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तेज बारिश में न बहने दें खेत की उपजाऊ मिट्टी

बारिश न हो या कम हो, तो सभी किसान परेशान रहते हैं, लेकिन समझदार किसान लगातार तेज बारिश से भी घबराते हैं, क्योंकि इस से मिट्टी का कटाव होता है, जो खेत का आकार तो बिगाड़ता ही है, साथ ही जरूरी पोषक तत्त्वों को भी अपने साथ बहा ले जाता है

फलां जगह की मिट्टी दमदार है या फलां जगह की मिट्टी कमजोर है, यह कहने के पीछे वजह मिट्टी में पोषक तत्त्वों की मौजूदगी रहती है, जिस पर तेज बारिश का खासा असर पड़ता है. उपजाऊ मिट्टियों में पोषक तत्त्व इफरात से पाए जाते हैं, पर इन की खूबी यह होती है कि ये मिट्टी की ऊपरी सतह पर ही रहते हैं. तेज बारिश का पानी इन्हें बहा ले जाता है, तो इस का बुरा असर मिट्टी की क्वालिटी और सेहत पर भी पड़ता है.

बारिश में मिट्टी का कटाव होना तय रहता है, पर यह ज्यादा हो तो खेत का हुलिया तो बिगड़ता ही है, साथ ही साथ पैदावार पर भी बुरा असर पड़ता है.

बारिश के पानी से मिट्टी के कटाव को पूरी तरह तो नहीं रोका जा सकता, लेकिन कुछ उपाय किए जाएं तो इतना कम जरूर किया जा सकता है कि नुकसान न के बराबर हो.

खेतीकिसानी के माहिरों का जोर हमेशा से ही मिट्टी संरक्षण पर रहा है कि कैसे मिट्टी का कटना कम किया जाए और ऐसे तरीके ईजाद किए जाएं, जिन्हें किसान अपने तौर पर अपना सकें.

इस साल भी मानसून कमजोर है और इसे कमजोर मानसून की खूबी कह लें या खामी, पर इस में कुछ दिनों के लिए लगातार और तेज बारिश होती है, जिस का दूरगामी असर मिट्टी की पैदावार की कूवत और खेती की बनावट पर पड़ता है. बहुत ज्यादा तेज बारिश हो, तो खेत

के खेत गायब हो जाते हैं यानी मिट्टी बह जाती?है और गड्ढे, नालियां और बीहड़ बन जाते हैं. इस से जमीन ऊबड़खाबड़ हो कर बेकार हो जाती है.

यहां कुछ ऐसे उपाय बताए जा रहे हैं, जिन्हें अपना कर किसान मिट्टी का कटाव रोक सकते हैं :

कंटूर खेती

पहाड़ी इलाकों में जहां बारिश ज्यादा होती?है, वहां कंटूर खेती पर जोर दिया जाता है. इस में ढलान के विपरीत यानी नीचे से ऊपर की तरफ कृषि क्रियाएं की जाती हैं. इस में सब से अहम है जुताई. ढलान के ऊपर की तरफ जुताई करते रहने से ढलान कम होता?है, जिस से मिट्टी का कटाव कम होता?है और उस के पोषक व उपजाऊ तत्त्व ज्यादा तादाद में नहीं बह पाते.

अगर फसलों की खेती न की जानी हो, तो ढलान पर मोटे तने वाले पेड़ या ऐसी घासें लगानी चाहिए, जिन की जड़ें मिट्टी में ज्यादा फैलती हों और मजबूती से मिट्टी से चिपकी रहती हों. इस से मिट्टी का बहाव

और कटाव कम होता है. बीचबीच में एक तयशुदा दूरी पर ब्रेकर भी मेंड़ की शक्ल में बनाए जा सकते हैं, जिस से मिट्टी एकदम नीचे न जाने पाए.

फैलने वाली फसलें

बारिश में मिट्टी का कटाव रोकने का कारगर व सरल तरीका यह?है कि ऐसी फसलों की खेती की जाए, जो ज्यादा जगह घेरती हों यानी फैलती ज्यादा हों, मसलन लोबिया और मूंग. इन की जड़ें, तने व पत्तियां मिट्टी का कटाव कम करते हैं, सीधेसीधे कहें तो मिट्टी और उस के कणों को ज्यादा बहने नहीं देते.

एक सर्वे रिपोर्ट में यह बात मानी भी गई है कि अगर ये फसलें बोई जाएं, तो मिट्टी का कटाव एक हेक्टेयर रकबे से 26 टन के लगभग होता?है, जबकि खेत खाली छोड़ दिया जाए

तो यही कटाव 42 टन प्रति हेक्टेयर एक साल में होता है. जाहिर है, किसी भी सूरत में खरीफ की फसल में खेत खाली छोड़ना नुकसानदेह साबित होता?है.

माहिरों का मशवरा यह भी है कि ज्यादा जगह घेरने वाली फसलों के साथ क्यारियों में कम जगह घेरने वाली फसलें भी लगाई जाएं, जैसे मूंगफली, उड़द और सोयाबीन के साथ मक्का और अरंडी को लगाया जाए, तो मिट्टी का कटाव कम होता है.

पट्टीदार खेती

इस तरीके में ऐसी फसलें जो घनी होती हैं, बोई जाती?हैं. ये मिट्टी का कटाव रोकती हैं. लेकिन ऐसी फसलें जो दूरदूर बोई जाती हैं और मिट्टी का कटाव नहीं रोकतीं, उन्हें संकरी पट्टियों में बोया जाता है.

ये पट्टियां ढाल के आरपार बनाई जाती?हैं. इस पट्टीदार खेती की खासीयत यह?है कि घनी बोई जाने वाली फसलें मिट्टी का कटाव रोकती हैं, मसलन मूंगफली और मोठ को ज्वार या मक्का के साथ पट्टियां बना कर लगाया जाता है.

घास लगाना

घास हालांकि खरपतवार है, लेकिन मिट्टी का कटाव रोकने के गुण इस में मौजूद हैं. वजह इस की जड़ें और तना है, जो खूब फैलता?है. मिट्टी के कणों को घास बांध कर रखती है. मिट्टी का कटाव रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ खास घासें हैं, जैसे अंजन घास, दूब घास, कुशल घास, मूंज घास और ब्लू पेनिक घास.

हालांकि बारिश के पानी से मिट्टी का कटाव रोकने के और भी तरीके?हैं, लेकिन वे कारगर इसलिए नहीं हो पाते, क्योंकि वे महंगे पड़ते हैं और छोटी जोत वाले किसान उन्हें आसानी से अपना नहीं सकते. जैसे जगहजगह मेंड़ें बनाना, नाली और गली बनाना वगैरह, लेकिन वृक्ष रोपण आसान काम है, जिस से भी मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता?है.

ऐसे इलाकों में जहां फसलें न ली जाती हों, पेड़ लगा कर इस परेशानी को काबू किया जा सकता है. यूकेलिप्टस का पेड़ इस के लिए काफी मुफीद साबित होता है.

रसायनों का इस्तेमाल

कुछ रसायन ऐसे भी हैं, जिन के छिड़काव से मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता? है. पाली विनाइल एल्कोहल नाम के रसायन को अगर 500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़का जाए तो मिट्टी के कण आपस में मजबूती से बंध जाते हैं और उस की परत आसानी से टूटती नहीं है.

इसी तरह विटूमिन नाम के रसायन के इस्तेमाल से भी मिट्टी के कण आपस में मजबूती से बंध जाते?हैं. वैसे, ये रसायन महंगे पड़ते हैं. लेकिन गोबर की खाद, हरी खाद और फसलों के अवशेषों से भी मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है. इन्हें पूरे खेत में फैला देना चाहिए.

आमतौर पर भारत के किसान इस तरह के तरीके आजमाने से कतराते हैं. इस से लगातार मिट्टियों का कटाव बढ़ रहा है और उन की क्वालिटी भी गिर रही है.

हर जगह खेतों में मिट्टी का कटाव होता देखा जा सकता है, जो अकसर ढाल के आसपास से शुरू होता है और वक्त रहते न रोका जाए तो साल दर साल बढ़ कर पूरे खेत को बहा डालता है, इसलिए किसानों को बारिश में मिट्टी के कटाव को ले कर सावधानी बरतनी चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 5,337 मिलियन टन यानी प्रति हेक्टेयर 16.35 टन मिट्टी इधर से उधर हो जाती है, जो कतई अच्छी बात नहीं है.

स्वीकार: आनंद की किस आदत से आनंदी परेशान थी?

आनंदी के ब्याह को लगभग 5 वर्ष होने को हैं. आनंदी सुशील, मृदुभाषी, गृहकार्य में दक्ष और पूरे परिवार का कुशलतापूर्वक ध्यान रखने वाली, सारे गुणों से परिपूर्ण, एक कुशल गृहिणी है. इस‌ के‌ बावजूद, आज तक वह अपनी ससुराल के लोगों का दिल नहीं जीत पाई. वैसे तो वह पूरे परिवार की पसंद से इस घर में ब्याह कर आई थी लेकिन आज केवल अपने पति आनंद की पसंद बन कर रह गई है.

एक आनंद ही है जिस का प्यार आनंदी को घर के दूसरे सदस्यों के अपशब्द, बेरुखी और तानों को सहने व उन्हें नज़रअंदाज़ करने की ताकत देता है. आनंद के प्यार के आगे उसे सारे दुख फीके लगते हैं. आनंदी अपने दुख का आभास आनंद को कभी नहीं होने देती, क्योंकि वह जानती है यदि आनंद को उस के दुख का भान हुआ तो वह उस से भी ज्यादा दुखी होगा. आनंद सदा उस से कहता है, “आनंदी, तुम्हें मुसकराता देख मैं अपने सारे ग़म भूल जाता हूं. तुम सदा अपने नाम की भांति यों ही हंसती, मुसकराती, खिलखिलाती और आनंदित रहा करो.”

आनंदी को याद है वह दिन जब वह ब्याह कर इस घर में आई थी. उस‌ की मुंहदिखाई की रस्म में नातेरिश्तेदार और आसपड़ोस की सारी महिलाओं की हंसीठिठोली के बीच हर कोई आनंदी की खूबसूरती की तारीफ किए जा रहा था और घर का हर सदस्य इस बात पर इतरा रहा था कि घर में बेहद खूबसूरत बहू ब्याह कर आई है.

आनंदी से शादी के पहले आनंद से शादी के लिए क‌ई लड़कियां इनकार कर चुकी थीं. आज आनंदी जैसी बेहद खूबसूरत बहू पा कल्याणी फूले नहीं समां रही थी. आनंद सांवला और साधारण नैननक्श वाला था.  वहीं, आनंदी दूध की तरह गोरी और तीखे नैननक्श की. जो आनंदी को एक बार देख ले तो उस का दीवाना हो जाए और कभी न भूल पाए यह हसीन चेहरा.

स्कूलकालेज के दिनों में तो आनंदी के क‌ई दीवाने थे. महल्ले से ले कर कालेज तक हर कोई आनंदी को पाना चाहता था. हर किसी की आंखों में आनंदी की खूबसूरती का नशा और उस के शरीर को पाने की हवस साफ झलकती थी. कभीकभी पड़ोस की चाची, उस की मां से बातोंबातों में कह जातीं, ‘अपनी आनंदी के  हाथ जल्दी पीले कर दो, वरना उस की खुबसूरती की वजह से कभी कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं रहोगी.’ यह सब सुन आनंदी की  मां के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच जातीं और आनंदी को उस की खूबसूरती बेमानी लगने लगती.

इसी हंसीठिठोली के बीच सासुमां की एक सहेली ने कहा, “कल्याणी, तेरी बहू तो चांद है चांद.” उस पर सासुमां अपनी भौंहें मटकाती और थोड़ा इतराती हुई बोलीं, “चांद में दाग होता है. मेरी बहू बेदाग है. लाखों में एक है मेरी बहू.” ऐसा कहती हुईं सासुमां ने अपनी आंखों से काजल निकाल आनंदी के कानों के पीछे लगा दिया. सासुमां का प्यार देख आनंदी मन ही मन प्रकृति का धन्यवाद करने लगी कि उसे इतना प्यार करने वाला परिवार मिला है.

इसी दौरान कुछ ही देर में एक बुजुर्ग महिला के आने पर जब आनंदी ने उस महिला के पैर छुए तो  वे आशीष देती हुई बोलीं, “दूधो नहाओ पूतो फलो.” फिर आगे बोलीं, “बहूरानी, अब जल्दी से इस घर को एक वारिस दे दो.” इस बात पर तो जैसे सासुमां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और वे हसंती हुई बोलीं, “अरे मौसी, आप के आशीर्वाद से तो मैं जल्द ही दादी बन जाऊंगी.” जैसे ही आनंदी के कानों में ये शब्द पड़े, वह बेचैन हो उठी और उसे हर्ष व उल्लास का यह मौका बोझिल लगने लगा.

कुछ समय तक सब  ठीक चलता रहा. घर के सभी सदस्यों से आनंदी को भरपूर प्यार मिलता रहा. लेकिन सब के प्यार में कुछ न कुछ स्वार्थ छिपा था. हर रिश्ता कुछ न कुछ मांग रहा था. सासुमां अकसर आनंदी से दबी आवाज़ में धीरे से पूछतीं, ‘खट्टा खाने का मन तो नहीं…?’

इस सवाल पर आनंदी थोड़ा असहज और दुखी हो जाती. जवाब में हलके से सिर नहीं में हिला देती. सालदरसाल धीमी आवाज बढ़ती ‌हुई तेज आवाज में तबदील हो गई और फिर तानों में.घर के अन्य सदस्यों के बीच अब आनंद की दूसरी शादी की फुसफुसाहट शुरू होने लगी. इन सब से बेखबर आनंद, आनंदी पर निस्वार्थ प्रेम लुटाए जा रहा था.

आज रविवार का दिन है, आनंद की छुट्टी है. घर पर सभी सदस्य हैं. आनंद और आनंदी मां से कुछ कहना चाहते हैं. लेकिन मां और घर के अन्य सदस्य किसी दूसरे कार्य में व्यस्त हैं. सभी के क्रियाकलापों से ऐसा लग रहा है मानो घर पर ख़ास मेहमान आने वाले हैं. पर इस बात की जानकारी न तो आनंदी को है और न ही आनंद को.  तभी, मां आनंद को संबोधित करती हुई बोलीं, “आनंद, अभी‌ तुम घर पर ही रहना, कहीं जाना मत.”

आनंद ने प्रश्न किया, “मां, क्या मेरा रहना जरूरी है?” इस पर मां झुंझलाती हुई‌ बोलीं, “जरूरी है, तभी तो कह रही हूं.”

निर्धारित समय पर आगंतुक आ पहुंचे. उन के आदरसत्कार का सिलसिला शुरू हुआ. तभी आनंदी चायनाश्ता ले कर पहुंची. उसे देखते ही अतिथि में से एक महिला, जो साथ आई लड़की की मां थी, बोली, “देखिए कल्याणी जी, मैं अपनी बेटी की शादी आप के बेटे आनंद ‌से तभी करूंगी जब आप का बेटा अपनी‌ पहली पत्नी से तलाक लेगा.” इस‌ बात पर कल्याणी आगंतुक महिला को आश्वस्त करती हुई बोलीं, “आप चिंता न करें, मेरा बेटा वही करेगा जो मैं चाहूंगी.”

आनंदी वहीं खड़ी सब चुपचाप सुन रही थी. आनंद भी वहीं उपस्थित था और वह भी सारी बातें सुन रहा था. अचानक आनंद मां की ओर देखते हुए बोला, “हां, मां, क्यों नहीं, मैं बिलकुल वही करूंगा जो आप चाहेंगीं.” यह‌ सुनते ही आनंदी के पैरोंतले जमीन खिसक गई. उस की आंखें डबडबा गईं. वह सोचने लगी, ‘क्या यह वही आनंद है जिस से उस की 5 मिनट की पहली मुलाकात में ही उस के मन में आनंद के लिए प्यार जगा गया. आनंद की वह बेबाक सचाई बयां करने का अंदाज जिस ने आनंदी का दिल जीत लिया और जिस की वजह से वह इस शादी के लिए हां कर बैठी.’

तभी आनंदी के कानों में आनंद के ये शब्द पड़े,  “मैं आप सभी को एक सचाई बताना चाहूंगा.” ऐसा कहते हुए आनंद कोने में खड़ी आनंदी को खींचते हुए सब के सामने ला कर बोला, “ये जो आप सब के सामने खड़ी है, ये कभी भी मां बन सकती है लेकिन मैं पिता नहीं बन सकता क्योंकि कमी इस में नहीं, मुझ में है और यह सब जानते हुए भी इस ने मुझे स्वीकार किया है. यह चाहती तो बाकी लड़कियों की तरह मुझे अस्वीकार कर सकती थी, लेकिन इस ने ऐसा नहीं‌ किया. आप‌ लोगों को क्या लगता है जिन लड़कियों ने मुझ से‌ शादी से इनकार किया, वे मेरे साधारण नैननक्श की वजह से था. नही. उन्होंने मुझ से शादी इसलिए नहीं की क्योंकि मैं उन्हें पहले ही बता देता कि मैं उन्हें वह सुख नहीं दे पाऊंगा जिस की वे कामना रखती हैं. लेकिन इस ने मुझे मेरी कमियों के साथ स्वीकार किया. इस ने मेरी भावनाओं को समझा. इसे पता है शादी केवल 2 जिस्मों का मेल नहीं, 2 परिवारों का भी मेल है.”

आनंद अपनी मां की ओर  देखते हुए बोला, “मां, तुम तो एक नारी हो‌, तुम्हें क्या लगता है, हर वक्त हर परिस्थिति में केवल नारी ही जिम्मेदार होती है?  मां, अब तुम बताओ, क्या मुझे आनंदी को इस बात के लिए तलाक देना चाहिए कि वह अपने सुख की परवा किए बगैर मेरा साथ चुपचाप निभाती रही.

आनंद के मुख से यह सब सुन सभी शांत हो ग‌ए जैसे भयानक तूफान के बाद सब शांत हो जाता है. घर के सभी लोगों के चेहरे पर अब पश्चात्ताप साफ नजर आ रहा था. सासुमां की आंखों में भी आनंदी से क्षमायाचना के भाव साफ़ झलक रहे थे. सासुमां कुछ कहती, उस से पहले आनंदी मां के पैरों को छू कर बोली, “मां, मैं और ‌आनंद अनाथालय से एक बच्ची गोद लेना चाहते हैं. आप की स्वीकृति चाहिए.”

मां बहू आनंदी के माथे पर अपना चुंबन अंकित करती हुई बोलीं, “हां, क्यों नहीं, कहो बेटा, कब चलना है हमें.”

खुद को खोजती मैं: फरहान की कौन सी इच्छा अम्मा पूरी नहीं कर पा रही थी?

उस दिन पूरे तकियागंज में खुसुरफुसुर हो रही थी. कभी बशीरा ताई जानने के लिए चली आती थीं, तो कभी रजिया बूआ. सकीना की अम्मी के कान भी खुसुरफुसुर में ही लगे रहते थे. रेहाना के अब्बा कभी थूकने के बहाने, तो कभी नीम की पत्तियां तोड़ने के बहाने औरतों की बातें सुनने के लिए बाहर आ जाते थे. सभी को बड़की अम्मां से बड़ी उम्मीद थी. उन की इस हरकत से सब को चिंता हो गई थी कि अब बड़का अब्बा का बुढ़ापा कैसे कटेगा? कौन उन्हें रोटीपानी देगा?

जब बड़का अब्बा का टीबी की गांठ का इलाज चल रहा था, रिकशे के पैसे बचाने के लिए बड़की अम्मां मीलों पैदल चल लिया करती थीं और बचे पैसों से उन के लिए फल ले लिया करती थीं. जब बड़का अब्बा को डेंगू हुआ था, तब खुद बीमारी से जूझने के बावजूद  सिलाई कर के उन का इलाज कराया था. इस बुढ़ापे में बड़का अब्बा तो कुछ ही कदम चलने पर हांफने लगते थे, पर यह औरत 72 साल की उम्र में भी मीलों पैदल चल लिया करती थी. पता नहीं, उस दिन उन्हें क्या सूझी कि इस उम्र में अलग जिंदगी गुजारने का फैसला ले डाला. अब तो 2 साल गुजर गए…  गहमागहमी भी नरम पड़ गई थी.

उस वक्त तो सब ने यही सोचा था कि बड़की अम्मां इस उम्र में अकेली कैसे रह पाएंगी. ज्यादा नहीं, तो कुछ दिन में ही लौट कर वापस आ जाएंगी. बड़की अम्मां की 55 साल की गृहस्थी थी… कोई मजाक है क्या? बड़ा वाला बक्सा, तखत, कूलर सब बड़की अम्मां ने सिलाई करकर के जोड़े थे. खैर… जो भी हो… अब तो बड़की अम्मां की जिंदगी बेहद बेढंगी हो चुकी है. आराम से दोपहर तक उठ कर साग खोंटने चली जाती हैं, कोई चिंता नहीं रहती कि वापस भी लौटना है.

अगर वे सूरज ढले वापस आ गईं, तो घर और दुकान के नसीब. गलीगली, महल्लेमहल्ले वे डोलतीफिरती हैं. भले घरों में तो लोगों की नजरें जरा अलग ही रहती थीं, लेकिन गलीनुक्कड़ पर उन के दोस्तों की कमी न थी. सर्दी की कंपकंपाती रात में बड़की अम्मां बैठ कर कभी चाय वाले, कभी समोसे वाले, कभी सब्जी वाली के दुखसुख सुनतीं, उन की जिंदगी के बारे में जानतीं और अपने बारे में भी शायद ही कुछ गोपनीय रख पातीं. खुलतीं तो वे खुल ही जातीं. मुझे भी यह देखने का कम कुतूहल नहीं था कि इस बुढ़ापे में उन के दिन कैसे कट रहे हैं. इसी कुतूहल में अकसर मैं उन के घर पहुंच जाती थी. मुझे उन की जिंदगी के बारे में काफी बातें पता चल गई थीं. मिट्टी और छप्पर से बने उन के घर में बारिश के दिनों में अंदर तक पानी आ जाता था. गरमी में तो वे बाहर सो लिया करती थीं, पर सर्दी में दिनभर बटोरी लकडि़यों से अपनी कोठरी और खुद को सेंक लिया करती थीं. घर से बाहर निकलते ही बांस में कुछ 5-5 रुपए वाले साबुन, बिसकुट, चिप्स, बीड़ी, तंबाकू, पानमसाले के पैकेट लटका कर दुकान का नाम भी दे रखा था.

अफसोस कि खाना भी सुबह एक बार जो बना तो रात तक वही चल जाता था. बड़का अब्बा का साथ जो छोड़ा, अम्मां तो जैसे शाकाहारी हो गई थीं. उस दिन वे मुझे अंदर अंधेरी कोठरी में ले गईं, जिस में बदरंग व मैलीकुचैली रजाई व कथरी पड़ी हुई थी. एक कोने में एक छोटा सा संदूक रखा था, जो बहुत ही चमकीली चादर से ढका हुआ था. उस छोटे से संदूक में से उन्होंने एक फटीपुरानी, गर्द लगी अलबम निकाली और बड़े जोश से दिखाने लगीं. पोपले मुंह से कहते हुए बड़की अम्मां के चेहरे पर खुशी उभर आती थी, ‘‘वे आज भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं, जितना 55 साल पहले किया करते थे.’’  शायद बड़की अम्मां को भी नहीं मालूम था कि उन्होंने जो 55 साल पहले नहीं किया, वे अब क्यों, कैसे कर सकीं और क्या अब उन्होंने जो चाहा, वह पा लिया है?

बड़की अम्मां ने ऐसा करते समय बहुत सोचा होगा या एक झटके में हो गया होगा. वह बुढि़या इस फलसफे पर बहुत बात नहीं करना चाहती थी? क्यों लोग उस से जानने को इच्छुक थे? क्यों? बड़ी उलझन थी. बड़की अम्मां खुश भी थीं और दुखी भी. आजादी चाहती थीं और गुलामी भी. चारों बातें सच थीं. कई सच जी रही थीं बड़की अम्मां. उन्होंने बताया, ‘‘बड़का अब्बा ने सारासारा दिन लूम चला कर मुझे गुलाबी रंग का सूट दिलाया था ईद में. शाम को आते थे तो चेहरे पर सूखापन… बहुत काम लेता था न मालिक, इसलिए… पर मेरे हाथों की मेहंदी देख कर खुश हो जाया करते थे. मुझे सजासंवरा देखना उन्हें बहुत पसंद था. वे अभी तक ऐसे बोलते थे कि अभी तो तुम जवान हो.’’

यह कहते ही वे शरमा गईं. कहां की बात कहांकहां से जोड़ रही थी वह बूढ़ी औरत. ‘‘जब तेरे बड़का अब्बा की लूम की नौकरी छूट गई थी और मिस्त्रीगीरी करने लगे थे, उस में उतनी आमदनी नहीं होती थी. तब घर पर रह कर मैं सिलाई कर  बच्चों को अच्छे से अच्छा पहनाती थी.’’

‘‘आप ने फरहान भाई को कितने जतन से पाला है, मुझे सब पता है. यास्मीन आपा ठीक हैं न? अब तो कोई दिक्कत नहीं है न फरहान की दुलहन को?’’

‘‘हां, अभी तो ठीक ही है. फरहान तो मेरा बहुत खयाल रखता है. सुना है, अभी कुछ होने को है… वह उसे कोई भारी काम नहीं करने देता. हर रोज वह कभी अनार, तो कभी मौसमी, बादाम खिलाता है.

‘‘मजीद कहता था कि आप की लड़की बांझ है. कीड़े पड़ेंगे उसे. मैं ने आखिर तक सोचा, यास्मीन अपने घर वापस चली जाए, मेरी बच्ची का घर बना रहे. उस के अब्बा ने कहा था, ‘अब क्या सुख उठा पाएगी, जब मजीद के मन में मैल आ घुसा है.’

‘‘सोचा, लगता है कि उस के नसीब में सुख नहीं है. सिलाई कर के मैं ने तरन्नुम को भी 7 साल का किया.

‘‘फरहान के अब्बा ने तो कई लोगों से बात भी की कि बात बन जाए, मगर मुझे पता चल गया था कि अब बात नहीं बननी है, तभी तो मैं ने फिर से इतनी बड़ी जिंदगी अकेले काटने की सलाह दे डाली थी. मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था… अभी कुछ उम्मीद है. चुपके से आती है कभीकभी मिलने. बुरा लगता है दामाद साहब को न.

‘‘फरहान को पढ़ने का खूब जोश था. वह 9वीं जमात में था. तेरे बड़का अब्बा को उसी समय डेंगू हो गया था. तब मैं भी बीमारी से जूझ रही थी. इलाज में हजारों रुपया खर्च हुआ. रातरातभर अस्पताल में बैठी मैं रोती रहती थी.

‘‘उस दिन बहुत तेज पानी बरस रहा था. शाम 6 बजे ही लगता था कि आधी रात हो गई है. बड़ी वाली साइकिल भी बिक चुकी थी. पैदल ही सारे काम करने पड़ते थे.

‘‘स्कूल से फरहान लौटा, फिर टूटीफूटी छतरी ले कर आया था अब्बा को खाना देने. खाना रख कर वह मेरी बगल आ कर बैठ गया. रोतेरोते आंखें सूज गई थीं उस की और मेरी भी.

‘‘फरहान धीरे से बोला, ‘अम्मां, स्कूल वाले फीस जमा करने को बोल रहे हैं. अंगरेजी की किताब के लिए भी रोज ही सजा देते हैं.’

‘‘मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया, ‘यह कोई समय है इस तरह की बात करने का. दिखता नहीं कि बाप ने खटिया पकड़ रखी है. मां बीमार है, फिर भी दिनभर काम कर के दवा जुटा रही है. रातरातभर रोती रहती है, सोती नहीं है. तुझे अपनी पड़ी है.’

‘‘हाथ उठ गया था अनजाने ही. गाल पर पांचों उंगलियां छप गई थीं. हाथ पकड़ कर खींचते हुए बरसते पानी में अस्पताल से बाहर कर आई थी मैं.

‘‘वह रोता हुआ गया था और एक घंटे बाद फिर वापस आ गया.

‘‘अब्बा का हाथ पकड़ कर वह बहुत रोया. तब से जो ट्रक पर गया, तो फिर कोई बीएएमए न कर सका,’’ बड़की अम्मां की सूखी आंखों में दर्द था, तड़प थी, मगर आंसू नहीं थे.

ऐसी हिम्मती औरत भला कहीं होती है क्या. सब को पालापोसा, बड़का अब्बा का कितना खयाल रखा, मेहनतमजदूरी भी की. ऐसी हिम्मत सब को मिले.

‘‘नहीं पढ़ पाए तो क्या, फरहान भाई आज अपने बच्चों को तो अच्छे से पढ़ा रहे हैं. देखा है मैं ने गुलफिशां और साबिर के गाल टमाटर से लाल हुए जा रहे हैं,’’ मैं ने कहा, तो वे धीरे से मुसकराईं, ‘‘बकरीद वाले दिन वह आया था. मुझे सलवारकमीज दी और हाथ में सौ रुपए भी रख गया था. वह गुस्सा हो रहा था. कह रहा था कि अम्मां, कुछ तो लिहाज किया होता. क्या हो गया है आप को? जैसे अब तक आप निभा आई

थीं, वैसे ही कुछ साल और सही. मरते समय तो अकेला न छोड़तीं. जगहंसाई हो रही है.’’

एक दिन तो वे अपने बचपन की बातें ले कर बैठी थीं, ‘‘पता है, मैं बचपन में बहुत शरारती थी. जब मैं 3 साल की थी, तब साकिरा फूफी की छत से अचार चुरा कर खाया करती थी. दिनभर धूप में मैं अकेले ही खेला करती थी.

‘‘रजिया और अनवर के साथ मिल कर मैं ने बहुत शैतानी की है. सब को पता था कि महल्ले में कौन सब से शरारती है. पूरे दिन मैं पतंग उड़ाती थी.

‘‘अब्बा गुस्साते थे, ‘लड़का बनी फिरती है ये लड़की, न जाने किस के घर में गुजर होगी.’

‘‘जब मैं 7वीं जमात में थी कि अब्बा ने पढ़ाई छुड़वा कर मेरा निकाह करा दिया. रामेश्वर सर ने अब्बा से बहुत लड़ाई की, जेल भिजवाने की धमकी तक दी, मगर वे नहीं माने.’’

रात 8 बज गए, सर्दी में हाथ कंपकंपाने लग गए. बड़की अम्मां ने चूल्हे से आग निकाल कर एक तसले में रखी और मेरे आगे कर दी.

मेरा मन ललचाया तो जरूर आग देख कर, लेकिन घड़ी इजाजत नहीं देती थी कि मैं और देर ठहरूं.

अगले दिन दोपहर के 2 बज रहे थे. बहुत तेज धूप खिली हुई थी. मुझे इस बात का कतई अंदाजा नहीं था कि मौसम गिरगिट की तरह रंग बदलेगा और देखते ही देखते बारिश हो जाएगी.

मैं आटोरिकशा से हाथ निकाल कर झमझमाती बूंदों का मजा लेने लग गई.

घर के लिए आटोस्टैंड से थोड़ी दूर पैदल चलना पड़ता था. थोड़ी देर तो मैं ने एक टिन के नीचे बारिश के थमने का इंतजार किया.

मैं जरा सा ही चली थी कि मेरी आंखें अचानक फटी की फटी रह गईं. उस चबूतरे पर जहां पर लवली चाची रोज सब्जी लगाती हैं, उस चबूतरे पर खड़े हो कर कोई मजे से और जम कर भीग रहा है.

पहले तो मैं ठिठकी. कुछ सोच कर मैं धीरेधीरे आगे बढ़ी, वहां जा कर देखा, तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा.

मैं खुशी और हैरानी से चीख पड़ी, ‘‘बड़की अम्मां… आप? इतनी तेज बारिश में.’’

पानी की आवाज में मेरी आवाज दब रही थी, सो मुझे तेजतेज चीखना पड़ रहा था.

‘‘तबीयत खराब हो जाएगी,’’ मैं ने मुसकरा कर कहा. वे खिलखिला कर हंसने लगीं.

एक दिन वे सरसों का साग खोंटने चली गई थीं. बरैया ने छेद दिया. हायतोबा मच गई थी, ‘इतनी धूप में न जाया करो. वहां सांप का एक बिल भी है.’

‘‘मुझे कहीं भी अकेले नहीं जाने देते थे. जितना बन सकता था, साथ ही जाते थे,’’ यही सब तो बताया था बड़की अम्मां ने एक दिन.

‘‘अरे, वहां पानी भी पीना हराम है. रजिया बूआ ने हायतोबा मचाई. सायरा और रजिया बूआ एकदूसरे से खुसुरफुसुर में थीं.

‘‘अरे बताओ, क्या जमाना आ गया है,’’ अफसाना चाची बोल रही थीं.

इस तरह की आवाजें सुन कर मुझे जानने का कुतूहल हो रहा था कि आखिर बात क्या हो गई. मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘खैर, उन की अपनी जिंदगी है, वे जानें,’’ सायरा बूआ ने लंबी सांस लेते हुए कहा.

‘‘दरवाजा बंद था. बुढ़वा निकला था घर से, बादामी रंग के कुरते में, गोश्त की महक आ रही थी अंदर से. चल ऐसे रहा था, जैसे कोई चोर हो,’’ रजिया बूआ फुसफुसा रही थीं. पूरे महल्ले में बात फैल गई थी.

बड़की अम्मां उन दिनों हमारे घर की तरफ गुजरी तक नहीं. महल्ले में किसी के घर देखी नहीं गईं, न चाय वाले ठेले वाले के पास, न सब्जी वाली के पास. सुना, फरहान की दुलहन ने फिर एक दिन तो तीनों जून खाना नहीं दिया था बुड्ढे को, सारी रात खांसता रहा, लेकिन फरहान अस्पताल नहीं ले गया. आखिर उस को भी अपनी इज्जत का कुछ तो खयाल रखना ही पड़ेगा, कल को जगहंसाई हो, दुनिया थूथू करे, उन पर कीचड़ उछाले, तो फरहान क्या उन छींटों से बच पाएगा? गुलफिशां 15 साल की हो गई है. 2-3 साल में उस के लिए रिश्ता तलाशना पड़ेगा. हंसी की हंसारत हो चुकी थी. बड़का अब्बा को किसी चौराहे पर खड़े होना मुनासिब नहीं था. यों लगता था कि सब की नजरें उन्हें बेध रही हों. पहले गलीमहल्ले में बुढि़या पंचायत लगाया करती थी, अब कम ही लोग उसे फटकने देते थे. 2 साल बाद आखिर उन दोनों की यह हरकत महल्ले वालों को कैसे गवारा होती.

अब तो मैं भी धड़ल्ले से उन के घर नहीं जा सकती थी. कुछ पता नहीं कि बड़की अम्मां का क्या हाल था. अब तो फरहान को बड़का अब्बा को सजा दे कर ही सुधारना पड़ता था. यासमीन ने एकदम ही जाना बंद कर दिया था. वहां जाने पर उस का पति गुस्साता जो था. इस तनहाई में तो बीमारी और घर करती है, कमजोर जिस्म तो था ही. एक जून पका के चार जून तक वही खाती जो थीं. सिर पर तेल रखने वाला भी कोई नहीं था. बस कोई अनहोनी मौका तलाश रही थी, टूटती दीवार के टुकड़े भी उठा ले जाते हैं लोग. दीवार टूट चुकी थी. शहर में स्वाइन फ्लू फैला हुआ था. बुढि़या ने खटिया पकड़ ली. खबर फैल गई. लगने लगा था कि बुढि़या बचेगी नहीं. कोई खैरखबर लेने वाला भी नहीं था. कौन देखभाल करता? चैन नहीं आया और एक बार चला गया बुड्ढा. डाक्टर को दिखाया, दवा लाया, खुद बना कर खाना खिलाया. दवा पिलाई, सारी रात जागता रहा. बुढि़या कराहती रही, आंखों की पुतली सफेद होती चली जा रही थी.

‘‘नाजिया की अम्मी, हो गई तसल्ली?’’ बुड्ढे ने धीरे से पूछा, पर वह कुछ जवाब न दे सकी.

नर्सिंग और पैरामेडिकल ट्रेनिंग के लिए “मिशन निरामयाः”

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों की कार्यप्रणाली की समीक्षा करते हुए शैक्षिक गुणवत्ता सुधार के सम्बंध में विविध दिशा-निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि नर्सिंग और पैरामेडिकल स्टाफ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ हैं. कोरोना काल में हम सभी ने इनके व्यापक महत्व को देखा-समझा है. इस क्षेत्र में बेहतर कॅरियर की अपार संभावनाएं हैं. भविष्य की जरूरतों के दृष्टिगत नर्सिंग एवं पैरामेडिकल प्रशिक्षण में व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है. ऐसे में इस महत्वपूर्ण कार्य को अभियान के रूप में लेते हुए “मिशन निरामयाः’ के शुभारंभ किया गया है.

नर्सिंग और पैरामेडिकल संस्थानों को मान्यता दिए जाने से पहले निर्धारित मानकों का कड़ाई से अनुपालन किया जाना सुनिश्चित करें. मान्यता तभी दी जाए, जब शिक्षक पर्याप्त हों, संस्थान में मानक के अनुरूप इंफ्रास्ट्रक्चर हो. अधोमानक संस्थानों को कतई मान्यता न दी जाए. प्रदेश के सभी नर्सिंग/पैरामेडिकल संस्थानों में सेवारत शिक्षकों का आधार सत्यापन करते हुए इनका विवरण पोर्टल भी उपलब्ध कराया जाए.

संस्थानों में दाखिला परीक्षा की शुचिता पर विशेष ध्यान दें. ऐसी व्यवस्था हो कि परीक्षाओं में कक्ष निरीक्षक दूसरे संस्थान से हों. परीक्षाओं की सीसीटीवी से निगरानी भी की जानी चाहिए. इस दिशा में बेहतर कार्ययोजना के साथ काम किया जाए.

प्रदेश के कई संस्थान अच्छा कार्य कर रहे हैं. इनमें निजी क्षेत्र के संस्थान भी शामिल हैं. इन बेस्ट प्रैक्टिसेज को अन्य संस्थानों में भी लागू किया जाना चाहिए. इसके लिए मेंटॉर-मेंटी मॉडल को अपनाया जाना चाहिए.

बेहतर प्रशिक्षण के साथ-साथ हमें बेहतर सेवायोजन के लिए भी सुनियोजित प्रयास करना होगा. इसके लिए निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित हॉस्पिटल से संवाद कर नीति तय की जाए. नर्सिंग का प्रशिक्षण ले रहे युवाओं के लिए प्रैक्टिकल नॉलेज बहुत आवश्यक है.

नर्सिंग और पैरामेडिकल सेक्टर में कॅरियर की बेहतर संभावनाओं के बारे में अधिकाधिक युवाओं को जागरूक किया जाने की जरूरत है. इसके लिए माध्यमिक विद्यालयों का सहयोग लिया जाना बेहतर होगा. चिकित्सा शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा विभाग इस संबंध में परस्पर समन्वय के साथ कार्य करें.

Top 10 Festival Special Story In Hindi: टॉप 10 फेस्टिवल स्टोरी हिंदी में

त्यौहार का सीजन शुरू हो चुका है यानी खुशियां हमारे घर दस्तक दे चुकी है. त्यौहार के सीजन में हर घर में पूरा परिवार एकजुट होकर खुशियों को सेलिब्रेट करता है, तो ऐसे में हम आपके लिए लेकर आये सरिता की Top 10 Festival Special Story In Hindi. इन कहानियों को पढ़कर आप अपने रिश्तों को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बना सकते हैं.

  1. त्यौहार 2022: अंधेरा छंट गया

festival special

शाम का सुरमई अंधेरा फैलने लगा था. खामोशी की आगोश में पार्क सिमटने लगा था. कुछ प्रेमी जोड़ों की मीठी खिलखिलाहटें सन्नाटे को चीरती हुई नीला और आकाश को विचलित कर देती थीं. हमेशा की तरह फूलों की झाडि़यों से बनी पर्णकुटी में एकदूजे का हाथ थामे, उदासी की प्रतिमूर्ति बने, सहमे से बैठे, आंसुओं से भरी मगर मुहब्बत से लबरेज नजरों से एकदूसरे को निहार रहे थे. दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था पर वातावरण में सायंसायं की आवाज मुखरित थी.

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2. त्यौहार 2022: अंधविश्वास- क्या विजय के परिवार को सजा मिली

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राधा बाजार से घर नहीं लौटी, तो उस की ससुराल वालों ने पूरा दिन हरेक परिचित के घर ढूंढ़ने के बाद चिंतित हो कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. आधी रात को अचानक पुलिस का फोन आया कि वह अस्पताल में है. पता पूछ कर सभी लोग उसे देखने पहुंचे, अर्धमूर्च्छित अवस्था में उस ने अपने पति विजय को बताया कि जब वह बाजार से लौट रही थी तो पीछे से आ रही कार में सवार 4 लोगों ने उस के मुंह को हाथों से जोर से दबा कर जबरदस्ती अपनी कार में बैठा लिया. सुनसान स्थान पर ले जा कर उस के साथ बलात्कार करने के बाद उसे सड़क के किनारे छोड़ कर भाग गए. कार की जलती हैडलाइट की रोशनी में किसी भलेमानस ने उसे सड़क पर पड़ा देख कर अस्पताल पहुंचा दिया था.

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3. त्यौहार 2022: खुशी के आंसू

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 आनंद आजकल छाया के बदले ब्यवहार से बहुत परेशान था. छाया आजकल उस से दूरी बना रही थी, जो आनंद के लिए असह्य हो रहा था. दोनों की प्रगाढ़ता के बारे में स्कूल के सभी लोगों को भी मालूम था. वे दोनों 5 वर्षों से साथ थे. छाया और आनंद एक ही स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत थे. वहीं जानपहचान हुई और दोनों ने एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था.

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4. त्यौहार 2022: स्वंयवर- मीता ने आखिर पति के रूप में किस को चुना

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टेक्सटाइल डिजाइनर मीता रोज की तरह उस दिन भी शाम को अकेली अपने फ्लैट में लौटी, परंतु वह रोज जैसी नहीं थी. दोपहर भोजन के बाद से ही उस के भीतर एक कशमकश, एक उथलपुथल, एक अजीब सा द्वंद्व चल पड़ा था और उस द्वंद्व ने उस का पीछा अब तक नहीं छोड़ा था.

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5. अनोखी जोड़ी: शादी के बाद विशाल और अवंतिका के साथ क्या हुआ?

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विशाल और अवंतिका ने पहली मुलाकात के बाद चट मंगनी पट ब्याह कर लिया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद दोनों को महसूस हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब अवंतिका ने विशाल की तेलशोधक कंपनी के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया.

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6. त्याग की गाथा- पापा को अनोखा सबक

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‘‘उन को,’’ संभल कर बोली साधना, ‘‘मेरा मतलब, अपने पापा को फोन तो किया. इस बार तो वह इधर दशहरा, दीवाली की छुट्टियों में भी नहीं आए. गरमी की छुट्टियों में भी नहीं आए. गरमी की छुट्टियां भी अब होने वाली हैं और तेरे पापा ने कई दिनों से फोन नहीं किया है. रज्जू, कहीं उन की तबीयत खराब न हो. मेरा दिल आजकल बहुत घबराने लगा है, बहुत… तुम मैसेज ही कर दो अपने पापा को…’’

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7. त्यौहार 2022: आ अब लौट चलें

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गजब का आकर्षण था उस अजनबी महिला के चेहरे पर. उस से हुई छोटी सी मुलाकात के बाद दोबारा मिलने की चाह उसे तड़पाने लगी थी. लेकिन यह एकतरफा चाह क्या मृगमरीचिका जैसी नहीं थी? बसस्टौप तक पहुंचतेपहुंचते मेरा सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. पैंट की जेब से रूमाल निकाल कर गरदन के पीछे आया पसीना पोंछा, फिर अपना ब्रीफकेस बैंच पर रख कर इधरउधर देखने लगा. ऊपर बस नंबर लिखे थे. मुझे किसी भी नंबर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

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8.महक उठा आंगन- प्रकाश ने बेटे होने का फर्ज कैसे निभाया?

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हाथ में फोन लिए मैं स्तब्ध खड़ी थी. मेरी स्तब्धता की वजह मोहिनी का स्वभाव था. घंटों गप मारना तो मोहिनी की फितरत है, फिर आज जब इतने सालों बाद उस का फोन आया तो न कोई बात, न गिला, न शिकवा. जरूर कोई खास बात है जो वह फोन पर नहीं कहना चाहती है. मोहिनी की इस हरकत ने मु झे चिंता में डाल दिया और मैं  झट नहाधो कर उस के घर के लिए चल दी.

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9. सूर्यकिरण: मीना ने किस शर्त पर की थी नितिश से शादी

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मीना और नितीश की गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया था. दोनों के विवाह को मात्र 1 साल हुआ था. आधुनिक जीवन की जरूरतें पूरी करते हुए दोनों 45 वसंत देख चुके थे. पहले उच्चशिक्षा प्राप्त करने की धुन, फिर ऊंची नौकरी और फिर गुणदोषों की परख व मूल्यांकन करने के फेर में एक के बाद एक प्रस्तावों को ठुकराने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह रुकने का नाम ही नहीं लेता था.

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10.त्यौहार 2022: दिल को धड़कने दो

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अपनी आंखों की बड़ीबड़ी पुतलियों को और बड़ा करते हुए सलोनी अपनी मम्मी नूपुर से बोली, “मम्मी, मैं क्या 5 हजार रुपए की यह साड़ी खरीदूंगी? मम्मी, शादी जीवन में एक बार होती है.”

नूपुर शांत स्वर में बोली, “सलोनी, तुम ने कल ही तो बेटा 20-20 हजार रुपए की साड़ियां खरीदी हैं. जरूरी नहीं न हर कपड़ा इतना महंगा ही लो.”

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35 दिनों से नहीं आया राजू श्रीवास्तव को होश, एम्स से किया जाएगा शिफ्ट

मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था. अस्पताल में भर्ती हुए उन्हें एक महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन उन्हें अब तक होश नहीं आया है. फिलहाल वो वेंटिलेटर सपोर्ट सिस्टम पर हैं. इसी बीच एक चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है. आइए बताते हैं.

मिली जानकारी के अनुसार, उनकी सेहत में पहले से काफी सुधार है. लेकिन इस बीच बताया जा रहा है कि उन्हें दिल्ली से मुंबई शिफ्ट किया जाएगा .इस बारे में जब उनके भाई दीपू श्रीवास्तव से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ऐसी कोई भी योजना नहीं है.

 

दीपू श्रीवास्तव ने राजू की सेहत को लेकर बताया कि सेहत में सुधार की स्पीड थोड़ी धीमी है, लेकिन वो जल्द ही ठीक हो जाएंगे. फिलहाल वो वेंटिलेटर पर हैं. दीपू ने आगे बताया कि अस्पताल में उन्हें 35 दिन हो गए हैं.

 

राजू श्रीवास्तव के ब्रेन के अपरहेड तक ऑक्सीजन सप्लाई नहीं पहुंच पा रहा है. इसी वजह से उन्हें होश नहीं आया है. इसका इलाज करने के लिए न्यूरा फीजियोथेरेपी का सहारा लिया जा रहा है.

 

आपको बता दें कि राजू श्रीवास्तव को 10 अगस्त को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उसी दिन उनकी एंजियोप्लास्टी की गई थी. जिम में एक्सरसाइज करते वक्त राजू श्रीवास्तव अचानक गिर गए थे जिसके बाद वहां मौजूद लोगों ने उन्हें उठाया और अस्पताल ले गए.

तोषु को लात मारकर घर से बाहर करेगा वनराज, आएगा ये ट्विस्ट

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में तोषु के गंदी हरकतों  की वजह से जमकर हंगामा हो रहा है. जिससे  दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि  अनुपमा शाह परिवार के सामने तोषु का पोल खोलती है.  जिसे सुनकर सबको बड़ा झटका लगता है. अनुपमा तोषु को कॉफी जलील करती है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो में दिखायाजा रहा है कि तोषु के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के बारे में सुनकर वनराज का सिर शर्म से नीचे झुक जाता है. तो वहीं तोषु अपनी गलती मानने से ही इनकार कर देता है. इसी बीच वनराज उसे जोरदार थप्पड़ लगाता हेै.

 

शो में आप देखेंगे कि समर तोषु को अकेले में खूब जलील करेगा. तो वहीं तोषु अपनी गलती मानने के बदले अनुपमा को ही गलत बताएगा. तोषु दावा करेगा कि अनुपमा की वजह से उसका घर टूट रहा है. ये बात सुनकर वनराज का पारा चढ़ जाएगा. वनराज तोषु को घर से बाहर कर देगा और कहेगा कि इस घर में तोषु के लिए कोई जगह नहीं है.

 

खबरों के अनुसार, किंजल और उसकी बेटी को सहारा देने के लिए अनुज और अनुपमा एक बड़ा फैसला लेने वाले हैं. अनुज और अनुपमा किंजल को गोद लेने की तैयारी करेंगे. अनुपमा और अनुज किंजल के माता पिता बनकर उसकी देखभाल करेंगे.

 

मेरे Parents घर से बाहर नहीं जाने देते हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 25 साल की एक कुंआरी लड़की हूं. मेरे मांबाप को लगता है कि घर के बाहर हर कोई मुझे दबोचने के लिए ही बैठा है. इसी वजह से वे कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ते हैं. यहां तक कि अपने कालेज की पढ़ाई के दौरान तक मेरी सहेलियां मेरे इर्दगिर्द ही रहती थीं, जिन से वे मेरी हर खबर रखते थे. अब वे मुझे नौकरी भी नहीं करने देना चाहते हैं. मैं उन्हें लाख बार समझा चुकी हूं कि ऐसा कुछ नहीं है और घर के बाहर मैं अपनी हिफाजत खुद कर सकती हूं, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. इन सब बातों से घर पर तनाव का माहौल रहता है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप जैसी लाखोंकरोड़ों लड़कियां घर वालों के इस रवैए से दुखी रहती हैं और जिंदगी अपने मुताबिक नहीं जी पा रही हैं. इस की सब से बड़ी वजह समाज में लड़कियों की हिफाजत की गारंटी न होना. दूसरी वजह, मांबाप द्वारा लड़कियों को आजादी न देना है.  मांबाप को हमेशा यह डर सताता रहता है कि बेटी के साथ कुछ अनहोनी न हो जाए या फिर वह प्यारमुहब्बत के चक्कर में पड़ कर घर की इज्जत मिट्टी में न मिला दे. पर ये सब बकवास बातें हैं, जिन से लड़कियों को घुटन और अपनी पैदाइश पर अफसोस होता है.  आप को हिम्मत जुटा कर बगावत करना होगी, तभी नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी हो पाएंगी, नहीं तो जिंदगीभर यों ही पिंजरे की पंछी बन कर फड़फड़ाती रहेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

कातिल मां को मिली मौत: घातक साबित हुए नाजायज संबंध

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के थाना टूंडला क्षेत्र के मोहल्ला इंदिरा कालोनी में 19 सितंबर, 2018 को दोपहर 2 बजे गोली चलने की आवाज से सनसनी फैल गई. गोली चलने की आवाज रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र के मकान की ओर से आई थी. इस मकान में ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर पर किराएदार रहते थे.

चूंकि गोली की आवाज फर्स्ट फ्लोर से आई थी, इसलिए नीचे रहने वाले किराएदार तुरंत ऊपर पहुंचे तो वहां किराए पर रहने वाली महिला बेबीरानी खून में लथपथ किचन में पड़ी थी. उसे इस हालत में देखते ही उन्होंने शोर मचाया. इस के बाद तो मोहल्ले के कई लोग वहां पहुंच गए.

महिला के सिर से खून बह रहा था. उस के शरीर में कोई हरकत न होने से लोग समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. घटना के समय मृतका का 4 साल का बच्चा आदित्य घर में ही मौजूद था.

इसी दौरान किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. पता चला कि हत्या के समय महिला रसोई में खाना बना रही थी. खाना बनाते समय कोई उस के सिर में गोली मार कर चला गया.

पुलिस को पूछताछ के दौरान पता चला कि 35 साल की बेबीरानी अपने 4 साल के बेटे आदित्य के साथ इस मकान में रहती थी. यह मकान रिटायर्ड दरोगा रमेशचंद्र का है. इस बीच मकान मालिक रमेशचंद्र भी वहां पहुंच गए. उन्होंने बताया कि डेढ़ महीने पहले ही बेबी ने उन का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले यह इसी क्षेत्र में अमित जाट के मकान में किराए पर रहती थी. थानाप्रभारी ने महिला की हत्या की जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

इस पर एसएसपी सचिंद्र पटेल, एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह, सीओ संजय वर्मा फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के साथ ही पुलिस ने काररवाई शुरू कर दी.

फोरैंसिक टीम द्वारा कई स्थानों से फिंगरप्रिंट उठाए गए. घटनास्थल का जायजा लेने पहुंचे एसएसपी सचिंद्र पटेल के निर्देश पर थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया.

अधिकारियों ने 4 साल के मासूम आदित्य से पूछा कि घर में कौन आया था? मम्मी को गोली किस ने मारी? आदित्य ने बताया, ‘‘भैया आए थे. उन्होंने ठांय किया और मर गई मेरी मम्मी.’’

उस बच्चे ने भैया का नाम लिया तो पुलिस पता करने में जुट गई कि यह भैया कौन है. पुलिस ने छानबीन की तो जानकारी मिली कि मृतका बेबीरानी के पहले पति रामवीर के बड़े बेटे गुलशन को आदित्य भैया कहता था.

बेबी के पहले पति रामवीर की हत्या 9 साल पहले हो चुकी है. पहले पति की हत्या के बाद बेबी ने अपने प्रेमी विजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू से दूसरी शादी कर ली. दूसरे पति से 4 साल का बेटा आदित्य है.

दूसरे पति से भी नहीं बनी बेबी की

पुलिस को पूछताछ में पता चला कि शादी के कुछ समय बाद बेबी की दूसरे पति से नहीं पटी और वह उस से अलग हो गया. वर्तमान में वह आगरा में रह रहा है. बेबी पहले पति रामवीर की पेंशन से गुजारा करते हुए बेटे आदित्य के साथ किराए के मकान में रहती थी. बेबी के पास उस के पहले पति का बेटा गुलशन अकसर आयाजाया करता था. पड़ोसियों ने भी गुलशन के वहां आते रहने की बात कही.

बेबी के पहले पति रामवीर से 2 बेटे हैं गुलशन और हिमांशु. पिता की हत्या के बाद बच्चों के दादादादी दोनों को अपने साथ शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग ले गए थे. वहीं रह कर दोनों बच्चे बड़े हुए. मृतका के 4 वर्षीय बेटे के बयान के आधार पर पुलिस को यह शक हो गया कि बेबी की हत्या में उस के बेटे गुलशन का हाथ हो सकता है.

जांच के दौरान यह भी पता चला कि दूसरा पति विजेंद्र सिंह पिछले ढाई साल से अपने बेटे आदित्य को देखने तक नहीं आया. चूंकि पुलिस का शक 20 वर्षीय गुलशन की तरफ था, इसलिए पुलिस सरगर्मी से उस की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय दूसरे दिन पुलिस की एक टीम के साथ गांव कटौरा बुजुर्ग पहुंचे. घर पर उस का बीमार भाई हिमांशु मिला. उस ने बताया कि उसे मां की हत्या के बारे में कोई जानकारी नहीं है. उस ने बताया कि गुलशन घर पर नहीं है. वह दिल्ली में रह कर काम करता है. लिहाजा पुलिस टीम वहां से बैरंग लौट आई.

29 सितंबर को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी गुलशन को ऐत्मादपुर तिराहे से बाइक सहित गिरफ्तार कर लिया. गुलशन बाइक से कहीं जा रहा था. गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी बी.डी. पांडेय, एसआई मुकेश कुमार, सुरेंद्र कुमार, इब्राहीम खां, धर्मेंद्र सिंह शामिल थे. गुलशन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा पुलिस ने बरामद कर लिया. आरोपी गुलशन ने थाने में मौजूद एसपी (सिटी) राजेश कुमार सिंह द्वारा की गई पूछताछ में जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

बेबीरानी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी के थाना भौगांव अंतर्गत गांव मोटा की रहने वाली थी. उस की शादी थाना शिकोहाबाद के गांव कटौरा बुजुर्ग निवासी 30 साल के रामवीर सिंह से हुई थी, जो रेलवे में खलासी पद पर नौकरी करता था. उस की पोस्टिंग टूंडला में हुई थी तो वह वहीं आ कर बस गया. वह रेलवे कालोनी के क्वार्टर में पत्नी बेबीरानी व दोनों बच्चों गुलशन व हिमांशु के साथ रहने लगा.

तीखे नैननक्श, सुंदर और शोख अदाओं वाली बेबी के प्रेम संबंध हाथरस के सादाबाद के रहने वाले गजेंद्र उर्फ गुड्डू से हो गए थे, जोकि रेलवे में गार्ड था तथा टूंडला के रैस्टकैंप में ही रहता था. रामवीर के ड्यूटी पर जाने के बाद गुड्डू बेबी से मिलने उस के क्वार्टर पर पहुंच जाता था.

इस की भनक जब रामवीर को लगी तो उस ने बेबी पर निगाह रखनी शुरू कर दी. वह पत्नी पर सख्ती करने लगा, जिस की वजह से बेबी अपने पति से नाखुश रहने लगी.

गहरी साजिश रची थी हत्या की

3-4 अक्तूबर, 2009 की आधी रात को जब पूरा परिवार घर में सोया हुआ था, तभी रात लगभग 2 बजे 2 व्यक्ति उस के क्वार्टर पर आए तथा दरवाजा खटखटाया. जैसे ही बेबी ने दरवाजा खोला, उन्होंने सोते हुए रामवीर को दबोच लिया तथा चाकू से उस का गला रेत कर उस की हत्या कर दी. उस समय घर पर उस का बेटा गुलशन 11 साल का था.

बेबी अपने प्रेमी गुड्डू के प्रेमपाश में पूरी तरह बंध चुकी थी. उस से अवैध संबंध थे. अवैध संबंधों में बाधक बनने पर रामवीर भेंट चढ़ गया. इस मामले में तत्कालीन एसएसपी रघुवीर लाल को बेबीरानी ने बताया कि जगदीश नामक व्यक्ति ने दरवाजा खुलवाया था. उस के साथ एक व्यक्ति कोई और था. उन के द्वारा पति को चाकू मारने पर वह चीखीचिल्लाई, लेकिन कोई सहायता के लिए नहीं आया.

घटना के बाद पड़ोसी वहां पहुंचे, लेकिन तब तक बदमाश भाग गए. पुलिस जांचपड़ताल कर ही रही थी, तभी पुलिस को मृतक के 11 वर्षीय बेटे गुलशन ने ऐसी जानकारी दी कि उस से न सिर्फ हत्यारे के बारे में जानकारी मिली बल्कि हत्या की वजह भी सामने आ गई.

एसपी रघुवीर लाल के निर्देश पर मृतक के चश्मदीद बेटे गुलशन व दूसरे बेटे हिमांशु को भी पूरी पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के साथ उन बच्चों की मां बेबीरानी को हिरासत में ले लिया गया था.

घटना की रिपोर्ट मृतक के भाई श्यामवीर सिंह ने अपनी भाभी बेबीरानी और उस के प्रेमी गजेंद्र उर्फ गुड्डू व शाहिद के विरुद्ध दर्ज कराई थी.

‘मेरे पिता को हत्यारों ने जिस तरह से मारा है, उन्हें उन की सजा मैं ही दूंगा कोई और नहीं.’ यह बात गुलशन ने तत्कालीन एसपी से कही तो वह भी सन्न रह गए. उन्होंने जब उस से उस के पिता की हत्या के बारे में पूछा तो उस की आंखों में खून उतर आया था.

घटना के चश्मदीद गुलशन ने तब पूरी घटना को बताते हुए कहा था कि बस उसे अपनी रिवौल्वर दे दो, वह अपनी मां को अभी मार देगा. उस ने सिर्फ हत्यारों की पहचान ही नहीं कराई बल्कि अपनी मां की पोल भी खोल दी थी. उस ने बताया, ‘‘बदमाशों ने उस के पिता को पलंग से खींच कर जमीन पर गिराया तभी वह जाग गया था. इस दौरान उस की मां उसे खींच कर दूसरे कमरे में ले जाने लगी थी. पिता की चीख पर जब उस ने पलट कर देखा तो उस ने पिता के गले में चाकू घुसा पाया.’’ इस दौरान उस ने मां के रोने की बात को नाटक बताया था.

गुलशन के सामने हुई थी पिता की हत्या

इस छोटी सी उम्र में अपनी आंखों के सामने हुई पिता की हत्या से उस समय मासूम गुलशन के चेहरे पर बदले की भावना के तीखे तेवर स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. पुलिस कस्टडी में बैठी बेबीरानी को तब उस के प्रेम संबंधों के चलते न ही प्रेमी मिल पाया था और न ही पति रहा और बच्चे भी उस से दूर चले गए थे.

पिता की हत्या के बाद बिखरे रिश्ते अंत तक नहीं जुड़ पाए. गुलशन पिता की हत्या का चश्मदीद गवाह था. बेबी जेल से जल्दी छूट आई थी. वह पति की पेंशन से अपना खर्च चला रही थी.

गुलशन ने रिश्तों की बर्फ पिघलाने की हरसंभव कोशिश की. उस ने मां को दादादादी के गांव चल कर रहने की बात कही, लेकिन उस ने साफ इनकार कर दिया.

बेबी व गुड्डू के कोर्ट से बरी होने के बाद दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद बेबी के गुड्डू से एक बेटा आदित्य हुआ जो इस समय 4 साल का है. शादी के बाद बेबी की अपने दूसरे पति गजेंद्र से भी नहीं पटी. वक्त गुजरने के साथसाथ बेबी और गजेंद्र अलग हो गए.

गुलशन ने बताया कि वह कई दिन से मां के पास लगातार जा रहा था. छोटा भाई बीमार था, उस का इलाज कराने की बात पर मां ने कहा कि मेरे पास आ कर रहो. गुलशन ने मना कर दिया. उस का कहना था कि जो मेरे बाप को मरवा सकती है, वह मुझे भी मरवा सकती थी.

गुलशन को पिता की जगह आश्रित कोटे से रेलवे में नौकरी मिलने का मामला भी तय हुआ था. मां उस से इस कदर नफरत करने लगी थी कि जब उस की नौकरी लगने का मौका आया तो उस ने सहमतिपत्र पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया. वह उस से बेगाने जैसा व्यवहार कर रही थी. मां के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर जरूरी थे. भाई का इलाज व नौकरी को मना करने पर गुलशन का खून खौल उठा.

गुलशन बना मां का हत्यारा

19 सितंबर को दोपहर 2 बजे वह मां के पास पहुंचा. उस समय वह रसोई में रोटी बना रही थी. आटे की लोई बेल रही थी. गुलशन ने तमंचे से उस के सिर के पीछे गोली मार दी. गोली लगते ही बेबी कटे पेड़ की तरह रसोई में ही गिर गई. उस के हाथ से आटे की लोई छूट कर पास ही गिर गई. घटना को अंजाम दे कर गुलशन तेजी से घर से भाग गया. भागते समय उस के 4 वर्षीय सौतेले भाई आदित्य ने उसे देख लिया था.

मृतका बेबी का 4 साल का बेटा आदित्य अनाथ हो गया. मां की हत्या के बाद अब उसे कहां भेजा जाएगा, कोई नहीं बता रहा है. क्योंकि पिछले ढाई साल से उस का पिता गजेंद्र उर्फ गुड्डू एक बार भी उसे देखने नहीं आया. फिलहाल पुलिस ने उसे पड़ोस में रहने वाली एक महिला को सौंप दिया है.

यह अजीब संयोग था कि मां का कातिल बना बेटा गुलशन अपने पिता की हत्या में मां के खिलाफ गवाह था. वहीं अब दूसरा बेटा आदित्य मां की हत्या के मामले में अपने बड़े भाई के खिलाफ गवाह है.

अपने प्रेमी की मोहब्बत पाने के लिए उस ने अपनी ही मांग का सिंदूर उजाड़ डाला. जेल से छूटने के बाद प्रेमी के साथ घर बसाया, मगर सब कुछ उजड़ गया.

पहले पति के बेटे की गोली का शिकार बनी मृतका बेबी का शव पोस्टमार्टम कक्ष में रखा रहा. टूंडला में ही मृतका की बहन रेनू रहती है, लेकिन मायका व ससुराल पक्ष से, यहां तक कि बेबीरानी से शादी रचाने वाला गजेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू भी सामने नहीं आया.

बेबी को अपने किए की सजा उसे मौत के रूप में मिली. अपनों के होते हुए भी पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ही लावारिस लाशों की तरह उस का अंतिम संस्कार किया.

पुलिस ने हत्यारोपी गुलशन को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया ?

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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