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Anupamaa: छोटी अनु के साथ होगा हादसा, क्या बेटी को खो देगा अनुज?

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में  इन दिनों लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है.   टीआरपी की लिस्ट में यह शो टॉप पर बना हुआ है. शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि अनुपमा और अनुज को छोटी अनु को गोद लेते हैं. और उसे अपने घर लाते है. जिससे बरखा और अंकुश नाराज हो जाते हैं. तो दूसरी तरफ शाह परिवार भी रिएक्ट करता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि बरखा और अंकुश, अनुज से बिजनेस के बारे में सवाल-जवाब करते हैं. बरखा, अनुज से कुछ प्रोजेक्ट शेयर करने के लिए कहती है और कहती है कि अंकुश अमेरिका में भी सभी चीजें हैंडल करते थे. इस बात पर अनुज रिएक्ट करता है और कहता है कि “जब अमेरिका में सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था तो आप लोग यहां आए ही क्यों?” अनुज की यह बात सुनते ही बरखा और अंकुश हैरान हो जाते हैं.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा छोटी अनु के साथ बाजार जाती है, लेकिन तभी अनु भागते हुए बाइक के सामने आ जाती है, जिससे अनुपमा बुरी तरह डर जाती है.

 

दूसरी ओर किंजल सोनोग्राफी करवाने के लिए अनुपमा का इंतजार करती है, लेकिन छोटी अनु की वजह से  अनुपमा वहां नहीं पहुंच पाती. ऐसे में वनराज सबके सामने अनुपमा को ताना मारता है और बापूजी से कहता है, आपकी बेटी मां बनते ही सास की जिम्मेदारी भूल गई है.

 

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नौर्डिक डाइट क्या है?

सवाल

मेरी उम्र 34 वर्ष है और मैं हाउसवाइफ हूं. मेरी दिनचर्या घड़ी की सुइयों पर चलती है.  रैगुलर वौक पर जाती हूं. पौष्टिक खाना खाती हूं. किसी भी बीमारी से ग्रस्त नहीं हूं. लेकिन मैं आगे भी ऐसी ही हैल्दी रहूं, इसलिए अपनी डाइट पर विशेष ध्यान देती हूं. आजकल मैं नौर्डिक डाइट के बारे में काफी सुन रही हूं. क्या आप मु?ो इस के बारे में कुछ जानकारी देंगी?

जवाब

नौर्डिक डाइट यानी नौर्डिक देशों में खाया जाने वाला खाना जिन में नौर्वे, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड और आइसलैंड शामिल हैं. इस डाइट में स्थानीय रूप से मिलने वाले खानेपीने की चीजों को शामिल किया जाता है.

नौर्डिक डाइट में कम चीनी और कम फैट होता है, लेकिन फाइबर और सीफूड दोगुना होता है. इसे ईकोफ्रैंड डाइट के तौर पर भी जाना जाता है. कोई प्रिजर्वेटिव इस्तेमाल नहीं होता है. यह पूरी तरह से हैल्दी और बहुत आसानी से फौलो करने योग्य होती है. यही वजह है कि भारत में भी नौर्डिक डाइट का क्रेज बढ़ रहा है.

इस डाइट में मूलरूप से राई, जौ और जई जैसे साबुत अनाज शामिल होते हैं. इस के अलावा बेरी और दूसरे फलसब्जियों में विशेष रूप से गोभी और जड़ वाली सब्जियां जैसे आलू और गाजर, फैटी मछली जैसे सैमन, सार्डाइन, हिलसा मछली और फलियों में सेम व मटर भी शामिल होते हैं.

नौर्डिक डाइट की खास बात यह है कि इस में हाइड्रेशन को अहमियत दी जाती है. यह डाइट कैनोला और रेपसीड तेल (सफेद सरसों) के उपयोग को बढ़ावा देती है.

नौर्डिक डाइट क्रोनिक बीमारियों के खतरे कम करती है. न्यूट्रिशनिस्ट इस में शामिल बहुत सारे फायदेमंद तत्त्वों को इस की वजह मानते हैं.

स्वास्थ्य के लिहाज से बात करें तो नौर्डिक डाइट में उच्च गुणवत्ता वाले कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें शामिल होती हैं, जैसे अनाज, नट्स, बारली, होलग्रेन ब्रैड, जौ और राई. होल ग्रेन से बने फूड में फाइबर, विटामिन, मिनरल और एंटी औक्सिडैंट होते हैं जो दिल को किसी भी तरह की बीमारी से बचाते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

आधारशिला- भाग 3: किस के साथ सफलता बांटनी चाहती थी श्वेता

‘जी, मैं तो सिर्फ चाय बना सकती हूं.’

‘जी हां, मैं तो भूल ही गया था, आप तो छोटी सी बच्ची हैं, आप को भला क्या बनाना आता होगा.’

श्वेता को हंसते देख उसे गुस्सा आ रहा था.

मैं रसोई में जा कर नमकीन, मठरी और गुलाबजामुन ले आई.

‘अरे, आप तो बहुत कुछ ले आईं,’ पुनीत शिष्टता से बोले.

‘कहां बहुत कुछ है सर, आप यह लीजिए. मैं आप के लिए पकौडि़यां तल कर लाती हूं.’

‘ नहीं भई, इतना काफी है,’ कहते हुए पुनीत अपने बारे में बताने लगे कि वे एक गरीब परिवार से हैं. पिता रिटायर्ड हैं, 2 छोटी बहनें और 1 भाई अभी पढ़ रहे हैं, जिन की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है.

हमारी योजना के मुताबिक ही वे अपने परिवार के हालात के बारे में जानबूझ कर बता रहे थे. यह वास्तविकता भी थी और कुछ बढ़ाचढ़ा कर भी बताई जा रही थी, ताकि इस कठोर धरातल की ओर बढ़ते हुए श्वेता के नाजुक पांव अपनेआप कांप उठें.

इस घटना के 2-3 दिनों बाद मैं पुनीत से मिलने स्कूल गई. इस बार हम ने स्कूल के बाहर एक स्थान और समय निश्चित कर लिया था. वे आए और मेरे हाथ में एक कागज का टुकड़ा पकड़ा कर चले गए. डर था कि कहीं श्वेता हमें न देख ले. पत्र कुछ इस प्रकार था :

आदरणीय सर,

आप मेरे पत्रों के उत्तर क्यों नहीं देते? क्या मैं आप को सुंदर नहीं लगती या अपनी गरीबी की वजह से ही आप आगे बढ़ने में डर रहे हैं? सर, जब से मुझे आप की आर्थिक स्थिति का पता चला है, आप की कर्तव्यभावना देख कर मेरे मन में आप के प्रति सम्मान और अधिक बढ़ गया है. कृपया मुझे अपना लें. मैं आप का पूरापूरा साथ दूंगी. नमक के साथ सूखी रोटी खा कर भी दिन गुजार लूंगी. आप का परिवार मेरा परिवार है. हम मिलजुल कर यह जिम्मेदारी उठाएंगे.

आप की,

श्वेता.

पत्र पढ़ कर मैं ने सिर पीट लिया कि सारी योजना बेकार चली गई. नमक के साथ रोटी वाली बात पढ़ कर तो बेहद हंसी आई. खाने में पचासों नुक्स निकालने वाली श्वेता को मैं कल्पना में भी सूखी रोटी खाते हुए नहीं देख सकती थी. गरीबी उस के लिए सिर्फ फिल्मी अनुभव के समान थी. गरीबी का फिल्मीरूप जितना लुभावना होता है, असलियत उतनी ही जानलेवा. काश, श्वेता यह सब जान पाती.

2-3 दिन श्वेता अनमनी सी रही, फिर कुछ सहज हो गई. 10-15 दिनों से पुनीत का भी कोई फोन नहीं आया था. हम ने तय कर लिया था कि श्वेता यदि उन्हें कोई पत्र लिखती है तो वे पहले मुझे फोन से खबर देंगे. मुझे लगने लगा कि पुनीत की बेरुखी या गरीबी की वजह से श्वेता अपनेआप ही संभल गई है.

उस रात मैं कई दिनों बाद निश्चिंत हो कर सोई. सुबह उठी तो सब से पहले श्वेता के कमरे की ओर गई. श्वेता गहरी नींद में थी, लेकिन उस के गोरे गालों पर आंसुओं के निशान थे. लगता था, जैसे वह देररात तक रोती रही थी. मेज पर कैमेस्ट्री की कौपी रखी थी. मैं ने खोल कर देखा तो उस में से एक पत्र गिरा. सलीमअनारकली, हीररांझा आदि के उदाहरण सहित उस में अनेक फिल्मी बातें लिखी हुई थीं.

लेकिन उस पत्र की अंतिम पंक्ति मुझे धराशायी कर देने के लिए काफी थी. ‘सर, यदि आप ने मेरा प्यार स्वीकार न किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगी.’

मैं भाग कर श्वेता के निकट पहुंची. उस की लयबद्ध सांसों ने मुझे आश्वस्त किया. फिर मैं ने उस की अलमारी की एकएक चीज की छानबीन की कि कहीं कोई जहर की शीशी तो उस ने छिपा कर नहीं रखी है, लेकिन ऐसी कोई चीज वहां नहीं मिली. मेरा धड़धड़ धड़कता हुआ कलेजा कुछ शांत हुआ. लेकिन चिंता अब भी थी.

मेरी नजरों के सामने अखबारी खबरें घूम गईं. एकतरफा प्रेम के कारण या प्रेम सफल न होने के कारण आत्महत्या की कितनी ही खबरें मैं ने तटस्थ मन से पढ़ी, सुनी थीं. लेकिन अब जब अपने ऊपर बीत रही थी, तभी उन खबरों का मर्मभेदी दुख अनुभव कर पा रही थी.

मुझे बरसों पहले की वह घटना याद आई जब कमरे में घुस आई एक नन्ही चिडि़या को उड़ाने के प्रयत्न में मैं पंखा बंद करना भूल गई थी. चिडि़या पंखे से टकरा कर मर गईर् थी. उस की क्षतविक्षत देह और कमरे में चारों ओर बिखरे कोमल पंख मुझे अकसर अतीत के गलियारों में खींच ले जाते, और तब मन में एक टीस पैदा होती.

जिस की लाठी उस की भैंस

मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कसबे देवबंद के रेलवे प्लेटफौर्म पर खड़ा हो कर देहरादून ऐक्सप्रैस का इंतजार कर रहा था. सुना था कि इस रेल में बहुत भीड़ होती है क्योंकि यह छोटेबड़े स्टेशनों पर रुकते, ठहरते देहरादून से बंबई तक आतीजाती है.

मेरे मामा का छोटा पुत्र अमित मुझे स्टेशन तक छोड़ने आया था.

प्लेटफौर्म पर भारी भीड़ से मुझे परेशान देख कर उस ने राय दी, ‘‘आप किसी आरक्षित डब्बे में चढ़ जाइएगा. यदि आप सामान्य डब्बे में चढ़े तो भीतर जा कर भारी भीड़ और गरमी के मारे रास्ते में ही आप का भुरता बन जाएगा. दिल्ली पहुंचने के बाद तो आप की शक्ल ही पहचान में नहीं आएगी.’’

मैं कुछ जवाब देने ही जा रहा था कि ट्रेन आ गई. प्लेटफौर्म पर हलका सा कंपन हुआ और लोग सतर्क हो गए. शोर करता इंजन और कुछ डब्बे मेरे पास से गुजरे. अभी गाड़ी रुकी भी नहीं थी कि कुछ लोग दौड़ कर ट्रेन पर चढ़ गए.

गाड़ी के रुकने पर आरक्षित डब्बा मेरे सामने ही आया. लोग इस डब्बे की ओर भी दौड़े. अमित ने कहा, ‘‘ट्रेन यहां पर सिर्फ 2 मिनट रुकेगी. आप ज्यादा न सोचें, इसी डब्बे में चढ़ जाएं.’’

लपकती भीड़ को देख कर मैं ने सोचा, यह अवसर भी यदि निकल गया तो ट्रेन छूट जाएगी और मैं ऐसे ही बुत बना प्लेटफौर्म पर खड़ा रह जाऊंगा.

अत: मैं जल्दी से उस आरक्षित डब्बे में चढ़ गया. तभी मुझे धक्का देते हुए और लोग भी उसी डब्बे में चढ़ गए. भीड़ की वजह से मैं अमित की शक्ल दोबारा न देख सका. तभी ट्रेन चल पड़ी.

पीछे के यात्रियों ने धक्के दे कर मुझे डब्बे के भीतर पहुंचा दिया था. लेकिन भीतर भी बहुत बुरा हाल था. दरवाजे के गलियारे में एकदूसरे से सटे जितने यात्री खड़े थे उन से 3 गुना उन का सामान रखा था. बड़ीबड़ी गठरियां, सूटकेस, थैले, टिन के डब्बे, छतरी, अनाज की बोरी, दूधियों के दूध वाले डब्बे आदि खड़े यात्रियों की परेशानियां बढ़ा रहे थे.

गलियारे से दाहिने मुड़ने पर सीटों के मध्य में एक लंबा गलियारा था

जिस में भीड़ अपेक्षाकृत कुछ कम थी. मैं वहीं चला गया. वहां दोनों तरफ की खिड़कियों से हवा आ रही थी, तो घुटन कुछ कम हुई.

मैं खड़े ?हुए लोगों के मध्य से किसी तरह थोड़ाथोड़ा खिसकता हुआ डब्बे के मध्य भाग में पहुंचा. आरक्षित टिकट पर सफर करने वाले यात्रियों का मूड बेहद खराब नजर आ रहा था. नाराज होने के बावजूद भारी भीड़ देख कर वे चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझ रहे थे.

उन में से कइयों ने अपनी सीटें बचाने के लिए औरतों और बच्चों को पूरी सीट पर लिटा दिया था. कुछ लोग अपनी आंखों पर हाथ रख कर गहरी नींद में सोने का दिखावा करने लगे थे. कुछ होशियार लोगों ने खाने का सामान अपनी सीटों पर फैला लिया था और वक्त से पहले खाना भी शुरू कर दिया था. जहां एक परिवार के अधिक सदस्य थे, उन्होंने समूह बना कर ताश की बाजी या शतरंज बिछा ली थी.

मेरे सामने वाली सीट पर एक महिला लेटी थी. मैं और मेरे साथ खड़े लोग उस भद्र महिला को बैठने के लिए मजबूर नहीं करना चाहते थे.

लेकिन तभी वहां पर शक्ल और लिबास से मजदूरों जैसी दिखने वाली 3 औरतें आईं. उन्होंने उस महिला को उठ कर बैठने के लिए मजबूर कर दिया. एक स्त्री ने बड़ी रुखाई से कहा, ‘‘उठ कर बैठ जाओ, बहनजी. देखती नहीं हो, मेरी गोद में छोटा बच्चा है.’’

वह महिला उठ कर बैठ गई. इस उत्तम अवसर का लाभ उठा कर वे तीनों मजदूर औरतें वहां घुस कर बैठ गईं. वे तीनों आपस में ऊंचे स्वर में बातें करती जा रही थीं.

एक बोली, ‘‘अमीर लोगों का कुछ नहीं बिगड़ता. गरीब लोगों को सताने सब आ जाते हैं.’’

दूसरी बोली, ‘‘मैं ने टिकट बाबू को साफसाफ बोल दिया, मेरे से ज्यादा बोलेगा तो सिर पर यह डब्बा फेंक कर मार दूंगी,’’ उस के हाथ में एक छोटा सा खाली टिन का डब्बा था.

तीसरी स्त्री को हंसी आ गई. उस ने हंसते हुए पूछा, ‘‘फिर क्या हुआ?’’

दूसरी बोली, ‘‘अरे, होना क्या था… वह तो डर के मारे इस डब्बे में चढ़ा ही नहीं. किसी और डब्बे में होगा मरा कहीं का.’’

उसी समय उस का बच्चा रोने लगा. उसे चुप कराते हुए बोली, ‘‘अरे…अरे… मत रो मेरे राजा बेटे, तेरे को भूख लगी है क्या? अरे, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है.’’

फिर उस भद्र महिला से कहा, ‘‘बहनजी, तुम्हारे पास 1-2 बिस्कुट हों तो दे दो न. क्या करूं…बहनजी, इस का बाप तो गाड़ी में चढ़ा कर चला गया. एक बिस्कुट का डब्बा भी नहीं दिया.’’

वह महिला पढ़ीलिखी एवं समझदार थी. उन औरतों की फूहड़ता का बुरा माने बिना उस ने 4-5 बिस्कुट निकाल कर उस औरत को दे दिए. उस की गोद का बच्चा बिस्कुट ले कर चुप हो गया.

अभी यह दृश्य चल ही रहा था कि मुझे अचानक अपने सामने खड़े आदमी का धक्का लगा. उसे हटा कर एक लंबी सफेद दाढ़ी वाले बूढ़े मियांजी मेरे सामने प्रकट हुए और बोले, ‘‘भाईसाहब, आप ने कोई हरे रंग का सूटकेस देखा है?’’

‘‘कैसा सूटकेस?’’ मैं ने आश्चर्य के साथ उन से पूछा.

‘‘मेरे कपड़ों का सूटकेस. भाईसाहब, 2 घंटे पहले वह सूटकेस मेरे पांवों के पास ही पड़ा था. अब पता नहीं कहां चला गया,’’ उस ने दार्शनिक अंदाज में कहा.

‘‘कोई अन्य यात्री उठा कर ले गया होगा. अपने सूटकेस का आप को ध्यान रखना चाहिए था,’’ मैं ने जवाब दिया.

‘‘जनाब, क्या उस में सोनाचांदी भरा था जो ध्यान रखता? खादी के कपड़े थे. जो भलामानस ले जाएगा, पछताएगा,’’ कहते हुए मियांजी आगे बढ़ गए.

मेरी पीठ की तरफ दूसरा ही नजारा था. पलट कर देखा, सामने महिलाओं का कूपा था लेकिन उस में 6-7 महिलाओं के अलावा 7-8 आदमी भी घुस कर बैठे हुए थे. एक बूढ़ी औरत के पास आमों का थैला रखा हुआ था. उन आमों पर कूपे के बाहर खडे़ एक सरदारजी के लड़के की निगाह लगी थी. लड़का 8-9 वर्ष का होगा. उस के पिता कूपे के बाहर खड़े हुए मन ही मन  अंदाज लगा रहे थे कि अंदर बैठने के लिए कितनी जगह निकाली जा सकती है.

अपना गणित जोड़ने के बाद सरदारजी ने बूढ़ी औरत से कहा, ‘‘माताजी, मैं आप का यह थैला ऊपर की बर्थ पर रख देता हूं. यहां पर इस बच्ची को बिठा लीजिए,’’ अपना वाक्य खत्म करते ही उन्होंने बिना प्रतीक्षा किए फौरन थैला ऊपर की बर्थ पर रख दिया और अपनी लगभग 10 वर्ष की लड़की को थैले की जगह पर बिठा दिया. इस के बाद अपने पुत्र से कहा, ‘‘काके, तू ऊपर वाली बर्थ पर चला जा.’’

काका तो यही चाहता था. उस ने जल्दी से सीट के पास लगे पायदान पर पांव रखा और उचक कर ऊपर पहुंच गया.

बूढ़ी औरत के पड़ोस में बैठा एक  नौजवान कोई फिल्मी पत्रिका पढ़ रहा था. पढ़तेपढ़ते उसे जम्हाई आने लगी तो पत्रिका को अपनी गोद में रख कर वह खिड़की से बाहर झांकने लगा.

सरदारजी ने मौके का लाभ उठाते हुए उस से कहा, ‘‘भाईसाहब, जरा अपनी पत्रिका दीजिए, इस में श्रीदेवी की तसवीर उस के नए प्रेमी के साथ छपी हुई है. अभी 1 मिनट में देख कर आप को लौटाता हूं.’’

वह नौजवान कुछ बोल नहीं सका. उस ने पत्रिका चुपचाप सरदारजी को दे दी. सरदारजी आनंदित होते हुए पत्रिका के फोटो देखने लगे.

अचानक भीड़ का एक धक्का मुझे फिर लगा. देखा, बूढ़े मियांजी पूरे डब्बे का चक्कर लगा कर लौट रहे हैं. भीड़ को धकिया कर चलना उन्हें इस उम्र में भी आता था. उन के हाथ में हरे रंग का एक सूटकेस दिखाई दे रहा था, यानी उन का खोया हुआ सामान मिल गया था.

मैं ने आश्चर्य के साथ पूछा, ‘‘मियांजी, सूटकेस कहां मिला?’’

वे बोले, ‘‘डब्बे के आखिरी कोने तक यह खिसकता हुआ चला गया था.’’

मियांजी को सूटकेस मिलने की मुझे बहुत खुशी थी, लेकिन उन का भावहीन चेहरा देख कर लग रहा था कि उन्हें सूटकेस खोने का न कोई गम था और न ही मिलने की खुशी. उन्होंने महिला कूपे के दरवाजे पर सूटकेस को उसी लापरवाही के साथ पटक दिया.

सूटकेस से ज्यादा मियांजी को नमाज की चिंता थी. वे उसी महिला कूपे में घुसे और ऊपर की बर्थ पर रखा सामान अपने हाथ से खिसकाया और थोड़ी सी जगह बना कर बर्थ के ऊपर चढ़ गए. फिर

एक गमछा बिछाया और नमाज पढ़ने लगे.

मेरे दायीं तरफ खिड़की के पास एक बर्थ पर एक स्त्री और पुरुष बैठे हुए थे, जो पतिपत्नी लग रहे थे. वे बीच में अखबार बिछा कर उस पर रखे डब्बे से धीरेधीरे खाना खा रहे थे. मेरे आसपास खड़े लोग उन की बर्थ को ललचाई दृष्टि से देख रहे थे. किंतु उन की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बैठने के लिए सीट की मांग करें. उस दंपती ने, जो खाना कम खा रहे थे बातचीत ज्यादा कर रहे थे, अपने क्रम को लगातार बनाए रखा.

उसी समय मुजफ्फरनगर स्टेशन आ गया. गाड़ी रेंगते हुए स्टेशन पर रुकी. तभी वह व्यक्ति अपनी पत्नी से बोला, ‘‘खाने में मजा नहीं आ रहा है, इंदु. मैं पकौडि़यां ले कर आता हूं.’’

पत्नी ने चुपचाप सिर हिला दिया. पति पकौडि़यां लेने उतर गया…4 मिनट के बाद ट्रेन छूट गई.

मुझे चिंता होने लगी कि पकौडि़यां लेने गए भाईसाहब अभी तक नहीं लौटे, शायद वे मुजफ्फरनगर स्टेशन पर ही न रह गए हों. लेकिन उन की पत्नी के चेहरे पर चिंता के भाव दिखाई नहीं दे रहे थे. खाना वैसे ही फैला हुआ था. वह पति का इंतजार करती रही.

20 मिनट के बाद पति महोदय पकौडि़यां ले कर वापस आए.

‘‘बड़ी देर लगा दी,’’ पत्नी ने पूछा.‘‘हां, देर हो गई. स्टेशन पर एकदम ठंडी पकौडि़यां थीं, इसलिए मैं पिछले डब्बे में स्थित भोजनालय में चला गया था. यह लो आलूबडे़, कितने गरम हैं. मैं वहां के बैरे से आधे घंटे बाद कौफी लाने के लिए बोल आया हूं,’’ पति ने उत्साहपूर्वक कहा.

उन की सीट पर गिद्ध की निगाह रखने वाले यात्रियों को अब इस बर्थ पर बैठ पाने की आशा धूमिल होती दिखाई देने लगी थी.

उस दंपती ने फिर वही कथा दोहराई. आधे घंटे तक धीमी गति से खाना चलता रहा. इस के बाद कौफी ले कर बैरा आया तो पति ने गुर्रा कर कहा, ‘‘अरे, इतनी जल्दी तुम कौफी ले कर आ गए. तुम से कहा था कि आधे घंटे बाद आना. अभी तो हमारा खाना भी खत्म नहीं हुआ.’’बैरे ने कहा, ‘‘साहब, आप अपनी घड़ी देखिए. मैं पूरे 35 मिनट बाद कौफी ले कर आया हूं.’’

मजबूरी में कौफी स्वीकार करते हुए पति बोला

इस का कोई जवाब उन्होंने नहीं दिया. मजबूरी में कौफी स्वीकार करते हुए पति बोला, ‘‘कौफी एकदम गरम लाने को बोला था. तुम इतनी ठंडी कौफी लाए हो.’’

‘‘इस से ज्यादा गरम कौफी हमारे पास नहीं है साहब,’’ बैरे ने उत्तर दिया .

‘‘ठीक है, इसे छोड़ जाओ,’’ पति का मूड खराब हो चुका था. पत्नी पति को तसल्ली देते हुए बोली, ‘‘मेरठ में गरम कौफी मिलेगी. स्टेशन से ले लेना.’’

‘‘अच्छा,’’ पति बोला. इस के बाद दोनों खाने के डब्बे को बर्थ पर ही बिखरा हुआ छोड़ कौफी पीने लगे. कौफी पी कर उन्होंने टिफिन के साथ ही कौफी के गिलास भी रख दिए. किसी यात्री की दाल नहीं गल रही थी कि वहां बैठ सके.

महिला कूपे में सरदारजी को बैठने की जगह मिल गई थी

तभी मेरठ का प्लेटफौर्म आ गया. वह व्यक्ति फिर से गरम कौफी लेने नीचे उतर गया. मेरठ स्टेशन पर हमारे डब्बे के काफी यात्री उतर गए. लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ा, काफी तादाद में यात्री डब्बे में चढ़ भी आए.

मियांजी अपना हरा सूटकेस ले कर मेरठ उतर गए. महिला कूपे में सरदारजी को बैठने की जगह मिल गई थी. उन्होंने पड़ोस में बैठे यात्री की फिल्मी पत्रिका अभी तक लौटाने की जरूरत नहीं समझी थी. श्रीदेवी के बाद अब वे किसी और अभिनेत्री की तसवीर देखने में तल्लीन थे.

सरदारजी का काका उसी मुसकराहट और मस्ती के साथ ऊपरी बर्थ पर विराजमान था. वह पास में रखे थैले में से आम निकाल कर रस चूस रहा था. आम चूसने के बाद गुठली और छिलका उसी थैले में डाल देता था. थैले की मालकिन बूढ़ी महिला निचली बर्थ पर बैठी हुई ऊंघ रही थी. उसे कुछ पता ही नहीं था. ट्रेन  ने एक लंबी सीटी दे कर मेरठ स्टेशन छोड़ा, तब तक यात्रियों की भारी भीड़ डब्बे में घुस चुकी थी. मेरी दायीं ओर की बर्थ वाला व्यक्ति कौफी ले कर अभी तक नहीं लौटा था. उस की पत्नी इंतजार कर रही थी.

10 वर्षीया बेटी का हाथ पकड़े हुए था

तभी अधेड़ उम्र का एक आदमी अपनी पत्नी और 2 बच्चों को ले कर भीड़ को चीरता हुआ कूपे के करीब आया. शक्लसूरत से ऐसा लगता था जैसे किसी फैक्टरी में वह मेहनतमजदूरी करता हो. उस के सिर पर 2 भारी सूटकेस, हाथ में बड़ा सा थैला और बगल में एक झोलानुमा चीज दबी हुई थी. एक हाथ में वह अपनी लगभग 10 वर्षीया बेटी का हाथ पकड़े हुए था. उस की एकदम काले रंग की पत्नी के हाथ में भी ढेर सारा सामान था और अपने एक लड़के का हाथ पकड़ कर वह लगभग उसे खींच रही थी.

लोगों को धकेलता, मस्तानी चाल से चलता हुआ वह मेरे करीब आया और बोला, ‘‘भाईसाहब, 10 और 11 नंबर की बर्थ कहां होंगी?’’

मैं ने तिरछी नजरों से देखा. 11 नंबर की बर्थ वही थी जहां उस दंपती ने अपना खाना फैला कर रखा हुआ था. पति कौफी लेने गया था और अभी तक लौटा नहीं था.

10 और 11 नंबर की बर्थ के विषय में सुन कर उस महिला के कान खड़े हो गए. वह चौंकी, किंतु कुछ बोली नहीं. 11 नंबर की बर्थ पर तो उस ने व उस के पति ने कब्जा कर रखा था. और ऊपर वाली 10 नंबर की बर्थ पर बहुत सारा सामान रखा हुआ था.

मैं ने उत्सुकतावश उस व्यक्ति से पूछ लिया, ‘‘क्या आप ने मेरठ से बर्थ आरक्षित कराई है?’’

‘‘अरे नहीं साहब. हमारा आरक्षण तो हरिद्वार से चला आ रहा है. हरिद्वार में हम स्टेशन पर देरी से पहुंचे, ट्रेन छूटने वाली थी. अत: हम जल्दी में गलत डब्बे में घुस गए. इस के बाद हर स्टेशन पर भीड़ ही भीड़ मिली. बच्चों और सामान के साथ अपनी सीट तक पहुंच ही नहीं सके.’’

मुझ से बातें करते हुए वह आदमी हर बर्थ का नंबर भी पढ़ता जा  रहा था. अचानक उस की निगाह 11 नंबर बर्थ पर पड़ी. उस ने शीघ्र ही 10 नंबर भी ढूंढ़ लिया. 10 नंबर की बर्थ पर थोड़ा सा सामान खिसका कर पहले तो उस ने सिर और  हाथ का बोझ हलका किया. सूटकेस और थैला वहां रखा, फिर 11 नंबर बर्थ पर बैठी महिला की ओर देख कर बोला, ‘‘मैडम, ये 10 और 11 नंबर की सीटें हम ने हरिद्वार से आरक्षित कराई हैं.’’

उस आदमी को अनपढ़ और मूर्ख समझ कर बर्थ वाली स्त्री बोली, ‘‘ये सीटें हमारे पास देहरादून से ही हैं. इन पर हमारा आरक्षण है.’’

‘‘अगर ये सीटें आप के पास हैं तो अपना आरक्षण वाला टिकट आप देख लीजिए,’’ उस ने जेब से निकाल कर टिकट दिखाए, ‘‘सीट नंबर भी यही है और डब्बा भी यही है. इस डब्बे पर बाहर लगे आरक्षण चार्ट में मेरा और मेरी पत्नी का नाम लिखा है, मोहन कुमार और सरोज बाला.’’

‘‘टिकट मेरे पति के पास है. अभी आ कर दिखा देंगे,’’ बर्थ पर बैठी महिला बोली. इस के बाद कुछ देर तक वे लोग चुप रहे. 20-25 मिनट के बाद उस स्त्री का पति लौटा.

मोहन कुमार ने उस महिला के पति से भी अपनी वही बात दोहराई. इस के जवाब में पति ने अपना टिकट तो नहीं दिखाया, उलटे कहने लगा, ‘‘हमें टिकटचैकर ने यहां बिठाया था. हम ने उसे 40 रुपए दिए थे.’’

‘‘आप ने यदि 40 रुपए की रसीद ली है तो दिखाइए. मैं भी रेलवे में काम करता हूं. मुझे टिकटचैकर ने ही इस डब्बे में भेजा है,’’ मोहन कुमार बोला.

‘‘रसीद नहीं बनाई. अभी आ कर बनाएगा.

हम को देहरादून में टिकटचैकर ने यह बर्थ सौंपी थी,’’ पति बोला.लोग उस की बातें सुन कर साफसाफ समझ रहे थे कि वह झूठ बोल रहा है.

तभी मोहन कुमार की पत्नी बोली, ‘‘अरे, आप इतनी देर से इस के साथ क्यों अपना माथा खराब कर रहे हैं. अभी जा कर टिकटचैकर को बुला लाओ. अगर उस ने इन को यहां पर बिठाया है तो मैं शिकायत करूंगी.’’

सब को एहसास हुआ कि वह काली सी औरत समझदार और पढ़ीलिखी है. मोहन कुमार तुरंत वहां से चला गया.15-20 मिनट बाद वह टिकटचैकर को साथ ले कर लौटा. चैकर ने आ कर पति महोदय को साफसाफ बताया, ‘‘आप को यह सीट खाली करनी पड़ेगी. आप के पास इस सीट की कोई रसीद है तो दिखाइए.’’

अब पति हकलाया, ‘‘लेकिन… देहरादून में महेंद्र कुमार टिकटचैकर ने यहां बैठने के लिए कहा था.’’

‘‘मुझे नहीं पता, आप को किस ने बोला था. देहरादून से ले कर दिल्ली तक इस ट्रेन में मेरी ड्यूटी है. हमारे यहां कोई महेंद्र कुमार नहीं है. आप सीट इसी समय खाली कर दीजिए,’’ टिकटचैकर ने कहा, इस के बाद उस ने मोहन कुमार से कहा, ‘‘सीट नंबर 10 और 11 आप की हैं. आप इन पर बैठ सकते हैं.’’

इस के बाद वह वहां से चला गया.

सब कुछ ऐसे घटित हो गया था कि बर्थ पर अवैध कब्जा जमाए दंपती को बचाव का कोई रास्ता नजर नहीं आया. अब बर्थ पर बैठी स्त्री की जबान में एकदम मिठास आ गई. उस ने काले चेहरे वाली सरोज बाला से कहा, ‘‘आप यहां बैठिए, बहनजी, हमें तो सिर्फ दिल्ली तक जाना है, अभी 15 मिनट में उतर जाएंगे.’’

सरोज बाला बर्थ पर बैठ गई. हाथ का थैला उस ने बाजू में रख लिया.

उस महिला के पति ने मोहन कुमार के लिए जगह छोड़ दी, ‘‘आप बैठिए भाईसाहब.’’

मोहन कुमार खुद तो नहीं बैठा. उस ने अपनी लड़की को बिठा दिया. बर्थ वाली स्त्री ने अपना डब्बा और खाने का सामान जल्दीजल्दी समेट लिया लेकिन स्वयं सीट पर बैठी रही. बोली, ‘‘देखिए बहनजी, उस टिकटचैकर ने देहरादून में कैसे हम लोगों से 40 रुपए की ठगी कर ली . अब पता नहीं कहां गायब हो गया.’’

सरोज बाला कुछ नहीं बोली लेकिन कुछ देर बाद उस ने कहा, ‘‘अब तो 15 मिनट में दिल्ली स्टेशन आने वाला है.’’

कुछ देर चुप्पी रही. फिर वह महिला मोहन कुमार की तरफ  इशारा कर के बोली, ‘‘भाईसाहब, यदि आप बैठना चाहें तो मैं सीट छोड़ दूं?’’

‘‘नहींनहीं, आप बैठिए. 10-15 मिनट की बात है…आप का स्टेशन आने वाला  है,’’ मोहन कुमार बोला.

‘‘आप रेलवे में क्या काम करते हैं?’’ उस स्त्री के पति ने मोहन कुमार से पूछा.

‘‘मैं कलकत्ता के रेलवे शेड में सहायक फोरमैन हूं. 1 महीने की छुट्टी व रेलवे का पास ले कर घूमने निकला हूं. अब हरिद्वार से बंबई जा रहा हूं.’’

मोहन कुमार के साथ वह व्यक्ति घुलमिल कर बातें करने लगा. 15 मिनट कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला.

दिल्ली स्टेशन आ गया. गाड़ी धीमी गति से प्लेटफौम पर खड़ी हो गई.

पतिपत्नी ने अपना सामान उठाया और मोहन कुमार के परिवार से विदा लेते हुए नीचे उतर गए.मोहन कुमार ने पूरी तसल्ली के साथ अपना सामान जमा कर बच्चों व पत्नी सहित बर्थ पर कब्जा कर लिया.

इस डब्बे से अधिकांश सवारियां उतर गईं. मैं भी उतर गया. उतरने के बाद मैं सोचता रहा कि मुझे व मेरे जैसे कई लोगों को सारे रास्ते खड़ेखड़े यात्रा करनी पड़ी. लेकिन वह अनजान दंपती, मजदूर औरतें और सरदारजी अपनी कुशलता, चालाकी व शक्ति के बल पर सीटें पा गए. सच, यह कहावत गलत नहीं है, जिस की लाठी उस की भैंस.

ऐसे करें तुलसी की खेती

तुलसी का पौधा खास औषधीय महत्त्व वाला होता है. इस के जड़, तना, पत्ती समेत सभी भाग उपयोगी हैं. यही कारण है कि इस की मांग लगातार बढ़ती ही चली जा रही है. मौजूदा समय में इसे तमाम मर्जों के घरेलू नुस्खों के साथ ही साथ आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी व एलोपैथी की तमाम दवाओं में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है. इस की पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल पाया जाता है, जो कीड़ों और बैक्टीरिया के खिलाफ काफी कारगर होता है.

अब बढ़ती मांग के कारण तुलसी केवल आंगन की नहीं रह गई है, बल्कि इस की मांग वैश्विक हो चुकी है. तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है. पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछकुछ नीलीबैगनी रंग की पत्तियों वाली. खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है. अगर किसान सही तरीके से मार्केटिंग का मंत्र जान लें, तो इस में कोई शक नहीं कि यह भरपूर मुनाफा देने वाली फसल सबित होगी.

मिट्टी : तुलसी की खेती आमतौर पर सामान्य मिट्टी में आसानी से हो जाती है. मोटेतौर पर कहें तो अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी व समतल बलुई दोमट, क्षारीय और कम लवणीय मिट्टी में इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : तुलसी की खेती के लिए गरम जलवायु बेहतर है. यह पाला बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती है.

कब लगाएं : इस की नर्सरी फरवरी के अंतिम हफ्ते में तैयार करनी चाहिए. यदि अगेती फसल लेनी है, तो पौधों की रोपाई अप्रैल के मध्य से शुरू कर सकते हैं. वैसे मूल रूप से यह बरसात की फसल है, जिसे गेहूं काटने के बाद लगाया जाता है.

खेत की तैयारी : सब से पहले गहरी जुताई वाले यंत्रों से 1 या 2 गहरी जुताई करने के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल कर देना चाहिए. इस के बाद सिंचाई और जलनिकास की सही व्यवस्था करते हुए सही आकार की क्यारियां बना लेनी चाहिए.

नर्सरी और रोपाई का तरीका : 1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 200-300 ग्राम बीजों से तैयार पौध सही होतेहैं. बीजों को नर्सरी में मिट्टी के 2 सेंटीमीटर नीचे बोना चाहिए. बीज अमूमन 8-12 दिनों में उग आते हैं. इस के बाद रोपाई के लिए 4-5 पत्तियों वाले पौधे लगभग 6 हफ्ते में तैयार हो जाते हैं. प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर और

पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंटीमीटर जरूर रखनी चाहिए.

खाद और उर्वरक : तुलसी के पौधे के तमाम भागों को ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है, इसलिए बेहतर होगा कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न करें या बहुत कम करें. 1 हेक्टेयर खेत में 10-15 टन खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कंपोस्ट सही रहती है. यदि रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ ही जाए तो मिट्टी की जांच के अनुसार ही इन का इस्तेमाल करना चाहिए. सिफारिश की गई फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जुताई के समय व नाइट्रोजन की कुल मात्रा 3 भागों में बांट कर 3 बार में इस्तेमाल करनी चाहिए.

सिंचाई : पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चहिए. उस के बाद मिट्टी की नमी के मुताबिक सिंचाई करनी चहिए. वैसे गरमियों में हर महीने 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. बरसात के मौसम में यदि बरसात होती रहे, तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है.

कटाई : जब पौधों में पूरी तरह फूल आ जाएं तो रोपाई के 3 महीने बाद कटाई का सही समय होता है. ध्यान रहे कि तेल निकालने के लिए पौधे के 25-30 सेंटीमीटर ऊपरी शाकीय भाग की कटाई करनी चाहिए.

पैदावार : मोटेतौर पर तुलसी की पैदावार तकरीबन 5 टन प्रति हेक्टेयर साल में 2-3 बार ली जा सकती है.

आमदनी : आमदनी तेल की गुणवत्ता, मात्रा, बाजार मूल्य और किसान की समझदारी पर निर्भर होती है. फिर भी माहिरों के अनुसार 1 हेक्टेयर खेत से लगभग 1 क्विंटल तेल की प्राप्ति होती है, जिस से तकरीबन 40000-50000 रुपए हासिल किए जा सकते हैं. सब से अच्छा होगा कि इस की खेती करने से पहले मार्केटिंग के बारे में गहराई से जानकारी इकट्ठा कर लें ताकि इसे बेचने के लिए भटकना न पड़े और उत्पाद का वाजिब मूल्य भी मिल सके.

क्या कहते हैं जानकार : तुलसी की खेती के बारे में केंद्रीय औषधि व सगंध पौध संस्थान (सीमैप) लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के वैज्ञानिक डा. आरके श्रीवास्तव कहते हैं, ‘यह 90 दिनों में होने वाली बरसात की फसल है, जिस में रोग और कीट बहुत ही कम लगते हैं. परंतु इस में पानी 2 दिन भी नहीं ठहरना चाहिए, अगर पानी ठहरता है, तो फसल का नुकसान तय है. संस्थान ने तमाम ऐसी प्रजातियां विकसित की हैं, जिन में रोगों व कीटों का प्रकोप बहुत कम होता है. सीमैप, सौम्या और विकार सुधा अच्छी प्रजातियां हैं.’

पैरों की अनदेखी पड़ सकती है भारी

शरीर की देखभाल में हम सब से कम महत्त्व पैरों की देखभाल को देते हैं. हम दिन में कई बार चेहरे पर क्रीम लगाते हैं, लेकिन पैरों को नजरअंदाज करते हैं, जबकि इन की देखभाल को नजरअंदाज करने के घातक परिणाम हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण, कौर्न्स, पैरों की त्वचा में दरारें, दुर्गंध आदि समस्याएं हो सकती हैं. बरसात के मौसम में तो पैरों की देखभाल पर विशेष ध्यान देना और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि इस मौसम में पैर गंदे पानी के संपर्क में ज्यादा आते हैं. अगर पैरों की त्वचा में खुजली, सूजन या त्वचा के उखड़ने जैसी समस्या हो तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें, क्योंकि यह गंभीर त्वचा ऐलर्जी हो सकती है, जिस का तत्काल इलाज जरूरी है.

उपाय पैरों की देखभाल के

पैरों को अच्छी तरह धोएं: पैरों की त्वचा बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती है. हालांकि हम दिन में अधिकतर समय मोजे और जूते पहने होते हैं तो भी पैर इन में मौजूद बैक्टीरिया और फंगस के संपर्क में रहते हैं. इस के अलावा पैर फर्श पर जमी धूल और गंदगी के संपर्क में भी रहते हैं. अगर पैरों को ठीक से धोया और साफ न किया जाए तो पैरों की उंगलियों के बीच की त्वचा बैक्टीरिया और फंगस के संक्रमण के पनपने के लिए आदर्श जगह होती हैं. इसलिए अपने पैरों को दिन में कम से कम एक बार साबुन से धोना बहुत जरूरी है ताकि उन में जमी गंदगी और पसीना साफ हो जाए.

पैरों को रखें सूखा: ऐथलीट्स फुट पैरों का आम फंगल संक्रमण है, जो खुजली, जलन, त्वचा उखड़ने के साथसाथ फफोले भी पैदा कर सकता है. ऐथलीट्स फुट जैसे फंगल संक्रमण के लिए पैरों की नमी एक आदर्श स्थिति है. इसलिए पैरों को धोने के बाद उन्हें सुखाना, विशेषरूप से उंगलियों के बीच की जगह को सुखाना बहुत ही जरूरी है.

पैरों को नियमित मौइश्चराइज करें: सिर्फ चेहरे और हाथों को ही मौइश्चराइज न करें, पैरों पर भी ध्यान दें, क्योंकि उन में नमी की कमी होने पर पैरों की त्वचा सूखी, पपड़ीदार हो सकती है. यहां तक कि फट भी सकती है. पैरों की त्वचा फटने पर विशेषकर एडि़यों की त्वचा फटने पर बेहद शुष्क और कड़ी हो जाती है. उस के बाद यह हिस्सा गंदगी और मैल के लिए चुंबक का काम करता है. फटी एडि़यां देखने में भद्दी ही नहीं लगती हैं, बल्कि उन में दर्द भी हो सकता है. इसलिए रोजाना पैरों को धोने के बाद उन पर मौइश्चराइजिंग क्रीम जरूर लगाएं. कोकोआ बटर या पैट्रोलियम जैली अच्छे विकल्प हो सकते हैं.

खुरदरी त्वचा हटाएं: मृत त्वचा को मौइश्चराइज करने से कोई फायदा नहीं होगा. इसलिए महीने में एक बार ऐक्सफौलिएट कर मृत त्वचा को हटाना जरूरी है. ऐसा प्युमिक स्टोन या लूफा से किया जा सकता है, लेकिन हलके हाथों से. ये कठोर मृत त्वचा पर जमी गंदगी को हटाने में भी मदद करते हैं. मृत त्वचा को हटाने के बाद उसे मौइश्चराइजर लगा कर हाइड्रेट करें और रात भर ऐसे ही छोड़ दें. चीनी और जैतून के तेल के मिश्रण में कुछ बूंदें मिंट या टी ट्री औयल मिला कर भी स्क्रबिंग की जा सकती है, क्योंकि इस में बैक्टीरियारोधी गुण होते हैं.

पैरों को पैंपर करें: महीने में 2 बार पैरों को 10 से 15 मिनट गरम पानी में भिगोए रखें. इस से त्वचा के नर्म होने में मदद मिलती है. फिर पैरों को अच्छी तरह सुखाएं और विटामिन ई युक्त कोल्ड क्रीम लगाएं. यदि पैर संक्रमण के प्रति अतिसंवेदनशील हैं, तो ऐंटीबैक्टीरियल क्रीम का इस्तेमाल करें. आप हाइड्रेटिंग मास्क के रूप में मसले केले में नीबू का रस मिला कर भी इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे पूरे पैर पर लगाएं और 20 मिनट बाद कुनकुने पानी से धो लें. बाहर जाने से या सोने से पहले मौइश्चराइजिंग फुट क्रीम अथवा पैट्रोलियम जैली लगाएं.

मोजे पहनें: मोजे धूल, गंदगी से पैरों की रक्षा करते हैं. यही नहीं ये पराबैगनी विकिरण से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं.

आरामदायक जूते पहनें: हमेशा आरामदायक जूते पहनें. तंग जूते पहनने से बचें, क्योंकि वे त्वचा में संक्रमण या घावों को जन्म दे सकते हैं. ऊंची एड़ी के जूतेचप्पलें नियमित पहनने से बचें, क्योंकि वे पैरों के ऊतकों और लिगामैंट को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

– डा. सपना वी रोशनी, प्लास्टिक ऐंड रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन, कोकूना सैंटर फौर ऐस्थैटिक ट्रांसफौर्मेशन, नई दिल्ली

Infection के आसान शिकार बच्चे

बच्चों में 3 तरह की एलर्जी देखने को मिलती हैं. एयर बौर्न एलर्जी, फूड एलर्जी और इंसैक्ट बाइट एलर्जी.

एयर बौर्न  एलर्जी : बच्चों में होने वाली सब से सामान्य एलर्जी एयर बौर्न एलर्जी यानी हवा के द्वारा होने वाली एलर्जी होती है. यह एलर्जी धूल, घरेलू गंदगी पर रेत के कण, फूलों के परागकण, हवा में प्रदूषण और फंगस आदि से होती है.

एयर बौर्न एलर्जी होने पर कई बच्चों को रैशेज हो जाते हैं, त्वचा पर लाललाल चकत्ते बन जाते हैं. अगर सांस के रास्ते की एलर्जी है तो बच्चे की सांस फूलने लग जाती है, कइयों की नाक बहना शुरू हो जाती है, खांसी आने लगती है, आंखों से पानी आने लगता है और वे लाल हो जाती हैं.

यह भी जानना जरूरी है कि एयर बौर्न एलर्जी, जो बच्चों में होने वाली एलर्जी का प्रमुख कारण है, के कारण नाक, कान और गला सब से ज्यादा प्रभावित होते हैं. ऐसे में एलर्जी का सही समय पर सही इलाज न कराने से बड़े होने पर बच्चों को इन अंगों से संबंधित समस्याएं ज्यादा होती हैं.

इतना ही नहीं, इस से बच्चे की वृद्धि भी प्रभावित होती है क्योंकि परेशानी के कारण बच्चा रातभर सोएगा नहीं. ऐसे में चिड़चिड़ा होने के साथ ही उस की एकाग्रता भी प्रभावित होगी. छोटे बच्चों में इस तरह की एलर्जी उस के विकास को सब से ज्यादा प्रभावित करती है.

फूड एलर्जी : 1 या 2 प्रतिशत बच्चों में फूड एलर्जी यानी खा- पदार्थों से एलर्जी होती है, क्योंकि छोटे बच्चे बहुतकुछ खाते नहीं हैं, तो ऐसे में इस एलर्जी के होने की संभावना बहुत कम होती है.

ऐसे बच्चों में ज्यादातर एलर्जी की शिकायत तब देखी जाती है जब उन्हें कोई नया खा- पदार्थ दिया जाता है. इतना ही नहीं, दूध से भी कुछ बच्चों को एलर्जी होती है. ऐसा उन बच्चों को होता है जिन के घर वाले बच्चे के 1 साल का होने के पहले ही उसे गाय का दूध देना शुरू कर देते हैं. हालांकि, ऐसा बहुत कम होता है.

फूड एलर्जी होने पर कई बच्चों को जहां पेटदर्द होता है, वहीं कई बच्चों को पेट में मरोड़ उठने शुरू हो जाते हैं. कई बार फूड एलर्जी होने पर बच्चों की त्वचा पर रैशेज भी हो जाते हैं. गहरे रंग की पोटी होनी शुरू हो जाती है. हजार में से एक बच्चे की पोटी में खून भी निकल आता है. ऐसा होने पर बच्चे बहुत ज्यादा रोने लगते हैं, बेचैन से हो जाते हैं, सोते नहीं हैं, चिड़चिड़े हो जाते हैं. पेटदर्द के कारण बच्चे बेहद पैनिक हो जाते हैं.

इंसैक्ट बाइट एलर्जी : कई बार बच्चों को कीड़ेमकोड़ों के काटने से एलर्जी हो जाती है. इंसैक्ट बाइट एलर्जी होने पर कीड़े के काटने वाली जगह पर वैसा ही निशान सा बन जाता है, जैसे मच्छर के काटने पर बनता है. स्किन पर दाने या चकत्ते बन जाते हैं, खुजली होनी शुरू हो जाती है. इस तरह की एलर्जी तब होती है जब बच्चा या तो पार्क में चला जाए और वहां उसे कोई कीड़ा काट ले. कई लोग अपने घर में कुत्ते, बिल्ली, तोता आदि पालते हैं. ऐसी स्थिति में इन पालतू पशुपक्षियों से भी बच्चे को एलर्जी हो सकती है.

दुष्प्रभाव

एलर्जी का समय पर इलाज न कराने पर बच्चों में, बड़े होने पर, कई तरह की समस्याएं होने की संभावना बनी रहती है. समय रहते इलाज करा लेने पर एलर्जी समाप्त हो जाती है और बच्चा पहले जैसी स्थिति में आ जाता है.

बच्चे को जो भी तकलीफ होती है उसे दूर करने के लिए एलर्जन से दूरी बनाना जरूरी होता है. एलर्जी को कंट्रोल करना जरूरी है, इस से एलर्जी के कारण बच्चों में स्थायी बदलाव नहीं आता है और धीरेधीरे एलर्जी दूर हो जाती है. लेकिन अगर ऐसा न किया जाए और लापरवाही बरती जाए, तो कई बार परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं.

जिन बच्चों को सांस संबंधी यानी रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट की एलर्जी होती है, उन का समय पर इलाज जरूरी है. उसे उस माहौल से हटाया जाए जिस की वजह से उसे एलर्जी हो रही है.

अगर एलर्जन से बच्चे को दूर रखना संभव नहीं है तो उसे नियमित दवाइयां देने की जरूरत होती है, ताकि बच्चे की परेशानी न बढ़े. इस में लापरवाही बरतने और बारबार रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट में एलर्जी होने पर बच्चे के फेफड़ों में स्थायी तौर पर बदलाव हो सकता है और उसे आजीवन सांस संबंधी परेशानी हो सकती है.

बारबार एलर्जी होने पर बच्चा बारबार खांसेगा, हमेशा इस तकलीफ से गुजरेगा. इस से उस के विकास पर असर पड़ेगा. वह सोएगा नहीं, तो हमेशा चिड़चिड़ा सा बना रहेगा. बीमारी की वजह से वह स्कूल भी नहीं जा पाएगा. कुल मिला कर देखा जाए तो एलर्जी का उचित इलाज नहीं कराने से बच्चे का पूरा विकास प्रभावित हो सकता है.

कई बार मातापिता को यह बात समझ ही नहीं आती है कि उन के बच्चे को किस चीज से एलर्जी है, उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन के बच्चे को एलर्जी है और बच्चा इसी स्थिति में बड़ा हो जाता है. ऐसी स्थिति होने पर बच्चे को बड़े होने पर कई अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं. कई बच्चों में एलर्जी की वजह से एड्रीनल ग्लैंड बारबार बढ़ जाता है. ऐसी स्थिति में बच्चे को सुनने में थोड़ी परेशानी हो जाती है.

बढ़ती उम्र में अगर इस तरह की समस्या बच्चे को होती है तो उस के बोलने की क्षमता प्रभावित होती है. क्योंकि, इस उम्र में बच्चा जब सुनता है तभी वह बोलना सीखता है. सुनने में बहुत ज्यादा दिक्कत आने, नाक बंद होने, कान बंद होने आदि समस्या होने पर बच्चे का संपूर्ण विकास प्रभावित होने लगता है.

इलाज है जरूरी

एलर्जी को रोकना संभव नहीं है तो उसे नियंत्रित करना जरूरी है ताकि बच्चे को ज्यादा नुकसान न पहुंचे. एयर बौर्न एलर्जी को कंट्रोल करना कठिन होता है, क्योंकि हम हवा को तो नहीं बदल सकते. ऐसे में एलर्जी को कंट्रोल करने के लिए दवाइयों का सहारा लिया जाता है. इस तरह एलर्जी दबी रहती है.

बच्चे के एलर्जी का स्तर क्या है, इस के आधार पर ही उसे ट्रीटमैंट दिया जाता है. ट्रीटमैंट कितने दिनों तक लिया जाए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे को किस तरह की परेशानी हो रही है. अगर एलर्जी की समस्या सीजन को ले कर हो रही है यानी मौसम में आने वाले बदलाव के कारण परेशानी है, तो बस उस बदलाव से बचने के लिए उसी समय बच्चे को दवाइयां दी जाती हैं.

कई बच्चों को वसंत के मौसम, जिसे फ्लावरिंग मौसम कहते हैं, से एलर्जी होती है. तो कई बच्चों को सर्दी की शुरुआत होने यानी बरसात के बाद हवा में होने वाले बदलाव से एलर्जी हो जाती है. इस तरह की मौसमी एलर्जी के लिए बच्चों को कम से कम 3 महीने तक लगातार दवा देनी पड़ती है.

कई बच्चों को सालभर एलर्जी होती रहती है. ऐसे बच्चों को ज्यादा दिक्कत रहती है और फिर उन का ट्रीटमैंट भी अलग तरह का होता है. सालभर बने रहने वाली एलर्जी में दवा की मात्रा एलर्जी की गंभीरता पर निर्भर करती है. कई बच्चों को 3 महीने तक दवा देने के बाद ही आराम आ जाता है तो कइयों को लगातार कई महीने तक दवाइयां देनी पड़ती हैं.

एयर बौर्न एलर्जी के बढ़ने पर बच्चों को एंटी एलर्जिक दवाइयां दी जाती हैं. ये दवाइयां सिरप या टैबलेट के रूप में ली जाती हैं. ये दवाइयां एलर्जी को बढ़ने और विकरालरूप धारण करने से रोकती हैं. बड़े बच्चों को इनहेलेशन और नेबुलाइजर देना पड़ता है. नाक में स्प्रे दिया जाता है. जिन्हें आंखों से पानी आता है उन्हें आईड्रौप दिया जाता है. सांस फूलने पर इनहेलर दिया जाता है या फिर नेबुलाइज किया जाता है.

अगर फूड एलर्जी है तो फिर जिस खा- पदार्थ से एलर्जी है, उस से परहेज करना होता है. इस से बच्चा ठीक हो जाएगा. वैसे, बहुत सारी एलर्जी तो बिना दवा के अपनेआप ही ठीक हो जाती हैं. असल में जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता जाता है, उसे एलर्जी की आदत पड़ जाती है, खासकर फूड एलर्जी की. मिल्क एलर्जी 2 से 3 वर्ष के बाद अपनेआप ठीक हो जाती है.

सांस की एलर्जी जैसेजैसे सांस की नली बड़ी होती जाती है, बच्चे को आराम पड़ता जाता है और उसे उस की आदत पड़ जाती है. लगभग 50-60 प्रतिशत बच्चों में बड़े होने के साथ एलर्जी की समस्या अपनेआप दूर हो जाती है.

–       बच्चों के आसपास की जगहों को साफ रखें.

–       बच्चों को जानवरों से दूर रखें.

–       बारबार छींकना, इचिंग जैसी समस्याओं को हलके में न लें.

–       बच्चों के इम्यून सिस्टम को मजबूत करें.

–       घर को हमेशा बंद न रखें, खुला और हवादार बनाए रखें.

(लेखक बीएलके सुपर स्पैशलिटी अस्पताल, नई दिल्ली में पीडियाट्रीशियन हैं)

YRKKH: डॉक्टर बनने के लिए गलत रास्ता अपनाएगी आरोही, आएगा ये ट्विस्ट

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में  इन दिनों लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अक्षरा उसे मिले ऑफर से काफी खुश है और वह अभिमन्यु और पूरे परिवार को बताती है, जिससे सभी बहुत खुश होते हैं. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु के हाथ में गंभीर परेशानी होगी. उसका रिपोर्ट दिल्ली के किसी फेमस डॉक्टर के पास भेजी जाएगी जिसे देखने के बाद वह डॉक्टर उदयपुर आने का फैसला करेगा.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि आरोही को बिरला हॉस्पिटल से निकाल दिया जाएगा. जिसकी वजह से आरोही अपना सपना पूरा करने के लिए रूद्र का सहारा लेगी.

 

तो दूसरी तरफ अभिमन्यु देखता है कि डॉक्टर आनंद पर काम का प्रेशर बढ़ जाता है, दूसरी ओर वह खुद भी कोई मदद नहीं कर पाता. ऐसे में अभिमन्यु, हर्ष को दोबारा हॉस्पिटल में लाने की योजना बनाता है.

 

शो के अपकमिंग एपिसोड में ये भी दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु की जांच के लिए जो डॉक्टर आते हैं, वह बताते हैं कि उसकी नस पूरी तरह से डैमेज हो चुकी है.इस बात से अभिमन्यु बिल्कुल टूट जाता है.

Anupamaa की तरह काव्या भी बनना चाहेगी मां, पाखी का कान भरेगा अधिक

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’  में इन दिनों लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि छोटी अनु की एंट्री हो चुकी है. तो वहीं अनुपमा के बच्चे उससे नाराज हो गये हैं, लेकिन अनुपमा उन्हें मनाने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ वनराज और बा अनुपमा को ताना मार रहे हैं कि दादी की उम्र में वह मां बनने जा रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के अपकमिंग एपिसोड में…

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि तोषु अनुपमा के सामने नाराजगी जाहिर करता है. तोषु कहता है कि अनु के आने के बाद उसके बच्चे का ख्याल कौन रखेगा. इस वजह से वह परेशान हो जाता है.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि अनुपमा अनु का एडमिशन पाखी के स्कूल में करवा देगी. पाखी अनुपमा पर भड़क जाएगी. इस बार वनराज भी पाखी को ही सपोर्ट करेगा.

 

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तो वहीं अधिक भी पाखी को भड़काएगा कि अनु की वजह से अनुज और अनुपमा उस पर ध्यान नहीं देंगे. तो दूसरी तरफ वनराज को पता चल जाएगा कि वह अधिक से बात कर रही है. ऐसे में वनराज चेतावनी देगा कि अगर पाखी नहीं सुधरी तो वो पुराना वाला वनराज बन जाएगा.

 

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दूसरी तरफ अनुपमा किंजल से वादा करती है कि वो उसका साथ कभी नहीं छोड़ेगी. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा अनुज और अपनी बेटी के साथ जमकर मस्ती करेगी.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में जल्द ही बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. काव्या कहेगी कि वो भी अनुपमा की तरह मां बनना चाहती है. ये बात सुनकर वनराज चौंक जाएगा. वनराज काव्या को बच्चा गोद लेने से मना कर देगा.

क्या भगवंत मान मात्र कठपुतली है?

पंजाब में लोकसभा उपचुनाव में संगरूर सीट पर सिमरनजीजीत सिंह मान की जीत जांच का विषय है. यह सीट आम आदमी पार्टी ने अकेले लोकसभा सदस्य भगवंत सिंह मान के पंजाब के मुख्यमंत्री बनाए जाने पर दिए त्यागपत्र की वजह से खाली हुई थी. वर्तमान मुख्यमंत्री की सीट पर किसी और पार्टी की जीत तो आश्चर्यजनक है ही, बड़ी बात है कि सिंमरनजीत सिंह मान की नीतियां.

सिमरनजीत सिंह मान न भारतीय जनता पार्टी के सदस्य है, न कांग्रेस के और न पंजाब में बरसों राज किए थिरोमणी अकाली दल के. सिमरनजीत ङ्क्षसह मान सिख राजनीति के कट्टरवादियों में से कहे जाने चाहिए और भ्रामक एजेंडे के समर्थक हैं.

वह पंजाब जो 1980 के आसपास सुलगने लगा था और जिस में न केवल सैंकड़ों मारे गए. ब्लूस्टार आपरेशन हुआ और इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या भी हुई. राजीव गांधी ने जैसेतैसे कर के इस मामले को सुलटाया था पर अब हिंदू कट्टरता के चलते सिख कट्टरता भी सिर उठाने लगी है और जहां शिरोमणी अकाली दल (बादल) और भारतीय जनता पार्टी दोनों हाशिए पर आ गई हैं, सत्ता आम आदमी पार्टी के नौसिखिए हाथों में आ गई है.

सिमरनजीत सिंह मान की जीत के पीछे एक वजह यही है कि जनता समझती है आप का मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान मात्र कठपुतली है जिसे राज चलाना नहीं आता. सिर्फ अच्छा गायक होना काफी नहीं है. पंजाब के धर्म के कट्टर लोगों ने पहले शिरोमणी अकाली दल के प्रति गुस्सा कांग्रेस को जिता कर दिखाया था, फिर आम आदमी पार्टी को जिता कर और अब सिमरन जीत सिंह मान को.

पंजाब का आज उबलना देश के लिए खतरनाक है. वैसे ही भगवा नीतियों के कारण देश भर के मुसलमान, दलित और पिछड़ों के बहुत से हिस्से राजनीति, नौकरी, सुरक्षा के सवालों पर हाथिए पर होने के कारण बेहद खफा है. ऐसी हालत में पंजाब, जो जम्मू कश्मीर से सटा है, पाकिस्तान से सीमा जुड़ी है, नाराज होने लगा तो बहुत भारी पड़ेगा.

धर्मजनित राजनीति किसी देश, समाज को कभी नहीं भाई. समाज को हमेशा धर्म ने लूटा है, बहकाया है. आगे बढऩे से रोका है. धर्म लोकप्रिय इसलिए नहीं है कि वह अच्छी बात बताता है, इसलिए है कि यह निठल्ले कार्यकर्ताओं को जमा कर लेता है, उन्हें खूब झूठी कहानियां बोलने की ट्रेङ्क्षनग देता है और फिर घरघर जा कर बहकाने की लगातार कोशिश करता है. पंजाब में अब क्या 1980 के दिन लौट रहे हैं जहां धर्म के सहारे न जाने क्याक्या किया जाएगा और फिर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र को इंदिरा गांधी की तरह कुछ अनावश्यक करना होगा. अगर ऐसा हुआ तो जिम्मेदारी उन की होगी जिन्होंने पिछले 40 साल से राजनीति को भगवा रंग की बाल्टी में डुबा कर रखने की पूरी सफल कोशिश की है वह भूल गए कि इस बाल्टी में दूसरे रंगों के भी टुकड़े पड़े हैं.

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