तुलसी का पौधा खास औषधीय महत्त्व वाला होता है. इस के जड़, तना, पत्ती समेत सभी भाग उपयोगी हैं. यही कारण है कि इस की मांग लगातार बढ़ती ही चली जा रही है. मौजूदा समय में इसे तमाम मर्जों के घरेलू नुस्खों के साथ ही साथ आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी व एलोपैथी की तमाम दवाओं में अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है. इस की पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल पाया जाता है, जो कीड़ों और बैक्टीरिया के खिलाफ काफी कारगर होता है.

अब बढ़ती मांग के कारण तुलसी केवल आंगन की नहीं रह गई है, बल्कि इस की मांग वैश्विक हो चुकी है. तुलसी मुख्य रूप से 3 तरह की होती है. पहली हरी पत्ती वाली, दूसरी काली पत्ती वाली और तीसरी कुछकुछ नीलीबैगनी रंग की पत्तियों वाली. खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाली और कम से कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल होती है. अगर किसान सही तरीके से मार्केटिंग का मंत्र जान लें, तो इस में कोई शक नहीं कि यह भरपूर मुनाफा देने वाली फसल सबित होगी.

मिट्टी : तुलसी की खेती आमतौर पर सामान्य मिट्टी में आसानी से हो जाती है. मोटेतौर पर कहें तो अच्छे जल निकास वाली भुरभुरी व समतल बलुई दोमट, क्षारीय और कम लवणीय मिट्टी में इस की खेती आसानी से की जा सकती है.

कैसी हो आबोहवा : तुलसी की खेती के लिए गरम जलवायु बेहतर है. यह पाला बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती है.

कब लगाएं : इस की नर्सरी फरवरी के अंतिम हफ्ते में तैयार करनी चाहिए. यदि अगेती फसल लेनी है, तो पौधों की रोपाई अप्रैल के मध्य से शुरू कर सकते हैं. वैसे मूल रूप से यह बरसात की फसल है, जिसे गेहूं काटने के बाद लगाया जाता है.

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