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त्यौहार 2022: जानें कैसे बनाते हैं रोलीपोली ग्लोरी

आइए जानते हैं घर पर कैसे बनाएं आसान तरीके से रोलीपोली ग्लोरी मिठाई . इसे बनाना बेहद ही आसान है. कम समय में मेहमानों के लिए आसान नाश्ता है. 

सामग्री :

ब्रैड पीस,

बड़ा चम्मच मक्खन,

1/2 कप दूध,

बड़े चम्मच चौकलेट सौस,

कुछ फल.

कस्टर्ड के लिए :

बड़े चम्मच वनीला कस्टर्ड,

1/2 कप फेंटी हुई गाढ़ी क्रीम,

1/2 लिटर दूध,

बड़े चम्मच चीनी,

बड़ा चम्मच जैलेटिन,

बड़े चम्मच स्ट्राबेरी जैम,

बड़े चम्मच मिक्स मेवे,

टिन फ्रूट कौकटेल.

विधि :

ब्रैड पीसों के किनारे काट लें. सभी ब्रैड पीसों पर मक्खन लगाएं. मक्खन लगे साइड को पलट दें. दूसरी ओर कुछ दूध छिड़कें तथा सभी ब्रैड पीसों को बेसन की सहायता से पतला कर लें. 

अब इन पर चौकलेट सौस लगाएं. सावधानी से प्रत्येक ब्रैड पीस को लपेटें और रोल बना लें. 

इन रोलों को फायल में लपेट कर फ्रिज में रख दें.

जैलेटिन को गुनगुने पानी में घोल लें. 

फ्रूट कौकटेल का टिन खोल कर जूस अलग कर दें. 

फलों के छोटे टुकड़े काट लें. जैम में थोड़ा पानी मिला कर उसे पतला कर लें.

एक बड़े बरतन में दूध उबलने को रखें. 

कस्टर्ड पाउडर को 1/2 कप ठंडे दूध में घोल लें. 

जब दूध उबलने लगे तो उस में घुला हुआ कस्टर्ड डाल कर लगातार चलाते हुए गाढ़ा होने तक पका लें. इसे ठंडा होने दें. 

क्रीम और चीनी को अच्छी तरह से फेंट लें. इसे कस्टर्ड में मिला दें. जैलेटिन मिला कर अच्छी तरह से हिलाएं. 

एक सर्विंग डिश में सब से नीचे जैम बिछाएंऊपर मेवे तथा कटे फल डालें. 

तैयार कस्टर्ड डालें तथा आधा जमने के लिए फ्रिज में रख दें.

रोल्स को फ्रिज में से निकालें. फौयल हटा कर प्रत्येक रोल के टुकड़े काट लें. 

इन कटे रोल्स को आधे जमे कस्टर्ड के बीच में सैट करें. चैरी या जेम्स से सजाएं तथा ठंडाठंडा सर्व करें.

तेरा जाना: आखिर क्यों संजना ने लिया ऐसा फैसला?

दोमंजिले मकान के ऊपरी माले में अपनी पैरालाइज्ड मां के साथ अकेला बैठा अनिल खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा था. मां सो रही थी. कमरा बिखरा पड़ा था. उसे अपनी तबीयत भी ठीक नहीं लग रही थी. सुबह के 11 बज चुके थे. पेट में अन्न का एक भी दाना नहीं गया था. ऐसे में उठ कर नाश्ता बनाना आसान नहीं था. वैसे पिछले कई दिनों से नाश्ते के नाम पर वह ब्रेड बटर और दूध ले रहा था.

किसी तरह फ्रेश हो कर वह किचन में घुसा. दूध और ब्रेड खत्म हो चुके थे. घर में कोई ऐसा था नहीं जिसे भेज कर दूध मंगाया जा सके. खुद ही घिसटता हुआ किराने की शॉप तक पहुंचा. दूध, मैगी और ब्रेड के पैकेट खरीद कर घर आ गया.

अपनी पत्नी संजना के जाने के बाद वह यही सब खा कर जिंदगी बसर कर रहा था. घर आ कर जल्दी से उस ने दूध उबालने को रखा और ब्रेड सेकने लगा.

तभी मां ने आवाज लगाई,” बेटा जल्दी आ. मुझे टॉयलेट लगी है.”

अनिल ने ब्रैड वाली गैस बंद की और दूध वाली गैस थोड़ी हल्की कर के मां के कमरे की तरफ भागा. तब तक मां सब कुछ बिस्तर पर ही कर चुकी थीं. उन से कुछ भी रोका नहीं जाता. वह मां पर चीख पड़ा,” क्या मां, मैं 2 सेकंड में दौड़ता हुआ आ गया पर तुम ने बिस्तर खराब कर दिया. अब यह सब बैठ कर मुझे ही धोना पड़ेगा. कामवाली भी तो नहीं आ रही न.”

मां सकपका गईं. दुखी नजरों से उसे देखती हुई बोलीं,” माफ कर देना बेटा. पता नहीं कैसी हालत हो गई है मेरी. कितनी तकलीफ देती हूं तुझे. मैं मर क्यों नहीं जाती” कहते हुए वह रोने लगी थीं.

“ऐसा मत कह मां.”अनिल ने मां का हाथ पकड़ लिया.” पिताजी पहले ही हमें छोड़ कर जा चुके. भाई दूसरे शहर चला गया. संजना किसी और के साथ भाग गई. अब मेरा है ही कौन तेरे सिवा. तू भी चली जाएगी तो पूरी तरह अकेला हो जाऊंगा.”

अनिल की भी आंखें भर आई थीं. उसे संजना की याद तड़पाने लगी थी. संजना थी तो सब कुछ कितनी सहजता से संभाले रखती थी. मां की तबियत तब भी खराब थी मगर संजना इस तरह मां की सेवा करती थी कि तकलीफों के बावजूद वे हंसती रहती थीं. उस समय छोटा भाई और पिताजी भी थे. मगर घर के काम पलक झपकते निबट जाते थे.

अनिल की आंखों के आगे संजना का मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया जब वह ब्याह कर घर आई थी. नईनवेली बहू इधर से उधर फुदकती फिरती थी. मगर अनिल उस की मासूमियत को बेवकूफी का नाम देता था. वक्तबेवक्त उसे झिड़कता रहता था. वह घर से एक भी कदम बाहर रख देती थी तो घर सिर पर उठा लेता था. उस की सहेलियों तक से उसे मिलने नहीं देता था. समय के साथ चपल हिरनी सी संजना   पिंजरे में कैद बुलबुल जैसी गमगीन हो गई. हंसी के बजाय उस की आंखों में पीड़ा झांकने लगी थी. फिर भी कोई शिकायत किए बिना वह पूरे दिन घर के कामों में लगी रहती.

आज अनिल को याद आ रहा था वह दिन जब संजना की मौजूदगी में एक बार उसे बुखार आ गया था. उस वक्त उन की शादी को ज्यादा दिन नहीं हुए थे. तब संजना पूरे दिन  उस के हाथपैरों की मालिश करती रही थी. अनिल कभी संजना से सिर दबाने को कहता, कभी कुछ खाने को मंगाता तो कभी पत्रिकाओं में से कहानियां पढ़ कर सुनाने को कहता  हर समय संजना को अपनी सेवा में लगाए रखता.

एक दिन उस के मन की थाह लेने के लिए अनिल ने पूछा था,” मेरी बीमारी में तुम मुझ से परेशान तो नहीं हो गई? ज्यादा काम तो नहीं करा रहा हूं मैं ?”

संजना ने कुछ कहा नहीं केवल मुस्कुरा भर दिया तो अनिल ने उसे तुलसीदास का दोहा सुनाते हुए कहा था,” धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी…. आपद काल परखिए चारी…. जानती हो इस का मतलब क्या है?”

नहीं तो. आप बताइए क्या मतलब है?” संजना ने गोलगोल आंखें नचाते हुए पूछा तो अनिल ने समझाया,” इस का मतलब है खराब समय में ही धीरज, धर्म, मित्र और औरत की परीक्षा होती है. बुरे समय में पत्नी आप का साथ देती है या नहीं यह देखना जरूरी है. इसी से पत्नी की परीक्षा होती है.”

संजना के बारे में सोचतेसोचते काफी समय तक अनिल यों ही बैठा रहा. तभी उसे याद आया कि उस ने गैस पर दूध चढ़ा रखा है. वह दौड़ता हुआ किचन में घुसा तो देखा आधा से ज्यादा दूर जमीन पर बह गया है और बाकी जल चुका है. भगोना भी काला हो गया है. अनिल सिर पकड़ कर बैठ गया. किचन की सफाई का काम बढ़ गया था. दूध भी फिर से लाना होगा. उधर मां के बिस्तर की सफाई भी करनी थी.

सब काम निबटातेनिबटाते दोपहर के 2 बज गए. दूध के साथ ब्रेड खाते हुए अनिल को फिर से पुराने दिन याद आने लगे. संजना को उस के लिए पिताजी ने पसंद किया था. वह खूबसूरत, पढ़ीलिखी और सुशील लड़की थी. जबकि अनिल कपड़ों का थोक विक्रेता था.

घर में रुपएपैसों की कमी नहीं थी. फिर भी संजना जॉब करना चाहती थी. वह इस बहाने खुली हवा में सांस लेना चाहती थी. मगर अनिल ने उस की यह गुजारिश सिरे से नकार दी थी. अनिल को डर लगने लगा था कि कमला यदि बाहर जाएगी या अपनी सहेलियों से मिलेगी तो वे उसे भड़काएंगी. यही सोच कर उस ने संजना को जॉब करने या सहेलियों से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

एक दिन वह दुकान से जल्दी घर लौट आया. उस ने देखा कि कपड़े प्रेस करतेकरते संजना अपनी किसी सहेली से बातें कर रही है. अनिल दबे पांव कमरे में दाखिल हुआ और बिस्तर पर बैठ कर चुपके से संजना की बातें सुनने लगा. वह अपनी सहेली से कह रही थी,” मीना सच कहूं तो कभीकभी दिल करता है इन को छोड़ कर कहीं दूर चली जाऊं. कभीकभी बहुत परेशान करते हैं. मगर उस वक्त सुनयना दीदी का ख्याल आ जाता है. वह इतनी सुंदर हैं पर विधवा होने की वजह से उन की कहीं शादी नहीं हो पाई. कितनी बेबस और अकेली रह गई हैं. एक औरत के लिए दूसरी शादी कर पाना आसान नहीं होता. कभी मन गवाह नहीं देता तो कभी समाज. एक बात बताऊं मीना…” संजना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनिल चीख पड़ा,” संजना फोन रखो. मैं कहता हूं फोन रखो.” डर कर संजना ने फोन रख दिया.

अनिल ने खींच कर एक झापड़ उसे रसीद किया. संजना बिस्तर पर बैठ कर सुबकने लगी. अनिल ने उस के कानों में तुलसीदास का दोहा बुदबुदाया,” ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी …. ये सब ताड़न के अधिकारी….”

संजना ने सवालिया नजरों से अनिल की ओर देखा तो अनिल फिर चीखा,”जानती है इस दोहे का मतलब क्या है? नहीं जानती न. इस का मतलब है कि औरतों को अक्ल सिखाने के लिए उन्हें पीटना जरूरी होता है. वे ताड़न की अधिकारी होती हैं और मैं तेरी जैसी औरतों को पीटना अच्छी तरह जानता हूं. पति की बुराई मोहल्ले भर में करती चलती हो. सहेलियों के आगे बुराइयों का पोथा खोल रखा है. छोड़ कर जाएगी मुझे? क्या कमी रखी है मैं ने? जाहिल औरत बता क्या कमी रखी है?” कहते हुए अनिल ने गर्म प्रेस उस की हथेली पर रख दी.

संजना जोर से चीख उठी. बगल के कमरे से पिताजी दौड़े आए.” बस कर अनिल क्या कर रहा है तू ? चल तेरी मां दवा मांग रही है.”

पिताजी अनिल को खींचते हुए ले गए. फिर संजना देर तक नल के नीचे बहते पानी में हाथ रखी रोती रही. उस दिन संजना के अंदर कुछ टूट गया था. यह चोट फिर कभी ठीक नहीं हुई. उस दिन के बाद संजना ने अपनी सहेलियों से भी बातें करना छोड़ दिया. हंसनाखिलखिलाना सब कुछ छूट गया. वह अनिल के सारे काम करती मगर बिना एक शब्द मुंह से निकाले. रात में जब अनिल उसे अपनी तरफ खींचता तो उसे महसूस होता जैसे बहुत सारे बिच्छूओं ने एक साथ डंक मार दिया हो. पर वह बेबस थी. उसे कोई रास्ता नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

इस तरह जिंदगी के करीब 3 साल बीत गए. उन्हें कोई बच्चा नहीं हुआ था. संजना वैसे भी बच्चे के पक्ष में नहीं थी. उसे लगता था कि इतने घुटन भरे माहौल में वह अपने बच्चे को कौन सी खुशी दे पाएगी?

एक दिन वह शाम के समय सब्जी लाने बाजार गई थी. वहीं उस की मुलाकात अपने सहपाठी नीरज से हुई. वह अपने भाई निलय के साथ के सब्जी और फल खरीदने आया था. संजना को देखते ही नीरज ने उसे पुकारा,” कैसी हो संजना पहचाना मुझे?”

नीरज को देख कर संजना का चेहरा खिल उठा,”अरे कैसे नहीं पहचानूंगी. तुम तो कॉलेज के जान थे.”

“पर तुम्हें पहचानना कठिन हो रहा है. कितनी मुरझा गई हो.सब ठीक तो है?” चिंता भरे स्वर में नीरज ने पूछा तो संजना ने सब सच बता दिया.

ढांढस बंधाते हुए नीरज ने संजना का परिचय अपने भाई से कराया,” यह मेरा भाई है. यहीं पास में ही रहता है. बीवी से तलाक हो चुका है. बीवी बहुत रुखे स्वभाव की थी जबकि यह बहुत कोमल हृदय का है. मैं तो जयपुर में रहता हूं मगर तुम्हें जब भी कोई समस्या आए तो मेरे भाई से बात कर सकती हो. यह तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा.”

इस छोटी सी मुलाकात में निलय ने अपना नंबर देते हुए हर मुश्किल घड़ी में साथ  निभाने का वादा किया था.

संजना को जैसे एक आसरा मिल गया था. वैसे भी निलय उसे जिन निगाहों से देख रहा था वे निगाहें घर आने के बाद भी उस का पीछा करती रही थीं. अजीब सी कशिश थी उस की निगाहों में. संजना चाह कर भी निलय को भूल नहीं पा रही थी.

करीब चारपांच दिन बीत गए. हमेशा की तरह संजना अपने घर के कामों में व्यस्त थी कि तभी निलय का फोन आया. उस का नंबर संजना ने सुधा नाम से सेव किया था. संजना ने दौड़ कर फोन उठाया.  निलय की आवाज में एक सुरुर था. वैसे उस ने संजना का हालचाल पूछने के लिए फोन किया था मगर उस के बात करने का अंदाज ऐसा था कि संजना दोतीन दिनों तक फिर से निलय के ख्यालों में गुम रही.

इस बार उसी ने निलय को फोन किया. दोनों देर तक बातें करते रहे. हालचाल से बढ़ कर अब जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर भी बातें होने लगीं थीं. अब हर रोज दोपहर करीब 2- 3 बजे दोनों बातें करने लगे. दोनों ने अपनीअपनी फीलिंग्स शेयर की और फिर एक दिन एकदूसरे के साथ कहीं दूर भाग जाने की योजना भी बना डाली. संजना के लिए यह फैसला लेना कठिन नहीं हुआ था. वह ऐसे भी अनिल से आजिज आ चुकी थी. अनिल ने जिस तरह से उसे मारापीटा और गुलाम बना कर रखा था वह उस के जैसी स्वाभिमानी स्त्री के लिए असहनीय था.

एक दिन अनिल के नाम एक चिट्ठी छोड़ कर संजना निलय के साथ भाग गई. वह कहां गई इस की खबर उस ने अनिल को नहीं दी मगर क्यों गई और किस के साथ गई इन सब बातों की जानकारी खत के माध्यम से अनिल को दे दी. साथ ही उस ने खत में स्पष्ट रूप से लिख दिया था कि वह अनिल को तलाक नहीं देगी और उस के साथ रहेगी भी नहीं.

अनिल के पास हाथ मलने और पछताने के सिवा कोई रास्ता नहीं था. इस बात को डेढ़ साल बीत चुके थे. अनिल की जिंदगी की गाड़ी पटरी से उतर चुकी थी. मन में बेचैनी का असर दुकान पर भी पड़ा. उस का व्यवसाय ठप पड़ने लगा. अनिल के पिता की मौत हो गई और घर के हालात देखते हुए अनिल के भाई ने लव मैरिज की और दूसरे शहर में शिफ्ट हो गया.

अब अनिल अकेला अपनी बीमार मां के साथ जिंदगी की रेतीली धरती पर अपने कर्मों का हिसाब देने को विवश था.

पदयात्रा: भाजपा चंचला, राहुल गांधी गंभीरा

राहुल गांधी की ऐतिहासिक लंबी पदयात्रा की घोषणा के साथ ही भाजपा के मानो होश फाख्ता हो गए हैं. अब वह वह किसी चंचला नारी की तरह कांग्रेस और राहुल गांधी पर बात-बात पर आक्षेप लगा रही है. वहीं कांग्रेस ने बारंबार अपने व्यवहार में एक गंभीरता को परिलक्षित दिखाया है.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कई वरिष्ठ नेताओं के साथ ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की विधिवत शुरुआत कर दी है. पार्टी इस यात्रा को देशव्यापी व्यापक जनसंपर्क अभियान बता रही है तथा इससे संगठन को संजीवनी मिलने की उम्मीद है. राहुल गांधी ने पदयात्रा का आगाज ‘विवेकानंद पॉलिटेक्निक’ से 118 अन्य ‘भारत यात्रियों ” और कई अन्य वरिष्ठ नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के साथ पदयात्रा की शुरुआत किया. कांग्रेस पार्टी ने राहुल समेत 119 नेताओं को ‘भारत यात्री’ नाम दिया है, जो कन्याकुमारी से पदयात्रा करते हुए कश्मीर तक की लंबी पदयात्रा करेंगे. यह लोग कुल 3570 किलोमीटर को दूरी तय करेंगे.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने विधिवत कन्याकुमारी से अपनी ‘भारत जोड़ो’ यात्रा की औपचारिक शुरुआत की और इस मौके पर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लिखित संदेश के माध्यम से कहा – यह यात्रा भारतीय राजनीति के लिए परिवर्तनकारी क्षण है तथा यह कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेगी.
इस तरह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी की यह पदयात्रा कई अर्थों में गंभीर संदेश देश को देने लगी है. पूर्व प्रधानमंत्री और अपने पिता राजीव गांधी को श्रीपेरंबदूर में श्रद्धांजलि देने के बाद यह पदयात्रा आरंभ हुई है जो देखते ही देखते भाजपा के लिए मानो सर दर्द बन गई है और कांग्रेस अब आगे निकलती दिखाई दे रही है.

भाजपा के आरोप

राहुल गांधी की पदयात्रा प्रारंभ होने से पहले से ही भारतीय जनता पार्टी की घबराहट दिखाई देने लगी थी और उसके नेता पदयात्रा पर उंगली उठाने लगे थे. जैसे-जैसे पदयात्रा का समय आता गया भाजपा और भी आक्रमक होती चली गई.

पदयात्रा प्रारंभ होने के साथ भाजपा के नेताओं की जैसे की आदत है उन्होंने हर संभव तरीके से राहुल गांधी कि इस ऐतिहासिक पदयात्रा को प्रारंभ में ही मानसिक रूप से ध्वस्त और कमजोर करने का भरसक प्रयास किया. देश में यह संदेश फैलाने का, अपने गोदी मीडिया के माध्यम से प्रयास किया कि यह सब तो सिर्फ और सिर्फ बेकार की कवायद है .

भाजपा के किसी नेता ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा का क्या मतलब है- भाई! भरत तो पहले से ही जुड़ा हुआ है. इस तरह इस अभियान पर प्रश्न चिन्ह लगाने का भरपूर प्रयास किया गया.

मगर आश्चर्यजनक रूप से भाजपा का यह आमोध ब्रह्मास्त्र फेल हो गया. क्योंकि देश की जनता राहुल गांधी को बड़ी गंभीरता से देख रही है और भारत जोड़ो यात्रा को सकारात्मक भाव से ले रही थी.
भाजपा का जब भारत जोड़ो पर प्रश्न चिन्ह का तीर नहीं चला तो भाजपा ने दूसरा तीर चलाया और कहा कि राहुल गांधी तो 42000 की टीशर्ट पहन कर के पदयात्रा पर निकले हैं.

भाजपा का यह तीर भी भोथरा सिद्ध हुआ देश की जनता ने उसे गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि आरोप लगाने वाले स्वयं भाजपा के चाहे वह प्रधानमंत्री हो अथवा गृह मंत्री या अन्य नेता स्वयं लाखों रुपए के बेशकीमती वस्त्र धारण करते हैं. इनकी फिजूलखर्ची सारा देश देख रहा है इनके स्वभाव में कहीं भी किफायतदारी नहीं है. ऐसे में यह तीर अर्थात उपदेश-” पर उपदेश कुशल बहुतेरे” कहावत बनकर रह गया.

भाजपा इस तरह अनेक तरह से राहुल गांधी पर लगातार आरोप-प्रत्यारोप के तीर चला रही है. मगर यह सारे बाण, रामलीला की नौटंकी की तरह राहुल गांधी के आस पास से निकलते जा रहे हैं और राहुल गांधी मुस्कुराते हुए पदयात्रा करते अपना संदेश देश को देते चले जा रहे हैं.

राहुल गांधी की इस पदयात्रा से अब जहां भाजपा हतप्रभ है वही विपक्ष के अन्य बड़े नेताओं का भी होश काम नहीं कर रहा है. चाहे वे नीतीश कुमार हों या फिर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल प्रधानमंत्री पद के दावेदार सभी के मुंह में ताला लग गया है. अन्यथा होना यह चाहिए कि विपक्ष की एकता की बात करने वाले यह नेता खुलकर राहुल गांधी की पदयात्रा को समर्थन करते. अभी तलक सिर्फ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने राहुल गांधी की पदयात्रा के पक्ष में अपना वक्तव्य दिया है, बाकी सारे नेता खामोश है उनकी खामोशी अपने आप में एक प्रश्न है.

‘क्या गुम है किसी के प्यार में’ का होगा होगा अंत? पढ़ें खबर

स्टार प्लस का मशहूर शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो का ट्रैक दर्शकों को कॉफी पसंद आ रहा है. लेकिन इसी बीच शो को लेकर एक चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है. जिसे सुनकर फैंस को बड़ा झटका लगा है. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला…

बताया जा रहा है कि ये शो अब खत्म होने वाला है. रिपोर्ट के अनुसार, नवंबर का महीना, शो का आखिरी महीना होगा. खबरों के अनुसार, शो में अब विराट और सई को मिलाने के बाद कुछ दिखाने के लिए कुछ भी दिलचस्प नहीं होगा. रिपोर्ट के मुताबिक विराट और सही मिल जाएंगे और उनके दोनों बच्चे सवी और विनायक भी साथ आ जाएंगे.

 

बताया जा रहा है कि पाखी को कोई बीमारी हो जाएगी जिसके बाद वह सई और विराट को साथ करके इस दुनिया को छोड़ देगी. सई पाखी को वादा करेगी की जिस तरह वह विनायक से प्यार करती है और उसका ध्यान रखती है उसी तरह विनायक को पूरा प्यार देगी. इसके बाद विराट और सई की लव स्टोरी की दोबारा शुरुआत होगी.

 

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शो का लेटेस्ट प्रोमो सामने आया है. इस प्रोमो के अनुसार, सालों बाद पाखी और सई मिलती है.  दोनों एक-दूसरे को देखकर हैरान हो जाते हैं. घर में घुसते ही पाखी सई से कहती है कि हम अपनी जिंदगी में कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाएं लेकिन अतीत हमें पीछे खींच ही लेता है.  उसका जवाब देते हुए सई कहती है,  अब मैं वो सई नहीं हूं जिसे आप जानती हैं. लेकिन आज भी वहीं पाखी हैं जो विराट से प्यार करती थी.

 

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सई आगे कहती है कि अब तो आप उनकी पत्नी भी बन चुकी हैं. सई की बातों पर पाखी उससे अजीब सी मांग करती है और कहती है कि विराट की दूसरी पत्नी, पहली पत्नी से कुछ मांगना चाहती है. क्या तुम मेरे साथ विराट के घर चलोगी. शो में अब ये देखना दिलचस्प है कि क्या सई पाखी की बात मानेगी?

फर्ज: उस्मान ने अपने घर फोन करके क्या बोला ?

जयपुर शहर के सिटी अस्पताल में उस्मान का इलाज चलते 15 दिन से भी ज्यादा हो गए थे, लेकिन उस की तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. आईसीयू वार्ड के सामने परेशान उस्मान के अब्बा सरफराज लगातार इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे. कभी बेचैनी में आसमान की तरफ दोनों हाथ उठा कर वे बेटे की जिंदगी की भीख मांगते, तो कभी फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लग जाते. उधर अस्पताल के एक कोने में उस्मान की मां फरजाना भी बेटे की सलामती के लिए दुआएं मांग रही  तभी आईसीयू वार्ड से डाक्टर रामानुजम बाहर निकले, तो सरफराज उन के पीछेपीछे दौड़े और उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे. ‘‘डाक्टर साहब, मेरे बेटे को बचा लो. आप कुछ भी करो. उस के इलाज में कमी नहीं आनी चाहिए.’’ डाक्टर रामानुजम ने उन्हें उठा कर तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकल, हम आप के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उस की तबीयत अभी भी गंभीर बनी हुई है. आपरेशन और दवाओं को मिला कर कुल 5 लाख रुपए का खर्चा आएगा.’’

‘‘कैसे भी हो, आप मेरे बेटे को बचा लो डाक्टर साहब. मैं एकदो दिन में पैसों का इंतजाम करता हूं,’’ सरफराज ने हाथ जोड़ कर कहा.

काफी भागदौड़ के बाद भी जब सरफराज से सिर्फ 2 लाख रुपए का इंतजाम हो सका, तो निराश हो कर उन्होंने बेटी नजमा को मदद के लिए दिल्ली फोन मिलाया. उधर से फोन पर दामाद अनवर की आवाज आई, ‘हैलो अब्बू, क्या हुआ? कैसे फोन किया?’

‘‘बेटा अनवर, उस्मान की तबीयत ज्यादा ही खराब है. उस के आपरेशन और इलाज के लिए 5 लाख रुपए की जरूरत थी. हम से 2 लाख रुपए का ही इंतजाम हो सका है. बेटा…’’ और सरफराज का गला भर आया. इस के पहले कि उन की बात पूरी होती, उधर से अनवर ने कहा, ‘अब्बू, आप बिलकुल चिंता न करें. मैं तो आ नहीं पाऊंगा, लेकिन आप की बेटी कल सुबह पैसे ले कर आप के पास पहुंच जाएगी.’ दूसरे दिन नजमा पैसे ले कर जयपुर पहुंच गई. कामयाब आपरेशन के बाद डाक्टरों ने उस्मान को बचा लिया. धीरेधीरे 10 साल गुजर गए. इस बीच सरफराज ने गांव की कुछ जमीन बेच कर उस्मान को इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई और मुंबई एयरपोर्ट पर उस की नौकरी लग गई. उस ने अपने साथ काम करने वाली लड़की रेणू से शादी भी कर ली और ससुराल में ही रहने लगा. इस के बाद उस्मान का मांबाप से मिलने आना बंद हो गया. कई बार वे बीमार हुए. उसे खबर भी दी, फिर भी वह नहीं आया.

एक दिन सुबहसवेरे टैलीफोन की घंटी बजी. सरफराज ने फोन उठा कर सुना, तो उधर से उस्मान बोल रहा था, ‘हैलो अब्बा, कैसे हैं आप सब लोग? अब्बा, मुझे एक परेशानी आ गई है. मुझे 10 लाख रुपए की सख्त जरूरत है. मैं 2-3 दिन में पैसे लेने आ जाता हूं.’

‘‘बेटा, तेरे आपरेशन के वक्त बेटी नजमा से उधार लिए 3 लाख रुपए चुकाना ही मुश्किल हो रहा है. ऐसे में मुझ से 10 लाख रुपए का इंतजाम नहीं हो सकेगा. मैं मजबूर हूं बेटा,’’ सरफराज ने कहा. इस के आगे सरफराज कुछ बोलते, तभी उस्मान गुस्से से उन पर भड़क उठा, ‘अब्बा, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मुझे पता था कि आप यही कहेंगे. आप ने जिंदगी में मेरे लिए किया ही क्या है?’ और उस ने फोन काट दिया. अपने बेटे की ऐसी बातें सुन कर सरफराज को गहरा सदमा लगा. वे गुमसुम रहने लगे. सारा दिन घर में पड़ेपड़े वे बड़बड़ाते रहते. एक दिन अचानक शाम को सीने में दर्द के बाद सरफराज लड़खड़ा कर गिर पड़े, तो बीवी फरजाना ने उन्हें पलंग पर लिटा दिया. कुछ देर बाद डाक्टर ने आ कर जांच की और कहा, ‘‘इन की तबीयत बहुत ज्यादा खराब है. इन्हें बड़े अस्पताल में ले जाना पड़ेगा.’’

कसबे के नजदीक जिला अस्पताल में सारी जांचों और रिपोर्टों को देखने के बाद सीनियर डाक्टर ने फरजाना को अलग बुला कर समझाया और कहा कि वे सरफराज को घर ले जा कर खिदमत करें. डाक्टर साहब की बात सुन कर घबराई फरजाना ने बेटे उस्मान को फोन कर बीमार बाप से मिलने आने की गुजारिश करते हुए आखिरी वक्त में साथ होने की दुहाई भी दी. उधर से फोन पर उस्मान ने अम्मी से काफी भलाबुरा कहा. गुस्से में भरे उस्मान ने यह तक कह दिया, ‘आप लोगों से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं है. आइंदा मुझे फोन भी मत करना.’ बटे की ऐसी बातें सुन कर फरजाना घबरा गईं. उन्होंने नजमा को दिल्ली फोन किया, ‘‘हैलो नजमा बेटी, तेरे अब्बा की तबीयत बहुत खराब है. तू अनवर मियां से इजाजत ले कर कुछ दिनों के लिए यहां आ जा.’’

नजमा ने उधर से फौरन जवाब दिया, ‘अम्मी, आप बिलकुल मत घबराना. मैं आज ही शाम तक आप के दामाद के साथ आप के पास पहुंच जाऊंगी.’ शाम होतेहोते नजमा और अनवर जब घर पर पहुंचे, तो खानदान के लोग सरफराज के पलंग के आसपास बैठे थे. नजमा भाग कर अब्बा से लिपट गई. दोनों बापबेटी बड़ी देर तक रोते रहे.

‘देखो अब्बा, मैं आ गई हूं. आप अब मेरे साथ दिल्ली चलोगे. वहां हम आप का बढि़या इलाज कराएंगे. आप बहुत जल्दी ठीक हो जाएंगे,’’ नजमा ने रोतेरोते कहा. आंखें खोलने की कोशिश करते हुए सरफराज ने बड़ी देर तक नजमा के सिर हाथ फेरा और कहा, ‘‘नजमा बेटी, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. अब तू जो आ गई है. मुझे सुकून से मौत आ जाएगी.’’ ‘‘ऐसा मत बोलो अब्बा. आप को कुछ नहीं होगा…’’ उसी दिन अम्मी को बुला कर उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी, आप ने खूब खिदमत कर ली. अब मुझे अपना फर्ज अदा करने दो.’’

उस के बाद तो नजमा ने अब्बा की खिदमत में दिनरात एक कर दिया. समय पर दवा, चाय, नाश्ता, खाना, नहलाना और घंटों तक पैर दबाते रहना, सारीसारी रात पलंग पर बैठ कर जागना उस का रोजाना का काम हो गया. कई बार सरफराज ने नजमा से मना भी किया, लेकिन वह हर बार यह कहती, ‘‘अब्बा, आप ने हमारे लिए क्या नहीं किया. आप भी हमें अपने हाथों से खिलाते, नहलाते, स्कूल ले जाते, कंधे पर बैठा कर घुमाते थे. सबकुछ तो किया. अब मेरा फर्ज अदा करने का वक्त है. मुझे मत रोको अब्बा.’’ बेटी की बात सुन कर सरफराज चुप हो गए.नजमा की खिदमत ने करिश्मा कर दिया. सरफराज की सेहत में सुधार होता चला गया.

एक दिन दोपहर के वक्त नजमा अब्बा का सिर गोद में ले कर चम्मच से जूस पिला रही थी, तभी घर के बाहर कार के रुकने की आवाज सुनाई दी. कुछ देर बाद उस्मान एक वकील के साथ अंदर जाने लगा. वकील के हाथ में टाइप किए कुछ कागजात थे. उस्मान दरवाजे पर खड़ी फरजाना से सलाम कर के आगे बढ़ा, तो उन्होंने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया और पूछा, ‘‘कौन हो तुम? कहां जा रहे हो?’’

‘‘अरे अम्मी, मैं हूं आप का बेटा उस्मान,’’ इतना कहते हुए वह सरफराज के पलंग के पास जा कर खड़ा हो गया.

तभी सरफराज ने तकिए का सहारा ले कर पूछा, ‘‘कौन हो तुम? और ये वकील साहब कैसे आए हैं?’’

‘‘अब्बा, मैं आप का उस्मान.’’

‘‘कौन उस्मान? मैं किसी उस्मान को नहीं जानता, न मेरा उस से कोई रिश्ता है. मेरा तो एक ही बेटा है. यह मेरी बेटी नजमा…’’ इतना कह कर उन्होंने मुंह फेर लिया और कहा, ‘‘वकील साहब, शायद आप मेरी जायदाद उस्मान के नाम करवाने के कागजात पर दस्तखत कराने के इरादे से आए हो, लेकिन आप लोगों को बहुत देर हो गई.’’ उन्होंने तकिए के नीचे से कागजात निकाल कर बताते हुए कहा, ‘‘मैं ने बेटे के लिए बहुत किया. अपना सबकुछ दिया, लेकिन सब बेकार चला गया. ‘‘मुझे जिंदगीभर यही अफसोस रहेगा कि मेरे नजमा जैसी और बेटियां क्यों नहीं हुईं? अब मेरा सबकुछ इस का है. यह जिंदगी भी इसी की खिदमत की बदौलत है. आप मेहरबानी कर के चले जाएं. यहां उस्मान नाम का कोई भी नहीं है.’’ यह सुन कर उस्मान के होश उड़ गए और वह मुंह लटका कर वकील के साथ घर से बाहर निकल गया.

सच होते सपने: गोपुली को किस बात पर गुस्सा आया?

‘‘ऐ बहू…’’ सास फिर से बड़बड़ाने लगी, ‘‘कमाने का कुछ हुनर सीख. इस खानदान में ऐसा ही चला आ रहा है.’’

‘‘वाह रे खानदान…’’ गोपुली फट पड़ी, ‘‘औरत कमाए और मर्द उस की कमाई पर गुलछर्रे उड़ाए. लानत है, ऐसे खानदान पर.’’

उस गांव में दक्षिण दिशा में कुछ कारीगर परिवार सालों से रह रहे थे. न जाने कितनी ही पीढि़यों से वे लोग ठाकुरों की चाकरी करते आ रहे थे. तरक्की के नाम पर उन्हें कुछ भी तो नहीं मिला था. आज भी वे दूसरों पर निर्भर थे.

पनराम का परिवार नाचमुजरे से अपना गुजरा करता आ रहा था. उस की दादी, मां, बीवी सभी तो नाचमुजरे से ही परिवार पालते रहे थे. शादीब्याह के मौकों पर उन्हें दूरदूर से बुलावा आया करता था. औरतें महफिलों में नाचमुजरे करतीं और मर्द नशे में डूबे रहते.

कभी गोपुली की सहेली ने कहा था, ‘गोपा, वहां तो जाते ही तुझे ठुमके लगाने होंगे. पैरों में घुंघरू बांधने होंगे.’

गोपुली ने मुंह बना कर जवाब दिया था, ‘‘नाचे मेरी जूती, मैं ऐसे खोटे काम कभी नहीं करूंगी.’’

लेकिन उस दिन गोपुली की उम्मीदों पर पानी फिर गया, जब उस के पति हयात ने कहा, ‘‘2 दिन बाद हमें अमधार की बरात में जाना है. वहां के ठाकुर खुद ही न्योता देने आए थे.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने साफसाफ लहजे में मना कर दिया, ‘‘मैं नाचमुजरा नहीं करूंगी.’’

‘‘क्या…’’ हयात के हाथों से मानो तोते उड़ गए.

‘‘कान खोल कर सुन लो…’’ जैसे गोपुली शेरनी ही बन बैठी थी, ‘‘अपने मांबाप से कह दो कि गोपुली महफिल में नहीं नाचेगी.’’

‘‘फिर हमारे पेट कैसे भरेंगे बहू?’’ सामने ही हुक्का गुड़गुड़ा रहे ससुर पनराम ने उस की ओर देखते हुए सवाल दाग दिया.

‘‘यह तुम सोचो…’’ उस का वही मुंहफट जवाब था, ‘‘यह सोचना मर्दों का काम हुआ करता है.’’

गोपुली के रवैए से परिवार को गहरा धक्का लगा. आंगन के कोने में बैठा हुआ पनराम हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. गोपुली की सास बीमार थी. आंगन की दीवार पर बैठा हुआ हयात भांग की पत्तियों को हथेली पर रगड़ रहा था.

‘‘फिर क्या कहती हो?’’ हयात ने वहीं से पूछा.

‘‘देखो…’’ गोपुली अपनी बात दोहराने लगी, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के तुम लोगों का पेट पाल लूंगी, पर पैरों में घुंघरू नहीं बांधूंगी.’’

कानों में घुंघरू शब्द पड़ते ही सास हरकत में आ गई. उसे लगा कि बहू का दिमाग ठिकाने लग गया है. वह खाट से उठ कर पुराना संदूक खोलने लगी. उस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था.

सास ने संदूक से वे घुंघरू निकाल लिए, जिन के साथ उस के खानदान का इतिहास जुड़ा हुआ था. उन पर हाथ फेरते हुए वह आंगन में चली आई. उस ने पूछा, ‘‘हां बहू, तू पैरों में पायल बांधेगी या घुंघरू?’’

‘‘कुछ भी नहीं,’’ गोपुली चिल्ला कर बोली.

हयात सुल्फे की तैयारी कर चुका था. उस ने जोर का सुट्टा लगाया. चिलम का सारा तंबाकू एकसाथ ही भभक उठा. 2-3 कश खींच कर उस ने चिलम पनराम को थमा दी, ‘‘लो बापू, तुम भी अपनी परेशानी दूर करो.’’

पनराम ने भी जोर से सुट्टा लगाया.

बापबेटे दोनों ही नशे में धुत्त हो गए. सास बोली, ‘‘ये दोनों तो ऐसे ही रहेंगे.’’

‘‘हां…’’ गोपुली ने भी कहा, ‘‘ये काम करने वाले आदमी नहीं हैं.’’

सामने से अमधार के ठाकुर कर्ण सिंह आते हुए दिखाई दिए.

सास ने परेशान हो कर कहा, ‘‘ठाकुर साहब आ रहे हैं. उन से क्या कहें?’’

‘‘जैसे आ रहे हैं, वैसे ही वापस चले जाएंगे,’’ गोपुली ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन… उन के बयाने का क्या होगा?’’

‘‘जिस को दिया है, वह लौटादेगा,’’ गोपुली बोली.

ठाकुर कर्ण सिंह आए, तो उन्होंने छूटते ही कहा, ‘‘देखो पनराम, तुम लोग समय पर पहुंच जाना बरात में.’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने बीच में ही कहा, ‘‘हम लोग नहीं आएंगे.’’

गोपुली की बात सुन कर ठाकुर साहब को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था. उन्होंने पनराम से पूछा. ‘‘क्यों रे पनिया, मैं क्या सुन रहा हूं?’’

‘‘मालिक, न जाने कहां से यह मनहूस औरत हमारे परिवार में आ गई है,’’ पनराम ठाकुर के लिए दरी बिछाते हुए बोला.

ठाकुर दरी पर बैठ गए. वे गोपुली की नापजोख करने लगे. गोपुली को उन का इस तरह देखना अच्छा नहीं लगा.

वह क्यारियों में जा कर गुड़ाईनिराई करने लगी और सोचने लगी कि अगर उस के पास भी कुछ खेत होते, तो कितना अच्छा होता.

अमधार के ठाकुर बैरंग ही लौट गए. गोपुली सारे गांव में मशहूर होने लगी. जितने मुंह उतनी ही बातें.

सास ने पूछा, ‘‘क्यों री, नाचेगी नहीं, तो खाएगी क्या?’’

‘‘मेरे पास 2 हाथ हैं…’’ गोपुली अपने हाथों को देख कर बोली, ‘‘इन्हीं से कमाऊंगीखाऊंगी और तुम सब का पेट भी भरूंगी.’’

तीसरे दिन उस गांव में पटवारी आया. वह गोपुली के मायके का था, इसलिए वह गोपुली से भी मिलने चला आया.

गोपुली ने उस से पूछा, ‘‘क्यों बिशन दा, हमें सरकार की ओर से जमीन नहीं मिल सकती क्या?’’

‘‘उस पर तो हाड़तोड़ मेहनत करनी होती है,’’ पटवारी के कुछ कहने से पहले ही हयात ने कहा.

‘‘तो हराम की कब तक खाते रहोगे?’’ गोपुली पति हयात की ओर आंखें तरेर कर बोली, ‘‘निखट्टू रहने की आदत जो पड़ चुकी है.’’

‘‘जमीन क्यों नहीं मिल सकती…’’ पटवारी ने कहा, ‘‘तुम लोग मुझे अर्जी लिख कर तो दो.’’

‘‘फिलहाल तो मुझे यहींकहीं मजदूरी दिलवा दो,’’ गोपुली ने कहा.

‘‘सड़क पर काम कर लेगी?’’ पटवारी ने पूछा.

‘‘हांहां, कर लूंगी,’’ गोपुली को एक नई राह दिखाई देने लगी.

‘‘ठीक है…’’ पटवारी बिशन उठ खड़ा हुआ, ‘‘कल सुबह तुम सड़क पर चली जाना. वहां गोपाल से बात कर लेना. वह तुम्हें रख लेगा. मैं उस से बात कर लूंगा.’’

सुबह बिस्तर से उठते ही गोपुली ने 2 बासी टिक्कड़ खाए और काम के लिए सड़क की ओर चल दी. वह उसी दिन से मजदूरी करने लगी. छुट्टी के बाद गोपाल ने उसे 40 रुपए थमा दिए.

गोपुली ने दुकान से आटा, नमक, चीनी, चायपत्ती खरीदी और अपने घर पहुंच गई. चूल्हा जला कर वह रात के लिए रोटियां बनाने लगी.

सास ने कहा, ‘‘ऐ बहू, तू तो बहुत ही समझदार निकली री.’’

‘‘क्या करें…’’ गोपुली बोली, ‘‘परिवार में किसी न किसी को तो समझदार होना ही पड़ता है.’’

गोपुली सासससुर के लिए रोटियां परोसने लगी. उन्हें खिलाने के बाद वह खुद भी पति के साथ रोटियां खाने लगी.

हयात ने पानी का घूंट पी कर पूछा, ‘‘तुझे यह सब कैसे सूझा?’’

गोपुली ने उसे उलाहना दे दिया, ‘‘तुम लोग तो घर में चूडि़यां पहने हुए होते हो न. तुम ने तो कभी तिनका तक नहीं तोड़ा.’’

इस पर हयात ने गरदन झुका ली.

गोपुली को लगने लगा कि उस निठल्ले परिवार की बागडोर उसे ही संभालनी पड़ेगी. वह मन लगा कर सड़क पर मजदूरी करने लगी.

एक दिन उस ने गोपाल से पूछा, ‘‘मैं उन्हें भी काम दिलवाना चाहती हूं.’’

‘‘हांहां…’’ गोपाल ने कहा, ‘‘काम मिल जाएगा.’’

गोपुली जब घर पहुंची, तो हयात कोने में बैठा हुआ चिलम की तैयारी कर रहा था. गोपुली ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘ये गंदी आदतें छोड़ दो. कल से मेरे साथ तुम भी सड़क पर काम किया करो. मैं ने गोपाल से बात कर ली है.’’

‘‘मैं मजदूरी करूंगा?’’ हयात ने घबरा कर पूछा.

‘‘तो औरत की कमाई ही खाते रहोगे,’’ गोपुली ने ताना मारा.

‘‘नहीं, ऐसी बात तो नहीं है,’’ हयात सिर खुजलाते हुए बोला, ‘‘तुम कहती हो, तो तुम्हारे साथ मैं भी कर लूंगा.’’

दूसरे दिन से हयात भी सड़क पर मजदूरी करने लगा. अब उन्हें दोगुनी मजदूरी मिलने लगी. गोपुली को सासससुर का खाली रहना भी अखरने लगा.

एक दिन गोपुली ने ससुर से पूछा, ‘‘क्या आप रस्सियां बंट लेंगे?’’

‘‘आज तक तो नहीं बंटीं,’’ पनराम ने कहा, ‘‘पर, तुम कहती हो तो…’’

‘‘खाली बैठने से तो यही ठीक रहेगा…’’ गोपुली बोली, ‘‘दुकानों में उन की अच्छी कीमत मिल जाया करती है.’’

‘‘बहू, मुझे भी कुछ करने को कह न,’’ सास ने कहा.

‘‘आप लंबी घास से झाड़ू बना लिया करें,’’ गोपुली बोली.

अब उस परिवार में सभी कमाऊ हो गए थे. एक दिन गोपुली सभापति के घर जा पहुंची और उन से कहने लगी, ‘‘ताऊजी, हमें भी जमीन दिलवाइए न.’’

तभी उधर ग्राम सेवक चले आए. सभापति ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं तो तेरे ससुर से कब से कहता आ रहा हूं कि खेती के लिए जमीन ले ले, पर वह तो बिलकुल निखट्टू है.’’

‘‘आप हमारी मदद कीजिए न,’’ गोपुली ने ग्राम सेवक से कहा.

ग्राम सेवक ने एक फार्म निकाल कर गोपुली को दे दिया और बोले, ‘‘इस पर अपने दस्तखत कर दो.’’

‘‘नहीं,’’ गोपुली बोली, ‘‘इस पर मेरे ससुर के दस्तखत होंगे. अभी तो हमारे सिर पर उन्हीं की छाया है.’’

‘‘ठीक है…’’ सभापति ने कहा, ‘‘उन्हीं से करा लो.’’

गोपुली खुशीखुशी उस फार्म को ले कर घर पहुंची और अपने ससुर से बोली, ‘‘आप इस पर दस्तखत कर दें.’’

‘‘यह क्या है?’’ ससुर ने पूछा.

गोपुली ने उन्हें सबकुछ बतला दिया.

पनराम ने गहरी सांस खींच कर कहा, ‘‘अब तू ही हम लोगों की जिंदगी सुधारेगी.’’

उस दिन आंगन में सास लकड़ी के उसी संदूक को खोले बैठी थी, जिस में नाचमुजरे का सामान रखा हुआ था. गोपुली को देख उस ने पूछा, ‘‘हां तो बहू, इन घुंघरुओं को फेंक दूं?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली ने मना करते हुए कहा, ‘‘ये पड़े रहेंगे, तो गुलामी के दिनों की याद दिलाते रहेंगे.’’

गोपुली ने उस परिवार की काया ही बदल दी. उस के साहस पर गांव वाले दांतों तले उंगली दबाने लगे. घर के आगे जो भांग की क्यारियां थीं, वहां उस ने प्याजलहसुन लगा दिया था.

सासससुर भी अपने काम में लगे रहते. पति के साथ गोपुली सड़क पर मजदूरी करती रहती.

गोपुली की शादी को 3 साल हो चुके थे, लेकिन अभी तक उस के पैर भारी नहीं हुए थे. सास जबतब उस की जांचपरख करती रहती. एक दिन उस ने पूछा, ‘‘बहू, है कुछ?’’

‘‘नहीं…’’ गोपुली मुसकरा दी, ‘‘अभी तो हमारे खानेखेलने के दिन हैं. अभी क्या जल्दी है?’’

सास चुप हो गई.

हयात और पनराम ने भांग छोड़ दी. अब वे दोनों बीडि़यां ही पी लेते थे.

एक दिन गोपुली ने पति से कहा, ‘‘अब बीड़ी पीना छोड़ दो. यह आदमी को सुखा कर रख देती है.’’

‘‘ठीक?है,’’ हयात ने कहा, ‘‘मैं कोशिश करूंगा.’’

आदमी अगर कोशिश करे, तो क्या नहीं कर सकता. गोपुली की कोशिशें रंग लाने लगीं. अब उसे उस दिन का इंतजार था, जब उसे खेती के लिए जमीन मिलेगी.

उस दिन सभापति ने हयात को अपने पास बुलवा लिया. उन्होंने उसे एक कागज थमा कर कहा, ‘‘ले रे, सरकार ने तुम को खेती के लिए जमीन दी है.’’

‘‘किधर दी है ताऊजी?’’ हयात ने पूछा.

‘‘मोहन के आगे सुंगरखाल में,’’ सभापति ने बताया.

हयात ने घर जा कर जमीन का कागज गोपुली को दे दिया, ‘‘गोपुली, सरकार ने हमें खेती के लिए जमीन दे दी है.’’

गोपुली ने वह कागज ससुर को थमा दिया, ‘‘मालिक तो आप ही हैं न.’’

पनराम ने उस सरकारी कागज को सिरमाथे लगाया और कहा, ‘‘तुम जैसी बहू सभी को मिले.’’

दीवाली स्पेशल -भाग 2 : जिंदगी जीने का हक

 

 

 

 

 

 

 

 

जूही के आते ही मानो घर में बहार आ गई. सभी बहुत खुश और संतुष्ट नजर आते थे लेकिन केशव अब प्रभव की शादी के लिए बहुत जल्दी मचा रहे थे. प्रभव ने कहा भी कि उसे इत्मीनान से परीक्षा दे लेने दें और वैसे भी जल्दी क्या है, घर में भाभी तो आ ही गई हैं.

‘‘तभी तो जल्दी है, जूही सारा दिन घर में अकेली रहती है. लड़की हमें तलाश करनी है और तैयारी भी हमें ही करनी है. तुम इत्मीनान से अपनी परीक्षा की तैयारी करते रहो. शादी परीक्षा के बाद करेंगे. पास तो तुम हो ही जाओगे.’’अपने पास होने में तो प्रभव को कोई शक था ही नहीं सो वह बगैर हीलहुज्जत किए सपना से शादी के लिए तैयार हो गया. लेकिन हनीमून से लौटते ही यह सुन कर वह सकते में आ गया कि पापा प्रणव की शादी की बात कर रहे हैं.

‘‘अभी इसे फाइनल की पढ़ाई इत्मीनान से करने दीजिए, पापा. शादीब्याह की चर्चा से इस का ध्यान मत बटाइए,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘भाभी की कंपनी के लिए सपना आ ही गई है तो इस की शादी की क्या जल्दी है?’’

‘‘यही तो जल्दी है कि अब इस की कोई कंपनी नहीं रही घर में,’’ केशव ने कहा.

‘‘क्या बात कर रहे हैं पापा?’’ प्रभव हंसा, ‘‘जब देखिए तब मैरी के लिटिल लैंब की तरह भाभी से चिपका रहता है और अब तो सपना भी आ गई है बैंड वैगन में शामिल होने को.’’

सपना हंसने लगी.

‘‘लेकिन देवरजी, भाभी के पीछे क्यों लगे रहते हैं यह तो पूछिए उन से.’’

‘‘जूही मुझे बता चुकी है सपना, प्रणव को इस की ममेरी बहन प्रिया पसंद है, सो मैं ने इस से कह दिया है कि अपने ननिहाल जा कर बात करे,’’ कह कर केशव चले गए.

‘‘जब बापबेटा राजी तो तुम क्या करोगे प्रभव पाजी?’’ अभिनव हंसा, ‘‘काम तो इस ने पापा के साथ ही करना है. पहली बार में पास न भी हुआ तो चलेगा लेकिन जूही, तुम्हारे मामाजी तैयार हो जाएंगे अधकचरी पढ़ाई वाले लड़के को लड़की देने को?’’

‘‘आप ने स्वयं तो कहा है कि देवरजी को काम तो पापा के साथ ही करना है सो यही बात मामाजी को समझा देंगे. प्रिया का दिल पढ़ाई में तो लगता नहीं है सो करनी तो उस की शादी ही है इसलिए जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है मामाजी के लिए.’’

जल्दी ही प्रिया और प्रणव की शादी भी हो गई. कुछ लोगों ने कहा कि केशव जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए और कुछ लोगों की यह शंका जाहिर करने पर कि बच्चों के तो अपनेअपने घरसंसार बस गए, केशव के लिए अब किस के पास समय होगा और वह अकेले पड़ जाएंगे, अभिनव बोला, ‘‘ऐसा हम कभी होने नहीं देंगे और होने का सवाल भी नहीं उठता क्योंकि रोज सुबह नाश्ता कर के सब इकट्ठे ही आफिस के लिए निकलते हैं और रात को इकट्ठे आ कर खाना खाते हैं, उस के बाद पापा तो टहलने जाते हैं और हम लोग टीवी देखते हैं, कभीकभी पापा भी हमारे साथ बैठ जाते हैं. रविवार को सब देर से सो कर उठते हैं, इकट्ठे नाश्ता करते हैं…’’

‘‘फिर सब का अलगअलग कार्यक्रम रहता है,’’ केशव ने अभिनव की बात काटी, ‘‘यह सिलसिला कई साल से चल रहा है और अब भी चलेगा, फर्क सिर्फ इतना होगा कि अब मैं भी छुट्टी का दिन अपनी मर्जी से गुजारा करूंगा. पहले यह सोच कर खाने के समय पर घर पर रहता था कि तुम में से जो बाहर नहीं गया है वह क्या खाएगा लेकिन अब यह देखने को सब की बीवियां हैं, सो मैं भी अब छुट्टी के रोज अपनी उमर वालों के साथ मौजमस्ती और लंचडिनर बाहर किया करूंगा.’’

‘‘बिलकुल, पापा, बहुत जी लिए… आप हमारे लिए. अब अपनी पसंद की जिंदगी जीने का आप को पूरा हक है,’’ प्रणव बोला.

‘‘लेकिन इस का यह मतलब नहीं है कि पापा बाहर लंचडिनर कर के अपनी सेहत खराब करें,’’ प्रभव ने कहा, ‘‘हम में से कोई तो घर पर रहा करेगा ताकि पापा जब घर आएं तो उन्हें घर खाली न मिले.’’

‘‘हम इस बात का खयाल रखेंगे,’’ जूही बोली, ‘‘वैसे भी हर सप्ताह सारा दिन बाहर कौन रहेगा?’’

‘‘और कोई रहे न रहे मैं तो रहा करूंगा भई,’’ केशव हंसे.

‘‘यह तो बताएंगे न पापा कि जाएंगे कहां?’’ प्रणव ने पूछा.

‘‘कहीं भी जाऊं, मोबाइल ले कर जाऊंगा, तुझे अगर मेरी उंगली की जरूरत पड़े तो फोन कर लेना,’’ केशव प्रिया की ओर मुड़े, ‘‘प्रिया बेटी, इसे अब अपना पल्लू थमा ताकि मेरी उंगली छोड़े.’’

लेकिन कुछ रोज बाद प्रिया ने खुद ही उन की उंगली थाम ली. एक रोज जब रात के खाने के बाद वह घूमने जा रहे थे तो प्रिया भागती हुई आई बोली, ‘‘पापाजी, मैं भी आप के साथ घूमने चलूंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि आप सड़क पर अकेले घूमते हैं और मैं छत पर तो क्यों न हम दोनों साथ ही टहलें?’’ प्रिया ने उन के साथ चलते हुए कहा.

‘‘मगर तुम छत पर अकेली क्यों घूमती हो?’’

‘‘और क्या करूं पापाजी? प्रणव को तो 2-3 घंटे पढ़ाई करनी होती है और मुझे रोशनी में नींद नहीं आती, सो जब तक टहलतेटहलते थक नहीं जाती तब तक छत पर घूमती रहती हूं.’’

‘‘टीवी क्यों नहीं देखतीं?’’

‘‘अकेले क्या देखूं, पापाजी? सब लोग 1-2 सीरियल देखने तक रुकते हैं फिर अपनेअपने कमरों में चले जाते हैं.’’

 

कर्ज बना जी का जंजाल: खानदान के 9 लोगों की मौत

 

 

त्यौहार 2022: फ्रैंडशिप- नैना ने अपना चेहरा क्यों छिपा लिया

चोखी ढाणी में नृत्य  की आवाज तेज होने लगी थी और रात के आंचल में सितारों की चमक गहरी हो चली थी. नैना ने अपना चेहरा छिपा लिया लेकिन क्यों…

त्यौहार 2022: अंधविश्वास- क्या विजय के परिवार को सजा मिली

राधा बाजार से घर नहीं लौटी, तो उस की ससुराल वालों ने पूरा दिन हरेक परिचित के घर ढूंढ़ने के बाद चिंतित हो कर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. आधी रात को अचानक पुलिस का फोन आया कि वह अस्पताल में है. पता पूछ कर सभी लोग उसे देखने पहुंचे, अर्धमूर्च्छित अवस्था में उस ने अपने पति विजय को बताया कि जब वह बाजार से लौट रही थी तो पीछे से आ रही कार में सवार 4 लोगों ने उस के मुंह को हाथों से जोर से दबा कर जबरदस्ती अपनी कार में बैठा लिया. सुनसान स्थान पर ले जा कर उस के साथ बलात्कार करने के बाद उसे सड़क के किनारे छोड़ कर भाग गए. कार की जलती हैडलाइट की रोशनी में किसी भलेमानस ने उसे सड़क पर पड़ा देख कर अस्पताल पहुंचा दिया था.

उस के पति विजय के चेहरे के भाव जो पहले दुर्घटना की कल्पना कर के सहानुभूतिपूर्ण थे, वे अचानक बलात्कार की बात सुन कर कठोर हो गए. उस ने अभी तक अपने जिन हाथों को अपनी पत्नी के हाथों में उलझा रखा था, झटके से अलग किया और अपने परिवार वालों को तुरंत वापस घर चलने का आदेश दिया. परिवार वाले उस की बात मानने को तैयार हो गए, क्योंकि दोनों के प्रेमविवाह के वे आरंभ से ही विरोधी थे और यह विरोध उस के साथ प्रतिदिन के उन के व्यवहार से साफ झलकता भी था. लौटते हुए विजय ने अपनी ससुराल वालों को उन की बेटी की स्थिति के बारे में सूचना दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझी.

राधा के मांबाप सूचना मिलते ही अस्पताल पहुंच गए. राधा 2 दिन अस्पताल में रही, लेकिन विजय एक बार भी उस से मिलने नहीं आया. मांबाप ने उस को फोन भी किया, लेकिन उस ने फोन नहीं उठाया. अस्पताल से छुट्टी होने के बाद वे दोनों राधा को ले कर उस की ससुराल पहुंचे, तो उन लोगों ने कहा, ‘‘जहां इस ने मुंह काला किया है, वहीं जाए, इस घर में इस के लिए कोई जगह नहीं है.’’

‘‘लेकिन इस की गलती क्या है?’’ राधा के पिता ने पूछा, तो विजय ने कहा, ‘‘हमें क्या पता, यह अपनी मरजी से गई है या कोई झूठी कहानी गढ़ रही है.’’ यह सुन कर राधा जोरजोर से रोने लगी. उस ने विजय के इस बदले रूप की कभी कल्पना भी नहीं की थी.

उस की सास बोली, ‘‘मैं तो पहले ही विजय से कह रही थी कि इस कुलच्छनी के लच्छन ठीक नहीं हैं, लेकिन मेरी सुनता ही कौन है. अब मेरे बेटे को मेरी बात समझ में आ रही है. ले जाओ इस को यहां से, ऐसी कुलटा मेरी बहू नहीं हो सकती.’’

यह सुन कर राधा के पिता ने आक्रोश में विजय को मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि उस ने उन का हाथ पकड़ कर उन को जोर का धक्का दिया. उन्हें उठाने राधा गई तो उसे भी धक्का दे कर निकल जाने को कहा. तीनों वापस जाने के लिए घर से बाहर निकलने लगे तो राधा के पिता बोले, ‘‘तुम अपने घर की बहू का अपमान कर के उसे घर से निकाल रहे हो, तुम कभी सुखी नहीं रह सकते. अब तुम चाहोगे तो भी यह कभी वापस नहीं आएगी. जितनी जल्द हो सके तलाक की कार्यवाही शुरू कर दो, ताकि तुम्हें इस से मुक्ति मिल जाए.’’ इतना कह कर वे चले गए.  विजय के मांबाप तो चाहते ही थे कि कोई बहाना मिले, विजय को राधा से अलग करने का. विजय को भी अपने निर्णय पर कोई अफसोस नहीं था. घर की शुद्घि के लिए पंडित बुलाया गया. उस को हवन करने का कारण बताया गया तो कार्य संपन्न होने के बाद उस ने विजय के मातापिता से कहा, ‘‘मैं अच्छी जन्मपत्री देख लेता हूं, आप के बेटे की है तो दिखाइए, मैं उस के भविष्य के बारे में बताऊंगा कि उस का दूसरा विवाह कहां होगा. यदि कोई अड़चन होगी तो उपाय भी बताऊंगा.’’

मां पंडित के इस प्रस्ताव से फूली नहीं समाई, विजय इस अप्रत्याशित बात को सुन कर अपनी मां और पंडितजी को मूकदर्शक बन कर देख रहा था. इस से पहले कि वह कुछ बोले, मां लपक कर अलमारी से उस की जन्मपत्री निकाल लाई. पंडितजी ने सरसरी निगाह जन्मपत्री पर डाली और उंगलियों पर कुछ गणना कर के कहा, ‘‘अरे, इस का तो निश्चित ही बहुत जल्दी दूसरा विवाह  है, पहले आप को किसी ने बताया नहीं? वह लड़की तो इस घर के लायक थी ही नहीं. हां, अभी एक  दुविधा है, जिस को मिटाने के लिए आप को कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ेगा. आप की सहमति हो तो बताऊं?’’ इतना कह कर पंडित उत्तर की प्रतीक्षा करने लगा.

मां जो अभी तक उन की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी, उन के रुकते ही बोली, ‘‘हां, हां, पंडितजी बताइए, आप जो भी कहेंगे, हम अपने बेटे की खुशी के लिए करेंगे, आप बताइए तो सही.’’ उन की उत्सुकता देखते ही बन रही थी. अब विजय भी उन की बातें तटस्थ हो कर सुन रहा था. उस ने शायद सोचा कि एक बार मां के विरुद्ध जा कर उस ने जो गलती की है, वह अब नहीं दोहराएगा. पंडितजी बड़ी गंभीरता से जन्मपत्री पढ़ने लगे और थोड़ी देर बाद बोले, ‘‘एक तो जिस कमरे में विजय अपनी पत्नी के साथ रहता था, उस कमरे में अब न रहे, क्योंकि वहां पहली पत्नी के बुरे साए का वास है, इसलिए उस में रह कर वह कभी सुखी दांपत्य जीवन नहीं व्यतीत कर सकेगा, बल्कि उस में किसी को भी नहीं रहना चाहिए,’’ फिर जन्मपत्री पर एक जगह उंगली टिकाते हुए बोले, ‘‘अरे, एक बात बड़ी अच्छी है कि आप की बहू स्वयं आप के घर चल कर आएगी, किराए के लिए कमरा पूछती हुई. उस को मना मत कीजिएगा और वही कमरा उसे किराए पर दे दीजिएगा.’’

‘‘लेकिन…’’ विजय के पिता की बात बीच में काटते हुए पंडित बोला, ‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं. जैसे भी हो, उस के साथ निर्वाह करना है आप को, आखिर वह आप की होने वाली बहू ही तो होगी. और यह लड़की आप के घर के लिए बहुत शुभ होगी. उस के आते ही आप के सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. बस, आप उस के आने का इंतजार कीजिए. जहां तक मैं समझता हूं, अगले महीने तक उसे आ जाना चाहिए. अब मैं चलता हूं. मुझे दूसरी जगह भी जाना है.’’

सब ने उन के पैर छुए, दक्षिणा देने लगे तो उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, बिना कार्य संपन्न हुए मैं दक्षिणा नहीं लेता. हां, संबंध हो जाए तो, विवाह की रस्म अदा करने के लिए मुझे बुलाना मत भूल जाइएगा.’’ इतना कह कर अपना झोला संभालते हुए वे दरवाजे की ओर लपके, तो मां बोली, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी, आप को हम कैसे भूल सकते हैं. आप ने तो हमें रास्ता दिखा कर हमारे सारे कष्ट ही दूर कर दिए. धन्यवाद, लेकिन अपना मोबाइल नंबर तो दीजिए.’’

‘‘अरे, मैं मोबाइल रखना पसंद ही नहीं करता. पूजा के समय घंटी बजती है तो ध्यान भंग होता है. मैं उसी मंदिर में मिलूंगा, जहां मिला था. मेरा नाम पवन है, किसी से भी पूछ लीजिएगा.’’

पंडित के जाने के बाद, सभी एकदूसरे को अवाक देख रहे थे. थोड़ी देर बाद मां बोली, ‘‘मैं ने ऐसा पंडित नहीं देखा जिसे दक्षिणा का भी लालच न हो, और दोनों हाथ जोड़ कर, आंखें मूंद कर तथा नतमस्तक हो कर मन ही मन उन्हें धन्यवाद दिया. इस के बाद नई बहू के आगमन की तैयारी में कमरे को खाली किया गया और वह दिन भी आ गया जब एक सुंदर सी युवती किराए के लिए कमरा ढूंढ़ती हुई उन के घर आ पहुंची. घर के सभी लोग उस को ऐसे देख रहे थे मानो कोई सुखद सपना वास्तविकता में परिवर्तित हो गया हो. उस के हावभाव तथा लिबास को देख कर थोड़ा सकुचाते हुए मां बोली, ‘‘बेटी, एक कमरा है तो हमारे पास, लेकिन तुम्हारे लायक नहीं है.’’

उन की बात बीच में ही काटते हुए वह युवती बोली, ‘‘कैसी बात करती हैं आंटी, मुझे सिर्फ रात काटनी है, पूरा दिन तो मैं औफिस में रहती हूं. खाना भी वहीं खाती हूं, शनिवार और इतवार को अपने मम्मीपापा के पास चली जाती हूं.’’ कमरा देखतेदेखते उस युवती ने अपना परिचय देते हुए कहा कि उस का बहुत बड़ा बंगला है, लेकिन उस के मातापिता हर समय उस के विवाह को ले कर उस के पीछे पड़े रहते हैं, इसलिए वह उन से दूर रह कर नौकरी कर रही है. उस की जिद है कि जब तक उसे उस की पसंद का लड़का नहीं मिलेगा, वह विवाह नहीं करेगी, क्योंकि आजकल अधिकतर लड़के चरित्रहीन होते हैं. मां मन ही मन फूली नहीं समाई कि उस के बेटे से अधिक चरित्रवान और कौन होगा, उन्हें पंडितजी की भविष्यवाणी सत्य होती हुई प्रतीत हुई.

युवती, जिस ने अपना नाम चांदनी बताया था, सामान सहित उन के  पास रहने को आ गई और बहुत जल्दी परिवार में घुलमिल गई. इस से पहले कि विजय उस में रुचि लेता, वही उस में दिलचस्पी दिखाने लगी. मां भी अपनी भावी बहू की तरह उस से व्यवहार करने लगी. एक बार सारे परिवार को किसी रिश्तेदार के यहां शादी में शिरकत करने के लिए 3-4 दिनों के लिए किसी दूसरे शहर जाना पड़ा. जाते समय संकोचवश कि चांदनी को बुरा न लगे, सारा घर खुला छोड़ कर ही वे विवाह में सम्मिलित होने चले गए.

वहां पर अपने घर में भी शहनाइयों की गूंज की कल्पना कर के मां के पैर भी जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. चौथे दिन सभी आंखों में सपने संजोए घर लौटे तो देखा कि कमरे का दरवाजा खुला है. वे यह कल्पना कर बहुत खुश हुए कि चांदनी आज औफिस से छुट्टी ले कर उन का घर पर इंतजार कर रही है. लेकिन जैसे ही कमरे के अंदर पैर रखा, पैरों के तले की जमीन खिसक गई. पूरे कमरे में सामान बिखरा पड़ा था. जिन अलमारियों को सहेजने में मां का अधिकतर समय बीतता था, वे विधवा की मांग की तरह उजड़ी दिखाई पड़ रही थीं. सारा सामान धराशायी और जेवर का डब्बा नदारद देख कर वे सभी सन्न रह गए.

अचानक विजय, चांदनी के कमरे की ओर दौड़ा, कीमती सामान से सुसज्जित कमरा वीरान हो गया था, जैसे किसी ने उसे धोपोंछ दिया हो. सब को वस्तुस्थिति समझने में देर नहीं लगी और लुटेपिटे, सकते की हालत में शब्दहीन, सिर पकड़ कर एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. सारे सामान का जायजा लिया गया तो कम से कम 20 लाख रुपए की चपेट में वे आ गए थे. थोड़ा सामान्य होने के बाद विजय उस पंडित से मिलने के लिए मंदिर गया तो पूछने पर पता लगा कि वहां पवन नाम का पंडित कभी कोई था ही नहीं. झूठी खुशी प्राप्त करने की चाहत में, अच्छे कर्म करने के स्थान पर अंधविश्वास में पड़ कर, पूरा परिवार बरबाद हो गया था.

सास, औरत हो कर भी, अपनी बहू का दर्द नहीं समझ पाई. उस के पिता के शब्द उन के कानों में गूंजने लगे कि घर की बहू को घर से निकाल कर वे कभी सुखी नहीं रह सकते, आज सच में बहू का अनादर करने से उन के लालचीपन और अंधविश्वास का परिणाम सत्य का जामा पहन कर सामने खड़ा था. वे लोग प्रायश्चित्त करने के लिए राधा के घर भी गए, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी, पता चला कि वह किसी दूसरे के घर की शोभा बन चुकी थी. सच है ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो युवती के वर्तमान में रुचि रखते हैं, इतिहास में नहीं.

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