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नारी अब भी तेरी वही कहानी: भयानक हादसे की शिकार हुई शैली

एक भयानक हादसे ने शैली के जीवन में ऐसा जख्म दिया कि वह ताउम्र एक  झूठ ले कर चलती रही. लेकिन उस ने अपनी बेटी के नाम खत में न सिर्फ खुद के मां होने का दर्द बयान किया था बल्कि पुरुष की उन शेखियों पर चोट पहुंचाई थी जो वह नारी की स्वतंत्रता के नाम पर बघारता है.

बहुमत की जंजीर में जनहित

अगर किसी देश की जनता सुखी नहीं है, भयग्रस्त है, घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर है, उसे अपनी मरजी से पहननेओढ़ने, आनेजाने, बोलने और खाने की आजादी नहीं है तो ऐसे नागरिकों से भरा देश भले विश्व के अन्य देशों के मुकाबले मजबूत और विकसित दिखता हो परंतु वह भीतर से बिलकुल खोखला होगा. ऐसा देश एक दुखी देश ही कहलाएगा जहां जनता दबाव और प्रताड़ना की शिकार होगी, मगर उसे अपनी तकलीफ कहने तक की इजाजत नहीं होगी. सत्ता में बैठे लोग तानाशाह की तरह व्यवहार करेंगे, जनता से उन्हें कोई सरोकार नहीं होगा और दुनिया के सामने वे खुद को सब से ताकतवर दिखाने में मशगूल रहेंगे.

राष्ट्रहित के नाम पर ऐसे तानाशाह जो फैसले लेते हैं, उन से उन के देश की जनता का कोई हित नहीं जुड़ा होता है. अकसर बहुमत उन के साथ दिखता है या वे ऐसा दिखाते हैं और बहुमत की दुहाई दे कर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि वे जो कर रहे हैं उस में जनता का हित समाहित है और जनता उस फैसले की समर्थक एवं सहयोगी है. जबकि बहुमत दबाव डाल कर, डर दिखा कर, लालच दिखा कर या ?ाठे वादे कर के हासिल किया जाता है.

दरअसल राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों बिलकुल भिन्न बातें हैं. दुनिया में ऐसे कई देश हैं जहां बहुमत सत्ता के पक्ष में दिखने के बावजूद राष्ट्रहित और जनहित के मुद्दों पर सवाल उठ रहे हैं. जहां जनता सत्ता के फैसलों से आक्रोशित है, लेकिन फिर भी बहुमत सत्ता के साथ दिखता है और इस की बिना पर लिया गया फैसला राष्ट्रहित में लिया गया फैसला करार दे दिया जाता है. तीनों चीजों को गड्डमड्ड कर के एक तानाशाह बड़ी चालाकी से अपना लक्ष्य साध लेता था.

अहम सवाल यह है कि एक शासक के लिए राष्ट्रहित, जनहित और बहुमत तीनों में क्या सब से ज्यादा जरूरी है? राष्ट्रहित में उठाए गए कदमों से अगर जनता को तकलीफ हो रही है तो ऐसे राष्ट्रहित के क्या माने हैं? बहुमत सत्ता के साथ होने पर भी यदि जनता तकलीफ में है तो ऐसा बहुमत किस काम का है? जब तक शासक द्वारा जनता का कल्याण न हो तब तक राष्ट्र का कल्याण नहीं हो सकता. कोई भी राष्ट्र जनहित के बगैर मजबूत नहीं हो सकता. जनता की खुशहाली और जनता की तकलीफों का निराकरण ही जन को देश से जोड़ता है. इसी से राष्ट्रहित सधता है और इसी से सच्चा बहुमत हासिल होता है.

कुछ देशों की बात करते हैं. हाल ही में अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर वहां अपना शासन शुरू किया. तालिबान के आने से पहले अफगानिस्तान भले एक कमजोर देश था मगर वहां जनता खुशहाल थी. वह धीमी गति से विकास के पथ पर अग्रसर था. औरतें बिना दबाव के बाहर निकल कर काम कर रही थीं. बच्चियां शिक्षा पा रही थीं. वहां उन के लिए अच्छे शिक्षा संस्थान थे. लोग मनचाहा रोजगार कर पा रहे थे. उन पर कोई ड्रैस कोड लागू नहीं था. औरतों पर हिजाब की पाबंदी नहीं थी.

वे आजाद थीं. खुल कर सांस ले रही थीं. खेलकूद में हिस्सा ले रही थीं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भाग लेती थीं. अपनी क्षमताओं का भरपूर प्रदर्शन कर गौरव प्राप्त करती थीं, सुख और सुकून महसूस करती थीं. अनेकानेक औरतें उच्च शिक्षा प्राप्त कर डाक्टरइंजीनियर बन रही थीं. अनेकानेक औरतें शासनप्रशासन में अच्छे पदों पर कार्यरत थीं. मगर तालिबानी हुकूमत ने उन से यह सारा सुख छीन लिया, धर्म के नाम पर उन की आजादी छीन ली और उन्हें घररूपी पिंजरे में कैद कर दिया. कई सख्त पाबंदियां अफगान मर्दों पर भी लागू हुईं.

अब वहां आदमी कामधंधा छोड़ कर 5 वक्त की नमाज के लिए मसजिद की दौड़ लगा रहा है. पैंटशर्ट या सूटटाई की जगह अजीब ढीले कुरते और उटंगे पायजामे पहन रहा है. बड़ेबड़े ओहदों पर रह चुके उच्च शिक्षा प्राप्त पुरुष इन लिबासों में अजीब नमूना लगने लगे हैं. बहुतेरे ऐसे हैं जो सत्ता के दबाव में कंधे पर हथियार टांगने को मजबूर हैं.

मर्दों को सख्त आदेश है कि अपनी औरतों को घर में रखें. बेटियों की पढ़ाई छुड़ा दें. न चाहते हुए भी वे मारे डर के ऐसा कर रहे हैं. औरतों पर काले बुर्के डाल दिए गए हैं. उन की शिक्षा में व्यवधान आ गया है. उन की नौकरियां खत्म कर दी गई हैं. उन के ओहदे छीन लिए गए हैं. आगे आने वाले सालों में वहां की औरतें डाक्टरइंजीनियर नहीं बनेंगी, सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन होंगी.

आज दुनिया को अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही है कि शरीयत का पालन कर के उन के मुल्क में अमन शांति कायम हो चुकी है. बहुमत उन के साथ है और राष्ट्रहित में वे सख्त से सख्त कदम उठाने के लिए तैयार हैं. उन का राष्ट्र इतना मजबूत और ताकतवर है कि वे अपने धर्म की रक्षा के लिए दुनिया के किसी भी मुल्क से युद्ध को तैयार हैं. मगर क्या अफगानिस्तान में जनता खुश है? औरतें और बच्चे खुश हैं? क्या तरक्कीपसंद लोग, आधुनिकता और विज्ञान की तरफ बढ़ते लोग धर्म के फंदे में फंस कर खुश हैं? क्या जनता खुद को आजाद महसूस कर रही है? क्या अफगानिस्तान में अब जनहित के काम हो रहे हैं? ऐसे तमाम सवाल हैं जिन का जवाब न में ही मिलेगा.

तालिबान के सत्ता में आते ही लाखों की संख्या में अफगान नागरिक अपना घरबार, जमीनजायदाद छोड़ कर भाग खड़े हुए. आज लाखों अफगानी अन्य देशों में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं. जो अफगानिस्तान में रह गए उन में निराशा और हताशा बढ़ती जा रही है, खासतौर से महिलाओं में, क्योंकि वे अपनी मरजी से कुछ कर ही नहीं सकती हैं. उन के लिए वहां की सरकार कुछ सोच भी नहीं रही है. जनहित के सारे काज ठप हैं और राष्ट्रहित के नाम पर तालिबानी युद्ध के लिए तैयार दिखते हैं.

राष्ट्रहित को तमाम देश सर्वोपरि मानते हैं. इस के लिए वे युद्ध करने को भी तैयार रहते हैं. राजनीतिक पार्टियां बहुमत के बल पर सरकार बना लेती हैं, लेकिन क्या इस से जनहित भी सधता है? शायद नहीं.

राष्ट्रहित की दुहाई दे कर यूक्रेन पर बमबारी करने वाला रूस आज अपनी ही जनता के आक्रोश व विरोध का सामना कर रहा है. रूसी जनता में अपने शासक के खिलाफ रोष बढ़ता जा रहा है. वे जानते हैं कि राष्ट्रहित के नाम पर पुतिन ने रूस और यूक्रेन दोनों देशों के सैनिकों और आम जनता को जबरन बारूद में ?ांक दिया है. दोनों ओर जनता के जानमाल का नुकसान हो रहा है. फिर युद्ध में होने वाले खर्च का पूरा भार आने वाले समय में जनता पर होगा, कर बढ़ेंगे, तरक्की बाधित होगी, जनहित के कार्य पिछड़ जाएंगे. मगर सत्ता द्वारा, बस, खोखले राष्ट्रहित का ढोल पीटा जाएगा.

चीन की तानाशाही तो सर्वविदित है. चीन एक शक्तिशाली देश है मगर अपनी जनता पर अत्याचार कर रहा है. कम्युनिस्टों द्वारा शासित चीन में लोगों का रहना मुहाल होता जा रहा है, खासतौर पर उइगर मुसलमानों का, जिन्हें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के आदेशों से जेलनुमा जगहों पर रख कर उन पर तमाम पाबंदियां लगा दी गई हैं. उन के धार्मिक रीतिरिवाजों पर सरकार का पहरा है. चीन की सरकार ने अपने हजारों मुसलिम नागरिकों को हिंसा के बलबूते जबरन उन के परिवार से दूर डिटैंशन कैंपों में भेज दिया है, जहां उन्हें इसलाम का त्याग करने के लिए मजबूर किया जाता है और चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति वफादार रहने की प्रतिज्ञा दिलाई जाती है.

एक समुदाय विशेष को टारगेट करने के लिए बनाए गए सामूहिक हिरासत केंद्र, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाकलापों को रोकने और उन पर कड़ी निगरानी की रिपोर्ट्स को ले कर दुनियाभर में चिंता जताई जा रही है. मगर चीन इसे राष्ट्रहित में किए जाने वाले कार्य कहता है. आखिर अपनी ही जनता के हितों पर कुठाराघात कर के चीन किस तरह का राष्ट्रहित साध रहा है?

ऐसा ही कुछ भारत में भी देखने को मिलता है. आप यह जानकार चौंक जाएंगे कि पिछले लगभग एक दशक से भारत सरकार राष्ट्रहित के नाम पर अपने ही नागरिकों के हितों की कितनी अनदेखी कर रही है. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत अब उच्चतम बेरोजगारी दर से पीडि़त है. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के मुताबिक, दुनिया के सभी शीर्ष 10 सब से प्रदूषित शहर अब भारत में हैं.

भारत सरकार दावा करती है कि वह विश्वगुरु बनने की राह पर है मगर भारत की जनता भुखमरी से नहीं उबर पा रही है. भारत में आज 80 वर्षों में सब से अधिक आय असमानता है. भारत विश्व का दूसरा सब से असमान देश है. थौमस रौयटर्स का सर्वे कहता है कि भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सब से खराब देश बन चुका है. भारत सरकार द्वारा जनहित का नाम दे कर जबरन थोपे गए कानूनों के खिलाफ देशभर का किसान डेढ़ साल घरबार छोड़ कर सड़कों पर खुले आसमान के नीचे आंदोलनरत रहा, 700 से ज्यादा किसान मर गए, मगर मोदी सरकार कहती है हम राष्ट्र प्रथम की नीति का पालन करते हैं. आखिर वे किस राष्ट्र की बात कर रहे हैं?

इस बार भारतीय किसानों को पिछले 18 वर्षों में सब से खराब कीमत का सामना करना पड़ा है. मोदी सरकार में अब तक की सब से ज्यादा गाय से जुड़ी हिंसा और रिकौर्ड मौबलिंचिंग की घटनाएं हुई हैं. भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों को प्रैस कौन्फ्रैंस कर के कहना पड़ा कि लोकतंत्र खतरे में है और हमें काम नहीं करने दिया जा रहा है. असहिष्णुता और धार्मिक अतिवाद भारत में अपनी चरम पर हैं. सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही का लेबल लगा कर जेल भेज दिया जाता है. चुनाव के वक्त तमाम जांच एजेंसियों और पुलिस एजेंसियों को सत्ताधारियों द्वारा अपनी उंगलियों पर कठपुतली की तरह नचाया जाता है और विरोधी पार्टियों के नेताओं को जेल में ठूंस दिया जाता है. धार्मिक उन्माद और ध्रुवीकरण के जरिए मासूम जनता में डर कायम किया जाता है.

भारत जैसे महादेश में जहां की अधिकांश आबादी को दो जून रोटी के लिए हाड़तोड़ मेहनत से फुरसत नहीं है, वह राजनेता और राजनीति की गूढ़ बातों से लगभग अनभिज्ञ होती है. उसे थोड़ा सा लालच दे कर, थोड़ा सा डर दिखा कर, थोड़े से सपने दिखा कर जिधर हांको वह उधर चल पड़ती है.

चुनाव में उतरने वाले ताकतवर नेता सब से पहले अपने चुनाव क्षेत्र में आने वाले सभी गांवों के प्रधानों को अपनी पावर और पैसे से साधते हैं. फिर प्रधान गांव वालों से जहां वोट डालने को कहता है, पूरा गांव उस नेता के पक्ष में वोट डाल आता है. बदले में 500 रुपए का एक नोट या एक साड़ी या एक शराब की बोतल पा कर वह निहाल हो जाता है. यानी भारत में आम आदमी शासक नहीं चुनता, उस से शासक के चुनाव पर मोहर लगवाई जाती है, कभी बंदूक से तो कभी बैलेट से.

सवाल यह है कि चुनाव के वक्त बहुसंख्यकों को धर्म की घुट्टी पिला कर और अल्पसंख्यकों को डरा कर अगर बहुमत हासिल कर भी लिया तो जनहित और राष्ट्रहित में क्या इजाफा हुआ? जनता तो त्राहित्राहि कर रही है. भूख, गरीबी, बेरोजगारी, कर्ज उस का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. उस के जीवन में असंतोष और दुख भरा पड़ा है. ऐसे टूटेफूटे, घायल और दर्द से कराहते लोगों से भरे देश में तानाशाही प्रवृत्ति के नेता जब राष्ट्रहित और राष्ट्र प्रथम की बातें बोलते हैं तो आलोचना के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं.

राष्ट्रहित या राष्ट्रीय हित जैसे शब्द को राजनेताओं और नीतिनिर्माताओं ने हमेशा अपने लिए उपयुक्त तरीकों से और अपने राज्यों के कार्यों को सही ठहराने के अपने उद्देश्य के लिए उपयोग किया है.

हिटलर ने ‘जरमन राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर विस्तारवादी नीतियों को सही ठहराया. अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने हमेशा ‘अमेरिकी राष्ट्रीय हित’ के हित में अधिक से अधिक विनाशकारी हथियारों के विकास के लिए अपने निर्णयों को उचित ठहराया है. डिएगो गार्सिया में एक मजबूत परमाणु आधार बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने तत्कालीन यूएसएसआर द्वारा पेश की गई चुनौती को पूरा करने के साथसाथ हिंद महासागर में अमेरिकी हितों की रक्षा के नाम पर उचित ठहराया था.

1979-89 के दौरान तत्कालीन यूएसएसआर ने ‘सोवियत संघ राष्ट्रीय हितों’ के नाम पर अफगानिस्तान में अपने हस्तक्षेप को उचित ठहराया. वहीं, चीन के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने के प्रयासों के नाम पर चीन ने भारत और सोवियत संघ के साथ अपने सीमा विवादों को सही ठहराया.

सच तो यह है कि जनहित के बगैर किसी भी राष्ट्र का हित हो ही नहीं सकता है. जन के मजबूत होने से ही राष्ट्र मजबूत होता है. जन के सुखी और संपन्न होने से ही राष्ट्र सुखी और संपन्न होता है.

जो सरकार अपनी जनता के हितों के लिए कार्य करती है, उसे बहुमत जुटाने के लिए ?ाठ का सहारा नहीं लेना पड़ता है. बहुमत स्वयं उस के साथ चलता है. जनहित के उस के कार्य राष्ट्रहित को स्वयं साध लेते हैं. जनता की ताकत

ही किसी राष्ट्र की सच्ची ताकत है. इसलिए जनहित सर्वोपरि है. नेताओं को सम?ाना चाहिए कि जब जन प्रथम होगा, तभी राष्ट्र प्रथम होगा.   द्य

अलग-थलग पड़ता रूस

पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में एक बार फिर जता दिया है कि वे चाहें तो अपने आर्थिक बल पर ही किसी भी शक्ति नहीं, महाशक्ति को भी बहुत अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. रूस ने सोचा था कि यूक्रेन में उस की सैर कुछ टैंकों से पूरी हो जाएगी और वहां सत्ता परिवर्तन कर के वह अपना कम्युनिस्ट दिनों का रोबदाब फिर साबित कर सकेगा. यह सैर उस पर भारी पड़ रही है. चीन का अपरोक्ष साथ होने के बावजूद यूक्रेन की जनता का विद्रोह और पश्चिमी उन्नत देशों का एकजुटता से रूस का बहिष्कार कर देना राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का एक ऐसा कांटोंभरा ‘उपहार’ रूसी जनता को मिला है जिस का असर दशकों तक रहेगा.

अमेरिका व कई पश्चिमी देश रूस के फैलते पंजों से परेशान थे पर वे अकेले कुछ नहीं कर पाते थे. यूक्रेन के मामले में पुतिन की धौंसबाजी और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की की हिम्मत ने एक बहुत बड़े देश के छक्के छुड़ा दिए. रूसी सेना को भारी नुकसान हो रहा है, उस की पोल हर रोज खुल रही है और अब सिवा अणुबम के उस के पास कुछ नहीं बचा है.

रूस की आबादी 14 करोड़ है और यूक्रेन की 4 करोड़. रूस के पास 1.70 करोड़ वर्ग किलोमीटर की भूमि है और यूक्रेन के पास सिर्फ 6 लाख वर्ग किलोमीटर. रूस की अर्थव्यवस्था 1.5 ट्रिलियन डौलर की है और यूक्रेन की 350 बिलियन डौलर की. यूक्रेन की सेना 2 लाख सैनिकों की है और रूस की 9 लाख की. फिर भी हर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पीछे खड़ा हो, जरूरी नहीं. पर, हर यूक्रेनी अपने राष्ट्रपति जेलेंस्की के पीछे खड़ा है. यूक्रेन से युद्ध के कारण भागे 25 लाख लोगों में ज्यादातर बच्चे, औरतें और बूढ़े हैं. जवान पुरुष ही नहीं, स्त्रियां भी रूसी हमले का जवाब देने के लिए खड़ी हैं. रूस की भारी बमबारी  30 दिनों में यूक्रेन की राजधानी को हिला नहीं पाई और इसीलिए दुनिया की सारी राजधानियां अब यूक्रेन के साथ खड़ी हैं.

चीन जैसा कट्टर तानाशाही देश सिर्फ दबे शब्दों में रूस का समर्थन कर पा रहा है क्योंकि 15 ट्रिलियन डौलर की उस की भी अर्थव्यवस्था उस 75 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था के सामने बौनी है जो आज रूस के खिलाफ खड़ी हो गई है.

75 ट्रिलियन वाले देश कितनी आसानी से एक दंभी, तानाशाह, डेढ़ पसली की डेढ़ ट्रिलियन डौलर वाले देश को हाशिए पर खड़ा कर सकते हैं, यह दिखने लगा है. अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पुतिन भक्त थे, अब अपना स्वर बदल रहे हैं और वहां की रिपब्लिकन पार्टी को भी राष्ट्रपति जो बाइडन का साथ देना पड़ रहा है. कुछ यूरोपीय देश अभी भी कुछ सामान रूस से खरीद रहे हैं पर धीरेधीरे सब दूरदर्शी सोच में रूस को कंगाल बनाने में जुट गए हैं. रूसी अमीरों का जो पैसा पश्चिमी देशों ने जब्त किया है वह शायद यूक्रेन के पुनर्निर्माण में लग जाए क्योंकि यह अब लगने लगा है कि रूस को तहसनहस हुए यूक्रेन से अभी या कुछ समय बाद लौटना ही होगा.

यूक्रेन ने साबित कर दिया है कि पश्चिमी देशों की वैयक्तिक स्वतंत्रताएं, लोकतंत्र, लगातार वैज्ञानिक उन्नति आदि रूसी और्थोडौक्स चर्च पर कहीं अधिक भारी हैं जिस के इशारे पर भक्त राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने विधर्मी यहूदी व्लोदोमीर जेलेंस्की को हटाने की कोशिश की थी. यह बात, हालांकि, चर्चा में कम ही आई है लेकिन हकीकत यही है और इस युद्ध के बीज भी धर्म ने ही बोए हैं.

नारी अब भी तेरी वही कहानी: भाग 1

राइटर- रमेश चंद्र सिंह

‘‘मां, मैं पापा के बारे में कभी न पूछूंगी. मैं तुम्हारे पुराने जख्मों को कभी न कुरेदूंगी,’’ अचानक मेरे मुंह से निकला था.

उस दिन मैं फूटफूट कर रोई थी.  मदन ने पूछा था, ‘पीहर की याद अब भी आ रही है क्या. शायद मेरे प्यार में कुछ कमी रह गई है?’ अब मैं उसे कैसे बताऊं कि आज मैं कितनी खुश हूं. ये आंसू मांबाबूजी से बिछुड़ने के नहीं, बल्कि खुशी के हैं जो मां को पा कर पूरे वेग से छलक पड़े हैं. हां, मां को, जिसे अब तक मैं मां सम झ रही थी वह मेरी मौसी थी. असली मां तो वह है जिसे मैं मौसी सम झ रही थी.

मेरी शादी हुए एक हफ्ता गुजर गया था. मदन ने मु झे इतना प्यार दिया कि मैं मायके की याद भूल गई. सासुमां ने मु झे मां जैसा स्नेह दिया. ननद और देवर ने मु झे कभी अकेले न छोड़ा. हर वक्त साया बन कर साथ लगे रहे. ननद हर वक्त मेरे नाश्ते, खाने का ध्यान रखती. देवरजी हमेशा कोई न कोई चुटकुला सुना कर हंसाते. ऐसी ससुराल पा कर मैं निहाल हो गई थी.

मैं ने कहा, ‘‘नहीं मदन, तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं.’’

‘‘कोई बात नहीं, यह नैचुरल है. जिन परिजनों के बीच 25 वर्ष गुजारे हों उन की याद तो आएगी ही.’’

फिर मदन अपने किसी दोस्त से मिलने चला गया था. मैं ने उसे कुछ बताया भी नहीं. मां ने मना किया था. पत्र के अंत में लिखा था, ‘बेटी, यह राज, राज ही रहने देना. राज जिस दिन खुलेगा, तुम्हारी मां का दांपत्य जीवन बरबाद हो जाएगा.’

शादी के बाद जब मैं विदा हो रही थी तो मौसी ने एक पैकेट थमाया था, याचनाभरी निगाहों से बोली थीं, ‘बेटी, इसे एक हफ्ते बाद खोलना.’ उस समय मैं इस याचना के पीछे छिपे राज को न सम झ पाई थी.

आज जब मैं ने एकांत पा कर पैकेट खोला तो रत्नजडि़त कंगन के साथ एक पत्र था. पत्र में लिखा था, ‘बेटी, एक राज है जिसे अपने सीने में दबाए मैं पिछले 25 वर्षों से ढो रही हूं. अब न बताऊं तो तुम्हारे साथ अन्याय होगा और मैं स्वयं को क्षमा न कर पाऊंगी.

‘दीदी अपने बड़े बेटे बिभू की जन्मतिथि की 5वीं वर्षगांठ धूमधाम से मना रही थीं. दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों को भी बुलाया गया था. मैं भी आई थी.

‘उस समय मैं कालेज में पढ़ती थी. यौवन के मद में चारों ओर घूमती. शोख और निडर इतनी कि कालेज में कोई लड़का बदतमीजी करता तो उसे सबक सिखाने में तनिक भी देर न करती. जब बिभू के जन्मदिन के लिए केक काटने का समय आया तो पता चला कि बर्थडे वाला नाइफ नहीं है. बिभू जिद करने लगा कि उसे बर्थडे के म्यूजिक वाला ही नाइफ चाहिए. घर मेहमानों से भरा था. जीजाजी अपने मांबाप के इकलौते थे. घर में दीदी, जीजाजी और बच्चों के अलावा कोई न था.

‘मैं पहले भी दीदी के यहां आती थी. घर से एक दुकान नजदीक थी. वह देररात तक खुली रहती थी. मैं  झट से उठी और बोली कि मैं अभी ले कर आई. अभी लोग कुछ बोलते, मैं तेजी से बाहर निकल गई.

‘लेकिन बेटी, होनी को तो कुछ और ही होना था. घर और दुकान के बीच एक जगह सुनसान थी. वहां स्ट्रीट लाइट भी नहीं थी. मैं तेजी से बढ़ी जा रही थी कि अचानक किसी ने पीछे से पकड़ कर मेरा मुंह बंद कर दिया. फिर मैं उस के मजबूत बाजुओं से मुक्त होने के लिए बहुत छटपटाई, किंतु छूट न सकी.

‘वह मु झे एक  झोंपड़ी में ले गया जहां पहले से ही एक मनचला मौजूद था. फिर वे 20-25 मिनट तक मु झे नोचतेखसोटते रहे. मैं न चिल्ला पा रही थी न उन के चंगुल से मुक्त हो पा रही थी, क्योंकि उन में से एक ने मेरा मुंह बंद कर रखा था और दूसरे ने मजबूती से मु झे पकड़ रखा था. जब उन के हवस का ज्वार शांत हुआ तो वे मु झे अकेला छोड़ कर भाग गए.

‘अब मैं दुकान कैसे जाती. रोते हुए घर पहुंची. जब मु झे आने में देर होने लगी तो दीदी ने पिछले बर्थडे वाला नाइफ कहीं से खोजा और रस्म पूरी कर दी.

‘उस समय हैप्पी बर्थडे का म्यूजिक तेज आवाज में बज रहा था. दोस्त और रिश्तेदार ‘हैप्पी बर्थडे टू यू’ कह कर बिभु को जन्मदिन की बधाइयां दे रहे थे.

‘दीदी, रास्ते में पेट दर्द होने लगा तो दुकान न जा सकी. बीच रास्ते से ही लौट आई,’ मैं ने बहाना बनाया.

‘दीदी ने कहा, ‘कोई बात नहीं मेरे कमरे में जा कर लेट जा, कुछ देर बाद ठीक हो जाएगा. गैस की शिकायत हो गई होगी. जब न ठीक होगा तो बताना, दवा दे दूंगी.’

‘फिर दीदी मेहमानों की आवभगत में लग गई थीं.

‘बिभू ने कमरे में आ कर उत्साह से केक का एक टुकड़ा मेरे मुंह में डाला. अनिच्छा से केक के टुकड़े को निगलते हुए मैं ने उस से ‘हैप्पी बर्थ टू यू’ कहा.

‘क्या आप की तबीयत खराब है, मौसी?’ उस ने मु झे उदास देख कर पूछा.

‘हां बेटा,’ दर्द से कराहते हुए मैं ने कहा तो वह बोला, ‘मम्मी से दवा देने के लिए कह देता हूं.’ फिर चला गया. दरिंदों ने 20-25 मिनट में ही ऐसा दर्द दे दिया था जो आज तक टीस रहा है और अब इस जीवन में कम न होगा.

‘यह ऐसा घाव था बेटी, जो शरीर से ज्यादा दिल को जख्मी कर गया था.

‘बाहर सभी लोग फंक्शन में मशगूल थे और भीतर कमरे में शारीरिक व भावनात्मक व्यथा से पीडि़त मैं सोच रही थी, अब ऐसी जिंदगी जी कर क्या करूंगी.

‘फिर मेरे मन में विचार आया, रस्सी से फंदा लगा लूं. इधरउधर देखा, पंखा सिर पर लटक रहा था. बगल में दीदी की साड़ी पड़ी थी. कुरसी भी पास ही थी. सोचा, किसी को कुछ न बताऊंगी. एक सुसाइड नोट लिखूंगी ताकि मेरे मरने के बाद पुलिस वाले परिवार के किसी सदस्य को बिना वजह परेशान न करें. कागज के लिए भी कहीं जाना न था. जीजाजी की नोटबुक और पैन वहीं पड़ा था.

‘अभी मैं सुसाइड के बारे में सोच ही रही थी कि अचानक मन में विचार कौंधा, ‘अगर मैं आत्महत्या कर लूंगी तो घर में कुहराम मच जाएगा. दीदी के घर का जश्न मातम में बदल जाएगा. फिर आत्महत्या अपराध भी तो है. आखिर आत्महत्या से मु झे क्या मिलेगा. इस से तो हैवानों का मनोबल और बढ़ेगा. नहीं, मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. यह जीवन के प्रति कायर नजरिया होगा. मैं इन हैवानों को सलाखों के पीछे पहुंचवाऊंगी. उन्हें फांसी दिलवाऊंगी.’

‘मेरे अंदर  झं झावातों का तूफान था. फिर न जाने कब आंख लग गई.

‘पेटदर्द कम हुआ, शैली?’ दीदी मु झे  िझं झोड़ रही थीं.

‘अचानक मेरी आंखें खुलीं. मैं कुछ बोलने की जगह दीदी की गोद में सिर रख कर

रोने लगी.

‘क्या बात है, शैली, रो क्यों रही हो. बताती क्यों नहीं. किसी ने तुम से कुछ कहा है क्या?’

‘दीदी अब चिंतित लग रही थीं. मु झे इस तरह अपनी गोद में मुंह छिपाए रोते देख सम झ गई थीं कि मु झे पेटदर्द नहीं है, बल्कि कुछ और समस्या है. मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. सिर्फ रोते जा रही थी. इतनी रोई कि उन का आंचल भीग गया.

‘दीदी ने मेरे आंसू अपनी हथेलियों से पोंछते हुए मेरे चेहरे को ऊपर उठाया, बोलीं, ‘नहीं बताओगी तो हम कैसे जान पाएंगे. किसी ने बदतमीजी की है क्या?’

‘रोतेरोते मैं ने दीदी को सबकुछ बता दिया.

‘सुन कर दीदी को जैसे सदमा लगा हो. कुछ क्षण चुप रह कर पूछा, ‘पहचान सकती हो उन्हें?’

‘नहीं, वहां अंधेरा था. दोनों ने अपनाअपना मुंह गमछे से ढका हुआ था.’

‘उधर कुछ बदमाश रहते हैं. किंतु अब इस की चर्चा न करना. लोग जान जाएंगे तो हमारी बदनामी होगी. इस को एक हादसा सम झ कर भूल जाना ही ठीक होगा. पापा तुम्हारी शादी के लिए कुछ लोगों से बात कर रहे हैं. लड़के वाले जानेंगे तो शादी टूट जाएगी. ऐसी लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहता जिस का कौमार्य भंग हो गया हो.’

‘किंतु दीदी उन हैवानों को हम ऐसे ही छोड़ दें? इस तरह तो उन की हैवानियत बढ़ती ही जाएगी. आज उन्होंने मेरी इज्जत लूटी है, कल किसी और की लूटेंगे. यह तो ठीक न होगा.

‘दीदी, अभी हम थाने में रिपोर्ट कर दें तो दोनों पकड़े जाएंगे. ये यहींकहीं होंगे. लोकल हैं. पुलिस वाले हो सकता है इस इलाके के गुंडोंबदमाशों को जानते भी हों.’

‘हो सकता है पकड़े जाएं, पर इस से तुम्हें क्या फायदा होगा. अभी तो कोई कुछ नहीं जानता, पर इस के बाद तो सारी दुनिया जान जाएगी. पढ़ाई छोड़ कर तुम्हें पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाने होंगे. मीडिया वाले होहल्ला करेंगे. यह तय है कि तब तुम से कोई शादी न करना चाहेगा. जब तुम नहीं पहचानतीं तो उन की शिनाख्त कैसे करोगी? पुलिस वाले रिश्वत ले कर मामला दबा देंगे. हम नाहक परेशान होंगे सो अलग.’

‘दीदी लगातार तर्क पर तर्क देती चली गई थीं और मेरी आवाज दबती चली गई थी. दीदी ने मु झे कसम दिलाई कि इस राज को राज रहने देने में ही हमारी भलाई है. उन्होंने इस घटना के बारे में किसी को

न बताया. यहां तक कि जीजाजी को

भी नहीं.

‘अब इस जलालत के बाद मैं एक दिन भी दीदी के यहां नहीं रुकना चाहती थी. जीजाजी ने कई बार कुछ दिनों तक रुक जाने को कहा, लेकिन मैं दूसरे दिन ही अपने घर लौट गई.

‘दिन बीते तो धीरेधीरे मैं नौर्मल होने लगी. फिर कालेज जाने लगी, पर अब मेरे अंदर एक बड़ा बदलाव हो गया था. अंदर ही अंदर घुटने लगी.

‘इसी तरह 2 महीने गुजर गए. एकाध बार उलटी की शिकायत हुई, पर ध्यान न दिया.

व्यंग्य: दोस्ती के दांत दिखाने वाले, निभाने वाले

Wrietr- अशोक गौतम

विश्व स्तर पर दोस्ताना संघ की स्थापना जब हुई हो तब हुई हो, पर इस की नींव की बहुतकुछ आउटलाइन मेरे जवान होते दिनों में उस समय तैयार होने लगी थी जब हम सब महल्ले के सारे जवान होते बातबात पर एकदूसरे के हाथों में एकदूसरे का हाथ ले उसे पूरे जोर से दबा कसम खाते नहीं थकते थे कि हम सब अपनी अपनी दोस्ती की कसम खाते हैं कि जो हम में से किसी को दूसरे महल्ले के गधे ने भी हाथ लगाया तो हम सब मिल कर साले के हाथपांव तोड़ कर रख देंगे. उस के हाथपांव हों या न. उस की पूंछ, कान मरोड़ कर रख देंगे. उस के पूंछ, कान हों या न. हम में से किसी की ओर दूसरे महल्ले का सही होने पर भी जो कोई आंख उठा कर भी देखेगा तो उस की आंखों में देगीमिर्च डाल देंगे. बाद में घर में दाल में मिर्च न डले, तो न सही.

मुझे तब अपने दोस्तों पर यह कसम खाते हुए बहुत गर्व होता था. तब मैं अपने को कई बार महल्ले की ही नहीं, शहर की महाशक्ति समझने लग जाता था. तब मुझे लगता था कि मेरा अमेरिका भी कुछ नहीं कर सकता.  तब मैं सोचता था कि मेरा चीन भी कुछ नहीं कर सकता. पर एक दिन मेरा दोस्ती का सारा घमंड चूरचूर हो गया.

हुआ यों कि एक दिन बिन बात के दूसरे महल्ले के लड़के ने मेरी आती जवानी को बेकार में ललकार दिया जबकि मेरी आती जवानी ने उस के महल्ले का कुछ भी बुरा नहीं किया था. उस की बेकार की ललकार को सुन मैं भी तब गुस्से में आ गया था. हद है यार, बिन कुछ किए ही बंदा ललकार रहा है?

मैं गुस्से में इसलिए नहीं आया था कि मुझ में उस का विरोध करने का दम था. मैं ने सोचा था कि जिस के पीछे उस के दोस्त हों, उसे तो खुदा से भी डर नहीं लगता है. लगना भी नहीं चाहिए. दोस्तों के सिवा मेरे पास उस वक्त, बस, आतीआती जवानी थी, जबकि वह औलरैडी एडवांस लैवल का जवान था. मैं तो गुस्से में इसलिए आया था कि मेरे पास मेरे पीछे बीस दोस्त थे. मुझे अंधविश्वास था कि मेरे पीछे मेरे दोस्त हिमालय की तरह खड़े हैं. वे मेरी खाल तो क्या,  किसी भी कीमत पर मेरा बाल भी बांका नहीं होने देंगे.  मुझे यह  पता था कि मैं उस के सामने पिददी हूं. पर मैं ने दोस्तों के दम पर सहर्ष उस का चैलेंज स्वीकार कर लिया. क्योंकि किताबों में किस्सेकहानियों में पढ़ा था कि जिस के पीछे दोस्त होते हैं उस का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.

बस, फिर क्या था. मैं ने उस की ललकार को अपनी नईनई दहाड़ से दबाने की कोशिश की तो दूसरे महल्ले का लड़का और भी आक्रामक हो गया. मैं ने उस के आगे बेखौफ हो अपनी नएनए लड़ने के तरीकों से अनजान छाती तान दी कलाशनिकोव राइफल की तरह, यह सोच कर कि मेरे पीछे मेरे दोस्तों की मिजाइलें हैं.

दस मिनट… बीस मिनट… तब मैं अकेला ही जैसेतैसे उस का विरोध उस के लातघूंसे सहन करते करता रहा. पर मेरे दोस्त मेरी सहायता को नहीं आए, तो नहीं आए. वे, बस, दूर से हवा में हौकियां, डंडे लहराते, मेरे जोश को तालियां बजाते बढ़ाते, मेरी पीठ के बहाने अपनी पीठ थपथपाते,  तो दोतीन दूर से मेरे जख्मों पर मरहम लगाते. मैं ने तब उन्हें तब उस का सामना करने को अपने साथ आने को बहुत पुकारा. पर वे नहीं आए, तो नहीं आए. मुझे  लगा, जैसे वे उस के भी दोस्त हों.

अंत में मैं खुद ही जैसेतैसे हौसला बना कर उस का आधापौना सामना किया और जैसेकैसे अपने को बचा पाया. उस के बाद टांगों के नीचे से कान पकड़े थे कि बेटे, जिंदगी में जो हिम्मत हो, तो किसी की गलतसही ललकार का सामना हो सके तो अकेले ही करना. हर वह, जो मुसीबत में काम आने की कसम खाता है, दोस्त नहीं होता. कलियुग में दोस्त हाथी के दांतों की तरह होते हैं, मुसीबत आने से पहले कसमें खाने वाले और, तो मुसीबत के वक्त काम आने वाले और.

GHKKPM: विराट की जिंदगी में होगी इस हसीना की एंट्री! क्या करेगी सई

सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि सई और विराटत के कारण शिवानी और राजीव एक हो गए हैं. इसी बीच सई-विराट की जिंदगी में एक और तूफान आने वाला है. आइए बताते है, शो के आगे की कहानी.

एक रिपोर्ट के अनुसार सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में जल्द ही सोनिया सिंह की एंट्री होने वाली सोनिया सिंह सुपरहिट शो ‘दिल मिल गए में’ काम कर चुकी हैं. ‘गुम है किसी के प्यार में’ सोनिया सिंह राजीव की बहन का किरदार निभाने वाली हैं.

 

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शो में राजीव की बहन की एंट्री कई ट्विस्ट और टर्न्स लेकर आने वाली है. गौरतलब है कि विराट और सई ने मिलकर परिवार के लोगों को शिवानी और राजीव की शादी के लिए राजी कर लिया है.

 

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बताया जा रहा है कि शो में शिवानी और राजीव की शादी के दौरान सोनिया सिंह की धमाकेदार एंट्री होगी. हालांकि मेकर्स ने अब तक भी इस बात का खुलासा नहीं किया है कि शो में सोनिया सिंह का किरदार कैसा होगा. लेकिन ये तय है कि शो में इस हसीना की एंट्री के बाद बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

 

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आलिया-रणबीर की शादी की Kissing फोटोज देख भड़के लोग, किया ट्रोल

बॉलीवुड के चर्चित कपल रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छायेहुए हैं. दोनों की शादी की कई फोटोज और वीडियोज सामने आई है. फैंस इन फोटोज और वीडियोज को काफी पसंद कर रहे हैं. तो कुछ लोगो ने ट्रोल भी किया है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

रणबीर और आलिया 14 अप्रैल को वास्तु बिल्डिंग में सात फेरे लिए. रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी की कई ऑफिशियल फोटोज सामने आई हैं, जिन्हें फैंस पसंद भी कर रहे हैं. तो वहीं रणबीर-आलिया की किसिंग फोटो भी सामने आई, जिसे देखने के बाद यूजर्स ने ट्रोल करना शुरू कर दिया.

 

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यह फोटो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस फोटो पर कई लोगों ने कमेंट किया है. एक यूजर ने कमेंट में लिखा, ‘कितनी किस लोगे भाई सुहागरात के लिए रखो भाई’ तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा ‘वेस्ट की नकल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की कोशिश कर रहे हैं. कम से कम हम उनकी सराहना कर सकते हैं.’

 

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इस कपल ने शादी के बाद मीडिया के सामने आकर कई फोटोज क्लिक कराई थीं.

 

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रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की वेडिंग फोटोशूट सामने आई है, जिसमें रणबीर कपूर और आलिया भट्ट के साथ सोनी राजदान, महेश भट्ट, शाहीन भट्ट, नीतू कपूर, रिद्धिमा कपूर फोटोशूट करवा रहे है. तो वहीं एक फैन ने फोटो एडिट कर ऋषि कपूर को भी सबके साथ खड़ा कर दिया है.

 

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बता दें कि रणबीर कपूर और आलिया भट्ट एक-दूसरे को बीते 4 साल से डेट कर रहे थे. वर्क फ्रंट की बात करें तो आलिया भट्ट और रणबीर कपूर पहली बार डायरेक्टर अयान मुखर्जी की फिल्म’ ब्रह्मास्त्र’ में साथ नजर आएंगे.

IPS नवनीत सिकेरा: जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.

कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से कम समय में ज्यादा काम

यह एक बड़ा कृषि यंत्र है, जो किसानों के बड़े ही काम आता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करने से मजदूरों की समस्या तो दूर होती ही है, साथ ही कम समय में ज्यादा काम किया जा सकता है. कम लागत और कम समय में जल्दी काम पूरे हो जाते हैं.

इस यंत्र की मदद से धान, गेहूं, सोयाबीन, सरसों वगैरह की कटाई और सफाई का काम एकसाथ कर सकते हैं. इस में समय और लागत  बहुत कम लगती है.

इस मशीन में लगे खास यंत्र कटर कम स्प्रेडर की मदद से फसल के अवशेष को कटाई के बाद खेत में ही बिखेर देता है. बाद में मिट्टी में सड़ कर यही जैविक खाद बन जाती है.

इस यंत्र की खूबी यह है कि यह तेज हवाओं और वर्षा के चलते गिरी हुई फसल को भी आसानी से काट सकते हैं.

इन कंबाइन हार्वेस्टर मशीनों में सब से आगे लंबे कटरबार यानी दांतेदार फसल काटने के पट्टे लगे होते हैं. यह यंत्र कटर से फसल काटता है. इस के बाद फसल कन्वेयर बैल्ट के जरीए रेसिंग यूनिट में पहुंच जाती है.

यहां पर फसल के दाने ड्रैसिंग ड्रम से रगड़ने पर अलगअलग हो जाते हैं. साथ ही, मशीन में लगे पंखे से अनाज छलनी से साफ हो कर एक टैंक में पहुंचता है.

कंबाइन हार्वेस्टर में एक स्टोन ट्रैप यूनिट लगी होती है, जो फसल के साथ आने वाले कंकड़ और मिट्टी को अलग कर देता है.

इस मशीन के इस्तेमाल से किसान

कुदरती आपदाओं से होने वाले नुकसान से बच सकते हैं और समय रहते फसलों की कटाई कर सकते हैं.

बढि़या कंपनी का हार्वेस्टर एक घंटे में तकरीबन 4 से 5 एकड़ क्षेत्र में फसलों की कटाई कर सकता है. कंबाइन हार्वेस्टर मशीन से किसान खेत में आड़ीतिरछी पड़ी फसल को भी काट सकते हैं.

सरकार द्वारा भी कृषि यंत्रों पर सब्सिडी दी जाती है. सब्सिडी की दर राज्य सरकारों की अलगअलग होती है. आमतौर पर लघु, सीमांत व महिला किसानों को 50 फीसदी व बड़े किसानों को 40 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है.

किसान इस योजना का फायदा उठा सकते हैं. कई प्रदेशों में तो किसान संगठन भी इस का इस्तेमाल करते हैं.

स्वराज का कंबाइन हार्वेस्टर जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर

महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड की ओर से स्वराज ने नया जेन 2-8100 ऐक्स सैल्फ-प्रोपेल्ड कंबाइन हार्वेस्टर अक्तूबर, 2021 में ही बाजार में उतारा है, जो धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बेहतर यंत्र है.

यह चलने में बहुत ही सुविधाजनक है. अच्छी उत्पादकता के साथ ही साथ काम करने वाला यह हार्वेस्टर महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब के किसानों की काफी हद पहुंच में है.

101 एचपी की ताकत वाले इस कंबाइन हार्वेस्टर में अनाज इकट्ठा करने के लिए इस में 2140 लिटर की क्षमता वाला बड़ा सा अनाज टैंक लगा हुआ है. इस के पार्ट्स को आसानी से बदला जा सकता है और साफसफाई भी आसान है.

इस हार्वेस्टर यंत्र को खासतौर से चावल, गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों की कटाई के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इस में नवीनतम जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम भी लगा हुआ है. रात के अंधरे में भी इसे आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. इस में अच्छी लाइटिंग का भी इंतजाम है.

महिंद्रा हार्वेस्ट मास्टर एच-12 4डब्ल्यूडी ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइन हार्वेस्टर

ट्रैक्टर माउंटेड का मतलब है कि ट्रैक्टर पर फिट किए जाने वाला हार्वेस्टर, खासकर ट्रैक्टर्स की महिंद्रा अर्जुन नोवो सीरीज के लिए परफैक्ट मैच के तौर पर महिंद्रा द्वारा डिजाइन किया गया एक बहुफसल हार्वेस्टर है.

यह मशीन मिट्टी में सूखी और नम दोनों ही हालात में बेहतरीन काम करती है. ऐसा कंपनी का कहना है. यह तेजी से ज्यादा क्षेत्रफल को कवर करने वाला, अनाज का कम से कम नुकसान और ईंधन की कम खपत वाला हार्वेस्टर है.

इस ट्रैक्टर माउंटेड कंबाइंड हार्वेस्टर को इस्तेमाल करने के लिए महिंद्र का अर्जुन नोवो डीआई-आई/655 डीआई ट्रैक्टर का साथ जरूरी है.

इस हार्वेस्टर में 49 नाइफ ब्लेड्स और 24 नाइफ गार्ड्स लगे हैं. अनाज को इकट्ठा करने के लिए इस में एक बड़ा सा टैंक लगा है, जिस में धान तकरीबन 750 किलोग्राम तक इकट्ठा किया जा सकता है.

इन के अलावा अनेक कंपनियों के ट्रैक्टर जैसे दशमेश, जॉन डियर, फील्डकिंग, करतार, प्रीत आदि के अनेक मौडल बाजार में मौजूद हैं.

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