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सोनाली फोगट की मौत को लेकर भाई ने किया दावा, कहा- ‘मेरी बहन की हत्या की गई’

सोनाली फोगट की मौत को लेकर भाई रिंकु ने किया दावा, कहा- ‘मेरी बहन की हत्या की गई’’बिग बॉस 14′ फेम सोनाली फोगट (Sonali Phogat) की मौत 23 अगस्त को हार्ट अटैक आने की वजह से हो गई. इस खबर से पूरी इंडस्ट्री में में शोक की लहर छा गई. इसी बीच खबर आ रही है कि सोनाली फोगाट के के भाई रिंकू ढाका ने दावा किया है कि उनकी बहन का मर्डर किया गया है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला…

रिपोर्ट के अनुसार, सोनाली फोगाट के भाई ने गोवा पुलिस में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है जिसमें दावा किया गया है कि उनकी बहन की हत्या उनके दो सहयोगियों ने की है. रिंकू ढाका ने आरोप लगाया कि मौत से कुछ समय पहले सोनाली फोगाट ने अपनी मां, बहन और एक अन्य रिश्तेदार से बात की थी और इस दौरान वह परेशान थी और उन्होंने अपने दो सहयोगियों के खिलाफ शिकायत की थी. उन्होंने दावा किया कि हरियाणा में उनके फार्महाउस से सीसीटीवी कैमरे, लैपटॉप और अन्य महत्वपूर्ण चीजें उनकी मौत के बाद गायब हो गई हैं.

 

सोनाली फोगट को हरियाणा के हिसार से मंगलवार सुबह नार्थ गोवा के अंजुना के सेंट एंथोनी अस्पताल में मृत लाया गया. बताया गया कि उनकी मौत हार्ट अटैक आने की वजह से हुई. सोनाली फोगट की फैमिली मंगलवार रात गोवा पहुंची. जहां भाई रिंकू ढाका ने गोवा में अंजुना पुलिस से दावा किया कि सोनाली की हत्या की गई है.

 

बाताया जा रहा है कि ढाका ने कहा है कि  ‘हमने उनसे दूर रहने और अगले दिन हिसार लौटने के लिए कहा था. उन्होंने दावा किया कि पुलिस ने दो व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया है. उन्होंने कहा, अगर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो हम गोवा में पोस्टमॉर्टम नहीं होने देंगे.

 

आजादी का महामहोत्सव: 75 सालों में रसातल में रिसर्च

किसी भी देश की प्रगति में वहां की टैक्नोलौजी का बड़ा महत्त्व होता है. टैक्नोलौजी के लिए रिसर्च की जरूरत होती है. भारत मे साइंस और टैक्नोलौजी की फील्ड में सब से कम रिसर्च हो रही है. नतीजतन हमारे देश में जरूरत की हर चीज विदेशों से आई. जरूरत है कि रिसर्च को बढ़ावा दिया जाए और इस को जनता के लिए उपयोगी बनाया जाए.

जब भी आविष्कार की बात होती है, भारत के लोग बेहद फख्र के साथ आर्यभट्ट का नाम ले कर कहते हैं कि जीरोष का आविष्कार हमारे देश की खोज थी. हवा में उड़ने वाले पुष्पक विमान को रामायणकाल का बताया जाता है. अगर आधुनिक युग की टैक्नोलौजी को देखें तो एक भी बड़ा आविष्कार भारत में नहीं हुआ, चाहे वह हवाई जहाज हो, सड़क पर चलने वाली गाडि़यां हों या बातचीत करने के साधन हों. सब के सब विदेशों से आए और यहां की तरक्की का आधार बने.

रिसर्च की दुनिया का सब से बड़ा पैमाना नोबेल पुरस्कार को माना जाता है. भारत को रिसर्च के क्षेत्र में केवल 3 पुरस्कार ही मिले हैं. वर्ष 1930 में सी वेकेंटरमन को भौतिक विज्ञान, 1983 में एस चंद्रशेखर को भी भौतिक विज्ञान और 2009 में वी रामकृष्णनन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिले.

अगर सामान्य रूप से रिसर्च को सम?ाने की कोशिश करें तो एक दूसरा उदाहरण पेश है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मलिहाबाद का दशहरी आम पूरी दुनिया में मशहूर है. मलिहाबाद को इस की वजह से ही ‘फल क्षेत्र’ घोषित किया गया. यहां कृषि अनुसंधान केंद्र भी खोला गया जिस का उद्देश्य था कि वह बागबानों और ग्राहकों की पसंद के दशहरी आम की कोई नई किस्म तैयार करे जिस की आयु 10 दिन से अधिक हो. दशहरी आम की शैल्फ लाइफ 10 दिन होने के कारण इस को दशहरी कहा जाता है.

जलवायु परिर्वतन को देखते हुए इस की शैल्फ लाइफ बढ़ाने की बात उठी. कृषि अनुसंधान केंद्र ने दशहरी आम की कोई ऐसी किस्म नहीं तैयार की जो 10 दिनों से अधिक चल सके. इस के कारण दशहरी आम की डिमांड होने के बाद भी इसे विदेशों में नहीं भेजा जा सकता. जो आम विदेशों में भेजे भी जाते हैं वे आसपास के देशों तक जाते हैं और कम तादाद में भी भेजे जाते है. हवाईजहाज से भेजे जाने के कारण महंगा खर्च आता है. अगर दशहरी आम की शैल्फ लाइफ बढ़ जाए तो इस परेशानी से बचा जा सकता है. बागबान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. यह एक छोटा उदाहरण है. ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां रिसर्च न होने के कारण 75 सालों में भी देश विकसित देशों की बराबरी में खड़ा नहीं हो सका है.

रिसर्च के क्षेत्र में भारत की हालत

भारत साइंटिफिक रिसर्च पेपर पब्लिश करने के मामले में अग्रणी देशों की सूची में है. आंकड़े बताते हैं कि 2018 में चीन पहले और अमेरिका दूसरे नंबर पर रहे और भारत तीसरे नंबर पर. एक साल में छपने वाले साइंटिफिक पेपर्स की संख्या की बात करें तो भारत इस मामले में काफी पीछे है. अमेरिका में 2018 में 4,22,808 जबकि चीन में सब से ज्यादा 5,28,263 और भारत में 1,35,338 वैज्ञानिक पेपर्स प्रकाशित किए गए.

आंकड़े बताते हैं कि जिन देशों में साइंटिफिक पेपर्स काफी कम छपते हैं, वहां नोबेल विजेता ज्यादा हैं. इस सूची में भी अमेरिका नंबर एक पर है. वहां 375 नोबेल विजेता हैं. ब्रिटेन में 131, जरमनी में 108, रूस में 31 नोबेल पुरस्कार विजेता हैं. चीन में 8 नोबेल पुरस्कार विजेता हैं जिन में से 5 को वैज्ञानिक क्षेत्र में सम्मानित किया गया था.

भारत की हालत यहां बेहद नाजुक है. भारत में अब तक केवल 11 नोबेल विजेता हुए हैं. इन में से 2 बार पुरस्कार विदेशियों को दिया गया था जबकि बचे 9 में 4 पुरस्कार भारत ने वैज्ञानिकी क्षेत्र में जीते हैं. पश्चिमी देश वैज्ञानिकी क्षेत्र, नवीनीकरण और प्रगति में काफी आगे हैं. इस का नतीजा है कि अमेरिका और यूरोप में दुनिया के सब से अधिक वैज्ञानिक और तकनीकी विश्वविद्यालय हैं. भारत में भले ही बड़ी संख्या में साइंटिफिक जनरल छपते हों लेकिन वैज्ञानिक रिसर्च यहां उतनी नहीं होती.

यूनेस्को की 2015 की विज्ञान रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 से भारत की अनुसंधान तीव्रता में गिरावट आ रही है. इस की वजह वैज्ञानिक शोधों को मिल रहे कम फंड को माना जाता है. भारत में वैज्ञानिक शोधों के लिए कम फंडिंग काफी पुरानी समस्या है.

वर्ष 2021-22 के बजट में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को 14,793.66 करोड़ रुपए दिए गए थे. यह साल 2020-21 से 12 फीसदी और 2015-16 से 15 फीसदी अधिक था. मंत्रालय के 3 विभाग विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, जैव प्रौद्योगिकी विभाग और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान विभाग हैं.

आंकड़े बताते हैं कि करीब 42 रिसर्च एंड डैवलपमैंट यानी आर एंड डी निजी क्षेत्रों द्वारा कराए जाते हैं. यह क्षेत्र रिसर्च के शुरुआती स्टेज पर बेहद कम ध्यान देता है. इसलिए वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना जरूरी हो जाता है.

बजट और सुविधाएं न होने के कारण विश्वविद्यालयों द्वारा रिसर्च को कम ही प्रोत्साहित किया जाता है. रिसर्च करने वालों को बेहतर कैरियर बनाने का मौका भी नहीं दिया जाता है.

शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित अखिल भारतीय उच्चशिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार,

70 फीसदी से अधिक कालेज प्राइवेट हैं. इन कालेजों का ध्यान मुख्यरूप से अनुसंधान को आगे बढ़ाने के बजाय शिक्षण और औद्योगिक प्लेसमैंट पर ज्यादा होता है. भारत में विश्वविद्यालयों की हालत बेहद खराब है. यही वजह है कि 100 सब से अच्छे विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का कोई विश्वविद्यालय नहीं है. इसी सूची में चीन के 6 विश्वविद्यालय हैं.

रिसर्च पर टिकी होती है विकास की नींव

किसी भी देश का विकास वहां के लोगों के विकास के साथ जुड़ा हुआ होता है. इस के लिए यह जरूरी हो जाता है कि जीवन के हर पहलू में विज्ञान, तकनीक और शोधकार्य अहम भूमिका निभाएं. विकास के पथ पर कोई देश तभी आगे बढ़ सकता है जब उस की आने वाली पीढ़ी के लिए सूचना और ज्ञान आधारित वातावरण बने और उच्च शिक्षा के स्तर पर शोध तथा अनुसंधान के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध हों. हमारे देश में इन बातों को ले कर पिछले 75 सालों में भाषण और बयानबाजी तो बहुत हुई पर इस दिशा में काम बेहद कम हुआ. पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफैशनल यूनिवर्सिटी में 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के आयोजन समारोह में ‘भविष्य का भारत : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ विषय पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जय जवान जय किसान जय विज्ञान’ में ‘जय अनुसंधान’ भी जोड़ दिया. इस के बाद भी रिसर्च की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया.

भारत रिसर्च के क्षेत्र में चीन, जापान जैसे देशों से पीछे है. भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अग्रणी देशों में 7वें स्थान पर है. भारत में मल्टीनैशनल कौर्पोरशन रिसर्च एंड डैवलपमैंट केंद्रों की संख्या 2010 में 721 थी. यह 2018 में 1150 तक पहुंच गई है. इस के बाद भी भारत के हाथ कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है. भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विकास तथा अनुसंधान की स्थिति धरातल पर उतनी मजबूत नहीं जितनी कि भारत जैसे बड़े देश की होनी चाहिए. नोबेल पुरस्कार एक विश्व प्रतिष्ठित विश्वसनीय पैमाना है जो विज्ञान और शोध के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों के जरिए किसी देश की वैज्ञानिक ताकत को बतलाता है. इस मामले में भारत की उपलब्धि लगभग जीरो है. वर्ष 1930 में सर सी वी रमन को मिले नोबेल पुरस्कार के बाद से अब तक कोई भी भारतीय वैज्ञानिक इस उपलब्धि को हासिल नहीं कर पाया. इस का कारण है कि देश में मूलभूत अनुसंधान के लिए उपयुक्त साधन नहीं हैं.

दिनोंदिन खराब होते हालात

अगर 40-50 साल पहले की बात करें तो देश में लगभग 50 वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वविद्यालय ही होते थे. धीरेधीरे विश्वविद्यालयों में अनुसंधान के लिए धन की कमी होती चली गई. अब हालत यह है कि युवावर्ग की दिलचस्पी वैज्ञानिक शोध में कम तथा अन्य क्षेत्रों में ज्यादा होती है. सरकार ने रिसर्च करने वाले युवाओं को अच्छे अवसर नहीं दिए. एक सर्वे बताता है कि हर साल लगभग 3000 अनुसंधान शोधपत्र तैयार होते हैं लेकिन इन में कोई नया आइडिया या विचार नहीं होता. विश्वविद्यालयों, प्रयोगशालाओं पर यहां बहुत कम खर्च किया जाता है. साल 2035 तक तकनीकी और वैज्ञानिक दक्षता हासिल करने के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने टैक्नोलौजी विजन 2035 नाम से एक रूपरेखा तैयार की है. इस में शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य, खाद्य और कृषि, जल, ऊर्जा, पर्यावरण इत्यादि जैसे 12 विभिन्न क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिए जाने की बात कही गई है.

इस को पूरा करने के लिए विज्ञान

तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षकों की संख्या में बढ़ोतरी की जाए ताकि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों का अभाव जैसी मूलभूत समस्या को दूर किया जा सके. विदेशों के साथ सा?ा कार्यक्रम हो जिस से युवाओं को रिसर्च के क्षेत्र में बेहतर अवसर मिल सकें. एक ऐसी नीति बनानी होगी जिस में समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक प्रसार को बढ़ावा देने और सभी सामाजिक स्तरों से युवाओं के बीच विज्ञान के रिसर्च के लिए कौशल को बढ़ाने पर जोर दिया गया हो. पिछले साल महामारी के बीच एमफिल और पीएचडी कर रहे 530 स्टूडैंट्स पर किए एक सर्वे में रिसर्च स्टूडैंट्स का कहना था कि उन्हें अगर रिसर्च के लिए जरूरी सामग्री या लैब की सुविधा नहीं मिली तो वे रिसर्च छोड़ देंगे. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में रिसर्च की हालत कैसी है.

नाकाफी हैं सुधार

उच्चशिक्षा से जुड़े एक और मामले में शिक्षा मंत्रालय ने औल इंडिया सर्वे औन हायर एजुकेशन 2019-20 की रिपोर्ट में यह बताया कि देश में पीएचडी करने वालों की संख्या 2020 में बढ़ कर 2.03 लाख हो गई है जो 2015 में 1.17 लाख थी. उच्चशिक्षा संस्थानों में सिर्फ पीएचडी करने वालों की तादाद ही नहीं बढ़ी है, दाखिलों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. वर्ष 2019-20 के सत्र में 3.85 करोड़ छात्रों ने दाखिला लिया.

2015 से 2019 की अवधि में दाखिलों में

11 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि इसी अवधि में लड़कियों के दाखिले में 18 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. पीएचडी करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी को देख कर लगता है कि भारत में उच्चशिक्षा का परिदृश्य बहुत अच्छा हो चुका है लेकिन जब अन्य देशों से इस की तुलना की जाती है तो इस की कमजोरियां स्पष्ट हो जाती हैं. भारत में प्रति 10 लाख लोगों में से 150 पीएचडी करते हैं जबकि चीन में यह आंकड़ा 1,071, ब्राजील में 694, मैक्सिको में 353 और सूडान में 290 प्रति दस लाख है.

भारत में रिसर्च और उच्चशिक्षा में जातीय गैरबराबरी की समस्या भी देखने को मिलती है. राज्यसभा में शिक्षा विभाग की ओर से दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में विज्ञान के प्रमुख संस्थानों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों से आने वाले स्टूडैंट्स की संख्या बेहद कम थी. यहां 2016 से 2020 के बीच एसटी 2 फीसदी, एससी 9 फीसदी और ओबीसी 8 फीसदी स्टूडैंट्स रिसर्च में एडमिशन पा सके. केंद्र सरकार ने इस साल उच्चशिक्षा का बजट 1116 करोड़ रुपए घटा दिया है. ऐसे में बेहतर की उम्मीद कैसे की जा सकती है. हम आजादी का जो अमृत महोत्सव मना रहे हैं उस का उत्साह फीका है.

भारत भूमि युगे युगे: सीजनल दलित

उत्तर प्रदेश के मंत्री दिनेश खटीक उन भाजपाई दलितों में से एक हैं जो कोई ज्यादती होती है तो अपनी जाति का रेनकोट पहन कर हायहाय करने लगते हैं कि देखो, मैं दलित हूं, इसलिए मेरी अनदेखी की जा रही है. अफसर मेरी सुनते नहीं, आलाकमान भी ध्यान नहीं देता वगैरहवगैरह. बात अकेले इन मंत्री महोदय की नहीं बल्कि उन लाखों दलितों की है जो दलित रेखा की सीमाएं छोड़ चुके हैं और आर्थिकरूप से संपन्न हो कर लगभग सवर्ण हो चुके हैं. जाति इन के लिए ढाल और हथियार है.

दलितों का वास्तविक अहित स्मार्ट हो गए यही दलित करते हैं. हकीकत में मनुवाद का शिकार हो कर पीडि़त-प्रताडि़त शूद्र न तो इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं और न ही शिकायत कर सकते. दिनेश की मंशा क्या थी, यह तब सम झ आया जब योगीजी से मिल कर वे शांत हो गए. मुमकिन है मंत्रिमंडल के पहले ही फेरबदल में उन्हें इस गुस्ताखी की सजा दे दी जाए.

गिरफ्तारी की बेताबी

पूरे देश सहित दिल्ली में भी शराब ‘पगपग नीर…’ वाली स्टाइल में इफरात से बिकती है. शराब से घर के घर भले ही बरबाद होते हों लेकिन राज्य सरकारें आबाद रहती हैं. दिल्ली की आबकारी नीति में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की भूमिका को ले कर एलजी वी के सक्सेना ने सवाल क्या उठाए, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर भड़क गए कि यह यानी सीबीआई जांच की सिफारिश मनीष को गिरफ्तार करने की तैयारी है. यह बात वे कई दिनों से कह रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार है कि उन की सुन ही नहीं रही.

आमतौर पर लोग गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करते हैं लेकिन केजरीवाल जिस शिद्दत से अपने दाएं हाथ को हथकडि़यों में लिपटे देखना चाहते हैं वह जज्बा हर किसी की सम झ नहीं आ रहा. बात धीरेधीरे अपनेअपने सियासी बापों सावरकर और भगत सिंह तक पहुंच गई तो दिल्ली वालों को मुफ्त का एक और शानदार इवैंट देखने को तैयार रहना चाहिए.

16-7=9

मध्य प्रदेश निकाय चुनावों में भाजपा पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई, जिस के तहत पूरे 16 नगरनिगम उस की  झोली में आए थे. हालिया चुनाव में 7 उस से छिन गए हैं. 5 कांग्रेस ले गई तो 1-1 आम आदमी पार्टी और निर्दलीय के खाते में गया. इस चुनाव में मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिनरात मेहनत की थी पर जब नतीजे आए तो उन का चेहरा लटका हुआ था. मामा का जादू उतर रहा है. रुकरुक कर होने वाली यह चर्चा अब जोर पकड़ रही है.

यह विश्लेषण आंकड़ों और तथ्यों के अलावा आम लोगों के अनुभवों और राजनीतिक सम झ पर आधारित है कि अगर 2023 विधानसभा चुनाव उसे जीतना है तो बासे होते मामा को हटा कर किसी नएनवेले व जोशीले युवा को लाना पड़ेगा जिस का नाम विश्वास सारंग है. बाकी बूढ़े नाम नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर खारिज किए जा चुके हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि हर बार कुरसी बचा ले जाने के एक्सपर्ट शिवराज कौन सा दांव चलेंगे या फिर बढ़ती उम्रजनित थकान उतारने के लिए किसी राजभवन की शोभा बढ़ाएंगे.

मार्गरेट वर्सेस धनखड़

अब बारी उपराष्ट्रपति के चुनाव की है जिस में एनडीए ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल राजस्थान के जाट समुदाय के धाकड़ जगदीप धनखड़ को जबकि संयुक्त विपक्ष ने पुरानी 80 वर्षीया कांग्रेसी नेत्री मार्गरेट अल्वा को मैदान में उतारा है. टक्कर लगभग बराबरी की है बशर्ते नाराज ममता बनर्जी विपक्षी एकता के नाम पर आसानी से मान जाएं.

5 राज्यों की राज्यपाल रहीं मार्गरेट ज्यादा अनुभवी हैं और गांधीनेहरू परिवार की आलोचना के लिए भी जानी जाती हैं.

धनखड़ पश्चिम बंगाल में ममता के सामने लड़खड़ाने लगे थे. वे गिरते, इस से पहले ही उन्हें सम्मानजनक तरीके से बचाने की कवायद शुरू हो गई है. वे अगर हारे तो कहा जाएगा कि कल का कांग्रेसी और समाजवादी नेता हार गया और अगर जीते, जैसा कि वोटों का मौजूदा गणित है तो सुनने को मिलेगा रामभक्त जीता.

सप्लीमेंट: आज की जिंदगी में जरूरी

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में सेहत के लिए जरूरी सप्लीमैंट्स छूट जाते हैं. ऐसे में जरूरी है कि सही मात्रा में सप्लीमैंट्स लिए जाएं.

35 वर्षीया मनीषा अपने पति के साथ मुंबई के एक पौश इलाके में रहती है. वह कौर्पोरेट में सीनियर पोस्ट पर काम करती है. औफिस पहुंचने के लिए वह रोज अपनी गाड़ी से तकरीबन 22 किलोमीटर तय करती है, जिसे ड्राइवर ही चलाता है. एक दिन ड्राइवर की अनुपस्थिति में जब वह गाड़ी खुद ड्राइव कर औफिस जा रही थी, आधी दूरी के बाद उस की आंखों के आगे अचानक अंधेरा छाने लगा. उस ने गाड़ी को किसी तरह किनारे ले जा कर रोका और पानी निकाल कर अपने चेहरे को धो लिया. इस से उस को कुछ ठीक लगने लगा और वह फिर से ड्राइव कर औफिस पहुंच गई. औफिस पहुंचने पर सहकर्मी से मनीषा ने अपनी बात कही. उन्होंने उसे डाक्टर से जांच करवाने की सलाह दी.

मनीषा भी थोड़ी सोच में पड़ गई और डाक्टर के पास गई. डाक्टर ने जांच कर सही पोषण के न मिलने की वजह की कमजोरी बताया और कई विटामिंस की गोलियां लेने व खानपान में सुधार करने की सलाह दी. पहले तो मनीषा को यह सम झ पाना मुश्किल था कि इतनी कम उम्र में उसे पोषण की कमी हुई कैसे, लेकिन यह भी सही था कि घर और बाहर काम का बो झ उस की जिंदगी में कुछ अधिक था. इस वजह से वह समय पर भोजन नहीं ले पाती थी.

नियमित दिनचर्या है गलत

यह सही है कि आज की भागदौड़ की जिंदगी में समय पर भोजन करना, समय से सोना, 7 या 8 घंटे की नींद पूरी करना आदि किसी सपने जैसा हो चला है. ऐसे में लोग सब से अधिक खानपान को नजरअंदाज करने लगे हैं. इस में महिलाओं की संख्या अधिक है. कुछ महिलाएं तो बगैर सुबह का सही नाश्ता लिए औफिस चली जाती हैं, जबकि कुछ नहाधो कर नाश्ता लेती हैं. ऐसे में सप्लीमैंट्स ही उन की शारीरिक जरूरतों को पूरा कर पाते हैं.

इस के अलावा कई बार खुद के हिसाब से सही मात्रा में फल, सब्जियां लेने पर भी सप्लीमैंट्स की जरूरत होती है. कुछ लोग इसे पूरा करने के लिए सीधे मैडिकल शौप पर जा कर ऐसे सप्लीमैंट ले लेते हैं, जिन का प्रभाव कई बार गलत हो जाता है. यहां बता रहे हैं कि शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए सप्लीमैंट लेना कितना सही, कितना गलत है.

सप्लीमैंट है जरूरी

इस बारे में अपोलो स्पेक्ट्रा, मुंबई की डाइटीशियन जिनल पटेल कहती हैं, ‘‘डाइट ही सप्लीमैंट कहलाता है. इस में जो भोजन हम करते हैं, उस के अलावा जो सप्लीमैंट लिया जाता है उसे डाइटरी सप्लीमैंट कहते हैं. ये डाइट में न्यूट्रिएंट्स को जोड़ते हैं. अगर

ये भोजन द्वारा नहीं मिलता तो डाइटीशियन शारीरिक समस्याओं को कम करने के लिए सप्लीमैंट्स देते हैं ताकि हैल्थ प्रौब्लम का रिस्क कम हो जाए. आर्थराइटिस, ओस्टियोपोरोसिस आदि बीमारियों से बचने के लिए डाइटरी सप्लीमैंट्स दिए जाते हैं, जो टेबलेट्स, कैप्सूल्स, पाउडर या लिक्विड फौर्म में होते हैं. बेसिक कंटैंट फाइबर, मिनरल्स, हर्ब्स जैसे होते हैं.

‘‘ऐसा देखा गया है कि शाकाहारी भोजन करने वालों, चाहे पुरुष हों या महिलाएं, को सप्लीमैंट्स लेना पड़ता है. महिलाओं को अधिकतर आयरन और कैल्शियम के सप्लीमैंट्स दिए जाते हैं. अगर महिला गर्भवती होना चाहती है तो उसे आयरन और फोलिक एसिड दिया जाता है, ताकि उसे जरूरत के अनुसार पोषण मिले. महिलाओं को 30 साल की उम्र के बाद ही कैल्शियम के सप्लीमैंट्स दिए जा सकते हैं.’’

मेनोपोज के बाद

सप्लीमैंट्स हैं जरूरी

डा. पटेल बताती हैं, ‘‘पहले मेनोपोज के बाद कैल्शियम दिया जाता था क्योंकि इस के बाद एस्ट्रोजन के बढ़ने से महिला का कैल्शियम कम होता जाता है. पतले हों या प्लस साइज, सभी में माल न्यूट्रीशन होते हैं. मोटापा होने से शरीर में फैट अधिक है लेकिन बाकी चीजें कम हैं. पतले दिखने वालों में कैल्शियम या आयरन की कमी हो सकती है. जरूरत के अनुसार फैट भी नहीं है. दोनों तरह से पेशेंट को मालनरिस्ट कहा जा सकता है. दोनों की जरूरतें एकजैसी हो सकती हैं.

‘‘मेनोपोज में मूड स्विंग होना, खाने को मन न करना, कुछ मानसिक समस्या का होना आदि को देखना जरूरी होता है. इस दौरान महिला के शरीर में विटामिंस और मिनरल्स की कमी हो जाती है. पेशेंट को भूख लगने की कोशिश की जाती है. इस में प्रोटीन और कैल्शियम देना पड़ता है. उम्र थोड़ी अधिक होने से उन्हें डाइट में फ्रैश फ्रूट्स थोड़ेथोड़े समय पर लेने से महिला का हार्मोनल संतुलन बना रहता है. लगातार ऐसी कोशिश और सप्लीमैंट्स से महिला का मेनोपोज भी आराम से निकल जाता है.’’

पहले करें जांच

अपने एक अनुभव के बारे में डाइटीशियन जिनल पटेल कहती हैं, ‘‘एक लड़की ने वजन घटाने के लिए डाइटिंग की जिस से उसे खाने की इच्छा खत्म हो गई. खाना हजम न होने की शिकायत हो गई, एसिडिटी अधिक होने लगी, क्योंकि उस में विटामिन बी12 की कमी हो गई थी. जब किसी को डाइट सप्लीमैंट्स के बारे में बताया जाता है तो सब से पहले उस की जरूरत शरीर में कितनी है, इस की जांच की जाती है.

किसी ने अगर सप्लीमैंट्स को नैचुरल सम झा है तो यह सही नहीं है. व्यक्ति को उस के पीछे की वैज्ञानिक बातों को भी जान लेना आवश्यक होता है. इसे जानने के लिए किसी फिजीशियन या डाइटीशियन की सलाह अवश्य लें. सप्लीमैंट्स लेने से पहले कुछ बातें जान लेना आवश्यक है.

किस ब्रैंड या कितनी मात्रा में सप्लीमैंट्स लेना है.

किस सप्लीमैंट्स के साथ कौन सा सप्लीमैंट सही रहता है.

लक्षण

जौइंट पेन का होना,

यूरिक एसिड का बढ़ना,

आंखों या हाथ का पीलापन हो जाना आदि.

डाक्टरी परामर्श जरूरी

जरूरत से अधिक सप्लीमैंट्स लेने पर कई समस्याएं हो सकती हैं. कई सप्लीमैंट्स में ऐसे तत्त्व होते हैं जिन की अधिकता शरीर के रासायनिक संतुलन को बिगाड़ सकती है. मसलन, विटामिन ‘के’ की अधिकता वाले सप्लीमैंट्स लेने से शरीर का रक्त पतला करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है. अगर किसी तरह की परिवार निरोधक या डिप्रैशन की दवा ले रहे हैं तो बिना किसी डाक्टरी परामर्श के हैल्थ सप्लीमैंट्स न लें, क्योंकि किसी व्यक्ति को कैल्शियम साल में केवल 30 दिन ही लेने पर काफी होता है. विटामिन ‘डी’ के लिए सुबह की धूप लेना काफी होता है. विटामिन बी 12, बी 6 की कमी अधिकतर शाकाहारी व्यक्तियों को होती है, इसलिए उन के डाइट चार्ट बनाते समय उस व्यक्ति से बात करना जरूरी होता है.

जुड़े हैं कई मिथ

बाजार में मौजूद अकसर हैल्थ सप्लीमैंट्स के बारे में लोगों का यह मानना होता है कि प्रोटीन की अधिकता वाले सप्लीमैंट्स को जम कर खाने से मसल्स बनते हैं. असलियत यह है कि मसल्स केवल प्रोटीन से नहीं, बल्कि कार्बोहाइड्रेटयुक्त डाइट को लेने, भोजन लेने के सही समय और सही तरीके की ऐक्सरसाइज से बनते हैं.

फैट में घी और तेल शामिल होता है, घर का बनाया घी सब से अच्छा होता है. एक दिन में 3 चम्मच घी या तेल प्रति व्यक्ति को लेना जरूरी है. इस से अधिक लेने पर फैट की मात्रा बढ़ती है. कम लेने पर सोल्यूबल तेल निकलने पर शरीर में विटामिंस की कमी हो सकती है.

चावल खाने पर मोटापा अधिक नहीं होता. इस में उस की मात्रा पर ध्यान देना है. यह जानना जरूरी है क्योंकि सीमित मात्रा में चावल अवश्य ले सकते हैं. चावल पसंद होने पर डायबिटीज के मरीज को भी थोड़ी मात्रा में चावल खाने को दिया जा सकता है. उस के साथ फाइबर कितना लेते हैं, इसे देखना पड़ता है, ताकि ग्लूकोज न बढ़े.

आज के अधिकतर यूथ डाइट पर रहते हैं और फिटनैस के लिए खानापीना कम कर देते हैं. खापी कर ही डाइटिंग की जा सकती है यानी सही समय पर सही डाइट लेने से ही आप फिट रह सकते हैं.

शाकाहारी भोजन में विटामिंस या मिनरल्स की कमी नहीं होती. उसे संतुलन के साथ लेने पर प्रोटीन की आवश्यकता पूरी हो जाती है. नौनवेज में चिकन, अंडा, फिश होता है, इसलिए प्रोटीन आसानी से मिलता रहता है. कौम्बिनेशन औफ फूड हमेशा सही होता है ताकि विटामिंस की कमी को बढ़ाया जा सके. –प्रतिनिधि द्य

मेरे घरवाले दहेज लेना चाहते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 22 साल का एक कुंआरा और बेरोजगार नौजवान हूं. मेरे घर वाले चाहते हैं कि मैं शादी कर लूंताकि शादी में जो दहेज मिलेउस से मेरा घर बस जाए.

पर आज के जमाने में यह नामुमकिन बात है कि कोई लड़की किसी बेरोजगार के साथ शादी करेगी. वैसे भी मैं खुद इस बात का हिमायती नहीं हूं और पहले अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूंपर मेरे घर वाले टस से मस नहीं हो रहे हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप समझदार हैंजो खुद ही अपनी समस्या के साथ उस का समाधान भी बता रहे हैं कि कोई लड़की बेरोजगार लड़के से शादी नहीं करेगी. तो पहले आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएंफिर शादी करें.

घर वालों से सख्ती से कह दें कि बेरोजगार रहते आप शादी नहीं करेंगे और दहेज के नाम पर यों बिकना आप की गैरत के खिलाफ है. दहेज के पैसे से जिंदगी नहीं कटेगी.                      

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

तीज 2022: त्यौहारों के मौसम में ट्राय करें ये 4 खास स्वीट रेसिपी

त्योहार पर घर में मिठाइयों की कमी नहीं रहती. सब शौक से खाते हैं लेकिन त्योहार बीत जाने पर इन मिठाइयों को कोई खाना नहीं चाहता. ऐसे में इन मिठाइयों को दें नया ट्विस्ट, जो कर देगा सब को हैरान.

  1. स्मूदी विद जलेबी

सामग्री :

500 ग्राम बर्फी, थोड़ा सा केसर, 1 लिटर दूध, 1/4 कप पिसे मेवे, स्वादानुसार चीनी, 1/2 कप कुटी बर्फ.

विधि :

मिक्सी में बर्फी, दूध, केसर, मेवे व चीनी डाल कर अच्छी तरह घुमाएं. बर्फ मिला कर एक बार फिर से घुमाएं. लंबे पतले आकर्षक गिलासों में इस स्मूदी को जलेबी ?से सजा कर ठंडाठंडा परोसें.

2. हरीमिर्च खट्टीमीठी

सामग्री :

10-12 मोटी हरीमिर्चें, 10-12 रसगुल्ले, 1/2 कप ताजा कसा नारियल, 1 बड़ा चम्मच चाट मसाला, थोड़ा सा हरा धनिया, 1 छोटा चम्मच जीरा पाउडर, 1 छोटा चम्मच अमचूर, तलने के लिए तेल, नमक स्वादानुसार.

घोल बनाने के लिए :

1 कप बेसन, 3-4 पीस काजू बर्फी, 1 बड़ा चम्मच तंदूरी मसाला, 1 बड़ा चम्मच चाट मसाला, 1 छोटा चम्मच अमचूर, 1 छोटा चम्मच लालमिर्च कुटी, नमक स्वादानुसार.

विधि :

घोल बनाने की सारी सामग्री को एकसाथ मिला कर अच्छी तरह मिक्स करें तथा पानी की सहायता से पकौड़े बनाने जैसा घोल तैयार कर लें. मिर्चों के बीच में चीरा लगाएं. मिर्च की डंडी को न काटें. रसगुल्लों को 2-3 बार अच्छी तरह से घोटेंनिचोड़ें और फिर धो लें. पानी अच्छी तरह निचोड़ कर रसगुल्लों को चूरा कर लें. तेल को छोड़ कर शेष सामग्री इस में मिलाएं तथा इस मिश्रण को मिर्चों में भर लें. तेल गरम करें. एकएक मिर्च को सावधानी से उठाएं, बेसन के घोल में डुबोएं तथा सेव में लपेट कर सुनहरा होने तक तल लें. हरी चटनी के साथ सर्व करें.

3. भरवां त्रिकोण

सामग्री :

2-3 बेसन के लड्डू, 5-6 मोतीचूर के लड्डू, 1 बड़ा चम्मच बारीक पिसे मेवे, आवश्यकतानुसार देसी घी.

रोटी के लिए :

1 कटोरी मैदा, 1 कटोरी गेहूं का आटा, दूध गूंधने के लिए.

विधि :

दोनों तरह के लड्डुओं को चूरा कर के मेवे मिला लें. दोनों आटे मिला कर दूध मिला कर नरम गूंध लें. लोइयां बना कर पतला बेलें और आयताकार लंबी पट्टियां काट लें. एक पट्टी पर लड्डू का भरावन रखें. दूसरी पट्टी से भरावन को ढक कर किनारे अच्छी तरह से दबा दें ताकि मिश्रण बाहर न निकले. सारी पट्टियां इसी प्रकार से बना लें. गरम तवे पर देसी घी लगाते हुए उन पट्टियों को सुनहरा सेंक लें. काट कर गरमागरम परोसें.

4. तरबूजी-मीठा उत्तपम

सामग्री :

2 गोल आकार में कटे तरबूज के टुकड़े, 1 बड़ा चम्मच मूंगफलीदाना, 1/2 कटोरी कसी गाजर, 1 हरीमिर्च, 1 छोटा चम्मच औलिव औयल, थोड़ा सा हरा धनिया, 1 छोटा चम्मच चाट मसाला, 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर,1/2 छोटा चम्मच अमचूर, नमक स्वादानुसार.

उत्तपम के लिए सामग्री :

1/2 कटोरी सूजी, 1 कटोरी (मसली हुई) मिलीजुली मिठाई, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटे मेवे, आवश्यकतानुसार घी.

विधि :

उत्तपम की सारी सामग्री मिला कर छाछ या पानी के साथ गाढ़ा घोल बना लें. गरम तवे पर घी लगा कर घोल से उत्तपम सुनहरे होने तक सेंक लें. तरबूज के टुकड़ों पर औलिव औयल लगा कर चाट मसाला तथा धनिया बुरक दें. मूंगफलीदानों को तल कर दरदरा कूट लें. इस में गाजर तथा सभी मसाले मिला दें. हरीमिर्च व हरा धनिया काट कर मिलाएं. एक सर्विंग डिश में उत्तपम रखें, उस पर मूंगफली वाली सलाद रखें, उस के ऊपर तरबूज के टुकड़े रखें और फिर मूंगफली से सजा कर परोसें.

तीज 2022: मुझे माफ करोगी सुधा- क्या गौरव को पता चला पत्नी और प्रेमिका में फर्क

शादी की धूमधाम में शहनाई के मधुर स्वर हवा में तैर रहे थे. रंग, फूल, सुगंध, कहकहे, रंगबिरंगी रोशनी सब मिला कर एक स्वप्निल वातावरण बना हुआ था. इतने में शोर उठा, ‘बरात आ गई, बरात आ गई.’

सब एकसाथ स्वागत द्वार की ओर दौड़ पड़े. सजीसंवरी दुलहन को उस की कुछ सहेलियां द्वार की ओर ला रही थीं. वरमाला की रस्म अदा हुई, पहली बार वर ने वधू की ओर देखा और जैसे कोई उस के कलेजे पर वार कर गया. सारे रंगीन ख्वाब टूट कर बिखर गए.

दूल्हा सोचने लगा, जिंदगी ने यह कैसा मजाक उस के साथ किया है. सांवला, दुबलापतला शरीर, गड्ढे में धंसी आंखें, रूखे मोटे होंठ, दुलहन का शृंगार भी क्या उस की कुरूपता को ढक पाया था लेकिन अब क्या हो सकता था. यह गले पड़ा ढोल तो उसे बजाना ही था. इस से अब वह बच नहीं सकता था.

पिता के कठोर अनुशासन ने गौरव को अत्यंत लजीला और भीरु बना दिया था. उन के सामने वह मुंह तक नहीं खोल सकता था. जो कुछ वे कहते, वह सिर झुका कर मान लेता.

यह रिश्ता गौरव के लालची पिता ने लड़की वालों की अमीरी देख कर तय किया था. लड़की के पिता की लाखों की संपत्ति, उस पर इकलौती संतान, वे फौरन ही इस रिश्ते के लिए मान गए थे. पैसे से उन का मोह जगत प्रसिद्ध था.

गौरव ने सुधा के स्वभाव के बारे में तो पहले ही धारणा बना ली थी, बड़े बाप की इकलौती, पढ़ीलिखी लड़की घमंडी और बदमिजाज तो होगी ही. उस के पिता को ऐसी बहू मिलेगी जो उस की तरह उन से नहीं दबेगी, उलटा वे ही कुछ न कह सकेंगे, यह सोच कर उस की पिता से बदला लेने की भावना को कहीं संतुष्टि मिली.

लेकिन आशा के विपरीत सुधा बहुत ही मधुरभाषिणी, कम बोलने वाली और संकोची प्रवृत्ति की निकली. बड़ों का आदरसम्मान, बच्चों में प्यार से घुलमिल जाना, हर समय हर किसी को खुश करने के लिए काम में जुटे रहना, अपने इन्हीं गुणों से उस ने धीरेधीरे घर भर का मन मोह लिया था.

गौरव की बहन अरुणा दीदी, जो उम्र में उस से काफी बड़ी थीं, सुधा की तारीफ करते न थकतीं. दीदी, जीजाजी और उन के बच्चे शादी के बाद कुछ दिन उन के पास रुक गए थे. इसी दौरान सुधा उन से यों घुलमिल गई थी मानो बरसों से उन्हें पहचानती हो.

आश्चर्य की बात यह थी कि सिवा गौरव के घर भर में कोई भी सुधा के रूपरंग का जिक्र न करता, सब उस के स्वभाव का ही बखान करते. गौरव पत्नी की तारीफ सुन कर खीज उठता. वह अपने दोस्तों में हमेशा सुधा की कुरूपता की चर्चा करता और अपने से उस की तुलना कर अपने खूबसूरत होने पर गर्व महसूस करता.

सुधा पति को प्रसन्न करने का हर तरह से प्रयत्न करती, उस की छोटीछोटी सुविधाओं का पूरा ध्यान रखती लेकिन गौरव उस से बात तक न करता. जो कहना होता, मां से या नौकरों से कहता. सुधा धैर्यपूर्वक पलपल उस की बर्फीली बेरुखी सहती. उसे उम्मीद थी कि शायद कभी उस की जिंदगी का सूरज उदय होगा, जिस की आंच में यह बर्फ पिघल जाएगी और उस की कंपकंपाती जिंदगी को प्यार की नरम धूप का सेंक मिलेगा.

इस बीच गौरव का अपने दफ्तर की स्टेनो नंदिनी से मेलजोल बढ़ने लगा. नंदिनी उस पर काफी पहले से ही डोरे डाल रही थी. वह गौरव को फांस कर उस से शादी के सपने देखा करती. सुंदरसजीले गौरव पर बहुत सी लड़कियां मरती थीं, उस से दोस्ती करना चाहती थीं मगर गौरव शरमीले स्वभाव का होने के कारण लड़कियों से बहुत झेंपता, उन से बात करने में भी झिझकता और नजरें बचा कर निकल जाता.

शादी के बाद वही गौरव नारी के मांसल आकर्षण में अजीब खिंचाव और आनंद लेने लगा था. अब वह पहले सा लजीला, रूखा और नीरस युवक नहीं रह गया था. औरत के दैहिक सम्मोहन में आकंठ डूब चला था. सुधा की सूखी देह जब उस की बांहों में होती तो गौरव की कल्पना उसे नंदिनी की मांसल, आकर्षक देह बना देती. मगर वह क्षणिक दैहिक सुख गौरव को तृप्ति न दे पाता और वह प्यासा रह जाता, उस मिलन में उसे एक अधूरापन लगता.

नंदिनी गौरव के दिल की हालत समझ रही थी. उस ने सुन रखा था कि गौरव की पत्नी एक कुरूप नारी है. नंदिनी को अपनी सुंदरता और सुडौल शरीर पर बड़ा अभिमान था. वह रोज तरहतरह से अपने को सजासंवार कर दफ्तर आती और गौरव को रिझाने का प्रयास करती. आखिर गौरव भी कब तक धैर्य रखता. वह दिनोदिन उस की सुंदरता में डूबता जा रहा था.

आर्थिक रूप से गौरव सक्षम हो चुका था. दहेज में मिली लाखों की संपत्ति उस की थी. पिता बूढ़े हो रहे थे. गठिया के रोग से पीडि़त थे, चलफिर नहीं सकते थे, स्वत: ही उन का रोबदाब कम हो चला था. गौरव धीरेधीरे मनमानी पर उतर आया था.

सुधा को गौरव ने पत्नी का दर्जा कभी नहीं दिया था. बस, उस की झोली में एक प्यारा सा बेटा डाल कर उस के प्रति अपने कर्तव्य की इति समझ बैठा था. वह सारा दिन घर के कामकाज एवं सासससुर और बच्चे की देखभाल में जुटी रहती, इधर गौरव रातरात भर गायब रहता. उस के और नंदिनी के संबंध किसी से छिपे न रहे, लेकिन किसी की हिम्मत न थी जो उसे कुछ कह सके, पूरा घर उस से भयभीत रहने लगा था.

भीतर ही भीतर सुधा घुटती रहती मगर ऊपर से खामोश रहती. वह घर में किसी प्रकार की कलह नहीं करना चाहती थी. हीनभावना की गहराई में उस की अपनी अस्मिता कहीं डूब गई थी.

गौरव की ऐयाशी के किस्से जब एक दिन सुधा के मातापिता तक पहुंचे तो वे चुप न रहे. एक दिन जब गौरव नंदिनी के साथ कोई फिल्म देख कर लौटा तो अचानक अपने ससुर को वहां देख चौंक पड़ा.

‘‘कहां से आ रहे हो, गौरव?’’ ससुर कृष्णलाल ने व्यंग्यात्मक स्वर में पूछा.

एकाएक गौरव से कोई उत्तर न बन पड़ा. धीरे से बोला, ‘‘दोस्तों के साथ फिल्म देखने गया था.’’

सुनते ही उस के ससुर कठोर स्वर में बोले, ‘‘यह मत समझो कि हमें तुम्हारी कारगुजारियों का पता नहीं. सोच रहे थे कि शायद तुम अपनेआप संभल जाओ. सुधा बेचारी ने तो आज तक तुम्हारे खिलाफ एक शब्द नहीं लिखा. हर पत्र में तुम्हारी तारीफ ही लिखती रहती थी. वह तो भला हो तुम्हारे पिताजी का जिन्होंने तार दे कर मुझे बुलवा लिया, अपने बेटे की चरित्रहीनता दिखलाने, उस की ‘कीर्ति’ सुनवाने.’’

फिर कुछ रुक कर वे बोले, ‘‘लेकिन सुधा को मैं अब और अपमानित होने के लिए यहां नहीं रहने दूंगा. मैं उसे ले जा रहा हूं. हम सुबह की गाड़ी से ही आगरा चले जाएंगे. तुम ने अगर अपने रंगढंग नहीं बदले तो मजबूरन हमें सुधा को तुम से तलाक दिलवाना पड़ेगा,’’ इतना कह कर बिना एक पल रुके कृष्णकांत उठ खड़े हुए.

सुधा की बातों और धमकी से गौरव काफी परेशान हो गया. मन ही मन सोचने लगा कि इस समस्या का हल कैसे निकाला जाए. सुधा के जाने से तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाएगा. बेटे चंदन की देखभाल कौन करेगा? उस की पढ़ाई का क्या होगा?

नंदिनी गौरव के लिए सिर्फ दिल बहलाव का जरिया थी वरना उस के छिछले स्वभाव को गौरव समझता था. वह इतना नासमझ नहीं था जो जानता न हो कि इस तरह की लड़कियां दुख की साथी नहीं होतीं, उन्हें तो अपनी मौजमस्ती चाहिए.

दूसरे दिन लाख मिन्नतें करने के बावजूद गौरव के ससुर बेटी को अपने साथ ले गए. चंदन को उस के दादाजी के कहने पर मजबूरन उन्हें वहीं छोड़ना पड़ा वरना गौरव के कहने से तो वे कदाचित न मानते.

सुधा के जाते ही घर का पूरा नक्शा ही बिगड़ गया. गौरव को दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़ी. उस ने नंदिनी से सहायता मांगी तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘‘गौरव, और कुछ करने को कहो लेकिन घर की देखभाल, न बाबा न, वो मेरा विभाग नहीं.’’

2-3 दिन की लगातार भागदौड़ के बाद उसे अपने एक दोस्त के जरिए एक नौकरानी मिल गई. करीब एक हफ्ते तो उस ने ठीक तरह से काम किया. 8वें दिन पता चला कि सुधा की अलमारी से सब साडि़यां और कुछ गहने ले कर वह चंपत हो गई है. बहुत कोशिश की, लेकिन उस का कुछ पता न चल सका.

चंदन हर वक्त मां को याद करता रहता, ‘‘पिताजी, मां कब आएंगी…कहां गई हैं? मुझे साथ क्यों नहीं ले गईं,’’ वह बारबार पूछता. मां के बगैर उसे खानापीना भी अच्छा न लगता. वह बहुत उदास और गुमसुम रहने लगा था. गौरव से अपने बेटे की यह हालत देखी न जाती. गौरव चाहता था कि सुधा लौट आए. उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा था.

ऐसे में ही एक दिन गौरव को अरुणा दीदी की याद आई. ‘हां, दीदी ही सुधा को वापस ला सकती हैं.’ यह विचार मन में आते ही तुरंत ही वह बेटे चंदन को ले कर मेरठ चल दिया.

दीदी उसे अचानक आया देख हैरान रह गईं. आश्चर्यचकित हर्ष से पूछने लगीं, ‘‘अरे, गौरव, अचानक कैसे आना हुआ. सुधा कहां है?’’ भाई को देख कर उन का चेहरा स्नेह से भीग उठा था. अभी तक उन्हें गौरव की हरकतों का पता न लग पाया था.

गौरव फीकी हंसी से सुधा के न आने की बात टाल गया. दीदी समझ गई थीं कि जरूर कुछ गड़बड़ है वरना गौरव यों चंदन को ले कर अकेला क्यों आता. दीदी ने उस समय ज्यादा कुछ न पूछा.

रात को खाने पर जीजाजी के बारबार पूछने पर आखिर गौरव फूट पड़ा, ‘‘जीजाजी, सुधा अब कभी नहीं आएगी. अपनी ही गलती से मैं ने उसे खो दिया है. मैं ने उस की कद्र नहीं की…क्या मुंह ले कर अब मैं उस के पास जाऊं,’’ गौरव ने उन से कुछ न छिपाया, सारी बातें सचसच कह दीं.

गौरव पश्चात्ताप की आग में जल रहा है, यह देख कर दीदी ने उसे समझाया, ‘‘गौरव, यह तुम तीनों की जिंदगी का सवाल है. जाने को तो मैं जा कर सुधा को ला सकती हूं लेकिन इस तरह तुम्हारा प्रायश्चित्त अधूरा रह जाएगा. सोच लो, सुधा को जो खुशी तुम्हारे जाने से होगी वह मेरे जाने से नहीं, फिर इस बात का क्या भरोसा कि उस के मातापिता सुधा को मेरे साथ भेज ही देंगे.’’

गौरव के ससुराल आने पर सुधा के मातापिता को जरा भी हैरानी न हुई, उन्हें अपनी संकोची स्वभाव की गुणवान बेटी पर बहुत मान था. उन्हें पूरा यकीन था कि उस जैसी आदर्श पत्नी की कद्र गौरव एक दिन जरूर करेगा. इसी भरोसे पर तो वे अपनी बेटी को लिवा लाए थे कि दूर रह कर ही गौरव उस के गुणों को आंक पाएगा और हुआ भी वही.

अपने कमरे में सुधा उत्सुकता से गौरव के आने का इंतजार कर रही थी. गौरव एक क्षण दरवाजे पर ठिठका. फिर उस ने आगे बढ़ कर सुधा को बांहों में भर कर उदास स्वर में पूछा, ‘‘मुझे माफ करोगी, सुधा?’’

सुधा खामोश थी लेकिन उस की आंखों से बहते आंसुओं ने गौरव के सारे अपराध क्षमा कर दिए थे.

तीज 2022: पतिपत्नी के बीच रिश्ते का बदलता समीकरण

पतिपत्नी के रिश्ते का समीकरण काफी जटिल होता है. जब भी सत्ते का पलड़ा एक ओर झुक जाता है तो रिश्ते के बीच का संतुलन डगमगाने लगता है. प्रयास न किया जाए तो वह बिखर भी सकता है यानी बात तलाक तक जा पहुंचती है. तलाक से फायदा किसी को नहीं होता. दोनों के जीवन में  एक ब्रेक लग जाता है.

पीढ़ियों तक महिलाओं ने दबीकुचली जिंदगी जी. वे पढ़ीलिखी नहीं होती थी. आर्थिक दृष्टि से पूरी तरह पति पर निर्भर होती थी इसलिए रिश्ते का पलड़ा कितना भी झुका होता है वे सब सह जाती थी. पर आधुनिक युग की महिलाओं ने अपने बल पर जीना सीख लिया है. थोड़ी सी बात बिगड़ी नहीं कि वे तलाक की पेशकश कर अपनी ताकत दिखाने का तरीका आजमाती है. भले ही इस ताकत की लड़ाई और अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाने की चाह में महिलाएं भावनात्मक रूप से बुरी तरह टूट जाती है. मगर एक बार कदम बढ़ा लेने के बाद पीछे जाना स्वीकार नहीं करती. यही वजह है कि आजकल तलाक के मामले बढ़ रहे हैं.

एक समय था जब पुरुष विवाहेतर संबंधों में लिप्त रहते थे. वे बड़ी सहजता से पत्नी को धोखा देते रहते थे और पत्नी बेचारी घर के कामकाज में व्यस्त रहती थी. पर आज जब महिलाएं बाहर जाने लगी हैं तो उन के पास भी ऑप्शंस की कोई कमी नहीं है. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स हमेशा से शादी टूटने की एक प्रमुख वजह रहा है. सामान्यतः पुरुष ऐसे में भी रिश्ते को कायम रखना चाहते हैं. लेकिन इस से दोनों की स्थिति दयनीय बन जाती है. किसी भी रिश्ते में विश्वास खो देना जिंदगी को बहुत कठिन बना देता है. परिवार की खुशियों के साथसाथ सदस्यों की मानसिक सेहत पर भी इस का असर बुरा पड़ता है.

कई दफा महिलाएं पुरुषों से जरुरत से ज्यादा अपेक्षा रखने लगती है और नतीजा यह होता है कि उन अपेक्षाओं को पूरा करने की जद्दोजहद में पुरुष नॉर्मल लाइफ नहीं जी पाते. उन के अंदर भय रहने लगता है कि कहीं वे पत्नी के अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो पत्नी उन की इज्जत नहीं करेगी. इस तरह मानसिक रूप से परेशान रहने के कारण वे चिडचिड़े हो जाते हैं और रिश्ते में दरार बढ़ने लगती है. वैसे तो पुरुष जरूरी कदम उठा कर जितना संभव हो समस्याओं को सुलझाने में भरोसा रखते हैं. लेकिन ऐसे रिश्तों में डर और अनिश्चितता दोनों ही रहती है.

आज की जीवनशैली ही ऐसी है कि छोटीमोटी लड़ाईयां भी धीरेधीरे रिश्ता टूटने का कारण बन जाती है. पतिपत्नी खुल कर बात करने के बजाय अपनेअपने दायरे में सीमित रहते हैं. बड़ेबुजुर्ग या बड़े परिवार का साथ भी नहीं कि घरवाले उन दोनों के बीच पैचअप कराएं . वैसे भी लोग आजकल सोशल मीडिया के चक्कर में एकदूसरे को समझने के बजाय दूसरों को समझने में ज्यादा समय लगाते हैं. इस वजह से वे एकदूसरे को कहीं न कहीं इग्नोर करने लगते हैं.

एक स्वस्थ रिश्ता समानता, विश्वास और एकदूसरे के सम्मान पर टिका होता है. जब चीजें बिगड़ती है तो सवाल यह यह नहीं होता कि कौन अपनी भूमिका पर लंबे समय तक खड़ा रहता है बल्कि सवाल यह है कि कौन शांत होगा और तर्कपूर्ण ढंग से समाधान ढूंढने की कोशिश करेगा.

पत्नी का डर

साधारण रूप से आज के समय में किसी भी परिवार का रिमोट कंट्रोल पत्नी के हाथ में होता है. वह घर का करताधरता होती है सो उस से पंगा लेने का मतलब है खुद के लिए परेशानियां मोल लेना. वैसे जिंदगी में इंसान को किसी न किसी का डर रहना जरूरी है तभी वह कंट्रोल में रह कर सही दिशा में आगे बढ़ पाता है. बचपन में मांबाप का डर, कॉलेज में टीचर का डर और जॉब में बॉस का डर. शादी के बाद यह डर ट्रांसफर हो कर घरवाली के नाम हो जाता है.

पत्नी का डर भी कई तरह के होते हैं. अधिकांश पतियों को यह डर लगा रहता है कि कहीं बीवी रूठ कर मायके न चली जाए, खाना बना कर न खिलाए या फिर लड़झगड़ कर घर सर पर न उठा ले. इन सब से बढ़ कर पतियों को यह भी डर रहता है कि बात कहीं तलाक तक न पहुंच जाए क्यों कि टूटे हुए परिवार की हालत बहुत दयनीय हो जाती है. रातदिन का क्लेश बच्चों का भविष्य भी बर्बाद कर देता है. पतियों को डर रहता है कि क्या पता कहाँ छुप कर पत्नी उस की जासूसी कर रही हो या फिर उस पर नजर रखवा रही हो.

अच्छा है यह डर

पत्नी से डरना अच्छा है. इस से पति दुर्व्यसनों से बचे रहते हैं, गलत संगत में नहीं पड़ते, धोखेबाज लड़कियों के चंगुल में नहीं फंसते और सब से बढ़ कर यह कि पैसे इधरउधर बर्बाद नहीं करते. पत्नी पैसों का हिसाब रखती है. आनेजाने का हिसाब भी रखती है. पति कंट्रोल में रहे तो घर में सुखशांति कायम रहती है. पत्नी का डर कितना सार्वभौमिक है इस का उदाहरण पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा है. उन्होंने स्वीकार किया था कि पत्नी के डर से उन्होंने सिगरेट पीना छोड़ दिया.

पत्नी बिना सब सूना

देखा जाए तो रोजमर्रा की जिंदगी में सहजता बरकरार रखने और भावनात्मक जरूरतों की पूर्ति के लिए आज भी पुरुष महिलाओं पर निर्भर रहते हैं. पुरुष अपने मन की बात जाहिर करने से बचते हैं और वे स्त्रियां ही होती है जो पति के मन की हर बात बिना कहे भी समझ लेती है. यही नहीं पुरुषों के लिए बिना बीवी घर संभालना भी किसी सजा से काम नहीं होता.

पुरुष कई काम एक साथ नहीं कर सकते. बच्चों को संभालती हुए ऑफिस और घर के काम निपटाना उन के बस की बात नहीं. जब कि स्त्रियां सब काम एक साथ पूरी कुशलता से करने में माहिर होती हैं. ऐसे में आज के दौर में पतियों के समुदाय में पत्नी का डर बढ़ रहा है. कई मामलों में पत्नी पर निर्भरता की वजह से वे सुलह कर लेने में अपनी भलाई समझते हैं.

पहले के देखे आज के पुरुष ज्यादा सहनशील हो गए हैं. वे रिश्ते में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए कदम उठाना चाहते हैं. लेकिन एक सच यह भी है कि ऐसा वे काफी समय बाद करते हैं. यदि शुरुआत में ही आवश्यक कदम उठा लिए जाए तो बात बिगड़ेगी ही नहीं.

सीबीआई और मनीष सिसोदिया के बहाने “भाजपा का सच”

दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जिनके पास शिक्षा  और आबकारी विभाग हैं आजकल भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर है. यह बात उतनी सच है जितना सूरज और तारे.

जी हां! सीबीआई जांच के साथ ही जिस तरह उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न बड़े नेताओं द्वारा निरंतर निशाना बनाया जा रहा है उससे सिद्ध हो जाता है कि भाजपा की मंशा क्या है अगर भाजपा निष्पक्ष है और सीबीआई की कार्रवाई नहीं करवा रही है तो उसे मौन रहना चाहिए था. मगर कहते हैं ना “चोर की दाढ़ी में तिनका”. सीबीआई जांच कर रही है और भाजपा के सारे नेता आक्रमक हो गए है इसका सीधा सा संदेश देश की जनता में यही जा रहा है कि जिस तरह कौरवों ने चक्रव्यूह बना करके अभिमन्यु को मार डाला था आज की भाजपा भी “आप पार्टी” के खिलाफ एक चक्रव्यूह बुन रही है. भाजपा चाहती है कि अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक पार्टी आप हाशिए पर चले जाए उसकी छवि देशभर में खराब हो जाए.

देश और दुनिया का एक सबसे निष्पक्ष कहे जाने वाला मीडिया संस्थान बीबीसी है. इसमें जब मनीष सिसोदिया के सीबीआई जांच का रिपोर्टिंग प्रसारित की गई तो आश्चर्यजनक तरीके से मनीष सिसोदिया के पक्ष में कमैंट्स देखे जा सकते हैं जिसमें लोगों ने उनका साथ दिया है और भाजपा को लताड़ा है इस समाचार बुलिटिन में कमेंट के रूप में बहुत सारे लोगों ने मनीष सिसोदिया को इमानदार और एक काम करने वाला राजनेता माना है और भाजपा की कटु निंदा की गई है. यह एक उदाहरण है जिसके माध्यम से आप पार्टी पर कसा जाने वाला सीबीआई का शिकंजा उसकी तथा कथा उजागर हो गई है.

न्यूयॉर्क टाइम्स में हो गई प्रशंसा

एक आश्चर्यजनक घटना घटित हुई. दुनिया के नामचीन मीडिया संस्थानों में एक न्युयॉर्क टाइम्स में दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की भूरी भूरी प्रशंसा की गई है यही नहीं यह भी सच है कि देश भर में आज दिल्ली की स्कूलों शिक्षा व्यवस्था और चिकित्सा व्यवस्था पर जोरदार चर्चा चल रही है. जिससे भारतीय जनता पार्टी चिंतित दिखाई देती है यही कारण है कि सीबीआई जांच और प्रवर्तन निदेशालय की जांच संभवत शुरू हो गई है. मगर यह सब “सांच को आंच क्या” कहावत को बदल नहीं सकते.

इधर,अमेरिकी अखबार ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर अपनी स्टोरी को ‘निष्पक्ष और जमीनी रिपोर्टिंग’ पर आधारित बताते हुए ‘पेड न्यूज’ के आरोपों को  को खारिज कर दिया है. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो  द्वारा दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के आवास पर छापेमारी के बाद अखबार के आलेख को लेकर “भाजपा और आप” के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया था. आप नीत सरकार की आबकारी नीति को तैयार करने और  कथित अनियमितताओं को लेकर सीबीआइ ने यह कार्रवाई की. मनीषसिसोदिया के पास शिक्षा और आबकारी विभाग की भी जिम्मेदारी है आप ने कहा कि जब ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने शिक्षा के दिल्ली माडल पर सकारात्मक खबर छापी तो नरेंद्र मोदी नीत केंद्र सरकार ने सीबीआइ को सिसोदिया के घर भेज दिया, वहीं भाजपा ने खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर कहा – यह एक ‘पेड’ आलेख है. बिना सबूतों और जांच के आप यह कैसे कह सकते हैं कि यह पेड न्यूज़ है?

‘न्यूयार्क टाइम्स’ की बाह्य संचार निदेशक निकोल टायलर ने एक ई मेल में लिखा- ‘दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के प्रयासों के बारे में हमारी रिपोर्ट निष्पक्ष, जमीनी रिपोर्टिंग पर आधारित है.’

इसके साथ यह भी नहीं भूलना चाहिए कि दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था की चर्चा देशभर के गली कूचे में हो रही है और जैसा कि हम जानते हैं सच को छुपाया नहीं जा सकता वह धीरे-धीरे लोगों तक पहुंच ही जाता है ऐसा ही कुछ दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था के साथ भी हो रहा है, और केंद्र में बैठी भाजपा सरकार जिस तरह आप पार्टी के नेताओं को प्रताड़ित कर रही है उससे देशभर में आप के नेताओं को समर्थन मिल रहा है संवेदनाएं मिल रहे हैं जो नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार के लिए एक खतरे की घंटी कही जा सकती है.

सीबीआई क्या बोली!

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की

प्राथमिकी में कहा गया है कि मनोरंजन और इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ‘ओनली मच लाउडर’ के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विजय नायर, पनड रिकार्ड के पूर्व कर्मचारी मनोज राय, ब्रिडको स्पिरिट्स के मालिक अमनदीप ढल और इंडोस्पिरिट्स के मालिक समीर महेंद्र अनियमितताओं में शामिल थे.

गुड़गांव में बडी रिटेल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे, सिसोदिया के ‘करीबी सहयोगी’ हैं और आरोपी लोक सेवकों के लिए ‘शराब लाइसेंसधारियों से एकत्र किए गए अनुचित आर्थिक लाभ

के प्रबंधन और स्थानांतरण करने में सक्रिय रूप से शामिल थे.’ दिनेश अरोड़ा द्वारा प्रबंधित राधा इंडस्ट्रीज को इंडोस्पिरिट्स के समीर महेंद्र से एक करोड़ रुपए मिले। अरुण रामचंद्र पिल्लई, विजय नायर के माध्यम से समीर महेंद्र से आरोपी लोक सेवकों को आगे स्थानांतरित करने के लिए अनुचित धन एकत्र करता था. अर्जुन पांडे नाम के एक व्यक्ति ने विजय नायर की ओर से समीर महेंद्र से लगभग 2-4 करोड़ रुपए की बड़ी नकद राशि एकत्र की. सनी मारवाह की महादेव लीकर्स को योजना के तहत एल-1 लाइसेंस दिया गया था। यह भी आरोप है कि दिवंगत शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा की कंपनियों के बोर्ड में शामिल मारवाह आरोपी लोक सेवकों के निकट संपर्क में था.

अधूरा रहा गया सोनाली फोगाट का ये सपना, पढ़ें खबर

बीजेपी नेता और बिग बॉस फेम सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) के निधन से इंडस्ट्री में शोक की लहर छाई हुई है. इस खबर से फैंस को बड़ा झटका लगा है. 42 वर्ष के उम्र में सोनाली फोगाट का निधन हो गाया है. रिपोर्ट्स के अनुसार सोनाली फोगाट का निधन हार्ट अटैक से हुआ है.

सोशल मीडिया पर फैन्स के साथ-साथ सेलेब्रिटीज भी सोनाली को श्रद्धांजलि दे रहे हैं. बिग बॉस 14 में सोनाली के साथ नजर आ चुके एक्टर अली गोनी ने सोनाली की मृत्यु के बाद एक इमोशनल पोस्ट शेयर किया है और एक्टर ने बताया है कि सोनाली की  आखिरी इच्छा क्या थी?

 

अली गोनी ने बिग बॉस के दौरान का एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें अली और सोनाली एक-दूसरे के साथ खूबसूरत पल बिताते नजर आ रहे हैं. इस वीडियो को पोस्ट करते हुए अली ने लिखा है कि  समझ नहीं आ रहा क्या बोलूं. आपने मुझे 2 दिन पहले मैसेज किया था और बहुत सारा आशीर्वाद दिया था. आपने मुझे बताया था कि आपको मेरा नया गाना कितना पसंद आया है. आपने मुझसे पूछा था कि मैं भी आपके साथ इसी तरह का गाना करूंगी और मैंने आपको वादा किया था हम ऐसा करेंगे.

 

अली ने आगे लिखा कि मुझे माफ कर दीजिए सोनाली जी ये प्रोमिस अब अधूरा रह गया. आप बहुत याद आएंगी. भगवान आपकी आत्मा को शांति दे.

 

बता दें कि ‘बिग बॉस 14’ में सोनाली ने अली गोनी के लिए अपने प्यार का इजहार किया था. उन्होंने कहा था, मैं शादीशदा हूं और एक बच्चे की मां हूं. मैं काफी उम्रदराज हूं. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता तो मैं तुम्हें प्रपोज करती.

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