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हरमन 99 सेब गरम इलाकों में भी फलता है

अब तक तो हम लोगों ने यही सुना था कि सेब सिर्फ ठंडे प्रदेशों में ही हो सकते हैं, पर इसी सोच के उलट पिछले 20 सालों से भारत के अलगअलग प्रदेशों में हरमन 99 प्रजाति का सेब आसानी से गरम इलाकों में भी फलफूल रहा है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि सेब अब कश्मीर, हिमाचल या ठंडे इलाकों की फसल नहीं रह गया है. इतना ही नहीं, बिहार में भी सेब की भरपूर खेती हो रही है.

गरमियों में 45-50 डिगरी सैल्सियस तक में सेब के पैदा होने का मतलब यह है कि अब एक ही बाग में आम और सेब दोनों लगाए जा सकते हैं. डाक्टर केसी शर्मा और हरिमन शर्मा ने तो जम्मू के एक आश्रम में सेब का बागान भी लगा दिया है, जहां टनों सेब हो रहे हैं, वह भी तरबूज के साथ.

कैसी चाहिए मिट्टी

हरमन 99 प्रजाति के सेब किसी भी तरह की मिट्टी में उगाए जा सकते हैं. रेतीली, दोमट, काली, लाल कैसी भी मिट्टी हो, यह प्रजाति सभी मिट्टी में हो जाती है. इस प्रजाति के सेब की खास बात यह है कि जलवायु का भी इस फसल पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता.

अच्छी कमाई

सेब की यह अकेली ऐसी प्रजाति है, जो 13 महीने में ही फल देना शुरू कर देती है यानी इस सेब का पौधा आप आज लगाएंगे तो एक साल बाद उन्हें खा सकते हैं. सर्दियों के सेबों के विपरीत इस किस्म का सेब गरमियों में ही होता है. जून माह तक इस की फसल तोड़ ली जाती है.

यदि कोई बागबान एक एकड़ में सेब की खेती करता है, तो सालाना 7-8 लाख रुपए तक कमा सकता है. इन से कमाई इसलिए भी ज्यादा की जा सकती है, क्योंकि ये सेब सीधे बाजार में बेचे जा सकते हैं, जबकि कश्मीर के सेब बिहार तक लाने में बेहद महंगे हो जाते हैं.

कैसे कर सकते हैं खेती

सेब के पौधे को लगाने के लिए सब से पहले गड्ढा खोदना पड़ता है. फिर उस में कीटनाशक डालना पड़ता है, ताकि कोई बीमारी ना आए. इस के बाद पौधे को कार्बंडाजिम में उपचारित कर के लगाया जाता है. सेब की खेती में दूसरे तमाम  झं झटों से छुटकारा है. इस में केवल सिंचाई दे कर भी अच्छे फल शामिल किए जा सकते हैं.

इस किस्म को नवंबर से फरवरी महीने के अंतिम हफ्ते तक बोया जा सकता है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब भी इस के पौधे  लाए जाएं, तो उस के एक हफ्ते के अंदर ही इन्हें गड्ढे में लगा दिया जाए, नहीं तो ये पौधे सूख जाते हैं.

जानिए कैसे हुई इस की खोज

पेशे से सर्जन डा. केसी शर्मा भारत सरकार की साइंस ऐंड टैक्नोलौजी की टैक्निकल एडवाइजरी कमेटी के सदस्य हैं और कई राष्ट्रीय पुरस्कारों समेत डब्ल्यूएचओ से भी सम्मानित हैं.

वे बताते हैं कि इस सेब को बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश के एक किसान हरिमन शर्मा ने खोजा था. उन्हीं के नाम पर सेब की इस किस्म का नाम हरमन 99 रखा गया है.

साल 1999-2000 से ही डा. केसी शर्मा ने जब इस सेब के बारे में रिसर्च लैबोरेट्री और यूनिवर्सिटी को बताना शुरू किया, लेकिन एक किसान और एक सर्जन की बात पर उन्होंने यकीन नहीं किया.

इस के बाद उन्होंने सोचा कि इसे ऊपर से नीचे पहुंचाया जाए. उन्होंने इस के पौधे देश के जानेमाने लोगों के घर पर लगाने शुरू किए. उन्होंने बताया कि आज यह पेड़ राष्ट्रपति भवन में भी लगा है और देहरादून समेत देश के सभी राजभवनों में भी.

डा. केसी शर्मा के मुताबिक, इस बार एक सेब 306 ग्राम का आया है, जो एक रिकौर्ड बन गया है. इस किस्म के सेब आमतौर पर 250 ग्राम तक के हो रहे हैं.

डा. केसी शर्मा के मुताबिक, उन्होंने 3 प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से हरमन 99 की न्यूट्रीशन वैल्यू की जांच करवाई है. इस की हिमाचल व कश्मीर के ठंडे इलाकों में होने वाले सेबों से तुलना करने पर पता चला है कि इस की न्यूट्रीशन वैल्यू वहां के सेब की तुलना में बहुत ज्यादा है.

शहरों में उगाने के लिए हरमन 99 को बड़े गमलों और प्लास्टिक के ड्रमों में भी लगाया गया. यह प्रयोग सफल रहा है और मुंबई में तो 12वीं मंजिल में भी यह फल दे रहा है.

अधिक जानकारी के लिए ये पौधे उपलब्ध कराने के लिए आप इन मोबाइल नंबरों  9470012945 व 8210729673 पर संपर्क कर सकते हैं.

मैं एक लड़के से 3 वर्षों से प्यार करती हूं, क्या मैं उस पर भरोसा कर सकती हूं?

सवाल

मैं एक लड़के से 3 वर्षों से प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. बीच में हम दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया था. अब वह कहता है कि वह मुझे नहीं किसी और को चाहता है. मैं उसे भुला नहीं सकती. दिनरात रोती हूं. कभी वह कहता है कि लौट आओ. मुझे उस के व्यवहार को ले कर बहुत गुस्सा आता है, यह सोच कर कि उस ने मेरा मजाक बना रखा है. क्या मैं उस पर भरोसा करूं या नहीं?

जवाब

एकदूसरे को समझने के लिए 3 साल का समय बहुत होता है. यदि आप का प्रेमी आप से साफसाफ कह चुका है कि वह आप को नहीं किसी और लड़की को चाहता है तो आप को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए और उस से किनारा कर लेना चाहिए. अपने पहले प्यार को भुलाना थोड़ा मुश्किल जरूर होता है पर नामुमकिन नहीं. समय बीतने के साथ आप के दिलोदिमाग से उस की यादें मिट जाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सिरफिरे का प्यार: नेहा ने बनाए फेसबुक फ्रैंड राहुल से संबंध

सड़क पर पड़ी वह खूबसूरत महिला दर्द से बुरी तरह छटपटाते हुए बिलखबिलख कर चीख रही थी. उस के शरीर से गंधनुमा धुआं सा निकल रहा था. तड़पते हुए वह खुद को अस्पताल ले जाने की गुहार लगा रही थी. उस की सफेद रंग की स्कूटी वहीं बराबर में खड़ी थी. उस के चेहरे पर असीम दर्द था. मौके पर लोगों की भीड़ तो एकत्र थी लेकिन बदले जमाने की फितरत के हिसाब से कोई भी उस की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था.

लोग तमाशबीन बने खड़े थे. तभी एक महिला भीड़ को चीरते हुए आगे आई और लोगों को देख कर बोली, ‘‘अरे, एसिड अटैक हुआ है इस बेचारी पर. शर्म आनी चाहिए तुम सब को, एक औरत तड़प रही है और तुम सब तमाशा देख रहे हो. तुम्हारी बहनबेटी होती तब भी ऐसे ही तमाशा देखते क्या?’’

‘‘हम तो यहां अभी पहुंचे हैं, पुलिस को फोन भी कर दिया है. शायद आने वाली ही होगी.’’ भीड़ में से एक व्यक्ति ने कहा तो महिला बोली, ‘‘किसी की मदद के लिए पुलिस का इंतजार करना जरूरी है क्या? मैं अस्पताल ले जाती हूं इसे.’’ कहते हुए महिला आगे बढ़ी तो अन्य लोग भी साथ देने को तैयार हो गए. इत्तफाक से तभी पुलिस वहां आ पहुंची.

दरअसल, महिला पर एसिड अटैक की यह सनसनीखेज वारदात देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर के थाना कविनगर क्षेत्र स्थित संजयनगर के सैक्टर-23 के पी ब्लौक चौराहे पर हुई थी.

प्रत्यक्षदर्शियों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस के मुताबिक करीब साढ़े 5 बजे वह महिला स्कूटी से जा रही थी. तभी बाइक पर सवार 2 लोग आए. उन्होंने उसे रोका और पलक झपकते ही साथ लाए डिब्बे से तेजाब उस के ऊपर उड़ेल दिया. जब तक लोग कुछ समझ पाते, तब तक हमलावर वहां से भाग निकले.

यह घटना 21 अगस्त, 2018 की थी. इस घटना की सूचना मिलने पर पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया, जिस के बाद थानाप्रभारी प्रदीप कुमार त्रिपाठी व सीओ आतिश कुमार सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

आननफानन में महिला को अस्पताल ले जाया गया. डाक्टरों ने तुरंत उस का उपचार शुरू कर दिया. महिला का चेहरा, हाथ, पैर, पेट व कमर का हिस्सा झुलस गया था. उस की हालत गंभीर थी, लिहाजा उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के लिए रैफर कर दिया गया. पुलिस अधिकारी भी अस्पताल पहुंचे.

महिला बहुत ज्यादा बात करने की स्थिति में तो नहीं थी, फिर भी औपचारिक पूछताछ में उस ने हमले में शामिल एक युवक का नाम पुलिस को बता दिया. उस के मुताबिक उस ने साथियों के साथ मिल कर उस पर तेजाब से हमला किया था. जब वह अपने बेटे को स्कूटी से ट्यूशन की क्लास में छोड़ कर वापस घर जा रही थी, तभी उस युवक ने अपने साथियों के साथ उस पर एसिड फेंका.

पीडि़ता के पति की तहरीर के आधार पर पुलिस ने राहुल नामक युवक को नामजद करते हुए उस के और उस के साथियों के खिलाफ भादंवि की धारा 326ए व 120बी के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया. एसएसपी वैभव कृष्ण ने अपने अधीनस्थों को इस मामले में तत्काल काररवाई के निर्देश दिए.

सरेआम हुई इस वारदात की गूंज प्रदेश की सत्ता के शिखर लखनऊ तक भी पहुंची. मामला गंभीर था, लिहाजा मेरठ जोन के एडीजी प्रशांत कुमार भी अस्पताल पहुंचे और पीडि़ता का हाल जाना. एडीजी ने एसएसपी को निर्देश दिए कि आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी हो. उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए.

पुलिस मामले की तहकीकात में जुट गई. पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यही था कि महिला पर तेजाबी हमला क्यों किया गया? पीडि़ता चूंकि युवक को जानती थी तो यह बात साफ थी कि हमलावर का मकसद उस का चेहरा बिगाड़ना था. मामला प्रेम प्रसंग का लग रहा था.

इस बात को बल तब मिला जब महिला के पति ने भी पुलिस को बताया कि राहुल उस की पत्नी के साथ जबरन रिश्ता रखना चाहता था. वह उस पर साथ रहने का दबाव बनाता था. साथ ही उस ने धमकी भी दी थी कि अगर वह उस के साथ नहीं रहेगी तो वह उसे किसी के साथ रहने लायक नहीं छोड़ेगा.

पुलिस ने टीम बना कर मुख्य आरोपी की तलाश शुरू कर दी. घटनास्थल वाले रास्ते के सीसीटीवी फुटेज भी देखे गए, जिस में 2 युवक बाइक से जाते हुए दिख रहे थे लेकिन बाइक का नंबर या उन के चेहरे नहीं दिख रहे थे. बाइक सवारों में से एक ने हेलमेट लगाया था, जबकि दूसरे ने चेहरे पर गमछा बांधा हुआ था.

पुलिस ने महिला के मोबाइल से राहुल का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया, जिस से नामपता मिलने के साथ ही उस की लोकेशन भी मिलनी शुरू हो गई. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया. अगले दिन पुलिस ने राहुल को गाजियाबाद स्थित हापुड़ चुंगी से गिरफ्तार कर लिया. उस के साथ एक अन्य युवक भी था.

पूछताछ में उस ने अपना नाम उमंग प्रताप बताया. वह भी राहुल के साथ घटना में शामिल था. पुलिस दोनों को थाने ले आई. पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की तो दोस्ती, प्यार व नफरत में डूबी चौंकाने वाली कहानी सामने आई.

फेसबुक पर हुई दोस्ती

नेहा (परिवर्तित नाम) संजयनगर की रहने वाली थी. वह पेशे से डायटीशिन थी, जबकि उस के पति का कोचिंग सेंटर था. नेहा खूबसूरत भी थी और आधुनिक भी. वह सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का इस्तेमाल करती थी. करीब 8 महीने पहले एक दिन

उस के पास राहुल गर्ग नाम के एक युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. राहुल गाजियाबाद के ही राजनगर का रहने वाला था. बीए पास राहुल के पिता की हार्डवेयर की दुकान थी. वह भी व्यवसाय में पिता का हाथ बंटाता था.

राहुल अच्छी कदकाठी का आकर्षक नौजवान था. नेहा ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. इस के बाद दोनों के बीच चैटिंग का सिलसिला चल निकला. जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती हो गई और उन्होंने एकदूसरे का नंबर ले लिया. बातों का दायरा बढ़ा तो बातों के साथसाथ मुलाकातें भी शुरू हो गईं.

चंद दिनों की मुलाकातों में दोनों के बीच प्यार हो गया. नेहा शादीशुदा थी, लेकिन उस ने यह बात राहुल से छिपा ली थी. वक्त के साथ दोनों का प्यार परवान चढ़ा, तो राहुल उस के साथ अपनी दुनिया बसाने का ख्वाब देखने लगा. राहुल उसे दिल से चाहता है, नेहा यह बात बखूबी जानती थी. यही वजह थी कि वह उस की एक आवाज पर दौड़ी चली आती थी.

सामाजिक लिहाज से शादीशुदा हो कर भी किसी युवक के साथ इस तरह का रिश्ता रखना यूं तो गलत था, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध में बह कर नेहा भी दिल के हाथों मजबूर हो गई थी. पतन की डगर कभी अच्छी नहीं होती. शुरुआत में भले ही किसी को अंदाजा न हो, लेकिन एक दिन ऐसे रिश्तों की कीमत चुकानी पड़ती है.

राहुल नेहा के प्यार में पागल था. यह देख नेहा ने राहुल को सच बताने की कोशिश की. लेकिन वह नाराज न हो जाए, इसे ले कर वह उलझन में थी. राहुल उस के साथ प्यार भरी बातें कर के भविष्य के ख्वाब बुनता तो वह उस की हां में हां मिलाती रहती थी.

सच्चाई सुन कर चौंक पड़ा राहुल

प्यारभरे लम्हों में एक दिन राहुल ने नेहा से अपने दिल की बात कही, ‘‘नेहा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

‘‘कितना?’’ नेहा ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो वह बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. तुम अपने घर पर बात करो, मैं हमेशा के लिए तुम्हें अपनी बना लूंगा. आखिर कब तक हम यूं ही मिलते रहेंगे.’’

‘‘मैं जानती हूं राहुल लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हें एक सच भी बताना चाहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी तुम्हारा कौन सा सच है जो मुझे पता नहीं है.’’

‘‘राहुल, प्लीज तुम नाराज नहीं होना.’’

‘‘ऐसी क्या बात है नेहा?’’ कहते हुए राहुल गंभीर हो गया.

‘‘मैं शादीशुदा और एक बच्चे की मां हूं.’’

‘‘क…क…क्या?’’ राहुल को झटका लगा. यह सुन कर वह जमीन पर आ गिरा. कुछ पलों के लिए वह विवेकशून्य हो गया. उसे ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. नेहा ने इस खामोशी को तोड़ा, ‘‘हां, यही सच है राहुल, मैं भी तुम से प्यार करती हूं इसलिए सच बता कर तुम्हें नाराज नहीं करना चाहती थी.’’

सच जान कर राहुल को झटका तो बहुत बड़ा लगा, लेकिन वह नेहा को खोना भी नहीं चाहता था. उस ने बात को वहीं खत्म कर देना बेहतर समझा.

समय अपनी गति से चलता रहा. 3 जून को राहुल का जन्मदिन था. नेहा ने उसे एक होटल में पार्टी दी. राहुल पहले ही होटल पहुंच गया और बाहर खड़े हो कर नेहा के आने का इंतजार करने लगा.

उसे यह देख कर झटका लगा कि नेहा को वहां छोड़ने के लिए एक फौर्च्युनर कार आई थी. कार सवार से वह हंसहंस कर बातें कर रही थी. राहुल ने जन्मदिन तो मनाया लेकिन उस का माथा ठनक गया. पूछने पर नेहा ने बताया कि वह औटो से होटल आई थी.

शक ने बढ़ा दीं दूरियां

राहुल को शक हुआ कि नेहा के संबंध किसी अन्य के साथ भी हैं. इस बात को अभी एक महीना ही बीता था कि राहुल ने एक बार फिर उसे फौर्च्युनर गाड़ी से उतरते देखा. इस के बाद राहुल के दिमाग में यह शक पूरी तरह घर कर गया कि नेहा न केवल उसे, बल्कि अपने पति को भी धोखा दे रही है.

उस के शक का इलाज नेहा ही कर सकती थी, लेकिन राहुल के ज्यादा सवालजवाब करने से वह नाराज हो गई. दोनों के बीच इस बात को ले कर खूब झगड़ा हुआ.

फलस्वरूप दोनों के बीच की दूरियां बढ़ गईं और नेहा ने फोन पर भी राहुल को इग्नोर करना शुरू कर दिया. राहुल के सिर पर नेहा के प्यार का जुनून सवार था. राहुल ने उस से शिकायत की, ‘‘क्या बात है, आजकल तुम मुझ से दूरियां बना रही हो?’’

‘‘इस में चौंकने जैसी कोई बात नहीं है राहुल. वजह तो तुम भी जानते हो. शक से रिश्ते नहीं चला करते.’’

‘‘तुम्हारे पास शक का इलाज है, इलाज कर दो.’’

‘‘हर बात का जवाब देना जरूरी नहीं होता.’’ नेहा ने कहा तो इस मुद्दे पर दोनों के बीच एक बार फिर बहस हो गई. नेहा नाराज हो कर अपने घर चली गई.

नेहा को लगने लगा था कि राहुल उस पर जरूरत से ज्यादा ही हक जताने लगा है. इसलिए उस ने राहुल से दूर रहने में ही भलाई समझी. उस ने राहुल से साफ कह दिया कि वह उस के साथ रिश्ता नहीं रखना चाहती. नेहा के बदले हुए रुख से राहुल को अपने सपने टूटते नजर आए. उस ने राहुल की बारबार की कोशिशों के बाद भी उस से मिलना बिलकुल ही छोड़ दिया. राहुल सिर्फ अपने शक का इलाज करना चाहता था, उसे छोड़ना नहीं.

राहुल को जब लगा कि नेहा उस से पीछा छुड़ा रही है तो वह परेशान हो उठा. उस की कुछ समझ नहीं आया. वह पारदर्शी रिश्ता रखना चाहता था. उस ने नेहा को मनाने की बहुत कोशिश की. जब बात नहीं बनी तो उस ने यह बात अपने साथी पुष्कर त्यागी व आयुषि त्यागी को बताई. राहुल ने उन्हें पूरी बात बताते हुए कहा, ‘‘मैं बहुत उलझन में हूं. तुम दोनों को मेरे साथ नेहा के घर चलना होगा.’’

‘‘उस से क्या फायदा? जब वह रिश्ता नहीं रखना चाहती तो तुम्हें भी उस से दूर हो जाना चाहिए.’’

‘‘मैं उसे मनाने की कोशिश करूंगा. नहीं मानी तो उस के पति के सामने पोल खोल दूंगा. फिर शायद पति उसे छोड़ दे और वह मेरी हो जाए.’’ उन दोनों को उस की बात अजीब लगी, लेकिन चूंकि दोनों राहुल के दोस्त थे, इसलिए उन्होंने उस के साथ जाने का वादा कर लिया. 30 जुलाई को वे राहुल के साथ नेहा के घर पहुंच गए.

नेहा के घर वालों को बता दी सच्चाई

राहुल को अचानक अपने घर आया देख नेहा के होश उड़ गए, लेकिन वह उसे भगा भी नहीं सकती थी. उस की मुलाकात नेहा के पति व सास से भी हुई. राहुल ने उन के सामने नेहा से संबंध स्वीकार किए तो सब को झटका लगा. पीछा छुड़ाने के लिए नेहा को कहना पड़ा कि राहुल से उस की दोस्ती रही है लेकिन अब वह जबरन उस के पीछे पड़ा है.

नेहा ने राहुल को चेतावनी भरे लहजे में कहा, ‘‘मेरा घर उजाड़ने की कोशिश मत करो राहुल, तुम सुधर जाओ वरना मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दूंगा. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश भी मत करना वरना मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

बात न बनती देख राहुल ने भी धमकी भरा लहजा अपनाया, ‘‘अभी तो मैं चला जाता हूं, लेकिन ध्यान रखना नेहा मैं भी इतनी आसानी से पीछा छोड़ने वाला नहीं हूं.’’

राहुल वहां से निकल गया. नेहा के लिए राहुल से रिश्ता रखना अब गले की फांस बन चुका था. वह अपने निर्णय पर पछता रही थी. वह उस से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन राहुल किसी भी सूरत में उस से दूर होने के लिए तैयार नहीं था. वह उसे जबरन अपना बनाना चाहता था.

दोस्त के साथ रची तेजाब डालने की साजिश

नेहा ने सोचा था कि वक्त के साथ राहुल उसे भूल जाएगा और पीछा छोड़ देगा, लेकिन यह सिर्फ उस की सोच थी. दूसरी तरफ जब राहुल को इस बात का भरोसा हो गया कि नेहा अब उस की होने वाली नहीं है तो उस ने उसे सबक सिखाने की ठान ली. कई दिनों की दिमागी उथलपुथल के बाद उस ने यह खतरनाक निर्णय ले लिया कि वह तेजाब डाल कर नेहा के चेहरे को हमेशा के लिए बिगाड़ देगा.

राहुल का एक दोस्त था उमंग प्रताप. बीएससी पास उमंग गाजियाबाद के शास्त्रीनगर में रहता था और वह एसएससी परीक्षा की तैयारी कर रहा था. उमंग की एक बार बुरे वक्त में राहुल ने मदद की थी. राहुल ने उसे 5 हजार रुपए उधार दिए थे. राहुल जानता था कि उमंग पर उस का अहसान है, इसलिए वह उस का साथ जरूर देगा.

हुआ भी बिलकुल ऐसा ही. उस ने अपने दोस्त उमंग को पूरी बात बता कर अपना साथ देने के लिए तैयार कर लिया. उमंग ने राहुल को समझाने की कोशिश भी की मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. जल्द ही उस ने उमंग की मदद से एक डिब्बे में तेजाब का इंतजाम कर लिया. यह 11 अगस्त की बात थी.

राहुल ने अगले कुछ दिन नेहा को फोन किए ताकि बात बन जाए लेकिन उस ने उसे जरा भी भाव नहीं दिया तो वह भन्ना गया. वह जानता था कि हर शाम नेहा अपने बच्चे को ट्यूशन छोड़ने जाती है. उस ने नेहा पर 20 अगस्त को तेजाब डालने की योजना बना ली.

वह उमंग के साथ बाइक पर सवार हो कर निकल गया. पहले उस ने शराब पी और फिर पी ब्लौक चौराहे पर जा कर खड़ा हो गया. उमंग प्रताप बाइक चला रहा था, जबकि वह तेजाब का डिब्बा लिए पीछे बैठा था. बाइक का नंबर छिपाने के लिए उन्होंने उस पर सफेद कागज चिपका दिया था. जैसे ही नेहा वहां आई तो राहुल ने उसे रोका और तेजाब डाल दिया.

तेजाब डालने के बाद दोनों शास्त्रीनगर के डी ब्लौक पहुंचे. यहां उमंग ने बाइक अपने घर पर खड़ी की और राहुल औटो से गोविंदपुरम पहुंचा. यहां से उस ने अपनी कार उठाई और मुरादनगर, मोदीनगर होते हुए वह हरिद्वार की तरफ निकल गया.

राहुल ने सबूत नष्ट करने के लिए घटना के वक्त पहने हुए कपड़े भी रास्ते में जला दिए और डिब्बा फेंक दिया. अगले दिन वह आ गया. उस दिन वह उमंग के साथ जब बाइक पर कहीं जा रहा था, तभी पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने आरोपियों की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त तेजाब का खाली डिब्बा, वारदात में इस्तेमाल की गई बाइक, दोनों के मोबाइल फोन और घटना के समय पहने गए कपड़े अधजली हालत में बरामद कर लिए. पुलिस ने मदद के लिए आगे आई और नेहा को अस्पताल पहुंचाने में मदद करने वाली संजयनगर की महिला कांता देवी को प्रशस्ति पत्र दे कर सम्मानित किया. वहीं पुलिस को काल करने वाले युवक अमित शर्मा की भी सराहना की.

पुलिस ने दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

नेहा ने भावनाओं में बह कर इस तरह किसी से रिश्ता न बनाया होता, तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती. वहीं राहुल ने भी नेहा के पीछे न पड़ कर विवेक का परिचय दिया होता तो उस का भविष्य भी चौपट होने से बच जाता. उस ने जो दुख नेहा को दिया, उस की भरपाई मुश्किल है.    ?

हलाला का विरोध करने वाली शबनम पर एसिड अटैक

पुलिस के ढीले रवैए का ही नतीजा है कि एसिड अटैक की घटनाएं आए दिन बढ़ती जा रही हैं. 21 अगस्त को गाजियाबाद में एसिड अटैक की घटना के बाद सीमावर्ती जिले बुलंदशहर में भी एक महिला को शिकार बनाया गया. वह महिला कोई और नहीं बल्कि बहुविवाह और हलाला को ले कर चर्चा में आई शबनम रानी थी.

13 सितंबर, 2018 को शबनम रानी अपने बच्चे के साथ बुलंदशहर के एसपी से मिलने जा रही थी. इसी दौरान बुलंदशहर के कालाआम चौक के नजदीक बाइक सवार 2 युवक आए. उन में से एक ने उस के ऊपर तेजाब फेंक दिया. इस के बाद दोनों वहां से फरार हो गए.

इस घटना के बाद स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचना दी. कुछ ही देर में पुलिस मौके पर पहुंच गई. पुलिस को जब पता चला कि पीडि़ता शबनम रानी है तो इस की सूचना जिला प्रशासन और अपने आला अधिकारियों को दे दी. पुलिस शबनम को इलाज के लिए जिला अस्पताल ले गई.

सूचना मिलते ही डीएम, एसपी सहित बड़े अधिकारी मौके पर पहुंच गए. बाद में वह पीडि़ता से मिलने अस्पताल पहुंचे. शबनम ने अपने देवर पर एसिड फेंकने का आरोप लगाया.

दरअसल, सन 2010 में शबनम की शादी शरीयत के अनुसार हुई थी. बाद में वह 3 बच्चों की मां भी बनी. सब कुछ ठीक चल रहा था कि उसी दौरान शबनम के पति ने किसी महिला से दूसरी शादी कर ली. इस के बाद शबनम पर परेशानियां बढ़ने लगीं. पति बातबेबात पर उसे मानसिक रूप से प्रताडि़त करने लगा. आरोप यह है कि शबनम के पति ने उसे 3 तलाक दे दिया.

इस में शबनम का तो कोई कुसूर ही नहीं था, वह तो पति की ज्यादतियों में पिस रही थी. उस ने अपनी परेशानी अपने रिश्तेदारों को बताई. रिश्तेदारों ने शबनम के पति से बात की तो उस ने कहा कि वह शबनम को 3 तलाक दे चुका है.

यदि इसे उस के साथ रहना है तो शबनम को अपने देवर से हलाला करवाना होगा. शबनम इस के लिए तैयार नहीं हुई, बल्कि उस ने मुसलिम समाज में चल रही बहुविवाह और हलाला के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला लिया.

बता दें कि निकाह हलाला के अंतर्गत अगर 3 तलाक दी गई महिला अपने पति के पास वापस जाना चाहती है तो उसे एक अन्य मर्द से शादी करनी होगी, फिर उस मर्द को तलाक देना होगा. इस के बाद ही वह अपने पति से शादी कर सकती है. शबनम इस परंपरा के खिलाफ थी.

शबनम अपने देवर के साथ हलाला के लिए तैयार नहीं हुई. लिहाजा बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक करार दिए जाने के लिए शबनम रानी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी. याचिका दाखिल करने के बाद शबनम को धमकियां मिलनी शुरू हो गईं.

ससुराल वालों ने तो शबनम को परेशान करने के लिए उस के घर के पानी की सप्लाई तक काट दी थी. उस के साथ बदसलूकी की जाने लगी थी. पति और देवर तो हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गए थे.

बहरहाल, शबनम ने तेजाब हमले का आरोप अपने देवर पर लगाया है. अस्पताल में उस की हालत गंभीर बनी हुई है. इस संबंध में शबनम की तरफ से प्रोटेक्शन की मांग को ले कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने बुलंदशहर के सीएमओ को निर्देश दिया है कि वह शबनम रानी का इलाज सुनिश्चित कराएं.

साथ ही जिला प्रशासन को भी निर्देश दिए हैं कि शबनम रानी को सुरक्षा मुहैया कराई जाए. कोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के एडीशनल एडवोकेट जनरल ऐश्वर्य भाटी भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि शबनम रानी को सुरक्षा प्रदान कर दी गई है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई मुआवजे की स्कीम है और इस के लिए कोई अरजी दाखिल की गई है तो उस का निपटारा 2 हफ्ते के भीतर कर दिया जाए.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिम्मेदारी बनती है कि नहीं: बूआ को समझ आया जिंदगी का फलसफा

पापा और बूआ की बातें मैं सुन रहा था. अकसर ऐसा होता है न कभीकभी जब आप बिना कुछ पूछे ही अपने सवालों के जवाब पा जाते हैं. कहीं का सवाल कहीं का जवाब बन कर सामने चला आता है. नातेरिश्तेदारी की कटुता दोस्ती की कटुता से कहीं ज्यादा दुखदायी होती है क्योंकि रिश्तेदार को हम बदल नहीं सकते जबकि दोस्ती में ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती. न पसंद आए तो दोस्त को बदल दो, छोड़ दो उसे, ऐसी क्या मजबूरी कि निभाना ही पड़े?

‘‘मनुष्य हैं हम और समाज में हर तरह के प्राणी से हमारा वास्ता पड़ता है,’’ पापा बूआ को समझाते हुए बोले, ‘‘जहां रिश्ता बन जाए वहां अगर कटुता आ जाए तो वास्तव में बहुत तकलीफ होती है. न तो छोड़ा जाता है और न ही निभाया जाता है. बस, एक बीच का रास्ता बच जाता है. फीकी बेजान मुसकान लिए स्वागत करो और दिल का दरवाजा सदा के लिए बंद. अरे भई, हमारा दिल तो प्यार के लिए है न, जहां नफरत नहीं रह सकती क्योंकि हमें भी तो जीना है न. नफरत पाल कर हम कैसे जिएं. किसी इनसान का स्वभाव यदि सामने वाले को नंगा करना ही है तो हम कब तक नंगा होना सह पाएंगे?’’

बूआ के घर कोई उत्सव है और उन का देवर जबतब उन के हर काम में बाधा डाल रहा है. बचपन से बूआ उस के साथ थीं, मां बन कर बूआ ने अपने देवर को पाला है. जब बूआ की शादी हुई तब उन का देवर मात्र 5 साल का था.

मांबाप नहीं थे, इसलिए जब भी बूआ मायके आती थीं तो वह भी उंगली पकड़े साथ होता था. हम अकसर सोचते थे कि बूआ तो नई ब्याही लगती ही नहीं. शादी होते ही वह एकदम से सयानी सी लगने लगी हैं. मैं तब 7-8 साल का था जब बूआ की शादी हुई थी. अकसर मां का बूआ से वार्तालाप कानों में पड़ जाता था :

‘सजासंवरा तो कर गायत्री. तू तो नई ब्याही लगती ही नहीं.’

‘इतना बड़ा बच्चा साथ चले तो क्या नई ब्याही बन कर चलना अच्छा लगता है, भाभी. सभी राजू को मेरा बच्चा समझते हैं. क्या 5 साल के बच्चे की मां दुलहन की तरह सजती है?’

मात्र 20 साल की मेरी बूआ मंडप से उठते ही 5 साल के जिस बच्चे की मां बन चुकी थीं वही बच्चा आज बातबेबात बूआ का मन दुखा रहा है…जिस पर वह परेशान हैं. बूआ के बेटे की शादी थी. बूआ न्योता देने गई थीं जिस पर उस ने रुला दिया था.

‘‘आज याद आई मेरी.’’

‘‘कल ही तो कार्ड छप कर आए हैं. आज मैं आ भी गई.’’

‘‘कुछ सलाहमशविरा तक नहीं, मुझ से रिश्ता करने से पहले…कार्ड तक छप गए और मुझे पता तक नहीं कि बरात का इंतजाम कहां है और लड़की काम क्या करती है.’’

स्तब्ध बूआ हैरानपरेशान रह गई थीं. इस तरह के व्यवहार की नहीं न सोची थी. बूआ कुछ कार्ड साथ भी ले गई थीं देवर के मित्रों और रिश्तेदारों के लिए.

‘‘रहने दो, रहने दो, भाभी, बेइज्जती करती हो और न्योता भी देने चली आईं, न मैं आऊंगा और न ही मेरे ससुराल वाले. कोई नहीं आएगा तुम्हारे घर पर…तुम ने हमारे रिश्तेदारों की बेइज्जती की है… पहले जा कर उन से माफी मांगो.’’

‘‘बेइज्जती की है मैं ने? लेकिन कब, किस की बेइज्जती की है मैं ने?’’

‘‘भाभी, तुम ने अपने बेटे का रिश्ता करने से पहले हम से नहीं पूछा, मेरे ससुराल वालों से नहीं पूछा.’’

‘‘मेरे घर में क्या होगा उस का फैसला क्या तुम्हारे ससुराल वाले करेंगे या तु करोगे? हम लड़की देखने गए, पसंद आई…हम ने उस के हाथ पर शगुन रख दिया. 15 दिन में ही शादी हो रही है. तुम्हारे भैया और मैं अकेले किसी तरह पूरा इंतजाम कर रहे हैं…राहुल को छुट्टी नहीं मिली. वह सिर्फ 2 दिन पहले आएगा, अब हम तुम्हारे ससुराल वालों से माफी मांगने कब जाएं? और क्यों जाएं?’’

‘‘भाभी, तुम लोग जरा भी दुनियादारी नहीं समझते. तुम ने अपने घर का मुहर्त किया, वहां भी मेरे ससुराल वालों को नहीं बुलाया.’’

‘‘वहां तो किसी को भी नहीं बुलाया था. तुम भी तो वहीं थे. सिर्फ घर के लोग थे और हम ने पूजा कर ली थी, फिर उस बात को तो आज 2 साल हो गए हैं. आज याद आया तुम्हें गिलाशिकवा करना जब मैं तुम्हें शादी का न्योता देने आई हूं.’’

पुत्र समान देवर का कूदकूद कर लड़ना बूआ समझ नहीं पा रही थीं. न जाने कबकब की नाराजगी और नाराजगी भी वह अपने ससुराल वालों को ले कर जता रहा था जिन से बूआ का कोई वास्ता न था.

समधियाना तो फूलों की खुशबू की तरह होता है जहां हमें सिर्फ इज्जत देनी है और लेनी है. फूल की सुंदरता को दूर से महसूस करना चाहिए तभी उस की सुंदरता है, हाथ लगा कर पकड़ोगे तो उस का मुरझा जाना निश्चित है और हाथ भी कुछ नहीं आता.

कुछ रिश्ते सिर्फ फूलों की खुशबू की तरह होते हैं जिन के ज्यादा पास जाना उचित नहीं होता. पुत्र या पुत्री के ससुराल वाले, जिन से हमारा मात्र तीजत्योहार या किसी कार्यविशेष में मिलना ही शोभा देता है. ज्यादा आनाजाना या दखल देना अकसर किसी न किसी समस्या या मनमुटाव को जन्म देता है क्योंकि यह रिश्ता फूल की तरह नाजुक है जिसे बस दूर से ही नमस्कार किया जाए तो बेहतर है.

देवर बातबेबात अपने ससुराल वालों को घर पर बुलाना चाहता था जिस पर अकसर बूआ चिढ़ जाया करती थीं. हर पल उन का बूआ के घर पर पसरे रहना फूफाजी को अखरता था. हर घर की एक मर्यादा होती है जिस में बाहर वाले का हर पल का दखल सहन नहीं किया जा सकता. अति हो जाने पर फूफाजी ने भाई को अलग हो जाने का संदेशा दे दिया था जिस पर काफी बावेला मचा था. जिसे पुत्र बना कर पाला था वही देवर बराबर की हिस्सेदारी मांग रहा था.

‘‘कौन सा हिस्सा? हमारे मांबाप जब मरे तब हम किराए के घर में रहते थे और तुम 2 साल तक ननिहाल में पलते रहे. अपनी शादी के बाद मैं तुम्हें अपने घर लाया और पालपोस कर बड़ा किया. अपने बेटे के मुंह का निवाला छीन कर अकसर तुम्हारे मुंह में डाला…कौन सा हिस्सा दूं मैं तुम्हें? हमारे मातापिता कौन सी दौलत छोड़ कर मरे थे जिसे तुम्हारे साथ बांटूं. मैं ने यह सबकुछ अपने हाथ से कमाया है. तुम भी कमाओ. मेरी तुम्हारे लिए अब कोई जिम्मेदारी नहीं बनती.’’

‘‘आप ने कोई एहसान नहीं किया जो पालपोस कर बड़ा कर दिया.’’

‘‘मैं ने जो किया वह एहसान नहीं था और अब जो तुम करने को कह रहे हो उस की मैं जरूरत नहीं समझता. हमें माफ करो और जाओ यहां से…हमें चैन से जीने दो.’’

फूफाजी ने जो उस दिन हाथ जोड़े, उन्हीं पर अड़े रहे. मन ही मर गया उन का. क्या करते वह अपने भाई का?

‘‘यह कल का बच्चा ऐसी बकवास कर गया. आखिर क्या कमी रखी मैं ने? न लाता ननिहाल से तो कोई मेरा क्या बिगाड़ लेता, पलता वहीं मामा के परिवार का नौकर बन कर. आज इज्जत से जीने लायक बन गया तो मेरे ही सिर पर सवार…हद होती है बेशर्मी की.’’

वह अलग घर में चला गया था लेकिन मौकेबेमौके उस ने जहर उगलना नहीं छोड़ा था. बूआ के बेटे की शादी का नेग उस ने उठा कर घर से बाहर फेंक दिया था. बीमार हो गई थीं बूआ.

‘‘क्या हो गया है इस लड़के की बुद्धि को. हमारा ही दुश्मन बना बैठा है. हम ने क्या नुकसान कर दिया है इस का. इज्जत के सिवा और क्या चाहते हैं इस से,’’ बूआ का स्वर पुन: कानों में पड़ा.

‘‘भूल जाओ न उसे,’’ पापा बोले थे, ‘‘समझ लो उस का कोई भी अस्तित्व कहीं है ही नहीं. शरीर का जो हिस्सा सड़गल जाए उसे काट कर अलग करना ही पड़ता है वरना तो सारा शरीर गलने लगता है… तुम्हारा अपना बेटा शादी कर के अपने घर में खुश है न, तुम पतिपत्नी चैन से जीते क्यों नहीं? क्यों उठतेबैठते उसी का रोना ले कर बैठे रहते हो?’’

‘‘अपना बेटा खुश है और यह कौन सा पराया था. भैया, हम ने कभी इस की खुशी पर कोई रोक नहीं लगाई. अपने बेटे पर उतना खर्च नहीं किया जितना इस पर करते रहे. इस की पढ़ाई का कर्ज हम आज तक उतार रहे हैं. अपना बेटा तो वजीफे से ही पढ़ गया. जहां इस ने कहा, वहीं इस की शादी की. अब और क्या करते. कम से कम अपने घर में चैन से जीने तो देता हमें…हमारे पीछे हाथ धो कर पड़ना उस ने अपना अधिकार बना लिया है. हम खुश हुए नहीं कि जहर उगलना शुरू. चार लोगों में तमाशा बनाना जैसे शगल है उस का…अभी राहुल के घर बच्चा होगा…’’

‘‘तब मत बुलाना न उसे. जब तुम जानती हो कि वह तुम्हारा तमाशा बनाता है तब काट कर फेंक क्यों नहीं देतीं उसे.’’

‘‘भैया, वह अपना है.’’

‘‘अपना समझ कर सब सहन करती हो उसी का तो वह फायदा उठाता है. शायद वह तुम पर वही अधिकार चाहता है, जो तब था जब तुम ब्याह कर उस घर में गई थीं. तुम ने अपनी संतान तब पैदा की थी जब तुम्हारा देवर 10 साल का था. इतने साल का उस का एकाधिकार छिन जाना उस से सहा नहीं गया. अपनी सीमा रेखा भूल गया.

‘‘ऐसी मानसिकता धीरेधीरे प्रबल होती गई. उस का अपमानित करना बढ़ता गया और तुम्हारी सहनशक्ति बढ़ती गई. मोहममता की मारी तुम उसे बालहठ समझती रहीं. दबी आवाज में मैं ने तुम से पहले भी कहा था, ‘अपने बेटे और देवर में उचित तालमेल रखो. जिस का जितना हक बनता है उसे न उस से ज्यादा दो और न ही कम.’ अब त्याग दो उसे. अपने जीवन से निकाल दो अभी.’’

स्तब्ध रह गया हूं मैं आज. मेरे पिता जो सदा निभाना सिखाते रहे, आज काट कर फेंक देना सिखाने लगे.

‘‘वो जमाना नहीं रहा अब जब हम आग का दरिया पचा जाया करते थे और समुंदर के समुंदर पी कर भी जाहिर नहीं होने देते थे. आज का इनसान इतना सहनशील नहीं रहा कि बुराई पर बुराई सहता रहे और खून के घूंट पी कर भी मुसकराता रहे.

‘‘आज हर तीसरा इनसान अवसाद में जी रहा है. आखिर क्यों? पढ़ाईलिखाई ने तहजीब में रहना सिखाया है न इसीलिए तहजीब ही निभातेनिभाते हम अवसाद का शिकार हो जाते हैं. जो लोग कुत्तेबिल्ली की तरह लड़ा करते हैं वे तो अपनी भड़ास निकाल चुकते हैं न, भला वे क्यों जाएंगे अवसाद में.

‘‘संस्कारी और तहजीब वाला इनसान खुद पर ही जुल्म करे, क्या इस से यह अच्छा नहीं कि वह उस इनसान से ही किनारा कर ले. भूल जाओ उस 5 साल के बच्चे को जो कभी तुम्हारा हर पल का साथी था. अब बहुत बदल चुका है वह. समझ लो वह इस शहर में ही नहीं रहता. सोच लो अमेरिका चला गया है…दिल को खुश रखने को यह खयाल क्या बुरा है गायत्री?’’

कुछ कचोटने लगा है मुझे. मेरे आफिस में मेरा एक घनिष्ठ मित्र है जो आजकल बदलाबदला सा लगने लगा है. पिछले 10 साल से हम साथसाथ हैं. अच्छी दोस्ती थी हम में. जब से मेरा प्रोमोशन हुआ है, वह नाखुश सा है. जलन वाली तो कोई बात ही नहीं है क्योंकि उस का क्षेत्र मेरे क्षेत्र से सर्वदा अलग है. ऐसा तो है ही नहीं कि उस की कोई शह मेरी गोद में चली आई हो. कटाकटा सा भी रहता है और मौका मिलते ही चार लोगों के बीच अपमानित भी करता है. पिछले 6 महीने से मैं उस का यह व्यवहार देख रहा हूं, कोशिश भी की है कि बैठ कर पूछूं मगर पता नहीं क्यों वह अवसर भी नहीं देता. कभीकभी लगता है वह मुझ से दुश्मनी भी निकाल रहा है. अपना व्यवहार भी मैं पलपल परख रहा हूं कि कहीं मैं ही कोई भूल तो नहीं कर रहा.

हैरान हूं मैं. मैं तो आज भी वहीं खड़ा हूं जहां कल खड़ा था, ऐसा लगता है वही दूर जा कर खड़ा हो गया है और बातबेबात मेरा उपहास उड़ा रहा है. धीरेधीरे दुखी रहने लगा हूं मैं. आखिर मैं कहां भूल कर रहा हूं. काम में जी नहीं लगता. ऐसा लगता है कोई प्यारी चीज हाथ से निकली जा रही है. शायद मेरे स्नेह का निरादर कर उसे अच्छा लगता है.

‘‘अपनेआप के लिए भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है न गायत्री. अपने पति के प्रति, अपनी सेहत के प्रति… अपने लिए जीना सीखो, बच्ची.’’

पापा अकसर प्यार से बूआ को बच्ची कहते हैं. बूआ की अपने देवर के प्रति ममता तो मैं बचपन से देखता आ रहा हूं आज ऐसी नौबत चली आई कि उसी से बूआ को हाथ खींचना पड़ेगा… क्योंकि बूआ अवसाद में जा चुकी है. डिप्रेशन का मरीज जब तक डिप्रेशन की वजह से दूर न होगा, जिएगा कैसे.

‘‘कोई भी रिश्ता तभी तक निभ सकता है जब तक दोनों ही निभाने के इच्छुक हों. अमृत का भरा कलश केवल एक बूंद जहर से विषाक्त हो जाता है. हमारा मन तो मानवीय मन है जिस पर इन बूंदों का निरंतर गिरना हमें मार न दे तो क्या करे.

‘‘अपना निरादर कराना भी तो प्रकृति का अपमान है न. सहना भी तभी तक उचित है जब तक आप सह पाएं. सहने की अति यदि आप को या हमें मारने लग जाए तो क्यों न हाथ खींच लिया जाए, क्योंकि रिश्तों के साथसाथ अपने प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी है न. क्यों कोई आप के प्यार और अपनत्व का तिरस्कार करता रहे, क्यों आप के वात्सल्य और स्नेह को कोई अपनी जागीर ही समझ कर जब चाहे पैर के नीचे रौंद दे और जब चाहे जरा सा पुचकार दे.

‘‘अब छोटा बच्चा नहीं है वह कि तुम हाथ खींच लोगी तो मर जाएगा. 2 बच्चों का बाप है. अपने आलीशान घर में रहता है. तुम्हारे घर से कहीं बड़ा घर है उस का. क्या कभी बुलाता है वह तुम्हें? क्या तुम से कभी पूछता है वह कि तुम जिंदा हो या मर गईं?

‘‘उसे उतना ही महत्त्व दो जिस के वह लायक है. संकरे बर्तन में ज्यादा वस्तु डाली जाए तो वह छलक कर बाहर निकलती है. यह इनसानी फितरत है बच्ची, पास पड़ी शह की मनुष्य कद्र नहीं करता. जो मिल जाए वह मिट्टी और जो खो जाए वह सोना, तो सोना बनो न पगली…मिट्टी क्यों बनती हो?’’

चुप हो गए पापा. शायद बूआ पर नींद की गोली का असर हो चुका है. गहरी पीड़ा में हैं बूआ. क्षमता से ज्यादा जो सह चुकी हैं.

फूफाजी और पापा बाहर चले आए. हमारा पूरा परिवार बूआ की वजह से दुखी है. निर्णय हुआ कि कुछ दिन दोनों राहुल के पास बंगलौर चले जाएंगे इस माहौल से दूर. शायद जगह बदल कर बूआ को अच्छा लगे.

हफ्ता भर बीत चुका है. अब मैं अपने नाराज चल रहे मित्र की तरफ देखता ही नहीं हूं. जरूरी बात भी नहीं करता. पास से निकल जाता हूं जैसे उसे देखा ही नहीं. पहले उस के लिए रोज जूस मंगवाता था, अब सिर्फ अपने ही लिए मंगवाता हूं. नतीजा क्या होगा मैं नहीं जानता मगर मैं चैन से हूं. कुंठा तंग नहीं करती, ऐसा लगता है अपनेआप पर दया कर रहा हूं. क्या करूं मेरे लिए भी तो मेरी कोई जिम्मेदारी बनती है न. पापा सच ही तो कह रहे थे, किसी के लिए मिट्टी भी क्यों बना जाए. सहज उपलब्ध हो कर क्यों अपना मान घटाया जाए. आखिर हमारे आत्मसम्मान के प्रति भी हमारी कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं.

‘‘हरियाणा”: हरियाणा के जातिगत मुद्दे, हिंदी भाषा व राजनीति का सतही चित्रण..

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः राजा बसवाना फिल्मस

लेखक व निर्देशकः संदीप बसवाना

कलाकारः यश टोंक, अश्लेषा सावंत, मोनिका शर्मा

अवधि: दो घंटे 32 मिनट

संदीप बसवाना ने 2002 में सीरियल ‘कुछ झुकी पलके’ से अभिनय जगत में कदम रखा था. उसके बाद वह ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’,‘हिटलर दीदी’,‘परवरिश सीजन 2’, ‘रिहाई’, ‘कोई दिल में है’, ‘काव्यांजली’,‘कर्म अपना अपना’ व ‘विश या अमृत’ सहित कई सीरियलों में अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर लोगों को अपना बना लिया. अब वह पहली बार बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘हरियाणा’’ लेकर आए हैं, जो कि 5 अगस्त से सिनेमाघरों में है. मूलतः हरियाणा निवासी संदीप बसवाना ने अपनी इस फिल्म में हरियाणा को लेकर लोगों के मन में जो भ्रांतियां हैं, उन्हें दूर करने के साथ ही भाषा सहित कुछ कुप्रथाओं पर चोट भी की है. फिल्म हरियाण के आम जीवन व आम लोगों के भोलेपन वाले आचरण से परिचित कराती है, मगर जातिगत मुद्दे को वह ठीक से पेश नहीं कर पाए.

कहानीः

फिल्म की कहानी हरियाणा के एक गंव की है.जहां बड़ा भाई महेंद्र (यश टोंक ) अपने दो छोटे भाइयों राजवीर (रॉबी मारीह ) और जुगनू ( आकर्षण सिंह ) के साथ रहते हैं. अभी तक तीनों की शादी नही हुई है. संपन्न परिवार है. महेंद्र अपने दोनो भाईयों की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है और उनकी खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

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महेंद्र के पास प्यार के लिए समय नहीं है. क्योंकि वह अपने व्यवसाय व अपने छोटे भाइयों की अच्छी देखभाल के प्रति ही समर्पित रहते है. अब वह तीस वर्ष से अधिक उम्र के हो चुके हैं. राजवीर अग्रीकल्चर युनिवर्सिटी में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है. राजवीर मन ही मन वसुधा (मोनिका शर्मा) से प्यार करता है. मगर वसुधा एक गैर जाट युवक विजय से प्यार करती है. इधर जुगनू को फिल्म अभिनेत्री आलिया भट्ट से प्यार हो गया है. इसी बीच महेंद्र एक दूसरे गांव की लड़की विमला (अश्लेषा सावंत ) को पसंद कर लेता है और उनकी मंगनी हो जाती है. महेंद्र की होने वाली दुल्हन बिमला (अश्लेषा सावंत) उसे एहसास कराती है कि उसे प्यार का मतलब भी नहीं पता है. तभी विधानसभा के चुनाव नजदीक आ जाते हैं.गांव के लोग इस बार वर्तमान विधायक चेतराम के गलत व्यवहार से तंग आकर महेंद्र से चुनाव में खड़े होने के लिए कहते हैं.

महेंद्र चुनाव लड़ने के लिए तौर हो जाते है.वहां राजवीर के कालेज में कुछ अलग ही घटनाएं घट रही हैं और एक दिन महेंद्र अपने भाई राजवीर के कहने पर पुलिस की मदद से वसुधा व विजय की शादी करवा देते हैं. तो जुगनू को आलिया भट्ट से मिलने मुंबई भेजता है, जहां कई नाटकीय घटनाक्रम घटित होते हैं.जाट लड़की की शादी गैर जाट लड़के से करवाने के चलते कई दूसरे गांव के लोगों के साथ ही विमला के पिता धर्मेंद्र से नाराज हो जाते हैं.विमला की मंगनी रद्द कर देेत हैं.अब महेंद्र को अहसास हो जाता है कि वह चुनाव हार जाएंगे.मगर विमला चुपचाप हर गांव जाकर औरतों को समझाती है कि महेंद्र से अच्छा इंसान कोई नहीं हो सकता.वह अपने पुकसान की परवाह किए बगैर हर लड़की और औरत के हक के लिए लड़ने कको तैयार रहता है. परिणामतः चेतराम की जमानत जब्त हो जाती है.और महेंद्र विधायक बना जाते हैं. फिर महेंद्र व विमला की शादी हो जाती है.

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लेखन व निर्देशनः

पूरे देश में हरियाणा राज्य कर नाम आते ही उद्दंड व खेलों में रूचि रखने वाले लोगों की छवि ही लोगों के दिमाग में आती है. लेखक व निर्देशक संदीप बसवाना ने पूरी इमानदारी के साथ इस बात को चित्रित करने में सफल रहे हैं कि हरियाणा का आम इंसान उद्दंड नही है, बल्कि वह भोला है और अपने मन की बात को व्यक्त करने का उसका अपना तरीका है. इसके अलावा हरियाणवी भाषा का लहजा ऐसा है कि लोगों को उसमें उद्दंडता नजर आती है. जबकि ऐसा नहीं है. हरियाणा के लोग काफी सभ्य व इमानदार हैं. हरियाणा के ही गांव में फिल्मकार संदीप ने हरियाणा की खूबसूरती, मकानों की बनावट, लोगों के रहन सहन आदि को भी पेश किया है. गांव के लोगों की विचित्रताओं को अच्छी तरह से चित्रित किया गया है. कुछ दृश्य जरुर अच्छे बन पड़े हैं.

निर्देशक ने हरियाणा राज्य की हरियाणा पेश करने के लिए फिल्म की शुरूआत एक धुंधली नहर और हरी-भरी हरियाली के मनोरम दृश्यों,पानी को लेकर विवाद और फिर रुपये के लिए निकलती बारात में जोर-जोर से नाचते व शराब का सेवन करते हुए लोगों को दिखाकर किया है. फिर भी पटकथा काफी सुलझी हुई है.

लगभग ढाई घंटे की अवधि वाली फिल्म एक मोड़ पर जाकर एकदम नीरस हो गयी है.

निर्देशक ने हरियाणा से पूरी तरह से लोगों को वाकिफ कराने के चक्कर में राजनीति को भी जोड़ा है. मगर राजनीति का हिस्सा जिस तरह से पेश किया गया है, वह बहुत नीरस और एक खूबसूरत कहानी में पैबंद सा नजर आता है.

शायद लेखक व निर्देशक किसी डर के चलते अथवा हरियाणा राज्य की राजनीति से पूरी तरह वाकिफ न होने के कारण इसे सही ढंग से चित्रित नहीं कर पाए. भाइयों की प्रेम कहानियां कितनी अलग हैं,इसके आधार को दिलचस्प तरीके से पेश करने में कामयाब रहे हैं.

हर हिंदी भाषा को शहरों में अंग्रेजी भाषा को लेकर जलील होना पड़ता है.हिंदी भाषा स्वयं को हीन ग्रंथि का शिकार महसूस करता है. इस मुद्दे को लेखक व निर्देशक ने फिल्म में उठाते हुए एक अच्छा संदेश देने का प्रशंसा जरुर किया है, मगर सुलझा पटकथा व सही संदर्भ न चुनने की वजह से सब कुछ प्रभावहीन हो गया है. लेखक व निर्देशक ने भाषा के इस मुद्दे को पांच सितारा होटल संस्कृति,पब संस्कृति व अति उच्चवर्ग के साथ जोड़कर दिखाया है, जिससे आम इंसान रिलेट नही कर पाता. यह लेखक व निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी रही.इसी तरह लेखक व निर्देशक की दूसरी कमजोर कड़ी जातिगत मुद्दे को अति सतही स्तर पर उठाना रहा.फिल्मकार ने दिखाया है कि जब नायक एक जाट लड़की का विवाह गैर जाट लड़के से पुलिस की मदद से करवा देता है, तो चुनाव में लोग उसके खिलाफ हो जाने की बात कहते हैं. जबकि यह मसला इतना हलाक नहीं है. हरियाणा के संदर्भ में जहां जाट पंचायतें एक ही गोत्र मे विवाह का विरोध कर रही हो, वहां जातिगत मसलों के चलते आम इंसानों को कई तरह की मुसीबतें -हजयेलनी पड़ती हैं,उसका सही चित्रण का अभाव है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो धर्मेंद्र के किरदार में यश टोंक अपने अभिनय के बल पर पूरी फिल्म अकेले अपने कंधे पर लेकर जाते हैं. वैसे मूलतः हरियाणा वासी होना भी यश टोंक के लिए फायदेमंद रहा. यूं तो यष टोक भी पिछले बीस वर्ष से बौलीवुड में सक्रिय हैं. एक शर्मीली और सरल लेकिन बुद्धिमान और व्यक्तिवादी लड़की विमला के किरदार में सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘अनुपमा’ फेम अदाकारा अश्लेषा  सावंत ने शानदार अभिनय किया है. मूलतः मराठी भाषा अश्लेषा सावंत ने हरिणावी भाषा के लहजे को सुंदरता से पकड़ा है.बिना प्यार के सच को सम-हजये अति कठोर कदम उठाने वाले प्रखर युवक राजवीर के किरदार में रौबी मॉरीह पूरी तरह से सफल नहीं रहे. फिल्म में जुगनू के किरदार में कई परते व कई मोड़ हैं, पर जुगनू के किरदार में आक-ुनवजर्याण सिंह का अभिनय साधारण ही रहा. जबकि उन्हें अपनी अभिनय प्रतिभा को उजागर करने के लिए कई मौके थे. वसुधा के किरदार में मोनिका शर्मा संदुर जरुर लगी हैं, मगर उन्हें अभी अभिनय के लिए खुद को काफी तराशने की जरुरत है. उनके चेहरे पर भाव तो आते ही नहीं है.

TMKOC: बापूजी की वजह से जेल जाने से बचे जेठालाल, जानें क्या है सच

सब टीवी का पॉपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ दर्शकों का फेवरेट शो है. शो का हर कलाकार घर-घर में मशहूर है. शो में आपने देखा कि पोपटलाल के गहनों के किस्से ने गोकुलधामवासियों के साथ-साथ दर्शकों को भी परेशान कर रखा था. आखिरकार पोपटलाल के गहने गए कहां…

शो में दिखाया गया कि डिब्बा तो मिल गया लेकिन वह खाली था. बाद में गहने जेठालाल के घर से मिले वो भी बापूजी की अलमारी से. जिससे यह बात साफ हो गई कि जेठालाल ने चोरी की है ऐसे में उनके जेल जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी.

तो दूसरी तरफ गोकुलधामवाले भी जेठालाल को कोसने लगे थे. लेकिन तभी बापूजी ने स्टैंड लिया और जेठालाल को बचा लिया. जिस इल्जाम में जेठालाल को गिरफ्तार किया जा रहा था वो चोरी जेठा ने नहीं की थी. बता दें कि ये गहने खुद बापूजी ने ही जेठालाल से छिपाकर रखे थे.

 

दरअसल जेठा ने इन गहनों को टेबल पर खुला छोड़ दिया था. जब ये बापूजी ने देखा तो वो समझ कि वह काफी लापरवाह हो गया है. बापूजी ने डिब्बे को बंद कर दिया और गहने निकालकर अपने पास रख लिए.

 

ऐसे में जेठालाल को जब पुलिस गिरफ्तार कर रही थी तब बापूजी ने पहुंचकर जेठालाल को बचा लिया और पूरे मामले की जानकारी इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे को दी.

 

धर्म: लालची धर्मांध नहीं सुधरेंगे

धार्मिक पूजापाठ में भक्त/ श्रद्धालु इस तरह खोए रहते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे इस से प्रकृति और खुद को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह इसलिए कि धार्मिक स्थलों में बैठे पंडेपुजारी अपने लिए दानदक्षिणा जुटाने के चलते उन्हें ऐसा सोचने ही नहीं देते.

इस बार अभी तक दिल्ली में हलफीफुलकी नाममात्र की बरसात हुई है. सूखा पड़ने की संभावना है. पता नहीं अब की बार हमारे अतिउत्साही, अंधविश्वासी हिंदूभाई वर्षा के लिए कौन सा जादूटोटका, तंत्रमंत्र, यज्ञहवन करने वाले हैं. 2-3 वर्षों पहले तो अखबारों में खबर पढ़ी थी कि वर्षा के देवता इंद्र को खुश करने के लिए वस्त्रविहीन महिला से खेत में हल चलवाया गया था.

पिछले कई सालों से भारी वर्षा के कारण केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि धार्मिक स्थलों पर बादल फटे व भूस्खलन हुए, सुनामी जैसी जलप्रलय हुई. हर साल से उत्तर काशी तक अनेक गांव छोटेमोटे कसबे, मकान, दुकान होटल, स्कूल, अस्पताल, सरकारी दफ्तर, सड़कें, पुल काफी नष्ट हो रहे हैं.

प्रकृति हमें सबक सिखा रही है कि यदि हम लोग नहीं सुधरे तो जलप्रलय का भयानक रूप देखना पड़ सकता है. अभी तक पहाड़ी इलाकों में आधाअधूरा विकास ही हो पाया है परंतु हमारे अतिधार्मिक भक्तों को घर में बैठना मुश्किल हो रहा है. फिर वही भेड़चाल, हमारे अंधश्रद्धालु जहां सौ लोगों को जाना चाहिए वहां 10 हजार और जहां हजार लोगों की गुंजाइश हो वहां लाखों लोग पहुंच रहे हैं. सारे देश में ट्रैवल एजेंसियां मंदिरों में खुली हुई हैं जो भक्तों को पहाड़ों पर ले जाती हैं.

अगला जन्म सुधरने, स्वर्ग में आरक्षण कराने आदि के लिए छलकपट से अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में इंसान कथित भगवानों के दर्शन हेतु मारामारा फिरता है लेकिन न मोक्ष मिलता है और न ही राम. गरीबों को खूब लूटताखसोटता है पर धनदौलत से दिल नहीं भरता उस का.

धर्म का चोला पहने लोग नदियों में तरहतरह की पूजा सामग्री, कूड़ाकचरा लगातार डालडाल कर उन्हें प्रदूषित व गंदा करते रहते हैं. कांवड़ सेवा के नाम पर धर्म के ठेकेदार, व्यापारी व सरकार ने मिल कर दिल्ली से हरिद्वार तक कांवडि़यों की सेवार्थ हिंदू धर्म के ढोंग की खातिर जगहजगह पर हजारों कांवड़ शिविर लगाए. अपने मांबाप का सम्मान न करते हों, उन्हें एक गिलास पानी तक न देते हों, ऐसे कांवडि़यों के लिए जगहजगह भरपूर व्यवस्था रहती है. कई स्थानों पर ये हिंसा करने पर उतर आते हैं.

अंधविश्वासी इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने तो पहले ही प्रचार करना शुरू कर दिया है कि इस बार और ज्यादा लोग पहुंचेंगे. हमारे मीडिया द्वारा अंधश्रद्धालुओं को इस तरह प्रेरित करने का ही असर था कि इतनी बड़ी संख्या में कांवड़ गंगा नदी के तट पर हरिद्वार में जमा हुए. उन के शौच, पेशाब व स्नान से गंगा गंदी और मैली हो जाती है और वही दूषित जल शिवालयों में चढ़ाया जाता है. कुंभ मेले में गंगा नदी मैली हो जाती है. गंगा में 10-15 दिनों में ही हजारोंलाखों टन कूड़ाकचरा भर जाता है. हरिद्वार व कुंभ के समय यह नदी मेले के दौरान अपनी चरम सीमा पर होती है.

धर्म के नाम पर हर तीर्थस्थल पर दुकानदार, पंडेपुजारी खूब लूटखसोट करते हैं. अंधश्रद्धालु कांवड़ पूरे हिमालय के तीर्थों पर से पंडेपुजारियों द्वारा लुटपिट कर अपने पांव सुजा कर घर चले आते हैं. अपने मंदिरों में जल चढ़ाते हैं. हर साल गणेश व दुर्गा की बड़ीबड़ी विशाल मूर्तियां लाखों रुपए खर्च कर के नदियों, ?ालों में विसर्जित की जाती हैं जिस से प्रदूषण बढ़ता है.

ऐसी फुजूल की परंपरा दुनिया में कहीं नहीं मिलती. भगवा सरकारों ने नदियों की सफाई पर अरबोंखरबों का बजट रखा है पर उस का आधा तो सफाई के बहाने भ्रष्टाचारी राजनीतिबाज व धार्मिक हिंदू ही मिल कर सटक जाते हैं और नदियां इन पोंगापंथियों के कारण मैली की मैली ही रहती हैं.

अंधश्रद्धा और मौतें

हर वर्ष हिंदू आस्थावान तीर्थयात्री अकाल मौत को प्राप्त हो जाते हैं, खासतौर से हरिद्वार से ले कर उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों को तीर्थ यात्रियों को ले जाने वाली बसें हजारों मीटर नीचे घाटी में गिर जाती हैं, जिन में सैकड़ों यात्री मारे जाते हैं.

नदियों के कारण ही नहीं, धार्मिक कामों में बेवकूफियों के कारण भी मौतें होती हैं. अप्रैल 2022 में तमिलनाडु के तंजौर जिले के एक गांव कालिमेडू में एक विशाल रथ को सड़कों पर रात को खींच कर हर घर के सामने से ले जाया जा रहा था. 50 लोग मोटे रस्से से उसे खींच रहे थे. एक जगह रथ को मोड़ने पर उस की बुर्जी एक बिजली के तार से छू गई. रथ को आग लग गई और 10 लोग उस आग में जल कर भस्म हो गए.

ओडिशा के तारातारिणी में मूर्ति पर घी जलाते हुए दिए फेंकने से वहां लगे तारों में शौर्ट सर्किट हो गया और जानें बालबाल बचीं.

मंदिरों में मची भगदड़ में लोग मारे जाते हैं. कई साल पहले चामुंडा मंदिर में 216 लोग मौत के शिकार हुए. एक बार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के नजदीक नैना मंदिर में 160 लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर में मची भगदड़ में 104 हिंदू जान से हाथ धो बैठे. हिंदुओं में धन के लिए खींचतान, छीना?ापटी, लूटखसोट मची हुई है. मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों, घोटालेबाजों व भ्रष्टाचारियों का अनैतिकता से कमाया धन 10 प्रतिशत तो हिंदू धर्म के प्रचारप्रसार में लग जाता है.

धर्म के धंधेबाजों ने हिंदुओं की कमजोरी सम?ा ली है और वे मंदिरों, कांवड़ों, कुंभों, अनुष्ठानों और तीर्थ यात्राओं के नाम पर लोगों को लूटनेखसोटने में लगे हैं और अंधभक्त हिंदू भगवान के दीदार की कल्पना मन में संजोए लुटने को तत्पर रहता है. चाहे ऐसे स्थानों पर उस की जान भी जोखिम में पड़ जाए.

यह कितना सच है कि हिंदू धर्म ही सिखाता है आपस में बैर रखना. ऐसे लोग मंदिरमंदिर खाक छानते फिरते हैं. मंदिरों में घंटी बजाने, पंड़ेपुजारियों के चरणों में रुपएपैसे, मिठाई चढ़ाना, सिर रगड़ना ही धार्मिक कृत्य है. ऐसे ही लोग अपने सगेसंबंधियों और केवल अपनी जात वालों को अवैध धन कमाने के मक्कारीभरे तौरतरीके बताते हैं.

धर्म के व्यापारी

हजारों ढोंगियों ने पैसे के बल पर पहाड़ों में नदियों के किनारे बड़ेबड़े होटल, धर्मशाला, रैस्टोरैंट, फ्लैट बना लिए हैं. दिल्ली जैसे बड़े शहरों की तरह ऐशोआराम की जगहें सभी पहाड़ी क्षेत्रों में बना डालीं. इन्हीं लोगों ने अधिक धन कमाने के चक्कर में पहाड़ों के पेड़ काट कर हर हरियाली समाप्त कर पहाड़ों का पर्यावरण ही नष्ट कर दिया है.

जितना भारत में हिंदू धर्म का प्रचार बढ़ रहा है उस का समाज पर उलटा ही असर हो रहा है. जैसे दहेज के लिए बहुएं जला दी जाती हैं. दहेज के लालची, धन के भूखे हत्या तक करने में नहीं चूकते. गरीब तबकों के बच्चेबच्चियों के अपहरण के मामले, गरीबों, दलितों की नाबालिग बच्चियों के साथ गैंगरेप कर और हत्या कर के पेड़ पर लटकाने की क्रूरतम घटनाओं को दबंग लोग अंजाम दे रहे हैं. हिंदू देवीदेवता, जिन की अब दलित भी पूजाअर्चना करते हैं, आंखें बंद किए बैठे हैं.

कुछ पंडेपुजारी व साधु जेवरात ले कर हैलिकौप्टर पर चढ़ने वाले ही थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पता चला कि उन्होंने उत्तराखंड में हुई जल प्रलय में मरे लोगों को लूटा था और भागने की फिराक में थे. विपदाओं में भी बेईमान बाज नहीं आते. उन्हें किसी का डर नहीं होता. एक बार गौरीकुंड में डाक्टरों का एक कैंप लगा था. कुछ लोग इलाज के लिए पहुंचे. एक डाक्टर ने उन लोगों के पास

2 प्रैशरकुकर देखे तो पूछा कि इन कुकरों को क्यों लिए जा रहे हो? उन के जवाब पर डाक्टर को शक हुआ. सेना के जवान बुलाए गए. उन्होंने प्रैशरकुकर खोले तो सभी दंग रह गए. उन में दर्जनों हाथ व कटी हुई उंगलियां थीं, जिन में सोने की अंगूठियां थीं.

अफसोस होता है ऐसे लोगों पर जो धर्म की दुहाई दे कर, लोगों को बरगला कर उन का धार्मिक व आर्थिक शोषण करते हैं. ऐसे लोगों का न धर्म से कोई सरोकार होता है और न ही पर्यावरण से. ऐसे लोगों की वजह से ही नदियां प्रदूषित हो रही हैं, प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं. ये तो बस तीर्थयात्राओं को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि हिंदू अंधभक्तों की जेबें खाली की जा सकें.

मोदी सरकार अगर वाकई भारत में अच्छे दिन लाना चाहती है तो उसे धार्मिक प्रपंच को समाप्त करने के प्रयास करने होंगे. हिंदुओं की मानसिकता को बदलना होगा, पर्यावरण की रक्षा के समुचित प्रयास करने होंगे. मगर नहीं, वह तो खुद ही धर्म में डूबी हुई है, वह तो राजनीति में धर्म को तरहतरह से प्रयोग करती है, वह तो धर्म के सहारे ही नफरत फैला कर सत्ता पर काबिज है.

-विभागीय लेखक

भारत भूमि युगे युगे इज्जत की गारंटी

राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की घोषणा के तुरंत बाद ही द्रौपदी मुर्मू अपने गृहप्रदेश ओडिशा के रायरंगपुर के जगन्नाथ मंदिर में  झाड़ूबुहारी करती नजर आईं. इस से साबित हो गया कि भगवा खेमे का चयन गलत नहीं है जिसे ऐसे ही भक्तटाइप का राष्ट्रपति चाहिए. आदिवासी समुदाय की द्रौपदी को भगवा गैंग से यह गारंटी ले लेना चाहिए कि भविष्य में जब कभी वे किसी मंदिर में जाएं तो उन के साथ वह बदसलूकी नहीं होनी चाहिए जो रामनाथ कोविद के साथ हुई थी.

ब्रैंडेड मंदिरों में भी अघोषित तौर पर दलित आदिवासियों का प्रवेश वर्जित रहता है फिर चाहे वह देश का राष्ट्रपति ही क्यों न हो. वाकेआ 18 मार्च, 2018 का है जब रामनाथ कोविंद पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए थे. पुरोहित वर्ग को यह रास नहीं आया तो उन में से एक ने उन की पत्नी सविता कोविंद को धक्का दे दिया था. इस बदसुलूकी की चर्चा दबा दी गई थी. द्रौपदी ने अभी से मंदिरों की परिक्रमा शुरू कर इस की प्रैक्टिस शुरू कर दी है.

बसपा कैन रोक

टूटीफूटी इंग्लिश शराब के ही नहीं, बल्कि हार के नशे में भी बोली जा सकती है. यह पोस्टग्रेजुएट सपा नेता धर्मेंद्र यादव ने आजमगढ़ सीट से हारने के बाद वायरल किया. मतगणना स्थल पर जाने देने से पुलिस वालों ने उन्हें रोका तो वे लगभग गुर्रा कर बोले, ‘हाउ कैन यू रोक?’ इस से साबित होता है कि इंग्लिश हमारे अचेतन में कुंठा बन कर विराजी है जो कभी भी फूट पड़ सकती है. हार के बाद इस नौजवान नेता को सम झ आ गया होगा कि उन्हें दरअसल रोका बसपा ने था, नहीं तो वे एक बार फिर संसद पहुंच गए होते.

8 हजार वोटों के मामूली अंतर से हारे धर्मेंद्र सोच यह भी रहे होंगे कि काश, अखिलेश भैया एक रैली या सभा कर जाते तो यही पुलिस वाले उन के आगेपीछे घूम रहे होते. अभी भी वक्त है कि वे 24 की तैयारी शुरू कर दें और हनुमान या कृष्ण को अपना आराध्य मान लें. इस से भी बात न बने तो भगवाद्वार तो खुला ही है.

ये तलाक नहीं आसां

बहू ऊटपटांग पर आ जाए तो पति तो पति, पूरी ससुराल का जीना दुश्वार कर देती है. लेकिन जब पति भी ऊटपटांग हो तब… तब राममिलाई जोड़ी की पूरी जिंदगी एकदूसरे को कोसने और परेशान करने में निकल जाती है. आखिर में हाथ आती है तनहाई, थकान और खी झ क्योंकि तब तक सलीके से जीने व मौजमस्ती की उम्र निकल चुकी होती है.

लालू पुत्र तेजप्रताप सिंह की पत्नी ऐश्वर्या ने काउंसलिंग के बाद भी पति को तलाक देने से इनकार कर दिया है और ससुराल में ही रहना चाहती हैं. उन्होंने तेजप्रताप और सास राबड़ी देवी पर कई गंभीर आरोप तलाक के मुकदमे के दौरान लगाए थे.

ऐश्वर्या मुमकिन है किसी बड़ी डील की जुगत में हों, इसलिए न तो पति को छुटकारा दे रही हैं और न ही छुटकारा ले रही हैं. प्रतिशोध की इस भावना में लाखों कपल्स अपनी जिंदगी का सुनहरा वक्त अदालतों की चौखट पर एडि़यां रगड़ते बरबाद कर देते हैं जिसे बुद्धिमानी की बात तो नहीं कहा जा सकता.

भगवान ही तो हैं

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक टीवी एंकर से भड़क कर बोलीं कि वे कोई भगवान थोड़े ही हैं. उस एंकर ने उन से चलताऊ सा सवाल यह किया था कि एनडीए के पास तो नरेंद्र मोदी हैं, विपक्ष के पास कौन है. ममता का भड़कना लाजिमी था क्योंकि वह एंकर ही मोदी को अजेय बता रहा था और अजेय तो सिर्फ न दिखने वाला भगवान ही होता है.

नरेंद्र मोदी को भगवान कहने और मानने वालों की कमी नहीं है क्योंकि उन से लाखों भक्तों की रोजीरोटी चल रही है. वे सर्वशक्तिमान हैं, किसी भी विरोधी के घर रेड पड़वा सकते हैं, किसी भी राज्य की सत्ता हड़प सकते हैं और जिस से खुश हो जाएं उस चाटुकार को पद्म पुरस्कार दिलवा सकते हैं, फिर भी जाने क्यों ममता को अपने भगवान होने में शक क्यों है.

मैं अपने मौसी की लड़के से प्यार करती हूं, क्या यह रिश्ता जायज है?

सवाल

मैं 22 साल की युवती हूं और इस समय ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हूं. 5 महीने पहले मेरा अपने होमटाउन जाना हुआ. वहां मेरे बड़े भाई की शादी थी. परिवार के सभी रिश्तेदार आए थे. वहां मेरी मुलाकात मौसी के लड़के से हुई. हम एकदूसरे से पहली बार मिले थे. उस से पहले मुझे उस के बारे में पता नहीं था. शादी की हंसीमजाक, मस्ती में हम दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे. मुझे नहीं पता यह कैसे हुआ पर एकदूसरे से लगाव या कह लें प्यार हो गया, यह जानते हुए भी कि रिश्ते में हम दोनों भाईबहन लगते हैं और यह रिश्ता कभी सफल नहीं हो सकता. अभी हम एकदूसरे को रोज मैसेज और फोन कर रहे हैं. हमारे बीच इंटिमेट बातें भी हो जाती हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा खुद को कैसे रोकूं और यह सब जो हो रहा है उसे कैसे खत्म करूं?

जवाब

आकर्षण ऐसी चीज है जो विपरीत चीजों को एकदूसरे के करीब खींचता है. आप दोनों आकर्षण का शिकार हुए हैं. शादी में कई लोग मिलते हैं. बहुत बार ऐसे करीबी रिश्तेदार मिलते हैं जिन से कभी जिंदगी में मिले भी नहीं होते. ऐसे में वे हमारे लिए पूरी तरह अनजान ही होते हैं. जिस रिश्ते के लिए दिमाग तैयार नहीं होता वहां आकर्षण अपना काम कर रहा होता है.

आप बता रही हैं जिस से आप इन कुछ दिनों में क्लोज आई हैं, वह रिश्ते में आप का भाई लगता है, यानी आप की मम्मी की बहन का बेटा. मेरी मानिए तो इस रिश्ते को जितनी जल्दी खत्म कर लें उतना ठीक, अभी शुरुआत ही है, वरना इस से आप दोनों को आगे चल कर परेशानी उठानी पड़ सकती है.

भारतीय कल्चर, खासकर हिंदुओं, में इस तरह से क्लोज रिश्ते में शादी करना गलत माना जाता है. आगे जा कर अगर किसी को आप दोनों के बारे में जरा सी भी भनक लगी तो बड़ा विवाद खड़ा हो सकता है. आप की मम्मी और मौसी के बीच रिश्ते बिगड़ सकते हैं. इस का खमियाजा आप को भी भुगतना पड़ सकता है. आप

22 साल की हैं, पढ़ाई और कैरियर के लिए मन में कई सपने होंगे, उन सपनों पर इस का प्रभाव पड़ सकता है.

मेरी मानिए तो ऐसे रिश्तों से दूरी बना लें. अपने कैरियर पर फोकस करें. जिस से आप बात कर रही हैं उसे भी सम?ा दें, इस से कुछ दिन खराब लगेगा पर जल्दी आप अपनीअपनी पटरी पर लौट आएंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

बड़ी लकीर छोटी लकीर: सुमित को अपनी पत्नी से क्यों समस्या होने लगी?

अपनी बड़ी साली के पति से बराबरी करने के चक्कर में सुमित कर्ज में तो फंसा ही, पत्नी शिखा से भी संबंध खराब होने लगे. इसी बीच उस की मुलाकात भावना से हुई और फिर…

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