आम आदमी पार्टी विकल्प के रूप में भले ही कुछ चुनाव जीत ले लेकिन राजनीतिक विचारधारा के अभाव में उस का लंबे समय तक राजनीति करना आसान नहीं होगा. सामाजिक, आर्थिक व विश्व विचारधारा के अभाव में कोई भी दल न केवल अपने देश बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप नहीं छोड़ पाता है.
आम आदमी पार्टी यानी आप कहती है कि उस की कोई विशेष विचारधारा नहीं है. आम आदमी पार्टी ने व्यवस्था को बदलने के लिए राजनीति में प्रवेश किया. अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘‘हम आम आदमी हैं. अगर वामपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से विचार उधार ले लेंगे और अगर दक्षिणपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से भी विचार उधार लेने में खुश हैं.’’
आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने सरकारी नौकरी को छोड़ कर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी संस्था ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ से समाजसेवा करने की शुरुआत की. जनसूचना अधिकार कानून, जन लोकपाल कानून और अन्ना आंदोलन में उन का नाम चर्चा में आया.
सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) को जमीनी स्तर पर सक्रिय बनाने, सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने और सब से गरीब नागरिकों को भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सशक्त बनाने के लिए किए गए काम को देखते हुए अरविंद केजरीवाल को 2006 में रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
हरियाणा के हिसार शहर में जन्मे अरविंद केजरीवाल आईआईटी खड़गपुर से ग्रेजुएट हैं. इस के बाद वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया. यहां से ही उन को लगा कि सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना पड़ेगा. साल 2006 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी.
दिल्ली जीत से बदला माहौल
इस के बाद अरविंद केजरीवाल ने अरुणा राय, गोरे लाल मनीषी जैसे प्रमुख सामाजिक कार्यकताओं के साथ मिल कर सूचना अधिकार के कानून के लिए अभियान शुरू किया. 2005 में केंद्र की कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार ने सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया. अरविंद केजरीवाल का लक्ष्य अलग था. वे राजनीतिक विकल्प बनना चाहते थे. इस के लिए
2 अक्तूबर, 2012 को उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर दी. इस के लिए केजरीवाल ने गांधी टोपी पर ‘मैं आम आदमी हूं’ लिखवाया.
अब अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनावों को अपना पहला लक्ष्य बनाया. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में उन्होंने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा, जहां उन की सीधी टक्कर लगातार 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं श्रीमती शीला दीक्षित से थी. अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से 3 बार की विजेता शीला दीक्षित को 25,864 मतों से हरा दिया. नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में धमाकेदार प्रवेश किया.
आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीत कर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के बाद दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी. सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर खिसक गई. ‘आप’ ने सरकार बनाई पर वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसंबर, 2013 को दिल्ली के 7वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 49 दिनों के बाद 14 फरवरी, 2014 को विधानसभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया.
2015 में दिल्ली विधानसभा के दोबारा चुनाव हुए. अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ ने 70 सीटों में 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया.
14 फरवरी, 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ पार्टी को जीत हासिल हुई और अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. दिल्ली में 3 बार सरकार बनाने के साथ ही ‘आप’ ने लोकसभा चुनाव में पंजाब में अच्छा प्रदर्शन किया. लोकसभा का चुनाव जीता. दिल्ली के बाहर आम आदमी पार्टी को सब से बड़ी सफलता 2022 के विधानसभा चुनाव में दिखी, जहां आप ने बहुमत ला कर अपनी सरकार बनाई. भगवंत मान को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया.
पंजाब के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद देश की राजनीति में ‘आप’ को विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. आने वाले समय में ‘आप’ का लक्ष्य गुजरात के विधानसभा चुनाव हैं.
वहां अगर वह सफल होती है तो
2024 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ चेहरा बन सकते हैं.
क्षेत्रीय दलों में आम आदमी पार्टी पहली ऐसी पार्टी है जिस ने एक प्रदेश से बाहर निकल कर राजनीतिक प्रभाव बढ़ा लिया है. आम आदमी पार्टी को अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करनी है. किसी भी दल की राजनीतिक जमीन के लिए जरूरी होता है कि उस की अपनी राजनीतिक विचारधारा हो. क्योंकि राजनीतिक विचारधारा से ही समाज के काम होते हैं.
विचारधारा जरूरी क्यों
राजनीतिक दल जिस रूप में आज समाज के सामने हैं, उस का इतिहास बहुत पुराना नहीं है. इन की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में हुई है. राजनीतिक दल लोगों का एक ऐसा संगठित गुट होता है जिस के सदस्य किसी सां?ा विचारधारा में विश्वास रखते हैं या समान राजनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं. ये दल चुनावों में उम्मीदवार उतारते हैं और उन्हें निर्वाचित करवा कर दल के कार्यक्रम लागू करवाने का प्रयास करते हैं. राजनीतिक दलों के सिद्धांत या लक्ष्य लिखित दस्तावेज के रूप में होते हैं. विभिन्न देशों में राजनीतिक दलों की अलगअलग स्थिति व व्यवस्था है.
कुछ देशों में मुख्यतया 2 दल होते हैं. बहुत से देशों में 2 से अधिक दल हैं. लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है. राजनीतिक दल किसी सामाजिक व्यवस्था में शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
समाजशास्त्री राजनीतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप में देखते हैं. राजनीतिक दल ऐसा संगठन है जिस का प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व करना होता है. राजनीतिक शक्ति का आधार ‘वोट’ होता है. सरकार बनाने का काम मतदान प्रणाली से किया जाता है. मतदान करने के लिए जनता को यह बताना पड़ता है कि पार्टी किस विचारधारा को मानती है.
भारत में जो राजनीतिक पार्टियां हैं उन की अलगअलग विचाराधाराएं हैं. जैसे, कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को ले कर जनता के बीच वोट मांगने जाती है. कम्युनिस्ट दल वामपंथ विचारधारा के हैं. समाजवाद को मानने वाले दल समाजवादी विचारधारा को ले कर जनता के बीच जाते हैं. देश की पुरानी पंरपरा और धर्म के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना जैसे दल हैं. इन को प्रतिक्रियावादी दल भी कहा जाता है. ऐसे दल अपनी विचाराधारा को ले कर कट्टरवादी होते हैं. ये अपने काम से सम?ाता नहीं करते. उदारवादी दल पूरे समाज को साथ ले कर चलते हैं. राजनीतिक विचारधारा के आधार पर ही राजनीतिक दलों को जानापहचाना जाता है. इस से ही पता चलता है कि वह किस तरह के काम करेगा. किन लोगों के लिए विशेष तवज्जुह देगा.
‘आप’ की विचारधारा
‘आप’ पार्टी की विचारधारा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने की है. हर राजनीतिक दल इस बात को कहता है. देश का विकास भी हर राजनीतिक दल के एजेंडे में होता है. ‘आप’ जब दिल्ली के बाहर पंजाब में पहली बार चुनाव जीती तो उसे विचारधारा का संकट सामने दिखने लगा. ऐसे में उस ने पंजाब में शहीद भगत सिंह को आगे किया. सरकारी कार्यालयों में भगत सिंह की फोटो लगाई. इस के साथ ही साथ डा. भीमराव अंबेडकर की फोटो भी लगाई गई है.
पंजाब में ‘आप’ पार्टी के नेता भगवंत मान ने भगत सिंह के गांव जा कर शपथ ली. अगर यह माना जाए कि ‘आप’ शहीद भगत सिंह की विचारधारा को मानती है तो उन की विचारधारा वामपंथ को ले कर थी. लेकिन आम आदमी पार्टी वामपंथ को नहीं मानती है. पंजाब में
डा. अंबेडकर की फोटो से यह भी नहीं माना जा सकता कि ‘आप’ की दलित विचारधारा है.
विचारधारा को ले कर ‘आप’ दुविधा में दिखती है. तभी उस के नेता अरविंद केजरीवाल कहते हैं, ‘‘हम आम आदमी हैं. अगर वामपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से विचार उधार ले लेंगे और अगर दक्षिणपंथी विचारधारा में हमारे समाधान मिल जाएं तो हम वहां से भी विचार उधार लेने में खुश हैं.’’
राजनीति उधार की विचारधारा पर नहीं चलती है. उस के लिए राजनीतिक दल की अपनी विचारधारा होनी चाहिए. विचारधारा के आधार पर केवल देश के अंदर ही नहीं, विदेशों में भी संबंध बनाने में मदद मिलती है. देश के बाहर भी राजनीतिक दल अपनी विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ संबंध रखते हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों के लिए विचारधारा बेहद जरूरी होती है. विचारधारा के अभाव में राजनीति में लंबे समय तक बने रहना मुश्किल हो जाता है.