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Summer Special: गरमी में सत्तू के ये हैं फायदे

लेखिका- डा. साधना वेश

सत्तू में ऐसे कई तत्त्व होते हैं, जो डायबिटीज और मोटापे जैसी गंभीर बीमारियों को ही नहीं, बल्कि कई दूसरी बीमारियों को भी शरीर से दूर करते हैं. सत्तू खाने में स्वादिष्ठ ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद होता है. सत्तू के औषधीय गुण भी बहुत हैं. चना और जौ जब साथ में मिलाते हैं, तो गरमियों में यह मिश्रण दवा की तरह काम करता है. गरमियों में सत्तू खाने से अनेक बीमारियां दूर रहती हैं.
चना और जौ को पीस कर सत्तू बनता है, जो शरीर को ठंडक देता है. खास बात यह है कि इस का शरबत, भरवां परांठे या रोटी, पंजीरी, लड्डू, मठरी आदि के रूप में सेवन किया जा सकता है.

मोटापे का दुश्मन

सत्तू एक पूरा आहार है. इस में प्रोटीन के साथ मिनरल, आयरन, मैग्नीशियम और फास्फोरस बहुत होता है. साथ ही, यह फाइबर से भरा होता है. इसे खाने से पेट आसानी से भर जाता है और प्यास भी लगती है. पानी पीने से पेट और देर तक भरा रहता है. ऐसे में यह वजन कम करने के लिए बेहतर खाना है. लू से बचाए सत्तू की तासीर ठंडी होती है, इसलिए गरमी में इसे खाने से शरीर ठंडा भी रहता है और पानी ज्यादा पीने से यह डिहाइड्रेशन से भी बचाता है. इस से लू नहीं लगती है और यह शरीर का तापमान काबू करने में मददगार साबित होता है.

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एनीमिया में फायदेमंद
सत्तू कैल्शियम, आयरन और प्रोटीन से भी भरा होता है. ऐसे में जिन्हें एनीमिया है, वे लोग इसे जरूर खाएं और किशोरावस्था में लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा इस का सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में बढि़या
सत्तू में मौजूद बीटा ग्लूकोन शरीर में बढ़ते ग्लूकोज के अवशोषण को कम करता है. इस से ब्लड शुगर का लैवल कंट्रोल में रहता है. सत्तू कम ग्लाइसेमिक इंडैक्स वाला होता है और यह डायबिटीज को काबू रखने में मदद करता है.

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छात्र प्रतिनिधि- भाग 3: क्या छात्र प्रतिनिधि का चुनाव में जयेश सफल हो पाया?

यह सुन कर सभी वाणिज्य, कला और मैनेजमेंट के छात्र जोरों से हंस दिए. जयेश उस पर हो रहे सीधेसीधे आक्रमण से सुन्न हो गया था.

जब हंसी कम हुई, तो अनुरंजन ने कहना शुरू किया, “भले ही यह अद्भुत बात लगती हो, लेकिन उसे ऐसा लगता है कि हमारा कालेज खेल पर अपना पैसा बरबाद करता है.”

वहां मौजूद लगभग सभी छात्रों ने जयेश को हूट कर के अपनी नापसंदगी जाहिर की. जयेश चुपचाप बैठ अपना तिरस्कार होते देखता रहा.

अनुरंजन ने जयेश पर अपना आक्रमण जारी रखा, “क्या हम वास्तव में एक ऐसे छात्र प्रतिनिधि को चुनना चाहते हैं, जो खेलों की परवाह नहीं करता है?जिस को क्रिकेट की परवाह नहीं…?”

सभी छात्र जोरजोर से चिल्लाने लगे. जयेश को अपनेआप पर काबू पाना कठिन हो रहा था. सभी छात्र उस के खिलाफ हो रहे थे. अनुरंजन सभी छात्रों को उस के खिलाफ भड़काने में कामयाब हो रहा था.

अनुरंजन ने आगे कहा, “मुझे गर्व इस बात का है कि मैं खुद क्रिकेट खेलता हूं. और मैं चाहता हूं कि खेलों में हमारे महाविद्यालय का आर्थिक सहयोग और बढे.”

फिर उस ने थम कर कहा, “एक चीज और है, जिसे मैं क्रिकेट से ज्यादा पसंद करता हूं. और वह है जगन्नाथ.”

जाहिर है, उस का उल्लेख रांची के मशहूर जगन्नाथ मंदिर से था. उस के इतना बोलने पर सभी ने जोरों से तालियां बजाईं.

अनुरंजन ने जयेश पर अपने प्रहारों का अंत नहीं किया था, “मेरे मित्र जयेश के बारे में मैं आप को एक और दिलचस्प तथ्य बताता हूं. उस का ईश्वर में विश्वास नहीं है. न तो जगन्नाथ मंदिर ही वह कभी गया है, न ही पहाड़ी मंदिर.”

अब तो छात्रगण बेहद नाराज हो गए. शिव शांति पथ पहाड़ी मंदिर, शिवजी का मंदिर था. उस मंदिर में न जाना, खुद एक अपराध था.

अनुरंजन ने अपनी बात की समाप्ति करते हुए कहा, “आशा है कि अपना वोट डालते समय मेरी बताई इन बातों का आप पूरी तरह से ध्यान रखेंगे. धन्यवाद.” और तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट के साथ वह वापस अपनी जगह पर आ बैठा.

नीलेंदु ने माइक संभाला, “अनुरंजन के बाद, मैं अपने दूसरे उम्मीदवार, जयेश को आमंत्रित करता हूं कि वह आए और अपना पक्ष रखे कि क्यों उसे छात्र प्रतिनिधि बनाया जाना चाहिए?”

जब जयेश अपनी जगह से उठ कर माइक के सामने आया तो सन्नाटा छा गया. किसी ने उस का तालियों से स्वागत नहीं किया. सिर्फ प्रसनजीत और संदेश तालियां बजा कर उस की हौसलाअफजाई कर रहे थे. माइक के सामने आज सभी जयेश को अपने दुश्मन नजर आ रहे थे. आज सचाई की जीत नामुमकिन थी. अपनी बात को कितने ही सुनहरे तरीके से वह पेश करे, लेकिन जो कीचड़ उस पर पड़ चुकी थी, उसे साफ करना भयंकर कठिन कार्य जान पड़ता था, मानो उसे चक्कर सा आ रहा हो. अब कुछ भी कहना व्यर्थ था. सभी उस के खिलाफ भड़क चुके थे. जयेश के पास अब कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने विचारों के बल पर छात्रों को वापस अपने पक्ष में लाने की बात वह सोच भी नहीं सकता था. अगर वह झूठ का सहारा न भी लेना चाहे तो भी अपने प्रतिद्वंद्वी के स्तर तक तो उसे आज गिरना ही पड़ेगा, वरना सालों तक अपमान झेलते रहना पड़ेगा. और उस स्तर तक गिरने के लिए, उसे संदेश द्वारा खोजबीन कर प्राप्त हुए अनुरंजन के पृष्ठभूमि तथ्यों का इस्तेमाल करना ही पड़ेगा. और कोई चारा नहीं था.

यही सब सोच कर जयेश ने अपने भाषण की शुरुआत की, “मेरे प्रतिद्वंद्वी अनुरंजन नावे ने आप को मेरे बारे में बताया. अब मैं भी आप को उस के बारे में कुछ बताना चाहता हूं. ऐसी बात जो वो खुद नहीं बताना चाहता है. शायद आप लोगों को पता नहीं कि अनुरंजन नावे का इतिहास क्या है. अनुरंजन, झारखंड का मूल निवासी नहीं है.”

वहां बैठे सभी छात्र आपस में फुसफुसाने लगे. महाविद्यालय में लगभग सभी छात्र रांची से ही थे. जयेश ने अपना वक्तव्य जारी रखा, “मुझे तो इस बात का बेहद गर्व है कि मेरे पूर्वजों के भी पूर्वजों के नाम की यहां की जमीन का खतियान है. लेकिन मेरे विरोधी की रांची में तो क्या, पूरे झारखंड में कोई जमीन नहीं है, न ही उस के बापदादाओं की है या कभी थी.”

प्रांगढ़ में बैठे विद्यार्थियों में अब आपस में बोलचाल और बढ़ गई. जयेश ने कहा, “मैं शुद्ध झारखंडी हूं, और हमारे राज्य की 9 क्षेत्रीय भाषाओं को पाठ्यक्रम में लागू करवाने का जिम्मा लेता हूं. यह काम मेरा प्रतिद्वंद्वी कभी न कर सकेगा, क्योंकि उसे तो यह भी नहीं पता है कि हमारे राज्य की ये 9 भाषाएं कौन सी हैं. उसे कभी इस राज्य में सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, क्योंकि वह स्थानीय नहीं है. क्या आप ऐसे व्यक्ति को अपना वोट देना चाहोगे, जिस के भविष्य में इस राज्य से पलायन करना ही लिखा है?”

विद्यार्थीगण अब तैश में आ गए थे. जयेश ने आगे कहा, “क्या बाहर वाला कभी हमारी ही तरह सोच पाएगा? अनुरंजन नावे भले ही खेलप्रेमी हो और ईश्वर में विश्वास रखता हो, लेकिन उस का जन्म माधोपुर में हुआ था.” इसी बात का संदेश ने पता लगाया था.

बाहरी राज्य के शहर का नाम सुन कर विद्यार्थी भड़क गए. जयेश ने उन्हें और भड़काया, “आप को ऐसा नहीं लगता कि रांची के प्रमुख महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि, रांची या कम से कम झारखंड का होना चाहिए, ताकि आप की सोच और उस की सोच मेल खाती हो?”

छात्रों की भीड़ में अब होहल्ला मच रहा था. जयेश ने उस शोर के ऊपर जोर से माइक में कहा, “मेरे विरोधी ने झारखंड में तब पहली बार कदम रखा, जब अपनी बीएससी की पढ़ाई करने के लिए वह यहां आया था. उस को न तो राज्य से जुड़ी समस्याओं की सूझबूझ है, न ही प्रांतीय लोगों की समझ. हमारी राज्य सरकार ऐसे लोगों को अपने राज्य का हिस्सा नहीं मानती, और आप उसे अपना वोट देना चाहते हो? अगर आप ने ऐसा किया, तो आप राज्य सरकार के कानून के खिलाफ वोट करोगे. झारखंड के मूल निवासी के लोगों के अधिकार हमें सुरक्षित रखने हैं. हम बाहर वालों को ऐसी जिम्मेदारी सौंप कर यह गलती नहीं कर सकते.

“याद रखिएगा कि हमारे अधिकारों की रक्षा करने वाली जितनी भी संस्थाएं हैं, वे सभी हमेशा मेरा साथ देंगी, लेकिन मेरे विरोधी का वे कभी भी साथ नहीं देंगी.

“अगर आप चाहते हैं कि हम अपने अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्थाओं के साथ जुड़े रहें, तो अपना वोट आप मुझे ही देंगे.”

इतना कह कर जयेश वापस अपनी जगह पर आ कर बैठ गया. जबरदस्त तालियों के साथ जयेश का नाम गूंजने लगा. नीलेंदु ने वादविवाद के समापन की घोषणा की.

अगले ही दिन चुनाव थे. कुछ ही दिनों में चुनाव के नतीजे आ गए. जयेश को भारी बहुमत की प्राप्ति हुई और वह अपने महाविद्यालय का छात्र प्रतिनिधि बन गया.

‘बाबा’ के सहारे एक्सचेंज चलाने वाली चित्रा रामकृष्ण

सौजन्य- सत्यकथा

शेयर बाजार की प्रोफेशनल सीईओ चित्रा रामकृष्ण का अज्ञात ‘हिमालयन योगी’ के प्रति आस्थावान और अंधभक्त बने रहना महंगा साबित हुआ.

बिते साल 2012 की बात  है. नवंबर में आने वाली दीपावली को ले कर बाजार में गहमागहमी शुरू हो चुकी थी. कई देशी कंपनियां इस मौके पर नया प्रोजेक्ट लांच करने की योजनाएं बना रही थीं तो पूंजी निवेशक भी शेयर बाजार पर नजर टिकाए हुए थे.

शेयर विश्लेषकों से ले कर ब्रोकर तक निवेशकों पर अपनी सलाह थोप रहे थे. शेयर की दुनिया के महारथियों को 1875 में स्थापित और भारत के 417 शहरों तक पहुंच रखने वाले बौंबे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) से अधिक भरोसा नैशनल स्टाक एक्सचेंज (एनएसई) पर था.

कारण उस में आधुनिक तकनीक से लैस डिजिटल सुविधाओं का होना था. वहां एडवांस्ड एल्गोरिद्म आधारित सुपरफास्ट ट्रेडिंग तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो चुका था. इस की बदौलत एनएसई ने 1994 में अपनी शुरुआत के एक साल के भीतर ही  अच्छी साख बना ली थी.

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सब कुछ ठीक चल रहा था. शेयर कारोबार से जुड़े लोगों को इस की डिजिटल सुविधाएं पसंद आई थीं. फिर अचानक 5 अक्तूबर, 2012 को उस में एक तकनीकी खराबी आ गई. उस का खामियाजा निवेशकों को भुगतना पड़ा. उन के लगभग 10 लाख करोड़ रुपए स्वाहा हो गए.

यह एनएसई की साख पर बहुत बड़ा बट्टा लगने जैसा था. इस वजह से न केवल उस के तत्कालीन सीईओ रवि नारायण पर अंगुली उठी, बल्कि उन्हें पद से भी हटा दिया गया. उस के कुछ महीने बाद 13 अप्रैल, 2013 को एनएसई की कमान चार्टर्ड अकाउंटेंट चित्रा रामकृष्ण को सौंप दी गई.

यह शेयर कारोबार की पुरुष प्रधान दुनिया में मचा नया हंगामा था. इस की मीडिया में चौतरफा चर्चा हुई. रातोंरात चित्रा उस ‘स्त्री शक्ति’ की श्रेणी में आ गईं, जिन्होंने असाधारण जिम्मा संभाला था. कुछ गिनीचुनी महिला सीईओ और बिजनैस वूमन में उन की भी गिनती होने लगी.

एनएसई के सीईओ के पास स्टाक एक्सचेंज संबंधी निर्णय लेने की भरपूर आजादी होती है. यह उस की सूझबूझ पर निर्भर करता है कि वह किस कंपनी को जगह दे और निवेश के लिए किसे कितनी हिस्सेदारी दे. निवेशक जब शेयर खरीदता है तब वह उस कंपनी में हिस्सेदार बन जाता है, जो उस के द्वारा खरीदे गए शेयरों की संख्या पर निर्भर करता है.

शेयर खरीदने और बेचने का काम ब्रोकर्स यानी दलाल करते हैं. हालांकि उन पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की नजर बनी रहती है. इस की स्थापना 12 अप्रैल, 1992 को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के तहत हुई थी.

आज की तारीख में 59 वर्षीय वही चित्रा रामकृष्ण एक अजीबोगरीब घोटाले के केंद्र में आ गई हैं. इसे सेबी ने जब पकड़ा, तब मामला सीबीआई के पास चला गया.

सीबीआई की गहन छानबीन के बाद एक ऐसे व्यक्ति का नाम उजागर हुआ, जो वास्तव में था ही नहीं. वह हिमालय में विचरण करने वाला एक अदृश्य ‘हिमालयन योगी’ था.

इस संदर्भ में हैरानी की एक बात उजागर हुई, जिसे चित्रा ने अपने 20 साल के करियर में कभी देखा तक नहीं था. केवल मिलने के आश्वासन के साथसाथ उस की नजर में अध्यात्म की अनुभूति पाती रही, उसी के निर्देश पर एक्सचेंज का सारा काम दनादन करती चली गईं. देश में पूंजी बाजार और फाइनैंस के नियमकानून की शर्तों वाले कामकाज पर उन का हिमालयन योगी के प्रति गजब की अंधभक्त बन गईं.

उस के मेल से जो भी आदेश मिला, उस का पालन करती रही. इस सिलसिले में यहां तक कि उन्होंने उस के आदेशों का पालन करते हुए नियमों के खिलाफ जा कर अनैतिक नियुक्तियां तक कर डालीं. उन्हीं में एक नियुक्ति आनंद सुब्रमण्यम की मुख्य रणनीतिक सलाहकार के पद पर भी हुई.

इसे ले कर ही चित्रा रामकृष्ण पर आरोप लगे कि उन्होंने एनएसई की प्रबंध निदेशक (एमडी) और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रहते हुए कई अनुचित फैसले लिए और नियुक्तियां कीं.

अपने कार्यालय का दुरुपयोग किया, एक्सचेंज के संचालन से संबंधित गोपनीय जानकारी छिपाने में विफल रहीं और सेबी को गलत एवं भ्रामक जानकारियां देती रहीं. इस पर सेबी ने कहा कि चित्रा ने सारे फैसले अपने अज्ञात आध्यात्मिक गुरु के प्रभाव में किए.

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हालांकि बाद में सीबीआई द्वारा की गई पूछताछ में उन्होंने बताया कि उन के पहले के एमडी व सीईओ रवि नारायण और पूर्व समूह संचालन अधिकारी (जीओओ) आनंद सुब्रमण्यम के खिलाफ सर्कुलर जारी करने में अनदेखी की.

सेबी के आदेश के अनुसार चित्रा एनएसई के एमडी और सीईओ के पद पर दिसंबर 2016 तक रहते हुए कथित तौर पर हिमालय में विचरण करने वाले इस योगी को ‘शिरोमणि’ कह कर बुलाती थीं.

एक मेल में उस नाम का भी प्रयोग किया गया था. उन का दावा था कि वह हिमालय की पहाडि़यों में रहते हैं और 20 सालों से उन के व्यक्तिगत और पेशेवर मामलों के सलाहकार हैं.

एनएसई में घपले के बारे में सेबी को शिकायत साल 2015 में एक व्हिसलब्लोअर ने दी थी. शिकायत में ‘को-लोकेशन स्कैम’ की बात कही गई थी. इस में कहा गया था कि एनएसई में सीनियर मैनेजमेंट लेवल पर खूब धांधलेबाजी चल रही है. को-लोकेशन स्कैम का मतलब होता है एक्सचेंज की बिल्डिंग में सर्वर के करीब जगह दे कर कुछ लोगों को फायदा पहुंचाना.

ऐसा कर अपने पसंदीदा निवेशकों को फायदा मिलता है, जिसे शेयर ब्रोकर शेयरों की खरीदबिक्री का अंजाम देते हैं. बदले में उन्हें कमीशन का अच्छाखासा मुनाफा मिल जाता है.

यानी 2015 में सेबी को शिकायत मिली थी कि कुछ ब्रोकरों ने एनएसई के कुछ शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ मिलीभगत से को-लोकेशन फैसिलिटी का दुरुपयोग किया. इस सिलसिले में सेबी ने एनएसई को एक खास जगह पर स्थापित एक्सचेंज के कुछ सर्वर को कारोबार में कथित रूप से वरीयता देने के मामले में जुरमाना लगाया है.

उस सिलसिले में जब चित्रा का नाम सामने आया था, तब सेबी ने उन्हें शोकाज यानी कारण बताओ नोटिस भेज दिया था. दरअसल, यह मामला शेयर के 12 फीसदी सालाना ब्याज से जुड़ा हुआ था, जिस में अनियमितताएं पाई गई थीं.

एनएसई की को-लोकेशन सुविधा के माध्यम से हाई फ्रीक्वेंसी वाले कारोबार में अनियमितता के आरोपों की जांच के बाद सेबी ने एक महत्त्वूर्ण आदेश दिया था.

आदेश में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि एनएसई को 624.89 करोड़ रुपए और उस के साथ उस पर एक अप्रैल, 2014 से 12 फीसदी की दर से सालाना ब्याज सहित पूरी राशि सेबी द्वारा स्थापित निवेशक सुरक्षा एवं शिक्षा कोष (आईपीईएफ) में भरनी होगी.

नोटिस चित्रा रामकृष्ण के अलावा उन के पहले के एमडी को भी जारी किया गया था. उस नोटिस के जवाब के आधार पर सेबी ने जब अपनी जांच पूरी करने के बाद 190 पन्ने की रिपोर्ट शेयर की, तब अनैतिक नियुक्यों के पीछे की कहानी सामने आई.

सीबीआई ने आनंद सुब्रमण्यम को 24 फरवरी, 2022 की देर रात चेन्नई से गिरफ्तार किया था. एनएसई स्कैम मामले की छनबीन और जांचपड़ताल जैसेजैसे आगे बढ़ी, वैसेवैसे चौंकाने वाले सबूत भी सामने आ गए. इस मामले में करीब 10 साल बाद पहली गिरफ्तारी के साथ कई सबूत सामने आ चुके हैं.

सेंट्रल ब्यूरो औफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के गिरफ्त में आया आनंद सुब्रमण्यम ही ‘हिमालयन योगी’ निकला, जिस के आदेश को चित्रा सिर आंखों पर बिठाए रखती थीं. यानी कथित हिमालयन योगी का राज भी खुल गया.

उस अदृश्य योगी का पता आनंद के पते से मात्र 13 मीटर की दूरी पर पाया गया. इस तरह से पूरा मामला आनंद सुब्रमण्यम, चित्रा रामकृष्ण और अनाम गुरु से जुड़ गया. जांच में पाया गया कि सारा खेल आनंद का किया कराया हुआ था. उस ने ही एक अदृश्य आध्यात्मिक गुरु की कल्पना कर चित्रा के मन में आस्था की अंधभक्ति का बीज बो दिया था.

चित्रा का मानना था कि गुरु की आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत ही उन्हें चार्टर्ड अकाउंटेंट जगत में तरक्की मिलने से ले कर भारत की पहली और एशिया की चौथी स्टाक एक्सचेंज की बिजनैस वूमन बनने का गौरव हासिल हुआ था.

इस अचानक मिली बड़ी उपलब्धि के पीछे गुरु की सलाह का योगदान चित्रा के दिल और दिमाग में गहराई तक बैठ गया. इस कारण ही योगी के निर्देशों के जरिए चित्रा ने आंखें मूंद कर आनंद की नियुक्ति करवा दी.

एक के बाद एक प्रमोशन दिलवा दिए और वेतन में बेहिसाब बढ़ोत्तरी भी करवा दी. जबकि आनंद इस काबिल नहीं था.

यानी कि आनंद ने ही पूरे घपले की बिसात बिछाई थी. खुद योगी बन कर अपना फायदा पहुंचा रहा था. वह एक अप्रैल 2015 से ले कर 21 अक्तूबर, 2016 तक एनएसई के ग्रुप औपरेटिंग औफिसर (जीओओ) के साथसाथ  एमडी-सीईओ चित्रा रामकृष्ण का सलाहकार भी रहा.

इन दोनों पदों को चित्रा ने ही सृजित किया था. इस के लिए न कोई विज्ञापन निकाला गया और न ही विभागीय नोटिस जारी हुआ. यहां तक कि इस भरती की स्टाक एक्सचेंज के एचआर डिपार्टमेंट को भी कोई जानकारी दी गई. आनंद ही इस पद का इकलौता उम्मीदवार था.

चित्रा ने इंटरव्यू की महज मौखिक खानापूर्ति की. उस की कोई फाइल तक नहीं बनाई गई. इसी भरती को ले कर सेबी की जांच शुरू हुई और आनंद घपले की पहली कड़ी के रूप में पाया गया.

वह एनएसई में शामिल होने से पहले बामर लौरी एंड कंपनी लिमिटेड में काम करता था. वहां उस की तनख्वाह 15 लाख रुपए सालाना थी. पूंजी बाजार में उसे काम का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद उसे 1.68 करोड़ रुपए का सैलरी पैकेज दे दिया गया था. और तो और, वह हफ्ते में सिर्फ 4 दिन ही काम करता था.

चित्रा रामकृष्ण योगी से काफी प्रभावित थीं. इसी योगी ने चित्रा को ईमेल लिखे और उन्हें सुब्रमण्यम की भरती से ले कर उन की तनख्वाह तक निर्धारित की. वह ईमेल चित्रा के साथसाथ आनंद को भी भेजे जाते थे. रहस्यमयी योगी कई बार आनंद और दूसरे सीनियर अफसरों को प्रमोशन देने की भी सलाह दिया करता था.

सीबीआई को भी कथित योगी के मेल के कुछ स्क्रीन शौट मिले थे, जो अज्ञात आईडी द्वारा आनंद की आईडी पर फारवर्ड किए गए थे. इस के अलावा इस बात का सबूत भी मिला कि उन्होंने ही ईमेल आईडी बनाई थी.

बताते हैं कि आनंद ने अपने लैपटौप को नष्ट कर दिया था. बाद में जब उस की जांच की गई, तब उस का आईपी एड्रेस और ईमेल का आईपी एड्रेस एक ही पाया गया.

इस से पहले कंसल्टेंसी फर्म अर्नस्ट एंड यंग (ईएंडवाई)  के फोरैंसिक औडिट में भी कहा गया था कि चित्रा को आनंद डायरेक्ट कर रहा था. आनंद के डेस्कटौप पर ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शठ्ठद्वड्डठ्ठद्ब.10 नाम से स्काइप अकाउंट भी मिले थे.

ईएंडवाई ने अपनी जांच में आनंद के चेन्नई स्थित आवास से महज 13 मीटर दूर स्थित 2 जियोटैग तसवीरें, हिमालयन योगी की ओर से बुक किया गया होटल, जिस का भुगतान आनंद ने किया था.

योगी को भेजे गए ईमेल अटैचमेंट और इस से कुछ मिनट पहले ही योगी एवं उस की बातचीच में इस्तेमाल किए गए वाक्यों में समानता जैसे मिले सुबूत इस बात की ओर इशारा करते हैं कि योगी कोई और नहीं, बल्कि आनंद सुब्रमण्यम ही है.

ईएंडवाई का यह निष्कर्ष जनवरी 2000 और मई 2018 के बीच रामकृष्ण, सुब्रमण्यम और हिमालयन योगी के बीच बातचीत के विश्लेषण पर आधारित है. उस का कहना है कि उस ने अटैचमेंट वाले 17 ईमेल का विश्लेषण किया.

इन में 8 तसवीरें थीं, जिन में 2 तसवीरों को जियोटैग किया गया था. दोनों तसवीरों का स्थान चेन्नई में सुब्बू (सुब्रमण्यम) के आवासीय पते के करीब था. इन तसवीरों की कैप्चर की गई लोकेशन मेल ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्ड की ओर से भेजी गई तसवीरों के कैप्चर किए गए स्थान के समान थी.

ईएंडवाई की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अन्य सुबूत उम्मेद भवन पैलेस में की गई एक बुकिंग है. एक दिसंबर, 2015 को ह्म्द्बद्द4ड्डद्भह्वह्म्ह्यड्डद्वड्डञ्चशह्वह्लद्यशशद्म. ष्शद्व से रामकृष्ण (सुब्रमण्यम के लिए भी चिह्नित) को एक ईमेल भेजा गया. इस में कहा गया था कि कंचन की (रेफरेंस टू सुब्रमण्यम) छुट्टी को मंजूरी मिल गई है और एमडी की ओर से उम्मेद भवन में बुकिंग हो गई है. सुब्बू के बैंक स्टेटमेंट के अनुसार 27 नवंबर, 2015 को होटल को 2,37,984 रुपए का भुगतान भी किया गया था.

इस के साथ ही आनंद सुब्रमण्यम को एनएसई से मिले डेस्कटौप पर इस्तेमाल किए गए स्काइप प्रोफाइल का भी विश्लेषण किया गया. इस में पाया गया कि साझा डेस्कटौप में सुब्रमण्यम के यूजर प्रोफाइल में सानंद का जिक्र था.

विंडोज प्रोफाइल सानंद से संबंधित डेस्कटौप डेटा की समीक्षा से पता चला कि ड्डठ्ठड्डठ्ठस्र.ह्यह्वड्ढह्म्ड्डद्वड्डठ्ठद्बड्डठ्ठ9 और ह्यद्बह्म्शद्वड्डठ्ठद्ब.10 के नाम से स्काइप खाते स्काइप एप्लिकेशन डेटाबेस में कन्फिगर किए गए थे.

योगी के मेल की जानकारी ईएंडवाई द्वारा किए गए फोरैंसिक औडिट और जांच में सामने आई कि आनंद खुद इस मेल आईडी से योगी के तौर पर चित्रा को ईमेल करता था. एक तरह से आनंद चित्रा को प्रभावित करने का एक हथकंडा अपनाया हुआ था.

चित्रा के ईमेल चैट से भी कई चौंकाने वाले खुलासे हुए और कुछ रहस्यमयी योगी के बीच की कई ‘सीक्रेट’ बातें सामने आईं. चित्रा और फेसलेस योगी के बीच के एक चैट को देख कर सेबी के अधिकारी भी चौंक गए, जिस में योगी के साथ सेशल्स घूमने में समंदर में तैरने की बात कही गई थी.

17 फरवरी, 2015 को कथित रूप से उस अज्ञात व्यक्ति से रामकृष्ण को भेजे एक ईमेल में लिखा था, ‘कृपया बैग तैयार रखिए. मैं अगले महीने सेशेल्स की यात्रा की प्लानिंग का रहा हूं, कोशिश करूंगा कि आप भी मेरे साथ चलें. इस से पहले कंचन, कंचना और बरघवा के साथ लंदन चले जाएं और आप 2 बच्चों के साथ न्यूजीलैंड जाएं. अगर आप स्वीमिंग जानती हैं, तो हम सेशेल्स में सी बाथ का आनंद ले सकते हैं और समुद्र तट पर आराम भी कर सकते हैं.’

ईमेल के अनुसार, हांगकांग और सिंगापुर ट्रांजिट और आगे की यात्रा के लिए एक पसंदीदा जगह होगी. मैं अपने टूर औपरेटर से पूछ रहा हूं कि वह हमारे सभी टिकटों के लिए कंचन से संपर्क करें.

इस मेल की जांच में सेबी के आदेश में कहा गया है कि ‘कंचन’ आनंद सुब्रमण्यम ही थे, जबकि कंचना, बरघवा और सेशु की पहचान का खुलासा नहीं किया गया था.

सेबी के आदेश के अनुसार 18 फरवरी, 2015 को एक अन्य ईमेल में उस अज्ञात व्यक्ति ने रामकृष्ण से कहा कि आज आप बहुत अच्छे लग रहे हैं. आप को अपने बालों को बांधने के लिए अलगअलग तरीके सीखने होंगे, जो आप के लुक को दिलचस्प और आकर्षक बना देंगे. बस एक मुफ्त सलाह दे रहा हूं. मुझे पता है कि आप इसे जरूर लपक लेंगे. अपने आप को मार्च के बीच में थोड़ा फ्री रखें.

नैशनल स्टाक एक्सचेंज दुनिया के सब से बड़े स्टाक एक्सचेंजों में से एक है. यह शेयर, औप्शन और फ्यूचर्स सहित कई तरह की सिक्योरिटी खरीदने और बेचने की सुविधा देता है. हालांकि, सामान्य लोगों का सीधा एनएसई से वास्ता नहीं पड़ता है, क्योंकि ब्रोकर एनएसई में प्रतिनिधि का बना रहता है और शेयरों की खरीदबिक्री का असल खेल इसी एनएसई में होता है.

एनएसई पहले भारत का इतना पावरफुल स्टाक एक्सचेंज नहीं था. यह गौरव बौंबे स्टाक एक्सचेंज को मिला हुआ था. एक समय में इस पर ब्रोकरों के कुछ समूहों का दबदबा होता था. वे अपने इशारे पर किसी भी शेयर को मुनाफे वाला बना देते थे. इस की खामियां 1992 में हुए हर्षद मेहता घोटाले में उजागर हुई थीं.

हर्षद मेहता शेयरों की कीमतें बढ़ाने में माहिर था. ऊंचे भाव पर अपने शेयर बेच कर भारी मुनाफा कमाता था, इस में बैंक के कमजोर नियमों का भी फायदा उठाता था. नतीजतन इस घोटाले में लाखों लोगों की गाढ़ी कमाई डूब गई थी.

उस के बाद भारत सरकार ने एक पारदर्शी, सिस्टमैटिक और नियमकानून से चलने वाले स्टाक एक्सचेंज शुरू करने का काम इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक औफ इंडिया को सौंपा. इसी के साथ कामकाज को डिजिटल बनाने पर भी जोर दिया. वह पेपरलेस इलेक्ट्रौनिक शेयर ट्रेडिंग की रूपरेखा तैयार की गई. फिर एनएसई वजूद में आ गया.

उस के बाद बीएसई का कारोबार लगातार घट गया. एनएसई में नए तरीके से सुविधाएं दीं. फिर वह बीएसई से काफी आगे निकल गया.

इस के शुरुआती टीम में आर.एच. पाटिल एनएसई के पहले एमडी बनए गए थे. उन के बाद रवि नारायण सीईओ बने. कुछ और लोग इस में शामिल हुए, जिन में चित्रा रामकृष्ण भी थीं.

एनएसई का कामकाज कुछ सालों तक काफी शानदार रहा, लेकिन उसे भी वही घोटाले की बीमारी लग गई. और फिर सेबी के सामने को-लोकेशन का मामला सामने आया.

को-लोकेशन स्कैम में कुछ चुनिंदा ब्रोकर्स को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया था. जांच एजेंसीज के मुताबिक, ओपीजी सिक्योरिटीज नामक ब्रोकरेज फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए उसे को-लोकेशन फैसिलिटीज का एक्सेस दिया गया था.

इस फैसिलिटी में मौजूद ब्रोकर्स को बाकियों की तुलना में कुछ समय पहले ही सारा डेटा मिल गया था. इस तरह एनएसई के घपलेबाजों ने अपनी जरूरतों और प्राथमिकता के आधार पर इस्तेमाल कर लेते थे और वे शेयरों की खरीद और बिक्री से मुनाफा कमा लेते थे.

एक अनुमान के मुताबिक ब्रोकर्स ने 50,000 करोड़ रुपए के प्रौफिट कमाए, जबकि इस गलत काम करने में सहायक बनने वालों में एनएसई समेत चित्रा पर जुरमाना लगाया. सेबी द्वारा चित्रा पर 3 करोड़ रुपए, नारायण और आनंद पर 2-2 करोड़ रुपए तथा वीआर नरसिम्हन पर 6 लाख रुपए का जुरमाना लगाया गया.

इस के साथ ही सेबी ने एनएसई को कोई भी नया उत्पाद पेश करने से 6 महीने के लिए रोक दिया है. इस तरह का प्रतिबंध चित्रा और सुब्रमण्यन पर भी लगया गया है. वे 3 साल तक किसी भी बाजार ढांचागत संस्थान या सेबी के साथ पंजीकृत संस्थान के साथ नहीं जुड़ सकते हैं. नारायण पर यह पाबंदी 2 साल के लिए लगाई गई है.

यही नहीं, सेबी ने एनएसई को चित्रा के अतिरिक्त अवकाश के बदले में भुगतान किए गए 1.54 करोड़ रुपए और 2.83 करोड़ रुपए के बोनस (डेफर्ड बोनस) को भी जब्त करने का भी निर्देश दिया है.

हालांकि जांच एजेंसियों के सामने कम मुश्किलें नहीं आई हैं. कारण एनएसई ने चित्रा समेत अन्य उच्च अधिकारियों के लैपटौप, कंप्यूटर हार्डवेयर को ई-वेस्ट के नाम काफी पहले नष्ट कर दिया था.

पूंजी बाजार नियामक सेबी जहां अपनी रिपोर्ट के आधार पर न केवल एनएसई के कामकाज के तौर तरीकों पर सवाल उठा रही है, बल्कि कई रहस्यमयी साजिशों की परतें भी खोल दी हैं.

सेबी के आदेश के बाद चित्रा की मुश्किलें बढ़ गई हैं. इनकम टैक्स छापा पड़ने के बाद वह बुरी तरीके से घिर चुकी हैं

इस महीने हो सकती है आलिया-रणबीर की सगाई

बॉलीवुड की पॉपुलर जोड़ी आलिया भट्ट (Alia Bhatt) और रणबीर कपूर (Ranbir Kapoor) अक्सर अपने लवलाइफ को लेकर चर्चे में छाये रहते हैं. हाल ही में आलिया और रणबीर ने फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ की शूटिंग खत्म की है. दर्शकों को इस फिल्म का बेसब्री से इंतजार है. इसके अलावा दोनों के फैंस उन्हें जल्द से जल्द शादी के बंधन में बंधा देखना चाहते हैं.

कुछ दिन पहले खबर आई थी कि आलिया और रणबीर इस साल दिसंबर में शादी करेंगे. लेकिन अब खबर यह आ रही है कि आलिया भट्ट और रणबीर कपूर जल्द ही सगाई करने वाले हैं.

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एक रिपोर्ट के अनुसार, आलिया भट्ट और रणबीर कपूर अप्रैल महीने में सगाई कर सकते हैं. जी हां, दोनों से जुड़े सूत्रों ने बताया था कि अप्रैल का महीना दोनों की शादी के लिए बहुत जल्दी हो जाएगा. क्योंकि इस वक्त वे दोनों अपनी अपकमिंग फिल्म को लेकर काफी बिजी भी चल रहे हैं. ऐसे में दोनों दिसंबर में शादी के बंधन में बंधेंगे.

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खबरों के अनुसार, अप्रैल के अंत में आलिया और रणबीर सगाई कर सकते हैं. बताया जा रहा है कि दिसंबर महीने में ही आलिया भट्ट और रणबीर कपूर को अपने काम से छुट्टियां मिलती हैं, ऐसे में दोनों शादी के लिए दिसंबर ही चुनेंगे.

 

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आपको बता दें कि जब रणबीर कपूर से भी उनकी शादी के सिलसिले में सवाल किया गया था. तो रणबीर ने तारीख बताने से साफ इंकार कर दिया था. आए दिन रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की शादी का नकली कार्ड भी सोशल मीडिया पर वायरल होता है.

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शादी से पहले ‘अनुपमा’ ने मारी बाजी, जीता ये अवार्ड

टीआरपी चार्ट में हर हफ्ते टॉप पर रहने वाला टीवी शो ‘अनुपमा’ (Anupamaa) की कहानी में नया मोड़ आ चुका है. शो में जल्द ही अनुपमा-अनुज की शादी का ट्रैक दिखाया जाएगा. तो वहीं शाह हाउस में अनुपमा-अनुज की शादी को लेकर हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. फैंस अनुज-अनुपमा की केमिस्ट्री को काफी पसंद करते हैं. ऐसे में अनुपमा को इस किरदार के लिए कई अवार्ड से नवाजा जा चुका है.

अब अनुपमा ने एक औऱ अवार्ड अपने नाम किया है. शो के लिए अब रुपाली गांगुली ने बॉलीवुड लाइफ डॉट कॉम का अवॉर्ड जीता है. जी हां, इस अवॉर्ड को पाकर ‘अनुपमा’ यानी रुपाली गांगुली बेहद खुश हैं. उन्होंने टेबल पर इस अवॉर्ड को रखकर खुद जमीन पर बैठकर इसके साथ पोज दिए हैं.

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इन तस्वीरों में अनुपमा ब्लैक ड्रेस में काफी खूबसूरत नजर आ रही हैं. शो में अनुपमा का किरदार घरेलू महिला से शुरू होता है. वह अपने फैमिली के लिए काफी डेडिकेटेड है, लेकिन जब उसे अपने पति वनराज के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में पता चलता है तो वह पूरी तरह टूट जाती है. और आखिरी में उसे तलाक देने का फैसला करती है. इसके बाद अनुपमा की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते है. लेकिन वह हर मुश्किल का सामना करती है.

 

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अनुपमा की जिंदगी में अनुज की एंट्री होती है, तब से उसकी जिंदगी ही बदल जाती है. कहते है न कि ‘एक अच्छा साथी जिंदगी के सफर में मिल जाये तो हर मुश्किल आसान हो जाती है.’ यहीं अनुपमा के साथ होता है. अनुज हर कदम पर उसके साथ है.  फैंस को अनुपमा (Rupali Ganguly) और अनुज कपाड़िया (Gaurav Khanna) का  रोमांस काफी पसंद आ रहा है.

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बता दें कि रुपाली गांगुली ने इन तस्वीरों को शेयर करते हुए एक इमोशनल नोट भी लिखा है. उन्होंने सबसे पहले अपने पति अश्विन और बेटे रुद्रांश को यह अवॉर्ड डेडिकेट किया है. इसके साथ ही उन्होंने ‘अनुपमा’ के निर्माता राजन शाही को शुक्रिया कहा है. इसके साथ ही उन्होंने डायरेक्टर्स, राइटर्स और कास्ट के सभी लोगों को शुक्रिया कहा है.

 

‘अनुपमा’ में इन दिनों शाह हाउस में जंग छिड़ी हुई है. अनुपमा ने अनुज से शादी करने का ऐलान कर दिया है. वह इस बार अपने बच्चों और बा के भी विरोध में नजर आ रही हैं. लेकिन इस सबके बीच बा ने गुस्से में उसे शादी के दौरान अपशगुन होने की बद्दुआ दी है.

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मिर्च की खेती बनी आमदनी का जरीया

कोई भी काम लगन और मेहनत से किया जाए, तो उस से फायदा ही होता है. खेतीकिसानी में भी खेती का रकबा भले ही कम हो, पर खेती के नए तौरतरीकों के जरीए भी ज्यादा आमदनी जुटाई जा सकती है.

इस बात को जबलपुर जिले के एक किसान ओमप्रकाश तिवारी ने साबित कर के दिखाया है. उन्होंने खेती के परंपरागत तौरतरीकों को छोड़ कर अपनी 5 एकड़ जमीन पर हरी मिर्च की खेती कर के लाखों रुपए की आमदनी ले कर एक मिसाल कायम की है.

जबलपुर जिले के घाट पिपरियां गांव के किसान ओमप्रकाश तिवारी बताते हैं कि तीखी मिर्च ने उन की जिंदगी में मिठास घोल दी है. प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से उन्होंने अपनी 5 एकड़ जमीन पर मिर्च की खेती कर 16 टन प्रति एकड़ का उत्पादन लिया है. ठंड के इस सीजन में 40 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से उन्होंने एक दफा में 4 लाख रुपए तक की बचत कर ली है.

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जून में तैयार करते हैं नर्सरी

ओमप्रकाश तिवारी अपने खेतों में मिर्च की खेती के लिए बाजार से उन्नत किस्म के मिर्च के बीज लाते हैं और घर पर खुद ही नर्सरी तैयार करते हैं. बारिश के पहले उन्होंने जून महीने में नर्सरी तैयार की थी. अपने खेतों के लिए उन्होंने जवाहर मिर्च का उपयोग बीज के तौर पर किया है.

खेत में बारिश के समय जुलाई महीने में मिर्च की रोपाई का काम किया जाता है. वैसे तो किसान तीनों मौसम में मिर्च की रोपाई का काम कर सकते हैं. पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर और क्यारी की दूरी साढ़े 4 फुट रख कर उन्होंने मिर्च की रोपाई की थी. 7 से 8 महीनों में मिर्च की फसल तैयार हो जाती है. जवाहर किस्म के बीज से मिर्च का उत्पादन 1 हेक्टेयर में तकरीबन 280 क्विंटल तक मिल जाता है.

क्यारी पर लगाएं मल्चिंग, फिर रोपें पौधा

मिर्च की खेती करने वाले किसानों को ओमप्रकाश तिवारी सलाह देते हुए कहते हैं कि मिर्च की बोआई ऐसे खेत में करनी चाहिए, जहां जल निकासी का समुचित इंतजाम हो. इस के लिए क्यारी को 1 मीटर के आधार में 20 सैंटीमीटर ऊंचाई पर बनाना चाहिए. इस में गोबर की सड़ी खाद मिला दें. 30 माइक्रोन मोटाई वाली प्लास्टिक मल्चिंग शीट से क्यारियों को कवर कर देना चाहिए.

ड्रिप इरिगेशन से सिंचाई, समयसमय पर खाद का प्रयोग अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी होता है. मल्चिंग का फायदा यह होगा कि इस से खरपतवार नहीं होगा और मिर्च के लिए जरूरी नमी बनी रहेगी.

मिर्च की मुख्य फसल जून से अक्तूबर महीने के बीच में होती है. कुछ लोग सितंबर से अक्तूबर महीने के बीच में और कुछ लोग फरवरी से मार्च महीने के बीच में भी मिर्च लगाते हैं.

ओमप्रकाश तिवारी के खेतों में लगी मिर्च की फसल अकेले उन्हें ही फायदा नहीं दे रही, बल्कि उन की खेती से गांव के 50-60 लोगों को रोजगार मुहैया करा रही है. खेत में रोज 50-60 गांव वालों को मिर्च तोड़ने का काम मिल जाता है. एक किलोग्राम मिर्च की तुड़ाई के एवज में उन्हें 7-8 रुपए मिलते हैं. रोजाना एक मजदूर 20 से 25 किलोग्राम मिर्च तोड़ लेता है.

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मिर्च की खेती की तैयारी के समय सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए. इस के बाद प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 120 से 150 किलोग्राम, फास्फोरस 60 किलोग्राम और पोटाश 80 किलोग्राम लगता है.

ड्रिप इरिगेशन में इस की मात्रा 150 दिन में बांट कर हर दूसरे दिन देना ज्यादा फायदेमंद होता है. ड्रिप सिंचाई के साथ ही एनपीके 19:19:19 दे सकते हैं.

मिर्च में फूल आने के समय प्लेनोफिक्स

10 पीपीएम और उस के 3 हफ्ते बाद छिड़काव करने से अच्छी बढ़वार होती है और फल भी अधिक आते हैं. रोपाई के 18 और 43 दिन बाद ट्राईकेटेनाल 1 पीपीएम की ड्रेंचिंग करनी चाहिए.

मिर्च की खेती में लगने वाले रोग

मिर्च की खेती में ज्यादातर रोग पत्तियों को सिकोड़ने वाले होते हैं. रोग लगने से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और इस का असर फसल उत्पादन पर पड़ता है.

मिर्च में आमतौर पर लगने वाले रोगों का उपचार इस तरह से किया जा सकता है.

थ्रिप्स : मिर्च की फसल में सब से घातक और नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी कुकड़ा रोग है. यह रोग वास्तव में थ्रिप्स कीट के कारण होता है. थ्रिप्स मिर्च के पौधों की पत्तियों का रस चूसते हैं. इस से पत्तियां नाव के आकार में ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं.

उपचार के लिए किसान रोगरोधी किस्मों का चयन करें. बीजों को थायोमेथाक्जाम 5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित कर लेना चाहिए.

रोग लगने पर नीम तेल का 4 फीसदी का छिड़काव  करना चाहिए. फिप्रोनिल 5 फीसदी एससी की डेढ़ मिली. मात्रा प्रति एक लिटर पानी में मिला कर स्प्रे कर करना फायदेमंद होता है.

सफेद मक्खी : इस कीट के शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं. कीट की लगातार निगरानी करते रहें.

संख्या के आधार पर डाईमिथोएट की 2 मिलीलिटर मात्रा को एक लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करें. अधिक प्रकोप की स्थिति में थायोमेथाक्जाम 25 डब्ल्यूजी की 5 ग्राम को 15 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से फसल को सफेद मक्खी से बचाया जा सकता है.

माइट : इस कीट के प्रकोप से पौधों की पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं. मिर्च में लगने वाली माइट आंखों से दिखाई नहीं देती. यह कोई कीट ही नहीं होता, इसलिए इस की रोकथाम के लिए कीटनाशी काम नहीं करता है. ये पत्तियों की सतह से रस चूसते हैं. बचाव के लिए डायोकोफाल 2.5 मिलीलिटर या ओमाइट 3 मिलीलिटर प्रति लिटर में स्प्रे करना चाहिए. पाला पड़ने या बारिश में ज्यादा रोग लगने का खतरा रहता है.

बाजार की अच्छी जानकारी होनी चाहिए

ओमप्रकाश तिवारी बताते हैं कि मिर्च से अच्छा फायदा चाहिए, तो बाजार की अच्छी जानकारी होनी चाहिए. अगर ज्यादा मात्रा में मिर्च हो रही है, तो दूसरे शहरों में भी इसे बेच सकते हैं. मेरी मिर्च जबलपुर मंडी में जाती है. रोज दिनभर मिर्च की तुड़ाई होती है. इस के बाद ग्रेडिंग कर इस की पैकिंग की जाती है.

20 किलोग्राम की एक पैकिंग होती है. सुबह तड़के ही मंडी में माल पहुंचाना होता है. हरी मिर्च का भाव ज्यादा मिलता है. स्वाद में अधिक तीखी होती है. लाल मिर्च को भी 30 से 40 रुपए के भाव में बेच देते हैं.

मिर्च की तुड़ाई समय पर न होने से पौधों में कुछ मिर्च पक कर लाल हो जाती हैं. वैसे भी लाल मिर्च को सुखा कर बेचने का झंझट न पालें. हरी मिर्च से थोड़े कम दाम पर लाल मिर्च को भी तुरंत बेचना ही फायदेमंद होता है.

जबलपुर के आसपास के इलाकों में हरी मिर्च की खेती के लिए ओमप्रकाश तिवारी जानेपहचाने जाते हैं. ज्यादा जानकारी के लिए ओमप्रकाश तिवारी के मोबाइल फोन नंबर 7691916297 पर बात की जा सकती है.

प्रीत किए दुख होए

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

नरेंद्र मोदी और “कृत्रिम महंगाई”

पहली दफा जब नरेंद्र दामोदरदास मोदी प्रधानमंत्री बने थे और अचानक पेट्रोल डीजल आदि के दाम कम होने लगे तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि यह उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने आप हो रहा है-भावना यह थी कि स्थिति उनके “अच्छे कर्मों” और नेक कदम से, देश में महंगाई कम हो रही है. अन्यथा, कांग्रेस के समय तो देश में मंहगाई को लेकर त्राही त्राही मची हुई थी.

दरअसल, मामला सिर्फ सोच का है. कोई प्रधानमंत्री पद पर बैठा हुआ शख्स ऐसा कैसे कह सकता है कि मेरे पदभार ग्रहण करने के बाद महंगाई कम हो रही है और यह सिर्फ मेरे कारण हो रहा है, खुशहाली आ रही है. आखिर यह मैं मैं क्या है.

और देखिए कि किस तरह आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहते आज महंगाई सर चढ़कर बोल रही है.और नरेंद्र मोदी की बोलती बंद है.

वस्तुत: कई ऐसी जींस है जहां कृत्रिम रूप से महंगाई लाई गई है,वह भी हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के आशीर्वाद से. कैसे?

आइए! नीचे हम आपको विस्तृत रूप से बताने का प्रयास करते हैं.

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आउट ऑफ कंट्रोल महंगाई

देश में महंगाई धीरे-धीरे आउट ऑफ कंट्रोल होती जा रही है. छोटी छोटी और बड़ी चीजें लगातार महंगी होती जा रही है लोगों के हाथों से खिसकती दिखाई दे रही है जिसमें पहली पंक्ति में है- रसोई गैस जो 7 वर्षों में लगभग दोगुने मूल्य पर मिल पा  रहा है.

दरअसल, हमारे यहां सबसे बड़ी बीमारी है जमाखोरी की. आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी जमाखोरों पर अंकुश लगाने का कोई कारगर सिस्टम हमारे देश में लागू नहीं हो पाया है.

अब जैसे कि भोज्य पदार्थ तेल है देखते ही देखते प्रति किलो पचहत्तर रूपए मंहगा हो गया है इस तरह लगभग यह दुगने दाम तक पहुंच गया है.

वैश्विक स्तर पर मंदी एवं रूस यूक्रेन युद्ध का असर  भी पड़ रहा है और महंगाई का “बम” लगातार फूट रहा है. खाद्य तेलों के बाद पेट्रोल, डीजल के दामों में लगातार उछाल आ रहा है. डीजल के रेट बढ़ते ही ट्रांसपोर्टिंग चार्ज भी बढ़ता जा रहा है. चांवल गेंहू की कीमतों में भी वृद्धि हुई है. आटा- मैदा के अलावा कई किराना सामानों के दामों में भी वृद्धि हुई है. इस बढ़ती महंगाई ने आम आदमी का जीना ही मुहाल हो गया है.

यह सच है कि पूरे देश में महंगाई का तांडव सामने आया है. महंगाई बढ़ने के कई कारण हैं. विश्वव्यापी मंदी के बाद रूस- यूक्रेन के बीच जारी युद्ध का असर कई देशों के उत्पादन के आयात निर्यात पर भी पड़ा है. विदेशों से तेलों का बड़े पैमाने पर आयात होता है . माह भर पहले से खाद्य तेलों की कीमतों में भारी उछाल आया है. सभी खाद्य तेलों के दामों में वृद्धि हुई है. खाद्य तेलों के बढ़े दामों को लेकर मचे हाहाकार के बीच रसोई गैस के दाम भी सरकार ने बढ़ा दिया .

पेट्रोल डीजल के दाम तो सरकार के हाथों में है फिर भी है हफ्ते भर के अंतराल में 5 रूपये तक वृद्धि हुई है. पेट्रोल 106 रूपये में तो डीजल 97 रूपये 41 पैसे में बिक रहा है.

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सच है कि सिर्फ तेलों के दामों पर ही आंच नहीं आई है बल्कि अनाज के दाम भी बढ़ गए हैं. चावल के दाम में बढोत्तरी हो गई है. चावल के साथ गेंहू के दाम में भी उछाल आया है. स्थानीय कृषि उपज मंडियों में अच्छी क्वालिटी का गेंहू 2150 तक बिक रहा.

बढ़ती महंगाई से आम लोग काफी परेशान हैं.

व्यवसायी संजय जैन के मुताबिक बढ़ती महंगाई से घर का बजट बिगड़ता जा रहा है. अब तो रोजमर्रा के सामानों की व्यवस्था करने में ही बड़ी परेशानी हो रही है. महिलाएं नरेंद्र मोदी सरकार के समय में बढ़ती मंहगाई से दुखी हैं .

उन का प्यार बर्फ में जम गया: भाग 2

मौसम विभाग ने टेक्सासवासियों को अगले सप्ताह में आने वाले विंटर स्टार्म और कोल्ड वेदर के

बारे में सचेत रहने की सूचना दी थी. फरवरी 11 तारीख से मौसम ने करवट लेना शुरू किया.12 तारीख को ठीक 11 बजे दिन में काउंटी हेल्थ औफिस ने डेनियल को फोन कर कहा, “आप को टीके का दूसरा डोज 15 फरवरी को लेना था, पर आने वाले कुछ दिनों में बहुत खराब मौसम की सूचना को देखते हुए उसे रद्द कर दिया गया है. आप चाहें तो दूसरा डोज आज 12 बजे आ कर ले सकते हैं, अन्यथा मौसम ठीक होने पर आप को सूचित किया जाएगा.”

डेनियल ने अपने बेटे से बात की, तो उस ने कहा, “आप को दिक्कत क्या है? कार उठाइए और 10 मिनट की दूरी पर आपvका टीका केंद्र है. मौसम ठीक होने का इंतजार न करें और जा कर दूसरा डोज ले लें. डैड, आप से एक बात कहनी थी.”

“कहो न बेटे.”

“ यू नीड ए पार्टनर. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग इतनी दूर हैं कि चाह कर भी मदद नहीं कर सकते हैं. आप के स्वास्थ्य की चिंता बनी रहती है.”

“हां, पहले तो मैं ऐसा नहीं सोचता था, पर अब मुझे भी ऐसा लगने लगा है.”

“ ग्रेट. आप को पार्टनर मिल जाए तो मैं भी एक तरफ से बेफिक्र हो जाऊंगा.”

मौसम बहुत खराब चल ही रहा था. ठंड काफी थी और शाम तक मूसलाधार बारिश होने का अनुमान था. एक बजे दोपहर तक डेनियल टीका ले कर वापस अपने घर में आया. प्रशासन ने सभी स्कूलकालेज और दफ्तर बंद रखने की घोषणा पहले ही कर दी थी. स्कूल के औनलाइन क्लास भी बंद कर दिए गए. दूसरे दिन शाम से डेनियल की तबियत खराब होने लगी. उसे बुखार, बांह और पूरे बदन में दर्द और काफी बेचैनी महसूस हुई. डाक्टर को फोन करने पर उस ने बताया कि टीके की दूसरी डोज के बाद ऐसा होता है. अगर दो दिन से ज्यादा तकलीफ रहती है, तब क्लिनिक आ सकते हैं. ज्यादा तकलीफ हो तब पेनकिलर ले सकते हैं.

डेनियल ने स्टोर में लोयला को फोन कर के कहा, “कोरोना का टीका लेने के बाद मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है. मैं कुछ और ग्रोसरी के सामान की लिस्ट मेल कर रहा हूं, तुम डिलीवर कर देना.”

“आज तो काफी कस्टमर्स डिलीवरी लिस्ट में आप से ऊपर हैं. उम्मीद है कि कल दोपहर बाद आप को

डिलीवरी मिलेगी, वह भी मौसम ठीक रहा तब. आप को ऐसे में किसी के साथ रहना चाहिए डेनियल.”

“ तुम्हीं साथ दो न.”

“मैं 1-2 दिन की बात नहीं कर रही हूं. आप दिल के मरीज हैं, आर्थराइटिस से परेशान हैं, आप को सहारे की जरूरत है.”

“मैं भी 1-2 दिन की बात नहीं कर रहा हूं.”

कुछ देर तक दोनों तरफ खामोशी पसरी रही. फिर लोयला बोली, “वैसे, आप कुछ ज्यादा दिनों की

सप्लाई स्टाक कर लें. हालांकि आजकल रोजमर्रा की चीजों की शॉर्टेज चल रही है, खासकर दूधब्रेड आदि. बाहर से सप्लाई आना लगभग बंद है. फिर भी जितना बन सके, मैं कोशिश करूंगी.

“ओके, मैं कल ग्रोसरी ले कर आती हूं. टिल देन बाय, टेक केयर.”

अगले दिन सुबह से मूसलाधार बारिश हो रही थी. दोपहर के बाद बारिश थमी, तब लोयला डेनियल का सामान अपने कार की ट्रंक में रख कर डेनियल के घर जा रही थी. आसमान से बर्फ रूई के छोटे टुकड़ों की तरह गिर रहे थे. डेनियल के ड्राइव वे में कार पार्क करने के लिए जैसे ही उस ने कार मोड़ी, कार बर्फ पर फिसल कर फ्रंट लान की मिट्टी में जा फंसी. उस ने किसी तरह से कार को कंट्रोल किया, वरना कार पेड़ से जा टकराती. लगातार बारिश और हिमपात के चलते लान की मिट्टी काफी गीली थी. उस के कार के फ्रंट व्हील्स कीचड़ में फंस गए.

लोयला अपना रेनकोट पहन कर बाहर निकली. ट्रंक से ग्रोसरी कार्टन निकाल कर उस ने डेनियल की डोर बेल बजाई.

डेनियल उसे देख कर बोला, “तुम्हारी कार को क्या हुआ? ऐसे मौसम में तुम

क्यों आई?“

“अब आ ही गई तो अंदर आने दोगे या सामान रख कर चली जाऊं? सौरी जाने का सवाल कहां है. कार बुरी तरह फंस गई है.“

“उसे बाद में देखेंगे, पहले अंदर आओ.“

डेनियल कौफी बना लाया और बोला, “लो कौफी पियो. ऐसे मौसम में कौफी दोनों के लिए अच्छी है.“

लोयला विंडो गिलास से बाहर देखते हुए बोली, “बाहर हेवी स्नो फाल शुरू हो गया है.“

दोनों टीवी में लोकल वेदर चैनल न्यूज देख रहे थे. प्रशासन की ओर से मौसम को ले कर एडवाइजरी और चेतावनी दी गई, “आप लोग अपने घरों से बाहर न निकलें. आगामी 3 दिनों तक मौसम में सुधार की संभावना नहीं है.“

“अब मैं क्या करूं डेनियल, मेरी कार भी फंसी है और ऐसे मौसम में कोई हेल्प करने वाला भी नहीं आ सकता है.“

“तुम्हारी कार अगर ठीक भी होती तो मैं तुम्हें जाने नहीं देता. तुम ने टीवी पर सुना नहीं वार्निंग. जब तक मौसम ठीक नहीं होता है, तुम यहां से नहीं जा सकती हो. तुम्हें यहीं रहना होगा. मैं फ्रिज में देखता हूं दोनों के खाने लायक खाना है या नहीं. नहीं हुआ तो कुछ बना लेंगे या तुम्हारे लाए ग्रोसरी में बर्गर है न, वो काफी होगा.“

“अगर आप कहें तो मैं खाने में कुछ बना दूं. मैं फिश ले कर आई हूं.“

“नो, आज जो रेडीमेड फूड है, उसी से काम चलेगा. मौसम के बहाने ही कुछ दिन के लिए हम साथी बन गए हैं.“

तभी जोर से बिजली चमकी और बाद में उस की गर्जना से लगा घर कांप उठा. कुछ पल बाद बिजली भी चली गई.

“माय गौड, अब पता नहीं बिजली कब आए. हमारा किचेन स्टोव भी सिर्फ बिजली से चलता है. फ्रिज का खाना माइक्रोवेव में गरम भी नहीं कर पाएंगे.“

डेनियल बोला, “अभी से फ्रिज से निकाल दें. खाने के समय तक कुछ ठंडापन कम हो जाएगा, फिर जैसा भी हो खाना पड़ेगा. अब हीटर भी नहीं काम करेगा और मेरे सारे विंटर ड्रेस घर पर पड़े हैं.“

“मेरे क्लोजेट से ब्लैंकेट्स और जो भी चाहो निकाल लो. स्लीपिंग पजामा भी ले सकती हो.“

लोयला ने फोन देख कर कहा, “ठंड बढ़ती जा रही है. बाहर का टेम्परेचर माइनस 10 डिगरी सैल्सियस है. हीटर

चलने का सवाल ही नहीं है. आज रात माइनस 15 डिगरी सैल्सियस होने वाला है. मुश्किल तो ये है कि लाइट भी नहीं है. फोन की लाइट ज्यादा यूज करना भी ठीक नहीं है. पावर नहीं होने से चार्ज भी नहीं कर पाएंगे.“

“ऐसा करते हैं हम लोग, अपने बच्चों से बात कर यहां की स्थिति बता देते हैं, फिर पता नहीं कब बात हो.“

डेनियल और लोयला दोनों ने अपने बच्चों से बात की और कहा कि फोन पर ज्यादा बातें नहीं हो सकती हैं. जरूरी बातें मैसेज पर होंगी. पता नहीं, फोन कब डेड हो जाए. वाईफाई भी बिना पावर के नहीं काम करेगा. दोनों के बच्चों ने कहा कि अच्छा है आप के साथ कोई जानपहचान वाला है.

शाम को जल्दी डिनर कर दोनों अपने ब्लैंकेट में समा गए. किसी तरह रात गुजारी. सुबह उठे तो देखते हैं कि बाहर चारों तरफ बर्फ की मोटी परत जम चुकी थी. नल में पानी भी नहीं आ रहा था.

प्रीत किए दुख होए: भाग 1

नंदीग्राम खगडि़या जिले का एक कसबा था, जो वहां से महज 10 किलोमीटर ही दूर था. कहलाता तो वह दलित बस्ती इलाका था, लेकिन वहां के सारे दलित ब्राह्मणों को ‘बाबू लोग’ पुकारते थे. इक्कादुक्का घर राजपूतों के भी थे.

आबादी में ज्यादा होने के बावजूद वहां के दलितों को ‘बाबू लोगों’ ने हड़प नीति का इस्तेमाल कर सब की जरजमीन छीन कर गांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया था. वहां 2 घर बचे थे, जो भूमिहीन व गरीब थे. वे लोग किसी के सहारे पलते थे. इन्हीं 2 घरों में से एक घर में जैसे कीचड़ में कमल खिल गया था.

झुग्गीझोंपड़ी योजना के तहत वहां पुराना स्कूल था, जिस में ज्यादातर ‘बाबू लोगों’ के बच्चे ही पढ़ा करते थे. दलितों के लड़के रहे ही कहां, जो स्कूल में दिखते. बस, एकमात्र काजल थी, जो दलित तबके से आती थी.

हालांकि सभी लड़के काजल से अलग बैठते थे, लेकिन एक ब्राह्मण छात्र सुंदर था, जो उस के एकाकीपन का साथी बन गया था, इसलिए सुंदर से भी सब चिढ़ते थे. एक ब्राह्मण का लड़का दलित लड़की से नजदीकियां बनाए, यह किसी को गवारा न था.

काजल दलित जरूर थी, लेकिन खूबसूरती में बेजोड़ सुंदर. उस की इसी खूबसूरती का मुरीद था सुंदर.

स्कूल से विदाई का दिन आ गया. अब यहां से निकल कर छात्रों को मध्य विद्यालय में दाखिला लेना था. काजल अच्छे नंबरों से पास हुई थी.

‘‘काजल, आगे कहां पढ़ोगी? बाबा तो मुझे शहर भेजने पर तुले हैं… खगडि़या,’’ सुंदर ने कहा.

‘‘मैं…? मैं कैसे जा सकती हूं शहर? मेरी मां अकेली हैं. वैसे, गांव से बाहर एक किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय. मैं वहीं दाखिला लूंगी और रोज आनाजाना करूंगी.’’

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‘‘सोचा तो मैं ने भी यही था, लेकिन बाबा का सपना है मुझे हाकिम बनाने का.

‘‘चल न तू भी शहर? मैं मनाऊंगा चाची को…’’ सुंदर ने कहा, ‘‘मेरा वहां अकेले मन नहीं लगेगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं? हो सकता है कि मेरी पढ़ाई भी छूट जाए. मैं गरीब भी हूं और मां मुझे बेहद प्यार करती हैं. वे मुझे दूर नहीं जाने देंगी,’’ काजल ने भोलेपन से कहा.

‘‘तो मेरी भी पढ़ाई छूट जाएगी…’’ सुंदर बोला, ‘‘मैं मर जाऊं तभी तेरा साथ छूटेगा.’’

‘‘मरे तेरे दुश्मन. मैं तो लड़की हूं… चूल्हाचक्की के लिए पढ़ाई करना जरूरी नहीं है. लेकिन तुम्हें तो पढ़ाई करनी ही पड़ेगी. हाकिम न बन सके तो शादी न होगी. बच्चे होंगे तो उन को भूखा मारोगे क्या? कमाई तो करनी ही पड़ेगी…’’ काजल ने कहा, ‘‘कहीं बाबागीरी न करनी पड़ जाए…’’

‘‘अरी मेरी दादी…’’ कहते हुए सुंदर ने उस के कान उमेठ दिए, ‘‘तू मुझे मेरी जन्मपत्री बता रही है क्या? आखिर मेरे बाबा की पूजापाठ, कथावाचन और शादीश्राद्ध की रोजरोज की आमदनी कहां जाएगी?’’

‘‘उई बाबा…’’ कह कर काजल वहां से भाग गई. सुंदर वहां ठगा सा खड़ा रह गया. स्कूल के और भी बच्चे थे. एक तगड़ा लड़का भी था, जो सरपंच का बेटा था. वह सुंदर से जलता था.

‘‘वह उड़नपरी है, उड़नपरी. वह किसी की नहीं होती. उस पर भी वह दलित है. कानून जानता है क्या? अंदर हो जाओगे और बाबाजी की जन्मपत्री, लगनपत्री, मरणपत्री सब की सब छिन जाएगी,’’ उस लड़के ने सुंदर की हंसी उड़ाई.

‘‘चल भाग यहां से. अपना चेहरा देख. काजल तो क्या, कोई काली भैंस भी तुझे घास नहीं डालेगी,’’ सुंदर ने जवाब दिया.

‘‘अच्छा, तो तुझे अपने चेहरे पर घमंड है?’’

शुरू हो गई दोनों में उठापटक. तगड़े लड़के ने सचमुच सुंदर का चेहरा भद्दा कर दिया. काजल को मालूम हुआ, तो दौड़ कर देखने आई और हिम्मत देने के बजाय हंसी उड़ा दी, ‘‘वाह, नाम सुंदर, मुंह छछूंदर?’’

सुंदर ने गुस्से में दौड़ कर उसे पकड़ा और कहा, ‘‘काजल, तुम भी… ठीक है, अब मैं शहर जाऊंगा और तुझे एकदम भूल जाऊंगा.

‘‘देखना, मैं हाकिम बन कर ही आऊंगा,’’ दुखी हो कर सुंदर अपने घर की ओर चल दिया.

यह सुन कर काजल भी रो पड़ी, ‘‘ऐसा मत करना सुंदर. एक तेरा ही तो सहारा है मुझे.’’ लेकिन, सुंदर ने उस का कहा नहीं सुना और अपने घर चला गया.

पंडित रमाकांत को जब सब मालूम हो गया, तो उन्होंने भी सुंदर को खूब पीटा, ‘‘एक तो दलित लड़की है, दूसरे तुम ब्राह्मण. क्या होगा बिरादरी में मेरा? कम से कम मुझ पर तो रहम कर. आखिर उम्र ही क्या है तेरी? ठहर, तेरे मामा को फोन करता हूं. वह तुझे ले जाएगा और मारमार कर हाकिम बनाएगा.’’

सुंदर को भी उस मामा के बारे में मालूम था कि वे काफी बेरहम हैं. उन की अब तक 2 बीवियां भाग चुकी हैं.

‘‘नहीं बाबा, नहीं. मुझे कहीं और भेज दो, पर मैं वहां नहीं जाऊंगा,’’ कह कर सुंदर रो पड़ा.

‘‘अरे, चुप हो जा. मैं समझ गया सबकुछ. अच्छा है… जब 2-4 थप्पड़ रोज पड़ेंगे न, तो भाग जाएगा काजल के इश्क का भूत,’’ उन्होंने सचमुच ही उसी रात फोन कर के अगले दिन उस के मामा को बुलवा लिया.

‘‘तुम बेफिक्र रहो. इसे मैं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा और खुद निगरानी करूंगा,’’ मामा ने सुंदर की मां से कहा.

‘‘देखना भैया, बच्चा कोमल है. मारना मत. और हां, पंडितजी की इसे हाकिम बनाने की इच्छा है,’’ मां ने हाथ जोड़ कर कहा.

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‘‘बनेगाबनेगा हाकिम, कैसे नहीं बनेगा. सुनी नहीं है वह कहावत कि मारमार कर हाकिम बनाना,’’ इतना कह कर मामा खुद रिकशा लेने चले गए और तुरंत ही रिकशा ले कर आ भी गए.

सामान रिकशे में रखा और मामाभांजे दोनों चल पड़े खगडि़या स्टेशन.

रास्ते में ही काजल का घर था. ‘काजल माफ करना. तेरा दिल दुखा कर मैं ने अच्छा नहीं किया. तुझे कभी नहीं भूलूंगा काजल,’ इतना सोचते ही सुंदर रो पड़ा.

‘‘चुप हो जा… नई दुलहन की तरह रो रहा है… पड़ेगा एक थप्पड़,’’ मामा ने लताड़ा.

सुंदर एकदम चुप. मामा ऐसे मूंछें ऐंठ रहे थे, जैसे सीताहरण के दौरान रावण ने सीता के रोने पर तेज हंसी के साथ मूंछें ऐंठी थीं.

गाड़ी मिली, चली और उतर गए बेगुसराय. फिर वहां से 10 किलोमीटर सवारी गाड़ी से और 5 किलोमीटर आगे मैदान बौराही, जहां न तो कोई स्कूल था, न ही कालेज.

काजल को जैसे ही पता चला कि सुंदर वाकई शहर चला गया है तो वह भी रो पड़ी और दौड़ कर मां का आंचल खींच कर ठुनकने लगी, ‘‘सुंदर शहर चला गया मां. मैं भी शहर में पढ़ूंगी.’’

‘‘अरी बावली, वे बाबू लोग हैं और तुम ठहरी दलित. फिर शहर जाने के लिए पैसे कहां हैं बेटी?’’ मां ने काजल को बड़े ही प्यार से समझाया.

‘‘मां, अब सुंदर पढ़लिख कर कब आएगा? मैं ने उस की हंसी उड़ाई थी. शायद वह मुझ से रूठ कर चला गया है,’’ काजल की आंखों से टपकते आंसू उस के कोमल गालों पर लकीर बनाने लगे.

‘‘बेटी, अगर तुम उस से लगाव रखती हो तो तुझे आंसू नहीं बहाने चाहिए. हंस कर दुआ करनी चाहिए कि वह पढ़लिख कर हाकिम बन कर ही तुझ से मिले,’’ मां ने आंचल से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या मालूम, कल वह हाकिम बन कर अंगरेजी में बातें करेगा. समझोगी तुम?

‘‘अच्छा है कि तुम इस गांव में ही मन लगा कर पढ़ो. हाकिम तो गांव में भी पढ़ कर हुए हैं लोग. हमारे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे कई शख्स हैं, जिन्होंने गांव में ही पढ़ाई की थी. कल चलना, हैडमास्टर सर से कह कर स्कूल में दाखिला करा दूंगी.’’

काजल समझ गई और चहकते हुएबोली, ‘‘हां मां, मैं उसे दिखा दूंगी कि बड़ा बनने के लिए शहर में ही नहीं, बल्कि गांव में भी पढ़ाई की जा सकती है. शहर या वहां के स्कूल नहीं पढ़ते, पढ़ते हैं छात्र, जो गांव में भी होते हैं.’’

‘‘मेरी अच्छी बेटी,’’ इतना कह कर मां ने उस का मुंह चूम लिया.

दूसरे दिन ही मां ने काजल का दाखिला गांव के ही मिडिल स्कूल में करा दिया. उसे यह सुन कर और भी खुशी हुई कि मुफ्त में ड्रैस, किताबें और कौपियां  मिलेंगी.

‘‘साइकिल भी दूंगा… अगर मन से पढ़ेगी तो… साइकिल चलाना आता है न तुझे?’’ हैडमास्टर सर ने पूछा.

‘‘साइकिल भी चलाना सीख लूंगी,’’ काजल ने पूछा.

‘‘गुड गर्ल… कल से तुम स्कूल आना शुरू कर दो.’’

‘‘जी सर,’’ इतना कह कर काजल अपनी मां के साथ घर चली आई.

इधर सुंदर को मामा के घर गए महीनों बीत गए. सुंदर की मां ने फोन किया तो सुंदर के मामा बबलू ने कहा, ‘‘हांहां, खूब मन लगा कर पढ़ रहा है वह. बगैर हाकिम बनाए इसे

छोड़ूंगा क्या? पटना से ले कर दिल्ली तक के नेताओं का झोला टांगा है, अटैची ढोई है. वह सब कब काम आएगा?’’

सुंदर चूल्हा फूंक रहा था. दौड़ादौड़ा वह वहां आया और बोला, ‘‘मामा, मां से मेरी भी बात करा दो. कई दिन पहले उन्हें मैं ने अपने सपने में देखा था.’’

‘‘जब देख ही लिया था तो बातें क्यों न कर लीं? चल भाग. ऐसा जोर का घूंसा दूंगा कि तेरी बत्तीसी बाहर निकल जाएगी,’’ मामा बबलू बिगड़ गए.

सुंदर रो पड़ा और रोतेरोते ही फिर चूल्हा फूंकने लगा.

बाहर बंगले पर बबलू गए, तो सुंदर ने दौड़ कर फोन का चोगा उठा लिया. अब लगाए तो कौन नंबर? घर में तो फोन है नहीं.

मां हाट आई होंगी और एसटीडी से बातें की होंगी. वह ठगा सा चोगा रख कर रो पड़ा, ‘मुझे कहां फंसा दिया बाबा? यहां जब कोई स्कूल ही नहीं है, तो पढ़ूंगा क्या खाक?

‘दिनरात मामा की तीमारदारी करनी पड़ती है. घर से लाई किताबें भी खोलने नहीं देते. यह मामा नहीं कंस है, कंस…

‘मैं ने काजल को भी धोखा दिया है. यह सब मुझे उसी की सजा मिल रही है. बाबा, अपने बच्चे की खुशी क्यों नहीं देखी गई आप से?’ सोच कर सुंदर और भी उदास हो गया.

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