उत्तर प्रदेश के मंत्री दिनेश खटीक उन भाजपाई दलितों में से एक हैं जो कोई ज्यादती होती है तो अपनी जाति का रेनकोट पहन कर हायहाय करने लगते हैं कि देखो, मैं दलित हूं, इसलिए मेरी अनदेखी की जा रही है. अफसर मेरी सुनते नहीं, आलाकमान भी ध्यान नहीं देता वगैरहवगैरह. बात अकेले इन मंत्री महोदय की नहीं बल्कि उन लाखों दलितों की है जो दलित रेखा की सीमाएं छोड़ चुके हैं और आर्थिकरूप से संपन्न हो कर लगभग सवर्ण हो चुके हैं. जाति इन के लिए ढाल और हथियार है.
दलितों का वास्तविक अहित स्मार्ट हो गए यही दलित करते हैं. हकीकत में मनुवाद का शिकार हो कर पीडि़त-प्रताडि़त शूद्र न तो इस्तीफे की पेशकश कर सकते हैं और न ही शिकायत कर सकते. दिनेश की मंशा क्या थी, यह तब सम झ आया जब योगीजी से मिल कर वे शांत हो गए. मुमकिन है मंत्रिमंडल के पहले ही फेरबदल में उन्हें इस गुस्ताखी की सजा दे दी जाए.
गिरफ्तारी की बेताबी
पूरे देश सहित दिल्ली में भी शराब ‘पगपग नीर…’ वाली स्टाइल में इफरात से बिकती है. शराब से घर के घर भले ही बरबाद होते हों लेकिन राज्य सरकारें आबाद रहती हैं. दिल्ली की आबकारी नीति में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की भूमिका को ले कर एलजी वी के सक्सेना ने सवाल क्या उठाए, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर भड़क गए कि यह यानी सीबीआई जांच की सिफारिश मनीष को गिरफ्तार करने की तैयारी है. यह बात वे कई दिनों से कह रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार है कि उन की सुन ही नहीं रही.
आमतौर पर लोग गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करते हैं लेकिन केजरीवाल जिस शिद्दत से अपने दाएं हाथ को हथकडि़यों में लिपटे देखना चाहते हैं वह जज्बा हर किसी की सम झ नहीं आ रहा. बात धीरेधीरे अपनेअपने सियासी बापों सावरकर और भगत सिंह तक पहुंच गई तो दिल्ली वालों को मुफ्त का एक और शानदार इवैंट देखने को तैयार रहना चाहिए.
16-7=9
मध्य प्रदेश निकाय चुनावों में भाजपा पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई, जिस के तहत पूरे 16 नगरनिगम उस की झोली में आए थे. हालिया चुनाव में 7 उस से छिन गए हैं. 5 कांग्रेस ले गई तो 1-1 आम आदमी पार्टी और निर्दलीय के खाते में गया. इस चुनाव में मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिनरात मेहनत की थी पर जब नतीजे आए तो उन का चेहरा लटका हुआ था. मामा का जादू उतर रहा है. रुकरुक कर होने वाली यह चर्चा अब जोर पकड़ रही है.
यह विश्लेषण आंकड़ों और तथ्यों के अलावा आम लोगों के अनुभवों और राजनीतिक सम झ पर आधारित है कि अगर 2023 विधानसभा चुनाव उसे जीतना है तो बासे होते मामा को हटा कर किसी नएनवेले व जोशीले युवा को लाना पड़ेगा जिस का नाम विश्वास सारंग है. बाकी बूढ़े नाम नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर खारिज किए जा चुके हैं. अब देखना दिलचस्प होगा कि हर बार कुरसी बचा ले जाने के एक्सपर्ट शिवराज कौन सा दांव चलेंगे या फिर बढ़ती उम्रजनित थकान उतारने के लिए किसी राजभवन की शोभा बढ़ाएंगे.
मार्गरेट वर्सेस धनखड़
अब बारी उपराष्ट्रपति के चुनाव की है जिस में एनडीए ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल राजस्थान के जाट समुदाय के धाकड़ जगदीप धनखड़ को जबकि संयुक्त विपक्ष ने पुरानी 80 वर्षीया कांग्रेसी नेत्री मार्गरेट अल्वा को मैदान में उतारा है. टक्कर लगभग बराबरी की है बशर्ते नाराज ममता बनर्जी विपक्षी एकता के नाम पर आसानी से मान जाएं.
5 राज्यों की राज्यपाल रहीं मार्गरेट ज्यादा अनुभवी हैं और गांधीनेहरू परिवार की आलोचना के लिए भी जानी जाती हैं.
धनखड़ पश्चिम बंगाल में ममता के सामने लड़खड़ाने लगे थे. वे गिरते, इस से पहले ही उन्हें सम्मानजनक तरीके से बचाने की कवायद शुरू हो गई है. वे अगर हारे तो कहा जाएगा कि कल का कांग्रेसी और समाजवादी नेता हार गया और अगर जीते, जैसा कि वोटों का मौजूदा गणित है तो सुनने को मिलेगा रामभक्त जीता.