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बेहद जरूरी है पोषक नाश्ता

प्रोटीन हमारे शरीर के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है. इस के लिए अंकुरित दालें  विविध प्रकार के पोषक अनाज लिए जा सकते है. ऐंटीऔक्सीडैंट पदार्थों का प्रचुर मात्रा में सेवन करें. इस के लिए हरी चाय जरूर नाश्ते में शामिल करें. प्रतिदिन मौसमी फलों को अपने ब्रेकफास्ट में लेना न भूलें. जूस और शेक को नाश्ते की लिस्ट में जरूर रखें. डब्बाबंद जूस की जगह ताजे जूस का प्रयोग करें.

नाश्ते में कार्बोहाइड्रेट्स और प्रोटीन, फैट और मिनरल्स का होना जरूरी है.

सुबहसुबह की भागादौड़ी में अधिकतर महिलाएं अपने नाश्ते को ले कर लापरवाही करती हैं. या तो वे टालमटोल करती रहती हैं या नाश्ता करना भूल ही जाती हैं. ऐसा करना महिलाओं की सेहत के लिए बेहद हानिकारक है. सुबह का नाश्ता स्वस्थ शरीर के लिए बेहद माने रखता है. यह नाश्ता ही होता है, जो पूरे दिन हमारी पाचन क्रिया को सक्रिय बनाए रखता है. अग्रहरि मैडिकल सैंटर के संचालक डा. उमेंद्र अग्रहरि का कहना है, ‘‘यह धारणा बिलकुल गलत है कि सुबह नाश्ता न करने से मोटापा कम होता है. मोटापे को कम करने के लिए सही समय पर संतुलित आहार लेना चाहिए.’’

सुबह के नाश्ते की महत्ता बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘हमारी चयापचय की क्रिया सुबह के वक्त सब से बेहतर होती है. जिस तरह सुबहसुबह कोई अच्छी बात सुनने से हमारा पूरा दिन अच्छा बीतता है, हमारे भीतर सकारात्मकता का संचार होता है, उसी तरह सुबह स्वस्थ नाश्ता करने से पूरे दिन हमारे शरीर में ताजगी बनी रहती है.’’

नाश्ता न करने पर

  1. डाक्टरों का मानना है कि सुबह नाश्ता न करने से चेहरे पर उम्र बढ़ने का प्रभाव जल्दी ही दिखाई पड़ने लगता है.
  2. हमारी पाचनक्रिया असंतुलित हो जाती है, जिस से तरहतरह की बीमारियां होने लगती हैं.
  3. गौरतलब है कि स्वस्थ नाश्ता न करने से हमें आलस बहुत जल्द आने लगता है. साथ ही साथ हम भारीपन सा महसूस करते हैं.

कौन सी चीजें जरूरी

सुबह का नाश्ता चूंकि हमारी पाचन क्रिया की शुरुआत करता है, इसलिए उस में कुछ मूल तत्त्वों का समावेश करना बेहद जरूरी है.

महिलाओं को प्राय: ऐसा लगता है कि वसायुक्त पदार्थ खाने से हमारी चरबी बढ़ जाएगी. लेकिन नाश्ते में सही मात्रा में वासयुक्त पदार्थों का होना भी बेहद जरूरी है. इस के लिए दुग्ध पदार्थों, देशी घी, मक्खन इत्यादि उचित अनुपात में खाएं.

एक कहावत है कि खाली पेट भजन न होवे…

जरा सोचिए, सुबहसुबह खाली पेट जब अपने आराध्य को याद करने में परेशानी होती है, तो भूखे पेट हमारे काम सुचारु रूप से कैसे होंगे.

यह कैसी आजादी

औरतों के लिए आजादी का जश्न मनाने का कोई अवसर है, ऐसा कहीं दिखता नहीं है. जब आजादी मिली और संविधान लिखा गया तो वादा किया गया कि सभी पुरुषों के बराबर औरतों को अधिकार मिलेंगे और उन से किसी तरह का न तो भेदभाव किया जाएगा, न ही उन का शोषण किया जाएगा. पर आज 75 साल बीत जाने के बाद भी देश व समाज की हालत क्या है, इस की पोल औरतों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को जानने के लिए किसी आयोग को बनाने की जरूरत नहीं है, एक दिन के 2-4 अखबारों में प्रकाशित समाचारों को थोड़ा गंभीरता से पढऩा ही काफी है.

अगस्त के पहले दिन के समाचारों में भी पहले दिनों की तरह नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति के स्थान पर राष्ट्रपत्नी बोल जाने के आरोप में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के बंगलाभाषी अधीर रंजन चौधरी के पीछे पड़ी रही. चाहे पार्टी का उद्देश्य इस मामले में राजनीति को भुनाना हो पर यह बात बारबार जताई गई कि नई राष्ट्रपति जैसे पद का नाम तो पुल्लिंग ही होगा, स्त्रीलिंग नहीं. जब हिंदी में पुरुष के लिए पति व स्त्री के लिए पत्नी शब्द का इस्तेमाल होता है तो राष्ट्रपति शब्द पुल्लिंग ही क्यों. इस शब्द की जगह क्या हम राष्ट्राध्यक्ष जैसा शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकते थे.

इस पर विवाद खड़ा कर भाजपा का थिंकटैंक बारबार यह जताता रहा कि देखो, हम ने एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद पर बैठा कर कितना बड़ा एहसान किया है. अपमान असल में अधीर रंजन चौधरी ने नहीं किया, सरकार के लोगों ने किया जिन्होंने बारबार दोहराया कि एक महिला पुरुषों के लिए नियत पद पर बैठा दी गई है. राष्ट्रपति पद पर बैठने के बाद कोई किसी पार्टी का नहीं रहता पर भारतीय जनता पार्टी इसे राजनीतिक मुद्दा बना कर अपना किया ‘एहसान’ जताती रही.

एक तरफ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का मामला छाया रहा तो दूसरी तरफ 2 दमदार, अपने में सक्षम, महिला नेताओं के पर कतरने की कोशिश जारी रही. ममता बनर्जी और सोनिया गांधी को घेरे में डालने के लिए कानूनी कार्रवाइयां जारी रहीं. सरकार इन 2 महिलाओं से ज्यादा चिंतित नजर आ रही है बजाय किसी अन्य विपक्षी पुरुष नेताओं के. एक की ईडी के दफ्तर में पेशी चल रही थी, दूसरी को धमकी दी जा रही थी कि जो महाराष्ट्र में हुआ है वह पश्चिम बंगाल में दोहराया जा सकता है. ममता बनर्जी के एक मंत्री की सहयोगी को भारी नकदी मिलने के आरोप में जेल में ठूंस दिया गया है.

राजस्थान का एक छोटा सा मामला भी छपा उस दिन. झलावाड़ के एक गांव में एक विधवा के साथ प्रेम करने के आरोप में एक युवक को नंगा कर के गांव में घुमाया गया. उद्देश्य नैतिकता बनाए रखना नहीं, विधवा के प्रेम करने के अधिकार को छीनना था. इस घटना के बाद युवक का चाहे जो हो, वह विधवा समाज में जी नहीं पाएगी. उस का हर मामले में बहिष्कार किया जाएगा. विधवा आज 75 साल की आजादी के बाद भी पापिन मानी जाती है और उसे किसी दुनियावी सुख पाने का अधिकार हमारा समाज, कानून नहीं देता.

इसी दिन दिल्लीमेरठ राजमार्ग पर पैरामिलिट्री फोर्स में भरती के लिए आंदोलन कर रही 35 लड़कियों को 100 दूसरे लडक़ों के साथ धूप में घंटों बैठाए रखा गया. 2018 में लिखित, फिजिकल व मैडिकल टैस्ट पास कर चुके हजारों कैंडीडेटों में से 160 नागपुर से दिल्ली धरने के लिए चल रहे हैं और इन में 35 लड़कियां भी हैं. उन्हें रास्ते में खाना तक न मिले, ऐसे आदेश उत्तर प्रदेश पुलिस ने दे दिए. नौकरी के लिए लड़कियां किस तरह छटपटा रही हैं, इस का छोटा सा उदाहरण है यह.

औरतों की सुरक्षा की चिंता किए बिना दिल्ली में रात के 2 बजे तक बार खोलने की लगातार वकालत की जा रही है जहां पति या बेटे धुत हो सकें और घरों में पत्नियों व मांएं चिंता करती रह जाएं. हिंदू विवाह कानून में शराब पीना पति से तलाक लेने के कारणों में से नहीं है. मांएं शराबी बेटे को अपनी संपत्ति या घर से, सामाजिक व कानूनी पहलुओं के कारण, घरों से नहीं निकाल सकतीं. पुरुषों की स्वतंत्रता के नाम पर अपरोक्ष रूप से औरतों की आजादी छीनी जा रही है.

संविधान मात्र एक दस्तावेज नहीं है, एक कौंट्रेक्ट मात्र नहीं है. 75 साल पहले किसी आजादी का यह अर्थ था कि हर तरह के जुल्म से आजादी मिलेगी. लगभग 4 पीढिय़ां बीत गई हैं पर समाज, कानून, सरकार, शासक वैसे के वैसे ही हैं. आजादी के 75 साल औरतों के लिए तो सिर्फ फिल्मी परदों पर दिखाई तसवीरों सरीखे हैं.

पतझड़ में वसंत: सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

मेरे चाचा अश्लील हरकतें करते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 15 वर्ष है. मेरे एक चाचा मेरे हमउम्र हैं. मैं जब भी उस के घर जाती हूं, तो हम लोग एक ही जगह सोते हैं. रात को वह मेरे नजदीक आ जाता है और अश्लील हरकतें करता है. मैं यह बात पसंद नहीं करती, पर उसे मना भी नहीं कर पाती. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप जानती हैं कि आप का चाचा आप के साथ जो व्यवहार रात को चोरीछिपे करता है, वह सही नहीं है, बावजूद इस के आप इस का विरोध नहीं कर रहीं, जिस का मतलब है कि आप को यह सब अच्छा लगता है (अर्थात आप की इस में सहमति है). यदि यह सिलसिला बंद नहीं हुआ तो आप किसी समस्या में पड़ सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

Satyakatha: मोहब्बत पर भारी पड़े अरमान

विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

शाम सुरमई हो चली थी. थकाथका सा निढाल सूरज धीरेधीरे पश्चिम दिशा में डूब रहा था. उस की सिंदूरी किरणें वातावरण में फैली हुई थीं. तहसील बिलाईगढ़ के एक गांव के बाहर अमराई में 2 युवा जोड़े प्रेमालाप में मशगूल थे. आम के दरख्तों की टहनियों में बौर निकल आए थे. टहनियों के बीच कंचे के बराबर अमियां हवा के झोंके से झूम उठा करती थीं. कोयलों की कूक और अमियों की सुगंध से नंदिनी खगेश्वर के प्यार में बढ़ोत्तरी ही हुई थी.

नंदिनी खगेश्वर की बांहों से खुद को आजाद करती हुई हांफ उठी थी. खुद को संभालते हुए और अपनी अनियंत्रित सांसों को काबू करती हुई फुसफुसा कर खगेश्वर प्रसाद से बोली, ‘‘तोषू (खगेश्वर को वह प्यार से तोषू कहती थी), बहुत देर हो गई है, अब मुझे जाने दो. घर वालों को कहीं शक न हो जाए. तुम्हें पता नहीं कि मैं दिशामैदान के बहाने बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूं.

‘‘जब भी दिशामैदान की बात आती है, घर वाले कहा करते हैं कि घर में शौचालय स्नानागार की पूरी सुविधा है, इस के बावजूद भी तुम नहाने तालाब पर और दिशामैदान के लिए बाहर जाती हो. ऐसा क्यों करती हो. बस, यही कहती हूं कि घर में रहेरहे हाथपैरों की वर्जिश नहीं हो पाती, इसलिए इसी बहाने बाहर हो आया करती हूं. अब तुम बताओ कि हमेशा तो मैं ऐसा कर नहीं पाऊंगी.’’

खगेश्वर उर्फ तोषू ने फिर से नंदिनी को अपनी बांहों में लेना चाहा, लेकिन नंदिनी खुद को बचाती हुई बोली, ‘‘किसी रोज हम पकड़े जाएंगे, मुझे हमेशा अनजाना सा डर लगा रहता है. आखिर हम कब तक ऐसे ही लुकछिप कर मिला करेंगे?’’

‘‘कुछ महीनों की बात है, मैं ने कुछ रुपए इकट्ठे कर रखे हैं. कुछ रुपए और हो जाएं तो यह लुकछिप कर मिलने वाली बात ही नहीं रहेगी. हम यहां से निकल कर कहीं भी जाएंगे तो सब से पहले सिर ढकने को छत चाहिए. 2-4 महीने के खर्च के लिए रुपए भी चाहिए. इस के लिए मैं कोशिश कर रहा हूं. रायपुर के जयहिंद चौक शीतला मंदिर के पीछे लोधी पारा में मैं ने सभी सुविधाओं वाला एक घर देख रखा है.’’ तोषू गंभीर होता हुआ बोला.

नंदिनी जरा नागवारी के अंदाज में बोली, ‘‘महीनों से सुन रही हूं घर रुपए, घर रुपए. तुम मुझे यहां से ले चलो, दोनों इकट्ठे मिल कर कमाएंगे, 12वीं तक मैं भी तो पढ़ी हूं. 12-15 हजार रुपए मैं खुद कमा सकती हूं. 10-12 हजार तुम कमा लोगे. 20-25 हजार में दालरोटी तो चल ही जाएगी.’’

तोषू बोला, ‘‘मेरा वादा है, अगले महीने की 25 तारीख को हम दोनों यहां से निकल चलेंगे. लेकिन मेरी शर्त है, मैं अपने वादे पर तभी अमल करूंगा जब तुम मुझे…’’ कहते हुए तोषू ने निश्चिंत खड़ी नंदिनी के मुखड़े को हथेलियों के बीच लेते हुए भरेभरे होंठों का चुंबन लिया, गहरा और चटख चुंबन.

‘‘अब मैं तुम से 25 तारीख को ही मिलूंगी,’’ नंदिनी मीठी झिड़की लगाती हुई बोली.

‘‘25 तारीख आने में अभी एक महीना बाकी है मेरी जान, तब तक मैं कैसे गुजारूंगा?’’ तोषू तुरंत मनुहार करते हुए बोला.

‘‘ये तुम जानो, मैं चली. याद रखना, 25 यानी 25.’’

फिर नंदिनी वहां रुकी नहीं. तोषू पीछे से पुकारता रह गया, ‘‘सुनो तो…सुनो नंदिनी.’’

नंदिनी को रुकना नहीं था, वह वहां रुकी नहीं. इस के बाद नंदिनी ने किसी भी बहाने अब घर से निकलना बंद कर दिया.

नंदिनी कोसरिया और खगेश्वर कोसरिया उर्फ तोषू छत्तीसगढ़ के जिला बलौदाबाजार के कस्बा बिलाईगढ़ के रहने वाले थे. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. लेकिन मुलाकात न हो पाने की वजह से तोषू अधजले परवाने की तरह छटपटाने लगा.

नंदिनी भी अंदर ही अंदर छटपटाती रही लेकिन तोषू से मिलना उचित नहीं समझा. ऐसा उस ने इसलिए किया कि यदि वह तोषू से मिल लेती तो तोषू फिर अपने वादे पर कायम नहीं रह पाता. प्यार में तड़प जरूरी थी. भले ही वह तोषू से मिलने के लिए मन ही मन व्याकुल हुए जा रही थी.

नंदिनी से मुलाकात करने के लिए उस ने बहुतेरे प्रयास किए लेकिन असफल ही रहा. तोषू अपने घर के बरामदे में उदास बैठा हुआ था कि एक 10-12 साल की एक लड़की दौड़ती हुई आई और तोषू के हाथ में एक कागज थमा गई. उसी पैर लौटने हुए वह बोली, ‘‘नंदिनी दीदी ने तुम्हें देने को कहा है.’’

फिर वह अबोध लड़की वहां ठहरी नहीं, कुलांचे भरती हुई वहां से निकल गई. तोषू वापस लौट कर बरामदे में बैठा और तह किए हुए उस कागज की परतें खोलीं. उस खत में कुछ ही लाइनें लिखी थीं.

वह इस राइटिंग को बखूबी पहचानता था. वह उस की प्रेमिका नंदिनी की थी. लिखा था, ‘तोषू जान, जुदाई के ये पल आत्मा को लहूलुहान कर रहे हैं. मुझे अहसास है कि इस पीड़ा से तुम भी घायल जरूर हो गए होगे. 23 तारीख को वहीं मुलाकात होगी. उम्मीद है भविष्य में साथ रह सकें, तैयारी तुम्हारी ओर से पूरी हो गई होगी. मैं ने अभी से पैकिंग करनी शुरू कर दी है. बस, मुझे तुम्हारे पैरों के निशां पर कदम बढ़ाना है. तुम्हारी नंदिनी.’

तोषू की आंखों में आंसू झिलमिला उठे. खत में उसे नंदिनी का चेहरा उभरता दिख रहा था. उस ने कई बार खत को उस रात पढ़ा. नंदिनी के शब्दों पर उस ने दीवानों की तरह चुंबन लगाए. 2 दिन बचे थे. नंदिनी के दिए गए समय को आने में 2 दिन उस ने जैसे अंगारों पर लोट कर समय गुजारा.

इस बीच उसे अपनी शेव करने का खयाल भी नहीं आया. पहले से मुकर्रर मिलने की जगह पर तोषू पहुंच कर प्रेमिका का इंतजार करने लगा. उस ओर टकटकी लगाए हुए निहार रहा था, जिस रास्ते से नंदिनी को वहां पहुंचना था.

शाम को धुंधलका काबिज हो चुका था. कोहरे ने बिलाईगढ़ कस्बे को अपने में समेटने का भरसक प्रयास किया था. शाम होने के पहले ही शाम का आभास वातावरण में व्याप्त था.

उस ने देखा, कोहरे की धुंध को चीरती हुई कोई चली आ रही है. कदकाठी और चलने के अंदाज ने उसे इस बात का अहसास करा दिया कि आने वाली उस की जाने जिगर, जाने तमन्ना नंदिनी है.

तोषू ने कोहरे में ही हाथ हिला कर अपनी मौजूदगी का भान नंदिनी को करवाने का प्रयास किया. नंदिनी दूर से ही तोषू को पहचान चुकी थी. पहचानती भी क्यों नहीं, 7 महीने से दोनों प्रेम के झूले में जो झूल रहे थे.

नंदिनी तोषू के करीब पहुंची. दौड़ कर नंदिनी अपने तोषू के कंधे से जा लगी. सिसक जो पड़ी नंदिनी. अनायास तोषू के हाथ गर्दिश करने लगे.

सुबकती हुई नंदिनी बोली, ‘‘कैसे मैं ने इतने दिन गुजारे तोषू, अब मैं तुम से एक पल को अलग नहीं रहूंगी. तुम्हारी कसम तोषू, जुदाई के पल कितने गहन और भयावह हुआ करते हैं, सोचने से ही कलेजा मुंह को आ जाता है.’’

अपने से दूर करता हुआ भर्राई आवाज में तोषू बोला, ‘‘मेरी भी स्थिति तुम से अलग नहीं रही है. जुदाई के गम को किसी तरह बरदाश्त करता रहा हूं.’’

दोनों वहीं एक पत्थर की आड़ ले कर बैठ गए. उन दोनों में भविष्य को ले कर बातचीत होने लगी. बातचीत में यह बात उन लोगों के बीच मुख्य रही कि कब, कहां और कितने बजे मिलना है.

उस दिन लुकाछिपी का उन का यह मिलन आखिरी था. रात के चौथे पहर में नंदिनी घर छोड़ कर निकल गई. अलसुबह आवागमन का साधन तो था नहीं, पहले से ही खगेश्वर ने अपने दोस्त से एक बाइक की व्यवस्था कर ली थी.

बाइक पर सवार हो कर वह बिलाईगढ़ से बलौदा बाजार पहुंचा. बाइक को वह कहां खड़ी करेगा, कहां रखेगा, बाइक की चाबी किस को सौंपेगा, यह सब उस ने अपने दोस्त को पहले से ही बता दिया था.

बलौदा बाजार से सुबहसुबह बस पकड़ कर वे दोनों रायपुर पहुंचे. यहां पर खगेश्वर उर्फ तोषू ने पहले से ही लोधीपारा शीतला मंदिर के पास किराए का कमरा ले रखा था. लिहाजा खगेश्वर को नंदिनी को यहांवहां ले कर भटकना नहीं पड़ा.

मकान मालिक अरुण जहोल को उस ने नंदिनी का परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराया. पहचान के लिए उस ने मकान मालिक को आधार कार्ड दिखाया. संतुष्ट होने के बाद अरुण जहोल ने किराए पर उन दोनों को कमरे की चाबी दे दी.

हफ्ते 15 दिन तक दोनों भयभीत रहे. दोनों के घर वालों को यह समझते देर नहीं लगी कि दोनों गांव छोड़ कर चल गए हैं. थोड़ा होहल्ला हुआ गांव में.

चूंकि दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए यह मामला विशेष तूल नहीं पकड़ा. दोनों के घर वालों को यह समझने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि नंदिनी खगेश्वर के साथ भाग गई है.

नंदिनी के पिता ने बेटी के गायब होने की थाने में रिपोर्ट तक नहीं लिखाई. जो होना था, वह हो चुका था. सांप निकल चुका था. लकीर पीटने से हालात सुधर नहीं सकते थे. लिहाजा दोनों पक्षों ने खामोशी से समझौता कर लिया था.

इधर दूसरी ओर खगेश्वर कब तक घर में बैठा रहता. उस ने एक कपड़े की दुकान में नौकरी कर ली. खगेश्वर जब काम पर चला जाता, तब नंदिनी घर में अकेली बैठी बोर होती.

खगेश्वर से उस ने एक बार कहा, ‘‘तुम्हारे काम पर चले जाने के बाद घर में मैं अकेली बोर हो जाया करती हूं. अगर तुम कहो तो मैं भी कहीं कुछ काम कर लूं. इस से आमदनी तो बढ़ेगी, साथ ही मेरी बोरियत भी दूर हो जाएगी.’’

पहले तो खगेश्वर ने उसे नौकरी के लिए मना किया लेकिन नंदिनी के काफी मनुहार और बोरियत का हवाला देने पर किसी तरह से वह राजी हो गया.

इस दिशा में नंदिनी को बहुत ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. उसे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल गई. आय का जरिया भी बढ़ गया और नंदिनी की बोरियत भी दूर हो गई.

सब कुछ अच्छाअच्छा गुजरने लगा. दोनों को साथ रहते हुए एक साल गुजरने को था. दोनों के घर वाले भी कभीकभी उन से मिलने लोधीपारा आनेजाने लगे थे. उन के घर वालों को यह देख कर संतोष मिलता था कि चलो दोनों कमाखा रहे हैं, सुखी हैं.

दोनों के घरवालों को किसी तरह का किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं रह गया था. जब सब कुछ अच्छा गुजरने लगा तो एक नया ही फितूर नंदिनी पर काबिज होता चला गया.

जब भी वह टीवी पर शादी से संबंधित रस्मोरिवाज होते हुए देखती तो उसे खुद से मलाल होने लगता था. अकसर वह खगेश्वर उर्फ तोषू से इस बात का जिक्र कर बैठती कि काश! हमारी भी ऐसी ही धूमधड़ाके से शादी हुई होती.

तुम बारात ले कर आते, मंडप सजा होता, सहेलियों के बीच मैं छिपी होती. एक रस्म तुम्हें मालूम है तोषू, जिस पत्तल पर वधू खाना खाती है, उसी पत्तल को लपेट कर छिप कर उस से वर को मारती भी है.

‘‘जब होना था, तब तो हुआ नहीं और अब लाख चाहने के बावजूद यह संभव नहीं है. ऐसी बातें सोच कर क्यों अपना दिल दुखाती हो और मेरा मूड भी खराब करती हो.’’ खगेश्वर ने समझाया.

दोनों के बीच और कई तरह के मुद्दों को ले कर अकसर तकरार होने लगती थी. मोहल्ले के लोग समझाबुझा कर दोनों को शांत करा दिया करते थे. अकसर उन दोनों में इन्हीं बातों को ले कर जबतब कलह हो जाती थी.

एक रोज खगेश्वर अपने दोस्त की शादी में गया हुआ था. अपने मोबाइल पर उस ने शादी के रस्मोरिवाजों को शूट किया. शूट किए हुए मोबाइल की वीडियो उस ने नंदिनी को दिखाईं तो उस के सोए अरमान फिर जाग उठे. उसी मुद्दे को ले कर वह तकरार करने लगी.

उस ने उलाहना देते हुए खगेश्वर से कहा, ‘‘लोग अपनी माशूका के लिए चांदसितारे तोड़ लाने का माद्दा रखते हैं और तुम हो कि मेरी एक इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते.

‘‘सुनो, मैं आसमां को बांहों में समेटने को नहीं कह रही हूं. सिर्फ इतना चाहती हूं कि हम दोनों एक बार रस्मोरिवाजों के मुताबिक शादी कर लेते. अच्छी सी पार्टी देते. ढेर सारे मेहमान आते. कितना अच्छा लगता.’’

तोषू दिन भर का थकामांदा आया था. इस वक्त दोनों खाना खा कर बैड पर लेटे हुए बातें कर रहे थे, ‘‘यार, तुम समझती नहीं हो. अब न तुम माशूका रह गई और न मैं आशिक. हम दोनों का रिश्ता पतिपत्नी का हो चुका है.’’

‘‘वक्त गुजर गया, इन सब बातों के लिए. कैसी बातें कर रहे हो. कौन सा हम लोग बुड्ढे हो गए हैं या हमारे 4-6 बच्चे हो गए हैं. सच्ची कह रही हूं तोषू, मेरी यह इच्छा पूरी कर दो.’’ वह मनुहार से बोली, ‘‘2 ही साल तो हुए हैं हमें पतिपत्नी बने हुए.’’

‘‘यार, मेरा मूड खराब मत किया करो.’’

‘‘मैं कहां खराब कर रही हूं. पैसों को ले कर तुम चिंता मत करो, मेरे पास पैसे हैं. बस तुम हां कह दो.’’

माहौल तल्ख होता चला गया. तूतूमैंमैं पर दोनों उतर आए. दोनों के बीच तकरार इतनी बढ़ गई कि हालात बेकाबू होते चले गए.

बात 2 मार्च, 2022 की है. जिले के थाना पंडरी के थानाप्रभारी उमाशंकर राठौर के पास एक युवक बदहवास सा तेजी के साथ थाने में आया. ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उस युवक को रोकना चाहा लेकिन वह रुका नहीं.

युवक सीधे थानाप्रभारी उमाशंकर राठौर के सामने जा कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम खगेश्वर कोसरिया है. मैं ने अपनी पत्नी नंदिनी को मार डाला. मैं बीवी का हत्यारा हूं. उस की लाश कमरे में पड़ी है.’’

उस की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन्होंने उस से पूरी बात विस्तार से बताने को कहा. इस के बाद खगेश्वर उर्फ तोषू सब कुछ सिलसिलेवार बताता चला गया.

पूरी बात सुनने के बाद राठौर ने यह बात एसपी प्रशांत अग्रवाल एएसपी तारकेश्वर पटेल को भी बता दी. उन के निर्देश पर खगेश्वर को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद पुलिस खगेश्वर को साथ ले कर उस के कमरे पर पहुंची तो वहां नंदिनी की लाश पड़ी थी. खगेश्वर ने बताया कि उस ने नंदिनी का गला घोटा था. सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करने को ले कर उस ने उस का जीना हराम कर दिया था, इसलिए गुस्से में उसे मार डाला.

पुलिस ने मौके की काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और खगेश्वर उर्फ तोषू से पूछताछ के बाद उसे हत्या के  आरोप में 2 मार्च, 2022 को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अपने हुए पराए: किसने प्रोफैसर राजीव को हारने से बचाया?

जिंदगी में हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव आज सुबह बहुत ही थके हुए लग रहे थे. मैं उन को लौन में आरामकुरसी पर निढाल बैठे देख सन्न रह गया. उन के बंगले में सन्नाटा था. कहां संगीत की स्वरलहरियां थिरकती रहती थीं, आज ख़ामोशी पसरी थी. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘आओ, बैठो.’’

उन की दर्दमिश्रित आवाज से मुझे आभास हुआ कि कुछ घटित हुआ है. मैं पास पड़ी बैंच पर बैठ गया.

‘‘कैसे हो नरेंद्र?’’ आसमान की ओर निहारते उन्होंने पूछा.

‘‘ठीक हूं,” मैं ने दिया. मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था. मैं उन की पुत्री करुणा की तबीयत को ले कर परेशान था. 5 दिनों पूर्व वह अस्पताल में भरती हुई थी. फोन पर मेरी बात नहीं हो सकी. जब भी फोन लगाया स्विचऔफ मिला. चिंताओं ने पैने नाखून गड़ा दिए थे.

मुझे खामोश देख प्रोफैसर राजीव रुंधे स्वर से बोले, “दिल्ली से कब आए?”

‘‘कल रात आया.’’

‘‘इंटरव्यू कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. उन की आंखें अभी भी आसमान के किसी शून्य पर टिकी थीं. चेहरे पर किसी भयानक अनिष्ट की परछाइयां उतरी थीं जो किसी अनहोनी का संकेत दे रही थीं. मैं चिंता से भर उठा. करुणा को कुछ हो तो नहीं गया. लेकिन जब करुणा को चाय लाते देखा तो सारी चिंताएं उड़ गईं. वह पूरी तरह स्वस्थ्य दिख रही थी.

‘‘पापा चाय लीजिए,’’ करुणा ने चाय की ट्रे गोलमेज पर रखते हुए कहा.

मेरी नजरें अभी भी करुणा के चेहरे पर जमी थीं, लेकिन उस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख हैरान रह गया, लगा नाराज है. करुणा चाय दे कर मुड़ी ही थी कि पैर डगमगा गए. मैं ने तुरंत हाथों में संभाल लिया. वह संभलती हुई बोली, ‘‘थैंक्यू.’’ मैं तुरंत अलग हो गया. प्रोफैसर राजीव बोले, “जब चलते नहीं बनता तो हाईहील की सैंडिल क्यों पहनती हो?”

‘‘फैशन है पापा.”

‘‘हूं, सभी मौडर्न हुए जा रहे हैं.’’

मैं समझ गया, उन का इशारा राहुल की बहू अपर्णा पर था. अपर्णा अकसर जींस व टोप पहने ही दिखती है.

मेरे पिताजी और प्रोफैसर राजीव की दोस्ती जगजाहिर थी. एक साथ उन्होंने पढ़ाईलिखाई की, नौकरी की. पड़ोस में मकान बनाया. किसी भी समारोह में गए, साथ गए. यहां तक कि चुनाव भी साथ लड़ा.

मेरे पिताजी कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे, जल्दी ही उन की मृत्यु हो गई. मुझे हिदायत दे गए थे कि प्रोफैसर राजीव के घर को अपना घर समझना, पूरी इज्जत देना. तब से मेरा आनाजाना लगा रहता है. प्रोफैसर राजीव मुझे अकसर याद करते रहते हैं और मैं उन के बाहरी काम निबटाता रहता हूं. वे अपने लड़के राहुल से अधिक विश्वस्त मुझे मानते हैं.

प्रोफैसर राजीव का संपन्न परिवार है – पत्नी, एक लड़का, बहू और एक लड़की है. धर्म में उन की आस्था है. भजन, कीर्तन, भागवत जैसे कार्यक्रम वे कराते रहते हैं. करूणा जब एकाएक बीमार हुई और उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा तो सभी चिंतित हो गए. मुझे भी शौक लगा. उसे पीलिया हो गया था. 10 दिन वह आईसीयू में भरती रही. तीनचार दिन मैं देखता रहा.

इसी बीच, मेरा इंटरव्यूकौल आ गया. मुझे दिल्ली जाना पड़ा. आज जब दिल्ली से वापस लौटा तो करुणा की याद ही दिल में बसी थी – वह कैसी है, अस्पताल से आई कि नहीं… सोचता हुआ प्रोफैसर राजीव के घर पहुंचा. प्रोफैसर राजीव बाहर ही मिल गए. उन्हें उदास देख मन में तरहतरह की शंकाएं पल गईं.

प्रोफैसर राजीव की चिंता मुझे अभी भी हो रही थी कि वे कुछ छिपाए हुए हैं. वरना तो ऐसे गमगीन वे कभी नहीं दिखे. करुणा के जाने के बाद मैं ने उन की चिंता का कारण पूछा तो वे टालते हुए उठ गए और अंदर कमरे में चले गए. उन के हावभावों ने मुझे फिर घेर लिया. मैं तुरंत करुणा के कमरे में गया. करुणा सोफे पर बैठी डायरी के पन्ने पलट रही थी, बोली, ‘‘कुछ काम?’’

‘‘क्या बिना काम के नहीं आ सकता?’’

‘‘रोका किस ने, मैं होती कौन हूं?’’

‘‘अच्छा, समझा.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं दिल्ली चला गया था, इसलिए…’’

‘‘हां, मैं अस्पताल में थी और हुजूर दिल्ली चले गए.’’

‘‘इंटरव्यू था?’’

‘‘जानती हूं, मैं मर रही थी और आप छूमंतर हो गए, बता कर जा सकते थे.’’

‘‘सौरी, करुणा. प्लीज, मेरा जाना बहुत जरूरी था. पता है, मैं सिलेक्ट हो गया.’’

‘‘सच, नौकरी लग गई तुम्हारी?’’

‘‘हां, लग जाएगी.’’

यह सुनते ही वह मेरे गले से लग गई. उस की गर्म सांसों से मेरा दिल मधुर एहसास से भर उठा, होंठ उस के कपोलों से जा लगे. वह तुरंत दूर होती बोली, ‘‘यह क्या?’’

‘‘सौरी,’’ मैं ने कान पकड़ते हुए कहा.

एक मधुर मुसकन उस के चेहरे पर पसर गई जिसे मैं मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया. तभी प्रोफैसर राजीव की आवाज कानों में पड़ी. मैं तुरंत उन के कमरे में गया.

‘‘क्या है अंकल?’’

‘‘बेटा पानी ले आ, मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही.’’

‘‘क्या हो गया, आप कुछ बताते भी नहीं. अच्छा रुकिए, पहले पानी पीजिए.’’ पानी का गिलास थमाते हुए मैं बोला, ‘‘आप आज इतने उदास क्यों हैं?’’

‘‘बेटा, राहुल नए घर में चला गया.’’

‘‘क्या?’’ मेरे पैरों के नीचे जमीन खिसक गई. शादी तो उस ने अपनी मरजी से कर ली थी, बहू ले आया, न कोई न्योता न कार्ड और अब घर भी अलग कर लिया. प्रोफैसर राजीव की परेशानियों का दर्द अब मुझे समझ आया.

राहुल यह कैसे कर सकता है, मैं सोच उठा?

अंकल 75 वर्ष की उम्र क्रास कर चुके हैं. अम्मा जी रुग्ण हैं. और राहुल घर से अलग हो गया. चिंताओं के बादल मेरे सिर पर उमड़ गए. वृद्धावस्था में पुत्र की कितनी आवश्यकता होती है, इसे कौन नहीं समझता. राहुल को अवश्य अपर्णा ने बहकाया होगा.

प्रोफैसर राजीव ने राहुल के लिए क्या कुछ नहीं किया, स्नातकोत्तर कराया, कालेज में नौकरी लगवाई. दिनरात उस के पीछे दौड़े. और आज उस ने यह सिला दिया अंकल को. उन्हें अपने से ज्यादा करुणा की चिंता थी. वे उस के विवाह के लिए चिंतित थे. उन्हें मेरे और करुणा के संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी. करुणा की शादी के लिए उन्होंने कितने ही प्रयास किए थे. अच्छा घरबार चाहते थे. लड़का भी कमाऊ चाहते थे जैसे हर पिता की इच्छा रहती है. लेकिन उन्हें हर कदम पर निराशा ही मिली थी. असफलताओं ने उन्हें कमजोर कर दिया था और आज राहुल के अलग घर बसाने की बात ने उन्हें आहत कर दिया.

करुणा को मैं पसंद करता था, यह बात मैं प्रोफैसर राजीव से नहीं कह सका. मैं डर रहा था कि मेरी इस बात का अंकल कुछ गलत अभिप्राय न निकालें. मैं उन का विश्वासपात्र था. उन के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता था कि इस से उन्हें बहुत दर्द पहुंचेगा. प्रोफैसर राजीव कहीं लड़के को देखने जाते तो मुझे भी साथ ले जाते, मैं मना भी नहीं कर पाता.

करुणा भी इसे जानती थी, लेकिन वह खामोश रही. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. यह बात मुझे संतोष देती कि जितने भी रिश्ते आते करुणा के उपेक्षित उत्तर से उचट जाते, वह ऐसे तर्क रखती कि वर पक्ष निरुत्तर हो जाते और वापस लौट जाते. मन ही मन मेरी मुसकान खिल जाती.

प्रोफैसर राजीव की हालत दिनबदिन बिगड़ती गई. शरीर दुर्बल हो गया. उन का बाहर निकलना भी बंद हो गया. मैं उन की सेवा में लगा रहा.

एक दिन प्रोफैसर राजीव अपनी डायरी ढूढ़ते करुणा के कमरे में आए. वहां उन्हें करुणा के साथ मेरी तसवीर दिख गई. वे हतप्रभ रह गए. तसवीर को अपने कमरे में ले गए. मुझे बुलाया, बोले, “बेटा, इतनी बड़ी चीज तुम ने मुझ से छिपाई?”

‘‘क्या अंकल?’’

‘‘बेटा, मैं जिसे बाहर तलाश रहा था वह मेरे घर में ही था.’’

मेरे अश्रु छलक गए, ‘‘अंकल, ऐसा कुछ नहीं है. हम मित्र हैं. आप पिता समान हैं मेरे. आप करुणा की शादी जहां करना चाहें, कर दें, मैं विरोध नहीं करूंगा, पूरा सहयोग दूंगा. हमारा करुणा का पवित्र रिश्ता है.’’

‘‘बेटा, यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई. मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं, करुणा तेरे साथ बहुत खुश रहेगी. तेरे जैसा दामाद मुझे कहां मिलेगा. दामाद बेटा ही होता है. बुलाओ, करुणा को.’’

करुणा यह सब अंदर से सुन रही थी, दौड़ी हुई आई. उन के पास बैठ गई. उन्होंने उस का हाथ मुझे देते हुए कहा, ‘‘आज मैं भारमुक्त हो गया, खुश रहो.’’ एकाएक उन्हें कम्पन हुआ, सीना जोर से धड़का, और गरदन एक तरफ मुड़ गई. वे चिरनिद्रा में लीन हो गए. मेरी आंखें छलछला आईं. करुणा चीख कर रो पड़ी. उन के जीवन का अंत ऐसा होगा, सोचा भी नहीं था.

अपने हुए पराए

इंट्रो

हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव बेटी करुणा के मामले में थकेहारे जैसे हो गए थे, लेकिन जिंदगी के आखिरी लमहों में घर में ही ऐसी तसवीर मिली जिस ने उन्हें हारने से बचा लिया.

योगेश दीक्षित

जिंदगी में हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव आज सुबह बहुत ही थके हुए लग रहे थे. मैं उन को लौन में आरामकुरसी पर निढाल बैठे देख सन्न रह गया. उन के बंगले में सन्नाटा था. कहां संगीत की स्वरलहरियां थिरकती रहती थीं, आज ख़ामोशी पसरी थी. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘आओ, बैठो.’’

उन की दर्दमिश्रित आवाज से मुझे आभास हुआ कि कुछ घटित हुआ है. मैं पास पड़ी बैंच पर बैठ गया.

‘‘कैसे हो नरेंद्र?’’ आसमान की ओर निहारते उन्होंने पूछा.

‘‘ठीक हूं,” मैं ने दिया. मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था. मैं उन की पुत्री करुणा की तबीयत को ले कर परेशान था. 5 दिनों पूर्व वह अस्पताल में भरती हुई थी. फोन पर मेरी बात नहीं हो सकी. जब भी फोन लगाया स्विचऔफ मिला. चिंताओं ने पैने नाखून गड़ा दिए थे.

मुझे खामोश देख प्रोफैसर राजीव रुंधे स्वर से बोले, “दिल्ली से कब आए?”

‘‘कल रात आया.’’

‘‘इंटरव्यू कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. उन की आंखें अभी भी आसमान के किसी शून्य पर टिकी थीं. चेहरे पर किसी भयानक अनिष्ट की परछाइयां उतरी थीं जो किसी अनहोनी का संकेत दे रही थीं. मैं चिंता से भर उठा. करुणा को कुछ हो तो नहीं गया. लेकिन जब करुणा को चाय लाते देखा तो सारी चिंताएं उड़ गईं. वह पूरी तरह स्वस्थ्य दिख रही थी.

‘‘पापा चाय लीजिए,’’ करुणा ने चाय की ट्रे गोलमेज पर रखते हुए कहा.

मेरी नजरें अभी भी करुणा के चेहरे पर जमी थीं, लेकिन उस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख हैरान रह गया, लगा नाराज है. करुणा चाय दे कर मुड़ी ही थी कि पैर डगमगा गए. मैं ने तुरंत हाथों में संभाल लिया. वह संभलती हुई बोली, ‘‘थैंक्यू.’’ मैं तुरंत अलग हो गया. प्रोफैसर राजीव बोले, “जब चलते नहीं बनता तो हाईहील की सैंडिल क्यों पहनती हो?”

‘‘फैशन है पापा.”

‘‘हूं, सभी मौडर्न हुए जा रहे हैं.’’

मैं समझ गया, उन का इशारा राहुल की बहू अपर्णा पर था. अपर्णा अकसर जींस व टोप पहने ही दिखती है.

मेरे पिताजी और प्रोफैसर राजीव की दोस्ती जगजाहिर थी. एक साथ उन्होंने पढ़ाईलिखाई की, नौकरी की. पड़ोस में मकान बनाया. किसी भी समारोह में गए, साथ गए. यहां तक कि चुनाव भी साथ लड़ा.

मेरे पिताजी कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे, जल्दी ही उन की मृत्यु हो गई. मुझे हिदायत दे गए थे कि प्रोफैसर राजीव के घर को अपना घर समझना, पूरी इज्जत देना. तब से मेरा आनाजाना लगा रहता है. प्रोफैसर राजीव मुझे अकसर याद करते रहते हैं और मैं उन के बाहरी काम निबटाता रहता हूं. वे अपने लड़के राहुल से अधिक विश्वस्त मुझे मानते हैं.

प्रोफैसर राजीव का संपन्न परिवार है – पत्नी, एक लड़का, बहू और एक लड़की है. धर्म में उन की आस्था है. भजन, कीर्तन, भागवत जैसे कार्यक्रम वे कराते रहते हैं. करूणा जब एकाएक बीमार हुई और उसे अस्पताल में भरती होना पड़ा तो सभी चिंतित हो गए. मुझे भी शौक लगा. उसे पीलिया हो गया था. 10 दिन वह आईसीयू में भरती रही. तीनचार दिन मैं देखता रहा.

इसी बीच, मेरा इंटरव्यूकौल आ गया. मुझे दिल्ली जाना पड़ा. आज जब दिल्ली से वापस लौटा तो करुणा की याद ही दिल में बसी थी – वह कैसी है, अस्पताल से आई कि नहीं… सोचता हुआ प्रोफैसर राजीव के घर पहुंचा. प्रोफैसर राजीव बाहर ही मिल गए. उन्हें उदास देख मन में तरहतरह की शंकाएं पल गईं.

प्रोफैसर राजीव की चिंता मुझे अभी भी हो रही थी कि वे कुछ छिपाए हुए हैं. वरना तो ऐसे गमगीन वे कभी नहीं दिखे. करुणा के जाने के बाद मैं ने उन की चिंता का कारण पूछा तो वे टालते हुए उठ गए और अंदर कमरे में चले गए. उन के हावभावों ने मुझे फिर घेर लिया. मैं तुरंत करुणा के कमरे में गया. करुणा सोफे पर बैठी डायरी के पन्ने पलट रही थी, बोली, ‘‘कुछ काम?’’

‘‘क्या बिना काम के नहीं आ सकता?’’

‘‘रोका किस ने, मैं होती कौन हूं?’’

‘‘अच्छा, समझा.’’

‘‘क्या?’’

‘‘मैं दिल्ली चला गया था, इसलिए…’’

‘‘हां, मैं अस्पताल में थी और हुजूर दिल्ली चले गए.’’

‘‘इंटरव्यू था?’’

‘‘जानती हूं, मैं मर रही थी और आप छूमंतर हो गए, बता कर जा सकते थे.’’

‘‘सौरी, करुणा. प्लीज, मेरा जाना बहुत जरूरी था. पता है, मैं सिलेक्ट हो गया.’’

‘‘सच, नौकरी लग गई तुम्हारी?’’

‘‘हां, लग जाएगी.’’

यह सुनते ही वह मेरे गले से लग गई. उस की गर्म सांसों से मेरा दिल मधुर एहसास से भर उठा, होंठ उस के कपोलों से जा लगे. वह तुरंत दूर होती बोली, ‘‘यह क्या?’’

‘‘सौरी,’’ मैं ने कान पकड़ते हुए कहा.

एक मधुर मुसकन उस के चेहरे पर पसर गई जिसे मैं मंत्रमुग्ध सा देखता रह गया. तभी प्रोफैसर राजीव की आवाज कानों में पड़ी. मैं तुरंत उन के कमरे में गया.

‘‘क्या है अंकल?’’

‘‘बेटा पानी ले आ, मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही.’’

‘‘क्या हो गया, आप कुछ बताते भी नहीं. अच्छा रुकिए, पहले पानी पीजिए.’’ पानी का गिलास थमाते हुए मैं बोला, ‘‘आप आज इतने उदास क्यों हैं?’’

‘‘बेटा, राहुल नए घर में चला गया.’’

‘‘क्या?’’ मेरे पैरों के नीचे जमीन खिसक गई. शादी तो उस ने अपनी मरजी से कर ली थी, बहू ले आया, न कोई न्योता न कार्ड और अब घर भी अलग कर लिया. प्रोफैसर राजीव की परेशानियों का दर्द अब मुझे समझ आया.

राहुल यह कैसे कर सकता है, मैं सोच उठा?

अंकल 75 वर्ष की उम्र क्रास कर चुके हैं. अम्मा जी रुग्ण हैं. और राहुल घर से अलग हो गया. चिंताओं के बादल मेरे सिर पर उमड़ गए. वृद्धावस्था में पुत्र की कितनी आवश्यकता होती है, इसे कौन नहीं समझता. राहुल को अवश्य अपर्णा ने बहकाया होगा.

प्रोफैसर राजीव ने राहुल के लिए क्या कुछ नहीं किया, स्नातकोत्तर कराया, कालेज में नौकरी लगवाई. दिनरात उस के पीछे दौड़े. और आज उस ने यह सिला दिया अंकल को. उन्हें अपने से ज्यादा करुणा की चिंता थी. वे उस के विवाह के लिए चिंतित थे. उन्हें मेरे और करुणा के संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी. करुणा की शादी के लिए उन्होंने कितने ही प्रयास किए थे. अच्छा घरबार चाहते थे. लड़का भी कमाऊ चाहते थे जैसे हर पिता की इच्छा रहती है. लेकिन उन्हें हर कदम पर निराशा ही मिली थी. असफलताओं ने उन्हें कमजोर कर दिया था और आज राहुल के अलग घर बसाने की बात ने उन्हें आहत कर दिया.

करुणा को मैं पसंद करता था, यह बात मैं प्रोफैसर राजीव से नहीं कह सका. मैं डर रहा था कि मेरी इस बात का अंकल कुछ गलत अभिप्राय न निकालें. मैं उन का विश्वासपात्र था. उन के विश्वास को तोड़ना नहीं चाहता था कि इस से उन्हें बहुत दर्द पहुंचेगा. प्रोफैसर राजीव कहीं लड़के को देखने जाते तो मुझे भी साथ ले जाते, मैं मना भी नहीं कर पाता.

करुणा भी इसे जानती थी, लेकिन वह खामोश रही. उसे इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. यह बात मुझे संतोष देती कि जितने भी रिश्ते आते करुणा के उपेक्षित उत्तर से उचट जाते, वह ऐसे तर्क रखती कि वर पक्ष निरुत्तर हो जाते और वापस लौट जाते. मन ही मन मेरी मुसकान खिल जाती.

प्रोफैसर राजीव की हालत दिनबदिन बिगड़ती गई. शरीर दुर्बल हो गया. उन का बाहर निकलना भी बंद हो गया. मैं उन की सेवा में लगा रहा.

एक दिन प्रोफैसर राजीव अपनी डायरी ढूढ़ते करुणा के कमरे में आए. वहां उन्हें करुणा के साथ मेरी तसवीर दिख गई. वे हतप्रभ रह गए. तसवीर को अपने कमरे में ले गए. मुझे बुलाया, बोले, “बेटा, इतनी बड़ी चीज तुम ने मुझ से छिपाई?”

‘‘क्या अंकल?’’

‘‘बेटा, मैं जिसे बाहर तलाश रहा था वह मेरे घर में ही था.’’

मेरे अश्रु छलक गए, ‘‘अंकल, ऐसा कुछ नहीं है. हम मित्र हैं. आप पिता समान हैं मेरे. आप करुणा की शादी जहां करना चाहें, कर दें, मैं विरोध नहीं करूंगा, पूरा सहयोग दूंगा. हमारा करुणा का पवित्र रिश्ता है.’’

‘‘बेटा, यह बात मेरे दिमाग में पहले क्यों नहीं आई. मैं तुझे अच्छी तरह से जानता हूं, करुणा तेरे साथ बहुत खुश रहेगी. तेरे जैसा दामाद मुझे कहां मिलेगा. दामाद बेटा ही होता है. बुलाओ, करुणा को.’’

करुणा यह सब अंदर से सुन रही थी, दौड़ी हुई आई. उन के पास बैठ गई. उन्होंने उस का हाथ मुझे देते हुए कहा, ‘‘आज मैं भारमुक्त हो गया, खुश रहो.’’ एकाएक उन्हें कम्पन हुआ, सीना जोर से धड़का, और गरदन एक तरफ मुड़ गई. वे चिरनिद्रा में लीन हो गए. मेरी आंखें छलछला आईं. करुणा चीख कर रो पड़ी. उन के जीवन का अंत ऐसा होगा, सोचा भी नहीं था.

इंट्रो

हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव बेटी करुणा के मामले में थकेहारे जैसे हो गए थे, लेकिन जिंदगी के आखिरी लमहों में घर में ही ऐसी तसवीर मिली जिस ने उन्हें हारने से बचा लिया.

योगेश दीक्षित

जिंदगी में हार न मानने वाले प्रोफैसर राजीव आज सुबह बहुत ही थके हुए लग रहे थे. मैं उन को लौन में आरामकुरसी पर निढाल बैठे देख सन्न रह गया. उन के बंगले में सन्नाटा था. कहां संगीत की स्वरलहरियां थिरकती रहती थीं, आज ख़ामोशी पसरी थी. मुझे देखते ही वे बोले, ‘‘आओ, बैठो.’’

उन की दर्दमिश्रित आवाज से मुझे आभास हुआ कि कुछ घटित हुआ है. मैं पास पड़ी बैंच पर बैठ गया.

‘‘कैसे हो नरेंद्र?’’ आसमान की ओर निहारते उन्होंने पूछा.

‘‘ठीक हूं,” मैं ने दिया. मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था. मैं उन की पुत्री करुणा की तबीयत को ले कर परेशान था. 5 दिनों पूर्व वह अस्पताल में भरती हुई थी. फोन पर मेरी बात नहीं हो सकी. जब भी फोन लगाया स्विचऔफ मिला. चिंताओं ने पैने नाखून गड़ा दिए थे.

मुझे खामोश देख प्रोफैसर राजीव रुंधे स्वर से बोले, “दिल्ली से कब आए?”

‘‘कल रात आया.’’

‘‘इंटरव्यू कैसा रहा?’’

‘‘ठीक रहा.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. उन की आंखें अभी भी आसमान के किसी शून्य पर टिकी थीं. चेहरे पर किसी भयानक अनिष्ट की परछाइयां उतरी थीं जो किसी अनहोनी का संकेत दे रही थीं. मैं चिंता से भर उठा. करुणा को कुछ हो तो नहीं गया. लेकिन जब करुणा को चाय लाते देखा तो सारी चिंताएं उड़ गईं. वह पूरी तरह स्वस्थ्य दिख रही थी.

‘‘पापा चाय लीजिए,’’ करुणा ने चाय की ट्रे गोलमेज पर रखते हुए कहा.

मेरी नजरें अभी भी करुणा के चेहरे पर जमी थीं, लेकिन उस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख हैरान रह गया, लगा नाराज है. करुणा चाय दे कर मुड़ी ही थी कि पैर डगमगा गए. मैं ने तुरंत हाथों में संभाल लिया. वह संभलती हुई बोली, ‘‘थैंक्यू.’’ मैं तुरंत अलग हो गया. प्रोफैसर राजीव बोले, “जब चलते नहीं बनता तो हाईहील की सैंडिल क्यों पहनती हो?”

‘‘फैशन है पापा.”

‘‘हूं, सभी मौडर्न हुए जा रहे हैं.’’

मैं समझ गया, उन का इशारा राहुल की बहू अपर्णा पर था. अपर्णा अकसर जींस व टोप पहने ही दिखती है.

मेरे पिताजी और प्रोफैसर राजीव की दोस्ती जगजाहिर थी. एक साथ उन्होंने पढ़ाईलिखाई की, नौकरी की. पड़ोस में मकान बनाया. किसी भी समारोह में गए, साथ गए. यहां तक कि चुनाव भी साथ लड़ा.

‘अब स्टार बन जाने के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं होता’: अनुज शर्मा

एयरफोर्स में फाइटर पायलट रहे पिता के बेटे अनुज शर्मा अपनी अदाकारी से अभिनय की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर चुके हैं. मूलतः सोनीपत, हरियाणा निवासी अनुज शर्मा को ‘स्टेट आफ सीज 26/11’, ‘स्पेशल ऑप्स’, ‘अनदेखी’,‘जौनपुर’ सहित कई वेब सीरीज में काफी पसंद किया गया. तो वहीं वह फिल्मकार संजय लीला भंसाली के साथ ‘पद्मावत’ के बाद ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में भी अभिनय कर अपना दमखम दिखा चुके हैं.फिलहाल वह जल्द प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्मों ‘चिड़िया’, ‘कर्मसूत्र’ व ‘आजमग-सजय़’ को लेकर चर्चा में हैं. इनमें से फिल्म ‘चिड़िया’ में अनुज शर्मा सोलो हीरो हैं.जबकि ‘आजमगढ़’ में उनके साथ पंकज त्रिपाठी हैं.

प्रस्तुत है अनुज शर्मा से हुई बातचीत के अंश..

आपके पिता एयरफोर्स में फाइटर पायलट थे.पर आपने एयरफोर्स में जाने की बजाय अभिनय का क्षेत्र चुना?

आपने एकदम सही कहा.मेरे पिता ओम प्रकाश शर्मा एयरफोर्स में फाइटर पायलट थे.उन्होंने 1971 का युद्ध लड़ा था.मेरी मां सुषीला शर्मा हिंदी की शिक्षक रही हैं.मेरे दादा राजनीति में थे. बड़े भाई वगैरह होटल व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. मैं पढ़ाई में कभी बहुत ज्यादा तेज नहीं रहा. लेकिन बचपन से मुझे लोगों की जीवनियां पढ़ने का शौक रहा है.मेरे आदर्श अब्राहम लिंकन रहे हैं.मेरे पिता ने बहुत सही उम्र में मुझे अब्दुल कलाम की एक किताब ‘‘विंग्स आफ फायर’ पढ़ने को दी थी.इसकी पहली लाइन थी- ‘‘सपने हमेशा बड़े देखो. सपने सच होते हैं.’’ इस पंक्ति से मैं काफी प्रभावित हुआ और मैंने सोच लिया था कि जिंदगी में जब भी बनना है,बड़ा ही बनना है, छोटा नहीं. पहले मेरी इच्छा पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए एयरफोर्स में जाने की थी, जिसके लिए मैंने प्रयास भी किए.लेकिन सफलता नहीं मिली. तब मैं दिल्ली के हिंदू कालेज में पढ़ाई करने पहुंच गया, क्योंकि पिता ने कहा कि पहले स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करो, उसके बाद जो मर्जी हो, वह करना. मैं फिलोसफी/ दर्शन शास्त्र में गोल्ड मैडलिस्ट हॅूं. मैंने मास्टर की डिग्री हासिल की है. उन दिनों कालेज में थिएटर हुआ करते थे.तो मैं थिएटर करने लगा. इसी के चलते मेरे अंदर भी फिल्मों से जुड़ने का सपना जागा.इसलिए फिल्मों में हीरो बनने के लिए मैं एक दिन मुंबई पहुंच गया. दूसरी बात उन्ही दिनों दिल्ली में एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. मैं शूटिंग देखने पहुंचा ,तो देखा कि सेट पर हीरो के आते ही एक मेकअप मैन, हेयर ड्रेसर के साथ ही छाता लिए एक इसांन आ गया. मुझे समझ में आया कि इतने मजे तो कलाकार के अलावा कोई नहीं कर सकता. उपर से सभी कलाकार को ‘सर’ बोलते हैं. इसलिए मन में आया कि काम वहीं करना, जहां सभी लोग ‘सर’ कहें.तब मैंने अभिनेता बनने के बारे में सोचना शुरू किया और पता चला कि मंडी हाउस ऐसी जगह जहां कलाकार बनने के लिए जाना पड़ेगा.पर मंडी हाउस में सब कुछ आसान नही था.

उपर से हरियाणवी होने के चलते मेरी हिंदी भाषा के उच्चारण में दो-ुनवजया था. मेरे उपर अभिनय का ऐसा नषा सवार हुआ कि मुंबई आ ही गया.

अभिनय की बारीकियां कहीं सेतो सीखी होंगी?

मैं कुछ समय तक ‘एक्ट वन’ में रहा. लंबे समय के लिए विश्व प्रसिद्ध थिएटर कलाकार केदार शर्मा के साथ रहा. लेकिन अभिनय में मेरा कोई गुरू नही है. मेरा अपने अंदर के अभिनय को तराशने का अलग तरीका रहा.

मतलब…?

-अभिनय के असली वर्कशॉप के लिए मैंने अपने जीवन में एक सप्ताह की यात्रा की है. इस यात्रा के लिए मैं अपने घर सोनीपत, हरियाणा से बिना टिकट व बिना किसी धन राशि के निकला. मैंने मान लिया था कि इसी एक सप्ताह के अंदर मेरे अभिनय की सही मायनो में वर्कशॉप होनी है. मैं इस एक सप्ताह कैसे रहूंगा..क्या खाउंगा…..यह सब मुझे अभिनय करना है. इस वर्कशॉप के बाद मैंने अभिनय कहीं से नही सीखा.मै सोनीपत से दिल्ली होता हुआ कश्मीर तक ट्रेन व सड़क मार्ग से ट्रेन, ट्क, बैलगाड़ी व पैदल गया. लोगों के घरों में रहा और मस्त खाया पिया. मुझे कहीं तकलीफ नहीं हुई. जबकि मेरी जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं थी. नौवे दिन अपने घर खुश होकर और बहुत जिंदगी जीकर आया था. मुझे लगा कि दुनिया में जीने के लिए पैसा जरुरी नही है. आपका साफ दिल व इमानदार होना अत्यावश्यक है. सच को -सजयंाकने की जरुरत नहीं है.मैं हर जगह सच बोलता रहा, लोगों को मेरे चेहरे से पता चलता रहा कि मैं सच बोल रहा हॅूं. मेरी इस नौ दिन की यात्रा के दोस्त आज भी मेरे दोस्त हैं, जो कि मनाली, हिमाचल में भी हैं.इस तरह मैने अपने अंदर अभिनय को एक्सप्लोर किया.

नौ दिन की यात्रा में किस तरह के लोगों से आपकी मुलाकात हुई थी और उससे आपके अंदर का अभिनय कैसे एक्सप्लोर हुआ था?

सबसे पहले जब मैं जम्मू एक्सप्रेस से जा रहा था, तो टिकट न होने के चलते टीसी ने मु-हजये पकड़ लिया था.मैने उससे साफ साफ कह दिया कि सर मेरे पास टिकट नहीं है.पहली परफार्मेंस वहां पर एक्सप्लोर हुई. मैंने उसे बताया कि मैं इस तरह की यात्रा पर निकला हूं. आप चाहें तो मुझे जाने दें या आप चाहे तो मुझे जेल भेज सकते हैं.यदि आप जुर्माना लगाते है, तो वह कैसे दे पाउंगा, मुझे नहीं पता. उस टीसी ने दूसरे टीसी से कहा कि यह जहां जना चाहे वहां वह मुझे छोड़ दे. उसने मुझे जम्मू उतारा. पैंट्री कार में खाना खिलाया.जम्मू में कुछ दूर पैदल चला.फिर बैल गाडी में चला. एक परिवार से बात हुई.उनसे जिंदगी पर चर्चा हुई. उस वक्त तक मैंने पढ़ाई काफी रखा था,तो लोग मुझे सुनने लगे थे. ईश्वर ने इतना साथ दिया कि नौ दिन में कहीं नहीं फंसा. सच के बल पर राह आसान बनती गयी. तो मैंने सीखा कि अभिनय करना है, तो हमेशा सच के साथ रहना. मेरे पिता ने मुझे एक बात कही थी कि, ‘तू अगर अनुज शर्मा को इमानदारी

से जी गया, तो दुनिया में किसी भी किरदार को जी जाएगा.’’ तो आपके पिता ने आपको अभिनय को कैरियर बनाने के लिए मुंबई आने के लिए कहा था?

-जी नहीं…जब मैंने अपने पिता से अपने मन की बात कही तो वही हुआ,जो अमूमन छोटे शहरों के परिवार में प्रतिक्रिया होती है. मेरे दादा जी या मेरे पिता जी ने यह नहीं कहा कि अभिनय में कैरियर मत बना. बल्कि उन्होंने पटवारी की मेरी सरकारी नौकरी लगवा दी थी. मैं उसे दो दिन में छोड़कर आ गया. तब उन्होंने दूसरी नौकरी ‘रीडर’ की लगवा दी.यह भी सरकारी नौकरी थी.इसे भी मैंने दो दिन में छोड़ दिया था.फिर एक ‘टैक्समैन’ कंपनी है, जहां कानून की किताबें छपती हैं.वहां मुझे इंटरव्यू देने के लिए भेजा गया.अब तक मेरी समझ में आ गया था कि मुझे अपने परिवार की मर्जी अनुसार ही चलना पड़ेगा. मुझे पर फैशन पसंद था. मुझमें लेटर टाइप करने की स्पीड नहीं थी.

पर मुझे लेटर डिजाइन करना आता था,वह करके मैंने दिया. जो कि उन्हें पसंद आया. पर उन्होंने कहा- ‘बेटा आपकी स्पीड नहीं है. चालिस शब्द पर मिनट चाहिए. ’मैने कहा कि मैं कोशिश करुंगा. उन दिनों घर पर कम्प्यूटर तो घर में नहीं थे.पर घर में लोहे वाली टाइपिंग मशीन थी. मैंने प्रैक्टिस शुरू की और दो दिन के अंदर मेरी स्पीड चालिस शब्द पर मिनट हो गयी थी. उन दिनों रात में मैं ‘जी सिनेमा’ पर फिल्म ‘सिलसिला’ देख रहा था. रात के साढ़े तीन बज चुके थे.उसमें अमिताभ बच्चन का एक सीन है,जिसमें वह कहते हैं- ‘तुम होती तो ऐसा होता,…’ बच्चन साहब की लाइनो से मेरे अंदर ख्याल आया कि ‘मैं एक्टर  होता,तो ऐसा होता..’तो सुबह सुबह चार बजे ही मैंने अपने पापा को उठाया कि मुझे बात करनी है. उन्होंने कह दिया कि सुबह होगी तो बात करुंगा.मैं नीचे उतर कर बैठ गया. सुबह पापा ने पूछा बताओ क्या हुआ..तो मैंने उनसे कहा कि मैं आज मरुंगा, तो मेरे पीछे मुश्किल से तीस चालिस लोग होंगे. कुछ परिवार के सदस्य,कुछ आपके आफिस के लोग या मोहल्ले के लोग. पर मुझे तो मेरे पीछे तीस चालिस हजार लोग चाहिए. इसके लिए या तो मैं खानदानी राजनीति का धंधा अपनाउं,जो मुझे पसंद नहीं अथवा अभिनेता बनूं.पर अभिनेता अच्छे होते हैं, तो मैं अच्छा अभिनेता बनना चाहता हॅूं. इसके बाद एक दिन मेरी स्टेज परफार्मेंस को मेरे पिता जी छिपकर देखने गए थे. जब मैं घर पहुंचा,तो उन्होंने कहा कि मैं अच्छा अभिनय करता हॅूं. फिर उन्होंने इजाजत दे दी और मैं अभिनेता बनने मुंबई आ गया. जब मैं मुंबई में अभिनय करने लगा, तो उन्हें गर्व का अहसास हुआ.

मगर मेरे दादा जी ने मुझसे कहा था कि ‘यह क्षेत्र तूने चुना है. तो इसके सुख व दुःख भी तूने ही चुने हैं. तू अपने दम पर जाना चाहता है तो जा सकता है. आप यकीन नही करेंगें मैं मुंबई आने के लिए खुद कमाकर पैसे जमा करके आया था.आज तक मैंने घर से एक भी पैसा नहीं लिया.

पिता व दादा से इजाजत मिलने के बाद किस तरह की योजना बनायी थी?

कोई योजना नहीं थी.सबसे पहले दिल्ली गया.वहां पर ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ में अभिनय करने लगा था. दिल्ली में रहकर मैंने साठ सत्तर सीरियलों में अभिनय किया. ‘दिल्ली काशीर, ईटीवी, ईटीवी उत्तर प्रदेश सहित कई छोटे टीवी चैनलों के सीरियलों में अभिनय किया. दो साल तक अभिनय छोड़कर सोनीपत के अपने होटल पर बैठने लगा.होटल पर काम करते हुए अहसास हुआ कि मैं बिल बनाने के लिए पैदा नहीं हुआ. वहां पर हरियाणवी फिल्में बनती थी. तो मैंने छह लघु फिल्में निर्देशित कीं. इनमें से पहली फिल्म है-ंउचय‘हक बहन का’, जो कि हरियाणा की पहली सेंसर बोर्ड से पारित फिल्म है.फिर इससे भी मन भर गया. मुंबई में कोई जान पहचान नही थी. मेरी पत्नी उन दिनों मेरी गर्लफ्रेंड थी और मेरी जिंदगी का पहला वेलेनटाइन डे पर उसने मुझसे कहा कि मुझे वेलेनटाइन डे गिफ्ट के तौर पर आप मुंबई चले जाएं. तो मैं मुंबई आ गया. मेरी फिलौसफी कहती है कि आप इतनी बड़ी दुनिया में ईश्वर को बाय बोलकर धरती पर जन्म ले लेते हो, तो आप बिना किसी योजना के आते हैं.इसलिए किसी बात की योजना क्यों बनानी? चलते चलो,सब राह बन जाएगी.’’

आपकी पत्नी क्या करती हैं?

मेरी पत्नी डाक्टर यानी कि स्पीच थेरेपिस्ट हैं.उसने संगीत से एमए किया है. हमारे रिश्ते की शुरूआत कला के ही चलते हुई. बाद में उसने स्पीच थेरेपिस्ट की पढ़ाई की. फिर हमारी शादी हो गयी. हरियाणा में प्रेम विवाह करना आसान नहीं था. उनके परिवार में सभी वकालत के पेशे से जुड़े हुए हैं.कुछ जज भी हैं. मेरे साढू भाई भी जज हैं.मेरे ससुर क्रिमिनल लॉयर रहे हैं. मेरी सालियां भी वकील हैं.पर ईश्वर की कृपा से हमारी शादी हो गयी. मुंबई में संघर्ष बहुत हैं.हम दोनों के सपने थे. मुझे अभिनेता और उसे गायक बनना था. मुंबई आने पर उसने तीन वर्षों तक क्लीनिक चलाया.फिर हम कान्हा नामक बेटे के माता पिता बन गए.जिसके चलते उन्हें क्लीनिक छोड़ना पड़ा.दूसरा उसका त्याग रहा.उसने सिंगिंग के लिए संघर्ष नहीं किया. उसका मानना था कि घर के दोनों सदस्य संघर्ष करेंगे,तो घर कैसे चलेगा? मोरल सपोर्ट की जरुरत होती है.एक कलाकार के तौर पर संघर्ष कर घर पहुंचने पर टूट चुके होते हैं.उस वक्त मोरल सपोर्ट देने वाला कोई तो होना ही चाहिए.यहां हर दिन कामयाबी नही मिलती.हर दिन हम हताश ज्यादा होते हैं.पूरे माह में दो तीन दिन ही चेहरे पर मुस्कान आती है.

मुंबई पहुंचने के बाद आपका किस तरह का संघर्ष रहा?

संघर्ष नहीं रहा. मैं जैसे ही मुंबई आया मुझे एक माह के ही अंदर दिलीप कुमार साहब ने अपने सीरियल में अभिनय करने का अवसर दे दिया.मैं यह सोचकर आया था कि यदि एक माह के अंदर काम नहीं मिला, तो मुंबई में नहीं रूकूंगा. 29वें दिन मैं पश्चिम एक्सप्रेस पकड़कर अपने घर लौट गया.

सोनीपत पहुंचा कि तभी दिलीप कुमार के बंगले से फोन आया कि सायरा बानो जी मिलना चाहती हैं.मैं तीन बजे की वापसी की ट्रेन पकड़ कर मुंबई वापस आता हूं और दिलीप साहब के साथ सीरियल ‘स्त्री’ में पहला काम करता हूं.इसमें निगेटिव किरदार था. मां बाबा ने मुझे वापस बुलाया. फिर मुझे राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘‘गो’’ मिली. यहां आपकी प्रतिभा का आकलन आपकी उपलब्धियों से की जाती है. धीरे धीरे बाजार में खबर फैलने लग गयी कि अनुज शर्मा तो राम गोपाल वर्मा की फिल्म कर रहा है. फिर मेरे लिए काम मिलना आसान हो गया. मैंने ‘जस्सी जैसी कोई नहीं’,‘छोटी बहू’सहित कई सीरियलों में छोटे या बड़े किरदार भी निभाए.साल भर बाद मुझे लगा कि हम इन सब के लिए नहीं बने हैं.फिर फिल्मों के लिए कोशिश की. तो ‘लक बाय चांस’,एक चालिस की लास्ट लोकल’,तिग्मांशु धुलिया की ‘शागिर्द’, दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘एलएसडी’ सहित कई बड़ी फिल्मों में छोटे किरदार निभाए. इतना करते हुए समझ में आ चुका था कि मुझे काम करते रहना है. बड़ा काम तो किस्मत से ही मिलेगा.फिर ‘स्पेशल ऑप्स’ जैसी वेब सीरीज की. फिर अरबिंद बब्बल जी ने मुझे अपने सीरियल ‘माधुरी टॉकीज’ में मुख्य नगेटिव किरदार निभाने का अवसर दिया.फिर स्कॉटलेंड’,‘स्टेट आफ सीज 26/11’, ‘कारंटीनो’ सहित कई वेब सीरीज की. मुझे रानी मुखर्जी व उसके भाई राजा मुखर्जी निर्मित सीरियल ‘‘किसी की नजर न लगे’ में हीरो बनने का अवसर मिला था.मैंने सीरियल ‘सूर्यपुत्र कर्ण’ में विदुर का किरदार निभाया था.

2010 के आस पास आए सीरियल ‘‘क्राइम पेट्रोल’ से मु-हजये सर्वाधिक पहचान व सफलता मिली.वास्तव में ‘जस्सी जैसी कोई नही’ में सहायक निर्देशक रहे सतीश

शुक्ला ने मेरे अभिनय की तारीफ करते हुए कहा था कि जब वह स्वतंत्र निर्देशक

बनेंगे, तो मुझे काम देंगे. जैसे ही वह ‘क्राइम पेट्रोल’ के निर्देशक बने. उन्होंने मुझे इससे जोड़ लिया. इसके साथ मैं दस वर्षों तक जुड़ा रहा.इसे करने में मजा आया. इसके हर एपीसोड में मुझे एक नए किरदार को निभाने का अवसर मिलता रहा. फिर एक दिन इससे आगे बढ़ने के लिए मैने वेब सीरीज करनी षुरू की.

फिर ‘क्राइम पेट्रोल’ के ही निर्देशक सतीश शुक्ला ने विक्रम भट्ट की दो वेब सीरीज की, तो वहां भी मुझे याद किया. जब लॉक डाउन आया तो उन्होंने कहा कि मैं एक सीरीज निर्देशित कर रहा हॅूं और तू हीरो होगा. वह थी ‘जौनपुर’.

आपने संजय लीला भंसाली के साथ ‘‘पद्मावतके अलावा कई अन्य बड़े निर्देशकों के साथ काम किया.पर किसी ने आपको रिपीट क्यों नहीं किया?

सच कहॅूं तो आपको ऐसा किरदार मिला हो कि आपकी परफार्मेंस निर्देशक को आपकी बार बार याद दिला दे.पहले एक सीन देखकर निर्देशक कह देता था कि यह बंदा कमाल का है,इसे बुलाया जाए.अब ऐसा नहीं होता.अब लाॅबी बदल गयी हैं.तरीके बदल गए हैं.अब स्टार बन जाने के बाद भी संघर्ष खत्म नहीं होता.कुछ

निर्देशकों ने रिपीट किया. मैंने संजय लीला भंसाली के साथ ‘पद्मावत’ के बाद ‘गंगूबाई काठियवाड़ी’ की. मेरी राय में मसला छोटा या बड़े किरदार का है ही नहीं.संजय लीला भंसाली बहुत बड़े निर्देशक हैं.मैं उनसे चाहूं तो नही मिल सकता.लेकिन छोटा किरदार निभाकर मैं उन तक पहुंच गया.‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की शूटिंग करने के बाद मैं संजय लीला भंसाली सर से कह कर आया था कि ‘सर, यह मेरा दूसरा ऑडीशन’ है.

पिछले चार पांच वर्षों के अंदर काफी कुछ बदला है.पर उससे पहले टीवी कलाकारों के साथ फिल्म वाले दूर रहना पसंद करते थे.बीच में आप टीवी पर काफी काम कर रहे थे.क्या उसका भी खामियाजा भुगतना पड़ा?

बिलकुल नही…पहली बात तो क्राइम पेट्रोल ऐसा रियालिस्टिक शो है,जिसे फिल्म वाले फिल्म नहीं मानते और टीवी वाले इसे टीवी शो नहीं मानते. यह शो हर घर में जरुर देखा जाता था. इस शो ने तो टीआरपी में ‘केबीसी’ को भी मात

दे दिया था.टीवी पर काम करने का तरीका और फिल्मों में काम करने का तरीका अलग है. मुझे टीवी,वेब सीरीज या फिल्म सहित हर माध्यम में अच्छा काम करते रहना चाहता हॅूं.मैं अपने घर से अभिनेता बनने निकला था.

1996 में निर्देशक की नजर से कलाकार चुने जाते थे.मगर माहौल बदला है.अब बीच में कास्टिंग डायरेक्टर आ गए हैं.इससे फर्क पड़ा है?

इससे फायदे भी हुए हैं.हर चीज को देखने का अपना नजरिया है.पहले जब निर्देशक या एसोसिएट निर्देशक कलाकार का चयन करता था,तब निर्देशक की अपनी एक लौबी थी.यह लौबी सिस्टम हर इंडस्ट्ी में है.हर इंसान पहले अपनी जान पहचान वाले को काम देता है. कास्टिंग डायरेक्टर को लेकर आप कह देते है कि उसकी यह लौबी है. तो मैं कहता हूं कि भाई उसकी लौबी के बनो. मेहनत करो.गलत कुछ नही है.पहले भी निर्देशक तक सभी नही पहुंच पाते थे और आज भी नहीं पहुॅच पाते थे.पर कास्टिंग डायरेक्टर से लोग आसानी से मिल सकते हैं.भारत में टीवी सीरियल के लोग कास्टिंग डायरेक्टर को महत्व

नही देते.कास्टिंग डायरेक्टर आपका ऑडीशन लेकर चैनल तक पहुंचा देता है और चैनल में बैठे नॉन क्रिएटिब लोग निर्णय लेते हैं.यानी कि भारत

में नॉन क्रिएटिब लोग ही क्रिएटिब धंधे को संभाल रहे हैं. यह शिकायत

नहीं सच्चाई है. तो टीवी में कास्टिंग डायरेक्टर की अहमियत ही नहीं है. सिनेमा में जरुर कास्टिंग डायरेक्टर की अहमियत समझी है, जो कि होना भी चाहिए. चैनल के क्रिएटिव की दखलंदाजी बढ़ाने के बाद टीवी के निर्देशकों की अहमियत कम हो गयी है.

हरियाणा को लेकर जो ईमेज है.उस माहौल से निकलकर अभिनेता बनना कितना आसान या कितना कठिन है?

मुझे लगता है कि अगर आपके पास शिद्दत, जज्बा हो, तो सोनीपत ही नहीं कहीं भी पैदा होकर आप कुछ भी बन सकते हो.जब एक किसान का बेटा अब्राहम लिंकन हो सकता है. मछुआरे परिवार का बेटा ए पी जे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति हो सकते है, तो कोई भी इंसान कुछ भीबन सकता है.जो लोग परवरिश या परिवार के हालात को दो वर्षो देते हैं,वह सब उनके बहाने हैं.मेरे आदर्श कलाम साहब और अब्राहम लिंकन हैं. मैं इन्हें सलाम करता हॅूं.इन लोगों के पास इनके सपने थे, जिन्हें इन लोगों ने पूरी इमानदारी के साथ जिया. भाषा के असर की भी बात की जाती है? आप जिस भाषा में पारंगत हैं,उसमें सोचना और जिस भाषा से ज्यादा सहज नहीं है, उसमें सोचने में अंतर पड़ता है.

आज की तारीख में लोगो की राय में अंग्रेजी ही सब कुछ है.ऐसे में हिंदी भाषा और हरियाणा से आने वालों को किस तरह की समस्याएं आती हैं?

पहली बात तो यह सवाल कई लोग मुझसे पूछते हैं.पहली बात हम हिंदी सिनेमा करने आए हैं.इसलिए अच्छी हिंदी होना आवष्यक है. लेकिन आप शिक्षित संसार में रहते हैं,आपको स्क्रिप्ट पढ़नी होती है.लोगों से विचार विमर्ष करना होता है,तो आपको अंग्रेजी आनी चाहिए.मेरी राय हर इंसान जितना सीख सके, उसे उतना सीखना चाहिए.फिर चाहे हिंदी हो या मराठी हो या अंग्रेजी हो.मेरा मानना है कि अभिनेता से ज्यादा प-सजय़ा लिखा कोई इंसान नहीं होता है. क्योकि अभिनेता को हर किरदार को पढ़ना व समझना तथा उसे आत्मसात कर अपने अभिनय से संवारना होता है. डाक्टर को हर दवा व इंजेक्शन के बारे में जानकारी होनी चाहिए. मुश्किल कुछ भी नही है. हर चीज सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए.

कोई ऐसा किरदार जिसे आप निभाना चाहते हों?

टॉम एंस की अंग्रेजी फिल्म ‘‘कास्ट अवे’ आयी थी.पूरी फिल्म में वह अकेले होते हैं. तो इस तरह की फिल्म ‘चिड़िया’ मैं कर चुका हॅूं.एक फिल्म आयी थी ‘परफ्यूम’.उस तरह का किरदार निभाना चाहता हॅूं. मुझे कोई भी किरदार निभाना असंभव नहीं लगता. मैं कभी ईसा मसीह को जरुर निभाना चाहता हॅूं. वह सहनषीलता की मूर्ति थे. जहां तक मेरी पढ़ाई कहती है क्राइस्ट का बहुत गहरा संबंध रहा है.

नया क्या कर रहे हैं?

सोलो हीरो के तौर पर फिल्म ‘चिड़िया’ आने वाली है.एक फिल्म ‘आजमग-सजय़’ में पंकज त्रिपाठी के साथ काम कर रहा हॅूं,जिसका निर्देशन कमलेश मिश्रा ने किया है.एक फिल्म ‘कर्मसूत्र’ है.‘चिड़िया’ पारिवारिक फिल्म है. इस फिल्म में मैंने जो किरदार निभाया है, वैसा किरदार निभाना हर कलाकार का एक सपना होता है.इस किरदार को निभाने के लिए मु-हजये काफी तैयारी करनी पड़ी थी.इसमें साठ मिनट की मेरी सोलो परफार्मेंस हैं. सिनेमा के स्क्रीन पर साठ मिनट सोलो परफार्मेंस का होना बड़ी बात है.फिल्म पूरे डेढ़ घंटे की है. इस फिल्म के लिए मैं दो दिन भूखा रहा हॅूं.बिना नहाए धोए रहा. शूटिंग के बाद कमरे में जाकर बंद हो जाता था. मेडीटेशन किया करता था. दोनों दिन अंतिम सीन से पहले मैं बेहोश होकर गिर भी पड़ा था. पर अब जब मैं उस दृश्य को देखा, तो मैं 26 साल के कैरियर में पहली बार मां सरस्वती को धन्यवाद देने पर मजबूर हुआ. ‘चिड़िया’ मेरे लिए व मेरे कैरियर के लिए अति महत्वपूर्ण फिल्म है. दूसरी फिल्म ‘‘कर्मसूत्र’’ पूरी तरह से कमर्षियल फिल्म है. बंटी निर्देशित इस फिल्म की कहानी चंडीग-सजय़ की एक पुलिस अफसर व एक अपराधी की है.अपराधी एक लड़की है.बहुत जबरदस्त कहानी है.इसमें मैं एक पुलिस अफसर का किरदार निभा रहा हॅूं.इसमें इस बात को रेखंाकित किया गया है कि जैसा आप कर्म करोगे,वैसा ही फल मिलेगा.

तीसरी फिल्म साहित्यकार कमलेश मिश्रा ने निर्देशित ‘‘आजमग-सजय़’’ है.इसमें दो किरदार है. एक मैं और दूसरा पंकज त्रिपाठी निभा रहे हैं. यह फिल्म पैरावीजन पर है. एक यात्रा है. स्कूल के बच्चे और उसके माहौल की कहानी है. इंसान अपने माहौल के ही चलते कुछ बनता है.तो इंसान किस तरह के माहौल में पला बढ़ा है, उसी की कहानी है.

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: पाखी का बच्चा लेकर फरार होगी सई, आएगा ये ट्विस्ट

आयशा सिंह, नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा  स्टारर सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’  की कहानी में बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में दिखाया जा रहा है कि पाखी चौहान हाउस में वापस आने वाली है तो दूसरी तरफ सई  विराट को हमेशा के लिए छोड़ने वाली है.

शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि पाखी को लेबर पेन शुरू हो जाता है. मौसम खराब होने की वजह से विराट पाखी को अस्पताल लेकर नहीं जा पाता है. सई की मदद से विराट पाखी की घर में डिलीवरी करवाता है. डिलीवरी के दौरान पाखी बेहोश हो जाती है. सई पाखी का पूरा ख्याल रखती है.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में 8 साल लंबा लीप आएगा. दर्द की वजह से पाखी की हालत खराब हो जाएगी. ऐसे में विराट पाखी को सहारा देगा.

 

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पाखी के मां बनने के बाद सई अपना रंग दिखाने लगेगी. सई पाखी को जेल भेजेगी. सई आरोप लगाएगी कि पाखी ने धोखे से विराट के बच्चे को जन्म दिया है. पुलिस पाखी को गिरफ्तार कर लेगी.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि विराट सई को जमकर खरीखोटी सुनाएगा. सई विराट को धमकी देगी कि अगर विराट उसकी बात नहीं मानेगा तो वो बच्चा लेकर कहीं चली जाएगी. शो में सई बच्चे को लेकर भाग जाएगी. इसके बाद 8 साल का लीप आएगा.

 

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Anupamaa: वनराज ने ‘कोमोलिका’ बनकर दिखाया अपना तेवर, देखें Video

स्टार प्लस का टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) लगातार सुर्खियों में बना है. कुछ दिन पहले ही शो से पुराने समर की छुट्टी हो गई. जिसके बाद कहानी में कई बड़े बदलाव देखने को मिला.

इसी बीच अनुपमा का वनराज यानी सुधांशु पांडे का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में कोमोलिका बनकर धमाल मचाते दिखाई दे रहे हैं. सुधांशु पांडे का ये वीडियो एक फैन ने बनाया है.

 

इस वीडियो में वनराज को मूछों वाली कोमोलिका बना दिया है. सुधांशु पांडे का ये वीडियो देखकर लोग अपनी हंसी पर कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं. इस वीडियो पर कमेंट करते हुए एक यूजर ने लिखा, ये तो परम मूंछ सुदरी है. वनराज का इतने सुंदर रुप के बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था. तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, वनराज तो बहुत ही खूबसूरत लग रहा है.

 

शो में दिखाया जाएगा कि एक्सीडेंट के बाद अनुज पैरालाइज हो जाएगा. ऐसे में अनुपमा अकेली पड़ जाएगी तो दूसरी तरफ बरखा अनुज की प्रॉपर्टी हड़पने की कोशिश करेगी लेकिन अनुपमा घर के साथ साथ अपने बिजनेस को भी संभालेगी. छोटी अनु अनुपमा का साथ देगी.

रिपोर्ट के अनुसार जल्द ही शो से तोषु का पत्ता साफ हो जाएगा. बताया जा रहा है कि एक एक्सीडेंट में तोषु की मौत हो जाएगी.

ताकि न हों मोटापे के शिकार महिलाएं

ढाई साल पहले कोरोना की पहली लहर जब भारत में आई तब सभी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रौम होम करने का निर्देश दिया. महामारी के चलते यह समय की मांग भी थी. अपनी कंपनी से मिले निर्देश के बाद दिल्ली के कनाट प्लेस में काम करने वाली रजनी भी घर से काम करने लगी. शुरूशुरू में घर से काम करना एक्साइटेड लग रहा था, लेकिन धीरेधीरे वर्क फ्रौम होम के चलते रजनी की जीवनशैली में नकारात्मक बदलाव आने लगे.

दरअसल, चुस्तफुरतीली रजनी पहले जब औफिस जाती थी तो काफी ऐक्टिव रहती थी. वह जल्दी उठ कर घर की साफसफाई करती, फिर नहाधो कर अपने लिए टाइम पर हैल्दी खाना बनाती. वह अच्छे ट्रैंडी और स्टाइलिश कपड़े पहनती जो उस की फिगर पर जमते. सुंदर काया वाली रजनी चेहरे पर फबने वाला हलका मेकअप करती. वह ठीक 9 बजे सुभाष नगर से ब्लूलाइन मैट्रो पकड़ती और मेट्रो से उतरने के बाद औफिस के लिए हमेशा 10 मिनट वौक का सहारा लेती.

शरीर को ऐक्टिव रखने के लिए वह ऐसा करती. हमेशा 3 फ्लोर ऊपर चढ़ने के लिए लिफ्ट के बजाय सीढि़यों से जाती. वह अपने शरीर पर ध्यान देती.

तकरीबन 2 साल तक वर्क फ्रौम होम करने के चलते रजनी मोटापे का शिकार होने लगी. उस की करीने से ढली कमर में

2 राउंड टायर दिखने लगे. ठुड्डी में चिन दिखने लगी जिस से उस का तीखा चेहरा गोल आकार लेने लगा. उस का बौडी शेप गड़बड़ा गया.

वह वर्क फ्रौम होम के चलते सुबह अधिकतर देर से उठने लगी थी. देररात सीरीज और फिल्में देखने के चलते देर से सोती. सुबह तब उठती जब औफिस टाइम शुरू होता. ऐसे में न हैल्दी खाना बनाने की, न टाइम पर नहानेधोने की फिक्र रहती. भूख लगी तो बाहर से फास्ट फूड और्डर कर दिया.

हमारी तेजी से बदलती शहरी जीवनशैली में मोटापा यानी ओबेसिटी की समस्या बढ़ती जा रही है. 2018 में ‘इंडियाज बिग प्रौब्लम’ नाम से आई रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में 56 प्रतिशत लोग मोटापे के शिकार हैं.

लोगों में इस तरह से वजन का बढ़ना एक चिंताजनक स्थिति है. मोटापे की यह समस्या न केवल हमारे जींस (आनुवंशिकता) से जुड़ी है बल्कि यह हमारे पर्यावरण और खराब जीवनशैली से भी जुड़ी है. दुनियाभर में मोटापे से पीडि़त लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. मुख्यतया मोटापा बढ़ने के 3 कारण माने जाते हैं.

  1. अस्वस्थ जीवनशैली : ज्यादा तेलयुक्त आहार और जंक फूड के सेवन से शरीर में कैलोरी जमा होती रहती है. रोज अस्वास्थ्यकर भोजन खाने वाले और नियमित व्यायाम न करने वाले के शरीर में चर्बी एकत्र होनी शुरू हो जाती है. यह मोटापे का सब से कौमन कारण बनता है.
  2. मैडिकल कारण : पीसीओडी, हाइपोथायौडिज्म और कुशिंग सिंड्रोम जैसी हार्मोनल समस्याओं की वजह से भी मोटापा जैसे रोग बढ़ जाते हैं. हार्मोन के अलावा, कुछ दवाओं जैसे स्टेरौयड या एंटीसाइकोटिक्स के सेवन से भी वजन पर असर पड़ता है.
  3. आनुवंशिक कारण : पारिवारिक या आनुवंशिक कारणों की वजह से भी मोटापे का खतरा रहता है. इस का मतलब जन्मजात रोग की वजह से शिशु में बचपन से ही मोटा होने की प्रवृत्ति होती है. यह रोग अत्यधिक भूख से भी जुड़ा हो सकता है.

आमतौर पर मोटापा गलत खानपान और जीवनशैली के चलते होता है. इसलिए इसे लाइफस्टाइल डिजीज भी कहा जाता है. साथ ही, मोटापे की समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए ज्यादा हानिकारक है. अधिक वजन वाले पुरुषों की तुलना में अधिक वजन वाली महिलाओं के स्वास्थ्य में गिरावट की दर 4 गुना तेज होती है. केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार अधिकतर राज्यों में मोटापे में बढ़ोत्तरी हुई है.

राष्ट्रीय स्तर पर मोटापा महिलाओं में 21 प्रतिशत से बढ़ कर 24 प्रतिशत और पुरुषों में 19 प्रतिशत से बढ़ कर 23 प्रतिशत हो गया है. केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पंजाब, चंडीगढ़ और लक्षद्वीप

(34-46 प्रतिशत) में एकतिहाई से अधिक महिलाएं अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं.

महिलाओं में मोटापे के कारण कई शारीरिक और मानिसक समस्याएं हो सकती हैं. इस की वजह से डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर, कौलेस्ट्रौल और हार्ट हैल्थ प्रभावित हो सकती है. साथ ही इस से चलने, उठने और अपने दैनिक कामों में भी महिलाओं को बहुत परेशानी आती है. थोड़ी दूर चलने या दौड़ने पर महिलाओं की सांस फूलने लगती है.

अधिक मोटापे के कारण महिलाओं में अनिद्रा, तनाव और चिंता जैसी मानसिक समस्याएं देखने को मिलती हैं. बहुत बार उन्हें बां?ापन की समस्या भी ?ोलनी पड़ जाती है. साथ ही इस से आत्मविश्वास की कमी भी आती है. मोटापे के कारण महिलाएं अपने लुक और शरीर को ले कर अंदर से कौन्फिडैंट महसूस नहीं करती हैं और किसी के सामने अपनी बात रखने में हिचकिचाती हैं.

‘पीयर’ शेप की महिलाओं में अकसर फैट उन के नितंबों यानी कूल्हों पर जमता है. इस शेप की महिलाओं के कंधे और चैस्ट हिप्स की तुलना में संकरे होते हैं. इस के अलावा इस शेप की महिलाओं की बांहें थोड़ी पतली होती हैं. एप्पल शेप की महिलाओं में फैट उन की कमर के आसपास जमता है. अगर कमर 35 इंच से ज्यादा है तो वजन से स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना अधिक रहती है. महिलाओं को बढ़ते वजन या मोटापे के चलते कुछ तरह की बीमारियों से आमतौर पर गुजरना पड़ता है.

डिप्रैशन : मोटापे के चलते लगभग हर महिला डिप्रैशन का शिकार रहती है. जिस तरह से बाजार में महिला मौडल के बौडी शेप, उस की फिगर की ब्रैंडिंग की जाती है उस हिसाब से आम महिला के लिए उन से खुद की तुलना करना तनावपूर्ण होता है वह भी तब जब महिला मोटी हो. किशोरावस्था में कोई लड़की यदि मोटी है तो मोटापे के कारण वह अपने दोस्तों के सामने या अन्य जगहों पर भी खुद को कमतर सम?ाती है और अपने बढ़े वजन को ले कर शर्मिंदा महसूस करती है. किसी के मजाक उड़ाने या कुछ कह देने से महिलाओं के मन में वह बात जल्दी घर कर जाती है और वे चिंता व डिप्रैशन में डूब जाती हैं. कई बार महिलाएं भूखे रह कर अपना वजन कम करने की कोशिश करती हैं लेकिन इस से समस्या और बढ़ सकती है.

डायबिटीज : महिलाओं में मोटापे के कारण ब्लड में ग्लूकोज का लैवल बढ़ जाता है, जिस की वजह से रक्त में शुगर लैवल अधिक हो जाता है और इस से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है. साथ ही यह हृदय रोग और स्ट्रोक के खतरे का कारण भी बन सकता है. यह परेशानी और अधिक तब बढ़ सकती है जब आप शारीरिक गतिविधियां न करते हों या औफिस में बैठ कर काम करते हों.

हाई ब्लडप्रैशर : वजन अधिक बढ़ने से महिलाओं में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ जाता है और ब्लड सर्कुलेशन के लिए हृदय पर अधिक दबाव पड़ता है जिस से हृदय और रक्त वाहिकाओं दोनों को नुकसान पहुंच सकता है. इन सभी कारणों से ब्रेन हैमरेज का खतरा भी हो सकता है और मस्तिष्क की तंत्रिकातंत्र संबंधी समस्या भी हो सकती है.

हार्ट संबंधी बीमारियां : मोटापे के कारण हृदय संबंधी समस्याएं भी होती हैं. वजन बढ़ने के कारण कोलैस्ट्रौल के बढ़ने से हाई बीपी के कारण हार्ट अटैक की समस्या भी हो सकती है. इस के अलावा अनिद्रा, मूड स्विंग होना, गुर्दे की समस्या भी मोटापे से जुड़ती हैं.

मोटापे का इलाज संभव

मोटापे का इलाज 3 पड़ाव में किया जा सकता है. सब से अहम जीवनशैली में परिवर्तन है, बाकी मोटापे घटाने की दवा व सर्जरी भी इस का हिस्सा हैं.

जीवनशैली में परिवर्तन करना मोटापे से ग्रसित लोगों के लिए सब से जरूरी होता है. इस में तमाम जंक फूड, उच्च कार्ब्स, स्टार्चयुक्त, ज्यादा तेल में बना व क्रीमयुक्त बिलकुल नहीं खाना चाहिए. वहीं खाने में हरी सब्जियां, फल, प्रोटीनयुक्त आहार और मोटे अनाज का सेवन करना ठीक रहता है. साथ ही ज्यादा मात्रा में पानी पीना शरीर को हाईड्रेट रखता है.

इस के अलावा इस में शामिल है ऐक्सरसाइज करना, ऐक्टिव रहना, जिम जाना, वौक करना और उठने व सोने का समय नियमित करना. दवा वाले प्रोसैस में डाक्टर दवा या इंजैक्शन के माध्यम से शरीर में जमी चर्बी को घटाने का प्रयास करते हैं. साथ ही इस के सेवन से पाचन की गति को धीमा किया जाता है और भूख लगना कम होता है. वहीं, सर्जरी का सु?ाव कोई डाक्टर तभी देता है जब आप एक साल से वजन घटाने की कोशिश कर रहे हैं पर कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. इन तीनों प्रोसैस में सब से सुरक्षित जीवनशैली में बदलाव को माना जाता है. दवा व सर्जरी का इस्तेमाल खूब होता है पर इस के कुछ जोखिम अलगअलग रिपोर्ट से सामने हैं.

जरूरी यह है कि मोटापे को इग्नोर न करें, क्योंकि मोटापे का लेनादेना सिर्फ सुंदरता से नहीं है बल्कि अपीयरैंस से है. आमतौर पर मोटे लोगों को सुस्त और कामचोर सम?ा जाता है. उन से उम्मीद नहीं की जाती कि वे किसी काम में फुरती से चहलकदमी कर सकें. उन्हें सम?ा जाता है कि ये तो बीमारियों से पक्का ग्रस्त होंगे. ऐसे में मोटे लोगों के लिए मौके भी सिमट जाते हैं. नौकरी के समय भी लोग फिजिकल अपीयरैंस देखते हैं, उसी आधार पर काम देते हैं. महिलाओं को न सिर्फ स्वास्थ्य या सुंदरता के लिहाज से मोटापे को खत्म करना चाहिए बल्कि नए अवसरों की तलाश के लिए भी मोटापे को खत्म करना चाहिए.

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