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भारत को किसमें लाभ: पाकिस्तान में लोकतंत्र या तानाशाही

पड़ोसी देश पाकिस्तान में उथल-पुथल शुरू होते ही मानो भारत की छाती चौड़ी होने लगती है. देश के बहुतेरे चर्चित चेहरे बलियां उछलने लगते हैं और आम जनमानस में भी प्रतिक्रिया नकारात्मक साफ साफ देखने को मिलती है.

दरअसल,इस मनोविज्ञान के पीछे यही भावना है- जैसी आम आदमी की, किसी पास पड़ोसी, जिससे रिश्ते अच्छे नहीं है संकट में पड़ते ही बांछें खिल जाती है.

इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्या आया है भारतीय मीडिया विशेषकर न्यूज चैनलों में यही दिखाया जा रहा है कि इमरान खान किस तरह संकट में फंस गए हैं और अब  उनकी सरकार का बच पाना मुश्किल है.

अक्सर जब भी पाकिस्तान में लोकतंत्र पर संकट के बादल मंडराते हैं भारत में एक तरह से खुशनुमा प्रतिक्रिया आने लगती है जो सीधे-सीधे इस दृष्टिकोण से गलत ठहरती है.

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हम यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान हमारा पड़ोसी है और रहेगा. हमें अमन और चैन के साथ अस्तित्व भावना के साथ रहना है. उनके दुख में उनके सुख में हमें साथ साथ ही रहने में समझदारी होगी.

जहां तक बात पाकिस्तान में राजनीतिक संकट की है वह तो आया है चला जाएगा.

मगर भारत में जिस तरीके की प्रतिक्रिया आती है वह यह सच बता जाती है कि हम चाहे कितने ही प्रगतिशील हो, धैर्यवान हो, मगर हम में वह ऊंचाई नहीं है जो प्राकृतिक रूप से हममें होनी चाहिए.

हम यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान में अगर लोकतंत्र रहेगा तो भारत का उसमें  हित है क्योंकि कोई भी लोकतांत्रिक सरकार संवैधानिक नियम कायदे से ही चलेगी. मगर किसी भी तानाशाही अथवा सैनिक शासन में भारत को ज्यादा खतरे और तनाव का सामना करना पड़ेगा.

इमरान खान की बड़ी रेली

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अविश्वास प्रस्ताव से एक दिन पूर्व 27 मार्च, रविवार को इस्लामाबाद में एक बड़ी रैली को संबोधित किया.  इमरान खान ने विपक्षी दलों पर निशाने साधा.  इमरान खान ने कहा  वे पांच साल पूरे करेंगे और इस्तीफा नहीं देंगे.उनके शब्द थे- मैं लोगों के विकास के लिए राजनीति में आया था.

इमरान ने दावा किया कि उनकी गठबंधन सरकार गिराने की ‘साजिश’ में विदेशी ताकतों का हाथ है.  अपने दावों की पुष्टि करने वाला एक पत्र सबूत के तौर पर उनके पास बताया है. उन्होंने कहा कि जिस संकट के समय आप लोग मेरे एक बुलावे पर आए, पाक के हर कोने से आए, उसके लिए शुक्रिया.

इमरान खान ने कहा कि जब हम पांच साल पूरे करेंगे, तो सारा देश देखेगा कि कभी इतिहास में दूसरी किसी सरकार ने उतनी गरीबी कम नहीं की, जितनी हमने की. उन्होंने कहा कि मै राजनीति में एक ही चीज के लिए आया था और वो ये थी कि पाकिस्तान जिस नजरिए के साथ बनाया गया था, उसे आगे बढ़ा सकूं. उन्होंने कहा कि जो काम हमने तीन साल में किए हैं, वैसे काम हमसे पहले किसी ने नहीं किए थे।

प्रधानमंत्री  इमरान खान ने कहा कि मैंने डीजल की कीमतें 10 रुपए कम कीं. 100 साल में सबसे ज्यादा बुरा समय कोरोना महामारी लेकर आई.पूरी दुनिया रुक गई उस समय इन लोगों ने कहा कि ये पाकिस्तान को बर्बाद कर रहा है.जो हमने कदम उठाए उनकी पूरी दुनिया तारीफ करती है. मैंने अपने देश के गरीबों को बचाया, देश को बचाया. हमने पाकिस्तान के इतिहास में सबसे ज्यादा टैक्स जमा किया. उन्होंने कहा कि ये सब ड्रामा इसलिए हो रहा है कि जनरल मुशर्रफ की तरह मेरी सरकार भी गिरा दी जाए. ये मुझे शुरू से ही ब्लैकमेल कर रहे हैं. इमरान की सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है, जिस पर आज 28 मार्च सोमवार को मतदान होना है. विपक्षी दलों के नेशनल असेंबली सचिवालय में आठ मार्च को एक अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था.

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इसमें इमरान खान पर आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री इमरान खान नीत पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) देश में आर्थिक संकट और बेतहाशा बढ़ती महंगाई के लिए जिम्मेदार है .

हाल ही में इमरान खान ने एक राजनीतिक संदेश भेजा था- शायद आपको याद हो, रूस यूक्रेन युद्ध की तारतम्य में इमरान खान ने कहा था कि भारत की विदेश नीति देशहित की है और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खुल कर प्रशंसा  की थी और कहा था कि इस नीति के कारण पाकिस्तान को भी लाभ हो रहा है.

एक तरह से यह इमरान खान का भारत सरकार को सद्भावना का मित्रता का संदेश था. मगर इमरान खान के दोस्ती के बढ़े हुए इस हाथ को  थामने के लिए भारत की कोई पहल दिखाई नहीं दी. आज इमरान खान की सरकार और पाकिस्तान में लोकतंत्र अगर संकट में है तो भारत सरकार की एक प्रतिक्रिया से पाकिस्तान के लोकतंत्र को ताकत मिल सकती है. और दोनों की दोस्ती से  दोनों देश की आवाम को सुख, शांति समृद्धि.

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भारती सिंह हर साल बनना चाहती हैं मां! जानें पूरा मामला

मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह (Bharti Singh) जल्द ही मां बनने वाली हैं. वह  इन दिनों अपनी प्रेग्नेंसी को खूब एंजॉय कर रही हैं. अब उन्होंने फैंस को बताया है कि वह हर साल मां बनना चाहती हैं. आइए बताते हैं, क्या है इसकी वजह.

भारती सिंह का एक वीडियो सामने आया है. जिसमें वह कह रही हैं कि वह हर साल मां बनना चाहती हैं. वीडियो में आप देख सकते हैं कि भारती सिंह कहती हैं, ये बात सच है लोग कहते हैं कि जबसे मैं प्रेग्नेंट हुई हूं, मम्मी बनने वाली हूं, मैं बहुत सुंदर हो गई हूं. मैं ग्लो कर रही हूं, मैं बहुत अच्छी लग रही हूं, ये बात सच है क्या? अगर ये बात सच है, तो फिर हर साल हो जाए.जल्दी बताइए कमेंट करके.

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भारती सिंह के इस वीडियो पर यूजर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, आप बहुत अच्छी लग रही हैं भारती मैम. हां, हर साल हो जाए. तो दूसरे ने लिखा, मैम आप पहल से ही बहुत अच्छी हो. वहीं अन्य ने लिखा है कि बच्चा एक ही अच्छा. एक अन्य यूजर ने लिखा आप पहले से काफी सुंदर लग रही है.

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हाल ही में भारती सिंह ने खुलासा किया है कि वह अप्रैल के पहले सप्ताह में मां बनने वाली हैं. भारती ने अपने यूट्यूब चैनल एलओएल लाइफ ऑफ लिंबाचिया पर वीडियो शेयर करते हुए अपनी प्रेग्नेंसी की खबर शेयर की थी. हम मां बनने वाले हैं नाम के इस वीडियो में हर्ष भी अभिनय करते नजर आए थे. इससे पहले भारती ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह नॉर्मल डिलीवरी चाहती हैं. उन्होंने बताया कि मैंने हर दूसरे दिन योगा करना शुरू कर दिया है.

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अनुज-अनुपमा करेंगे सीक्रेट शादी? वनराज रचेगा साजिश!

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) और ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में शादी का ट्रैक दिखाया जा रहा है. दोनों शो का महासंगम चल रहा है. ‘अनुपमा’ में  अनज और अनुपमा शादी करने वाले हैं तो वहीं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अक्षरा और अभिमन्यु की शादी की तैयारियां चल रही है. अक्षरा और अभिमन्यु की शादी में अनुज और अनुपमा भी शामिल होंगे. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है, आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

अनुज करेगा शादी का वादा

अनुपमा सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शादी के मंडप में अनुज अनुपमा का हाथ पकड़े हुए, शादी का वादा करते दिखाई देगा. अनुज-अनुपमा की ये सीक्रेट शादी दिखाई जाएगी. दरअसल ये शादी अक्षरा और अभिमन्यु की शादी के वेन्यू के ठीक बगल में होगी.

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राखी दवे से हाथ मिलाएगा वनराज

तो दूसरी तरफ शाह परिवार में अनुपमा-अनुज की शादी को लेकर बवाल खड़ा होगा. बा वनराज से कहती है, अनुपमा ने समाज के सामने मेरा सिर झुका दिया है. बा फूट-फूट कर रोती है. ऐसे में वनराज अनुपमा-अनुज की शादी रोकने के लिए साजिश रचता है. वनराज चालाकी से राखी दवे के साथ हाथ मिलाने की बात करता है.

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अनुज-अनुपमा के खिलाफ वनराज रचेगा साजिश

शो में दिखाया जाएगा कि अनुज और अनुपमा की शादी में काफी सारी अड़चनें आएंगी. शो के आने वाली कहानी में अनुज और अनुपमा को अपनी शादी से ठीक पहले एक बड़ी मुसीबत में फंसेंगे. शो में अब ये देखना होगा कि क्या अनुज और अनुपमा आने वाले तूफान का कैसे सामना करते हैं, और अपने सपने को कैसे पूरा करते हैं?

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वोटरों की बदलती सोच

जहां एक ओर कांग्रेस की लोकप्रियता बुरी तरह घटती जा रही है वहीं अन्ना आंदोलन के भ्रष्टाचार के मुद्दे से निकली आम आदमी पार्टी अब हर ऐसे राज्य में पैर फैला रही है जहां पहले भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का मुकाबला होना था. आम आदमी पार्टी की पंजाब में बहुत ही अच्छी विजय ने उस का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है और चाहे कांग्रेस का समाप्त होना खले, लोकतंत्र जिंदा है और एकपार्टीराज नहीं बन रहा, इस का भरोसा मिल रहा है.

आमतौर पर युवाओं और राजनीति में नए आए लोगों की आप पार्टी में वोटरों ने भरोसा जताया है कि अब जनता बुरी तरह से विरासत और धर्म की राजनीति करने वाली व बहकाने व लूटने वाली नीतियों की पार्टियों से थक चुकी है और जहां जरा सा मौका मिलता है वह नया प्रयोग करने को तैयार है. पश्चिम बंगाल में यह प्रयोग तृणमूल कांग्रेस के रूप में हुआ और आंध्र में जगन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस के रूप में. तेलंगाना, तमिलनाडू, केरल भी इसी तरह के राज्य हैं जहां न कांग्रेस है और न भारतीय जनता पार्टी.

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भारतीय जनता पार्टी ने जो राममंदिर और हिंदू पौराणिकवादी खेल खेला है उस ने जनता की भावनाओं व सदियों के अंधविश्वासों को भुनाया है जो उस की रोजीरोटी को सुलभ नहीं बनाता. भाजपा को लोगों के अगले जन्म को सुधारने का झूठा वादा दिलाने के नाम पर वोट मिल जाते हैं, जबकि इन पार्टियों को जनता के आज को सुधारने का काम करना पड़ रहा है और ये जनता के ज्यादा नजदीक हैं. इसीलिए वोटर अपनेअपने राज्य में इन पार्टियों का ज्यादा समर्थन कर रहे हैं और कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी बरबाद होती दिख रही हैं.

राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता. भारतीय जनता पार्टी ने 4 राज्यों में अपनी जीत बनाए रखी पर उस के पास टैलेंट और युवा नेताओं की भारी कमी है. इस का मतलब है कि उस का शासन पौराणिक राजाओं की तरह है जो कहानीकिस्सों के अनुसार सिर्फ और सिर्फ या तो यज्ञ, हवन, पूजापाठ और दानदक्षिणा में लगे रहते थे या युद्धों में. पौराणिक ग्रंथों की कथाओं ने कहीं भी प्रकृति से लड़ कर कुछ पाने का इन राजाओं का कोई काम होता नहीं दिखा. आज भारतीय जनता पार्टी वही करना चाहती है क्योंकि घंटों जमीन पर बैठा कर कोई महान विभूति पर उपदेश कुशल बहुतेरे क्या ज्ञान बांटना है.

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आम जनता की समस्याओं से आज भारतीय जनता पार्टी का कोई मतलब नहीं रह गया जैसे पहले कांग्रेस का नहीं रह गया था जब वह शासन में थी. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों ही भयंकर तरीके से निरर्थक फैसले लेने वाले नेताओं को चुनचुन कर कुरसियां देने की नीति अपनाती रही हैं और इसीलिए वे जनता से वोट तो पाती थीं पर वे जनता से लगाव नहीं जुटा पाती थीं.

आम आदमी पार्टी नई पार्टियों में से है जहां न तो इतिहास का बोझ है न जनता से दूर रहने वालों की भीड़. कांग्रेस की तरह ‘आजादी दिलाई’ की धुन भी उस के पास नहीं है और भारतीय जनता पार्टी के ‘हिंदू धर्म ही सर्वश्रेष्ठ’ का राग है.

शासन के स्तर पर देशवासियों को आज कोई पार्टी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पा रही क्योंकि आज शासन की बागडोर तो असल में सरकारी दफ्तरों से खिसक कर टैक्नोलौजी विकसित करने वाली कंपनियों के हाथों में चली गई है. आज सारे सरकारी दफ्तरों पर निजी सौफ्टवेयर कंपनियों का राज है जो मनचाहा प्रोग्राम बना सकती हैं. शासन कौशल तो एप्पल, माइक्रोसौफ्ट, अमेजन, टेस्ला जैसी कंपनियों के हाथों में है जो नेताओं को निरर्थक साबित कर रही हैं. ऐसे में अगर लगभग सब जगह से कांग्रेस पिट चुकी हो और कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह पिट रही हो, तो न कोई आश्चर्य की बात है, न अफसोस की.

आधी तस्वीर- भाग 3: क्या मनशा भैया को माफ कर पाई?

मनशा के पांव तले से धरती खिसकती जा रही थी. एकएक क्षण काटे नहीं कट रहा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि ऐसा क्यों और कैसे हो गया. फिर सहसा बिजली की तरह मस्तिष्क में विचार कौंधा. कल शाम को भैया भी तो उस पार्टी में गए थे. फिर तबीयत इन्हीं की क्यों खराब हुई? बहुत रात गए वह लौट आई.

डाक्टर पूरी रात रवि को बचाने का प्रयत्न करते रहे पर सुबह होतेहोते वे हार गए. दाहसंस्कार बिना किसी विलंब के तुरंत कर दिया गया. मनशा गुमसुम सी कमरे में बैठी रही. न बोल सकी और न रो सकी. रहरह कर कुछ बातें मस्तिष्क की सूनी दीवारों से टकरा जातीं और उन के केंद्र में तुषार भैया आ जाते.

‘तुम्हें जान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.’ कोई महीनेभर पहले उन्होंने कहा था, फिर पार्टी में तुषार के साथ रवि का होना उस की उलझन बढ़ा रहा था. वहां क्या हुआ? क्या भैया से कोई बहस हुई? क्या भैया ने उसे मेरा खयाल छोड़ने की धमकी दी? क्या इसीलिए उस ने आत्महत्या कर ली कि मुझे नहीं पा सकता था? एक बार उस ने कहा भी था, ‘तुम्हारे बिना मैं नहीं जी सकता, मनशा.’ क्या यह स्थिति उस ने मान ली थी कि बिना उस से पूछे? या…उसे… नहीं…नहीं…कौन कर सकता है यह काम…क्या भैया… ‘नहीं…नहीं…’ वह जोर से चीखी. मां हड़बड़ा कर कमरे में आईं. देखा वह बेहोश हो गई है. थोड़ीथोड़ी देर में होश आता तो वह कुछ बड़बड़ाने लगती.

धीरेधीरे वह सामान्य होने लगी. उस ने महसूस किया, भैया उस से कतरा रहे हैं और इसी आधार पर उन के प्रति संदेह का जो सांप कुंडली मार कर उस के मन में बैठा वह भैया के जीवनपर्यंत वैसा ही रहा. उन की मृत्यु के बाद भी मन की अदालत में वह उन्हें निर्दोष घोषित नहीं कर सकी.

दुनिया और जीवन का चक्र जैसा चलना था चला. प्रभात से ही उस का ब्याह हुआ. बच्चे हुए और अब उन का भी ब्याह होने जा रहा था.

न जाने आंखों से कितने आंसू बह गए. रीता दरवाजे पर ही खड़ी रही. मनशा ने ही मुड़ कर देखा तो उस के गले लग कर फिर रो पड़ी. रवि की मृत्यु के बाद वह आज पहली बार रोई है. रीता कुछ समझ नहीं पा रही थी. हम सचमुच जीवन में कितना कुछ बोझ लिए जीते हैं और उसे लिए ही मर भी जाते हैं. यह रहस्य कोई कभी नहीं जान पाता है, केवल उस की झलक मात्र ही कोई घटना कभी दे जाती है.

वे दोनों ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गईं. मनशा ने स्थिर हो कौफी पी और अपने बेटे की शादी का कार्ड रीता की ओर बढ़ा दिया. वह बेहद प्रसन्न हुई यह देख कर कि लड़की दूसरी जाति की है. रीता की जिज्ञासा फूट पड़ी, ‘दीदी, जो आप जीवन में नहीं कर सकीं उसे बेटे के जीवन में करते समय कोईर् दिक्कत तो नहीं हो रही है?’

‘हुई थी…भैया ने जैसे सामाजिक स्तर की बातचीत की थी वैसा तो आज भी पूरी तरह नहीं, फिर भी हम इतना आगे तो बढ़े ही हैं कि इतना कर सकें…प्रभात नहीं चाहते थे. बड़ेबुजुर्ग भी नाराज हैं, पर मैं ने मनीष और दीपा के संबंध में संतोषजनक ढंग से सब जाना तो फिर अड़ गई. मैं बेटा नहीं खोना चाहती थी. किसी तरह का खतरा नहीं उठाने की ठान ली. सोच लिया अपनी जान दे दूंगी पर इस को बचा लूंगी, मन का बोझ इस से हलका हो जाएगा.’ उस के चेहरे पर हंसी की रेखा उभर कर विलीन हो गई.

घरपरिवार की कितनी ही बातें कर मनशा चलने को उद्यत हुई तो बैग से एक कागज का पैकेट सा रीता के हाथ में थमा कर कहा, ‘इसे भी रख लो.’

‘यह क्या है दीदी?’

‘आधी तसवीर, जिसे तुम्हारे रवि भैया जोड़ना चाहते थे. जब कभी तुम सुनो कि मनशा दीदी नहीं रहीं तो उस तसवीर से इसे जोड़ देना ताकि वह पूरी हो जाए. यह जिम्मेदारी तुम्हें ही सौंप सकती हूं, रीता.’ वह डबडबाती आंखों के साथ दरवाजे से बाहर निकल गई. अतीत को मुड़ कर दोबारा देखने की हिम्मत उस में नहीं बची थी.

चूक गया अर्जुन का निशाना

जवान बेटे की असामयिक मौत के बाद ससुर अर्जुन ने पुत्रवधू को अपनी पत्नी बना लिया. अपने संबंधों को बनाए रखने के लिए ससुर ने खौफनाक साजिश रच कर बेटे के दोस्त दिनेश को फंसा दिया. लेकिन इस बार उस का निशाना चूक गया. फिर जो हुआ…

दलबदल तो पौराणिक है

महर्षि विश्रवा की पत्नी कैकसी के 3 पुत्र रावण, कुंभकर्ण और विभीषण थे. विभीषण विश्रवा के सब से छोटे पुत्र थे. ब्रह्मा ने रावण, कुंभकर्ण और विभीषण से वर मांगने के लिए कहा. रावण ने अपने महत्त्वाकांक्षी स्वभाव के अनुसार ब्रह्मा से त्रिलोक विजयी होने का वरदान मांगा. उस के छोटे भाई कुंभकर्ण ने 6 माह की नींद मांगी. सब से छोटे भाई विभीषण ने उन से भगवद्भक्ति की मांग की. बह्मा ने तीनों का मनचाहा वरदान दे दिया. ब्रह्मा से वरदान मिलने के बाद रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से सोने की लंका पुरी को छीन कर उसे अपनी राजधानी बनाया.

इस के बाद बह्मा के वरदान से तीनों लोक को जीत लिया. तीनों लोकों के सभी प्राणी रावण के वश में हो गए. विभीषण भी रावण के साथ लंका में रहने लगे. रावण ने जब राम की पत्नी सीता का हरण किया तब विभीषण ने पराई स्त्री के हरण को महापाप बताते हुए सीता को राम को लौटा देने की उसे सलाह दी.

रावण ने विभीषण की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया. सीता का पता लगाने के लिए जब हनुमान लंका गए तो उन को इस बात का पता नहीं था कि रावण ने सीता को कहां रखा है. तब विभीषण ने ही हनुमान को सीता का पता बता कर उन को अशोक वाटिका की तरफ भेजा. अगर विभीषण ने हनुमान को सीता का पता नहीं बताया होता तो हनुमान सीता तक न पहुंच पाते.

अशोक वाटिका के विध्वंस और अक्षय कुमार के वध के अपराध में रावण हनुमान को प्राणदंड देना चाहता था. उस समय विभीषण ने ही हनुमान को दूत बता कर उन को कोई और दंड देने की सलाह दी. फलस्वरूप रावण ने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया, जिस से विभीषण के घर को छोड़ कर संपूर्ण लंका जल कर राख हो गई.

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जब राम ने लंका पर चढ़ाई कर दी तो विभीषण ने फिर से सीता को वापस कर के युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की. इस पर नाराज हो कर रावण ने लात मार कर विभीषण को घर से निकाल दिया. विभीषण ने रावण का साथ छोड़ कर दलबदल कर लिया और राम के पास आ गए.

विभीषण का एक गुप्तचर था. उस ने पक्षी का रूप धारण कर लंका जा कर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इस की सूचना राम को दी थी. यही नहीं, रावण के पुत्र मेघनाद को मारने का उपाय भी विभीषण ने ही लक्ष्मण को बताया था. जब राम का रावण से युद्ध हो रहा था तब भी राम रावण को मार नहीं पा रहे थे.

रावण की नाभि में अमृत होने के कारण वह बारबार जीवित हो जा रहा था. तब विभीषण ने ही राम को यह रहस्य बताया कि रावण की नाभि में बाण मार कर पहले उस के अमृत को सुखा दें, तभी रावण मर सकेगा. विभीषण की यह युक्ति ही रावण की मृत्यु का कारण बनी. विभीषण के दलबदल ने रावण की हार में अहम भूमिका निभाई, जिस के लिए विभीषण लंका के राजा बने.

संविधान नहीं, पौराणिक कहानियों का असर

देश के संविधान को देखने के बाद उस समय के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने कहा, ‘हमारा संविधान दुनिया का सब से अच्छा संविधान है. इस में वह सबकुछ है जो एक लोकतांत्रिक देश को चाहिए. एक ही दिक्कत है कि इस संविधान को बनाने वालों की मनोस्थिति के अनुरूप इस को लागू कराने वाले लोग कैसे लाए जा सकेंगे?’

हमारे देश में पौराणिक कहानियों का काफी प्रचारप्रसार है. लोग इन के अनुसार अपने चरित्र को ढालने का काम करते हैं. पौराणिक ग्रंथों में रामायण का बड़ा महत्त्व है. इन को ढाल बना कर आज लोग काम करते हैं. राजनीति और चुनाव में होने वाले दलबदल को पौराणिक नजर से देखें तो लगता है कि दलबदल पौराणिक काल से चलता आ रहा है.

राम और रावण युद्ध में अगर रावण के छोटे भाई विभीषण ने रावण की मृत्यु का उपाय राम को न बताया होता तो रावण वध न हो पाता. आज दलबदल करने वालों को समाज इसलिए स्वीकार कर लेता है क्योंकि यह पौराणिक काल से होता चला आ रहा है.

यही वजह है कि देश में दलबदल कानून लागू होने के बाद भी दलबदल रुका नहीं, बल्कि बढ़ गया है. पौराणिक कहानियों का समाज पर व्यापक असर होता है. जन्म से ले कर बड़े होने तक यह इंसान इतनी बार ये कथाकहानियां सुनता है कि वह उसी के अनुसार काम करने लगता है. अपने संविधानविरोधी कार्य को भी वह पौराणिक कथाओं के उदाहरण दे कर सही ठहराता है. यह केवल राजनीतिक दलों के अंदर की कहानी नहीं है, समाज में, घरघर में यह कहानी होती है.

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घरघर में दलबदल

किसी भी घर को देखें तो सत्ता हमेशा सब से बड़ी महिला के हाथ में होती है. ज्यादातर ये महिलाएं सास होती हैं. अगर उसी घर में सास से कोई छोटी सास है तो वह घर में आने वाली बहुओं को सास के खिलाफ भड़काती है. बहुएं भी दलबदल कर के छोटी सास के खेमे में चली जाती हैं. उस घर में छोटी सास और बहुओं का एक खेमा बन जाता है. सासबहुओं वाले टीवी सीरियलों की कहानी घरघर की होती है. उस में दलबदल को साफतौर पर देखा जा सकता है.

इन के दलबदल करने के कारण भी नेताओं के दलबदल जैसे ही होते हैं. भारतीय जनता पार्टी में 5 वर्षों पहले दलबदल कर के स्वामी प्रसाद मौर्य शामिल हुए थे. भाजपा ने उन की बेटी को सांसद बना दिया. खुद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सरकार में मंत्री रहे. जब वापस चुनाव का समय आया तो स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा से नाराज हो गए और समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए.

सपा नेता अखिलेश यादव को लगा कि स्वामी प्रसाद मौर्य को ले लो, भाजपा की कमजोरी पता चल जाएगी तो चुनाव जीतना सरल हो जाएगा. जैसे विभीषण से राम को लाभ हुआ था. टीवी के सीरियलों की कहानी की तरह सपाभाजपा के बीच होने लगा. सपा को जवाब देने के लिए भाजपा ने अखिलेश यादव के छोटे भाई की पत्नी अपर्णा यादव को दलबदल करा कर अपने खेमे में ले लिया.

घरघर की कहानी जैसे बहुत सारे किरदार राजनीति के हर दल में दिखते हैं. नैतिकता और निष्ठा की बात करते हुए ये नेता ठीक इस के विपरीत काम करते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी ने भाजपा से त्यागपत्र नहीं दिया तो अपर्णा के पति भी अपने परिवार के साथ ही हैं.

दलबदल रोक नहीं पाया दलबदल कानून

दलबदल कानून क्या है और इस की जरूरत क्यों पड़ी, इस बात को सम झें तो पता चलता है जब नैतिकता और निष्ठा की बातें केवल कहनेभर के लिए हों तो ऐसे कानून की जरूरत होती है. जब सवाल यह होता है कि क्या इस कानून से दलबदल रुका? तो देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की संविधान को ले कर चिंता जायज लगती है.

कानून कितने भी बन जाएं जब तक पौराणिक कहानियों के बहाने संविधान और कानून के प्रति नैतिकता व निष्ठा को दरकिनार किया जाएगा, कोई भी कानून सफल नहीं होगा. दलबदल कानून इस बात को पूरी तरह से सही ठहराता दिख रहा है.

भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल सब से अहम हैं. संविधान और पार्टी कानून कहता है कि दलों द्वारा लिए जाने वाले फैसले सामूहिक आधार पर लिए जाते हैं, पर सचाई यह है कि नेता और दल अपने हिसाब से राजनीति में तोड़जोड़ करते हैं. विधायकों और सांसदों के साथ जोड़तोड़ से सरकारें बनाई और गिराई जाती हैं. एक ही दिन में नेता पार्टी बदलने लगे हैं. यह कोई नई बात नहीं है.

साल 1967 में 30 अक्तूबर को हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में ही 2 दल बदले. 15 दिन में गयालाल ने 3 दल बदले थे. गया लाल पहले कांग्रेस से जनता पार्टी में गए, फिर वापस कांग्रेस में आए और अगले 9 घंटे के भीतर दोबारा जनता पार्टी में लौट गए. जिस के बाद से देश में ‘आयाराम गयाराम’ के चुटकुले और कार्टून से दलबदल को जाना जाने लगा.

साल 1985 में राजीव गांधी सरकार ने संविधान में संशोधन करने और दलबदल पर रोक लगाने के लिए एक विधेयक तैयार किया. 1 मार्च, 1985 को इस को लागू किया गया. संविधान की 10वीं अनुसूची, जिस में दलबदल विरोधी कानून शामिल है, को इस संशोधन के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया. इस कानून के लागू होने के बाद से देश में दलबदल और तेजी से बढ़ गया.

ताजा उदाहरण मध्य प्रदेश सरकार का है जहां कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को तोड़ कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा का साथ दिया. कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिर गई. भाजपा के शिवराज सिंह चौहान वहां मुख्यमंत्री बने. इस के एवज में भाजपा ने ज्योतिरादित्य को केंद्र सरकार में मंत्री पद दे दिया.

उत्तर प्रदेश में इस का व्यापक असर देखा गया. इस दलबदल के कारण ही जगदम्बिका पाल को एक दिन का मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला था. कोर्ट ने उस बात को भले ही नहीं माना पर दलबदल आगे भी रुका नहीं. दलबदल के कारण ही बहुजन समाज पार्टी कई बार टूट कर बिखरी. सत्ता के लिए चुनाव के पहले या बाद या सरकार बनाने के लिए नेता हमेशा ही दलबदल करते रहे हैं. हर दलबदल के बाद दलबदल कानून की नई व्याख्या की जाती है. जबतब पौराणिक कहानियों के उदाहरण मौजूद हैं. नेता उन के उदाहरण दे कर दलबदल करते रहेंगे और जनता इन को जितवाती भी रहेगी.

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पौराणिक कहानियां बनीं सहारा

दलबदल करने वाले नेताओं को वोट देने वाली उन की क्षेत्र की जनता से जब पूछा जाता है कि आप दलबदल करने वाले नेता का साथ क्यों देते हैं तो जनता का जवाब होता है, ‘दलबदल कौन सी नई बात है. यह तो राम के समय से होता चला आ रहा है.’ दलबदल करने वाला नेता खुद को बेचारा और प्रताडि़त बताने लगता है. इस से उस के क्षेत्र की जनता उस के पक्ष में खड़ी होने लगती है.

हमारे समाज में ‘बेचारा और प्रताडि़त’ बहुत कारगर हथियार है. यह राजनीति और घर की राजनीति दोनों ही जगह पर सफल होता है. सास और बहू के बीच जो खुद को बेचारा और प्रताडि़त साबित कर लेता है, समाज उस के साथ खड़ा हो जाता है. टीवी सीरियलों की कहानियों में यह बात साफ दिखाई जाती है. यही वजह है कि विलेन तक के प्रति जनता के बीच सहानुभूति बढ़ जाती है.

विभीषण से ले कर दलबदल करने वाले नेता तक बेचारा और प्रताडि़त का कार्ड खेल कर जनता की सहानुभूति पा लेते हैं. विभीषण के प्रति लोगों की सहानुभूति इस कारण है क्योंकि उसे रावण ने लात मार कर अपने राज्य से बाहर कर दिया. यहां लोग यह भूल जाते हैं कि अगर कोई भाई उस के दुश्मन को गुप्त अड्डों की जानकारी दे, उस के फैसले की दिशा बदल दे तो राजा क्या करे?

नेता भी जब दलबदल करता है तो कहता है कि उस को जनता के मुद्दों को उठाने नहीं दिया जा रहा था. वहां वह प्रताडि़त किया जा रहा था. इस कारण उस ने दलबदल करने का फैसला लिया. विभीषण को सही मानने वाली जनता दलबदल करने वाले नेता को भी सही मान लेती है. इस वजह से दलबदल करने वाले नेता भी चुनाव जीत जाते हैं.   –

बेवफाई की खूनी इबारत

सौजन्य: सत्यकथा

कैरोल उर्फ पिंकी मिस्किटा और जिको मिस्किटा एकदूसरे को न सिर्फ दिलोजान से प्यार करते थे, बल्कि शादी भी करना चाहते थे. महाराष्ट्र में मुंबई से अहमदाबाद की ओर जाने वाले हाईवे पर एक शहर है पालघर. पालघर में एक इलाका है मनोर, इसी इलाके में 3 फरवरी, 2022 की शाम के करीब साढ़े 5 बजे वाघोबा के रहने वाले नामदेव ने हाईवे के करीब से गुजरने वाले नाले में 2 बड़े पाइप के बीचोंबीच एक इंसान की लाश फंसी देखी. वह लाश बुरी तरह सड़ चुकी थी. उस से तेज दुर्गंध आ रही थी.

नामदेव ने देर नहीं की और तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के इस की सूचना दे दी. पुलिस कंट्रोल रूम से होते हुए बात पालघर पुलिस तक पहुंच गई, क्योंकि वह इलाका पालघर पुलिस के क्षेत्र में ही पड़ता है. अगले कुछ मिनटों में पालघर थानाप्रभारी इंसपेक्टर विष्णु भोए अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और लाश को नाले से बाहर निकाल कर अपने कब्जे में लेने का काम शुरू कर दिया.

थानाप्रभारी भोए ने देखा कि लाश पर चाकुओं से वार किए जाने के निशान थे, उस का चेहरा किसी भारी चीज से इस तरह कुचला गया था, जिस से पहचानने में नहीं आ रहा था. वैसे भी चेहरे समेत जिस्म का एक बड़ा हिस्सा मछली और दूसरे जलीय जीव कुतर चुके थे. लेकिन कदकाठी व पहनावे से लग रहा था कि मरने वाली एक नौजवान युवती होगी.

लाश जिस तरह से सड़ चुकी थी, उस से यह बात भी साफ थी कि ये लाश पानी में पिछले कई दिनों से पड़ी रही होगी इसीलिए वह सड़ कर फूल चुकी थी. लाश के बारे में जानकारी पा कर इलाके की एसडीपीओ नीता पाडवी भी मौके पर पहुंच गईं. पुलिस ने क्राइम व फोरैंसिक टीमों को भी मौके पर बुला लिया.

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फोरैंसिक टीमों ने घटनास्थल व लाश की फोटो लेने के बाद आसपास छानबीन की, मगर मरने वाली युवती की पहचान कर पाना मुमकिन नहीं हुआ. हाईवे से सटे इलाके में रहने वालों को बुला कर और नामदेव से भी मरने वाली महिला की लाश की शिनाख्त का प्रयास किया गया, मगर कोई सफलता नहीं मिली.

पालघर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के साथसाथ यह पता करना शुरू कर दिया कि आखिर आसपास के इलाके से इस उम्र की कोई युवती गायब तो नहीं. लेकिन पालघर से ऐसी कोई युवती हाल के दिनों में गायब नहीं हुई थी और न ही जिले के किसी थाने में ऐसी कोई मिसिंग रिपोर्ट ही दर्ज थी.

उच्चाधिकारियों के निर्देश पर पालघर पुलिस स्टेशन में उसी दिन भादंसं की धारा 302 में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. जांच का दायित्व खुद थानाप्रभारी विष्णु भोए ने संभाला.

हत्या के मामले की जानकारी मिलने पर पालघर एसपी दत्तात्रेय शिंदे और एडिशनल एसपी प्रकाश गायकवाड़ ने भी पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा लिया.

युवती की लाश जिस जगह मिली थी, वह इलाका नैशनल हाईवे का था इसलिए इस बात की आशंका ज्यादा थी कि लड़की कहीं बाहर की रही हो या उस की लाश को वहां ला कर ठिकाने लगा दिया गया हो.

इसी आशंका को भांप कर एसपी दत्तात्रेय ने एसडीपीओ, नीता पाडवी की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. जिस में पालघर के थानाप्रभारी विष्णु भोए, इंसपेक्टर प्रदीप कसबे, इंसपेक्टर मनोर, सुधीर धायरकर के साथ दरजन भर पुलिसकर्मियों की टीम को शामिल किया गया.

पुलिस ने वक्त गंवाए बिना पालघर से सटे मुंबई के अलगअलग थानों में इस लाश का हवाला देते हुए गुमशुदगी की जानकारी लेनी शुरू कर दी. इसी कोशिश में एक दिन बाद पुलिस को कामयाबी भी मिल गई.

पता चला कि लाश मिलने से करीब 10 दिन पहले मुंबई के सांताक्रुज थाने में एक युवती की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई गई है. 28 साल की उस युवती का नाम कैरोल उर्फ पिंकी मिस्किटा था, जो 24 जनवरी, 2022 को अपने घर से गायब हो गई थी. वह एक काल सेंटर में काम करती थी.

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सांताक्रुज पुलिस तत्काल कैरोल उर्फ पिंकी मिस्किटा के घर पहुंच गई. सांताक्रुज की एक चाल में रहने वाली कैरोल उर्फ पिंकी मिस्किटा के घर में सिर्फ उस की बूढ़ी मां कैथरीन थी. पुलिस को वहां 1-2 रिश्तेदार भी मिले.

पुलिस टीम ने कैथरीन को पालघर पुलिस से मिली सूचना के बारे में बताया और उसे ले कर पालघर पहुंची. जहां जेजे अस्पताल की मोर्चरी में रखी गई वह लाश दिखाई जो नाले से बरामद की थी.

वह लाश इतनी सड़ चुकी थी कि परिवार वाले भी उसे पहचान नहीं सके. लेकिन कैथरीन की बूढ़ी आंखों से उस लाश की कमर पर बने दिल और तितलियों के टैटू नहीं छिप सके. उस ने झट से उस की पहचान अपनी बेटी कैरोल के रूप में कर दी.

क्योंकि एक मां होने के कारण कैथरीन को यह बात इसलिए याद थी कि अपनी एक दोस्त के कहने पर जब कैरोल ने 4 साल पहले ये टैटू अपनी कमर पर गुदवाया था तो उस की बेटी को 2-3 दिन काफी तकलीफ रही थी.

लाश की पहचान होते ही पालघर पुलिस को उम्मीद बंधी कि अब वह जल्द ही उस की हत्या की गुत्थी सुलझा लेगी. पुलिस को इस ब्लाइंड मर्डर केस में

लाश की पहचान होने से एक लीड मिल चुकी थी. पालघर पुलिस ने कैरोल की मां कैथरीन से पूछताछ शुरू कर दी. कैथरीन ने पुलिस को बताया कि उन की बेटी का पिछले 5 सालों से मुंबई के ही 27 साल के एक लड़के जिको मिस्किटा से अफेयर चल रहा था. उन्होंने कहा कि उन की बेटी का कत्ल जिको ने ही किया है, क्योंकि दोनों में अफेयर होने के बावजूद उन का रिश्ता पिछले कुछ महीनों से बहुत अच्छा नहीं चल रहा था.

कैथरीन ने पुलिस को बताया कि 24 जनवरी को कैरोल स्कूटी ले कर घर से निकली थी और उस ने कहा था कि वह डाक्टर को अपनी कुछ मैडिकल रिपोर्ट्स दिखाने जा रही है. लेकिन फिर इस के बाद वह वापस नहीं लौटी.

कैथरीन ने बताया कि उसी रात करीब 8 बजे उस ने फोन कर यह बताया था कि उसे लौटने में थोड़ी देर हो जाएगी. वह अपने किसी दोस्त के साथ है. लेकिन कैरोल सुबह तक घर नहीं लौटी. कई बार उस का फोन मिला कर बात करने की कोशिश की, मगर उस का फोन लगातार बंद आता रहा. तब थकहार कर वह सांताक्रुज थाने पहुंची और बेटी के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही.

सांताकु्रज की पुलिस उस दिन अपने थाने में निर्भया हेल्पलाइन के उद्घाटन में इतनी बिजी थी कि उस ने कैथरीन की तहरीर तो ले ली, लेकिन गुमशुदगी दर्ज नहीं की और उसे बाद में आने को कहा.

कैरोल के लापता होने की बात सुन कर आसपास में रहने वाले उन के रिश्तेदार भी घर आ गए. पास में ही रहने वाली कैरोल की 2 हमउम्र कजिन सिस्टर सरिता और मैलोरिना भी वहां आ गईं.

कैरोल दिल की हर बात अपनी इन दोनों बहनों को बताती थी. उन्होंने भी कैथरीन को कुछ नहीं बताया. सभी को पता था कि कैरोल का जिको से प्रेम संबध है. इसलिए एक आशंका यह भी हुई कि कहीं कैरोल जिको के साथ भाग तो नहीं गई.

इसी आशंका के कारण कैथरीन ने अपने रिश्तेदारों के साथ कैरोल के कमरे की तलाशी लेनी शुरू कर दी. हैरानी की बात यह थी कि कमरे में कैरोल के सारे कपड़े व सामान जस के तस रखे थे. इस से साफ था कि वह कहीं भागी नहीं है.

लेकिन कमरे की तलाशी लेते हुए अचानक कैथरीन को एक डायरी में रखा 2 पन्ने का एक पत्र मिला जो शायद 1-2 दिन पहले कैरोल ने जिको को लिखा था, मगर वह उसे शायद अभी दे नहीं पाई थी.

पत्र पढ़ते ही कैथरीन तथा सभी रिश्तेदारों के सामने कई बातें साफ हो गईं. परिवार समझ गया कि हो न हो कैरोल के लापता होने की वजह जिको ही है.

कैथरीन समझ गई कि पुलिस आसानी से बेटी की गुमशुदगी दर्ज नहीं करेगी, इसलिए वह अपने कुछ रिश्तेदारों व इलाके की जानीमानी सामाजिक कार्यकर्ता और एक एनजीओ की संचालिका अनीता शेट्टी को ले कर सांताक्रुज थाने पहुंच गई.

अनीता शेट्टी ने थाने पहुंचने से पहले ही ऊंची पहुंच रखने वाले अपने जानकारों से उच्चाधिकारियों को फोन करवा दिया था. इसलिए कैथरीन की शिकायत के बाद सांताक्रुज थाने के सीनियर इंसपेक्टर नागेश्वर गनोरे ने कैरोल की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

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जब कैथरीन ने शक जताया कि उन्हें अपनी बेटी के लापता होने में उस के प्रेमी जिको पर शक है तो इंसपेक्टर नागेश्वर ने उस का कारण पूछा. जवाब में कैथरीन ने वह पत्र उन्हें सौंप दिया, जो कैरोल ने जिको को देने के लिए लिखा था.

इस पत्र में जिको की बेवफाई के बारे में लिखा था. लिहाजा इंसपेक्टर नागेश्वर गनोरे ने पुलिस की एक टीम को भेज कर विले पार्ले में रहने वाले जिको को पूछताछ के लिए बुलवा लिया.

लेकिन जिको से पूछताछ में कुछ ज्यादा हासिल नहीं हो सका. लिहाजा उसे क्लीन चिट दे कर छोड़ दिया गया.

पुलिस का रवैया कमोबेश वैसा ही रहा, जैसा हेल्पलाइन की शुरुआत होने से पहले था. कैथरीन लगभग हर रोज अपनी बेटी के मिलने की उम्मीद में थाने जाती, लेकिन शाम को खाली हाथ लौट आती. इसी तरह करीब 10 दिन बीत गए.

लेकिन जब सांताक्रुज पुलिस को पालघर पुलिस से पता चला कि पालघर में एक लड़की की लाश मिली है तो सांताक्रुज पुलिस कैथरीन को ले कर जेजे अस्पताल पहुंची, जहां कैथरीन ने लाश की शिनाख्त अपनी बेटी के रूप में की.

चूंकि पालघर पुलिस को पता चल चुका था कि सांताक्रुज पुलिस जिको से कब की पूछताछ कर उसे क्लीन चिट दे चुकी है. तब ऐसे में पालघर पुलिस ने जिको पर हाथ डालने से पहले अपने तौर पर थोड़ी और तफ्तीश करने का फैसला किया.

इस मामले की जांच के लिए गठित की गई विशेष टीम ने सब से पहले अहमदाबाद-मुंबई हाईवे पर मौकाएवारदात के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक करनी शुरू की. दूसरी तरफ कैरोल के घर वालों से थोड़ी और पूछताछ कर के कुछ नई जानकारी हासिल की गई और कैरोल के मोबाइल नंबर हासिल किया.

कैरोल की लाश पुलिस को जिस स्थान पर मिली थी, वहां आसपास तो कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां सीसीटीवी कैमरे लगे हों, लेकिन वहां से आधा किलोमीटर दूर कैरोल के घर जाने वाले रास्ते पर मार्केट एरिया शुरू होता है.

पालघर पुलिस ने वहां मुख्यमार्ग पर लगे एक किलोमीटर तक के सभी सीसीटीवी कैमरों की 24 व 25 जनवरी की फुटेज खंगालनी शुरू कर दीं.

पुलिस टीम की ये कोशिश रंग लाई. क्योंकि काफी मेहनत के बाद पुलिस को कुछ कैमरों से कुछ काम के सीसीटीवी फुटेज हाथ लगे, इत्तफाक से उस में कैरोल जिको के साथ मौकाएवारदात की तरफ जाती हुई दिखाई दे रही थी.

घर वालों को ये फुटेज दिखाई गई तो उन्होंने कैरोल के साथ फुटेज में स्कूटी पर साथ में दिख रहे जिको की पहचान कर दी.

दिलचस्प बात यह थी कि सभी कैमरों की फुटेज में बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार एक शख्स लगातार स्कूटी के समीप चलता दिख रहा था मानो वह उन दोनों को फालो कर रहा हो.

सीसीटीवी की फुटेज मिलने के बाद पुलिस की तफ्तीश जिको पर आ कर टिक गई. लेकिन उस से पूछताछ करने से पहले पुलिस थोड़ी और तसदीक कर लेना चाहती थी.

पुलिस ने कैरोल तथा जिको के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पुलिस का शक और भी ज्यादा पुख्ता हो गया. क्योंकि दोनों की उस दिन कई बार बात हुई थी और 24 जनवरी की शाम जिस दिन कैरोल अपने घर से लापता हुई, उस के फोन की लोकेशन भी कैरोल के फोन की लोकेशन के साथ थी.

इसी बीच कैरोल के घर वालों ने जिको के नाम अपनी बेटी के हाथों लिखा गया वह खत भी पुलिस को सौंप दिया, जिस से पूरी कहानी साफ हो रही थी. कैरोल के हाथों जिको के नाम लिखा वह खत पुलिस के लिए एक बड़ा क्लू और एक एविडेंस बन गया. क्योंकि इस से पता चला कि कैरोल और जिको के रिश्ते में कुछ ठीक नहीं चल रहा था.

अब पालघर थाने के जांच अधिकारी विष्णु भोए ने जिको को हिरासत में लेने का फैसला कर लिया. पुलिस टीम जिको को विले पार्ले से ले कर पालघर आ गई. उस से पूछताछ शुरू हो गई. जब उसे वारदात वाले दिन की पालघर के मार्केट एरिया की सीसीटीवी फुटेज व उस के फोन की काल डिटेल्स दिखाई गई

तो थोड़ी हीलाहवाली के बाद वह निरुत्तर हो गया और उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुलिस के सामने जिको ने जो कहानी सुनाई, वह रोंगटे खड़े करने वाली थी. उस ने पुलिस को बताया कि वह कैरोल से पीछा छुड़ाना चाहता था. इसलिए उस ने उस की हत्या का भयानक काम किया.

विले पार्ले निवासी जिको मिस्किटा (27) और कैरोल उर्फ पिंकी मिस्किटा (28) के बीच 2017 से दोस्ती व प्रेम संबंध थे. कैरोल के पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी.

एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाली कैरोल की विधवा मां की वह इकलौती औलाद थी. मां ने अपनी बेटी को कड़ी मेहनत कर के पाला और अच्छी तालीम दिलाई. पिछले कई सालों से कैरोल एक कालसेंटर में नौकरी करती थी.

2017 में एक दोस्त के जरिए कैरोल की जानपहचान जिको मिस्किटा से हुई थी. जल्द ही दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. चूंकि दोनों ही एक धर्म एक जाति के थे और हमउम्र भी, इसलिए दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें खाईं.

कुछ ही महीनों में कैरोल जिको से इतना प्यार करने लगी कि उस के बिना जीने की कल्पना से भी वह सिहर उठती. कैरोल ने अपनी मां और चचेरी बहन सरिता से भी जिको को मिलवा कर अपने मन की बात बता दी थी कि वे दोनों शादी करना चाहते हैं.

दोनों के बीच आत्मीय रिश्ते कब जिस्मानी रिश्तों में बदल गए, पता ही नहीं चला. वक्त तेजी से गुजरता रहा. जिको पहले एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन कोरोना महामारी के पहले दौर में जब लौकडाउन लगा तो उस की नौकरी चली गई. लिहाजा वह अपने पिता के कैटरिंग के कारोबार में उन का हाथ बंटाने लगा.

इधर, कैरोल को जिको से प्रेम संबंधों में काफी वक्त गुजर चुका था लिहाजा कैरोल ने उस पर दबाव डालना शुरू कर दिया कि वो उस से शादी करे.

जिको ने जब यह बात अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने कैरोल के साथ उस की शादी करने से इंकार कर दिया. क्योंकि वह उस की शादी एक अमीर परिवार में करना चाहते थे. जबकि कैरोल एक विधवा मां की साधारण परिवार की बेटी थी.

परिवार की तरफ से कैरोल के रिजेक्ट करने के बाद जिको ने भी कैरोल से दूरी बना कर उसे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया. क्योंकि उसे लगने लगा था कि जिस रास्ते में जाना ही नहीं है तो उस पर आगे बढ़ने से क्या फायदा.

इसी दौरान जिको की दोस्ती एक बड़े परिवार की लड़की कामिया (परिवर्तित नाम) से हो गई. जल्द ही दोनों गहरी मोहब्बत में डूब गए.

इधर कैरोल को जिको के व्यवहार से लगने लगा कि शायद जिको उस से शादी नहीं करना चाहता. क्योंकि एकदो बार जब भी कैरोल ने घुमाफिरा कर जिको से शादी की बात करनी चाही तो उस ने बात को ऐसा बदला कि शादी की बात आई गई हो गई.

पिछले एक साल से इसी बात को ले कर कैरोल बेहद उदास रहने लगी थी. क्रिसमस के त्यौहार पर हर बार कैरोल अपनी बहन सरिता के साथ बड़े उत्साह से खरीदारी करती थी और बाहर खाने के लिए जाती थी. लेकिन इस बार क्रिसमस आने को था इस के बावजूद कैरोल में न तो कोई उत्साह था और न ही वो खुश दिख रही थी. उस ने कुछ दिनों से बाहर निकलना ही बंद कर दिया, ऐसा लगता था कि वह किसी बात से दुखी है.

इधर कैरोल के सामने धीरेधीरे यह बात भी साफ हो गई कि जिको इन दिनों किसी दूसरी गर्लफ्रैंड के साथ रिलेशनशिप में है. इस के बाद तो उस के दिलोदिमाग में पूरी तरह उदासी भर गई. लेकिन कैरोल अपनी मोहब्बत को इतनी आसानी से नहीं खोना चाहती थी.

लिहाजा उस ने एक दिन जिको से साफ कह दिया कि अगर उस ने उस के अलावा किसी दूसरी लड़की से शादी की तो वह उस के खिलाफ पुलिस में शिकायत कर देगी कि उस ने शादी के नाम पर उस की इज्जत से खिलवाड़ किया है.

यह दबाव जब कैरोल की तरफ से जिको पर लगातार बनने लगा तो वह परेशान हो उठा, उसे अब कैरोल अपने जी का जंजाल लगने लगी. दरअसल, न चाहते हुए भी जिको को दबाव में आ कर कैरोल से मुलाकात करनी पड़ती थी.

जब उस के पास जौब थी तो वह कैरोल के ऊपर दिल खोल कर पैसा खर्च करता था. लेकिन इन दिनों बेरोजगार होने के कारण उस की जेब खाली रहती थी और कैरोल फैशनपरस्त तथा दिल खोल कर पैसा खर्च करने की आदी हो चुकी थी.

वैसे भी अब जिको की जिंदगी में कैरोल का कोई महत्त्व नहीं रह गया था, ऐसे में मेलमुलाकात के दौरान जब कैरोल उस से महंगी फरमाइशें करती तो वह कुढ़ कर रह जाता.

जिको ने कई बार कैरोल को अपनी बेरोजगारी की मजबूरी भी समझाई, लेकिन वह कुछ समझने के लिए तैयार नहीं थी. उस की इस आदत से जिको तंग आ चुका था.

लिहाजा जिको ने कुछ दिन पहले कैरोल की हत्या कर के उस से छुटकारा पाने का मन बना लिया. इसी के तहत उस ने एक साजिश रची.

इस के तहत जिको ने 24 जनवरी से एकदो दिन पहले कैरोल से फोन पर लगातार बातचीत करनी शुरू कर दी ताकि उसे लगे कि जिको वापस उस के पास लौट आया है.

कैरोल भी जिको के इरादों से अंजान यह सोच कर खुश थी कि चलो कैसे भी हो उस की मोहब्बत उसे वापस तो मिल गई. अपनी इसी साजिश के तहत जिको ने एक दिन पहले कैरोल से सुबह से ले कर शाम तक करीब 5 बार बात की.

उस ने बातचीत में यही दर्शाया कि जैसे वह कैरोल को बहुत मिस कर रहा है. कैरोल से जिको ने कहा था कि वह अगले दिन यानी 24 जनवरी को उस के साथ लौंग ड्राइव पर जाना चाहता है. इस दौरान वे साथ में डिनर करेंगे और अपने आगे के भविष्य के बारे में बात करेंगे.

कैरोल अपने टूटते रिश्ते को पटरी पर लौटते देख खुश थी, इसलिए उस ने खुशीखुशी हां भर दी थी.

24 जनवरी, 2022 को कैरोल अपनी स्कूटी और लैपटाप वाला बैग ले कर घर से निकली तो उस ने अपनी मां को यही बताया कि वो मलाड में अपने कुछ मैडिकल टैस्ट कराने जा रही है वहां से एक दोस्त के साथ घूमने जाएगी.

कैरोल तय जगह पर जिको से मिली तो उसे इस बात की जरा सी भी भनक नहीं लगी कि जिको का दोस्त देवेंद्र बुलेट से उन की स्कूटी का पीछा कर रहा है.

कैरोल, देवेंद्र बाबू से परिचित थी क्योंकि वह विले पार्ले से पहले विरार में रहता था और जिको का सब से करीबी दोस्त था. देवेंद्र बाबू जिको के पिता के कैटरिंग कारोबार में सहयोगी था.

कैरोल ने 24 जनवरी को घर से निकलने के बाद दिन में 2 बार अपनी मां को फोन किया था, लेकिन उस ने यह नहीं बताया कि वह किस के साथ है और कब लौटेगी. इस दौरान जिको ने उसे कई जगह घुमाया और फिर लांग ड्राइव के बहाने उस की स्कूटी खुद ड्राइव करते हुए मुंबई-अहमदाबाद हाईवे पर पालघर की तरफ ले गया.

पूछने पर उस ने बताया कि वह आज उसे एक खूबसूरत जगह ले जा रहा है

जो उन के जीवन का सब से यादगार पल होगा.

इस दौरान रात होने लगी थी. तो कैरोल ने अपनी मां को फोन कर के बता दिया कि वह अपने किसी दोस्त के साथ है, आने में उसे थोड़ी देर हो जाएगी.

लेकिन जब रात में काफी देर तक कैरोल घर नहीं पंहुची तो रात करीब साढे़ 12 बजे कैथरीन ने उस के मोबाइल पर फोन किया, तब वह स्विच्ड औफ मिला.

इधर पालघर में वाघोबा के पास एक नाले के किनारे हाईवे पर खड़े हो कर रात करीब 8 बजे जिको और कैरोल बातचीत करने लगे. इसी दौरान दोनों के बीच शादी को ले कर एक बार फिर बात होने लगी.

जिको तो सोच कर आया ही था कि आज कैरोल का काम तमाम करना है लिहाजा उस ने सड़क किनारे सुनसान जगह पर कैरोल को दबोच कर उस का गला दबाना शुरू कर दिया.

कैरोल छटपटाई, लेकिन जिको की मजबूत पकड़ से छूट न सकी और थोड़ी देर में ही उस का शरीर ढीला पड़ गया. चंद कदम की दूरी पर खड़ा उस का दोस्त देवेंद्र बाबू यह सब देख रहा था. वह भी पास आ गया.

देवेंद्र अपने साथ कैटरिंग के काम में इस्तेमाल होने वाला चाकू ले कर आया था. उसे शक था कि कैरोल अभी मरी नहीं है इसलिए उस ने जेब से चाकू निकाल कर कैरोल के शरीर पर कई प्रहार किए.

कैरोल पर चाकू के प्रहार इतनी मजबूती से किए गए थे कि चाकू का हैंडल टूट गया.

चाकू का निचला हिस्सा कैरोल के शरीर में ही रह गया, इसीलिए खाली हैंडल को देवेंद्र ने वहीं जंगल में फेंक दिया और चाकू लाश में ही छोड़ दिया.

जब यकीन हो गया कि वह मर चुकी है तो उस ने पास में ही पड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठा कर कैरोल के चेहरे पर कई वार किए ताकि कोई उसे पहचान न सके. इस के बाद दोनों ने मिल कर कैरोल के शव को उठा कर नाले में फेंक दिया.

कैरोल की हत्या करने के बाद जिको व देवेंद्र ने उस का मोबाइल फोन स्विच औफ कर दिया. उस का मोबाइल, लैपटाप तथा स्कूटी ले कर देवेंद्र चला गया और देवेंद्र की बुलेट ले कर जिको अपने घर चला गया.

जिको से पूछताछ के बाद पुलिस ने विरार से देवेंद्र बाबू को भी गिरफ्तार कर लिया. जिस के बाद दोनों को पुलिस ने कोर्ट में पेश कर के 10 फरवरी, 2022 तक पुलिस रिमांड में ले लिया. रिमांड के दौरान कैरोल की स्कूटी और उस का लैपटाप व फोन, हत्या में प्रयुक्त चाकू का हत्था भी बरामद कर लिया.

पालघर पुलिस ने ठोस रूप से कैरोल की पहचान को स्थापित करने के लिए उस की मां कैथरीन का डीएनए नमूना भी लिया, जिस से आरोपी को अदालत में यह कहने का मौका न मिले कि जिस शव को पुलिस कैरोल का बता रही है, वह उस का नहीं है.

इधर हत्याकांड का खुलासा होने के बाद जब सांताक्रुज पुलिस की लापरवाही की बात सामने आई तो कैरोल के परिवार तथा सांताकु्रज इलाके में रहने वाले लोगों ने पुलिस की लापरवाही तथा जिको व उस के साथी को कड़ी सजा देने की मांग करते हुए एक कैंडल मार्च भी निकाला.

सांताकु्रज पुलिस की लापरवाही से यह लाश पूरे 10 दिनों तक नाले में पड़ीपड़ी सड़ती रही. लेकिन आखिरकार इस लाश ने ही कातिल का पता दे दिया और कत्ल के साथ कातिल की सच्चाई भी सामने आ गई.

पुलिस ने इस मामले में सबूत मिटाने की धारा 201 जोड़ कर दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस की जांच व पीडितों, आरोपियों के बयान पर आधारित

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 1

बाजार के बीचोबीच स्थित रामलीला मैदान में दोस्तों के साथ रामलीला देख रहे दिनेश पटेल ने कहा, ‘‘भाइयो, मैं तो अब जा रहा हूं. मैं

ट्यूबवेल चला कर आया हूं. मेरा खेत भर गया होगा. इसलिए ट्यूबवेल बंद करना होगा, वरना बगल वाले खेत में पानी चला गया तो काफी नुकसान हो जाएगा.’’

‘‘थोड़ी देर और रुक न यार, रामलीला खत्म होने वाली है. हम सब साथ चलेंगे. तुम्हें तुम्हारे खेतों पर छोड़ कर हम सब गांव चले जाएंगे.’’ दिनेश के बगल में बैठे उस के दोस्त कान्हा ने उसे रोकने के लिए कहा, ‘‘अब थोड़ी ही रामलीला बाकी है. पूरी हो जाने दो.’’

दिनेश गुजरात के बड़ौदा शहर से करीब 15-16 किलोमीटर दूर स्थित मंजूसर कस्बे में रहता था. मंजूसर कभी शामली तहसील जाने वाली सड़क किनारे बसा एक गांव था. लेकिन जब गुजरात सरकार ने यहां जीआईडीसी (गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन) बना दिया तो यहां छोटीबड़ी तमाम इंडस्ट्रीज लग गईं, जिस की वजह से मंजूसर गांव एक कस्बा बन गया.

दिनेश की जमीन सड़क से दूर थी, जिस पर वह खेती करता था. सिंचाई के लिए उस ने अपना ट्यूबवेल भी लगवा रखा था. बगल वाले खेत में पानी चला जाता तो उस का काफी नुकसान हो जाता, इसलिए वह कान्हा के रोकने पर भी वह नहीं रुका. एक हाथ में टौर्च और दूसरे हाथ में डंडा ले कर वह रामलीला से खेतों की ओर चल पड़ा.

उस समय रात के लगभग डेढ़ बज रहे थे. जिस रास्ते से वह जा रहा था, उस के दोनों ओर ऊंचेऊंचे सरपत खड़े थे, जिन में झींगुर अपनी पूरी ताकत से अपना राग अलाप रहे थे. कोई अगर पीछे से सिर में टपली मार कर चला जाए, तब भी पहचान में न आए उस समय इस तरह का अंधेरा था. उस सुनसान रास्ते पर दिनेश अपनी धुन में चला जा रहा था.

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मुख्य रास्ते से जैसे ही वह अपने खेत के रास्ते की ओर मुड़ा, अंधेरे में भी उसे कुछ ऐसा दिखाई दिया, जिसे देख कर वह चौंक उठा. दिनेश को लगा कि रास्ते में कोई जानवर लेटा है. उस ने हाथ में ली लकड़ी को मजबूती से पकड़ कर दूसरे हाथ में ली टौर्च जलाई तो उस ने जो दृश्य देखा, उस के छक्के छूट गए.

उसे देखते ही वह वापस रामलीला मैदान की ओर भागा. जितने समय में वह खेत के रास्ते तक पहुंचा था, उस के एक चौथाई समय में ही वह रामलीला देख रहे दोस्तों के पास पहुंच गया था. लेकिन तब तक रामलीला खत्म हो चुकी थी. पर अभी उस के दोस्त कान्हा, करसन, रफीक और महबूब रामलीला मैदान में ही बैठे थे.

दिनेश को इस तरह भाग कर आते देख कर सभी हैरानी से उठ खड़े हुए. कान्हा ने पूछा, ‘‘क्या हुआ दिनेश, तू इतनी जल्दी क्यों वापस आ गया? तू तो बहुत डरा हुआ लग रहा है?’’

‘‘डरने की ही बात है,’’ डरे हुए दिनेश ने हांफते हुए कहा,‘‘जल्दी चलो, मेरे खेत वाले रास्ते में एक औरत की लाश पड़ी है. मैं ने अपनी आंखों से देखी है, उस के आसपास सियार घूम रहे हैं.’’

‘‘तेरा दिमाग तो ठीक है, तू ये क्या बक रहा है? किस की लाश हो सकती है?’’ करसन ने हैरानी जताते हुए कहा.

‘‘करसन भाई, मुझे क्या पता वह किस की लाश है,’’ हांफते हुए दिनेश ने कहा.

कान्हा ने जल्दी से अपनी बुलेट स्टार्ट की तो अन्य दोस्तों ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. दिनेश कान्हा के पीछे उस की बुलेट पर बैठ गया तो सभी दिनेश के खेत की ओर चल पड़े. दिनेश के खेत के रास्ते पर जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंचते ही दिनेश ने चिल्ला कर बुलेट रुकवाते हुए कहा, ‘‘रुकोरुको यहीं वह लाश पड़ी है.’’

सभी ने अपनीअपनी मोटरसाइकिलें  मुख्य रास्ते पर खड़ी कर दीं और उस ओर चल पड़े, जहां दिनेश ने लाश पड़ी होने की बात कही थी. जहां लाश पड़ी थी, वहां पहुंच कर दिनेश ने टौर्च जलाई तो वहां लाश नहीं थी. लाश गायब थी. लाश न देख कर दिनेश हतप्रभ रह गया. हैरान होते हुए उस ने कहा, ‘‘अरे यहीं तो लाश पड़ी थी. इतनी देर में कहां चली गई?’’

‘‘अरे यार दिनेश, मैं तो तुम्हें बहुत बहादुर समझता था, पर तुम तो बहुत डरपोक निकले. पता नहीं क्या देख लिया कि तुम्हें लगा लाश पड़ी है. लगता है, जागते में सपना देखा है. यहां कहां है लाश?’’ कान्हा ने कहा.

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कान्हा की बात खत्म होते ही करसन ने कहा, ‘‘भले आदमी तुम्हें वहम हुआ है. यहां कहां है लाश? लाश होती तो इतनी देर में कहां चली जाती. सियार तो उठा कर ले नहीं जा सकता. घसीटने का भी यहां कोई निशान नहीं है.’’

दिनेश सोचने लगा कि कुछ तो गड़बड़ हुई है. पर अब उस के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है था कि वह दोस्तों को विश्वास दिला देता कि उस ने जो देखा था, वह सच था.

दिनेश यही सब सोच रहा था कि कान्हा ने बुलेट स्टार्ट की तो दिनेश उस के पीछे बैठ गया. बाकी सब ने भी अपनीअपनी बाइकें स्टार्ट कर लीं. सब के सब दिनेश के खेत पर जा पहुंचे. थोड़ी देर बातचीत कर के सभी अपनेअपने घर चले गए.

दिनेश ट्यूबवेल पर पड़ी चारपाई पर लेट गया. रात का चौथा पहर हो चुका था. दिनेश की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. बारबार उस की आंखों के सामने उस लाश का दृश्य आजा रहा था. इस बीच कब दिनेश की आंख लग गई, उसे पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे मंजूसर बसअड्डे पर स्थित केतन की चाय की दुकान पर कान्हा, करसन, महबूब और अन्य दोस्त इकट्ठा हुए तो रात की बात याद कर के सब दिनेश की हंसी उड़ाने लगे. उसी बीच रफीक ने आ कर कहा, ‘‘अरे यार कान्हा, अर्जुन काका के यहां क्या हुआ है, जो तमाम लोग इकट्ठा हैं?’’

कान्हा अर्जुन के घर की ओर चला तो बाकी के दोस्त भी उस के पीछेपीछे चल पड़े. कुछ देर में यह टोली अर्जुन के घर पहुंच गई. गांव के तमाम लोग अर्जुन के घर के सामने इकट्ठा थे.

उन के बीच अर्जुन मुंह लटकाए सिर पर हाथ रखे बैठा था. पहुंचते ही कान्हा ने सीधे पूछा, ‘‘क्या हुआ अर्जुन काका? इस तरह मुंह लटका कर क्यों बैठे हो?’’

‘‘अरे, हमारे मोहन की बहू रात को रामलीला देखने गई थी. अभी तक लौट कर नहीं आई है. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा है,’’ अर्जुन ने बताया.

कान्हा सोच में पड़ गया. उसे तुरंत पिछली रात की बात याद आ गई. उस के मन में सीधा सवाल उठा कि कहीं दिनेश की बात सच तो नहीं थी?

थोड़ी ही देर में यह खबर एकदूसरे के मुंह से होते हुए पूरे कस्बे में फैल गई.

अर्जुन से मामला जान कर कान्हा अपने दोस्तों के साथ सीधे दिनेश के खेत पर पहुंचा. दिनेश अभी भी खेत पर ही था. उस के पास पहुंच कर कान्हा ने कहा, ‘‘यार दिनेश, रात वाली बात पर अब मुझे विश्वास हो रहा है. तू जो कह रहा था, लगता है वह सच था.’’

‘‘मुझे लगता है, रात को किसी ने अर्जुन काका की विधवा बहू सविता की इज्जत लूट कर उसे मार डाला है.’’ अंदाजा लगाते हुए कान्हा के साथ आए करसन ने कहा, ‘‘एक काम करते हैं, चलो यह बात अर्जुन काका को बताते हैं.’’

दिनेश पटेल ने करसन की हां में हां मिलाई तो कान्हा ने उन सब को चेताते हुए कहा, ‘‘भई देख लेना दिनेश, कहीं यह बवाल अपने माथे ही न पड़ जाए. अर्जुन काका बहुत काईयां आदमी है. बिना कुछ समझेबूझे हम लोगों के सिर ही न आरोप मढ़ दे.’’

‘‘नहीं यार कान्हा, हम लोगों के अलावा और कोई यह बात जानता भी तो नहीं है. इसलिए यह बात हमें अर्जुन काका को जरूर बतानी चाहिए.’’ दिनेश ने दृढ़ता के साथ अपना निर्णय दोस्तों को सुना दिया.

वहां से सभी सीधे अर्जुन के घर पहुंचे. उस समय अर्जुन घर में अकेला ही था. तभी दिनेश ने रामलीला देख कर लौटते समय अपने खेत वाले रास्ते में जो लाश देखी थी, पूरी बात अर्जुन को बता दी. दिनेश की बात सुन कर अर्जुन के तो जैसे होश ही उड़ गए. उस का शरीर ढीला पड़ गया. उस के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ दिखाई देने लगीं.

अर्जुन को इस तरह परेशान देख कर उसे आश्वस्त कर के सलाह देते हुए दिनेश ने कहा, ‘‘काका मेरी मानो तो अभी भादरवा थाने जा कर रात की पूरी बात बता कर सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

दिनेश और उस के दोस्तों के सामने ही अर्जुन ने तुरंत कपड़े बदले और गांव के प्रधान को साथ ले कर सीधे थाना भादरवा पहुंच गया. थानाप्रभारी भोपाल सिंह जडेजा को पूरी बात बता कर उस ने अपनी बहू सविता के गायब होने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट दर्ज होने के बाद जब थानाप्रभारी ने उस से पूछा कि उसे किसी पर शक है तो उस ने कहा, ‘‘जी साहब…’’

‘‘किस पर शक है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मुझे अपने ही गांव के दिनेश पटेल पर शक है.’’ अर्जुन ने पूरे आत्मविश्वास के साथ दिनेश का नाम ले लिया था.

अर्जुन के मुंह से दिनेश का नाम सुन कर उस के साथ आया ग्रामप्रधान अवाक रह गया. पर वह कुछ बोल नहीं सका. क्योंकि वह जानता था कि इस समय थानाप्रभारी के सामने उस का कुछ बोलना ठीक भी नहीं है.

थाने के बाहर आते ही ग्रामप्रधान ने दिनेश का बचाव करते हुए कहा, ‘‘क्यों अर्जुन, तुम ने दिनेश का नाम क्यों लिया? वह लड़का तो इस तरह का नहीं है.’’

‘‘नहीं… नहीं प्रधानजी, मैं पागल थोड़े ही हूं जो किसी को गलत फंसा दूंगा. मोहन के मरने के बाद सविता जब से विधवा हुई है, जब देखो तब दिनेश उस से मिलने आता रहता था, उस के हिस्से की खेतों को जोतवाता था, कहीं बाहर जाना होता तो उसे साथ ले कर जाता था. पर बहू बेचारी भोलीभाली थी, आखिर उस के जाल में फंस ही गई. दिनेश ने उस के साथ मनमानी कर के कांटा निकाल फेंका. अब वह लाश देखने का नाटक कर रहा है.’’ अर्जुन ने दिनेश पर गंभीर आरोप लगाते हुए ग्रामप्रधान से कहा.

सिसकी- भाग 5: रानू और उसका क्या रिश्ता था

‘यदि आप ने हमारे अस्पताल की रकम नहीं चुकाई तो हम आप के घर वसूली करने वालों को भेज देंगे, फिर आप जानो यदि वे कोई गुंडागर्दी करते हैं तो…’

मुन्नीबाई फिर भी चुप ही रही. अस्पताल वाला कर्मचारी बहुत देर तक ऐसे ही धमकाता रहा. कोई जवाब नहीं मिला तो उस ने फोन रख दिया.

डैडबौडी नहीं लाई जा सकी. पिताजी बहुत देर तक रोते रहे. फिर चुप हो गए. पर चिंटू को संभाल पाना मुन्नीबाई के लिए कठिन हो रहा था. वह रहरह कर पूछता, ‘काकी, मम्मीपापा कब आएंगे, मु?ो उन की बहुत याद आ रही है?’

मुन्नीबाई कुछ नहीं बोलती. वह अपने आंसुओं को अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ लेती. रानू तो उस से दूर हो ही नहीं रही थी. वह उसे अपनी छाती से चिपकाए रहती. परिवार के सभी लोगों को घटना के बारे में पता लग चुका था, पर आया कोई नहीं. महेंद्र भी नहीं आया और न ही बहन आई.

मुन्नीबाई को भी अब अपने घर

जाना था. वह ऐसे कब तक रह

सकती थी, पर वह बच्चों को छोड़ कर जा ही नहीं पा रही थी. घटना के चौथे दिन महेंद्र आए थे अपनी कार में. इस के थोड़ी ही देर बाद बहन भी आई.

‘देखो मुन्नीबाई, हम लोग 2 दिन रुकेंगे, तुम अपने घर चली जाओ.’

वैसे तो मुन्नीबाई का मन घर जाने को हो रहा था पर जिस हावभाव से महेंद्र और उन की बहन आई थीं, उस से वह विचलित हो रही थी, पर उसे जाना ही पड़ा. आखिर वह घर की केवल नौकरानी ही तो थी. चिंटू और रानू उसे छोड़ ही नहीं रहे थे. बड़ी मुश्किल से वह वहां से आ पाई. आते समय उस ने दोनों बच्चों के सिर पर हाथ फेरा और अपने आंसुओं को दबाते हुए लौट आई.

मुन्नी दूसरे दिन ही फिर वहीं पहुंच गई. अपने घर में उस का मन लग ही नहीं रहा था. उसे रहरह कर बच्चों की याद आ रही थी. वह जब सहेंद्र के घर पहुंची तब उसे घर के सामने एक छोटा हाथी खड़ा दिखा. वह चौंक गई, ‘अरे, इस में क्या आया है. कहीं ऐसा तो नहीं कि साहबजी की डैडबौडी ही आई हो…’ वह हड़बड़ाहट में सीधे घर के अंदर घुस गई. घर के अंदर का सारा सामान अस्तव्यस्त हालत में था. दोनों बच्चे एक कोने में खामोश बैठे थे. घर का बहुत सारा सामान पैक हो चुका है. मुन्नीबाई भौंचक रह गई, ‘अरे, आप क्या घर खाली कर कहीं जा रहे हैं?’

‘नहीं, पर अब भैया और भाभी हैं नहीं तो इतने सामान की क्या जरूरत है. बेकार में रखारखा खराब हो जाएगा, इसलिए इस सामान को हम ले जा रहे हैं,’ महेंद्र ने सामान पैक करते हुए ही बोला था. उस ने मुन्नीबाई के चेहरे पर आ रहे भावों को देखा तक नहीं.

मुन्नीबाई का चेहरा पीला पड़ चुका था. वह सम?ा गई थी कि ये लोग अब साहबजी के घर को लूट रहे हैं. ‘पर साहबजी, बच्चे और पिताजी तो हैं ही न, उन्हें तो सामान की आवश्यकता पड़ेगी न.’

‘उन्हें जितने सामान की आवश्यकता है उतना छोड़ दिया है,’ अब की बार बहन ने उत्तर दिया था.

मुन्नीबाई कुछ नहीं बोली. वह अपनी हैसियत जानती थी. दोनों बच्चे, पिताजी और मुन्नीबाई खामोशी के साथ अपने ही घर को लुटते देखते रहे.

सामान ले जाने वाले वाहन के चले जाने के बाद दोनों ही अपनीअपनी कार में बैठ कर निकल गए. जाते समय उन्होंने न तो बच्चों से कोई बात की और न ही पिताजी से. उन के जाने के बाद मुन्नीबाई ने घर के शेष बचे सामान को व्यवस्थित किया और ?ाड़ू लगाई. अब पूरा घर खाली हो चुका था. मुन्नीबाई ने दोनों बच्चों को और पिताजी को खाना खिलाया. उसे भी अपने घर लौटना था, इसलिए उस ने चिंटू को कुछ जरूरी बातें बता दी थीं.

मुन्नीबाई का भी अपना घर है और उसे कुछ और घरों में काम के लिए जाना भी था. वरना उस का मन तो इन बच्चों को छोड़ने के लिए बिलकुल नहीं हो रहा था.

मुन्नीबाई के जाने के बाद चिंटू रानू को अपनी गोद में लिटा कर दादाजी के पलंग के पास ही बैठ गया गुमसुम सा. उसे आज मम्मीपापा की बहुत याद आ रही थी पर वह अपने आंसुओं को दबाए हुए था. उसे एहसास होने लगा था कि वह घर में बड़ा है और रानू की देखभाल उसे ही करनी है.

मुन्नीबाई मजदूर महिला थी. उसे कई घरों में काम कर के इतना पैसा तो कमा ही लेना होता था कि वह अपने परिवार का पेट भर सके. इसलिए वह दोपहर तक ही चिंटू के घर आ पाती थी. उस ने चिंटू को नूडल्स बनाना और चाय बनाना सिखा दिया था ताकि जरूरत पड़ने पर वे भूखे न रह सकें. वह खुद ही अपने पैसे से कुछ सामान ले आती और दोपहर में आने के बाद खाना बना देती. शाम तक वह वहीं रुकती. रानू को नहलाती, उस के कपड़े धो देती और घर की ?ाड़ूबुहारी कर देती.

आज उसे देर हो गई थी. रानू उस की राह देख रही थी. नूडल्स बना कर तो चिंटू ने खिला दिए थे पर उसे मां की गोद चाहिए थी जिस का एहसास वह मुन्नीबाई की गोद में बैठ कर कर लेती थी. जैसे ही दरवाजा खोल कर मुन्नीबाई अंदर आई, रानू उस की गोदी में चढ़ गई. वह रो रही थी. उसे रोता देख कर चिंटू भी रोने लगा था, ‘‘मम्मी तो अब कभी नहीं आएंगी न काकी, आप भी तो मेरी मां ही हैं. आप हमें छोड़ कर मत जाया करो, प्लीज काकी.’’ मुन्नीबाई की आंखों से भी आंसू बह रहे थे. वह मन ही मन अनाथ बच्चों का सहारा बनने का संकल्प ले रही थी.

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