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अनुपमा ने हाथ-पैर जोड़ कर मांगी अनुज से माफी, देखें VIDEO

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में अनुपमा और अनुज का लव ट्रैक दिखाया जा रहा है. अनुपमा अनुज से शादी करने के लिए बा और वनराज के खिलाफ हो चुकी है. तो दूसरी तरफ समर, किंजल और बापूजी अनुपमा के साथ खड़े हैं.   इसी बीच सीरियल अनुपमा के सेट का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में अनुपमा अनुज के आगे कान पकड़कर भीख मांगती नजर आ रही है.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि बैकग्राउंड में अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना… गाना बज रहा है. अनुपमा अनुज के आगे हाथ पैर जोड़ रही है तो वहीं अनुज अनुपमा को जमकर नखरे दिखा रहा है. फैंस को अनुज और अनुपमा का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है.

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शो में दिखाया जा रहा है तोशु, बा, वनराज और पाखी अनुपमा-अनुज के शादी के खिलाफ है. बा ने अनुपमा को अपने घर से दूर करने का भी फैसला किया है. शो में आप देखेंगे कि अनुपमा आधी रात में शाह हाउस पहुंचेगी. वनराज और बा अनुपमा को सबके सामने जलील करेंगे.

 

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अनुपमा भी करारा जवाब देगी. अनुपमा कहेगी कि वह हर हालत में अनुज के साथ शादी करेगी. अनुपमा के तेवर देखकर बा और वनराज के होश उड़ जाएंगे.

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तो दूसरी तरफ राखी दवे इस मौके का पूरा फायदा उठाएगी. वह पहले वनराज के कान भरेगी.  इसके बाद राखी काव्या के पास जाएगी. वह काव्या से कहेगी कि तुम कभी अनुपमा की जगह नहीं ले सकती. इतना ही नहीं वह कहेगी कि तुम मां भी नहीं बन पाई. राखी काव्या से ये भी कहेगी कि अगर तुमने ध्यान नहीं दिया तो तुम्हारा और वनराज का कोई भविष्य नहीं होगा.

इधर-उधर: भाग 1

Writer- Rajesh Kumar Ranga

‘‘देखो तनु शादीब्याह की एक उम्र होती है, कब तक यों टालमटोल करती रहोगी, यह घूमना फिरना, मस्ती करना एक हद तक ठीक रहता है, उस के आगे जिंदगी की सचाइयां रास्ता देख रही होती हैं और सभी को उस रास्ते पर जाना ही होता है,’’ जयनाथजी अपनी बेटी तनु को रोज की तरह समझने का प्रयास कर रहे थे.

‘‘ठीक है पापा, बस यह आखिरी बार कालेज का ग्रुप है, अगले महीने से तो कक्षाएं खत्म हो जाएंगी. फिर इम्तिहान और फिर आगे की पढ़ाई.’’

जयनाथजी ने बेटी की बात सुन कर अनसुना कर दी. वे रोज अपना काफी वक्त तनु के लिए रिश्ता ढूंढ़ने में बिताते. जिस गति से रिश्ते ढूंढ़ढूंढ़ कर लाते उस से दोगुनी रस्तार से तनु रिश्ते ठुकरा देती.

‘‘ये 2 लिफाफे हैं, इन में 2 लड़कों के फोटो और बायोडाटा है, देख लेना और हां दोनों ही तुम से मिलने इस इतवार को आ रहे हैं, मैं ने बिना पूछे ही दोनों को घर बुला लिया है, पहला लड़का अंबर दिन में 11 बजे और दूसरा आकाश शाम को 4 बजे आएगा,’’

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जयनाथजी ने 2 लिफाफे टेबल पर रख आगे कहा, ‘‘इन दोनों में से तुम्हें एक को चुनना है.’’

तनु ने अनमने ढंग से लिफाफे खोले और एक नजर डाल कर लिफाफे वहीं पटक दिए, फिर सामने भाभी को खड़ा देख बोली, ‘‘लगता है भाभी इन दोनों में से एक के चक्कर में पड़ना ही पड़ेगा… आप लोगों ने बड़ा जाल बिछाया है… अब और टालना मुश्किल लग रहा है.’’

‘‘बिलकुल सही सोच रही हो तनु… हमें बहुत जल्दी है तुम्हें यहां से भागने की… ये दोनों रिश्ते बहुत ही अच्छे  हैं, अब तुम्हें फैसला करना है कि अंबर या आकाश… पापामम्मी ने पूरी तहकीकात कर के ही तुम तक ये रिश्ते पहुंचाए हैं. आखिरी फैसला तुम्हारा ही होगा.’’

‘‘अगर दोनों ही पसंद आ गए तो? ‘‘तनु ने हंसते हुए कहा.

भाभी भी मुसकराए बगैर नहीं रह पाई और बोली, ‘‘तो कर लेना दोनों से शादी.’’

तनु सैरसपाटे और मौजमस्ती करने में विश्वास रखती थी. मगर साथ ही वह पढ़ाईलिखाई और अन्य गतिविधियों में भी अव्वल थी. कई संजीदे मसलों पर उस ने डिबेट के जरीए अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाई थी. घर में भी कई देशविदेश के चर्चित विषयों पर अपने भैया और पापा से बहस करती और अपनी बात मनवा कर ही दम लेती.

यह भी एक कारण था कि उस ने कई रिश्ते नामंजूर कर दिए थे. उसे लगता था कि उस के सपनों का राजकुमार किसी फिल्म के नायक से कम नहीं होना चाहिए. हैंडसम, डैशिंग, व्यक्तित्व ऐसा कि चलती हवा भी उस के दीदार के लिए रुक जाए. ऐसी ही छवि मन में लिए वह हर रात सोती, उसे यकीन था कि उस के सपनों का राजकुमार एक दिन जरूर उस के सामने होगा.

रविवार को भाभी ने जबरदस्ती उठा कर उसे 11 बजे तक तैयार कर दिया, लाख कहने के बावजूद वे उस ने न कोई मेकअप किया न कोई खास कपड़े पहने. तय समय पर ड्राइंगरूम में बैठ कर सभी मेहमानों का इंतजार करने लगे. करीब आधे घंटे के इंतजार के बाद एक गाड़ी आ कर रुकी और उस में से एक बुजुर्ग दंपती उतरे.

तनु ने फौरन सवाल दाग दिया, ‘‘आप लोग अकेले ही आए हैं अंबर कहां है?’’

तनु के इस सवाल ने जयनाथजी एवं अन्य को सकते में डाल दिया. इस के पहले कि कोई कुछ जवाब देता एक आवाज उभरी, ‘‘मैं यहां हूं, मोटरसाइकिल यहीं लगा दूं?’’

तनु ने देखा तो उसे देखती ही रह गई, इतना खूबसूरत बांका नौजवान बिलकुल उस के तसव्वुर से मिलताजुलता, उसे लगा कहीं वह ख्वाब तो नहीं देख रही. इतना बड़ा सुखद आश्चर्य और वह भी इतनी जल्दी… तनु की तंद्रा तब भंग हुई जब युवक मोटरसाइकिल पार्क करने की इजाजत मांग रहा था.

‘‘हां बेटा जहां इच्छा हो लगा दो,’’ जयनाथजी ने कहा.

अंबर ने मोटरसाइकिल पार्क की और फिर सभी घर के अंदर प्रविष्ट हो गए.

इधरउधर के औपचारिक वार्त्तालाप के बाद तनु बोल पड़ी, ‘‘अगर आप लोग इजाजत दें तो मैं और अंबर थोड़ा बाहर घूम आएं…?’’

‘‘गाड़ी में चलना चाहेंगी या…’’ अम्बर ने पूछना चाहा.

‘‘मोटरसाइकिल पर… मेरी फैवरिट सवारी है…’’

थोड़ी ही देर में अंबर की मोटरसाइकिल हवा से बातें कर रही थी. समंदर के किनारे फर्राटे से दौड़ती मोटरसाइकिल पर बैठ कर तनु स्वयं को किसी अन्य दुनिया में महसूस कर रही थी.

‘‘नारियल पानी पीना है?’’ तनु ने जोर से कहा.

‘‘पूछ रही हैं या कह रही हैं?’’

‘‘कह रही हूं… तुम्हें पीना हो तो पी सकते हो…’’

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अंबर ने फौरन मोटरसाइकिल घुमा दी. विपरीत दिशा से आती गाडि़यों के बीच मोटरसाइकिल को कुशलता से निकालते हुए दोनों नारियल पानी वाले के पास पहुंय गए.

अंबर ने एक ही सांस में नारियल पानी खत्म कर दिया और नारियल को एक ओर उछाल कर जेब से पर्स निकाल कर पैसे दे कर बोला, ‘‘मैं ने अपने नारियल के पैसे दे दिए, आप अपने नारियल के पैसे दे दीजिए.’’

तनु अवाक हो कर अंबर को ताकने लगी.

‘‘बुरा मत मानिएगा तनुजी, आप का और मेरा अभी कोई रिश्ता नहीं है, मैं क्यों आप पर खर्च करूं?’’

छोटा सा घर

लेखक- अनिल मिश्रा

ट्रेन तेज गति से दौड़ी चली जा रही थी. सहसा गोमती बूआ ने वृद्ध सोमनाथ को कंधे से झकझोरा, ‘‘बाबूजी, सुषमा पता नहीं कहां चली गई. कहीं नजर नहीं आ रही.’’

सोमनाथ ने हाथ ऊंचा कर के स्विच दबाया तो चारों ओर प्रकाश फैल गया. फिर वे आंखें मिचमिचाते हुए बोले, ‘‘आधी रात को नींद क्यों खराब कर दी… क्या मुसीबत आन पड़ी है?’’

‘‘अरे, सुषमा न जाने कहां चली गई.’’

‘‘टायलेट की ओर जा कर देखो, यहीं कहीं होगी…चलती ट्रेन से कूद थोड़े ही जाएगी.’’

‘‘अरे, बाबा, डब्बे के दोनों तरफ के शौचालयों में जा कर देख आई हूं. वह कहीं भी नहीं है.’’

बूआ की ऊंची आवाज सुन कर अन्य महिलाएं भी उठ बैठीं. पुष्पा आंचल संभालते हुए खांसने लगी. देवकी ने आंखें मलते हुए बूआ की ओर देखा और बोली, ‘‘लाइट क्यों जला दी? अरे, तुम्हें नींद नहीं आती लेकिन दूसरों को तो चैन से सोने दिया करो.’’

‘‘मूर्ख औरत, सुषमा का कोई अतापता नहीं है…’’

‘‘क्या सचमुच सुषमा गायब हो गई है?’’ चप्पल ढूंढ़ते हुए कैलाशो बोली, ‘‘कहीं उस ने ट्रेन से कूद कर आत्महत्या तो नहीं कर ली?’’

बूआ ने उसे जोर से डांटा, ‘‘खामोश रह, जो मुंह में आता है, बके चली जा रही है,’’ फिर वे सोमनाथ की ओर मुड़ीं, ‘‘बाबूजी, अब क्या किया जाए. छोटे महाराज को क्या जवाब देंगे?’’

‘‘जवाब क्या देना है. वे इसी ट्रेन के  फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे हैं. अभी मोबाइल से बात करता हूं.’’

सोमनाथ ने छोटे महाराज का नंबर मिलाया तो उन की आवाज सुनाई दी, ‘‘अरे, बाबा, काहे नींद में खलल डालते हो?’’

‘‘महाराज, बहुत बुरी खबर है. सुषमा कहीं दिखाई नहीं दे रही. बूआ हर तरफ उसे देख आई हैं.’’

‘‘रात को आखिरी बार तुम ने उसे कब देखा था?’’

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‘‘जी, रात 9 बजे के लगभग ग्वालियर स्टेशन आने पर सभी ने खाना खाया और फिर अपनीअपनी बर्थ पर लेट गए. आप को मालूम ही है, नींद की गोली लिए बिना मुझे नीद नहीं आती. सो गोली गटकते ही आंखें मुंदने लगीं. अभी बूआ ने जगाया तो आंख खुली.’’

छोटे महाराज बरस पड़े, ‘‘लापरवाही की भी हद होती है. बूआ के साथसाथ तुम्हें भी कई बार समझाया था कि सुषमा पर कड़ी नजर रखा करो. लेकिन तुम सब…कहीं हरिद्वार में किसी के संग उस का इश्क का कोई लफड़ा तो नहीं चल रहा था? मुझे तो शक हो रहा है.’’

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‘‘मुझे तो कुछ मालूम नहीं. लीजिए, बूआ से बात कीजिए.’’

बूआ फोन पकड़ते ही खुशामदी लहजे में बोलीं, ‘‘पाय लागूं महाराज.’’

‘‘मंथरा की नानी, यह तो कमाल हो गया. आखिर वह चिडि़या उड़ ही गई. मुझे पहले ही शक था. उस की खामोशी हमें कभीकभी दुविधा में डाल देती थी. खैर, अब उज्जैन पहुंच कर ही कुछ सोचेंगे.’’

बूआ ने मोबाइल सोमनाथ की ओर बढ़ाया तो वे पूछे बिना न रह सके, ‘‘क्या बोले?’’

‘‘अरे, कुछ नहीं, अपने मन की भड़ास निकाल रहे थे. हम हमेशा सुषमा की जासूसी करते रहे. कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा. अब क्या चलती ट्रेन से हम भी उस के साथ बाहर कूद जाते. न जाने उस बेचारी के मन में क्या समाया होगा?’’

थोड़ी देर में सोमनाथ ने बत्ती बुझा दी पर नींद उन की आंखों से कोसों दूर थी. बीते दिनों की कई स्याहसफेद घटनाएं रहरह कर उन्हें उद्वेलित कर रही थीं :

लगभग 5-6 साल पहले पारिवारिक कलह से तंग आ कर सोमनाथ हरिद्वार के एक आश्रम में आए थे. उस के 3-4 माह बाद ही दिल्ली के किसी अनाथाश्रम से 11-12 साल के 4 लड़के और 1 लड़की को ले कर एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आश्रम में आया था. तब सोमनाथ के सुनने में आया था कि बदले में उस व्यक्ति को अच्छीखासी रकम दी गई थी. आश्रम की व्यवस्था के लिए जो भी कर्मचारी रखे जाते थे वे कम वेतन और घटिया भोजन के कारण शीघ्र ही भाग खड़े होते थे, इसीलिए दिल्ली से इन 5 मासूम बच्चों को बुलाया गया था.

शुरूशुरू में इस आश्रम में बच्चों का मन लग गया, पर शीघ्र ही हाड़तोड़ मेहनत करने के कारण वे कमजोर और बीमार से होते गए. आश्रम के पुराने खुशामदी लोग जहां मक्खनमलाई खाते थे, वहीं इन बच्चों को रूखासूखा, बासी भोजन ही खाने को मिलता. कुछ माह बाद ही चारों लड़के तो आसपास के आश्रमों में चले गए पर बेचारी सुषमा उन के साथ जाने की हिम्मत न संजो सकी. बड़े महाराज ने तब बूआ को सख्त हिदायत दी थी कि इस बच्ची का खास खयाल रखा जाए.

बूआ, सुषमा का खास ध्यान तो रखती थीं, पर वे बेहद चतुर, स्वार्थी और छोटे महाराज, जोकि बड़े महाराज के भतीजे थे और भविष्य में आश्रम की गद्दी संभालने वाले थे, की खासमखास थीं. बूआ पूरे आश्रम की जासूसी करती थीं, इसीलिए सभी उन्हें ‘मंथरा’ कह कर पुकारते थे.

18 वर्षीय सुषमा का यौवन अब पूरे निखार पर था. हर कोई उसे ललचाई नजरों से घूरता रहता. पर कुछ कहने की हिम्मत किसी में न थी क्योंकि सभी जानते थे कि छोटे महाराज सुषमा पर फिदा हैं और किसी भी तरह उसे अपना बनाना चाहते हैं. बूआ, सुषमा को किसी न किसी बहाने से छोटे महाराज के कक्ष में भेजती रहती थीं.

पिछले साल दिल्ली से बड़े महाराज के किसी शिष्य का पत्र ले कर नवीन नामक नौजवान हरिद्वार घूमने आया था. प्रात: जब दोनों महाराज 3-4 शिष्यों के साथ सैर करने निकल जाते तो सोमनाथ और सुषमा बगीचे में जा कर फूल तोड़ने लगते. 2-3 दिनों में ही नवीन ने सोमनाथ से घनिष्ठता कायम कर ली थी. वह भी अब फूल तोड़ने में उन दोनों की सहायता करने लगा.

28-30 साल का सौम्य, शिष्ट व सुदर्शन नौजवान नवीन पहले दिन से ही सुषमा के प्रति आकर्षण महसूस करने लगा था. सुषमा भी उसे चाहने लगी थी. उन दोनों को करीब लाने में सोमनाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे. उन की हार्दिक इच्छा थी कि वे दोनों विवाह बंधन में बंध जाएं.

सोमनाथ ने सुषमा को नवीन की पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में सबकुछ बता दिया था कि कानपुर में उस का अपना मकान है. उस की शादी हुई थी, लेकिन डेढ़ वर्ष बाद बेटे को जन्म देने के बाद उस की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. घर में मां और छोटा भाई हैं. एक बड़ी बहन शादीशुदा है. नवीन कानपुर की एक फैक्टरी के मार्केटिंग विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उसे 15 हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है. इन दिनों वह फैक्टरी के काम से ज्यादातर दिल्ली में ही अपने शाखा कार्यालय की ऊपरी मंजिल पर रहता है.

1 सप्ताह गुजरने के बाद जब नवीन ने वापस दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाया तो ऐसा संयोग बना कि छोटे महाराज को कुछ दिनों के लिए वृंदावन के आश्रम में जाना पड़ा. उन के जाने के बाद सोमनाथ ने नवीन को 3-4 दिन और रुकने के लिए कहा तो वह सहर्ष उन की बात मान गया.

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एक दिन बाग में फूल तोड़ते समय सोमनाथ ने विस्तार से सारी बातें सुषमा को कह डालीं, ‘बेटी, तुम हमेशा से कहती हो न कि घर का जीवन कैसा होता है, यह मैं ने कभी नहीं जाना है. क्या इस जन्म में किसी जानेअनजाने शहर में कोई एक घर मेरे लिए भी बना होगा? क्या मैं सारा जीवन आश्रम, मंदिर या मठ में व्यतीत करने को विवश होती रहूंगी?

‘बेटी, मैं तुम्हें बहुत स्नेह करता हूं लेकिन हालात के हाथों विवश हूं कि तुम्हारे लिए मैं कुछ कर नहीं सकता. अब कुदरत ने शायद नवीन के रूप में तुम्हारे लिए एक उमंग भरा पैगाम भेजा है. तुम्हें वह मनप्राण से चाहने लगा है. वह विधुर है. एक छोटा सा बेटा है उस का…छोटा परिवार है…वेतन भी ठीक है…अगर साहस से काम लो तो तुम उस घर, उस परिवार की मालकिन बन सकती हो. बचपन से अपने मन में पल रहे स्वप्न को साकार कर सकती हो.

‘लेकिन मैं नवीन की कही बातों की सचाई जब तक खुद अपनी आंखों से नहीं देख लूंगा तब तक इस बारे में आगे बात नहीं करूंगा. वह कल दिल्ली लौट जाएगा. फिर वहां से अगले सप्ताह कानपुर जाएगा. इस बारे में मेरी उस से बातचीत हो चुकी है. 3-4 दिन बाद मैं भी दिल्ली चला जाऊंगा और फिर उस के साथ कानपुर जा कर उस का घर देख कर ही कुछ निर्णय लूंगा.

‘यहां आश्रम में तो तुम्हें छोटे महाराज की रखैल बन कर ही जीवन व्यतीत करना पड़ेगा. हालांकि यहां सुखसुविधाओं की कोई कमी न होगी, परंतु अपने घर, रिश्तों की गरिमा और मातृत्व सुख से तुम हमेशा वंचित ही रहोगी.’

‘नहीं बाबा, मैं इन आश्रमों के उदास, सूने और पाखंडी जीवन से अब तंग आ चुकी हूं.’

अगले दिन नवीन दिल्ली लौट गया. उस के 3-4 दिन बाद सोमनाथ भी चले गए क्योंकि कानपुर जाने का कार्यक्रम पहले ही नवीन से तय हो चुका था.

एक सप्ताह बाद सोमनाथ लौट आए. अगले दिन बगीचे में फूल तोड़ते समय उन्होंने मुसकराते हुए सुषमा से कहा, ‘बिटिया, बधाई हो. जैसे मैं ने अनुमान लगाया था, उस से कहीं बढ़ कर देखासुना. सचमुच प्रकृति ने धरती के किसी कोने में एक सुखद, सुंदर, छोटा सा घर तुम्हारे लिए सुरक्षित रख छोड़ा है.’

‘बाबा, अब जैसा आप उचित समझें… मुझे सब स्वीकार है. आप ही मेरे हितैषी, संरक्षक और मातापिता हैं.’

‘तब तो ठीक है. लगभग 2 माह बाद ही छोटे महाराज, बूआ और इस आश्रम की 5-6 महिलाओं के साथ हम दोनों को भी हर वर्ष की भांति उज्जैन के अपने आश्रम में वार्षिक भंडारे पर जाना है. इस बारे में नवीन से मेरी बात हो चुकी है. इस बारे में नवीन ने खुद ही सारी योजना तैयार की है.

‘यहां से उज्जैन जाते समय रात्रि 10 बजे के लगभग ट्रेन झांसी पहुंचेगी. छोटे महाराज अपने 3 शिष्यों के साथ प्रथम श्रेणी के ए.सी. डब्बे में यात्रा कर रहे होंगे, शेष हम लोग दूसरे दर्जे के शयनयान में सफर करेंगे. तुम्हें झांसी स्टेशन पर उतरना होगा…वहां नवीन अपने 3-4 मित्रों के संग तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा. वैसे घबराने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि नवीन की बूआ का बेटा वहीं झांसी में पुलिस सबइंस्पैक्टर के पद पर तैनात है. अगर कोई अड़चन आ गई तो वह सब संभाल लेगा.’

‘क्या आप मेरे साथ झांसी स्टेशन पर नहीं उतरेंगे?’ सुषमा ने शंकित नजरों से उन की ओर देखा.

‘नहीं, ऐसा करने पर छोटे महाराज को पूरा शक हो जाएगा कि मैं भी तुम्हारे साथ मिला हुआ हूं. वे दुष्ट ही नहीं चालाक भी हैं. वैसे तुम जातनी ही हो कि बूआ, छोटे महाराज की जासूस है. अगर कहीं उस ने हम दोनों को ट्रेन से उतरते देख लिया तो हंगामा खड़ा हो जाएगा. तुम घबराओ मत. चंदन आश्रम में रह रहा राजू तुम्हारा मुंहबोला भाई है…उस पर तो तुम्हें पूरा विश्वास है न?’

‘हांहां, क्यों नहीं. वह तो मुझ से बहुत स्नेह करता है.’

‘कल शाम मैं राजू से मिला था. मैं ने उसे पूरी योजना के बारे में विस्तार से समझा दिया है. तुम्हारी शादी की बात सुन कर वह बहुत प्रसन्न था. वह हर प्रकार से सहयोग करने को तैयार है. वह भी हमारे साथ उसी ट्रेन के किसी अन्य डब्बे में यात्रा करेगा.

‘झांसी स्टेशन पर तुम अकेली नहीं, राजू भी तुम्हारे साथ ट्रेन से उतर जाएगा. मैं तुम दोनों को कुछ धनराशि भी दे दूंगा. यात्रा के दौरान मोबाइल पर नवीन से मेरा लगातार संपर्क बना रहेगा. राजू 3-4 दिन तक तुम्हारे ससुराल में ही रहेगा, तब तक मैं भी किसी बहाने से उज्जैन से कानपुर पहुंच जाऊंगा. बस, अब सिर्फ 2 माह और इंतजार करना होगा. चलो, अब काफी फूल तोड़ लिए हैं. बस, एक होशियारी करना कि इस दौरान भूल कर भी बूआ अथवा छोटे महाराज को नाराज मत करना.’

फिर तो 2 माह मानो पंख लगा कर उड़ते नजर आने लगे. सुषमा अब हर समय बूआ और छोटे महाराज की सेवा में जुटी रहती, हमेशा उन दोनों की जीहुजूरी करती रहती. छोटे महाराज अब दिलोजान से सुषमा पर न्योछावर होते चले जा रहे थे. उस की छोटी से छोटी इच्छा भी फौरन पूरी की जाती.

निश्चित तिथि को जब 8-10 लोग उज्जैन जाने के लिए स्टेशन पर पहुंचे तो छोटे महाराज को तनिक भी भनक न लगी कि सुषमा और सोमनाथ के दिलोदिमाग में कौन सी खिचड़ी पक रही है.

आधी रात को लगभग साढ़े 12 बजे बीना जंक्शन पर सोमनाथ ने जब छोटे महाराज को सुषमा के गायब होने की सूचना दी तो उन्होंने उसे और बूआ को फटकारने के बाद अपने शिष्य दीपक से खिन्न स्वर में कहा, ‘‘यार, सुषमा तो बहुत चतुर निकली…हम तो समझ रहे थे कि चिडि़या खुदबखुद हमारे बिछाए जाल में फंसती चली जा रही है, लेकिन वह तो जाल काट कर ऊंची उड़ान भरती हुई किसी अदृश्य आकाश में खो गई.’’

‘‘लेकिन इस योजना में उस का कोई न कोई साथी तो अवश्य ही रहा होगा?’’ दीपक ने कुरेदा तो महाराज खिड़की से बाहर अंधेरे में देखते हुए बोले, ‘‘मुझे तो सोमनाथ और बूआ, दोनों पर ही शक हो रहा है. पर एक बार आश्रम की गद्दी मिलने दो, हसीनाओं की तो कतार लग जाएगी.’’

उज्जैन पहुंचने पर शाम के समय बाजार के चक्कर लगाते हुए सोमनाथ ने जब नवीन के मोबाइल का नंबर मिलाया तो उस ने बताया कि रात को वे लोग झांसी में अपनी बूआ के घर पर ही रुक गए थे और सुबह 5 बजे टैक्सी से कानपुर के लिए चल दिए. नवीन ने राजू और सुषमा से भी सोमनाथ की बात करवाई. सोमनाथ को अब धीरज बंधा.

निर्धारित योजना के अनुसार तीसरे दिन छोटे महाराज के पास सोमनाथ के बड़े बेटे का फोन आया कि कोर्ट में जमीन संबंधी केस में गवाही देने के लिए सोमनाथ का उपस्थित होना बहुत जरूरी है. अत: अगले दिन प्रात: ही सोमनाथ आश्रम से निकल पड़े, परंतु वे दिल्ली नहीं, बल्कि कानपुर की यात्रा के लिए स्टेशन से रवाना हुए.

कानपुर में नवीन के घर पहुंचने पर जब सोमनाथ ने चहकती हुई सुषमा को दुलहन के रूप में देखा तो बस देखते ही रह गए. फिर सुषमा की पीठ थपथपाते हुए हौले से मुसकराए और बोले, ‘‘मेरी बिटिया दुलहन के रूप में इतनी सुंदर दिखाई देगी, ऐसा तो कभी मैं ने सोचा भी न था. सदा सुखी रहो. बेटा नवीन, मेरी बेटी की झोली खुशियों से भर देना.’’

‘‘बाबा, आप निश्ंिचत रहें. यह मेरी बहू ही नहीं, बेटी भी है,’’ सुषमा की सास यानी नवीन की मां ने कहा.

‘‘बाबा, अब 5-6 माह तक मैं दिल्ली कार्यालय में ही ड्यूटी बजाऊंगा.’’

नवीन की बात सुनते ही सोमनाथ बहुत प्रसन्न हुए, ‘‘वाह, फिर तो हमारी बिटिया हमारी ही मेहमान बन कर रहेगी.’’

फिर वे राजू की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘बेटे, अपनी बहन को मंजिल तक पहुंचाने में तुम ने जो सहयोग दिया, उसे मैं और सुषमा सदैव याद रखेंगे. चलो, अब कल ही अपनी आगे की यात्रा आरंभ करते हैं.’’

हम तीन- भाग 3: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

शाम के 4 बजे थे. हम तीनों पैदल ही साकेत चल पड़ीं. अनीता ने एक गली में दूर से ही एक घर की तरफ इशारा किया, ‘‘यही है अनिल का घर और वह जो बाहर स्कूटर खड़ा कर रहा है शायद अनिल ही है.’’

हम तीनों के कदम थोड़े तेज हुए.

अनिता ने कहा, ‘‘हां, सुकन्या, अनिल ही तो है.’’

सुकन्या ने ध्यान से देखा. अनिल किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह ऐसे खड़ा था कि हमें उस का साइड पोज दिख रहा था. सुकन्या के कदम ढीले पड़ गए, उस ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘‘यह मोटा सा गंजा आदमी अनिल कैसे हो सकता है, लेकिन शक्ल तो मिल रही है.’’

अनीता ने कहा, ‘‘यही है हैंडसम सा तेरा प्रेमी जिस का साथ पाने की इच्छा आज भी तेरा पीछा नहीं छोड़ रही, जिस के सामने अपने पति का अथाह प्यार भी तुझे तुच्छ लगता है.’’

सुकन्या अचानक वापस मुड़ गई. मैं ने कहा, ‘‘क्या हुआ, अनिल से मिलना नहीं है क्या?’’

सुकन्या जल्दी से बोली, ‘‘नहीं, थोड़ा तेज नहीं चल सकती तुम दोनों? जल्दी चलो यहां से.’’

अनीता हंसते हुए बोली, ‘‘चलो, किसी रेस्तरा में चलती हैं.’’

हम ने वहां बैठ कर कौफी और सैंडविच का और्डर दिया. हमारी हंसी नहीं रुक रही थी.  सुकन्या का चेहरा देखने लायक था.

अनीता हंसी. बोली, ‘‘बेचारी सुकन्या,

इतने साल पुराने प्यार की परिणति हुई भी तो किस रूप में.’’

सुकन्या ने हमें डपटा, ‘‘चुप हो जाओ तुम दोनों, मुझे सताना बंद करो, अपनी सारी कल्पनाओं को वहीं उसी गली में दफन कर आई हूं मैं. पहली बार मुझे मेरे पति सुधीर याद आ रहे हैं. बस, अब जल्दी से उन के पास पहुंचना है.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह क्या बेसब्री है… तुम्हारा प्यार का भूत तो बहुत तेजी से भाग गया.’’

अब हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी. हम बहुत हंसीं. इतना हंसे पता नहीं कितने साल हो गए थे. मैं ने कहा, ‘‘सुकन्या, और ये जो तुम ने गिफ्ट्स खरीदे इन का क्या होगा?’’

‘‘होगा क्या? शर्ट सुधीर पहनेंगे, मिठाई घर जा कर हम सब के साथ खाएंगे, परफ्यूम और पैन अपने बेटे को दे दूंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, अनिल को तो यह शर्ट आती भी नहीं,’’ मुझे और अनीता को तो जैसे हंसी का दौरा पड़ गया था. सुकन्या की शक्ल देख कर हम इतना हंसी कि हमारी आंखों में आंसू आ गए. सच, अगर हमारे बच्चे हमारा यह रूप देखते तो उन्हें अपनी आंखों पर यकीन न आता. यह तो अच्छा था कि इस समय रेस्तरां में 1-2 लोग ही थे और हम बैठी भी एक कोने में थीं. वेटर बेचारा हमारी शक्लें देख रहा था. खैर, खापी कर हम अपनेअपने घर चली गईं.

गिनेचुने दिन थे. जाने का दिल भी पास आ रहा था. अगले दिन हम तीनों ने फिर खरीदारी की. मां के लिए, भैयाभाभी और यश के लिए कुछ कपड़े खरीदे. उन दोनों ने भी इसी तरह का सामान लिया. फिर जब हम तीनों साथ बैठीं तो सुकन्या के दिल में आया कि थोड़े मुझे छेड़ा जाए, अत: मुझ से कहने लगी, ‘‘विनोद कहां है आजकल? कुछ पता है?’’

मैं ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘मेरी इस बात में जरा भी रुचि नहीं है. मुझे माफ करो.’’

अनीता हंसी, ‘‘मीनू, कहो तो उस का कायाकल्प भी देख लिया जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो, अभी एक को देख कर छेड़ा. फिर हम तीनों ने यह तय किया कि अब जब भी संभव होगा, मिलती रहेंगी. एक बार फिर पुराने समय में लौट कर बहुत मजा आया.’’

जाने का दिन आ गया. भीगी आंखों से एकदूसरी से बिदा ली. मां और भाभी ने तो पता नहीं कितनी चीचें बांध दी थीं. सब से पहले मैं ही निकल रही थी. अनीता को एक विवाह में शामिल होने के लिए 2 दिन और रुकना था, सुकन्या को लेने सुधीर आने वाले थे.

मां और भाभी प्यार भरी शिकायत कर रही थीं कि मैं सहेलियों के साथ ही घूमती रही. मैं बहुत अच्छा समय बिता कर लौट रही थी. मुंबई जा कर स्नेहा को इस रियूनियन का आइडिया देने के लिए गले से लगा कर थैंक्स कहने के लिए मैं बहुत उत्साहित थी. सच, बहुत मजा आया था.

मोदी की विदेश (कु)नीति

एक सफल व्यक्ति अपने मित्रों से जाना जाता है जबकि एक असफल व्यक्ति के चारों ओर मूर्खों का जमावड़ा रहता है. भारत की विदेश नीति से यह साफ हो गया है कि बहुत बोलने वाले खुद को चाहे महान मानते हों, उन का अहं व दंभ इतना ज्यादा हो कि उन की तर्क व विवेक शक्ति कुंद हो चुकी हो पर वे अपना बखान करते रहने से नहीं चूकते.

भारत ने जब से अमेरिका का साथ छोड़ कर रूस का दामन थामा, क्योंकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी नरेंद्र मोदी की तरह अंधविश्वासी व पुरातनपंथी हैं और दोनों को लोकतांत्रिक भावनाओं व आम जनता के सुखों से चिढ़ है, भारत की विदेश नीति दिल्ली के गाजीपुर इलाके में बने 400 फुट ऊंचे पहाड़ की तरह हो गई है जो मीलों से दिखता है.

भारत ने यूक्रेन का साथ न दे कर साबित कर दिया है कि भारत के नेता भी अपनी जनता को व्लादिमीर पुतिन की तरह गोबर और नाली में धकेल कर अपनी पीठ थपथपा सकते हैं. पुतिन ने यूक्रेन पर आक्रमण वही सोच कर किया था जो सोच कर नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला लिया, पकौड़ों का व्यवसाय करने की सलाह दी, बिना वैज्ञानिक राय के अचानक, बिना चेतावनी, लौकडाउन थोप दिया और अब यहां तक कह रहे हैं कि वे गाय के गोबर के व्यवसाय का अजूबा तरीका 10 मार्च को बताने वाले हैं जो छुट्टे सांडों (इन में भगवाधारी शामिल नहीं हैं) की सारी समस्या हल कर देगा.

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रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को नहीं पता था कि पूर्व कौमेडियन व्लोदोमीर जेलेंस्की, जो यूक्रेन का राष्ट्रपति हंसीखेल में बन गया था, इतना मजबूत निकलेगा. ऐसी ही गलती नरेंद्र मोदी लगातार कर रहे हैं जब वे कांग्रेस के राहुल गांधी को देश का नंबर एक कौमेडियन साबित करने की कोशिश करते हैं. राहुल गांधी कब जेलेंस्की जैसे साबित हो जाएं, कहा नहीं जा सकता.

आज पूरी दुनिया व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ एकजुट हो गई है, ब्राजील और बेलारूस को छोड़ कर जिन के अकेले हमदर्द नरेंद्र मोदी हैं. यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्रों के साथ अगर उन के घर लौटने के प्रयास में यूक्रेन, पोलैंड, रोमानिया में सही व प्यारभरा बरताव नहीं हो रहा तो इस के लिए नरेंद्र मोदी जिम्मेदार हैं जिन की विदेश नीति ने सब को रुष्ट कर दिया है और उस का असर इन छात्रों पर पड़ रहा है.

नरेंद्र मोदी ने पहले अपने जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का पालतू बन कर किया था. जब कोरोना का काला साया सिर पर मंडरा रहा था तब उन्हें भारत बुला कर फिर ‘एक बार ट्रंप सरकार’ का नारा अहमदाबाद के नएनवेले स्टेडियम में लगवाया था. नतीजा यह है कि भारत को आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, जो भारतीय मूल की भी हैं, से भाव नहीं मिल रहा.

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यूके्रन में जो रहा है, वह अद्भुत है. बड़ी शक्तियां छोटे देशों से कई बार हारी हैं. रूस पहले अफगानिस्तान में हार चुका है, फिर वहां अमेरिका हारा. अमेरिका वियतनाम में भी हारा. भारत श्रीलंका में तमिल टाइगर्स के हाथों पिट कर आया था, पर 4 करोड़ की आबादी वाला कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहा यूक्रेन जिस तरह एक राष्ट्रपति की हिम्मत के कारण रूस को एक सप्ताह तक रोक सका, वह दंभी व अकड़ में डूबी तानाशाही को सबक सिखा गया है.

योगी का शपथ ग्रहण: तुम्हारे अंगने में हमारा क्या काम है…

योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार मुख्यमंत्री पद शपथ ग्रहण समारोह में एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पहुंचकर  सवाल खड़े कर दिए हैं वहीं जिस तरह योगी के शपथ समारोह का भव्य कार्यक्रम आयोजित हुआ है वह अपने आप में कई सवाल खड़े करता है.

सबसे बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल सहित न्यायालयों के न्यायाधीश, किसी भी शपथ समारोह का सादगी से आयोजन होता रहा है. यह हमारे देश की परंपरा रही है.

मगर अब  देश में भाजपा के सत्तासीन होने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रथम शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही शपथ समारोह को भी भव्यतम बनाने का काम शुरू हो चुका है. जिसकी परिणति एक बार फिर उत्तर प्रदेश और पंजाब में देश ने देखी है.

उत्तर प्रदेश ने तो मानो सारे रिकॉर्ड ही ध्वस्त कर दिए. शुक्रवार 25 मार्च को जब दोपहर योगी आदित्यनाथ का शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था तो देश के सारे बड़े न्यूज चैनल कार्यक्रम का सीधा प्रसारण कर रहे थे. मानो यह कोई नई बात हो. शपथ समारोह का सीधा सा अर्थ होता है- मंत्रियों आदि का शपथ लेना ईमानदारी से अपने कर्तव्य वाहन की उद्घोषणा.

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इस कार्यक्रम को जिस तरीके से रबड़ की तरह खींच कर लाखों लोगों के सामने आयोजन हुआ है वह आजादी के अमृत महोत्सव के इस समय पर अनेक प्रश्न खड़े करता है कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है.

निसंदेह हमारा देश गरीब और पिछड़ा हुआ माना जाता है आज भी गांव में लोगों को पीने के लिए पानी  नहीं है, सरकार पानी तो उपलब्ध करवा नहीं पाती, बिजली सड़क कि आज भी कमी है.लोगों को आप महीने का राशन दे रहे हैं. बे रोजगारी है इस सब के बावजूद शपथ समारोह को सादगी, शालीनता से करने के बजाय राजभवन में करने के बजाए सार्वजनिक रूप से आयोजित करना और उसमें करोड़ों रुपए देश का खर्च कर देना फिजूलखर्ची नहीं है तो क्या है. मगर जब से भारतीय जनता पार्टी देश के केंद्र में स्थापित हुई है एक नई परंपरा के साथ शपथ ग्रहण समारोह को भी दिखावे का एक माध्यम बना दिया गया है.

जनता और संविधान का माखौल

2014 में जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पूर्ण बहुमत के साथ देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी ,तब  पहली दफा किसी शपथ समारोह का आयोजन भव्यतम बनाया गया था. मानो यह देश में पहली बार हो रहा है चूंकि यह सब बातें मर्यादा और आप के स्वविवेक पर छोड़ दी गई हैं और एक दीर्घ परंपरा रही है. इस सब बातों को दरकिनार करके नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप अनेक देश के प्रमुखों को आमंत्रित किया गया था और आयोजन भव्यतम हो गया. उस समय मोदी लहर में किसी ने सवाल नहीं उठाया कि देश में क्या हो रहा है.

आगे चलकर यह परंपरा बनती चली जा रही है जब राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्री गण शपथ समारोह में सादगी को दरकिनार कर करोड़ों रुपए फिजूलखर्ची  कर दिखावे का आयोजन कर रहे हैं.

क्योंकि इस संदर्भ में संविधान मौन है. ऐसे में आज चिंतन का विषय यही है कि किसी भी प्रदेश की सरकार के लिए यह कितना जरूरी है और करोड़ों रुपए खर्च करने से आखिर क्या लाभ है.

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इस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग पर हम यह भी देश की आवाम से पूछना चाहते हैं ऐसे आयोजनों पर आपकी क्या राय है क्या यह उचित है.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के शपथ समारोह के साथ ही पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में भगवंत मान ने शपथ ग्रहण समारोह में भव्य प्रदर्शन करके  जता दिया कि वह भी बातें तो बड़ी बड़ी करती है मगर चलती भाजपा और कांग्रेस के पीछे पीछे ही है.

आम के बागों का प्रबंधन

Writer- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ कीट वैज्ञानिक

अम के बागों में बौर आना शुरू हो गया है, इसलिए बागबानों को आम का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेने  के लिए अभी से इस की देखभाल करनी होगी, क्योंकि जहां चूके तो रोग व कीट पूरी बगिया को बरबाद कर सकते हैं.

आम के बागों में जिस समय पेड़ों पर बौर लगा हो और खिल गया हो, उस समय किसी भी कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस का परागण हवा या मधुमक्खियों द्वारा होता है.

अगर पुष्पावस्था में कीटनाशक दवा का छिड़काव कर दिया तो मधुमक्खियां मर जाएंगी और बौर पर छिड़काव से नमी होने के कारण परागण ठीक से नहीं हो पाएगा, जिस से फल बहुत कम आएंगे.

आम के बागों को सब से अधिक भुनगा कीट नुकसान पहुंचाते हैं. इस के शिशु व वयस्क दोनों ही कीट कोमल पत्तियों और पुष्पक्रमों का रस चूस कर हानि पहुंचाते हैं. इस की मादा 100-200 तक अंडे नई पत्तियों व मुलायम प्ररोह में देती है और इन का जीवनचक्र 12-22 दिनों में पूरा हो जाता है. इस का प्रकोप जनवरीफरवरी माह से शुरू हो जाता है.

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इस कीट से बचने के लिए बिवेरिया बेसिआना फफूंद 5 ग्राम को एक लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें या नीम तेल 2 मिली. प्रति लिटर पानी में मिला कर छिड़काव कर के भी छुटकारा पाया जा सकता है.

सब से अधिक बीमारी से नुकसान सफेद चूर्णी (पाउडरी मिल्ड्यू) से आम को होता है. बौर आने की अवस्था में यदि मौसम बदली वाला हो या बरसात हो रही हो, तो यह बीमारी जल्दी लग जाती है.

इस बीमारी के प्रभाव से रोगग्रस्त भाग सफेद दिखाई पड़ने लगता है. इस की वजह से मंजरियां और फूल सूख कर गिर जाते हैं. इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही आम के पेड़ों पर 2 ग्राम गंधक को प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

इस के अलावा आम में गुम्मा बीमारी भी लगती है. इसे गुच्छा बीमारी भी कहते हैं. इस बीमारी में पूरा बौर नपुंसक फूलों का एक ठोस गुच्छा बन जाता है.

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बीमारी पर नियंत्रण, प्रभावित बौर और शाखाओं को तोड़ कर या काट कर किया जा सकता है. इस रोग से प्रभावित टहनियों में कलियां आने की अवस्था में जनवरीफरवरी माह में पेड़ के बौर तोड़ देना भी लाभदायक रहता है, क्योंकि इस से न केवल आम की उपज बढ़ जाती है, बल्कि इस बीमारी के आगे फैलने की संभावना भी कम हो जाती है. यदि बागबान अभी से ही आम के बागों का ध्यान रखते हैं, तो अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

सिर्फ अफसोस

लेखक- हेमंत कुमार

शैलेश यही कुछ 4 दिन के लिए मसूरी में अपनी कंपनी के काम के लिए आया था. काम 3 दिन में ही निबट गया तो सोचा कि क्यों न आखिरी दिन मसूरी की हसीन वादियों को आंखों में समेट लिया जाए और निकल पड़ा अपने होटल से. होटल से निकल कर उस ने फोन से औनलाइन ही कैब बुक कर दी और निकल गया मसूरी की सुंदरता को निहारने. कैब का ड्राइवर मसूरी का ही निवासी था, ऐसा उस की भाषा से लग रहा था. शायद इसीलिए उसे शैलेश को मसूरी घुमाने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा था.

वह उन रास्तों से अच्छी तरह परिचित था जो उस की यात्रा को तीव्र और आरामदायक बनाएंगे. कैब का ड्राइवर पहाड़ों में रहने वाला सीधासाधा पहाड़ी व्यक्ति था. वह बिना अपना फायदा या नुकसान देखे खुद भी शैलेश के साथ निकल पड़ा और शैलेश को हर जगह की जानकारी पूरे विस्तार से देने लगा था. अब शैलेश भी ड्राइवर के साथ खुल चुका था. शैलेश ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, आप का नाम क्या है?’’

‘‘मेरा नाम महिंदर,’’ ड्राइवर ने बताया.

अब दोनों मानो अच्छे मित्र बन गए हों. महिंदर ने शैलेश को सारी जानीमानी जगहों पर घुमाया. समय कम था, इसीलिए शैलेश हर जगह नहीं घूम सका. मौसम काफी खुशनुमा था पर शैलेश को नहीं पता था कि मसूरी में मौसम को करवट बदलते देर नहीं लगती. देखते ही देखते  झमा झम बारिश होने लगी. महिंदर को इन सब की आदत थी, उस ने शैलेश से कहा, ’’घबराइए मत साहब, यहां आइए इस होटल में.’’

शैलेश ने देखा कि महिंदर जिस को होटल बोल रहा था वह असल में एक ढाबा था. शैलेश को महिंदर के इस भोलेपन पर थोड़ी हंसी आई पर उस ने अपनी हंसी को होंठों पर नहीं आने दिया क्योंकि वह ढाबा भी प्रकृति की गोद में इतना सुंदर लग रहा था कि पूछो मत.

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शैलेश ने महिंदर से कहा, ’’सच में भाईसाहब, इस के आगे तो हमारी दिल्ली के बड़ेबड़े पांचसितारा वाले होटल भी फीके हैं.’’

ठंडा मौसम था. शैलेश थोड़ा सिकुड़ सा रहा था. महिंदर सम झ गया था कि शैलेश को इस ठंड की आदत नहीं है. उस ने अपने और शैलेश के लिए 2 गरमागरम कौफी का आर्डर दे दिया.

महिंदर ने अब शैलेश की चुटकी लेना शुरू कर दिया, ‘‘और भाईसाहब, शादीवादी हुई कि नहीं अभी तक?’’

‘‘क्या लगता है?’’ शैलेश ने प्रश्न के बदले प्रश्न किया.

‘‘लगते तो धोखा खाए आशिक हो.’’

शैलेश ने महिंदर की बात का बुरा नहीं माना, बल्कि धीरे से हंस दिया.

शैलेश के चेहरे पर हंसी देख महिंदर तपाक से उस की तरफ उंगली दिखाता हुआ बोला, ‘‘है ना? सही बोला ना साब?’’

ढाबे के कर्मचारी ने उन के सामने उन की कौफियों के कप रख दिए और चलता बना.

महिंदर ने फिर उसी बात को छेड़ते हुए पूछा, ‘‘बताओ न साब, क्या किस्सा था वह.’’

शैलेश पहले तो थोड़ा  िझ झका, फिर अपना किस्सा सुनाने को तैयार हो गया.

शैलेश ने बताना शुरू किया, ‘‘उस वक्त मैं 11वीं जमात में दाखिल हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद 11वीं जमात में वह मेरा पहला दिन था. उस दिन कई न्यूकमर्स भी पहली बार स्कूल आए थे. उन्हीं में से एक थी रबीना. रबीना को पहली बार देख कर मेरे दिल में उस के लिए किसी प्रकार की कोई भावना तो नहीं उमड़ी पर धीरेधीरे हम दोनों में दोस्ती होनी शुरू हो गई और वह मु झे अपने बाकी दोस्तों से ज्यादा प्यारी भी हो गई. रबीना का बदन काफी गोरा था जो धूप में जाने से और गुलाबी हो उठता. उस के हाथों पर छोटेछोटे भूरे रंग के रोएं, बाल भी कहींकहीं से भूरे, भराकसा जिस्म, ऊपर से सजसंवर के उस का स्कूल में आना मु झे बड़ा आकर्षित करता था. रबीना के प्रति मेरी नजदीकियां बढ़ती चली जा रही थीं पर एक लड़की थी जो अकसर मेरे और रबीना के बीच आ जाती, वह थी संजना.’’

‘‘संजना कौन हैं साब?’’ जिज्ञासु महिंदर ने शैलेश से पूछा.

‘‘संजना तो वह थी जिस की बात मैं ने मानी होती तो आज पछताना नहीं पड़ता.’’

महिंदर अब और सतर्क हो कर किस्सा सुनने लगा.

‘‘रबीना तो अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी जिंदगी में आई थी पर संजना तो बचपन से ही मेरे दिल में बसती थी. संजना और मैं ने जब से पढ़ना शुरू किया तब से हम साथ ही थे. हमारे घर वाले भी एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. संजना मेरा पहला प्यार थी और मैं उस का. पर जब से रबीना मेरी जिंदगी में आई, मैं हर दिन रबीना के थोड़ा और पास आता गया और संजना से दूर होता गया. मु झे रबीना के नजदीक देख कक्षा के तमाम छात्र जलते थे. लड़कियों को रबीना से जलन होती और लड़कों को मु झ से. पर सब से ज्यादा कोई जलता था तो वह थी मेरी संजना. उस का जलना मु झे जब फुजूल का लगता था पर अब वाजिब लगता है. भला आप जिसे चाहते हों अगर वह आप के सामने ही किसी और का होने लगे तो इंसान का खून तो वैसे ही जल जाए. संजना मु झ से हमेशा कहती थी.’’

शैलेश की नजर बाहर गई, बारिश थम चुकी थी पर उस का किस्सा और उन की कौफी अभी आधी बची थी.

महिंदर ने पूछा, ‘‘क्या कहती थी?’’

शैलेश ने किस्सा चालू रखा, ‘‘संजना जब भी मु झ से ज्यादा चिढ़ जाती तो बोलती, ‘तुम भूलो मत वह एक मुसलमान है. तुम्हारा आगे एकसाथ कोई भविष्य नहीं है, काम तो मैं ही आऊंगी, इसीलिए संभल जाओ वरना बाद में बहुत पछताना पड़ेगा.’ पर रबीना के इश्क में मैं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, कुछ और दिखता ही नहीं था. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. मैं ने और रबीना ने एक ही कालेज में दाखिला लेने की पूरी तैयारी भी कर ली. पर 12वीं जमात के बाद संजना आगे क्या करेगी, न तो मैं ने कभी जानने की कोशिश की और न उस ने कभी बताने की.

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देखते ही देखते समय बीतता गया. संजना का नंबर भी अब उस की यादों की तरह मेरे फोन से मिट गया. अब मेरी फोन की कौल हिस्ट्री में सिर्फ रबीना के नाम की ही एक लंबी लिस्ट होती और उस से घंटों बात करने का रिकौर्ड. हमारे इश्क के चर्चे पूरे कालेज में होने लगे और रबीना भी मु झे उतना ही पसंद करती थी जितना मैं उसे.

‘‘न तो मैं ने कभी सोचा कि वह पराए धर्म की है और न उस ने. स्कूल के समय में तो मैं रबीना के जिस्म की तरफ आकर्षित था. उस की खूबसूरती के लिए उसे चाहता था पर अब मैं उसे दिल से चाहने लगा था. मैं ने कालेज में होस्टल में रहने के बावजूद कभी रबीना से जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाना चाहा. अब मु झे पता चला दिल से प्यार करना किसे कहते हैं. मु झे अब रबीना कैसे भी स्वीकार थी. चाहे वह पराए धर्म की हो या कभी उस की सुंदरता चली भी जाए तो भी मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता था.’’

शैलेश किस्सा बीच में रोक बाहर देखने लगा. मौसम फिर करवट बदल रहा था. हलकीहलकी बूंदाबांदी फिर शुरू हो गई.

शैलेश फिर अपने अधूरे किस्से पर वापस आया और महिंदर से पूछा, ‘‘हां, तो मैं कहां पर था.’’

‘‘आप रबीना को दिल से चाहने लगे थे,’’ महिंदर ने याद दिलाया.

‘‘हां, अब हम एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते थे, पर अब एक सब से बड़ी अड़चन थी जिसे हम हमेशा से नजरअंदाज करते रहे थे. वह थी हमारी अलगअलग कौमें. चलो और कोई बिरादरी या जात होती तो चलता पर एक हिंदू और मुसलिम की जात को हमारा समाज हमेशा से एकदूसरे का दुश्मन सम झता है. हमें अच्छी तरह से मालूम था कि न तो मेरे घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे और न ही रबीना के. मैं ने रबीना से कहा था कि ‘तुम हिंदू हो जाओ न.’

‘‘तब उस ने मु झ से धीरे से कहा, ‘तुम मुसलमान हो जाओ. मैं अपने अम्मीअब्बा की इकलौती हूं. मैं हिंदू हो गई तो उन का क्या होगा.’

‘‘मैं ने कहा, ‘ऐसे तो मैं भी इकलौता हूं अपने मांबाप का और तुम सम झती क्यों नहीं, हिंदू धर्म एक शुद्ध और सात्विक धर्म है और तुम एक बार हिंदू बन गई तो मैं अपने मांबाप को मना ही लूंगा.’

‘‘‘और मेरे अम्मीअब्बा का क्या? अरे, इकलौती बेटी के लिए कितने सपने देखते हैं. उस के वालिद पता है? एक वालिद उस के लिए अच्छा शौहर ढूंढ़ने के सपने देखते हैं, उस के निकाह के सपने देखते हैं, उस के लिए अपनी सारी जमापूंजी लगा देते हैं और बदले में सिर्फ समाज के सामने इज्जत से उठी नाक चाहते हैं जो मेरे हिंदू बनने पर शर्म से कट जाएगी,’ रबीना ने भी अपना पक्ष साफसाफ मेरे सामने रख दिया.

‘‘‘और अगर मैं मुसलमान बन गया तो मेरे मांबाप का तो सिर गर्व से उठ जाएगा न?’ मैं ने भी गरम दिमाग में बोल दिया पर अगले ही पल लगा कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.

‘‘वह उठ कर चली गई. मु झे लगा कि अभी गुस्सा है, जब शांत हो जाएगी, फिर आ जाएगी मेरे पास. पर मु झे क्या पता था कि वह मु झ से वास्ता ही छोड़ देगी और इतनी आसानी से मु झे भुला देगी. स्कूल के समय में जिस तरह रबीना के पीछे मरने वालों की कोई कमी नहीं थी उसी प्रकार कालेज में भी लड़के रबीना के प्रति आकर्षित रहते. मु झ से मनमुटाव होने के बाद उस ने अपना नया साथी ढूंढ़ लिया जो उसी की कौम का था और हमारे ही कालेज का था. कालेज भी अब खत्म हो चुका था और हमारा एकदूसरे से वास्ता भी. मैं ने कई महीनों तक उस को सोशल मीडिया पर मैसेज करने की कोशिश की पर हर जगह से खुद को ब्लौक पाया. मेरा नंबर उस ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया. अब मेरे कानों में संजना की उस दिन वाली बात गूंजने लगी, ‘काम तो मैं ही आऊंगी.’ कुछ दिन उदास रहा और खुद को यही तसल्ली देता रहा कि वह तो वैसे भी मुसलिम थी, चली गई तो क्या हुआ, पर मैं ने अपने मांबाप को तो नहीं छोड़ा न.

‘‘मु झे आज सम झ में आया कि जिसे तुम चाहो अगर वह तुम्हारे सामने ही किसी और की हो जाए तो कैसा लगता है, और कुछ ऐसा ही लगता होगा मेरी संजना को उस वक्त. मैं ने तय किया कि फिर संजना का हाथ पकड़ं ूगा. पर मन में ही विचार किया कि किस मुहं से जाऊंगा उस के पास? क्या कहूंगा उस से कि क्या हुआ मेरे साथ और मान लो कह भी दिया तो क्या वह फिर से स्वीकार करेगी मु झे?

‘‘मैं ने अपना स्वाभिमान छोड़ कर सोच लिया कि जो कुछ हुआ सब बता दूंगा उसे, उसे ही जीत जाने दूंगा. अगर अपनेआप को गलत साबित कर के मैं फिर उस का हो जाऊं तो क्या बुराई है? पर उसे ढूंढ़ने पर पता चला कि अब वह दिल्ली में नहीं रहती. सारे सोशल मीडिया को छान मारा पर वह वहां पर भी कहीं नहीं मिली. फिर हताश हो कर अपनी जिंदगी को रुकने नहीं दिया बल्कि एक कंपनी में जौब कर लिया. और संजना का मिलना न मिलना प्रकृति के ऊपर छोड़ दिया.’’

‘‘फिर क्या हुआ साब?’’ महिंदर सुनना चाहता था कि आगे क्या हुआ.

‘‘फिर क्या होगा? जिंदगी चल ही रही है. आज नहीं तो कल वह मिल जाएगी, अगर न भी मिली तो भी सम झ लूंगा कि मेरी ही गलती की सजा है जो उस वक्त उस की कद्र नहीं कर पाया.’’

शैलेश ने बाहर देखा, मौसम की मार और जोर से पड़ने लगी और जिस तरह से वह और महिंदर मौसम की मार से बचने के लिए ढाबे में घुसे थे उसी तरह और पर्यटक भी ढाबे के अंदर पनाह लेने लगे. ढाबे का कर्मचारी फटाफट अपनी सारी टेबलों पर कपड़ा मारने लगा और उन से बैठने को कहने लगा.

तभी शैलेश की नजर एक नौजवान औरत पर पड़ी जो उसी बरसात से बचते हुए ढाबे में आई थी. उस औरत को देख शैलेश की आंखें उस पर गड़ी की गड़़ी रह गईं. मानो दिमाग पर जोर दे कर कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

शैलेश को पराई औरत को ऐसे घूरते देख महिंदर बोला, ‘‘अरे साब, ऐसे मत देखो वरना बिना बात में दोनों को खुराक मिल जाएगी अभी.’’

‘‘क्यों?’’ शैलेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘दिखता नहीं क्या, नईनई शादी हुई है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘अरे साब, आधे हाथ चूडि़यों से भरे हैं और माथे पे सिंदूर नहीं दिखता क्या?’’ महिंदर भोलेपन में फिर से बोला, ‘‘कोई बात नहीं साब, आप को कैसे पता होगा, पर मु झे सब पता है नईनई शादी के बाद लड़कियां ऐसे ही फैशन करती हैं. मेरी वाली भी करती थी न,’’ कह कर महिंदर शरमा गया.

शैलेश अनबना सा रह गया मानो महिंदर की बात वह मानना नहीं चाहता था.

‘‘अरे क्या हुआ साब? जानते हो क्या इसे?’’ महिंदर ने पूछा.

‘‘अरे यही तो मेरी संजना है. पर यह शादी और मसूरी का क्या चक्कर?’’ संजना अब पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. उस का जिस्म भी भर गया था, चेहरे पर ऐसी चमक मानो जिंदगी में कोई चिंता ही न हो. पर संजना के माथे का सिंदूर और कलाइयों पर चूडि़यां शैलेश को अंदर से खाए जा रही थीं. कुछ सम झ में भी नहीं आ रहा था कि वह यहां कैसे.

शैलेश अपनी टेबल से उठ खड़ा हुआ और जा कर संजना के सामने अचानक से प्रकट हो गया. दोनों एकदूसरे को मसूरी में देख चौंक गए. उन्होंने ऐसा इत्तफाक सिर्फ कहानियों और फिल्मों में ही देखा था.

संजना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम? और यहां?’’

‘‘मैं तो काम से आया था कल निकल जाऊंगा, लेकिन तुम यहां कैसे?’’ शैलेश ने पूछा.

‘‘मेरी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है,’’ संजना ने एक नौजवान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इन्होंने ही प्लान बनाया था हमारा हनीमून मसूरी में ही मनेगा.’’

संजना ने आगे बड़े ही मजाकिया लहजे में पूछा मानो उसे सब पता हो, ‘‘और अपना सुनाओ कैसी चल रही है तुम्हारी और रबीना की जिंदगी, शादीवादी हुई?’’ यह कह कर संजना मुसकरा गई.

बरसात फिर से थम गई. शैलेश इस से पहले कुछ बोलता, संजना के पति ने उसे इशारा कर जल्दी से चलने को कहा. संजना ने भी जवाब सुने बिना ही शैलेश को अलविदा कर दिया और आगे बढ़ गई. संजना ने पीछे मुड़ कर शैलेश को देखा और बड़ी ही बेरहमी से कहा, ‘‘क्यों, आना पड़ा न मेरे ही पास.’’

भोले महिंदर ने शैलेश को दिलासा दिलाते हुए उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘चलो साब, वरना फिर बारिश शुरू हो जाएगी, वापस भी तो जाना है न.’’

शैलेश दूर जाती संजना को देख रहा था. वक्त उस के हाथ से निकल चुका था. अब कभी वापस नहीं आएगा.

मौत के बाद वंश बढ़े ऐसे

जरमन मूल की अमेरिकी नागरिक रीटा अलैक्जैंडर नर्तकी थी और क्लेरेंस लोबो उस का डायरैक्टर. दोनों में लगाव हुआ और उन्होंने विवाह कर लिया. नृत्यसंगीत में वे अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त युग्म थे. कार्यक्रमों में अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे चाह कर भी परिवार को आगे बढ़ाने के बारे में नहीं सोच पा रहे थे. एक बार ‘लास एंजिल्स मैडिकल काउंसिल’ के लिए उन का प्रस्तुतीकरण चल रहा था. शो के दौरान क्लेरेंस को हार्ट अटैक हुआ और मृत्यु हो गई. दुखद क्षणों में काउंसिल के डीवीएफ ऐक्सपर्ट डा. रौबर्ट निकल्सन ने शोक जताते हुए रीटा को एक अनोखा प्रस्ताव दिया. वे बोले, ‘यदि वह क्लेरेंस के बच्चे की मां बनने को उत्सुक है तो उस के मृत शरीर से शुक्राणु प्राप्त कर मैं तुम्हारे लिए प्रिजर्व कर सकता हूं.’ रीटा को तत्काल निर्णय लेना था. लोबो की स्मृति जीवंत बनाए रखने के लिए वह सहमत हो गई और सगर्व उस ने मृत्यु के बाद उस के बेटे को जन्म दिया. रोहिणी व केशव (बदले हुए नाम) मैनेजमैंट के छात्र थे. प्रेम संबंधों के बाद हालांकि उन्होंने विवाह तो कर लिया किंतु कैरियर कौंशस होने के कारण उन्हें अकसर अलग रहना पड़ता था. रोहिणी एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के मुंबई कार्यालय में सीईओ थी, जबकि केशव ने हाल ही में बैंगलुरु में अपनी आईटी कंपनी शुरू की थी. दोनों को जीतोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी, इसलिए साथ रहने का अवसर कम ही मिल पाता था. भागदौड़ भरे क्षणों में उन्हें फुरसत भी न थी कि वे परिवार के बारे में सोच सकें जबकि उन्हें बच्चे की तीव्र चाह थी.

जब तक वे परिवार में वृद्धि की इच्छा को कार्यरूप में परिणत कर पाते, केशव गंभीर दुर्घटना का शिकार हो गया. डाक्टरों ने ‘ब्रेन डैथ’ की बात कहते हुए उस के जीवन की संभावनाओं से इनकार कर दिया. रोहिणी के मांबाप व अन्य लोग उस के भविष्य को ले कर चिंतित थे पर उस के मन में कुछ और ही चल रहा था. उस के मौन ने एक साहसिक निर्णय लिया. केशव की इच्छानुसार उस के बच्चे की मां बनने के लिए उस ने ‘सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल’ तकनीक के प्रयोग का निश्चय किया. केशव के परिवारजन चाहते थे कि वह उस के छोटे भाई या किसी अन्य से विवाह कर ले. रोहिणी नहीं मानी और उस ने केशव के मृत शरीर से शुक्राणु संरक्षित रखवा, उपयुक्त समय आने पर मां बनने में तनिक भी संकोच न किया. एक जरनल ‘ह्यूमन रिप्रोडक्शन’ के अनुसार, ‘पोस्टमार्टम स्पर्म रिट्रीवल’ का प्रथम प्रकरण तब सामने आया जब एक 30 वर्षीय अमेरिकी युवक की दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद उस के शुक्राणु संरक्षित किए गए. इस में शरीर में से सर्जरी कर के स्पर्म निकाले जाते हैं. 1999 में यह तकनीक सामने आई. इसे पीएसआर यानी पास्थमस स्पर्म रिट्रीवल कहते हैं. भारत में इस के ऐक्सपर्ट के बतौर डा. शीतल सबरवाल व डा. अर्चना के नाम जाने जाते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तकनीक के द्वारा मृत्यु के 30 घंटे बाद तक शुक्राणुओं को निकाल कर उन्हें संरक्षित किया जा सकता है बशर्ते मृतक को शुक्राणुओं से संबंधित किसी प्रकार की समस्या न रही हो. पीएसआर से प्राप्त शुक्राणुओं को अधिकतम 5 वर्ष की समयावधि तक फ्रोजन स्थिति में संरक्षित रख कर उपयोग में लाया जा सकता है. हालांकि पहले ब्रेन डैथ हो जाने वाले प्रकरणों में ऐसा किया जाना संभव नहीं था किंतु अब यह भी संभव हो गया है. जहां तक इस तकनीक के सफल होने की बात है, वैज्ञानिकों का मानना है कि मृत व्यक्ति से संरक्षित किए गए स्पर्म 40 प्रतिशत तक निर्धारित समयावधि में सक्रिय बने रहते हैं और उन्हें कुछ काल बाद, किंतु तय समयावधि में प्रत्यारोपित कर दिए जाने पर सफलता की दर 20 से 25 प्रतिशत तक मानी जाती है. तुरंत प्रत्यारोपण पर सफलता की संभावनाएं बहुत अधिक प्रबल होती हैं. बेशक, सफलता के आंकड़े अधिक उत्साहजनक नहीं लग रहे हैं किंतु मृत्यु के तुरंत बाद इन का प्रत्यारोपण करवाने तथा मृतक की स्थिति व ग्रहणकर्त्ता की मानसिक स्थिति (अवसाद आदि) से भी सफलता का अंतर्संबंध है.

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सरल व सहज प्रक्रिया

विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के अनुसार, उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि मृतक व्यक्ति के स्पर्म तुलनात्मक रूप से अन्य की अपेक्षा में अधिक सक्रिय पाए जाते हैं. इस के लिए जरूरी है कि प्राप्त किए गए शुक्राणुओं में किसी प्रकार की कमी न हो और न ही उन्हें ग्रहण करने वाली स्त्री के स्वास्थ्य में ऐसी कोई प्रतिकूलता हो जो उसे गर्भधारण करने के अयोग्य ठहराती हो. यह भी माना जाता है कि मृतक व्यक्ति को कोई जानलेवा बीमारी नहीं होनी चाहिए और यदि वह कीमियोथैरेपी जैसा कोई इलाज ले रहा हो तो उस के शुक्राणु कुछ कम सक्रिय हो सकते हैं और तद्नुसार सफलता का प्रतिशत भी घट जाता है.  जहां तक मृत व्यक्ति के शरीर से स्पर्म निकालने और उन को संरक्षित रखे जाने की बात है, वह अधिक पेचीदगियों भरी तकनीक नहीं है. शुक्राणुओं को प्राप्त कर उन्हें फ्रोजन स्थिति में संरक्षित रखा जाता है, जो बेहद प्रचलित विधि के अनुसार ही है. इस के बाद बारी आती है फ्रोजन किए गए शुक्राणुओं को स्त्री की कोख में प्रत्यारोपित किए जाने की. सो, वह प्रक्रिया भी बेहद आसान है. ठीक वैसी ही, जैसे कि सामान्य प्रकरणों में स्त्री की कोख में भू्रण प्रत्यारोपित किया जाता है.

हालांकि इस तरह पति की मृत्यु के बाद उस के शुक्राणुओं को विधवा स्त्री परिवार की सहमति से अथवा सहमति के बिना प्रत्यारोपित करवा, बच्चे को जन्म दे सकती है किंतु विचारणीय है कि ऐसे बच्चे को कानून और समाज किस तरह से देखता है. अमेरिका और पश्चिमी देशों में, जहां इस तकनीक का आविष्कार हुआ है, मृत पति के शुक्राणुओं से पत्नी द्वारा संतति को जन्म देना गलत नहीं माना जाता किंतु सामान्यरूप से यह प्रचलन में नहीं है. जहां तक कानूनी पक्ष की बात है, पति व संतान के डीएनए मिल जाने पर इस तरह उत्पन्न संतान को कानूनन वैध संतान मान लिया जाता है. ऐसे कई प्रकरण हुए हैं जिन में न्यायालयों द्वारा अन्य संतानों के समकक्ष ऐसी संतानों को वैध उत्तराधिकार दिया गया है. भारत में अपवादस्वरूप रोहिणी जैसी आधुनिक युवतियां दिवंगत पति के शुक्राणुओं से बच्चे को जन्म देने का साहस तो दिखा सकती हैं किंतु पारंपरिक भारतीय समाज ऐसे प्रकरणों को नैतिक दृष्टि से हेय ही मानता है. जब ऐसे बच्चे समाज और कानून से रूबरू होते हैं तो उन्हें न अपनत्व प्राप्त होता है, न ही पिता से प्राप्त होने वाला उत्तराधिकार. बेशक नैतिकता के आधार पर यह बहस का मुद्दा हो सकता है किंतु भारतीय सामाजिक व्यवस्था में किसी विधवा स्त्री द्वारा पुनर्विवाह किए बिना बच्चे को जन्म देना, चाहे वह दिवंगत पति के शुक्राणुओं से ही क्यों न हो, अस्वीकार्य माना जाता है. कानूनी दृष्टि से भी ऐसी संतान को उत्तराधिकारहीन ही रहना पड़ता है.

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सामाजिक व कानूनी पहलू

इस संबंध में समाजसेवी राम मनोहर प्रभु से बात की गई. उन्होंने विषय को सुन कर उपहास भरे लहजे में कहा कि भारत में ऐसा सोचना भी संभव नहीं. वे बोले, ‘‘भारतीय पत्नी के लिए पति को गंवाना अत्यंत दुखद हादसा है. वह तत्काल ऐसी बात सोच ले और इतना बड़ा निर्णय ले ले, अकल्पनीय है. मान लीजिए, ऐसा भावुक निर्णय वह ले भी ले तो पारिवारिक सहमति नहीं बन पाएगी क्योंकि हमारे यहां मृत देह से तनिक भी छेड़छाड़ उचित नहीं मानी जाती. सर्वाधिक दुष्कर है, भारत जैसे देश में उच्च तकनीकी चिकित्सकीय सुविधाओं का निर्धारित समयसीमा में उपलब्ध हो जाना. फिर भी यदि कोई परिवार ऐसा दुस्साहसी कदम उठा ले और सुविधाएं भी जुटा ले तो मान कर चलिए कि समाज व कानून द्वारा फैसला बाद में होगा, इस से पूर्व 24 घंटे चलने वाले चैनलों पर दिलचस्प ‘मीडिया बहस’ छिड़ जाएगी.’’

प्रजनन विशेषज्ञ डा. सोमेश्वरदत्त बनर्जी ने विषय की गंभीरता को समझते हुए कहा, ‘‘बेशक क्लिनिकली यह संभव है पर ऐसे मामलों में यथासमय सभी सुविधाओं का जुट पाना, शुक्राणुओं को संगृहीत कर उन का सुरक्षित उपयोग होना, आसान नहीं. ऐसे मामलों में सौ फीसदी सफलता नहीं मिल पाती, इसलिए यह जानते हुए, न कोई क्लिनिक ऐसे कठिन कार्य को करने हेतु सहमत होगा और न ही कोई परिवार उस के लिए तैयार होगा.’’ जो भी हो, यह बहस का विषय तो है ही. माना कि आज पीएसआर सुविधाएं प्राप्त व लोकप्रिय नहीं हैं मगर कल तो हो जाएंगी. जहां तक पत्नी के अधिकार की बात है, एक स्त्री, जो पति के दिवंगत होने तक उस की पत्नी रही है, यदि पति की मृतदेह से शुक्राणु प्राप्त कर उस से संतान उत्पन्न करती है तो तार्किक दृष्टि में वह उत्तराधिकार में पति के धन को ग्रहण करने के समतुल्य कार्य है. विचारणीय तथ्य है कि जब वह पति द्वारा अर्जित धन को प्राप्त करने की वैध अधिकारिणी है तो भला उस के शुक्राणुओं को ग्रहण करने की अधिकारिणी क्यों नहीं मानी जा सकती?

मान लीजिए, यदि पति ने अपने जीवनकाल में भावी उपयोग हेतु शुक्राणुओं को ‘शुक्राणु बैंक’ में जमा रखवाया होता और बिना उपयोग का निर्देश दिए उस की मृत्यु हो गई होती तो ऐसी स्थिति में उन्हें उपयोग में लेने हेतु निर्देशित करने का कानूनी अधिकार किस के पास होता? निसंदेह वह अधिकार पत्नी के पास होता. ऐसी स्थिति में यदि वह अपने पति के शुक्राणुओं को, पति का नाम चलाने के लिए स्वयं के उपयोग में लेना चाहे तो क्या गलत है? इस में कोई दोराय नहीं कि यह उस का एकाधिकार है. वह चाहे तो किसी अन्य स्त्री के उपयोग हेतु उन्हें काम में लेने दे या स्वयं प्रयोग में ले कर पति की डैथ के बाद भी उस की संतान पैदा कर, पति को डैड बनाने का काम करे. 

Summer Special: फलों और सब्जियों से बनाएं बच्चों के लिए हेल्दी स्मूदी

स्मूदी एक ऐसा पेय पदार्थ  है जो मीठा, गाढ़ा व शक्तिवर्धक होता है. इस में ताजे या फ्रोजन फलों, दही, दूध, शहद या चीनी आदि का प्रयोग होता है. इस की पौष्टिकता को बढ़ाने के लिए अपने स्वादानुसार ओट्स, फ्लैक्सीड, ड्राईफू्रट्स, सलाद या पालक पत्ते, आइसक्रीम आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है. इस को पीने से ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही, यह हैल्थ के लिए न्यूट्रीशियस सप्लीमैंट का काम भी करता है.

  1. फल और सब्जियों का मिक्स ड्रिंक

सामग्री

100 ग्राम टमाटर, 100 ग्राम सेब के छिले व कटे टुकड़े, 100 मिलीलिटर एप्पल जूस, 2 बड़े चम्मच गाजर छिली व कटी, 1 बड़ा चम्मच सेलरी बारीक कटी, 100 ग्राम दही, 1?छोटा चम्मच ताजी कुटी कालीमिर्च.

विधि 

  • टमाटरों को ब्लांच कर के छीलें और बीज निकाल लें.
  • सभी चीजों को ब्लैंडर में डाल कर चर्न करें और गिलास में सर्व करें.

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  1. हराभरा ड्रिंक

सामग्री

कीवी छिली व कटी 2 नग, 1/2 कप खीरा छोटे टुकड़ों में कटा, 1/4 कप ताजा जमा थक्का दही, 1 बड़ा चम्मच मिल्क पाउडर और 1 बड़ा चम्मच चीनी.

विधि 

  • सभी चीजों को मिक्स करें.
  • ब्लैंडर में 6-7 आइसक्यूब्स के साथ चलाएं और ठंडीठंडी स्मूदी गिलास में सर्व करें.
  • ऊपर से एक चैरी सजा दें.
  • विटामिन सी से भरपूर स्मूदी तैयार है.
  1. फलों का टेस्टी ड्रिंक

सामग्री

5 नग फ्रोजन स्ट्राबैरी, 1/2 कप छिला व गोल टुकड़ों में कटा पका केला, 1 बड़ा चम्मच अलसी के भुने बीज, 1/2 कप दही ताजा जमा, 2 छोटे चम्मच शहद, 2 बड़े चम्मच ठंडा दूध और थोड़े से आइसक्यूब्स.

विधि 

  • उपरोक्त लिखी सभी सामग्री मिलाएं.
  • 7-8 आइसक्यूब्स डाल कर ब्लैंडर में एकसार करें.
  • बढि़या स्मूदी तैयार है.

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  1. हेल्दी मूसली ड्रिंक

सामग्री

3 बड़े चम्मच फू्रटी मूसली, 11/2 कप ठंडा दूध, 1 बड़ा चम्मच फै्रश जमा दही, 2?छोटे चम्मच शहद और सजावट के लिए थोड़े से ड्राईफू्रट्स.

विधि 

  • ब्लैंडर में दही, दूध, मूसली और शहद डाल कर ब्लैंड करें.
  • क्रश्ड आइस गिलास में डालें और ऊपर से मूसली का मिश्रण डालें.
  • ड्राईफ्रूट्स और थोड़ी सी मुसेली से सजा कर सर्व करें.
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