Download App

महंगाई: कमर्शियल गैस के बढ़ते दाम, ढाबे और मजदूरों पर महंगाई की मार

यह नारा याद है न. यह नारा आज लोगों की मुसीबत बन गया है. हर चीज के दाम बढ़े हैं, नई मार कमर्शियल गैस पर पड़ी है. क्या आप जानते हैं कमर्शियल गैस के दाम बढ़ने से किन पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है? सा ल 2014 लोकसभा चुनाव में प्रचार के समय सब से अधिक लोकप्रिय नारा था- ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार’. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी अपनी हर सभा में जनता से पूछते थे, ‘दोस्तो, महंगाई कम होनी चाहिए कि नहीं?’ जनता ने सोचा था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद महंगाई कम हो जाएगी. डीजल, पैट्रोल की कीमतें कम हो जाएंगी. जनता ने जो सोचा था उस के विपरीत काम हुआ.

महंगाई कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है. डीजल, पैट्रोल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. केंद्र सरकार अब भी महंगाई के लिए पुरानी कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार बता रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी को ले कर डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार से सवाल करने वाले नरेंद्र मोदी अब इन मुद्दों पर खामोश हैं. मार्च 2014 में गैस का सिलैंडर 410 रुपए का था जो अब 899 रुपए हो गया है. 2013 में तेल बेच कर 52,537 करोड़ रुपए आते थे, अब 3 लाख करोड़ रुपए सरकार को मिलने लगे हैं. रसोई गैस की बात हो या बाजार में बिकने वाले कमर्शिल गैस सिलैंडर की, 7 सालों में कीमत दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है. 19 किलो के कमर्शियल गैस सिलैंडर की कीमत 800 रुपए के आसपास थी, 2021 में 2,000 रुपए प्रति सिलैंडर हो चुकी है.

ये भी पढ़ें- The Gopi Diaries: मिलिए गोपी से जो आपके बच्चों को ले जाएगा क्रिएटिविटी

देश में पैट्रोल, डीजल और एलपीजी के बढ़ते दामों को ले कर विपक्ष लगातार केंद्र सरकार पर निशाना साध रहा है. इस के बाद भी सत्तापक्ष पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं बन पा रहा. मोदीराज में दोगुने हो गए पैट्रोलियम पदार्थों के दाम केंद्र सरकार के मंत्री गैस के बढ़ते दामों और महंगाई को ले कर उलटेसीधे जवाब देने लगते हैं. केंद्र सरकार में मंत्री और उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान कहते हैं, ‘‘कोरोना संकट के कारण विश्व की अर्थनीति ठप हो गई थी. देश के अंदर हमारे सीमित उत्पादन हैं. इस कारण पैट्रोलियम पदार्थों को बाहर से लाना पडता है. ‘‘पिछले 2 सालों में पैट्रोलियम क्षेत्र में जो निवेश होना था वह नहीं हुआ. इस कारण कच्चे तेल के दामों में उछाल आया है और इसीलिए पैट्रोलियम के दाम बढ़े हुए हैं. केंद्र सरकार ने गरीबों की किसी योजना में कटौती नहीं की है.

बल्कि उसे बढ़ाया ही है. किसी गरीब को भूखे नहीं रहने दिया गया है. खर्च बढ़ने से अस्थायी महंगाई बढ़ी है.’’ पैट्रोलियम पदार्थों के दाम और महंगाई कोरोना संकट के पहले से ही बढ़ने लगे थे. कोरोना ने सरकार को बच निकलने का मौका दे दिया है. ईंधन पर यह बढ़ोतरी सिर्फ पिछले कुछ सालों या महीनों की बात नहीं है. भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए के सत्ता में आने के बाद से ही एलपीजी के दाम लगातार बढ़े हैं. पिछले 7 सालों में गैस सिलैंडर की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. दूसरी तरफ एलपीजी की बढ़ती कीमतों से सब्सिडी लगभग न के बराबर पहुंच गई है.

ये भी पढ़ें- गोवा फिल्म फेस्टिवल में यूपी की फिल्म पॉलिसी की सराहना

लोकसभा में तेल और एलपीजी के दामों में हुई बढ़ोतरी को ले कर पूछे गए सवालों पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखित जवाब में बताया कि 1 मार्च, 2014 को एलपीजी सिलैंडर की कीमत 410.50 रुपए थी. पिछले 7 सालों में एलपीजी की कीमतें दोगुनी हो गई हैं. सरकार की कमाई का जरिया हैं पैट्रोलियम पदार्थ पैट्रोल व डीजल के दामों में हुई इस बढ़ोतरी को ले कर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि जहां पैट्रोल को 26 जून, 2010 से ही सरकारी नियंत्रण से बाहर कर दिया गया, वहीं डीजल से भी 19 अक्तूबर, 2014 को सरकारी नियंत्रण हटा लिया गया. ऐसे में रिटेलर्स अंतर्राष्ट्रीय कीमतों, रुपए के एक्सचेंज रेट, टैक्स स्ट्रकचर और अन्य आधारों पर हर दिन तेल के दाम निर्धारित करते हैं. पैट्रोल व डीजल पर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से भारी टैक्स लगाए गए हैं.

इस का असर यह है कि जहां 2013 में इस से 52,537 करोड़ का राजस्व जुटा था, वहीं 2019-20 में इस से 2.13 लाख करोड़ रुपए का राजस्व इकट्ठा हुआ. इतना ही नहीं, 2020-21 के 11 महीनों में तो तेल के बढ़े दामों से राजस्व 2.94 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है. पैट्रोलियम पदार्थों पर एक्साइज ड्यूटी से केंद्र की कमाई बढ़ी है. पैट्रोल पर फिलहाल 32.90 रुपए और डीजल पर 31.80 रुपए प्रतिलिटर की दर से एक्साइज ड्यूटी लगाई जा रही है. 2013 में एक्साइज ड्यूटी पैट्रोल पर 17.98 रुपए और डीजल पर 13.83 रुपए थी. केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, पैट्रोल, डीजल, जेट फ्यूल, प्राकृतिक गैसों और कच्चे तेल से सरकार का कुल एक्साइज कलैक्शन 2016-17 के 2.37 लाख करोड़ से बढ़ कर अप्रैल-जनवरी 2020-21 में 3 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया. देखा जाए तो सरकार पैट्रोलियम पदार्थों के रेट बढ़ने की बात का बहाना बनाती है. सही बात यह है कि केंद्र और प्रदेश सरकार दोनों ही अलगअलग टैक्स लेते हैं.

अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप बंसल कहते हैं, ‘‘हम लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि पैट्रोलियम पदार्थों पर जीएसटी लागू कर दी जाए, जिस से इन पर मनमाने टैक्स का भार नहीं पड़ेगा. जनता को कम कीमत में डीजल, पैट्रोल मिलेगा. सरकार इस बात को लगातार अनसुना कर रही है, क्योकि वह पैट्रोलियम पदार्थों पर तरहतरह के टैक्स लगा कर अपनी जेब भर रही है. कमर्शियल सिलैंडर के महंगे होने से ढाबे वाले और गरीब लोग सब से अधिक परेशान हो रहे हैं. ‘‘ढाबे पर मजदूर और गरीब लोगों के लिए बिकने वाली खानेपीने की चीजें महंगी हो गईं. चाय पहले 5 रुपए की बिकती थी, अब इस की कीमत 10 रुपए से अधिक हो गई है. समोसा 5 रुपए का था, अब 10 रुपए का हो गया है. ढाबे पर पहले 20 से 25 रुपए की भोजन की थाली में गरीब का पेट भर जाता था,

अब इस के लिए 50 से 70 रुपए खर्च करने पड़ते हैं.’’ बढ़ी कीमत का लाभ ढाबा चलाने वाले की भी जेब में नहीं जा रहा. महंगी चीजों को खरीद कर वह परेशान हो चुका है. ढाबा चलाने वाले विजय अरोरा कहते हैं, ‘‘हम महंगी चीजें खरीद कर ढाबा चला रहे हैं. उस के अनुसार कीमत नहीं बढ़ा सकते क्योंकि उतनी कीमत बढ़ने से खाने वाले नहीं आएंगे. महंगाई का बो?ा जनता के कंधों पर भले रहा है पर यह सरकार की जेब में जा रहा है.’’ महंगाई पर चिंता क्यों नहीं? मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के एजेंडे पर चुनाव जीतने वाली भाजपा सरकार अब अपने एजेंडे के विकास पर लग गई है. मोदी सरकार महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को काबू करने की बात भूल कर तीन तलाक, गौहत्या बिल, धारा 370, राममंदिर और नागरिकता संशोधन कानून जैसे अपनी पार्टी के एजेंडे को पूरा करने में लगी है.

इन मुद्दों के सहारे ही भाजपा फिर चुनाव जीतना चाहती है. पश्चिम बंगाल के चुनाव में वहां की जनता भाजपा के धार्मिक मुद्दों को नकार चुकी है. वहां ममता बनर्जी को हराने के लिए भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून के बहाने यह प्रचार किया कि बंगलादेशियों को बाहर किया जाएगा. ममता बनर्जी को हिंदू धर्म के खिलाफ काम करने वाला साबित करने का प्रयास हुआ. इस सब के बाद भी भाजपा को जीत नहीं हासिल हुई. 2022 के विधानसभा चुनावों में सब से अहम लड़ाई उत्तर प्रदेश में होगी. वहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘अब्बाजान’ जैसे शब्दों का प्रयोग कर के हिंदुओं को डराना चाहते हैं. भाजपा की सोशल मीडिया टीम इस बात को ले कर आईटी सैल को तैनात कर चुकी है कि वह सोशल मीडिया पर चुनावों में हिंदूमुसलिम एजेंडे को उठा कर जनता को यह बताती रहे कि भाजपा नहीं आई, तो प्रदेश खतरे में पड़ जाएगा.

इन एजेंडों की आड़ में महंगाई, डीजल, पैट्रोल के बढ़ते दामों, बेरोजगारी और दूसरे मुद्दों को पीछे ढकेला जा रहा है जिस से इन पर बात न हो कर केवल हिंदूमुसलिम होता रहे. पश्चिम बंगाल चुनाव की हार के बाद भी भाजपा सबक लेने को तैयार नहीं है. हिंदूमुसलिम के मुद्दे सोशल मीडिया पर दिखते हैं. वहां खाली बैठे बेरोजगार युवा इस में अपना समय गुजार रहे हैं. नारे लगाने वालों में भी वे दिख सकते हैं. पश्चिम बंगाल चुनाव में प्रचार और सोशल मीडिया पर भाजपा चुनाव जीत गई थी लेकिन जब ईवीएम मशीन से चुनाव परिणाम बाहर निकले तो भाजपा चुनाव हार गई. उत्तर प्रदेश के चुनाव में धरातल पर महंगाई, डीजल-पैट्रोल के बढ़ते दामों, बेरोजगारी और दूसरे मुद्दे छाए हुए हैं. ये अभी भले ही असर न दिखा पा रहे हों पर चुनाव परिणामों पर इन का असर होगा.

अस्तित्व की तलाश : भाग 5

‘बिलकुल मां, मुझे पूरा विश्वास है. आप सिर्फ लिखोगी नहीं बल्कि एक स्त्री का उस के स्वयं के वजूद से परिचय भी कराओगी. यह सब कैसे, कब होगा, मुझे नहीं मालूम. पर एक दिन होगा ज़रूर, मैं सिर्फ इतना जानती हूं,’ तृषा मुसकराते हुए बोली.

तृषा की बातों ने वंदना के मन में साहस का संचार कर दिया. बरसों पहले कुचले गए अपने आत्मसम्मान की गरिमामय उपस्थिति का आभास उसे एक बार फिर हो चला. शायद परिवर्तन का दौर आ चुका है. लेकिन वह अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि यह सब कैसे कर पाएगी? बहरहाल, वंदना की सोच को एक दिशा मिल गई थी.

तकरीबन 6 महीने बाद तृषा ने मां को अपनी पसंद ऋतिक से मिलाते हुए उस से शादी की इच्छा ज़ाहिर की. तृषा की बातों से वंदना को पहले ही इस बात की सुगबुगाहट थी. उसे अपनी बेटी की पसंद पर पूरा भरोसा था लेकिन नियति एक बार फिर वंदना की परीक्षा लेने को आतुर थी. चूंकि लड़का ऋतिक छोटी जाति से था, सो इतिहास एक बार फिर अपनेआप को दोहराने की फ़िराक में था. क्योंकि प्रशांत को यह रिश्ता पूरी तरह से नामंजूर था.

वंदना को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. अकेले दम पर शादी जैसा फ़ैसला लेने की उस की हिम्मत न थी.

लेकिन इस बार सवाल बेटी के भविष्य का था, इसलिए वह हार मान कर बैठ भी नहीं सकती थी. पर आश्चर्य कि इस बार इस फ़ैसले में उस की मां उस के साथ खड़ी थीं जिन्होंने कभी जातिगत आधार पर स्वयं ही उस की खुशियों का गला घोंटा था. उन्होंने उसे अपने साथ का भरोसा दिया और तृषा की ख़ुशी चुनने की सलाह दी. सालों पहले अपनी बेटी के प्रति किए अन्याय के अपराधबोध से मुक्ति का यही रास्ता शायद उन्हें सब से कारगर लगा.

अब वंदना बेटी का हाथ थामे इस जातिगत दीवार को लांघने को उठ खड़ी हुई. प्रशांत के न चाहने के बावजूद यह सगाई हुई और बड़े ही ख़ुशनुमा माहौल में इस का जश्न मनाया गया. गुस्से में प्रशांत इस आयोजन में शामिल नहीं हुआ लेकिन उस के खौफ़ व उस की नाराज़गी से वंदना अब बेअसर हो चुकी थी.

सगाई के बाद देररात वंदना तृषा के कमरे में दाख़िल हुई. आज मैं तुम्हें तुम्हारा मनपसंद उपहार देना चाहती हूं,’ वंदना ने अपनी बेटी पर स्नेहभरी नज़र डाली.

‘क्या मां, इतना कुछ तो किया है आप ने मेरे लिए. यह सब किसी बहुमूल्य उपहार से कम नहीं है. और तो और, पहली बार पापा के विरोध में जा कर भी आप ने मेरा साथ दिया. सच, आज आपके कारण ही मैं और ऋतिक एक होने की सोच सके हैं और यह सिर्फ आप की वजह से ही संभव हुआ है. थैंक्यू सो मच मां फौर एवरीथिंग,’ तृषा की आंखें सजल हो उठीं.

“नहीं बेटा, थैंक्यू तो मैं तुम्हें देने आई हूं कि तुम ने मेरी खोई गरिमा और आत्मविश्वास लौटाया है. अब जो मैं तुम से कहने जा रही हूं, उसे ध्यान से सुनना. मैं तुम्हारे पापा को तलाक दे कर उन से अलग होना चाहती हूं. तुम्हारे नौवेल की नायिका एक कमज़ोर स्त्री नहीं हो सकती. अबला नारी के खोल से निकल अपने पैरों की बेड़ियां तोड़ वह खुली हवा में अब सांस लेना चाहती है. मैं तुम्हारे नौवेल की हैप्पी एंडिंग चाहती हूं, जिस के लिए मुझे इस बंधन को तोडना पड़ेगा ताकि इस नौवेल की नायिका सपनों की ऊंची उड़ान उड़ सके. मुझे मालूम है, तुम मेरी बात के मर्म को समझोगी,’ वंदना की आंखों में स्वाभिमान की चमक थी.

‘मां, चाहती तो मैं भी यही थी, लेकिन कहने से डरती थी कि कहीं आप के मन को ठेस न पहुंचे. सच मां, मुझे आप पर नाज़ है और आप के लिए इस फ़ैसले पर गर्व,’ तृषा ने मां के निर्णय पर अपने विश्वास की मुहर लगा दी.

हालांकि बाद में उस की और ऋतिक की शादी में प्रशांत भी बुझे मन से शामिल हुए लेकिन तृषा ने अपनी मां के प्रति उन के व्यवहार के लिए उन्हें क्षमा न किया. उस ने अपनी शादी से पहले ही मांपापा के तलाक़ के पेपर्स तैयार करवा लिए थे, जिन पर हस्ताक्षर कर के वंदना घर छोड़ते वक्त हौल के सैंटर टेबल पर रख आई थी. आगे का काम तृषा ने देख लेने का वादा किया था और इस पूरी प्रक्रिया में पूरे समय मां के साथ दृढ़ता से खड़ी रही थी.

तभी अपनी कहानी को पूरा करने के उद्दयेश से वंदना ने यहां आ कर इस कौटेज को दोतीन महीने के लिए बुक किया था क्योंकि ऋतिक के पापा का पब्लिशिंग हाउस भी यहीं था और वे वंदना से बात कर आगे की प्रक्रिया शुरू करना चाहते थे. अभी तो फिलहाल वंदना के लिए यही जीवन की नई शुरुआत थी.

“मैडम, आप की कौफ़ी तो पूरी ठंडी हो गई,” मेड की आवाज़ पर वह चौंक कर उठ बैठी.

‘ओह्ह, मुझे बहुत देर हो गई,’ कलाई की घड़ी पर नज़र डालते हुए वह बुदबुदाई. उसे ऋतिक के पापा से मिलने उन के पब्लिशिंग हाउस जाना था, ताकि वे मिल कर उस की नौवेल का मुखपृष्ठ, संपादकीय और अन्य बातें तय कर सकें.

“क्या दूसरी कौफ़ी बना दूं?”

“नहींनहीं, मुझे जरा निकलना है, थोड़ी देर में आती हूं,” कह कर वंदना अपना पर्स उठाए बाहर निकल गई. शाम के धुंधलके में होती हलकी बूंदाबांदी ने मौसम की ख़ूबसूरती को बढ़ा दिया था. पंद्रहबीस मिनट में वह गंतव्य पर पहुंच गई. आज शिशिर उसे किसी अखबार के संपादक से भी मिलाने वाले थे, जो उस की नौवेल के लिए अतिथि संपादक की भूमिका निभाने वाले थे. चूंकि वह थोड़ा लेट हो चुकी थी, इसलिए जल्दबाज़ी में आगे चल रहे एक व्यक्ति से टकरा गई. तुरंत ही सौरी बोल कर वह आगे बढ़ गई, जबकि उस से टकराने वाले बंदे की नज़रें देर तक उस का पीछा करती रहीं.

मेरा पति मुझे बहुत मारता है, इस वजह से मैं एक लड़के को पसंद करने लगी हूं और शादी करना चाहती हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है और 2 साल पहले मेरी शादी हो चुकी है. मेरा पति मुझे बहुत मारता है. उसे मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं है. इस वजह से मैं एक लड़के को पसंद करने लगी हूं. वह भी मुझे बहुत चाहता है और मुझ से शादी करना चाहता है. मैं अपने पति को तलाक देना चाहती हूं. क्या ऐसा हो सकता है?

ये भी पढ़ें- मैं एक लड़के से प्यार करती थी. अब मुझे मालूम हुआ है कि उस का एक लड़की से अफेयर चल रहा है. मैं क्या करूं ?

जवाब

आप अपने पति को तलाक दे कर उस लड़के से शादी कर सकती हैं, इस बात में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन एक बार पति से तालमेल बिठाने की कोशिश करें. वह आप की परवाह क्यों नहीं करता और मारपीट क्यों करता है, यह जानने की कोशिश भी करें.

समस्या सुझल सकती हो तो पति से ही निभाएं. चूंकि आप किसी लड़के को चाहने लगी हैं, इसलिए पति से तलाक की बात सोचना जल्दबाजी है. तलाक मिलने में दिक्कत हो तो आप उस लड़के के साथ रहने लग सकती हैं. चाहे पत्नी न कहलाएं. अब पति पुलिस में आप के या प्रेमी के खिलाफ शिकायत नहीं कर सकता है.

ये भी पढ़ें- मैं मां बनने वाली हूं, लेकिन इस बात से परेशानी हूं कि कहीं मेरा कैरियर बर्बाद न हो जाए. मैं क्या करूं?

भूल का एहसास

भूल का एहसास : भाग 2

लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव 

‘‘रोती क्या हो, उमा. कुछ नहीं होगा. अभी जय को डाक्टर बनाना है, उस की शादी करनी है. तुम्हारे लिए भी कुछ करना है. तुम ने मेरे लिए बहुत किया है, मेरी नौकरी नहीं लगी थी, उस समय तुम ने ही मु?ो हौसला दिया, मदद की. अपने सारे गहने मेरी जरूरतों के लिए एकएक कर बेचती चली गईं. वे भी तो बनवाने हैं और मकान का लोन भी तो… यकीन करो, अब बिलकुल नहीं पीऊंगा. मु?ो माफ कर देना इस बार,’’ कहते हुए देवेश ने हाथ जोड़ लिए थे.

देवेश बड़बड़ाता जा रहा था और उमा अपने आंसुओं को रोकने की चेष्टा कर रही थी, ‘कितने दयनीय लग रहे हैं ये इस समय, जैसे हम सब के लिए क्या कुछ नहीं करना चाहते. सुबह की बात क्या कहूं इन से, कुछ कहने का फायदा नहीं. इस समय होश में ही नहीं हैं तो सम?ोंगे क्या. हाथ जोड़ कर मु?ो लज्जित कर रहे हैं,’ सोचते हुए उमा ने हाथ जोड़ते देवेश के दोनों हाथ अलग कर दिए.

उमा से कुछ बोला न गया. फिर उस ने खर्राटे भरते देख, देवेश के जूते उतार कर उस के पैरों पर चादर डाल दी और यह सोचते हुए सो गई कि इन से सुबह ही कुछ बोलूंगी.देवेश रोज की तरह तड़के 5 बजे उठा. रोतेरोते उमा को देररात नींद आई थी, सो वह गहरी नींद सो रही थी.‘‘उमा, उठो मैं दूध लेने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो,’’ देवेश बोला, मानो कुछ हुआ ही न हो और दूध लेने चला गया.

नींद खुलते ही वह हड़बड़ा कर उठी. देवेश जब दूध ले कर लौटा तब उमा किचन में थी. जय अभी भी सो रहा था.उमा ने कुछ बोलने के लिए यही समय ठीक सम?ा, सो बोली, ‘‘जानते हैं, कल भी वही हुआ, जय और बब्बन में ?ागड़ा. आप सम?ाते क्यों नहीं हैं? क्या आप को शोभा देता है इस उम्र में ऐसीवैसी हरकतें करना? मैं रश्मि की बात कर रही हूं.’’

‘‘मैं ने तो उस के लिए कुछ भी नहीं कहा,’’ देवेश बोला.‘‘?ाठ मत बोलिए,’’ उमा ?ाल्ला उठी.‘‘तुम तो गंभीरता से ले रही हो,’’ देवेश ने बात को आईगई करते हुए कहा.‘‘कितनी बदनामी हो रही है हमारी, जय की पढ़ाई पर कितना असर पड़ रहा है, इस का अंदाजा भी है आप को? महल्ले में निकलना मुश्किल हो गया है. एक दिन तो मु?ो मालती ने फटकारा भी. रमेशजी की बहन शांति ने भी खूब भलाबुरा कहा. रामलाल को भी भनक लग गई है. परसों उन्होंने विमला को पीटा भी था. उन्होंने भी मु?ा से कहा था कि आप ने उन सब के साथ बदतमीजी की थी, फिर भी मैं उन से आप के लिए लड़ पड़ी.

‘‘रामेश्वरजी ने तो यहां तक कह दिया, ‘आप तो इस उम्र में भी इतनी खूबसूरत हैं कि देवेश बाबू पर तो क्या, किसी पर भी कंट्रोल कर सकती हैं, फिर वे क्यों इधरउधर मंडराते हैं? आप उन का ठीक से खयाल नहीं रखतीं? उन का नहीं तो हमारा ही खयाल रखा कीजिए,’’ कहते हुए उमा देवेश पर बरस पड़ी, ‘‘जानते हैं आप, आप की हरकतों की वजह से कितना कुछ सुनना पड़ता है? खून खौल उठता है मेरा, दिल जलता है. कितने अपमानित होते हैं हम? जय पर क्या बीत रही है, कभी सोचा है आप ने? यही प्यार है आप का हमारे लिए, यही चिंता है हम सब की?’’

‘‘अरे, उमा, वह तो दिल्लगी है. थोड़ी तफरीह के बहाने खुद को जवान महसूस कर लेता हूं, थोड़ी देर को चिंतामुक्त हो जाता हूं, फिर काम करने का नया जोश आ जाता है,’’ देवेश ने बेफिक्र हो कर कहा, ‘‘मु?ो अपनी जिम्मेदारियों का पता है. जिंदगी ऐसे ही बीतेगी, नीरस, सो थोड़ा सा रस घोल लेता हूं.’’‘‘रस… चारों ओर जो बदनामी हो रही है उस का क्या? ऐसे में हम जय को एमबीबीएस क्या पढ़वा पाएंगे, वह पीएमटी में निकल सकेगा तभी न, जिस की उम्मीद इस माहौल में न के बराबर है. वह कितने तनाव में रहता है और आप… खुद को जवान महसूस करने के लिए शराब पी रहे हैं, सब की बहूबेटियों को छेड़ रहे हैं, गाना गा रहे हैं. सीटी बजाना, आंख मारना… छि:, ये सब आप को शोभा देता है? कुछ तो शर्म कीजिए. सस्ते, छिछोरे मजाक, घटिया छींटाकशी… जय के सामने आप क्या आदर्श रख रहे हैं? किसी दिन बब्बन या किसी और ने हाथपैर तोड़ दिए तो बैठे रहना.’’

‘‘बित्ते भर का छोकरा, अरे, उस की इतनी हिम्मत? अब चुप भी करो, बड़ा लैक्चर दे डाला. नाश्ता देना है या नहीं?’’ देवेश ?ां?ाला कर बोला.‘‘क्या नाश्ता बना रही हो, अम्मा? बेसन का हलवा तो नहीं. बहुत खुशबू आ रही है,’’ जय सो कर उठते ही बोला.‘‘जय, उठ गया तू. मैं तो नहीं बना रही हलवा,’’ कहते हुए उमा उस के कमरे में चली आई और और उस ने खिड़की के परदे खींच कर एक ओर खिसका दिए.

‘‘देख जय, बगल में जो घर खाली था उस में चहलकदमी हो रही है. वहीं से ही खुशबू आ रही है. लगता है वे लोग रात में ही आ गए. हमें अपनी ही बातों में पता नहीं चला,’’ उमा ने पड़ोस के घर की तरफ इशारा करते हुए कहा.उमा को अभी पता नहीं था कि इन्हीं पड़ोसियों से तो उस की हर दिन की परेशानी बढ़ने वाली है. सुबह कामवाली बाई ने जब बताया कि तलाकशुदा एक महिला अपनी जवान बेटियों के साथ रहने आई है और उन के साथ महिला के काफी वृद्ध पिता भी हैं तो उमा को कुछ और नई परेशानियां साफ नजर आने लगीं. फिर तो देवेश का रोज एक और घर में आनाजाना शुरू हो गया.

देवेश, उमा के लाख मना करने पर भी किसी न किसी बहाने नए पड़ोसियों के यहां चला जाता. तरहतरह की बातें फैलती ही जा रही हैं. मुंह छिपा कर वह कब तक घर में पड़ी रहेगी, लोगों का सामना किसी न किसी तरह से हो ही जाएगा. अपमान के कितने घूंट पीएगी वह?नई पड़ोसिन, अल्पना चौधरी, किसी दफ्तर में काम करती थी. सो, 8 बजे ही उसे जाना पड़ता. औफिस काफी दूर था, सो लौटने में उसे 7 बज जाते. दोनों लड़कियां रमा व बीना बीए तथा 12वीं की छात्राएं थीं.

देवेश, अल्पना चौधरी के जाने के काफी देर बाद अपने औफिस जाता और जल्दी वापस आ जाता. उसे मटरगश्ती के लिए काफी समय मिल जाता. आतेजाते वह उन दोनों से पूछ लेता, ‘कोई जरूरत तो नहीं, निसंकोच बताइएगा.’शनिवार को देवेश का ‘हाफ डे’ होता, पर वह ‘फुल डे’ बता कर अपना समय रमा और बीना के साथ बिताने लगा.

उमा को पहले ही शक था कि फुल डे का तो बहाना है. एक दिन उमा किसी ‘पत्रिका’ के बहाने अल्पना के घर पहुंच गई. उस का शक सही निकला. देवेश वहीं था. उमा को देखते ही वह रमा और बीना को इतिहास, भूगोल का ज्ञान कराने लगा.‘‘मैं सब सम?ाती हूं,’’ उमा ने चुस्त सलवारसूट में खड़ी अल्पना की बड़ी बेटी रमा और मिनी स्कर्ट पहने छोटी बेटी बीना को तीखी नजरों से देखा. ‘आजकल की लड़कियां भी कम नहीं हैं. उफ, तोबा ऐसे परिधान पर. दूसरे की बेटियों से कहा ही क्या जा सकता है. फिर खोट अपने सिक्के में क्या कम है,’ उमा मन ही मन बड़बड़ा रही थी. उमा को देख कर देवेश और लड़कियां सिटपिटा गईं.

‘‘इन्होंने मु?ा से इतिहास, भूगोल और गणित में मदद मांगी थी. थोड़ी कमजोर हैं,’’ देवेश ने सकपकाते हुए सफाई दी.‘‘कभी मौका मिले तो बता दिया करो, अंकल,’’ दोनों लड़कियां एकसाथ बोलीं.‘‘आज हाफ डे हो गया, सो मैं सीधा इधर ही आ गया. बेचारी बच्चियों का भला हो जाए,’’ देवेश बोला.

देवेश की ?ाठी सफाइयों पर उमा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था और वह बहुतकुछ कह भी सकती थी, मगर खून का सा घूंट पी कर बिना कुछ बोले ही वह वापस चल दी पर वह मकान की आड़ में खड़ी हो गई.‘‘अच्छा, मैं भी चलता हूं, फिर जरूरत हो तो पूछ लेना,’’ कह कर हंसते हुए देवेश भी उमा के जाते ही लौट पड़ा. जैसे ही देवेश उन के घर से थोड़ा आगे पहुंचा, आड़ में खड़ी उमा फुरती से उन के घर में दाखिल हो गई.

जब अल्पना चौधरी वापस आईं तो किसी अपरिचित महिला को उस ने अपना इंतजार करते पाया.‘‘मैं पड़ोस में रहती हूं, मेरा नाम उमा है,’’ उमा ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘आप से कुछ जरूरी बातें करनी थीं.’

क्या सच में मां बनने वाली हैं, कॉमेडियन Bharti Singh!

टीवी इंडस्ट्री के मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह अपने जोक्स से किसी को हंसाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं. भारती सिंह को अक्सर टीवी स्क्रिन पर बच्चा बनकर सभी को हंसाते हुए देखा गया है.

ऐसे में खबर आ रही है कि भारती सिंह के घर में जल्द ही एक नया मेहमान आने वाला है. इसका मतलब ये है कि भारती सिंह और हर्ष जल्द माता पिता बनने वाले हैं. हालांकि अभी तक हर्ष और भारती इस बात की पृष्टि नहीं किए हैं.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15 : Karan Kundra के साथ रिश्ते पर तेजस्वी के भाई ने तोड़ी

हाल ही में भारती सिंह ने  ट्रार्सफॉर्मेंशन की खबर को लेकर बहुत चर्चा में बनी रहती है. पिछले साल भारती सिंह ने अपना 15 किलो वेट कम किया है. कथित तौर पर भारती सिंह इन दिनों बेड रेस्ट पर है. कुछ समय तक वह अपने घर पर ही रहेंगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Bharti Singh (@bharti.laughterqueen)

यह उनके लाइफ का बहुत बड़ा समय है और वह रेस्ट पर चल रही हैं. वह इस समय घर पर ही रहना चाहती हैं. वह घर से बाहर नहीं  निकलना चाहती है. भारती सिंह इस बात पर कुछ भी रिएक्शन नहीं दे रही हैं. हालांकि कुछ समय बाद इस बात का खुलासा होगा.

ये भी पढ़ें- Kumkum Bhagya ने पूरे किए 2000 एपिसोड, तोड़े बाला जी के सभी रिकॉर्ड

कुछ समय पहले तो भारती सिंह ने मां बनने का जिक्र भी किया था, इसके बाद से वह कुछ दिनों तक वह चुप रह सकें.

Bigg Boss 15 : Umar Riaz ने उड़ाया Prateek Sehajpal का मजाक , कही ये बात

बिग बॉस 15 में इन दिनों टिकट टू फिनाले को लेकर लड़ाई चल रही है. जिसमें बीते दिन उमर रियाज और प्रतीक सहजपाल के बीच जमकर लड़ाई हुई है. एक टॉस्क के दौरान ये दोनों एक दूसरे से  भीड़ गए. टॉस्क के दौरान उमर रियाज ने प्रतीक सहजपाल पर करारा निशाना साधा है.

इस दौरान उमर रियाज और प्रतीक सहजपाल के बीच की लड़ाई कुछ ज्यादा ही बढ़ती चली गई. उमर रियाज ने प्रतीक के उपर चीटिंग का आरोप लगाया है. उमर रियाज का जवाब देते हुए प्रतीक सहजपाल ने भी उसे भेड़चाल का चाल चलने वाला बताया है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15 : Karan Kundra के साथ रिश्ते पर तेजस्वी के भाई ने तोड़ी

जिसके बाद उमर रियाज ने प्रतीक सहजपाल को कहा कि शर्म करो अब भी, बाथरूम में नहाते समय कुंडी तोड़ने वाली बात को याद दिला दिया है. जिसके बाद से उमर रियाज ने प्रतीक सहजपाल के 5 साल की डिग्री का मजाक बना दिया है कहा कि तू 5 साल की एलएलबी की डिग्री करके रियलिटी शो में आकर अपना मजाक ही बना सकता है. इस पर प्रतीक सहजपाल और भी ज्यादा भड़क गया.

ये भी पढ़ें- Kumkum Bhagya ने पूरे किए 2000 एपिसोड, तोड़े बाला जी के सभी रिकॉर्ड

जिसके बाद से प्रतीक सहजपाल ने अपा आपा खो दिया निशांत भट्ट के साथ बातचीत करने के दौरान, प्रतीक ने निशांत से कहा कि उसे इस बात से काफी ज्यादा दुख पहुंचा है.

ये भी पढ़ें- Bigg Boss 15 : पहली फाइनलिस्ट बनीं राखी सावंत, इस शख्स की वजह से

इसके अलावा शो के बाकी सभी कंटेस्टेंट भी अपने -अपने हिस्से की बात करते नजर आ रहे हैं.

यूपी में रविवार से मुफ्त राशन वितरण का महा अभियान

लखनऊ . यूपी में 12 दिसम्बर से राशन वितरण के महा अभियान की शुरुआत होने जा रही है. सरकार इस अभियान के तहत 15 करोड़ से अधिक राशन कार्ड धारकों को बूस्टर डोज के रूप में दोगुना मुफ्त राशन देगी. देश में अब तक का यह सबसे बड़ा राशन वितरण अभियान है.

सरकार की योजना का सीधा लाभ अंत्योदय और पात्र घरेलू राशन कार्ड धारकों को मिलेगा. गरीबों,मजदूरों और किसानों को बड़ा सहारा देने के लिए शुरू हो रहे इस अभियान की निगरानी अफसरों के साथ ही सांसद और विधायक भी करेंगे.

12 दिसम्बर से शुरू होने जा रही राशन वितरण के महा अभियान की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. योजना के तहत अंत्योदय राशन कार्डधारकों और पात्र परिवारों को दोगुना राशन वितरित किया जाना है. अंत्योदय अन्न योजना के तहत लगभग 1,30,07,969 इकाइयां और पात्र घरेलू कार्डधारकों की 13,41,77,983 इकाइयां प्रदेश में हैं.

महामारी के दौर में शुरू हुई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना नवंबर में खत्म हो रही थी इसको देखते हुए सीएम योगी ने 3 नवंबर को अयोध्या में राज्य सरकार की ओर से होली तक मुफ्त राशन वितरण की घोषणा की थी. जिसके बाद से यूपी के पात्र कार्ड धारकों को हर महीने 10 किलो राशन मुफ्त दिया जा रहा है.

केंद्र ने भी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को मार्च 2022 तक बढ़ा दिया है. इतना ही नहीं यूपी सरकार राशन कार्ड धारकों को महीने में दो बार गेहूं और चावल मुफ्त दे रही है. राशन दुकानों से दाल, खाद्य तेल और नमक भी मुफ्त दिया जा रहा है. बता दें कि प्रदेश सरकार ने कोरोना काल में भी गरीबों और बेसहारा लोगों की मदद की. 80 हजार कोटेदारों के माध्यम से राशन वितरण अभियान को हर गरीब तक पहुंचाने का बड़ा काम किया है.

क्यों का प्रश्न नहीं : भाग 1

सुबह के 10 बजे थे. डेरे के अपने औफिस में आ कर मैं बैठा ही था. लाइजन अफसर के रूप में पिछले 2 साल से मैं सेवा में था. हाल से गुजरते समय मैं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि बाहर मिलने के लिए कौनकौन बैठा है. 10 और 12 बजे के बीच मिलने का समय था. सभी मिलने वाले एक पर्ची पर अपना नाम लिख कर बाहर खड़े सेवादार को दे देते और वह मेरे पास बारीबारी भेजता रहता. 12 बजे के करीब मेरे पास जिस नाम की पर्ची आई उसे देख कर मैं चौंका. यह जानापहचाना नाम था, मेरे एकमात्र बेटे का. मैं ने बाहर सेवादार को यह जानने के लिए बुलाया कि इस के साथ कोई और भी आया है.

‘‘जी, एक बूढ़ी औरत भी साथ है.’’

मैं समझ गया, यह बूढ़ी औरत और कोई नहीं, मेरी धर्मपत्नी राजी है. इतने समय बाद ये दोनों क्यों आए हैं, मैं समझ नहीं पाया. मेरे लिए ये अतीत के अतिरिक्त और कुछ नहीं थे. संबंध चटक कर कैसे टूट गए, कभी जान ही नहीं पाया. मैं ने इन के प्रति अपने कर्तव्यों को निश्चित कर लिया था.

‘‘साहब, इन दोनों को अंदर भेजूं?’’ सेवादार ने पूछा तो मैं ने कहा, ‘‘नहीं, ड्राइवर सुरिंदर को मेरे पास भेजो और इन दोनों को बाहर इंतजार करने को कहो.’’

वह ‘जी’ कह कर चला गया.

सुरिंदर आया तो मैं ने दोनों को कोठी ले जाने के लिए कहा और कहलवाया, ‘‘वे फ्रैश हो लें, लंच के समय बात होगी.’’

बेबे, जिस के पास मेरे लिए खाना बनाने की सेवा थी, इन का खाना बनाने के लिए भी कहा. वे चले गए और मैं दूसरे कामों में व्यस्त हो गया.

लंच हम तीनों ने चुपचाप किया. फिर मैं उन को स्टडीरूम में ले आया. दोनों सामने की कुरसियों पर बैठ गए और मैं भी बैठ गया. गहरी नजरों से देखने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘तकरीबन 2 साल बाद मिले हैं, फिर भी कहिए मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

भाषा में न चाहते हुए भी रूखापन था. इस में रिश्तों के टूटन की बू थी. डेरे की परंपरा को निभा पाने में शायद मैं फेल हो गया था. सब से प्यार से बोलो, मीठा बोलो, चाहे वह तुम्हारा कितना ही बड़ा दुश्मन क्यों न हो. देखा, राजी के होंठ फड़फड़ाए, निराशा से सिर हिलाया परंतु कहा कुछ नहीं.

बेटे ने कहा, ‘‘मैं मम्मी को छोड़ने आया हूं.’’

‘‘क्यों, मन भर गया? जीवन भर पास रखने और सेवा करने का जो वादा और दावा, मुझे घर से निकालते समय किया था, उस से जी भर गया या अपने ऊपर से मां का बोझ उतारने आए हो या मुझ पर विश्वास करने लगे हो कि मैं चरित्रहीन नहीं हूं?’’

थोड़ी देर वह शांत रहा, फिर बोला, ‘‘आप चरित्रहीन कभी थे ही नहीं. मैं अपनी पत्नी सुमन की बातों से बहक गया था. उस ने अपनी बात इस ढंग से रखी, मुझे यकीन करना पड़ा कि आप ने ऐसा किया होगा.’’

‘‘मैं तुम्हारा जन्मदाता था. पालपोस कर तुम्हें बड़ा किया था. पढ़ायालिखाया था. बचपन से तुम मेरे हावभाव, विचारव्यवहार, मेरी अच्छाइयों और कमजोरियों को देखते आए हो. तुम ने कल की आई लड़की पर यकीन कर लिया पर अपने पिता पर नहीं. और राजी, तुम ने तो मेरे साथ 35 वर्ष गुजारे थे. तुम भी मुझे जान न पाईं? तुम्हें भी यकीन नहीं हुआ. जिस लड़की को बहू के रूप में बेटी बना कर घर में लाया था, क्या उस के साथ मैं ऐसी भद्दी हरकत कर सकता था? सात जन्मों का साथ तो क्या निभाना था, तुम तो एक जन्म भी साथ न निभा पाईं. तुम्हारी बहनें तुम से और सुमन से कहीं ज्यादा खूबसूरत थीं, मैं उन के प्रति तो चरित्रहीन हुआ नहीं? उस समय तो मैं जवान भी था. तुम्हें भी यकीन हो गया…?’’

‘‘शायद, यह यकीन बना रहता, यदि पिछले सप्ताह सुमन को अपनी मां से यह कहते न सुना होता, ‘एक को तो उस ने झूठा आरोप लगा कर घर से निकलवा दिया है. यह बुढि़या नहीं गई तो वह उसे जहर दे कर मार देगी,’’’ बेटे ने कहा, ‘‘तब मुझे पता चला कि आप पर लगाया आरोप कितना झूठा था. मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई. मैं ने मम्मी को भी इस बारे में बताया. तब से ये रो रही हैं. मन में यह भय भी था कि कहीं सचमुच सुमन, मम्मी को जहर न दे दे.’’

‘‘अब इस का क्या फायदा. तब तो मैं कहता ही रह गया था कि मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. मैं ऐसा कर ही नहीं सकता था, पर किसी ने मेरी एक न सुनी. किस प्रकार आप सब ने मुझे धक्के दे कर घर से बाहर निकाला, मुझे कहने की जरूरत नहीं है. मैं आज भी उन धक्कों की, उन दुहत्थड़ों की पीड़ा अपनी पीठ पर महसूस करता हूं. मैं इस पीड़ा को कभी भूल नहीं पाया. भूल पाऊंगा भी नहीं.

‘‘मुझे आज भी सर्दी की वह उफनती रात याद है. बड़ी मुश्किल से कुछ कपड़े, फौज के डौक्यूमैंट, एक डैबिट कार्ड, जिस में कुछ रुपए पड़े थे, घर से ले कर निकला था. बाहर निकलते ही सर्दी के जबरदस्त झोंके ने मेरे बूढ़े शरीर को घेर लिया था. धुंध इतनी थी कि हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था. सड़क भी सुनसान थी. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था. रात, मेरे जीवन की तरह सुनसान पसरी पड़ी थी. रिश्तों के टूटन की कड़वाहट से मैं निराश था.फिर मैं ने स्वयं को संभाला और पास के

एटीएम से कुछ रुपए निकाले. अभी सोच ही रहा था कि मुख्य सड़क तक कैसे पहुंचा जाए कि पुलिस की जिप्सी बे्रक की भयानक आवाज के साथ मेरे पास आ कर रुकी. उस में बैठे एक इंस्पैक्टर ने कहा, ‘क्यों भई, इतनी सर्द रात में एटीएम के पास क्या कर रहे हो? कोई चोरवोर तो नहीं हो?’ मैं पुलिस की ऐसी भाषा से वाकिफ था.

‘‘‘नहीं, इंस्पैक्टर साहब, मैं सेना का रिटायर्ड कर्नल हूं. यह रहा मेरा आई कार्ड. इमरजैंसी में मुझे कहीं जाना पड़ रहा है. एटीएम से पैसे निकालने आया था. मुख्य सड़क तक जाने के लिए कोई सवारी ढूंढ़ रहा था कि आप आ गए.’

‘‘‘घर में सड़क तक छोड़ने के लिए कोई नहीं है?’ इंस्पैक्टर की भाषा बदल गई थी. वह सेना के रिटायर्ड कर्नल से ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता था.

‘‘‘नहीं, यहां मैं अकेले ही रहता हूं,’ मैं कैसे कहता, घर से मैं धक्के दे कर निकाला गया हूं.

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘आओ साहब, मैं आप को सड़क तक छोड़ देता हूं.’ उन्होंने न केवल सड़क तक छोड़ा बल्कि स्टेशन जाने वाली बस को रोक कर मुझे बैठाया भी. ‘जयहिंद’ कह कर सैल्यूट भी किया, कहा, ‘सर, पुलिस आप की सेवा में हमेशा हाजिर है.’ कैसी विडंबना थी, घर में धक्के और बाहर सैल्यूट. जीवन की इस पहेली को मैं समझ नहीं पाया था.

 

क्यों का प्रश्न नहीं

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें