लकवा एक ऐसी बीमारी है जो बच्चे का पूरा जीवन खराब कर सकती है. ऐसे में बच्चे के मातापिता को इस बीमारी से जुड़ी कुछ बातों की जानकारी होना जरूरी है. इसलिए पेश हैं कुछ अहम सुझाव जो आप के बच्चे को स्वस्थ रखेंगे:

क्या है सेरेब्रल पाल्सी

इसे आम भाषा में बच्चों का लकवा या लिटिल डिजीज कहते हैं, क्योंकि इस के लक्षण लकवे से मिलते हैं.

पीडि़त बच्चों का प्रतिशत

भारत में 3-4% बच्चे इस बीमारी से ग्रस्त हैं.

बीमारी के लक्षण

– बच्चा 5 महीने का हो गया हो और अब तक गरदन नहीं संभाल पाता हो.

– 10 महीने का हो गया हो और बिना सहारे नहीं बैठ पाता हो.

– 15 महीने का हो गया और बिना सहारे खड़ा या चलफिर नहीं पाता हो.

– चलतेफिरते गिर जाता हो.

– एक हाथ और एक पैर से काम नहीं करता हो.

– शारीरिक वृद्धि उम्र के हिसाब से कम हो.

– किसी कार्य में ध्यान नहीं लगाता हो.

– साफ नहीं बोल पाता हो.

– क्या बच्चे की मांसपेशी काफी सख्त व खिंची हुई है?

– क्या बच्चे के हाथपैरों में किसी तरह का विकार (टेढ़मेढ़े) हैं?

– क्या बच्चा आंखें एक जगह नहीं टिकाता?

– क्या बच्चे के पैर में कंपन होता है?

– क्या आप के आवाज देने पर नहीं देखता?

– क्या बच्चे को उठाने पर वह पैरों को कैंची की अवस्था में कर लेता है?

सावधानियां

– पेट में बच्चे का मूवमैंट बराबर महसूस होना चाहिए. यदि मां को ब्लडप्रैशर, शुगर या थायराइड की शिकायत हो तो बराबर डाक्टर के संपर्क में रहें.

इस बीमारी में 70% बच्चे मंदबुद्धि होते हैं और 30% का आई क्यू लैवल नौर्मल होता है. बच्चे के जन्म के बाद जब हौस्पिटल से डिसचार्ज किया जाता है तो उस पर एसफेक्सिया लिखा रहता है. इस का मतलब होता है कि बच्चा 2 मिनट के अंदर रोया था या नहीं यानी उस के दिमाग में औक्सीजन पहुंची या नहीं.

इलाज की संभावना

वैसे तो सुधार किसी भी उम्र में संभव है पर 0 से 6 साल के बच्चों में सुधार तेजी से

आता है, इसलिए इसे अर्ली इंटरवैंशन पीरियड कहते हैं. वैसे तो लक्षण के आधार पर ही बीमारी का पता चल जाता है, फिर भी सीटी स्कैन या एमआरआई करवाई जा सकती है. ध्यान रखें कि पोलियो और सेरेब्रल पाल्सी बीमारियां अलगअलग हैं.

बीमारी के लक्षण दिखें तो तेल की मालिश बिलकुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि उस से जकड़न और बढ़ जाती है. इस रोग से ग्रस्त कुछ बच्चों में दौरा पड़ने की भी संभावना होती है. अत: लक्षण दिखने पर डाक्टर से संपर्क करें.

किन किन बातों का ध्यान रखें

– बच्चे की ऐक्टिविटीज चिकित्सक के निर्देशानुसार कराएं.

– यदि बच्चा सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त हो तो उसे पीछे पैरों (डब्ल्यू टाइप सीटिंग) में बिलकुल न बैठने दें.

– अंधविश्वासों व जुमलों जैसे सेवा करो, कुछ नहीं हो सकता, पैसा व समय बरबाद

मत करो, दूसरे बच्चों में ध्यान दो, इस का कोई इलाज नहीं, धीरेधीरे स्वत: ठीक हो जाएगा.

– ध्यान रहे स्वत: कुछ भी नहीं होता, काम करने से ही सफलता मिलती है. कहीं आप सोचते न रह जाएं और समय निकल जाए एवं बच्चा अपंग ही रह जाए. जिस तरह डायबिटीज, ब्लडप्रैशर आदि का इलाज है उसी तरह सेरेब्रल पाल्सी का भी है.

– बच्चे का वजन बढ़ने से ज्यादा उस के ऐक्टिव होने पर ध्यान दें.

– बच्चे के पहले 6 वर्ष अति महत्त्वपूर्ण हैं. इस समय बच्चे के उपचार पर पूर्ण ध्यान देने से काफी अच्छा परिणाम मिलता है.

– इलाज करने हेतु बारबार चिकित्सक बदलने की प्रवृत्ति से बचें.

– ऐक्टिविटीज कराने हेतु अस्पताल में लाने की कोशिश करें.

– ऐक्टिविटीज जल्दीबाजी में न करें.

– शरीर की तेल से मालिश बिलकुल न करें.

– यदि बच्चे की शारीरिक वृद्धि धीमी है, तो उसे नजरअंदाज न कर तुरंत चिकित्सक से मिलें.

– आशावादी सोच रख कर बच्चे के उपचार पर ध्यान दें यकीनन फायदा होगा.

– जो ऐक्टिविटीज आप नहीं कर पा रहे हैं उन्हें न कराएं और पुन: चिकित्सक से संपर्क करें.

– उपचार सामान्यतया लंबे समय तक चलता है और आराम धीरेधीरे आता है.

– उपचार के दौरान बच्चे में आए विकास को स्वयं महसूस करें व चिकित्सक से जानकारी लें. लोगों की बातों ध्यान न दें.

– डा. दीपक टाक, डायरैक्टर दीपक के.एम. अस्पताल, जयपुर, अजमेर

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...