रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः राजा बसवाना फिल्मस

लेखक व निर्देशकः संदीप बसवाना

कलाकारः यश टोंक, अश्लेषा सावंत, मोनिका शर्मा

अवधि: दो घंटे 32 मिनट

संदीप बसवाना ने 2002 में सीरियल ‘कुछ झुकी पलके’ से अभिनय जगत में कदम रखा था. उसके बाद वह ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’,‘हिटलर दीदी’,‘परवरिश सीजन 2’, ‘रिहाई’, ‘कोई दिल में है’, ‘काव्यांजली’,‘कर्म अपना अपना’ व ‘विश या अमृत’ सहित कई सीरियलों में अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर लोगों को अपना बना लिया. अब वह पहली बार बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘हरियाणा’’ लेकर आए हैं, जो कि 5 अगस्त से सिनेमाघरों में है. मूलतः हरियाणा निवासी संदीप बसवाना ने अपनी इस फिल्म में हरियाणा को लेकर लोगों के मन में जो भ्रांतियां हैं, उन्हें दूर करने के साथ ही भाषा सहित कुछ कुप्रथाओं पर चोट भी की है. फिल्म हरियाण के आम जीवन व आम लोगों के भोलेपन वाले आचरण से परिचित कराती है, मगर जातिगत मुद्दे को वह ठीक से पेश नहीं कर पाए.

कहानीः

फिल्म की कहानी हरियाणा के एक गंव की है.जहां बड़ा भाई महेंद्र (यश टोंक ) अपने दो छोटे भाइयों राजवीर (रॉबी मारीह ) और जुगनू ( आकर्षण सिंह ) के साथ रहते हैं. अभी तक तीनों की शादी नही हुई है. संपन्न परिवार है. महेंद्र अपने दोनो भाईयों की खुशी के लिए कुछ भी कर सकता है और उनकी खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

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महेंद्र के पास प्यार के लिए समय नहीं है. क्योंकि वह अपने व्यवसाय व अपने छोटे भाइयों की अच्छी देखभाल के प्रति ही समर्पित रहते है. अब वह तीस वर्ष से अधिक उम्र के हो चुके हैं. राजवीर अग्रीकल्चर युनिवर्सिटी में होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है. राजवीर मन ही मन वसुधा (मोनिका शर्मा) से प्यार करता है. मगर वसुधा एक गैर जाट युवक विजय से प्यार करती है. इधर जुगनू को फिल्म अभिनेत्री आलिया भट्ट से प्यार हो गया है. इसी बीच महेंद्र एक दूसरे गांव की लड़की विमला (अश्लेषा सावंत ) को पसंद कर लेता है और उनकी मंगनी हो जाती है. महेंद्र की होने वाली दुल्हन बिमला (अश्लेषा सावंत) उसे एहसास कराती है कि उसे प्यार का मतलब भी नहीं पता है. तभी विधानसभा के चुनाव नजदीक आ जाते हैं.गांव के लोग इस बार वर्तमान विधायक चेतराम के गलत व्यवहार से तंग आकर महेंद्र से चुनाव में खड़े होने के लिए कहते हैं.

महेंद्र चुनाव लड़ने के लिए तौर हो जाते है.वहां राजवीर के कालेज में कुछ अलग ही घटनाएं घट रही हैं और एक दिन महेंद्र अपने भाई राजवीर के कहने पर पुलिस की मदद से वसुधा व विजय की शादी करवा देते हैं. तो जुगनू को आलिया भट्ट से मिलने मुंबई भेजता है, जहां कई नाटकीय घटनाक्रम घटित होते हैं.जाट लड़की की शादी गैर जाट लड़के से करवाने के चलते कई दूसरे गांव के लोगों के साथ ही विमला के पिता धर्मेंद्र से नाराज हो जाते हैं.विमला की मंगनी रद्द कर देेत हैं.अब महेंद्र को अहसास हो जाता है कि वह चुनाव हार जाएंगे.मगर विमला चुपचाप हर गांव जाकर औरतों को समझाती है कि महेंद्र से अच्छा इंसान कोई नहीं हो सकता.वह अपने पुकसान की परवाह किए बगैर हर लड़की और औरत के हक के लिए लड़ने कको तैयार रहता है. परिणामतः चेतराम की जमानत जब्त हो जाती है.और महेंद्र विधायक बना जाते हैं. फिर महेंद्र व विमला की शादी हो जाती है.

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लेखन व निर्देशनः

पूरे देश में हरियाणा राज्य कर नाम आते ही उद्दंड व खेलों में रूचि रखने वाले लोगों की छवि ही लोगों के दिमाग में आती है. लेखक व निर्देशक संदीप बसवाना ने पूरी इमानदारी के साथ इस बात को चित्रित करने में सफल रहे हैं कि हरियाणा का आम इंसान उद्दंड नही है, बल्कि वह भोला है और अपने मन की बात को व्यक्त करने का उसका अपना तरीका है. इसके अलावा हरियाणवी भाषा का लहजा ऐसा है कि लोगों को उसमें उद्दंडता नजर आती है. जबकि ऐसा नहीं है. हरियाणा के लोग काफी सभ्य व इमानदार हैं. हरियाणा के ही गांव में फिल्मकार संदीप ने हरियाणा की खूबसूरती, मकानों की बनावट, लोगों के रहन सहन आदि को भी पेश किया है. गांव के लोगों की विचित्रताओं को अच्छी तरह से चित्रित किया गया है. कुछ दृश्य जरुर अच्छे बन पड़े हैं.

निर्देशक ने हरियाणा राज्य की हरियाणा पेश करने के लिए फिल्म की शुरूआत एक धुंधली नहर और हरी-भरी हरियाली के मनोरम दृश्यों,पानी को लेकर विवाद और फिर रुपये के लिए निकलती बारात में जोर-जोर से नाचते व शराब का सेवन करते हुए लोगों को दिखाकर किया है. फिर भी पटकथा काफी सुलझी हुई है.

लगभग ढाई घंटे की अवधि वाली फिल्म एक मोड़ पर जाकर एकदम नीरस हो गयी है.

निर्देशक ने हरियाणा से पूरी तरह से लोगों को वाकिफ कराने के चक्कर में राजनीति को भी जोड़ा है. मगर राजनीति का हिस्सा जिस तरह से पेश किया गया है, वह बहुत नीरस और एक खूबसूरत कहानी में पैबंद सा नजर आता है.

शायद लेखक व निर्देशक किसी डर के चलते अथवा हरियाणा राज्य की राजनीति से पूरी तरह वाकिफ न होने के कारण इसे सही ढंग से चित्रित नहीं कर पाए. भाइयों की प्रेम कहानियां कितनी अलग हैं,इसके आधार को दिलचस्प तरीके से पेश करने में कामयाब रहे हैं.

हर हिंदी भाषा को शहरों में अंग्रेजी भाषा को लेकर जलील होना पड़ता है.हिंदी भाषा स्वयं को हीन ग्रंथि का शिकार महसूस करता है. इस मुद्दे को लेखक व निर्देशक ने फिल्म में उठाते हुए एक अच्छा संदेश देने का प्रशंसा जरुर किया है, मगर सुलझा पटकथा व सही संदर्भ न चुनने की वजह से सब कुछ प्रभावहीन हो गया है. लेखक व निर्देशक ने भाषा के इस मुद्दे को पांच सितारा होटल संस्कृति,पब संस्कृति व अति उच्चवर्ग के साथ जोड़कर दिखाया है, जिससे आम इंसान रिलेट नही कर पाता. यह लेखक व निर्देशक की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी रही.इसी तरह लेखक व निर्देशक की दूसरी कमजोर कड़ी जातिगत मुद्दे को अति सतही स्तर पर उठाना रहा.फिल्मकार ने दिखाया है कि जब नायक एक जाट लड़की का विवाह गैर जाट लड़के से पुलिस की मदद से करवा देता है, तो चुनाव में लोग उसके खिलाफ हो जाने की बात कहते हैं. जबकि यह मसला इतना हलाक नहीं है. हरियाणा के संदर्भ में जहां जाट पंचायतें एक ही गोत्र मे विवाह का विरोध कर रही हो, वहां जातिगत मसलों के चलते आम इंसानों को कई तरह की मुसीबतें -हजयेलनी पड़ती हैं,उसका सही चित्रण का अभाव है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो धर्मेंद्र के किरदार में यश टोंक अपने अभिनय के बल पर पूरी फिल्म अकेले अपने कंधे पर लेकर जाते हैं. वैसे मूलतः हरियाणा वासी होना भी यश टोंक के लिए फायदेमंद रहा. यूं तो यष टोक भी पिछले बीस वर्ष से बौलीवुड में सक्रिय हैं. एक शर्मीली और सरल लेकिन बुद्धिमान और व्यक्तिवादी लड़की विमला के किरदार में सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ और ‘अनुपमा’ फेम अदाकारा अश्लेषा  सावंत ने शानदार अभिनय किया है. मूलतः मराठी भाषा अश्लेषा सावंत ने हरिणावी भाषा के लहजे को सुंदरता से पकड़ा है.बिना प्यार के सच को सम-हजये अति कठोर कदम उठाने वाले प्रखर युवक राजवीर के किरदार में रौबी मॉरीह पूरी तरह से सफल नहीं रहे. फिल्म में जुगनू के किरदार में कई परते व कई मोड़ हैं, पर जुगनू के किरदार में आक-ुनवजर्याण सिंह का अभिनय साधारण ही रहा. जबकि उन्हें अपनी अभिनय प्रतिभा को उजागर करने के लिए कई मौके थे. वसुधा के किरदार में मोनिका शर्मा संदुर जरुर लगी हैं, मगर उन्हें अभी अभिनय के लिए खुद को काफी तराशने की जरुरत है. उनके चेहरे पर भाव तो आते ही नहीं है.

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