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उलझी हुई पहेली, जो सुलझ गई: भाग 2

वैसे भी लाश की हालत से स्पष्ट था कि दोषियों ने हैवानियत की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं और अगर नव्या ने बलात्कार के कारण दुखी हो कर आत्महत्या की थी तो उस सुनसान इलाके में उस के पास नींद की गोलियां आईं कैसे? उस का तो बैग तक उस की कार में ही रह गया था. इस के अलावा किसी दवा का कोई खाली रैपर आदि भी वहां से नहीं मिला था.

इसी उधेड़बुन में वे नव्या के मायके पहुंचे. नव्या के मांबाप फिर मुकुल का नाम ले कर शोर मचाने लगे. राघव ने उन को समझाया.

‘‘देखिए हम मुलजिम को जरूर पकड़ेंगे लेकिन जल्दबाजी किसी निर्दोष को फंसा सकती है, इसलिए हमारा सहयोग कीजिए.’’

नव्या के पिता ये सुन कर शांत हुए. उन्होंने हर तरह से सहयोग देने की बात कही.

राघव ने पूछा, ‘‘नव्या का मुकुल के अलावा किसी से कोई विवाद था?’’

‘‘नहीं इंसपेक्टर साहब.’’ नव्या के पिता बोले, ‘‘उस की तो सब से दोस्ती थी, बैंक में भी सब उस से खुश रहते थे.’’

‘‘और विमल से उस का क्या रिश्ता था?’’ राघव ने उन के चेहरे पर गौर से देखते हुए सवाल किया. वे इस पर थोड़ा अचकचा गए.

‘‘व…वो…वो…दोस्ती थी उस से भी… मुकुल बेकार में शक किया करता था उन के संबंध पर.’’

राघव ने इस समय इस से ज्यादा कुछ पूछना ठीक नहीं समझा. वो वहां से निकल गए. अगले कुछ दिन इधरउधर हाथपैर मारते बीते. उन्होंने नव्या के बैंक जा कर उस के बारे में जानकारियां जुटाईं. सब ने साधारण बातें ही बताई. कोई नव्या और विमल के रिश्तों के बारे में कुछ कहने को तैयार नहीं था.

राघव ने नव्या के उस शाम बैंक से निकलते समय की सीसीटीवी फुटेज निकलवा कर देखी. वह अकेली ही अपनी कार में बैठती दिख रही थी. राघव की अन्य कर्मचारियों से तो बात हुई, लेकिन विमल से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वह नव्या की मौत के बाद से ही छुट्टी पर चला गया था.

उन्होंने उस का पता निकलवाया और अपनी टीम के साथ उस के घर जा धमके. वह उन को देख कहने लगा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं खुद बहुत दुखी हूं नव्या के जाने से, पागल जैसा मन हो रहा मेरा, मुझे परेशान मत करिए.’’

विमल की हकीकत क्या थी?

‘‘हम भी आप के दुख का ही निवारण करने की कोशिश में हैं विमल बाबू.’’ राघव ने अपना काला चश्मा उतारते हुए कहा, ‘‘आप भी मदद करिए, हम दोषियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं.’’

‘‘पूछिए, क्या जानना चाहते हैं आप.’’ वो सोफे पर निढाल होता बोला. सवालजवाब का दौर चलने लगा. विमल ने बताया कि उस ने उस दिन नव्या को औफिस के बाद अपने घर बुलाया था. लेकिन उस ने मना कर दिया कि पति से झगड़ा और बढ़ जाएगा. वह अपनी कार से निकल गई थी. उस ने अगले दिन किसी पारिवारिक कारण से औफिस न आने की बात की थी. हां, विमल ने भी ये नहीं स्वीकारा कि नव्या से उस की बहुत अच्छी दोस्ती से ज्यादा कोई नाता था.

‘‘ठीक है, विमल बाबू.’’ राघव ने उठते हुए कहा, ‘‘आप का धन्यवाद. फिर जरूरत होगी तो याद करेंगे… बस आप ये शहर छोड़ कर कहीं मत जाइएगा.’’

‘‘जी जरूर.’’

राघव की जीप वहां से चल दी. अब तक इस केस में कुछ भी ऐसा हाथ नहीं लग पाया था जिस से तसवीर साफ हो. उन्होंने अपने मुखबिरों के माध्यम से भी पता लगाना चाहा कि नव्या की हत्या के लिए क्या किसी लोकल गुंडे ने सुपारी ली थी. लेकिन ऐसा भी कुछ मालूम नहीं हो सका. किसी गैंग की भी ऐसी कोई सुपारी लेने की बात सामने नहीं आ पा रही थी.

शाम को राघव घर जाने के लिए निकलने ही वाले थे कि सिपाही ने एक लिफाफा ला कर दिया और बोला, ‘‘साब, ये अभी आया डाक से… लेकिन भेजने वाले का कोई नाम, पता नहीं लिखा.’’

राघव ने लिफाफे को खोला. उस में एक सीडी और चिट्ठी थी. उन्होंने उसे पढ़ना शुरू किया. उस में लिखा था, ‘‘इंसपेक्टर साहब, आप को नव्या के बैंक में जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई गई, वो पूरी नहीं थी. विमल ने उस में पहले ही एडिटिंग करा दी थी. नव्या की मौत वाली शाम विमल उस के साथ उस की ही कार में निकला था. आप को इस बात का सबूत इस सीडी में मिल जाएगा.’’

चिट्ठी पढ़ते ही राघव की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने जल्दी से उसे अपने लेपटौप पर लगाया. वाकई वीडियो में विमल उस शाम नव्या की कार में अंदर बैठता दिख रहा था. राघव को अपना काम काफी हद बनता लगा. वे सिपाहियों के साथ सीधे विमल के घर पहुंचे. देखा कि वह कहीं जाने के लिए पैकिंग कर रहा था. राघव पुलिसिया अंदाज में उस से बोले, ‘‘कहां चले विमल बाबू? आप को शहर से बाहर जाने को मना किया था न?’’

वो उन्हें वहां पा कर घबरा गया और हकलाने लगा.

‘‘म…मैं क…कहीं नहीं जा रहा. बस सामान सही कर रहा था.’’

‘‘इस की जरूरत अब नहीं पड़ेगी.’’ राघव ने फिर कहा, ‘‘चल थाने, वहीं सब सामान मिलेगा तुझे.’’

विमल कसमसाता रहा, खुद को निर्दोष बताता रहा लेकिन सिपाहियों ने उसे जीप में डाल लिया. लौकअप में राघव के थप्पड़ विमल को चीखने पर मजबूर कर रहे थे. वह किसी तरह बोला, ‘‘सर, मैं ने कुछ नहीं किया, हां मैं उस के साथ निकला जरूर था लेकिन रास्ते में उतर गया था, वो आगे चली गई थी.’’

‘‘तो हम से ये बात छिपाई क्यों?’’ राघव ने उसे कड़कदार 2 थप्पड़ और लगाते हुए पूछा.

‘‘म्म्म मैं घब…घबरा गया था साहब कि कहीं मेरा नाम शक के दायरे में न आ जाए.’’

राघव ने उस के सैंपल लैब में भिजवा दिए जिस से नव्या के गुप्तांगों और कपड़ों पर मिले वीर्य से उस का मिलान करा के जांच की जा सके. रिपोर्ट तीसरे दिन ही आ गई. सचमुच नव्या के जिस्म से जितने लोगों के वीर्य मिले थे, उन में एक विमल से मैच कर गया.

राघव ने मारमार के विमल की देह तोड़ दी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बोल, बोल तूने नव्या को क्यों मारा?’’

विमल ने खोला भेद, लेकिन अधूरा

‘‘साब मैं ने कुछ नहीं किया.’’ वो जोरजोर से रोते हुए बोला, ‘‘हां मैं ने कार में उस के साथ जिस्मानी संबंध जरूर बनाए थे लेकिन उस को मारा नहीं… मैं सैक्स कर के उतर गया था उस की गाड़ी से.’’

‘‘स्साला.’’ राघव का गुस्सा बढ़ता जा रह था. वे उस पर गरजे, ‘‘रुकरुक के बातें बता रहा है. जैसेजैसे भेद खुलता जा रहा है वैसेवैसे रंग बदल रहा है. तू मुझ से करेगा होशियारी?’’

उन्होंने फिर से मुक्का ताना लेकिन विमल बेहोश होने लगा था. वे उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकले.

‘‘इस को तब तक कुरसी से मत खोलना जब तक ये पूरी बात न बता दे.’’ शर्ट पहनतेपहनते उन्होंने सिपाही को आदेश दिया. वहां नव्या के मायके वाले भी आए हुए थे. विमल के बारे में जान कर उन्हें मुकुल पर लगाए अपने आरोपों पर बहुत पछतावा हो रहा था.

‘‘इस ने अपना जुर्म कबूल किया क्या इंसपेक्टर साहब?’’ नव्या के पिता ने जानना चाहा.

‘‘नहीं, अभी तक अपनी बेगुनाही का रोना रो रहा है. चालू चीज लगता है ये.’’ राघव ने लौकअप की ओर देख के उत्तर दिया. नव्या के मांबाप सीधे मुकुल के घर पहुंचे.

नेहरू बनाम नरेंद्र: छाया युद्ध जारी आहे

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं जो सीधे-सीधे आजादी के संघर्ष का भी नेताओं को श्रद्धांजलि है दूसरी तरफ आजादी के महानायक यथा मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसी विभूतियों की विरासत से छेड़छाड़ का अपराध भी.

अभी तो नरेंद्र दामोदरदास मोदी की देश में सरकार है. मगर आने वाले समय में नरेंद्र मोदी, भाजपा और आर एस एस को निश्चित रूप से इसका जवाब देना पड़ सकता है. क्योंकि हमारे देश की सहिष्णु आवाम यह सब शायद बर्दाश्त नहीं कर पाएगी.

आज केंद्र सरकार नरेंद्र मोदी के हाथों में है और आप महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसी देश की महान विभूतियों के संग्रहालय, विरासत को लगातार छिन्न-भिन्न करने में लगे हुए हैं. ठीक है आज आप के हाथों में सत्ता है मगर जब कल यह सत्ता हाथों से फिसल जाएगी और इतिहास के कटघरे में आपसे सवाल किए जाएंगे तो आप क्या जवाब देंगे.

ताजा तरीन मामला देश की राजधानी में स्थित नेहरू संग्रहालय का है जहां नेहरू जी को देश चाचा नेहरू के रूप में प्यार करता है, प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में जिनका सम्मान है आजादी की लड़ाई में जिस व्यक्ति ने अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया और एक महानायक बन करके अपने 17 वर्षों के कार्यकाल में देश को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय स्थिति में स्वावलंबी बनाने का भरसक प्रयास किया. उस विभूति के सम्मान में बने नेहरू संग्रहालय का नाम बदला और उसे प्रधानमंत्री संग्रहालय कर दिया गया. क्या यह देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू का, आजादी का अवमान नहीं है.

यहां याद रखने वाली बात यह है कि नरेंद्र मोदी बड़ी संजीदगी के साथ जब भी देश को संबोधित करते हैं तो नाटकीय तरीके से यह प्रदर्शित करते हैं कि वह बहुत ही संवेदनशील है और देश प्रेम तो उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ है. देशभक्ति के सामने तो उनसे बड़ा कोई देशभक्त है ही नहीं फिर देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु हो या फिर राष्ट्रपिता के रूप में महात्मा गांधी उनकी विरासत संग्रहालय के साथ मोदी सरकार यह धतकरम क्यों कर रही है यह सवाल का जवाब नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनकी सरकार कभी नहीं देगी मगर सच्चाई देश जानता है कि इस सब के पीछे का रहस्य क्या है.

नेहरू बनाम नरेंद्र

देश अभी यह भुला नहीं है कि गुजरात में सबसे बड़े स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी ने अपने नाम करवा लिया और प्रोटोकॉल को खत्म करवा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों उसका उद्घाटन करवाया था.
ऐसे नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने नेहरू स्मारक संग्रहालय को अब आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री संग्रहालय बनवा दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन मूर्ति भवन परिसर में प्रधानमंत्री संग्रहालय का उद्घाटन किया. इसे नरेंद्र मोदी ने हर सरकार की साझा विरासत का जीवंत प्रतिबिंब बताते हुए उम्मीद जताई कि यह संग्रहालय भारत के भविष्य के निर्माण का एक ऊर्जा केंद्र भी बनेगा.

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर देश के सभी प्रधानमंत्रियों के योगदान को याद किया. नरेंद्र मोदी ने भारत को लोकतंत्र की जननी बताते हुए कहा कि एक दो अपवादों को छोड़ दिया जाए तो देश में लोकतंत्र को लोकतांत्रिक तरीके से मजबूत करने की गौरवशाली परंपरा रही है.

तीन मूर्ति परिसर में अब प्रधानमंत्री संग्रहालय में देश के 14 पूर्व प्रधानमंत्रियों के जीवन की झलक के साथ साथ देश के निर्माण में उनके योगदान को दिखाया गया है. प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतवासियों के लिए बहुत गौरव की बात है कि देश के ज्यादातर प्रधानमंत्री बहुत ही साधारण परिवार से रहे हैं और सुदूर देहात, एकदम गरीब परिवार, किसान परिवार से आकर भी प्रधानमंत्री पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की महान परंपराओं के प्रति विश्वास को मजबूत करता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि देश आज जिस ऊंचाई पर है वहां तक उसे पहुंचाने में स्वतंत्र भारत के बाद बनी सभी सरकारों का योगदान है. यह संग्रहालय भी हर सरकार की साझा विरासत का जीवंत प्रतिबिंब बन गया है.

मगर नरेंद्र मोदी यह भूल गए कि नेहरू संग्रहालय का अपना एक महत्व था जहां देश भर से और दुनिया से जब पर्यटक आते तो नेहरू संग्रहालय को देख समझकर के उन्हें आजादी की लड़ाई संघर्ष से प्रेरणा मिलती थी. हमारा यहां आदरणीय नरेंद्र मोदी से यही सवाल है की आजादी की लड़ाई के नायकों और अन्य प्रधानमंत्रियों में क्या कोई अंतर नहीं है. क्या -“सभी धान 22 पसेरी” की कहावत यहां चरितार्थ नहीं हो रही है.

अगर वे भी यही करते तो क्या होता …

हम यहां इस आलेख में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं संघ से यह पूछते हैं कि अगर कांग्रेस भी अगर ऐसा ही करने लगे तो आपको कैसा लगेगा.आप क्या यह भूल जाते हैं कि महाराष्ट्र में जहां कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस , शिवसेना की संयुक्त सरकार है. आपके नागपुर स्थित आर एस एस भवन का अधिग्रहण करके उसे और बहुत अच्छा बनाने का प्रयास करे और उसकी आड़ में उसकी मूल भावना के साथ छेड़छाड़ की जाए तब क्या होगा. आपको कैसे लगेगा.

आर एस एस की भावना मूल मंत्र को हम और विस्तार दे रहे हैं कह कर के अगर महाराष्ट्र की सरकार आर एस एस के भवन में बड़ी चतुराई के साथ बदलाव लाने का प्रयास करें तो आपको कैसा लगेगा.दुनिया में नरेंद्र मोदी एक क्षमता वान प्रधानमंत्री के रूप में धीरे-धीरे स्थापित हो रहे हैं मगर वे अपनी शक्ति और ऊर्जा जिस तरीके से कांग्रेस की विरासत को नष्ट करने में लगाते हैं उससे उनकी छवि पर प्रश्न\

चिन्ह खड़ा हो रहा है. यह जो देश में राजनीति चल रही है यह जो छाया युद्ध चल रहा है यह किसी भी हालात में अच्छा नहीं कहा जा सकता.

अपने हिस्से की जिंदगी: आखिर कनु क्यों अपने फोन से चिढ़ती थी

आखिर क्यों कनु को मोबाइल फोन से इतनी चिढ़ थी कि उस के जन्मदिन पर निमेश ने उसे मोबाइल उपहार में दिया तो वह गुस्से से उबल पड़ी.

अपने हिस्से की जिंदगी: भाग 1

पहलीडेट का पहला तोहफा. खोलते हुए कनु के हाथ कांप रहे थे. पता नहीं क्या होगा… हालांकि निमेश के साथ इस रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए कनु का दिल बिलकुल भी गवाही नहीं दे रहा था, मगर कहते हैं न कि कभीकभी आप की अच्छाई ही आप की दुश्मन बन जाती है. कनु के साथ भी यही हुआ था. उस ने अपनी छोटी सी जिंदगी में इतने दुख देख लिए थे कि अब वह हमेशा इसी कोशिश में रहती कि कम से कम वह किसी के दुखी होने का कारण न बने. इसीलिए न चाहते हुए भी वह आज की इस डेट का प्रस्ताव ठुकरा नहीं सकी.

निमेश उस का सहकर्मी, उस का दोस्त, उस का मैंटर, उस का लोकल गार्जियन, सभी कुछ तो था. ऐसा भी नहीं था कि कनु उस के भीतर चल रहे झंझावात से अनजान थी. अनजान बनने का नाटक जरूर कर रही थी. कितने बहाने बनाए थे उस ने जब कल औफिस में निमेश ने उसे आज शाम के लिए इनवाइट किया था.

‘यह निमेश भी न बिलकुल जासूस सा दिमाग रखता है… पता नहीं इसे कैसे पता चल गया कि आज मेरा जन्मदिन है. मना करने पर भी कहां मानता है यह लड़का…’ कनु सोचतेसोचते गिफ्ट रैप के आखिरी फोल्ड पर पहुंच चुकी थी.

बेहद खूबसूरती से पैक किए गए लेटैस्ट मौडल के मोबाइल को देखते ही कनु के होंठों पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई. वह पहले से ही जानती थी कि इस में ऐसा ही कुछ होगा, क्योंकि उस के ओल्ड मौडल मोबाइल हैंडसैट को ले कर औफिस में अकसर ही निमेश ‘ओल्ड लेडी औफ न्यू जैनरेशन’ कह कर उस का मजाक उड़ाता था.

कनु कैसे बताती निमेश को कि यह छोटा सा मोबाइल ही उस की जिंदगी में इतना बड़ा तूफान ले कर आया था कि उस का परिवार तिनकातिनका बिखर गया था. उसे आज भी याद है लगभग 10 साल पहले का वह काला दिन जब पापा से लड़ाई होने के बाद गुस्से में आ कर उस की मां ने अपनेआप को आग के हवाले कर दिया था. मां की दर्दनाक और कातर चीखें आज भी उस की रातों की नींदें उड़ा देती हैं. मां शायद मरना नहीं चाहती थीं, मगर पापा पर मानसिक दबाव डालने के लिए उन्होंने यह जानलेवा दांव खेला था. उन्हें यकीन था कि पापा उन्हें रोक लेंगे, मगर पापा तो गुस्से में आ कर पहले ही घर से बाहर निकल चुके थे. उन्होंने देखा ही नहीं था कि मां कौन सा खतरनाक कदम उठा रही हैं.

मां को लपटों में घिरा देख कर वही दौड़ कर पापा को बुलाने गई थी. मगर पापा उसे आसपास नजर नहीं आए तो पड़ोस वाले अनिल अंकल ने पापा को मोबाइल पर फोन कर के हादसे की सूचना दी थी. आननफानन में मां को हौस्पिटल ले जाया गया, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. मोबाइल ने उस की मां को हमेशा के लिए उस से छीन लिया था.

कनु के पापा को शुरू से ही नईनई तकनीक इस्तेमाल करने का शौक था. उन दिनों मोबाइल लौंच हुए ही थे. पापा भी अपनी आदत के अनुसार नया हैंडसैट ले कर आए थे. घंटों बीएसएनएल की लाइन में खड़े हो कर उन्होंने सिम ली थी. उन दिनों मोबाइल में अधिक फीचर नहीं हुआ करते थे. बस कौल और मैसेज ही कर पाते थे. हां, मोबाइल पर कुछ गेम्स भी खेले जाते थे.

पापा के मोबाइल पर जब भी कोई फनी या फिर रोमांटिक मैसेज आता था तो पापा उसे पढ़ कर मां को सुनाते थे. मां जोक सुन कर तो खूब हंसा करती थीं, मगर रोमांटिक शायरी सुनते ही जैसे किसी सोच में पड़ जाती थीं. वे पापा से पूछती थीं कि इस तरह के रोमांटिक मैसेज उन्हें कौन भेजता है… पापा भेजने वाले का नाम बता तो देते थे, मगर फिर भी मां को यकीन नहींहोता था.

धीरेधीरे मां को यह शक होने लगा था कि पापा के दूसरी महिलाओं से संबंध हैं और वे ही उन्हें इस तरह के रोमांटिक मैसेज भेजती हैं. वे पापा से छिप कर अकसर उन का मोबाइल चैक करती थीं. पापा को उन की यह आदत अच्छी नहीं लगी या फिर शायद पापा के मन में ही कोई चोर था, उन्होंने अपने मोबाइल में सिक्युरिटी लौक लगा दिया.

Summer Special: चेहरे पर चमक लाएंगे ये 4 फेसपैक

गरमी के मौसम में त्वचा से जुड़ी कई समस्याएं बढ़ने लगती हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है इस मौसम में बढ़ने वाली शुष्कता और बेहद पसीना आना. और इसलिए आपके त्वचा में नमी की कमी होने लगती है. ऐसे में आपके चेहरे को चमकदार बनाए रखने के लिए त्वचा में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है.

आज आपको बताते हैं ऐसे घरेलू पैक के बारे में, जो चेहरे की सफाई, टोनिंग और मौइश्चराइजिंग में आपकी मदद करेंगे.

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1.ग्रीन टी बैग

गर्म पानी में ग्रीन टी बैग डालकर कुछ मिनट के लिए छोड़ दें और फिर टी बैग को हटा दें और अब इस गर्म हर्बल टी को पिएं. ग्रीन टी में एंटीऔक्सीडेंट होता है, जो शरीर से हानकिारक पदार्थो को निकालकर इसे पोषण देता है. महिलाएं त्वचा में निखार लाने के लिए खीरा, बादाम और शहद से बना पैक भी लगा सकती हैं.

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2.टमाटर

टमाटर का गूदा और रस त्वचा पर से टैनिंग हटाने में काफी मददगार होता है. यह त्वचा को कोमल, चमकदार बनाने के साथ ही रंग साफ भी करता है. इसे बालों पर भी लगाया जा सकता है, जिससे बालों में चमक आती है और तेज धूप में सुरक्षा प्रदान करता है.

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3.खीरे का फेस पैक

पहले मिक्सर के इस्तेमाल से खीरे का रस निकाल लें, अब इसमें गुलाब जल और ग्लिसरीन समान मात्रा में मिलाएं. पेस्ट को न ज्यादा पतला बनाएं न ज्यादा गाढ़ा बनाएं और अब इसे रात में सोने जाने से पहले लगा लीजिए. सुबह में चेहरे को साफ पानी से धुल ले और थपथपाकर सुखा लें. कुछ दिनों में आपको अपने चेहरे के रंग में काफी बदलाव नजर आएगा.

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4.नींबू पैक

एक नींबू को दो हिस्सों में काट लें. आधे हिस्से को सीधे त्वचा पर गोल-गोल घुमाते हुए मलें. ऐसा कम से कम पांच मिनट करें, उसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. नींबू का रस विटामिन-सी से भरपूर होता है, जो त्वचा का रंग हल्का करता है. उन्होंने हल्दी और दही का पेस्ट इस्तेमाल करने का सुझाव भी दिया. उनका मानना है कि ग्रीन टी का सेवन भी शरीर के लिए काफी फायदेमंद है.

जेलेंस्की होने की महत्ता  

यूक्रेन पर रूसी हमले ने पूरे यूरोप, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया को बुरी तरह हिला दिया है. रूस अपने टैंकों और रौकेटों की शक्ति का दुरुपयोग जिस तरह कर रहा है, उस ने हिटलर के काले दिनों की याद दिला दी है. ऐसे में समृद्ध देश एकजुट हो कर बिखर रहे दुनिया के और्डर को ठीक करने में लग गए हैं और जो भी रूस का साथ दे रहा है, उसे बिरादरी से बाहर कर रहे हैं.

भारत और चीन के रूस से संबंध पहले से ही अच्छे रहे हैं और विदेशों में बसे भारतीयों ने चाहे मोदी सरकार की वाहवाही अपनेअपने देशों में खूब की, लेकिन अब वे मोदी सरकार के निर्गुर सिद्धांत का बहाना नहीं मान रहे. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के डिप्टी नैशनल सिक्योरिटी एडवाइजर दलीप सिंह ने भारतीय मूल के होने के बावजूद भारत आने पर भारत के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त की. ऐसा ही संदेश अब चीन को भी जा चुका है कि वह यूरोप से अपने व्यापार को ग्रांटेड न ले.

भारत और चीन का एकल उत्पादन 18 ट्रिलियन डौलर है जो पश्चिमी देशों के 75 ट्रिलियन डौलर से कहीं कम है. यूरोप और अमेरिका रूसी धमकी का सही जवाब देना चाहते हैं और केवल आणविक युद्ध से बचाने के लिए अपने सैनिक यूक्रेन नहीं भेज रहे. वरना जिस तेजी से समृद्ध देशों ने एक हो कर रूस की घेराबंदी की है और हर देश ने रूस से संबंध रखने वाले किसी भी व्यक्ति या कंपनी का बहिष्कार कर डाला है, उस से साफ है कि भारत और चीन को जल्दी ही अपना रवैया बदलना होगा.

पिछले कुछ दशकों में दुनिया की राजनीति में तानाशाही रंग बिखरने लगा था. लोकतंत्र की जगह शक्तिशाली देश के पंजों को ज्यादा दम दिया जाने लगा था. चीन के शी जिनपिंग, अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप, उत्तर कोरिया के किम जोंग उन, टर्की के एरदोगन के तेवरों को दुनिया के लोकतंत्र समर्थक देश आंतरिक मामला समझ कर टाल रहे थे जबकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसे पश्चिमी देशों के पतन ही शुरुआत मान ली थी. पुतिन और जिनपिंग मिल कर एकदूसरे को तानाशाही के फूलों का हार पहनाने लगे थे जबकि हमारे देश की थोड़े से लोगों की चतुराई पर टिकी वर्णव्यवस्था की हामी भारतीय जनता पार्टी, जो आज सत्ता में है, को यह तानाशाही भाती है और इसलिए हम रूस और चीन की हरकतों को सहज लेते रहे हैं.

अब यूरोप ने भारत को भी और चीन को भी साफ संदेश दे दिया है कि तानाशाही को सिरे से पनपने नहीं दिया जाएगा, नए हिटलर या स्टालिन नहीं बनेंगे.

यूक्रेन का युद्ध काफीकुछ सिखा कर जाएगा, ऐसा लगता है. रूस यूक्रेन को मसलने में नाकाम रहा है. यह इस बात का संदेश है कि अगर आप सही हैं तो चाहे ताकतवर विदेशी हो या देशी, उस के खिलाफ खड़े होगे तो दुनिया साथ देगी. वर्ष 1947 से पहले यही बात महात्मा गांधी के साथ हुई थी जो सत्ता में आए बिना ही लोगों के दिलों पर राज कर रहे थे, जो पुतिन आज जिनपिंग, ट्रंप व मोदी सब के होने के बावजूद नहीं कर पा रहे. अच्छा संदेश यह है कि पुतिन की हरकतों ने लोकतंत्रिक मूल्यों को जिंदा कर दिया और देशों को डगमगाने से रोक दिया. इस का श्रेय जाएगा व्लोदोमीर जेलेंस्की को जिन्होंने, महात्मा गांधी की नहीं, अपनी रक्षा करने का बीड़ा उठाया.

Summer Special: ये 4 फल रखेंगे आपको डिहाईड्रेशन से दूर

गरमी के दिनों में डाइजेशन का बिगड़ जाना आम बात है. ऐसे में आप गरमियों के फलों का सेवन करके अपने डाइजेशन को ठीक रख सकते हैं. कुछ फल ऐसे हैं जो गरमियों में न सिर्फ आपके डाइजेशन को ठीक रखते हैं बल्कि आपको ठंडक भी पहुंचाते है.

1. तरबूज-

बहुत हीं गुणकारी फल है. ये खाने में स्वादिष्ट तो लगता हीं है, लेकिन बौडी के लिए भी कूल रखने के लिए हेल्पफुल होता है. तरबूज विटामिन सी से भरपूर होता है. यह आपकी मेटाबोलिस्म को दुरुस्त करता है, आपको कई रोगों से बचाता है और आपके डाईजेस्टिव सिस्टम को ठीक रखता है. विटामिन सी कैंसर जैसे भयानक रोग से भी मुकाबला कर सकता है. तरबूज में सिर्फ विटामिन सी हीं नहीं, लाईकोपीन नामक एंटीओक्सीडेंट  भी होता है. ये बहुत हीं कम  फूड आइटम में पाया  जाता  है. “लाईकोपीन” एंटीओक्सीडेंट इतना ताकतवर  होता है कि ये आपको कैंसर जैसे खतरनाक रोग से भी बचाव करता है. लाईकोपीन तरबूज के अलावा लाल रंग के हीं फूड आइटम में पाया जाता है जैसे टमाटर. गरमी के दिनों में तरबूज का सेवन करना बहुत ही लाभकारी होता है. तरबूज न सिर्फ आपको ठंढक पहुंचाता करता है बल्कि यह पुरुषों में सेक्स सम्बन्धी कई विकारों को दूर करने में भी राम बाण का काम करता है. अगर आपको अपने आपको हीट स्ट्रोक यानि लू से बचाना है तो तरबूज का सेवन किया करें, क्योंकि इसमें ऐसा गुण होता है जो शरीर के बढ़े हुए टेम्प्रेचर को कम करता है. साथ हीं साथ यह हाई ब्लड प्रेशर को भी कम करता है.

2.खीरा-ककड़ी-

गर्मी के दिनों में पेट को ठीक रखने में खीरा-ककड़ी भी बहुत ही अहम् भूमिका निभाता हैं. खीरा ककड़ी में तरबूज की तरह हीं 95 प्रतिशत पानी होता है जो आपके शरीर का टेम्प्रेचर बैलेंस में रखता है. ये फल आपके शरीर को डिहाईड्रेशन से बचाते हैं और शरीर से विषैले पदार्थों को भी बाहर निकालते हैं. खीरा ककड़ी में विटामिन सी भी भरपूर मात्रा में होता है जो आपके शरीर को कई रोगों से बचाता है, बालों का झड़ना कम करते हैं और सबसे बड़ी बात कि ये फल गरमी के दिनों में हीं नहीं बल्कि पूरे साल  डाईजेस्टिव सिस्टम की गड़बड़ियों को दुरुस्त करते हैं.

3.खरबूज-

तरबूज की हीं तरह खरबूज भी बहुत हीं फायदेमंद है जो ज्यादातर गरमियों के मौसम में हीं पाया जाता है. इसमें भी विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है साथ हीं साथ यह विटामिन ए का भी बहुत हीं अच्छा सौरस है. ये फल आपके डाइजेशन को दुरुस्त करता है. खरबूज तनाव को भी कम करता है, आपको दिल की कई बीमारियों से भी बचाता है. गरमी के दिनों में तली हुई चीजें खाने की बजाये खरबूज खाया ताकि आपको गर्मी से भी राहत मिले और आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहे.

4.लीची-

गर्मी के दिनों में लीची का सेवन  भी सेहद के लिए फायदेमंद है. तरबूज, खरबूज, खीरा-ककड़ी की तरह हीं लीची में भी विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है. इसके अलावा लीची में विटामिन्स बी भी होते हैं जो आपके ब्रैन के लिए बहुत हीं फायदेमंद  होते हैं. विटामिन्स बी आपके ब्रैन के लगभग हर विकार का उपचार करने में हेल्प करता हैं जैसे डिप्रेशस, मैमोरी पावर को बढ़ाना और किसी काम में मन न लगना इत्यादि.

हौसला: प्रदीप जैसे युवाओं की दौड़ शोर में धीमी न पड़ जाए

निश्चित तौर पर प्रदीप मेहरा की मेहनत अद्भुत है. उस का आत्मविश्वास और संघर्ष आश्चर्यजनक है, पर प्रदीप की इस मेहनत पर टीवी जिस तरह टीआरपी की होड़ मचा कर जरूरत से ज्यादा एक्सपोजर दे रहा है, उस से प्रदीप जैसे युवाओं के सपने चकनाचूर न हो जाएं.

‘‘अभी से पांव के छाले न देखो,

अभी यारो, सफर की इब्तिदा है.’’

यह शेर मशहूर शायर एजाद रहमानी ने लिखा था, पर आज लगता है यह प्रदीप मेहरा जैसे नवयुवकों के लिए लिखा गया है. 19 साल का प्रदीप आर्मी की तैयारी के लिए आधी रात को नोएडा की सड़कों पर दौड़ रहा था. यह दौड़ उस के लक्ष्य की थी. उस की अपनी थी. लेकिन जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो एक अजीब सी सेंधमारी इस दौड़ पर टीवी चैनलों की तरफ से देखने को मिली, जिस पर बात बाद में की जाएगी, पहले बात प्रदीप की.

19 साल के प्रदीप मेहरा ने इस देश के नेताओं, मीडिया और सम झदार लोगों को अपनी उस सचाई से रूबरू कराया है जिसे ये सब मिल कर जोश, हिम्मत, जज्बे और लगन जैसे फरेबी शब्दों से ढक देना चाहते हैं, क्योंकि प्रदीप मेहरा की यह दौड़ उच्चवर्ग से पलेपढ़े युवाओं की तरह हिम्मत या जज्बा साबित करने की नहीं है, बल्कि खुद के सर्वाइवल की है.

हम किस प्रदीप की बात कर रहे हैं? हौसले और जनूनी वाले प्रदीप की बात तो बिलकुल भी नहीं. एक 19 साल की कच्ची उम्र का लड़का जिस के सिर इतनी छोटी उम्र में परिवार के भरणपोषण की जिम्मेदारी आ गई है, जो पढ़ाई करने की जगह मैकडोनल्ड में आधीआधी रात तक नौकरी कर रहा है, जो दोस्तों के साथ खेलकूद की जगह अमीरों के सामान का बो झा लिए यहांवहां डिलीवरी का काम कर रहा है, वह किसी भी हाल में हौसले व जनूनी वाला नहीं बल्कि मजबूर कहलाया जाना चाहिए. लेकिन लोगों की मजबूरियों को और उन की कठिनाइयों को सड़ागला समाज अपने हिसाब से पेश करता आया है, ताकि इन हालात के पीछे उन की जवाबदेही न मांग ली जाए. लेकिन चूंकि बात निकल गई है तो इस पर कुछ सवाल तो जरूर बनेंगे ही, चाहे सारी दुनिया एक रट लगाए हो.

वायरल हुआ वीडियो

सोशल मीडिया से ले कर टीवी चैनल तक में हर तरफ दौड़ते हुए प्रदीप मेहरा की चर्चा हो रही है. प्रदीप मेहरा का यह वीडियो घूमफिर कर सब के पास आया भी होगा. वीडियो फिल्ममेकर विनोद कापड़ी द्वारा शूट किए गए नोएडा की सड़कों पर दौड़ लगाते उत्तराखंड के रहने वाले 19 वर्षीय प्रदीप मेहरा का है.

20 मार्च को विनोद कापड़ी ने अपने ट्विटर अकाउंट से 2 मिनट 20 सैकंड की एक वीडियो क्लिप पोस्ट की थी. इस वीडियो में प्रदीप कंधे पर बैग टांगे रोड के किनारे तेजी से दौड़ रहा था. वह पसीने से भीगा हुआ था. मेहनत उस के चेहरे से टपक रही थी.

यह वीडियो सोशल मीडिया से ले कर नोएडा स्थित फिल्मसिटी के न्यूज स्टूडियो तक में छाया हुआ है. हर तरफ इस वीडियो की बात हो रही है, प्रदीप के लगन और जज्बे की चर्चा हो रही है. इस वायरल वीडियो से जुड़े कुछ अहम सवालों पर हम आगे बात करेंगे लेकिन उस से पहले यह सम िझए कि आखिर इस लड़के का यह वीडियो इतना वायरल क्यों हो रहा है?

प्रदीप की दौड़

दरअसल, विनोद कापड़ी ने जब वीडियो शूट किया था तब उन्होंने प्रदीप से कुछ सवाल किए थे. प्रदीप से पूछा गया कि तुम दौड़ते हुए क्यों जा रहे हो? तो युवक ने कहा, ‘मैं रोज दौड़ लगा कर ही जाता हूं.’ दौड़ने की वजह पूछी तो पता चला वह आर्मी में भरती होने के लिए रोज इसी तरह औफिस से घर तकरीबन 10 किलोमीटर दौड़ लगाता है. वीडियो में उस ने अपनी मां की खराब सेहत और नौकरी करने के कारण के बारे में भी बताया. यह वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया में आया, मात्र 24 घंटे में वायरल हो गया. देशविदेश से लोग प्रदीप की मेहनत को सलाम करने लगे.

दरअसल, प्रदीप इंडियन आर्मी में बतौर सिपाही भरती होना चाहता है लेकिन घर की आर्थिक तंगी ने उसे उस के होमटाउन अल्मोड़ा से नोएडा तकरीबन साढ़े तीन सौ किलोमीटर ला खड़ा किया है. प्रदीप बताता है कि वह नोएडा में अपने बड़े भाई के साथ रहता है. आर्मी में जाना उस का लक्ष्य है पर घर चलाने के लिए उसे काम करना पड़ रहा है.

जौब करते हुए तैयारी के लिए समय मिल नहीं पाता, क्योंकि रोज सुबह उठ कर खाना भी बनाना होता है और जल्दी जौब साइट पर पहुंचना भी होता है. इस कारण उसे तैयारी का समय नहीं मिल पाता. इसलिए रात को शिफ्ट पूरी होने के बाद घर वापस लौटते वक्त वह नोएडा सैक्टर 16 से बुराला तक 10 किलोमीटर दौड़ता है.

बुधिया न बन जाए प्रदीप

वीडियो के वायरल होने के बाद मीडिया में प्रदीप को स्टूडियो में बुलाया जा रहा है. उस का इंटरव्यू किया जा रहा है. चलो बुलाना, बातविचार करना एक तरफ, पर जिन हालात में वह अपनी जिंदगी जी रहा है, जिन कठिनाइयों को उसे सहना पड़ रहा है, उस की तह में जाने की जगह उसे स्टूडियो के भीतर ही भगाया जाना या सड़क पर दौड़ते हुए उस के पीछे गाड़ी ले जाने से, उस के या उस जैसे बाकी युवाओं के जीवन में कौन से बदलाव आने वाले हैं?

आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपति या अन्य खातेपीते लोगों का तबका उसे आत्मनिर्भर बता रहा है लेकिन कोई यह सवाल नहीं पूछ रहा कि आखिर प्रदीप जैसे लाखों युवाओं को नौकरी कब मिलेगी? सवाल बनता है कि आखिर क्यों प्रदीप जैसे युवाओं की मजबूरियों को हिम्मत का नाम दिया जा रहा है?

जाहिर है, ऐसा कर के ये लोग प्रदीप जैसे युवाओं की दिक्कतों को सुल झाने की जगह उन के दिमाग में यह बात आसानी से घुसाने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम्हारी दिक्कतों का कारण तुम खुद ही हो. तुम्हारी गरीबी, पिछड़ेपन, बेरोजगारी का कारण तुम खुद ही हो, इस के लिए तुम्हें ही अतिविशिष्ट लगन, जोश, जनून और जज्बा लाना होगा.

कोई यह नहीं पूछ रहा कि आखिरकार देश के युवाओं को यों लाचार क्यों होना पड़ रहा है? कोई यह सवाल भी नहीं पूछ रहा कि हर साल 2 करोड़ रोजगार देने वाले कहां हैं? सरकारी नौकरियों का बंटाधार क्यों हुआ पड़ा है? क्यों छात्र समय पर एग्जाम होने को ले कर आवाज उठा रहे हैं और लाठीडंडा खा रहे हैं. आखिर क्यों प्रदीप को बेरोजगारी के सवाल से न जोड़ा जाए?

उत्तराखंड में जिस दौरान भरती प्रक्रिया शुरू होती है, तब के हालात देखने वाले होते हैं. हजारों की संख्या में युवा आर्मी की नौकरी के लिए आते हैं. उन युवाओं की संख्या इतनी होती है कि कई बार भगदड़ जैसी नौबत आ जाती है. कई बार भीड़ को संभालने के लिए लाठीडंडों का इस्तेमाल करना पड़ जाता है. उन युवाओं का सवाल क्या प्रदीप के बहाने उठाने का फर्ज इस मीडिया का नहीं था? जाहिर है देश में सिर्फ जज्बा, लगन, हिम्मत पर ही नहीं बल्कि बेरोजगारी पर भी बड़ी चर्चा होनी चाहिए.

निश्चित तौर पर प्रदीप मेहरा की मेहनत की कहानी अद्भुत है. उस का आत्मविश्वास और संघर्ष आश्चर्यजनक है, पर प्रदीप की इस मेहनत पर टीवी वाले जिस तरह टीआरपी बटोर रहे हैं और सोशल मीडिया एंफ्लुएंसर फौलोअर्स बटोरने की होड़ में हैं उस से प्रदीप के जीवन में मूल बदलाव आने की जगह, जरूरत से ज्यादा मिला यह एक्सपोजर कहीं उस के सपने को ही चकनाचूर न कर दे.

हम ने पहले भी देखा है, इस मीडिया को अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए समयसमय पर बुधिया और प्रदीप जैसे लोग भाते हैं, जिन की कहानी पेश कर उन का अपना धंधा चलाया जा सके. वे इन्हें लाते हैं ताकि युवाओं में नौकरियों की निराशा को दूर किया जा सके, सवाल है कि आखिर क्या हुआ बुधिया का? 2007 में चमका वह काबिल लड़का, जिस ने मात्र 7 घंटे में 65 किलोमीटर दौड़ लगाई, आखिर कौन सी गुमनामी में खो गया. वह आगे क्यों नहीं बढ़ा. उस पर फिल्म बनाने वाले निर्देशक, लेखक, ऐक्टर अपना पैसा बनाया और चल पड़े. मीडिया टीआरपी ले गया. लेकिन बुधिया, वह कहां गया.

असल यह है कि हिम्मत और जज्बे के नाम पर सिर्फ यहां कहानी बेचीखरीदी जा रही है, जो उन दिक्कतों से जू झ रहा है उन के हल नहीं खोजे जा रहे.

फिर अमीरों के बच्चे क्यों नहीं हिम्मत वीर

जिस आर्थिक पृष्ठभूमि से प्रदीप जैसा युवा आया है वह सलाम करने योग्य बनता है, मसलन भारत में इस उम्र की इस दहलीज में जो भी युवा कठिनाइयों से लड़भिड़ कर आ रहे हैं वे प्रदीप के परिश्रम से प्रेरणा ले रहे हैं, हालांकि उन के लिए प्रदीप की कहानी बहुत हद तक उन से अलग नहीं.

अकसर गांव की सड़कों, शहर के स्टेडियम और पब्लिक पार्कों में सुबहशाम इसी तबके के युवक दौड़ते मिल जाते हैं. ये नवयुवक लड़के पसीने से भीगे, पैरों में सस्ते जूते या कुछेक बार वह भी नहीं, कईकई किलोमीटर दौड़ लगाते हैं. इन में अधिकतर युवा बेहद गरीब पृष्ठभूमि से होते हैं, जिन के लिए सरकारी नौकरी घर कीमाली हालत सुधारने का टर्निंग पौइंट होती है.

ये दौड़ते हैं कि इन्हें बस एक मौका मिले आर्मी में भरती होने का, क्योंकि ये युवा आर्मी में भरती होने को अपना पैशन और बहुत हद तक अपनी पारिवारिक जरूरत मानते हैं, क्योंकि आर्मी में भरती होने के लिए शारीरिक मेहनत के अलावा 10वीं पास योग्यता चाहिए होती है, जिसे पाने के लिए ये युवा जीजान लगा देते हैं. लेकिन क्या कभी किसी नेता, उद्योगपति, मीडियाकर्मी या एंकरों के बच्चों को इस तरह की हिम्मत और जज्बा दिखाते देखा है? नहीं, क्योंकि उन के हिस्से इस तरह की मजबूरियां हैं ही नहीं. वे संसाधनों से लैस हैं. वे बड़े स्कूलों और फिर विदेश में महंगे कालेजों में पढ़ कर अपने मातापिता की पदवी संभालते हैं. फिर वापस स्वदेश लौट कर लगन, जज्बा और हिम्मत का ज्ञान देश के गरीबों में बांटते हैं. यही इन की सत्ता और एकाधिकार को बनाए रखता है, जिसे देश के बहुसंख्यक गरीब सम झ नहीं पाते.

उस एक दिन की बात: क्या हुआ था उस दिन?

उस एक दिन की बात- भाग 1: क्या हुआ था उस दिन?

पीयूषजी ने स्कूटर कंपाउंड में पार्क करते हुए घड़ी की ओर देखा. 7 बज रहे थे. उफ, आज फिर देर हो गई. ट्रैफिक जाम की वजह से हमेशा देर हो जाती है. ऊपर से हर दस कदम पर सिग्नल की फटकार. रैड सिग्नल पर फंसे तो समझिए कि सिग्नल के ग्रीन होने में जितना समय लगेगा उतने में आप आराम से एक कप कौफ़ी सुड़क सकते हैं. मेन रोड के जाम से पिंड छुड़ाने के लिए आसपास की गलियों-उपगलियों को भी आजमाया. वहां समस्याएं अजब तरह की मिलीं. रास्ते के बीचोंबीच गाय, भैंस और सांड जैसे मवेशी बेखौफ हांडते दिखे, मानो गलियां संसद का गलियारा हों जहां नेतागण छुट्टे मटरगश्ती करते रहते हैं.

किसी मवेशी को जरा छू भी गई गाड़ी कि बवाल शुरू. एक महीने पहले तक पीयूषजी को शाम को घर लौटने की इतनी हड़बड़ी नहीं रहती थी. औफिस समय के बाद भी साथियों से गपशप चलती रहती. औफिस से दस कदम पर तिवाड़ी की चाय की गुमटी थी, जायके वाली स्पैशल चाय के लिए मशहूर. चाय के बहाने मिलनेजुलने का शानदार अड्डा. औफिस से निकल कर खास साथियों के साथ वहां चाय के साथ ठहाके चलते.

पीयूषजी पीडब्लूडी में जौब करते हैं. काम का अधिक दबाब नहीं. पुरानी बस्ती में घर है. पति,पत्नी और 6 साल का बेटा आयुष. छोटा परिवार. पत्नी तीखे नाकनक्श और छरहरे बदन की सुंदर युवती. शांत और संतुष्ट प्रकृति की घरेलू जीव. दोनों के बीच अच्छी कैमिस्ट्री थी. शाम को घर लौटने पर पीयूष जी के ठहाकों से घर खिल उठता. पत्नी के इर्दगिर्द बने रहने और उस से चुहल करने के ढेरों बहाने जेहन में उपजते रहते.

पत्नी चौके में व्यस्त रहती, वे बैठक से आवाज लगाते, ‘उर्मि, एक मिनट के लिए आओ,जरूरी काम है.’  पत्नी का जवाब आता, ‘अभी टाइम नहीं. सब्जी बना रही हूं.’  वे तुर्की बतुर्की हुंकारते, ‘ठीक है, मैं ही वहां आ जाता हूं. दोनों मिल कर रागभैरवी में गाते हुए सब्जी बनाएंगे.’ फिर लपकते हुए चौके में आते और उर्मि को बांहों में समेट लेते. उर्मि पति के प्रेमिल जनून पर निहाल हो उठती. टीवी देखते, बंटी के साथ खेलतेबतियाते और उस का होमवर्क करातेकराते समय कब बीत जाता, पता ही न चलता. सुबह उठते और स्वयं बाजार जा कर घर का सौदासुलफ के अलावा दूर सब्जीमंडी से ताजा सब्जी भी लाते, शौक से बिना ऊबे.

सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक महीने पहले ऐसा क्या हो गया कि उन की सारी दिनचर्या ही उलटपुलट गई. पीयूषजी की शिक्षादीक्षा कसबे में हुई थी. कसबाई संस्कार से अभी तक मुक्त नहीं हो पाए थे. शहर के लटकेझटके से पूरे अभ्यस्त भी नहीं. सोशल मीडिया का नाम सुना था. यह होता क्या है, बिलकुल नहीं जानते थे. सहकर्मियों के बीच आपसी बातचीत में फेसबुक, व्हाट्सऐप जैसे जुमले उड़ते हुए कानों में पड़ते जरूर पर उन्होंने इन सब पर कभी ध्यान देने की कोशिश नहीं की. उन के पास मोबाइल छोटा वाला था.

औफिस में मिश्रा से उन की ज्यादा पटती. एक दिन शाम को औफिस से निकलते हुए उन्होंने मिश्रा से कहा, ‘आज पुचका खाने का मन कर रहा. चलो, पुचका खाते हैं. अहा हा हा, इमली के खट्टेमीठे पानी की याद आते ही मुंह मे पानी भर आया.’

मिश्रा हिनहिनाते हुए हंसा, ‘सौरी सर, फिर कभी. आज जरूरी काम है.’

ऐसा क्या जरूरी काम आ गया कि दस मिनट भी स्पेयर नहीं कर सकते?’

‘सुगंधा को चैटिंग का टाइम दिया हुआ है 6 बजे का,’ मिश्रा खींसे निपोरा.

‘सुगंधा…?’

‘फेसबुकिया फ्रैंड… कल विस्तार से समझाऊंगा सोशल मीडिया के बारे में, ठीक?’  मिश्रा बाइक पर बैठ कर फुर्र हो गया.

दूसरे दिन औफिस औवर के बाद तिवाड़ी की गुमटी में एक भांड चाय की गुरुदक्षिणा के एवज में मिश्रा ने पीयूषजी को फेसबुक, व्हाट्सऐप, मैसेंजर, ट्विटर आदि सोशल मीडिया की विस्तार से दीक्षा दी तो पीयूषजी के ज्ञानचक्षु खुल गए.

‘देश के हर कोने से दोस्त मिलेंगे. मित्र भी और मित्राणियां भी,’  मिश्रा खिलखिलाया, परिवार के सीमित दायरे के कुएं को हिंद महासागर का विस्तार मिलेगा. यथार्थ से परे किंतु उस के समानांतर एक और विलक्षण दुनिया, जिस की बात ही निराली है. उस में एक बार प्रवेश करें, तभी जान सकेंगे, सर.’

पीयूषजी को एहसास हुआ, मिश्रा के सामने सामान्य ज्ञान के स्तर पर कैसे तो अबोध बच्चे जैसे हैं वे. इलैक्ट्रौनिक तकनीक कितनी उन्नत हो गई, उन्हें पता ही नहीं. लोग घरबैठे

विराट दुनिया का भ्रमण कर रहे हैं, वे अभी भी कुंए के मेढ़क रहे.

दूसरे दिन ही मिश्रा के संग जा कर बढ़िया मौडल का एंड्रौयड फोन खरीद लाए. फोन क्या,

जादुई चिराग ही था जैसे. बटन दबाते ही कहांकहां के तरहतरह के लोगों से संपर्क होते निमिष मात्र लगता. चिराग के व्यापक परिचालन की ट्रेनिंग भी बाकायदा मिश्रा ने उन्हें दे दी.

सोशल मीडिया से जुड़ते ही पीयूषजी की जिंदगी में क्रांतिकारी परिवर्तन आ गया. फेसबुक पर मित्रों की संख्या देखते ही देखते हनुमान की पूंछ की तरह बढ़ने लगी. विभिन्न रुचि व क्षेत्र के मित्र बने. कई ललनाओं ने ललक कर उन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया जिन्हें बड़ी नजाकत से उन्होंने थाम लिया. कइयों से खुद अपनी पहल पर दोस्ती गांठी.

फेसबुक के न्यूज़फीड को ऊपर खिसकाते घंटों बीत जाते. न मन भरता और न पोस्ट का ही अंत होता. ऊपर ठेलते रहो, नीचे से पोस्ट द्रौपदी के चीर की तरह निकलते रहते. व्हाट्सऐप और मैसेंजर पर चैट का सिलसिला भी खूब जमने लगा.

कुछ ही समय मे आलम यह हो गया कि हर समय  खुले  मोड में मोबाइल उन के हाथ में रहने लगा. राह में चल रहे हैं, नजरें मोबाइल पर. खाना खा रहे हैं, नजरें मोबाइल पर. किसी से बात कर रहें हैं, नजरें मोबाइल पर. न सूचनाओं का अंत होता न चैट पर विराम. हर दो मिनट पर न्यूजफीड को देर तक ऊपर सरकाने और हर तीसरे मिनट  नोटिफिकेशन चैक करने की लत लग गई. पता नहीं किस मित्र का कब और कैसा मैसेज या कमैंट आ गया हो. अपडेट रहना जरूरी है.

दोपहर ढलते ही नजरें बेसब्री से बारबार घड़ी की ओर उठ जातीं. औफिस समय खत्म होने का इंतजार रहता. लगता, जैसे किसी षड्यंत्र के तहत घड़ी के कांटे जानबूझ कर धीमी चाल से चल रहे हैं. कोफ्त से मन फनफना उठता. औफिस से निकल कर सीधे घर की ओर दौड़ते.

घर आ कर हड़बड़ करते, फ्रैश होते और मोबाइल लिए सोफे पर जो ढहते तो शाम के चायनाश्ता से ले कर रात के डिनर तक का सारा काम वहीं लेटेबैठे होता. पत्नी से संवाद सिर्फ हां-हूं तक सिमट गया. ठहाके और चुहल तो पता नहीं कहां अंतर्ध्यान हो गए थे.

पीयूषजी के पास अब घर के कामकाज के लिए समय नहीं रहा. पहले वे शाम को औफिस स लौट कर चाय पीते, टीवी देखते, आयुष का होमवर्क करा देते थे. होमवर्क कराते हुए उर्मि के साथ चुहल भी चलती रहती. अब उर्मि से साफ कह दिया कि 3 लोगों का खाना बनाने में ऐसा थोड़े ही है कि शाम का सारा समय खप जाए. उन्हें डिस्टर्ब न करें और आयुष का होमवर्क खुद करा दें. सब्जी बाजार व मेन मार्केट घर से दूर पड़ता था. पहले वे स्वयं स्कूटर से जा कर ताजा सब्जी तथा अन्य सामान ले आते थे. अब उन का सारा ध्यान सोशल मीडिया की ऐप्स पर रहता और यह काम भी उर्मि के जिम्मे आ गया.

बैड पर भी मोबाइल उन की  कंगारू-गोद  में दुबका रहता. उर्मि चौके का काम समेट कर और बेटे को सुला कर पास आ लेटती और इंतजार करती कि हुजूर को इधर नजरें इनायत करने की फुरसत मिले तो दोचार प्यार की बातें हों. पर बहुधा ऐसा नहीं हो पाता. उस समय पीयूषजी कुछ खास ललनाओं से चैट में मशगूल रहते. सूखे इंतजार के बाद आखिर उर्मि की आंखें ढलक जातीं.

कई बार ऐसा होता कि रात के 11 बजे किसी मित्र से वीडियो चैट कर रहे होते. उधर से मित्र गरम कौफ़ी की चुस्कियां लेता दिखता. कौफ़ी से उड़ती भाप आभासी होने बावजूद नथुनों में घुस कर खलबली मचाने लगती. वह खलबली कैसे शांत होती. आभासी कौफ़ी हवा से निकल कर तो नमूदार होने से रही. बगल में थकीहारी लेटी उर्मि को जगाते और कौफ़ी बना लाने का आदेश फनफना देते. पतिपरायण उर्मि को मन मार कर उठना ही पड़ता.

घड़ी की ओर नजर गई, साढ़े छह बजे थे. तेजी से कंपाउंड में स्कूटर खड़ा किया और पांच मिनट में फ्रैश हो कर सोफे पर चले आए. उर्मि चायनाश्ते की तैयारी में लग गई. पीयूषजी ने मोबाइल औन कर के पहले फेसबुक पर क्लिक किया. स्क्रीन पर गोलगोल घूमता छोटा वृत्त उभर आया. वृत्त एक लय में घूम रहा था…और घूमे जा रहा था, निर्बाध. ओह, ऐप खुलने में इतनी देर. उन्होंने मोबाइल को बंद कर के फिर औन किया.  प्रकट भये कृपाला  की तर्ज पर फिर वही वृत्त. खीझ कर औफऔन की क्रिया को कई बार दुहरा दिया. वृत्त नृत्य बरकरार रहा. इस्स… झटके से फेसबुक बंद कर के व्हाट्सऐप पर उंगली दबाई. मन में सोचा, फेसबुक बाद में देखेंगे. व्हाट्सऐप पर भी पहले जैसा वृत्त अवतरित हो आया. यह क्या हो रहा है आज. उत्तेजना में एकएक कर के मैसेंजर और ट्विटर से भी नूराकुश्ती की. पर हाय… लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल. हर जगह मुंह चिढ़ाता वही चक्र मौजूद.

उन का ध्यान इंटरनैट चैक कर लेने की ओर गया. धत्त तेरी… नैट तो सींग-पूंछ समेट करकुंभकर्णी नींद में सोया पड़ा है. बिना नैट के कोई भी ऐप खुले, तो कैसे. लेकिन नैट गायब क्यों हो सकता है. पिछले हफ्ते ही 3 महीने का पैक भराया था. कोई तकनीकी अड़चन है शायद. बचपन के दिनों की याद हो आई जब घर में ट्रांजिस्टर हुआ करता था. अकसर ट्रांजिस्टर अड़ियल घोड़ी की तरह स्टार्ट होने से इनकार कर देता. तब पिताजी उस पर दाएंबांए दोचार थाप लगाते तो वह बज उठता. पीयूषजी ने उत्तेजना से भरकर मोबाइल के बटनों को बेतरतीब टीपा, कि शायद नैट जुड़ जाए. पर सब बेकार.

उन्होंने आग्नेय नेत्रों से मोबाइल को घूरा. 15 हजार रुपए का नया सैट. इतनी जल्दी फुस्स. हंह… फनफना कर मिश्रा को फोन लगाया, ‘कैसा मोबाइल दिलाए मिश्राजी, नैट नहीं पकड़ रहा?’

‘मोबाइल चंगा है, सर. नैट कहां से पकड़ेगा, पूरे शहर की इंटरनैट सर्विस 3 दिनों के लिए बंद कर दी है सरकार ने.’

‘अरे,’  पीयूषजी घोर आश्चर्य से भर गए.

‘जामा मसजिद के पास दंगा हो गया. रैफ बुलानी पड़ी.’

जामा मसजिद तो शहर के धुर उत्तरी छोर पर है.’

हां सर, खबर है कि एक समुदाय विशेष के 2 गुटों में आपसी रंजिश से मामूली मारपीट हुई.

दंगा की आशंका से सरकार बहादुर का कलेजा कांप उठा. बस, आव देखा न ताव, ब्रह्मास्त्र

चला कर नैट सस्पैंड.’

इंटरनेट बंद, यानी डेटा बंद. डेटा बंद तो मोबाइल कोमा में जाना ही है क्योंकि इस की जान

तो डेटा नाम के अबूझ से जीव में बसती है न.

अब..?

‘अब’  सलीब की तरह जेहन में टंग गया. समय देखा, सिर्फ 6:45. 11 बजने से पहले नहीं सोते. कैसे कटेगा समय? सामने टेबल पर कछुए सा सींगपूंछ समेटे पड़ा था सैट.

पीयूषजी की आह निकल गई, ‘हाय, तुम न जाने किस जहां में खो गए, हम भरी दुनिया में

तनहा हो गए…’ आभासी दुनिया में विचरण करतेकरते समय कब बीत जाता, पता ही न चलता था. यथार्थ में क्या है…वही घरगृहस्थी, वही पत्नीबच्चे, वही चिंतातनाव. सबकुछ बासी व बेस्वाद. मन सूखे कुएं सा सायंसायं करने लगा. कुछ पल शून्य में देखते हुए निश्च्छल निश्चल बैठे रहे. फिर बुझे मन से उठे. पूरे घर का बेवजह चक्कर लगा कर वापस सोफे पर आ बैठे. रिमोट दबाकर टीवी औन किया. जल्दीजल्दी न्यूज़ व शो के पांचसात चैनल बदल डाले. मन नहीं रमा. चारपांच ऐप्स के सिवा मोबाइल के अन्य उपयोग की न तो जानकारी थी, न ही उन में रुचि. दिमाग बेचैन और जी उदास हो गया. उदासी पलकों तक चली आयी तो दबाव से कुछ पल के लिए पलकें ढलक गईं. वे अबूझ चिंतन में चले गए.

तभी उर्मि नाश्ता ले आई. बेसन के चिल्ले, साथ में गर्मागर्म चाय.

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