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सब से बड़ा सुख -भाग 2: कमला के पति क्या करते थे?

वे समझ न सकीं कि बेटाबहू किस विषय पर वार्त्तालाप कर रहे हैं. पर सोचा, 1-2 दिन में तो पता चल ही जाएगा. दूसरे दिन बेटा उन के कमरे में आया. उन्हें लगा कि उन्हें दुखी देख शायद वह राजू को लेने जा रहा है और यही खुशखबरी सुनाने आया है. ब्रजेश ने उन से आंखे चुराते हुए कहा, ‘‘मां, मैं देख रहा हूं कि राजू के जाने के बाद से तुम बहुत अकेलापन महसूस कर रही हो. तुम्हारी बहू और मैं औफिस चले जाते हैं. इधर मेरा बाहर जाने का कार्यक्रम बहुत बढ़ गया है. तुम्हारी बहू भी व्यवसाय में मेरी बहुत सहायता करती है. कभीकभी तो हम दोनों को ही बाहर जाना पड़ सकता है, ऐसे में तुम्हारी देखभाल करने वाला कोईर् नहीं रहेगा. ‘‘हम दोनों ने सोचा है कि तुम्हें ‘वृद्ध आश्रम’ में भेज दें. वहां तुम्हारी देखभाल भी हो जाएगी और मन भी लग जाएगा. तुम्हारी सुखसुविधा का सभी प्रबंध हम कर देंगे. पैसे की कोई चिंता नहीं है. वैसे सबकुछ तुम्हारा ही है,’’ फिर खिसियानी हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘हम दोनों तो देखरेख के लिए तुम्हारे मैनेजर हैं.’’

वे अवाक पागलों के समान बेटे का मुंह ताकती रहीं. थोड़ी देर के लिए उन्हें लगा कि शरीर का खून  किसी ने खींच लिया है, पर जल्द ही उन का स्वाभिमान जाग उठा. उन्होंने गरदन उठा कर कहा, ‘‘ठीक है बेटा, तुम दोनों ने ठीक ही सोचा होगा. वैसे भी इस घर को मेरी कोई आवश्यकता नहीं रह गई है.’’ अपमान से दुखी पलकों के ऊपर विवशता के जल की बूंदें टपक पड़ीं. थोड़ी देर बाद ब्रजेश बोला, ‘‘इसी शहर में यह आश्रम खुला है. यहां सुखसुविधा का सब इंतजाम है. बड़ेबड़े लोग इसे मन लगाने का स्थान समझ कर रह रहे हैं. वैसे भी, जब तुम्हारा मन न लगे तो घर तो है ही, वापस चली आना.’’ पोते के चलते समय के शब्द उन्हें याद आने लगे. उस ने कैसे विश्वास से कहा था, ‘दादी, आज मातापिता मुझे घर से निकाल कर होस्टल भेज रहे हैं, किसी दिन ये तुम्हें भी घर से निकाल देंगे.’ पोते की भविष्यवाणी सचमुच सत्य साबित हो गई थी. उन्होंने अभिमान से गरदन उठा कर कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम ने सभी इंतजाम पहले से कर लिया होगा. वैसे भी, यहां रुकने की तुक नहीं है. मैं भी चाहती हूं कि अपनी जिम्मेदारी से तुम दोनों को मुक्त कर दूं.’’ ब्रजेश मां से आंखें न मिला सका. चलतेचलते बोला, ‘‘इतनी जल्दी भी क्या है. 2-4 दिनों बाद चली जाना.’’ कमला ने कहा, ‘‘मैं 2 घंटे बाद चली जाऊंगी, ड्राइवर को स्थान बता देना.’’

लगभग 60 सालों तक सुख की शय्या पर सोई उन की काया ने कांटों की चुभन का अनुभव नहीं किया था. जीवन के 2 पहलू भी होते हैं, यह अब उन्होंने जाना. अपने खू से सींची औलाद भी पराई हो सकती है, यह भी आज ही उन्हें पता चला. उन के अंतर्मन से आवाज आई, ‘मैं तो तन से स्वस्थ तथा धन से परिपूर्ण होते हुए भी इतनी सी चोट से घबरा उठी हूं, पर उन वृद्धों की मनोस्थिति क्या होती होगी, जो तन, मन तथा धन तीनों से वंचित हैं.’ अब उन्हें अपना दुख नगण्य लगा. एक अदम्य उत्साह तथा विश्वास से उन्होंने अपना पथ चुन लिया था. चैकबुक और अपना जरूरी सामान उन्होंने सूटकेस में रख लिया और बिना बेटाबहू की तरफ देखे गाड़ी में बैठ गईं.

रिश्तेदार: सौम्या के जीवन में अकेलापन दूर करने के लिए किसने सहारा दिया

नितिन की आंखें खुशी से भर उठीं. उस की मां ने स्नेह के साथ कहा, ‘‘बेटे, तुम दोनों की जोड़ी बहुत खूबसूरत है और इस खूबसूरत रिश्ते को जोड़ने में मदद करने वाली सौम्याजी भी हमारी रिश्तेदार हैं.

त्यौहार 2022: ब्रेकफास्ट में बनाएं हेल्दी और टेस्टी बनाना ब्रैड केक

सुबह के ब्रेकफास्ट या शाम के नाश्ते में बनाना केक टेस्टी रेसिपी है, जिसके आप कभी भी मजे ले सकते हैं. इसे बनाने में एक घंटे से भी कम समय में लगता है. इसे आप किटी पार्टी, गेम नाइट और पिकनिक जैसे मौकों पर बना सकते हैं. वहीं इस रेसिपी को थोड़ा हेल्दी बनाना चाहते हैं तो आप सफेद चीनी को ब्राउन शुगर से भी बदल सकते हैं जो पहले से कहीं ज्यादा हेल्दी होगा. तो बिना देरी किए बनाना ब्रैड केक की हेल्दी रेसिपी को घर पर बनाएं और अपनी फैमिली और दोस्तों के साथ इसका मजा लें.

सामग्री

200 ग्राम मैदा

एक छोटी चम्मच बेंकिग पाउडर

एक चुटकी नमक

दो केले (अच्छी तरह पके हुए)

60 ग्राम मक्खन

125 ग्राम चीनी

ऐसे बनाएं…

-सबसे पहले मैदा में बेकिंग पाउडर और नमक डालकर छान लीजिए. किसी बड़े प्याले में पके केले छीलकर डालिए और अच्छी तरह उसे मैश कर लीजिए.

-अब मैश्ड बनाना में बटर और चीनी डालकर घोलिए. सारी चीजें अच्छी तरह मिल जाने के बाद बेकिंग पाउडर मिक्स मैदा को बनाना मिक्सचर में डालें और उसे तब तक मिलाते रहिए जब तक वह अच्छी तरह मिक्स ना हो जाए.

-अगर मिक्सचर ड्राई लग रहा है तो आप इसमें 2 से 3 टेबल स्पून पानी डाल सकते हैं. बेंकिग के लिए बर्तन को मक्खन से ग्रीस कर लीजिए.

-थोड़ा सा सूखा मैदा इस बर्तन में डाल दीजिए. ग्रीस हुई ट्रे में बनाना मिक्स डालिए और फैलाइए.

-अब ओवन को 180 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करें. मिक्सचर वाली ट्रे को करीब 30 मिनट के लिए बेक करने के लिए रखें.

-अगर यह गोल्डन ना हुआ हो तो 10 मिनट फिर से बेक करें. ठंडा होने के बाद अपनी मनपसंद शेप में काटे और सर्व करें.

गन्ना फसल में बैड प्लांटिंग विधि द्वारा अंत:फसलीकरण

मेहर चंद, अंकुर चौधरी एवं प्रीति शर्मा

हरियाणा प्रदेश में गन्ना फसल की बिजाई तकरीबन 1.40 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. शरदकालीन (सितंबर/ अक्तूबर माह) में बोआई फसल गन्ना क्षेत्रफल के लगभग 10-12 फीसदी हिस्से में की जाती है. अगेती शरदकालीन गन्ना की फसल वसंतकाल में बोए गए गन्ने से 20-25 फीसदी व पछेती बिजाई से 40-50 फीसदी अधिक पैदावार देती है व जल्दी पक कर तैयार हो जाती है.

गन्ने की फसल में आमदनी लगभग एक साल बाद मिलती है. वहीं सर्दी के मौसम में फसल की बढ़वार व फुटाव नहीं होता, परंतु इस दौरान गन्ना फसल पर बिना किसी बुरे असर के अंत:फसल उगा कर अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है.

वैसे तो गन्ने के साथ अंत:फसल का प्रचलन रहा है, परंतु आज के युग में प्रति एकड़ अधिक आमदनी के लिए गन्ने की फसल में वैज्ञानिक ढंग से अंत:फसलों को उगाना आवश्यक हो गया है.

आमतौर पर अंत:फसल की बिजाई के लिए समतल विधि का प्रयोग बिना लाइन के छींटा विधि से की जाती है, जिस से अंत:फसलों व गन्ने में अंत:क्रियाएं करने में मुश्किलें आती हैं और अंत:फसल की कटाई में परेशानी भी होती है.

बैड प्लांटिंग विधि द्वारा अंत:फसलीकरण

बैड प्लांटिंग विधि फसलों की बिजाई के लिए काफी मददगार साबित हुई है. बैड प्लांटर मशीन द्वारा 75-90 सैंटीमीटर की दूरी पर कूड़ में गन्ना और बैड पर अंत:फसल की बिजाई की जा सकती?है.

अंत:फसल के लिए निर्धारित बीज व खाद की मात्रा मशीन में डाल कर बिजाई करें. उस के बाद कूड़ों में सिफारिश की गई मात्रा में गन्ने की 2 आंखों वाला बीज व खाद डालें. पोरी ढकने वाले यंत्र या कस्सी से मिट्टी डाल कर आधे कूड़ की ऊंचाई तक हलका पानी लगाएं.

अंत:फसलीकरण के लाभ

सामान्य बिजाई की तुलना में इस बहुद्देशीय बिजाई तकनीक के और भी लाभ हैं. बीज की मात्रा 20-25 फीसदी तक कम और पानी की 20-30 फीसदी तक बचत होती है. प्रकाश, भूमि एवं प्रकाश तत्त्वों की उपयोग क्षमता में वृद्धि से अंत:फसलों का दाना मोटा और अधिक उपज मिलती है. जलभराव, क्षारीय/अम्लीय पानी वाले क्षेत्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है. पौधों की अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवारों का प्रकोप कम और अंत:क्रियाएं करने में आसानी हो जाती है.

दलहनी फसलें, जिन में हलकी सिंचाई आवश्यक है, परंतु अधिक पानी लगाने से नुकसान होता है. फसलों के लिए यह विधि उत्तम है. पानी देने के बाद यदि वर्षा आ जाती है, तो भी अंत:फसलों पर बुरा असर नहीं पड़ता, क्योंकि पानी नालियों द्वारा बाहर निकाला जा सकता है. इस से किसान के परिवार व कृषि मजदूरों को अतिरिक्त रोजगार मिलता है.

अंत:फसलों को दी गई सिंचाई गन्ने की फसल के लिए भी पर्याप्त रहती है. दलहनी फसलें गन्ने के साथ लेने से मुख्य फसल में

10-25 फीसदी कम नाइट्रोजन डालने की जरूरत पड़ती है. खाली जगह में अंत:फसल लेने से खरपतवार की समस्या कम हो जाती है. लहसुन, धनिया व प्याज जैसी अंत:फसलें गन्ने में चोटी बेधक व कंसुआ के प्रकोप को कम करती है.

अंत:फसलों के अवशेषों में भूमि में मिलाने से भूमि की भौतिक संरचना में सुधार आता है.

अंत:फसलीकरण के लिए मुख्य बातें

फसल का चुनाव : अंत:फसल की किस्म कम समय यानी 3 से 4 महीने में पकने वाली व सीधी बढ़ने वाली व कम शाखाओं वाली (गन्ने पर छाया न करें) हो, जो कम समय में पक कर तैयार हो जाए, जिस की पानी व खाद जैसी जरूरतें गन्ने की फसल जैसी हों और किसान अच्छी तरह से संभाल सके. जिस फसल को बेचने में कठिनाई न हो, जिस से गन्ना फसल में ज्यादा कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप न हो और फसल एकसाथ पक कर तैयार हो जाए, अंत:फसलीकरण के लिए उचित है.

सिंचाई : बैड प्लांटिंग में गन्ने के उचित जमाव के लिए पहली सिंचाई बिजाई के 1-2 दिन बाद व दूसरी सिंचाई 9-10 दिन बाद अवश्य करें. दूसरी सिंचाई न करने की अवस्था में पोरियों के ऊपर पपड़ी बन जाती है, जिस से जमाव प्रभावित होता है.

शुरू में सिंचाई अंत:फसल की जरूरत के मुताबिक करें और अंत:फसल की कटाई के बाद सिंचाई गन्ने की फसल के मुताबिक करें.

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन गन्ने की फसल के लिए नाइट्रोजन

अंत:फसल की कटाई के बाद डालें. अगर नाइट्रोजन पहले डाल दी जाए, तो अंत:फसल की बढ़वार ज्यादा हो जाएगी और वह मुख्य फसल को नुकसान पहुंचाएगी.

जिन किसानों के पास बहुद्देशीय मशीन है, वे अंत:फसल की खाद व बीज बिजाई के समय मशीन से ही डाल सकते हैं. जिन के पास मशीन नहीं है या ट्रैंच प्लांटिंग मशीन से बिजाई के साथ अंत:फसलीकरण करते हैं. वे अंत:फसल की खाद खेत तैयार करते समय आखिरी सुहागा लगाने से पहले डालें और गन्ने की बिजाई के समय की खाद सिफारिश की गई मात्रा में कूड़ों में ही डालें.

अंत:फसल में खाद डालने का समय वही होना चाहिए, जो अकेली फसल में है. दोनों फसलों की खाद की जरूरतें अलगअलग पूरी करें. अंत:फसल की खाद की मात्रा उस के द्वारा अधिगृहीत क्षेत्र पर निर्भर करेगी.

खरपतवार की रोकथाम

गन्ने की लाइन के अंदर के बजाय गन्ने की लाइनों के साथ उगने वाले खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं. विभिन्न परीक्षणों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि खरपतवार गन्ना फसल में पानी एवं प्रकाश की प्रतिस्पर्धा के अलावा लगभग गन्ने के मुकाबले 4 गुना नाइट्रोजन व फास्फोरस और 2.5 गुना पोटाश जमीन से ले लेते हैं. खरपतवार कुछ बीमारियों एवं कीटों को आश्रय देते हैं और गन्ना फसल में एक अप्रत्यक्ष नुकसान होता है.

गन्ने के खेत में मोथा, दूब, संकरी व चौड़ी पत्ती वाले घास और बरू होते हैं. खरपतवारों का घनत्व एवं प्रजाति, कृषि क्रियाओं, फसल चक्र में खरपतवारनाशकों के उपयोग पर निर्भर करते हैं. उप-उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गन्ने को उगने में 40-45 दिन लगते हैं और इसी दौरान विभिन्न प्रजाति के खरपतवार खेत में उग आते हैं. सब से पहले मोथा घास का जमाव होता है और जमीन को ढक लेता है और गन्ने के जमाव से पहले ही पानी एवं उर्वरकों के लिए प्रतिस्पर्धा कर के गन्ने के जमाव को प्रभावित करता है.

* अंत:फसलीकरण में एट्राजीन खरपतवारनाशक का प्रयोग न करें.

* वही खरपतवारनाशक प्रयोग में लाएं, जो दोनों फसलों के लिए सुरक्षित हो.

* अगर गेहूं अंत:फसल है, तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए एलग्रीप 8 ग्राम (प्रोडक्ट), 2,4-डी (80 फीसदी सोडियम नमक) 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 200-250 लिटर पानी में घोल कर फ्लैट फैन नोजल से बिजाई के 30-35 दिन बाद स्प्रे करें. लीडर 13 ग्राम प्रति एकड़ +0.5 फीसदी चिपचिपा पदार्थ 200-250 लिटर पानी में घोल कर बिजाई के 35 दिन बाद स्प्रे करने से संकरी व चौड़ी पत्ती वाली दोनों तरह की खरपतवारों की रोकथाम हो जाती है.

* अगर अंत:फसलें चना, मूंग, उड़द, मसरी, मटर, आलू, प्याज, लहसुन, बंदगोभी, फूलगोभी, मेथी, गांठ गोभी व धनिया है, तब स्टोंप 30 फीसदी 1.25-1.5 लिटर प्रति एकड़ बिजाई/रोपाई के बाद व खरपतवार जमाव से पहले

250 लिटर पानी में घोल कर स्प्रे करें.

* जिन अंत:फसलों में खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया जा सकता, उन में एक या 2 गुड़ाई पर्याप्त होती है.

सावधानियां

* इस मशीन को चलाने व संभालने के लिए उचित प्रशिक्षण लेना आवश्यक है, ताकि मशीन में आने वाली किसी भी प्रकार की रुकावट के साथ ही साथ समाधान किया जा सके. मशीन से बिजाई करते समय एक व्यक्ति मशीन के पीछेपीछे चले और ध्यान रखे कि खाद व बीज ठीक प्रकार से डल रहे हैं.

* इस विधि से मिलवां फसलें उगाने के लिए खेत अच्छी तरह समतल व तैयार होना चाहिए, ताकि पानी लगाने में कोई परेशानी न हो और पानी आधे कूड़ तक सीमित रहे.

* अंत:फसल की बिजाई सिफारिश की गई गहराई तक ही सुनिश्चित करें, नहीं तो अंत:फसल का जमाव प्रभावित हो सकता है.

यूं ध्वस्त हुए भ्रष्टाचार के टॉवर

नोएडा में सुपरटेक बिल्डर्स ने गगनचुंबी इमारतों एपेक्स और सेयन की बालकनी में खड़े हो कर रोशनी में नहाए चमकते शहर का नजारा देखने का जो वादा किया था, वह अगर एक गुमान साबित हुआ तो उसे मुंह चिढ़ाता करप्शन भी कहा गया. आखिर ऐसी क्या वजह रही कि 30 मंजिली और 320 फीट से अधिक ऊंची इन इमारतों को ढहाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को दखल देनी पड़ी?

रविवार 28 अगस्त, 2022 की दोपहर 2 बज कर 31 मिनट के बाद नोएडा के 4 बुजुर्गों ने संतोष की सांस ली थी. उन्हें सालों तक चली लंबी अदालती लड़ाई के बाद एक बड़ी जीत जो मिली थी. वह अगर पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गई तो इस का एक सकारात्मक संदेश भी फैल गया कि एक न एक दिन करप्शन का धराशायी होना निश्चित है.

महज 8 सेकेंड में ही नोएडा की ट्विन टावर के नाम से चर्चित 2 बहुमंजिला इमारतें गिरा दी गई थीं. दोपहर को ठीक ढाई बजे इन्हें पलक झपकते ही करीब 3700 किलोग्राम बारूद ने ध्वस्त कर दिया. फिर इन की जगह था तो केवल मलबा और धुएं का गुबार. इस तरह से गिराई गई ये देश की सब से बड़ी बहुमंजिला इमारतें थीं.

एपेक्स (32 मंजिली) और सेयेन (30 मंजिला) नामक जुड़वां टावर को सुपरटेक बिल्डर्स के मालिक आर.के. अरोड़ा ने बनवाया था, जो भारतीय राजधानी में सब से ऊंचे कुतुब मीनार से भी ऊंची थी. बाद में पाया गया कि इन्हें बनाने में नियमों का उल्लंघन किया गया था, जिस में नोएडा अथौरिटी से ले कर उत्तर प्रदेश के 28 सरकारी अधिकारियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

नियमों को ताक पर रख कर बनाए गए ट्विन टावर के खिलाफ लड़ने वाले 4 बुजुर्गों की कहानी भी कुछ कम दिलचस्प नहीं है. उन्हें लालच के साथसाथ धमकियां भी मिलीं. एक बड़े बिल्डर के खिलाफ चंदा जुटा कर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ी. उन के हौसले और मेहनत के आगे बिल्डर की एक न चली. अंतत: उन के पक्ष में न केवल अदालती फैसला आया, बल्कि उस पर अमल भी हुआ.

उन में पहल करने वाले प्रमुख शख्स एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष उदयभान तेवतिया हैं. वह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल से रिटायर अधिकारी हैं. सुपरटेक के खिलाफ इस लड़ाई में उदयभान के साथ आने वाले एस.के. शर्मा, रवि बजाज और एम.के. जैन सामान्य नागरिक हैं. इन में एम.के. जैन का कोरोना महामारी के वक्त निधन हो गया था.

उन्होंने दिसंबर, 2012 में पहली बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिस का नेतृत्व उदयभान सिंह तेवतिया ने किया था. उन के द्वारा आरोप लगाया गया था कि बिल्डर आर.के. अरोड़ा जिस जगह पर ट्विन टावर बना रहे हैं, वह जगह पार्क के लिए निर्धारित थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन टावरों के निर्माण के दौरान उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट मालिक अधिनियम, 2010 का उल्लंघन किया गया है.

इस के मुताबिक केवल 16 मीटर की दूरी पर स्थित 2 टावरों ने कानून का उल्लंघन किया था. याचिकाकर्ताओं के आरोप के मुताबिक, इन दोनों टावरों को बगीचे के लिए आवंटित भूमि पर अवैध रूप से खड़ा किया गया था.

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए मामला आने से पहले, नोएडा प्रशासन ने 2009 में दायर योजना (40 मंजिलों वाले 2 अपार्टमेंट टावर) को मंजूरी दे दी थी.

इस मामले में अप्रैल 2014 में फैसला रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के पक्ष में आया था. इसी के तहत इन टावरों को गिराने का आदेश भी जारी किया गया. साथ ही यह आदेश भी दिया गया कि सुपरटेक को टावर गिराने का खर्च वहन करना चाहिए और उन लोगों को 14 फीसदी ब्याज के साथ पैसा वापस करना चाहिए, जिन्होंने यहां पहले से ही घर खरीदा है.

उसी वर्ष मई में सुपरटेक ने फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और दावा किया कि निर्माण कार्य उचित मानदंडों के मुताबिक ही किया गया है. इस पर अगस्त 2021 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि नियमों का उल्लंघन किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सेक्टर-93ए स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर को गिराने के लिए इस में 3700 किलोग्राम विस्फोटक लगाया गया था. इमारत से करीब 70 मीटर दूर रिमोट रखा गया था. दोपहर ठीक 2 बज कर 30 मिनट पर रिमोट का बटन दबाया गया और तेज धमाकों के साथ दोनों इमारतें मिट्टी में मिल गई थीं. इस के बाद कई मीटर तक धूल का गुबार छा गया.

300 करोड़ से ज्यादा की लागत से बने ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 20 करोड़ का खर्च आने की बात कही जा रही है. इन में से 5 करोड़ का भुगतान सुपरटेक कंपनी कर रही है और 15 करोड़ की राशि मलबा बेच कर जुटाई जाएगी.

नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रितु माहेश्वरी ने बताया कि करीब 60 हजार टन मलबा दोनों इमारतों से निकलेगा. इस में से करीब 7 हजार टन लोहा निकल सकता है. इन को बेच कर अच्छी रकम जुटाई जा सकती है. वैसे मौजूदा समय में इमारत की कीमत 800 करोड़ रुपए आंकी गई थी.

इस तरह से 79 वर्षीय उदयभान सिंह तेवतिया की यह बड़ी जीत थी. इस वक्त वह नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते हैं. उन्होंने इस पूरी लड़ाई का मुस्तैदी के साथ नेतृत्व किया. सभी तरह के दस्तावेज जुटाने और पत्राचार करने से ले कर विरोधियों के खिलाफ डट कर साथ देने वालों को जोड़े रखने का भी काम किया. इन दिनों वह एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.

तेवतिया अपनी लड़ाई और जीत के बारे में बताते हैं, ‘‘शुरुआत में बिल्डर ने बिल्डिंग प्लान तक नहीं दिया. कोर्ट जाने से पहले सभी अथौरिटीज को लेटर लिखा गया, जिस में तत्कालीन हाउसिंग मिनिस्टर आजम खान भी शामिल थे. इस की सुनवाई के बाद पहला निर्णय ही रेजिडेंट्स के हक में सुनाया गया.’’

उन्होंने अपने जीत पर खुशी जताते हुए कहा कि आखिरकार सच जीता और भ्रष्टाचारी हार गए. इस के ढहाए जाने का लाभ 3 महीने बाद तब दिखाई देगा, जब पूरा मलबा पूरी धूल खत्म हो जाएगी. अब नोएडा अथौरिटी के उन लोगों पर भी काररवाई होनी चाहिए, जिन्होंने रुपए ले कर ये टावर खड़े कराए थे.

तेवतिया इस बात को भी स्वीकारते हैं कि इतने बड़े बिल्डर के खिलाफ लड़ना आसान नहीं था. जब हमारा केस हाईकोर्ट में पहुंचा और बिल्डर को मुश्किलें दिखने लगीं, तब वह हम पर केस वापस लेने का दबाव बनाने लगे.

कुछ लोगों ने यह तक कहा कि बिल्डर बड़े लोग हैं, हर कोई उन की मुट्ठी में है. तुम उन का कुछ नहीं कर पाओगे, इसलिए ले दे कर बैठ जाओ. वरना अंजाम बुरा भी हो सकता है. फिर भी हम ने रेजिडेंट्स के दम पर हिम्मत नहीं हारी. हर स्तर पर हमें चुनौतियां मिलती गईं और हम उन को पार करते चले गए. संघर्ष के दम पर ही हम जीत पाए.

इस बड़ी कानूनी जंग में दूसरे सहयोगी एस.के. शर्मा हैं. वह अभी 74 साल के हैं और तेवतिया के साथ रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन में काम कर रहे हैं. अवैध टावर के बनाए जाने की आवाज सब से पहले शर्मा और तेवतिया ने ही उठाई थी.

एस.के. शर्मा भी नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते हैं. टेलिकौम डिपार्टमेंट से डिप्टी डीजी के पद से रिटायर हुए हैं. शर्मा कहते हैं, ‘‘उन के द्वारा ग्रीन एरिया गायब कर दिया गया था और वादे भी पूरे नहीं किए गए थे.’’

59 साल के एम.के. जैन सुपरटेक के खिलाफ लड़ने वालों में सब से कम उम्र के थे. पिछले साल कोरोना के चलते उन का निधन हो गया था. वह भी नोएडा के सेक्टर 93ए में ही रहते थे. नोएडा में उन की इलेक्ट्रिक पार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी.

एम.के. जैन हाउसिंग सोसाइटी रेजिडेंट्स की कानूनी समिति का हिस्सा थे. उन्होंने इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री की हुई थी. इस कारण उन्हें उन्हें तकनीकी जानकारी काफी अच्छी थी.

सुपरटेक से लड़ाई जीतने वालों में शामिल चौथे सदस्य 65 साल के रवि बजाज हैं. वह इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से रिटायर हैं. रवि बजाज भी पहले आरडब्लूए के सदस्य थे, उन्होंने निजी कारणों से 2021 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था.

इस जीत पर रवि बजाज कहते हैं, ‘‘हमें फ्लैट बुक करने के दौरान ब्रोशर में किड्स वाटर पार्क, ग्रीनरी सहित 4 वादे किए गए, लेकिन मिला कुछ नहीं. इस के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ने के कारण हम बहुत से घर के काम भी नहीं कर पाए. हम जैन को बहुत मिस करते हैं. वह सब से ज्यादा एनर्जी वाले थे और उन्हीं की वजह से इस लड़ाई की शुरुआत हुई थी.’’

बिल्डर के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए सोसाइटी में कानूनी समिति गठित की गई थी. इस समिति में करीब 40 लोग थे. सभी ने सोसाइटी से चंदा जुटा कर इस केस की कानूनी लड़ाई लड़ी और केस को अंजाम तक पहुंचाया. पहले 500-500 रुपए, फिर 3-3 हजार रुपए और सब से आखिर में 17-17 हजार रुपए का चंदा जुटाया गया था.

यानी कि ट्विन टावर का अवैध रूप से निर्माण करने में बिल्डर और नोएडा प्राधिकरण के कर्मचारियों द्वारा नियमों की जितनी अनदेखी की गई, उतनी ही बड़ी लड़ाई बिल्डर के खिलाफ आम नागरिकों को लड़नी पड़ी.

फ्लैट खरीददारों ने 2009 में आरडब्ल्यूए बनाया था और ट्विन टावर के अवैध निर्माण को ले कर आरडब्ल्यूए ने पहले नोएडा अथौरिटी मे गुहार लगाई थी. अथौरिटी में कोई सुनवाई नहीं होने पर आरडब्ल्यूए इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंची.

सुपरटेक के निर्माण की कहानी 23 नंवबर, 2004 से शुरू होती है. तब नोएडा (न्यू ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण) ने औद्योगिक शहर बनाने की योजना के तहत एक आवासीय क्षेत्र बनाने के लिए सुपरटेक नामक कंपनी को एक साइट आवंटित की थी. आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की अनुमति मिली.

जमीन आवंटन के 2 साल बाद 29 दिसंबर, 2006 को अनुमति में संशोधन कर दिया गया. नोएडा अथौरिटी ने संशोधन कर सुपरटेक को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी. इस के साथ ही टावरों की संख्या भी बढ़ा दी गई. पहले 15 और फिर इन की संख्या 16 कर दी गई.

साल 2009 में इस में फिर से एक बार फिर वृद्धि की गई. यही नहीं, 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथौरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया. इस के बाद भी अनुमति लगातार बढ़ती ही रही.

2 मार्च, 2012 को टावर नंबर 16 और 17 के लिए फिर से संशोधन किया गया. इन दोनों टावरों को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दी गई. इन की ऊंचाई 121 मीटर तय कर दी गई, वहीं दोनों टावरों के बीच की दूरी भी 9 मीटर रखी गई, जबकि यह 16 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए. कई सवाल लोगों के जेहन में तब से उठने शुरू हो गए थे, जब इस के निर्माण के खिलाफ मामला अदालत में चला गया था.

बिल्डिंग निर्माण के लिए सुपरटेक को 13.5 एकड़ जमीन आवंटित की गई थी. परियोजना का 90 फीसदी यानी करीब 12 एकड़ हिस्से पर 2009 में ही निर्माण पूरा कर  10 फीसदी हिस्से को ग्रीन जोन दिखा दिया गया था.

वर्ष 2011 आतेआते 2 नए टावरों के बनने की खबरें आने लगीं थी. 12 एकड़ में जितना निर्माण किया गया, उतना एफएआर का खेल खेल कर 2 गगनचुंबी इमारतों के जरिए 1.6 एकड़ में ही करने का काम तेजी से जारी था. अंदाजा लगाया जा सकता है कि 12 एकड़ में 900 परिवार रह रहे हैं, इतने ही परिवार 1.6 एकड़ में बसाने की तैयारी थी.

एमराल्ड कोर्ट परियोजना में बने ट्विन टावरों को बनाने वाली कंपनी सुपरटेक लिमिटेड है. यह एक गैरसरकारी कंपनी है. इस कंपनी को 7 दिसंबर, 1995 में निगमित किया गया था. सुपरटेक के फाउंडर आर.के. अरोड़ा हैं. उन्होंने अपनी 34 कंपनियां खड़ी की हैं. 1999 में आर.के. अरोड़ा की पत्नी संगीता अरोड़ा ने दूसरी कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी शुरू की.

सुपरटेक ने अब तक नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के 12 शहरों में रियल एस्टेट प्रोजेक्ट लांच किए हैं. नैशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल ने इसी साल कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया. कंपनी पर अभी करीब 400 करोड़ का कर्ज बकाया है.

इस पूरे मामले में सुपरटेक का कहना है कि प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद हम ने टावर का निर्माण किया था. जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने तकनीकी आधार पर निर्माण को संतोषजनक नहीं पाया है और दोनों टावरों को ध्वस्त करने के आदेश जारी कर दिए थे. हम सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का सम्मान करते हैं.

मुखरित मौन – भाग 4 : क्या अवनी अपने ससुराल की जिम्मेदारियां निभा पाई

‘‘हैलो,’’ वे आवाज को संयत कर नींद की खुमारी से बाहर खींचती हुई बोलीं.

‘‘हैलो, सुजाताजी, लगता है आप को डिस्टर्ब कर दिया. दरअसल, अवनी ने फोन करने को कहा था, पर अभी तक नहीं किया.’’

‘‘ओह, अवनी अपने कमरे में है. बच्चे 4 बजे आए होटल से. खाना खा कर कमरे में चले गए हैं. फोन करना भूल गई होगी शायद. जब बाहर आएगी तो मैं याद दिला दूंगी.’’

‘‘हां, जी,’’ बेटी की सुबह की डांट से क्षुब्ध मानसी सुजाता से भी संभल कर व धीमी आवाज में बात कर रही थी. सुजाता का हृदय द्रवित हो गया. बेटी की मां ऐसी ही होती है.

‘‘बेटी की याद आ रही है?’’ वे स्नेह से बोलीं.

‘‘हां, आ तो रही है,’’ मानसी की आवाज भावनाओं के दबाव से नम हो गई, ‘‘पर ये आजकल के बच्चे, मातापिता की भावनाओं को समझते कहां हैं,’’ सुबह की घटना से व्यथित मानसी बोल पड़ी.

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं. दरअसल, बच्चों के जीवन में उलझने के लिए बहुतकुछ है. और मातापिता के जीवन में सिर्फ बच्चे, इसलिए ऐसा लगता है. अवनी बहुत प्यारी बच्ची है. लेकिन अभी नईनई शादी है न, इसलिए आप चिंता मत कीजिए. वह आप की लाड़ली बेटी है तो हमारे घर की भी संजीवनी है. बाहर आएगी तो मैं बात करने के लिए कह दूंगी.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर मानसी ने फोन रख दिया. सुजाता की नींद तो मानसी के फोन से उड़ गई थी. सरस भी आवाज से उठ गए थे. इसलिए वह उठ कर मुंहहाथ धो कर चाय बना कर ले आई.

बच्चे दूसरे दिन हनीमून पर निकल गए. वापस आए तो कुछ दिन अवनी के घर देहरादून चले गए. इस बीच, सुजाता की छुट्टियां खत्म हो गईं. बच्चे वापस आए तो उन की भी छुट्टियां खत्म हो गई थीं. दोनों के औफिस शुरू हो गए और दोनों अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. वैसे तो सुजाता बहुत ही आधुनिक विचारों की कामकाजी सास थीं पर वे इस नई पीढ़ी को नवविवाहित जीवन की शुरुआत करते बड़े आश्चर्य व कुतूहल से देख रही थीं. इन बच्चों की दिनचर्या में उन के मोबाइल व लैपटौप के अलावा किसी के लिए भी जगह नहीं थी.

उन के औफिस संबंधी अधिकतर काम तो मोबाइल से ही निबटते थे. बाकी बचे लैपटौप से. सुबह 8, साढ़े 8 बजे के निकले बच्चे रात के साढ़े 8 बजे के बाद ही घर में घुसते. उन की दिनचर्या में अपने नवविवाहित साथी के लिए ही जगह नहीं थी, फिर सासससुर की कौन कहे. ‘‘इन्हें प्यार करने के लिए फुरसत कैसे मिली होगी?’’ सुजाता अकसर सरस से परिहास करतीं, ‘‘लगता है प्यार भी मोबाइल पर ही निबटा लिया होगा औफिस के जरूरी कार्यों की तरह.’’

 

टूटती बेड़िया -भाग 2 : संगीता अनीता साथ में कहां जा रही थी

रामेश्वर व शर्मिष्ठा ने अपनी ही लापरवाही के कारण अपना एकलौता बेटा खो दिया था. उस पर रिश्तेदार थे कि मातमपुरसी के नाम पर उन के जख्मों को और कुरेद रहे थे. ऐसे में जब रामेश्वर ने उन का विरोध करना चाहा तो… शर्मिष्ठा के साथ लौट कर जैसे ही मैं ने कार घर के सामने रोकी, भीड़ देख कर सन्न रह गया. भीड़ की सहानुभूति दर्शाती आंखों से घबरा कर मैं भीड़ को चीरता हुआ अपने घर की ओर दौड़ा. देखा कि मुख्य दरवाजा टूटा पड़ा है और ड्राइंगरूम में मेरे एकलौते कुलदीपक राहुल की लाश पड़ी है. उस के चारों तरफ आसपड़ोस की औरतों का जमघट लगा है. राहुल का चेहरा नीला पड़ा हुआ था.

उस की आंखें बाहर को निकली पड़ रही थीं और मुंह खुला था, मानो वह अब भी सहायता के लिए पुकार रहा हो. एक हाथ काला पड़ चुका था और हथेली जिस को फ्रिज से छुड़ाया गया था, वहां का मांस निकल चुका था. उस की यह हालत देख कर मैं एकाएक चकरा गया. पीछे से आते हुए माधवेशजी ने मु?ो संभाला और बोले, ‘‘भाईसाहब, आप लोग कहां चले गए थे? कब से फोन पर फोन मिला रहा हूं, न तो आप मिले और न ही भाभीजी.’’ ‘‘एक पार्टी से रेट निगोशिएशंस थे, सो लंच के बाद चला गया था. फिर इन्हें महीने का आवश्यक सामान भी लाना था, सो उधर निकल गया था.’’ ‘‘पुलिस लाश ले जाने को कब से पीछे पड़ी है पर आप के आने तक उसे रोके रखा है. इंस्पैक्टर मेरे घर पर बैठा है.’’

‘‘चलिए.’’ ‘‘अरे, आप लोग तो बहुत ही लापरवाह किस्म के आदमी हैं,’’ अंदर घुसते ही इंस्पैक्टर ने कमैंट कसा, ‘‘छोटे से अकेले एक बच्चे को घर में बंद कर जनाब बाहर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं. अरे, कम से कम एक नौकरानी ही रख लेते और अगर यह संभव नहीं था तो उसे होस्टल में छोड़ देते. थोड़ा बिगड़ जाता पर जिंदा तो रहता. क्या जमाना आ गया है. इंसान, बस, पैसे को ही सबकुछ मानने लगा है. उस के आगे सभी गौण हैं. आप की तो शायद यह एकलौती संतान थी. अब क्या करेंगे इस पैसे का? क्या यह आप को आप का बेटा दिलवा सकेगा.’’ ‘‘वह तो साहब, मैं कुछ सामान लाने बाजार निकला तो इन के घर के अंदर से ‘मम्मी, मम्मी…’ की चीख सुनाई दी. मैं ने फौरन ही दरवाजा खटखटाया, कोई उत्तर न मिलने पर आसपड़ोस के लोगों के साथ दरवाजा तुड़वाया. देखा तो राहुल फ्रिज का दरवाजा पकड़े लटका हुआ है.

पहले तो मैं ने मेनस्विच औफ किया, फिर राहुल का हाथ बहुत ही मुश्किल से फ्रिज से छुड़ाया और फर्स्ट एड दी पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी. हरीशजी दौड़ कर डा. अशोक को बुला लाए थे. उन्होंने आ कर देखा, डैथ सर्टिफिकेट दे कर चले गए. हां, फीस लेना वे नहीं भूले, अपना बैग जरूर भूल गए हैं. उस के बाद पुलिस को फोन किया. उस ने सभी के बयान नोट कर लिए हैं,’’ माधवेशजी बोले थे. इंस्पैक्टर को ले कर जब घर पहुंचा तो पत्नी होशोहवास भूल कर दहाड़ें मार कर रो रही थी. मु?ो देखते ही उस ने मेरा कौलर पकड़ते हुए कहा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप इस आदमी को गिरफ्तार कर लीजिए, यही मेरे एकलौते पुत्र की मौत का दोषी है. इसी लालची ने मेरे पुत्र का खून किया है. मैं तो राहुल के होते ही इस से नौकरी छोड़ने को कह रही थी पर यही मु?ो नौकरी नहीं छोड़ने देता था. कभी किसी खर्चे का बहाना तो कभी किसी का. कभी भाई की शादी का तो कभी बहन की,

कभी घर की किस्तें हैं तो कभी कार की और कुछ नहीं तो इनकम टैक्स के लिए बचत, कोई न कोई रोना ले कर मेरे हाथपांव बांध देता था. अब यह रखो अपना पैसा संभाल कर और मरने पर छाती से बांध कर ले जाना.’’ मैं भौचक सा देखता रहा. उस का यह रूप पहले कभी देखा जो न था. इंस्पैक्टर इस सब से उदासीन लाश के उठवाने के इंतजाम में लगा था, कागज आगे बढ़ाता हुआ बोला, ‘‘रामेश्वरजी, इन पेपर्स पर साइन कर दीजिए. लाश मैडिकल कालेज ले जा रहा हूं, वहीं पर पोस्टमार्टम के बाद मिलेगी.’’ ‘‘हम लोग भी साथ ही चल रहे हैं. कृपया यह काम जल्दी करवा दीजिएगा,’’ कहते हुए माधवेशजी ने 5 सौ रुपए का नोट उस के हाथ पर रखा तो जो कुछ वह थोड़ी देर पहले दौलत को सबकुछ सम?ाने की वृत्ति के लिए मु?ो कोस रहा था, नोट जेब के हवाले करता हुआ बोला, ‘‘अब हमारी तरफ से कोई देर नहीं है. आप मैडिकल कालेज में डाक्टर को सैट कर लीजिएगा वरना लाश कल ही मिल पाएगी,

वैसे ही काफी देर हो चुकी है.’’ ‘‘वह आप हम पर छोड़ दें. आप चलें,’’ कह कर माधवेशजी मु?ा से बोले, ‘‘भाईसाहब, आप चलिए, मैं एक फोन कर के आता हूं.’’ ‘‘अरे, उस के लिए कहीं जाने की क्या जरूरत है, यह लीजिए,’’ हरीशजी अपना मोबाइल बढ़ाते हुए बोले, ‘‘यह फिर किस दिन काम आएगा.’’ तब मोबाइल लेते हुए माधवेशजी बोले, ‘‘देखता हूं, हमारे दूर के एक संबंधी एमएलए हैं. उन की मैडिकल कालेज में बहुत जानपहचान है. अगर मिल गए तो टाइम भी बच जाएगा और पैसा भी. वरना देनेदिलाने में ही दोढाई हजार रुपए का चक्कर बैठेगा और टाइम लगेगा सो अलग.’’ इत्तफाकन उन महाशय से फोन पर बात हो गई. खास वृत्तांत सुन कर वे बोले कि मैं चीफ मिनिस्टर के यहां जा रहा हूं. वहां से ही फोन करवा दूंगा, आप चिंता न करें. करीब 3 घंटे में लाश मिली जिसे ले कर घर लौटा तो देखा सभी लोग आ चुके हैं. हम दोनों के औफिस के लोग तथा सभी नातेरिश्तेदार. लाश को ले कर सभी मरघट की ओर चल पड़े. वहां पहुंच कर मरघट के महाराज के दरबार में पेशी हुई. जैसा कि कर्मकांड के मुताबिक रिवाज है, बिना उस के आग दिए कोई चिता जलाई नहीं जा सकती. महाराज उस समय नशे में धुत थे, देखते ही बोले, ‘‘5 हजार रुपए दे दें.’’ तो माधवेशजी हाथ जोड़ कर बोले,

‘‘महाराज, हम विपदा में आप के पास आए हैं. वह हमारा एकलौता बेटा है.’’ ‘‘ठीक है, तो 3 हजार रुपए दे दो, हम इस से कम नहीं करेंगे,’’ महाराज ने दरबार बरखास्तगी का संकेत करते हुए कहा. इस से पहले कि माधवेशजी कुछ कहें, मैं बोला, ‘‘मैं इन कफनखसोटों को एक पाई भी नहीं दूंगा. चलिए, माधवेशजी, शव को विद्युत शवदाह गृह में ले चलिए.’’ ‘‘अरे, क्या करते हो जीजाजी, बिना इन की आग दिए लड़के की सद्गति नहीं होगी. वह प्रेत बना डोलेगा.’’ ‘‘आप चुप रहिए, चलिए, माधवेशजी.’’ ‘‘आप खुद पर काबू रखें भाईसाहब,’’ माधवेशजी बोले, ‘‘इस क्षेत्र में आने पर यहां बिना कुछ दिए निकलना सहज नहीं है. ये लोग कुछ भी कर सकते हैं, मर्डर भी और उन का कुछ नहीं होगा. सदियों से चली आ रही है यह प्रथा. पुलिस भी इन से डरती है. आप उधर चल कर बैठें, मैं सब संभाल लूंगा,’’ कह कर वे फिर महाराज के पैर पर 5 सौ रुपए रख कर बोले, ‘‘महाराज, हमारी बस, इतनी ही सामर्थ्य है.

आप तो देख ही रहे हैं, भैया का दिमाग खराब हो गया है. उन्हें खुद पर काबू नहीं है. उन्हें आप क्षमा कर दें तथा आग दे दें. ये बाहर के लोग हैं. इन्हें यहां का कानून मालूम नहीं है पर हम जानते हैं कि आप की आज्ञा के बिना यहां पर पत्ता भी नहीं हिल सकता. यह आज की बात नहीं हैं, यह तो राजा हरिश्चंद्र के समय से चली आ रही प्रथा है.’’ ‘‘अच्छा, ये बातें रहने दें,’’ कहते हुए महाराज ने दरबारी को पुकारा, ‘‘कलुआ, आग ले आओ,’’ और उठ कर उस ने एक हांडी पकड़ा दी जिस में धधकते हुए कोयले भरे थे. ‘‘महाराज की जय,’’ कह कर माधवेशजी आग ले कर आ गए, फिर उसे आगे रख कर विद्युत शवदाह गृह की ओर निकल लिए, यह हांडी उस क्षेत्र का लाइसैंस जो थी. ‘‘यह क्या किया माधवेशजी आप ने, अब मुरदों को फूंकने के लिए भी घूस देनी पड़ेगी?’’ ‘‘हुजूर, यह घूस नहीं, नजराना है. अब चलिए,’’ माधवेशजी बोले. विद्युत शवदाह गृह में 40 मिनट में सब काम निबटा कर लौटते समय बड़े साले साहब और ताऊजी ने सभी से हाथ जोड़ कर खाने की विनती की पर मैं ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया,

‘‘देखिए, अगर आप खिलाना चाहें तो बेशक खिलाएं पर मैं नहीं खिलाऊंगा. ऐसे ही मेरी छाती फट रही है और आप उस पर मु?ो दावत देने को कह रहे हैं, आप को शर्म नहीं आती.’’ ‘‘आती है, बेटा, आती है. तु?ो इस वंश का कहते हुए शर्म आती है जोकि धार्मिक रीतिरिवाज और मान्यताओं को तिलांजलि देने पर तुला है. ‘‘अरे, यह सब उसी का तो था, वह तो गया. यह पैसा क्या तू छाती पर रख कर ले जाएगा.’’ ‘‘नहीं ताऊजी, बुढ़ापा संवारूंगा. यह पैसा ही वृद्धावस्था का सहारा है.’’ ‘‘क्या हम मर गए?’’ ‘‘नहीं ताऊजी, मरे नहीं, जिंदा हैं और तब भी थे जब मेरे पापा मु?ा 15 वर्ष का अकेला छोड़ कर चले गए थे और मु?ो अकेले को अपनी पढ़ाई छोड़ कर दो जून की रोटी की जुगाड़ में जुट जाना पड़ा था.’’ ‘‘क्यों, घर में नहीं रखा था तु?ो?’’ ‘‘रखा था पर पापा का सारा हिस्सा हथिया कर.

क्या पापा का हिस्सा केवल वे ग्रामोफोन के चंद रिकौर्ड ही थे और कुछ नहीं? पारिवारिक संपत्ति में क्या उन का वही हक था?’’ ‘‘अरे, इस का तो दिमाग खराब हो गया है. इस से बहस का कोई फायदा नहीं. चलो, सब चलो,’’ कह कर ताऊजी खिसक लिए. घर लौटने पर पता चला कि दोनों सालियां सपरिवार अड्डा जमाए हैं और हमारे खानदान के भी कुछ लोग आ कर बैठे हैं. एकमात्र सगे भाई का फोन आया था कि उस की सदा बीमार रहने वाली पत्नी बीमार है और वह आ नहीं सकता. यह वही भाई है जिस की पत्नी ने सास को घर से निकालने के ?ागड़े में अपने पुत्र को आग लगा कर स्वयं को भी आग लगा ली थी. तब मैं नौकरी न होने के बावजूद दौड़ादौड़ा सूरत पहुंचा था और अपने परिवार की रोजीरोटी की चिंता न कर एक महीने तक उन सब की सेवा की थी. तब मैं कितनी परेशानी से घर पहुंचा था,

केवल 5 रुपए में. 3 दिन का सफर ही नहीं करना पड़ा था बल्कि पास के पैसे भाई ने धरा लिए कि बहुत कर्जा चुकाना है. और तो और, टिफिन बांध कर देने की भी किसी ने जरूरत नहीं सम?ा थी. मां ने भी नहीं. पत्नी को उस की बहनों ने व्यस्त कर दिया था. वह उन की ही सेवा में जुटी थी. मैं सीधा अपने पुत्र के कमरे में गया और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. उस की हर चीज से लिपट कर रो पड़ा. अब तक तो किसी तरह से खुद पर काबू किया था पर अंदर घुसते ही सब्र का बांध टूट गया और मैं बिलख उठा. लेकिन मेरी नियति में चैन कहां, अचानक ही दरवाजे पर जोरों की थाप पड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठा और दरवाजा खोला. देखा, सामने रौद्ररूपा पत्नी खड़ी थी. ‘‘तुम्हारा सोने का टाइम हो गया, सो पट बंद कर लिए? अब कोई जिए या मरे तुम्हारी बला से. यह भी सोचा है कि इस जाड़े की रात में इतने लोग सोएंगे कहां और कैसे? न लिहाफ है न गद्दे, न पलंग है न चारपाई.

पहले इन सब के सोने का इंतजाम करो, फिर रोते रहना, पूरी जिंदगी पड़ी है.’’ सामान लाने के लिए जैसे ही मैं घर से निकला कि माधवेशजी ट्रक से सामान उतरवाते नजर आए. देखते ही बोले, ‘‘भाईसाहब, आजकल कोई बिस्तर ले कर तो चलता नहीं है, चाहे शादीविवाह हो या मातमपुरसी, इसलिए मैं यह सामान उठवा लाया.’’ पैसे निकालने के साथ ही वे ‘‘राहुल क्या मेरा बेटा नहीं था,’’ कह कर बिलख उठे. राहुल तब 2 माह से बराबर उन के ही घर पर रहता था. आज ही उन्हें एक विवाह में जाना था जिस के कारण मु?ो उसे अकेले छोड़ कर जाना पड़ा था. मैं उन से सामान अंदर रखवाने को कह कर बाहर निकल गया. मेरा कलेजा मानो फटा जा रहा था और मैं चाह रहा था कि एकांत में बैठ कर जी भर रो लूं. कब तक पार्क में बैठा मैं बिलखता रहा, नहीं मालूम. अचानक ही कोई लिपट कर रो पड़ा तब तंद्रा टूटी, देखा, पत्नी मेरे पैरों पर पड़ी बुरी तरह रोते हुए कह रही थी, ‘‘मु?ो माफ कर दो. मैं तुम से न जाने क्याक्या बोल गई. मैं तुम्हें जाने कहांकहां ढूंढ़ आई और तुम यहां बैठे हो.

पता नहीं कैसेकैसे खयाल मेरे मन में आ रहे थे. चलो, घर चलो, कहीं ठंड लग गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.’’ घर आ कर देखा तो सभी मेहमान आराम से बिस्तर, यहां तक कि एकएक मेहमान 2-2 गद्दे बिछाए सो रहा था. खाना आसपड़ोस से आ गया था, सो सभी खा कर तृप्त हो गए थे. घर का दरवाजा खुला था और सड़क के कुत्ते सूंघते हुए घूम रहे थे. मेरे लिए वहां पर न कोई बिस्तर था और न ही पलंग. खाने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं दरवाजा भेड़ कर निकला कि किसी होटल में जगह देखूं, मगर तभी माधवेशजी से सामना हो गया. देखते ही बोले, ‘‘आइए, मैं आप का ही इंतजार कर रहा था. आजकल इंसान में इंसानियत तो रह ही नहीं गई है. सब अपना ही स्वार्थ देखते हैं. ये लोग शादीविवाह में जाएं या मातमपुरसी में, सब से पहले अपने आराम की ही सोचेंगे. सामान उतरते न उतरते, सब ऐसे ?ापट पड़े मानो इन्हें यहां जिंदगीभर रहना है.

अगर चूक गए तो फिर जमीन पर ही सोना पड़ेगा. ‘‘बिस्तर रखते ही सब से पहले बड़ी बहनजी ने अपने पति व बच्चों के लिए पलंग हथिया लिए कि इन्हें गठिया का रोग है, ठंड लग जाएगी तो बहुत मुसीबत होगी तो छोटी के हसबैंड को अस्थमा की शिकायत थी. ताऊजी बुजुर्ग हैं, सो ताईजी उन के इंतजाम में लग गईं. बाकी लोगों ने भी देखादेखी अपने इंतजाम कर लिए. भाभीजी होश में नहीं थीं, सो आप का इंतजाम मैं ने अपने यहां करवा दिया है.’’ मैं ताला बंद करने गया तो देखा शर्मिष्ठा एक कोने में बैठी सिसक रही थी. उस की रोकी हुई सिसकियां उस का बदन ?ाक?ार रही थीं. मैं ने जैसे ही उस के सिर पर हाथ रखा, वह बिलख उठी. मैं बिस्तर पर आ कर सोचने लगा कि अगर यह दिखावे की जिंदगी न जीनी पड़ती तो आज यह दिन न देखना पड़ता. क्या करें, आज के युग की मांग है,

सुविधा की हर वस्तु संग्रह करने की, दिखावे की. 10,000 रुपए की आमदनी है पर रहनसहन ऐसा दिखाएंगे मानो 15,000 रुपए की आमदनी हो. यह हाल हर स्टेज पर है, चाहे वह कम कमाता हो या ज्यादा. भोग की संस्कृति के चक्कर में हर तरह की सुखसुविधा की चीजें उपलब्ध हैं. हर आदमी का प्रयास रहता है कि वह उन का अधिक से अधिक संग्रह करे. उस के लिए चाहिए धन और जब एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता तो दूसरे को भी उस क्षेत्र में उतरना पड़ता है. फिर शुरू हो जाती है अंधी दौड़, जिस में सब से ज्यादा क्षतिग्रस्त होते हैं रिश्ते. इन के लिए आज के आदमी के पास समय नहीं है और जिस के पास है वह कहलाता है एक ‘इमोशनल फूल’ यानी भावुक मूर्ख. आज उसी अंधी दौड़ के परिणाम परिलक्षित हो रहे हैं. ननद, देवरदेवरानी, भतीजेभतीजियां सब पराए हो गए हैं. महानगर में तो मातापिता भी बाहरी लोग हैं. पति, पत्नी, बच्चे सब बाहरी और फालतू लोग हैं. बस, आदमी अकेला ही अपने सुख की खोज में इधर से उधर भटकता है. इसलिए देशकाल के हिसाब से खुद को छोड़ किसी और पर खर्च करना निरी भावुकतापूर्ण मूर्खता है जो मैं अब तक करता आ रहा हूं. चाहे वह मेरे घर के लोग, भाईबहन हों या ससुराल के सालीसाले. इन्हीं सब के कारण मेरे खर्चे बराबर बढ़ रहे हैं और मैं पत्नी के नौकरी छोड़ने के आग्रह को टालता रहा हूं. लेकिन बदले में मु?ो क्या मिला? पत्नी द्वारा लगाया गया बच्चे की हत्या करने का लांछन, जीवनभर कर्ज का बो?ा,

अवमानना तथा मुसीबत के क्षणों में अकेलापन. आज मैं खुद को कितना अकेला महसूस कर रहा हूं. सालेसालियां अपनी बहन का मन बहला रहे हैं. मेरे भाईबहन मु?ा से कन्नी काट गए हैं. मेरे इस संकट के क्षणों में कौन साथी है? साथी हैं ये मेरे पड़ोसी माधवेशजी, हरीशजी और मेरा विश्वास. बाकी सब लेने के ही साथी हैं, चाहे तीजत्योहार हो या शादीविवाह, इन का मुंह भरते रहो तो खुश, नहीं तो नाराज. वाह रे वाह, अब इस संकट की घड़ी में खिलाने से मना कर दिया तो कितना बौखला गए ताऊजी. अरे, आप सगे हैं तो कर डालिए खर्च, सो तो एकएक पाई तक मांग लेंगे. उन के यहां जाओ तो सैकड़ों हजम कर जाएंगे, देने का नाम भी न लेंगे. अब कल के कर्मकांड में हजारों का खर्च आने वाला है. मैं नहीं करूंगा एक पैसा भी खर्च. जिसे करना हो सो करे, जो नाराज हो तो हो. एक दृढ़निश्चय कर के मैं ने बिस्तर छोड़ दिया. सवेरे शर्मिष्ठा ने मु?ो सामान की लिस्ट थमाई तो मैं ने साफ मना कर दिया. वह भौचक सी मु?ो देखती रह गई. फिर थोड़ा संभल कर बोली, ‘‘आप का दिमाग तो खराब नहीं हो गया है

जो ऐसा कर रहे हैं. कोई ऐसे भी करता है. जब सामान ही नहीं लाएंगे तो काम कैसे होंगे? मौत कोई आप के घर में ही नहीं हुई है. क्या कोई ऐसे आपा खोता है? संभालिए खुद को. कभी सोचा है ये नातेरिश्तेदार, ये समाज के लोग क्या कहेंगे कि एकलौती संतान का ढंग से क्रियाकर्म तक नहीं किया.’’ ‘‘मु?ो इन सब की परवा नहीं है.’’ ‘‘अरे, आप का क्या, आप से तो कोई कुछ कहेगा नहीं, सुननी तो मु?ो पड़ेगी. अगर पैसे न हों तो मैं दे दूंगी. अब तुम बेकार का लफड़ा मत करो.’’ ‘‘लफड़ा… और मैं… और तुम कहां से पैसा दोगी?’’ ‘‘क्यों?’’ ‘‘तुम्हीं तो कह रही थीं कि तुम केवल मेरे लालच के चलते नौकरी कर रही हो.’’ ‘‘मैं ने ऐसा कब कहा. वह तो गुस्से की बात थी. उसी को ले कर बैठे हो.’’ ‘‘नहीं शर्मिष्ठा, मैं सोचसम?ा कर ही कह रहा हूं. अब जब कोई खर्च ही नहीं है तो तुम्हें नौकरी करने की भी कोई जरूरत नहीं है.’’ ‘‘इन का तो लगता है वाकई दिमाग खराब हो गया है,’’ मेरे साले साहब बोल पड़े. ‘‘अब तुम्हीं सम?ाओ न इन्हें भैया,’’ शर्मिष्ठा अपने भाई से बोली. ‘‘मु?ो कुछ भी सम?ाने की जरूरत नहीं है.

मैं सबकुछ सम?ा गया हूं, सम?ां.’’ ‘‘तो तुम क्या करोगे? यह घर क्या बिना शुद्धि के ऐसे ही पड़ा रहेगा?’’ ‘‘नहीं, कल शुद्धि करवा लेंगे, बस.’’ ‘‘और दसवीं, तेरहवीं, ब्राह्मण भोज, सामाजिक भोज वगैरह.’’ ‘‘इन की कोई आवश्यकता नहीं है. मेरे घर में मौत हुई है, कोई खुशी का अवसर नहीं कि सब को भोजन कराऊं. यह कहां का न्याय है कि बजाय मदद करने के, खानपान का यह खर्च और सिर पर लाद दिया जाए?’’ ‘‘बस, बस, रहने दे. थोड़ा पढ़लिख क्या गया कि रीतिरिवाजों पर तर्क करने लगा. सीधी तरह क्यों नहीं कहता कि अब तु?ो पैसा खर्च नहीं करना है जो तरहतरह के बहाने बना रहा है,’’ ताऊजी बोले. ‘‘तो बताएं कि मैं क्या गलत कह रहा हूं?’’ ‘‘मु?ो तुम से बहस नहीं करनी है. हां, एक बात कान खोल कर सुन लो, अगर तुम ने ढंग से विधिवत कर्मकांड नहीं कराए तो हम तुम्हारे घर का पानी भी नहीं पिएंगे.’’ ‘‘आप की मरजी है. आप को पानी पिलाने के लिए मैं अपना सर्वनाश नहीं कर सकता.’’

‘‘तो ठीक है, चमेली, संगीता, अनिता, अपना सामान बांधो और निकल चलो. इस का तो मुंह देखना भी…’’ ‘‘हां, हां चलो,’’ कहते हुए और दूसरे नातेरिश्तेदार भी उठ खड़े हुए. ‘‘देखेंगे, ये अकेले क्याक्या कर लेते हैं. समाज के बिना देखे कैसे जिएंगे,’’ बिफरते हुए बड़े साले साहब बोले. ‘‘मु?ो तुम और तुम्हारे जैसी स्वार्थी समाज की आवश्यकता नहीं है. तुम लोग चले जाओगे तो मु?ो कर्मकांड के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ेगा, तुम्हारी आएदिन की फरमाइशें भी पूरी नहीं करनी पड़ेंगी. ‘‘रही बात समाज की, सो मेरे साथ मेरे ये पड़ोसी हैं जो आज पिछले 3 दिनों से अपने सारे काम छोड़ कर निस्वार्थ भाव से सारा काम संभाले हुए हैं. इन में संवेदनशीलता है और ये मेरा दर्द सम?ाते हैं.’’ ‘‘हां, हां, लगा ले इन्हें अपने कलेजे से. चलो,’’ कह कर ताऊजी सब को ले कर बाहर की ओर चल पड़े. मु?ो लगा युगोंयुगों से जकड़े बंधन एकएक कर टूट रहे हैं और हर कदम के साथ ये कडि़यां छमछम टूट कर गिर रही हैं. मैं एक चैन की सांस ले रहा हूं.

त्यौहार 2022: ऐसे बनाएं मेथी पनीर

आज आपको मेथी पनीर बनाने की रेसिपी बताने जा रहे है. जो बनाने में भी आसान है और खाने में उतना ही टेस्टी… तो देर किस बात की, झट से आपको बताते हैं मेथी पनीर बनाने की रेसिपी.

सामग्री 

पनीर  (250 ग्राम)

मेथी  (250 ग्राम)

टमाटर प्‍यूरी ( 1/2 कप)

गरम मसाला ( 01 छोटा चम्मच)

धनिया पाउडर  (01 छोटा चम्मच)

लाल मिर्च पाउडर (01 छोटा चम्मच)

तेल  (फ्राई करने के लिए)

नमक  (स्‍वादानुसार)

बनाने की विधि 

सबसे पहले मेथी के पत्तों को धो लें, उसके बाद पत्तों को भाग में बराबर-बराबर बांट दें.

अब एक भाग वाले पत्‍तों को उबाल लें और उबालने के बाद उन्हें मिक्‍सर में महीन पीस लें.

बाकी बचे मेथी के पत्तों को बारीक काट लें.

अब पनीर को मनचाहे टुकड़े में काट लें.

फिर एक पैन में तेल गर्म करें और उसमें पनीर को फ्राई कर लें.

फ्राई करने के बाद पनीर के टुकड़ों को पानी में भिगो दें, इससे पनीर के टुकड़े नरम हो जाएंगे.

अब एक कढ़ाई में दो छोटे चम्मच तेल डाल कर गरम करें.

तेल गरम होने पर उसमें लाल मिर्च डाल कर तल लें.

तली हुई मिर्चों को बाहर निकाल कर रख दें और उसके बाद तेल में टमाटर की प्यूरी डालें और थोड़ा सा फ्राई कर लें.

अब कढ़ाई में नमक, गरम मसाला पाउडर, धनिया पाउडर और लाल मिर्च पाउडर डालें और थोड़ा सा भून लें.

जब मसाला अच्छी तरह से भुन जाए, कढ़ाई में पिसी हुई मेथी और मेथी की पत्‍तियों को डालें और चलाते हुए पकाएं.

मेथी अच्छी तरह से भुन जाने पर कढ़ाई में पनीर के टुकड़े डालें.

अब इसे धीमी आंच में 2-3 मिनट पकायें और फिर गैस बंद कर दें.

इसे गर्मा-गरम निकालें और रोटी या पराठों के साथ सर्व करें.

मैं स्ट्रैस में रहती हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 45 वर्षीया गृहिणी हूं. परिवार में सब ठीकठाक चल रहा है. बच्चे अपनीअपनी पढ़ाई और जौब में लगे हुए हैं. पति अपने औफिस वर्क में बिजी रहते हैं. लाइफ अपनी रूटीन में चल रही है. लेकिन फिर भी मैं पता नहीं क्यों स्ट्रैस में रहती हूं. कोई चिंता न होते हुए भी मन बेचैन सा रहता है. स्टैसफ्री रहना चाहती हूं, लेकिन रह नहीं पाती. लगता है जीवन में कुछ कमी सी है.

जवाब

लगता है आप कुछ ज्यादा ही फ्री हो गई हैं लाइफ में. जब कभीकभी इंसान ज्यादा ही खाली हो जाता है तो कुछ न कुछ सोचना शुरू कर देता है. ऐसा उन लोगों के साथ होता है जो पहले बहुत काम में बिजी रहते थे लेकिन अचानक फ्री हो जाते हैं. फ्री होने की आदत न होने के कारण दिमाग कुछ न कुछ सोचना शुरू कर देता है. कुछ ऐसा ही आप के साथ हो रहा है.

आप फालतू की बातें न सोच कर अपने दिमाग को दूसरी तरफ लगाएं, जैसे फोन पर दोस्तों के साथ बातचीत कीजिए, घर के काम करते वक्त या खाली बैठे हुए गाने चलाया कीजिए आदि. इस सब से आप का समय बिजी रहेगा. लोगों से मिलिएजुलिए. कोई क्लब या किटी पार्टी जौइन कर लीजिए. दोस्तों के साथ समय गुजारिए. जिंदगी का नाम ही परेशानी है. जब आप की जिंदगी में परेशानी नहीं है, जो बहुत ही अच्छी बात है तो क्यों जबरन परेशानियां ओढ़ने की कोशिश कर रही हैं. मस्त रहिए और लाइफ को एंजौय करने की कोशिश करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

त्यौहार 2022: मेथी और पनीर से बनाएं पुलाव

मेथी और पनीर को अगर मिलाकर आप कोई भी डिश बनाते हैं तो वह स्वादिष्ट के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है. तो आइए आज आपको बताते हैं कैसे बनाए मेथी पनीर के साथ पुलाव. यह आपके हेल्थ के लिए भी सही होगा.

समाग्री

बासमती चावल

ताजा मेथी

पनीर आवश्यकता अनुसार

प्याज टमाटर

अदरक

हरी मिर्च

तेज पत्ता

सूखी लाल मिर्च

गर्म मसाला

हरी मिर्च

शक्कर

घी

विधि

चावल को अच्छे से बीनकर धो ले और अब चावल को कुछ देर के लिए भिंगने के लिए रख दें.अब आप चावल को माइक्रोवेव या फिर भगोने में उबाल लें, ध्यान रखें कि चावल एकदम खिले हुए हो चिपकने नहीं चाहिए. अब चावल को ठंडा होने दें.

मेथी के मोटे डंडल को हटा दें, अब मेथी के पत्तियों को बहुत अच्छे से धो लें, ध्यान रखें कि मेथी की पत्तियां को बारीक काट लें.

अब प्याज अदरक को छीलकर काट लें और अच्छे से साफ कर लें फिर प्याज ,टमाटर और लहसून को भी एक साइज में काट लें.

अब कड़ाही में को गैस पर रखकर गर्म करें, जब कड़ाही गर्म हो जाए तो उसमें घी डालें फिर उसमें जारी और हींग डाले साथ में लाल मिर्च भी डालें. कुछ सेकेंण्ड्स तक भूनने के बाद इसमें प्याज डालें फिर इसमें कटी हुई अदरक और टमाटर डालकर अच्छे से भूनें.

अब जब सब अच्छे से भून जाए तोइसमें बारीक कटी हुई मेथी को डालें जब मेथी अच्छे से भून जाए तो उसमें गर्म मसाला डालकर अच्छे से चलाएं. अब आप चावल को कांटे की मदद से अलग-अलग कर लीजिए इसे अब आप अच्छे से डालकर मिलाए फिर इसमें उपर से पनीर के टुकड़े को डाल दें.

जब सभी अच्छे से मिक्स हो जाए तो उसमें स्वादअनुसार नमक डालकर चलाएं फिर इसे थोड़ी देर और पकाने के बाद आप इसे सर्व कर सकते हैं.

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