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Bigg Boss 15 : Karan Kundra के साथ रिश्ते पर तेजस्वी के भाई ने तोड़ी चुप्पी, कही ये बात

बिग बॉस 15 में इन दिनों अगर कोई सबसे ज्यादा चर्चा में हैं तो वह है तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा, हर दिन इन दोनों को लेकर काफी ज्यादा चर्चा होती रहती है. इन दोनों को लेकर घर में रह रहे बाकी सदस्यों को भी दिक्कत होती है.

हर मौके पर दोनों एक दूसरे के साथ नजर आते हैं, अब इन दोनों के रिलेशन पर तेजस्वी प्रकाश के भाई ने अपनी चुप्पी तोड़ी है. तेजस्वी के भाई प्रतीक ने कहा है कि मैं करण को बिल्कुल नहीं जानता और ना ही कभी मिला हूं, लेकिन शो में उसे देखकर ऐसा लगा है कि वह बहुत ज्यादा प्रोटेक्टिव है.

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आपकी हेल्थ का खास ध्यान रखें सविकल्प साइंसेज

आज हमारी समान्य जिंदगी  प्रभावित हो रही है . जिसके कारण हर किसी का स्ट्रेस  इस हद तक बढ़ गया है कि वो विभन्न गंभीर परिणामों  के रूप में सामने आ रहा है. जिसमें मांशपेशियों में समान्य से ज्यादा दर्द होना, सिरदर्द की शिकायत होना, क्रोनिक पेन, माहवारी के समय अत्यधिक दर्द होना इत्यादि शामिल है. यहां तक कि इस स्ट्रेस की वजह से हमारे आपसी संबंधों पर भी असर पड़ रहा है. ऐसे में हर कोई इस स्ट्रेस से बाहर निकलने के लिए सेफ व नेचुरल तरीका अपनाना चाहता है. ऐसे में सविकल्प साइंसेज हमारी परेशानियों को दूर करने में मदद करता है. क्योंकि ये कंपनी अपने मेडिकल व वेलनेस को प्रोड्कटस में कैनबिस के अर्क  को शामिल करती है. जो पौधे से प्राप्त होने के कारण नेचुरल है और इसके अनेक हेल्थ बेनिफिट्स है. तो आइए जानते हैं इस फर्मास्यूटिकल कंपनी के प्रोडक्टस के बारे में.

क्या है सविकल्प साइंसेज

सविकल्प साइंसेज का मुख्यालय नई दिल्ली, भारते में स्थित है. इसके संस्थापक सदस्य कनाडा, स्विटजरलैंड, अमेरिक तक में है. बता दें कि सविकल्प साइंसेज एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट आधारित कैनबिस मेडिसिन और जीवन विज्ञान कंपनी है.

यह भारत और अन्य देशों में एक मजबूत और कैनबिस मेडिसिन आधारित स्वास्थय और कल्याण के मार्ग का नेतृत्व करने की तलाश में है. सविकल्प साइंसेज कैनबिस मेडिसिन के माध्यम से स्वास्थ्य और उपचार को बढ़ावा देने का काम करता है. सविकल्प साइंसेज की दवाएं, दर्द, तनाव,चिंता और अनिद्रा को दूर करने की दिशा में प्रयासरत है. अधिक जानकारी के लिए विजिट करें: www. Savikalpa.com

मेडिकली व साइंटिफिकली एप्रूव्ड

हम सभी चाहते हैं कि हम समान्य जीवन जीएं, लेकिन आज स्ट्रेस हम सब पर हावी है. जो ढेरों समस्याओं का कारण बन रहा है. ऐसे में सविकल्प साइंसेज आपको मन को शांत रखने के साथ-साथ आपको एक आसान सोल्यूशन के द्वारा दर्द, तनाव, चिंता और अनिद्रा से निजात पाने में मदद करता है. बता दें कि सविकल्प साइंसेज अपने प्रोडक्ट्स में कैनबिस को शामिल करता है, जो मेडिकली व साइंटिफिकली एप्रूव्ड हैं. बता दें कि ये बिलकुल नई अवधारणा है,जिससे शायद आप अभी परिचित न भी हो. लेकिन अगर आप इसके एक बार मेडिकल लाभ जान गए. तो आप अपनों व खुद की दूर करने के लिए इसे अपनाए बिना नहीं रह पाएंगे.

बता दें कि सविकल्प साइंसेज एक नई हेल्थ व वेलनेस कंपनी है. जो कोई बीमारियों से राहत पहुंचाने के लिए

टेलिमेडिसिन से पाएं घर पर केयर

आज के बिजी लाइफ स्टाइल में सभी के पास समय का अभाव है. ऐसे में सविकल्प साइंसेज आपको घर बैठे ट्रीटमेंट की सुविधा प्रदान करता है. वो भी ऑनलाइन क्लिनिक के माध्यम से 3 इजी स्टेप्स में.

स्टेप 1: बस 2 मिनट के अंदर आप अपने मोबाइल से ऑनलाइन अपॉइंटमेंट बुक करें.

स्टेप 2:  चयनित टाइम पर एक्सपर्ट डॉक्टर से वीडियो काल के जरिए आप अपनी पोब्ल्म शेयर करें.

स्टेप 3: डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवा को आप www. Savikalpa.com खरीद सकते हैं.

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आयुर्वेद में निहित मेडिकल कैनबिस सोलूशन पर आधारित है. कैनबिस पौधे का इस्तेमाल औषधि को रूप में किया जाता है. सविकल्प साइंसेज का मानना है कि पौधों से प्राप्त दवाएं पूरी तरह से सेफ होने के साथ आपको आपकी परेशानी से बाहर निकलने में मदद कर सकती है. सविकल्प साइंसेज डाबर रिसर्च फाउंडेशन जैसी भारत की प्रमुख दवा अनुसंधान संस्था के साथ काम कर रहे हैं.

कैनबिस लीफ एक विनियमित व कानूनी पदार्थ है. जिसका उपयोग आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली दवाओं में किया जाता है. कैनबिस ट्रीटमेंट इस्तेमाल होने वाली दवाओं में कैनबिनोइड्स नामक एक्टिव फार्मास्यूटिकल तत्व होते हैं, जो कैनबिस के पौधे में पाये जाते हैं.

Kumkum Bhagya ने पूरे किए 2000 एपिसोड, तोड़े बाला जी के सभी रिकॉर्ड

सीरियल कुमकुम भाग्य के एक्टर्स की खुशी इन दिनों सातवें आसमान पर है, सृति झा और शब्बीर आहूवालिया ने इस शो के 2000 एपिसोड पूरे कर लिए हैं. यह सीरियल पिछले 7 सालों से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाएं हुए है.

बता दें कि साल 2014 में इस सीरियल की शुरुआत हुई थी, तबसे लेकर अब तक इस सीरियल ने लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाएं हुए है. फैंस आज भी इस सीरियल को बड़े चाव से देखा पसंद करते हैं. यह सीरियल पहला ऐसा शो है जो अब तक 2000 एपिसोड पूरे किए हैं. अब तक बालाजी के किसी भी शो ने ऐसा कमाल नहीं किया है. जबकी बाला जी टेलिफिल्मस में एक से बढ़कर एक शो पड़े हुए हैं.

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Gorgeousness overload

इस सीरियल ने फैंस के दिल में अपनी जगह बना रखा है. इस सीरियल के सभी किरदार मिलकर एक साथ जश्न मनाते नजर आ रहे हैं. सभी एक्टर एक साथ मस्ती करते नजर आ रहे हैं.

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इसके साथ ही आपको बता दें कि बीती रात ही कुुमकुम भाग्य का 2000वां एपिसोड लॉच किया गया है. इस खास मौके पर एकता कपूर काफी ज्यादा उत्साहित नजर आईं. एकता कपूर ने अपने एक पोस्ट के जरिए अपने फैंस को धन्यवाद भी दिया है.

 

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सोशल मीडिया पर सृति झा और शब्बीर आहूवालिया की तस्वीर जमकर वायरल हो रही है. कुमकुम भाग्य का पूरा परिवार जश्न मना रहे हैं. इसके साथ ही शब्बीर और सृति को फैंस खूब बधाई देते नजर आ रहे हैं.

अस्तित्व की तलाश : भाग 3

उस दिन वंदना का जन्मदिन था. प्रशांत बिजनैस के किसी काम से शहर के बाहर थे. तृषा ने मम्मी को ट्रीट देने के लिए मनाया और ज़िद कर के उसे अपनी जींस व उस पर शौर्ट कुरती पहना दी. ‘क्या मां, तुम तो आज भी स्वीट सिक्सटीन दिखाई देती हो. रियली, आई जेलस विद यू.’

‘कैसी बातें कर रही है, उम्र हो चली है मेरी. तुझ से मेरी भला क्या तुलना,’ वंदना ने शर्माते हुए कहा.

‘ओयेहोये, अभी इतनी भी उम्र नहीं हुई कि आप को सोचना पड़े. वैसे भी, चालीस पार…पर फिर भी गजब का निखार…’ तृषा एकएक शब्द पर जोर देती हुई गोलगोल आंखें मटकाती हुई बोली. तृषा की यह हरकत देख कर वंदना को जोरों की हंसी आ गई. दोनों एकदूसरे का हाथ थामे बाहर निकल गईं.

नियत प्रोग्राम के मुताबिक, सब से पहले दोनों ने वंदना की फेवरेट स्टारर फ़िल्म ‘मौम’ देखी. श्रीदेवी की ऐक्टिंग ने दोनों को बहुत इम्प्रैस किया. उस के बाद कौफ़ीहाउस में मांबेटी ने जम कर पेटपूजा की. सब से आखिर में शौपिंग का दौर शुरू हुआ जो देरशाम तक चला.

‘क्या मां, आप क्यों इतना टैंशन लेती हो? वैसे भी, पापा बाहर हैं, उन्हें कुछ पता चलने वाला नहीं. और अगर चल भी गया तो क्या, हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं न,’ बारबार वंदना का ध्यान घड़ी की ओर जाते देख तृषा बोल उठी.

‘वह तो ठीक है बेटा, पर मैं बेवजह कोई अशांति नहीं चाहती घर में. तुम तो अपने पापा का नेचर जानती हो,’ वंदना की आवाज़ कुछ सहमी हुई सी थी.

‘मां आप भी, कितना डरते हो पापा से. यह ठीक नहीं है. आखिर, आप की अपनी भी कोई जिंदगी है. आप को भी खुश रहने का हक है. अपनी भावनाओं को इस तरह दफ़न मत करो, मां.’ तृषा ने समझाने की कोशिश की.

‘अरे, जहां इतनी निकल गई, वहां थोड़ी और सही. तू मेरी चिंता मत कर. बस, अब घर चल,’ वंदना एक फीकी हंसी हंस पड़ी.

लेकिन उस दिन उन के घर पहुंचते ही जैसे कोई तूफ़ान आ गया. प्रशांत अपने टूअर से लौट कर आ चुका था. तृषा के साथ वंदना को उस परिधान में देखते ही उस की भृकुटी पर बल पड़ गए. वह उसे बुरी तरह लताड़ने लगा. बिना किसी कारण मां को इस तरह डांट खाते देख तृषा का खून खौल उठा. लेकिन अपने गुस्से पर अंकुश रख उस ने पापा को मां से सभ्यता से बात करने की सीख दी.

‘अच्छा, तो अब तुम मेरी बेटी को मेरे खिलाफ़ बरगला कर उसे मेरे विरुद्ध इस्तेमाल कर रही हो.’ तृषा को मां का पक्ष लेते देख प्रशांत बौखला उठा.

‘माफ़ कीजिएगा पापा, मैं अच्छी तरह समझती हूं, कौन सही है और कौन ग़लत. वैसे भी, यह मां की अपनी ख़ुशी है कि वे क्या खाएं क्या पहनें. कम से कम एक इंसान को इतना तो अधिकार मिलना चाहिए,” तृषा थोड़ी देर रुकी, फिर संयत स्वर में बोली, ‘आप मुझे बताओ, क्या मां ने आप के कपड़ों पर कभी कोई रोकटोक लगाई है, कभी आप पर अपनी मरजी थोपी है? फिर आप कैसे उन पर अपने हिसाब से जिंदगी जीने का दबाव डाल सकते हो?’

तृषा के तर्क और उस के सवालों का कोई जवाब न होने पर प्रशांत बड़बड़ाता हुआ वहां से चला गया. तृषा भी कुछ गुस्से में अपने कमरे की ओर चल दी. कुछ पल पहले ही चहकती और खिलखिलाती बेटी को बेवजह अपनी लड़ाई में पिसते देख वंदना का मन दुखी हो गया. लेकिन कहीं न कहीं कोई बात उसे सुकून दे रही थी. आज पहली बार किसी ने उस के सम्मान के लिए अपना मौन मुखर किया था. कोई तो ऐसा है जिसे उस की पीड़ा से तकलीफ पहुंचती है. इस ख़याल ने उस के मन को हुलसा दिया. किसी का साथ मिलने से उस का दबा हुआ आत्मसम्मान एक बार फिर जाग उठा.

इस बार वह रोई नहीं, उदास भी नहीं हुई. उस ड्रैस को पहने ड्रैसिंग टेबल के आदमकद शीशे में थोड़ी देर अपनेआप को निहारा. 45 साल की उम्र में भी अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को निहार कर वह रोमांच से भर उठी. ओह्ह, कुदरत ने उस के साथ कोई नाइंसाफ़ी नहीं की है. यह जीवन, यह दर्द उस ने स्वयं चुना है. जिस समाज के नाम पर दुबक कर वह हमेशा के लिए एक अबला की खोल में सिमट गई, क्या उस समाज ने उस की ओर से कभी कोई पैरवी की. अपने प्रारब्ध पर रोते हुए जिस समय के भरोसे उस ने अपना सर्वस्व छोड़ दिया, क्या वह उस के समय को बदल पाया, उस की खुशियां लौटा पाया? अगर नहीं, तो वह अपनी जिंदगी को समाज, दुनिया, समय के भरोसे कैसे छोड़ सकती है?

और तो और, जिस प्रशांत का प्यार पाने के लिए उस ने जिंदगीभर जद्दोजेहद की, अपना मानसम्मान, स्वाभिमान सब ताक पर धर दिया, उस ने तो रत्तीभर भी उस की परवा न की, बल्कि उस के त्याग, बलिदान को धता बताते हुए वह दूसरी औरत के साथ रंगरलियां मनाता रहा. एक बात आज उसे पूरी तरह समझ में आ चुकी थी कि दोहरे मापदंड पर आधारित यह पुरुषप्रधान समाज सिर्फ स्त्रियों से ही त्याग और बलिदान की अपेक्षा रखता है. प्रशांत जैसे अवसरवादी व स्वार्थी पुरुष समाज की इस दोगली मानसिकता का लाभ उठा कर औरत को अपने से कमतर समझते हैं और समाज की नाक के नीचे ऐयाशी करते हैं. लेकिन उन्हें यह समाज बाइज्ज़त बरी किए जाता है. और एक औरत को वही काम करने पर कुलटा, कुलच्छिनी कह कर सूली पर चढ़ा देता है.

पाखंडी नारे

सार्वजनिक कार्यक्रमों में दर्शकों के बीच अपने समर्थकों की भीड़ देख कर भाजपाई लोग तार्किक, अंधविश्वास व पाखंड का भंडाफोड़ करने वालों को कौर्नर करने के लिए अकसर यह राग गाने लगते हैं कि, बस, शुरू करने से पहले ‘भारत माता की जय’, ‘जय श्रीराम’ या ‘वंदेमातरम’ बोलिए. आमतौर पर विषय को तो भूल जाया जाता है और बहस इन नारों पर होने लग जाती है. कुछ चतुर समझदारों ने भाजपाइयों की इस ओछी हरकत का तोड़ निकाल लिया है कि आप पहले ‘गोडसे मुर्दाबाद’ तो बोलिए. इस पर भाजपाई असमंजस में पड़ जाते हैं क्योंकि उन की एक पीढ़ी को समझा दिया गया है कि नाथूराम गोडसे ने मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या कर के एक शुभ काम किया था.

‘भारत माता की जय’, ‘जय श्रीराम’ या ‘वंदेमातरम’ न भारत के प्रति राष्ट्रभक्ति के नारे हैं न ये यह सिद्ध करते हैं कि बोलने वाला जनता की मन के अनुरूप चल रहा है. ये नारे तो इंग्लैंड, अमेरिका में वहां की नागरिकता लिए और भारतीय नागरिकता छोड़ चुके भारतीय मूल के लोगों की सभाओं में भी लगते हैं. भारत का मां कहना या राम को पूजनीय मानना किसी भी तरह से यह सिद्ध नहीं करता कि पब्लिक फीगर देश हित में काम कर रही है. ये नारे तो गुंडे टाइप लोग दाढ़ी-टोपी वालों को मारमार कर लगवाते हैं जो पूरी तरह भारत के नागरिक हैं और उन का दूरदूर तक पाकिस्तान या बंगलादेश से कोई लेनादेना नहीं है.

ये नारे असल में गुंडागर्दी के बहाने बन गए हैं. ये ‘हेल हिटलर’ की तरह के से हैं जिस ने करोड़ों लोगों को द्वितीय विश्वयुद्ध में बेबात में मरवा डाला और यहूदियों की एक पूरी कौम को समाप्त करने का फाइनल सोल्यूशन बना डाला था. उन यहूदियों का अब अपना देश इसराईल बिना ???………??? के भी पश्चिम एशिया का समृद्ध देश है जबकि इन के साथ जरमनी, पोलैंड, आस्ट्रिया आदि में 1940 से 1945 तक वैसा ही व्यवहार किया गया था जैसा भारत में इन नारों के सहारे एक धर्म विशेष के लोगों के साथ किया जा रहा है.

नारों से देश नहीं बना करते. नारों से कानून व्यवस्था नहीं सुधरती. नारों से सामाजिक परिवर्तन नहीं होते. नारे भीड़ को जुटाने के लिए और तर्क व वास्तविकता से ध्यान हटाने के लिए लगाए जाते हैं. ‘जीत कर रहेंगे’, ‘हम एक हैं’, ‘मजदूर एकता जिंदाबाद’ जैसे नारों से भी किसी का भला नहीं हुआ. ‘जय श्रीराम’ कहने से तथाकथित कल्पित रामराज नहीं आ जाएगा. वैसे भी, रामराज में क्या कुछ ठीक भी था, इस में ही बहुत संदेह है. देश की प्रगति और सामाजिक विसंगतियों के लिए देश की राजनीति, कानून व प्रशासनिक व्यवस्था सुधारी जानी चाहिए जो नारों से नहीं सुधरेगी.

सुबह ‘राधेराधे’ कहलवा कर, असल में, अपनी रोजीरोटी पक्का करना पाखंड का व्यापार करने वालों का काम है. नारे लगा कर 2-4 शब्दों के बोल दोहरा कर सैकड़ों व्यापारी ग्राहकों को आकर्षित करते हैं और सामन बेचते हैं. नारों का यह विवाद उसी कड़ी में है कि मेरा माल अच्छा है, तुम भी इसी का नारा लगाओ. मुसीबत तब आती है जब दूसरे देशों के लोग इन नारों से बिना डरे हकीकत की बात करने लगते हैं. संयुक्त राष्ट्र की कितनी ही संस्थाएं, कितने ही विदेशी अखबार, कितनी ही विश्वभर में फैली जनमत जमा करने वाली संस्थाएं इन नारे लगाने वालों की पोल खोलती हैं तो ये तिलमिला जाते हैं क्योंकि वे मंच भाजपाइयों/पाखंडियों के समर्थकों के नहीं होते.

भूल का एहसास : भाग 4

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

आज ऐसी हालत में मैं एक गिलास पानी को तरस रहा हूं, जबकि उमा ने मु?ो सही हालत में भी कभी खुद पानी लेने नहीं दिया. एक पैर पर खड़ी, वही तो सेवा करती थी. मैं ने उस की कद्र नहीं की, उसी का यह फल है,’ सोच कर वह रो दिया. बु?ो मन से उमा अपने भाई रवि के

साथ वापस लौट आई. रवि ने सूटकेस नीचे रखा तो उमा घर की दूसरी चाबियां टटोल रही थी, लेकिन दरवाजा खुला देख कर वह बुरी तरह चौंक गई. दरवाजा तो खुला हुआ है, आज तो छुट्टी भी नहीं, दफ्तर नहीं गए शायद. स्कूटर भी खड़ा है. लगता है ‘वह सब’ घर पर भी शुरू हो गया है. कितना मजाक बनाएगा देवेश, बड़ा गई थी भाई के यहां… मु?ो मालूम था और कहां जाएगी, तभी मैं ने कोई खबर नहीं ली,’  सोचती हुई उमा, रवि के साथ अंदर हो ली. कमरे के अंदर से कराहने और पानीपानी कहने की आवाजें आ रही थीं.

अंदर पहुंची तो देवेश की हालत देख कर वह कांप गई. ‘कब हुआ यह सब,’ सोचती हुई वह दौड़ कर किचन में गई. फ्रिज खोला तो उस में एक भी बोतल नहीं मिली, घड़ा भी खाली था. उस ने नल खोला कि शायद पानी आ रहा हो. ‘‘शुक्र है, नल में पानी है,’’ कहते हुए वह दौड़ कर पानी ले आई. रवि की मदद से उस ने देवेश को उठा कर पानी पिलाया.

‘‘यह सब क्या हुआ, जीजाजी,’’ रवि आश्चर्य में था.‘‘स्कूटर… फिसल गया… था,’’ देवेश ने एकएक शब्द रुकरुक कर बड़ी मुश्किल से कहा. उमा जानती थी, फिसला कौन था, पर भाई के सामने वह कुछ न बोली. ‘‘मु?ो माफ कर दो, उमा. मैं ने तुम्हें…’’ देवेश अपनी बात पूरी करता तभी उमा बोल पड़ी, ‘‘कुछ बोलने की जरूरत नहीं…’’ मानो बोलने का दर्द उमा स्वयं महसूस कर रही थी.

रवि चला गया. उस के जाते ही उमा ने पूछा, ‘‘वही बब्बन ने…’’ देवेश ने ‘हां’ में सिर हिलाया, ‘‘मैं ने तुम्हें नाहक जाने दिया. तुम्हारा मजाक बनाया. मु?ो कितनी तकलीफ हुई, यह मैं ही जानता हूं,’’ देवेश ने इशारे से ही सारी बातें सम?ाने की कोशिश की थी.

‘‘मैं ने भी महसूस किया, मु?ो भी यों छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था. असली हक तो तुम्हीं पर है, तुम्हारे घर पर. संघर्ष से मैं ही घबरा गई थी. संघर्ष ही तो जीवन है, कभी तो सफलता मिलेगी ही…’’ सबकुछ कहना चाहते हुए भी उमा कुछ न बोल सकी थी. केवल देवेश के बहते आंसुओं को उ?स ने अपने हाथों से पोंछ दिया था.

फैसला: सुरेश और प्रभाकर में से बिट्टी ने किसे चुना

लेखिका-साधना राकेश

रजनीगंधा की बड़ी डालियों को माली ने अजीब तरीके से काटछांट दिया था. उन्हें सजाने में मुझे बड़ी मुश्किल हो रही थी. बिट्टी ने अपने झबरे बालों को झटका कर एक बार उन डालियों से झांका, फिर हंस कर पूछा, ‘‘मां, क्यों इतनी परेशान हो रही हो. अरे, प्रभाकर और सुरेश ही तो आ रहे हैं…वे तो अकसर आते ही रहते हैं.’’ ‘‘रोज और आज में फर्क है,’’ अपनी गुडि़या सी लाड़ली बिटिया को मैं ने प्यार से झिड़का, ‘‘एक तो कुछ करनाधरना नहीं, उस पर लैक्चर पिलाने आ गई. आज उन दोनों को हम ने बुलाया है.’’

बिट्टी ने हां में सिर हिलाया और हंसती हुई अपने कमरे में चली गई. अजीब लड़की है, हफ्ताभर पहले तो लगता था, यह बिट्टी नहीं गंभीरता का मुखौटा चढ़ाए उस की कोई प्रतिमा है. खोईखोई आंखें और परेशान चेहरा, मुझे राजदार बनाते ही मानो उस की उदासी कपूर की तरह उड़ गई और वही मस्ती उस की रगों में फिर से समा गई.

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‘मां, तुम अनुभवी हो. मैं ने तुम्हें ही सब से करीब पाया है. जो निर्णय तुम्हारा होगा, वही मेरा भी होगा. मेरे सामने 2 रास्ते हैं, मेरा मार्गदर्शन करो.’ फिर आश्वासन देने पर वह मुसकरा दी. परंतु उसे तसल्ली देने के बाद मेरे अंदर जो तूफान उठा, उस से वह अनजान थी. अपनी बेटी के मन में उठती लपटों को मैं ने सहज ही जान लिया था. तभी तो उस दिन उसे पकड़ लिया.

कई दिनों से बिट्टी सुस्त दिख रही थी, खोईखोई सी आंखें और चेहरे पर विषाद की रेखाएं, मैं उसे देखते ही समझ गई थी कि जरूर कोई बात है जो वह अपने दिल में बिठाए हुए है. लेकिन मैं चाहती थी कि बिट्टी हमेशा की तरह स्वयं ही मुझे बताए. उस दिन शाम को जब वह कालेज से लौटी तो रोज की अपेक्षा ज्यादा ही उदास दिखी. उसे चाय का प्याला थमा कर जब मैं लौटने लगी तो उस ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया और रोने लगी.

बचपन से ही बिट्टी का स्वभाव बहुत हंसमुख और चंचल था. बातबात में ठहाके लगाने वाली बिट्टी जब भी उदास होती या उस की मासूम आंखें आंसुओं से डबडबातीं तो मैं विचलित हो उठती. बिट्टी के सिवा मेरा और था ही कौन? पति से मानसिकरूप से दूर, मैं बिट्टी को जितना अपने पास करती, वह उतनी ही मेरे करीब आती गई. वह सारी बातों की जानकारी मुझे देती रहती. वह जानती थी कि उस की खुशी में ही मेरी खुशी झलकती है. इसी कारण उस के मन की उठती व्यथा से वही नहीं, मैं भी विचलित हो उठी. सुरेश हमारे बगल वाले फ्लैट में ही रहता था. बचपन से बिट्टी और सुरेश साथसाथ खेलते आए थे. दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां आनाजाना था. उस की मां मुझे मानती थी. मेरे पति योगेश को तो अपने व्यापार से ही फुरसत नहीं थी, पर मैं फुरसत के कुछ पल जरूर उन के साथ बिता लेती. सुरेश बेहद सीधासादा, अपनेआप में खोया रहने वाला लड़का था, लेकिन बिट्टी मस्त लड़की थी.

बिट्टी का रोना कुछ कम हुआ तो मैं ने पूछ लिया, ‘आजकल सुरेश क्यों नहीं आता?’ ‘वह…,’ बिट्टी की नम आंखें उलझ सी गईं.

‘बता न, प्रभाकर अकसर मुझे दिखता है, सुरेश क्यों नहीं?’ मेरा शक सही था. बिट्टी की उदासी का कारण उस के मन का भटकाव ही था. ‘मां, वह मुझ से कटाकटा रहता है.’

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‘क्यों?’ ‘वह समझता है, मैं प्रभाकर से प्रेम करती हूं.’

‘और तू?’ मैं ने उसी से प्रश्न कर दिया. ‘मैं…मैं…खुद नहीं जानती कि मैं किसे चाहती हूं. जब प्रभाकर के पास होती हूं तो सुरेश की कमी महसूस होती है, लेकिन जब सुरेश से बातें करती हूं तो प्रभाकर की चाहत मन में उठती है. तुम्हीं बताओ, मैं क्या करूं. किसे अपना जीवनसाथी चुनूं?’ कह कर वह मुझ से लिपट गई.

मैं ने उस के सिर पर हाथ फेरा और सोचने लगी कि कैसा जमाना आ गया है. प्रेम तो एक से ही होता है. प्रेम या जीवनसाथी चुनने का अधिकार उसे मेरे विश्वास ने दिया था. सुरेश उस के बचपन का मित्र था. दोनों एकदूसरे की कमियों को भी जानते थे, जबकि प्रभाकर ने 2 वर्र्ष पूर्व उस के जीवन में प्रवेश किया था. बिट्टी बीएड कर रही थी और हम उस का विवाह शीघ्र कर देना चाहते थे, लेकिन वह स्वयं नहीं समझ पा रही थी कि उस का पति कौन हो सकता है, वह किस से प्रेम करती है और किसे अपनाए. परंतु मैं जानती थी, निश्चितरूप से वह प्रेम पूर्णरूप से किसी एक को ही करती है. दूसरे से महज दोस्ती है. वह नहीं जानती कि वह किसे चाहती है, परंतु निश्चित ही किसी एक का ही पलड़ा भारी होगा. वह किस का है, मुझे यही देखना था.

रात में बिट्टी पढ़तेपढ़ते सो गई तो उसे चादर ओढ़ा कर मैं भी बगल के बिस्तर पर लेट गई. योगेश 2 दिनों से बाहर गए हुए थे. बिट्टी उन की भी बेटी थी, लेकिन मैं जानती थी, यदि वे यहां होते, तो भी बिट्टी के भविष्य से ज्यादा अपने व्यापार को ले कर ही चिंतित होते. कभीकभी मैं समझ नहीं पाती कि उन्हें बेटी या पत्नी से ज्यादा काम क्यों प्यारा है. बिस्तर पर लेट कर रोजाना की तरह मैं ने कुछ पढ़ना चाहा, परंतु एक भी शब्द पल्ले न पड़ा. घूमफिर कर दिमाग पीछे की तरफ दौड़ने लगता. मैं हर बार उसे खींच कर बाहर लाती और वह हर बार बेशर्मों की तरह मुझे अतीत की तरफ खींच लेता. अपने अतीत के अध्याय को तो मैं जाने कब का बंद कर चुकी थी, परंतु बिट्टी के मासूम चेहरे को देखते हुए मैं अपने को अतीत में जाने से न रोक सकी…

जब मैं भी बिट्टी की उम्र की थी, तब मुझे भी यह रोग हो गया था. हां, तब वह रोग ही था. विशेषरूप से हमारे परिवार में तो प्रेम कैंसर से कम खतरनाक नहीं था. तब न तो मेरी मां इतनी सहिष्णु थीं, जो मेरा फैसला मेरे हक में सुना देतीं, न ही पिता इतने उदासीन थे कि मेरी पसंद से उन्हें कुछ लेनादेना ही होता. तब घर की देहरी पर ज्यादा देर खड़ा होना बूआ या दादी की नजरों में बहुत बड़ा गुनाह मान लिया जाता था. किसी लड़के से बात करना तो दूर, किसी लड़की के घर भी भाई को ले कर जाना पड़ता, चाहे भाई छोटा ही क्यों न हो. हजारों बंदिशें थीं, परंतु जवानी कहां किसी के बांधे बंधी है. मेरा अल्हड़ मन आखिर प्रेम से पीडि़त हो ही गया. मैं बड़ी मां के घर गई हुई थी. सुमंत से वहीं मुलाकात हुई थी और मेरा मन प्रेम की पुकार कर बैठा. परंतु बचपन से मिले संस्कारों ने मेरे होंठों का साथ नहीं दिया. सुमंत के प्रणय निवेदन को मां और परिवार के अन्य लोगों ने निष्ठुरता से ठुकरा दिया.

फिर 1 वर्ष के अंदर ही मेरी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी गई जो था तो छोटा सा व्यापारी, पर जिस का ध्येय भविष्य में बड़ा आदमी बनने का था. इस के लिए मेरे पति ने व्यापार में हर रास्ता अपनाया. मेरी गोद में बिट्टी को डाल कर वे आश्वस्त हो दिनरात व्यापार की उन्नति के सपने देखते. प्रेम से पराजित मेरा तप्त हृदय पति के प्यार और समर्पण का भूखा था. उन के निस्वार्थ स्पर्श से शायद मैं पहले प्रेम को भूल कर उन की सच्ची सहचरी बनती, पर व्यापार के बीच मेरा बोलना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं था. मुझे याद नहीं, व्यापारिक पार्टी के अलावा वे मुझे कभी कहीं अपने साथ ले गए हों.

लेकिन घर और बिट्टी के बारे में सारे फैसले मेरे होते. उन्हें इस के लिए अवकाश ही न था. बिट्टी द्वारा दी गई जिम्मेदारी से मेरे अतीत की पुस्तक फड़फड़ाती रही. अतीत का अध्याय सारी रात चलता रहा, क्योंकि उस के समाप्त होने तक पक्षियों ने चहचहाना शुरू कर दिया था… दूसरे दिन से मैं बिट्टी के विषय में चौकन्नी हो गई. प्रभाकर का फोन आते ही मैं सतर्क हो जाती. बिट्टी का उस से बात करने का ढंग व चहकना देखती. घंटी की आवाज सुनते ही उस का भागना देखती.

एक दिन सुरेश ने कहा, ‘चाचीजी, देखिएगा, एक दिन मैं प्रशासनिक सेवा में आ कर रहूंगा, मां का एक बड़ा सपना पूरा होगा. मैं आगे बढ़ना चाहता हूं, बहुत आगे,’ उस के ये वाक्य मेरे लिए नए नहीं थे, परंतु अब मैं उन्हें भी तोलने लगी.

प्रभाकर से बिट्टी की मुलाकात उस के एक मित्र की शादी में हुई थी. उस दिन पहली बार बिट्टी जिद कर के मुझ से साड़ी बंधवा कर गईर् थी और बालों में वेणी लगाई थी. उस दिन सुरेश साक्षात्कार देने के लिए इलाहाबाद गया हुआ था. बिट्टी अपनी एक मित्र के साथ थी और उसी के साथ वापस भी आना था. मैं सोच रही थी कि सुरेश होता तो उसे भेज कर बिट्टी को बुलवा सकती थी. उस के आने में काफी देर हो गई थी. मैं बेहद घबरा गई. फोन मिलाया तो घंटी बजती रही, किसी ने उठाया ही नहीं.

लेकिन शीघ्र ही फोन आ गया था कि बिट्टी रात को वहीं रुक जाएगी. दूसरे दिन जब बिट्टी लौटी तो उदास सी थी. मैं ने सोचा, सहेली से बिछुड़ने का दर्द होगा. 2 दिन वह शांत रही, फिर मुझे बताया, ‘मां, वहां मुझे प्रभाकर मिला था.’

‘वह कौन है?’ मैं ने प्रश्न किया. ‘मीता के भाई का दोस्त, फोटो खींच रहा था, मेरे भी बहुत सारे फोटो खींचे.’

‘क्यों?’ ‘मां, वह कहता था कि मैं उसे अच्छी लग रही हूं.’

‘तुम ने उसे पास आने का अवसर दिया होगा?’ मैं ने उसे गहराई से देखा. ‘नहीं, हम लोग डांस कर रहे थे, तभी बीच में वह आया और मुझे ऐसा कह कर चला गया.’

मैं ने उसे आश्वस्त किया कि कुछ लड़के अपना प्रभाव जमाने के लिए बेबाक हरकत करते हैं. फिर शादी वगैरह में तो दूल्हे के मित्र और दुलहन की सहेलियों की नोकझोंक चलती ही रहती है. परंतु 2 दिनों बाद ही प्रभाकर हमारे घर आ गया. उस ने मुझ से भी बातें कीं और बिट्टी से भी. मैं ने लक्ष्य किया कि बिट्टी उस से कम समय में ही खुल गई है.

फिर तो प्रभाकर अकसर ही मेरे सामने ही आता और मुझ से तथा बिट्टी से बतिया कर चला जाता. बिट्टी के कालेज के और मित्र भी आते थे. इस कारण प्रभाकर का आना भी मुझे बुरा नहीं लगा. जिस दिन बिट्टी उस के साथ शीतल पेय या कौफी पी कर आती, मुझे बता देती. एकाध बार वह अपने भाई को ले कर भी आया था. इस दौरान शायद बिट्टी सुरेश को कुछ भूल सी गई. सुरेश भी पढ़ाई में व्यस्त था. फिर प्रभाकर की भी परीक्षा आ गई और वह भी व्यस्त हो गया. बिट्टी अपनी पढ़ाई में लगी थी.

धीरेधीरे 2 वर्ष बीत गए. बिट्टी बीएड करने लगी. उस के विवाह का जिक्र मैं पति से कई बार चुकी थी. बिट्टी को भी मैं बता चुकी थी कि यदि उसे कोई लड़का पति के रूप में पसंद हो तो बता दे. फिर तो एक सप्ताह पूर्व की वह घटना घट गई, जब बिट्टी ने स्वीकारा कि उसे प्रेम है, पर किस से, वह निर्णय वह नहीं ले पा रही है.

सुरेश के परिवार से मैं खूब परिचित थी. प्रभाकर के पिता से भी मिलना जरूरी लगा. पति को जाने का अवसर जाने कब मिलता, इस कारण प्रभाकर को बताए बगैर मैं उस के पिता से मिलने चल दी.

बेहतर आधुनिक सुविधाओं से युक्त उन का मकान न छोटा था, न बहुत बड़ा. प्रभाकर के पिता का अच्छाखासा व्यापार था. पत्नी को गुजरे 5 वर्ष हो चुके थे. बेटी कोई थी नहीं, बेटों से उन्हें बहुत लगाव था. इसी कारण प्रभाकर को भी विश्वास था कि उस की पसंद को पिता कभी नापसंद नहीं करेंगे और हुआ भी वही. वे बोले, ‘मैं बिट्टी से मिल चुका हूं, प्यारी बच्ची है.’ इधरउधर की बातों के बीच ही उन्होंने संकेत में मुझे बता दिया कि प्रभाकर की पसंद से उन्हें इनकार नहीं है और प्रत्यक्षरूप से मैं ने भी जता दिया कि मैं बिट्टी की मां हूं और किस प्रयोजन से उन के पास आई हूं.

‘‘कहां खोई हो, मां?’’ कमरे से बाहर निकलते हुए बिट्टी बोली. मैं चौंक पड़ी. रजनीगंधा की डालियों को पकड़े कब से मैं भावशून्य खड़ी थी. अतीत चलचित्र सा घूमता चला गया. कहानी पूरी नहीं हो पाई थी, अंत बाकी था.

जब घर में प्रभाकर और सुरेश ने एकसाथ प्रवेश किया तो यों प्रतीत हुआ, मानो दोनों एक ही डाली के फूल हों. दोनों ही सुंदर और होनहार थे और बिट्टी को चाहने वाले. प्रभाकर ने तो बिट्टी से विवाह की इच्छा भी प्रकट कर दी थी, परंतु सुरेश अंतर्मुखी व्यक्तित्व का होने के कारण उचित मौके की तलाश में था.

सुरेश ने झुक कर मेरे पांव छुए और बिट्टी को एक गुलाब का फूल पकड़ा कर उस का गाल थपथपा दिया. ‘‘आते समय बगीचे पर नजर पड़ गई, तोड़ लाया.’’

प्रभाकर ने मुझे नमस्ते किया और पूरे घर में नाचते हुए रसोई में प्रवेश कर गया. उस ने दोचार चीजें चखीं और फिर बिट्टी के पास आ कर बैठ गया. मैं भोजन की अंतिम तैयारी में लग गई और बिट्टी ने संगीत की एक मीठी धुन लगा दी. प्रभाकर के पांव बैठेबैठे ही थिरकने लगे. सुरेश बैठक में आते ही रैक के पास जा कर खड़ा हो गया और झुक कर पुस्तकों को देखने लगा. वह जब भी हमारे घर आता, किसी पत्रिका या पुस्तक को देखते ही उसे उठा लेता. वह संकोची स्वभाव का था, भूखा रह जाता. मगर कभी उस ने मुझ से कुछ मांग कर नहीं खाया था.

मैं सोचने लगी, क्या सुरेश के साथ मेरी बेटी खुश रह सकेगी? वह भारतीय प्रशासनिक सेवा की प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण हो चुका है. संभवतया साक्षात्कार भी उत्तीर्ण कर लेगा, लेकिन प्रशासनिक अधिकारी बनने की गरिमा से युक्त सुरेश बिट्टी को कितना समय दे पाएगा? उस का ध्येय भी मेरे पति की तरह दिनरात अपनी उन्नति और भविष्य को सुखमय बनाने का है जबकि प्रभाकर का भविष्य बिलकुल स्पष्ट है. सुरेश की गंभीरता बिट्टी की चंचलता के साथ कहीं फिट नहीं बैठती. बिट्टी की बातबात में हंसनेचहकने की आदत है. यह बात कल को अगर सुरेश के व्यक्तित्व या गरिमा में खटकने लगी तो? प्रभाकर एक हंसमुख और मस्त युवक है. बिट्टी के लिए सिर्फ शब्दों से ही नहीं वह भाव से भी प्रेम दर्शाने वाला पति साबित होगा. बिट्टी की आंखों में प्रभाकर के लिए जो चमक है, वही उस का प्यार है. यदि उसे सुरेश से प्यार होता तो वह प्रभाकर की तरफ कभी नहीं झुकती, यह आकर्षण नहीं प्रेम है. सुरेश सिर्फ उस का अच्छा मित्र है, प्रेमी नहीं. खाने की मेज पर बैठने के पहले मैं ने फैसला कर लिया था.

भूल का एहसास : भाग 3

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

उमा ने जब सारी स्थिति उसे बताई तो अल्पना का चेहरा तमतमा गया. उस ने अपनी लड़कियों को बुलाया और जीभर कर डांटा. ‘‘मम्मी, हम क्या करें, अंकल ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं,’’ बड़ी लड़की रमा बोली. ‘‘खबरदार, जो मेरे पीछे किसी अनजाने व्यक्ति के लिए दरवाजा खोला. जब तक हमें दूसरा घर नहीं मिल जाता, तुम दोनों अकेले बाहर नहीं निकलोगी,’’ अल्पना चौधरी ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया और ‘‘धन्यवाद, उमा बहन, आप ने हमें आगाह कर दिया, मगर देवेशजी को भी अच्छी तरह सम?ा दीजिए. ऐसा ही करेंगे तो पुलिस, थाने के चक्कर में आ जाएंगे,’’ कहते हुए उस ने उमा को नसीहत दी.

उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.पर वे लोग ज्यादा दूर नहीं गए हैं, देवेश ने जल्दी ही पता कर लिया और फिर वही चक्कर चलने लगा. न तो वे लड़कियां मानतीं और न ही देवेश बाज आता. उमा ने बहुत सम?ाया, ?ागड़ा किया पर देवेश की बुद्धि पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. उसे अपनी भूल का तनिक भी एहसास न होता.

इसी बीच जय पीएमटी में पास हो गया और उस का मैडिकल कालेज में दाखिला भी हो गया. वह छात्रावास चला गया.उमा इस बात से खुश थी कि चलो, एक चिंता तो दूर हुई, मगर देवेश अपनी मनमानी करता रहता. अब तो उन्हें जय की मौजदूगी का भी डर नहीं था, सो दोनों में खूब ?ागड़ा होता.उमा तंग हो कर कहती कि ऐसा ही चलता रहा तो वह घर छोड़ कर विजय के पास मुंबई या अजय के पास कश्मीर चली जाएगी, फिर रहें अकेले, खूब पिएं और मस्ती करें.

यही सोच कर उमा ने पहले अपने बड़े बेटे विजय को चिट्ठी लिखी. विजय ने जवाब में लिखा, ‘अम्मा, तुम्हें पता है कि मुंबई का घर कितना छोटा है. उसी में खाना, उसी में सोना, उसी में आएगए को बैठाना. ऐसे में किसी को हमेशा के लिए कैसे रखा जा सकता है?’ पत्र में लिखा ‘किसी’ शब्द पढ़ कर उमा की आंखों में आंसू आ गए. विजय ने आगे लिखा था, ‘पापा को सम?ाओ, ?ागड़ा मत करो, वहीं रहो. हम छुट्टियों में आ रहे हैं, तब हम भी पापा को सम?ाएंगे.’

‘मु?ो मालूम है, तू बहू का गुलाम है. उस की मरजी नहीं होगी तो कैसे रखेगा? कोई बात नहीं. अजय तो मु?ो बड़े प्यार से ले जाएगा, बहुत प्यार करता है मु?ो,’ उमा बड़बड़ाती जा रही थी.दूसरे दिन अजय का भी जवाब आ गया. उस ने तो साफ ही मना कर दिया, ‘अम्मा, यहां मिलिटरी एरिया में भी हम लोग डरेडरे से रहते हैं तो तुम्हें कहां रखूंगा?’

‘हांहां, 100-50 साल जिंदा रहूंगी, बिना पढ़ीलिखी मां का बो?ा जाने कब तक उठाना पड़े, बैठा कर कब तक खिलाएगा. मैं ही मूर्ख थी जो तुम सब को बैठा कर खिलाया और बाद में नौकरानी की तरह बचा हुआ खाया. क्या मैं तेरे पास आ कर तेरा हाथ न बंटाती? कभी देखा है अम्मा को खाली पड़ेपड़े सोते…’ उमा मन ही मन बड़बड़ाते हुए रोए जा रही थी.देवेश ने उमा को रोते देख उस के हाथ से खत लिया और पढ़ कर बोला, ‘‘जा रही हो न, अपने लाड़लों के पास?’’ वह व्यंग्य से हंसा था.

उमा कुछ न बोली. उस ने मन ही मन तय किया कि वह अपने छोटे भाई रवि के पास चली जाएगी. वहां बाबूजी का घर भी है और खेतीबाड़ी भी. वहीं वकालत भी उस की अच्छी चल रही है. उसे वहां कोई परेशानी न होगी, यही सोच कर उमा एक दिन देवेश को बिना बताए, सूटकेस ले कर रवि के घर पहुंच गई.

‘‘अरे, दीदी, तुम अचानक, अकेले, जीजाजी कहां हैं?’’ कहते हुए रवि ने नौकर रामू को आवाज दी. रवि, उमा को गेट पर ही मिल गया था. वह पैसे वाली किसी पार्टी को छोड़ने बाहर तक आया था. उन की गाड़ी उमा के रुकते रिकशे की बगल से गुजरी थी.अंदर पहुंच कर रवि ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था, जिस से कोई बाहर न सुने.

उस का रवैया देख उमा कुछ सम?ा न पाई थी, पर इस तरह उमा को अचानक, अकेला आए देख रवि सब सम?ा गया था, इसीलिए वह बोला, ‘‘दीदी, ध्यान तो रखना ही पड़ता है. छाया के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए यहां आए हुए हैं. बोलो, दीदी, क्या हुआ?’’उमा ने रोतेरोते सारी बातें बताईं.

‘‘दीदी, अब बहुत हो गया. इस उम्र में यह सब अच्छा नहीं लगता. जीजाजी को सम?ाओ न, कलह मत किया करो. अलग होने की यह कोई उम्र है भला? मैं यहां लोगों से क्या कहूंगा? यहां मेरा नाम है, इज्जत है. लोग पूछेंगे कि क्यों चली आई तो मैं क्या जवाब दूंगा? अब जो भी है, अपनी जिंदगी सम?ा. ठीक है, यहां अपना बड़ा घर है, पैसे की कोई कमी नहीं और तुम भी रह लोगी, पर सोचो, क्या तुम खुश रह पाओगी? जय का भी तो सोचो. 2 बच्चे तुम्हारे सैटल हो गए हैं, जय को भी सैटल कर दो. क्या उस के प्रति तुम्हारा दायित्व खत्म हो गया? जिंदगी तो सम?ाते का नाम है, कुछ न कुछ अच्छाबुरा तो सब के साथ लगा ही रहता है,’’ रवि ने उमा को सम?ाते हुए कहा.

उधर देवेश के रंगीनमिजाज का भूत उतर चुका था. बब्बन ने महल्ले के 8-10 लड़कों के साथ मिल कर उस को अच्छी तरह पीट दिया था. उस के बाएं हाथ की हड्डी उतर गई थी, पैर टूट गया था, चेहरा भी सूज गया था. जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उन सब ने देवेश को हौकी, डंडों से खूब मारा था जिस से उसे अंदरूनी चोटें भी आई थीं. दर्द इतना था कि वह बिलबिला उठता, पर उस की मदद को आता कौन? उस की बदनामी जो चारों ओर फैली हुई थी. नेक बीवी और होशियार बच्चों से ही तो उस की थोड़ीबहुत इज्जत थी.

कामवाली बाई ने भी उस रंगीले को अकेला देख, आना छोड़ दिया था. घर की उस की हालत देखने लायक थी. ऐसे में उमा उसे बहुत याद आई. ‘क्यों मैं ने ?ागड़ा किया, क्यों उसे जाने का ताना दिया?

 

दिसंबर महीने के खेतीबारी से जुड़े खास काम

रबी सीजन के लिए दिसंबर का महीना सब से महत्त्वपूर्ण माना जाता है. इस महीने में सब्जी, अनाज, फल वगैरह की अगेती फसलों की देखभाल से ले कर पछेती किस्मों की बोआई का काम किया जाता है. चूंकि इस महीने से सर्दी बढ़ने लगती है, इसलिए फसल को पाले से बचाने को ले कर बेहद सजगता बरतनी पड़ती है, वहीं पशुपालकों, मछलीपालकों और मुरगीपालन से जुड़े लोगों को भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. जिन किसानों ने गेहूं की अभी तक बोआई नहीं की है, वह इस महीने के पहले पखवारे तक अवश्य पूरा कर लें.

इस के लिए गेहूं की उन्नतशील पछेती किस्मों का चयन करें. वहीं गेहूं की पछेती किस्मों की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 125 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. पछेती बोआई के लिए उन्नत किस्मों में सोनालिका, डब्ल्यूएस 291, एचडी 2285, सोनक, यूपी 2338, राज 3767, पीबीडब्ल्यू 373, पीबीडब्ल्यू 138 व टीएल 1210 शामिल हैं. गेहूं को बोने के पहले कार्बोक्सिन 37.5 फीसदी व थीरम 37.5 फीसदी का मिश्रण 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा के अनुसार बीजोपचार करें. देरी से गेहूं की बोआई करने वाले किसान बीज की बोआई जीरो टिलेज विधि से जीरो टिलेज मशीन से करें.

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इस से गेहूं की खेती में लागत में कमी आने के साथ ही उपज में वृद्धि होती है और उर्वरक का उचित प्रयोग संभव हो पाता है. साथ ही, पहली सिंचाई में पानी न लगने के कारण फसल बढ़वार में रुकावट की समस्या नहीं रहती है. इस के अलावा गेहूं में खरपतवार में कमी आती है. जिन किसानों ने गेहूं की अगेती किस्में बोई हैं और उन के खेत में खरपतवार गेहुंसा और जंगली जई उग आई है, ऐसी संकरी व चौड़ी पत्ती दोनों खरपतवारों के नियंत्रण के लिए सल्फोसल्फ्यूरान 75 फीसदी व मेट सल्फ्यूरान मिथाइल 5 फीसदी डब्ल्यूजी की 40 ग्राम मात्रा को 600-800 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. जिन किसानों ने गेहूं की समय से बोआई की है, वह गेहूं में नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा दें और 15-20 दिन के अंतराल से सिंचाई करते रहें. समय से बोई गई गेहूं की फसल में शिखर जड़ विकास का समय होता है, इसलिए इस माह में बोआई के 21 दिन पूरे हो जाने पर फसल की सिंचाई से बिलकुल नहीं चूकना चाहिए, नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट हो जाती है.

अगर गेहूं की बोआई के 30 दिन बाद नीचे की तीसरी या चौथी पत्तियों पर हलके पीले धब्बे, जो बाद में बड़े आकार के हो जाते हैं, दिखाई पड़ रहे हैं, तो यह जस्ते की कमी के लक्षण हैं. इस स्थिति में तुरंत 0.7 फीसदी जिंक सल्फेट व 2.7 फीसदी यूरिया का घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतर पर छिड़कें, वरना पैदावार कम होने के साथसाथ फसल पकने में 10-15 दिन की देरी हो जाती है. जो किसान जौ की बोआई अभी तक नहीं कर पाए हैं, वह दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक पछेती किस्मों को बो दें. इस के लिए एक हेक्टेयर में 100 से 110 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. जो किसान रबी सीजन में सूरजमुखी की फसल बोना चाहते हैं, वह दिसंबर के आखिरी हफ्ते तक हर हाल में बोआई कर लें.

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सूरजमुखी की उन्नत किस्में मौडर्न, बीएसएच 1, एमएसएच, सूर्या व ईसी 68415 हैं. शरदकालीन गन्ने में नवंबर के दूसरे पखवारे में सिंचाई न की गई हो, तो दिसंबर में सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करें. गन्ने के साथ राई व तोरिया की सहफसली खेती में जरूरत के मुताबिक सिंचाई कर के निराईगुड़ाई करना लाभप्रद होता है. गेहूं के साथ सहफसली खेती में बोआई के 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई करें. दिसंबर महीने में गन्ने की कटाई जोरों पर होती है. इस समय यह ध्यान दें कि कटाई जमीन की सतह के साथ करें और गन्ना मिलों की मांग के अनुसार करें. जिन किसानों ने तोरिया की फसल ली है,

वह दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक पकी हुई फसल की कटाई कर लें. इस के अलावा सरसों में दाने भरने की अवस्था में दिसंबर के पहले पखवारे में सिंचाई कर दें. पीली सरसों में भी फूल आने पर सिंचाई करें. जिन किसानों ने मटर की खेती की है, वे फसल में फूल आने से पहले एक हलकी सिंचाई कर दें. वहीं फसल में भभूतिया यानी पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखने पर घुलनशील गंधक 80 फीसदी डब्ल्यूपी 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर की दर से छिड़काव करें. इस की एक हेक्टेयर में 1.5 किलोग्राम मात्रा की जरूरत पड़ती है या फफूंदीनाशक फ्लुसिलाजोल 40 फीसदी ईसी की 120 मिलीलिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. जिन किसानों ने मसूर अभी तक नहीं बोई है, वह दिसंबर महीने में इस फसल की पछेती बोआई कर सकते हैं.

इस के लिए 50-60 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. अलसी की बोई गई फसल में लीफ ब्लाइट और रतुआ रोग के नियंत्रण के लिए 2 ग्राम इंडोफिल एम-45 या 3 ग्राम ब्लाईटाक्स को 50 प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. आलू की फसल लेने वाले किसान अगर तापमान के अत्यधिक कम होने और पाला पड़ने की संभावना हो, तो फसल में सिंचाई जरूर करें. इस फसल में अगर पछेती ?ालसा का प्रकोप दिखे, जो फफूंद से लगने वाली एक बीमारी है. इस बीमारी का प्रकोप आलू की पत्ती, तने व कंदों के साथसाथ सभी भागों पर होता है. फफूंदीनाशक दवा साईमोक्जिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी डब्ल्यूपी के मिश्रण की प्रति हेक्टेयर 1.5 किलोग्राम मात्रा के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अंतराल पर करें. इस के अलावा आलू की फसल में अगेती ?ालसा की दशा में मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अगर आलू की फसल में पत्ती मुड़ने वाला रोग यानी पोटैटो लीफ रोल का प्रकोप दिखाई पड़ रहा है

, तो एसिटामिप्रिड 20 फीसदी एसपी की 250 ग्राम प्रति हेक्टेयर की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर 1-2 छिड़काव दिसंबर महीने में करें. दिसंबर महीने में मशरूम की तैयार फसल को तोड़ने के बाद, आकार के अनुसार उन की छंटनी कर लें और 3 फीसदी कैल्शियम क्लोराइड घोल से धोने के बाद साफ पानी से धोएं. इस के बाद धुले मशरूम को कपड़े पर फैला दें, ताकि अतिरिक्त पानी सूख जाए. फिर 250 ग्राम, 500 ग्राम के पैकेट बना कर सील कर दें और थैलियों में रख कर इसे रैफ्रिजरेटर में 7-8 दिन तक रख सकते हैं. ताजा मशरूम भी बाजार में आसानी से बिक जाती है.

जिन किसानों ने प्याज की रोपाई नहीं है, वह दिसंबर महीने के अंतिम हफ्ते तक प्याज की रोपाई जरूर कर दें. लाइन में 6 इंच व पौधों में 4 इंच की दूरी रखें. इस में 10 टन कंपोस्ट, पौना बोरा यूरिया, 2.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट व 1 बोरा म्यूरेट औफ पोटाश डालें और रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें. मूली, शलजम, गाजर में मिट्टी चढ़ाएं, ताकि पैदावार अधिक हो. बाकी सब्जियों को 15-20 दिन में हलकी सिंचाई करते रहें और पौलीथिन सीट से ढक कर पाले से भी बचाएं. टमाटर व मिर्च में ?ालसा रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब 63 फीसदी डब्ल्यूपी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपी की मात्रा को 600 से 800 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. दिसंबर का महीना गुलाब के पौधों में काटछांट और गुड़ाई के लिए सही समय है. गुड़ाई के बाद गुलाब के तनों व जड़ों को धूप लगाने और कंपोस्ट देने से वसंत ऋतु में अच्छे फूल आते हैं.

इस माह गुलाब के पौधों के तनों की कलम भी आसानी से लग जाती है. बाकी फूलों में जरूरत के अनुसार व देशी खाद, पानी व गुड़ाई देते रहें. पाले से पौधों का बचाएं. ग्लैडियोलस की फसल में जरूरत के अनुसार सिंचाई व निराईगुड़ाई करें. मुर?ाई टहनियों को निकालते रहें और बीज न बनने दें. दिसंबर का महीना बगीचों में खाद देने का होता है. इसलिए आम, नीबू व अनार के पौधों में गोबर की खाद 17 से 20 किलोग्राम प्रति पौधा प्रति वर्ष के हिसाब से दें. 5 साल या ऊपर के पौधों में 77 से 100 किलोग्राम प्रति पौधा दें. खाद देने के साथ गुड़ाई भी करें. नीबू में केंकर रोग की रोकथाम के लिए 20 मिलीग्राम स्ट्रैप्टोसाइक्लीन को 25 ग्राम कौपर सल्फेट के साथ 200 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. बेर में सफेद चूर्णी रोग दिखाई देने पर घुलनशील गंधक 400 ग्राम को 200 लिटर पानी में घोल कर पेड़ों पर छिड़कें.

दिसंबर महीने में आड़ू के मिट्टीरहित पौधे लगाए जा सकते हैं. इस के लिए शरबती, सफेटा, मैचप्लेस, पलोरडासन किस्में उपयुक्त हैं. पौधों को रोपने के लिए 1 वर्गमीटर के गड्ढे खोदें और ऊपर की आधा मीटर मिट्टी में सड़ीगली देशी खाद बराबर मात्रा में मिला कर 20 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी डाल कर भर दें. पौधे लगाने से पहले गड्ढे पानी से भरें और फिर मिट्टी डाल कर बराबर करने के बाद पेड़ लगाएं और पानी दें. पौधों में यूरिया, सिंगल सुपर फास्फेट व म्यूरेट औफ पोटाश प्रति पौधा प्रति वर्ष की आयु के हिसाब से भी डालें. अमरूद में फलमक्खी रोग के नियंत्रण के लिए साइपरमेथ्रिन 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर की दर से पानी में घोल बना कर फल परिपक्वता के पूर्व 10 दिनों के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें. प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

बगीचे में फलमक्खी के वयस्क नर को फंसाने के लिए फैरोमौन ट्रेप लगाने चाहिए. आंवला की तुड़ाई के उपरांत फलों को बावस्टीन (0.1 प्रतिशत) से उपचारित कर के भंडारित करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है. आम की पौधो में कीट नियंत्रण के लिए किसान बागों की गहरी जुताई, गुड़ाई करें और कीटों को पौधों पर चढ़ने से रोकने के लिए मुख्य तने पर भूमि से 50-60 सैंटीमीटर चौड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध दें, जिस से कीट ऊपर न चढ़ सके. इस से बचाव के लिए दिसंबर माह में एक पखवारे के अंतराल पर 2 बार क्लोरोपायरीफास (1.5) चूर्ण भी प्रति पेड़ के हिसाब से पौधों पर बुरकाव करें. इस के बाद भी अगर कीट पौधे पर चढ़ जाएं तो क्विनलफास अथवा डायमेथोएट का पानी में घोल बना कर पौधों पर बुरकाव करें. दिसंबर माह में फलों की तुड़ाई होती है.

संक्रमित गिरे हुए फल को उठा कर एक बालटी में डुबो कर रखें. तुड़ाई के बाद हलकी छंटाई शाखाओं की कटी हुई सतहों पर कौपर औक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी 100 ग्राम प्रति 250 मिलीलिटर को पानी में मिला कर प्रूनिंग के बाद डालें. दिसंबर महीने में हुई ताजा बर्फबारी सेब के लिए लाभदायक होती है. इस से सेब बगीचों को नमी मिलती है. वैज्ञानिक सलाह के अनुसार उपयुक्त समय पर बगीचों का प्रबंधन करें और सही वक्त पर खाद डालें. दिसंबर में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं. ऐसे में दिसंबर की बर्फबारी सेब पौधों के लिए खुराक का काम करती है. पौधों को 12 सौ से 16 सौ घंटे तक कड़क ठंड की जरूरत रहती है. चिलिंग आवर्स पूरे होते हैं, तो अगले सेब सीजन में पैदावार अच्छी होने की उम्मीद जगती है. दिसंबर महीने में किन्नू की कुछ प्रजातियों की तुड़ाई करना जरूरी है. किन्नू के फल जब उचित आकार और आकर्षक रंग में आ जाएं, तो किन्नू तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

ध्यान रखें कि किन्नू की सही समय पर तुड़ाई करना जरूरी है, क्योंकि समय से पहले या देरी से तुड़ाई करने से फलों की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ता है. किन्नू के फलों की तुड़ाई के बाद फलों को साफ पानी से धोएं और फिर क्लोरिनेटड पानी को प्रति लिटर पानी में मिला कर बनाए घोल में फलों को भिगो दें. इस के बाद फलों को छांव में सुखाएं और फिर डब्बों में पैक करें. पशु से जुड़े पशुपालक पशुओं का आहार संतुलित व नियंत्रित हो, इस के लिए दिन में 2 बार 8-10 घंटे के अंतराल पर चारापानी देना चाहिए. इस से पाचन क्रिया ठीक रहती है और बीच में जुगाली करने का समय भी मिल जाता है. पशु का आहार सस्ता, साफ, स्वादिष्ठ और पाचक हो. चारे में एकतिहाई भाग हरा चारा और दोतिहाई भाग सूखा चारा होना चाहिए. पशु को जो आहार दिया जाए, उस में विभिन्न प्रकार के चारेदाने मिले हों.

चारे में सूखा व सख्त डंठल नहीं हो, बल्कि ये भलीभांति काटा हुआ और मुलायम होना चाहिए. इसी प्रकार जौ,चना, मटर, मक्का इत्यादि दली हुई हो और इसे पका कर या भिगो कर व फुला कर देना चाहिए. दाने को अचानक नहीं बदलना चाहिए, बल्कि इसे धीरेधीरे और थोड़ाथोड़ा कर के बदलना चाहिए. पशुओं को उस की जरूरत के मुताबिक ही आहार देना चाहिए, कम या ज्यादा नहीं. नांद एकदम साफ होनी चाहिए, नया चारा डालने से पूर्व पहले का जूठन साफ कर लेना चाहिए. गायों को 2-2.5 किलोग्राम शुष्क पदार्थ व भैंसों को 3.0 किलोग्राम प्रति 100 किलोग्राम वजन भार के हिसाब से देना चाहिए. इस महीने पशुओं का ठंड से बचाव करें. वयस्क व बच्चों को पेट के कीड़ों की दवा पिलाएं. साथ ही, खुरपकामुंहपका रोग का टीका लगवाएं. हरे चारे के लिए बोई गई जई और बरसीम की कटाई करें.

इस के बाद 25-30 दिन के अंतराल से कटाई करते रहें. भूमि सतह से 5-7 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर कटाई करें. कटाई के फौरन बाद ही सिंचाई कर देनी चाहिए. मछलीपालक दिसंबर महीने में मछलियों की वृद्धि और तालाब में उपलब्ध भोजन की जांच करते रहें. अगर मछलियों में रोग के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं, तो तालाब में सब से पहले 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से चूने का प्रयोग करें. उस के 15 दिन बाद 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटैशियम परमेगनेट (लाल दवा) का प्रयोग करें. जो लोग मधुमक्खीपालन से जुड़े हैं, उन्हें सर्दी से बचाने के लिए विशेष सजगता बरतनी पड़ती है.

ऐसे में मधुमक्खीपालकों को टाट की बोरी की 2 तह बना कर आंतरिक ढक्कन के नीचे बिछा देनी चाहिए. इस से मौनगृह का तापमान एकसमान गरम बना रहता है. इस के अलावा मधुमक्खियों के प्रवेश द्वार को छोड़ कर पूरे बक्से को पौलीथिन से ढक देना चाहिए. साथ ही, मधुमक्खियों के डब्बों को फूल वाली फसल के नजदीक रखना चाहिए, जिस से कम समय में अधिक से अधिक मकरंद और पराग एकत्र किया जा सके. अंडा देने वाली मुरगियों को लेयर फीड दें और सीप का चूरा भी दें. बरसीम का हरा चारा भी थोड़ी मात्रा में दे सकते हैं. चूजों को ठंड से बचाने के लिए पर्याप्त गरमी की व्यवस्था करें.

The Gopi Diaries: मिलिए गोपी से जो आपके बच्चों को ले जाएगा क्रिएटिविटी की दुनिया में

छोटे बच्चे जितने मासूम होते हैं उनका दिमाग उतना ही तेज और सीखने के लिए उत्सुक होता है, तभी तो वो हर छोटी से छोटी चीज को बड़ी बारीकी से देखते हैं और वैसा ही करने की कोशिश करते हैं. फिर चाहे मां को देखकर रसोई में काम करने की कोशिश करना या पापा की तरह न्यूज पेपर पढ़ना.

हालांकि, ये सिर्फ शुरुआत होती है लेकिन यही वो वक्त होता है जब आपको समझ आता है कि आपका बच्चा पढ़ने के लिए तैयार है. लेकिन ये काम अगर बोरिंग तरीके से होगा तो बच्चों को बिल्कुल मजा नहीं आएगा. इसलिए तो HarperCollins India लाया अपने नन्हें पाठकों और उनके पैरेंट्स के लिए The Gopi Diaries.

The Gopi Diaries किताबों की एक ऐसी सीरीज है जो छोटे बच्चों के विकास में अहम भूमिका निभाती है और उन्हें क्रिएटिविटी की एक नई दुनिया में ले जाती है.

फिर चाहे वो अल्फाबेट्स सीखना हो या नंबर्स या पैटर्न्स, Gopi Diaries में हर चीज को बेहद दिलचस्प तरीके से बताया गया है ताकि आपका बच्चा बिना बोर हुए हर मूलभूत चीजें सीख सके.

कौन है गोपी

आपको जानकर हैरानी होगी कि गोपी एक रियल कैरेक्टर है जो सुधा मूर्ति की जिंदगी का अहम हिस्सा है. सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं. इसके साथ ही वो एक फेमस राइटर भी हैं.

sudha murthy

गोपी उनका ही पालतू पपी है जिससे वो बेहद प्यार करती हैं तभी तो उन्होंने गोपी को अपनी किताबों का हिस्सा बनाया है और गोपी के जरिए दुनिया को कुछ नई चीजें सिखाने की कोशिश की है. जिससे लोगों ने सराहा और अपना प्यार दिया.

बच्चों का प्यारा है गोपी

ये बात तो हर कोई जानता है कि बच्चों को पेट्स से कितना लगाव होता है खासकर डॉग्स और पपीज से. ये पालतू छोटे बच्चों के पहले साथी और भरोसेमंद दोस्त होते हैं. तभी तो अगर पढ़ाई के शुरुआती दौर में गोपी जैसा कोई साथी किताबों के जरिए उन्हें नई चीजें सिखाएगा तो वो ज्यादा चाव से और मन लगाकर सीख सकेंगे.

गोपी और उसकी किताबों के बारे में ज्यादा जानने के लिए यहां क्लिक करें…  

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