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सपनों का जगह से कोई संबंध नहीं होता: समीक्षा भटनागर

रचनात्मकता जगह यानी कि गांव,छोटा शहर या बड़े शहर की मोहताज नहीं होती. छोटे शहर में रह रहे या छोटे शहर में जन्मा इंसान भी बड़े बड़े रचनात्मक काम करने के सपने देख और उन्हें पूरा कर सकता है. जी हां! यह कटु सत्य है. मशहूर बौलीवुड अदाकारा समीक्षा भटनागर को कत्थक नृत्य व संगीत में महारत हासिल है.जबकि समीक्षा भटनागर मूलतः देहरादून, उत्तराखंड की रहने वाली हैं.मगर उन्हे बचपन से ही नृत्य व संगीत का शौक रहा है. उनके इस शौक को बढ़ावा देने के मकसद से उनके पिता कृष्ण प्रताप भटनागर और मां कुसुम भटनागर देहरादून से दिल्ली रहने आ गए. जहां समीक्षा भटनागर ने अपनी कत्थक डांस अकादमी खोली. फिर दो वर्ष बाद अपनी प्रतिभा को पूरे विश्व तक पहुंचाने के मकसद से वह मुंबई आ गयी. सीरियल ‘एक वीर की अरदास: वीरा’ सहित कई सीरियलों व फिल्मों में वह अभिनय कर चुकी हैं. इतना ही नही बतौर निर्माता कुछ म्यूजिक वीडियो और एक लघु फिल्म ‘‘भ्रामक’’ बनायी,जिसे नेटफ्लिक्स पर काफी सराहा गया. इन दिनों वह ‘धूप छांव’ सहित करीबन पांच फिल्में कर रही हैं.

प्रस्तुत है समीक्षा भटनागर से हुई एक्सक्लूसिव बातचती के अंश:

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देहरादून जैसे छोटे शहर से मुंबई आकर फिल्म अभिनेत्री बनने की यात्रा कितनी आसान रही?

मेरी राय में हर लड़की को बड़े बड़े सपने देखने और उन्हे पूरा करने के लिए प्रयास करने का हक है. सपनों का जगह से कोई संबंध नही होता. जी हां! मैं मूलतः देहरादून , उत्तराखंड की रहने वाली हूं.लेकिन मैं हमेशा रचनात्मक क्षेत्र में ही काम करना चाहती थी. मुझे मेरे सपनों को पूरा करने में, मेरे पैशन को आगे बढ़ाने में मेरे पिता कृष्ण प्रताप भटनागर व मां कुसुम भटनागर ने पूरा सहयोग दिया. मैंने अपनी मां कुसुम भटनागर से ही कत्थक नृत्य सीखा है.वह बचपन से कत्थक नृत्य करती रही हैं. उनकी इच्छा थी कि मैं भी कत्थक नृत्य सीखते हुए आगे बढ़ूं. इसके अलावा नृत्य व संगीत मुझे ईश्वरीय देन है. मैं गाती भी हूं. मेरे परिवार ने हमेशा मेरे पैशन को बढ़ाने में सहयोग दिया. मैं भी अपने पैशन के प्रति पूरी लगन से जुड़ी रही हूं. मैं हमेशा कुछ न कुछ नया सीखती रहती हूं. आप मेरे इंस्टाग्राम पर जाएंगे,तो पाएंगे कि मैं कभी नृत्य सीख रही हूं तो कभी संगीत सीख रही हूं. कभी मैं उसके वीडियो बनाती हूं.

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एक वक्त वह आया, जब मेरे पैशन को उंची उड़ान मिल सके, इस सोच के साथ हमारा परिवार देहरादून से दिल्ली आ गया. दिल्ली आने के बाद मैंने काफी कुछ सीखा. कुछ समय बाद मैंने अहसास किया कि यदि मुझे रचनात्मक क्षेत्र में कुछ बेहतरीन काम करना है, तो दिल्ली की बनिस्बत मुंबई ज्यादा अच्छी जगह है. इसलिए मुंबई जाकर कोशिश करती हूं. यदि कुछ हो गया, तो ठीक है, नहीं से फिर वापस दिल्ली आ जाएंगे. मुंबई पहुंचते ही मुझे अच्छा रिस्पांस मिला. मुझे पहला टीवी सीरियल ‘‘एक वीर की अरदास: वीरा’’ करने का अवसर मिला.

दिल्ली में आपने अपनी डांस अकादमी खोली थी, जिसे दो वर्ष बाद आपने बंद कर दिया था?

वास्तव में दिल्ली में एक मशहूर अंतरराष्ट्रीय डांस स्कूल में मैं डांस टीचर के रूप में काम करती थी. उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपनी प्रायवेट क्लासेस भी शुरू कर सकती हूं. उससे पहले मैंने दिल्ली में ही शॉमक डावर से भी डांस सीखा था.क्योंकि मेरी समझ में आ गया था कि वर्तमान युग में सिर्फ क्लासिकल डांस से काम नहीं चलेगा. पश्चिमी डांस आना चाहिए. खैर, उसके बाद मैंने अपनी डांस अकादमी शुरू की, जिसे काफी अच्छा प्रतिसाद मिला. लोगों को नृत्य सिखाने की मेरी स्टाइल बहुत अच्छी थी, जो लोग काफी पसंद कर रहे थे.लेकिन कुछ दिन में ही मुझे लगा कि मेरी जिंदगी थमसी गयी है .इसके बादक्या? सिर्फ मैं हमेशा नृत्य सिखाती और गाती रहूंगी. जबकि मैं तो बचपन से अपने आपको सिनेमा के परदे पर देखना चाहती थी. मेरी तमन्ना रही है कि मेरी कला को पूरा विश्व देखे. और मैं खुद को भाग्यशाली मानती हूं कि मैंने मुंबई आने का निर्णय लिया और यहां मुझे सफलता मिली.

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तो क्या आपको मुंबई में संघर्ष नहीं करना पड़ा था?

संघर्ष तो हर किसी को करना पड़ता है. मैं मुंबई अभिनय के क्षेत्र में कैरियर बनाने की मंशा लेकर ही आयी थी. अभिनय में और हाव भाव में मेरे अंदर का नृत्य कौशल तथा गायन मदद करता है. जब मैं मुमबई आयी तो मुझे अभिनय का ए बी सी डी नहीं पता था. इसलिए मुंबई पहुंचने के बाद मैंने शून्य से शुरूआत की. लगातार ऑडीशन दिए. रिजेक्ट हुई, पर उससे सीखा. बहुत सी असफलताएं मिली. पर मैंने ठान लिया था कि मुझे हार नहीं माननी है.

मुझे पहला सीरियल ‘‘एक वीर की अरदास:वीरा’’ करने का अवसर मिला. यह सीरियल मुझे अचानक मिला था. वास्तव में इस सीरियल के लिए मेरी जगह किसी दूसरी अभिनेत्री को अनुबंधित किया गया था. पर पता नहीं क्या हुआ,उ स अभिनेत्री ने यह सीरियल नहीं किया और यह मेरी झोली में आ गया. इससे मुझे काफी शोहरत मिली. यहां से मेरी एक खूबसूरत यात्रा शुरू हुई. कलाकार के तौर पर पहचान मिली. फिर ‘उतरन’ व ‘देवों के देव महादेव’ से भी जुड़ने का अवसर मिला. मैंने फिल्में की और लगातार व्यस्त हूं.

अक्सर देखा गया है कि टीवी सीरियल में शोहरत पाने के बाद कलाकार थिएटर की तरफ मुड़कर नहीं देखते. आपके सीरियल लोकप्रिय थे. फिर भी आपने थिएटर किया?

मुझे टीवी सीरियल मंे अभिनय करते देख लोग प्रशंसा कर रहे थे. लेकिन मैं अपने अभिनय से संतुष्ट नही हो रही थी.एक कलाकार के तौर पर मुझे लग रहा था कि मेरे अंदर इससे अधिक बेहतर परफार्म करने की क्षमता है.पर कहीं न कहीं गाइडेंस की जरुरत मुझे महसूस हुई. यह थिएटर में ही संभव था. थिएटर में मेरे निर्देशक मुझे डांटते थे. वह कहते थे कि एक ही लाइन को हर बार कुछ अलग तरह से बोलो. थिएटर करते हुए मेरे अंदर का आत्मविश्वास बढ़ा. वैसे भी मैं अपने आपको आगे बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयास करती रहती हूं. मैं अपने स्किल पर काम करती रहती हूं. यही मेरी दिमागी सोच है कि मैं खुद अपने काम से कभी भी संतुष्ट नहीं होती. थिएटर पर मैने ‘‘रोशोमन ब्लूज’’ नामक नाटक के सत्तर से अधिक शो में अभिनय किया. उसके बाद मुझे फिल्में मिली.

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आपकी पहली फिल्म तो ‘‘ कलेंडर गर्ल’’ थी?

मैं अपनी पहली फिल्म ‘पोस्टर ब्वॉयज’ मानती हूं. वैसे मैंने ऑडीशन देने के बाद फिल्म ‘कलेंडर गर्ल’ में बिजनेस ओमन’ का छोटा सा कैमियो किया था.मेरा सपना तो सिल्वर स्क्रीन ही है. मगर मैंने शुरूआत में टीवी पर काम किया,क्योंकि फिल्म नगरी में मैं किसी को जानती नहीं थी. तो जैसे ही मुझे अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर मिला, मैंने रूकना उचित नही समझा. टीवी एक ऐसा माध्यम है, जहां आप जल्दी सीखते हैं. टीवी पर काम करने से आपकी परफार्मेंस को लेकर तुरंत लोगों की प्रतिक्रिया मिलती है, जिसे समझकर आप अपने अंदर सुधार ला सकते हैं. टीवी पर काम करते हुए हम संवाद को जल्द से जल्द याद करना सीख जाते हैं.हमारी संवाद अदायगी सुधर जाती है.

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फिल्म ‘पोस्टर ब्वाॅयज’से पहले आपने नए कलाकारों के साथ ही काम किया था.मगर फिल्म ‘पोस्टर ब्वॉयज’ में आपको पहली बार सनी देओल,बॉबी देओल, श्रेयश तलपड़े सहित कई दिग्गज कलाकारों के साथ अभिनय करने का अवसर मिला था. उस वक्त आपके मन में किसी तरह का डर था या नही?

जब मैं टीवी सीरियल कर रही थी,उस वक्त एक सहायक निर्देशक ने मुझसे कहा था, ‘मैडम आप खूबसूरत हैं और अभिनय में माहिर हैं.आपको फिल्में करनी चाहिए.’ उस वक्त मैंने उससे कहा था-‘‘मौका मिलने पर वह भी कर लूंगी.’’ फिर एक दिन उसी ने मुझे फोन करके ‘पोस्टार ब्वॉयज’ के लिए ऑडीशन करके भेजने के लिए कहा.उसने मेरे पास ऑडीशन की स्क्रिप्ट आयी और मैंने भी ऑडीशन करके भेज दिया था, पर मुझे यकीन नहीं था कि फिल्म मिल जाएगी.मगर शायद उस वक्त मेरे अच्छे दिन थे. जिस दिन मेरे पास ऑडीशन की स्क्रिप्ट आयी,उसके तीसरे दिन मैं इस फिल्म की शूटिंग कर रही थी. तो मैंने सोच लिया था कि अब मुझे आगे ही बढ़ना है.मैंने इस फिल्म के लिए काफी मेहनत की थी. पहले ही दिन मेरा चार पन्ने का दृष्य था.इस सीन में मैं फिल्म के अंदर बॉबी को डांटती हूं. इसके मास्टर सीन के फिल्मांकन में तालियां बज गयीं और मेरा आत्मविश्वास अचानक बढ़ गया.मैंने काफी मेहनत की. बॉबी सर ने काफी सपोर्ट किया. श्रेयश तलपड़े से अच्छी सलाह मिली. मुझे कभी इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि मैं बड़े कलाकारों के साथ काम कर रही हूं. फिल्म के प्रदर्शन के बाद मेरी व बॉबी सर के अभिनय की काफी तारीफें हुई.

लेकिन इस फिल्म को बाक्स आफिस पर जिस तरह की सफलता मिलनी चाहिए थी, नहींमिली.तब आपके मन में किस तरह के विचार आए थे?

जब मुझे फिल्म ‘‘पोस्टर ब्वायॅज’’ मिली थी,तो मुझे लगा था कि अब अच्छा समय आ गया. यहां से पूरा गेम बदल जाएगा. मेरे पास फिल्मों की लाइन लग जाएगी. मगर अफसोस फिल्म को उस तरह से सफलता नहीं मिली. मैंने सोचा कि ठीक है. नए सिरे से मेहनत करना है. थोड़ा सा बुरा लगा था. पर मैंने जिंदगी में रूकना सीखा नहीं था. इस फिल्म के बाद मुझे एक दूसरी फिल्म ‘‘हमने गांधी को मार दिया’’ मिली. बहुत अच्छी फिल्म थी. मेरे किरदार को लोगों ने काफी पसंद भी किया था. मगर इस फिल्म का सही ढंग से प्रचार नहीं किया गया था.लेकिन सबसे अच्छी बात यह रही कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक नईम जी ने जो कहा वह करके दिखाया. उन्होंने अपने स्तर पर पूरी जान लगाकर फिल्म को तय तारीख को सिनेमाघर में पहुंचाया था. मेरे लिए यह खास फिल्म रही. लेकिन इन दिनों मुझे फिल्म ‘‘धूप छांव’’ के प्रदर्शन का बेसब्री से इंतजार है.

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ किस तरह की फिल्म है. इस फिल्म में आपको क्या खास बात नजर आयी?

मैं हमेशा एक कलाकार के तौर पर खुद को एक्सप्लोर करती हूं. मैं इस बात में यकीन नहीं करती कि आप ऐसा कर लोगे तो आपको किरदार मिलने लगेंगे. एक दिन निर्देशक हेमंत सरन ने मुझे इस फिल्म का आफर दिया, जिसमें पारिवारिक मूल्यों की बात की गयी है. मुझे फिल्म का विषय पसंद आएगी. रिश्तों की जो अहमियत खत्म हो गयी है, उस पर यह फिल्म बात करती है. जब आप संयुक्त परिवार या अपने परिवार के साथ रहते हैं,तब आपको अहसास होता है कि परिवार कितनी अहमियत रखता है और आप बेवजह बाहर खुशियां तलाश रहे थे.फिल्म ‘धूप छांव’ में भाई, पति पत्नी के रिश्तों की बात की गयी है. यदि पति नही है,तो पत्नी किस तरह जिंदगी जी रही है, उसकी बात की गयी है.इसमें जीवन मूल्यों को अहमियत दी गयी है. इसमें भावनाओं का सैलाब है.

फिल्म ‘धूप छांव’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?

फिल्म ‘‘धूप छांव’’ दो भाईयों की कहानी है. बडे़ भाई के किरदार में अहम शर्मा हैं और उनकी पत्नी के किरदार में मैं हूं. कहानी को लेकर ज्यादा नहीं बता सकती. लेकिन इस फिल्म में मेरे किरदार में काफी वेरिएशन देखने को मिलेगा. एक कालेज जाने वाली लड़की से लेकर एक कालेज जाने वाले बीस वर्ष के बेटे की मां तक का मेरा किरदार है. कालेज जाने वाली लड़की,शादी हुई, बच्चे पैदा हुए,वह बड़े हुए,फिर वह 15 वर्ष के हुए.फिर 21 वर्ष के हैं और फिर हमने उनकी शादी भी कराई. तो मेरे किरदार में इतनी बड़ी यात्रा है.इसमें कई घटनाक्रम कमाल के हैं.मुझे अभिनय करते हुए अहसास हुआ कि यह कुछ कमाल का काम कर रही हूं. सिर्फ ग्लैमरस किरदार नहीं है.जरुरत है कि आपके चेहरे व आपके किरदार के साथ दर्शक जुड़ सकें.

इसके अलावा कौन सी फिल्में कर रही हैं?

‘धूप छांव’ के अलावा मैंने एक फिल्म जॉगीपुर’ की है. इसे हमने भारत बांगलादेश की सीमा पर फिल्माया है.इसमें कुछ राजनीतिक बातों के अलावा रिश्तों पर बात की गसी है. मैंने इसमें वकील का किरदार निभाया है,जो कि अपने भाई के लिए लड़ती है..इसमें मेरे साथ जावेद जाफरी भी हैं.वह भी वकील हैं.

एक फिल्म ‘‘ द एंड’’ की है, जो कि हिंदी व पंजाबी दो भाषाओं में बनी है.इस फिल्म में मेरे साथ देव शर्मा, दिव्या दत्ता, दीपसिंह राणा भी हैं.इसके अलावा एक हास्य प्रधान वेब सीरीज ‘जो मेरे आका’, जिसमें मेरे साथ श्रेयष तलपड़े व कृष्णा अभिषेक हैं.इसके अलावा कुछ और फिल्में हैं. मैंने एक फिल्म की षूटिंग भोपाल में की है.इस फिल्म का नाम अभी तक तय नहीं हुआ है.मगर मैने इस फिल्म जो किरदार निभाया है, वैसा किरदार अब तक नहीं किया है. इस किरदार के बारे में सुनकर या इस फिल्म को देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाएंगे.इसके अलावा ‘‘भ्रामक’’ के बाद अब दूसरी लघु फिल्म भी बनाने वाली हूं.

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भ्रामक’ की विषयवस्तु की प्रेरणा कहां से मिली थी?

देखिए, तेरह मिनट की फिल्म थ्रिलर ही बन सकती है.तो हम सोचते रहे और अचानक यह कहानी दिमाग में आ गयी,जिसका मेरे निजी अनुभव से दूर दूर तक कोई वास्ता नही है. इसकी कहानी इतनी है कि उसके पति की मृत्यू को अरसा बीत चुका है,पर वह इस सच को स्वीकार नही कर पा रही है.उसका मानना है कि उसका पति अभी भी उसके साथ ही रह रहा है.एक अजीब सी मानसिक स्थिति में रह रही इस महिला के किरदार के जरिए मैने तमाम भावनात्मक पहलुओं को परदे परजीने का प्रयास किया है. यह एक काल्पनिक कहानी है.

हाल ही में आप दिल्ली की ‘लव कुश रामलीला’ में सीता के किरदार में नजर आयी थीं?

पहली बात तो मुझे किसी भी माध्यम से कोई परहेज नही है.थिएटर कर चुकने के कारण मुझे स्टेज या लाइव ऑडियंश का कोई खौफ नहीं था.मैं तो सीता का किरदार निभाने को लेकर काफी उत्साहित थी. मुझे लगा कि ‘रामलीला’में काम करने पर कुद अलग सीखने को मिलेगा.कुछ अलग तरह का एक्सपोजर मिलेगा.और वैसा ही हुआ.मुझे गर्व है कि मैने सीता मां का किरदार निभाया और लोगों का प्यार मिला. मेरे इंस्टाग्राम पर लोगों ने कमेंट किया है कि उन्हे दीपिका चिखालिया के बाद मैं सीता के किरदार में काफी पसंद आयी.मेरे लिए यह उपलब्धि है.

आपको कत्थक नृत्य में महारत हासिल है.यह अभिनय में किस तरह से मदद करता है?

क्लासिकल डांस की खूबी यह है कि वह आपको बहुत ‘ग्रेस’ दे देता है. आपके शरीर का ग्रेस किसी भी किरदार में ढलने में काफी मदद करता है. क्लासिकल नृत्य सीखने के बाद चेहरे पर भाव लाना बहुत सहज हो जाता है.बाॅडी लैंगवेज पर कंट्रोल बहुत तगड़ा हो जाता है. उसे जैसे चाहें वैसे मोड़ सकते हैं. इसी तरह मेरी गायन कला भी मदद करती है.इससे मेरी वॉयस मोल्युशन अच्छी हो जाती है.

आपने अपने गायन स्किल के ही चलते म्यूजिक वीडियो बनाए.पर कत्थक डांस के लिए कुछ करने वाली हैं?

सोशल मीडिया पर मैं अपने कत्थक नृत्य के वीडियो डालती रहती हूं. इसके अलावा मेरी एक फिल्म ‘‘धड़के दिल बार बार’’ है, जिसमें मेरा किरदार एक क्लासिक डां टीचर का है, जो कि बच्चों को क्लासिकल डांस सिखाती है.फिल्म की शुरूआत ही की मेरे कत्थक डांस के साथ होती है. इसके अलावा मैं कत्थक पर कुछ खास वीडियो भी बनाने वाली हूं.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहती हों?

मैं हमेशा अलग तरह के किरदार ही निभाती आयी हूं. मैं प्रियंका चोपड़ा की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं. मैंने उनकी फिल्म ‘‘बर्फी ’’ देखी थी. इसमें उनका अभिनय सामान्य अभिनय नहीं था. इसी तरह मुझे ‘मर्दानी’ पसंद हैं.मैं भी जिमनास्टिक और मार्षल आर्ट में ट्रेनिंग ले रखी है. बाइक चला लेती हूं. मैंने कई चीजों का प्रशिक्षण ले रखा है.पर मुझे आर्मी पृष्ठभूमि वाला किरदार निभाना है. देशभक्ति वाला किरदार निभाना है.

GHKKPM: पाखी ने की ऐसी हरकत, भवानी ने की सरेआम पिटाई!

‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) पाखी का किरदार निभाने वाली ऐश्वर्या शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. आए दिन एक्ट्रेस की इंस्टा रील वायरल होती रहती है. वह अक्सर फनी वीडियोज फैंस के साथ शेयर करती हैं. अब एक वीडियो सामने आया है, जिसमें पाखी की पिटाई हो रही है. आइए बताते हैं, क्या इस वीडियो के बारे में.

पाखी (Pakhi) ने सोशल मीडिया पर अपनी एक रील शेयर की है. इस रील में पाखी ‘नाच मेरी जान’ गाने पर जमकर डांस कर रही हैं. इस गाने पर पाखी और भवानी ठुमके लगाते हुए नजर आ रहे हैं.

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इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि पाखी और उसकी बड़ी मामी नोरा फतेही के इस ‘नाच मेरी जान’ गाने पर थिरक रहे होते हैं. इस बीच गाने में नाच शब्द बार बार आता है. ऐसे में पाखी नाच शब्द पर ऐसे ठुमके लगती है कि भवानी परेशान हो जाती हैं. उसके बाद वो पाखी के सिर पर जोर से मारती हैं. इसके बाद वो पाखी से कहती हैं, ‘अरे माइकल जैक्सन. रुक जा कि नागमढ़ि लेकर ही जाएगी पूरी.

 

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‘गुम है किसी के प्यार में’ में इन दिनों  दिखाया जा रहा है कि विराट का गुस्सा देखकर भवानी भी सई की क्लास लगाती है. अश्विनी भी सई को ही गलत बताती है. अश्विनी और भवानी कहती है कि विराट और सई का तलाक हो चुका है. ऐसे में उसका चौहान परिवार से कोई नाता नहीं है. लेकिन सई चौहान परिवार छोड़ने से इंकार कर देती है.

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शो में आप देखेंगे कि विराट की तबियत खराब हो जाएगी. अश्विनी विराट के लिए फिजियोथेरपिस्ट खोजेगी. तो दूसरी तरफ सई फिजियोथेरपिस्ट बनकर विराट का इलाज करेगी. ऐसे में चौहान परिवार भी उसका साथ देगा.

सही समय पर

कमलेश के साथ मैं ने विवाहित जिंदगी के 30 साल गुजारे थे, लेकिन कैंसर ने उसे हम से छीन लिया. सिर्फ एक रिश्ते को खो कर मैं बेहद अकेला और खाली सा हो गया था.

ऊब और अकेलेपन से बचने को मैं वक्तबेवक्त पार्क में घूमने चला जाता. मन की पीड़ा को भुलाने के लिए कोई कदम उठाना, उस से छुटकारा पा लेने के बराबर नहीं होता है.

आजकल किसी के पास दूसरे के सुखदुख को बांटने के लिए समय ही कहां है. हर कोई अपनी जिंदगी की समस्याओं में पूरी तरह उलझा हुआ है. मेरे दोनों बेटे और बहुएं भी इस के अपवाद नहीं हैं. मैं अपने घर में खामोश सा रह कर दिन गुजार रहा था.

कमलेश से बिछड़े 2 साल बीत चुके थे. एक शाम पापा के दोस्त आलोकजी मुझे हार्ट स्पैशलिस्ट डाक्टर नवीन के क्लीनिक में मिले. उन की विधवा बेटी सरिता उन के साथ थी.

बातोंबातों में मालूम पड़ा कि आलोकजी को एक दिल का दौरा 4 महीने पहले पड़ चुका था. उन की बूढ़ी, बीमार आंखों में मुझे जिंदगी खो जाने का भय साफ नजर आया था.

उन्हें और उन की बेटी सरिता को मैं ने उस दिन अपनी कार से घर तक छोड़ा. तिवारीजी ने अपनी जिंदगी के दुखड़े सुना कर अपना मन हलका करने के लिए मुझे चाय पिलाने के बहाने रोक लिया था.

कुछ देर उन्होंने मेरे हालचाल पूछे और फिर अपने दिल की पीड़ा मुझ से बयान करने लगे, ‘‘मेरा बेटा अमेरिका में अपनी पत्नी व बच्चों के साथ ऐश कर रहा है. वह मेरी मौत की खबर सुन कर भी आएगा कि नहीं मुझे नहीं पता. तुम ही बताओ कि सरिता को मैं किस के भरोसे छोड़ कर दुनिया से विदा लूं?

‘‘शादी के साल भर बाद ही इस का पति सड़क दुर्घटना में मारा गया था. मेरे खुदगर्ज बेटे को जरा भी चिंता नहीं है कि उस की बहन पिछले 24 साल से विधवा हो कर घर में बैठी है. उस ने कभी दिलचस्पी…’’

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तभी सरिता चायनाश्ते की ट्रे ले कर कमरे में आई और अपने पापा को टोक दिया, ‘‘पापा, भैया के रूखेपन और मेरी जिंदगी की कहानी सुना कर मनोज को बोर मत करो. मैं टीचर हूं और अपनी देखभाल खुद बहुत अच्छी तरह से कर सकती हूं.’’

चाय पीते हुए मैं ने उस से सवाल पूछ लिया था, ‘‘सरिता, तुम ने दोबारा शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘मेरे जीवन में जीवनसाथी का सुख लिखा होता तो मैं विधवा ही क्यों होती,’’ उस ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘यह तो कोई दलील नहीं हुई. जिंदगी में कोई हादसा हो जाता है तो इस का मतलब यह नहीं कि फिर जिंदगी को आगे बढ़ने का मौका ही न दिया जाए.’’

‘‘तो फिर यों समझ लो कि पापा की देखभाल की चिंता ने मुझे शादी करने के बारे में सोचने ही नहीं दिया. अब किसी और विषय पर बात करें?’’

उस की इच्छा का सम्मान करते हुए मैं ने बातचीत का विषय बदल दिया था.

मैं उन के यहां करीब 2 घंटे रुका. सरिता बहुत हंसमुख थी. उस के साथ गपशप करते हुए समय के बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था.

सरिता से मुलाकात होने के बाद मेरी जिंदगी उदासी व नीरसता के कोहरे से बाहर निकल आई थी. मैं हर दूसरेतीसरे दिन उस के घर पहुंच जाता. हमारे बीच दोस्ती का रिश्ता दिन पर दिन मजबूत होता गया था.

कुछ हफ्ते बाद आलोकजी की बाईपास सर्जरी हुई पर वे बेचारे ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहे. हमारी पहली मुलाकात के करीब 6 महीने बाद उन्होंने जब अस्पताल में दम तोड़ दिया तब मैं भी सरिता के साथ उन के पास खड़ा था.

‘‘मनोज, सरिता का ध्यान रखना. हो सके तो इस की दूसरी शादी करवा देना,’’ मुझ से अपने दिल की इस इच्छा को व्यक्त करते हुए उन की आवाज में जो गहन पीड़ा व बेबसी के भाव थे उन्हें मैं कभी नहीं भूल सकूंगा.

आलोकजी के देहांत के बाद भी मैं सरिता से मिलने नियमित रूप से जाता रहा. हम दोनों ही चाय पीने के शौकीन थे, इसलिए उस से मिलने का सब से अच्छा बहाना साथसाथ चाय पीने का था.

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मेरी जिंदगी अच्छी तरह से आगे बढ़ रही थी कि एक दिन मेरे दोनों बेटे गंभीर मुद्रा बनाए मेरे कमरे में मुझ से मिलने आए थे.

‘‘पापा, आप कुछ दिनों के लिए चाचाजी के यहां रह आओ. जगह बदल जाने से आप का मन बहल जाएगा,’’ बेचैन राजेश ने बातचीत शुरू की.

‘‘मुझे तंग होने को उस छोटे से शहर में नहीं जाना है. वहां न बिजली है न पानी. अगर मन किया तो तुम्हारे चाचा के घर कभी सर्दियों में जाऊंगा,’’ मैं ने अपनी राय उन्हें बता दी.

राजेश ने कुछ देर की खामोशी के बाद आगे कहा, ‘‘कोई भी इंसान अकेलेपन व उदासी का शिकार हो गलत फैसले कर सकता है. पापा, हमें उम्मीद है कि आप कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे जो समाज में हमें गरदन नीचे कर के चलने पर मजबूर कर दे.’’

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‘‘क्या मतलब हुआ तुम्हारी इस बेसिरपैर की बात का? तुम ढकेछिपे अंदाज में मुझ से क्या कहना चाह रहे हो?’’ मैं ने माथे में बल डाल लिए.

रवि ने मेरा हाथ पकड़ कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘हम मां की जगह किसी दूसरी औरत को इस घर में देखना कभी स्वीकार नहीं कर पाएंगे, पापा.’’

‘‘पर मेरे मन में दूसरी शादी करने का कोई विचार नहीं है फिर तुम इस विषय को क्यों उठा रहे हो?’’ मैं नाराज हो उठा था.

‘‘वह चालाक औरत आप की परेशान मानसिक स्थिति का फायदा उठा कर आप को गुमराह कर सकती है.’’

‘‘तुम किस चालाक औरत की बात कर रहे हो?’’

‘‘सरिता आंटी की.’’

‘‘पर वह मुझ से शादी करने की बिलकुल इच्छुक नहीं है.’’

‘‘और आप?’’ राजेश ने तीखे लहजे में सवाल किया.

‘‘वह इस समय मेरी सब से अच्छी दोस्त है. मेरी जिंदगी की एकरसता को मिटाने में उस ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है,’’ मैं ने धीमी आवाज में उन्हें सच बता दिया.

‘‘पापा, आप खुद समझदार हैं और हमें विश्वास है कि हमारे दिल को दुखी करने वाला कोई गलत कदम आप कभी नहीं उठाएंगे,’’ राजेश की आंखों में एकाएक आंसू छलकते देख मैं ने आगे कुछ कहने के बजाय खामोश रहना ही उचित समझा था.

अगली मुलाकात होने पर जब मैं ने सरिता को अपने बेटों से हुई बातचीत की जानकारी दी तो वह हंस कर बोली थी, ‘‘मनोज, तुम मेरी तरह मस्त रहने की आदत डाल लो. मैं ने देखा है कि जो भी अच्छा या बुरा इंसान की जिंदगी में घटना होता है, वह अपने सही समय पर घट ही जाता है.’’

‘‘तुम्हारी यह बात मेरी समझ में ढंग से आई नहीं है, सरिता. तुम कहना क्या चाह रही हो?’’ मेरे इस सवाल का जवाब सरिता ने शब्दों से नहीं बल्कि रहस्यपूर्ण अंदाज में मुसकरा कर दिया था.

सप्ताह भर बाद मैं शाम को पार्क में बैठा था तब तेज बारिश शुरू हो गई. बारिश करीब डेढ़ घंटे बाद रुकी और मैं पूरे समय एक पेड़ के नीचे खड़ा भीगता रहा था.

रात होने तक शरीर तेज बुखार से तपने लगा और खांसीजुकाम भी शुरू हो गया. 3 दिन में तबीयत काफी बिगड़ गई तो राजेश और रवि मुझे डाक्टर को दिखाने ले गए.

उन्होंने चैकअप कर के बताया कि मुझे निमोनिया हो गया है और उन की सलाह पर मुझे अस्पताल में भरती होना पड़ा.

तब तक दोनों बहुएं औफिस जा चुकी थीं. राजेश और रवि दोनों गंभीर मुद्रा में यह फैसला करने की कोशिश कर रहे थे कि मेरे पास कौन रुके. दोनों को ही औफिस जाना जरूरी लग रहा था.

तब मैं ने बिना सोचविचार में पड़े सरिता को फोन कर अस्पताल में आने के लिए बड़े हक से कह दिया था.

सरिता को बुला लेना मेरे दोनों बेटों को अच्छा तो नहीं लगा पर मैं ने साफ नोट किया कि उन की आंखों में राहत के भाव उभरे थे. अब वे दोनों ही बेफिक्र हो कर औफिस जा सकते थे.

कुछ देर बाद सरिता उन दोनों के सामने ही अस्पताल आ पहुंची और आते ही उस ने मुझे डांटना शुरू कर दिया, ‘‘क्या जरूरत थी बारिश में इतना ज्यादा भीगने की? क्या किसी रोमांटिक फिल्म के हीरो की तरह बारिश में गाना गा रहे थे.’’

‘‘तुम्हें तो पता है कि मैं ट्रेजडी किंग हूं, रोमांटिक फिल्म का हीरो नहीं,’’ मैं ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम्हारे पापा से बातों में कोई नहीं जीत सकता,’’ कहते हुए वह राजेश और रवि की तरफ देख कर बड़े अपनेपन से मुसकराई और फिर कमरे में बिखरे सामान को ठीक करने लगी.

‘‘बिलकुल यही डायलाग कमलेश हजारों बार अपनी जिंदगी में मुझ से बोली होगी,’’ मेरी आंखों में अचानक ही आंसू भर आए थे.

तब सरिता भावुक हो कर बोली, ‘‘यह मत समझना कि दीदी नहीं हैं तो तुम अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ कर सकते हो. समझ लो कि कमलेश दीदी ने तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है.’’

‘‘तुम तो उस से कभी मिली ही नहीं, फिर यह जिम्मेदारी तुम्हें वह कब सौंप गई?’’

‘‘वे मेरे सपने में आई थीं और अब अपने बेटों के सामने मुझ से डांट नहीं खाना चाहते तो ज्यादा न बोल कर आराम करो,’’ उस की डांट सुन कर मैं ने किसी छोटे बच्चे की तरह अपने होंठों पर उंगली रखी तो राजेश और रवि भी मुसकरा उठे थे.

मेरे बेटे कुछ देर बाद अपनेअपने औफिस चले गए थे. शाम को दोनों बहुएं मुझ से मिलने औफिस से सीधी अस्पताल आई थीं. सरिता ने फोन कर के उन्हें बता दिया था कि मेरे लिए घर से कुछ लाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मेरे लिए खाना तो वही बना कर ले आएगी.

मैं 4 दिन अस्पताल में रहा था. इस दौरान सरिता ने छुट्टी ले कर मेरी देखभाल करने की पूरी जिम्मेदारी अकेले उठाई थी. मेरे बेटेबहुओं को 1 दिन के लिए भी औफिस से छुट्टी नहीं लेनी पड़ी थी. सरिता और उन चारों के बीच संबंध सुधरने का शायद यही सब से अहम कारण था.

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अस्पताल छोड़ने से पहले मैं ने सरिता से अचानक ही संजीदा लहजे में पूछा था, ‘‘क्या हमें अब शादी नहीं कर लेनी चाहिए?’’

‘‘अभी ऐसा क्या खास घटा है जो यह विचार तुम्हारे मन में पैदा हुआ है?’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर पूछा.

‘‘तुम ने मेरी देखभाल वैसे ही की है जैसे एक पत्नी पति की करती है. दूसरे, मेरे बेटेबहुएं तुम से अब खुल कर हंसनेबोलने लगे हैं. मेरी समझ से यह अच्छा मौका है उन्हें जल्दी से ये बता देना चाहिए कि हम शादी करना चाहते हैं.’’

सरिता ने आंखों में खुशी भर कर कहा, ‘‘अभी तो तुम्हारे बेटेबहुओं के साथ मेरे दोस्ताना संबंधों की शुरुआत ही हुई है, मनोज. इस का फायदा उठा कर मैं पहले तुम्हारे घर आनाजाना शुरू करना चाहती हूं.’’

‘‘हम शादी करने की अपनी इच्छा उन्हें कब बताएंगे?’’

‘‘इस मामले में धैर्य रखना सीखो, मेरे अच्छे दोस्त,’’ उस ने पास आ कर मेरा हाथ प्यार से पकड़ लिया, ‘‘कल तक वे सब मुझे नापसंद करते थे, पर आज मेरे साथ ढंग से बोल रहे हैं. कल को हमारे संबंध और सुधरे तो शायद वे स्वयं ही हम दोनों पर शादी करने को दबाव डालेंगे.’’

‘‘क्या ऐसा कभी होगा भी?’’ मेरी आवाज में अविश्वास के भाव साफ झलक रहे थे.

‘‘जो होना होता है सही समय आ जाने पर वह घट कर रहता है,’’ उस ने मेरा हाथ होंठों तक ला कर चूम लिया था.

‘‘पर मेरा दिल…’’ मैं बोलतेबोलते झटके से चुप हो गया.

‘‘हांहां, अपने दिल की बात बेहिचक बोलो.’’

‘‘मेरा दिल तुम्हें जीभर कर प्यार करने को करता है,’’ अपने दिल की बात बता कर मैं खुद ही शरमा गया था.

पहले खिलखिला कर वह हंसी और फिर शरमाती हुई बोली, ‘‘मेरे रोमियो, अपनी शादी के मामले में हम बच्चों को साथ ले कर चलेंगे. जल्दबाजी में हमें ऐसा कुछ नहीं करना है जिस से उन का दिल दुखे. मेरी समझ से चलोगे तो ज्यादा देर नहीं है जब वे चारों ही मुझे अपनी नई मां का दर्जा देने को खुशीखुशी तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘तुम सचमुच बहुत समझदार हो, सरिता,’’ मैं ने दिल से उस की तारीफ की.

‘‘थैंक यू,’’ उस ने आगे झुक कर मेरे होंठों को पहली बार प्यार से चूमा तो मेरे रोमरोम में खुशी की लहर दौड़ गई थी…

सही समय की शुरुआत हो चुकी थी.

केले की खेती

Writer- डा. विनय कुमार सिंह, डा. डीके सिंह

हमारे यहां केला एक प्रमुख लोकप्रिय पौष्टिक खाद्य फल है. पके केलों का प्रयोग फसलों के रूप में और कच्चे केले का प्रयोग सब्जी व आटा बनाने में होता है. भारत लगभग 16.8 मिलियन टन के वार्षिक उत्पाद के साथ केले के उत्पादन में दुनिया का नेतृत्व करता है.

यह पोटैशियम, फास्फोरस, कैल्शियम और मैग्नीशियम का भी एक अच्छा स्रोत है. फल वसा और कोलैस्ट्रौल से मुक्त, पचाने में आसान है.

केले के पाउडर का उपयोग पहले बच्चे के भोजन के रूप में किया जाता है. केले के इन सभी गुणों के कारण व सस्ता होने के चलते इस की मांग बाजार में सालभर बनी रहती है.

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जलवायु

केले की फसल के लिए अनिवार्य रूप से आर्द्र और गरम जलवायु की जरूरत होती है. इस के उत्पादन के लिए आमतौर पर 10 डिगरी सैल्सियस न्यूनतम और 40 डिगरी सैल्सियस उच्च आर्द्रता के तापमान को सही माना गया है. एक विशेष अवधि के लिए जब तापमान 24 डिगरी सैल्सियस के ऊपर हो जाता है, तो पैदावार ज्यादा होती है.

भूमि

केले की फसल के लिए मिट्टी का चयन करने में मृदा की गहराई और जल निकासी

2 सब से महत्त्वपूर्ण घटक हैं. इस के अच्छे उत्पादन के लिए खेत में मिट्टी 0.5 से 1 मीटर गहरी होनी चाहिए. मृदा में नमी बनाए रखने, उपजाऊ और्गैनिक पदार्थ की प्रचुरता सहित इस का पीएच मान 6.5 तक होना चाहिए.

प्रजातियां

जी-9 (टिशू कल्चर)

इस प्रजाति की सब से बड़ी खासीयत है कि इस पर पनामा बीमारी का प्रकोप कम होता है. इस के पौधे छोटे और मजबूत होते हैं, जिस से आंधीतूफान में टूट कर नष्ट होने की संभावना बहुत कम होती है. इस के अलावा केले की दूसरी प्रजाति 14 से 15 महीने में तैयार होती है, वहीं जी-9 प्रजाति 9 से 10 महीने में तैयार हो जाती है.

एक हेक्टेयर में 3,086 पौधे लगते हैं. इस के उत्पादन में तकरीबन 1.25 लाख रुपए तक की लागत लगती है. अगर इस की खेती से मुनाफे की बात करें, तो तकरीबन साढ़े 3 लाख से 4 लाख रुपए तक का मुनाफा मिल जाता है.

रसथाली

केले की यह प्रजाति तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और बिहार में उगाई जाती है. यह मध्यम लंबी किस्म है. स्वादिष्ठ होने के साथसाथ इस की खुशबू भी अच्छी होती है.

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रोबस्टा

यह एक अर्धलंबी किस्म है, जो तमिलनाडु के अधिकांश क्षेत्रों में और कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में उगाई जाती है. अच्छे विकसित फल बड़े आकार के गुच्छे पैदा करती है, जिस से उपज ज्यादा होती है. जो वजन में 25 से 30 किलोग्राम होती है. मिठास व खुशबू भी अच्छी होती है. लीफ स्पौट रोग के प्रति अति संवेदनशील होती है.

ड्वार्फ कैवेंडिश

केले की यह किस्म गुजरात, बिहार और पश्चिम बंगाल के राज्यों में व्यावसायिक किस्म है. इस के औसतन गुच्छे का वजन लगभग 15 से 25 किलोग्राम होता है.

खेत की तैयारी

समतल खेत की 4-5 गहरी जुताई कर के भुरभुरा बना लें. इस के बाद लाइनों में रोपण के लिए गड्ढे बनाएं. 50×50×50 सैंटीमीटर लंबा, चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदें.

केले के लिए गड्ढे मई के माह में खोद कर 15-20 दिन खुला छोड़ दें, जिस से धूप आदि अच्छी तरह लग जाए. इस के बाद 20-25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 50 ईसी क्लोरोपाइरीफास 3 मिलीलिटर व 5 लिटर पानी और आवश्यकतानुसार ऊपर की मिट्टी के साथ मिला कर गड्ढे को भर देना चाहिए व गड्ढों में पानी लगा देना चाहिए.

पौध रोपण

मईजून या सितंबरअक्तूबर के महीने में पौध रोपण किया जाता है. केले की रोपाई पट्टा डबल लाइन विधि के आधार पर की जाती है. इस विधि में दोनों लाइनों के बीच की दूरी 0.90 से 1.20 मीटर है, जबकि पौधे से पौधे की दूरी 1.2 से 2 मीटर है.

इस रिक्तता के कारण इंटरकल्चरल आपरेशन आसानी से किए जा सकते हैं. अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए रोपण 1.2×1.5 मीटर पर किया जाता है. रोपण के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए.

खाद व उर्वरक

भूमि की उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फास्फोरस व 300 ग्राम पोटाश की जरूरत पड़ती है. फास्फोरस की आधी मात्रा पौधा रोपते समय और बाकी बची आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए. नाइट्रोजन की पूरी मात्रा 5 भागों में बांट कर अगस्त, सितंबर, अक्तूबर व फरवरी और अप्रैल में देनी चाहिए. पोटाश की पूरी मात्रा 3 भागों में बांट कर सितंबर, अक्तूबर व अप्रैल के महीने में देनी चाहिए.

केले के खेत में नमी हमेशा बनी रहनी चाहिए. पौध रोपण के बाद सिंचाई करना बहुत जरूरी है. जरूरत के मुताबिक ग्रीष्म ऋतु में 7 से 10 दिन और सर्दी में 12 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

मार्च से जून महीने तक केले के थालों में पौलीथिन बिछा देने से नमी सुरक्षित रहती है, सिंचाई की मात्रा भी आधी रह जाती है. साथ ही, फलोत्पादन और गुणवत्ता में वृद्धि होती है.

रोग पर नियंत्रण

केले की फसल में कई रोग कवक और विषाणुओं के द्वारा लगते हैं. जैसे पर्ण चित्ती या लीफ स्पौट, गुच्छा शीर्ष या बंची टौप, एंथ्रेक्नोज व तना गलन, हर्ट राट आदि लगते हैं.

इन रोग के उपचार के लिए फंगल संक्रमण के मामले में 1 फीसदी बोर्डो, कौपर औक्सीक्लोराइड या कार्बंडाजिम के साथ छिड़काव करने से सकारात्मक नतीजे मिले हैं.

रोगमुक्त रोपण सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए और संक्रमित पौधे को नष्ट कर दिया जाना चाहिए. इन के नियंत्रण के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 0.3 फीसदी का छिड़काव करना चाहिए या मोनोक्रोटोफास 1.25 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के साथ छिड़काव करना चाहिए.

कीट नियंत्रण

केले में कई कीट लगते हैं. जैसे पत्ती बीटिल (बनाना बीटिल) और बीटिल आदि लगते हैं. नियंत्रण के लिए मिथाइल औडीमेटान 25 ईसी 1.25 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर करें या कार्बोफ्यूरान या फोरेट या थिमेट 10जी दानेदार कीटनाशी प्रति पौधा 25 ग्राम प्रयोग करें.

कीटों को नियंत्रित करने के लिए 0.04 फीसदी एंडोसल्फान, 0.1 फीसदी कार्बारिल या 0.05 फीसदी मोनोक्रोटोफास के उपयोग उपयुक्त इंटरकल्चरल आपरेशनों का चयन काफी हद तक प्रभावी पाया गया है.

फल की कटाई

रोपण के 12-15 महीने के भीतर फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. केले की मुख्य कटाई का मौसम सितंबर से अप्रैल महीने तक होता है.

विभिन्न प्रकार की मिट्टी, अनुकूल मौसम के हालात और ऊंचाई के आधार पर फूल आने के तकरीबन 90-150 दिनों के बाद परिपक्वता प्राप्त करते हैं.

जब फलियां की चारों घरियां तिकोनी न रह कर गोलाई ले कर पीली होने लगें, तो फल पूरी तरह से विकसित हो कर पकने लगते हैं.

इस दशा में तेज धार वाले चाकू आदि के द्वारा घार को काट कर पौधे से अलग कर

लेना चाहिए. कटे हुए गुच्छे को आमतौर पर अच्छी तरह से गद्देदार ट्रे या टोकरी में एकत्र किया जाना चाहिए और संग्रह स्थल पर ले जाया जाना चाहिए.

स्थानीय खपत के लिए हाथों को अकसर डंठल पर छोड़ दिया जाता है और खुदरा विक्रेताओं को बेच दिया जाता है.

पकाने की विधि

केले को सही तरह से पकाने के लिए गुच्छे को किसी बंद कमरे में रख कर केले की पत्तियों को अच्छी तरह से ढक देते हैं. इतना ही नहीं, उस कमरे में अंगीठी जला कर रख देते हैं. कमरे को मिट्टी से सील बंद कर देते हैं. लगभग 48 से 72 घंटे तक कमरे में रखा केला पक कर तैयार हो जाता है.

उपज

केले की किस्म  :      उपज (टन/हेक्टेयर)

ड्वार्फ कैवेंडिश   :      35-40

रोबस्टा  :      38-45

अन्य किस्म    :      25-30

जमीनों की मिल्कीयत का डिजिटल नक्शा

देश के सबसे पिछड़े राज्य बिहार ने हाल में दावा किया है कि उस ने जमीनों की मिल्कीयत का डिजिटल नक्शा एक सौफ्टवेयर के जरिए बना लिया है और जब भी कोई बदलाव मालिक का होगा, यह नक्शा अपनेआप बदल जाएगा और कोई भी विवाद खड़ा न होगा. फरवरी 2021 में बिहार विधानसभा ने इस बारे में कानून पास किया था और केंचूएं की स्पीड से चलने वाली नौकरशाही का दावा है कि अब यह लोगों के लिए लगभग तैयार है.

बिहार में सरकार के हिसाब से कोई 3700 मामले जमीन की मिल्कीयत को ले कर चल रहे हैं. हर जना जो मेहनत से कमाए पैसे से जमीन खरीदना चाहता है, डरता रहता है कि कहीं उस का मालिक या दावेदार और कोइ नहीं निकल आए. वर्षों बाद भी किसी पुराने दस्तावेज के चुनौती दे दी जाती है.

यह काम लोगों के भले के लिए किया जा रहा है, इस में पूरा शक है. आया में शहरों में रहने वलों की नजर अब गांवों की जमीनों पर फिर जा रही है जो पहले कोढिय़ों के भावों में बिका करती थी. अब इन के दाम लाखों करोड़ों में होने लगे हैं. रिश्वत या ऊपरी कमाई वाले शहरी बाबू, नेता, माफियाई और पैसे के भंडार वाली कंपनियां अब गांवों की जमीनों पर कब्जा चाहती हैं और उन्होंने कंप्यूटर टैक्नोलौजी को हथियार बनाया है.

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बिहार का यह डिजिटल नक्शा करोड़ों की लागत में बना है. 20 जिलों को एरियल ड्रोनों और हवाई जहाजों से फोटो लिए गए, हर खसरे के कागज निकाल कर मिलान किए गए, 5000 लोग इस काम में लगे ताकि 5127 गांवों की जमीनों के 22,00 नक्शे तैयार हो सकें. यह सब काम जनता और किसानों के लिए गया हो, यह नामुमकिन है.

यह तो कंप्यूटर के मार्फत पढ़ेलिखे की साजिश है जो कंप्यूटर नक्शों में हेरफेर आसानी से कर सकेंगे. बैंक उन के आधार पर कर्जदार की जमीन पर कब्जा जमा सकेंगे. बड़ी कंपनियां हजारों एकड़ जमीन पर खरीद कर अपना हक सुरक्षित रख सकेंगी. दलितों, अधपढ़ों, पिछड़ों को जिन्हें कंप्यूटर समझ नहीं आता बरगलाना और आसान हो जाएगा.

कंप्यूटर के रिकाडों का फायदा यह भी है कोई भी कंप्यूटर जानकार सौफ्टवेयर में हैङ्क्षकग कर के रिकार्ड बदल दे और एक बार बदला गया रिकार्ड पत्थर की लकीर बन जाता है. शहरी बाबू, शहरी कंप्यूटर एक्सपर्ट, शहरी पैसे वाले मनचाहा फैसला कंप्यूटर के हिसाब से ले सकते हैं.

जीएसटी और इंक्मटैक्स में ऐसा होने लगा है कि लाखोंकरोड़ों की डिमांड निकल आती है. वर्षों पहले अगर सरकारी अफसरों ने अपने खाते ठीक नहीं किए तो जो गलती रह गई वह कंप्यूटर सौफ्टवेयर बनाने वाले जनता के सिर पर मड़ देते हैं क्योंकि सरकारी दफ्तर से तो उन्हें मोटी कमाई प्रोग्राम बनाने से हो रही है.

बिहार का कंप्यूटरी नक्शा एक अच्छा कदम है पर इस का जो नुकसान आम लोग सहेंगे यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.

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देश भर में अगर कंप्यूटरों की बिक्री हो रही है तो उस के पीछे सरकारी बरदान है. आज कमाई करने वाली कंपनियों में कंप्यूटर सौफ्टवेयर कंपनियां हैं जो बिहार जैसे गरीब राज्य से 100-200 करोड़  छोटेछोटे प्रोग्रामों के ले जाते हैं. जनता वहीं रह रही है. उस की न बिजली ठीक है, न पानी, न सडक़, न रंगदारी न रिश्वतखोरी कम. डिजिटल नक्शेबाजी पढ़ों और अधपढ़ों के बीच एक और खाई पैदा करेगी और जमीनों को हड़प करने का एक कदम बनेगी.

खुशियों के फूल: भाग 1

‘‘रश्मि आंटी ई…ई…ई…’’ यह पुकार सुन कर लगा जैसे यह मेरा सात समंदर पार वैंकूवर में किसी अपने की मिठास भरी पुकार का भ्रम मात्र है. परदेस में भला मुझे कौन पहचानता है?  पीछे मुड़ कर देखा तो एक 30-35 वर्षीय सौम्य सी युवती मुझे पुकार रही थी. चेहरा कुछ जानापहचाना सा लगा. हां अरे, यह तो लिपि है. मेरे चेहरे पर आई मुसकान को देख कर वह अपनी वही पुरानी मुसकान ले कर बांहें फैला कर मेरी ओर बढ़ी.

इतने बरसों बाद मिलने की चाह में मेरे कदम भी तेजी से उस की ओर बढ़ गए. वह दौड़ कर मेरी बांहों में सिमट गई. हम दोनों की बांहों की कसावट यह जता रही थी कि आज के इस मिलन की खुशी जैसे सदियों की बेताबी का परिणाम हो.

मेरी बहू मिताली पास ही हैरान सी खड़ी थी. ‘‘बेटी, कहां चली गई थीं तुम अचानक? कितना सोचती थी मैं तुम्हारे बारे में? जाने कैसी होगी? कहां होगी मेरी लिपि? कुछ भी तो पता नहीं चला था तुम्हारा?’’ मेरे हजार सवाल थे और लिपि की बस गरम आंसुओं की बूंदें मेरे कंधे पर गिरती हुई जैसे सारे जवाब बन कर बरस रही थीं.

मैं ने लिपि को बांहों से दूर कर सामने किया, देखना चाहती थी कि वक्त के अंतराल ने उसे कितना कुछ बदलाव दिया.

‘‘आंटी, मेरा भी एक पल नहीं बीता होगा आप को बिना याद किए. दुख के पलों में आप मेरा सहारा बनीं. मैं इन खुशियों में भी आप को शामिल करना चाहती थी. मगर कहां ढूंढ़ती? बस, सोचती रहती थी कि कभी तो आंटी से मिल सकूं,’’ भरे गले से लिपि बोली.

‘‘लिपि, यह मेरी बहू मिताली है. इस की जिद पर ही मैं कनाडा आई हूं वरना तुम से मिलने के लिए मुझे एक और जन्म लेना पड़ता,’’ मैं ने मुसकरा कर माहौल को सामान्य करना चाहा.

‘‘मां के चेहरे की खुशी देख कर मैं समझ सकती हूं कि आप दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए कितनी बेताब रही हैं. आप अपना एड्रैस और फोन नंबर दे दीजिए. मैं मां को आप के घर ले आऊंगी. फिर आप दोनों जी भर कर गुजरे दिनों को याद कीजिएगा,’’ मिताली ने नोटपैड निकालते हुए कहा.

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‘‘भाभी, मैं हाउसवाइफ हूं. मेरा घर इस ‘प्रेस्टीज मौल’ से अधिक दूरी पर नहीं है. आंटी को जल्दी ही मेरे घर लाइएगा. मुझे आंटी से ढेर सारी बातें करनी हैं,’’ मुझे जल्दी घर बुलाने के लिए उतावली होते हुए उस ने एड्रैस और फोन नंबर लिखते हुए मिताली से कहा.

‘‘मां, लगता है आप के साथ बहुत लंबा समय गुजारा है लिपि ने. बहुत खुश नजर आ रही थी आप से मिल कर,’’ रास्ते में कार में मिताली ने जिक्र छेड़ा.

‘‘हां, लिपि का परिवार ग्वालियर में हमारा पड़ोसी था. ग्वालियर में रिटायरमैंट तक हम 5 साल रहे. ग्वालियर की यादों के साथ लिपि का भोला मासूम चेहरा हमेशा याद आता है. बेहद शालीन लिपि अपनी सौम्य, सरल मुसकान और आदर के साथ बातचीत कर पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती थी.

‘‘जब हम स्थानांतरण के बाद ग्वालियर शासकीय आवास में पहुंचे तो पास ही 2 घर छोड़ कर तीसरे क्वार्टर में चौधरी साहब, उन की पत्नी और लिपि रहते थे. चौधरी साहब का अविवाहित बेटा लखनऊ में सर्विस कर रहा था और बड़ी बेटी शादी के बाद झांसी में रह रही थी,’’ बहुत कुछ कह कर भी मैं बहुत कुछ छिपा गई लिपि के बारे में.

रात को एकांत में लिपि फिर याद आ ग. उन दिनों लिपि का अधिकांश समय अपनी बीमार मां की सेवा में ही गुजरता था. फिर भी शाम को मुझ से मिलने का समय वह निकाल ही लेती थी. मैं भी चौधरी साहब की पत्नी शीलाजी का हालचाल लेने जबतब उन के घर चली जाती थी.

शीलाजी की बीमारी की गंभीरता ने उन्हें असमय ही जीवन से मुक्त कर दिया. 10 वर्षों से रक्त कैंसर से जूझ रही शीलाजी का जब निधन हुआ था तब लिपि एमए फाइनल में थी. असमय मां का बिछुड़ना और सारे दिन के एकांत ने उसे गुमसुम कर दिया था. हमेशा सूजी, पथराई आंखों में नमी समेटे वह अब शाम को भी बाहर आने से कतराने लगी थी. चौधरी साहब ने औफिस जाना आरंभ कर दिया था. उन के लिए घर तो रात्रिभोजन और रैनबसेरे का ठिकाना मात्र ही रह गया था.

लिपि को देख कर लगता था कि वह इस गम से उबरने की जगह दुख के समंदर में और भी डूबती जा रही है. सहमी, पीली पड़ती लिपि दुखी ही नहीं, भयभीत भी लगती थी. आतेजाते दी जा रही दिलासा उसे जरा भी गम से उबार नहीं पा रही थी. दुखते जख्मों को कुरेदने और सहलाने के लिए उस का मौन इजाजत ही नहीं दे रहा था.

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मुझे लिपि में अपनी दूर ब्याही बेटी  अर्पिता की छवि दिखाई देती थी.  फिर भला उस की मायूसी मुझ से कैसे बर्दाश्त होती? मैं ने उस की दीर्घ चुप्पी के बावजूद उसे अधिक समय देना शुरू कर दिया था. ‘बेटी लिपि, अब तुम अपने पापा की ओर ध्यान दो. तुम्हारे दुखी रहने से उन का दुख भी बढ़ जाता है. जीवनसाथी खोने का गम तो है ही, तुम्हें दुखी देख कर वे भी सामान्य नहीं हो पा रहे हैं. अपने लिए नहीं तो पापा के लिए तो सामान्य होने की कोशिश करो,’ मैं ने प्यार से लिपि को सहलाते हुए कहा था.

पापा का नाम सुनते ही उस की आंखों में घृणा का जो सैलाब उठा उसे मैं ने साफसाफ महसूस किया. कुछ न कह पाने की घुटन में उस ने मुझे अपलक देखा और फिर फूटफूट कर रोने लगी. मेरे बहुत समझाने पर हिचकियां लेते हुए वह अपने अंदर छिपी सारी दास्तान कह गई, ‘आंटी, मैं मम्मी के दुनिया से जाते ही बिलकुल अकेली हो गई हूं. भैया और दीदी तेरहवीं के बाद ही अपनेअपने शहर चले गए थे. मां की लंबी बीमारी के कारण घर की व्यवस्थाएं नौकरों के भरोसे बेतरतीब ही थीं. मैं ने जब से होश संभाला, पापा को मम्मी की सेवा और दवाओं का खयाल रखते देखा और कभीकभी खीज कर अपनी बदकिस्मती पर चिल्लाते भी.

‘मेरे बड़े होते ही मम्मी का खयाल स्वत: ही मेरी दिनचर्या में शामिल हो गया. पापा के झुंझलाने से आहत मम्मी मुझ से बस यही कहती थीं कि बेटी, मैं बस तुम्हें ससुराल विदा करने के लिए ही अपनी सांसें थामे हूं. वरना अब मेरा जीने का बिलकुल भी जी नहीं करता. लेकिन मम्मी मुझे बिना विदा किए ही दुनिया से विदा हो गईं.

मधुर मिलन: भाग 2

Writer- रेणु गुप्ता

“आंटी,  बात तो आप सही कह रही हैं. मुझे अपने सिंगल रहने के फैसले से कोई गिला नहीं. अब तो कंपनी के लिए अमायरा  भी है. बस, अब मेरा शरीर साथ नहीं देता. मेरा ब्लडप्रैशर दवाई लेने के बावजूद हमेशा बहुत हाई रहता है. तबीयत  हर समय गिरीगिरी रहती है.”

“इनाया बेटा, तेरा  यह हाई ब्लडप्रैशर भी तेरे इस अकेलेपन की वजह से है. बेटा, जिंदगी के सफ़र में कोई सुखदुख बांटने वाला हो, तो जिंदगी की मुश्किलें आसान हो जाती हैं. लेकिन तुम लोगों को यह बात समझ में आए, तब तो. मुझे तो अब तपन की चिंता खाए  जाती है.  कैसे अकेले  ज़िंदगी काटेगा. अभी तो, खैर, हम दोनों हैं, ये दोनों बेटे हैं, तो उस का समय ठीकठाक कट जाता है.  कल को जब हम दोनों नहीं होंगे, दोनों बेटे पढ़लिख कर नौकरी पर चले जाएंगे, तब उस का क्या हाल बनेगा?”

“अरे आंटी, कल की चिंता  आज क्यों करनी? सब अच्छा ही होगा. आप की तो दोदो बहुएं आएंगी. सेवा करेंगी.  मैं तो अमायरा की शादी के बाद अकेली रह जाऊंगी.”

“अरी बिट्टो रानी, तभी कहती हूं, अभी भी वक्त है. कोई अच्छा सा समझदार लड़का देख कर शादी कर ले.  तेरा ब्लडप्रैशर जड़ से छूमंतर न हो जाए, तो मुझ से कहना.”

“अरे आंटी, अब इन बच्चों के सामने आप भी कैसी बातें कर रही हैं. अब तो इन बच्चों की शादी का समय आएगा. अमायरा 22 साल की तो हो ही गई. और पांचछह साल की बात है.”

“मैं अपनी प्यारी मम्मा को छोड़ कर नहीं जाने वाली. आप निश्चिंत रहो. मैं कभी शादी नहीं करूंगी,”  अमायरा ने अपनी मां के गले में अपनी बांहें डालते हुए और उन्हें एक झप्पी देते हुए उस से कहा.

तभी अमायरा को छेड़ते हुए रुद्र बोला, “बातबात पर रोब  जमाने वाली इस कटखनी  बिल्ली के लिए  तो मैं ही कोई समझदार बागड़बिल्ला ढूंढूँगा.  इसे कोई सीधासादा मुरगा मिल गया, तो यह तो उस पर दादागीरी  जमा जमा कर उस का कचूमर ही निकाल देगी.”

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“आज तो तू  गया रुद्र बेटा,  अब तू मेरे पास अपना प्रोजैक्ट बनवाने आया, तो तेरी खैर नहीं,” यह कहते हुए अमायरा ने एक कुशन  उठा कर उस से उसे मारते हुए कहा और हंसते हुए उसे मुंह चिढ़ाने लगी.

सभी लोग उन दोनों की यह चुहलबाज़ी देख कर हंस पड़े.

तभी रामकली कमरे में आई और उस ने  कहा, “अम्माजी और सब लोग डाइनिंग टेबल पर आ जाइए. चाओ और हलवा बन गए  हैं. बस, अब  पकौड़े बनाऊंगी.”

सब ने खुशगवार माहौल में हंसतेचहकते  स्वादिष्ठ खाने  का आनंद उठाया.

इनाया और अमायरा के साथ दोतीन दिन मानो पलक झपकते बीत गए.

तपन के वापस आने पर इनाया और अमायरा भी अपने घर लौट गईं.

उसी दिन देररात रुद्र और रिदान  बातें कर रहे थे. रुद्र रिदान  से बोला, “भाई, इनाया आंटी और अमायरा के जाते ही घर कितना सूनासूना  हो गया,  है न?”

“हां रुद्र, उन्हें तो जाना ही था न.”

“पर भाई, मैं सोच रहा हूं, क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि इनाया आंटी हमेशा  हमारे साथ आ कर रहने लगें? भैया, इनाया  आंटी कितनी अच्छी है न? और अमायरा भी?”

“हां रुद्र, दोनों बहुत ही अच्छी हैं.”

तभी कुछ सोच कर रुद्र रिदान से बोला, “भाई, क्या पापा और इनाया आंटी की शादी नहीं हो सकती? कितना अच्छा हो, अगर  दोनों शादी कर लें. फिर तो इनाया आंटी और अमायरा हमारे घर पर ही रहने लग जाएंगी.”

“रुद्र, 11  बजने  आए.  अब सो जा.  शेखचिल्ली जैसी बातें करना बंद कर.”

“अरे भैया,  मैं प्रैक्टिकल बातें कर रहा हूं.  मेरे एक दोस्त माणिक की मम्मा ने अभी पिछले महीने ही किसी से शादी की. और अपने नए पापा के यहां वह बहुत खुश है.  सोचो, भैया सोचो, यह बिलकुल प्रैक्टिकल भी है.”

“वह  तो खैर है, लेकिन इतनी उम्र में शादी करने से हम दोनों और उन की लाइफ में बहुत कौम्प्लीकेशन आ सकते हैं. तू अभी बच्चा है, नहीं समझेगा.”

“कम औन भैया, मैं इतना भी छोटा नहीं. अगले महीने पूरे 20  का हो जाऊंगा. पहले आप अपनी बताओ, क्या आप नहीं चाहते कि हमारे घर में खुशियां फिर से आएं. पापा की जिंदगी फिर से गुलज़ार  हो. फिर अनाया आंटी देखीभाली हैं.  हम दोनों और पापा से भी उन की गहरी बौन्डिंग है.  भैया, वे पापा के लिए परफैक्ट मैच हैं.”

“मेरा छोटा भाई इतना समझदार है, मुझे तो पता ही नहीं था. हां रूद्र, बातें तो तू सही कह रहा है. इधर मम्मा के जाने के बाद पापा  कितने उदास हो गए हैं. हरदम बुझेबुझे रहते हैं. हंसना तो जैसे भूल ही गए हैं.”

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“हां भैया, और इनाया आंटी भी मुझे बहुत डिप्रैस्ड सी लगती हैं. अगर  पापा और इनाया आंटी शादी कर लें  तो दोनों की ज़िंदगी कितनी  हैप्पी, गो लकी हो जाएगी.  हमारे लिए भी जिंदगी बहुत आसान हो जाएगी.”

“अभी इनाया आंटी घर पर थीं, तो घर का माहौल कितना अच्छा हो गया था. पापा भी काफी रिलैक्स्ड लग रहे थे.”

“हां, तू बात तो बिलकुल सही  कह रहा है, लेकिन इस के लिए हमें अमायरा से भी बात करनी होगी. इनाया  आंटी को तो वही तैयार करेगी न. और हां, इस सब से पहले हमें इस के लिए दादूदादी की अनुमति भी लेनी होगी. चल, अब सो जा वरना तू सुबह टाइम पर नहीं उठ पाएगा.”

“ओके भाई, गुडनाइट.”

रुद्र  तो बहुत जल्दी सो गया, लेकिन आज रिदान  की आंखों में नींद नहीं थी. उस का मन बारबार एक ही ख़याल के इर्दगिर्द भटक रहा था, ‘अगर पापा और आंटी सच में एक हो जाएं, तो पापा को नई ज़िंदगी मिल जाएगी.’

अगले ही दिन रिदान ने  डरतेडरते दादूदादी  के सामने पापा और इनाया  आंटी के विवाह की बात छेड़ दी  थी.

आशा के विपरीत दोनों में से किसी ने कोई उग्र प्रतिक्रिया नहीं दी. बस, उस की इस बात पर दादी जरूर थोड़ा भड़क गईं यह कहते हुए कि “इनाया अपने धर्म की नहीं है.  इसलिए 2 विभिन्न  धर्म, रीतिरिवाज़,  सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के चलते उन के विवाह के सफल होने के चांस बहुत कम हैं.”

इस पर रिदान  ने उन्हें अपना तर्क दिया कि, “दोनों की जानपहचान और बौन्डिंग के बहुत गहरे होने की वजह  से दोनों के एकदूसरे के साथ ऐडजस्टमैंट में कोई दिक्कत नहीं आएगी.”

“यह क्या ऊलजलूल बोल रहा है, बेटा? इनाया और तपन का कोई मेल नहीं. वह मुसलमान है, जबकि हम हिंदू.”

अपने हिस्से की जिंदगी: भाग 3

‘‘फ्री हो कर करती हूं,’’ कह कनु ने उसे टाल दिया. पूरा दिन निमेश उस के फ्री होने का इंतजार करता रहा, मगर कनु उसे नजरअंदाज करती रही और शाम को चुपचाप वहां से निकल गई. अभी उसे घर पहुंचे 1 घंटा ही हुआ था कि निमेश भी पीछेपीछे आ गया. क्या करती कनु. घर आए मेहमान को अंदर तो बुलाना ही था. मगर उस एक कमरे के घर में उसे बैठाने की जगह भी नहीं थी.

‘चलो अच्छा ही हुआ… आज हकीकत अपनी आंखों से देख लेगा तो इस के इश्क का बुखार उतर जाएगा…’ सोचती हुई कनु उसे भीतर ले गई. कमरे में 3 चारपाइयां लगी थीं. एक पर सोनू और एक पर दादी सो रहे थे.

तीसरी शायद कनु की थी. निमेश खाली चारपाई पर चुपचाप बैठ गया. कनु चाय बना कर ले आई. दादी को सहारा दे कर तकिए के सहारे बैठा कर उस ने एक कप दादी को थमाया और एक निमेश की तरफ बढ़ा दिया. निमेश चुपचाप चाय पीता रहा. सोच कर तो बहुत आया था कि कनु से यह कहूंगा, वह कहूंगा, मगर यहां आ कर तो उस की जबान तालू से ही चिपक गई थी. एक भी शब्द नहीं निकला उस के मुंह से. चाय पी कर निमेश ने ‘चलता हूं’ कह कर उस से बिदा ली.

1 सप्ताह हो गया कनु को निमेश कहीं नजर नहीं आया. मन ही मन सोचा कि निकल गई न इश्क की हवा… फिर सोचा कि इस में बेचारे निमेश की क्या गलती है… कुदरत ने मेरी जिंदगी में प्यार वाला कौलम ही खाली रखा है. निमेश ठीक ही तो कर रहा है… अब कोई जानबूझ कर जिंदा मक्खी कैसे निगल सकता है… सपने देखने की उम्र में कोई जिम्मेदारियों के लबादे भला क्यों ओढ़ेगा?

शाम को अचानक पापा को घर आया देख कर कनु को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘2 साल से सोनू बिस्तर पर है, मगर पापा ने कभी आ कर देखा तक नहीं कि वह किस हाल में है… यहां तक कि उन की अपनी मां के चोटिल होने तक की खबर सुन कर भी उन्होंने उन की कोई खैरखबर नहीं ली… आज जरूर कुछ सीरियस बात है जो पापा को यहां खींच लाई है… क्या बात हो सकती है…’ कनु का दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘‘कनु, मुझे माफ कर दे बेटी. मैं सिर्फ अपनी खुशियां ही तलाश करता रहा, तेरी खुशियों के बारे में जरा भी नहीं सोचा… धिक्कार है मुझ जैसे बाप पर… मुझे तो अपनेआप को पिता कहते हुए भी शर्म आ रही है… भला हो निमेश का जिस ने मेरी आंखें खोल दी वरना पता नहीं और कितने गुनाहों का भागी बनता मैं…’’ पापा ने कनु के  हाथ अपने हाथ में लेते हुए भर्राए गले से कहा.

‘‘अच्छा तो ये सब निमेश का कियाधरा है… उसे कोई अधिकार नहीं है इस तरह उस के घरेलू मामले में दखल देने का…’’ पापा के मुंह से निमेश का नाम सुनते ही कनु का पारा चढ़ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप हमारी फिक्र न करें… हम सब ठीक हैं… सोनू और दादी की देखभाल मैं कर सकती हूं… बोझ नहीं हैं वे दोनों मेरे लिए…’’ बरसों से मन के भीतर दबी कड़वाहट धीरेधीरे पिघल कर बाहर आ रही थी.

‘‘मैं अपने किए पर पहले ही बहुत पछता रहा हूं, मुझे और शर्मिंदा मत करो कनु. मां और सोनू तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी जिम्मेदारी है…’’ पापा ने ग्लानि से कहा.

तभी कनु ने निमेश को आते हुए देखा तो नाराजगी से अपना मुंह फेर लिया. कनु के पापा ने भी उसे देख लिया था. बोले, ‘‘सोनू और मां को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा, मगर एक और बड़ी जिम्मेदारी है मुझ पर पिता होने की… उस से अगर मुक्ति मिल जाती तो मैं गंगा नहा लेता.’’ कनु ने प्रश्नवाचक नजरों से उन की तरफ देखा.

‘‘कनु, निमेश बहुत ही अच्छा जीवनसाथी होगा… तुम्हें बहुत खुश रखेगा…. तुम्हें राजी करने के लिए इस ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले… तुम बस हां कर दो… इसे इस के प्यार का प्रतिदान दे दो,’’ पापा ने निमेश की वकालत करते हुए कनु से मनुहार की.

‘‘अगर आप सोनू और दादी को अपने साथ ले जाएंगे तो क्या आप की पत्नी को एतराज नहीं होगा?’’ कनु ने अपनी कड़वाहट जाहिर की.

‘‘कौन पत्नी… कैसी पत्नी? वह औरत तो 2 साल पहले ही मुझे यह कह कर छोड़ गई थी कि जो अपनी मां और बच्चों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है… वैसे सही ही कहा था उस ने… मुझे आईना दिखा दिया था उस ने… मगर मुझ में ही हिम्मत नहीं बची थी तुम्हारा सामना करने की… क्या मुंह ले कर आता तुम्हारे पास… मैं एहसानमंद हूं निमेश का जिस ने मुझे हिम्मत बंधाई और अपनी जिम्मेदारी निभाने का हौसला दिया…’’ कनु के पापा की आंखों से आंसू बह चले.

कनु ने प्यार से निमेश की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रहा था. बोला, ‘‘कनु, मैं बेशक छोटी सी नौकरी करता हूं, ज्यादा पैसा नहीं हैं मेरे पास… मगर मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कोई कमी नहीं रहने दूंगा… तुम्हारे हिस्से की जिंदगी अब खुशियों से भरपूर होगी.’’

‘‘मैं सोनू और मां के लिए ऐंबुलैंस मंगवाता हूं. तुम तब तक अपना जरूरी सामान पैक कर लो,’’ कनु के पापा ने उसे लाड़ से कहा. फिर निमेश की तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘तुम इस रविवार अपने घर वालों को हमारे यहां ले कर आओ… रिश्ते की बात घर के बड़ों के बीच हो तो ही अच्छा लगता है.’’

अपने आंसू पोंछते हुए कनु बोली, ‘‘एक शर्त पर मैं आप सब की बात मान सकती हूं… आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि कोई भी अनावश्यक रूप से मोबाइल का उपयोग नहीं करेगा… इसे जरूरत पर ही इस्तेमाल किया जाएगा, शौक के लिए नहीं…’’

‘‘वादा’’ सब ने एकसाथ चिल्ला कर कहा और फिर घर में हंसी की लहर दौड़ गई.

सुमोना चक्रवर्ती ने छोड़ा ‘कपिल शर्मा’ का शो? जानें वजह

‘द कपिल शर्मा शो’ (The Kapil Sharma Show) इन दिनों सुर्खियों में छायी हुई है. शो को लेकर हर रोज कुछ न कुछ नया सामने आ रहा है. हाल ही में खबर आई थी कि यह शो बंद होने वाला है. तो वहीं कुछ दिन पहले ही यह शो द कश्मीर फाइल्स से विवाद को लेकर चर्चा में बना हुआ था. दरअसल इस फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म द कश्मीर फाइल्स को प्रमोट न करने का आरोप लगाया था.

अब शो से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आ रही है. कपिल शर्मा शो की कॉमेडियन सुमोना चक्रवर्ती (Sumona Chakravarti) यानी भूरी ने शो को छोड़ने का ऐलान किया है. बता दें कि सुमोना से पहले भी कई स्टार्स ये शो छोड़ चुके हैं.

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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुमोना चक्रवर्ती के कॉमेडी शो को छोड़ने की वजह सामने आई है. मिली जानकारी के अनुसार हाल ही में सुमोना के नए शो का प्रोमो रिलीज हुआ है. जिसके बाद खबर आ रही है कि सुमोना जल्दी ‘द कपिल शर्मा शो’ छोड़ सकती है.

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दरअसल सुमोना एक बंगाली टीवी शो में नजर आने वाली हैं. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि सुमोना चक्रवर्ती के जाने के बाद शो में क्या बदलाव आता है.

 

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आपको बता दें कि ‘द कपिल शर्मा शो’ को कई स्टार्स पहले भी अलविदा कहा चुके हैं. इसमें अली असगर, उपासना सिंह, सुनील ग्रोवर उर्फ मशहूर गुलाटी जैसे कई बड़े नाम शामिल हैं.

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