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मेरे बेटे का पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरा 8 साल का बेटा है. वैसे तो वह होशियार और ऐक्टिव है लेकिन पता नहीं क्यों पढ़ाई में पीछे रहता है. मैं उस की पढ़ाई-लिखाई पर पूरा ध्यान देती हूं लेकिन फिर भी उस की परफौर्मेंस ज्यादा अच्छी नहीं है. कहीं कुछ मेरी ही देखभाल में कमी तो नहीं?

जवाब

आप खुद मान रहीं हैं कि आप का बच्चा होशियार और ऐक्टिव है. जरूरी तो नहीं कि हर बच्चा क्लास में फर्स्ट आए. फिर भी कोशिश कर के देख लीजिए हो सकता है बच्चे के साथ की गई मेहनत रंग ले लाए. इस के लिए आप कुछ खास तरीके अपना सकती हैं. जैसे, बच्चे की नियमित रूप से दिमागी कसरत करवाएं. उस के साथ दिमागी खेल खेलें जैसे क्विज, डिक्शनरी भरना या सही विकल्प चुनना आदि. ऐसे खेलों से बच्चे का दिमाग विकसित होगा और याददाश्त बढ़ेगी.

रोजाना सुबह बच्चे को 5 भीगे बादाम खिलाएं. फिर गरम दूध दें. बादाम बच्चों के दिमाग के लिए लाभकारी होता है. इस में कौपर, विटामिन डी, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन जैसे कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

बच्चों को नियमित रूप से पौष्टिक आहार खिलाया जाए तो उन का दिमाग भी बेहद मजबूत होता है, इसलिए बच्चे को खाने में केला, गाजर, पत्तागोभी, दूध, पालक, घी, सोयाबीन, सेब इत्यादि दें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

स्वाद जबरदस्त, सेहत पस्त

भारतीय व्यंजन की कायल पूरी दुनिया है. जितना मशहूर घर का खाना है उतने ही मशहूर यहां मिलने वाले स्ट्रीट फूड भी हैं. स्ट्रीट फूड यानी सड़क किनारे मिलने वाले समोसे, चाटपकोड़े, भेलपूरी, चाऊमीन, मोमोज, जलेबी, कचौड़ी, गोलगप्पे, टिक्की, बर्गर, इडली, डोसा, छोलेभठूरे, छोलेकुलचे और न जाने क्याक्या. स्ट्रीट फूड देख कर हम ललचाते इसलिए भी हैं क्योंकि रेस्टोरैंट और होटल या ढाबे के मुकाबले यह न सिर्फ सस्ता होता है बल्कि यह स्वादिष्ठ भी होता है. हम सभी इसे चाव से खाते हैं. सस्ते व स्वाद के चलते खा तो लेते हैं पर उस के बाद जब पेट में जलन, मरोड़, उल्टियां व दस्त शुरू होते हैं तब पता लगता है कि स्ट्रीट फूड सेहत पर कितना भारी पड़ता है.

कुछ दिन पहले दिल्ली में एक इंस्टिट्यूट ने गोलगप्पे, मोमोज, चाट, समोसे व बर्गर की जांच की तो पता चला इन में मल के अंश हैं. इन में ई कोलाई बैक्टीरिया बहुतायत में हैं जिन से इन्फैक्शन होता है. ई कोलाई मिलने का मतलब है कि इन्हें बनाने में साफ पानी का इस्तेमाल नहीं होता है और न ही इन्हें हाइजीनिक कंडीशन में तैयार किया जाता है. सैंट्रल पौल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक, फूड आइटम में कौलीफौर्म बैक्टीरिया का मोस्ट प्रोबेबल नंबर यानी एमपीएन 50 या उस से कम होना चाहिए जबकि जो आइटम्स चैक किए गए उन में इन की संख्या 2,400 से अधिक पाई गई. अब आप को इसी से अंदाजा लग गया होगा कि यह कितना खतरनाक होता है.

स्ट्रीट फूड लगातार खाने से उल्टी, डायरिया, पेटदर्द, बुखार, भूख में कमी, टाइफायड, फूड पौइजनिंग या फिर पेट में जलन आदि हो सकती है. स्ट्रीट फूड खाते समय हमें सिर्फ खाना दिखाई देता है, यह नहीं दिखाई देता कि फूड तैयार करने वाला कौन सा मसाला इस्तेमाल करता है, बरतन साफ है या नहीं, पानी साफ है या गंदा. वह जहां खड़ा है वहां आसपास गंदगी का ढेर है या नहीं. पर यदि आप थोड़ा सा धैर्य और जीभ पर कंट्रोल कर लें व इन बातों पर ध्यान रखें तो न सिर्फ बीमारियों से बच सकते हैं बल्कि आप के बच्चे भी इस से बच सकते हैं क्योंकि बच्चों पर स्ट्रीट फूड का असर जल्दी होता है. डाक्टरों की मानें तो लगातार स्ट्रीट फूड खाना बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर बना देता है और ऐसे भोजन से बच्चे सुस्त हो जाते हैं. बच्चों को मोटापा व कम उम्र में डायबिटीज जैसी बीमारियां घेर लेती हैं.

हालांकि फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स ऐक्ट 2006 के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति जो गंदा या अनहाइजीनिक खाना बेचता है या लोगों को परोसता है उस पर 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है या फिर बेचने वालों को जेल भी जाना पड़ सकता है पर यह कानून सिर्फ कागजों में ही है. देश के हर गलीमहल्ले में गोलगप्पे, चाऊमीन, बर्गर, जलेबी, समोसा आदि बेचे जाते हैं. इन के विक्रेताओं पर कभी कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती.  दिल्ली के जानेमाने गैस्ट्रोलौजिस्ट डा. एम पी शर्मा ने बताया कि स्ट्रीट फूड खाने से पेट में इन्फैक्शन होता है. जिन बरतनों का इस्तेमाल किया जाता है वे ठीक से धोए नहीं जाते. अच्छी तरह से बरतन साफ नहीं किए जाते, तीसरा, जो खाना बनाया जाता है उस में जो तेल इस्तेमाल होता है उसे बारबार उबालते रहते हैं, उसी तेल में खाना बनाया जाता है. उस तेल की क्वालिटी खराब हो जाती है. उस से बीमारी होती है, चौथा कारण यह है कि इस में जो मिर्चमसाले इस्तेमाल किए जाते हैं वे ठीक नहीं होते जिस से पेट में दर्द, अल्सर, पेट में जलन आदि होती है. डायरिया के साथसाथ कुछ लोगों को मियादी बुखार हो सकता है. कालरा, वायरल और हेपेटाइटिस हो जाता है जिसे हम जौंडिस कहते हैं.

यह इन्फैक्टेड पानी या खाने से होता है. अगर किसी ने यह ठान ही लिया है कि हमें तो यह स्ट्रीट फूड खाना ही खाना है, ऐसी स्थिति में यह कोशिश होनी चाहिए कि खाना ठंडा न हो. खाने को अच्छी तरह बौयल करवाएं. इस से जो बैक्टीरिया होते हैं वे मर जाते हैं. लेकिन वायरस नहीं मरता. स्टील गिलास या मैटल के गिलास साफ नहीं हो पाते, इसलिए हमेशा पानी डिसपोजल गिलास में ही पिएं. प्लेट्स भी डिसपोजल हों. स्टील या मैटल के प्लेट्स साफ नहीं होने की वजह से उन में बैक्टीरिया रह जाते हैं. अकसर स्ट्रीट फूड बेचने वाले एक तसले में पानी भर कर उस में बरतन को डुबो कर साफ करते रहते हैं और एक गंदे से कपड़े से पोंछ कर उस में फूड परोस देते हैं, ऐसे में सही सफाई नहीं होती. यदि कोई व्यक्ति पहले से ही इन्फैक्टेड है और उस ने उसी प्लेट में खाया, फिर गंदे पानी से उसी प्लेट को धो कर आप को उसी में खाना दे दिया गया तो आप भी इन्फैक्टेड हो सकते हैं.

स्ट्रीट फूड खाना ही है तो सावधानी जरूर बरतें. थोड़ा अधिक पैसा खर्च कर अच्छी और साफसुथरी जगह से ही खाएं. बेचने वालों को भी कहें कि खाना ढक कर रखो. खुले में मक्खियां खाने में बैठती हैं जो बीमारी पैदा करती हैं. स्ट्रीट फूड बनाने वालों की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए. उन्हें भी एजुकेशन देने की जरूरत है. ये सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि यह आप की भी जिम्मेदारी है.

दोबारा मां बनने के बाद अनुपमा ने शेयर की फोटोज, फैंस ने दिया ये रिएक्शन

स्टार प्लस का शो अनुपमा में इन दिनों दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो में अनुपमा फिर से मां बन गई है. कपाड़िया हाउस में छोटी अनु की एंट्री हुई है. ऐसे में अनुज-अनुपमा को दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मिल गई है.

शो में इस ट्रैक को दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. अनुपमा और अनुज काफी समय से छोटी अनु को घर लाने का इंतजार कर रहे थे.  आखिरकार ये इंतजार खत्म हो गया है.

 

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छोटी अनु के आने से बरखा, अंकुश और अधिक को बड़ा झटका लगा है. तो दूसरी तरफ अनुपमा और अनुज सिर्फ बेटी के साथ हर मोमेंट को एंजॉय कर रहे हैं.

 

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इसी बीच अनुपमा ने छोटी अनु और अनुज का किरदार निभाने वाले गौरव खन्ना के साथ फोटोज शेयर की हैं. फोटोज में आप देखेंगे कि तीनों ने येलो कलर के आउटफिट्स पहने हैं और तीनों कॉफी खुश नजर आ रहे हैं.

 

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अनुपमा ने फोटोज शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘द मिनियन्स…कलर कॉर्डिनेटेड कपाड़िया.’ फैंस इस पोस्ट पर खूब प्यार बरसा रहे हैं. फैंस इस पोस्ट पर लगातार कमेंट कर रहे हैं, एक यूजर ने लिखा है, कपाड़िया बड़े ही प्यारे हैं, तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है कि परफेक्ट फैमिली फोटो है.शो में अब ये देखना होगा कि शाह परिवार  छोटी अनु को लेकर क्या रिएक्ट करते हैं?

 

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GHKKPM: पाखी नहीं है प्रेग्नेंट, सई को पता चलेगा सच्चाई?

टीवी सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों लगातार हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि पाखी विराट और सई के बच्चे की सेरोगेट मदर बनी है. तबसे पाखी नई-नई चाल चल रही है  और विराट के करीब जाने की कोशिश कर रही है. शो के अपकमिंग एपोसड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि पाखी विराट के करीब जाने के लिए नई-नई चाल रही है. लेकिन सई को पाखी के इरादों के बारे में पता है.

 

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सई सिर्फ अपने बच्चे के लिए पाखी को बर्दाश्त कर रही है. अब पाखी खुद ही अपनी मुसीबतें में फंस रही हैं. वह अपने झूठ को बचाने के लिए सारी हदें पार कर रही है.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि भवानी और सई, पाखी का प्रेग्नेंसी टेस्ट करवाने के लिए अस्पताल जाएंगे. जब डॉक्टर पाखी का चेकअप करेगी तो पता चलेगा कि वह प्रेग्नेंट नहीं है.

 

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डॉक्टर की बात सुनकर पाखी शॉक्ड हो जाती हैं. लेकिन जैसे ही डॉक्टर सई को ये बताने जाती है तो कोई डॉक्टर को गोली मार देता है. बता दें कि वैषाली डॉक्टर को गोली मारती है.शो में अब ये देखना होगा कि क्या वैशाली और पाखी की सच्चाई सामने आ पाएगी या नहीं?

 

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न्यायाधीशों के निशाने पर याचिकाकर्ता

छत्तीसगढ़ में 16 आदिवासी एक मुठभेड़ में मार दिए गए. आरोप ये भी है कि तभी एक मासूम बच्चे की उंगलियां भी काट दी गईं थीं. उसी वक्त जांच के लिए आदिवासी एक्टिविस्ट हिमांशु कुमार ने साल 2009 में एक याचिका डाली. तब से अब 2022 तक इस याचिका पर कोई सुनवाई नहीं हुई.

अचानक से सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 14 जुलाई को इस याचिका को ख़ारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माने का आदेश दे दिया. ये हत्याएं छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के वक्त हुईं थीं. याचिकाकर्ता जांच चाहते थे. सुप्रीम कोर्ट ने ना केवल याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख का जुर्माना लगाया है, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार से उन पर एक केस करने का आदेश भी दिया है.

यहां दिलचस्प बात ये है कि ये आदेश जस्टिस खानविलकर की बेंच ने दिया है. इन्होंने ही पिछले महीने गुजरात दंगों की दोबारा से जांच करने की मांग करने वाली जाकिया जाफरी की याचिका को भी ख़ारिज किया था. ना केवल ख़ारिज किया था बल्कि सेम पैटर्न पर याचिका डालने वाली एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के लिए कहा कि वे इस मुद्दे को अपने लिए भुना रही हैं और उन पर कार्रवाई हो, अगले ही दिन गुजरात सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया.

मतलब याचिकाकर्ताओं को ही अब टारगेट किया जा रहा है. इतना भारी जुर्माना लगाया जा रहा है कि आगे कोई पीड़ितों के लिए लड़ने की सोचे भी नहीं. ये याचिका 13 साल से पड़ी हुई थी, इस पर अब जा कर पहली बार सुनवाई हुई.

देश धनसंपदा लूट कर विजय माल्या की तरह विदेश भाग जाओ तो अवमानना पर सिर्फ 2000 रुपये जुर्माना लगेगा और निर्दोषों की हत्या के खिलाफ कोर्ट जाओगे तो 5 लाख रुपये जुर्माना लगेगा!

गजब के इंसाफ पर फैसले दर फैसले हो रहे हैं देश में. यह फैसला उन लोगों के लिए नसीहत है जो गरीबों, वंचितों, शोषितों के लिए लड़ रहे है कि चुपचाप बैठ कर अन्याय व अत्याचार के दृश्यों को फिल्मों की तरह देखें. बीच मे इन्टरवेल में कानाफूसी कर लें और अगले सीन के लिए इंतजार करें.

जनता मुर्गों की तरह बना दी गई है. सब के आगे मुफ्त राशन के दाने डाल दिये गए है. खाने में लगी हुई है. जिस मुर्गी को काटा जाता है बस वो ही कुकुडूकु करती है.

एक दिलचस्प कहानी है. एक मामले को ले कर ग्रामीण बुजुर्ग दरोगा के पास गया. दरोगा ने कहा कि 20 हजार में मामला निपटा दुंगा. बुजुर्ग ने पैसे देने से इनकार कर दिया. मामला कोर्ट में पहुंचा और 12 साल बाद फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि आप मुकदमा जीत गए हो. बुजुर्ग ने आशीर्वाद स्वरूप कहा कि भगवान आप को दरोगा बनाए.

जज ने कहा कि जज का पद बड़ा होता है. बुजुर्ग ने कहा कि पदों की जानकारी तो मुझे नहीं लेकिन जो मामला उसी दिन 20 हजार में दरोगा निपटा रहा था, वो मामला 12 साल बाद तकरीबन 1लाख रुपये खर्च करवा कर आप ने निपटाया है. ताकत तो दरोगा में ही ज्यादा है.

भविष्य में लोग न्यायालय जाने से डरने लगेंगे. अपने स्तर पर निपटने के प्रयास करेंगे. भ्रष्टाचार बढ़ेगा. कई जगहों पर तो देश मे लोग गुंडों/गैंगस्टर से मदद लेते है, उस को बढ़ावा मिलेगा. मी लार्ड ऐसा ना किया करो. इस तरह तो अकेली खड़ी इंसाफ की देवी की आंखों पर पट्टी भी नहीं बांधनी पड़ेगी.

हिंदूमुसलिम करने का स्वार्थ

मुसलिम इतिहास को मिटाने के चक्कर में हमारे कट्टरवादी न केवल चौराहों पर और धर्मसंसदों में अनापशनाप बोलते रहते हैं, वे अदालतों में भी ऐरेगैरे तथ्यों को ले कर खड़े रहते हैं कि कभी न कभी, कहीं तो कोई जज उन की सुन लेगा. उत्तर प्रदेश के एक शहर वाराणसी की ज्ञानवापी मसजिद और आगरा में स्थित ताजमहल को ले कर मामले अदालतों में ले जाए गए जिन का कोरा उद्देश्य यह था कि जनता के सामने जो मुद्दे हैं- गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, अराजकता, गंदगी, अस्तव्यस्त शहरी व ग्रामीण जीवन, आंसू बहाते अस्पताल, महंगी होती शिक्षा- उन को भुला कर बेकार के हिंदूमुसलिम विवाद पर कुछ कहा जाता रहे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के जजों डी के उपाध्याय व सुभाष विद्यार्थी ने तो एक पिटीशनर को डांट लगा कर याचिका खारिज कर दी पर ज्ञानवापी सर्वे का काम वाराणसी सिविल कोर्ट ने जारी रखवा दिया.

इस से हासिल क्या होता है, यह सब जानते हैं. धर्मरूपी ये विवाद खड़े रहें, यही सब से बड़ी उपलब्धि है. सैकड़ों सालों की गुलामी वह भी कुछ सौ लोगों की सेना के हाथों के इतिहास को नकार कर ये लोग आज लोकतंत्र के बल पर लोकतंत्र को नष्ट करने में लगे हुए हैं.

ताजमहल और ज्ञानवापी मसजिदें चाहे तोड़ दिए जाएं, यह याद रहेगा कि इस देश पर विदेश से आए लोगों ने राज किया, जम कर किया, बड़ेबड़े शहर बनाए, भवन बनाए.

विदेशों में किसी को छींक आती है तो आज भी भारत का उद्योग जगत बिस्तर पर पड़ जाता है. भारत चीन से उल?ाने की हिम्मत नहीं रखता. चीनी ऐप तो बंद कर दिए पर अरबों का व्यापार चालू है. भारत की प्रतिव्यक्ति आय महज 1,900 डौलर है जबकि छोटे से स्वीडन की 90,000 डौलर. इस की चिंता देश के थके ज्ञानियों को नहीं. उन को चिंता है तो कभी दिल्ली के कुतुबमीनार, कभी आगरा के ताजमहल, कभी वाराणसी की मसजिद, कभी मथुरा की कृष्णभूमि की.

भारत सरकार आज 95 करोड़ गरीबों को खाना दे रही है. सवाल यह है कि 95 करोड़ गरीब हैं ही क्यों जो गेहूं, चावल, दाल लेने के लिए लाइनों में लगते हैं. हमारा ज्ञान, हमारे वेद, पुराण, हमारे मठ, हवन, हमारे मंदिर चमत्कारिक ढंग से इन 95 करोड़ की गरीबी दूर नहीं कर सकते? सरकारी पक्ष को तो चिंता कुछ खंडहरों की है.

कठिनाइयां: लड़ाकू फौज के जवान ने उसके साथ क्या किया?

लड़ाकू फौज के जवान बहुत दिमागदार होते हैं. उन के पास हर समस्या का फौरी इलाज होता है. उन्होंने थोड़ी देर सोचा, फिर एक पुराना बड़ा बूट मेरी ओर बढ़ा दिया.

कठिनाइयां- भाग 1: लड़ाकू फौज के जवान ने उसके साथ क्या किया?

बात वर्ष 1975 की है. मेरी पहली संतान का जन्म होने वाला था. मैं उस समय हवलदार था और अरुणाचल प्रदेश के अलौंग में वर्कशाप की डिटैचमैंट में तैनात था. हमारी मेन यूनिट लेखाबाली में थी. मुझे इमरजैंसी में घर में बुलाया गया था. इस के लिए तार पहले मेन यूनिट में आया था. फिर मुझे भेजा गया था. मैं ने छुट्टी के लिए अप्लाई किया. छुट्टी मिल गई. पर मैं ऐसे ही छुट्टी पर नहीं जा सकता था, पूरे स्टोर की जिम्मेदारी मुझ पर थी. डिटैचमैंट में सभी कलपुर्जे और टूल्स की सप्लाई मेरी जिम्मेदारी थी.

जब तक मेन यूनिट से दूसरा स्टोरकीपर नहीं आ जाता, मैं छुट्टी पर नहीं जा सकता था. मेन यूनिट से दूसरा आदमी आने में 2 दिन लग गए. वह सोमवार को आया. मैं ने जल्दी से उसे चार्ज दिया और मंगलवार को मेन यूनिट में आने के लिए तैयार हुआ. वहां की सभी यूनिटों की छुट्टी पार्टी को ले कर गाड़ी केवल शनिवार को लेखाबाली जाती थी. मुझे मंगलवार को ही मेन यूनिट में पहुचना था. तभी बुधवार को मैं अपने घर जा सकता था.

सरकारी डाक ले कर ग्रैफ रोड बनाने वाली यूनिट की गाड़ी रोज लेखाबाली जाती थी. उन से गुजारिश की गई. बारिश वहां सारे साल होती है. ग्रैफ वालों ने कहा, ‘मौसम ठीक रहा तो गाड़ी जाएगी.’ मैं अपनी यूनिट की गाड़ी से वहां पहुचा. गाड़ी लेखाबाली जाने के लिए तैयार खड़ी थी. बारिश हो रही थी. सरकारी डाक को रोका नहीं जा सकता था.

गाड़ी में मैं था, ड्राइवर के साथ एक जवान था. जवान पीछे बैठ कर डंडामैन का काम करता था. पीछे से आने वाली गाड़ी को पास देना होता था तो डंडा मार कर ड्राइवर को सूचित करता था और वह पास दे देता था.

मेरे पहुंचते ही गाड़ी चल पड़ी. पता चला मौसम चाहे कैसा भी हो, गाड़ी जरूर जाती है. हम चले तो बारिश काफी तेज थी. रास्ते में कभी तेज हो जाती कभी कम. पहाड़ी रास्ता, घुमावदार सड़क, कच्चे पहाड़. डर केवल यह था कि स्लाइडिंग हो गई तो लेखाबाली पहुंचने में रात हो जाएगी. सड़क को साफ करने के लिए ग्रैफ यूनिट के जवान 24 घंटे तैयार रहते थे.

हलकीहलकी बारिश होती रही थी. एक मोड़ पर ड्राइवर से गाड़ी सीधी नहीं हुई और वह हजारों फुट नीचे खाई की ओर बढ़ी. पहाड़ी इलाके में गाड़ी तेज नहीं चलती है. ड्राइवर घबरा गया पर मैं होश में रहा. हम सैनिकों को ट्रेनिंग ऐसी दी जाती है, अगर सामने से गोलियां भी आ रहीं हों तो हम होश में रहें और अपना विवेक न खोएं. मैं ने तुरंत हैंडब्रेक खींची और ड्राइवर से कहा, ‘घबराओ मत, एक्सीलेटर से पैर हटा कर ब्रेक पर रखो. हलकेहलके ब्रेक लगाते रहो. स्पीड कम हो जाएगी और किसी न किसी वृक्ष के साथ जा कर रुक जाएगी.’

यह आश्चर्य ही था कि गाड़ी रुक गई. मैं ने ड्राइवर से कहा, ‘ब्रेक से पैर मत हटाना. पहले पीछे बैठे जवान से बोला कि डाक ले कर नीचे उतर जाओ. पहले उस ने डाक का थैला फेंका और फिर आराम से उतर गया. फिर मैं ने ड्राइवर से बोला, ‘आप अपना दरवाजा खोल लें, मैं अपना खोल लेता हूं. हम दोनों इकट्ठे कूदेंगे और तुरंत किसी झाड़ी को पकड़ कर बैठ जाएंगे. गाड़ी की परवा मत करना. वह बाद में रिकवर हो जाएगी.’ हम दोनों कूदे, थोड़ा लुढ़के और फिर झाड़ियों को पकड़ लिया. धीरेधीरे झाड़ियों को पकड़ते हुए सुरिक्षत सड़क पर आ गए. गाड़ी कहां गई, पता न चला. छुट्टी के बाद कोर्ट औफ इंक्वायरी में पता चला कि ड्राइवर का कुसूर नहीं था. स्टेरिंग लौक हो गया था. 5 दिनों बाद गाड़ी रिकवर हो सकी थी.

हम कैसे बच गए, यह कुदरत का एक करिश्मा था. हम तीनों ने कुदरत का धन्यवाद किया. जिस टहनी से गाड़ी रुकी थी, वह निहायत पतली टहनी थी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि इतनी बड़ी गाड़ी को इस पतली टहनी ने रोका है. पर सचाई को झुठलाया नहीं जा सकता था. सुबूत और निशान उपलब्ध थे.

अब समस्या यह थी कि ग्रैफ की रोड रिपेयर पार्टी को कैसे इनफौर्म करें. उस समय आज की तरह संचार के साधन नहीं थे. वैसे रिपेयर पार्टी को अंदाजा था कि अगर 11 बजे डाक गाड़ी चली है तो 5 बजे तक उन के पास पहुंच जानी चाहिए. उन को स्टैंडिंग इंस्ट्रक्शन था कि अगर 5 बजे तक डाक गाड़ी नहीं आती है तो उस की खोज में सर्च पार्टी भेजी जाए.

सर्च पार्टी को हम तक पहुंचने में एक घंटा लग गया. उन के पास संचार के साधन थे. उन्होंने यूनिट में बताया तो आदेश मिला कि अपनी गाड़ी में डाक और वर्कशौप के जवान को भेज दो. ड्राइवर को रोक लो. गाड़ी के लिए हम रिकवरी पार्टी भेज रहे हैं.

उन की गाड़ी में हम लेखाबाली के लिए निकले. लेखाबाली तक रास्ता साफ मिला पर वहां पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. मैस बंद था. गेट पर खड़े संतरी को अपने आने की सूचना दे कर रात भूखे ही सो गया. सुबह छुट्टी की कार्रवाई की गई. दूसरे दिन अलौंग में ऐक्सिडैंट के बारे में पता चला तो वहां के अफसर इंचार्ज ने मुझ से बात की और इस नैरो एस्केप के लिए बधाई दी. मैं ने सर का आभार व्यक्त किया और कहा, ‘ सर, सच में यह नैरो एस्केप था. मैं सोच नहीं सकता था कि हम जिंदा बचेंगे.’

जानकारी: सड़क की जिम्मेदारी किसकी

कुछ समय पहले की बात है सुबह का वक्त था. समय करीब 6 बजे का रहा होगा. पुणे में संचेती फ्लाईओवर सीओईपी की ओर से पुणे विश्वविद्यालय की ओर जाता है. मैं उसी मार्ग पर अपनी स्कूटी से जा रही थी. एक मोड़ पर मु?ो मुड़ना था. वहां तेल बिखरा पड़ा था. मैं उसे नहीं देख सकी. मेरी स्कूटी फिसल गई. मेरे दाएं हाथ और पैर मैं फ्रैक्चर हो गया. हालांकि मैं बेहद धीमी गति से वाहन चलाने वाली महिला हूं. वाहन चलाते समय बेहद सचेत भी रहती हूं. बावजूद इस के, हादसा हो गया. एक तरफ सड़क पर लाइटों की चौंध, दूसरी तरफ सड़क पर बनी सफेद रंग की पट्टियां. उन्होंने ही मेरा संतुलन बिगाड़ दिया.

एक सवाल है कि इस का जिम्मेदार कौन है? क्या प्रशासन, पुलिस या फिर वह वाहन चालक जो सड़क पर तेल बिखरा कर चला गया. इस के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? इस से पहले भी एक बार मेरी स्कूटी फिसल गई थी. मैं अपनी सही दिशा व गति से चल रही थी, तभी अचानक देखा कि सामने से एक बाइक चालक विपरीत दिशा से तेजी से चला आ रहा है. वह जल्दी में था. उसे बचाने के चक्कर में मेरे पैर में हेयर लाइन फ्रैक्चर हो गया, जबकि बाइक चालक को कोई चोट नहीं लगी.

इन दुर्घटनाओं में जानमाल का नुकसान तो होता ही है, मगर क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि ऐसी सड़क दुर्घटनाओं को कम करने में हमारी भूमिका क्या है? खस्ताहाल सड़कें दुरुस्त नहीं की जाएंगी. आखिर इन सब से पीडि़त कौन होगा? हमेशा आदमी ही दुर्घटना का शिकार होता है.

सड़क दुर्घटनाओं में लोग अपंग हो जाते हैं. उन का जीवन दुश्वार हो जाता है. नौकरी छूट जाती है. शिक्षा छूट जाती है. सड़क हादसों से बचने के लिए जरूरी है कि सुरक्षा नियमों को जाना जाए, उन का पालन किया जाए. आज तेज रफ्तार और बेतरतीब तरीकों से वाहनों को सड़क पर दौड़ाना लोग जन्मसिद्ध अधिकार सम?ाते हैं.

गलत तरीके से आगे निकलने की कोशिश गलत है. लोग मान बैठे हैं कि सुरक्षा की जिम्मेदारी तो सरकार व प्रशासन की है. जबकि, ऐसा नहीं है. सरकार व प्रशासन के साथसाथ यह जिम्मेदारी हमारी भी है. हमें भी आगे आना होगा. साथ ही, प्रशासन की भी यह जिम्मेदारी है कि वह सड़कों पर जगहजगह पर सीसीटीवी कैमरे लगवाए. निगमों को चाहिए कि जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदारी सौंपी जाए. सड़क निर्माण सामग्री को किनारे व्यवस्थित किया जाए. सड़क निर्माण हो जाने के बाद सामग्री हटाई नहीं जाती. लाइसैंस जारी करने से पहले ड्राइविंग टैस्ट होना चाहिए.

हमारी जिम्मेदारी धीमी गति से वाहन चलाएं. सतर्क रहें और सचेत रहें.

अपने गंतव्य पर पहुंचने के लिए समय निर्धारण सही तरीके से करें.

किसी तरह के नशे का सेवन कर के वाहन न चलाएं.

अभिभावक अपने किशोरवय बच्चों को वाहन न दें.

अपने वाहनों की फिटनैस नियमित चैक करते रहें.

अपनी ही दिशा में वाहन चलाएं, विपरीत दिशा घातक हो सकती है.

सिग्नल तोड़ने की कोशिश कतई न करें.

सड़क किनारे बैठे भिखारियों को नसीहत दें कि वाहनों के आगे न आएं.

दूसरे वाहनों से उचित दूरी बना कर ही वाहन चलाएं.

मोबाइल फोन का चलते वाहन पर प्रयोग न करें.

अंधेरे में वाहन और भी अधिक सजग हो कर चलाएं.

भारत भूमि युगे युगे: प्रह्लादी मुसलमान

मुसलमानों के प्रति अन्याय न हो लेकिन अगर उन के पूर्वजों ने कहीं अन्याय किया है तो वे उस अन्याय के समर्थक न बन कर भक्तराज प्रह्लाद की भूमिका पेश करें, यह नई नसीहत पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने देशभर के मुसलमानों को देते साल 2025 के अंत तक देश के हिंदू राष्ट्र बनने की आकाशवाणी भी की है. इस बाबत हवाला उन्होंने बदलते हालात का दिया है जिन के तहत रोज दंगेफसाद होते हैं और मुसलमानों को इतना परेशान किया जाता है कि वे खुद के हिंदू न होने पर अफसोस करने लगें.

भविष्यवाणी कोई भी कर सकता है लेकिन बात हिंदू राष्ट्र की हो तो बोलने का कौपीराइट इन्हीं मठाधीशों के पास है जो देश के प्रधान स्वामी हैं. बकौल निश्चलानंद, जल्द ही सभी मुसलमान जन्मना हों न हों, कर्मणा हिंदू हो जाएंगे, यानी नमाज पढ़ना छोड़ कर घंटा बजाना शुरू कर देंगे. उन की ?ि?ाक मिटाने के लिए मसजिदों पर केसरिया लहराने की शुरुआत हो ही चुकी है.

डिनर विद केजरीवाल

राजनेता अरविंद केजरीवाल तिरंगे से बेइंतहा प्यार करते हैं. जो लोग मुद्दत बाद दिल्ली जाते हैं उन्हें यह देख सुखद अनुभूति होती है कि वहां जगहजगह शान से तिरंगा लहरा रहा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक नई घोषणा पूरे ब्योरे के साथ पेश की है कि 15 अगस्त तक दिल्ली में 500 तिरंगे कमेटियों के जरिए फहराए जाएंगे. कुछ वर्षों बाद हर हाथ तिरंगा होगा और हम विश्वगुरु बन जाएंगे.

जाहिर है उन के साथ डिनर के लालच में नए वौलंटियर्स पूरे जोश से काम करेंगे. इन का एक बड़ा काम समाज कल्याण से जुड़े कामों की निगरानी का भी रहेगा. सम?ाने वाले ही उन की मंशा सम?ा पा रहे हैं कि यह केसरिया ?ांडे और भगवा गमछे वाले हुड़दंगियों पर नकेल कसने की चाल है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने क्लब कल्चर को अपना कर ही भगवा गैंग को मात दी थी. वैसे योजना इस लिहाज से भी अच्छी है कि युवा प्रोत्साहित हो कर देशप्रेम धर्मनिरपेक्ष ढंग से जताएं.

यह कैसी प्रज्ञा

प्रज्ञा का शाब्दिक अर्थ बुद्धि होता है जो सभी की अच्छी हो तो कहने क्या, लेकिन भगवा गैंग के कुछ सदस्यों की बुद्धि भ्रष्ट हुए एक जमाना हो गया है. ये वे लोग हैं जो अभद्र और अपशब्दों के इस्तेमाल को अपनी उपलब्धि मानते हैं. यह इन की पहचान है, वजूद है, रोजगार है, कारोबार है.

ये लोग कड़वा बोल कर मन का आपा खोने में भरोसा रखते हैं. बीते दिनों भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर को कथित तौर पर दुबई के एक मुसलमान ने जान से मारने की धमकी फोन पर दी तो वे बिफर पड़ीं और भूल गईं कि वे सांसद हैं और उन में व एक सड़कछाप गुंडे में क्या फर्क होना चाहिए.

माफिया और गैंगस्टर्स की ऐसी धमकियों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन सांसद महोदया ने वायरल हो रहे वीडियो में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है उस से नूपुर शर्मा भी शरमा सकती हैं. उन्होंने धमकी का मुंहतोड़ जवाब देते कहा, ‘‘अबे चुप साले… मियां की औलाद…’’ और इस के आगे का शब्द यहां लिखे जाने के काबिल नहीं क्योंकि इस से मुसलमानों की धार्मिक भावनाएं भड़क सकती हैं.

शतकवीर खेल मंत्री

आईपीएल, टी20 और वनडे क्रिकेट की कारोबारी चमकदमक कभी का सब से बड़ी घरेलू प्रतिस्पर्धा रही रणजी ट्रौफी को निगल गई है जो भरतीय क्रिकेट टीम में दाखिले के लिए एंट्रैंस टैस्ट हुआ करती थी. सालों बाद क्रिकेट प्रेमियों की दिलचस्पी रणजी में पिछले दिनों बढ़ी जब पश्चिम बंगाल के 36 वर्षीय खेल मंत्री मनोज तिवारी ने इस प्रतिस्पर्धा में लगातार 2 शतक जड़ डाले. लोगों के मुंह से बरबस ही निकला कि खेल मंत्री हो तो ऐसा जो अपने मंत्रालय के नाम को सार्थक कर सके.

टीएमसी जौइन करने के बाद मनोज ने हावड़ा की शिवपुर विधानसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार रतिंद्रनाथ को 32 हजार वोटों से धूल चटाने के पहले भी क्रिकेट में ?ांडे गाढ़े हैं. वे भारतीय टीम की तरफ से वनडे और टी20 भी खेल चुके हैं. यानी, सियासत से खेल पर फर्क नहीं पड़ता.

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