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Anupamaa: होश में आते ही बरखा का राज खोलेगा अनुज, बिजनेस से करेगा बेदखल

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ टीआरपी लिस्ट में भी लगातार टॉप पर बना हुआ है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि कपाड़िया हाउस में जन्माष्टमी सेलिब्रेशन के दैरान वनराज अपनी बेटी पाखी के साथ पहुंचता है. वह अनुज से माफी मांगता और ठीक होने के लिए प्रार्थना करता है. तो दूसरी तरफ बरखा अनुपमा के चरित्र पर सवाल उठाती है और उसे खरी-खोटी सुनाती है. इसी बीच अनुज को धीरे-धीरे होश आने लगता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आपने देखा कि बरखा अनुपमा से कहती है कि तुमने मेरे देवर से प्रेम नहीं किया है, मेरे देवर ने सिर्फ तुमसे प्रेम किया है. और उसने तीन बच्चों की मां और एक तलाकशुदा औरत से शादी की. अनुपमा ने अनुज को धोखा दिया है. शो में आप ये भी देखेंगे कि अंकुश और बरखा, अनुपमा को लीगल नोटिस देंगे. जिसमें लिखा होगा कि जब तक अनुज को होश नहीं आता, वह उससे जुड़ा फैसला नहीं ले सकती है. इसके साथ ही इस परिवार का बिजनेस भी नहीं संभाल सकती है.

 

बरखा और अंकुश आगे अनुपमा पर सवाल खड़ा करने से पीछे नहीं हटते हैं. दोनों कहते हैं इतना बड़ा बिजनेस संभालने के लिए तुम्हारे पास अनुभव नहीं है, साथ ही क्या भरोसा कि कब तुम इसे अपने बच्चों के नाम कर दो. अंकुश, अनुपमा से कहता है कि कपाड़िया एंपायर को तुम नहीं मैं संभालुंगा.

 

शो के आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि इसी बीच अनुज को होश आ जाएगा तो दूसरी तरफ बरखा और अंकुश को बड़ा झटका लगेगा. होश में आते ही अनुज, बरखा और अंकुश को अक्ल ठिकाने लगाएगा. वह बरखा का राज सबके सामने खोल देगा. वह बरखा और अंकुश को घर से निकालने का फैसला ले लेगा. अनुज उन दोनों को बिजनेस से भी बेदखल करेगा.

 

शो में आगे ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज सबको बताएगा कि वनराज ने खाई में उसे धक्का नहीं दिया, उसने उसे बचाने की कोशिश की थी.

आजादी स्पेशल: पार्टीशन पर फिल्में और घाव महिलाओं में

पुणे की 90 वर्षीया रीना छिब्बर वर्मा की कहानी तब सुर्खियों में आई जब उन्होंने पाकिस्तान के रावलपिंडी में अपने घर को देखने के लिए कई बार वीजा की मांग की और उन्हें वीजा नहीं मिला. उन्होंने आशा छोड़ दी थी कि जीवन रहते वे अपने पैतृक घर को देख सकेंगी पर यह मौका उन्हें 75 साल बाद केवल 3 महीने के लिए मिला, जिस से वे अपने घर को देखने के लिए उत्सुक थीं.

रीना जब महज 15 साल की थीं तब विभाजन के बाद पाकिस्तान के रावलपिंडी से अपना घर छोड़ कर भारत आई थीं. हाल ही में वे सरहद पार कर अपना पुश्तैनी घर देखने के लिए रावलपिंडी गईं तो उन की आंखें भर आईं. वहां उन्होंने पुरानी यादें सा झा करते हुए बताया कि जिस याद और दर्द को उन्होंने 75 साल तक दबा कर रखा, उस का फल उन्हें मिला. उन्होंने घरवापसी की कल्पना कभी नहीं की थी, उन्होंने सपने में भी इसे नहीं सोचा था.

मिला सहयोग

पाक उच्चायोग द्वारा रीना छिब्बर वर्मा को सद्भावना के तौर पर 3 महीने का वीजा जारी किया गया है. वे 3 महीने तक पाकिस्तान में रह सकती हैं. पकिस्तान से भारत जाते हुए वे भावुक हो गईं. देश छोड़ने के 75 साल बाद रीना छिब्बर शनिवार को वाघाअटारी सीमा से पाकिस्तान अपने घर रावलपिंडी पहुंचीं.

रीना छिब्बर ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताया कि उन्होंने मौडर्न स्कूल में पढ़ाई की है. उन के 4 भाईबहन भी उसी स्कूल में पढ़ने गए थे. उन के एक भाई और एक बहन ने मौडर्न स्कूल के पास स्थित गार्डन कालेज में पढ़ाई की है. विभाजन से पहले हिंदू और मुसलिम कोई मुद्दा नहीं था. सोशल मीडिया पर रीना के कई पाकिस्तानी दोस्त हैं. यहीं पर पाकिस्तानी नागरिक सज्जाद हैदर ने उन से संपर्क किया और रावलपिंडी में उन के घर की तसवीरें भेजीं. धीरेधीरे उन की कहानी पाकिस्तान में चर्चा का विषय बनी.

नहीं था कोई भेदभाव

रीना छिब्बर के अलावा ऐसी कई महिलाएं उस समय की रही होंगी जिन्हें पार्टीशन का घाव या सदमा सहना पड़ा. हालांकि पार्टीशन से पहले हिंदू और मुसलिम में कोई भेदभाव नहीं था. सभी अपने परिवार और दोस्तों के साथ खुश थे. लेकिन इस पार्टीशन ने देश को बांटने के अलावा लोगों के भाव, सोच आदि को बांट दिया. कितनों ने सालों वीजा के इंतजार में यादों के साथ ही दम तोड़ दिए होंगे, जिस की गणना न तो पाकिस्तान और न भारत ने ही की होगी. यह एक ऐसी विडंबना है कि आज 75 साल बाद भी लोग इस भेदभाव के शिकार हो रहे हैं.

एक काली रात

एक अनुमान के अनुसार 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे. साल 1951 के विस्थापित जनगणना के अनुसार 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़ कर पाकिस्तान गए जबकि 72,49,000 हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़ कर भारत आए. 10 किलोमीटर की लंबी लाइन में लग कर सीमा के उस पार गए या इस पार आए. केवल 60 दिनों में सालों से रहने वाले अपना घरबार, दुकानें, जायदाद, संपत्ति, खेतीकिसानी छोड़ कर भारत आए या फिर पाकिस्तान गए.

भारत विभाजन के दौरान बंगाल, सिंध, कश्मीर, हैदराबाद, पंजाब में दंगे भड़क उठे, जिस से हजारों की संख्या में लोग मारे गए और बेघर हुए.

विभाजन का काला अध्याय आज भी खून के छींटों से भरा हुआ है जिसे याद कर लोगों के रोंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं.

बंटवारे का दर्द जिन लोगों ने सहा जिस में कत्ल हुए, अपनों को खोया, बेघर हुए आदि को लेखकों और उपन्यासकारों व कहानीकारों ने अपनी लेखनी से बयां किया, जिस का मंचन नाटकों और फिल्मों के जरिए किया गया.

हुआ नाटकों का मंचन

इसी कड़ी में साल 1980 में असगर वजाहत की लिखी कहानी ‘जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ’ को निर्माता, निर्देशक दिनेश ठाकुर ने अंक थिएटर द्वारा देश और विदेश में करीब 400 से अधिक बार प्रस्तुत किया. इस में मुख्य भूमिका में प्रीता माथुर ठाकुर हैं. अभिनेत्री प्रीता कहती हैं कि गोधरा कांड के बाद दिनेश ठाकुर को रातरात भर नींद नहीं आती थी.

वे लोगों की ऐसी मानसिकता से सिहर उठे थे और हिंदूमुसलिम दंगे से हुए आम जनता की परेशानी और दर्द को बयान करने के लिए पहली बार नाटक ‘जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ’ का मंचन किया. इस के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता भी वह खुद थे.

दिनेश ठाकुर के इस नाटक ने सब का मन मोह लिया और एक के बाद एक शहरों व विदेशों में जा कर मंचन किया ताकि बंटवारे के दर्द से लोगों का परिचय करवाया जाए क्योंकि एक आर्टिस्ट आवाज नहीं उठा सकता, इसलिए कला के जरिए उन्हें सब के बीच अपनी बात रखनी पड़ती है.

इस नाटक में उन्होंने किसी दूसरे के एजेंडे को अपने जीवन में पाने का मकसद न बनाने की हिदायत दी है. सच्ची घटना पर लिखे इस नाटक में एक बूढ़ी महिला की अपनी हवेली से अंतिम सांस तक प्यार को दिखाया गया है.

जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ

प्रसिद्ध नाटक ‘जिस लाहौर नइ देख्या ओ जम्याइ नइ’ की कहानी में स्वतंत्रता के बाद अचानक से भारतपाकिस्तान विभाजन की घोषणा हो जाती है. बूढ़ी माई भी इस त्रासदी में अपने परिवार को खो बैठती है. इधर सिकंदर मिर्जा भी हिंदुस्तान से पाकिस्तान का रुख करते हैं और लाहौर में उन्हें रहने के लिए यह 22 कमरे वाली हवेली अलौट की जाती है जहां एक बूढ़ी स्त्री रहती है. शुरू में वे लोग हवेली में माई की मौजूदगी पसंद नहीं करते और उन्हें वहां से हटाने के कई प्रयास करते हैं. वह हटना नहीं चाहती, मिलनसार स्वभाव के कारण सिकंदर मिर्जा और बाकी अन्य मुसलमानों से हिलमिल जाती है. उन्हें लाहौर से इतना प्रेम होता है कि वह इसे दुनिया का श्रेष्ठ स्थान बताती है और कहती है कि जिस ने लाहौर नहीं देखा, उस ने जन्म ही नहीं लिया अर्थात संसार में कुछ भी नहीं देखा.

वह मिर्जा परिवार को सैटल्ड होने में सहायता करती है और उन्हें उस हवेली में रखना चाहती है लेकिन खुद जाना नहीं चाहती. धीरेधीरे मिर्जा के परिवार वालों की दोस्ती उस बूढ़ी औरत से हो जाती है. इस नाटक में ह्युमन बिहेवियर को दिखाया गया है जिस में धर्म कोई भी हो, सम्मान देने के लिए नतमस्तक करना पड़ता है और हर व्यक्ति के खून का रंग लाल ही होता है. उस बुढि़या की मत्यु के बाद उस के धर्म के अनुसार अंत्येष्टि कर दी जाती है लेकिन अंत में विरोधी लोग मिर्जा का कत्ल कर देते हैं.

प्रीता आगे कहती है कि आज भी हमारे देश की मानसिकता बदली नहीं, जो सालों पहले थी. इसलिए अभी भी इस नाटक का मंचन लगातार कर रही हूं. आजादी के महोत्सव में भी इस नाटक का मंचन किया जाएगा. क्या इन 75 सालों में सभी ने कुछ नहीं सीखा.

ह्ल पार्टीशन पर बनी फिल्में

देश के विभाजन को ले कर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कई फिल्में बनाई गईं जिन्हें देख कर हमें आज भी उस दौर के दृश्य नजर आते हैं जब हम ने आजादी की कीमत देश के बंटवारे के रूप में चुकाई थी. आइए रूबरू होते हैं उस समय की पार्टीशन को ले कर बनीं कुछ फिल्मों से.

लाहौर

विभाजन की विभीषिका को भारतीय फिल्मकारों ने पहली बार 1949 में सिल्वर स्क्रीन पर दिखाया. एम एल आनंद के निर्देशन में बनी फिल्म ‘लाहौर’ में नरगिस और करन दीवान ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फिल्म की कहानी एक प्रेमीप्रेमिका के इर्दगिर्द घूमती है. इस में दिखाया गया है कि देश विभाजन के समय एक लड़की का कुछ लोग अपहरण कर उसे पाकिस्तान में रख लेते हैं जबकि उस का प्रेमी भारत आ जाता है. बाद में वह अपनी प्रेमिका (नरगिस) को लेने पाकिस्तान चला जाता है.

धर्मपुत्र

साल 1961 में आई फिल्म ‘धर्मपुत्र’ भारतपाकिस्तान के बंटवारे और धर्म पर आधारित दंगों को दिखाती है. फिल्म की कहानी में बंटवारे के दौरान एक हिंदू परिवार अपने साथ एक मुसलिम बच्चे को भारत ले कर आता है. इस फिल्म का गाना ‘तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है इंसान बनेगा’ हिंदूमुसलिम एकता को दर्शाता है.

गरम हवा

देश विभाजन की टीस भारतीय साहित्यकारों के साथसाथ फिल्मकारों पर थी कि उन्होंने सिनेमा और समाज को एक से बढ़ कर एक फिल्में दीं. इन में से 1973 में बनी फिल्मं ‘गरम हवा’ थी. पूरी तरह से देश विभाजन पर आधारित इस फिल्म में एक तरफ प्रेम कहानी दिखाई गई तो दूसरी तरफ एक नया देश पाकिस्तान बनने के बाद भारत में रह गए मुसलमानों के अंतर्द्वंद्व व दंश को प्रदर्शित किया गया. इस में लोगों के दिलों में खिंची इसी खूनी सरहद की वजह से हुए पार्टीशन के बाद 2 मुल्कों के अलग होने से उपजे दर्द से गुजरते हर परिवार की जिंदा शहादत की कहानी है.

तमस

वर्ष 1988 में आई फिल्म ‘तमस’ उपन्यासकार भीष्म साहनी के उपन्यास पर आधारित है. कहा जाता है कि यह फिल्म पाकिस्तान में स्थित रावलपिंडी में हुए दंगों की सच्ची घटना पर बनाई गई है. इस फिल्म में विभाजन के दौरान होने वाले दंगों की कहानियां बताई गई हैं. ‘तमस’ कुल 5 दिनों की कहानी को ले कर बुना गया उपन्यास है परंतु कथा में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं उन से यह 5 दिवस की कथा न हो कर 20वीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षों की कहानी हो जाती है. इस फिल्म में भीष्म साहनी, एके हंगल, ओमपुरी, पंकज कपूर और सुरेखा सीकरी जैसे सितारों ने काम किया है.

ट्रेन टू पाकिस्तान

खुशवंत सिंह के उपन्यास ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ पर बनी फिल्म साल 1998 में रिलीज की गई थी. यह फिल्म पाकिस्तान में स्थित शहर मनीमाजरा के पास स्थित एक रेलवे लाइन की कहानी है. आजादी के पहले इस गांव में सिख बहुसंख्यक में हुआ करते थे, मुसलिमों की आबादी कम थी. इस के बावजूद भी लोग वहां मिलजुल कर रहते थे पर बंटवारे के बाद उस शहर की स्थिति दूसरी जगहों की तरह ही बदल जाती है. लोगों के बीच दंगे होते हैं जिन में लोग एकदूसरे की जान के दुश्मन बन जाते हैं.

इस के निर्देशक पामेला रुक्स हैं. उन्होंने लोगों के इमोशंस को बखूबी दिखाया है. इस में जब पाकिस्तान से एक ट्रेन आती है जिस में भारत आने वाले लोगों के शव होते हैं, तब चीजें बदल जाती हैं. इसे दर्शकों ने खूब पसंद किया और इस फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले हैं.

इस प्रसंग को आज भी गोधरा कांड से जोड़ा जा सकता है. 27 फरवरी, 2002 को गुजरात स्थित गोधरा शहर में लोगों से भरी रेलगाड़ी में एक समुदाय द्वारा आग लगाने से 90 यात्री मारे गए, जिस के परिणामस्वरूप गुजरात में साल 2002 में दंगे हुए और हजारों की संख्या में लोगों ने अपनों को खोया. उस दिन को भी इतिहास के काले अध्याय के रूप में जोड़ा गया जिस ने हिंदूमुसलिम के भाईचारे को आग लगा दी थी.

हे राम

साल 2000 में फिल्म ‘हे राम’ को दक्षिण के जानेमाने ऐक्टर, डायरैक्टर और फिल्म प्रोड्यूसर कमल हासन द्वारा बनाया गया. फिल्म में बंटवारे के समय की हिंसा को दिखाया गया है जिस में राम नाम के एक इंसान की पत्नी का दंगों के दौरान बलात्कार कर उस की हत्या कर दी जाती है. इस के साथ ही फिल्म में नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या की कहानी को भी परदे पर दिखाया गया है. इस फिल्म को औस्कर के लिए भी नौमिनेट किया गया.

गदर एक प्रेमकथा

साल 1999 में आई सनी देओल और अमीषा पटेल स्टारर फिल्म ‘गदर एक प्रेमकथा’ बंटवारे के समय की एक प्रेमकहानी को दिखाया गया है. कहानी में सरदार तारा सिंह दंगों के दौरान एक मुसलिम महिला सकीना की जान बचाता है, जिस के बाद वे दोनों शादी कर लेते हैं. सालों बाद सकीना को पता चलता है कि उस के मातापिता जिंदा हैं और वह उन से मिलने पाकिस्तान जाती है पर सकीना के मातापिता उसे जबरन वहीं रोक लेते हैं और उस के पति के पास नहीं जाने देते हैं. इस के बाद तारा सिंह अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए पाकिस्तान जाता है.

पिंजर

चंद्र प्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित 2003 की फिल्म ‘पिंजर’ भारत के विभाजन के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों की समस्याओं के बारे में है. फिल्म अमृता प्रीतम द्वारा लिखित इसी नाम के एक पंजाबी उपन्यास पर आधारित है. उर्मिला मातोंडकर, मनोज बाजपेयी और संजय सूरी प्रमुख भूमिकाओं में हैं. आलोचकों की प्रशंसा के अलावा फिल्म ने राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

वीर जारा

साल 2004 की यशराज फिल्म्स की फिल्म ‘वीर जारा’ लगभग हर किसी ने देखी होगी. इस फिल्म में जितने अच्छे गाने हैं, उतनी ही अच्छी फिल्म की कहानी है. भारतीय पायलट वीर और एक पाकिस्तानी लड़की जारा को प्यार हो जाता है. जब वीर को पाकिस्तानी जेल में बंदी बनाया जाता है तो जारा उसे मृत मान लेती है और भारत आ कर उस के गांव के लोगों की सेवा करती है.

इस के अलावा निर्देशक गुरिंदर चड्ढा की ‘पार्टीशन 1947’, ‘ए मिडनाइट चिल्ड्रेन’ आदि कई फिल्में बंटवारे पर बनी हैं और बनाई जा रही हैं लेकिन जब भी बंटवारे पर फिल्में बनती हैं, दर्शकों के घाव फिर से हरे हो जाते हैं. फिर चाहे वह इंडिया, पाकिस्तान हो या भारत, बंगलादेश. सभी स्थानों पर रहने वाली महिलाएं, पुरुष और बच्चे जातिमजहब की अनगिनत मुश्किलों का सामना करते हुए कुछ दम तोड़ देते हैं तो बचे लोग आज भी शांति की कामना करते रहते हैं.

आखिर कब तब थमेगा जाति, धर्म, मजहब को ले कर कत्लेआम जिस में एजेंडा किसी और का और बलि कोई दूसरा चढ़ रहा है. शिक्षित युवा सम झो और इसे खत्म करो, हिंदी सिनेमाजगत के कलाकारों का यही आह्वान है. हिंदी फिल्म जगत आज पार्टीशन को नोट बटोरने का काम करने लगा है और उसे हिंदूमुसलिम विवाद के जख्मों को कुरेदने में ज्यादा सहायक है, उस पर मरहमपट्टी करने में कम.

हालत ए पंजाब

पंजाब में लोकसभा उपचुनाव में संगरूर सीट पर सिमरनजीत सिंह मान की जीत चिंता का विषय है. यह सीट आम आदमी पार्टी के अकेले लोकसभा सदस्य भगवंत सिंह मान के पंजाब के मुख्यमंत्री बनाए जाने पर दिए गए त्यागपत्र की वजह से खाली हुई थी. वर्तमान मुख्यमंत्री की सीट पर किसी और पार्टी की जीत तो आश्चर्यजनक है ही, बड़ी बात है सिमरनजीत सिंह मान की नीति.

सिमरनजीत सिंह मान न भारतीय जनता पार्टी के सदस्य है, न कांग्रेस के और न पंजाब में बरसों राज किए शिरोमणी अकाली दल के. सिमरनजीत सिंह मान सिख राजनीति के कट्टरवादियों में से कहे जाने चाहिए, वे धार्मिक एजेंडे के समर्थक हैं.

पंजाब 1980 के आसपास सुलगने लगा था और तब न केवल सैकड़ों मारे गए, ब्लूस्टार औपरेशन हुआ और इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या भी हुई. राजीव गांधी ने जैसेतैसे कर के उस मामले को सुलटाया था पर अब हिंदू कट्टरता के चलते सिख कट्टरता भी सिर उठाने लगी है और जहां पंजाब में शिरोमणी अकाली दल (बादल) और भारतीय जनता पार्टी दोनों हाशिए पर आ गए हैं, सत्ता आम आदमी पार्टी के नौसिखिए हाथों में आ गई है.

सिमरनजीत सिंह मान की जीत के पीछे एक वजह यही है कि जनता सम झती है ‘आप’ के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान मात्र कठपुतली हैं जिन्हें राज चलाना नहीं आता. सिर्फ अच्छा गायक होना काफी नहीं है. पंजाब के धर्म के कट्टर लोगों ने पहले शिरोमणी अकाली दल के प्रति गुस्सा कांग्रेस को जिता कर दिखाया था, फिर आम आदमी पार्टी को जिता कर और अब सिमरनजीत सिंह को.

पंजाब का आज उबलना देश के लिए खतरनाक है. वैसे ही भगवा नीतियों के कारण देशभर के मुसलमान, दलित और पिछड़ों के बहुत से हिस्से राजनीति, नौकरी, सुरक्षा के सवालों पर हाशिए पर होने के कारण बेहद खफा हैं. ऐसी हालत में पंजाब, जो जम्मूकश्मीर से सटा है, पाकिस्तान से सीमा जुड़ी है, नाराज होने लगा तो बहुत भारी पड़ेगा.

धर्मजनित राजनीति किसी देश, समाज को कभी नहीं भाई. समाज को हमेशा धर्म ने लूटा है, बहकाया है व आगे बढ़ने से रोका है. धर्म लोकप्रिय इसलिए नहीं है कि वह अच्छी बात बताता है बल्कि इसलिए है कि वह निठल्ले कार्यकर्ताओं को जमा कर लेता है, उन्हें खूब  झूठी कहानियां बोलने की ट्रेनिंग देता है और फिर घरघर जा कर बहकाने की लगातार कोशिश करता है. पंजाब में अब क्या 1980 के दिन लौट रहे हैं जहां धर्म के सहारे न जाने क्याक्या किया जाएगा और फिर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्र को इंदिरा गांधी की तरह कुछ अनावश्यक करना होगा. अगर ऐसा हुआ तो जिम्मेदारी उन की होगी जिन्होंने पिछले 40 वर्षों के दौरान राजनीति को भगवा रंग की बालटी में डुबो कर रखने की सफल कोशिश की है, वे भूल गए कि इस बालटी में दूसरे रंगों के भी टुकड़े पड़े हैं.

अगस्त माह में खेती से जुड़े काम

किसानों के लिए वैसे तो हर महीना खास होता है, लेकिन अगस्त का महीना खेती के लिए इसलिए ज्यादा अहम होता है कि इस महीने में मानसून जोरों पर होता है और वर्षा वाले क्षेत्रों में ?ामा?ाम बारिश भी होती है.

अगस्त महीने में होने वाली बारिश जहां फसलों के लिए फायदेमंद होती है, वहीं कई तरह के कीड़ेमकोड़े भी पनपते रहते हैं, जो फसल और पशुओं के साथसाथ हमारी सेहत के लिए भी नुकसानदायक होते हैं.

इस महीने पशुओं में खुरपकामुंहपका रोग का प्रकोप भी बढ़ जाता है, वहीं अधिक बारिश से फसलों में भी कीटों व बीमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है.

इस समय बारिश अधिक होने से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़ों की तादाद काफी बढ़ जाती है, जो बोई गई फसल की पत्तियों का रस, फूल व फलों को अपना भोजन बनाते हैं. इस से पैदावार में काफी कमी आ जाती है. ऐसे में अगर कीटों का प्रकोप फसल में दिखाई पड़े, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के फसल सुरक्षा विशेषज्ञ से संपर्क कर समाधान पा सकते हैं.

इस के अलावा फसल में बहुत सी बीमारियां भी फैलती हैं, जिस से उपज में कमी के साथसाथ गुणवत्ता भी गिर जाती है. इन बीमारियों से बचने के लिए किसानों को रोगरोधी किस्मों का चयन और बीजोपचार का उपाय अपनाना चाहिए.

किसान खरीफ फसल के रूप में सब से ज्यादा धान की खेती करते हैं और अगस्त महीने तक धान की रोपाई का काम पूरी तरह से पूरा हो चुका होता है. ऐसे में धान की फसल को पानी की ज्यादा जरूरत पड़ती है.

अगस्त महीने में बारिश अच्छी होती है. ऐसी अवस्था में खेतों के चारों ओर मेंड़ों को मजबूत करें, जिस से बरसात का पानी खेत से बह कर बाहर न जाने पाए.

अगर अगस्त महीने में बारिश अच्छी न हो, तो फसल में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए उचित अंतराल पर सिंचाई करते रहें.

धान की रोपाई के 25-30 दिन बाद अधिक उपज वाली प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 65 किलोग्राम यूरिया और सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 33 किलोग्राम यूरिया की टौप ड्रैसिंग करें. नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग रोपाई के 50-55 दिन बाद करनी चाहिए.

खैरा रोग की रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट

व 2.5 किलोग्राम चूना या 20 किलोग्राम

यूरिया को 1,000 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

दानेदार यूरिया के नुकसान से बचने के लिए इफको का नैनो लिक्विड यूरिया का छिड़काव करें. इस से मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण में कमी आती है. साथ ही, फसल को पूरी नाइट्रोजन मिलती है, जिस से फसल की बढ़वार और उत्पादन दोनों बढ़ जाते हैं.

धान की फसल में फास्फोरस भी 2 बार दिया जा सकता है. धान की फसल में जिंक डालना न भूलें, क्योंकि यदि जिंक नहीं दिया हो, तो 3 हफ्ते बाद धान की फसल पीली पड़ सकती है और पत्तों पर भूरे धब्बे आ जाते हैं.

बीमारियों में तना गलन पौधों के तनों को गला देते हैं, पौधे जमीन पर गिर पड़ते हैं और तना चीरने पर सफेद रुई जैसी फफूंद व काले रंग के पिंड पाए जाते हैं.

इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोपाई से पहले खेतों व मेंड़ों पर पडे पिंडों और ठूंठों को जला दें. खेत में हर हफ्ते पानी बदल दें और रोगग्रस्त खेत का पानी स्वस्थ खेत में न जाने दें.

ब्लास्ट रोग में पत्तियों पर धब्बे बनते हैं, तने पर गांठें चारों ओर से काली हो जाती हैं और पौधा गांठ से टूट जाता है.

रोकथाम के लिए लक्षण नजर आने पर प्रति एकड़ 200 ग्राम कार्बंडाजिम को

200 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

अगस्त में गन्ने को बांधें, ताकि फसल गिरने से बचे, क्योंकि इस माह काफी कीट व बीमारियों के लगने का डर रहता है. अगोला बेधक, पायरिल्ला, गुरदासपुर बोरर, जड़ बेधक कीटों का प्रकोप दिखने पर रोकथाम के लिए कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें.

अगस्त महीने में वर्षा का पानी मक्का के खेत में रुकने न पाए. इस का निकास लगातार करते रहें. साथ ही, खरपतवार भी खेत से बराबर निकालते रहें.

देर से बोई जाने वाली फसल में पौधे घुटनों की ऊंचाई पर आ गए होंगे, वहां नाइट्रोजन की दूसरी बार की मात्रा समय से देना न भूलें.

इस महीने बाजरे में फूल आने की स्थिति होती है. ऐसे समय पर खेत में नमी बनाए रखें. भारी वर्षा होने पर फालतू पानी तुरंत निकाल दें.

ध्यान रखें कि मूंग, उड़द, लोबिया, अरहर, सोयाबीन वगैरह दलहनी फसलों में फूल आने पर मिट्टी में हलकी नमी बनाए रखें. इस से फूल ?ाड़ेंगे नहीं और अधिक फलियां लगेंगी व दाने भी मोटे और स्वस्थ होंगे. परंतु खेतों में वर्षा का पानी खड़ा नहीं होना चाहिए और जल निकास अच्छा होना चाहिए.

जिन किसानों ने मूंगफली की फसल ले रखी है और अगर मूंगफली में फूल आने की अवस्था है, तो सिंचाई जरूर करें. दूसरी सिंचाई फल लगने पर जरूरी है.

जिन किसानों ने बैगन व टमाटर की नर्सरी डाल रखी हो, वह अगर जुलाई के अंत में पौधों की रोपाई नहीं कर पाए हैं, तो अगस्त माह में रोपाई जरूर पूरी कर लें. अगर रोपाई का काम जुलाई में पूरा कर लिया गया हो, तो अगस्त माह में खरपतवार नियंत्रण व खेत में उचित नमी बनाए रखें. साथ ही, अतिरिक्त पानी को निकालते रहें.

जिन किसानों ने खीरे की खेती कर रखी हो या इस के अलावा दूसरी सब्जियां भी लगा रखी हों, उन सब्जियों में फल छेदक कीड़ों के प्रकोप का खतरा बना रहता है. ऐसे में कीड़ों के नियंत्रण के लिए फसल सुरक्षा विशेषज्ञ से संपर्क करें.

पत्तागोभी व फूलगोभी की अगेती खेती करने वाले किसान अगस्त माह के अंत तक नर्सरी डाल दें. पत्तागोभी की उन्नत किस्मों में गोल्डन, पूसा मुक्ता व फूलगोभी की पूसा सिंथेटिक, पूसा सुभद्रा और पूसा हिम ज्योति किस्में चुनें. बीज को उपचारित कर के 1 फुट चौड़े व सुविधानुसार लंबे व ऊंची नर्सरी बैड में डालें. बीच में अच्छी चौड़ी नालियां रखें.

नर्सरी में बीज डालने के पहले सड़ीगली खाद अच्छी मात्रा में जरूर मिलाएं. नर्सरी में बीज डालने के बाद उचित नमी बनाए रखें और धूप से भी बचाएं. अगस्त में डाली गई नर्सरी के पौध की रोपाई सितंबर माह में करें.

गाजर और मूली की अगेती खेती करने वाले किसान अगस्त महीने में बोआई कर सकते हैं. गाजर की पूसा केसर और पूसा मेघाली किस्मों को 2-2.7 किलोग्राम बीज को एक फुट की दूरी पर लाइनों में आधा इंच गहरी लगाएं. वहीं मूली की पूसा देशी किस्म का

3-4 किलोग्राम बीज एक फुट की दूरी पर लाइनों में और 6 इंच की दूरी रख कर लगाएं.

अगस्त का महीना नीबू व लीची में

गूटी बांधने के लिए सब से मुफीद माना गया है. इस समय बगीचों से जलनिकास और खरपतवार नियंत्रण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है.

पपीते की खेती करने वाले किसान इस माह के अंत तक पपीते की पौध भी गड्ढों में लगा सकते हैं. इस के लिए अच्छी मिट्टी व देशी खाद से ऊपर तक गड्ढे भर लें.

अगस्त महीने में बबूल, शीशम और नीम को बंजर भूमि में लगा सकते हैं. इन की लकड़ी ईंधन, उद्योगों का कच्चा माल, बिजली के खंभे, फर्नीचर बनाने के काम आते हैं और काफी लाभदायक हैं. बबूल और नीम भेड़बकरियों का चारा भी है.

अगस्त के महीने में हमारे खेतों में बोई गई फसल के बीच और मेंड़ों पर घासफूस उग आते हैं, जो फसल की वृद्धि की दर को रोक देते हैं. ऐसे में यह सुनिश्चित कर लें कि फसल में खरपतवार बिलकुल ही न उगने पाएं. अगर खरपतवार उग आए हों, तो निराईगुड़ाई कर के उन्हें फसल से निकाल दें.

इस समय यह भी ध्यान दें कि फसल में कोई रोगग्रस्त पौधा दिखाई दे, तो उसे निकाल कर नष्ट कर दें. इस से बीमारियों को पूरी फसल में फैलने से रोकने में मदद मिलती है.

अगस्त महीने के शुरुआती हफ्ते तक धान की रोपाई का काम पूरा हो चुका होता है. ऐसे में किसान अपने ट्रैक्टर और लेव लगाने वाले यंत्रों की साफसफाई करें. अगर इन का रखरखाव ठीक से नहीं होता है, तो कृषि के कामों में काफी बुरा असर पड़ता है.

झटका: उस औरत से विवेक का क्या संबंध था

क्या देवरानी जेठानी में बिलकुल नहीं बनती है?

सवाल

अगले महीने मेरी शादी होने वाली है. अच्छा घरबार है. होने वाले पति अच्छी जौब में हैं. घर में सब खुश हैं कि मैं खातेपीते घर में जा रही हूं. लेकिन मैं एक बात से जरा कन्फ्यूज्ड हूं, ससुराल में मेरे जेठजेठानी होंगे. सब साथ ही रहेंगे. मैं ने अधिकतर देखा है कि देवरानी जेठानी में बिलकुल नहीं बनती और संयुक्त परिवार में अकसर लड़ाई झगड़े होते हैं. इस कारण मैं परेशान हूं. मैं शादी के बाद कोई लड़ाई झगड़ा नहीं चाहती. मुझे वहां कैसे रहना चाहिए? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा.

जवाब

आप अभी से इतनी दूर की क्यों सोच रही हैं. शादी कर के आप ससुराल जा रही हैं तो अपनी सोच को पौजिटिव रख कर वहां कदम रखिए. माना कि संयुक्त परिवार में लड़ाई?ागड़े हो जाते हैं इसलिए एकल फैमिली का चलन चल पड़ा लेकिन अब फिर लोगों को सम?ा आने लगा है कि अपनों का साथ जिंदगी में कितना जरूरी है. मातापिता का साया सिर पर होना कितना सुकून देता है और यह बात तब ज्यादा सम?ा आती है जब खुद का परिवार बनता है यानी जब बच्चे होते हैं. अपनों के बीच बच्चे का पालनपोषण कितना सुरक्षित और देखभाल भरा होता है, यह उन्हें तब पता चलता है.

रही बात जेठानी की तो छोटीछोटी बातों का आप ध्यान रखेंगी तो जेठानी के साथ प्रेममोहब्बत के साथ रह सकती हैं. कोई भी यदि जेठानी के बारे में कुछ कहता है तो डायरैक्ट उन से बात कर के सब क्लीयर करें.

एकदूसरे को ठीक से सम?ाने का बैस्ट तरीका है कि आप साथ में समय बिताएं. शौपिंग बैस्ट औप्शन है. साथ में जाएं. इस से रिश्ता मजबूत बनेगा. घर के काम भी यदि मिलजुल कर करते हैं तो लड़ाई?ागड़े का चांस नहीं मिलेगा.

खाली समय में अपने अलग कमरे में घुस कर न बैठे रहें बल्कि साथ में मिल कर गप्पें मारें. फिल्म देखें या कुछ और मस्ती कर लें. ये सभी काम आप के बीच प्रेम बढ़ाएंगे. घर में जब मां या बहन बीमार हो जाती है तो हम उस की सेवा करते हैं. काम में हाथ भी बंटाते हैं. बस, इसी सोच के साथ जेठानी का खयाल रखें. यदि आप उसे दिल से बहन मान लोगी और उस की बहुत केयर करोगी तो सामने वाली भी आप से प्रेम करने लगेगी.

वैसे तो आप को जेठानी के साथ रहना चाहिए लेकिन इतना भी न चिपके रहना कि उस का सांस लेना भी मुश्किल हो जाए. खासकर, निजी मामलों में आप को दखलंदाजी नहीं करनी चाहिए, जब तक कि वह आप से कुछ न कहे. मानसम्मान और बराबरी देवरानी और जेठानी को ससुराल में समान रूप से मिलना चाहिए और यह बात जेठानीदेवरानी दोनों को सम?ानी चाहिए. यदि आप ‘मैं तु?ा से बेहतर हूं,’ के कौंसैप्ट में उल?ा रहोगी तो कभी शांति से नहीं रह पाओगी.

इन सब बातों को गौर से पढ़ें और सम?ों और दिल की सारी उल?ान बाहर फेंक कर अपने आने वाले भविष्य के बारे में अच्छा सोचते हुए नई शुरुआत करें.

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उन्मुक्त: प्रोफेशर और रीमा के बीच क्या चल रहा था?

फिर प्रोफैसर ने नाश्ता और चाय लिया. रीमा बगल में ही बैठी थी पहले की तरह और आदतन टेबल पर पोर्टेबल टूइनवन में गाना भी बज रहा था. रीमा बोली, ‘‘आजकल आप कुछ ज्यादा ही रोमांटिक गाने सुनने लगे हैं. कमला मैडम के समय ऐसे नहीं थे.’’

उन्होंने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘अभी तुम ने मेरा रोमांस देखा कहां है?’’

रीमा बोली, ‘‘वह भी देख लूंगी, समय आने पर. फिलहाल कुछ पैसे दीजिए राशन पानी वगैरह के लिए.’’

प्रोफैसर ने 500 के 2 नोट उसे देते हुए कहा, ‘‘इसे रखो. खत्म होने के पहले ही और मांग लेना. हां, कोई और भी जरूरत हो, तो निसंकोच बताना.’’

रीमा बोली, ‘‘जानकी बेटी के लिए कुछ किताबें और कपड़े चाहिए थे.’’ उन्होंने 2 हजार रुपए का नोट उस को देते हुए कहा, ‘‘जानकी की पढ़ाई का खर्चा मैं दूंगा. आगे उस की चिंता मत करना.’’

कुछ देर बाद रीमा बोली, ‘‘मैं आप का खानापीना दोनों टाइम का रख कर जरा जल्दी जा रही हूं. बेटी के लिए खरीदारी करनी है.’’

प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जाओ, पर एक बार गले तो मिल लो, और हां, मैडम की अलमारी से एकदो अपनी पसंद की साडि़यां ले लो. अब तो यहां इस को पहनने वाला कोई नहीं है.’’

रीमा ने अलमारी से 2 अच्छी साडि़यां और मैचिंग पेटीकोट निकाले. फिर उन से गले मिल कर चली गई.

अगले दिन रीमा कमला के कपड़े पहन कर आई थी. सुबह का नाश्तापानी हुआ. पहले की तरह फिर उस ने लंच भी बना कर रख दिया और अब फ्री थी. प्रोफैसर बैडरूम में लेटेलेटे अपने पसंदीदा गाने सुन रहे थे. उन्होंने रीमा से 2 कौफी ले कर बैडरूम में आने को कहा. दोनों ने साथ ही बैड पर बैठेबैठे कौफी पी थी. इस के बाद प्रोफैसर ने उसे बांहों में जकड़ कर पहली बार किस किया और कुछ देर दोनों आलिंगनबद्ध थे. उन के रेगिस्तान जैसे तपते होंठ एकदूसरे की प्यास बु झा रहे थे. दोनों के उन्माद चरमसीमा लांघने को तत्पर थे. रीमा ने भी कोई विरोध नहीं किया, उसे भी वर्षों बाद मर्द का इतना सामीप्य मिला था.

अब रीमा घर में गृहिणी की तरह रहने लगी थी. कमला के जो भी कपड़े चाहिए थे, उसे इस्तेमाल करने की छूट थी. डै्रसिंग टेबल से पाउडर क्रीम जो भी चाहिए वह लेने के लिए स्वतंत्र थी.

कुछ दिनों बाद नवल बेटे का स्काइप पर वीडियो कौल आया. रीमा घर में कमला की साड़ी पहने थी. प्रोफैसर की बहू रेखा ने भी एक ही  झलक में सास की साड़ी पहचान ली थी. औरतों की नजर इन सब चीजों में पैनी होती है. रीमा ने उसे नमस्ते भी किया था. रेखा ने देखा कि रीमा और उस के ससुर दोनों पहले की अपेक्षा ज्यादा खुश और तरोताजा लग रहे थे.

बात खत्म होने के बाद रेखा ने अपने पति नवल से कहा, ‘‘तुम ने गौर किया, रीमा ने मम्मी की साड़ी पहनी थी और पहले की तुलना में ज्यादा खुशमिजाज व सजीसंवरी लग रही थी. मु झे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘तुम औरतों का स्वभाव ही शक करने का होता है. पापा ने मम्मी की पुरानी साड़ी उसे दे दी तो इस में क्या गलत है? और पापा खुश हैं तो हमारे लिए अच्छी बात है न?’’

‘‘इतना ही नहीं, शायद तुम ने ध्यान नहीं दिया. घर में पापा लैपटौप ले कर जहांजहां जा रहे थे, रीमा उन के साथ थी. मैं ने मम्मी की ड्रैसिंग टेबल भी सजी हुई देखी है,’’ रेखा बोली.

नवल बोला, ‘‘पिछले 2-3 सालों से पापामम्मी की बीमारी से और फिर उन की मौत से परेशान थे, अब थोड़ा सुकून मिला है, तो उन्हें भी जिंदगी जीने दो.’’

प्रोफैसर और रीमा का रोमांस अब बेरोकटोक की दिनचर्या हो गई थी. अब बेटेबहू का फोन या स्काइप कौल

आता तो वे उन से बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते थे और जल्दी ही कौल समाप्त कर देना चाहते थे. इस बात को नवल और रेखा दोनों ने महसूस किया था.

कुछ दिनों बाद बेटे ने पापा को फोन कर स्काइप पर वीडियो पर आने को कहा, और फिर बोला, ‘‘पापा, थोड़ा पूरा घर दिखाइए. देखें तो मम्मी के जाने के बाद अब घर ठीकठाक है कि नहीं?’’

प्रोफैसर ने पूरा घर घूम कर दिखाया और कहा, ‘‘देखो, घर बिलकुल ठीकठाक है. रीमा सब चीजों का खयाल ठीक से रखती है.’’

नवल बोला, ‘‘हां पापा, वह तो देख रहे हैं. अच्छी बात है. मम्मी के जाने के बाद अब आप का दिल लग गया घर में.’’

जब प्रोफैसर कैमरे से पूरा घर दिखा रहे थे तब बहू, बेटे दोनों ने रीमा को मम्मी की दूसरी साड़ी में देखा था. इतना ही नहीं, बैड पर भी मम्मी की एक साड़ी बिखरी पड़ी थी. तब रेखा ने नवल से पूछा, ‘‘तुम्हें सबकुछ ठीक लग रहा है, मु झे तो दाल में काला नजर आ रहा है.’’

नवल बोला, ‘‘हां, अब तो मु झे भी कुछ शक होने लगा है. खुद जा कर देखना होगा, तभी तसल्ली मिलेगी.’’

इधर कुछ दिनों के लिए रीमा की बेटी किसी रिश्तेदार के साथ अपने ननिहाल गई हुई थी. तब दोनों ने इस का भरपूर लाभ उठाया था. पहले तो रीमा डिनर टेबल पर सजा कर शाम के पहले ही घर चली जाती थी. प्रोफैसर ने कहा, ‘‘जानकी जब तक ननिहाल से लौट कर नहीं आती है, तुम रात को भी यहीं साथ में खाना खा कर चली जाना.’’

आज रात 8 बजे की गाड़ी से जानकी लौटने वाली थी. रीमा ने उसे प्रोफैसर साहब के घर ही आने को कहा था क्योंकि चाबी उसी के पास थी. इधर नवल ने भी अचानक घर आ कर सरप्राइज चैकिंग करने का प्रोग्राम बनाया था. उस की गाड़ी भी आज शाम को पहुंच रही थी.

अभी 8 बजने में कुछ देर थी. प्रोफैसर और रीमा दोनों घर में अपना रोमांस कर रहे थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी तो उन्होंने कहा, ‘‘रुको, मैं देखता हूं. शायद जानकी होगी.’’ और उन्होंने लुंगी की गांठ बांधते हुए दरवाजा खोला तो सामने बेटे को खड़ा देखा. कुछ पलों के लिए दोनों आश्चर्य से एकदूसरे को देखते रहे थे, फिर उन्होंने नवल को अंदर आने को कहा. तब तक रीमा भी साड़ी ठीक करते हुए बैडरूम से निकली जिसे नवल ने देख लिया था.

रीमा बोली, ‘‘आज दिन में नहीं आ सकी थी तो शाम को खाना बनाने आई हूं. थोड़ी देर हो गई है, आप दोनों चल कर खाना खा लें.’’

खैर, बापबेटे दोनों ने खाना खाया. तब तक जानकी भी आ गई थी. रीमा अपनी बेटी के साथ लौट गई थी. रातभर नवल को चिंता के कारण नींद नहीं आ रही थी. अब उस को भी पत्नी की बातों पर विश्वास हो गया था. अगले दिन सुबह जब प्रोफैसर साहब मौर्निंग वौक पर गए थे, नवल ने उन के बैडरूम का मुआयना किया. उन के बाथरूम में गया तो देखा कि बाथटब में एक ब्रा पड़ी थी और मम्मी की एक साड़ी भी वहां हैंगर पर लटक रही थी. उस का खून गुस्से से खौलने लगा था. उस ने सोचा, यह तो घोर अनैतिकता हुई और मम्मी की आत्मा से छल हुआ. उस ने निश्चय किया कि वह अब चुप नहीं रहेगा, पापा से खरीखरी बात करेगा.

रीमा तो सुबह बेटी को स्कूल भेज कर 8 बजे के बाद ही आती थी. उस के पहले जब प्रोफैसर साहब वौक से लौट कर आए तो नवल ने कहा, ‘‘पापा, आप मेरे साथ इधर बैठिए. आप से जरूरी बात करनी है.’’

वे बैठ गए और बोले, ‘‘हां, बोलो बेटा.’’

नवल बोला, ‘‘रीमा इस घर में किस हैसियत से रह रही है? आप के बाथरूम में ब्रा कहां से आई और मम्मी की साड़ी वहां क्यों है? मम्मी की साडि़यों में मैं ने और रेखा दोनों ने रीमा को बारबार स्काइप पर देखा है. मम्मी की डै्रसिंग टेबल पर मेकअप के सामान क्यों पड़े हैं? इन सब का क्या मतलब है?’’

प्रोफैसर साहब को बेटे से इतने सारे सवालों की उम्मीद न थी. वे कुछ बोल नहीं पा रहे थे. तब नवल ने गरजते हुए कहा, ‘‘पापा बोलिए, मैं आप से ही पूछ रहा हूं. मु झे तो लग रहा है कि रीमा सिर्फ कामवाली ही नहीं है, वह मेरी मम्मी की जगह लेने जा रही है.’’

प्रोफैसर साहब तैश में आ चुके थे. उन्होंने जोरदार शब्दों में कहा, ‘‘तुम्हारी मम्मी की जगह कोई नहीं ले सकता है. पर क्या मु झे खुश रहने का अधिकार नहीं है?’’

नवल बोला, ‘‘यह तो हम भी चाहते हैं कि आप खुश रहें. आप हमारे यहां आ कर मन लगाएं. पोतापोती और बहू हम सब आप को खुश रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे.’’

‘‘भूखा रह कर कोईर् खुश नहीं रह सकता है,’’ वे बोले.

नवल बोला, ‘‘आप को भूखा रहने का सवाल कहां है?’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘खुश रहने के लिए पेट की भूख मिटाना ही काफी नहीं है. मैं कोई संन्यासी नहीं हूं. मैं भी मर्द हूं. तुम्हारी मां लगभग पिछले 3 सालों से बीमार चल रही थीं. मैं अपनी इच्छाओं का दमन करता रहा हूं. अब उन्हें मुक्त करना चाहता हूं. मु झे व्यक्तिगत मामलों में दखलअंदाजी नहीं चाहिए. और मैं ने किसी से जोरजबरदस्ती नहीं की है. जो हुआ, दोनों की सहमति से हुआ.’’ एक ही सांस में इतना कुछ बोल गए वे.

नवल बोला, ‘‘इस का मतलब मैं जो सम झ रहा था वह सही है. पर 70 साल की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.’’

प्रोफैसर साहब बोले, ‘‘तुम्हें जो भी लगे. जहां तक बुढ़ापे का सवाल है, मैं अभी अपने को बूढ़ा नहीं महसूस करता हूं. मैं अभी भी बाकी जीवन उन्मुक्त हो कर जीना चाहता हूं.’’

नवल बोला, ‘‘ठीक है, आप हम लोगों की तरफ से मुक्त हैं. आज के बाद हम से आप का कोई रिश्ता नहीं रहेगा.’’ और नवल ने अपना बैग उठाया, वापस चल पड़ा. तभी दरवाजे की घंटी बजी थी. नवल दरवाजा खोल कर घर से बाहर निकल पड़ा था. रीमा आई थी. वह कुछ पलों तक बाहर खड़ेखड़े नवल को जाते देखते रही थी.

तब प्रोफैसर साहब ने हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया था. फिर उसे बांहों में कस कर जकड़ लिया और कहा, ‘‘आज मैं आजाद हूं.”

‘‘क्या हिंदी बोलना शर्म की बात है?”: पंकज झा

बिहार के एक गांव से निकल कर मुंबई फिल्म नगरी में अपनी पहचान बना लेना आसान नही है और यह हर इंसान के वश की बात भी नही है. मगर बिहार के छोटे से गांव से निकलकर दिल्ली में सात वर्षों तक थिएटर करने के बाद 2009 से मुंबई में संघर्षरत अभिनेता पंकज झा ने अंततः 12 वर्षों बाद बतौर अभिनेता अपनी जबरदस्त पहचान बनायी.2009 से लगातार सीरियलों में काम करते आ रहे पंकज झा ने 2018 में लघु फिल्म ‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’ में अभिनय कर लोगों को चैंकाया था. फिर 2021 में वेब सीरीज ‘‘महरानी’’ में अभिनय कर जबरदत लोकप्रियता बटोरी. और अब 25 अगस्त से वह ‘महारानी’ के ही दूसरे सीजन ‘‘महारानी 2’’ में भी नजर आने वाले हैं.

प्रस्तुत है पंकज झा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के मुख्य अंश…

pankaj-jha

बिहार के छोटे से गांव में रहते हुए आपके अंदर अभिनय का प्रेम कैसे जागा? उसके बाद की आपकी यात्रा कैसी रही?

यह तो बहुत लंबी कहानी है. मैंने अभिनेता बनने का कोई निर्णय नहीं लिया था.सब कुछ अपने आप होता गया. मेरे पिता जी थिएटर ग्रुप चलाते हुए खुद नाटकों में अभिनय किया करते थे. मुझे याद है जब मैं बहुत छोटा था,तब एक नाटक का एक दृश्य मुझे याद आता है. मैं अपने दादा जी की गोद में बैठकर नाटक देख रहा था.उस नाटक के एक दृश्य में सामने वाले कलाकार ने उनके पेट में छूरा घोंप दिया और सारा खून निकला,जिसे देखकर मैं रोने लगा.तब मेरे दादा जी ने मुझे परदे के पीछे ले जाकर दिखाया कि कुछ नहीं हुआ है.पेट में लाल रंग का भरा हुआ गुब्बारा बंधा हुआ था. मेरे दादा जी सांस्कृतिक कार्यक्रम व नाटक करवाया करते थे. मेरे पिताजी काफी अच्छा गाते भी हैं.स्टेज पर भी गाते रहे हैं. वह अभिनय भी करते रहे हैं. लेकिन जैसे ही मैंने होकर संभाला, मेरी पढ़ाई लिखाई शुरू हुई, तो मेरे पिता जी ने यह सारी कलाकारी बंद कर दी.लेकिन उससे पहले मेरे दादाजी ने मुझे स्टेज पर छोटे कृष्ण और राम का चरित्र करवाया था.कहने का मतलब यह कि अभिनय की शुरूआत तो अनजाने में बचपन में ही हो गयी थी. शायद अभिनय मेरे जींस, मेरे खून में ही है.लेकिन मुझ पर पढाई का इतना दबाव था,कि यह दबा रहा. मेरे परिवार के लोग मुझे आईएएस अफसर बनाना चाहते थे, जबकि मैं डाक्टर बनने का सपना देख रहा था.

मैं मुजफ्फरपुर में पढाई के दौरान संगीत सीखता रहा.थिएटर करता रहा.यानी कि अभिनय वं सगीत की ट्ेनिंग भी सतत चल रही थी.लेकिन जब मैं उच्च शिक्षा के लिए बिहार से निकलकर दिल्ली पहुंचा,तो मेरे चक्कर मंडी हाउस में लगने लगे और मैं अभिनेता बन गया.

दिल्ली में आपने जो नाटक किए, उनमें से कौन से नाटक सर्वाधिक लोकप्रिय रहे?

थिएटर में दिलीप शंकर जी मेरे गुरू हैं. मैंने मोहन मह-िुनवजर्या सहित कई दिग्गज रंगकर्मियो के साथ थिएटर किया. मेरा सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक ‘प्रेमपरिभाषा’ था, जिसमें साठ के दषक के 99 गानों का कोलाज था.तीन ग्रुप थे.हर ग्रुप में एक पुरूष और एक लड़की का जोड़ा था.यह एक प्रयोग था.गाना पार्श्व में बजता था और हम उसमें अभिनय करते थे.दूसरा नाटक अंग्रेजी भाषा में ‘स्टीरियोटाइप’ था.फिर ‘टोकरियां’ नामक नाटक था. फिर मैंने म्यूजिकल रामायण किया, जिसमें राम का किरदार निभाया,जो कि गाना भी गाता है.तो पूरी तरह से म्यूजिकल रामायण का यह बेहतरीन शो हुआ था. मैंने अथैलो भी किया. बाबी बेदी निर्मित ‘कर्ण’ नाटक में मैं कर्ण के पिता का किरदार निभाता था.

मैने हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं के नाटकों में मैंने अभिनय किया.

pankaj-jha

मुंबई पहुंचने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?

सच यह है कि मैं दिल्ली में बड़ी सहजता के साथ थिएटर कर रहा था. मेरा मुंबई आने का कोई इरादा ही नहीं था.लेकिन मेरे गुरू दिलीप शंकर व दो तीन अन्य लोगों ने मुझसे मुंबई आने के लिए कहा. उन्होंने मुझे समझाया कि आपको नाम व पैसे दोनों चाहिए. भवि-ुनवजयय में आपके खर्च ब-सजय़ेंगे और थिएटर में पैसे तो है नहीं.तब हिम्मत जुटाकर मैं 2009 में मुंबई आया. मुंबई में छह माह की दौड़ भाग के बाद मुझे लगा कि मेरे लिए दिल्ली ही ठीक है.दिल्ली में उमेश बिस्ट का एक शो ‘जीना इसी का नाम है’ कर रहा था,तो वह करने के लिए वापस दिल्ली चला गया.वहां पर वी के शर्मा के म्यूजिकल ‘रामायण’ के शो भी कर लिए. उसके बाद फिर दिल्ली में बेकार हो गया.तो अक्टूबर 2009 में फिर से मंुबई आकर अंधेरी में एक दोस्त के साथ किराए पर रहने लगा.

रंजीत कपूर ने मुझे दूरदर्शन के एक सीरियल के पायलट एपीसोड में काम करने का अवसर दिया.‘स्टार प्लस’ के एक सीरियल के प्रोमो की शूटिंग की. तो मुझे लगा कि मेरी तकदीर खुल गयी. दूसरी बार मुंबई पहुंचते ही तुरंत काम मिलने लगा.

लेकिन इन दोनों सीरियलों की कोई प्रगति नही हुई.सब कुछ शून्य हो गया. फिर संघर्ष शुरू हो गया.

तो कैरियर कैसे शुरू हुआ?

2011 में मुझे पहली बार ‘कलर्स’ चैनल के सीरियल ‘‘बालिका वधु’’ में एक कैमियो करने का अवसर मिला था.आनंदी की सहेली के भाई का किरदार निभाया.यह काफी चर्चित सीरियल रहा है.इससे मेरे कैरियर पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा. उसी दौरान मैने ‘आजतक’ चैनल के लिए मैंने एक सीरीज गांधी की. इसमें गांधी जी अलग अलग शहरों में घूमते हैं और लोगों की प्रतिक्रियाएं क्या होती है..यह सब था. यह एक नया प्रयोग था.‘‘इसका नाम था-ंउचयभ्र-ुनवजयटाचार मुक्त हिंदुस्तान, सबको सम्मति दे भगवान’.इसमें मैं गांधी बना था.दिल्ली में रहते हुए मैंने ‘दिल्ली 6’ और ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फिल्मों में छोटे किरदार निभाए थे.उसके बाद ‘सावधान इंडिया’, ‘शपथ’ सहित कई एपीसोडिक सीरियल करता रहा.पर दिल की बात यह है कि मुझे टीवी सीरियलो में अभिनय करते हुए मजा नहीं आ रहा था. इसी बीच मुझे लघु फिल्म ‘‘सीजंस ग्रीटिंग्स’’ मिली. इसे विश्व के कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में कई अवार्ड मिले. काफी प्रशंसा मिली. ‘शिकागो’,‘लंदन फिल्म फेस्टिवल’, ‘लॉस एजेंल्स फिल्म फेस्टिवल’ सहित कई फिल्म समारोहो में इस फिल्म के प्रदर्शन के वक्त जाने का अवसर मिला था. 2018 में इस फिल्म को ‘दादा साहेब फालके अवार्ड’ भी मिला.इसके अलावा भी मैंने दो तीन लघु फिल्में की.

उसके बाद कोविड के चलते जब लॉकडाउन लगा, तो मुझे वेब सीरीज ‘‘महारानी’’ में एम एलए दिवाकर का किरदार निभाने का अवसर मिला.नवंबर 2020 में भोपाल में हमने इसकी षूटिंग षुरू की,तब मु-हजये अहसास हुआ कि यह तो काफी रोचक किरदार है.मैने मेहनत से इस किरदार को निभाया. जब इस सीरीज का प्रसारण हुआ, तो लोगों ने वेब सीरीज ‘महारानी’ के साथ ही मेरे दिवाकर के किरदार को भी काफी सराहा.अब 25 अगस्त से इसी वेब सीरीज का दूसरा सीजन यानी कि ‘‘महारानी 2’’ सोनी लिव पर प्रसारित होने जा रहा है. इसके अलावा विक्रमादित्य मोटावणे की वेब सीरीज ‘‘जुबली’’ की है,जो कि इसी व-ुनवजर्या आएगी. मधुर भंडारकर की फिल्म ‘‘लॉक इंडिया लॉक’’ में भी एक अच्छा किरदार निभाया है.

अब 25 अगस्त से ‘सेानी लिव’ पर स्ट्रीम होने वाली वेब सीरीज ‘‘महारानी 2’’ भी कर रहे हैं?

इस वेब सीरीज में मेरा किरदार वही एमएलए दिवाकर -हजया का ही है.दल बदल करता है. इससे अधिक बताकर दर्षकों की उत्सुकता को खत्म नही करना चाहता.पर इस बार दिवकार पहले की अपेक्षा कुछ कम समय के लिए परदे पर आएगा, मगर धमाल है.‘महारानी 2’ में कुछ नए किरदार भी जोड़े गए हैं.

‘‘महारानी 2’’ के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ाने के लिए निर्देशक को बदला गया है?

पूरी सीरीज के निर्देशक तो सुभा-ुनवजया कपूर ही हैं.पहले सीजन में करण शर्मा निर्देशक थे.इस सीजन का निर्देशन रवींद्र गौतम ने किया है.रवींद्र गौतम इससे पहले कई सफलतम टीवी सीरियलों के अलावा फिल्म ‘‘21 तोपों की सलामी’’ का निर्देशन कर चुके हैं. पर पूरा कंट्रोल तो सुभा-ुनवजया कपूर क ही है.

वही इस सीरियल के जन्मदाता हैं.पोलीटिकल ड्रामा में तो उन्हे महारत हासिल है.पहले सीजन में किरदार के सुर को पकड़ने में सुभा-ुनवजया कपूर ने मेरी काफी मदद की थी.

मैं एक घटना का जिक्र करना चाहॅूंगा.जब मैं भोपाल में ‘महारानी’ के सेट पर पहली बार पहुंचा था,उस वक्त मुझे कुछ पता नहीं था. मैंने स्क्रिप्ट नहीं पढ़ी थी. जब मुंबई में इसका वर्कशॉप हुआ और स्क्रिप्ट प-सजय़ी जा रही थी, तब मैं लॉक डाउन के चलते गांव में था.तो मैंने सुभा-ुनवजया कपूर जी से पूछा कि इसका रिर्फेंस प्वाइंट क्या है.कुछ बताएं? तो उन्होंने मुझसे कहा कि प्रशांत किशोर को जानते हो.तो मैंने कहा कि हां! मैं उन्हे सोशल मीडिया पर फालो कर रहा हूं. उनकी आइडियोलौजी को समझ रहा हॅूं.वही आपका किरदार है.मैं उसी हिसाब से पूरी तैयारी करके शॉट देने के लिए सेट पर पहुंचा,तो पता चला कि यह तो बदला हुआ है.यह तो पूरी तरह से बिहारी प्रशांत किशोर है. यह तो प्रशांत किषोर की तरह गंभीर है

ही नही.दिवाकर तो कटाक्ष मारता रहता है.आपने भी देखा होगा कि पूरी सीरीज में दिवाकर कटाक्ष मार रहा है.मेरे ‘टेकनिकल सी एम’ के कटाक्ष के ही चलते रानी भारती, महारानी यानी कि मुख्यमंत्री बन जाती हैं. सुभा-ुनवजया कपूर मुझसे थोड़ा गुस्सा भी हुए थे और फिर उन्होंने बताया कि इस किरदार को इस तरह से पकड़ो.उसके बाद ही मैं किरदार का सही सुर पकड़ पाया था.

किसी भी किरदार को निभाने से पहले आपकी अपनी किस तरह की तैयारी होती है?

-थिएटर से होने के चलते मेरी जिस तरह की ट्रेनिंग है, उसके चलते मैं हमेशा किरदार के सोल/ आत्मा को पकड़ काम करने वाले कलाकारों की श्रेणी में आता हॅूं.आप इसे मैथड एक्टिंग भी कह सकते हैं. मुझे ऑन व आफ समझ में नही आता है.मेरी सोच यह है कि जब भी कोई किरदार निभाता हॅूं,तो उसके ‘सोल’ में घुस जाता हॅूं.मैं सोल तक पहुंचने का प्रयास करता हॅूं,अब मैं कहां तक सफल होता हॅूं,यह तो दर्शक तय करते हैं.लेकिन मैं अपनी तरफ से हर किरदार की सोल तक पहुंचते हैं.इसके लिए हमें काफी प्रैक्टिस करनी होती है.उसके मैनेरिजम और बौडी लैंगवेज को पकड़ना आवश्यक होता है. उसके थॉट प्रोसेस को समझना होता है.यदि पटकथा में नहीं लिखा होता है,तब भी मैं उसकी एक कहानी समझता हॅूं कि वह परिवार के अंदर किस तरह से रहता होगा.दोस्तों और घर से बाहर वह किस तरह से चलता होगा?किस तरह से बातें करता होगा?जब मैं ‘आज तक’ के लिए गांधी पर डाक्यूमेंट्री कर रहा था,तो गांधी जी के पुराने वीडियो देखे थे.मैंने भरसक कोशिश की कि उनकी बौडी लैंग्वेज व उनकी भाषा को पकड़ने का प्रयास किया.लोगों ने काफी तारीफ की थी.

सोशल मीडिया को लेकर आपकी क्या सोच है?

मैं सोशल मीडिया को काफी अच्छा मानता हॅूं.वैसे कुछ लोग इसे बहुत बुरा मानते हैं.जब आप पब्लिक फिगर हाते हैं,तो स्वाभाविक तौर पर लोग तरह तरह से रिएक्ट करते हैं,गालियां भी देते हैं.मेरी नजर में यदि कलाकार सोशल मीडिया का सही ढंग से इस्तेमाल करे, तो यह मुफ्त का पीआर है. मसलन मैं अपने हर काम की जानकारी सोशल मीडिया पर देता रहता हॅूं.बेमतलब कुछ नहीं लिखता. अपने काम या अभिनय से जुड़ी कोई बात हो. फेशबुक पर मेरे दो पेज हैं. एक वेरीफाइड पेज हैं और दूसरा नॉर्मल है. नॉर्मल पेज पर मैं कभी कुछ अपनी जिंदगी के बारे में लिख भी देता हॅूं, लेकिन वेरीफाइड पेज पर सिर्फ मेरा काम नजर आएगा.देखिए,हकीकत यही है कि सोषल मीडिया को इन दिनों हर कोई देख रहा है.आज की तारीख में यह काफी सशक्त हो गया है.यूट्यूब हो या इंस्टाग्राम हो या ट्वीटर हो,इस पर सिर्फ भारत के लोग ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आपको देख रही है.कमाल की बात यह है कि सोशल मीडिया के फालोवअर्स के आधार पर कलाकार का फिल्म या सीरियल या वेब सीरीज के लिए चयन भी होने लगा है.अब यह तरीका सही है या गलत,इस पर मैं कुछ नही कह सकता.

तमाम लोग यूट्यूब पर अपना चैनल षुरू कर कंटेंट बनाकर पैसा कमा रहे हैं. लेकिन किसी भी चीज की अति नहीं होनी चाहिए. आपने एकदम सही. आज कल सोशल मीडिया के फालोवअर्स की संख्या बल पर कलाकार को काम दिया जा रहा है.जिसके चलते कई बार प्रतिभाशाली कलाकार को काम नहीं मिल पाता और यह रवैया कहीं न कहीं सिनेमा को बर्बादी की ओर ले जा रहा है?

मेरी राय में किसी भी कलाकार के फालोवअर्स के संख्या बल के आधार पर फिल्म सफल या असफल नही होती.फिल्म की सफलता तो उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है. कलाकार किसी भी इंस्टीट्यूट से हो,इसका भी असर नही होना चाहिए. फिल्म,सीरियल या वेब सीरीज के लिए कलाकार का चयन उसकी अभिनय प्रतिभा के बल पर पूरी पारदर्शिता के साथ होनी चाहिए. अच्छे कलाकार को ही प्राथमिकता देना चाहिए.मेरी राय में फिलहाल औडीशन से बेहतर कोई रास्ता नही है.

ऑडीशन के दौरान कलाकार की प्रतिभा का आकलन हो जाता है.जो बड़े कलाकार हैं,जिनके साथ निर्देषककई बार काम कर चुके होते हैं,तो उनके औडीशन की जरुरत नही होती है.मैं यह नही मानूंगा कि हर जगह सिर्फ सोशल मीडिया के फालोवअर्स के बल पर ही काम दिया जा रहा हो.आज भी भारतीय सिनेमा में प्रतिभा की कद्र की जा रही है.कास्टिंग डायरेक्टर कलाकार का औडीशन लेने के बाद ही उसका चयन करता है.यह पारदर्शिता हर जगह होनी चाहिए.

आप बिहार से है और हिंदी आपकी मातृभाषा है.पर कई लोग मानते हैं कि हिंदी की वजह से काम करना मुश्किल होता है? आपके अनुभव..?

-देखिए,जब तक मैं दिल्ली में थिएटर कर रहा था,तब तक मेरा हिंदी उच्चारण एकदम शुद्ध नही था.भोजपुरी टच था. कुछ शब्दों का उच्चारण गलत होता था. मसलन ‘स’ व ‘श’ में अंतर नहीं होता था.पर सुमित टंडन ने मेरे उच्चारण दो-ुनवजया को खत्म करने में काफी मदद की. सुमित टंडन एनएफडीसी के निर्देशक रहे.राज्यसभा व लोकसभा टीवी में रहे. वह हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दूरदर्शन पर समाचार पढ़ा करते थे.उन्होंने मेरे हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओं में मेरे उच्चारण दो-ुनवजया को ठीक कराया.इसके अलावा थिएटर करते समय स्क्रिप्ट रीडिंग के दौरान निर्देशक हमारा उच्चारण दो-ुनवजया ठीक कराता ही है.उस वक्त हम सीखते है कि नुक्ता कहां लगाना है और कहां नही लगाना है.इसके अलावा उस वक्त वह हमें हिंदी के अखबार व पत्रिकाएं भी पढ़ने पर जोर देते थे.तो मैंने अपने हिंदी उच्चरण को सुधारने के लिए काफी प्रैक्टिस की.

मेरा सवाल है कि हिंदी भाषा होने से बौलीवुड में काम करना कितना आसान होता है?

-देखिए,बौलीवुड में हिंदी में ही फिल्में बनती हैं, इसलिए हिंदी भाषा होना फायदे की बात है.माना कि यहां पर वर्क कल्चर में अंग्रेजी का प्रभाव है.पर मैंने तो दिल्ली में रहते हुए कई अंग्रेजी नाटकों में अभिनय किया है.माना कि कुछ हिंग्लिश फिल्में भी बन रही है.फिर भी मैं नहीं मानता कि कलाकार के अंग्रेजी आना जरुरी है.बशर्ते कलाकार बिना किसी हीनग्रंथि का शिकार हुए हिंदी में बात करे.क्या हिंदी बोलना शर्म की बात है?जी नहीं..यह बात हर कलाकार को अच्छी तरह से समझनी होगी.जो लोग मानते हैं कि बिना अंग्रेजी सीखे बिना हिंदी फिल्मों में काम नही मिलेगा,उनकी सोच गलत है. मैं ऐसा नहीं मानता.मैं तो हर जगह फर्राटेदार हिंदी में ही बात करता हॅूं.लोग तो मेरी तारीफ करते है कि में कितनी अच्छी हिंदी बिना हिचक के बोलता हूं. हिंदी मेरी मातृभाषा है,मातृभाषा में बात करने में शर्म कैसी?मैं देसी अंग्रेज नही हॅूं. मुझे अंग्रेज क्यों बनना है? नहीं बनना है.

कोई ऐसा किरदार है,जिसे आप निभाना चाहते हों?

कोई ऐसा एक किरदार तो नही है.मगर जब हम किरदार का विष्लेषण करते हैं,तो हमारे दिमाग में कई किरदार आते हैं.ईश्वर करे कि कभी मुझे ‘गॉड फादर’ का किरदार निभाने का अवसर मिले. मैं इफरान खान का फैन रहा हॅूं,जिस तरह के किरदार उन्होंने निभाए हैं,उस तरह के किरदार निभाने को मिल जाएं.मेरी इच्छा सदैव चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने की होती है.एक कलाकार की असली प्रतिभा चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने में ही निखरती है.पर जब तक निर्देशक को कलाकार की प्रतिभा पर विश्वास नहीं होगा,तब तक चुनौतीपूर्ण किरदार मिलना ही मुष्किल है.मैं तो हर निर्देषक व हर कास्टिंग डायरेक्टर से गुजारिश करता हॅूं कि वह एक बार मुझे चुनौतीपूर्ण किरदार निभाने का अवसर देकर देखें कि मैं क्या कर पाता हूं.

आपके शौक क्या हैं?

लिखने का शौक है.कभी मैं कविताएं लिखा करता था.मैंने एक फिल्म की पटकथा भी लिख रखी है.तो जब भी समय मिलता है,कुछ न कुछ लिखता रहता हॅूं.तरह तरह के व्यंजन बनाने व खाने का शौक है.जिंदगी में बेवजह की भागादौड़ी करने में यकीन नहीं रखता. मुझे अतीत या भविष्य में नहीं,वर्तमान में ही जीना पसंद है.

Anupamaa: बर्थडे के दिन इस एक्ट्रेस ने कहा ‘वनराज’ को अंकल, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल अनुपमा के वनराज यानी सुधांशु पांडे ने कल यानी 22 अगस्त को 48वां जन्मदिन सेलीब्रेट किया. फैंस और सेलिब्रिटी उन्हें लगातार बधाईयां और शुभकामनाएं दे रहे हैं. तो वहीं सीरियल अनुपमा के सितारे भी सुधांशु पांडे को जन्मदिन की बधाई दी हैं. उन्होंने सुधांशु पांडे के लिए खास पोस्ट शेयर की है.

काव्या यानी मदालशा शर्मा ने सुधांशु पांडे पर जमकर प्यार लुटाती नजर आईं. सुधांशु पांडे ने भी अपनी ऑनस्क्रीन पत्नी के धन्यवाद कहा है.

 

बा यानी अल्पना बुच ने एक वीडियो शेयर करके सुधांशु पांडे को जन्मदिन की शुभकामना दी है. टीवी एक्ट्रेस अल्मा हुसैन यानी सारा ने तस्वीरों के जरिए अपने होने वाले ऑनस्क्रीन ससुर को जन्मदिन विश किया है. इस दौरान अल्मा हुसैन ने सुधांशु पांडे को अंकल बता दिया.

 

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पाखी ने भी अपने ऑनसक्रीन पिता वनराज के जन्मदिन को खास बनाने की कोशिश की है. सुधांशु पांडे ने सोशल मीडिया पर मुस्कान बामने के साथ तस्वीर शेयर की है.

 

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अनुपमा के प्रोड्यूसर राजन शाही ने भी सुधांशु पांडे को बर्थडे विश किया है. सुधांशु पांडे के लिए राजन शाही ने एक पोस्ट शेयर की है.

 

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अस्पताल में राजू श्रीवास्तव के साथ हुई घटना, आईसीयू में घुसा एक शख्स

देश के मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव (Raju Srivastava) की हालत गंभीर बताया जा रहा है,जिससे फैंस हर समय उनका हेल्थ अपडेट का बेसब्री से इंतजार करते हैं. खबर आई थी कि राजू श्रीवास्तव अब धीरे-धीरे ठीक हो रहे है, पर वो अब भी वेंटिलेटर पर ही हैं. इसी बीच एक ऐसी खबर सामने आ रही है, जिसने सबको हैरान कर दिया है. आइए जानते हैं.

अस्पताल में राजू श्रीवास्तव के साथ कुछ ऐसा हुआ है, जिससे सभी हैरान हैं. रिपोर्ट के मुताबिक राजू श्रीवास्तव के साथ अस्पताल में एक घटना हुई है, जिसे जानने के बाद फैंस और परिवार वाले परेशान हो गए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राजू श्रीवास्तव जिस आईसीयू में भर्ती है, उस आईसीयू के अंदर एक अनजान शख्स सेल्फी लेने पहुंच गया.

 

इसके बाद कॉमियन के परिवार वालों ने हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन से इसकी शिकायत की हैं और सुरक्षा की मांग की है. इस घटना के बाद राजू श्रीवास्तव के सुरक्षा के लिए गार्ड्स भी लगा दिये गये हैं. हाल ही में बताया गया था कि कॉमेडियन की सेहत में कोई सुधार नहीं आ रहा है, लेकिन इसके बाद शेखर सुमन ने ट्वीट कर बताया था कि राजू श्रीवास्तव अब पहले से ठीक है.

 

आपको बता दें कि राजू श्रीवास्तव को 10 अगस्त को ट्रेडमिल पर दौड़ते समय हार्ट अटैक आया था, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया.

 

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