राधा बाजार से घर नहीं लौटी, तो उस की ससुराल वालों ने पूरा दिन हरेक परिचित के घर ढूंढ़ने के बाद चिंतित हो कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. आधी रात को अचानक पुलिस का फोन आया कि वह अस्पताल में है. पता पूछ कर सभी लोग उसे देखने पहुंचे, अर्धमूर्च्छित अवस्था में उस ने अपने पति विजय को बताया कि जब वह बाजार से लौट रही थी तो पीछे से आ रही कार में सवार 4 लोगों ने उस के मुंह को हाथों से जोर से दबा कर जबरदस्ती अपनी कार में बैठा लिया. सुनसान स्थान पर ले जा कर उस के साथ बलात्कार करने के बाद उसे सड़क के किनारे छोड़ कर भाग गए. कार की जलती हैडलाइट की रोशनी में किसी भलेमानस ने उसे सड़क पर पड़ा देख कर अस्पताल पहुंचा दिया था.

उस के पति विजय के चेहरे के भाव जो पहले दुर्घटना की कल्पना कर के सहानुभूतिपूर्ण थे, वे अचानक बलात्कार की बात सुन कर कठोर हो गए. उस ने अभी तक अपने जिन हाथों को अपनी पत्नी के हाथों में उलझा रखा था, झटके से अलग किया और अपने परिवार वालों को तुरंत वापस घर चलने का आदेश दिया. परिवार वाले उस की बात मानने को तैयार हो गए, क्योंकि दोनों के प्रेमविवाह के वे आरंभ से ही विरोधी थे और यह विरोध उस के साथ प्रतिदिन के उन के व्यवहार से साफ झलकता भी था. लौटते हुए विजय ने अपनी ससुराल वालों को उन की बेटी की स्थिति के बारे में सूचना दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझी.

राधा के मांबाप सूचना मिलते ही अस्पताल पहुंच गए. राधा 2 दिन अस्पताल में रही, लेकिन विजय एक बार भी उस से मिलने नहीं आया. मांबाप ने उस को फोन भी किया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अस्पताल से छुट्टी होने के बाद वे दोनों राधा को ले कर उस की ससुराल पहुंचे, तो उन लोगों ने कहा, ‘‘जहां इस ने मुंह काला किया है, वहीं जाए, इस घर में इस के लिए कोई जगह नहीं है.’’

‘‘लेकिन इस की गलती क्या है?’’ राधा के पिता ने पूछा, तो विजय ने कहा, ‘‘हमें क्या पता, यह अपनी मरजी से गई है या कोई झूठी कहानी गढ़ रही है.’’ यह सुन कर राधा जोरजोर से रोने लगी. उस ने विजय के इस बदले रूप की कभी कल्पना भी नहीं की थी.

उस की सास बोली, ‘‘मैं तो पहले ही विजय से कह रही थी कि इस कुलच्छनी के लच्छन ठीक नहीं हैं, लेकिन मेरी सुनता ही कौन है. अब मेरे बेटे को मेरी बात समझ में आ रही है. ले जाओ इस को यहां से, ऐसी कुलटा मेरी बहू नहीं हो सकती.’’

यह सुन कर राधा के पिता ने आक्रोश में विजय को मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि उस ने उन का हाथ पकड़ कर उन को जोर का धक्का दिया. उन्हें उठाने राधा गई तो उसे भी धक्का दे कर निकल जाने को कहा. तीनों वापस जाने के लिए घर से बाहर निकलने लगे तो राधा के पिता बोले, ‘‘तुम अपने घर की बहू का अपमान कर के उसे घर से निकाल रहे हो, तुम कभी सुखी नहीं रह सकते. अब तुम चाहोगे तो भी यह कभी वापस नहीं आएगी. जितनी जल्द हो सके तलाक की कार्यवाही शुरू कर दो, ताकि तुम्हें इस से मुक्ति मिल जाए.’’ इतना कह कर वे चले गए.  विजय के मांबाप तो चाहते ही थे कि कोई बहाना मिले, विजय को राधा से अलग करने का. विजय को भी अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था. घर की शुद्घि के लिए पंडित बुलाया गया. उस को हवन करने का कारण बताया गया तो कार्य संपन्न होने के बाद उस ने विजय के मातापिता से कहा, ‘‘मैं अच्छी जन्मपत्री देख लेता हूं, आप के बेटे की है तो दिखाइए, मैं उस के भविष्य के बारे में बताऊंगा कि उस का दूसरा विवाह कहां होगा. यदि कोई अड़चन होगी तो उपाय भी बताऊंगा.’’

मां पंडित के इस प्रस्ताव से फूली नहीं समाई, विजय इस अप्रत्याशित बात को सुन कर अपनी मां और पंडितजी को मूकदर्शक बन कर देख रहा था. इस से पहले कि वह कुछ बोले, मां लपक कर अलमारी से उस की जन्मपत्री निकाल लाई. पंडितजी ने सरसरी निगाह जन्मपत्री पर डाली और उंगलियों पर कुछ गणना कर के कहा, ‘‘अरे, इस का तो निश्चित ही बहुत जल्दी दूसरा विवाह  है, पहले आप को किसी ने बताया नहीं? वह लड़की तो इस घर के लायक थी ही नहीं. हां, अभी एक  दुविधा है, जिस को मिटाने के लिए आप को कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा. आप की सहमति हो तो बताऊं?’’ इतना कह कर पंडित उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.

मां जो अभी तक उन की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी, उन के रुकते ही बोली, ‘‘हां, हां, पंडितजी बताइए, आप जो भी कहेंगे, हम अपने बेटे की खुशी के लिए करेंगे, आप बताइए तो सही.’’ उन की उत्सुकता देखते ही बन रही थी. अब विजय भी उन की बातें तटस्थ हो कर सुन रहा था. उस ने शायद सोचा कि एक बार मां के विरुद्ध जा कर उस ने जो गलती की है, वह अब नहीं दोहराएगा. पंडितजी बड़ी गंभीरता से जन्मपत्री पढ़ने लगे और थोड़ी देर बाद बोले, ‘‘एक तो जिस कमरे में विजय अपनी पत्नी के साथ रहता था, उस कमरे में अब न रहे, क्योंकि वहां पहली पत्नी के बुरे साए का वास है, इसलिए उस में रह कर वह कभी सुखी दांपत्य जीवन नहीं व्यतीत कर सकेगा, बल्कि उस में किसी को भी नहीं रहना चाहिए,’’ फिर जन्मपत्री पर एक जगह उंगली टिकाते हुए बोले, ‘‘अरे, एक बात बड़ी अच्छी है कि आप की बहू स्वयं आप के घर चल कर आएगी, किराए के लिए कमरा पूछती हुई. उस को मना मत कीजिएगा और वही कमरा उसे किराए पर दे दीजिएगा.’’

‘‘लेकिन…’’ विजय के पिता की बात बीच में काटते हुए पंडित बोला, ‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. जैसे भी हो, उस के साथ निर्वाह करना है आप को, आखिर वह आप की होने वाली बहू ही तो होगी. और यह लड़की आप के घर के लिए बहुत शुभ होगी. उस के आते ही आप के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. बस, आप उस के आने का इंतजार कीजिए. जहां तक मैं समझता हूं, अगले महीने तक उसे आ जाना चाहिए. अब मैं चलता हूं. मुझे दूसरी जगह भी जाना है.’’

सब ने उन के पैर छुए, दक्षिणा देने लगे तो उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, बिना कार्य संपन्न हुए मैं दक्षिणा नहीं लेता. हां, संबंध हो जाए तो, विवाह की रस्म अदा करने के लिए मुझे बुलाना मत भूल जाइएगा.’’ इतना कह कर अपना झोला संभालते हुए वे दरवाजे की ओर लपके, तो मां बोली, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी, आप को हम कैसे भूल सकते हैं. आप ने तो हमें रास्ता दिखा कर हमारे सारे कष्ट ही दूर कर दिए. धन्यवाद, लेकिन अपना मोबाइल नंबर तो दीजिए.’’

‘‘अरे, मैं मोबाइल रखना पसंद ही नहीं करता. पूजा के समय घंटी बजती है तो ध्यान भंग होता है. मैं उसी मंदिर में मिलूंगा, जहां मिला था. मेरा नाम पवन है, किसी से भी पूछ लीजिएगा.’’

पंडित के जाने के बाद, सभी एकदूसरे को अवाक देख रहे थे. थोड़ी देर बाद मां बोली, ‘‘मैं ने ऐसा पंडित नहीं देखा जिसे दक्षिणा का भी लालच न हो, और दोनों हाथ जोड़ कर, आंखें मूंद कर तथा नतमस्तक हो कर मन ही मन उन्हें धन्यवाद दिया. इस के बाद नई बहू के आगमन की तैयारी में कमरे को खाली किया गया और वह दिन भी आ गया जब एक सुंदर सी युवती किराए के लिए कमरा ढूंढ़ती हुई उन के घर आ पहुंची. घर के सभी लोग उस को ऐसे देख रहे थे मानो कोई सुखद सपना वास्तविकता में परिवर्तित हो गया हो. उस के हावभाव तथा लिबास को देख कर थोड़ा सकुचाते हुए मां बोली, ‘‘बेटी, एक कमरा है तो हमारे पास, लेकिन तुम्हारे लायक नहीं है.’’

उन की बात बीच में ही काटते हुए वह युवती बोली, ‘‘कैसी बात करती हैं आंटी, मुझे सिर्फ रात काटनी है, पूरा दिन तो मैं औफिस में रहती हूं. खाना भी वहीं खाती हूं, शनिवार और इतवार को अपने मम्मीपापा के पास चली जाती हूं.’’ कमरा देखतेदेखते उस युवती ने अपना परिचय देते हुए कहा कि उस का बहुत बड़ा बंगला है, लेकिन उस के मातापिता हर समय उस के विवाह को ले कर उस के पीछे पड़े रहते हैं, इसलिए वह उन से दूर रह कर नौकरी कर रही है. उस की जिद है कि जब तक उसे उस की पसंद का लड़का नहीं मिलेगा, वह विवाह नहीं करेगी, क्योंकि आजकल अधिकतर लड़के चरित्रहीन होते हैं. मां मन ही मन फूली नहीं समाई कि उस के बेटे से अधिक चरित्रवान और कौन होगा, उन्हें पंडितजी की भविष्यवाणी सत्य होती हुई प्रतीत हुई.

युवती, जिस ने अपना नाम चांदनी बताया था, सामान सहित उन के  पास रहने को आ गई और बहुत जल्दी परिवार में घुलमिल गई. इस से पहले कि विजय उस में रुचि लेता, वही उस में दिलचस्पी दिखाने लगी. मां भी अपनी भावी बहू की तरह उस से व्यवहार करने लगी. एक बार सारे परिवार को किसी रिश्तेदार के यहां शादी में शिरकत करने के लिए 3-4 दिनों के लिए किसी दूसरे शहर जाना पड़ा. जाते समय संकोचवश कि चांदनी को बुरा न लगे, सारा घर खुला छोड़ कर ही वे विवाह में सम्मिलित होने चले गए.

वहां पर अपने घर में भी शहनाइयों की गूंज की कल्पना कर के मां के पैर भी जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. चौथे दिन सभी आंखों में सपने संजोए घर लौटे तो देखा कि कमरे का दरवाजा खुला है. वे यह कल्पना कर बहुत खुश हुए कि चांदनी आज औफिस से छुट्टी ले कर उन का घर पर इंतजार कर रही है. लेकिन जैसे ही कमरे के अंदर पैर रखा, पैरों के तले की जमीन खिसक गई. पूरे कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. जिन अलमारियों को सहेजने में मां का अधिकतर समय बीतता था, वे विधवा की मांग की तरह उजड़ी दिखाई पड़ रही थीं. सारा सामान धराशायी और जेवर का डब्बा नदारद देख कर वे सभी सन्न रह गए.

अचानक विजय, चांदनी के कमरे की ओर दौड़ा, कीमती सामान से सुसज्जित कमरा वीरान हो गया था, जैसे किसी ने उसे धोपोंछ दिया हो. सब को वस्तुस्थिति समझने में देर नहीं लगी और लुटेपिटे, सकते की हालत में शब्दहीन, सिर पकड़ कर एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सारे सामान का जायजा लिया गया तो कम से कम 20 लाख रुपए की चपेट में वे आ गए थे. थोड़ा सामान्य होने के बाद विजय उस पंडित से मिलने के लिए मंदिर गया तो पूछने पर पता लगा कि वहां पवन नाम का पंडित कभी कोई था ही नहीं. झूठी खुशी प्राप्त करने की चाहत में, अच्छे कर्म करने के स्थान पर अंधविश्वास में पड़ कर, पूरा परिवार बरबाद हो गया था.

सास, औरत हो कर भी, अपनी बहू का दर्द नहीं समझ पाई. उस के पिता के शब्द उन के कानों में गूंजने लगे कि घर की बहू को घर से निकाल कर वे कभी सुखी नहीं रह सकते, आज सच में बहू का अनादर करने से उन के लालचीपन और अंधविश्वास का परिणाम सत्य का जामा पहन कर सामने खड़ा था. वे लोग प्रायश्चित्त करने के लिए राधा के घर भी गए, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, पता चला कि वह किसी दूसरे के घर की शोभा बन चुकी थी. सच है ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो युवती के वर्तमान में रुचि रखते हैं, इतिहास में नहीं.

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