, एक बात जरा ठीक नहीं है, सर.’’

‘‘कौन सी, राजेश ’’

‘‘सर, संयुक्त परिवार में मैं और मेरा परिवार बहुत खुश थे. अपने फ्लैट में हमें बड़ा अकेलापन सा महसूस होता है,’’ राजेश का स्वर उदास हो गया.

‘‘अपने छोटे भाई के वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरने के लिए यह कीमत तुम खुशीखुशी चुका दो, राजेश. अपने फ्लैट की किस्त के नाम पर तुम रवि से हर महीने क्व10 हजार लेने कभी बंद मत करना. यह अतिरिक्त खर्चा ही संगीता के दिमाग में किराए के मकान में जाने का कीड़ा पैदा नहीं होने देगा.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. वैसे रवि से रुपए ले कर मैं नियमित रूप से बैंक में जमा कराऊंगा. भविष्य में इस मकान को तोड़ कर नए सिरे से बढि़या और ज्यादा बड़ा दोमंजिला मकान बनाने में यह पैसा काम आएगा. तब मैं अपना फ्लैट बेच दूंगा और हम दोनों भाई फिर से साथ रहने लगेंगे,’’ राजेश भावुक हो उठा. ‘‘पिछले दिनों रवि को मुंबई भेजने और तुम्हारे फ्लैट की किस्त उस से लेने की हम दोनों के बीच जो खिचड़ी पकी है, उस की भनक किसी को कभी नहीं लगनी चाहिए,’’ उमेश साहब ने उसे मुसकराते हुए आगाह किया. ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा, सर. आप मेरी तरफ से शिखा मैडम को भी धन्यवाद देना. उन्होंने रवि के विवाहित जीवन में सुधार लाने का बीड़ा न उठाया होता तो हमारा संयुक्त परिवार बिखर जाता.’’

‘‘अंत भला तो सब भला,’’ उमेश साहब की इस बात ने राजेश के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.

अस्तित्व की तलाश : भाग 6

“आइएआइए वंदना जी, मैं आप का ही इंतज़ार कर रहा था,” डोर पर उस के नौक करते ही शिशिर आत्मीय स्वर में बोले. “माफ़ कीजिए, ज्यादा लेट तो नहीं हुई मैं?” “अरे नहीं, मेरा मित्र भी आता ही होगा. आप बैठिए,” राउंड टेबल के सामने वाली कुरसी की ओर शिशिर ने इशारा किया.

“देखिए, ये पेजेस बिलकुल तैयार हैं और नौवेल की प्रस्तावना भी बन कर आ चुकी है,” शिशिर ने उस की तरफ कुछ पेपर्स बढ़ाए. वह उन्हें देखने में तल्लीन थी कि कमरे में किसी ने प्रवेश किया. शिशिर ने उस का स्वागत करते हुए उसे भी वहीं पास की कुरसी पर बैठा दिया.

“वंदना जी, ये हैं आप की नौवेल के अतिथि संपादक और मेरे बहुत अच्छे मित्र मानस. यहीं पंचगनी से इन का एक अखबार निकलता है ‘सच्ची ख़बर’. और मानस, ये हैं इस कहानी की लेखिका वंदना, माफ़ कीजिएगा अब ‘वंदू’.”

कानों में ‘मानस’ शब्द के प्रतिध्वनित होते ही वंदना ने निगाहें उठा कर सामने बैठे शख्स को देखा. बेतरतीब दाढ़ी और हलकी घनी मूंछों ने सामने वाले के चेहरे को काफी ढक रखा था, लिहाज़ा, वह थोड़ा झिझक गई और नमस्ते की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए.

“वंदू,” तभी सामने वाले शख्स ने धीमी आवाज़ में उसे पुकारा. हां, उस ने वंदना को पहचानने में कोई भूल नहीं की थी क्योंकि वक्त के तमाम झंझावातों को झेलने के बाद भी वंदना के चेहरे की मासूमियत आज भी बरकरार थी. ओह्ह, वंदना को अपने कानों पर विश्वास न हुआ. सालों बाद ये शब्द, ये आवाज़ सुन कर उस का रोमरोम पुलकित हो उठा. सामने बैठे मानस को देख कर उस की आंखें जैसे भरोसा नहीं कर पा रही थीं.

“तो तुम लोग एकदूसरे को जानते हो?” दोनों की आंखों में एकदूसरे के लिए आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी देख शिशिर “अभी आता हूँ,” बोल कर बाहर निकल गए. कुछ देर मौन के बाद आख़िरकार मानस ने बात शुरू की. “कैसी हो वंदू?”

“मैं ठीक हूं मानस, पर तुम्हें क्या हो गया है. इस गंदी सी दाढ़ी के पीछे तुम ने अपने गालों के डिंपल क्यों छिपा लिए?” वंदना सहज भाव से मुसकराई.

“क्या करूं, इन डिंपल्स को देखने के लिए तुम जो नही थीं,” मानस ने बुझे स्वर में कहा.

“ठीक है, अब हम मिल गए हैं, तो, बस, यह दाढ़ी गायब हो जानी चाहिए,” वंदना के मुंह से बेसाख्ता निकल गया.

“जो हुक्म मेरे आका,” मानस ने भी वही जवाब दोहराया जो अकसर ऐसे मौकों पर वह वंदना को दिया करता था. दोनों की आंखें मिलीं और वे ज़ोर से हंस पड़े. इस हंसी ने पलभर में उन के बीच की सारी औपचारिकताओं को परे कर दिया और बात करते हुए दोनों एकदूसरे में खो गए. वंदना ने उसे आपबीती सुनाई तो मानस ने उस से अपना हालेदिल बयां किया.

नौकरी लगने के बाद बड़ी हिम्मत कर वह वंदना के घर आया था उस की मां से उस का हाथ मांगने. लेकिन बदले में रामेश्वरी देवी ने उसे कड़ी फटकार लगाते हुए बहुत लताड़ा और यह धमकी दी कि वे बेटी की बेवकूफ़ी के लिए जाति और धर्म पर कोई आंच आने नहीं देंगीं. अलबत्ता, धर्म के नाम पर बेटी की कुर्बानी देना उन के लिए बहुत सहज है. और इसी वजह से वह उस से दूर हो गया ताकि उस पर कोई आंच न आए.

वंदना से दूर हो कर कुछ साल उस ने यहांवहां नौकरी कर के गुज़ारे. तकरीबन 18 साल पहले अपने दोस्त शिशिर के कहने पर लोन ले कर दोनों ने एक ही साथ यहां अपनाअपना काम शुरू किया, जिस में मानस ने प्रिंटिंग प्रैस और शिशिर ने पब्लिशिंग हाउस खोला. वंदना के पूछने पर मानस ने यह भी बताया कि उस की जिंदगी में वंदना की जगह दूसरा कोई नहीं ले सकता था, सो उस ने आज तक शादी के बारे में नहीं सोचा.

“इधर मां ने मुझे भी तुम्हारी जान की धमकी दे कर दूसरी जगह शादी करने पर मजबूर कर दिया,” कह कर वंदना ने उसे अपनी जिंदगी का पूरा सच कह सुनाया. दोनों अपनी बातों में मशगूल थे कि शिशिर ने कमरे में प्रवेश किया. ”आशा है मैं ने आप दोनों को डिस्टर्ब न किया होगा.”

उन के इस कथन पर सभी हंस पड़े. काफ़ी देर हो चुकी थी, सो तय किया गया की जल्द ही एक मीटिंग रखी जाएगी, जिस में आज की अधूरी चर्चा को पूरा किया जाएगा. तब तक मानस तैयार पेजेस को पढ़ सकेगा और वंदना अपनी नौवेल का अंत सुनिश्चित कर लेगी.

दोनों ही एकदूसरे की पिछली जिंदगी जान कर दुखी हो चले. वंदना दुखी थी कि उस के कारण मानस को जिंदगी के हर सुख से वंचित होना पड़ा. पत्नी का प्यार और बच्चों की किलकारी की जगह उस की जिंदगी में उदासी व अकेलापन पसरा रहा, वहीं मानस यह जान कर तकलीफ़ में था कि वंदना को उस के कारण अपने पति व परिवार से कितना ज़लील होना पड़ा.

वंदना और मानस की यह मुलाकात तकरीबन 2 माह पुरानी हो चली थी. वंदना की नौवेल अब पूरी होने की कगार पर थी. इस बीच लगभग रोज़ ही फोन पर मानस ने यह कह कर उस का हौसला बढ़ाया था कि वह एक उम्दा लेखिका है. उस ने अपने दर्द की कतरनों को जिस प्रकार अमली जामा पहनाया है वह काबिलेतारीफ है. मानस के इन शब्दों ने उसे और अच्छा लिखने की प्रेरणा दी थी. निश्चित ही उस की इस किताब में औरत के हर रूप, हर पहलू पर खुल कर बात की गई थी. इस के साथ ही वंदना ने उन मर्दों पर भी जम कर शिकंजा कसा था जो औरत को सिर्फ़ एक देह मान उसे उपभोग की एक वस्तु से ज्यादा तवज्जुह नहीं देते.

आज वंदना की नौवेल का विमोचन समारोह था. मानस ने अतिथि संपादक की भूमिका को बेहतरीन ढंग से निभाते हुए उस की कहानी के मर्म को अपने संपादकीय में बखूबी उतार दिया था. आज दोनों की मिलीजुली मेहनत ‘अस्तित्व की पहचान’ के नाम का शीर्षक ले एक खूबसूरत आकार में ढल चुकी थी. उस पर वंदना के समधी यानी शिशिर ने आकर्षक कवर पेज से नौवेल की ख़ूबसूरती मे चारचांद लगा दिए थे. विमोचन एक स्थानीय मंत्री के हाथों होना तय हुआ था और इस समारोह के लिए बेटी तृषा और दामाद ऋतिक सुबह की फ्लाइट से पहुंचने वाले थे.

स्टेज पर वंदना का नाम पुकारा जा चुका था. स्वाभिमान की चमक चेहरे पर लिए सधी चाल से वंदना स्टेज पर जा पहुंची. अपनी इस सफ़लता का पूरा श्रेय उस ने अपनी बेटी तृषा को दिया, जिस ने न केवल उसे उस के अधिकारों के लिए लड़ना सिखाया बल्कि हर कदम पर उस की प्रेरणा भी बनी. अपनी नौवेल के बारे में संक्षिप्त जानकारी दे कर उस ने चंद पंक्तियों से अपनी बात समाप्त की…

सदियों से पड़ी हुई दासतां की बेड़ी खोल….

आज मैं आज़ाद होना चाहती हूं….

मुक्त मन उड़ान भरना चाहती हूं….

लगातार बज रही तालियों के बीच आज उस ने दुनिया के सामने अपने अस्तित्व, अपने वजूद को स्थापित कर दिया था. स्टेज पर अपनी मां को बोलते देख तृषा की ख़ुशी का ठिकाना न था. प्रोग्राम के तुरंत बाद वह कस कर मां के गले जा लगी और उन्हें ढेरों बधाई के साथ यह खुशखबरी भी दी कि पापा की दूसरी शादी के चलते उन का तलाक आसानी से मान्य हो चुका है. ऋतिक ने भी आगे बढ़ कर उस के पांव छूते हुए इस बड़ी सफलता के लिए उसे दिली मुबारकबाद दी.

तभी सामने से शिशिर और मानस को आता देख तृषा हौले से मुसकरा उठी. उस के ससुर ने उसे मानस के बारे में पहले ही सब बता दिया था, यह भी कि उस की मां और दोस्त मानस के पुराने प्यार में नई कोंपलें आनी शुरू हो गई हैं. वह मानस से मिल कर, उन के बारे में जान कर बहुत खुश थी और अब उन दोनों को एक होते देखना चाहती थी.

उस ने मां के पास जा कर उन के कानों में हौले से कुछ फुसफुसाया, जिसे सुन कर वंदना के कपोल सुर्ख हो चले.

इधर वंदना के अस्तित्व की तलाश पूरी हो चुकी थी तो उधर मानस के अकेलेपन का सफर खत्म होने को था. उन के पवित्र प्रेम के वर्षों की साधना अब साकार रूप में परिणत हो पूर्णता की ओर अग्रसर हो चली थी.

 

क्यों का प्रश्न नहीं : भाग 2

‘‘स्टेशन पहुंच कर मैं सैनिक आरामगृह में गया. वहां न केवल मुझे कमरा मिला बल्कि नरमगरम बिस्तर भी मिला. तुम्हारे जैसे हृदयहीन लोग इस बात का अनुमान ही नहीं लगा सकते कि उस ठिठुरती रात में बेगाने यदि मदद नहीं करते तो मेरी क्या हालत होती. मैं खुद के जीवन से त्रस्त था. मन के भीतर यह विचार दृढ़ हो रहा था कि ऐसी स्थिति में मैं कैसे जी पाऊंगा. मन में यह विचार भी था, मैं एक सैनिक हूं. मैं अप्राकृतिक मौत मर ही नहीं सकता. मैं डेरे में पनाह मिलने के प्रति भी अनिश्चित था. पर डेरे ने मुझे दोनों हाथों से लिया. पैसे की तंगी ने मुझे बहुत तंग किया. डेरे के लंगर में खाते समय मुझे जो आत्मग्लानि होती थी, उस से उबरने के लिए मुझे दूरदूर तक कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था. आप ने मुझे मेरी पैंशन में से हजार रुपया महीना देना भी स्वीकार नहीं किया तो मेरे पास इस के अलावा और कोई चारा नहीं था कि पहले का पैंशन डेबिट कार्ड कैंसिल करवा कर नया कार्ड इश्यू करवाऊं. मेरे जीतेजी पैंशन पर केवल मेरा अधिकार था.

‘‘मैं जीवनभर ‘क्यों’ के प्रश्नों का उत्तर देतेदेते थक गया हूं. बचपन में, ‘खोता हो गया है, अभी तक बिस्तर में शूशू क्यों करता हूं? अच्छा, अब फैशन करने लगा है. पैंट में बटन के बजाय जिप क्यों लगवा ली? अरे, तुम ने नई पैंट क्यों पहन ली? मौडल टाउन में मौसी के यहां दरियां देने ही तो जाना है. नई पैंट आनेजाने के लिए क्यों नहीं रख लेता? चल, नेकर पहन कर जा.’

‘‘काश, उस रोज मैं नेकर पहन कर न गया होता. मैं अभी भंडारी ब्रिज चढ़ ही रहा था कि साइकिल पर आ रहे लड़के ने मुझे रोका. ‘काम करोगे?’ मुझे उस की बात समझ नहीं आई, इसलिए मैं ने पूछा था, ‘कैसा काम?’ ‘घर का काम, मुंडू वाला.’ उस ने मेरे हुलिए, बिना प्रैस किए पहनी कमीज, बिना कंघी के बेतरतीब बाल, ढीली नेकर, कैंची चप्पल, बगल में दरियां उठाए किसी घर में काम करने वाला मुंडू समझ लिया था.

‘‘मैं ने उसे कहा था, ‘नहीं, मैं ने नहीं करना है, मैं 7वीं में पढ़ता हूं.’ फिर उस ने कहा था, ‘अरे, अच्छे पैसे मिलेंगे. खाना, कपड़ा, रहने की जगह मिलेगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’ जब मैं ने उसे सख्ती से झिड़क कर कहा कि मैं पढ़ रहा हूं और मुझे मुंडू नहीं बनना है तब जा कर उस ने मेरा पीछा छोड़ा था. बाद में शीशे में अपना हुलिया देखा तो वह किसी मुंडू से भी गयागुजरा था. मेरे कपड़े ऐसे क्यों थे? मेरे पास इस का भी उत्तर नहीं था. बाऊजी के अतिरिक्त सभी मेरा मजाक उड़ाते रहे.

‘‘मेरे दूसरे उपनामों के साथ ‘मुंडू’ उपनाम भी जुड़ गया था. उस भाई से कभी ‘क्यों’ का प्रश्न नहीं पूछा गया जो गली की एक लड़की के लिए पागल हुआ था. अफीम खा कर उस की चौखट पर मरने का नाटक करता रहा. गली में उसे दूसरी चौखट मिलती ही नहीं थी. उस बहन से भी कभी क्यों का प्रश्न नहीं पूछा गया जो संगीत के शौक के विपरीत लेडी हैल्थविजिटर के कोर्स में दाखिला ले कर कोर्स पूरा नहीं कर सकी, पैसा और समय बरबाद किया और परिवार को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया. उस भाई से भी क्यों का प्रश्न नहीं किया गया जो पहले नेवी में गया. छोड़ कर आया पढ़ने लगा, किसी बात पर झगड़ा किया तो फौज में चला गया. वहां बीमार हुआ, फौज से छुट्टी हुई, फिर पढ़ने लगा. पढ़ाई फिर भी पूरी नहीं की. सब से छोटे ने तो परिवार की लुटिया ही डुबो दी. मैं ने बाऊजी को चुपकेचुपके रोते देखा था. मैं पढ़ने में इतना तेज नहीं था. मुझ पर प्रश्नों की बौछार लगा दी जाती. पढ़ना नहीं आता तो इस में पैसा क्यों बरबाद कर रहे हो? इस क्यों का उत्तर उस समय भी मेरे पास नहीं था और आज भी नहीं है.

‘‘17 साल की उम्र में फौज में गया तो वहां भी इस क्यों ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा. सही होता तो भी क्यों का प्रश्न किया जाता और सही न होता तो भी. 11 साल तक तन, मन, धन से घर वालों की सेवा की. परिवार छूटते समय मेरे समक्ष फिर यह क्यों का प्रश्न था कि मैं ने अपने लिए क्यों कुछ बचा कर नहीं रखा. तुम से शादी हुई, पहली रात तुम्हें कुछ दे नहीं पाया, मुझे पता ही नहीं था कि कुछ देना होता है. पता होता भी तो दे नहीं पाता. मेरे पास कुछ था ही नहीं. 2 महीने की छुट्टी में मिले पैसे से मैं ने शादी की थी. मैं तुम्हें सब कैसे बताता और तुम क्यों सुनतीं? बताने पर शायद कहतीं, ऐसा था तो शादी क्यों की?

‘‘तुम्हारे समक्ष मेरी इमेज क्या थी? मैं बड़ी अच्छी तरह जानता हूं. तुम ने इस इमेज को कभी सुधरने का मौका नहीं दिया, अफसर बनने पर भी. उलटे मुझे ही दोष देती रहीं. तुम्हारे रिश्तेदार मेरे मुंह पर मुझे आहत कर के जाते रहे, कभी तुम ने इस का विरोध नहीं किया. मुझे याद है, तुम्हारी बहन रचना की नईनई शादी हुई थी. रचना और उस के पति को अपने यहां बुलाना था. तुम चाहती थीं, शायद रचना भी चाहती थी कि इस के लिए मैं उस के ससुर को लिखूं.

‘‘मैं ने साफ कहा था, मेरा लिखना केवल उस के पति को बनता है, उस के ससुर को नहीं. जैसे मैं साहनी परिवार का दामाद हूं, वैसे वह है. मैं उस का ससुर नहीं हूं. बात बड़ी व्यावहारिक थी परंतु तुम ने इस को अपनी इज्जत का सवाल बना लिया था. मन के भीतर अनेक क्यों के प्रश्न होते हुए भी मैं तुम्हारे सामने झुक गया था. मैं ने इस के लिए उस के ससुर को लिखा था.

‘‘जीवन में तुम ने कभी मेरे साथ समझौता नहीं किया. हमेशा मैं ने वह किया जो तुम चाहती थीं. रचना और उस का पति आए तो मिलन के लिए वे रात तक इंतजार नहीं कर सके थे. हमें दिन में ही उन के लिए एकांत का प्रबंध करना पड़ा. मुझे बहुत बुरा लगा था.

‘‘मैं समझ नहीं पाया था कि ऐसा कर के वे हमें क्या बताना चाहते थे? यदि हम उन के यहां जाते तो क्या वे ऐसा कह और कर सकते थे?

‘‘तुम्हें याद होगा, अपनी सीमा से अधिक हम ने उन को दिया था. रचना ने क्या कहा था, वह अपने ससुराल में अपनी ओर से इतना और कह देगी कि यह दीदीजीजाजी ने दिया है. जिस का साफ मतलब था कि जो कुछ दिया गया है, वह कम था. मैं मन से बड़ा आहत हुआ था.

‘‘रचना को इस प्रकार आहत करने, बेइज्जत करने और इस कमी का एहसास दिलाने का कोई हक नहीं था. मैं ने तुम्हारी ओर देखा था, शायद तुम इस प्रकार उत्तर दो पर तुम्हें अपने रिश्तेदारों के सामने मेरे इस प्रकार आहत और बेइज्जत होने का कभी एहसास नहीं हुआ.

‘‘क्यों, मैं इस का उत्तर कभी ढूंढ़ नहीं पाया. रचना को मैं ने उत्तर दिया था, ‘तुम्हें कमी लगी थी तो कह देतीं, जहां इतना दिया था, वहां उसे भी पूरा कर देते पर तुम्हें इस कमी का एहसास दिलाने का कोई अधिकार नहीं था. तुम अपने ससुराल में अपनी और हमारी इज्जत बनाना चाहती थीं न? मजा तब था कि बिना एहसास दिलाए इस कमी को पूरा कर देतीं. पर इस झूठ की जरूरत क्या है? क्या इस प्रकार तुम हमारी इज्जत बना पातीं? मुझे नहीं लगता, क्योंकि झूठ, झूठ ही होता है. कभी न कभी खुल जाता. उस समय तुम्हारी स्थिति क्या होती, तुम ने कभी सोचा है?’

‘‘रचना मेरे इन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाई थी. जो बात तुम्हें कहनी चाहिए थी, उसे मैं ने कहा था. उन के जाने के बाद कई दिनों तक तुम ने मेरे साथ बात नहीं की थी. उस रोज तो हद हो गई थी जब मैं अपने एक रिश्तेदार की मृत्यु पर गया था. वे केवल मेरे रिश्तेदार नहीं थे बल्कि उन के साथ तुम्हारा भी संबंध था. उन्होंने किस तरह मुझ से तुम्हारे ब्याह के लिए प्रयत्न किया था, तुम भूल गईं. उसी परिवार ने बाऊजी के मरने पर भी सहयोग किया था.

‘‘वहां मुझ से 500 रुपए खर्च हो गए थे. उस के लिए तुम ने किस प्रकार झगड़ा किया था, कहने की जरूरत नहीं है. तुम ने तो यहां तक कह दिया था कि तुम मेरे पैसे को सौ जूते मारती हो. मेरे पैसे को सौ जूते मारने का मतलब मुझे भी सौ जूते मारना.

 

मेरी बेटी की उम्र शादी की हो गई है लेकिन पति की गलत हरकतों की वजह से दिक्कत हो रही है वह शराब पीते हैं कर्ज लेते हैं क्या करें?

सवाल

मेरे बेटे की उम्र शादी की हो गई है, लेकिन हम उस की शादी नहीं करा पा रहे हैं. उस के पापा आएदिन शराब पीते हैं व कभी कभी कर्ज तक ले लेते हैं जिस से उन की तनख्वाह घर में आने की जगह उन के ही खर्चों में निबट जाती है. हम बेहद परेशान हो चुके हैं. बेटे की शादी के लिए पैसा नहीं है, उस की तनख्वाह से ही घर चलता है, इसलिए शादी के लिए उस के पास भी पैसे जमा नहीं हैं. हमारा एकलौता बेटा है, हम उस की कौर्ट मैरिज कराएंगे तो लोग क्या कहेंगे? क्या करें, समझ नहीं आता.

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जवाब

आप की सब से बड़ी परेशानी तो यह है कि आप यह सोच रही हैं कि लोग क्या कहेंगे. लोग आप का घर नहीं चला रहे हैं, न ही आप के दुखदर्द से उन का कुछ लेनादेना है. इस दिखावे की दुनिया से बाहर निकलिए. आप देख रहे होंगे कि किस तरह लोग कोरोना के चलते 15-20 लोगों में ही शादी कर रहे हैं.

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अपनी हैसियत के हिसाब से शादी करने में आखिर परेशानी ही क्या है. कोर्ट मैरिज तो शादी का सब से सुलभ और शांतिपूर्ण तरीका है. लोग क्या कहेंगे जैसी बातें पीछे छोड़ आगे बढ़ने में ही सब की भलाई है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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अरेबियन दूल्हा -भाग 3 : नसीबन और शकील के दिलों पर क्या बीती

‘‘यों ही समझ लो.’उस ने लड्डू खा तो लिया मगर चेहरा उदास हो गया.मांसिर पर हाथ फिरा कर कमरे से यह कह कर चली गईं, ‘‘शकील बेटा, रात का खाना खा कर जाना. बहुत दिनों के बाद आए हो.’‘‘बोलो न, आज बड़े खुश हो, कोई खास बात हो गई?’’ नसीबन ने उत्सुकता के चलते पूछा.

‘‘पहले एक लड्डू मेरे हाथ से खाने का वादा करो तो बताऊंगा.’’नसीबन समझ तो गई मगर अनजान बन कर बोली, ‘‘बहुत खुश हो तो तुम्हारी खुशी में शरीक होना भी जरूरी है, आखिर जिंदगी के बेहतरीन क्षण तुम्हारे साथ ही तो गुजारे थे.’’

शकील एक हाथ से नसीबन के बालों में उंगलियां फिरा रहा था दूसरे से लड्डू खिला रहा था. नसीबन के आंसू जारी थे फिर भी उस के हाथ का लड्डू शौक से खा रही थी.

नसीबन को पलंग पर लिटा कर अपना सीना उस के सीने पर रख कर शकील बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बतलाओ कि तुम्हारे साथ मेरी शादी हो गई होती और कोई डाकू तुम्हारी इज्जत जबरदस्ती लूट लेता तो क्या तुम मेरे योग्य न रहतीं?’’

वह उत्तर न दे सकी.‘‘जान, खामोशी को रजामंदी समझूं और कल बरात ले कर आऊं.’’नसीबन ने शकील के गले में बांहें डाल कर उसे सख्ती से भींच लिया. लिपट कर दिल से दिल मिला और सारे शिकवे- शिकायतें गायब.‘‘मां, शकील का खाना.’’यह आवाज नसीबन के मुंह से रात के 3 बजे निकली. वह अब भी उस के ऊपर लेटी, उसे प्यार भरी नजरों से देखे जा रही थी.

‘‘बेटी, 4 बार गरम कर चुकी हूं.’’दोनों ने एकदूसरे को निवाले खिलाए. सुबह मसजिद के इमाम साहब ने निकाह पढ़ा दिया.गांव के लोगों ने करीमन के दरवाजे पर जम कर बकरे के मांस की दावत की….रात हसीन थी.‘‘अब हटो, मेरी हड्डीपसली तोड़ दी. कौन सी दुश्मनी निकाल रहे हो. सुबह हो गई, अब तो पीछा छोड़ो.’’सुन कर शकील ने हटना चाहा तो नसीबन ने फिर उसे सीने से लिपटा लिया.

ममिता हत्याकांड से कटघरे में बीजद सरकार

सौजन्या- मनोहर कहानियां

ओडिशा के कालाहांडी जिले के महालिंग इलाके में सनशाइन पब्लिक स्कूल की 27 वर्षीय
शिक्षिका ममिता मेहेर की हत्या की तह में सैक्स स्कैंडल, शोषण, धमकी, रहस्य, षडयंत्र, सफेदपोश नेताओं के काले कारनामे,पुलिस की मिलीभगत, पैसा, दबाव, लालच सब कुछ है.इस हत्याकांड की जांच अगर गहराई से हो जाए तो प्रदेश की सत्ता में बैठे कई नेताओं की गरदन कानून के शिकंजे में हो सकती है, लेकिन क्या प्रदेश पुलिस में इतनी हिम्मत है कि वह अपने आकाओं की आंखों में आंखें डाल कर सवाल पूछ सके?

शायद नहीं. तभी तो पूरा मामला सिर्फ स्कूल संचालक के इर्दगिर्द ही लपेट दिया गया है, वह भी तब जब जनता ने सड़क पर उतर कर बवाल करना शुरू किया था. जब सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने सड़क पर उतर कर आवाज उठानी शुरू की. जब ट्विटर पर ‘जस्टिस फौर ममिता’ की मांग उठने लगी.
8 अक्तूबर, 2021 को सनशाइन स्कूल की इंग्लिश टीचर ममिता मेहेर अचानक लापता हो गई. 12 अक्तूबर को उस के परिजन काफी मुश्किलों के बाद उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा पाए. पुलिस तो इस मामले को दर्ज करने को ही तैयार नहीं थी, मगर जब भारी दबाव में मामला दर्ज हुआ तो उस के बाद भी पुलिस द्वारा ममिता को ढूंढने का कोई प्रयास नहीं किया गया.

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आखिरकार जब सोशल मीडिया पर मामला ट्रेंड होने लगा और ट्विटर पर स्कूल संचालक और मालिक गोविंद साहू के साथ सत्तारूढ़ बीजद सरकार के गृह राज्यमंत्री दिव्यशंकर मिश्रा का नाम भी उछलने लगा, तब पुलिस की नींद टूटी.तब 17 अक्तूबर को पुलिस ने आननफानन में उस स्कूल के संचालक और मालिक गोविंद साहू को गिरफ्तार किया, जिस पर ममिता को गायब करने का शक ममिता के घर वालों ने जताया था.8 अक्तूबर को ममिता गोविंद साहू के बुलाने पर उस के साथ कहीं गई थी और फिर वापस नहीं लौटी. ममिता मेहेर गोविंद साहू के सनशाइन पब्लिक स्कूल में इंग्लिश की टीचर भी थी और बालिका छात्रावास की वार्डन भी.

ममिता और गोविंद साहू के बीच पिछले कई महीने से विवाद चल रहा था. यह विवाद था स्कूल की शिक्षिकाओं के यौन शोषण को ले कर. ममिता स्कूल में चल रहे कई गैरकानूनी और अनैतिक कार्यों का विरोध कर रही थी, जिस के चलते गोविंद साहू से उस की कई बार तकरार हो चुकी थी.इसलिए ममिता के गायब होने पर पहला शक गोविंद पर था. मगर राज्य के बड़ेबड़े नेताओं तक उस की पहुंच होने की वजह से पुलिस उस पर हाथ डालने से बच रही थी.लेकिन सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों के भारी दबाव में अंतत: पुलिस को उसे गिरफ्तार करना पड़ा. मगर पुलिस की लापरवाही देखिए कि पूछताछ के दौरान आरोपी थाने से बाथरूम जाने के बहाने पुलिस को चकमा दे कर निकल भागा.

खैर, 2 दिन की मशक्कत के बाद वह फिर पुलिस के हत्थे चढ़ा और तब जा कर उस ने ममिता मेहेर की हत्या की बात कुबूली और उस की लाश पुलिस बरामद करवाई.गोविंद साहू की निशानदेही पर 19 अक्तूबर को एक निर्माणाधीन स्टेडियम से ममिता की सड़ीगली अधजली लाश बरामद हुई, जिसे पहचानना भी मुश्किल था. यह निर्माणाधीन स्टेडियम सनशाइन स्कूल का ही था.पुलिस को घटनास्थल से सोने की चेन, पायल और अन्य सामान भी मिला, जिसे ममिता के घर वालों ने पहचानते हुए कहा कि यह ममिता का ही है. बाद में ममिता की पहचान पुख्ता करने के लिए पुलिस ने लाश का डीएनए टेस्ट भी करवाया.

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क्या है यह पूरा मामला

ओडिशा के बालांगीर जिले के तुरीकेला इलाके की रहने वाली ममिता मेहेर 8 अक्तूबर, 2021 को गायब हुई. तब 12 अक्तूबर को ममिता के घर वालों ने बालांगीर जिले के सिंधेकेला थाने में स्कूल के मालिक और संचालक गोविंद साहू पर शक जताते हुए पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई.उन्होंने पुलिस को बताया कि गोविंद साहू ने किसी काम के सिलसिले में ममिता को बुलाया था, लेकिन उस ने ममिता को स्कूल न बुला कर चंदोतारा नामक जगह आने को कहा था.ममिता चंदोतारा तक बस से गई थी और वहां से गोविंद ममिता को अपनी कार में ले गया था. मगर उस के बाद ममिता का फोन स्विच्ड औफ हो गया और फिर उस का कुछ पता नहीं चला.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. बाद में जब मामला सोशल मीडिया पर तूल पकड़ने लगा और लोगों ने थाने का घेराव करना शुरू किया, तब जा कर 17 अक्तूबर को गोविंद साहू को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया.गोविंद ने पुलिस को बताया कि 8 अक्तूबर को वह ममिता को अपनी कार से ले कर भवानीपटना गया था और लौटते समय उस ने कार के अंदर ही उस की गला दबा कर हत्या कर दी थी.

एक दिन पहले यानी 7 अक्तूबर को साहू ने डोजर से कालाहांडी जिले के महालिंग में सनशाइन इंग्लिश मीडियम स्कूल के स्टेडियम निर्माण स्थल पर एक गड्ढा पहले से खुदवा लिया था.ममिता की हत्या करने के बाद वह उस के शव को उसी जगह ले गया, जहां उस ने पहले उस की लाश जलाई और फिर अधजली लाश उस गड्ढे में दफना दी. पुलिस के मुताबिक, ममिता की हत्या की साजिश में कई लोग शामिल हैं और यह एक पूर्व नियोजित हत्या थी.

इस हत्याकांड में गोविंद साहू की मदद करने वाले जेसीबी ड्राइवर पुष्कर भोई और स्कूल के क्लर्क गुप्तेश्वर को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. ड्राइवर पुष्कर भोई और क्लर्क गुप्तेश्वर के जरिए गोविंद साहू ने ममिता के शव को लकड़ी और पुराने टायर के बीच रख कर आग लगा कर जलाने का प्रयास किया और फिर अधजली लाश को गड्ढे में डाल कर दफना दिया गया.पुष्कर भोई और गुप्तेश्वर ने भी पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और दोनों आरोपी गोविंद के खिलाफ गवाही देने को भी तैयार हो गए. लेकिन इस पूरे मामले के तार सत्ता में बैठे नेताओं से जुड़े हैं, जिन के काले कारनामे उजागर न हो पाएं, इसलिए उन के इशारे पर ममिता मेहेर को हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया. क्या उन ऊंची कुरसियों तक पुलिस के हाथ पहुंचेंगे, यह बड़ा सवाल है.

ममिता के भाई ने खोला राज

ममिता के भाई बंटी ने सनशाइन स्कूल में गोविंद साहू द्वारा संचालित देह के धंधे को उजागर करते हुए बताया कि उस की बहन गोविंद के काले कारनामों का विरोध कर रही थी. उस ने धमकी दी थी कि अगर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो वह उसे और उस के आकाओं को बेनकाब कर देगी. इसीलिए गोविंद ने उस की बहन की निर्ममता से हत्या कर दी.बंटी ने ममिता के एक सहकर्मी से इस सिलसिले में फोन पर हुई औडियो क्लिप भी जारी की, जिस में वह बंटी को स्कूल की महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न में गोविंद की संलिप्तता के बारे में बता रहा है. इस में उस ने यह भी कहा कि ममिता के गायब होने से एक दिन पहले गोविंद ने एक आधिकारिक बैठक के बहाने उसे बुलाया था.

बंटी ने आरोप लगाया कि इस कांड में सिर्फ गोविंद ही दोषी नहीं है, बल्कि इस के पीछे सत्ता में बैठे कई नेता शामिल हैं. खासतौर पर प्रदेश के गृह राज्यमंत्री दिव्यशंकर मिश्रा, जिन का वरदहस्त गोविंद साहू पर है और जो आए दिन स्कूल में डेरा जमाए रहते हैं.यही नहीं, दिव्यशंकर मिश्रा कई बार रात को भी स्कूल में ठहरते थे. उन के लिए वहां बाकायदा एक बढि़या एसी रूम बना हुआ है.गोविंद साहू की गिरफ्तारी के बाद जांच में उस के कई और गैरकानूनी करतूतों की कलई धीरेधीरे खुल रही है. धोखा दे कर लोगों की जमीनें हड़पने से ले कर पूर्व में ट्रैक्टर से कुचल कर एक लड़की की हत्या करने का पुराना मामला भी सामने आ गया.

रात में स्कूल में रुकने का औचित्य

ममिता के परिवार का आरोप है कि गोविंद साहू स्कूल की महिला कर्मचारियों का यौन शोषण करता था और उन्हें धमकी और लालच दे कर अपने साथ और स्कूल में आने वाले सफेदपोश नेताओं, अधिकारियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर करता था. दिव्यशंकर मिश्रा उसी जूनागढ़ से विधायक हैं, जहां सनशाइन स्कूल स्थित है.मंत्री दिव्यशंकर मिश्रा राज्य सरकार के अन्य मंत्रियों के साथ गोविंद के स्कूल में आयोजित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों में आते रहते थे. इन कार्यक्रमों में वह मंत्रियों से स्कूल के बारे में अच्छाअच्छा बोलने को भी कहते थे. इस का भी एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है.
ममिता के घर वालों का आरोप है कि मंत्री दिव्यशंकर मिश्रा मौजमस्ती के इरादे से ही इस स्कूल में आए दिन चक्कर काटते थे और रात को भी वहां ठहरते थे. यह बात ममिता को पता थी और वह इस का विरोध करती थी. जिस के चलते गोविंद साहू से उस की कई बार झड़प हुई थी.

छात्रावास के गुप्त कमरे का राज

स्कूल के प्लस-3 छात्रावास में एक गुप्त कमरे को ले कर भी सवाल उठ रहे हैं. इस गुप्त कमरे में एसी समेत होटल जैसी आधुनिक सुखसुविधाएं मौजूद हैं.आरोप है कि इसी कमरे में नेताओं, अधिकारियों को रात में ठहराया जाता था और इसी 20 नंबर कमरे में महिला टीचर्स का यौन शोषण होता था.हालांकि पुलिस ने अभी तक इस बाबत कोई जांच शुरू नहीं की है. कालाहांडी जिला परिषद की अध्यक्ष नमितारानी साहू कहती हैं कि यूं तो राज्य सरकार के कई मंत्री इस स्कूल में आते थे, मगर दिव्यशंकर मिश्रा तो हर सप्ताह इस स्कूल का दौरा करते थे.वह सवाल उठाती हैं कि इस क्षेत्र में 3 और भी कालेज हैं, लेकिन वह हर बार एक ही संस्थान का दौरा क्यों करते थे? वह इस स्कूल को सरकारी सहायता भी दे रहे थे. कई बार रात में भी यहीं रुकते थे. आखिर क्यों?

ममिता और गोविंद साहू के बीच चल रही तकरार से दिव्यशंकर मिश्रा काफी परेशान थे. दरअसल, ममिता ने गोविंद साहू को धमकी दी थी कि वह बाज आ जाए और स्कूल में चल रहे अनैतिक कृत्यों को बंद करवाए वरना वह पूरे मामले का भंडाफोड़ कर देगी.

सच्चाई उजागर होने का था डर

ममिता स्कूल में चल रहे सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के काफी करीब भी पहुंच गई थी. वह किसी भी वक्त मीडिया के सामने सारे सबूत रख कर सब को नंगा कर सकती थी. यही वजह थी कि गोविंद साहू उसे रोकने की भरपूर कोशिशों में जुटा था.दोनों के बीच सुलहसमझौता कराने के लिए मंत्री दिव्यशंकर मिश्रा ने भी दोनों को अपने रायपुर वाले आवास पर बुलाया था. लेकिन वहां बात बनी नहीं. ममिता स्कूल में जारी अनैतिक कृत्यों पर किसी तरह के समझौते को तैयार नहीं थी.

भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय महापात्र का कहना है कि इस मामले में मंत्री दिव्यशंकर मिश्रा, गोविंद साहू और ममिता के फोन काल रिकौर्ड की जांच पुलिस को करनी चाहिए. इन तीनों के काल रिकौर्ड से ही काफी कुछ साफ हो जाएगा.आखिर एक गृह राज्यमंत्री को एक स्कूल टीचर से ऐसा क्या काम पड़ गया कि उन्होंने उसे अपने आवास पर बुलाया? इस के पीछे की वजह पता करना जरूरी है.हालांकि पुलिस ने दिव्यशंकर मिश्रा की कुछ काल रिकौर्ड की जांच कर इस की सीलबंद रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजी है. पर लगता है कि रिपोर्ट मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारी दबा कर बैठे हैं.

विजय महापात्र कहते हैं कि मुख्यमंत्री को स्वयं रिकौर्ड मंगा कर काररवाई का आदेश देना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस हत्याकांड की निष्पक्ष जांच तभी संभव है, जब दिव्यशंकर मिश्रा अपने पद से इस्तीफा दें, क्योंकि उन के पद पर बने रहते पुलिस न तो उन से कोई पूछताछ करेगी और न उन के खिलाफ कोई काररवाई हो सकेगी.इस पूरे मामले में अब राष्ट्रीय महिला आयोग तथा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी हस्तक्षेप किया है. दोनों ही आयोगों ने मामले की रिपोर्ट सरकार से तलब की है.

कांग्रेस के केंद्रीय दल ने पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के निर्देश पर ममिता मेहेर के घर जा कर परिजनों से मुलाकात की और पीडि़त परिवार को आश्वासन दिया कि कांग्रेस इस हत्याकांड में पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने तक लड़ाई लड़ती रहेगी.भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने इस पूरे मामले का संज्ञान लेते हुए पार्टी की महिला नेताओं की 3 सदस्यीय कमेटी बनाई, जो राज्य में जा कर पूरे मामले की जांच कर अपनी रिपोर्ट पार्टी अध्यक्ष को सौंपेगी.

इस 3 सदस्यीय कमेटी में हरियाणा से लोकसभा सांसद सुनीता दुग्गल, भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं तमिलनाडु से विधायक वानाती श्रीनिवासन और पश्चिम बंगाल से विधायक श्रीरूपा मित्रा चौधरी शामिल हैं.वहीं केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ट्वीट कर कहा है, ‘ओडिशा जैसे राज्य में महिला अपराध और उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. यह कोई आम अपराध नहीं है. चीफ मिनिस्टर को मामले की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त एक्शन लेना चाहिए.’

स्कूल टीचर ममिता मेहेर की नृशंस हत्या ने ओडिशा में बीजू जनता दल सरकार में महिलाओं की सुरक्षा को ले कर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. आखिर देश में कब तक और कितनी निर्भयाएं इस तरह हवस और हत्या का शिकार बनती रहेंगी?अनैतिकता के कीचड़ में धंसे लोग आखिर शिक्षा के मंदिरों में नैतिकता का पाठ किस तरह पढ़ाएंगे? ऐसे स्कूलों में जहां शिक्षिकाएं सुरक्षित नहीं हैं, वहां छोटीछोटी मासूम बच्चियां कैसे सुरक्षित होंगी?

Winter 2021 : केसर की ये खास बातें जो नहीं जानते आप

दुनिया भर में मिलने वाले मसालों में केसर कुछ चुनिंदा मासलों में से एक है. कई औषधि गुणों से भरपूर केसर का इस्तेमाल खूबसूरती बढ़ाने के लिए होता है. इसके अलावा केसर का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है. इसके कई स्वास्थ्य फायदे हैं. इस खबर में हम आपको केसर से होने वाले फायदों के बारे में बताएंगे.

वजन कम करने में है मददगार

जानकारों की माने तो केसर के सेवन से भूख कम लगती है. एक स्टडी के दौरान कुछ महिलाओं को 8 हफ्तों तक केसर का सेवन किया उन्हें भूख कम लगी. इसके बाद उन्होंने कम स्नौक्स खाएं, नतीजतन दूसरी महिलाओं की तुलना में उनका वजन कम रहा. हालांकि इस बात की पुष्टि करने के लिए और भी शोध हो रहे हैं, जिनसे हम बेहतर और सटीक नतीजों की उम्मीद कर सकते हैं.

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दिल की बीमारियों में है फायदेमंद

कुछ स्टडीज की माने तो केसर में मौजूद एंटीऔक्सिडेंट गुण ब्लड कोलेस्ट्रौल की मात्रा को कम करते हैं. जिससे ब्लड वेसेल्स आर्टरीज में ब्लौकेज नहीं होता है.

अच्छी होती है याद्दाश्त

केसर पर हुई शोध में ये बात सामने आई कि केयर के नियमित सेवन से याद्दाश्त बेहतर होती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि जापान में केसर को कैप्सूल की फॉर्म में याददाश्त बढ़ाने और शरीर की सूजन को कम करने के लिए खाया जाता है.

जुकाम में है असरदार

सर्दी जुकाम में भी केसर काफी फायदेमंद है. इसे दूध में मिला कर पीने से राहत मिलती है.

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कैंसर से रखता है सुरक्षित

केसर में प्रचूर मात्रा में एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है. शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को न्यूट्रलाइज कर शरीर को सुरक्षित रखने में मदद करता है. कई शोधों में ये बात सामने आई है कि केसर में मौजूद  कंपाउंड शरीर में कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट कर देता है.

आंखों की रोशनी में है लाभकारी

आंखों की रोशनी संबंधी परेशानियों में केसर काफी कामगर होता है. कई जानकारों का मानना है कि इस परेशानी में केसर काफी लाभकारी है.

प्रायश्चित्त : नीता और मीता के साथ क्या हादसा हुआ था

लेखिका– रेणु फ्रांसिस

नीता और मीता 2 बहनें थीं. हर चीज में अव्वल. पढ़ाई के साथसाथ वह हर चीज में आगे थीं. महल्लेभर की प्यारी थीं. किसी का भी काम हो, कभी मना नहीं करती थीं. सभी कहते कि ऊपर वाले ने इन्हें बड़ी फुरसत से बनाया है.

कहते हैं ना, जैसे दुख ज्यादा दिन तक नहीं रहता, वैसे ही खुशी भी ज्यादा दिन तक नहीं रहती. नीता अपनी छोटी बहन मीता के साथ स्कूल जा रही थी कि एक गाड़ी वाले ने नीता और मीता को टक्कर मार दी और तेज गति से फरार हो गया.

सुबह का समय था, सड़क पर लोग भी कम ही थे. फिर भी कुछ लोगों ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया.

आईडेंटिटी कार्ड से फोन नंबर ले कर उन के पापा को और स्कूल में फोन किया. फोन पर एक्सीडेंट की खबर से उन के पापामम्मी और महल्ले के 8-10 लोग अस्पताल पहुंच गए.

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जो लोग इन दोनों बहनों को अस्पताल लाए थे,
उन्होंने बताया कि ये दोनों तो अपने रास्ते जा रही थीं, लेकिन एक बाइक वाला  रांग साइड से आया और टक्कर मार कर चला गया. हम लोग दूर थे. जब तक हम वहां पहुंचे, वह काफी दूर जा चुका था. हेलमेट पहनने के कारण उस का चेहरा भी नहीं देख पाए.

डाक्टर ने बताया कि नीता के सिर में गहरी चोट लगी है. फिर भी हम उसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. मीता भी बेहोश है. उसे हलकी चोटें हैं, लेकिन वह दहशत से बेहोश है.

स्कूल का स्टाफ भी अस्पताल पहुंच गया था. पुलिस भी अस्पताल आ गई थी. थोड़ी देर में डाक्टर ने आ कर कह दिया, “सौरी, हम आप की बेटी को नहीं बचा पाए.”

यह सुन कर नीता की मां का रोरो कर बुरा हाल था. उधर मीता को अभी तक होश नहीं आया था. सभी यही कह रहे थे कि किसी तरह मीता को होश आ जाए और वह ठीक हो जाए.

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इतने में नर्स ने आ कर कहा कि मीता को होश आ गया है, कोई एक व्यक्ति उस से जा कर मिल सकता है. लेकिन उसे नीता के बारे में कुछ न बताया जाए, वह यह सदमा सहन नहीं कर पाएगी.

उस की मम्मी मीता के पास गईं और उसे गले लगा लिया. मीता ने सब से
पहले दीदी का हाल पूछा, तो उस की मम्मी ने कहा कि उस का आपरेशन चल रहा है. सिर में गहरी चोट है. वह जल्दी ही ठीक हो जाएगी.

तीसरे दिन मीता को अस्पताल से घर लाया जाता है. मीता ने जैसे ही घर में कदम रखा, कमरे में नीता की तसवीर पर माला देख चीख पड़ी और कहा, “आप लोगों ने मुझे क्यों नहीं बताया?”

उस की मम्मी ने कहा, “डाक्टर ने हम से मना किया था तुम्हें बताने को. और हम तुम्हें खोना नहीं चाहते थे. अब तुम ही हमारी नीता हो और तुम ही मीता.

इतना कह कर मम्मी और मीता रोने लगीं.

कहते हैं ना, समय हर जख्म भर देता है. धीरेधीरे मीता सामान्य हो रही थी, लेकिन उस के मम्मीपापा ने अपना घर दूसरी जगह ले लिया था.

पुलिस ने काफी खोजबीन की, लेकिन नीता का एक्सीडेंट किस की गाड़ी से हुआ था, यह नहीं पता चल सका.

इधर सुरेश भी परेशान था, क्योंकि एक्सीडेंट उस की गाड़ी से हुआ था. अगर लड़कियों को कुछ होता है तो उस पर पुलिस
केस हो जाएगा और उस की जिंदगी फिर जेल में कटेगी.

उस ने अपने भाई मोंटी से कह दिया था कि तू ने अगर एक्सीडेंट की बात किसी को बताई, तो मैं तुझे छोड़ कर चला जाऊंगा.

मोंटी अपने भाई को बहुत प्यार करता था, इसलिए उस ने एक्सीडेंट की बात किसी को नहीं बताई.

धीरेधीरे समय अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहा था. मीता की प्रसिद्धि के चर्चे चारों ओर फैल रहे थे. कभी
उसे पढ़ाई में, कभी खेलकूद प्रतियोगिता में और कभी सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सम्मानित किया जाने लगा.

एक दिन मोंटी ने मीता की फोटो अखबार में देखी, तो वह तुरंत ही उसे पहचान गया कि यह वही एक्सीडेंट वाली लड़की है, लेकिन इस से मिले कैसे, क्योंकि वह दूसरे स्कूल में थी. उस ने अपने पापा से जिद कर के मीता के स्कूल में ही
एडमिशन ले लिया. अब मीता और मोंटी एक ही क्लास में थे. मोंटी चाहता था कि किसी तरह उसे पता चल जाए कि मीता की बड़ी बहन कैसी है, लेकिन वह उस से एकदम पूछ भी तो नहीं सकता था, क्योंकि कभी मीता को पता चल गया तो उस के भाई को पुलिस ले जाएगी और वह अपने भाई से हमेशा के लिए दूर हो जाएगा. मोंटी भी पढ़ाई में बहुत होशियार था. मीता और मोंटी की दोस्ती जल्दी हो गई, क्योंकि टीचर ने मीता से कहा कि मोंटी का एडमिशन लेट हुआ है, इसलिए उस का छूटा हुआ सारा कोर्स मीता अपनी कौपी दे कर करवा दे. इसी सिलसिले में वे दोनों आपस में बातें करने लगे.

दोनों ही अपनी क्लास में प्रथम आते. मीता और मोंटी की पढ़ाई पूरी हो गई. दोनों ही अब नौकरी करने लगे थे.

मीता के मम्मीपापा चाहते थे कि वह अब शादी कर ले. जब उन्होंने मीता से शादी के सिलसिले में बात की, तो मीता ने कहा कि आप जिस
लड़के से कहेंगे, मैं शादी कर लूंगी.

तब मीता के मम्मीपापा ने उस के लिए एक योग्य लड़का तलाश किया.

रमेश मीता के पापा के दोस्त दिनेश अंकल का बेटा था. रमेश मीता को बचपन से जानता था. दोनों परिवार ने सादे तरीके से इन दोनों की सगाई कर दी और अगले महीने की 25 तारीख को शादी तय कर दी. दोनों परिवार में शादी की तैयारियां होने लगीं.

मीता के औफिस में एक संजू नाम का लड़का भी उसे बहुत चाहता था, लेकिन मीता को इस बारे में पता नहीं था, क्योंकि संजू ने कभी मीता से कुछ कहा ही नहीं.

जब संजू को मीता की सगाई के बारे में पता चला, तो वह परेशान हो गया. उस ने मीता से कहा कि वह उसे बहुत चाहता है और तुम किसी और से शादी कर रही हो, मैं तुम्हारी शादी किसी और से नहीं होने दूंगा.

यह सुन मीता ने कहा, “संजू तुम ने तो मुझ से कभी कुछ कहा नहीं और मैं ने भी कभी तुम्हें चाहा नहीं, तुम औफिस में साथ काम करते हो, जैसे दूसरे लोगों से मैं बात करती हूं, वैसे ही तुम से करती थी. तुम्हें गलतफहमी कैसे हो गई कि मैं तुम से प्यार करती हूं.”

तब संजू ने कहा, “मैं तो तुम्हें हमेशा से चाहता था.”

मीता ने कहा, “तुम चाहते थे, मैं नहीं. मैं ने तो हमेशा से यही सोचा था कि जिस लड़के को मेरे मम्मीपापा पसंद करेंगे, मैं उसी लड़के से शादी करूंगी,” इतना कह कर मीता अपना काम करने लगी.

उस के बाद संजू ने मीता से बात नहीं की.

आज मीता अपनी शादी का कार्ड सब को दे रही थी और कह रही थी कि आप सभी को शादी में जरूर आना है.

संजू उस के पास आ कर बोला, “मीता, मुझे नहीं बुलाओगी?”

मीता ने मुसकराते हुए कहा, “तुम भी आना.”

और सब को बाय कह कर एक महीने के बाद सब से मिलने की कह वह औफिस से घर आ गई.

आज मीता को संजू कुछ बदलाबदला सा लगा. उस का व्यवहार कुछ अजीब सा लगा. उस ने मोंटी को संजू की सारी बातें बताईं.

मोंटी ने कहा, “मीता, अगर तुम्हें डर लग रहा है कि कहीं संजू कुछ गड़बड़ न करे शादी में, तो हम पुलिस की
मदद ले सकते हैं.”

मीता और मोंटी पुलिस स्टेशन गए और टीआई से सारी बातें बतलाईं, तब टीआई ने कहा, “तुम्हारा
कोई फोटो या कोई और चीज उस के पास है, जिस से यह साबित हो कि तुम उसे चाहती थीं.”

मीता ने कहा, “सर, ऐसा
कुछ नहीं है हमारे बीच. संजू ने खुद कभी नहीं कहा कि वह उसे चाहता है और मैं ने तो कभी उस से ज्यादा बात भी नहीं की. वह तो सगाई की खबर सुन कर बौखला गया. उस ने मुझ से कहा कि वह उसे चाहता है.”

मीता की बात सुन टीआई ने कहा, “तुम चिंता मत करो. हम शादी के दिन 2 पुलिस वाले सादा कपड़ों में तुम्हारे घर पर तैनात कर देंगे.”

यह सुन कर मीता ने चैन की सांस ली और दोनों वहां से आ गए.

आज मीता की शादी थी. घर में खूब धूमधाम हो रही थी.

मीता नीता की फोटो के सामने खड़े हो कर रो रही थी. उसे आज अपनी दीदी नीता की बहुत याद आ रही थी. उस की मम्मी ने आ कर कहा, “बेटी नीचे चलो. बरात आ गई है.”

मांबेटी दोनों नीचे आ गईं.

मीता को देख कर सभी कह रहे थे कि वह तो आज परी लग रही है.

रमेश ने मीता को देखा, तो उसे देखता ही रह गया. मीता आज वाकई बहुत खूबसूरत लग रही थी.

मीता अपनी सहेलियों के साथ स्टेज की तरफ जा रही थी, तभी संजू दौड़ कर उस के पास पहुंचा और एसिड डाल कर गेट की तरफ भागा. तभी पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

पूरे घर में मीता के चीखने की आवाज आ रही थी. मीता का चेहरा तो बच गया था, लेकिन दोनों हाथ जल गए थे.

मीता की आवाज सुन मोंटी दौड़ कर आया और फौरन क्लीनिक ले जाने लगा. जैसे ही उस ने मीता को गोद में उठाया, तो उस की नजर नीता की फोटो पर
पड़ी.

उसे देख कर मोंटी एकदम चौंक सा गया, क्योंकि मीता ने नीता के बारे में कभी कुछ नहीं बताया था और मोंटी ने भी यही सोचा था कि नीता ठीक ही होगी. सच बात तो यह थी कि वह नीता के बारे में बात करने से डरता था. उसे लगता था कि उस एक्सीडेंट की बात छिपा कर वह भी गुनाहगार है. जब वह बडा़ हुआ, तो उस ने कहा भी अपने मम्मीपापा से कि वह एक्सीडेंट की बात पुलिस में बताना चाहता है, लेकिन उस के पापा ने कहा, “जिस ने एक्सीडेंट किया था, वह तो खुद ही एक एक्सीडेंट में मारा गया है. अब तुम किसे सजा दिलवाना चाहते हो.”

पापा की बात सुन कर मोंटी भी चुप हो गया और एक्सीडेंट की बात दिमाग से निकाल दी. फिर मीता ने भी कभी कुछ नहीं बतलाया था. लेकिन आज नीता की
तसवीर पर माला देख कर वह एकदम चौंक गया था, लेकिन उसे इस समय मीता को अस्पताल ले कर जाना था, इसलिए उस ने किसी से भी नीता के बारे में बात नहीं की.

मीता के साथ उस के ससुराल वाले भी अस्पताल आए थे. थोड़ी देर रुकने के बाद वे यह कह कर लौट गए कि कल आएंगे.

मीता को जब होश आया, तो उस ने सब से पहले यही पूछा, “रमेश कहां हैं? उन्हें तो कुछ नहीं हुआ?”

मोंटी ने कहा, “सब ठीक है. किसी को कुछ नहीं हुआ. परेशान मत हो. तुम जल्दी ठीक हो जाओगी.”

दूसरे दिन भी रमेश नहीं आया और न ही मीता को फोन किया. 5 दिन हो गए थे मीता को अस्पताल में एडमिट हुए. वह ठीक हो रही थी. सभी उस से मिलने आते थे, लेकिन रमेश और उस के परिवार से कोई भी नहीं आया था.

मीता ने फोन पर रमेश से बात की. न आने का कारण उस ने जानना चाहा, तो रमेश ने कह दिया कि वह अब उस से शादी नहीं करना चाहता है.

मीता ने कहा भी कि एसिड मेरे ऊपर डाला गया है. जली मै हूं, तुम्हें मुझ से हमदर्दी होनी चाहिए. मेरा तो इस में कोई कुसूर भी नहीं है.

तब रमेश ने कहा, “कुसूर तुम्हारा है या नहीं, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मैं अब तुम से शादी नहीं करना चाहता हूं और आज के बाद फोन मत करना.”

रमेश की बात सुन कर मीता रोने लगी, तब मोंटी ने मीता के कंधे पर हाथ रखते हुए समझाया कि मीता ऐसे लड़के के लिए आंसू मत बहाओ, जिसे अपनी होने वाली पत्नी पर भरोसा न हो, क्योंकि उस के मातापिता ने मीता को बदचलन कह कर रिश्ता तोड़ दिया था.

मीता की हालत देख कर उस के मम्मीपापा भी रोने लगे. तब मोंटी ने कहा, “अंकल, आप चाहो तो मैं मीता से शादी करना चाहता हूं. मीता मेरा आज का
नहीं, बचपन का प्यार है. मीता से शादी कर के मैं अपने भाई के गुनाह का प्रायश्चित्त करना चाहता हूं और मोंटी ने एक्सीडेंट वाली घटना के बारे में मीता और उस के पापा को सारी बात बता दी.

मीता ने कहा, “मोंटी, तुम बहुत छोटे थे एक्सीडेंट के समय, फिर भी तुम ने कोशिश की थी तुम्हारे भाई को सजा मिले, लेकिन तुम कामयाब न हो सके.”

“लेकिन तुम ने मीता को बताया क्यों नहीं?” मीता के पापा ने कहा, तब मोंटी ने कहा, “अंकल, एक्सीडेंट के 6 साल बाद ही मेरे भाई की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. और फिर भइया यही कहते थे कि उन लडकियों को कुछ नहीं हुआ होगा, क्योंकि उन्हें गाड़ी से जरा सा धक्का ही लगा था.” तब मीता के पापा ने कहा, “बेटा, गाड़ी के धक्के से नीता पत्थर पर गिर गई
थी और उस का सिर फट गया था. ज्यादा खून बहने के कारण उसे बचाया नहीं जा सका.”

मोंटी ने माफी मांगते हुए कहा, “आप मुझे और मेरे भइया को माफ कर दीजिए.”

अंकल ने कहा, “जो बीत गया उसे वापस नहीं ला सकते हैं.”

अंकल ने मोंटी और मीता के रिश्ते को मंजूरी दे दी थी. इधर संजू ने अपने बयान में माना कि वह मीता मेम को चाहता था. उन्होंने हमेशा मुझे भइया कह कर ही बात की थी. मेरी ही मति मारी गई थी, जो इतनी खूबसूरत और अच्छी लड़की की जिंदगी बरबाद कर दी.

उधर संजू को सजा हो गई, इधर मोंटी और मीता की शादी सादगी से की गई, क्योंकि मीता के हाथ काफी जल गए थे.

अब मोंटी ही उस की देखभाल करता था. वह सोचता था कि जो गलती उस के भइया से अनजाने में हुई थी, जिस के कारण इस परिवार ने अपनी बेटी को खोया था. वह मीता और उस के परिवार की देखभाल और सेवा कर के अपना प्रायश्चित्त पूरा करना चाहता था. शायद यही उस की सजा भी थी.

उल्टा पासा : भाग 4

सूरज का फोन आया था. सूरज उन की ही दुकान पर काम करता था. उसे पैसों की सख्त जरूरत थी. उस की बिटिया को कोरोना हो गया था. उसे इलाज कराने दूसरे शहर ले जाना पड़ेगा. उस ने सेठजी को भी फोन किया था पर सेठजी ने तो साफ मना कर दिया. बड़ी उम्मीदों के साथ उस ने मुनीमजी को फोन कर के सारी बात बताई.

‘‘देख भाई, मेरे पास सेठजी के कुछ पैसे हैं पर मैं बिना उन से पूछे नहीं दे सकता.’’‘‘मुनीमजी, आप तो हमारे माईबाप हैं. वक्त पर आप ही साथ नहीं देंगे तो फिर मैं किस से उम्मीद रखूं. आप पैसे दे दीजिए. मु?ो सेठजी से पैसे लेने हैं. मैं उन्हें बता दूंगा और नहीं मानेंगे तो मैं कहीं से भी कर्ज ला कर आप को दे दूंगा. अभी आप दे दीजिए. मेरी बिटिया की जिंदगी का सवाल है,’’ सूरज की रोंआसी आवाज से मुनीमजी द्रवित हो गए और बोले, ‘‘अच्छा, आ जाओ. जो होगा देखा जाएगा. तुम पैसे ले जाओ,’’ मुनीमजी की आवाज में दृढ़ संकल्प था.

कुछ ही देर में सूरज आ गया था और मुनीमजी ने उसे कुछ रुपए दे भी दिए थे. मुनीमजी सम?ा गए थे कि अब वे सेठजी के यहां नौकरी नहीं कर पाएंगे. सुमन ने उन के साथ जो व्यवहार किया है, उस से वे नाराज होंगे. साथ ही, जब उन्हें पता चलेगा कि उस ने सूरज को पैसे दिए हैं, तो बहुत ही ज्यादा नाराज होंगे. वैसे वह खुद भी उन के यहां नौकरी नहीं करना चाह रहा था. उन्होंने भी तो उसे पुलिस की धमकी दी थी.

वैसे, मुनीमजी सेठजी का सारा राज जानते थे, इतने वर्षों से काम जो कर रहे थे और सेठजी के कहने पर वे ही तो सारा कालापीला करते थे.‘‘सुमन, अब सेठजी मु?ो तो काम पर रखने से रहे तो हम सेठजी के पैसों से जैसे हम ने सूरज को पैसे दिए हैं, वैसे ही उन सभी कर्मचारियों का भुगतान भी कर देते हैं, जिन्हें सेठजी से पैसे लेने हैं. लौकडाउन में उन्हें भी तो पैसों की जरूरत होगी, सेठजी तो उन्हें देने से रहे. पिछली बार भी उन्होंने कर्मचारियों को पैसा नहीं दिया था. कहते थे, ‘‘लौकडाउन के कारण मु?ो भारी नुकसान हो गया है, इसलिए मैं किसी को पैसे नहीं दूंगा. बाकी जो होगा देखा जाएगा.’’

सुमन को बात जमी, ‘‘हां, ऐसा करने से वे हमारे साथ मिल जाएंगे और हमारा गुट मजबूत हो जाएगा,’’ सुमन के मुर?ाए चेहरे पर आस की नई किरण जगमगाने लगी.मुनीमजी के मोबाइल में सारे कर्मचारियों के फोन नंबर थे ही. उन्हें तो सभी कर्मचारियों से बात करनी होती थी. एकएक कर उन्होंने सभी कर्मचारियों को फोन कर बता दिया कि वे उन के पास पैसे लेने आ जाएं. सभी इकट्ठे न आ जाएं, ऐसा सोच कर उन्होंने सभी को अलगअलग समय दिया और साथ में यह भी सम?ा दिया, ‘‘देखो भाई, लौकडाउन लगा है, इसलिए पुलिस से बचतेबचाते अपनी जिम्मेदारी पर ही आना.’’

मुनीमजी का मन भी हलका हो गया था. जातेजाते कम से कम वे कुछ भला तो कर रहे थे.अब सेठजी अपने सारे कर्मचारियों को तो नौकरी से निकालने से रहे. अगर सभी को निकाल भी दिया तो उन की दुकान ही बैठ जाएगी.मुनीमजी ने लगभग सभी कर्मचारियों को रुपए दे दिए थे. साथ में यह भी बोल दिया था, ‘‘देखो भाई, मैं सेठजी से पूछे बगैर पैसे दे रहा हूं. कल को वे यदि नाराज हुए तो आप लोगों को मेरा साथ देना पड़ेगा.’’

कर्मचारी तो वैसे भी सेठजी से नाराज थे तो उन्होंने खुल कर बोल दिया, ‘‘मुनीमजी, बच्चों की सौं आप पर आंच नहीं आने देंगे.’’मुनीमजी को लगने लगा था कि उन की ताकत बढ़ गई है. उन्होंने अपने हिसाब के पैसे भी सेठजी के पैसों से निकाल लिए और सारा हिसाब बना कर शेष बचे पैसों के साथ रख दिया.सेठजी को पता चल गया था कि मुनीमजी ने उन के पैसों से सारे कर्मचारियों का भुगतान कर दिया है. वे गुस्से से आगबबूला हो गए.

उन्होंने मुनीमजी को फोन लगाया पर फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘कहिए सेठजी, थाने में रिपोर्ट कर दी,’’ उस की आवाज में व्यंग्य था.‘‘अभी तक तो नहीं की पर आज कर ही देता हूं. मेरे पैसों से दानवीर कर्ण बन रहे हैं मुनीमजी.’’‘‘दानवीर नहीं बन रहे हैं, वे तो अपना काम कर रहे हैं. मुनीम का काम कर्मचारियों को भुगतान करने का ही तो होता है. वे यह काम दुकान पर बैठ कर करें या घर पर. काम तो आप का ही कर रहे हैं न.’’‘‘मु?ा से बगैर पूछे ही. मेरे सारे पैसे उड़ा रहे हैं. पाईपाई का हिसाब लूंगा.’’

‘‘हां हां, ले लेना. वह तो बना रखा है. और थाने में भी रिपोर्ट लिखानी है आप को,’’ सुमन को मजा आने लगा था. वह सेठजी की हालत का अंदाजा कर रही थी.‘‘वह भी करूंगा.’’‘‘इतना सम?ा लेना कि मुनीमजी को आप की सारी कमजोरियां पता हैं,’’ कह कर सुमन ने फोन रख दिया. आज सुमन के माथे पर चिंता की कोई लकीर नहीं थी और न ही मुनीमजी चिंतित थे.

सेठजी शाम को अपनी पत्नी के साथ मुनीम के घर आए. सुमन को इस की उम्मीद नहीं थी. सेठानी को देख सुमन ने घर के दरवाजे खोले और उन्हें अंदर बुला लिया.ऐसा देख सेठजी के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. पहले जैसी हेकड़ी नजर नहीं आ रही थी. वे शायद पहले से ही सोच कर आए थे, इसलिए बातों का सिलसिला सेठानी ने शुरू किया, ‘‘आप मुनीमजी को बुला देंगी क्या?’’ सुमन कुछ देर तक असमंजस में रही, फिर आवाज दे कर मुनीमजी को बुला ही लिया.

मुनीमजी भी बाहर आने को उत्सुक थे. वे सेठानी को जानते थे. वे बहुत भली महिला थीं. मुनीम को आया देख सेठजी के चेहरे पर कई किस्म के भाव आए और गए, पर वे बोले कुछ नहीं.सेठानी ने ही बात आगे बढ़ाई, ‘‘देखिए मुनीमजी, आप हमारे यहां वर्षों से काम कर रहे हैं. हमें आप पर पूरा भरोसा है, पर सेठजी को तो आप जानते ही हैं, इसलिए वे पैसों के मामले में परेशान हो जाते हैं. ये मु?ो साथ ले कर इसलिए आए हैं कि आप इन के पैसे इन्हें दे दें.’’

मुनीमजी ने अपनी पत्नी सुमन की ओर देखा. उस का इशारा मिलते ही वे अलमारी से पैसों का बैग और तिजोरी की चाबी ले कर आ गए. ‘‘पैसों के बैग में पैसों का सारा हिसाब भी रखा है. आप उसे देख लें.’’ पैसों से भरा बैग देख कर सेठजी के चेहरे की रौनक लौट आई. ‘‘इस में सारे पैसे हैं न, वह भी, जो तुम ने कर्मचारियों को मु?ा से पूछे बगैर दे दिए हैं.’’ ‘‘नहीं, वह तो मैं दे ही चुका हूं तो उतने पैसे इस में कम हैं. उस के हिसाब की परची है इस में.’‘‘मु?ो तो पूरे पैसे चाहिए, तुम होते कौन हो उन को पैसे देने वाले?’’

गुस्सा रोकने की बहुत कोशिश करने के बाद भी सेठजी को गुस्सा आखिर आ ही गया.‘‘तो ठीक है, जब मैं उन से पैसे वापस ले लूंगा तब आप पैसे ले जाना.’’मुनीम ने बैग वापस उठा लिया.‘‘नहीं, ये तो मैं ले ही जाता हूं पर, मु?ो वे पैसे भी दो,’’ सेठजी ने बैग अपनी ओर खींच लिया.

‘‘नहीं, अब आप रहने दो. मैं तो पूरा पैसा ही दूंगा,’’ सेठजी की सम?ा में नहीं आ रहा था कि वे इतने ही पैसे ले लें कि पूरे पैसों के लिए दबाव बनाएं. उन्होंने सेठानी की ओर देखा. वे नाराजगीभरे भाव से उन की ओर देख रही थीं.

‘‘रुकिए सेठजी, आप के ही कर्मचारियों का भुगतान था. वह आप करते या मुनीमजी करते. करते तो न तो जो हो गया वह हो गया, बाकी बचे पैसे आप ले लें,’’ सेठानी हालात को भांप चुकी थीं. उन के पास इस समस्या का केवल यही एक हल था.

पर सेठजी अभी भी तैयार नहीं थे. वे जानते थे कि वे अपने कर्मचारियों को तो पैसे देते ही नहीं थे. ऐसे में उन का यह पैसा तो बेकार के दान में चला गया न. पर वे कुछ नहीं बोले. मुनीमजी ने कातर निगाहों से अपनी पत्नी सुमन की ओर देखा. वह शांत भाव से मुनीमजी की ओर देख रही थी. मुनीमजी ने बैग सेठानी की ओर बढ़ा दिया.

‘‘सेठजी, मैं ने अपने हिसाब के बाकी बचे पैसे भी ले लिए हैं. मु?ो पैसों की सख्त जरूरत थी.’’सेठजी को तो जैसे सांप सूंघ गया. गुस्से के कारण उन के गाल लाल हो चुके थे. सेठानी ने उन का हाथ दबा कर उन्हें शांत किया.‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ सुमन ने माहौल को बेहतर करने का प्रयास किया.‘‘नहीं. अब हम चलते हैं. हिसाब मिला लेंगे. कुछ सम?ा में नहीं आया तो आप से फोन पर बात कर लेंगे,’’ सेठानी ने कहा और दोनों उठ कर जाने को खड़े हो गए. सेठ और सेठानी के जाने के बाद मुनीमजी और सुमन ने राहत की सांस ली.

उल्टा पासा : भाग 3

लेखक-कुशलेंद्र श्रीवास्तव

‘‘सेठजी, आप इस तरह से बात क्यों कर रहे हैं? आप के पैसे मैं खा तो नहीं रहा हूं.’’‘‘वह तो तुम खा भी नहीं सकते. अब तुम पैसे ले कर तुरंत आ जाओ.’’‘‘सौरी सेठजी, मैं नहीं आ सकता. आप आ कर ले जाएं.’’इस के पहले सेठजी कुछ और बोलें, उस ने फोन रख दिया. वैसे, वह बुरी तरह घबरा चुका था.

वह बहुत देर तक दरवाजे पर बैठा सेठजी की राह देखता रहा, पर वे नहीं आए. उस का मन हुआ कि वह सेठजी को फोन लगा कर पूछे कि वे आ रहे हैं कि नहीं पर उस ने सोचा कि रहने दो.सेठजी ने जिस तरह उसे गाली दी थी, वह उसे बुरी लगी थी.

सेठजी वैसे तो हर कर्मचारी से ऐसे ही बात करते हैं, पर उस के साथ उन्होंने कभी इस तरह से बात नहीं की थी. उस का मन सेठजी के प्रति नफरत से भरता जा रहा था.सुमन अपने पति को इस तरह परेशान देख दुखी हो रही थी. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. वह भी चिंतित थी.

‘‘आप इतने परेशान क्यों हैं?’’ सुमन ने आखिर पूछ ही लिया.मुनीमजी ने सुमन से एक ही सांस में सारी बात बता दी. उस ने सेठजी द्वारा दी गई गालियों के बारे में भी बताया.यह सुन कर सुमन का गुस्सा भी सातवें आसमान पर पहुंच गया था.‘‘अब आप सेठजी को न तो पैसे वापस करोगे और न ही तिजोरी की चाबी. देखते हैं कि वे हमारा क्या बिगाड़ते हैं?’’

सुमन ने अब सेठजी से बदला लेने के बारे में सोच ही लिया था.‘‘सुनो, अब की बार सेठजी का फोन आए तो फोन मु?ो पकड़ा देना. मैं उन से बात करूंगी.’’मुनीमजी कुछ नहीं बोले, पर वे अपनी पत्नी की बातों से सहमत जरूर नजर आए.सेठजी का फोन देररात आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘हां, बोलिए सेठजी.’’‘‘मुनीमजी कहां हैं? मु?ो उन से बात करनी है.’’‘‘वे तो सो रहे हैं. आप मु?ा से बात करो,’’ सुमन की आवाज कड़क थी.‘‘वो मुनीमजी चाबी और पैसे ले कर नहीं आए अभी तक.’’

‘‘वे क्यों आएंगे, लौकडाउन लगा है. आप जानते नहीं हैं क्या?’’‘‘लौकडाउन लगा है तो क्या, वे मेरे पैसे नहीं देंगे?’’‘‘जब लौकडउान खुल जाएगा औरवे दुकान आएंगे तब सारा हिसाबहो जाएगा.’’‘‘ऐसा थोड़े ही न होता है. आप उन से बोलो कि वे तुरंत पैसे ले कर आएं.’’‘‘नहीं आएंगे. आप तो पुलिस में रिपोर्ट कराने वाले थे, अब आप वही करा लो,’’ कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

मुनीमजी के हाथपैर कांप रहे थे.दूसरे दिन सुबहसुबह किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला, ‘‘कहिए?’’‘‘मैं मुनीमजी से मिलने आया हूं, वे मेरी दुकान पर काम करते हैं.’’‘‘इतनी सुबह किसी भले आदमी के घर आने में आप को जरा भी शर्म नहीं आई.’’‘‘लौकडाउन लगा है, पुलिस गश्त कर रही है तो मैं दोपहर में कैसे आता?’’

‘‘आप तो मुनीमजी को कह रहे थे कि दोपहर में ही आ जाओ, उन के लिए लौकडाउन नहीं है क्या?’’ सुमन की आवाज में अजीब सा रोबीलापन था.‘‘हां हां, ठीक है. मुनीमजी को बुलाओ और मेरे पैसे दे दो.’’‘‘अभी तो मुनीमजी सो रहे हैं. आप दोपहर में आना,’’ कह कर सुमन दरवाजा बंद करने को हुई.‘‘पैसा मेरा है और मु?ो चाहिए.’’

‘‘हां, दे देंगे. आप दोपहर में आएं.’’‘‘नहीं, मु?ो अभी चाहिए. मैं किस तरह बचतेबचाते यहां आया हूं. दोपहर में तो बिलकुल नहीं आ सकता. आप मुनीमजी को बुलाएं. मैं उन से ही बात करूंगा.’’‘‘आप से बोल दिया न कि मुनीमजी सो रहे हैं. आप चले जाएं, वरना मैं पुलिस को बुलाऊं क्या,’’ सुमन आज सेठजी से सारा बदला ले लेना चाहती थी.

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे पुलिस का नाम सुनते ही चले गए.सेठजी का फोन दोपहर को आया. फोन सुमन ने ही उठाया, ‘‘महाराजजी सो कर उठ गए होंगे. जरा मेरी बात करा दो.’’सेठजी का व्यंग्य सुमन सम?ा चुकी थी. वह बोली, ‘‘उठ तो गए हैं, पर आप मु?ा से बात करो. बताएं, फोन क्यों किया है?’’‘‘मु?ो अपने पैसे चाहिए.’’‘‘तो आ कर ले जाओ.’’‘‘अभी मैं नहीं आ सकता.’’

‘‘तो जब आप आ सकें, तब ले लेना.’’‘‘आप मुनीमजी को बोलो कि वह मेरा पैसा ले कर आएं.’’‘‘लौकडाउन लगा है. वे नहीं आ सकते.’’‘‘देखो, बहुत हो गया. अब यदि मेरा पैसा मु?ो नहीं मिला, तो मैं रिपोर्ट कर दूंगा कि मुनीमजी मेरा पैसा ले कर गायब हो गए हैं,’’ सेठजी ने धमकाया.‘‘ठीक है, अब आप रिपोर्ट कर ही दें. पैसा पुलिस को ही दे दिया जाएगा.’’सेठजी को लग रहा था कि पुलिस का नाम सुनते ही मुनीमजी भागते हुए आएंगे पर सुमन ने जिस तरह उन से बात की थी, उस में कोई भय था ही नहीं.

‘‘तो ठीक है, मैं तो इसलिए बोल रहा था कि मुनीमजी मेरे पुराने कर्मचारी हैं. फालतू के ?ां?ाट में न पड़ें, इस कारण से उसे सम?ा रहा हूं. वरना सम?ा लेना क्या गत होगी?’’‘‘मुनीमजी पुराने कर्मचारी हैं तो उन पर इतना भरोसा तो रखते कि वे आप के पैसे गायब नहीं करेंगे. आप तो उन की रिपोर्ट करने वाले हैं तो आप रिपोर्ट कर ही दें.’’ऐसा कह कर सुमन ने फोन काट दिया.

उसी दिन शाम को सेठजी ने मुनीमजी के घर का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा सुमन ने ही खोला. उसे भरोसा था कि सेठजी आएंगे जरूर, वरना इस लौकडाउन में कौन आएगा.सेठजी के कपड़े फटे हुए थे. वे हांफ रहे थे, ‘‘मैं अपने पैसे लेने आया हूं.’’‘‘मुनीमजी तो हैं नहीं. वे अस्पताल गए हैं. उन को सर्दीजुकाम हो रहा है,’’ सुमन ने सफाई से ?ाठ बोला था.

‘‘तो आप ही पैसे दे दो.’’‘‘मु?ो नहीं पता कि पैसे कहां रखे हैं. उन को ही आ जाने दो. वे ही देंगे.’’‘‘तो मैं क्या करूं?’’‘‘घर जाओ, जब मुनीमजी आ जाएं तब आना.’’‘‘बड़ी मुश्किल से तो अभी आया हूं, पुलिस ने बड़ी जोर से मारा है. मैं फिर कैसे आऊंगा?’’ सेठजी कराह रहे थे.‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. आप जाएं और थाने में रिपोर्ट लिखा दें. आप यही तो करने वाले थे न.’’

सेठजी कुछ नहीं बोले. वे याचनाभरी निगाहों से सुमन को देख रहे थे. अंदर बैठे मुनीमजी सारी बातें सुन रहे थे. मुनीमजी का मन हो रहा था कि वे बाहर निकल आएं और सेठजी को बैठा कर उन का सारा पैसा और तिजोरी की चाबी सौंप दें, पर वे सुमन के भय के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे थे.

वैसे भी सेठजी ने जिस ढंग से मुनीमजी से बात की थी और उन्हें धमकाया था, उसे वह सबकुछ अच्छा नहीं लगा था. उस के मन में सेठजी के प्रति सम्मान के कोई भाव नहीं रह गए थे. सेठजी अभी भी सुमन के सामने हाथ जोड़े खड़े थे और पैसा दे देने का निवेदन कर रहे थे पर सुमन कठोर बन चुकी थी. उस ने एक बार और उन से जाने को बोला और दरवाजे बंद कर लिए.

सेठजी कुछ देर तक तो असमंजस की स्थिति में खड़े रहे, फिर वापस हो गए.

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