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Yeh Rishta Kya Kehlata Hai के पार्थ ने की शादी, जमकर नाचे अक्षरा और अभिमन्यु

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के पार्थ बिरला यानी नीरज गोस्वामी (Neeraj Goswami)  ने शादी रचाई. जी हां, पार्थ की शादी की फोटोज और वीडियोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

नीरज गोस्वामी की शादी में अक्षरा और अभिमन्यु यानी हर्षद चोपड़ा (Harshad Chopda) और प्रणाली राठौड़ (Pranali Rathod) और सहित कई सितारे शामिल हुए. इन सितारों ने पार्थ की शादी में जमकर डांस किया.

 

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नीरज गोस्वामी की बारात से जुड़ा एक वीडियो सुर्खियों में छाये हुए है.  इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि प्रणाली राठौड़, हर्षद चोपड़ा और प्रेयल शाह जमकर डांस करते दिखाई दे रहे हैं.

 

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प्रणाली राठौड़ ने नीरज गोस्वामी की शादी से जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया, जिसमें वह निहारिका चौकसे और बाकी कास्ट के साथ मस्ती करती नजर आई.

 

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करिश्मा सावंत ने भी  पार्थ की शादी शामिल हुईं, उन्होंने इससे जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयरकिया है, जिसमें उनका लुक देखने लायक है. उनके इस वीडियो को लेकर फैंस भी उनकी तारीफें करते नहीं थक रहे हैं.

 

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. अभिमन्यु अपनी मां मंजरी और हर्ष का तलाक करवाने का फैसला लेता है. तो दूसरी तरफ अक्षरा उसका साथ नहीं देती है.

 

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ज्ञानवापी विवाद: एक नए फसाद की शुरुआत

ज्ञानवापी विवाद के भड़कने से न सिर्फ इस कानून के सामने चुनौती खड़ी हुई है बल्कि बचेकुचे सांप्रदायिक सौहार्द के गहरे पतन में चले जाने की आशंका बढ़ गई है. जब अयोध्या मंदिर प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और उस को शांति के साथ देश के लोगों ने स्वीकार कर लिया तब यह उम्मीद जग गई कि अब मंदिरमसजिद को ले कर कोई पुराना विवाद नहीं उभरेगा. देश की धर्मनिरपेक्षता बची रहेगी. यहां का भाईचारा और गंगाजमुनी तहजीब बची रहेगी. इस बात का डर था कि समान नागरिक संहिता कानून की बात से विवाद बढ़ता दिख रहा था लेकिन उस मुददे में मंदिरमसजिद विवाद जैसी तासीर नहीं थी. मंदिरमसजिद विवादों को रोकने के लिए ही 1991 में धर्मस्थल विधेयक बनाया गया था जिस में कहा गया था कि 1947 में जिस धर्मस्थल की जैसी स्थिति थी वैसी ही आगे बनी रहेगी. ऐसे में देश अयोध्या के बाद किसी और मंदिरमसजिद विवाद में नहीं पड़ेगा.

राजनीति सत्ता की कुरसी हासिल करने का एक तरह का युद्ध है. जैसे कौरवों को सत्ता से हटाने के लिए पांडवों ने महाभारत की उसी तरह से एक पार्टी को सत्ता से हटाने के लिए दूसरी पार्टी साम, दाम, दंड और भेद का प्रयोग करती है. देश का संविधान कहता है कि राजनीति में धर्म का प्रयोग नहीं होना चाहिए लेकिन पूरे देश में धड़ल्ले से चुनाव जीतने के लिए धर्म का प्रयोग किया जाता है. अयोध्या का मंदिर विवाद एक ऐसा मुद्दा था जिस ने भारतीय जनता पार्टी के लिए सत्ता की सीढ़ी बनने का काम किया. यह बात और है कि अयोध्या ही नहीं, पूरे देश ने इस मुददे के कारण बहुत नुकसान झेला.

अयोध्या मुददे से अशांत हुआ देश का माहौल

1990 के पहले अयोध्या बहुत शांत शहर था. देशविदेश के लोग आते थे. अयोध्या के तमाम मंदिरों के साथ ही साथ राममंदिर के दर्शन करते थे. अयोध्या के प्रमुख मंदिरों में भंडारे चलते रहते थे, जहां बाहर से आने वालों को मुफ्त में खाना दिया जाता था. रैस्तरां और खाने के होटल व दुकानें बहुत कम थीं.

राममंदिर बनाने के लिए 1990 में कारसेवा आंदोलन विश्व हिंदू परिषद द्वारा शुरू किया गया. हजारों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों को मंदिर पहुंचने से रोकने के लिए उस समय की मुलायम सरकार ने गोली चलवा दी, जिस के कारण दर्जनों कारसेवक मारे गए. अयोध्या की इस घटना ने पूरे देश के शांत माहौल मे ककंड़ मारने का काम किया. पूरे देश में उथलपुथल मच गई.

कश्मीर से ले कर देश के दूसरे हिस्सों में आतंकवाद का माहौल बन गया. हिंदू और मुसलमानों के बीच आपसी भरोसा तो टूटा ही, अयोध्या में दर्शन के लिए आने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आ गई. 1990 के बाद हर साल कारसेवा आंदोलन होने लगा. धर्म की नगरी अयोध्या पुलिस की छावनी में बदल गई. यहां आने वालों की चैकिंग होने लगी. भीड़ को रोकने के लिए अयोध्या से 10 किलोमीटर पहले ही गाड़ियों को रोका जाने लगा. पैदल लोगों को जाने दिया जाता था. अयोध्या और मंदिर परिसर के पास रहने वाले किसी के घर में कोई मेहमान आता था तो उसे पुलिस में सूचना देनी होती थी. कब से कब तक मेहमान रहा, बताना पड़ता था. घर आतेजाते सुरक्षा जांच और तलाशी देनी पड़ती थी.

बहुत सारी सुरक्षा के बाद भी 1992 में अयोध्या में बाबरी मसजिद का विवादित ढांचा ढहा दिया गया. इस के बाद पूरे देश में तनाव फैल गया. मुंबई जैसे कई शहरों में बम विस्फोट हो गए. इस के कारण ही गुजरात में दंगे हुए. पूरा देश अशांत हो गया. अयोध्या के गुलजार रहने वाले मंदिरों में सन्नाटा छा गया. दर्शन करने आने वालों की संख्या में कमी आने लगी. जो मंदिर पहले भंडारे चलाते थे वहां भुखमरी की हालत आ गई. मंदिरमंदिर में मालिकाना हक को ले कर झगड़े होने लगे. अयोध्या में रहने वालों के कारोबार बंद होने लगे. लोगों का पलायन होने लगा. मंदिर परिसर से लगे घरों की मरम्मत तक कराने के लिए सरकार की इजाजत लेनी पड़ती थी. हर तरफ पुलिस ही पुलिस दिखने लगी थी.

अयोध्या में प्रवेश करते ही जांच कराते समय लगता था जैसे हम किसी और देश की सीमा को पार कर रहे हों. इन हालात हो बदलने में 24 साल का समय लग गया. बाबरी मसजिद को ले कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी ने सम्मान किया. अशांति भले खत्म हो गई पर हिंदूमुसलमानों के बीच जो दूरियां बढीं वे कम नहीं हुईं.

ऐसे में अयोध्या के बाद वाराणसी की ज्ञानवापी मसजिद का झगड़ा सामने आ गया है. वाराणसी के साथ ही साथ पूरे देश में चर्चा का सब से बड़ा बिंदु ‘ज्ञानवापी विवाद’ हो गया है. पूरा विवाद जिला अदालत से ले कर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में एकसाथ चलने लगा है. रोज नए फैसले आने लगे हैं.

‘ज्ञानवापी विवाद’ से 1990 जैसी हालत

‘ज्ञानवापी विवाद’ की शुरुआत श्रंगार गौरी में पूजा अर्चना के अधिकार को ले कर हुई. इस के बाद कोर्ट ने वहां कमीशन नियुक्त कर दिया. जिसे यह बताना था कि ज्ञानवापी मसजिद में क्या हिंदू देवीदेवताओं और मंदिरों के निशान हैं? कोर्ट के इस आदेश के बाद ज्ञानवापी मसजिद पूरे देश में चर्चा का विषय हो गया.

ज्ञानवापी मसजिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से हुआ सटी हुई है. इस मसजिद को ले कर विवाद है. एक पक्ष का दावा है कि मंदिर तोड़ कर यह मसजिद बनाई गई थी. इस का एक मुकदमा 1991 में जिला अदालत में लंबित है.

अगस्त 2021 में दिल्ली की रहने वाली 5 महिलाओं की तरफ से जिला अदालत में दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई है. इस मुकदमे को राखी सिंह समेत 5 अन्य बनाम स्टेट औफ यूपी के नाम से जाना जाता है. याचिका में कहा गया कि परिसर में श्रृंगार गौरी की प्रतिमा साल में एक दिन दर्शनपूजन के लिए खुलती है लेकिन हम चाहते हैं कि श्रृंगार गौरी और अन्य की नियमित पूजापाठ की अनुमति दी जाए. यह मांग भी की गई कि अदालत कोर्ट कमिश्नर की नियुक्ति करे, जो इन सभी देवीदेवताओं की मूर्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. तर्क दिया गया था कि जिस स्थल को एक पक्ष मसजिद बता रहा है दरअसल वह मसजिद है ही नहीं, औरंगजेब ने मंदिर को तोड़ कर मसजिद का निर्माण कराया.

इस याचिका में अंजुमन इंतजामिया मसजिद को प्रतिवादी बनाया गया, जो मसजिद की देखभाल करती है. मसजिद पक्ष का दावा है कि मंदिर तोड़ कर मसजिद नहीं बनवाई गई बल्कि अकबर ने अपने दीन ए इलाही धर्म के तहत मंदिर और मसजिद का निर्माण कराया था. ऐसे में यह कहना गलत होगा कि मंदिर को तोड़ कर मसजिद बनाई गई.

इधर, लोअर कोर्ट का इस याचिका पर मिलाजुला ऐसा फैसला आया जो दोनों पक्षों को स्वीकार नहीं हुआ. दोनों पक्ष हाईकोर्ट चले गए और फिर हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. इस के बाद यह मुकदमा बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा था. इस मुकदमे में भी उसी तरह से बहुत सारे पेंच हैं, जैसे अयोध्या मामले में थे.

8 अप्रैल को निचली अदालत ने स्थानीय वकील अजय कुमार को कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करते हुए परिसर का निरीक्षण करने और निरीक्षण की वीडियोग्राफी करने का आदेश दिया. अंजुमन इंतजामिया मसजिद के प्रबंधन ने कमिश्नर की नियुक्ति और निरीक्षण को हाईकोर्ट में चुनौती दी. कहा गया कि किसी पक्षकार को सुबूत इकट्ठा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. इस बात को ले कर आपत्ति दर्ज कराई गई कि जो अजय कुमार कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए गए हैं वे याचिकाकर्ताओं की पसंद पर किए गए हैं. हाईकोर्ट ने मसजिद प्रबंधन की दलीलों को खारिज करते हुए एडवोकेट कमिश्नर को मौजूदा सुबूत को सुरक्षित करने की पूरी छूट दी और कहा कि अगर मसजिद प्रबंधन को कमिश्नर की रिपोर्ट पर कोई आपत्ति होती है तो वे उसे कानूनी चुनौती दे सकते हैं.

इस के बाद निचली अदालत ने ईद के बाद सर्वे पूरा करने को कहा था. सर्वे के दौरान ही यह खबर फैल गई कि ज्ञानवापी मसजिद परिसर में शिवलिंग मिला है. दूसरे पक्ष ने इसे मसजिद के वजूखाने में प्रयोग होने वाला फव्वारा बताया. पूरे देश में ‘शिवलिंग बनाम फव्वारा’ को ले कर बहस तेज हो गई. सोशल मीडिया के जमाने में सच और झूठ को पहचान पाना बेहद मुशकिल हो गया है. ऐसे में देश को अशांत करने का एक नया हथियार मिल गया है.

धर्म और राजनीति

अयोध्या की तरह अब वाराणसी धर्म और राजनीति रण बन रहा है. ‘अयोध्या केवल झांकी है काशी, मथुरा बाकी हैं’ का नारा पहले से ही भाजपाई हिंदुवादियों के जबान पर था. इस नारे के पीछे ही पूरे विवाद की कहानी छिपी है.

धर्म की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि अयोध्या के बाद काशी का ज्ञानवापी विवाद और मथुरा का कृष्ण जन्मभूमि विवाद उस के लिए लाभकारी होगा. इस के सहारे हिंदुत्व को एक तरफ रखा जा सकेगा और इस से मुसलमानों की बात करने वाले राजनीतिक दल कमजोर पड़ कर मुकाबले से बाहर हो जाएंगे. वर्ष 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में यह बात सफल होती दिखी. भाजपा द्वारा योगी आदित्यनाथ के रूप में उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री संत समाज से दे कर हिंदुत्व की छवि को और मजबूत किया गया.

इस के बाद चुनाव दर चुनाव जीतने के लिए धर्म की राजनीति को महत्त्व दिया जा रहा है. अयोध्या में मंदिर बनाने को ले कर कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा अब काशी और मथुरा मुददों को गरम देखना चाहती है. भले ही उस की सामने से कोई भूमिका न दिख रही हो लेकिन अयोध्या के बाद काशी और मथुरा उस की योजना का हिस्सा हैं.

यह बात अयोध्या आंदोलन के समय ही तय हो चुकी थी. इस से देश को कितना नुकसान होगा, यह बात भाजपा को पता है, लेकिन उसे इस की परवा नहीं. वह चुनावी राजनीति में मुसलमानों की संख्या और हैसियत को नगण्य करने की योजना में है. यही कारण है जिस की वजह से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में ‘80 बनाम 20’ की बात की गई थी.

धर्मस्थल कानून

अयोध्या आंदोलन को हवा देने वाले लोग जिस समय ‘अयोध्या केवल झांकी है, काशी मथुरा बाकी हैं’ का नारा दे रहे थे उस समय की केंद्र सरकार को इस बात का आभास था कि देश में एक के बाद एक मसजिदमंदिर विवाद खड़े हो सकते हैं. ऐसे में 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने ‘प्लेस औफ वर्शिप एक्ट’ यानी ‘पूजा स्थल कानून 1991’ बनाया.

इसे 1991 में लागू किया गया. यह कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजास्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजास्थल में नहीं बदला जा सकता. यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और 3 साल तक की जेल भी हो सकती है.

प्लेस औफ वर्शिप एक्ट की धारा-2 कहती है कि 15 अगस्त, 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पैंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा. प्लेस औफ वर्शिप एक्ट की धारा-3 के अनुसार किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है. इस के साथ ही यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में न बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी न बदला जाए.

प्लेस औफ वर्शिप एक्ट की धारा-4 (1) कहती है कि 15 अगस्त, 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही बरकरार रखा जाएगा. प्लेस औफ वर्शिप एक्ट की धारा-4 (2) के अनुसार, यह कानून उन मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने की बात करता है जो प्लेस औफ वर्शिप एक्ट के लागू होने की तारीख पर पेंडिंग थे. प्लेस औफ वर्शिप एक्ट की धारा-5 में प्रावधान है कि यह एक्ट रामजन्मभूमि-बाबरी मसजिद मामले और इस से संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं करेगा. ज्ञानवापी विवाद में इस कानून की परीक्षा होनी है. अभी तक जिस तरह से कोर्ट ने ज्ञानवापी विवाद में पूजा स्थल कानून का मान रखा है उस से ज्ञानवापी का पक्ष संतुष्ट नहीं है.

मनुवादी की बढती धमक

दूसरी तरफ हिंदू पक्ष इस पूजा स्थल कानून से खुश नहीं है. वह इसे खत्म करने की मांग कर रहा है. ज्ञानवापी विवाद को अगर पूजा स्थल कानून के कारण खत्म मान लिया जाएगा तो मथुरा का मंदिरमसजिद विवाद भी खत्म समझा जा सकता है, लेकिन अगर पूजा स्थल कानून की किसी खामी को आधार बना कर ज्ञानवापी विवाद में कोई फैसला आया तो यह पक्का है कि मथुरा विवाद भी तेजी पकड़ेगा. उस को भी हवा मिल जाएगी. यही नहीं, पूरे देश में तमाम जगहों से मसजिद और पूजा स्थल विवाद शुरू हो जाएंगे, जिन का कोई अंत नहीं दिखेगा. इस बहस से देश को क्या हासिल होगा?

असल में हिंदुत्व की राजनीति करने वाले लोग एक नए किस्म का देश बनाना चाहते हैं, जिस में मनुवादी वर्णव्यवस्था को कायम करने का काम किया जाएगा. जिस में ऊंचीनीची जातियों की औरतों, ओबीसी और एससी वर्ग के लोगों को धर्म और मंदिर का नशा दे कर चुप रखा जा सके.

इस का नुकसान मुसलमानों को तो होगा ही, उस से ज्यादा नुकसान हिंदू जाति के दलित और पिछड़ों को होगा. राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यह बात साफ दिखती है. वर्ष 1989 में जब मंडल कमीशन लागू हुआ तो अयोध्या आंदोलन के रूप में कमंडल को आगे किया गया. ऐसे में दलितपिछड़ों की राजनीति को दरकिनार कर दिया गया. धीरेधीरे उत्तर प्रदेश में दलितपिछड़ों की अगुआई करने वाली बसपा और सपा हाशिए पर चली गईं. अयोध्या के बाद काशी और मथुरा इस के नए साधन बनेंगे.

वो क्या जाने पीर पराई- भाग 3: हेमंत की मृत्यु के बाद विभा के साथ क्या हुआ?

वह एकटक मु?ो देखती रही. पता नहीं मैं ने किस भाव में आ कर यह सब कह दिया. उस के चेहरे पर कई भाव आतेजाते रहे. फिर मैं दृढ़ता से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘ले, अब चाबियां संभाल और कार निकाल. स्कूल के लिए देर हो रही है. मैं तेरे साथ चलती हूं.’’

‘‘आंटी, मम्मी को कार चलानी नहीं आती,’’ उस का बेटा रोंआसा सा बोला.

‘‘क्यों?’’ मैं ने ममता की ओर देखते हुए कहा, ‘‘पिछली बार तो तू कार चलाना सीख रही थी?’’

‘‘हां,’’ वह बोली, ‘‘मैं चला भी लेती परंतु एक दिन साइकिल वाला सामने आ गया. फिर दोबारा हिम्मत नहीं हुई. मैं ने हेमंत से कहा भी था कि मु?ो क्या जरूरत है, तुम साथ में हो तो तुम्हीं तो चलाओगे न, मु?ो क्या पता कि…’’ कहतेकहते ममता का कंठ अवरुद्ध हो गया.

मु?ा से कुछ और कहते न बना.

अपने चेहरे के हर भाव मैं ने

दूसरी तरफ मुंह फेर कर छिपा लिए और ?ाट से चाबियां ले कर कार में बैठ गई.

विमल के लगातार फोन आते रहे. बच्चे भी मु?ो मिस करने लगे. यहां ममता को इस तरह अचानक छोड़ कर जाने का मन ही नहीं हुआ. मेरा तो भरापूरा परिवार था, पर अब यहां इस का कौन था? जिस घोंसले की सब से बड़ी चिडि़या ही फुर्र से उड़ जाए उस नीड़ का नष्ट हो जाना तो लगभग तय है.

डाक से एक दिन अपोलो टायर्स में जमा की गई 20 हजार रुपए की एफडी की रसीद आई. मैं ने ममता से इस बारे में पूछा तो वह अनजान सी बनी रही. बस, मेरे हाथ में मोटी सी एक फाइल पकड़ा कर किचन में चली गई.

मैं ने सारे पेपर एकएक कर के छान डाले परंतु उस एफडी का पता न चल सका. मैं ने थोड़ी नाराजगीभरे स्वर में कहा कि यह सब तो उसे पता होना ही चाहिए था. बैंकों के अकाउंट्स, उन में नौमिनेशन फैसिलिटी, सारे शेयर और एफडी की पूरी जानकारी और सब से जरूरी यह कि किस से कितना पैसा लिया और दिया है.

फिर सारा दिन उस के साथ बैठ कर मैं ने सभी कागज क्रम में लगाए और जितनी जानकारी मु?ो थी, मैं सब सम?ाती रही. अब प्रतीत हो रहा था कि विमल मु?ो सारी बातें समयसमय पर क्यों सम?ाते रहते थे.

‘‘हेमंत तो कंप्यूटर का कीड़ा था,’’ मैं ने कहा था, ‘‘फिर तुम ने उस से यह सब क्यों नहीं सीखा?’’

‘‘सीखती क्या?’’ वह बहुत ही मासूमियत से बोली, ‘‘आते ही कंप्यूटर पर जुट जाते. सबकुछ तो उन्हें टेबल पर ही चाहिए था. वे बारबार मु?ो भी कंप्यूटर सीखने पर जोर देते रहते कि घर बैठीबैठी बोर होती रहती हो, सीख जाओगी तो तुम्हारे ही काम आएगा, पर मैं ही हमेशा टालती रही. मु?ो भला कंप्यूटर सीख कर क्या करना था. कंप्यूटर वाला ही एक दिन छिन जाएगा, ऐसा क्या कोई पहले से पता था.’’

मेरा दिल भर आया. न गुस्सा करते ही बना, न सम?ाते ही. मु?ो लगा किसी बड़ी, मोटी मछली का कांटा गले में अटक कर रह गया हो.

विमल को एक दिन मैं ने बुला लिया. इंश्योरैंस और बैंकों का काम करना, सारे खाते बंद करवाना. अब भागदौड़ का काम था, जो मेरे बूते से बाहर था. इस भागदौड़ में विमल ही ठीक से काम करवा सकते थे. उन सब की औपचारिकताएं इतनी लंबी थीं कि सारा दिन घर छोड़ कर चक्कर लगाना हमारे लिए संभव नहीं था.

घर के बाहर वाला कमरा हमेशा हेमंत के छात्रों से भरा रहता था. अब उस वीरान कमरे में जाने से भी डर लगने लगा. कमरे में एक कोने में लगे उस के फोटो पर हार देख कर तो दिल और भी छोटा हो जाता. हेमंत की छवि चलचित्र की तरह कई बार मेरी आंखों के सामने तैरती रहती.

एक दोपहर बच्चों को पढ़ाते हुए मैं ने ममता से कहा, ‘‘क्यों नहीं यही काम तू कर लेती?’’ मैं ने उस का हाथ पकड़ते हुए सम?ाया, ‘‘8वीं, 10वीं को तो तू पढ़ा ही सकती है. तेरी पोस्ट ग्रेजुएशन भला कब काम आएगी. तेरे बच्चे भी तेरे पास रहेंगे और घर भी संभला रहेगा.’’

यह सुन कर ममता के चेहरे पर थोड़ी चमक उभरी, उस के चेहरे पर चमक देख कर मु?ो थोड़ी राहत सी मिली. उस की आंखों में पहली बार मैं ने चमक देखी.

‘‘यही शायद ठीक रहेगा,’’ वह मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कातर स्वर में बोली, ‘‘जाने से पहले मेरा यह काम भी करती जा न, कैसेकैसे सब करना होगा.’’

‘‘अच्छा, विमल तु?ो आते ही सब सम?ा देंगे. थोड़ाबहुत पढ़ाने का अनुभव तो उन को भी है. मैं ने कभी बच्चों को पढ़ाया नहीं,’’ मैं ने सांत्वना देते हुए कहा.

रविवार को उस के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे. सवेरे से ही दोनों बच्चों की आंखों में सैलाब सा उमड़ आया था. बारबार मु?ा से आ कर लिपट जाते. मेरे और विमल की अटैची के इर्दगिर्द रहते. उन का दिल छोटा होता गया.

मैं क्या कहती? इतनी घुटन जीवन में कभी देखी, सही न थी. जाना भी मेरी मजबूरी थी. मु?ा से लिपट कर बोली, ‘‘दीदी, सहानुभूति और सांत्वना के दो शब्द सुनने में तो बहुत अच्छे लगते हैं, पर उन पर अमल करना बहुत कठिन है. सब एकएक कर के आते रहे. किसी ने मन से, किसी ने अनमने भाव से इन शब्दों का प्रयोग किया. मैं भला स्वयं असहाय किसी से क्या कहती, जो कहा लोगों ने ही कहा.’’

‘‘मृत्यु से कहीं ज्यादा त्रासदी पीछे रह कर ?ोलना होता है. तुम ने एकएक कर के मु?ो इन सब से उबारा. मेरा जीवन फिर एक लय में लगाया. तुम्हारे आने से मेरी दुखी भावनाओं को सचमुच बहुत राहत मिली. मैं सचमुच तुम्हें मिस करूंगी,’’ जाते वक्त वह मेरे पांवों की तरफ ?ाकने लगी तो मैं ?ाट से अपने रुके हुए आंसुओं को संभालते हुए बोली, ‘‘तुम मु?ो छोड़ने न आना, नहीं तो मैं रो पड़ूंगी और मैं औटोरिकशा में बैठ गई.’’

आम से अच्छी फलत के लिए कीटों और रोगों का नियंत्रण जरूरी

शैलेंद्र सिंह, एसके तोमर, एसके सिंह, एसपी सिंह, प्रेमशंकर, कंचन

कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर

इस समय आम की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले प्रमुख कीट जैसे भुनगा, गुजिया व पुष्पगुच्छ (गाल मिज) कीट हैं. आम के भुनगा कीट व गुजिया कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों पत्तियों व फूलों का रस चूसते हैं, जिस के प्रभाव से फूल सूख कर गिर जाते हैं. ये कीट एक प्रकार का मीठा रस (लसलसा द्रव) छोड़ते हैं, जो पेड़ों, पत्तियों, प्ररोहों, फूलों आदि पर लग जाता है. इस मीठे द्रव्य के ऊपर काली फफूंद (सूटीमोल्ड) उगती है, जो पत्तियों पर काली परत जमा कर प्रकाश संश्लेषण पर बुरा असर डालती है. गालमिज कीट से प्रभावित बौर टेढ़े हो जाते हैं व काले धब्बे दिखाई पड़ते हैं. इस का प्रकोप छोटेछोटे फलों पर भी होता है.

इस की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर मात्रा प्रति 15 लिटर पानी की दर से 2 छिड़काव, एक फूल आने से पहले और दूसरा फल के मटर के दाने के बराबर होने पर करना चाहिए. तीसरा छिड़काव जरूरत के मुताबिक करें. कार्बोसल्फान 25 फीसदी ईसी की 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी अथवा लैम्ब्डासाईंहैलोथ्रिन 5 फीसदी ईसी 1 मिलीलिटर प्रति डेढ़ लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

इस समय गुजिया कीट का प्रकोप दिखाई दे रहा है. यह सफेद रंग का कीट है, जिस की मादा कीट भूमि में अंडे देती है. इस के बच्चे पेड़ पर चढ़ कर हानि पहुंचाते हैं. इस कीट के शिशु और प्रौढ़ कोमल शाखाओं, टहनियों और फूलों के डंठलों से रस चूसते हैं. इस के अधिक प्रकोप से फल गिर जाते हैं.

इस की रोकथाम के लिए 20-25 सैंटीमीटर चौड़ा व 400 गेज मोटी पौलीथिन शीट पौधों के तने पर जमीन की सतह से 30 सैंटीमीटर ऊपर लपेट कर उस के दोनों सिरों को रस्सी से बांध देना चाहिए.

पौलीथिन पट्टी लपेटने के पहले तने पर मिट्टी का लेप लगाना चाहिए. रस्सी से बांधने के बाद निचले सिरे को अच्छी तरह ग्रीस लगा कर बंद कर देना चाहिए. इस से प्रकोप कम हो जाता है.

अगर कीट का प्रकोप हो चुका है, तो कार्बोसल्फान 25 फीसदी ईसी की दर से 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी अथवा लैम्ब्डासाईंहैलोथ्रिन 5 फीसदी ईसी 1 मिलीलिटर प्रति डेढ़ लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

गाल मिज कीट के नियंत्रण के लिए स्पाईनोसेड 45 फीसदी एसपी 1 मिलीलिटर प्रति 2-3 लिटर पानी अथवा थायोमेंथोक्साम

25 फीसदी डब्लूजी 1 ग्राम  प्रति 3-4 लिटर पानी की दर से 2 छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए.

इस समय आम की फसल में लगने वाले रोगों में खर्रा या दहिया, ऐंथ्रेक्नोज, गुम्मा व कोयलिया प्रमुख हैं. दहिया रोग का प्रकोप पत्तियों, पुष्पक्रम (बौर) व फलों पर होता है. इन भागों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है. इस से प्रभावित भाग सूख जाता है.

दहिया रोग के नियंत्रण के लिए विलयनशील गंधक (2 ग्राम प्रति लिटर पानी में) से प्रथम छिड़काव बौर निकलने के तुरंत बाद करना चाहिए. दूसरा छिड़काव 10-15 दिनों बाद ट्राईडेमेफौन (1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में) का करना चाहिए.

तीसरा छिड़काव जरूरत के मुताबिक दूसरे छिड़काव के 10-15 दिनों बाद पेंकानजोल 10 फीसदी ईसी 1 मिलीलिटर प्रति 2 लिटर पानी अथवा ट्राईडेमेफौन (1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में) का करना चाहिए.

एंथ्रेक्नोज रोग के लक्षण पत्तियों व बौर पर गोल, भूरे धब्बे, फूलों का मुरझाना, टहनियों का सूखना आदि के रूप में प्रकट होते हैं. इस के नियंत्रण के लिए बौर पर कार्बेंडाजिम (1 ग्राम प्रति लिटर पानी में) का छिड़काव करना चाहिए.

गुम्मा रोग के विकार से ग्रस्त आम के बौर में फल नहीं बनते हैं. बौर फूलों के हरे घने गुच्छे के रूप में दिखाई देते हैं, जो पेड़ों पर काफी लंबे समय तक लगा रहता है.

इस के नियंत्रण के लिए प्रभावित बौर को तोड़ कर नष्ट कर दें और प्लैनोफिक्स की

1 मिलीलिटर की मात्रा 2-3 लिटर पानी की दर से ?ि??छड़काव करें.

कोयलिया रोग से बचाव के लिए बौर में

फल लगने के बाद बोरैक्स या कास्टिक सोडा (10 ग्राम प्रति लिटर पानी में) का प्रथम छिड़काव और 15 दिनों बाद दूसरा छिड़काव करना चाहिए.

बौर में फल बैठने के बाद मटर/कंचे आकार के फल भारी मात्रा में गिरते हैं. इस

की रोकथाम के लिए प्लैनोफिक्स का

1 मिलीलिटर प्रति 2-3 लिटर पानी की दर से छिड़काव फलों के मटर के बराबर होने की अवस्था में करना चाहिए.

आम के पौधों को सूखने से बचाव के लिए पौधे की जड़ के पास चारों तरफ 2 मीटर तक अच्छी तरह गुड़ाई करें व हलकी सिंचाई कर दें, उस के बाद उस में कार्बेंडाजिम की 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर भूमि को शोधित कर दें. उस के बाद उस में ट्राइकोडर्मायुक्त सड़ी गोबर की खाद मिलाएं.

आम की जो टहनियां ऊपर से सूखती हुई नीचे की तरफ आ रही हों, ऐसे लक्षण दिखने पर रोगग्रस्त भाग से 7-10 सैंटीमीटर नीचे से कटाई के बाद कौपरऔक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्लूपी 3 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

आम के पौधों में गोंद नियंत्रण के लिए

10 साल के पेड़ के थाले में 250 ग्राम कौपर सल्फेट, 250 ग्राम जिंक सल्फेट, 125 ग्राम बोरैक्स, 100 ग्राम बुझा हुआ चूना मिट्टी में अच्छी तरह मिला कर सिंचाई कर दें.

जहां तक संभव हो, तने के गोंद को जूट के बोरे से रगड़ कर साफ करने के बाद कौपरऔक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्लूपी 3 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें. ध्यान रहे कि आम के बौर में जब फूल खिल रहे हों, तो उस समय किसान कीटनाशकों का छिड़काव न करें.

इन बताए गए तरीकों से अगर किसान आम के बगीचे में कीट व रोग नियंत्रण का काम करते हैं, तो आम की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.

अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वैज्ञानिकों से मोबाइल नंबर 9795160389 पर संपर्क करें. ठ्ठ

कोविड 19 से लड़ने के लिए शहतूत का सेवन करें

शहतूत में प्रोटीन और विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन सी भरपूर होता है. यह कैल्शियम, आयरन, फोलेट, थायमिन, नियासिन का स्रोत है. इस का उपयोग कई बीमारियों और त्वचा की देखभाल सामग्री के उपचार में किया जाता है. शहतूत जो कैंसर को रोकने और सामान्य स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए अधिक जाना जाता है, इसलिए इस के लाभ दिनप्रतिदिन बढ़ रहे हैं. शहतूत में मौजूद विटामिन तत्त्व और खनिज लवण व्यापक स्तर पर अंगों द्वारा आवश्यक सभी पोषक तत्त्वों को कवर करते हैं

शहतूत 2 प्रकार के पाए जाते हैं, एक काला और दूसरा हरा. हरे शहतूत के फायदों में हड्डियों को मजबूत करना, दिल की सुरक्षा करना और मूत्रवर्धक प्रभाव शामिल है. यह बहुत पौष्टिक भी होता है. यह एंटीऔक्सीडैंट का एक अच्छा स्रोत है. शहतूत का शरबत बना कर भी इस्तेमाल किया जाता है.

प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करता है शहतूत

शहतूत में एल्कलाइड होते हैं, जो मैक्रोफेज को सक्रिय करते हैं. मैक्रोफेज श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर उन्हें स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करती हैं.

दिल के लिए शहतूत के सेवन से एचडीएल (अच्छा कोलैस्ट्रोल) बढ़ता है और कुल कोलैस्ट्रोल कम होता है. इस प्रकार यह एथोस्क्लेरोसिस यानी दिल का दौरा, स्ट्रोक और कोरोनरी हार्ट रोग के जोखिम को कम करता है.

कैंसर के खतरे को कम करता है

यह एंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होता है और इस में वे पोषक तत्त्व होते हैं, जो ट्यूमर के विकास को रोकने और फैलने व कैंसर से बचाने में मदद करते हैं. शहतूत में एंथोसाइएनिन से भरा होता?है, जो कैंसर कोशिकाओं को दूर रखने में मदद करता है. इस में एंटी कैंसर गुण होते हैं, इसलिए स्वस्थ रहने के लिए शहतूत का सेवन अवश्य करना चाहिए.

रिटर्न गिफ्ट- भाग 1: अंकिता को बर्थडे पर क्या गिफ्ट मिला

मैं  कालिज से 4 बजे के करीब बाहर आई तो शिखा और उस के पापा राकेशजी को अपने इंतजार में गेट के पास खड़ा पाया.

‘‘हैप्पी बर्थ डे, अंकिता,’’ शिखा यह कहती हुई भाग कर मेरे पास आई और गले से लग गई.

‘‘थैंक यू. मैं तो सोच रही थी कि शायद तुम्हें याद नहीं रहा मेरा जन्मदिन,’’ उस के हाथ से फूलों का गुलदस्ता लेते हुए मैं बहुत खुश हो गई.

‘‘मैं तो सचमुच भूल गई थी, पर पापा को तेरा जन्मदिन याद रहा.’’

‘‘पगली,’’ मैं ने नाराज होने का अभिनय किया और फिर हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़े.

राकेशजी से मुझे जन्मदिन की शुभकामनाओं के साथ मेरी मनपसंद चौकलेट का डब्बा भी मिला तो मैं किसी छोटी बच्ची की तरह तालियां बजाने से खुद को रोक नहीं पाई.

‘‘थैंक यू, सर. आप को कैसे पता लगा कि चौकलेट मेरी सब से बड़ी कमजोरी है? क्या मम्मी ने बताया?’’ मैं ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘नहीं,’’ उन्होंने मेरे बैठने के लिए कार का पिछला दरवाजा खोल दिया.

‘‘फिर किस ने बताया?’’

‘‘अरे, मेरे पास ढंग से काम करने वाले 2 कान हैं और पिछले 1 महीने में तुम्हारे मुंह से ‘आई लव चौकलेट्स’ मैं कम से कम 10 बार तो जरूर ही सुन चुका हूंगा.’’

‘‘क्या मैं डब्बा खोल लूं?’’ कार में बैठते ही मैं डब्बे की पैकिंग चैक करने लगी.

‘‘अभी रहने दो, अंकिता. इसे सब के सामने ही खोलना.’’

शिखा का यह जवाब सुन कर मैं चौंक पड़ी.

‘‘किन सब के सामने?’’ मैं ने यह सवाल उन दोनों से कई बार पूछा पर उन की मुसकराहटों के अलावा कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘शिखा की बच्ची, मुझे तंग करने में तुझे बड़ा मजा आ रहा है न?’’ मैं ने रूठने का अभिनय किया तो वे दोनों जोर से हंस पड़े थे.

‘‘अच्छा, इतना तो बता दो कि हम जा कहां रहे हैं?’’ अपने मन की उत्सुकता शांत करने को मैं फिर से उन के पीछे पड़ गई.

‘‘मैं तो घर जा रही हूं,’’ शिखा के होंठों पर रहस्यमयी मुसकान उभर आई.

‘‘क्या हम सब वहीं नहीं जा रहे हैं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम ही क्यों जा रही हो?’’

‘‘वह सीक्रेट तुम्हें नहीं बताया जा सकता है.’’

‘‘और आप कहां जा रहे हैं, सर?’’

‘‘मार्किट.’’

‘‘किसलिए?’’

‘‘यह सीक्रेट कुछ देर बाद ही तुम्हें पता लगेगा,’’ राकेशजी ने गोलमोल सा जवाब दिया और इस के बाद जब बापबेटी मेरे द्वारा पूछे गए हर सवाल पर ठहाका मार कर हंसने लगे तो मैं ने उन से कुछ भी उगलवाने की कोशिश छोड़ दी थी.

शिखा को घर के बाहर उतारने के बाद हम दोनों पास की मार्किट में पहुंच गए. राकेशजी ने कार एक रेडीमेड कपड़ों के बड़े से शोरूम के सामने रोक दी.

‘‘चलो, तुम्हें गिफ्ट दिला दिया जाए, बर्थ डे गर्ल,’’ कार लौक कर के उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और उस शोरूम की सीढि़यां चढ़ने लगे.

कुछ दिन पहले मैं शिखा के साथ इस मार्किट में घूमने आई थी. यहां की एक डमी, जो लाल रंग की टीशर्ट के साथ काली कैपरी पहने हुई थी, पहली नजर में ही मेरी नजरों को भा गई थी.

शिखा ने मेरी पसंद अपने पापा को जरूर बताई होगी क्योंकि 20 मिनट में ही उस डे्रस को राकेशजी ने मुझे खरीदवा दिया था.

‘‘वेरी ब्यूटीफुल,’’ मैं डे्रस पहन कर ट्रायल रूम से बाहर आई तो उन की आंखों में मैं ने तारीफ के भाव साफ पढ़े थे.

उन्होंने मुझे डे्रस बदलने नहीं दी और मुझे पहले पहने हुए कपड़े पैक कराने पड़े.

‘‘अब हम कहां जा रहे हैं, यह मुझे बताया जाएगा या यह बात अभी भी टौप सीक्रेट है?’’ कार में बैठते ही मैं ने उन्हें छेड़ा तो वह हौले से मुसकरा उठे थे.

‘‘क्या कुछ देर पास के पार्क में घूम लें?’’ वह अचानक गंभीर नजर आने लगे तो मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

‘‘मम्मी आफिस से घर पहुंच गई होंगी. मुझे घर जाना चाहिए,’’ मैं ने पार्क में जाने को टालना चाहा.

‘‘तुम्हारी मम्मी से भी तुम्हें मिलवा देंगे पर पहले पार्क में घूमेंगे. मैं तुम से कुछ खास बात करना चाहता हूं,’’ मेरे जवाब का इंतजार किए बिना उन्होंने कार आगे बढ़ा दी थी.

अब मेरे मन में जबरदस्त उथलपुथल मच गई. जो खास बात वह मुझ से करना चाहते थे उसे मैं सुनना भी चाहती थी और सुनने से मन डर भी रहा था.

मैं खामोश बैठ कर पिछले 1 महीने के बारे में सोचने लगी. शिखा और राकेशजी से मेरी जानपहचान इतनी ही पुरानी थी.

कर्ज बना जी का जंजाल- भाग 2: खानदान के 9 लोगों की मौत

परिवार के सभी लोग थे शिक्षित

वह बच्चों को चित्रकला के साथसाथ बालमानस शास्त्र का भी पाठ पढ़ाते थे. उन्होंने शिवशंकर नगर के अपने बंगले का नाम ‘योग’ रखा था. उन की बेटी अर्चना 2 साल से बैंक औफ इंडिया में नौकरी कर रही थी. उन की नियुक्ति कोल्हापुर जिले के बाचनी स्थित शाखा में थी. जबकि बेटा शुभम स्नातक तक पढ़ाई कर ड्राइवर के रूप में नौकरी कर रहा था.

दूसरी ओर अंबिका नगर में चौक के करीब रह रहे 49 साल के माणिक याल्लाप्पा वानमोरे पशु चिकित्सक होने के साथसाथ एक समाजसेवी भी थे. वह पशुओं के इलाज के लिए पूरे म्हैसल पंचकोसी में मशहूर थे.

वह अपनी पत्नी रेखा वानमोरे, बेटी अनीता और बेटे आदित्य के साथ रहते थे. बेटी ने ग्रैजुएशन करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, जबकि बेटा आदित्य पढ़ाई कर रहा था.

सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने की कार्रवाई

घटनास्थल से मिले सुसाइड नोट के आधार पर पुलिस ने वैसे लोगों का पता लगा लिया, जिन्होंने वानमोरे बंधुओं को कर्ज दिए थे. फिर पुलिस ने इस मामले में उन से पूछताछ के लिए परिवार को पैसे उधार देने वाले 15 लोगों को हिरासत में ले लिया. हालांकि उन की संख्या और अधिक थी.

पूछताछ में मालूम हुआ कि वह परिवार स्टील के उत्पादों की एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाना चाहता था. उन्होंने लोगों से पैसे इसी के लिए उधार लिए थे.

यूनिट लगने में देरी होने पर उधार देने वाले ब्याज और मूल के पैसे मांगने लगे थे. पैसे मांगने के सिलसिले में वे लोग वानमोरे बंधुओं को परेशान करने लगे थे.

हिरासत में लिए गए लोगों में म्हैसल निवासी नंद कुमार पंवार (52), राजेंद्र बन्ने (50), अनिल बन्ने (35), खंडेराव शिंदे (37), डा. तात्यासाहेब चोगुले (51), अनिल बोराडे (48), शैलेश धूमल (56), प्रकाश पवार (45), संजय बागड़ी (51), पांडुरंग घोरपड़े (56), शिवजी कोरे (65), रेखा चोगुले (45), विजय सुतार (55), गणेश बामने (45) और शुभ्रा कांबले (46) हैं.

इन के अलावा आशु, शैलेश धुमाल, अनाजी कोंडिबा खरात, शामगोंडा कामगोंडा पाटिल, सतीश सखाराम शिंदे, शिवाजी नामदेव खोत, शुभदा मनोहर कांबले, अनिल बाबू बारोड़े, गणेश ज्ञानू बामने, संजय इराप्पा बागड़ी, नरेंद्र हनुमंत शिंदे, राजेश गणपति होटकर, अनिल बालू बोराडे, आण्णासो तातोबा पाटील की खोज के लिए पुलिस ने 7 पुलिस टीमों का गठन किया. उन्हें सांगली जिले के साथसाथ सोलापुर, कोल्हापुर, कर्नाटक जिले में ढूंढने के लिए भेज दिया गया.

वानमोरे परिवार की आत्महत्या के मामले में पुलिस ने एक ड्राइवर के साथसाथ डाक्टर और शिक्षक को भी शामिल पाया. उन में संजय बागड़ी, तात्यासाहेब चोगुले के नाम सामने आए.

साथ ही यह बात भी उजागर हुई कि होटल व्यवसायी से ले कर स्टेशनरी दुकान वाले तक का कर्ज था. वानमोरे परिवार पर लेनदेन वालों के ढाई से 3 करोड़ रुपयों का कर्जा था.

उधार लिए करोड़ों रुपए आखिर गए कहां

कर्ज के बोझ से 9 लोगों की आत्महत्या की घटना ने सांगली जिले के म्हैसल गांव से ले कर पूरे महाराष्ट्र को झकझोर दिया.  इस के पीछे की वजहों के बारे में पुलिस जांच में जुट गई कि आखिर इतना पैसा वानमोरे

भाइयों ने साहूकारों से लिया तो उसे खर्च कहां किया?

इसी के साथ पूरे गांव में किस्मकिस्म की बातें होने लगीं. उन बातों की भनक पुलिस की जांच टीम को लगी. पता लगा कि वानमोरे परिवार पैसे से और अधिक पैसा बनाने के चक्कर में पड़ गया था. उन्हें उम्मीद थी उन के पास खूब सारा पैसा आएगा, इसलिए वे कर्ज ले कर अपनी योजना को अंजाम देने में जुटे हुए थे.

घटना के दिन 19 जून, 2022 की रात को वानमोरे भाइयों के घरों से देर रात तक किसी धार्मिक अनुष्ठान की आवाजें सुनाई दे रही थीं. सोलापुर का अब्बास महमूद अली नामक तांत्रिक वानमोरे परिवार के संपर्क में था. वह दोनों परिवारों के घरों पर आयाजाया करता था.

पुलिस को जब इस बात की जानकारी मिली, तब जांच की सूई अब्बास की ओर घुमा दी. घटनास्थल पर पुलिस को एक चारपहिया वाहन के गुजरने की भी जानकारी मिली, जिस का नंबर एमएच-13 के आधार पर पता चला. पुलिस ने उस के मालिक के बारे में मालूम करने जांच की शुरू की गई.

साथ ही घटना के 1-2 दिन पहले वानमोरे बंधुओं से मिलनेजुलने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जाने लगी. उन के फोन नंबरों की डिटेल्स निकलवाई गई.

काल डिटेल्स से मालूम हुआ कि वानमोरे भाइयों ने अब्बास और धीरज नामक 2 लोगों से संपर्क किया था. वानमोरे ने सांगली के एक शख्स के नाम सिम कार्ड लिया था. इस पर पुलिस ने दोनों के किसी योजनाबद्ध जाल का भी कयास लगाया गया.

महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के शहर में ही मूलेगांव रोड पर बसे सर्वदेनगर में रहने वाला 48 वर्षीय तांत्रिक अब्बास महमूद अली बागबान की चर्चा दूरदूर तक थी. उस के पास लोग अपने दुखों और घरेलू समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए आते थे. वह बाकायदा दरबार लगाता था और लोग उस से मिलने के लिए कतारों में लगे रहते थे.

तांत्रिक भी आया जांच के घेरे में

अब्बास लोगों को गुप्त धन ढूंढने और पैसे से पैसा बनाने के लिए उकसाता रहता था. करीब 13 साल पहले उस ने एक दंपति को जमीन से गुप्त धन निकाल कर देने का लालच दिया था. वह व्यापारी था और उस व्यवसायी का अच्छाखासा कारोबार सोलापुर में ही चल रहा था. वह कारोबारी था मुश्ताक सैय्यद रशीद.

फ्रैंडशिप- भाग 1: नैना ने अपना चेहरा क्यों छिपा लिया

सुनोकल तुम ने मुझे इग्नोर किया था या तुम जल्दी में थीं?”

सागर की गहरी आवाज सुनते ही नैना के कदम रुक गए. उस ने उदास नजरों से सागर की तरफ देखालेकिन कोई जवाब नहीं दिया.

मुझे लगता है कि तुम ने मेरा प्रश्न ठीक से सुना नहीं हैमैं ने तुम से कुछ पूछा है नैनाजवाब क्यों नहीं देतीं?

सागर के चेहरे पर हलकी सी झुंझलाहट के भाव देख रही थी नैनालेकिन बोली फिर भी नहीं.

क्या बात है नैनातुम बोलतीं क्यों नहीं?” सागर  की आवाज इस बार तेज और गुस्सेभरी थी. नैना ने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया और तेज तेज कदमों से क्लासरूम की तरफ जाने लगी. नैनाजवाब दो,” सागर ने फिर कहा.

नैना की तरफ से कोई जवाब नहीं मिलता देख सागर ने कहा, “ठीक हैतुम अभी जवाब नहीं देना चाहतीं तो मत दो. परसों संडे हैशाम 5  बजे मैं ट्रेजर आइलैंड के बाहर तुम्हारा इंतजार करूंगाबाय नैना.

सागर ने अब नैना के जवाब का इंतजार करना भी जरूरी नहीं समझातेजी से कदम बढ़ाता वह अपनी क्लास में चला गया.

नैना और सागर दोनों ही गुजराती कालेज के स्टूडैंट थे. दोनों की मित्रता पूरे कालेज में प्रसिद्ध थी. एकाध विषय को छोड़ कर दोनों के सभी विषय समान थे.

नैना पढ़ाई के साथ ही महादेवी वर्मा काव्य संसार पर शोध कर रही थी. नैना को साहित्य में यों भी बहुतकुछ अच्छा लगता था. कुछ साहित्यकार उस के विशेष प्रिय थे. उन में महादेवी वर्मा टौप पर थीं. डाक्टर धर्मवीर भारती की गुनाहों के देवता’ उस की प्रिय किताब थी. बचपन से न जाने कितनी बार वह इस किताब को पढ़ चुकी थी. लेकिन मन इस किताब से भरता नहीं था. चंदन और विनती उस के प्रिय पात्र थे.

 मोहन राकेश की अंधेरे बंद कमरे’ भी उस की प्रिय पुस्तक थी. हरबंस की मानसिक उलझन’ तो उसे ऐसी लगती थी जैसे यह उस की अपनी जिंदगी है. इस पुस्तक को पढ़तेपढ़ते नैना की उदासियां ज्यादा गहरी होने लगती थीं. उस का मन किसी और छोर पर पहुंचना चाहता पर बेचैनियां हद से ज्यादा बढ़ने लगतीं और उसे कुछ भी अच्छा न लगता. ऐसी मनोस्थिति  में ह्रदय के भाव कभी कविता के रूप मेंकभी लघुकथा के रूप में पन्नों पर बिखरने लगतेउसे पता न चलता. ऐसे में उस ने कब अपनेआप को खामोशियों  बीच कैद कर लियाउसे नहीं मालूम. रचनाओं के प्रकाशित होने का सिलसिला भी लगभग बारहतेरह वर्ष पूर्व शुरू हुआ जो आज भी चल रहा है.

कालेज में भी एकदो ही उस की मित्र थीं. शोरगुलआधुनिकतादिखावे से उसे चिढ़ थी. सच्चा मित्र वह बस पुस्तकों को मानती थी इसलिए कि वे कभी भी बेवफाई नहीं करतीं. यह बात भी  सही है कि नैना को तलाश थी अच्छे पुरुषमित्र की जो उस की  भावनाओं को समझ सके और उस से  वह सबकुछ कह सके. मित्र तो उस की रोमा भी थी लेकिन वह भी आज के युग के अनुरूप आधुनिक तो थी हीसाथ हीरिश्तों को  यथार्थ की धरती से जोड़ कर देखती मनह्रदय से जुड़ कर वह किसी रिश्ते में विश्वास नहीं करती थी. बसयही बात नैना को पसंद न आती थी. उसे लगता था हम किसी भी रिश्ते को बनाएं चाहे वह रिश्ता कोई भी होउस में हम ईमानदारी रखें. झूठ से नैना को चिढ़ थी. लेकिन रोमा को लंबे समय तक किसी भी रिश्ते के लिए इंतजार करना पसंद नहीं था. वह फास्ट फूड वाली शैली में जिंदगी पसंद करती थी.

नैना का मानना था कि ऐसे रिश्ते बन तो जल्दी जाते हैं पर निभते नहीं हैं और मन को सुकून भी नहीं देते हैं. मन की शांति और विश्वास के लिए मित्रता में ईमानदारी चाहिए. रिश्तों में तड़कभड़कअंधाधुंध एकदूसरे पर रुपए लुटाने व महंगे गिफ्ट देने के रिवाज भी नैना को पसंद न थे. उस से एक प्रकार की दिखावटबनावट का एहसास होता था. फिर आज मित्रता में स्वार्थ और लालच ने इतना स्थान बना लिया है कि सचाई के लिए कोई जगह नहीं बची है.

आज शनिवार है और कल शुक्रवार को सागर ने कालेज में ही संडे को ट्रेजर आईलैंड में मिलने को कहा हैक्या करूं- जाऊं या नहींनैना को ट्रेजर आईलैंड में जाना बिलकुल भी पसंद नहीं थावही तड़कभड़क और आधुनिकता की जीतीजागती तसवीरएसी  केबिनरोबोट जैसे घूमते हुए वेटर नैना को अच्छे न लगते.  महंगे कपड़ों से सजे शौपिंग मौलमौडर्न युवतियांमहिलाएंबच्चेचमकतीदमकती गाड़ियांफास्ट फूड की तरह तेजी से बदलती जा रही जिंदगी के अजीब रंग… नहींइन रंगों में स्वाभाविक चमक नहीं हैतभी तो ये सभी बेजानबनावटी दिखते हैं. तेजी से भागते लोगसमय के साथ कदम से कदम मिलाने में पीछे न रह जाएं शायदइस बात का भी डर हो सकता है.

यह सब सोचतेसोचते ही नैना ने पलंग पर सीधे लेटते ही सामने की दीवार पर नजर दौड़ाई- एक विशाल पेंटिंग पूरी दीवार को घेरे हुए थी. यह औयल पेंटिंग नैना को  बहुत पसंद थी. पेंटिंग का पूरा दृश्य नैना को अजीब सा सुकून देता था. सागर तट का प्यारा सा दृश्य था. तट के किनारे एक नाव बंधी थी. तट के किनारे ही एक लड़का बैठा हुआ था. डूबते सूरज के नजारे को देख रहा था अपनी उदास आंखों से. सुरमई शाम की उस पेंटिंग में उस लड़के की आंखों में अजीब सा आकर्षण था.  नैना बचपन से ही  अपनी सुंदर आंखों की तारीफ सुनती आ रही थी. उसे अपनी आंखों पर नाज भी था. नैना को भी पूरे व्यक्तित्व  में खूबसूरत आंखों का आकर्षण अधिक खींचता था.

पेंटिंग वाले लड़के की आंखों में और सागर की आंखों  में कुछ समानता लगती थी. सागर की आंखों में शांति और एक अजीब सी सचाई झलकती थी. लेकिन इस सचाई पर नैना को कभीकभी शक भी होने लगता कि कहीं आंखों में झलकती सचाई फरेब तो नहींझूठ तो नहीं?    तभी हवा का एक तेज झोंका नैना के कमरे की खिड़की के परदे को हिला गया. खिड़की के बाहर छोटे से बगीचे से झांकती हरियाली मुसकरा पड़ी और हंस दिए कचनार के फूलगुलाब के खूबसूरत पीले व गुलाबी फूल. एक खुशबू सी आ कर नैना के सलोने चेहरे को सहला गई. नैना ने सागर की गहरी आंखों में डूब कर फिर एक बार अपनी सोच की दिशा बदली.

रोमा उस की मित्र थी. दोस्ती थी पर न जाने क्यों उस की स्वतंत्रता में उसे एक स्वच्छंदता का एहसास होता था. उसे उस की थिरकती चंचलता में विश्वास कम होता. उसे लगतारोमा के स्वच्छंद विचारों की आधुनिकता कहीं उसे डुबो न दे. यों तो आधुनिकता की हिमायती नैना भी थी विचारों में रूढ़िवादिताअंधविश्वास नैना को पसंद नहीं. पर प्रकृति पर उसे विश्वास था. मित्रता में उसे यकीन था. कपड़ों की तरह बदलने वाली मित्रों  की  लंबी लाइन से उसे चिढ़  थी. नैना का सोचना था कि मित्रता में जल्दबाजी हमेशा दुख का कारण बनती है. मित्रता में सोचसमझ कर एकदूसरे की रुचियों  को जान कर ही मित्रता करेंतो ज्यादा अच्छा रहता है क्योंकि मित्रता निभाना इस जमाने में बड़ा मुश्किल है.

पूरी जिंदगी में अगर एक भी सच्चा मित्र आप को मिलता है तो आप से बड़ा खुशहाल कोई नहीं.

रोमा के दोस्त रौकी से उसे बड़ी चिढ़ थी. उस के लंबेलंबे हिप्पी कट बाल थेसिगरेट के छल्ले बना कर वह रोमा के चेहरे पर उड़ाता था तो रोमा खुशी के मारे नाच उठती थी. जबतब क्लास छोड़ कर वह रौकी के साथ लौंग ड्राइव पर निकल जाती थी. पूरे कालेज में रोमा और रौकी का अफेयर चर्चा में था. इसे अफेयरप्रेम का नाम नहीं दे सकते. रौकी जैसे कई दोस्त रोमा की लिस्ट में थेजिन के साथ वह अकसर घूमने जाती थी लेकिन प्रेम की गंभीरता जैसी कोई बात  नहीं देखी थी. वह इसे दोस्ती कहती थी. लेकिन कई बार पेड़ों के झुरमुट में उसे अलगअलग मित्रों के साथ चुंबनरत  देखा था. इस पर उस ने रोमा को रोका भी था. पर उस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हमेशा बातों को ऐसे हवा में उड़ा देती थी जैसे रौकी सिगरेट के छल्ले बना कर हवा में उड़ा देता है. उस के बाद जहां तक नैना को याद हैउस ने रोमा को टोकना बंद कर दिया था. रोमा भी कभी इस विषय पर बात नहीं करती थी. उसे नैना की आदर्शवादिता से नफरत  थी. तो नैना को खाओपियो एंजौय करो की आदत पसंद न थी. फिर भी नदी के दो किनारों की तरह दोनों की दोस्ती थीजो मिलते नहीं पर साथसाथ चलते जरूर हैं.

अचानक मोबाइल की मीठी सी धुन बजने  लगी. नैना विचारों के  समंदर से बाहर निकलीतो मोबाइल पर देखा- खूबसूरत नीले अक्षरों में सागर चमक रहा था. उस ने तुरंत ही मोबाइल उठा लिया. मेरे बारे में सोच रही थी न?” सागर की गहरी आवाज नैना को भली लगी लेकिन उसे कोई जवाब नहीं दियाखामोश रही.

बोलो भी,” सागर की आवाज फिर आई.

उसे अचानक याद आया कि कल ट्रेजर आईलैंड जाना हैतो वह बोली, “ट्रेजर आईलैंड में नहीं मिलेंगेसागर.

तो आप ही फरमाइएकहां मिलोगी?”

चोखी ढाणी चलें…” नैना ने कहा.

कहां…इतनी दूर,..” सागर ने कहा.

नहीं सागरट्रेजर आईलैंड मुझे पसंद नहींनहीं चलेंगे,” नैना की  आवाज में बच्चों सी जिद दिख रही थी.

नहीं चलेंगेअच्छाठीक है बाबाचोखी ढाणी चलेंगे. बसअब ठीक है,” सागर ने पराजित योद्धा के अंदाज में कहा.

ठीक हैठीक है,” नैना ने कहा.

ओकेकल  शाम 5  बजेरीगल टाकीज के सामने  इंतजार करता हूं.

ओके बाय,” नैना ने कह कर मोबाइल औफ कर दिया था.

रिटर्न गिफ्ट: अंकिता को बर्थडे पर क्या गिफ्ट मिला

‘‘चलो, तुम्हें गिफ्ट दिला दिया जाए, बर्थ डे गर्ल,’’ कार लौक कर के उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और उस शोरूम की सीढि़यां चढ़ने लगे.

मैं अपनी भाभी से प्रेम करता हूं, पर वो मुझसे बात भी नहीं करती, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 35 साल है और अभी तक मेरी शादी नहीं हुई है. पिछले 15 साल से मेरा अपनी भाभी के साथ जिस्मानी रिश्ता रहा है. लेकिन हाल ही में मेरे भतीजे ने हम दोनों को बिस्तर पर एकसाथ देख लिया था. तब से मेरी भाभी मुझ से बात नहीं कर रही हैं. मैं उस के बिना रह नहीं सकता. क्या करूं?

जवाब

इस तरह के संबंध बनाए तब जाने चाहिए जब छिपा कर रख सकें, वरना खतरा तो रहेगा ही. भतीजे की जगह अगर भाई या कोई और बड़ा देखता तो क्या हालत होती, इस का अंदाजा आप भी लगा सकते?हैं. आप की?भाभी वही कर रही?हैं जो इस हालत में किसी भी औरत को करना चाहिए. अब आप को चाहिए कि मुफ्त की मलाई का लालच छोड़ कर शादी कर लें और भाभी से जिस्मानी संबंधों की बात को भूल जाएं.

लड़के-लड़कियों का रिलेशनशिप में होना कोई नई बात नहीं हैं और न ही लड़कियों का अपने बौयफ्रैंड्स से छोटेमोटे गिफ्ट्स की उम्मीद लगाना नया है. लड़कियों की अपने बौयफ्रैंड्स से कई तरह की अपेक्षाएं होती हैं. कुछ के लिए रिलेशनशिप में आने का मतलब ही यह होता है कि आज तक जो इच्छाएं पूरी न हो सकीं, अब करेंगे. लेकिन, ये लड़कियां या तो स्कूलगोइंग होती हैं या फिर कालेजगोइंग, और उन के खुद के पास इतने पैसे नहीं होते जो उन के अरमानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त हों.

ऐसे में उन की जरूरतें पूरी करने के लिए प्रकट होते हैं उन के बौयफ्रैंड्स जिन्हें शरूशुरू में तो पैसा लुटाने और अपनी धाक जमाने में बड़ा मजा आता है, लेकिन जैसेजैसे उन के हाथ से पैसा जाने लगता है यह मजा सजा बन कर रह जाता है. डेट्स का बिल, मूवी टिकट, महंगे कैफे में खाना, मिलने पर फूल या चौकलेट, फोन का रिचार्ज विद ऐक्स्ट्रा डाटा पैक, फैस्टिवल और वेलैंटाइन पर अलग तोहफे और बर्थडे पर तो सम झो दीवाला निकल जाता है.

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कहीं आनाजाना हो, तब भी रिकशे से ले कर पानी खरीदने तक का बिल बौयफ्रैंड की जेब से ही खर्च होता है, क्योंकि गर्लफ्रैंड का हाथ बैग में लिपस्टिक के लिए तो हर घंटे जाता है लेकिन पैसों के लिए नहीं. लड़कियों का पैसों के मामले में पूरी तरह से बौयफ्रैंड पर आश्रित हो जाना और हर छोटीबड़ी चीज के लिए उस का मुंह ताकना एक आदत बन जाती है जो समय के साथ पहले से ज्यादा गहराती जाती है.

लड़कियों की प्यार के नाम पर अपने बौयफ्रैंड्स पर यह इकनौमिक डिपैंडैंस लड़कों का जीना मुश्किल कर देती है या यों कहें कि उन्हें बरबाद कर देती है. ये वही लड़के हैं जो बेचारे बाबू, जानु, शोनामोना करते रह जाते हैं और रिलेशनशिप खत्म होने पर इन्हीं गर्लफ्रैंड्स को गोल्डडिग्गर होने का टैग देते फिरते हैं. सोशल मीडिया पर तो ऐसे लड़कों की भरमार है. असल में देखा जाए तो इस में पूरी तरह लड़कियों की गलती नहीं कही जा सकती. लड़कों को खुद को एक लैवल अप दिखाने का कोई मौका छोड़ना पसंद नहीं. ऐसे में पैसा, रुतबा दिखाने से बेहतर क्या होगा?

  1. बौयफ्रैंड खर्च करने को शान मानते हैं

पीयूष एक अमीर घराने का लड़का था जिसे दिन के 700-800 रुपए लुटाना आम बात लगती थी. उस की गर्लफ्रैंड नीता भी खूब खर्चीली थी और आएदिन पापा से पैसे मांग कर खर्च करती थी. पीयूष और नीता रिलेशनशिप में थे और काफी खुश भी थे. लेकिन जब भी दोनों डेट पर जाते तो सारा खर्च पीयूष उठाता. उसे नीता का पैसे खर्च करना खुद की बेइज्जती लगता था. नीता के पास भी पैसे होते थे लेकिन पीयूष ही सारे बिल भरता था.

कालेज के थर्ड ईयर तक आतेआते पीयूष को पैसों की तंगी होने लगी, जिस के चलते अब वह नीता पर खर्च नहीं कर पाता था. नीता के सामने  झुकना और ‘लड़की के पैसों पर जीना’ वाली धारणा लिए रिलेशनशिप में रहना पीयूष को कतई मंजूर नहीं था. उस ने डेट्स पर जाना, नीता के साथ फिल्म देखना, घूमनाफिरना सब कम कर दिया. फिर क्या होना था, नीता और पीयूष के बीच अनबन होने लगी. पीयूष हमेशा टैंशन में रहने लगा, नीता को टाइम भी नहीं देता था. आखिर, कुछ ही दिनों में दोनों का ब्रेकअप हो गया.

2. गर्लफ्रैंड को इंप्रैस करने के लिए करते हैं खर्च

काव्या रोहित को कालेज में मिली थी. रोहित उसे देख कर मानो हवा में उड़ने लगा. जब वे दोनों रिलेशनशिप में आए तो रोहित जबतब उसे अपनी स्कूटी पर घुमाने ले जाता. वह उसे उस की मनपसंद आइसक्रीम खिलाने ले जाता था. काव्या के पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह महंगे कपड़े खरीद पाती. वह रोहित के सामने जानबू झ कर कहा करती थी कि उसे यह या वह ड्रैस लेने का बहुत मन है लेकिन पैसे नहीं हैं अभी. रोहित यह सुन कर सम झ जाता कि उसे काव्या को गिफ्ट में अगली बार क्या देना है. काव्या और रोहित एक ही ग्रुप में थे. कोई और दोस्त काव्या को यह न कहे कि वह रोहित के पैसों पर जी रही है, रोहित उस के साथसाथ गु्रप की बाकी लड़कियों को भी शौपिंग करा आता. वे सभी कहीं कुछ खाने जाते तो काव्या खाने से इसलिए मना कर देती कि उस के पास पैसे नहीं हैं. इस पर रोहित अपने साथसाथ उस के पैसे भी दे देता.

रोहित हर दूसरे दिन अपनी मम्मी से पैसे मांगता था. मम्मी के मना करने पर उन से लड़ भी पड़ता. अपनी गर्लफ्रैंड का दिल जीतने के लिए उसे जो कुछ भी करना पड़ता, वह करता था. पर वह दिन दूर नहीं था जब दोनों का ब्रेकअप हो गया. रोहित और काव्या दोनों को ही ब्रेकअप का दुख था लेकिन ब्रेकअप के बाद रोहित को काव्या पर बहुत गुस्सा आया था. वह अब उस के बारे में किसी को भी कुछ बताता तो यह जरूर कहता कि वह एक पैसा खाने वाली लड़की है जिस ने उस का पैसों के लिए खूब इस्तेमाल किया. ऐसे में यह सम झना बहुत जरूरी हो जाता है कि चाहे आप का बौयफ्रैंड खुद आप पर पैसे लुटाना चाहे, फिर भी आप को उसे खुद पर खर्च करने से रोक देना चाहिए.

3. गर्लफ्रैंड्स खुद के खर्चे उठाना सीखें

ऐसा नहीं है कि हर लड़की अपने बौयफ्रैंड पर ही निर्भर रहती है. ऐसी लड़कियां भी हैं जो अपने खर्चे खुद उठाती हैं. फिर भी जिन लड़कियों को अपने पैसे खर्च करने के बजाय अपने बौयफ्रैंड की जेब ढीली करने में आनंद आता हो उन्हें यह सम झना बहुत जरूरी है कि वे अपने रिलेशनशिप को तो डिसबैलेंस्ड कर ही रही हैं, साथ ही, अपने बौयफ्रैंड की टैंशन और अजीब व्यवहार का कारण भी बन रही हैं.

4. हर समय तोहफों की अपेक्षा न करें

लड़कियों का हर समय तोहफे मांगते रहना या अपने बौयफ्रैंड से महंगे तोहफे लेने की अपेक्षाएं असल में लड़कों के लिए परेशानी का सबब बन जाती हैं. वे कभी दोस्तों से पैसे उधार मांगते हैं तो कभी बड़े भाईबहन से. मम्मीपापा अगर पैसे के लिए मना कर दें तो वे उन से लड़ाई झगड़े पर उतर आते हैं. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड की यह टैंशन गर्लफ्रैंड अपनी अपेक्षाएं कम कर आसानी से दूर कर सकती है.

5. अपने बिल खुद भरें

हर चीज में लड़कियां लड़कों से आगे हैं तो इस में क्यों पीछे रहें. लड़कियों को जरूरत है कि वे डेट्स या मूवीज का पूरा बिल न सही पर अपने हिस्से का तो दे ही दें. इस से बेचारे बौयफ्रैंड का कम से कम थोड़ा बो झ तो कम होगा.

6. मनपसंद चीजों के लिए पैसे बचाना सीखें

लड़कियों को भी अपने घर से अच्छाखासा जेबखर्च तो मिल ही जाता है. और अगर किसी महंगी चीज को खरीदने का मन करे तो उस के लिए पैसे बचाएं. अपने खुद के पैसों से खरीदी हुई चीज का मोल कहीं ज्यादा होता है.

7. पैसे नहीं हैं तो इच्छाएं कम रखें

हर सुंदर चीज पर दिल आ जाना और अपने बौयफ्रैंड की तरफ नजर घुमा लेना बहुत सी लड़कियों की आदत होती है. यह एक बुरी आदत है क्योंकि आप की इच्छाएं पूरी करना आप के बौयफ्रैंड का काम नहीं है. अगर पैसे नहीं हैं तो ऐसी इच्छाएं रखना कम कर दीजिए. यानी, रिलेशनशिप में खर्च केवल लड़का ही उठाए, यह सरासर गलत है. लड़कालड़की दोनों ही रिलेशनशिप में बराबर की हिस्सेदारी रखते हैं, तो बिल्स के भी बराबर हिस्से होने चाहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

ऑनलाइन गेम: हत्यारा बनाने की मशीन

दरअसल, ऑनलाइन गेम यानी कि पहले का पबजी ऐसा नशा बनकर सामने आया है जिसके कारण आए दिन नासमझ नाबालिग कहे जाने वाले बच्चों द्वारा नृशंस हत्या की घटनाएं घटित हो रही है.

ऐसे में समाज और सरकार को चाहिए कि ऑनलाइन गेम पर जितनी जल्दी हो सके अंकुश लगाया जाए. यह किशोरों को हत्यारा बनाने की एक ऐसी मशीन है जिस का सच अब सामने आ चुका है.

हम आपको आज लखनऊ की नवीनतम घटना की जानकारी दे रहे हैं जिसमें एक 16 साल के नाबालिग लड़के ने सिर्फ इसलिए अपनी मां की हत्या कर दी उसकी मां उसे ऑनलाइन गेम खेलने से समझाया करती थी.

मोबाइल पर बैटल ग्राउंड गेम (पुराना नाम पब जी) खेलने से रोकने पर नवाबों की नगरी कहे जाने वाले लखनऊ के पंचम खेड़ा की यमुना पुरम कालोनी निवासी मह‍िला राधिका वर्मा (बदला हुआ नाम) की शनिवार देर रात उनके ही जाये सगे बेटे ने गोली मारकर हत्या कर दी . किशोर राहुल (बदला हुआ नाम) ने मां  की हत्या की साजिश 10 दिन पहले रची थी उसके लिए पिताजी की पिस्टल पर उसका ध्यान केंद्रित हुआ और पिता की लाइसेंसी पिस्टल अपने कब्जे में लेकर आखिरकार उसने अपने ही हाथ  अपनी मां की हत्या कर दी.और सोचने लगा कि वह पुलिस से बच सकता है.

मामला उजागर होने के बाद पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया कि पिता की पिस्तौल अपने कब्जे में करने के लिए राहुल ने बड़े ही शातिराना ढंग से इसके लिए पिता  की  अलमारी की डुप्लीकेट चाबी बनवाई और पिस्टल अपने कब्जे में कर ली थी.

यु ट्यूब से सीखा गोली चलाना

शनिवार 4  जून 2022 की देर रात करीब एक बजे उसने अलमारी से पिता की पिस्टल कब्जे में ली और सो रही मां पर गोली दाग दी. हत्या करने के बाद उसने मां के शव को छुपा भी दिया, बाद में शव से आ रही बदबू को छिपाने के लिए वह कमरे में तीन दिन से रूम फ्रेशनर छिड़क रहा था. पुलिस की छानबीन में सबसे चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि राहुल ने यू-ट्यूब से पिस्टल चलाना सीखा  मां   राधिका की हत्या करने से पहले उसने कई बार यू-ट्यूब पर गोलियां चलाने के वीडियो देखे थे .

वस्तुत:आज देश में करोड़ों की संख्या में युवा ऑनलाइन गेम में लगे रहते हैं और ऑनलाइन गेम  उनका जीवन बन गया है, राहुल भी बैटल ग्राउंड गेम खेलने का भयंकर आदी हो गया था. आसपास के लोगों ने भी उसके मोबाइल फोन के लत लगने  की बात पुलिस को बताई है. बेटे की बिगड़ती आदत को देखते हुए कई दिन से राधिका उसे समझा बूझा रही थी.

करीब दो सप्ताह पूर्व एक दिन राधिका को बहुत गुस्सा आया उसने राहुल को बुरा भला कर करके समझाया  और राहुल  से उसका मोबाइल फोन छीन लिया था. इसके बाद राहुल अपने रंग दिखाने लगा  उसने अपने नाना से बात कर मोबाइल फोन वापस दिलाने के लिए कहा था.

नाना ने बेटी से बात की, जिसके बाद किशोर को दोबारा मोबाइल फोन मिल गया था.इस घटना के बाद से ही किशोर मां की हत्या की साजिश रच रहा था. मृतका के प‍िता ने बताया कि किशोर किसी की बात नहीं सुनता था. वह अक्सर लोगों को उलटे जवाब ही देता था.

इन आदतों के कारण ही उसे कई स्कूलों से भी निकाला जा चुका था. वर्तमान में राहुल लखनऊ में सेनानी विहार स्थित एक स्कूल में 10वीं का छात्र था .

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