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Summer Special: नेचुरल हेल्थ ड्रिंक हैं नारियल पानी

दुनियाभर में कुदरती स्वास्थ्यवर्धक हेल्दी ड्रिंक की मांग दिन ब दिन बढ़ रही है. नारियल रस या कहें नारियल के दूध ने स्वास्थ्यवर्धक  हेल्दी ड्रिंक में अपना स्थान बना लिया है. चूंकि नारियल के गूदे को निचोड़ कर नारियल दूध प्राप्त किया जाता है, इसलिए नारियल में निहित सारे पौष्टिक एवं स्वास्थ्यवर्धक गुण नारियल दूध में भी निहित होते हैं. कद्दूकस की गई नारियल की गिरी में पानी डाल कर निचोड़ने से जो नारियल का दूध प्राप्त होता है, पानी की मात्रा के अनुसार उस के संघटन में अंतर आ जाता है. यह नारियल रस के नाम से भी जाना जाता है.

नारियल दूध का प्रयोग व्यंजन, मिठाई और सूप बनाने के लिए तो किया ही जाता है, इस का प्रयोग पीने के लिए भी किया जाता है. चाय, कौफी आदि में दूध की जगह भी इस का प्रयोग किया जा सकता है. नारियल दूध का उपयोग शाकाहारी लोगों द्वारा विशेष कर उन लोगों द्वारा किया जाता है, जिन्हें जानवरों के दूध से ऐलर्जी होती है. फल रस में मिलाने के लिए भी इस का उपयोग किया जा सकता है.

नारियल दूध का उत्पादन विविध जायकों में एक पौष्टिक एवं गुणकारी  हेल्दी ड्रिंक के रूप में होता है. जानवरों के दूध से भिन्न नारियल के दूध में लैक्टोज नहीं होता है. इसलिए लैक्टोज असहिष्णु लोग भी इस का उपयोग कर सकते हैं. विविध जायकों में फ्लेवर्ड नारियल रस बनाने की टैक्नोलौजी नारियल विकास बोर्ड के इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में विकसित की गई है. फ्लेवर्ड नारियल दूध बनाने के लिए9 से 10 महीने का कच्चा नारियल प्रयोग किया जाता है. इस नारियल से जो दूध मिलता है वह अधिक गाढ़ा होता है और उस में वसा की मात्राभी कम होती है. नारियल दूध की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए उस में नारियल पानी भी मिलाया जाता है.

नारियल रस के पौष्टिक गुण

नारियल दूध में मीडियम चेन संतृप्त वसा होती है. इस में 50% लारिक अम्ल होता है. लारिक अम्ल मानव शरीर में मोनोलारिन बन जाता है. मोनोलारिन में वायरसरोधी, बैक्टीरियारोधी और फफूंदरोधी गुण होते हैं. इसलिए नारियल दूध का उपयोग करने से वायरस एवं बैक्टीरिया के प्रकोप को रोका जा सकता है और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है. लारिक अम्ल कोलैस्ट्रौल और ट्राइग्लीसराइड स्तर भी कम करता है, जिस से हृदयरोग और पक्षाघात का खतरा कम हो जाता है. प्राकृतिक नाममात्र आहार सामग्री में लारिक अम्ल पाया जाता है. अत: नारियल दूध नियमित प्रयोग करने से शरीर को लारिक अम्ल के स्वास्थ्यकारी गुण प्राप्त होते हैं.

नारियल दूध में निहित मध्यम शृंखला वसा अम्ल शरीर में जमता नहीं है. इस के बजाय ऐसे वसा अम्ल शरीर को विशेष कर कोशिकाओं को तुरंत ऊर्जा प्रदान करते हैं. इसीलिए मोटापा कम करने में तथा इंसुलिन प्रतिरोध की अवस्था में नारियल दूध फायदेमंद है. इन वसा अम्लों के अलावा नारियल दूध में अनिवार्य पौष्टिक तत्त्व भी होते हैं, जिन के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं.

विटामिन और खनिज

नारियल दूध विटामिन और खनिजों का अच्छा स्रोत है. इस में विटामिन सी, ई, के, डी और बी समूह के कई विटामिन होते हैं. विटामिन सी और ई से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. विटामिन बी से कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है. नारियल दूध में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फासफोरस और आयरन बड़ी मात्रा में होते हैं. मैग्नीशियम से हृदय की धड़कन नियमित रहती है और नाड़ी सूत्र का काम भी ठीक तरह से होता है. फासफोरस दांतों और हड्डियों को मजबूत बनाता है. एक व्यक्ति को प्रतिदिन संस्तुत आयरन का 22% नारियल दूध से प्राप्त होता है और यह लाल रक्ताणुओं के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है. आयरन की कमी यानी ऐनीमिया में नारियल दूध पीना लाभकर होता है. इन के सिवा कैल्सियम, जिंक आदि भी इस में पर्याप्त मात्रा में होते हैं.

प्रतिओक्सीकारक

नारियल दूध प्रतिओक्सीकारकों से भरपूर होता है, जो शरीर को खतरनाक मुक्त रैडिकलों और कोशिकाओं व ऊतकों पर उन के हानिकारक प्रभाव से सुरक्षा प्रदान करता है. मुक्त रैडिकलों से कैंसर, हृदयरोग, अलजाइमर्स आदि होने का खतरा रहता है. नारियल दूध में पाचनशक्ति बढ़ाने तथा पोषक तत्त्वों के अवशोषण के लिए सहायक ऐसिड फास्फेट, कैटालैस, डिहाईड्रेजनैस, पैरोक्सिडैस जैसे सारे तत्त्व होते हैं. इस संपूर्ण पेय को फंक्शनल फूड का दर्जा दिया जा सकता है. इस तरह कई गुणों से संपन्न नारियल रस को रोजाना पीना स्वास्थ्य के लिए बेहद उपयोगी है. 

मैं मोटी होना चाहती हूं, क्या करूं ?

सवाल

मैं 16 साल की युवती हूं. मैं बहुत पतली हूं और मोटी होना चाहती हूं. बताइए मैं मोटी होने के लिए क्या करूं?  मैं जितना भी खा लूं मेरी सेहत नहीं बनती?

जवाब

कमाल है, युवतियां अधिकतर मोटापे से परेशान होती हैं और पतली होना चाहती हैं और एक आप हैं कि मोटी होने के उपाय ढूंढ़ रही हैं.

खैर, आप को बता दें कि मोटे होने से ज्यादा जरूरी है, फिट, चुस्तदुरुस्त, छरहरी काया का मालिक होना. जहां तक मोटी होने के लिए कुछ भी खाने का सवाल है, अच्छा रहेगा कि पौष्टिक व संतुलित आहार लें जिस से शारीरिक ताकत भी बढ़ेगी व आप थोड़ी मोटी भी दिखेंगी. हां, इस चक्कर में पिज्जाबर्गर खाना न शुरू कर दें इन से भले आप का वजन बढ़े पर शारीरिक सौष्ठव खत्म होता है.

जहां तक मोटी होने का खयाल छोड़ फिट रहने की बात है तो रोजाना व्यायाम करें. केले का सेवन आप के लिए अच्छा है. रोज काजू खाएं. अधिक प्रोटीन और फैट्स वाला आहार लें. इतने उपाय करने से आप में थोड़ा मोटापा भी झलकेगा व चुस्ती भी बनी रहेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

अपने हिस्से की जिंदगी: भाग 2

मां दिमागीरूप से परेशान रहने लगी थीं. हालत यह हो गई थी कि जब भी पापा के मोबाइल में मैसेज अलर्ट बजता मां दौड़ कर देखने जातीं कि किस का मैसेज है और क्या लिखा है… मगर लौक होने की वजह से देख नहीं पाती थीं. वे पापा से मोबाइल चैक करवाने की जिद करतीं तो पापा का ईगो हर्ट होता और वे मां पर चिल्लाने लगते. बस यही कारण था दोनों के बीच लड़ाई होने का.

यह लड़ाई कभीकभी तो इतनी बढ़ जाती थी कि पापा मां पर हाथ भी उठा देते थे. जब कभी पापा अपना मोबाइल मां को पकड़ा देते और उन्हें किसी महिला का कोई मैसेज उस में दिखाई नहीं देता तो मां को लगता था कि पापा ने सारे मैसेज डिलीट कर दिए हैं.

पापा का ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए मां उन पर मानसिक दबाव बनाने लगी थीं. कभी सिरदर्द का बहाना तो कभी पेटदर्द का बहाना करतीं… कभी कनु और उस के बड़े भाई सोनू को बिना वजह ही पीटने लगतीं… कभी कनु की दादी को समय पर खाना नहीं देतीं… कभी पापा को आत्महत्या करने और जेल भिजवाने की धमकियां देतीं… और एक दिन धमकी को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने खुद पर तेल छिड़क कर आग लगा ली. उन का यह नासमझी में उठाया गया कदम कनु और सोनू के लिए जिंदगी भर का नासूर बन गया.

मां के जाते ही गृहस्थी का सारा बोझ कनु की बूढ़ी दादी के कमजोर कंधों पर आ गया.

उस समय कनु की उम्र 10 साल और सोनू की 13 साल थी. साल बीततेबीतते कनु के पापा किसी दलाल की मार्फत एक अनजान महिला से शादी कर के उसे अपने घर ले आए. वह महिला कुछ महीने तो उन के साथ रही, मगर बूढ़ी सास और बच्चों की जिम्मेदारी ज्यादा नहीं उठा सकी और एक दिन चुपचाप बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चली गई.

कुछ साल अकेले रहने के बाद कनु के पापा फिर से अपने लिए एक पत्नी ढूंढ़ लाए. इस बार महिला उन के औफिस की ही विधवा चपरासिन थी. नई मां ने सास और बच्चों के साथ रहने से इनकार कर दिया तो कनु के पापा वहीं उसी शहर में अलग किराए का मकान ले कर रहने लगे. गृहस्थी फिर से कनु की दादी संभालने लगी थीं. कुछ साल तो घर खर्च और बच्चों की पढ़ाई का खर्चा कनु के पापा देते रहे, मगर फिर धीरेधीरे वह भी बंदकर दिया.

अब सोनू 18 साल का हो चुका था. उस ने ड्राइविंग सीखी और टैक्सी चलाने लगा.

घर में पैसा आने से जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. कनु की दादी से अब घर का कामकाज नहीं हो पाता था, इसलिए उन की इच्छा थी कि घर में जल्दी से बहू आ जाए जो घर के साथसाथ जवान होती कनु का भी खयाल रख सके. मगर सोनू चाहता था कि 2-4 साल टैक्सी चला कर कुछ बचत कर फिर खुद की टैक्सी खरीद कर अपने पैरों पर खड़ा हो तब शादी की बात सोचे. इसलिए वह देर रात तक टैक्सी चलाता था.

इन सालों में मोबाइल आम आदमी के शौक से होता हुआ उस की जरूरत बन चुका था, साथ ही उस में कई तरह के आकर्षक फीचर भी जुड़ गए थे. सोनू को भी मोबाइल का शौक शायद अपने पापा से विरासत में मिला था. वह जब रात में घर लौटता था तो कानों में इयर फोन लगा कर तेज आवाज में गाने सुनता था. रात में ट्रैफिक कम होने के कारण टैक्सी की स्पीड भी ज्यादा ही होती थी.

एक दिन मोबाइल में बजने वाले गाने का टै्रक चेंज करते समय सोनू मोड़ पर आने वाले ट्रक को देख नहीं पाया और टैक्सी ट्रक से टकरा गई. ट्रक ड्राइवर तो घबराहट में ट्रक छोड़ कर भाग गया और सोनू वहीं जख्मी हालत में तड़पता पड़ा रहा. लगभग 1 घंटे बाद पुलिस गश्ती दल की मोबाइल वैन ने गश्त के दौरान उसे घायल अवस्था में देखा तो हौस्पिटल ले गई. वक्त पर हौस्पिटल पहुंचने से उस की जान तो बच गई, मगर सिर में चोट लगने से उस के दिमाग का एक हिस्सा डैमेज हो गया और वह लकवे का शिकार हो कर हमेशा के लिए बिस्तर पर आ गया. डाक्टर्स को उस के बचने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए उन्होंने सोनू को कुछ जरूरी दवाएं घर पर ही देने की सलाह दे कर हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया.

कनु पर एक बार फिर से मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. जब तक सोनू हौस्पिटल में रहा तब तक तो उस के पापा ने इलाज के लिए पैसा दिया, मगर हौस्पिटल से घर आने के बाद फिर उन्होंने बच्चों की कोई सुध नहीं ली. घर खर्च के साथसाथ सोनू की दवाइयों के खर्च की व्यवस्था भी अब कनु को ही करनी थी.

कहते हैं कि मुसीबत कभी अकेले नहीं आती. एक दिन बूढ़ी दादी बाथरूम में फिसल गईं और रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे भी चलनेफिरने से लाचार हो गईं.

घरबाहर की सारी जिम्मेदारी अब कनु की थी. वह अब तक ग्रैजुएशन कर चुकी थी. उस ने एक कौल सैंटर में पार्टटाइम जौब कर ली. सुबह 11 से शाम 5 बजे तक वह कौल सैंटर में रहती थी. इस दौरान सोनू और दादी की देखभाल करने के लिए उस ने एक नर्स की व्यवस्था कर ली थी. घर लौटने के बाद देर रात तक घर से ही औनलाइन जौब किया करती थी. घरबाहर संभालती, कभी दादी तो कभी सोनू को दवाएं देती, उन की दैनिक क्रियाएं निबटाती कनु अकेले में फूटफूट कर रोती थी. मगर अंदर से बेहद कमजोर कनु बाहर से एकदम आयरन लेडी थी. मजबूत, बहादुर और स्वाभिमानी.

यहीं कौलसैंटर में ही उसे निमेश का साथ मिला था. अपनेआप में सिमटी कनु निमेश को एक पहेली सी लगती थी. कनु ने अपने चारों तरफ कछुए सा कठोर आवरण बना रखा था और निमेश ने जैसे उसे बेधने की ठान रखी थी. पता नहीं कैसे और कहां से वह कनु के बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लाया था. कनु अभी नए मोबाइल हैंडसैट को हाथ में ही लिए बैठी थी

कि उस का पुराना फोन बज उठा. देखा तो निमेश का ही फोन था. कनु ने अपने आंसू पोंछे फोन रिसीव किया.

‘‘कैसा है बर्थडे गिफ्ट?’’ निमेश ने फोन उठाते ही पूछा.

‘‘गिफ्ट तो अच्छा ही है, मगर मेरे किसी काम का नहीं… अगर किसी और लड़की पर ट्राई किया होता तो शायद तुम्हारे पैसे वसूल हो जाते…’’ कनु ने अपनेआप को सामान्य करने की कोशिश करते हुए मजाक किया.

‘‘कोई बात नहीं… अभी शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं है, कल बात करते हैं,’’ कह कर निमेश ने फोन काट दिया.

कनु अपने साधारण मोबाइल में नैट यूज नहीं करती है, इसीलिए न तो व्हाट्सऐप पर वह दिखाई देती है और न ही किसी और सोशल साइट पर उस का कोई अकाउंट है. उस की कोई पर्सनल मेल आईडी भी नहीं है. हां एक औफिसियल मेल आईडी जरूरी है जिस की जानकारी सिर्फ उस के स्टाफ मैंबर्स को ही है और उसे वह अपने लैपटौप पर ही इस्तेमाल करती है. बहुत मना करने पर भी निमेश उस पर अकसर पर्सनल मैसेज डाल देता है, मगर पढ़ने के बाद भी कनु उसे कोई जवाब नहीं देती.

अगले दिन जैसे ही कनु कौल सैंटर पहुंची, निमेश तुरंत उस के पास आया और बोला, ‘‘कनु तुम से कोई जरूरी बात करनी है.’’

हम तीन- भाग 2: आखिर क्या हुआ था उन 3 सहेलियों के साथ?

मैं ने हंस कर बस ‘ठीक है’ कहा. रात को अमित और बच्चों से बात की, अमित ने आदतन पूरे दिन हालचाल पूछा.

सुबह 10 बजे सुकन्या और अनीता आ गईं. पहले हम साथ बैठ कर गप्पें मारती रहीं. फिर भाभी के मना करने पर भी किचन में उन का लंच तैयार करने में हाथ बंटाया. फिर हम तीनों मेरे कमरे में आ गईं. मेरा कमरा अब मेरे भतीजे यश का स्टडीरूम बन गया था. छुट्टी थी. यश खेलने में व्यस्त था. हम तीनों आराम से लेट कर अपनेअपने परिवार की बातें एकदूसरी को बताने लगीं. बात करतेकरते मैं ने नोट किया कि सुकन्या कुछ उदास सी हो गई.

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ सुकन्या?’’

‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘हमें नहीं बताएगी?’’ अनीता ने भी पूछा.

‘‘कुछ नहीं, तुम लोगों को वहम हुआ है.’’

मैं ने कहा, ‘‘हम इतनी दूर से एकदूसरी से मिलने आई हैं. क्या हम एकदूसरी से पहले की तरह अपने दिल की बातें नहीं कर सकतीं?’’

सुकन्या पहले तो गुमसुम सी बैठी रही, फिर बहुत ही उदास स्वर में बोली, ‘‘अनिल को नहीं भुला पाई मैं.’’

हम दोनों चौंक पड़ीं, ‘‘क्या? क्या कह रही है तू?’’

‘‘हां,’’ सुकन्या की आंखों से आंसू बहने लगे, ‘‘अपने असफल प्यार की पराकाष्ठा को दिल में लिए एक सहज जीवन जीना अग्निपथ पर चलने जैसा मुश्किल है, यह सिर्फ मैं जानती हूं. बस, 2 हिस्सों में बंटी जी रही हूं… अब तो उम्र अपनी ढलान पर है, लेकिन मन वहीं ठहरा है. अनिल से दूर मन कहीं नहीं रमा, इतने सालों से जैसे 2 नावों की सवारी करती रही हूं. बस, बचाखुचा जीवन भी जी ही लूंगी… जो प्यार मिलने से पहले ही खो गया हो, कैसे जी लिया जाता है उस के बिना भी, यह वही जान सकता है, जिस ने यह सब झेला हो. सुधीर के पास होती हूं तो अनिल का चेहरा सामने आ जाता है और जब भी यहां आती हूं, मेरा मन और उदास हो जाता है.’’

मैं और अनीता हैरानी से सुकन्या को देख रही थीं. हमें तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि बात इतनी गंभीर होगी. यह क्या हो गया… हमारी प्यारी सहेली

22 साल से इस मनोदशा में है. मैं और अनीता एकदूसरी का मुंह देखने लगीं. हम जानती थीं सुकन्या शुरू से ही बहुत भावुक थी, लेकिन वह तो आज भी वैसी ही थी.

सुकन्या कह रही थी, ‘‘यहां आने पर मेरे सामने अतीत के वे मधुर पल जीवंत हो उठते हैं… आज भी आखें बंद कर उस सुखद समय का 1-1 पल जी सकती हूं मैं.’’

अनीता ने पूछा, ‘‘सुकन्या, यहां आने पर तू कभी अनिल से मिली है?’’

‘‘नहीं.’’

अनीता ने पल भर पता नहीं क्या सोचा, फिर बोली, ‘‘मिलना है उस से?’’

मैं तुरंत बोली, ‘‘अनु, पागल हो गई है क्या?’’

अनीता ने ठहरे हुए स्वर में मुझे आंख मारते हुए कहा, ‘‘क्यों, इस में पागल होने की क्या बात है? सुकन्या अनिल के लिए आज भी उदास है तो क्या उस से एक बार मिल नहीं सकती?’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. अब मिल कर क्या होगा?’’

‘‘अरे, एक बार उसे देख लेगी तो शायद तेरे दिल को ठंडक मिल जाए.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मैं चुप रही, पता नहीं अनीता ने क्या सोचा था.

सुकन्या ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘मीनू, तू क्या कहती है?’’

‘‘जैसा तेरा दिल चाहे.’’

‘‘लेकिन मैं उस से मिलूंगी कहां?’’

अनीता ने कहा, ‘‘मुझे उस का घर पता है. बूआजी की बेटी उसी कालेज में पढ़ाती है जहां अनिल भी प्रोफैसर है.’’

सुकन्या बोली, ‘‘मेरे तो हाथपैर अभी से कांप रहे हैं… कैसा होगा वह, क्या कहेगा मुझे देख कर? पहचान तो जाएगा न?’’

अनीता हंसी, ‘‘हां, पहचान तो जाना चाहिए. उस की याद में तू आज भी वैसी ही तो है सूखीमरियल सी.’’

सुकन्या ने कहा, ‘‘हां, तेरी तरह सेहत बनानी भी नहीं है मुझे.’’

अनीता का शरीर कुछ ज्यादा ही भर गया था. मैं जोर से हंसी तो अनीता ने कहा, ‘‘हांहां, ठीक है, मुझे अपनी सेहत से कोई शिकायत नहीं है. यह तो अपने प्यारे पति के प्यार में थोड़ी फूलफल गई हूं.’’ और फिर हम तीनों इस बात पर खूब हंसीं.

मैं ने कहा, ‘‘वैसे हम तीनों के ही पति बहुत अच्छे हैं जो हमें एकदूसरी से मिलने भेज दिया.’’

अनीता ने कहा, ‘‘हां, यह री बातें सुन लें तो हैरान रह जाएं. खासतौर पर सुकन्या के बच्चे तो अपनी मां के इस सो कोल्ड प्यार का किस्सा सुन कर धन्य हो जाएंगे.’’

सुकन्या चिढ़ कर बोली, ‘‘चुप कर, खुद ही आइडिया दिया है और खुद ही मेरा मजाक उड़ा रही है.’’

अगले दिन हम तीनों पहले मार्केट गईं. वहां सुकन्या ने अनिल को देने के लिए गिफ्ट खरीदी. सुकन्या बहुत इमोशनल हो रही थी. अनीता और मैं अपनी हंसी बड़ी मुश्किल से रोक पा रही थीं.

अनिता ने मेरी कान में कहा, ‘‘यार, यह तो बिलकुल नहीं बदली. पहले भी एक बात पर हफ्तों खुश.’’

मैं ने कहा, ‘‘हां, लेकिन तूने इसे अनिल से मिलने का आइडिया क्यों दिया?’’

अनीता बड़े गर्व से बोली, ‘‘टीचर हूं, बिगड़े बच्चों को सुधारना मुझे आता है और इसे तो मैं अच्छी तरह जानती हूं. अपनी इस खूबसूरत सहेली का सौंदर्य प्रेम भी मुझे पता है और तुझे बता रही हूं मैं ने अनिल को 6 महीने पहले ही एक शादी में देखा था.’’

‘‘अच्छा, कोई बात हुई थी क्या?’’

‘‘नहीं, मौका नहीं लगा था. अच्छा, अब चुप कर. अपनी सहेली की शौपिंग पूरी हो गई शायद. पता नहीं कितने रुपए फूंक कर आ रही है मैडम.’’

सुकन्या पास आई तो हम ने पूछा, ‘‘क्याक्या खरीद लिया?’’

‘‘कुछ खास नहीं, अनिल के लिए एक ब्रैंडेड शर्ट, एक परफ्यूम, एक बहुत ही सुंदर पैन और उस की पसंद की मिठाई.’’

अनीता ने कहा, ‘‘चलो चलें प्रोफैसर साहब घर आ गए होंगे.’’

आधी तस्वीर- भाग 2: क्या मनशा भैया को माफ कर पाई?

मनशा के जीवन के सामने कब प्रश्नचिह्न लग गया, उसे इस का भान भी नहीं हुआ. घर के वातावरण में एक सरसराहट होने लगी. कुछ सामान्य से हट कर हो रहा था जो मनशा की जानकारी से दूर था. मां, बाबूजी और भैया की मंत्रणाएं होने लगीं. तब आशय उस की समझ में आ गया. मां ने उस की जिज्ञासा अधिक नहीं रखी. उदयपुर का एक इंजीनियर लड़का उस के लिए देखा जा रहा था. उस ने मां से रोषभरे आश्चर्य से कहा, ‘मेरी शादी, और मुझ से कुछ कहा तक नहीं.’

‘कुछ निश्चित होता तभी तो कहती.’

‘तो निश्चित होने के बाद कहा जा रहा है. पर मां, सिर्फ कहना ही तो काफी नहीं, पूछना भी तो होता है.’

‘मनशा, इस घर की यह परंपरा नहीं रही है.’

‘जानती हूं, परंपरा तो नई अब बनेगी. मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’

‘मनशा.’

‘हां, मां, मैं उस से शादी नहीं करूंगी.’

जब उस ने दोहराया तो मां का गुस्सा भड़क उठा, ‘फिर किस से करेगी? मैं भी तो सुनूं.’

‘शायद घर में सब को इस का अंदाजा हो गया होगा.’

‘मनशा,’ मां ने उस का हाथ कस कर पक लिया, ‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है. जातपांत, समाज का कोई खयाल ही नहीं है?’

मनशा हाथ छुड़ा कर कमरे में चली गई. घर में सहसा ही तनाव व्याप्त हो गया. शाम को तुषार के सामने रोरो कर मां ने अपने मन की व्यथा कह सुनाई. बाबूजी को सबकुछ नहीं बताया गया. तुषार इस समस्या को हल करने की चेष्टा करने लगा. उसे विश्वास था वह मनशा को समझा देगा, और नहीं मानेगी तो थोड़ी डांटफटकार भी कर लेगा. मन से वह भी इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि मनशा पराई जाति के लड़के रवि से ब्याह करे. वह जानता था, कालेज के जीवन में प्रेमप्यार के प्रसंग बन ही जाते हैं पर…

‘भैया, क्या तुम भी मेरी स्थिति को नहीं समझ सकते? मां और बाबूजी तो पुराने संस्कारों से बंधे हैं लेकिन अब तो सारा जमाना नईर् हवा में नई परंपराएं स्थापित करता जा रहा है. हम पढ़लिख कर भी क्या नए विचार नहीं अपनाएंगे?’

‘मनशा,’ तुषार ने समझाना चाहा, ‘मैं बिना तुम्हारे कहे सब जानता हूं. यह भी मानता हूं कि रवि के सिवा तुम्हारी कोई पसंद नहीं हो सकती. पर यह कैसे संभव है? वह हमारी जाति का कहां है?’

‘क्या उस के दूसरी जाति के होने जैसी छोटी सी बात ही अड़चन है.’

‘तुम इसे छोटी बात मानती हो?’

‘भैया, इस बाधा का जमाना अब नहीं रहा. उस में कोई कमी नहीं है.’

‘मनशा…’ तुषार ने फिर प्रयास किया, ‘‘आज समाज में इस घर की जो प्रतिष्ठा है वह इस रिश्ते के होते ही कितनी रह जाएगी, यह तुम ने सोचा है? यह ब्याह होगा भी तो प्रेमविवाह अधिक होगा अंतर्जातीय कम. मैं सच कहता हूं कि बाद में तालेमल बैठाना तुम्हारे लिए बहुत कठिन होगा. तुम एकसाथ दोनों समाजों से कट जाओगी. मां और बाबूजी बाद में तुम्हें कितना स्नेह दे सकेंगे? और उस घर में तुम कितना प्यार पा सकोगी? इस की कल्पना कर के देखो तो सही.’

मनशा ने सिर्फ भैया को देखा, बोली कुछ नहीं. तुषार ही आगे बोलता रहा, ‘व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर जीवन के सारे पहलुओं पर जरा ठंडे दिल से सोचने की जरूरत है, मनशा. जल्दी में कुछ भी निर्णय ठीक से नहीं लिया जा सकता. फिर सभी महापुरुषों ने यही कहा है कि प्रेम अमर होता है, किसी ने ब्याह अमर होने की बात नहीं कही, क्योंकि उस का महत्त्व नहीं है.’ अपने अंतिम शब्दों पर जोर दे कर वह कमरे से बाहर चला गया.

मनशा सबकुछ सोच कर भी भैया की बात नहीं मान सकती थी. किसी और से ब्याह करने की कल्पना तक उस के मस्तिष्क में नहीं आ पाती थी. घर के वातावरण में उसे एक अजीब सा खिंचाव और उपेक्षा का भाव महसूस होता जा रहा था जो यह एहसास करा रहा था मानो उस ने घर की इच्छा के विरुद्ध बहुत बड़ा अपराध कर डाला हो. भैया से अगली बहस में उस ने जीवन का अंत करना अधिक उपयुक्त मान लिया था. उसे इस सीमा तक हठी देख तुषार को बहुत क्रोध आया था, पर उस ने हंस कर इतना ही कहा, ‘नहीं, मनशा, तुम्हें जान देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’

घर के तनाव में थोड़ी ढील महसूस होने लगी, जैसे प्रसंग टल गया हो. तुषार भी पहले की अपेक्षा कम खिंचा हुआ सा रहने लगा. पर न अब रवि आता और न मनशा ही बाहर जाती थी. मनशा कोई जिद कर के तनाव बढ़ाना नहीं चाहती थी.

तभी सहसा एक दिन शाम को समाचार मिला कि रवि सख्त बीमार है और उसे अस्पताल में भरती किया गया है. मांबाप के मना करने पर भी मनशा सीधे अस्पताल पहुंच गई. देखा इमरजैंसी वार्ड में रवि को औक्सीजन और ग्लूकोज दिया जा रहा है. उस का सारा चेहरा स्याह हो रहा था. चारों ओर भीड़ में विचित्र सी चर्चा थी. मामला जहर का माना जा रहा था. रवि किसी डिनर पार्टी में गया था.

नाखूनों का रंग बदल गया था. डाक्टरों ने पुलिस को इत्तला करनी चाही पर तुषार ने समय पर पहुंच कर अपने मित्र विक्टर की सहायता से केस बनाने का मामला रुकवा दिया. यह पता नहीं चल पा रहा था कि जहर उसे किसी दूसरे ने दिया या उस ने स्वयं लिया था. रवि बेहोश था और उस की हालत नाजुक थी.

पांच साल बाद- भाग 5: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

वह सारा दिन उन दोनों ने साथसाथ व्यतीत किया. पालिका बाजार, सैंट्रल पार्क, कनाट प्लेस से ले कर पुराने किले से होते हुए वे इंडिया गेट तक गए और रात 8 बजे तक वहीं बैठ कर उन्होंने जीवन के हर पहलू के बारे में बात की. निशांत हवा के साथ उड़ रहा था तो स्निग्धा के मन में अपने विगत को ले कर एक अपराधबोध था. निशांत हर प्रकार की खुशबू अपने दामन में समेटने के लिए आतुर था तो स्निग्धा संकोच के साथ अपने पांव पीछे खींच रही थी.

निशांत के जीवन की खोई हुई खुशियां जैसे दोबारा लौट आई थीं. उस के जीवन में 5 साल बाद वसंत के फूल महके थे. स्निग्धा को उस के घर के बाहर तक छोड़ कर जब वह वापस लौट रहा था तब उस के कानों में स्निग्धा के मीठे स्वर गूंज रहे थे, ‘बाय निशू, गुड नाइट. एक अच्छे दिन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. आशा है, हम कल फिर मिलेंगे.’

‘हां, कल शाम को मैं तुम्हें फोन करूंगा, ओके.’

स्निग्धा के घर से उस के घर के बीच का रास्ता कितनी जल्दी खत्म हो गया, उसे पता ही न चला. अपने 2 कमरों के किराए के मकान में पहुंच कर उसे लगा, जैसे पूरा घर ताजे फूलों से सजा हुआ हो और उन की मादक सुगंध चारों तरफ फैल कर उस के दिमाग को मदहोश किए दे रही थी. वह एक लंबी सांस ले कर पलंग पर धम से गिर पड़ा.

उसे स्निग्धा के साथ मिलने के संयोग पर विश्वास नहीं हो रहा था.

विश्वास तो स्निग्धा को भी नहीं हो रहा था. वह अपने कमरे की सीढि़यां चढ़ते हुए यही सोच रही थी कि निशांत से मिलने के बाद क्या उस के जीवन में कोई बड़ा परिवर्तन होने वाला है. क्या यह परिवर्तन सुखद होगा? कमरे में पहुंची तो उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, जैसे वह फूल की तरह हलकी हो गई थी और उसे लग रहा था कि हवा का एक हलका झोंका भी आया तो वह आसमान में उड़ जाएगी. कोई उसे पकड़ नहीं पाएगा.

उस की रूममेट रश्मि ने जब उस का हंसता हुआ चेहरा देखा तो पहला प्रश्न यही किया, ‘लगता है, तुम्हारा खोया हुआ प्यार तुम्हें मिल गया है?’

उस ने पर्स को मेज पर पटका और रश्मि को गले से लगा कर भींच लिया. रश्मि कसमसा उठी और उसे परे करती हुई बोली, ‘इतना ज्यादा मत इतराओ. अभी एक प्यार की चोट पूरी तरह से भरी नहीं है और फिर से तुम प्यार करने लगी हो. कहां तो समाज की हर चीज से बगावत करने पर तुली हुई थीं, कहां अब एक आम लड़की की तरह बारबार प्यार में इस तरह गिर रही हो, जैसे गीले गुड़ में मक्खी…क्या यही है तुम्हारा आदर्श?’

‘अरे, भाड़ में जाए समाज से विद्रोह. वह मेरी बेवकूफी थी कि मैं नैतिकता को बंधन समझती थी. दरअसल, यही सच्चा जीवनमूल्य है, जो हमें एक नैतिक और मर्यादित बंधन में रख कर समाज और राष्ट्र को आगे बढ़ाने में मदद करता है. निरंकुश आजादी मनुष्य को गैरजिम्मेदार और तानाशाह बना देती है, जबकि सामाजिक मूल्य हमें एक निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करते हैं.’

‘वाह, तुम तो एक दिन ही में सारे जीवनमूल्यों को पहचान गईं. किस ने ऐसा गुरुमंत्र दिया है जो अपनी बनाई हुई लीक को तोड़ने पर मजबूर हो गई हो? क्या पहले प्यार में धोखा खाने के बाद तुम्हें यह एहसास हुआ है या किसी ने तुम्हें भारतीय दर्शन और संस्कृति का पाठ पढ़ाया है?’

वह पलंग पर बैठती हुई बोली, ‘नहीं रश्मि, बहुतकुछ हम अपने अनुभवों से सीखते हैं और बहुतकुछ हम अपने संपर्क में आने वाले लोगों से. इस से कुछ कटु अनुभव होते हैं और कुछ मृदु. यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि अपने द्वारा किए गए गलत कामों के कटु अनुभवों से हम क्या सीखते हैं और हम किस प्रकार अपने को बदल कर सही मार्ग पर आते हैं.

समाज में हर चीज गलत नहीं होती. हमें अपने विवेक से देखना पड़ता है कि क्या सही है, क्या गलत. सामाजिक कुरीतियां, अंधविश्वास, अति पूजापाठ और धर्मांधता अगर बुरे हैं तो शादीब्याह जैसी संस्थाएं बुरी नहीं हैं. यह परिवार और समाज को एक बंधन में बांध कर राष्ट्र को मजबूत बनाने में मदद करती हैं. मेरी गलती थी कि मैं समाज की हर चीज को बुरा समझने लगी थी. मनमाने ढंग से जीवन जीने का परिणाम क्या हुआ? एक व्यक्ति जिसे मैं अपना समझती थी कि वह जीवनभर मेरा साथ देगा, मेरे सुखदुख बांटेगा, वही मेरा उपभोग कर के एक किनारे हो गया.

‘यही काम अगर मैं शादी कर के करती तो समाज में गर्व से अपना सीना तान कर चल सकती थी. आज मैं अपने मांबाप, परिजनों और संबंधियों के सामने नहीं पड़ सकती, उन को अपना मुंह नहीं दिखा सकती. इतनी नैतिक शक्ति मेरे पास नहीं है,’ और उस के चेहरे पर फिर से पहले जैसी उदासी व्याप्त हो गई.

रश्मि बहुत समझदार लड़की थी. वह उस के पास आ कर उस के सिर पर हाथ रख कर बोली, ‘तुम बहुत साहसी लड़की हो. कभी इस तरह हिम्मत नहीं हारतीं. आज तुम कितना खुश थीं. मुझे अफसोस है कि मैं ने तुम्हारी दुखती रग पर हाथ रख कर तुम्हें ज्यादा दुखी कर दिया. चलो, भूल जाओ अपना अतीत और नए सिरे से अपना जीवन शुरू करो. अब मैं तुम से पिछले जीवन के बारे में कोई बात नहीं करूंगी. बस, तुम खुश रहा करो.’

‘मैं खुश हूं, रश्मि,’ उस ने हंसने का खोखला प्रयास किया और बाथरूम की तरफ जाती हुई बोली, ‘तुम देखना, मैं हमेशा हंसतीमुसकराती रहूंगी.’

‘ये हुई न कोई बात.’

स्निग्धा ने अपने मन को इतना कठोर बना लिया था कि राघवेंद्र के साथ व्यतीत किए गए जीवन के कड़वे पलों को पूरी तरह भुला दिया था. अगर कभी यादें उसे हरा देतीं तो उस को उबकाई आने लगती.

आज वह एक सच्चे प्यार की तलाश में थी, तन की भूख की अब उस में कोई ललक नहीं थी.

रश्मि एक कौल सैंटर में काम करती थी. लखनऊ की रहने वाली थी. स्निग्धा से उस की मुलाकात इसी गैस्ट हाउस में हुई थी. रश्मि पहले से यहां रह रही थी. बाद में स्निग्धा आ गई तो उन्होंने एकसाथ एक कमरे में रहने का निर्णय लिया. इस से उन पर किराए का बोझ कम हो गया था.

स्निग्धा जब से आई थी, बहुत उदास और गुमसुम सी रहती थी. बहुत पूछने और साथ रहने के कारण स्निग्धा ने उस से अपने जीवन की बहुत सारी बातें बांट ली थीं. रश्मि ने भी उसे अपने बारे में बहुतकुछ बताया था. धीरेधीरे स्निग्धा खुश रहने लगी थी परंतु आज बाहर से आने के बाद वह जितना खुश थी उतना दिल्ली आने के बाद कभी नहीं रही.

Video: रणबीर-आलिया की वेडिंग डेट पर नीतु कपूर ने दिया ये रिएक्शन

रणबीर कपूर और आलिया भट्ट अपनी शादी को लेकर सुर्खियों में छाये हुए हैं. बताया जा रहा है कि ये कपल 14 अप्रैल को शादी के बंधन में बंधने वाला है. लेकिन अब रणबीर कपूर की मां यानी नीतू कपूर का शादी की तारीख को लेकर ऐसा रिएक्शन आया है जिसे देखकर आप हैरान रह जाएंगे.

दरअसल सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया है. जिसमें रणबीर कपूर की मां नीतू कपूर से शादी को लेकर सवाल किया गया है तो उन्होंने काफी फनी अंदाज में जवाब दिया है. नीतू कपूर ने ऊपर की तरफ हाथ उठा दिया और कहा- भगवान जाने. नीतू कपूर का ये वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. फैंस इस पर खूब कमेंट कर रहे हैं.

 

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इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि एक फोटोग्राफर को नीतू कपूर से कहते हुए सुना जा सकता है, तारीख तो बता दीजिए… नीतू जी शादी की तारीख. नीतू कपूर ने पूछा, किसकी? पापाराजी ने कहा, RK सर की. इसके बाद नीतू कपूर का रिएक्शन देखने लायक है. नीतू कपूर ने कहा-,तारीख है कुछ? भगवान जाने.

 

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आपको बता दें कि रणबीर कपूर और आलिया भट्ट की मुलाकात फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ के सेट पर हुई थी. अयान मुखर्जी की इस फिल्म में दोनों पहली बार साथ में काम करते नजर आएंगे. दोनों ने रिलेशनशिप में होने की बात ऑफिशियली एक्सेप्ट कर चुके हैं, अब फैंस को दोनों की शादी का इंतजार है.

 

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अनुपमा की शादी में आएगा तूफान! क्या वनराज करेगा सुसाइड?

टीवी शो ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि तोशु, काव्या और वनराज ने अपनी नौकरी खो दी है. जिससे शाह परिवार को बड़ा झटका लगा है. अनुपमा वनराज को समझाने की कोशिश कर रही है लेकिन वह नौकरी खोने की वजह से डिप्रेशन में चला गया है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है, आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि बा बापूजी से कह रही है कि अनुपमा प्यार में सबकुछ भूला दी है और बापूजी भी उसकी शादी में खो गये है. बापूजी कहते हैं, तुम्हें जो ठीक लगता है, तुम वो काम करो. बा कहती है कि मुझे इस बात की चिंता है कि कहीं वनराज कोई गलत कदम ना उठा ले.

 

अनुपमा सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. शो में अनुज-अनुपमा की शादी के दिन बड़ा तूफान आने वाला है. उस दिन वनराज गुस्से में एक बड़ा कदम उठाने वाला है. खबरों के अनुसार वनराज अनुपमा की शादी के दिन ही सुसाइड करेगा. तो वहीं बापूजी वनराज को उस हालत में देखकर खुद को असहाय महसूस करेंगे. शो में यह देखना दिलचस्प होगा कि अनुज और अनुपमा की शादी में और क्या-क्या ड्रामा होने वाला है.

 

शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुपमा अनुज को बताती है कि शादी के बाद भी उसे शाह परिवार का ख्याल रखना होगा. वो अपने बच्चे से अलग नहीं रह पाएगी. ये बात सुनकर अनुज का दिल टूट जाता है. अनुज कहता है कि अनुपमा कभी भी पूरी तरह से उसकी नहीं हो पाएगी. दोनों के बीच शाह परिवार हमेशा रहेगा.

 

तो दूसरी तरफ राखी दवे काव्या का कान भरती है. राखी दावे कहती है कि वनराज उसे कभी खुश नहीं रख पाएगा. आने वाले समय में अनुपमा के बच्चे बड़े हो जाएंगे. घर की सारी कमाई बच्चों की पढ़ाई और शादी में खर्च हो जाएगी. राखी कहती है कि काव्या को वनराज से तलाक ले लेना चाहिए.

कम्युनिज्म बनाम लोकतंत्र

यूक्रेन रूस संघर्ष में भारतीय विचारकों की कमी नहीं है जो इस मामले को रूसी चश्मे से देखने की कोशिश कर रहे है क्योंकि अमेरिका के जो बाइडन और कमला हैरिस द्वारा दूरी बनाए रखने के कारण नरेंद्र मोदी को रूस का दामन पकडऩा पड़ा है और संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों में भी तठस्थ रहना पड़ा और रूप से प्रतिबंधों के बाद भी व्यापार चालू रखा गया.

भारत की स्थिति कुछ अलग है. अपनी विशालता के कारण हमारा सकल उत्पादन तो ज्यादा है पर प्रति व्यक्ति आय और दूसरे पैमानों पर हम बेहद गएगुजरे देश हैं जो हर चीज के लिए बाहरी देशों पर निर्भर है, जहां तक कि साधारण से मेडिकल और इंजीनियङ्क्षरग की शिक्षा तक के लिए. हम बातें बनाने में तेज हैं और प्रवचन देते भी हैं पर उन्हें अमल में लाएं यह जरूरी नहीं है और इसीलिए रस्मी तौर पर भारत को रूस यूक्रेन विवाद में हस्तक्षेप के बाद उसे हल करने में भारत का हाथ नहीं रहा.

मीडियम और विचारक रूस का समर्थन न कर सकें पर पश्चिम में दोषी ठहराने की कोशिश जम कर कर रहे हैं. यूक्रेन ने जो जमकर अपने से कहीं विशाल और उन्नत रूस से मुकाबला किया है तो पश्चिमी देशों से निरंतर आई सैनिक सामग्री के बल पर. यूक्रेनी सैनिकों और नागरिकों ने इन हथियारों को चलाना समझना और अधपढ़े रूसी सैनिकों की खूब धुनाई की है. रूस ने काफी बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया पर फिर तब तक पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों का असर होने लगा और वहां से हथियार पहुंचने लगे. रूसी टैंक, हवाई जहाज, तोपों की अमेरिकी व यूरोपीय हथियारों ने विफल कर दिया. भारत इन्हीं हथियारों को रूस से मुंहमांगे दामों पर खरीदता रहा है और उन की कमाई खुल गई है.

भारत की कूटनीति पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय से ही ढुलमुल रही है. भारत ने पहले रूस का दामन थामा और सोवियत संघ के विखराब के बाद हम कुछ बदले पर इतना नहीं कि हम दूसरे उन्नत लोकतांत्रिक देशों के साथ बैठ सकें और उन से सीख सकें. हम कम्युनिस्ट देशों के पिछलग्गू रहे और इसी वजह से हमारा व्यापार और उपयोग बढ़ नहीं पाया.

अब फिर हम गलती कर रहे है और प्रधानमंत्री के ईशारे पर हमलावर रूस का समर्थन कर रहे हैं. रूस का हमला अमेरिका के विनयनाम, अफगानिस्तान और इराक के हमलों से अलग है. रूस यूक्रेन को अपने देश में मिलाना चाहता है जबकि अमेरिकी कभी भी वियमनाम, अफगानिस्तान या इराक के अमेरिका की कालोनी नहीं बनाना चाहता था. वहां मुद्दा कम्युनिज्म बनाम लोकतंत्र का था. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को पश्चिमी देशों का साथ देना चाहिए क्योंकि हम ने पाकिस्तान के 2 टुकड़े बांग्लादेश में लोकतंत्र को स्थापित करने के लिए किए थे, बांग्लादेश को भारत में मिलाने के लिए नहीं.

हमारे मीडिया और विचारकों की आंखों पर लगा चश्मा चढ़ा है. वह  देश की जनता के लिए हानिकारण है.

भारत भूमि युगे युगे: गोमय वसते बजट

गलती छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की इतनी भर है कि वे भी भगवा टोटकों की गिरफ्त में आ गए हैं. देश पूजापाठ, तंत्रमंत्र, यज्ञहवन, नदीतीर्थ और ज्योतिष से चल रहा है. इन बेहूदगियों पर भाजपा के कौपीराइट तोड़ते भूपेश ने राज्य का बजट गोबर से बने सूटकेस में रख कर पेश किया, जिस पर संस्कृत में लिखा था ‘गोमय वसते लक्ष्मी’ यानी गोबर में लक्ष्मी का वास होता है.

इस मूर्खता पर तरस भी नहीं खाया जा सकता क्योंकि संदेश यह दिया जा रहा है कि पैसा मेहनत, बुद्धि, शिक्षा और उद्यम से नहीं बल्कि गोबर थोपने जैसे अंधविश्वासों से आता है. गाय का इतना गुणगान इन दिनों किया जा रहा है कि उसे न पालने पर खुद के पापी होने की फीलिंग हर किसी में आने लगी है.

जिल्द में यूपी वाला भैया

बिहार के बाद अब उत्तर प्रदेश में अपनी जिंदगी पर किताबें लिखवाने का फैशन खूब फलफूल रहा है. इस से लौकडाउन में बेरोजगार हुए कई रिटायर्ड लेखकों और पत्रकारों को रोजगार मिल रहा है. ऐसे ही एक युवा लेखक शांतनु गुप्ता हैं जिन के क्लाइंट कोई ऐरागैरा, अर्धकामयाब,  मिडिलक्लासी नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसी भगवा हस्ती है.

शांतनु ने योगी की जिंदगी पर अभी तक 2 किताबें लिखी हैं जो धड़ाधड़ बिक रही हैं. नई किताब का शीर्षक है. ‘द मोंक हू ट्रांसफौर्म उत्तर प्रदेश, हाऊ योगी चेंज यूपी वाला भैया’.

भैया शब्द के अतिरिक्त आकर्षण वाली यह किताब अभिजात्य चाटुकारिता से भरी पड़ी है, जिस की बिक्री का आंकड़ा एक लाख प्रतियां छूने को है. शांतनु तो योगी के तुलसीदास हो गए हैं, इसलिए उन पर धनवर्षा भी खूब हो रही है. अब यह और बात है कि किताब में हकीकत कम यूपी के विकास की फांकालौजी ज्यादा है.

योगीराज के विकास का सच देखने के लिए लेखक को वाराणसी जरूर जाना चाहिए था, जहां तंग, बदबूदार गलियों में देशभर के श्रद्धालु धक्के खाते सोचते जरूर हैं कि यहां का ट्रैफिक और ठगी तो भगवान शंकर से भी कंट्रोल न हो पाएगा.

एक विधायक का तलाक

?ारखंड के पितृ पुरुष कहे जाने वाले बुजुर्ग शिबू सोरेन के पास नहीं है तो टीवी के परदे पर आधी रात को बिकने वाला गृहशांति नाम का चमत्कारी सिद्ध यंत्र, जिस को घर में टांगते ही सदस्यों की बुद्धि घूम जाती है और वे आपस में प्रेमभाव से रहने लगते हैं.

सोरेन परिवार में गृहक्लेश बढ़ रहा है. इस पर किसी ऊपरी हवा का प्रभाव है या नहीं, यह कोई ज्ञानी गुनिया ही बता सकता है जो ?ारखंड के गलीकूचों में पोर्टेबल तंबू गाड़े अपना धंधा चला और चमका रहा हो.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के छोटे विधायक भाई, युवा, वसंत सोरेन ने 9 मार्च को अपनी पत्नी हेमलता पर क्रूरता का आरोप मढ़ते तलाक की अर्जी दायर कर दी है. अदालत में बैठा जज अच्छा हुआ तो तलाक शांति से संपन्न हो जाएगा, नहीं तो वसंत और हेमलता सालों तक अदालत व वकीलों के चक्कर काटते रहेंगे. मुमकिन है इस परेशानी से बचने के लिए वे किसी सुलह विशेषज्ञ बंगाली बाबा की शरण में जाते दिखें जो चुटकियों में पतिपत्नी का मिलाप करवाने की गारंटी लेता हो.

व्यर्थ गया दान

पंजाब में कांग्रेस तो मुंह दिखाने लायक भी नहीं रही लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह तो मुंह छिपाने लायक भी नहीं रहे जिन्हें अपनी ही पटियाला सीट पर ‘आप’ के उम्मीदवार अजीतपाल सिंह कोहली ने 20 हजार वोटों की ऐसी पटखनी दी है कि अब कभी वे राजनीति की बात नहीं करेंगे. और तो और, अपने मुख्यमंत्रित्व काल की उपलब्धियां, संस्मरण और गांधी परिवार से दोस्ती के अंतरंग किस्से भी सा?ा नहीं करेंगे.

अपनी जीत को ले कर अंधविश्वासी हो गए आशंकित अमरिंदर ने, बतौर टोटका, भैंस का बच्चा समारोहपूर्वक दान किया था, जिस से शनि की शांति हो. शनि महाराज अच्छे मूड में नहीं थे तो कुपित हो कर उन्होंने अपने खरबपति यजमान की वाट लगा दी.

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