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Rakhi 2022: ‘अक्षरा’ से लेकर ‘किंजल’ तक, सबके पास होनी चाहिए ऐसी 5 बहनें

भाई-बहन का ही एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसमें नोक-झोक के बावजूद भी दोनों मुश्किल वक्त में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं. इस रिश्ते की खूबसूरती को टीवी सीरियल में काफी अच्छे से दिखाया जा रहा है तो आज आपको रक्षाबंधन स्पेशल में सीरियल के ऐसे पांच फेवरेट कैरेक्टर्स बारे में बताएंगे.  जिन्हें  फैंस खूब पसंद करते हैं.  हर कोई चाहता है कि इन कैरेक्टर्स की तरह ही उनका भी रिश्ता मजबूत हो. आइए बताते हैं टीवी के पांच भाई-बहनों के बारे में जो इस रिश्ते का किरदार बखूबी निभा रहे हैं.

  1. अक्षरा निभाती है हर कदम पर बहन होने का फर्ज

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अक्षरा और आरोही सौतेली बहनें हैं. इस शो में दिखाया गया है कि आरोही अपनी बहन की खुशियों पर ग्रहण लगाती है लेकिन अक्षरा अपनी सौतेली बहन का हर कदम पर साथ देना चाहती है. वह उसकी गलतियों को भुलाकर बहन होने का फर्ज निभाती है.

 

2. इमली: सौतेली बहन के लिए इमली ने दी प्यार की कुर्बानी

इस सीरियल में इमली का किरदार सुम्बुल तौकीर खान निभा रही हैं. शो में दिखाया गया है कि इमली गांव की रहने वाली है. आदित्य से शादी करने के बाद वह शहर जाती है. शहर आकर इमली पढ़ाई करती है और अपनी एक नई पहचान बनाती है. लेकिन जब उसे पता चलता है आदित्य की पत्नी मालिनी उसकी बहन है, ऐसे में वह अपना हक छोड़ना चाहती है. आदित्य की पहली पत्नी होने के बावजूद भी इमली चाहती है कि उसकी बहन मालिनी को सारे अधिकार मिले और वह खुश रहे.

 

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3.  गुम है किसी के प्यार में: सई ने अपनी ननद के लिए उठाई आवाज

शो में सई का किरदार आयशा सिंह निभा रही हैं. वह चौहान परिवार के दिल में अपनी खास जगह बनाने में कामयाब हो रही है. शो में सई का कोई भाई नहीं है लेकिन वह अपनी ननद देवयानी और देवर मोहित का हर मोड़ पर साथ देती है, हर कोई चाहेगा कि सई जैसी बहन हो!

 

4. अनुपमा: किंजल ने अपने देवर को माना छोटा भाई

स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल अनुपमा की किंजल भी एक आदर्श बहन है. हरकोई चाहता है कि बहन हो तो किंजल जैसी. जो प्यारी हो और सबका ख्याल रखती है. किंजल मॉडर्न होते हुए भी अपने रिश्ते और परंपरा को नहीं भूलती है. शो में समर के साथ किंजल का रिश्ता है, वो तो बहुत प्यारा है. वह अपने देवर समर को छोटे भाई जैसा ट्रिट करती है. हर कोई चाहता है कि  किंजल और समर जैसा भाई-बहन का रिश्ता हो.

 

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5. उड़ारिया: तेजो ने धोखेबाज बहन का भी दिया साथ

अब बात करते है तोजो यानी प्रियंका चौधरी की. कलर्स का मशहूर सीरियल उड़ारिया में प्रियंका चौधरी तेजो का  किरदार निभा रही हैं. शो में तेजो का कैरेक्टर बेहद प्यारा है. तेजो जिस तरह से अपने परिवार और भाई-बहन के हमेश लिए खड़ी रहती है, वह एक मिशाल है. तेजो की बहन ही उसे पीठ पिछे धोखा देती है लेकिन वह अपनी बहन का साथ कभी नहीं छोड़ती.

 

टीवी के ये कैरेक्टर्स बहुत ही प्यारे हैं. हर कोई चाहता है कि उनकी जिंदगी में इसी तरह की बहनें हो. हमारी तरफ से आप सभी को हैप्पी रक्षाबंधन.

ब्लैकमेल: आखिर क्यों वह मीरा की छवि खराब करना चाहता था?

आज मीरा की शादी हो रही होती यदि उस के एक सहकर्मी ने उस की जिंदगी में जहर न घोल दिया होता. अपने मोबाइल पर कैलेंडर चैक करते हुए उस ने देखा, आज के दिन उस ने कैलेंडर में सैट कर रखा था,‘नए जीवन में प्रवेश.’ पर नए जीवन में प्रवेश का सपना सपना ही रह गया. और ऐसा हुआ एक सहकर्मी के कारण जिसे वह अपना करीबी दोस्त मानती थी. उस के मानस पटल पर सारी घटना चलचित्र की भांति आती चली गई…

मीरा के मोबाइल की घंटी बजी थी. उस ने मोबाइल उठा कर देखा था,‘आशीष कौलिंग…’

“हैलो, आशीष गुड मौर्निंग,” उस ने मोबाइल औन कर कहा.

“गुड मौर्निंग मीरा. कैसी हो?” आशीष ने पूछा. उस की आवाज में वह खनक नहीं थी जो हमेशा रहती थी.

“ठीक हूं, अपना बताओ. सुबहसुबह कौल किया रविवार के दिन? और तुम कुछ चिंतित मालूम हो रहे हो. सब खैरियत तो है न…”

“एक बैड न्यूज है,” आशीष ने चिंतित स्वर में कहा.

“क्या?” मीरा के मन में कई आशंकाएं जन्म ले चुकी थीं. कोई दुर्घटना हुई क्या, किसी की मौत हो गई क्या?”

“मेरे इंस्टाग्राम पर किसी ने तुम्हारी आईडी से तुम्हारा न्यूड फोटो भेजा है. कह नहीं सकता कि यह तुम्हारी फोटो है या फोटोशौप से बनाई गई. पर जिस ने भी भेजा है जरूर वह तुम्हारा अहित करने की फिराक में है और कई लोगों को इस तरह के फोटो भेज रहा होगा. पहले भी 1-2 लोग दबे स्वर में तुम्हारे अश्लील व्यवहार की बातें कर रहे थे. पहले तो मैं ने उन की बातों पर ध्यान नहीं दिया पर इंस्टाग्राम पर तुम्हारे द्वारा भेजे गए अश्लील फोटो और संदेश से मैं समझ गया कि वे क्यों ऐसी बातें कर रहे थे. जरूर किसी ने तुम्हारा आईडी हैक किया है,” आशीष एक ही सांस में बोल गया.

“क्या? मुझे वह फोटो फौरवर्ड करो तो,” मीरा का दिल धक से रह गया.

सुना तो था उस ने कि लोगों के आईडी हैक कर सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया जाता है पर कभी सोचा न था कि उस के साथ भी कभी ऐसा होगा.

“फोटो फौरवर्ड करने की आवश्यकता नहीं है, तुम अपना इंस्टाग्राम चैक करो, उस में सैंड मैसेज पर यह दिख जाएगा,“ आशीष ने कहा.

“मैं अभी चैक करती हूं, ”कह कर मीरा ने मोबाइल डिसकनैक्ट कर दिया.

मीरा सोशल मेडिया पर थी तो जरूर पर सक्रिय नहीं थी. उस की रुचि सोशल मीडिया में कुछ खास नहीं थी. कुछ ही पल में मीरा ने इंस्टाग्राम पर अपना आईडी चैक किया. कई लोगों के मैसेज पड़े थे उस पर. उस के आईडी से उस के कई परिचितों को उस का अश्लील फोटो भेजे गए थे. फोटो देख कर चौंक गई मीरा. यह निश्चित रूप से उस का फोटो नहीं था. किसी ने उस के चेहरे को किसी अश्लील चित्र के साथ जोड़ दिया था. पर किस ने और क्यों, वह समझ नहीं पाई.

फिर उस ने अपना फेसबुक खाता देखा. वहां भी यही स्थिति थी. कई ऐसे चैट थे जो उस ने किए ही नहीं थे. कई करीबी मित्रों ने चैट के जवाब में उसे सलाह भी दी थी कि उस का यह व्यवहार ठीक नहीं है और उस के लिए यह बड़ा ही विनाशकारी साबित होगा. पर कुछ ने काफी रस लिया था और जिस किसी ने हैक किया था उस के अकाउंट को उस ने भी वैसा ही जवाब उस की ओर से दिया था.

शाम तक एक और झटका लगा उसे जब उस के मंगेतर मनोज ने फोन कर बताया कि वह सगाई तोड़ रहा है. वह कुछ पूछ पाती इस से पहले ही उस ने फोन डिसकनैक्ट कर दिया. निश्चित रूप से यह इस अश्लील फोटो के कारण ही था. उस ने मनोज को समझाने के लिए फिर से फोन किया पर मनोज ने पहले तो फोन को डिसकनैक्ट कर दिया और बाद में उसे ब्लौक कर दिया.

इस का मतलब साफ है कि मनोज को भी किसी ने वह फोटो भेज दिया है. पर वह कौन हो सकता है? एकाएक उसे खयाल आया कि आज से 2 महीने पहले उस का सहकर्मी सुरेश ने उस से शादी का प्रस्ताव रखा था. सुरेश से उस की अच्छी बनती थी. वह उसे अपने दोस्त के रूप में देखती थी और बड़ी बेबाकी से उस के साथ पेश आती थी. औफिस में तो उस के साथ काम करती ही थी, कभीकभी बाहर कौफी पीने या स्नैक्स लेने भी जाया करती थी. पर वह सुरेश को सिर्फ और सिर्फ एक अच्छे सहकर्मी के रूप में देखती थी. शायद सुरेश के मन में उस के प्रति आकर्षण हो गया था. मजाक ही मजाक में वह कई बार उसे इशारा भी कर चुका था. पर वह उस के हर बात को मजाक में टाल दिया करती थी.

एक दिन सुरेश ने बड़ी ही गंभीरता से उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा था. पहले हंसी थी मीरा. पर जब सुरेश को गंभीर देखा तो उस ने साफसाफ कहा था, “देखो सुरेश, मैं तुम्हें एक अच्छे सहकर्मी के रूप में देखती हूं. तुम्हारे साथ शादी के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती.”

“लेकिन क्यों? कितना खुश रहते हैं हम साथसाथ. और मैं वादा करता हूं कि तुम्हें हमेशा खुश रखूंगा,“ गंभीरतापूर्वक कहा था सुरेश ने.

“क्यों का कोई जवाब नहीं है मेरे पास. पर मित्रता और शादी 2 अलगअलग मामले हैं. मैं ने समझा था कि तुम मजाक कर रहे हो. पर मैं देख रही हूं कि तुम गंभीर हो. मैं भी पूरी गंभीरता के साथ कह रही हूं कि मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. हां, दोस्त हम सदा के लिए रहेंगे.”

उस दिन के बाद सुरेश उस का दोस्त भी नहीं रह गया था. वह उस से दूरदूर रहने लगा था. पहले उस ने उसे समझाने की कोशिश की थी, पर जब सुरेश नहीं माना तो उस ने उसे अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया. औफिस के काम से सिर्फ काम भर का संपर्क रह गया था उस से. पहले की तरह साथसाथ घूमना, हंसनाबोलना नहीं होता था. करीब 6 महीने बीत गए होंगे इस बात को.

नजदीकी पुलिस स्टेशन में जा कर मीरा ने रिपोर्ट लिखवाई थी और सुरेश पर संदेह जताया था. पुलिस ने जांच की तो पता चला कि उस ने ही किसी को पैसे दे कर उस के इंस्टाग्राम और फेसबुक खाते को हैक करवा कर उस की ओर से अश्लील फोटो और संदेश भेज दिया था, जिस के कारण न सिर्फ उस की बदनामी हुई थी बल्कि उस की सगाई भी टूट गई थी.

ऐसे भी सहकर्मी होते हैं दुनिया में जो साथसाथ काम करते हैं और अपनी बात नहीं मानने पर किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो जाते हैं. उस का जीवन तो उस ने बिगाड़ ही दिया है. खुद भी पुलिस से भागाभागा फिर रहा है. अपनी जिंदगी भी बिगाड़ ली है उस ने.

अपने मोबाइल के कैलेंडर से उस ने ‘नए जीवन में प्रवेश’ विवरण को डिलीट कर दिया और आह भर कर मोबाइल को एक ओर रख दिया. पर इतना ही काफी नहीं था. सुरेश को उस के किए की सजा मिलनी ही चाहिए और वह इस के लिए कोई न कोई उपाय जरूर करेगी. सब से पहला उपाय तो यह है कि पुलिस को उस का पता बताना होगा. सुरेश ने सोशल मीडिया के द्वारा उसे बदनाम किया है तो वह उसे उस के पुराने संबंध को आधार बना कर उसे पकड़वाएगी.

जब सुरेश से उस की दोस्ती थी तो वह उस के साथ सबकुछ शेयर करता था और उसे पता था कि अभी वह कहांकहां हो सकता है. उस ने आशीष को कौल किया, “आशीष, मेरी सहायता करो. मुझे अंदाजा है कि सुरेश अभी कहां हो सकता है. बस, तुम एक बार देखो वह उन स्थानों में से कहां छिपा है. जैसे ही पता चले मुझे फोन करना. मैं पुलिस को ले कर आऊंगी.”

“जरूर, जहां तक संभव होगा मैं सहायता करूंगा,” आशा के अनुसार आशीष ने कहा.

पहले 2 जगहों पर तो सुरेश नहीं मिला पर तीसरे जगह वह मौजूद था. वह स्थान उस का ननिहाल था. आशीष ने वहां से उसे फोन कर उसे बता दिया. मीरा ने पुलिस को जानकारी दी और आननफानन में सुरेश थाने में था. सुरेश अपने किए पर पछतावा कर रहा था और मीरा से हाथ जोड़ कर माफी मांग रहा था. वह आगे से ऐसी गलती न करने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा कर केस वापस करने के लिए अनुरोध करने लगा. पर मीरा अपने फैसले पर दृढ़ थी.

मामले की चर्चा सभी ओर होने लगी तो उस के पूर्व मंगेतर की समझ में बात आई कि उस ने मीरा के साथ गलत व्यवहार किया है. उस ने अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी और शादी करने की इच्छा जताई. पर मीरा का दृष्टिकोण साफ था,” मनोज, जो व्यक्ति अपनी होने वाली पत्नी पर विश्वास नहीं कर सकता, उस की बात सुने बिना उसे ब्लौक कर सकता है, उस के साथ जीवन बिताना मेरे लिए संभव नहीं है. तुम अपनी पसंद की लड़की ढूंढ़ लो और मुझे माफ करो.”

वर्षा ऋतु में प्याज उगाकर कमाएं ज्यादा मुनाफा

 डा. एसपी सिंह, डा. एसके तोमर, शैलेंद्र सिंह, डा. एसके सिंह, डा. कंचन

आमतौर पर प्याज की खेती रबी मौसम में की जाती है, पर खरीफ में भी प्याज का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है, बशर्ते उचित प्रबंधन और खरीफ मौसम में उगाने वाली प्रजातियों का चयन सही तरीके से किया जाए.

भूमि व खेत की तैयारी

प्याज की खेती बलुई दोमट भूमि व दोमट भूमि में की जाती है, जिस में कार्बनिक पदार्थों की पर्याप्त मात्रा हो. भूमि के चयन के साथसाथ खेत का चयन भी महत्त्वपूर्ण है.

प्याज की खेती ऐसे खेतों में ही की जाए, जिन में जल निकास की उचित सुविधा हो और वर्षा का पानी खेत में जमा न होने पाए.

भूमि की गहरी जुताई के बाद रोपाई करने के लिए 2-3 जताई कल्टीवेटर से कर के भुरभुरा बना लेना चाहिए.

खरीफ में उगाने वाली प्रजातियां

एग्रीफाउंड डार्क रैड : यह किस्म रोपाई के 90 से 110 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इस की औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.

एन-53 : यह किस्म रोपाई के 110 से 120 दिन में तैयार होती है और 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है.

अर्का निकेतन : यह किस्म 120 से 125 दिन बाद तैयार हो जाती है और तकरीबन 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है.

अर्का कल्याण : यह रोपाई के 110 से 115 दिनों में तैयार होती है और 325 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार देती है.

पौध तैयार करने का समय व विधि

उक्त प्रजाति का चयन कर जुलाई के पहले हफ्ते तक नर्सरी की बोआई कर दें. देरी से बोआई करने पर उत्पादन प्रभावित होता है.

नर्सरी के लिए उपजाऊ, उपयुक्त जल निकास व सिंचाई की सुविधायुक्त भूमि का चयन करना चाहिए.

लगभग 3 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की पौध तैयार करने की जरूरत होती है. 3 मीटर लंबी और 1 मीटर चौड़ी व 15 सैंटीमीटर ऊंची नर्सरी बैड में 30 ग्राम बीज की बोआई करने से स्वस्थ पौध तैयार होती है. खरीफ  प्याज की नर्सरी बीज बोने से 45 से 50 दिन में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.

खाद व उर्वरक

प्रति एकड़ क्षेत्रफल के लिए 100 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिला देनी चाहिए. इस के अलावा 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 25 किलोग्राम पोटाश के साथ 10 किलोग्राम सल्फर बेंटोनाइट का प्रयोग करने से प्याज के बिल्व अच्छे आकार के बनते हैं.

नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा रोपाई से पहले और बाकी बची मात्रा को 2 बराबर भागों में बांट कर रोपाई के 30 और 45 दिन बाद टौप ड्रैसिंग के समय देनी चाहिए.

रोपण की दूरी

तैयार पौध की रोपाई लाइन से लाइन

15 सैंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी

10 सैंटीमीटर पर करने से प्याज के बिल्वों का विकास अच्छा होता है.

खरपतवार पर नियंत्रण

खरपतवार पर नियंत्रण पाने के लिए निकाईगुड़ाई सब से अच्छी विधा है. इस से भूमि में पोलापन आता है, जिस से प्याज के बिल्व बड़े आकार में बनते हैं.

खरपतवारनाशी के रूप में रोपाई के 2 से 3 दिन बाद तक पेंडीमैथलीन 3.3 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी या औक्सीफ्लोरफेन 250 मिलीलिटर मात्रा 200 लिटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ छिड़काव करने से खरपतवारों पर नियंत्रण होता है.

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बेलीपार, गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसपी सिंह के अनुसार, खरीफ (वर्षा) ऋतु में प्याज की खेती करने से अच्छी आमदनी हासिल की जा सकती है, क्योंकि खरीफ में प्याज की रोपाई अगस्त महीने में करते हैं, तो यह नवंबरदिसंबर महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है.

आधारशिला: किस के साथ सफलता बांटनी चाहती थी श्वेता

क्या है सेरेब्रल पाल्सी

लकवा एक ऐसी बीमारी है जो बच्चे का पूरा जीवन खराब कर सकती है. ऐसे में बच्चे के मातापिता को इस बीमारी से जुड़ी कुछ बातों की जानकारी होना जरूरी है. इसलिए पेश हैं कुछ अहम सुझाव जो आप के बच्चे को स्वस्थ रखेंगे:

क्या है सेरेब्रल पाल्सी

इसे आम भाषा में बच्चों का लकवा या लिटिल डिजीज कहते हैं, क्योंकि इस के लक्षण लकवे से मिलते हैं.

पीडि़त बच्चों का प्रतिशत

भारत में 3-4% बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं.

बीमारी के लक्षण

– बच्चा 5 महीने का हो गया हो और अब तक गरदन नहीं संभाल पाता हो.

– 10 महीने का हो गया हो और बिना सहारे नहीं बैठ पाता हो.

– 15 महीने का हो गया और बिना सहारे खड़ा या चलफिर नहीं पाता हो.

– चलतेफिरते गिर जाता हो.

– एक हाथ और एक पैर से काम नहीं करता हो.

– शारीरिक वृद्धि उम्र के हिसाब से कम हो.

– किसी कार्य में ध्यान नहीं लगाता हो.

– साफ नहीं बोल पाता हो.

– क्या बच्चे की मांसपेशी काफी सख्त व खिंची हुई है?

– क्या बच्चे के हाथपैरों में किसी तरह का विकार (टेढ़मेढ़े) हैं?

– क्या बच्चा आंखें एक जगह नहीं टिकाता?

– क्या बच्चे के पैर में कंपन होता है?

– क्या आप के आवाज देने पर नहीं देखता?

– क्या बच्चे को उठाने पर वह पैरों को कैंची की अवस्था में कर लेता है?

सावधानियां

– पेट में बच्चे का मूवमैंट बराबर महसूस होना चाहिए. यदि मां को ब्लडप्रैशर, शुगर या थायराइड की शिकायत हो तो बराबर डाक्टर के संपर्क में रहें.

इस बीमारी में 70% बच्चे मंदबुद्धि होते हैं और 30% का आई क्यू लैवल नौर्मल होता है. बच्चे के जन्म के बाद जब हौस्पिटल से डिसचार्ज किया जाता है तो उस पर एसफेक्सिया लिखा रहता है. इस का मतलब होता है कि बच्चा 2 मिनट के अंदर रोया था या नहीं यानी उस के दिमाग में औक्सीजन पहुंची या नहीं.

इलाज की संभावना

वैसे तो सुधार किसी भी उम्र में संभव है पर 0 से 6 साल के बच्चों में सुधार तेजी से

आता है, इसलिए इसे अर्ली इंटरवैंशन पीरियड कहते हैं. वैसे तो लक्षण के आधार पर ही बीमारी का पता चल जाता है, फिर भी सीटी स्कैन या एमआरआई करवाई जा सकती है. ध्यान रखें कि पोलियो और सेरेब्रल पाल्सी बीमारियां अलगअलग हैं.

बीमारी के लक्षण दिखें तो तेल की मालिश बिलकुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि उस से जकड़न और बढ़ जाती है. इस रोग से ग्रस्त कुछ बच्चों में दौरा पड़ने की भी संभावना होती है. अत: लक्षण दिखने पर डाक्टर से संपर्क करें.

किन किन बातों का ध्यान रखें

– बच्चे की ऐक्टिविटीज चिकित्सक के निर्देशानुसार कराएं.

– यदि बच्चा सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त हो तो उसे पीछे पैरों (डब्ल्यू टाइप सीटिंग) में बिलकुल न बैठने दें.

– अंधविश्वासों व जुमलों जैसे सेवा करो, कुछ नहीं हो सकता, पैसा व समय बरबाद

मत करो, दूसरे बच्चों में ध्यान दो, इस का कोई इलाज नहीं, धीरेधीरे स्वत: ठीक हो जाएगा.

– ध्यान रहे स्वत: कुछ भी नहीं होता, काम करने से ही सफलता मिलती है. कहीं आप सोचते न रह जाएं और समय निकल जाए एवं बच्चा अपंग ही रह जाए. जिस तरह डायबिटीज, ब्लडप्रैशर आदि का इलाज है उसी तरह सेरेब्रल पाल्सी का भी है.

– बच्चे का वजन बढ़ने से ज्यादा उस के ऐक्टिव होने पर ध्यान दें.

– बच्चे के पहले 6 वर्ष अति महत्त्वपूर्ण हैं. इस समय बच्चे के उपचार पर पूर्ण ध्यान देने से काफी अच्छा परिणाम मिलता है.

– इलाज करने हेतु बारबार चिकित्सक बदलने की प्रवृत्ति से बचें.

– ऐक्टिविटीज कराने हेतु अस्पताल में लाने की कोशिश करें.

– ऐक्टिविटीज जल्दीबाजी में न करें.

– शरीर की तेल से मालिश बिलकुल न करें.

– यदि बच्चे की शारीरिक वृद्धि धीमी है, तो उसे नजरअंदाज न कर तुरंत चिकित्सक से मिलें.

– आशावादी सोच रख कर बच्चे के उपचार पर ध्यान दें यकीनन फायदा होगा.

– जो ऐक्टिविटीज आप नहीं कर पा रहे हैं उन्हें न कराएं और पुन: चिकित्सक से संपर्क करें.

– उपचार सामान्यतया लंबे समय तक चलता है और आराम धीरेधीरे आता है.

– उपचार के दौरान बच्चे में आए विकास को स्वयं महसूस करें व चिकित्सक से जानकारी लें. लोगों की बातों ध्यान न दें.

– डा. दीपक टाक, डायरैक्टर दीपक के.एम. अस्पताल, जयपुर, अजमेर

Rakhi 2022: अमित अपने बड़े भाई के लिए क्यों बदल गया

अमित ने बस्ता एक ओर फेंका और सुबकता हुआ बिस्तर पर औंधेमुंह लेट गया. मां ने देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘क्या हुआ अमित?’’

‘‘बड़ा आया अपने को बड़ा भाई समझने वाला, बड़ा है तो क्या हर समय मुझे डांटेगा,’’ सुबकते हुए अमित ने अपने बड़े भाई रवि की शिकायत की.

तभी रवि घर में घुसता हुआ बोला, ‘‘मां, आज फिर अमित आवारा लड़कों के साथ घूम रहा था. मैं ने इसे उन के साथ जाने से मना किया तो यह नाराज हो गया. मैं ने इसे कईर् बार कहा है कि वे अच्छे लड़के नहीं हैं, जैसी संगत होगी वैसी रंगत आएगी. संभल जाओ, इस बार तुम्हारे 10वीं के पेपर हैं, 2 महीने बचे हैं. अब भी साल भर की तरह मटरगश्ती में रहोगे तो अच्छे अंक कैसे आएंगे?’’

‘‘हां, तू तो जैसे बड़े अच्छे अंक लाया था न 10वीं में. मनचाहा सब्जैक्ट भी नहीं ले सका. तुझ से तो अच्छे ही अंक लाता हूं कम पढ़ने पर भी. बड़ा बनता है, बड़ा भाई,’’ अमित ने नाराजगी जताई.

‘‘मैं मनचाहा सब्जैक्ट नहीं ले पाया इसीलिए तो तुझे समझता हूं मेहनत कर. छोड़ ऐसे आवारा लड़कों की दोस्ती. मनचाहा सब्जैक्ट नहीं मिलेगा तो कैसे करेगा इंजीनियरिंग,’’ रवि ने समझाया.

‘‘हांहां, कर लूंगा, तू अपने काम से काम रख,’’ अमित ने झल्ला कर कहा.

‘‘नहीं बेटा, ऐसा नहीं कहते,’’ मां ने समझाया, ‘‘अगर वे गलत लड़के हैं तो उन का साथ ठीक नहीं, कल को किसी लफड़े में फंसे तो साथ रहने वाले का नाम भी खराब होता है  भले ही उस ने कुछ न किया हो.’’

‘‘औैर मां, वे लड़के तो क्लास से बंक मार कर कई बार सिनेमा देखने जाते हैं, कभी आवारा लड़कों की तरह आसपास अमरूद तोडेंगे. पता है पिछले महीने इस का दोस्त राजू बाहर घूमता लड़कियां छेड़ता पकड़ा गया था. कालोनी वाले उसे पकड़ कर लाए थे प्रिंसिपल के सामने और दूसरा, क्या नाम है उस का, मुन्ना, वह तो बातबात पर हाथापाई करने में गर्व समझता है. वह स्कूल बुलिंग में अव्वल है,’’ रवि ने स्पष्ट किया.

‘‘हां हैं, तो? हैं तो मेरे दोस्त ही न. तू घबरा मत. मैं इन के साथ रह कर भी गलत नहीं करूंगा, तू अपने काम से काम रख,’’ अमित बोला.

अमित और रवि दोनों भाई शहर के नामी स्कूल में पढ़ते थे. अमित 10वीं में था और उस का बड़ा भाई रवि 12वीं में. अमित बिगड़ैल दोस्तों की संगत में पड़ कर बिगड़ता जा रहा था. रवि बड़ा भाई होने के नाते उसे बारबार समझाता, लेकिन अमित के कान पर जूं न रेंगती. अभी परसों की तो बात थी. क्लास बंक कर अमित मुन्ना के साथ बाहर जाना चाहता था. स्कूल के गेट पर ड्यूटी देते 11वीं के छात्र से मुन्ना और अमित भिड़ गए. फिर गेट कूद कर दोनों बाहर भाग गए. एकाध घंटा मटरगश्ती करने के बाद वापस आए. तब तक प्रिंसिपल तक उन की शिकायत पहुंच चुकी थी. प्रिंसिपल ने मुन्ना के पिता को बुलाया था जबकि अमित के बड़े भाई रवि को उसी समय बुला कर हिदायत दी थी, ‘‘देखो, अमित आवारागर्दी, बुलिंग में आगे बढ़ता जा रहा है. इस का अंजाम आगे चल कर अच्छा नहीं होगा. इसे जिम्मेदार बनाओ, कुछ समझाओ. इस बार सिर्फ समझा रहा हूं. अगली बार पापा को बुलाऊंगा और स्कूल से निकाल दूंगा.’’

‘‘जी सर, मैं इसे समझा दूंगा. मैं इस की जिम्मेदारी लेता हूं. आइंदा यह ऐसा नहीं करेगा,’’ कह कर रवि ने अमित की जिम्मेदारी ली थी औैर किसी अन्य सजा से अमित को बचाया था.

इस के बाद भी जब घर आते समय अमित को समझाया तो ‘हूं’ कह कर अमित ने पल्ला झाड़ लिया. अमित ने मां को इस वाकेए से अवगत करवाया तो मां ने भी अमित को समझाया, लेकिन अमित उलटा बरस पड़ा, ‘‘वे मेरे दोस्त हैं. पता है वे दिलेर हैं इसलिए सब उन से डरते हैं. आज अगर 4 लड़के मुझे पीटने आ जाएं तो वही आगे दिखेंगे बचाने में, यह बड़ा भाई नहीं. खुद तो डरपोक है ही, औरों को भी डरपोक बनने की नसीहत देता है.’’ अमित की आवारगी बढ़ती ही जा रही थी. इधर पेपर नजदीक आ रहे थे. अमित पढ़ाई में भी पिछड़ रहा था, लेकिन वह किसी की मानने को तैयार न था. स्कूल में एक से पंगा हो जाए तो सभी गुंडागर्दी करने लगते, हौकीडंडे ले कर चल देते उन्हें पीटने, जिस कारण आसपास के स्कूलों के लड़कों से भी उन की दुश्मनी हो गई थी. अब तो अमित वैन में वापस घर भी न आता. रवि से कह देता, ‘मुझे तैयारी करने दोस्त के घर जाना है और थोड़ी देर बाद आऊंगा.’ फिर आवारगर्दी करते हुए 2-3 घंटे बाद वह घर आता.

स्कूल में फेयरवैल पार्टी थी. 10वीं वालों को 9वीं के बच्चे विदाई पार्टी दे रहे थे. 11वीं के बच्चों द्वारा 12वीं वालों को फेयरवैल पार्टी दी जानी थी, जो अगले हफ्ते थी. इस के बाद ऐग्जाम्स की तैयारी के लिए छुट्टियां हो जानी थीं.अमित घर से बड़ा हीरो बन कर निकला था. आज कुछ भी पहन कर आने की छूट थी. सो, अमित ने लैदर की जैकेट और जींस की पैंट पहनी औैर सुबह जल्दी यह कह कर निकला कि दोस्तों के साथ स्कूल जाऊंगा.  रवि के स्कूल पहुंचने के बाद भी वह स्कूल नहीं पहुंचा. काफी देर देखने के बाद रवि ने अमित के क्लासमेट रोहन से अमित के बारे में पूछा तो पता चला कि वह मुन्ना, राजू औैर अन्य दोस्तों के साथ गया है. वे किसी लड़की को छेड़ने के कारण झगड़ा कर बैठे हैं और हौकीडंडे आदि ले कर गए हैं उन्हें सबक सिखाने. रवि की तो ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे अटक गई. कहां सभी बच्चे पार्टी का लुत्फ उठा रहे हैं औैर उस का भाई अमित गुंडागर्दी में फंसा है. वह क्या करे समझ नहीं पा रहा था. तभी सामने से अमित अपने उन्हीं दोस्तों के साथ आता दिखा औैर आते ही वे सब ऐसा जताने लगे जैसे कोई किला फतेह कर आए हों, ‘‘आए बड़े मेरे दोस्त की गर्लफै्रंड को छेड़ने वाले,’’ अमित गर्व से कह रहा था.

अमित को देख रवि की जान में जान आई. वह अमित को ठीकठाक देख खुश था, लेकिन डांटने के लहजे में बोला, ‘‘प्रिंसिपल की डांट भूल गए लगता है. उस दिन वारनिंग भी मिली थी तुम्हें, मम्मीपापा भी अकसर समझाते हैं, मैं भी कई बार कह चुका हूं. तुम समझते क्यों नहीं? जरा सी ऊंचनीच हो गई तो सारा कैरियर चौपट हो जाएगा…’’ ‘‘अमित अपने भाई को समझा, हमें डराने की जरूरत नहीं. हम सब समझते हैं,’’ मुन्ना बीच में ही रवि की बात काटता हुआ बोला.

‘‘मुन्ना, तुम चुप रहो. मैं अपने भाई से बात कर रहा हूं. मैं इस का बड़ा भाई हूं, इस का भलाबुरा समझता हूं और मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इसे गलत रास्ते पर जाने से रोकूं.’’

‘‘रवि,’’ अमित चिल्लाया. उसे यह बात सब दोस्तों के सामने इंसल्ट लगी, ‘‘ये मेरे दोस्त हैं, इन्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं. घर चल कर कह लेना जो कहना है. अब जाओ अपनी क्लास में हमारी भी पार्टी शुरू होने वाली है, आया बड़ा भाई बन कर. हर बात में टांग अड़ाता रहता है.’’

रवि अपने पर खीजता हुआ वापस अपनी क्लास में चला गया. पार्टी शुरू हो गई. रवि की क्लास के एक लड़के राजन ने बताया कि आज उस के छोटे भाई अमित की क्लासमेट, जो उस के दोस्त राजू की गर्लफै्रंड भी है, को पास के स्कूल के एक लड़के ने छेड़ दिया था. वह पार्टी के लिए सजधज कर आ रही थी. वे सभी उन्हें सबक सिखाने गए थे. अमित और उस के साथी पार्टी में मशगूल थे, उधर वे उस स्कूल के जिस लड़के की पिटाई कर आए थे, उस ने बदला लेने की नीयत से कई लड़के इकट्ठे कर लिए थे और स्कूल से कुछ दूर एकत्र हो कर अमित और उस के साथियों के निकलने का इंतजार कर रहे थे. फेयरवैल पार्टी खत्म हुई तो सभी जाने को हुए. तभी किसी ने आ कर खबर दी कि स्कूल के बाहर पास वाले स्कूल के बहुत से लड़के लाठियां और हौकियां लिए अमित, मुन्ना व राजू का इंतजार कर रहे हैं. पिछले गेट से चले जाएं वरना खैर नहीं. उन में से एकदो के पास तो चाकू भी हैं.

खबर आग की तरह फैली औैर रवि के पास भी पहुंची. छुट्टी होते ही रवि अमित के पास जाने को हुआ. वह उसे साथ घर ले जाना चाहता था. किसी अनहोनी से आशंकित रवि अमित को ढूंढ़ रहा था, लेकिन अमित अपने दोस्तों के साथ उसी समय निकला था. सामने के स्कूल से कई लड़के हौकियां व डंडे लिए आते दिखे तो अमित के दोस्तों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई, वे पीछे से कब भाग लिए अमित को पता ही न चला. तभी सामने से आते लड़कों में से एक ने चाकू निकाला और अमित के पेट में घोंपने को हुआ कि तभी रवि वहां भागता हुआ पहुंच गया. उस ने यह सब देख लिया था.     स्थिति भांपते हुए रवि ने अमित को एक ओर धक्का दे दिया, जिस से चाकू अमित के बजाय रवि के पेट में जा घुसा.

रवि के खून बहने लगा. यह देख सभी लड़के नौ दो ग्यारह हो गए, अमित बड़े भाई को इस हाल में देख परेशान हो उठा. तभी वहां कुछ स्कूल के लड़के व स्थानीय निवासी एकत्र हो गए, जिन के सहयोग से रवि को पास के नर्सिंगहोम पहुंचा दिया गया. डाक्टर ने बताया कि रवि का काफी खून बह गया है और वह बेहोश है. खबर मिलते ही प्रिंसिपल व अन्य छात्र भी नर्सिंगहोम पहुंच गए. कुछ छात्र आपस में फुसफुसा रहे थे, ‘‘देखा, बड़ा भाई, बड़ा ही होता है, जिन दोस्तों पर अमित को गुमान था सब भाग गए. मुसीबत में बड़े भाई ने ही अमित की जान बचाई.’’ अमित भी खुद पर खिन्न था. काश, उस ने बड़े भाई की बात मान ली होती. अब तो सब फंसेंगे. उधर चाकू मारने वाले लड़के को भी पुलिस पकड़ लाई थी, उस के कैरियर पर बात आ गई थी. पुलिस को रवि के होश में आने का इंतजार था ताकि उस का बयान ले सके और मामले में अभियुक्त को पकड़ सके.

उसी समय अमित के मम्मीपापा भी आ गए. सभी परेशान थे. अमित मां के गले लग उन के आंचल में अपना मुंह छिपाता दिख रहा था. पश्चात्ताप के आंसू रुक नहीं रहे थे. तभी डाक्टर ने आ कर बताया, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, रवि को होश आ गया है. आप बयान ले सकते हैं.’’ इंस्पैक्टर अंदर गए औैर थोड़ी देर बाद बाहर आ गए. आते ही उन्होंने अपने सिपाही को चाकू मारने वाले लड़के को छोड़ने का आदेश दिया और बताया, ‘‘रवि के अनुसार भागते समय गिर जाने से सड़क पर पड़ी कोई लोहे की पत्ती उसे लग गई थी. इस में किसी का कोई कुसूर नहीं, सो किसी पर कोई केस नहीं बनता.’’

रवि के बयान पर सब हैरान थे. वह चाहता तो अपने भाई पर हमला करने वाले को पकड़वा सकता था, लेकिन उस के इस बयान ने सब को बचा लिया था. अमित के आंसू बह निकले, वाकई रवि बड़ा भाई है, उस ने बड़ा भाई होने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है. तभी डाक्टर ने बताया, ‘‘आप रवि से मिल सकते हैं, लेकिन रवि का काफी खून बह गया है, उसे खून चढ़ाना पड़ेगा. डोनर की व्यवस्था करें.’’

‘‘मैं दूंगा अपने बड़े भाई को खून…’’ पीछे से आवाज आई. अमित ने देखा यह वही लड़का था जिस ने चाकू से अमित पर वार किया था, लेकिन रवि को लग गया था.

‘‘हां अमित, अगर तुम्हारा बड़ा भाई चाहता तो हम सब को फंसा सकता था. इस से हम पर केस चलता, हम 10वीं के पेपर भी नहीं दे पाते, सजा भी भुगतनी पड़ती. बुलिंग करते समय इस के अंजाम के बारे में हम ने नहीं सोचा था. रवि ने हमें न केवल सीख दी है बल्कि बड़ा भाई होने की जिम्मेदारी भी निभाई है. मैं संकल्प लेता हूं आज से बुलिंग बंद,’’ वह बोला. तभी मुन्ना और राजू आगे आए औैर बोले, ‘‘तुम ठीक कहते हो दोस्त. रवि ने जान पर खेल कर हमें यह सबक सिखाया है कि हम गलत राह पर चल रहे हैं और अपने ऐसे बयान से सब को बचा कर बता दिया है कि वह अमित का ही नहीं, हम सब का बड़ा भाई है. हम सब उसे खून देंगे और जल्द ठीक कर लेंगे, अब जिम्मेदारी निभाने की बारी हमारी हैं,’’ कहते हुए मुन्ना की भी आंखे भर आईं.

अमित अपने मम्मीपापा के साथ अंदर गया और रवि से लिपट कर रो पड़ा, ‘‘मुझे माफ कर दो भैया. मैं अच्छा बन कर दिखाऊंगा,’’ साथ ही उस ने बड़े भाई के पांव छू कर संकल्प लिया कि मम्मीपापा का सपना पूरा करेगा और अच्छी पढ़ाई कर के इंजीनियर बन कर दिखाएगा.

क्या मैं उस के नाजायज रिश्ते को चुपचाप सहन कर लूं ?

सवाल

मैं 32 साल का एक शादीशुदा मर्द हूं. मेरी शादी को 8 साल हो गए हैं. हाल ही में मुझे पक्की खबर लगी है कि मेरी पत्नी का हमारे एक पड़ोसी के साथ चक्कर चल रहा है. मैं इस बात से बहुत ज्यादा परेशान रहता हूं.  मैं अपनी पत्नी से बहुत ज्यादा प्यार करता हूं. वह सरकारी नौकरी करती है और बढि़या तनख्वाह पाती है. उसे छोड़ने पर मुझे बहुत ज्यादा नुकसान होगा. क्या मैं उस के नाजायज रिश्ते को चुपचाप सहन कर लूं या उस से बात करूं?

जवाब

सरकारी नौकरी… तगड़ी पगार… बेवफा बीवी… इस के बाद भी बेइंतिहा  प्यार… पत्नी की बेवफाई  तो आप को बरदाश्त करनी पड़ेगी और इस के लिए जो कलेजा चाहिए वह आप में है. आम खाएं पेड़ न गिनें, लेकिन यह बहुत आसान भी नहीं होता. इस पक्की खबर का सोर्स अगर कच्चा हुआ तो…? बेवजह खुद का खून न जलाएं. पहले पक्का कर  लें, खुद अपनी आंखों से देख लें. अगर यह वहम है, तो इस का खत्म हो जाना ही आप के भले की  बात है.  एक पुरानी कहावत है कि दुधारू गाय की लात तो बरदाश्त करनी पड़ती है. इसलिए जब तक बने बरदाश्त करते रहें, लेकिन एक बार पत्नी से इस बारे में बात जरूर करें. अगर वाकई वह किसी और से प्यार करने लगी है, तो जाहिर है कि वह जज्बाती और जिस्मानी तौर पर आप से संतुष्ट नहीं है. इन कमियों को दूर करने की कोशिश करें, बात बन भी सकती है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

Rakhi 2022: सत्य असत्य- क्या निशा चरित्रहीन थी?

कर्ण के एक असत्य ने सब के लिए परेशानी खड़ी कर दी. जहां इसी की वजह से हुई निशा के पिता की मौत ने उसे झकझोर कर रख दिया, वहीं खुद कर्ण पछतावे की आग में सुलगता रहा. पर निशा से क्या उसे कभी माफी मिल सकी?

घर की तामीर चाहे जैसी हो, इस में रोने की कुछ जगह रखना.’ कागज पर लिखी चंद पंक्तियां निशा के हाथ में देख मैं हंस पड़ी, ‘‘घर में रोने की जगह क्यों चाहिए?’’

‘‘तो क्या रोने के लिए घर से बाहर जाना चाहिए?’’ निशा ने हंस कर कहा.

‘‘अरे भई, क्या बिना रोए जीवन नहीं काटा जा सकता?’’

‘‘रोना भी तो जीवन का एक अनिवार्य अंग है. गीता, अगर हंसना चाहती हो तो रोने का अर्थ भी समझो. अगर मीठा पसंद है तो कड़वाहट को भी सदा याद रखो. जीत की खुशी से मन भरा पड़ा है तो यह मत भूलो, हारने वाला भी कम महत्त्व नहीं रखता. वह अगर हारता नहीं तो दूसरा जीतता कैसे?’’

निशा के सांवले चेहरे पर बड़ीबड़ी आंखें मुझे सदा ही भाती रही हैं, और उस से भी ज्यादा प्यारी लगती रही हैं मुझे उस की बातें. हलके रंग के कपड़े उस पर बहुत सजते हैं.

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘ये मशहूर शायर निदा फाजली के विचार हैं और मैं इन से पूरी तरह सहमत हूं. गीता, यह सच है, घर में एक ऐसा कोना जरूर होना चाहिए जहां इंसान जी भर कर रो सके.’’

‘‘तुम्हारा मतलब है, जैसे घर में रसोईघर, सोने का कमरा, अतिथि कक्ष, क्या वैसा ही? मगर इतनी महंगाई में कैसे होगा यह सब? सुना है, राजामहाराजा रानियों के लिए कोपभवन बनवाते थे. क्या तुम भी वैसा ही कोई कक्ष चाहती हो?’’

शायद मेरी बात में छिपा व्यंग्य उसे चुभ गया. उस ने किताबें संभालीं और उठ कर चल दी.

मैं ने उसे रोकना चाहा, मगर वह रुकी नहीं. पलभर को मुझे बुरा लगा, लेकिन जल्द ही नौर्मल हो गई.

मैं एमए के बाद बीएड कर रही थी. इसी सिलसिले में निशा से मुलाकात हो गई थी. पहली ही बार जब वह मिली, तभी इतनी अच्छी लगी थी कि कहीं गहरे मन में समा सी गई थी. पिता के सिवा उस का और कोईर् न था. पिता ही उस के सब थे. मैं उन से मिली नहीं थी, परंतु उन के बारे मैं इतना कुछ जान लिया था, मानो बहुतकुछ देखापरखा हो.

निशा के पिता विज्ञान के प्राध्यापक थे. लगभग 6 माह पहले ही उन का दिल्ली स्थानांतरण हुआ था.

‘‘आप इस से पहले कहां थीं?’’ एक दिन मैं ने पूछा तो वह बोली, ‘‘जम्मू.’’

‘‘बड़ी सुंदर जगह है न जम्मू. कश्मीर भी तो एक सुंदर जगह है. वहां तो तुम लोग जाती ही रहती होगी?’’

‘‘हां, बहुत सुंदर. कश्मीर तो अकसर जाते रहते हैं.’’

‘‘मगर तुम तो कश्मीरी नहीं लगतीं?’’

‘‘जानती हूं, दक्षिण भारतीय लगती हूं न, सभी हंसते हैं, पता नहीं क्यों. शायद मेरी मां सांवली होंगी. मगर मेरे पिता तो बहुत सुंदर हैं, कश्मीरी हैं न.’’

‘‘तुम्हारे भाईबहन?’’

‘‘कोई नहीं है. मैं और मेरे पिता, बस.’’

मां की कमी उसे खलती हो, ऐसा मुझे कभी नहीं लगा. वह मस्तभाव से हर बात करती थी.

एक दिन मेरे बड़े भैया ने मुझ से कहा, ‘‘कभी उसे घर लाना न, निशा कैसी है, जरा हम भी तो देखें.’’

‘‘अच्छा, लाऊंगी, मगर तुम इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो?’’ भाई को तनिक छेड़ा तो पिताजी ने कहा, ‘‘अरे भई, दिलचस्पी लेने की यही तो उम्र है.’’

कहकहों के बीच एक भीनी सी इच्छा ने भी जन्म ले लिया था कि क्यों न मैं उसे अपनी भाभी ही बना लूं. वैसे है तो सांवली, लेकिन हो सकता है, भैया को पसंद आ जाए. हां, मां का पता नहीं, उन का गोरीचिट्टी बहू का सपना है, क्या पता वे इस लोभ से ऊपर न उठ पाएं.

उसी दिन से मैं उसे दूसरी ही नजर से देखने लगी थी. कल्पना में ही उसे भैया की बगल में बिठा कर दोनों की जोड़ी कैसी लगेगी. गुलाबी जोड़े में कैसी सजेगी निशा, कैसी प्यारी लगेगी.

‘गीता, क्या देखती रहती हो?’ अकसर निशा के टोकने पर ही मेरी तंद्रा भंग होती थी.

‘कुछ भी तो नहीं,’ मैं हौले से कह उठती.

एक दिन मैं ने उस से कहा, ‘‘हमारे घर चलोगी? तुम्हें सब से मिलाना चाहती हूं. चलो, मेरे साथ.’’

‘‘नहीं गीता, पिताजी को अच्छा नहीं लगता. फिर इस शहर में हम नए हैं न, किसी से इतनी जानपहचान कहां है, जो…’’

‘‘क्या मेरे साथ भी जानपहचान नहीं है?’’

‘‘कभी पिताजी के साथ ही आऊंगी, उन के बिना मैं कहीं नहीं जाती.’’

एक दिन मैं उस के साथ उस के घर चली गई. वे विश्वविद्यालय की ओर से मिले आवास में रहते थे.

उन लोगों के पास 2 चाबियां थीं. घर पहुंचने पर द्वार उसे खुद ही खोलना पड़ा, क्योंकि उस के पिता अभी नहीं आए थे. पर सुंदर, व्यवस्थित घर में मैं ने उन का चित्र जरूर देख लिया. सचमुच वे बहुत सुंदर थे. किसी भी कोने से वे मुझे उस के पिता नहीं लगे, मगर बालों की सफेदी के कारण विश्वास करना ही पड़ा.

उस ने कहा, ‘‘पिताजी को फोन कर के बुला लूं. आज तुम पहली बार आई हो?’’

‘‘नहीं निशा, क्या यह अच्छा लगेगा कि मेरी वजह से वे काम छोड़ कर चले आएं? मैं फिर कभी अपने पिताजी के साथ आ जाऊंगी. दोनों में दोस्ती हो गई तो तुम्हें हमारे घर आने से नहीं रोकेंगे न.’’

‘घर में रोने को एक कोना उसे क्यों चाहिए? क्या उस के पिता ने किसी वजह से डांट दिया?’ घर आ कर भी मैं देर तक यह सोचती रही.

एक शाम भैया को

घर में प्रवेश करते

देखा तो कह दिया, ‘‘मेरे साथ निशा के घर चलो भैया, आज वह बहुत उदास थी. पता नहीं उसे क्या हो गया है.’’

‘‘तुम गौर से सुन लो, आइंदा उस से कभी मत मिलना. वह अच्छे चरित्र की लड़की नहीं है.’’

‘‘भैया,’’ मैं चीख उठी.

‘‘तुम उस के बहुत गुणगान करती थीं. अपने बाप के बिना वह कहीं जाती नहीं. अरे, दस बार तो मैं उसे एक लड़के के साथ देख चुका हूं.’’

‘‘लेकिन,’’ मैं भाई के कथन पर अवाक रह गई. फिर सोचते हुए पूछा, ‘‘आप ने निशा को कब देखा? जानते भी हो उसे?’’

‘‘जब से घर में उस के गुण गा रही हो, तभी से उसे देख रहा हूं.’’

‘‘कहां?’’

‘‘वहीं कालेज के बाहर. जब वह अपने घर जाती है, तब.’’

‘‘क्यों देखते रहे उसे?’’

‘‘झक मारता रहा, बस. और क्या कहूं,’’ भैया पैर पटक कर भीतर चले गए.

घर में मां और पिताजी नहीं थे, इसीलिए तमतमाई सी पीछे जा पहुंची, ‘‘आप सड़कछाप लड़कों की तरह उस का पीछा करते रहे? क्या आप अच्छे चरित्र के मालिक हैं? वाह भैया, वाह.’’

‘‘तुम ने ही कहा था न कि वह जहां जाती है, अपने पिता के साथ जाती है. यहां तक कि यहां तुम्हारे साथ भी नहीं आई.’’

‘‘हां, मैं ने कहा था, लेकिन यह तो नहीं कहा था कि…लेकिन आप इतने गंभीर क्यों हो रहे हैं? क्या वह किसी के साथ आजा नहीं सकती. भैया, आखिर उसे चरित्रहीन कहने का आप को क्या हक है?’’

‘‘हक क्यों नहीं है. मैं…मैं उसे पसंद करने लगा था. वह मुझे भी उतनी ही अच्छी लगती रही है, जितनी कि तुम्हें. पिछले कई हफ्तों से मैं उस पर नजर रख रहा हूं. वह लड़का उस के घर उस से मिलने भी जाता है. मैं ने कई जगह दोनों को देखा है.’’

पहली बार लगा, मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई. अगर उस का किसी के साथ प्रेम है भी, तो मुझे बताया क्यों नहीं.

मैं ने तनिक गुस्से में कहा, ‘‘भैया, अपने शब्द वापस लो. प्रेम करने और चरित्रहीन होने में जमीनआसमान का अंतर है. वह चरित्रहीन नहीं है.’’

‘‘कैसे नहीं है? तुम ने कहा था न.’’

‘‘मेरी बात छोड़ो. मैं तो यह भी कह रही हूं कि वह अच्छी लड़की है. मात्र मेरी बातों का सहारा मत लो. अपनी जलन को कीचड़ बना कर उस के चरित्र पर मत उछालो.’’

इतना सुनते ही भैया खामोश हो गए.

मैं निशा को ले कर बराबर विचलित रही. 2-3 दिन बीत गए, पर वह कालेज नहीं आई. मैं ने बहुत चाहा कि उस के घर जा कर उस युवक के विषय में पूछूं, पर हिम्मत ही न हुई.

?एक रात फोन की घंटी घनघना उठी.

?फोन निशा का था और वह

अस्पताल से बोल रही थी. उस के पिता को दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा था. भैया मेरे साथ उसी समय अस्पताल गए.

निशा के पिता आपातकक्ष में थे. हम उन्हें देखने भीतर नहीं जा सकते थे. मुझे देखते ही वह जोरजोर से रोने लगी. उन के पड़ोसी प्रोफैसर सुदीप चुपचाप पास खड़े थे.

दूसरे दिन सुबह भैया ने कहा था कि मैं निशा को अपने साथ घर ले जाऊं. पर वह हड़बड़ा गई, ‘‘नहीं गीता, मैं पिताजी को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

निशा के मना करने पर भैया ऊंची आवाज में बोले, ‘‘यहां बैठ कर रोनेधोने से क्या वे जल्दी अच्छे हो जाएंगे? जाओ, घर जा कर कुछ खापी लो. मैं यहीं हूं. पिताजी से कह देना, आज छुट्टी ले लें. जाओ, तुम दोनों घर चली जाओ.’’

वह मेरे साथ घर आईर् तो पिताजी ने कहा, ‘‘घबराना नहीं बेटी, यह मत सोचना कि तुम इस शहर में अकेली हो. हम हैं न तुम्हारे…’’

मेरे मन में बारबार प्रश्न उठता रहा कि आखिर इस संकट की घड़ी में निशा का वह मित्र कहां गायब हो गया? क्या वह मात्र सुख का साथी था?

निशा ने नहा कर मेरी गुलाबी साड़ी पहन ली. मेरा मन भर आया कि काश, निशा मेरी भाभी बन पाती.

मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं? मुझे भैया की आंखों में बसी पीड़ा याद आने लगी.

बरामदे से मां का बिस्तर साफ दिख रहा था. सर्दी में निशा सिकुड़ी सी सोई थी. भीतर जा कर मैं ने उस के ऊपर लिहाफ ओढ़ा दिया.

नहा कर और नाश्ता कर के मैं भी अपने कमरे में जा लेटी. भैया अभी तक घर नहीं लौटे थे. थोड़ी देर बार मेरी पलकें मुंदने लगीं. परंतु शीघ्र ही ऐसा लगा, जैसे कोई मुझे पुकार रहा है, ‘गीता…गीता…उठो न.’’

सहसा मेरी नींद खुल गई. लेकिन मेरी हड़बड़ाहट की सीमा न रही. वास्तव में जो सामने था, वह अविश्वसनीय था. सामने द्वार पर भैया पगलाए से खड़े थे और मेरी पीठ के पीछे निशा छिपने का प्रयास कर रही थी. फिर किसी तरह बोली, ‘‘मेरे पैर पकड़ रहे हैं तुम्हारे भैया. कहते हैं, वे मेरे दोषी हैं. पर मैं ने तो इन्हें पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘गीता, मुझ से घोर ‘पाप’ हो गया. मुझे माफ कर दो, गीता,’’ भैया ने डबडबाई आंखों से मेरी ओर देखा.

सहमी सी निशा कभी मुझे और कभी उन्हें देख रही थी. उस ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘आप ने मेरा क्या बिगाड़ा है जो इस तरह क्षमायाचना…मेरे पिताजी को कुछ हो तो नहीं गया?’’

भैया गरदन नहीं उठा पाए. निशा के पिता का निधन हो चुका था. कैसे कहूं, क्याक्या बीत गया उन 3 दिनों में. मेरे पिता और भाई शव के साथ जम्मू चले गए. वहीं उन के नातेरिश्तेदार थे. पत्थर सी निशा भी साथ गई. एक अध्याय जैसे समाप्त हो गया.

कई दिनों तक घर का माहौल बोझल बना रहा. फिर धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. परंतु भैया सामान्य नहीं हो पाए. कई बार मैं सोचती, उन से पूछूं कि उन्होंने खुद को निशा का दोषी क्यों कहा था?

लगभग 15-20 दिन बीत गए थे. एक शाम आंगन में भैया का बदलाबदला स्वर सुनाई दिया, ‘‘अरे निशा, आओ…आओ…’’

हाथ में अटैची पकड़े सामने निशा ही तो खड़ी थी. मां और पिताजी ने प्रश्नसूचक भाव से पहले मेरा मुंह देखा और फिर एकदूसरे का. मैं बढ़ कर उस का स्वागत करती, इस से पहले ही भैया ने उस के हाथ से अटैची ले ली.

‘‘आओ निशा, कैसी हो?’’ मैं ने पूछा तो वह मेरे गले से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी.

मां और पिताजी ने उसे बड़े स्नेह से दुलारा.

थोड़ी देर बाद निशा आंसू पोंछती हुई बोली, ‘‘गीता, मेरे पिताजी को किसी ने मुझ से अलग कर दिया. पता नहीं कौन उन्हें फोन कर के यह कहता रहा कि मैं उन से छिप कर किसी से मिलती हूं. भला किसी को मुझ से क्या दुश्मनी होगी? मैं ने तो कभी किसी का बुरा नहीं चाहा. मुझे किस अपराध की सजा मिली?’’

रोतेरोते उस की हिचकी बंध गई. सहसा मेरे मन में एक सवाल उठा कि कौन था वह जिस के साथ भैया ने उसे देखा था? किसी तरह मां ने उसे शांत किया. मैं चाय, नाश्ता ले आई. भैया गुमसुम से सामने बैठ रहे.

निशा को बीएड की परीक्षाएं तो देनी ही थीं, उसी संदर्भ में उस ने पूछा, ‘‘क्या मैं कुछ दिन पेइंगगैस्ट के रूप में आप के पास रह सकती हूं? बीएड के बाद नौकरी कर लूंगी, फिर अपने घर चली जाऊंगी.’’

‘‘अरे, यह क्या कह रही हो बेटी, यह भी तुम्हारा ही घर है. पेइंगगैस्ट नहीं, मालकिन बन कर रहो,’’ पिताजी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

निशा के रहने की व्यवस्था मेरे कमरे में हो गई. हमारा दिनरात का साथ हो गया. वह गृहकार्य में भी दक्ष थी, सो, मां का हाथ भी बंटाती. उस का सांवला रूप मुझे लुभालुभा जाता. परंतु एक जरा सा सत्य मुझे, बस, पीड़ा पर पीड़ा देता रहता.

अपने भाई के लिए भी मैं परेशान रहती. जब से निशा आईर् थी, वे अपने कमरे में ही कैद हो गए थे. चाय, नाश्ता सब खुद ही आ कर भीतर ले जाते. हमारे बीच बैठ कर बातचीत किए जैसे उन्हें सदियां बीत गई थीं. निशा उन की तरफ से तटस्थ थी.

मैं हैरान थी, 4-5 महीने बीतने पर भी निशा ने अपने मित्र का उल्लेख एक बार भी नहीं किया था. मैं सोचती, वह भला कब और किस वक्त उस से मिलती होगी, क्योंकि हमारा तो हर पल का साथ था. कभीकभी भैया एकटक निशा को ही निहारते रहते.

बीएड की परीक्षा हो गईर् और परीक्षाफल आतेआते एक विचित्र घटना घटी. भैया अपने एक परम मित्र से निशा की शादी करवाना चाहते थे. वे बोले, ‘‘निशा, वह कल आएगा, तुम उसे देख लेना. बहुत अच्छा इंसान है. मेरे साथ ही है, बैंक में काम करता है.’’

‘‘लेकिन कर्ण भैया,’’ पहली बार निशा ने मेरे भाई को पुकारा था.

‘‘तुम्हारे पिता के अंतिम शब्द यही थे कि वे तुम्हारी सुखी गृहस्थी नहीं देख पाए. तब यह जिम्मेदारी मैं ने अपने सिर पर ली थी. विजय मेरे साथ कालेज के दिनों से है. वह उतना ही अच्छा है, जितनी अच्छी तुम हो,’’ भैया ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘जी,’’ अवरुद्ध कंठ से वह इतना ही कह पाई.

‘‘तुम अगर उसे पसंद कर…’’ भैया ने आगे कहना चाहा, मगर वह बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘उस की जरूरत नहीं है. आप सब पिताजी जैसे ही माननीय हैं. आप जो करेंगे, अच्छा ही करेंगे.’’

‘‘लेकिन भैया,’’ मैं ने हौले से कहा, ‘‘निशा की भी अपनी कुछ पसंद होगी. हो सकता है उसे कोई और पसंद हो. आप अपना फैसला इस तरह इस पर क्यों थोप रहे हैं?’’

‘‘हांहां, बेटे, इस की पसंद भी तो पूछो. शादीब्याह जबरदस्ती का नहीं, प्यार का नाता होता है,’’ मेरे पिताजी बोले.

सहसा निशा रो पड़ी. फिर कुछ क्षणों के बाद बोली, ‘‘मेरी कोई पसंद नहीं है.’’

तभी मेरे मन में विचार आया कि हो सकता है, निशा ने उस पुरुषमित्र को छोड़ दिया हो. सच ही तो है, जो कभी उस का सुखदुख पूछने भी नहीं आया, वह भला कैसा प्रेमी? तब इस अवस्था में वह मेरी भाभी क्यों नहीं बन सकती.

उस रात बड़ी देर तक मुझे नींद नहीं आई. मैं ने निशा की तरफ करवट बदली, तो देखा, वह तकिए में मुंह छिपाए सुबकसुबक कर रो रही थी. पास जा कर उसे हिलाया, उस के हाथपैर काफी ठंडे थे. मैं ने घबरा कर भाई को बुलाया. हम दोनों कितनी देर तक उस के हाथपैर रगड़ते रहे. भैया ने लिहाफ ओढ़ा कर उसे बिठाया तो वह उन की छाती में मुंह छिपा कर बेतहाशा रोने लगी, ‘‘मैं ने अपने पिताजी से कभी कुछ नहीं छिपाया था. मुझे कभी कहीं भी अकेले नहीं जाने देते थे. फिर मुझे अकेली क्यों छोड़ गए? मैं सच कह रही हूं, मैं ने उन से कभी…’’

‘‘मैं जानता हूं निशा, मैं सब जानता हूं,’’ भैया ने अपने कुरते की बांह से उस की आंखें पोंछीं.

थोड़ी देर बाद बोले, ‘‘तुम निर्दोष हो निशा, तुम्हारे पिता तुम से नाराज नहीं थे. वह तो बस, यही कहते रहे कि जहां निशा चाहे, वहीं उसे…’’

‘‘मगर मैं ने चाहा ही क्या था? कुछ भी तो नहीं चाहा था…’’

रातभर भैया हमारे ही कमरे में रहे. मैं हैरान थी कि जिस निशा को वे चरित्रहीन घोषित कर चुके थे, उस पर इतना स्नेह लुटाने का क्या मतलब?

‘‘भैया, निशा के उस मित्र का पता क्यों नहीं करते?’’ मौका पाते ही मैं ने कह दिया.

भैया ने एक  बार मेरी ओर देखा अवश्य, पर बोले कुछ नहीं.,

‘‘जिस इंसान के लिए उस ने अपने पिता को खो दिया, कम से कम उसे निशा से मिलने तो आना चाहिए था न?’’

उस समय भैया नाश्ता कर रहे थे. शायद कौर गले में अटक गया था, क्योंकि उसी क्षण उन्होंने मुझ से पानी मांगा.

उस दिन निशा अपने घर गई हुईर् थी. मां बोलीं, ‘‘इस लड़की ने तो मुझे अपाहिज बना दिया है, किसी काम को हाथ ही नहीं लगाने देती. इस के जाने के बाद मैं घर का कामकाज कैसे करूंगी.’’

पिताजी बोले, ‘‘उसे यहीं रख लो, मुझे भी बहुत प्यारी लगती है.’’

तभी अनायास मैं बोल उठी, ‘‘वह किसी और को पसंद करती है. उस का ब्याह वहीं होना चाहिए, जहां वह चाहे, यह बिना सिरपैर की इच्छा उस से मत बांधो.’’

‘‘किसी और को, पर किसे? उस ने हमें तो कुछ नहीं बताया.’’

‘‘बताया तो उस ने अपने पिता को भी नहीं था. मुझे भी नहीं बताया. परंतु उस से क्या होता है. सत्य तो सत्य ही है न.’’

‘‘तुम ने उसे किसी के साथ देखा है क्या?’’ हाथ का काम छोड़ मां समीप चली आईं. वे सचमुच उसे बहू बनाने को आतुर थीं.

‘‘भैया ने देखा है. और मैं इसे बुरा भी नहीं मानती. निशा वहीं जाएगी, जहां वह चाहेगी.’’

उस समय भैया के चेहरे पर कई रंग आजा रहे थे.

‘‘ऐसी बात है तो मैं आज ही निशा से बात करता हूं,’’ पिताजी बोले.

‘‘नहीं, उस से बात मत कीजिए. वैसे, विजय भी अच्छा लड़का है.’’

‘‘अगर विजय अच्छा लड़का है तो आप कौन से बुरे हैं. आप क्यों नहीं? साफसाफ बताइए भैया, वह लड़का कौन है, जिस के साथ आप ने उसे

देखा था?’’ मैं ने तनिक ऊंचे स्वर

में पूछा.

‘‘बोलो कर्ण, कुछ तो बताओ?’’ पिताजी ने भी उन का कंधा हिलाया.

‘‘गीता, कैसी बेकार की बात करती हो. वह मुझे ‘भैया’ कह के पुकारती है. और…’’

‘‘कुछ तो कहेगी न. जब उसे पता चलेगा कि आप उस से प्रेम करते हैं तो हो सकता है, ‘भैया’ न कहे. फिलहाल यह बताइए कि  वह लड़का कौन था, जिसे आप ने…’’

‘‘चुप भी करो गीता, क्यों इस के पीछे पड़ी हो,’’ मां ने मुझे टोक दिया.

‘‘मैं ने कहा न, विजय उस के लिए…’’ भैया बोले तो मैं ने उन की बात काटते हुए कहा, ‘‘आप यह निर्णय करने वाले कौन होते हैं? मैं आज खुद निशा से पूरी बात खोलूंगी, चाहे उसे बुरा ही लगे.’’

‘‘नहीं, उस से कुछ मत पूछना,’’ भैया ने रोका और पिताजी बुरी तरह चीख उठे, ‘‘इस का मतलब है, तुम झूठ बोलते हो. उसे किसी के साथ जरूर देखा था. कहीं तुम्हीं तो उस के पिता को फोन नहीं करते रहे?’’ पिताजी के होंठों से निकला एकएक शब्द सच निकलेगा, मैं ने कभी सोचा नहीं था.

तभी पिताजी ने भैया की गाल पर जोरदार थप्पड़ दे मारा, ‘‘तुझे उस मासूम लड़की पर दोष लगाते शर्म नहीं आई. अरे, हमारी भी बेटी है. यही सब हमारे साथ हो तो तुझे कैसा लगेगा?’’

उस क्षण मां ने बेटे की तरफ नफरत से देखा.

‘‘पिताजी, मैं ने झूठ नहीं बोला था,’’ भैया ने शायद सारी शक्ति बटोरते हुए कहा, ‘‘जो देखा, वह सच था, लेकिन.’’

‘‘लेकिन क्या. अब कुछ बकोगे भी?’’

‘‘जी…जो…जो समझा, वह झूठ था. उस रात अस्पताल में निशा के पिता को देखा तो पता चला कि उस के साथ सदा वही होते थे. वे इतने कम उम्र लगते थे कि मैं धोखा…’’

यह सुनते ही मां ने माथे पर जोर से हाथ मारा, ‘‘सच, तुम्हारी तो बुद्धि ही भ्रष्ट हो गई.’’

उस पल हम चारों के लिए वक्त जैसे थम गया. सचाई जाने बिना उस के पिता को फोन कर के शिकायत करने की भला क्या आवश्यकता थी? आंखों देखा भी गलत हो सकता है और इतना घातक भी, यह मैं ने पहली बार देखासुना था.

पिताजी दुखी स्वर में बोले, ‘‘कैसा जमाना आ गया है. पितापुत्री साथसाथ कहीं आजा भी नहीं सकते. पता नहीं इस नई पीढ़ी ने आंखों पर कैसी पट्टी बांध ली है.’’

उस दिन भैया अपने कार्यालय नहीं जा सके, अपने कमरे में ऐसे बंद हुए कि शाम को ही बाहर निकले.

निशा तब तक नहीं लौटी थी, इसलिए सभी परेशान थे. भैया मोटरसाइकिल निकाल कर बाहर निकल गए और पिताजी खामोशी से उन्हें जाते हुए देखते रहे.

उस दिन हमारे घर में खाना भी नहीं बना. एक शर्म ने सब की भूख मार रखी थी. सहसा पिताजी बोले, ‘‘दोष तुम्हारा भी तो है. कम से कम निशा से साफसाफ पूछतीं तो सही, सारा दोष कर्ण को कैसे दे दूं. तुम भी बराबर की दोषी हो.’’

लगभग डेढ़ घंटे बाद भैया हड़बड़ाए से लौटे और बोले, ‘‘प्रोफैसर सुरेंद्र की पत्नी ने बताया कि वह तो दोपहर को ही चली गई थी.’’

‘‘वह कहां गई होगी?’’ पिताजी ने मेरी ओर देखा.

‘‘चलो भैया, वहीं दोबारा चलते हैं,’’ मैं उन के साथ निशा के घर गई. द्वारा खोला, घर साफसुथरा था, यानी वह सुबह यहां आई थी. पूरा घर छान मारा, पर निशा दिखाई न दी.

अचानक भैया बोले, ‘‘उसे कुछ हो गया तो मैं जीतेजी मर जाऊंगा. मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था, ऐसा अपराध कर बैठूंगा. अब मैं कहां जाऊं?’’

सामने मेज पर एक सुंदर पुरुष की तसवीर पर ताजे फूलों का हार चढ़ा था. मैं तसवीर के नजदीक जा कर सोचने लगी कि निशा ने सच ही कहा था कि उस के पिता बहुत सुंदर थे. भैया को गलतफहमी हो गई होगी, शायद मुझे भी हो जाती.

‘‘अब क्या होगा गीता, तुम्हीं कुछ सोचो?’’ तभी भैया भी उस के पिता की तसवीर के पास आ कर बोले, ‘‘यह देखो गीता, यही तो थे.’’

मैं कुछ और ही सोचने लगी थी. चंद क्षणों बाद बोली, ‘‘भैया, निशा से शादी कर लो. यह तो सत्य ही है कि आप उस से बेहद प्यार करते हैं.’’

‘‘क्या उसे सचाई न बताऊं?’’

‘‘और कितना दुख दोगे उसे? क्या उस से बात और नहीं बिगड़ जाएगी?’’

‘‘क्या निशा के साथ एक झूठा जीवन जी पाऊंगा?’’

‘‘जीवन तो सच्चा ही होगा भैया, परंतु यह जरा सा सत्य हम चारों को सदा छिपाना पड़ेगा, क्योंकि हम उसे और किसी तरह भी अब सुख नहीं दे सकते.’’

भारी मन में हम घर लौट आए. मगर सामने ही बरामदे में निशा को देख हैरान रह गए. एक लंबे समय के बाद मैं ने उसे हंसते देखा था. सामने मेज पर कितने ही पैकेट पड़े थे. डबडबाई आंखें लिए पिताजी उसे एकटक निहार रहे थे. वह उतावले स्वर में बोली, ‘‘गीता, मुझे नौकरी मिल गई.’’

‘‘वह तो ठीक है, मगर तुम बिना हम से कुछ कहे…पता भी है, 3 घंटे से भटक रहा हूं. तुम कहां चली गई थीं?’’ भैया की डूबती सांसों में फिर से संजीवनी का संचार हो गया था.

निशा ने बताया, ‘‘12 बजे घर से निकली तो सोचा, पिताजी के विभाग से होती जाऊं. वहां पता चला कि मेरी नियुक्ति कन्या विद्यालय में हो चुकी है.’’

‘‘लेकिन अब तक तुम थीं कहां?’’ इस बार मैं ने पूछा.

‘‘बता तो रही हूं, मैं विद्यालय देखने चली गई. आज ही उन्होंने मुझे रख भी लिया. 4 बजे वहां से निकली, तब यह सामान खरीदने चली गई. यह देखो. तुम सब के लिए स्वेटर लाई हूं.’’

‘‘तुम्हारे पास इतने पैसे थे?’’ मैं हैरान रह गई.

‘‘आज घर की सफाई की तो पिताजी के कपड़ों से 10 हजार रुपए मिले. उसी दिन वेतन लाए थे न.’’

उस के समीप जा कर मैं ने उस का हाथ पकड़ा, ‘‘पिताजी की आखिरी तनख्वाह इस तरह उड़ा दी.’’

‘‘मेरे पिताजी कहीं नहीं गए. वे यहीं तो हैं,’’ उस ने मेरे पिता की ओर इशारा किया, ‘‘इस घर में मुझे सब मिल गया है. आज जब मैं देर से आई तो इन्होंने मुझे बहुत डांटा. मेरी नौकरी की बात सुन रोए भी और हंसे भी. पिताजी होते तो वे भी ऐसा ही करते न.’’

‘‘हां,’’ स्नेह से मैं ने उस का माथा चूम लिया.

‘‘बहुत भूख लगी है, दोपहर को क्या बनाया था?’’ निशा के प्रश्न पर मैं कुछ कहती, इस से पहले ही पिताजी बोल पड़े, ‘‘आज तुम नहीं थीं तो कुछ नहीं बना, सब भूखे रहे. जाओ, देखो, रसोई में. देखोदेखो जा कर.’’

निशा रसोई की तरफ लपकी. जब वहां कुछ नहीं मिला तो हड़बड़ाई सी बाहर चली आई, ‘‘क्या आज सचमुच सभी भूखे रहे? मेरी वजह से इतने परेशान रहे?’’

‘‘जाओ, अब दोनों मिल कर कुछ बना लो और इस नालायक को भी खिलाओ. इस ने भी कुछ नहीं खाया.’’

निशा ने गहरी नजरों से भैया की ओर देखा.

उस रात हम चारों ही सोच में डूबे थे. खाने की मेज पर एक वही थी, जो चहक रही थी.

‘‘बेटे, तुम्हारे उपहार हमें बहुत पसंद आए,’’ सहसा पिताजी बोले, ‘‘परंतु हम बड़े, हैं न. बच्ची से इतना सब कैसे ले लें. बदले में कुछ दे दें, तभी हमारा मन शांत होगा न.’’

‘‘जी, यह घर मेरा ही तो है. आप सब मेरे ही तो हैं.’’

‘‘वह तो सच है बेटी, फिर भी तुम्हें कुछ देना चाहते हैं.’’

‘‘मैं सिरआंखों पर लूंगी.’’

‘‘मैं चाहता हूं, तुम्हारी शादी हो जाए. मैं ने विजय के पिता से बात कर ली है. वह अच्छा लड़का है.’’

‘‘जी,’’ निशा ने गरदन झुका ली.

हम सब हैरानी से पिताजी की ओर देख रहे थे कि तभी वे बोल उठे, ‘‘झूठ नहीं कहूंगा बेटी, सोचा था तुम्हें अपनी बहू बनाऊंगा, परंतु मेरा बेटा तुम्हारे लायक नहीं है. मैं हीरे को पत्थर से नहीं जोड़ सकता. परंतु कन्यादान कर के तुम्हें विदा जरूर करना चाहता हूं. मेरी बेटी बनोगी न?’’

‘‘जी,’’ निशा का स्वर रुंध गया.

‘‘बस, अब आराम से खाना खाओ और सो जाओ,’’ मुंह पोंछ पिताजी उठ गए और पीछे रह गई प्लेट पर चम्मच चलने की आवाज.

उस के बाद कई दिन बीत गए. भैया की भूल की वजह से मां और पिताजी ने उन से बात करना लगभग छोड़ रखा था. निशा विद्यालय जाने लगी थी. शाम के समय हम सब चाय पीने साथसाथ बैठते.

एक शाम पिताजी ने फिर से सब को चौंका दिया, ‘‘निशा, कल विजय आने वाला है. आज मैं उस से मिला था. तुम कल जल्दी आ जाना.’’

तभी भैया बोल उठे, ‘‘विजय आज मुझ से भी मिला था, लेकिन उस ने तो नहीं बताया कि आप उस से मिले थे?’’

‘‘तो इस में मैं क्या करूं?’’ पिताजी का स्वर रूखा था, ‘‘मैं पिछले कई दिनों से उस से मिल रहा हूं. निशा के विषय में उस से पूरी बात की है. उस ने तुम से क्यों बात नहीं की, यह तुम जानो.’’

‘फिर भी उसे मुझ से बात तो करनी चाहिए थी, मुझे भी तो वह हर रोज मिलता है.’’

‘‘चलो, उस ने नहीं की, अब तुम्हीं कर लेना. और अपने साथ ही लेते आना.’’

‘‘मैं क्यों उस से बात करूं? हमारा बचपन का साथ है, क्या उसे अपनी शादी की बात मुझ से नहीं करनी चाहिए थी. क्या उस का यह फर्ज नहीं था?’’

‘‘फर्जों की दुहाई मत दो कर्ण, फर्ज तो उस से पूछने का तुम्हारा भी था. निशा कोई पराई नहीं है. कम से कम तुम भी तो आगे बढ़ते.’’

‘‘लेकिन पिताजी, उस ने एक  बार भी निशा का नाम नहीं लिया, दोस्ती में इतना परदा तो नहीं होता.’’

दोस्ती के अर्थ जानते भी हो, जो इस की दुहाई देने लगे हो. फर्ज और दोस्ती बहुत गहरे शब्द हैं, जिन का तुम ने अभी मतलब ही नहीं समझा. सदा अपना ही सुख देखते हो, तुम्हें क्या करना चाहिए, बस, यही सोचते हो. तुम्हें क्या नहीं मिला, हमेशा उस का रोना रोते हो. यह नहीं सोचते कि तुम्हें क्या करना चाहिए था. उस ने बात नहीं की, तो तुम ही पूछ सकते थे. अपनेआप को इतना ज्यादा महत्त्व देना बंद करो.’’

उसी रात मैं ने आखिरी प्रयास किया. निशा से पहली बार पूछा, ‘‘क्या तुम इस रिश्ते से खुश हो?’’

परंतु कुछ न बोल वह खामोश रही.

‘‘निशा, बोलो, क्या इस रिश्ते से तुम खुश हो?’’

उस की चुप्पी से मैं परेशान हो गई.

‘‘भैया पसंद नहीं हैं क्या? मैं तो यही चाहती हूं कि तुम यहीं रहो, इसी घर में. कहीं मत जाओ. भैया तुम से बहुतबहुत प्यार करते हैं,’’ कहते हुए मैं ने उस का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा. फिर जल्दी से बत्ती जलाई. उस की सूजी आंखों में आंसू भरे हुए थे.

सुबह पिताजी के कमरे से भैया की आवाज आई, ‘‘निशा इसी घर में रहेगी.’’

‘‘क्या उस की शादी नहीं होने दोगे? विजय का नाम तुम ने ही सुझाया था न, आज क्या हो गया?’’

‘‘मैं…मैं तब बड़ी उलझन में था, आत्मग्लानि ने मुझे तोड़ रखा था. मैं खुद को उस के काबिल नहीं पा रहा था.’’

‘‘काबिल तो तुम आज भी नहीं हो. जिस से जीवनभर का नाता जोड़ना चाहते हो, क्या उस के प्रति ईमानदार हो? तुम ने उस का कितना बड़ा नुकसान किया है, क्या उसे यह बात बता सकते हो?’’

अब भैया खामोश हो गए.

निशा सामान्य भाव से अपने बाल संवारती रही. फिर उस ने जल्दी से पर्स उठाया. मैं असमंजस में थी कि क्या उस ने पिताजी की बात नहीं सुनी? उस ने मेज पर लगा अपना नाश्ता खाया और बाहर निकल गई.

निशा के जाने के बाद पिताजी बोले, ‘‘देखो कर्ण, जिस से प्यार करते हो, जिस से दोस्ती होने का दम भरते हो, कम से कम उस के प्रति तो ईमानदार रहो. प्यार करते हो तो आगे बढ़ कर उस से कहो. दोस्त से दोस्ती निभाना चाहते हो तो अपने अहं को थोड़ा सा अलग रखना सीखो. मन में कुछ मैल आ गया है, कुछ गलत देखसुन लिया है तो झट से कह कर सचाई की तह तक जाओ. मन ही मन किसी कहानी को जन्म मत दो. अब विजय की बात ही सुन लो. मैं उस से एक बार भी नहीं मिला. तुम से झूठ ही कहता रहा और तुम उस पर क्रोध करते हुए उस से नाराज भी हो गए. अगर खुद ही बात कर ली होती तो मेरा झूठ कब का खुल गया होता. मगर नहीं, तुम तो अपनी ही अकड़ में रहे न.’’

‘‘जी,’’ भैया के साथसाथ मैं भी हैरान रह गई.

‘‘निशा से प्यार करते हो तो उसे साफसाफ सब बता दो.’’

करीब 4 बजे निशा आई. मुंहहाथ धो कर रसोई में जाने लगी, तभी पिताजी ने पूरी कहानी निशा को सुना दी, जिसे वह चुपचाप सुनती रही. हम सांस रोके उस की प्रतिक्रिया का इंतजार करते रहे. शायद सुबह उस ने सुना न हो, मैं यह खुशफहमी पाले बैठी थी.

‘‘बेटी, क्या तुम यह सब जानती थीं?’’ पिताजी उस की तटस्थता पर हैरान रह गए.

निशा ने ‘हां’ में गरदन हिला दी.

‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ पिताजी उठ कर उस के पास गए तो निशा एकाएक रो पड़ी, फिर संभलते हुए बोली, ‘‘उस दिन जब मैं घर की सफाई कर के लौटी थी…’’ इतना कह कर वह रोने लगी तो पिताजी उठ कर बाहर चले गए. उस के बाद किसी ने उस से कोई बात न की.

थोड़ी देर बाद मुझे निशा की आवाज सुनाई दी, ‘‘गीता, मैं सुबह अपने घर चली जाऊं?’’

मैं ने चौंक कर उस की ओर देखा तो वह बोली, ‘‘अब नौकरी मिल गई है न. और फिर जब जीना है तो अकेले रहने की आदत तो डालनी ही होगी. यहां कब तक रहूंगी?’’

शीघ्र ही उस ने अटैची और बैग तैयार कर लिया और बोली, ‘‘मैं जाती हूं. चाचाजी से मिल कर जाने की हिम्मत नहीं है. वे आएं तो बता देना.’’

मैं ने भैया को पुकारना चाहा कि उसे वे जा कर छोड़ आएं, परंतु निशा ने मना कर दिया. शायद वह भैया की सूरत भी नहीं देखना चाहती थी. रोते हुए उस ने अटैची उठाई और भारी बैग कंधे पर लादे चुपचाप चली गई. अवरुद्ध कंठ से मैं कुछ भी न कह पाई.

निशा के जाने के बाद पिताजी उदास से रहने लगे थे. मगर जो हालात बन गए थे, उन में वे कुछ नहीं कर सकते थे. उस रात मुझे नींद नहीं आई. अलमारी सहेजने लगी तो निशा के घर की दूसरी चाबी हाथ लग गई.

मैं ने वह चाबी भैया के सामने रख दी और कहा, ‘‘अभी तक सोए नहीं?’’

वे सूनीसूनी आंखों से मुझे निहारते रहे.

‘‘जाओ, निशा को ले आओ. अधिकार से हाथ पकड़ कर, क्षमा मांग कर. जैसे भी आप को अच्छा लगे. यह उस के घर की चाबी है.’’

‘‘क्या पागल हो गई हो?’’

‘‘मैं भी साथ चलती हूं. उस से क्षमा मांग लेना. उसे अपने प्यार का विश्वास दिलाना.’’

‘‘बस गीता, बस. अब और नहीं,’’ भैया ने डबडबाई आंखों से मेरी ओर देखा.

इसी तरह 3 हफ्ते बीत गए. एक शाम मां ने भैया से कहा, ‘‘कर्ण, कहीं तुम्हारी शादी की बात चलाएं?’’

‘‘नहीं, मैं शादी नहीं करूंगा.’’

तभी पिताजी बोल उठे, ‘‘अच्छी बात है, मत करना शादी, मगर मेरा एक काम जरूर करना. अगर मुझे कुछ हो गया तो कम से कम अपनी बहन का ब्याह जरूर कर देना.’’

रात को मां की आवाज सुनाई दी. ‘‘निशा कैसी रूखी है, जब से गई है, एक बार फोन तक भी नहीं किया.’’

‘‘तो क्या तुम उस से मिलने गईं? इन दोनों में से कोई एक भी गया उसे देखने?’’ पिताजी ऊंची आवाज में बोले, ‘‘किसी दूसरे से अपेक्षा करना बहुत आसान है, कभी अपना दायित्व भी सोचा है तुम लोगों ने?’’

सुबहसुबह पिताजी के स्वर ने मुझे चौंका दिया, ‘‘गीता, कर्ण कहां है? उस की मोटरसाइकिल भी नहीं है. कहीं गया है क्या?’’

‘‘मैं हड़बड़ा कर उठी. लपक कर देखा, अलमारी में वह चाबी भी नहीं थी. मन एक आशंका से कांप उठा कि भैया कहीं निशा का कुछ अनिष्ट न कर बैठें.’’

पिताजी ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘वह कहां गया है. तुम से कुछ कहा?’’

‘‘कहा तो नहीं, पर हो सकता है, निशा के पास…,’’ मैं ने उन से पूरी बात कह दी.

औटो से हम निशा के घर पहुंचे. वहां भैया की मोटरसाइकिल भी दिखाई न दी. धड़कते दिल से द्वार की घंटी बजा दी. हम कितनी ही देर खड़े रहे, पर द्वार नहीं खुला. पड़ोसी सुरेंद्र साहब का द्वार खटखटाया तो उन्होंने जो सुनाया, वह अप्रत्याशित था, ‘‘निशा तो महीनाभर हुआ सबकुछ छोड़छाड़़ कर चली भी गई. उस के चाचा उसे लेने आए थे.’’

हम पितापुत्री चिंतित खड़े रह गए. फौरन घर वापस चले आए. भैया लुटेपिटे से सामने ही बैठे थे.

‘‘निशा हम से मिल कर तो जाती,’’ मां के होंठों से निकले इन शब्दों पर पिताजी चीख उठे, ‘‘वह मिल कर जाती, पर क्यों? क्या तुम्हारे बच्चों की कोई जिम्मेदारी नहीं थी. अरे, उस मासूम को रोक तो लेते. वह अकेली अपना सामान बांधे चली गई और कोई उसे घर तक छोड़ने नहीं गया. क्या वह लावारिस थी?’’

भैया बोले, ‘‘मुझे हमेशा डर सताता रहा कि कहीं सचाई जानने के बाद वह मुझ से नफरत न करने लगे.’’

‘‘अब क्या करोेगे? कहीं और शादी को तैयार हो, तो बात करूं?’’ पिताजी ने थकीहारी आवाज में कहा.

‘‘नहीं, शादी तो अब कभी नहीं होगी.’’

‘‘तो क्या तुम्हारी मां तुम्हें जीवनभर पकापका कर खिलाएगी? निशा के चाचा कहां रहते हैं. कुछ जानते हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘अच्छी बात है, अब जो जी में आए, वही करो.’’

एक शाम भैया बोले, ‘‘गीता, क्या ऐसा नहीं लगता कि शरीर का कोई हिस्सा ही साथ नहीं दे रहा? मैं तो अपंग सा हो गया हूं.’’

मैं मुंहबाए उन्हें निहारती रह गई, क्या जवाब दूं, सोच ही न पाई.

एक दिन शाम को पिताजी ने चौंका दिया, ‘‘आज शाम कोई आ रहा है, नाश्ते का प्रबंध कर लेना.’’

‘‘कौन आ रहा है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कहा न कोई है,’’ पिताजी खीझ उठे.

शाम को हम सब निशा को देख कर हैरान रह गए. पिताजी ने मुसकरा कर उस का स्वागत किया, ‘‘आओ बेटी, आओ,’’ पिताजी ने निशा को सोफे पर बैठाया.

‘‘बेटी, तुम्हारा पत्र मिल गया था. तुम्हारे पिताजी की बीमे की पौलिसी संभाल कर रखी है.’’

वह निशा को उस के पिता की भविष्य निधि और दूसरे सरकारी प्रमाणपत्रों के विषय में बताते रहे और वह चुपचाप बैठी सुनती रही.

‘‘बस, तुम्हारे हस्ताक्षर ही चाहिए थे, वरना मैं तुम्हें कभी आने को न कहता. सब हो जाएगा बेटी, कम से कम यहां दिल्ली के सब काम तो मैं निबटा ही दूंगा.’’

निशा ने कुछ न कहा.

मैं ने उस के सामने नाश्ता परोसा तो पिताजी ने टोक दिया, ‘‘पहले इसे हाथमुंह तो धो लेने दो. सुबह से गाड़ी में बैठी है. उठो बेटी, जाओ.’’

एक तरफ रखे बैग में से तौलिया निकाल निशा बाथरूम में चली गई. जब वह बाहर आई तो उसी पल भैया ने घर में प्रवेश किया. उन्होंने चौंकते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम कैसी हो?’’

निशा ने कुछ न कहा. हम सब खामोश थे. निशा सिर झुकाए चुपचाप खड़ी थी. पिताजी ने उसे बुलाया तो भैया की तंद्रा भंग हुई.

चाय सब ने इकट्ठे पी. मगर हम औपचारिक बातें भी नहीं कर पा रहे थे.

रात को खाने के बाद वह मेरी बगल में सो गई. मेरे लिए जैसे वक्त थम गया था. आधी रात होने को आई, पर नींद मेरी आंखों में नहीं थी. सहसा ऐसा लगा, जैसे हमारे कमरे में कोई है. मैं

ने भैया को पहचान लिया. वह सीधा निशा की ओर बढ़ रहे थे. मैं सहम गई. फिर देखा, भैया उस के पैरों की तरफ बैठे हैं.

फिर वे हौले से बोले, ‘‘निशा, निशा, उठो. तुम से कुछ बात करनी है.’’

भैया ने कई बार पुकारा, पर उस ने कोई जवाब न दिया. तब भैया ने उसे छुआ तो एहसास हुआ कि निशा को तेज ज्वर है. भैया फौरन डाक्टर को लेने चले गए.

डाक्टर की दवा ने अपना असर दिखाया. सुबह तक निशा की तबीयत में काफी सुधार हो गया था.

मैं चाय ले कर उस के पास गई, ‘‘थोड़ी सी चाय ले लो,’’ फिर भैया से कहा, ‘‘आप भी आ जाइए.’’

‘‘मन नहीं है,’’ निशा ने मना कर दिया.

‘‘क्यों निशा, मन क्यों नहीं है? थोड़ी सी तो पी लो,’’ मैं ने आग्रह किया.

लेकिन वह रो पड़ी. भैया उठ कर पास आ गए. उन्होंने धीरे से उस का हाथ पकड़ा और फिर झुक कर उस का मस्तक चूम लिया, ‘‘सजा ही देना चाहती हो तो मुझे दो, अपनेआप को क्यों जला रही हो? अपराध तो मैं ने किया था.’’

सहसा निशा फूटफूट कर रोने लगी, ‘‘कर्ण, मैं किसकिस को सजा दूं, अपने पिता को. आप को या गीता को? किसी ने भी मेरे मन की नहीं पूछी, सब एकतरफा निर्णय लेते रहे. सच क्या है किसी ने भी तो नहीं जानना चाहा. मैं क्या करूं?’’

फिर थोड़ा रुक कर, खुद को संभाल कर वह आगे बोली, ‘‘मेरी वजह से सब को पीड़ा ही मिली, लेकिन यह सब मैं ने नहीं चाहा था.’’

‘‘जानता हूं निशा, सब जानता हूं. लेकिन अब वैसा कुछ नहीं होगा, मुझ पर यकीन करो.’’

मां और पिताजी दरवाजे पर खड़े थे. मां ने उस का मस्तक चूमते हुए कहा, ‘‘बस बेटी, अब चुप हो जाओ.’’

सांवली, प्यारी सी निशा इस तरह लौट आएगी, यह तो मैं ने कभी सोचा भी न था. पूरी कथा में एक सत्य अवश्य सामने आया था कि सत्य वह नहीं जिसे आंखें देखें, सत्य वह भी नहीं जिसे कान सुनें, सत्य तो मात्र वह  है जिस में सोचसमझ, परख, प्रेम व विश्वास सब का योगदान हो. वास्तविक सत्य तो वही है, बाकी मिथ्या है.

Rakhi 2022: मुंहबोले भाई से ऐसे निभाएं रिश्ता

रिश्ता मांबेटे का हो या भाईबहन का, हर रिश्ते की अपनी गरिमा होती है और मांग भी. जब कोई प्यारा सा रिश्ता हमारी अनजानी गलतियों की वजह से टूट जाता है तब हमें एहसास होता है कि शायद कहीं कोई कमी रह गई थी. ऐसे में बात जब मुंहबोले भाई की हो तो शिष्टाचार कुछ ज्यादा ही महत्त्व रखता है, क्योंकि यह रिश्ता आप बहुत सोचसमझ कर बनाते हैं. इस रिश्ते का शिष्टाचार कायम रहे इस के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखें.

मिल कर कुछ नियम बनाएं

मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता जितना प्यार भरा है यह उतना ही नाजुक भी होता है. ऐसे में कुछ मर्यादित नियम बनाइए, जिस से शिष्टता झलके. हमेशा दूरी बना कर रखें. इस रिश्ते में ज्यादा निकटता लोगों को खटकती है. अगर आप को एकदूसरे से मिलना है तो एकदूसरे के घर में या पब्लिक प्लेस में ही मिलें. बातचीत भी ऐसी करें जिस से फूहड़ता या अश्लीलता न झलके. साथ ही समय का ध्यान जरूर रखें. हो सके तो दिन में ही मिलें.

छोटीछोटी बातों का बुरा मत मानिए

अगर मुंहबोला भाई आप को कुछ कहता भी है जैसे कि आप ऐसा न करो, यहां मत जाओ, वहां मत जाओ, इस से बात मत करो आदि तो उस की बातों का बुरा न मानें, उस से गुस्से में बात न करें, क्योंकि हर भाई अपनी बहन का खयाल रखने के लिहाज से उस से ऐसा कहता है. इस से उस के प्यार और स्नेह का पता चलता है. उस की बातों को नैगेटिव न लेते हुए उस से शिष्ट हो कर ही बात करें.

सौरी बोलना सीखिए

हर भाईबहन के बीच लड़ाईझगड़ा होता रहता है लेकिनकुछ देर बाद वे सब भूल भी जाते हैं. अगर आप से कोई गलती हो भी गई है तो सौरी बोल कर अपनी गलती मान लीजिए. ऐसा करने से आप भाई की नजर में अच्छी बहन बन जाएंगी.

कमियां मत निकालिए

अपने मुंहबोले भाई की बातबात में कमियां निकालना अच्छी बात नहीं. अगर आप उसे सचमुच अपना भाई मानती हैं तो कोई भी बात सही ढंग से समझाएं न कि गुस्से से.

अच्छे गुणों की कद्र करें

आप अपने मुंहबोले भाई के अच्छे गुणों की कद्र करें, क्योंकि हर इंसान में अच्छाई व बुराई दोनों ही होती हैं. उस की कमियों को औरों के सामने उजागर न करें.

विश्वास जीतें

अपने मुंहबोले भाई का विश्वास जीतने की कोशिश करें. इस के लिए आप दोनों को एकदूसरे को समझना बहुत जरूरी है. बिना एकदूसरे को समझे रिश्ते को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता.

पर्सनल बातों में दखलंदाजी न करें

हर किसी की अपनी पर्सनल लाइफ होती है, ऐसे में आप कभी भी मुंहबोले भाई की पर्सनल लाइफ में बिना उस से पूछे अपनी राय न दें. हो सकता है आप का दखल उसे पसंद न हो.

इन सब बातों का ध्यान रख आप मुंहबोले भाई से शिष्ट और मधुर रिश्ता बनाए रख सकती हैं.

Manohar Kahaniya: शादी का झांसा देने वाला फरजी सीबीआई अधिकारी

12 दिसंबर, 2017 को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के थाना अशोका गार्डन में काफी भीड़भाड़ थी. धीरेधीरे यह भीड़ बढ़ती जा रही थी. लोग यह जानने के लिए उस भीड़ का हिस्सा बनते जा रहे थे कि आखिर यहां हो क्या रहा है? लोग उत्सुकता से एकदूसरे का मुंह भी ताक रहे थे कि यहां हो क्या रहा है? उधर से गुजरने वाला हर आदमी बिना ठिठके आगे नहीं बढ़ रहा था.

इस की वजह यह थी कि शायद माजरा उस की समझ में आ जाए. जब उन्हें सच्चाई का पता चला तो सभी के सभी हक्केबक्के रह गए. एक लड़की, जिस की उम्र 23-24 साल रही होगी, वह एक लड़के का गिरेबान पकड़ कर कह रही थी, ‘‘सर, इस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. इस ने मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा किया है.’’

इस के बाद उस लड़की ने थाना पुलिस को जो बताया, उस के अनुसार उस लड़के ने फरजी आईपीएस अधिकारी बन कर उसे शादी का झांसा दिया था. काफी समय तक वह उस की इज्जत को तारतार करते हुए उस के भरोसे से खेलता रहा. यही नहीं, शादी करने के नाम पर उस ने उस से लाखों रुपए भी लिए थे.

लड़की को जब लड़के की सच्चाई का पता चला तो उस ने फरार होने की कोशिश की, लेकिन लड़की ने घर वालों की मदद से उसे पकड़ लिया और थाने ले आई. हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि वह अपनी औलाद को पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दे कि वह खूब तरक्की करे.

ऐसी ही ख्वाहिश याकूब मंसूरी की भी थी. वह अपनी बेटी जेबा को गेट की तैयारी करवा रहे थे. जबकि मुसलमानों में आमतौर पर यही माना जाता है कि लड़कियों को ज्यादा पढ़ालिखा कर उन से नौकरी थोड़ी ही करानी है. लेकिन याकूब मंसूरी की सोच इस के विपरीत थी. वह जेबा को पढ़ालिखा कर कुछ करने के लिए प्रेरित करने के साथसाथ हर तरह से उस की मदद भी कर रहे थे.

जेबा मंसूरी भी अपने वालिद के सपनों को साकार करने में पूरी ईमानदारी से जुटी थी. वह परीक्षा की तैयारी मेहनत से कर रही थी. वह पढ़ने में भी काफी होशियार थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि इस साल वह गेट की परीक्षा पास कर लेगी. इस के लिए वह रातदिन मेहनत कर रही थी. लेकिन जो सपने उस ने बुने थे, उस पर समीर खान की नजर लग गई.

मैट्रीमोनियल साइट से हुई दोस्ती

जवान होती लड़की के लिए हर मांबाप की यही ख्वाहिश होती है कि उन की बेटी के लिए किसी भी तरह एक अच्छा सा लड़का मिल जाए. इस के लिए मांबाप लड़के वालों की तमाम तरह की मांगों को पूरी करने की कोशिश भी करते हैं. अच्छे रिश्ते के लिए ही याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर बेटी जेबा की प्रोफाइल बनाई थी.

उन्होंने ऐसा बेटी के सुखद भविष्य के लिए किया था. लेकिन हो गया उल्टा. शायद इसीलिए जहां शादी की शहनाई बजनी थी, वहां अब मातम पसरा था. समाज में आज इतना बदलाव आ गया है कि लड़केलड़कियां अपनी पसंद से शादी करने लगे हैं. इस में कोई बुराई भी नहीं है. क्योंकि जब लड़के और लड़की को जीवन भर साथ रहना है तो पसंद भी उन्हीं की होनी चाहिए.

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इसीलिए अब परिचय सम्मेलन आयोजित किए जाने लगे हैं. इस से सब से बड़ा फायदा यह हुआ है कि लड़के के साथ लड़की को भी अपनी पसंद का जीवनसाथी मिल जाता है. चूंकि जमाना हाइटेक हो चुका है, इसलिए अब विवाह के लिए जीवनसाथी तलाशने का काम औनलाइन भी होने लगा है. कई प्लेटफार्म लोगों की शादी के लिए अच्छा जरिया बन गए हैं.

जेबा मंसूरी ने थाना अशोका गार्डन पुलिस को जो तहरीर दी थी, उस के अनुसार शादी के नाम पर उस के साथ धोखा हुआ था. जेबा ने नए साल में अपने लिए तरहतरह के जो अरमान पाले थे, नए साल के कुछ दिनों पहले ही उस के साथ जो हुआ, उस से उस के सारे अरमान एक ही झटके में चकनाचूर हो गए.

उस ने क्या सोचा था और उस के साथ क्या हो गया. शादी के नाम पर उस लड़के ने उस के साथ बहुत भयानक खेल खेला था, जिसे वह चाह कर भी इस जनम में नहीं भुला पाएगी. जेबा ने जो शिकायत दर्ज कराई है, उस के अनुसार उस के शादी के नाम पर धोखा खाने की कहानी कुछ इस प्रकार है—

जेबा प्रतियोगी परीक्षा गेट की तैयारी कर रही थी. जवान होती बेटी की शादी के लिए पिता याकूब मंसूरी ने शादी डाटकौम पर प्रोफाइल बना दी थी. शादी डाटकौम के जरिए शादी के लिए उस की प्रोफाइल पर एक रिक्वेस्ट आई. रिक्वेस्ट में दिए मोबाइल नंबर पर याकूब मंसूरी ने बात की.

इस बातचीत में उस ने अपना नाम समीर खान बताया था. उस ने बताया कि वह चेन्नई में सीबीआई में बतौर अंडरकवर डीएसपी नौकरी करता है. याकूब ने उस के घर वालों से बात करने की इच्छा जाहिर की तो उस ने अपने पिता अनवर खान का नंबर दे दिया. अनवर खान से समीर खान के बारे में जानकारी ली गई तो पता चला कि उन का बेटा समीर सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है. फिलहाल उस की पोस्टिंग चेन्नई में है.

बातचीत के लिए जेबा को ले गया होटल में

इस के बाद समीर ने याकूब मंसूरी से जेबा का मोबाइल नंबर यह कह कर मांग लिया कि वह उस से बात करेगा. अगर वह उसे पसंद आ गई तो वह इस जानपहचान को जल्दी ही शादी जैसे खूबसूरत रिश्ते में बदल देगा. याकूब मंसूरी ने समीर की बातों पर विश्वास कर के उसे जेबा का नंबर दे दिया.

अक्तूबर महीने में एक दिन जेबा के मोबाइल पर समीर ने फोन किया. दोनों में काफी देर तक बातें हुईं. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर परिवार और विचारों के बारे में बताया. समीर ने ऐसी लच्छेदार बातें कीं कि जेबा उस के दिखाए सब्जबाग में फंस गई. इस के बाद अकसर उन की बातें होने लगीं. वाट्सऐप पर भी संदेशों का आदानप्रदान होने लगा.

ऐसे में ही एक दिन समीर ने भोपाल आ कर जेबा से मिलने की ख्वाहिश जाहिर की, जिसे वह मना नहीं कर सकी. समीर के भोपाल आने की बात पर एक ओर जहां जेबा खुश हो रही थी, वहीं दूसरी ओर अंजाना सा डर भी सता रहा था. क्योंकि किसी से फोन पर बात करना अलग बात होती है और आमनेसामने मिलना अलग.

लेकिन शादी का मामला था, इसलिए जेबा ने मिलना मुनासिब समझा. आखिर वह समीर को लेने भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई.  यह 22 नवंबर, 2017 की बात है. दोनों ने एकदूसरे को देखा तो पहली नजर में ही पसंद कर लिया.

समीर ने जेबा के घर जाने के बजाय उस के साथ स्टेशन से सीधे नूरउससबा पैलेस होटल पहुंचा. जबकि जेबा उसे घर ले जाना चाहती थी. लेकिन समीर की मरजी के आगे उस की एक न चली.

होटल में उस ने डबलबैड कमरा लिया था, जिस में दोनों 2 दिनों तक रुके. इस बीच समीर ने अपने परिवार के बारे में जेबा को खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया. उस के बताए अनुसार, उस के परिवार के ज्यादातर लोग सरकारी नौकरियों में हैं. कोई जज है तो कोई इसी तरह की अन्य सरकारी नौकरी में. अपने पिता के बारे में उस ने बताया कि उन का मुंबई में कपड़ों का बहुत बड़ा बिजनैस है, इसलिए वह वहीं रहते हैं. वह बनारस का रहने वाला है, जहां उस की काफी जमीनजायदाद है.

समीर ने पसंद किया जेबा को

अपने घरपरिवार के बारे में बता कर समीर ने जेबा से कहा कि वह उसे पसंद है और उस से शादी के लिए तैयार है. समीर अच्छे घर का लड़का था और सीबीआई में अफसर था, इसलिए जेबा ने भी हामी भर दी. जेबा के हां करते ही समीर उस से छेड़छाड़ करने लगा. इस के बाद सारी मर्यादाएं लांघते हुए उस ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना लिए.

जेबा भी उस के बहकावे में आ कर गुनाहों के ऐसे दलदल में जा फंसी, जहां से निकलना किसी भी लड़की के लिए बहुत मुश्किल होता है. भोपाल में 2 दिन रुकने के बाद समीर ने कहा कि औफिशियल काम से उसे दिल्ली जाना है. इस से जेबा को लगा कि वाकई उसे वहां जरूरी काम होगा.

लेकिन बाद में पता चला कि वह सब झूठ था. यह सब जेबा काफी बाद में जान पाई. दिल्ली जाने के बाद समीर ने उसे फोन किया. डरते हुए उस ने बताया कि उन के होटल में रुकने का पता उस के घर वालों को चल गया है, जिस से वे काफी नाराज हैं. उस की बातें सुन कर जेबा शौक्ड रह गई. वह यह क्या कह रहा है, अब क्या होगा, उस की कितनी बदनामी होगी?

समीर ने जेबा को समझाते हुए कहा कि वह बिलकुल परेशान न हो. यह बात भोपाल में किसी को पता नहीं है, सिर्फ उस के घर वालों को ही पता है. इस बात से वे काफी नाराज हैं. लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है. कुछ दिनों में वह सब संभाल लेगा. वह बिलकुल परेशान न हो. वह उन्हें मना लेगा. वह फिर भोपाल आ रहा है. 2 दिन बाद समीर फिर भोपाल आया और नूरउससबा होटल के उसी कमरे में ही रुका. लेकिन इस बार जेबा होटल में उस के साथ नहीं रुकी, लेकिन उस से मिलने रोज आती रही.

अंत में जब समीर ने दबाव डाला तो वह 8 नवंबर से 23 नवंबर तक होटल में रुकी. समीर से उस के शारीरिक संबंध बन ही चुके थे, इसलिए इस बार भी वह उस से शारीरिक संबंध बनाता रहा.

जेबा ने ऐतराज जताया तो उस ने होटल में ही काजी को बुला लिया और उन के सामने कहा कि वह उस से निकाह कर के उसे अपनी बीवी मान रहा है. इस तरह से जेबा का निकाह समीर से हो गया. वह समीर की बीवी बन कर रहने लगी, जबकि उन के इस निकाह का कोई लिखित सबूत नहीं था.

इतने दिनों तक होटल में साथ रुकने के बाद जेबा समीर को अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए सागर ले गई, जहां मकरोनिया सागर में उस का पुश्तैनी मकान था. वहां भी वह अपनी लच्छेदार बातों के जाल में फंसा कर जेबा के घर वालों के सामने एक अच्छा लड़का बना रहा. याकूब मंसूरी और उन की पत्नी को भी समीर पसंद आ गया था. अब इस रिश्ते में कोई अड़चन नहीं थी. कुछ समय तक सागर में रुक कर दोनों भोपाल लौट आए. समीर भोपाल स्थित जेबा के घर पर भी कई दिनों तक रुका. वहां भी दोनों ने जिस्मानी रिश्ते बनाए.

ट्रेनिंग के लिए जाने की बात कह कर ठगे लाखों रुपए

समीर ने जेबा के साथसाथ उस के घर वालों को भी इस बात का पक्का यकीन दिला दिया था कि वह सीबीआई में अंडरकवर डीएसपी है और उस का सिलेक्शन आईपीएस के रूप में हो गया है, जिस की ट्रेनिंग हैदराबाद में होनी है. आईपीएस की ट्रेनिंग पर वह इसलिए नहीं जा पा रहा था, क्योंकि किसी वजह से स्टे लगा था. लेकिन अब स्टे हट गया है, इसलिए उसे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है.

ऐसे में ही जेबा ने उस से पूछ लिया कि वह वरदी क्यों नहीं पहनता तो उस ने कहा कि वह सीबीआई अफसर है, इसलिए उसे पहचान छिपा कर रखनी पड़ती है. जब कभी औफिस जाना होता है तो वह वरदी पहनता है.

जेबा के कहने पर एक दिन समीर ने उसे आईपीएस की वरदी पहन कर दिखाते हुए कहा कि जब कभी औफिशियल मीटिंग होती है, तब वह यह वरदी पहन कर जाता है. जेबा को उस वरदी पर संदेह हुआ, क्योंकि उस पर सीनियर अफसरों के बैज लगे थे. इस के बाद समीर ने उसे सील लगे हुए कई दस्तावेज दिखाए.

एक दिन समीर परेशान सा सोफे पर चुपचाप बैठा था. जेबा ने परेशानी की वजह पूछी तो उस ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘क्या बताऊं, मुझे ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद जाना है, जिस के लिए काफी पैसों की जरूरत है. होटल में मिलने को ले कर पापा अभी तक नाराज हैं, इसलिए उन से किसी तरह की मदद की उम्मीद नहीं है. अब परेशानी यह है कि ट्रेनिंग का खर्च कहां से आएगा.’’

समीर की बातों में आ कर जेबा ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, मैं आप के लिए पैसों का इंतजाम कर दूंगी.’’

समीर मना करता रहा, इस के बावजूद कई बार में जेबा ने तकरीबन 2 लाख रुपए उसे दे दिए. क्योंकि उसे कभी उस पर संदेह नहीं हुआ था.

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परिवार से मिलवाने की बात को टाल जाता था

जब भी जेबा समीर से घर वालों के बारे में पूछती या मिलवाने की बात कहती, वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. जेबा को उस से मिले करीब 2 महीने हो गए थे, लेकिन उस ने अपने मम्मीपापा से मिलवाने की कौन कहे, फोन पर बात तक नहीं करवाई थी.

इन्हीं बातों से जेबा को उस पर शक होने लगा. संदेह गहराया तो उस ने अपने पापा से समीर के बारे में पता करने को कहा. उस ने और उस के मम्मीपापा ने समीर से उस की नौकरी और पढ़ाई के कागजात मांगे तो वह टालमटोल करने लगा. याकूब मंसूरी ने अपने कई परिचितों को समीर के बारे में पता करने के लिए लगा दिया. नतीजा यह निकला कि उस की असलियत का पता चल गया.

समीर को पता नहीं कैसे भनक लग गई कि उस की पोल खुल गई है. वह अपना बैग ले कर घर से भागने की फिराक में था, तभी जेबा ने कहा, ‘‘समीर, हमें तुम्हारी असलियत का पता चल गया है. अब मैं तुम्हें पुलिस के हवाले करूंगी, जिस से तुम्हारी जिंदगी जेल में कटेगी.’’

समीर डर गया. उस ने कहा, ‘‘अगर तुम लोगों ने मेरी शिकायत पुलिस में की तो मैं तुम सभी को जान से मार दूंगा.’’

लेकिन उस की इस धमकी से न जेबा डरी और न उस के मम्मीपापा. याकूब मंसूरी ने अपने दोस्तों की मदद से समीर को पकड़ लिया और थाना अशोका गार्डन ले गए, जहां वह खुद को पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाता रहा और वादा करता रहा कि जेबा से ही शादी करेगा.

लेकिन शादी का झांसा दे कर शारीरिक शोषण करने के साथ लाखों रुपए ऐंठने वाले समीर की असलियत जेबा को पता चल गई थी, इसलिए उस ने उस की किसी बात पर भरोसा नहीं किया. मामले की नजाकत को भांपते हुए अशोका गार्डन पुलिस ने समीर को तुरंत हिरासत में ले लिया.

समीर को हिरासत में लेने के बाद पुलिस ने याकूब मंसूरी के घर में रखे उस के बैग को कब्जे में ले कर तलाशी ली तो उस में से राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, सीबीआई सहित कई संस्थानों की फरजी मोहरें मिलीं. यही नहीं, उस के पास से डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की वरदी भी मिली. समीर ने एक गलती यह की थी कि उस ने जो वरदी खरीदी थी, वह डीआईजी रैंक के पुलिस अधिकारी की थी. 3 स्टार और अशोक चक्र लगी वरदी को पुलिस ने कब्जे में ले लिया था. पूछताछ में उस ने बताया कि यह वरदी उस ने बिहार के भागलपुर से खरीदी थी.

शातिर दिमाग है ठग समीर खान

एएसपी हितेश चौहान के अनुसार, समीर अनवर खान बहुत ही शातिर दिमाग था. उस ने बड़ी चालाकी से शादी डाटकौम पर अपनी प्रोफाइल बना कर जेबा मंसूरी जैसी पढ़ीलिखी लड़की को अपने जाल में फांस लिया था. बाद में पता चला कि उस ने ऐसा ही कारनामा पंजाब में किया था. मध्य प्रदेश पुलिस ने पंजाब पुलिस से जानकारी हासिल की तो पता चला कि ऐसे ही मामले में वह वहां भी गिरफ्तार किया गया था. जमानत पर रिहा होने के बाद वह फरार हो गया था.

पुलिस द्वारा की गई पूछताछ के अनुसार, समीर मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी का रहने वाला था. उस ने दिखावे के लिए एमटेक में अप्लाई कर रखा था. उस के पिता मुंबई में झुग्गीझोपड़ी में रहते थे और फेरी में कपड़े बेच कर गुजरबसर करते थे. उस ने जेबा से बताया था कि वाराणसी में उस की तमाम जमीनजायदाद है, लेकिन यह सब झूठ था.

मजे की बात यह थी कि उस ने पंजाब में जो धोखाधड़ी की थी, उस में उस ने 40-50 लाख रुपए की चपत लगाई थी. लेकिन कहीं से भी नहीं लगता था कि इतना पैसा उस के पास होगा.

थाना अशोका गार्डन पुलिस ने समीर के खिलाफ भादंवि की धारा 170, 419, 420, 471, 472, 473, 376 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. कथा लिखे जाने तक समीर पुलिस रिमांड पर था. पुलिस उस से कई पहलुओं पर पूछताछ कर रही थी. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में समीर ने जो बताया है, उस से जाहिर होता है कि वह छोटामोटा अपराधी नहीं है.

होटल प्रबंधन को भी लगाया लाखों का चूना

समीर कितना शातिरदिमाग है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह भोपाल के सब से मशहूर होटल नूरउससबा में 2 नवंबर, 2017  से 23 नवंबर, 2017 तक लड़की के साथ रुका रहा, लेकिन होटल प्रबंधन को उस की कारगुजारियों की तनिक भी भनक नहीं लगी. वह इतने बड़े होटल को लाखों का चूना लगा कर रफूचक्कर हो गया था.

अच्छा हुआ कि वक्त रहते जेबा मंसूरी को उस पर शक हो गया, वरना हाथ से निकलने के बाद फिर शायद ही कभी वह चंगुल में फंसता. नूरउससबा पैलेस होटल में 20 दिनों से ज्यादा रहने के बाद भी वह पैसे दिए बिना  वहां से फरार हो गया था. होटल प्रबंधन के बताए अनुसार, 2 नवंबर से 23 नवंबर, 2017 तक होटल में रहने और खानेपीने का बिल 2 लाख 15 हजार 311 रुपए बना था.

समीर ने चालाकी से काम लेते हुए होटल प्रबंधन को भरोसे में लेने के लिए 20 हजार रुपए एडवांस जमा करा दिए थे. उसे वहां 24 नवंबर तक रुकना था, लेकिन एक दिन पहले ही वह अपना बोरियाबिस्तर समेट कर वहां से चलता बना.

पंजाब में आईएएस बन कर कर चुका है फरजीवाड़ा

समीर के बताए अनुसार, उस ने पंजाब के कपूरथला में भी एक बीएससी की छात्रा के साथ जालसाजी की थी. वहां भी उस ने कुछ ऐसी ही कहानी गढ़ी थी. उस ने वहां बताया था कि उस का सिलेक्शन आईएएस में हो गया है. इस तरह उस के बहकावे में आ कर उस लड़की ने समीर से सन 2016 में निकाह कर लिया था. वहां उस ने अपना नाम शमशेर बताया था.

जब फरजी आईएएस का झूठ सामने आया तो कपूरथला के थाना फगवाड़ा पुलिस ने जनवरी, 2016 में शमशेर के खिलाफ धोखाधड़ी, दहेज अधिनियम और धमकाने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर के उसे गिरफ्तार कर लिया था. शमशेर उर्फ समीर वहां 2 महीने तक जेल में बंद रहा. उस की दादी ने जमानत कराई तो जेल से बाहर आते ही वह फरार हो गया.

अब देखना यह है कि मध्य प्रदेश के साथसाथ पंजाब पुलिस समीर उर्फ शमशेर को धोखाधड़ी, पैसे ऐंठने, शारीरिक शोषण और फरजी पदों का गलत इस्तेमाल करने के अपराध में कितनी सजा दिलवा सकती है. पुलिस यह भी पता कर रही है कि यह काम समीर अकेला ही करता था या उस के साथ और कोई भी था.

VIDEO : टेलर स्विफ्ट मेकअप लुक

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