Download App

मैं पिछले 3 महीनों से अपने गिरते बालों से बहुत परेशान हूं, कोई उपाय बताएं?

07सवाल

मैं 25 वर्षीय विवाहित महिला हूं. पिछले 3 महीनों से मैं अपने गिरते बालों से बहुत परेशान हूं. मुझे ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से मेरे बालों को पोषण मिलने के साथसाथ उन का गिरना भी बंद हो जाए?

जवाब

बालों के गिरने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कोई बीमारी, भोजन में पोषक तत्त्वों का अभाव, बालों की ठीक से देखभाल न होना आदि. गिरते बालों को पोषण देने के लिए आप भोजन में पौष्टिक तत्त्व लें. फल, दूध, प्रोटीन युक्त पदार्थ अधिक से अधिक लें. इस के अलावा बालों की देखभाल हेतु मेहंदी को अंडे के साथ मिला कर पेस्ट बनाएं और बालों में 1 घंटे तक लगाए रखें व बाद में शैंपू से धो लें. इस से बालों को पोषण मिलेगा व वे घने और मजबूत होंगे.

सप्ताह में एक बार औलिव औयल या कोकोनट औयल से बालों की जड़ों में मसाज करें. बाद में हौट टौवेल लपेटें.

टौवेल ठंडा हो जाने पर माइल्ड शैंपू से बालों को धो लें. इस से बालों की जड़ों को पोषण मिलेगा और उन का गिरना बंद होगा. साथ ही सिर की त्वचा को भी साफ रखें, क्योंकि गंदे व उलझे बाल अधिक टूटते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

जुताई और बोआई के लिए बैटरी से चलने वाला कल्टीवेटर और प्लांट

टरी से चलने वाला कल्टीवेटर और प्लांटर ] भानु प्रकाश राणा खेती से पैदावार बढ़ाने और खेती को आसान बनने के लिए अनेक तरह के आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, जिस से फसल की लागत में कमी आती है और फसल पैदावार में इजाफा होता है. इस दिशा में अनेक कृषि विशेषज्ञ और कृषि संस्थान भी काम करते रहे हैं. अभी हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए जुताई और बोआई के लिए पशुचलित बैटरी से चलने वाली कल्टीवेटर और प्लांटर मशीन बनाई हैं. इन दोनों कृषि यंत्रों को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा लौंच किया गया.

इन दोनों ही कृषि यंत्रों को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अभियांत्रिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बनाया गया है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इन यंत्रों के इस्तेमाल से किसानों को खेती के काम में लगने वाले समय और लागत में भी कमी होगी. पशुचलित बैटरी आपरेटेड कल्टीवेटर आमतौर पर छोटे और मंझले किसान खेत की जुताई के लिए देशी हल का उपयोग करते हैं. इस के बाद पाटा लगाया जाता है. कई दफा इस दौरान खेत में ढेले टूट नहीं पाते. इस से बीज बोने के समय कठिनाई होती है और पूरी तरह से नहीं उग पाता. जो बीज बड़े ढेले के नीचे आ गया, वह अंकुरित ही नहीं हो पाता. ऐसे में दूसरी जुताई के समय पशुचलित बैटरी आपरेटेड कल्टीवेटर किसानों की इस समस्या का निदान कर सकता है. इस यंत्र में 750 वाट (1 एचपी) की मोटर लगी होती है और 48 वोल्ट पावर की बैटरी लगाई गई है. साथ ही, किसान को बैठने के लिए एक सीट भी लगी होती है. इस कल्टीवेटर की मदद से एक हेक्टेयर खेत को 5-7 घंटे में जोता जा सकता है.

चूंकि इस यंत्र में बैटरी का इस्तेमाल होता है, इसलिए मवेशियों को भी कम ताकत लगानी पड़ती है और किसान यंत्र की सीट पर बैठ कर आसानी से खेत की जुताई कर सकता है. पशुचलित बैटरी आपरेटेड प्लांटर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के माहिर वैज्ञानिक द्वारा पशुचलित बैटरी आपरेटेड प्लांटर भी बनाया गया है. इस यंत्र की विशेषताएं इस प्रकार से हैं : किसान इस यंत्र की मदद से कतारबद्ध बीज से बीज की दूरी बनाए रखते हुए बोआई कर सकता है. फसल के अनुसार बीज बोते समय कतार से कतार के बीच की दूरी को 20 से 50 सैंटीमीटर तक सैट कर सकते हैं. पशुचलित बैटरी आपरेटेड प्लांटर की कीमत तकरीबन 20-25 हजार रुपए तक बताई गई है. किसानों को कितना मिलता है अनुदान छत्तीसगढ़ में कम जोत वाले और सीमांत किसानों के लिए कृषि यंत्र सब्सिडी योजना चलाई जा रही है.

इस योजना के तहत राज्य के किसानों को सरकार की ओर से कृषि उपकरणों की खरीद पर अलगअलग कृषि उपकरणों पर 40 फीसदी से ले कर 70 फीसदी तक सब्सिडी का लाभ दिया जाता है. इस सब्सिडी की राशि का भुगतान किसान के बैंक खाते में आवेदन करने के बाद आता है. जो भी किसान इस योजना का लाभ लेना चाहते हैं, वे अपने नजदीकी कृषि विभाग से संपर्क कर अधिक जानकारी ले कर इस का लाभ ले सकते हैं. ठ्ठ ड्रोन से होगा छिड़काव एग्रीकल्चर ड्रोन के माध्यम से 4 एकड़ खेतों में आधे घंटे के भीतर दवा का छिड़काव हो सकेगा.

अमूमन एक किसान को इस के लिए एक एकड़ के लिए 3 घंटे का वक्त लगता है. मशीन के माध्यम से दवा की मात्रा भी निर्धारित की जा सकेगी. एग्रीकल्चर ड्रोन सौल्यूशन के साथ ही एग्री एंबुलैंस भी होगी, जिस में एग्रीकल्चर लैब की सुविधा भी होगी. इस में किसान सौइल टैस्टिंग आदि करा सकेंगे. इस में खेतीकिसानी के लिए संपूर्ण सुविधा होगी. इस में जैविक खाद की उपलब्धता भी होगी.

प्रतीक्षा-भाग 1 : नंदिता के बीमारी के दौरान राजेंद्र ने क्या सहयोग दिया

नंदिता की बीमारी के दौरान राजेंद्र के अनमोल योगदान ने माधवेश को उस का ऋणी बना दिया था, इसीलिए जब माधवेश ने उसे नंदिता से मिलवाया तो बहुत कम समय में ही दोनों के बीच गहरी आत्मीयता देख वह संदेह में पड़ गया. आखिर क्या संबंध था नंदिता का राजेंद्र से? बहुधा नंदिता सिरदर्द की शिकायत करती रहती थी. लेकिन एक दिन जब वह अचेत हो गई तो शीघ्र ही डाक्टर से परामर्श लेना पड़ा. आननफानन अनेक जांचें की गईं और डाक्टर ने बताया कि मेरी पत्नी के मस्तिष्क में गांठ है जिस का एकमात्र उपचार औपरेशन है.

‘‘डाक्टर साहब, कब तक करा लेना चाहिए औपरेशन,’’ मैं ने पूछा. ‘‘जल्दी से जल्दी. मैं अन्य जांचें भी लिख देता हूं. 3 यूनिट खून की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी. सारी तैयारियों के बाद मु?ा से मिल लीजिएगा. औपरेशन की तारीख तय कर ली जाएगी.’’ डाक्टर का यह संक्षिप्त सा उत्तर मु?ो किसी बड़े अनिष्ट का आभास दे गया. जांच से पता चला कि नंदिता का रक्त समूह ‘एबी नैगेटिव’ है जो एक दुर्लभ रक्त समूह है. सगेसंबंधियों एवं इष्ट मित्रों से सिर्फ 2 यूनिट रक्त की व्यवस्था हो पाई. आखिरकार, अखबारों में यह सोच कर अपील छपवाई कि शायद कोई रक्तदाता मेरी सहायता के लिए आगे आए. करीब एक सप्ताह बाद 35-36 साल का राजेंद्र नाम का एक युवक मेरे पास आया. उस ने सहर्ष रक्तदान किया और जब जाने लगा तो मैं ने आग्रह किया, ‘‘राजेंद्रजी, अपने रक्तदान से आप ने न केवल मेरी पत्नी की ही प्राण रक्षा की बल्कि मु?ो भी पुनर्जीवन दिया है.

मैं आप का आजीवन ऋणी तो रहूंगा किंतु आग्रह करूंगा कि आप एक बार घर अवश्य आइए. अपनी पत्नी से भी आप की भेंट करवाता कि आप ही वे शख्स हैं.’’ कहता हुआ मैं भावुक हो उठा था. ‘‘माधवेशजी, पहली बात तो यह कि मु?ा से आप उम्र में बड़े हैं. मु?ो केवल राजेंद्र कहिए. दूसरी बात, आप के घर कभी अवश्य आऊंगा और आप की पत्नी से भी भेंट करूंगा. उन्हें मेरी शुभकामनाएं कहिएगा,’’ राजेंद्र ने विनम्रता से कहा और चला गया. मैं ने अभी नंदिता से रोग की जटिलता के बारे में कुछ नहीं बताया था. एक दिन जब मैं घर लौटा तो पाया कि नंदिता और राजेंद्र आपस में बातें कर रहे हैं.

नंदिता बहुत खुश नजर आ रही थी. मु?ो भी काफी खुशी हुई. राजेंद्र ने मु?ो देखा तो खड़़ा हो कर मेरा अभिवादन किया. कुछ देर ठहरा और फिर चला गया. अब अकसर ही राजेंद्र मेरे घर आने लगा. कभी मु?ा से भेंट होती. कभी बिना मिले ही चला जाता. अकसर उस का आनाजाना मेरी गैरमौजूदगी में ही होता था, यह मु?ो कुछ असहज सा लगा. औपचारिकता का परिचय इतनी शीघ्रता से इतनी घनिष्ठता में परिवर्तित हो जाएगा, मु?ो इस का रंचमात्र भी आभास न था.

कभीकभी मेरे मन में संदेह का फन खड़ा होता कि कहीं नंदिता और राजेंद्र पूर्व परिचित तो नहीं, लेकिन अगले ही क्षण मैं उस खड़े फन को कुचल देता. मेरा अंतर्मन कहने लगता, तुम व्यर्थ शक कर रहे हो. नंदिता 18 वर्षों से तुम्हारी ब्याहता है, उसे भटकना होता तो वह अपनी यौवनावस्था में ही भटक गई होती. अब जब उस की जीवन संध्या समीप ही है तब भला वह क्यों भटकेगी? फिर भला एक रोगिणी से राजेंद्र इतनी प्रगाढ़ता क्यों रखना चाहेगा.

 

Adipurush: प्रभास और कृति की अफेयर की खबरे आई सामने, फैंस हुए एक्साइडेट

साउथ  सुपर स्टार प्रभास और कृति सेनन की अपकमिंग फिल्म आदिपुरुष का टीजर  रिलीज हो गया है, इस खास मौके पर फिल्म की टीम अयोध्या पहुंची थी, जहां पर उनका स्वागत भव्य किया गया है. इस फिल्म के टीजर में प्रभास के साथ कृति सेनन काफी ज्यादा खूबसूरत लग रह हैं.

जबकी टीजर में प्रभास में कुर्ता पहने नजर आ रहे हैं, जब कृति सेनन प्रभास का हाथ थामें पहुंची तो सभी लोग इस दृश्य को देखने के लिए बेताब थें, यह तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.

जब प्रभास और कृति सेनन ने एक साथ मंच पर कदम रखा तो लोग देख कर दंग रह गए, फैंस को इस फिल्म का अब बेसब्री से इंतजार है. जबरदस्त बात ये है कि मौके पर प्रभास ने कृति सेनन का हाथ थामा था, जिसे देख लोगों ने खूब चिल्लाया, इनकी जोड़ी खूब पसंद कि जा रही है.

इससे पहले प्रभास और कृति को कभी एक साथ पर्दे पर नहीं देखा गया था, दोनों को साथ में देखकर फैंस खूब उत्साहित हैं. दोनों साथ में एक खूबसूरत कपल की तरह लग रहे थें.

प्रभास ने बेहद नजाकत के साथ कृति का हाथ पकड़ा था, जिसे देखकर लोगों को लग रहा है कि प्रभास औऱ कृति का कुछ चल रहा है.

Bigg Boss 16: घर में शुरू हुई कैट फाइट , जानें पूरा मामला

सलमान खान का सबसे चर्चित शो बिग बॉस 16 शुरू हो चुका है, फैंस इस शो को देखने के लिए काफी दिनों से इंतजार कर रहे थें, हमेशा की तरह इस बार भी शो विवादों में रहा है. इस शो की शुरुआत होते ही गौतम और निममित के बच कैट फाइट शुरू हो गई है.

इन दोनों की लड़ाई को देखकर फैंस अभी से कयास लगा सकते हैं कि आगे शो में क्या होने वाला है. पहले दिन निमृत को घर के काम की जिम्मेदारी सौप गई थी, लेकिन  अर्चा गौतम से उसकी जमकर फाइट हो गई काम को लेकर,

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Archana Gautam (@archanagautamm)

इससे पहले अर्चना गौतम शो में खाना बनाने का काम कर रही थी, जो की कुछ कंटेस्टेंट को पसंद नहीं आ रहा था, इसके साथ ही शो में पहले दिन प्रैक कॉल से खूब परेशान किया गया, पहलो प्रैक कॉल शालिन भट्ट को गया, जो आमिर खान के नाम से गया वहीं दूसका कॉल टीना दत्ता को गया. जिसके बाद और भी बहुत सारे कंटेस्टेंट को कॉल किया गया.

बता दें कि इस शो में सभी कंटेस्टेंट काफी ज्यादा मजेदार हैं, वहीं इस शो को देखने के लिए लोग काफी . पहले से उत्सुक हैं, इस बार शो को थीम सर्कस रखा गया है

मुहरा : भवानीराम को क्यों गुस्सा आ रहा था?

‘‘अरे गणपत, आजकल देख रहा हूं, तेरे तेवर बदलेबदले लग रहे हैं,’’ आखिर भवानीराम ने कई दिनों से मन में दबी बात कह ही डाली.

गणपत ने कोई जवाब नहीं दिया. जब काफी देर तक कोई जवाब न मिला तो थोड़ी नाराजगी से भवानीराम बोले, ‘‘क्यों रे गणपत, कुछ जवाब क्यों नहीं दे रहा है. गूंगा हो गया है क्या?’’

‘‘हम गांव के सरपंच हैं,’’ गणपत ने धीरे से उत्तर दिया.

‘‘हां, तू सरपंच है, यह मैं ने कब कहा कि तू सरपंच नहीं है पर तुझे सरपंच बनाया किस ने?’’ कहते हुए भवानीराम ने गणपत को घूरते हुए देखा. गणपत की भवानीराम से आंखें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी. यह देख भवानीराम फिर बोले, ‘‘बोल, तुझे सरपंच किस ने बनाया. आजकल तुझे क्या हो गया है. चल, इस कागज पर अंगूठा लगा.’’

‘‘नहीं, आप ने हम से अंगूठा लगवालगवा कर प्रशासन को खूब चूना लगाया है,’’ उलटा आरोप लगाते हुए गणपत बोला.

‘‘किस ने कान भर दिए तेरे?’’ भवानीराम नाराजगी से बोले, ‘‘चल, लगा अंगूठा.’’

‘‘कहा न, नहीं लगाएंगे,’’ गणपत अकड़कते हुए बोला.

‘‘क्या कहा, नहीं लगाएगा?’’ गुस्से से भवानीराम बोले, ‘‘यह मत भूल कि तू आज मेरी वजह से सरपंच बना है. मैं कहता हूं चुपचाप अंगूठा लगा दे.’’

‘‘कहा न मैं नहीं लगाऊंगा,’’ कह कर गणपत ने एक बार फिर इनकार कर दिया.

भवानीराम को इस से गुस्सा आया और बोले, ‘‘अच्छा, हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं. ठीक है, मत लगा अंगूठा, मैं भी देखता हूं तू कैसे सरपंचगीरी कर पाता है.’’

भवानीराम का गुस्से से तमतमाया चेहरा देख कर गणपत एक क्षण भी नहीं रुका और वहां से चला गया. भवानीराम गुस्से से फनफनाते रहे. भवानीराम ने सोचा, ‘निश्चित ही इस के किसी ने कान भर दिए हैं वरना यह आज इस तरह का व्यवहार न करता, आज जो कुछ वह है, उन की बदौलत ही तो है.’ पूरे गांव में भवानीराम का दबदबा था. एक तो वे गांव के सब से संपन्न किसान थे साथ ही राजनीति से भी जुड़े हुए थे. वे चुनाव से पहले ही सरपंच बनने के लिए जमीन तैयार करने लगे थे. मगर ऐन चुनाव के समय घोषणा हुई कि गांव के सरपंच पद के लिए इस बार अनुसूचित जाति का व्यक्ति ही मान्य होगा, तो इस से भवानीराम के सारे अरमानों पर पानी फिर गया. अब उन्हें एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जो उन की हां में हां मिलाए और सरपंच पद पर कार्य करे. अंतत: उन्हें ऐसा मुहरा अपने ही घर में मिल गया. यह था गणपत, जो उन के यहां खेती एवं पशुओं की देखरेख का काम करता था. अत: भवानीप्रसाद ने उसे बुला कर कहा, ‘‘गणपत, हम तुम्हें ऊंचा उठाना चाहते हैं, तुम्हारा उधार करना चाहते हैं. अत: हम तुम्हें गांव का सरपंच बनाना चाहते हैं.’’

‘‘सच मालिक,’’ पलभर के लिए गणपत की आंखें चमकीं. फिर वह इनकार करते हुए बोला, ‘‘नहीं मालिक, चुनाव लड़ने के लिए मेरे पास पैसा कहां है?’’

‘‘हां, तुम ठीक कहते हो. लेकिन तुम्हें तो खड़ा होना है, क्योंकि तुम अनुसूचित जाति से हो. मैं सामान्य होने के कारण खड़ा नहीं हो सकता. अत: मेरी जगह तुम खड़े होओगे और पैसा मैं लगाऊंगा.’’

‘‘सच मालिक,’’ खुशी से गणपत की आंखें चमक उठीं.

‘‘हां गणपत, मैं तुम्हें सरपंच बनाऊंगा. कल तुम्हें फौर्म भरने शहर चलना है,’’ कह कर भवानीराम ने गणपत को मना लिया. गणपत भी खुशीखुशी मान गया. फिर गांव में जोरशोर से प्रचार शुरू हो गया. मगर मुख्य लड़ाई गणपत और राधेश्याम में थी. भवानीराम ने गणपत को जिताने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी. इधर राधेश्याम भी एड़ीचोटी का जोर लगा रहा था. दलितों की इस लड़ाई में उच्चवर्ग के लोग आनंद ले रहे थे. प्रचार में दोनों ही एकदूसरे से कम नहीं पड़ रहे थे, जिस चौपाल पर कभी पंचों के फैसले हुआ करते थे, आज वहां राजनीति के तीर चल रहे थे. टीवी, इंटरनैट ने गांव को इतना जागरूक बना दिया था कि जरा सी खबर विस्फोट का काम कर रही थी. गणपत लड़ जरूर रहा था, मगर प्रतिष्ठा भवानीराम की दांव पर लगी हुई थी. गांव वाले अच्छी तरह जानते थे कि जीतने के बाद गणपत सरपंच जरूर कहलाएगा, मगर असली सरपंच भवानीराम होंगे. गांव की पंचायत में बैठ कर वे ही फैसला लेंगे. गणपत तो उन का मुहरा बन कर रहेगा.

राजनीति की यह हवा गांव के वातावरण को दूषित कर रही थी, यह बात गांव के बुजुर्ग अच्छी तरह समझ रहे थे. जिस गांव में कभी शांति, अमन और भाईचारा था, वहां सभी अब एकदूसरे की जान के दुश्मन बन गए थे. आखिर तनाव के माहौल में चुनाव संपन्न हुए. प्रतिष्ठा की इस लड़ाई में गणपत जीत गया, लेकिन यह जीत गणपत की नहीं, भवानीराम की थी. गांव वाले गणपत को नहीं असली सरपंच भवानीराम को ही मानते हैं. मगर 8 दिन तक जीत की खुमारी भवानीराम के सिर से नहीं उतरी. उधर, अब गणपत नौकर नहीं सरपंच हो गया था. गांव की पंचायत में वह कुरसी पर बैठने लगा था, लेकिन भवानीराम भी उस के साथ रहता. वह अपनी गाड़ी में बैठा कर गणपत को शहर की मीटिंग में ले जाता था.

ऐसे ही 3 साल बीत गए. भवानीराम के कारण पंचायत को जो पैसा मिला, उस से निर्माण कार्य भी करवाए गए. गणपत से अंगूठा लगवा कर भवानीराम शासकीय योजनाओं को चूना भी लगाता रहा. मगर पंचायत में राधेश्याम के चुने पंच बगावत भी करते रहे. भवानीराम ने किसी की परवा नहीं की, क्योंकि गांव वाले व स्वयं भवानीराम जानते थे कि गणपत तो उन का मुहरा है. जब चाहें उस से कहीं भी अंगूठा लगवा सकते हैं. भवानीराम द्वारा गणपत से अंगूठा लगवा कर शासन का पैसा डकारने पर राधेश्याम के पंच गणपत पर चढ़ बैठे. उन्होंने सलाह ही नहीं दी बल्कि चिल्ला कर कहा,‘‘तुम कब तक भवानीराम के मुहरे बने रहोगे. तुम उन का मुहरा मत बनो, कहीं वे एक दिन तुम्हें जेल की हवा न खिला दें.’’ गणपत अंगूठा लगाने के अलावा कुछ नहीं जानता था. अत: उस की हालत सांपछछूंदर जैसी हो गई थी. एक तो पंचायत के सदस्य उस पर आक्रमण करते रहे, दूसरा शहर में जब भी पंचायत में जाता था, तब वह अपना मजबूत पक्ष नहीं रख पाता था. भवानीराम उस के साथ होते, तो अवश्य मजबूती से पक्ष रखते थे. मगर शासन ने यह निर्णय लिया जब भी शहर की मीटिंग में सरपंच को बुलाया जाए, तब सरपंच आए, उस का प्रतिनिधि या अन्य कोई सरपंच के साथ न आए. ऐसे में गणपत की हालत पतली रहती थी.

इधर भवानीराम के प्रति गणपत के मन में विद्रोह के अंकुर फूट रहे थे. वह अवसर की प्रतीक्षा में था कि कैसे भवानीराम से अपना पिंड छुड़ाए, क्योंकि अभी तक सब उसी पर उंगली उठा रहे थे. आज इसी का नतीजा था कि उस ने भवानीराम से पिंड छुड़ा लिया था. जब गणपत घर पहुंचा तो उस की पत्नी रामकली बोली, ‘‘क्या कहा मालिक ने?’’ ‘‘उन से संबंध तोड़ आया हूं रामकली. मैं उन के कारण बदनाम हो रहा था. सभी मुझे कह रहे थे कि भवानीराम के साए से बचो, तुम्हें बदनाम कर देंगे. जेल की हवा खिला देंगे. तब मैं ने सोचा क्यों न भवानीराम से संबंध तोड़ लूं.’’

‘‘और तुम ने लोगों की बात मान ली,’’ रामकली समझाते हुए बोली, ‘‘लोगों का क्या है, उन्हें तो बदनाम करने में मजा आता है. यह मत भूलो कि भवानीराम के कारण ही आप सरपंच बने हैं, जिन्होंने 3 साल में गांव में खूब काम भी करवाए हैं. एक बात कह देती हूं, भवानीराम से पंगा ले कर आप ने अच्छा नहीं किया, क्योंकि उन के पास आप के खिलाफ वे सारे सुबूत हैं, जिन पर आप ने अंगूठा लगाया है. वे आप को कानूनी पचड़े में फंसा सकते हैं. मेरी मानो तो जा कर भवानीरामजी से माफी मांग आओ.’’

‘‘यह तुम कह रही हो रामकली?’’ गुस्से से गणपत बोला, ‘‘शासन को कितना चूना लगाया है उन्होंने, यह तुम नहीं समझोगी.’’

‘‘मैं नहीं, तुम भी नहीं समझ रहे हो. एक तो तुम्हें आता कुछ नहीं है. अत: एक बार फिर कहती हूं, भवानीरामजी आप को कानूनी मुश्किल में डाल सकते हैं. सोच लो.’’

रामकली की बात सुन कर गणपत सोच में पड़ गया. रामकली उस जैसी अंगूठाछाप नहीं है. वह कुछ पढ़ीलिखी होने के साथ अक्ल भी रखती है. भवानीराम से उस की दुश्मनी उलटी भी पड़ सकती है. यह तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था. शासकीय गबन में भवानीराम उसे जेल भी पहुंचा सकते हैं. 3 साल तो उस ने निकाल दिए हैं. अब 2 साल बचे हैं. वे भी निकल जाएंगे. जातेजाते भवानीराम ने उन्हें धमकी देते हुए कहा भी था, ‘मत लगा अंगूठा. कैसे सरपंचगीरी करता है, देखता हूं.’

‘‘क्या सोच रहे हो?’’ रामकली उसे चुप देख कर बोली. ‘‘हां, तुम ठीक कहती हो, रामकली. लोगों के बहकावे में आ कर मुझे मालिक से पंगा नहीं लेना चाहिए था. मैं अभी जाता हूं और मालिक से माफी मांग आता हूं. साथ ही उस कागज पर अंगूठा भी तो लगाना है मुझे,’’ कह कर गणपत बाहर निकल गया. रामकली व्यंग्य से मुसकराती रह गई.

राजस्थान: जादूगर अशोक गहलोत का “खेला”

अभी तक यह माना जाता रहा है कि किसी भी राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अथवा कहें “आलाकमान” या फिर “सुप्रीमो” का पद सबसे अहम और महत्वपूर्ण होता है. मगर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का पद सोने की प्लेट में सजाकर के अशोक गहलोत को दिया जा रहा था जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. और वह भी कुछ इस तरह की राजस्थान मुख्यमंत्री का पद बड़ा है और इसके लिए उन्होंने अपनी 50 साल की राजनीतिक जीवन की प्रतिष्ठा को दांव पर लगा दिया और चाहत है कि मुख्यमंत्री पद बना रहे.

भारतीय राजनीति में यह एक ऐसा समय है, जब राजनीति विज्ञान के छात्रों को साथ ही देश को यह देखने समझने को मिल रहा है कि एक राजनीतिक पार्टी जिस का लंबा इतिहास है और जो सबसे लंबे समय तक देश की सत्ता पर बनी रही अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए लगभग राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम तय था.

मगर देखा यह जा रहा था कि जैसे ही अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत का नाम आगे बढ़ने लगा वह स्वयं पीछे हटने लगे और यह बात खुलकर कहीं की मुख्यमंत्री पद और राष्ट्रीय अध्यक्ष दोनों पदों पर अशोक गहलोत रह सकते हैं.

ऐसे समय में राहुल गांधी परिदृश्य में उभरते हैं और कहते हैं कि कांग्रेस का यह नियम है कि “एक व्यक्ति एक पद” जिसे अशोक गहलोत बिना नानुकुर के स्वीकार कर लेते हैं.

यहां सब ठीक-ठाक दिखाई देता रहा मगर कांग्रेस के अंदर खाने में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. आज देश के सामने जो दृश्य- ब- दृश्य राजनीतिक खेल देखा गया वह अपने आप में राजनीति का एक ऐसा अध्याय है जिसे शायद कभी भुलाया नहीं जा पाएगा और जब जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा अशोक गहलोत की चर्चा होगी. इस तरह उन्होंने अपने मुख्यमंत्री पद को बनाए रखने के लिए एक खेल खेला, यह खेल सब ने देखा है, मगर उसके भीतर का सच, आपको हम इस रिपोर्ट में बताने जा रहे है.

एक राजनीतिक जादूगर

सच तो यह है कि अशोक गहलोत राजनीति में आने से पूर्व एक छोटे से जादूगर थे और सड़कों पर जादू का खेल दिखाया करते थे . किसी फिल्म के सुखद अंत की तरह उनकी जिंदगी में ट्विस्ट हुआ और कांग्रेस पार्टी में आने के बाद  धीरे-धीरे आगे बढ़ते चले गए और राजस्थान के मुख्यमंत्री बन गए. सभी जानते हैं कि वर्तमान में कांग्रेस गांधी परिवार आलाकमान के सबसे चहेते शख्स हैं. यही कारण है कि अशोक गहलोत को सोनिया गांधी राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार थे. अंदर खाने का सच राजनीति के पैंतरे बाजी को देखने वाले समझते हैं. मगर जैसे कि किसी कहानी में आपने पढ़ा होगा कि किसी एक शख्स की जान तोते में थी वैसे ही शायद मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत की जान या कहें राजनीति में उनकी चाहत मुख्यमंत्री पद तक सीमित थी या यह भी कह सकते हैं कि अशोक गहलोत यह जानते हैं कि  कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद कितना कांटो भरा है और मुख्यमंत्री पद की सुख सुविधाओं को छोड़कर प्रदेश की राजनीति से राष्ट्रीय राजनीति में अध्यक्ष की भूमिका का निर्वाहन उनके लिए कितना चुनौती भरा होगा और हो सकता है वे सारी बाजी ही हार जाए.

तो राजनीति के पटल पर राजस्थान के इस जादूगर ने जो खेल दिखाया उसे देख कर के सब दंग रह गए राजस्थान में जिस तरह विधायकों ने सचिन पायलट के खिलाफ खड़े होकर के विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया यह दृश्य देख कर के लोगों की मानो धड़कन बढ़ गई.

और तो और कांग्रेसी आलाकमान श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों ही मानो क्षुब्ध हो उठे. मगर राजनीति की त्रासदी देखिए इसके बाद जैसा कि होना था अशोक गहलोत अध्यक्ष पद से छुटकारा तो पा ही गए उन पर आलाकमान ने कोई गाज भी नहीं गिराई है.

हां, कहने के लिए आलाकमान ने राजस्थान के 3 बड़े कांग्रेस के चेहरों को नोटिस जो थमा दिया है. हो सकता है छोटी बड़ी कार्रवाई भी हो मगर सबसे बड़ी बात यह है कि इस सारे जादू को दिखाने वाले जादूगर अशोक गहलोत का बाल भी बांका नहीं हुआ और वह अपना खेल दिखा कर मुस्कुराते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे शान से अट्टहास लगा रहे हैं .

नास्तिकता नकारात्मक नहीं

नास्तिक शब्द, जिसे इंग्लिश में एथीस्ट कहते हैं, को बहुत ही नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है. तुरंत नास्तिकों के विचारों से दूरी बनाए रखने की सलाह दे दी जाती है. इस से होता यह है कि नास्तिक लोग भी खुद को प्रगतिशील, तर्कशील, उदार जैसे शब्दों में पिरोने लगते हैं. ऐसा क्यों? नास्तिकता की विचारधारा किसी एक जगह, देश, या व्यक्ति से नहीं बंधी, यह तो किसी भी तार्किक जगह, देश या व्यक्ति के भीतर पनप सकती है.

अकसर भारत में नास्तिकता को पश्चिमी विचार मान कर खारिज कर दिया जाता है पर जानकारी लायक बात यह है कि इसी देश की धरती पर दैवीय शक्तियों को नकारने वाले विचार पैदा हुए और बढ़े भी, भले उन का आज स्वरूप बदल गया हो पर चार्वाक, बौद्ध और जैन इत्यादि विचार यहीं के पैदाइश रहे.

अधिकांश लोग धार्मिक हैं और उन का विश्वास होता है कि ईश्वर में आस्था रखने पर ही वे दयालु, परोपकारी, प्रेममय और प्रफुल्ल होते हैं और तभी जीवन का आनंद ले सकते हैं. वे सच में यह सोचते हैं कि जो ईश्वर को नहीं मानता वह एक अच्छा और नैतिक व्यक्ति नहीं हो सकता. वह दूसरों का भला नहीं कर सकता और न तो हंसबोल सकता है. यानी वह एक दुखी और बुरा व्यक्ति है.

कोई व्यक्ति जो किसी दैवीय चमत्कारों पर विश्वास नहीं करता पर चुपचाप यह सब सहतासुनता है तो वास्तव में वह इस नकारात्मक सोच का समर्थन ही कर रहा होता है. इस से वह यही साबित कर रहा होता है कि वास्तव में नास्तिक खुश नहीं रह सकते, आनंदित नहीं हो सकते.

दुनिया में अधिकतर भेदभाव को सही बनाए जाने का आधार ही धर्म पर टिका है. जाहिर है धर्म और दिक्कतें आपस में गुंथी हुई हैं. अगर तार्किक व्यक्ति थोड़ी और दक्षता का प्रयोग करे तो सब से पहले इन्हीं धार्मिक वर्जनाओं से खुद को मुक्त करे. यदि आप जातिवाद के खिलाफ अपने विचार रखते हैं तो उसी तर्ज पर उन ग्रंथों के खिलाफ विचार खुदबखुद पैदा हो जाने चाहिए जो इन कुव्यवस्थाओं को थोपे हुए हैं.

प्रगतिशील शब्द बुरा नहीं पर प्रगतिशीलता सटीक नहीं. इस के कई आयाम हो सकते हैं. अगर आप कहते हैं कि आप ‘प्रगतिशील’ हैं तो उस का अर्थ अपनी पूजा, अर्चना, दीये की जगह बिजली का बल्ब जला कर करने वाले व्यक्ति से ले कर ईश्वर पर विश्वास न करने वाले किसी नास्तिक व्यक्ति तक, कुछ भी लगाया जा सकता है. जो बात कहनी है, बिना लागलपेट के साफसाफ कही जाए तो स्पष्टता आती है.

दीवाली स्पेशल -भाग 1 : जिंदगी जीने का हक

प्रणव तो प्रिया को पसंद था ही लेकिन उस से भी ज्यादा उसे अपनी ससुराल पसंद आई थी. हालांकि संयुक्त परिवार था पर परिवार के नाम पर एक विधुर ससुर और 2 हमउम्र जेठानियां थीं. बड़ी जेठानी जूही तो उस की ममेरी बहन थी और उसी की शादी में प्रणव के साथ उस की नोकझोक हुई थी. प्रणव ने चलते हुए कहा था, ‘‘2-3 साल सब्र से इंतजार करना.’’

‘‘किस का? आप का?’’

‘‘जी नहीं, जूही भाभी का. घर की बड़ी तो वही हैं, सो वही शादी का प्रस्ताव ले कर आएंगी,’’ प्रणव मुसकराया, ‘‘अगर उन्होंने ठीक समझा तो.’’

‘‘यह बात तो है,’’ प्रिया ने गंभीरता से कहा, ‘‘जूही दीदी, मुझे बहुत प्यार करती हैं और मेरे लिए तो सबकुछ ही ठीक चाहेंगी.’’

प्रणव ने कहना तो चाहा कि प्यार तो वह अब हम से भी बहुत करेंगी और हमारे लिए किसे ठीक समझती हैं यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन चुप रहा. क्या मालूम बचपन से बगैर औरत के घर में रहने की आदत है, भाभी के साथ तालमेल बैठेगा भी या नहीं.

अभिनव के लिए लड़की देखने से पहले ही केशव ने कहा था, ‘‘इतने बरस तक यह मकान एक रैन बसेरा था लेकिन अभिनव की शादी के बाद यह घर बनेगा और इस में हम सब को सलीके से रहना होगा, ढंग के कपड़े पहन कर. मैं भी लुंगीबनियान में नहीं घूमूंगा और अभिनव, प्रभव, प्रणव, तुम सब भी चड्डी के बजाय स्लीपिंग सूट या कुरतेपाजामे खरीदो.’’

‘‘जी, पापा,’’ सब ने कह तो दिया था लेकिन मन ही मन डर भी रहे थे कि पापा का एक भरेपूरे घर का सपना वह पूरा कर सकेंगे कि नहीं.

केशव मात्र 30 वर्ष के थे जब उन की पत्नी क्रमश: 6 से 2 वर्ष की आयु के 3 बेटों को छोड़ कर चल बसी थी. सब के बहुत कहने के बावजूद उन्होंने दूसरी शादी के लिए दृढ़ता से मना कर दिया था.

वह चार्टर्ड अकाउंटेंट थे. उन्होंने घर में ही आफिस खोल लिया ताकि हरदम बच्चों के साथ रहें और नौकरों पर नजर रख सकें. बच्चों को कभी उन्होंने अकेलापन महसूस नहीं होने दिया. आवश्यक काम वह उन के सोने के बाद देर रात को निबटाया करते थे. उन की मेहनत और तपस्या रंग लाई. बच्चे भी बड़े सुशील और मेधावी निकले और उन की प्रैक्टिस भी बढ़ती रही. सब से अच्छा यह हुआ कि तीनों बच्चों ने पापा की तरह सीए बनने का फैसला किया. अभिनव के फाइनल परीक्षा पास करते ही केशव ने ‘केशव नारायण एंड संस’ के नाम से शहर के व्यावसायिक क्षेत्र में आफिस खोल लिया. अभिनव के लिए रिश्ते आने लगे थे. केशव की एक ही शर्त थी कि उन्हें नौकरीपेशा नहीं पढ़ीलिखी मगर घर संभालने वाली बहू चाहिए और वह भी संयुक्त परिवार की लड़की, जिसे देवरों और ससुर से घबराहट न हो.

 

मुखरित मौन – भाग 5 : क्या अवनी अपने ससुराल की जिम्मेदारियां निभा पाई

मानसी बेटी से बात करने के लिए तरस जाती. पहले सिर्फ उस की नौकरी थी, इसलिए थोड़ीबहुत बात हो जाती थी. पर अब उस की दिनचर्या का थोड़ाबहुत हिस्सेदार परिमल भी हो गया था.

‘‘सासससुर के साथ भी थोड़ाबहुत बैठती है छुट्टी के दिन? कभी किचन का रुख भी कर लिया कर. अब तेरी शादी हो गई है. तेरे सासससुर अच्छे हैं पर थोड़ीबहुत उम्मीद तो वे भी करते होंगे,’’  एक दिन फोन पर बात करते हुए मानसी बोली.

‘‘उफ, मम्मी, फिर शुरू हो गए आप के उपदेश. अरे, जब मैं किसी से बदलने की उम्मीद नहीं करती, जो जैसा है वैसा ही रह रहा है, तो मुझ से बदलने की उम्मीद कैसे कर सकता है कोई. शादी मेरे लिए ही सजा क्यों है. यह मत पहनो, वह मत करो. मन हो न हो, सब से बातचीत करो. जल्दी उठो. रिश्तेदार आएं तो उन्हें खुश करो,’’ अवनी झल्ला कर बोली.

कमरे के बाहर से गुजरती सुजाता के कानों में अवनी की ये बातें पड़ गईं. सुजाता बहुत ही खुले विचारों की महिला थीं. हर बात का सकारात्मक पहलू देखना व विश्लेषणात्मक तरीके से सोचना उन की आदत थी.

पारंपरिक सास के कवच से बाहर आ कर एक स्त्री के नजरिए से वे सोचने लगीं, ‘आखिर गलत क्या कह रही है अवनी. शादी सजा क्यों बन जाती है किसी लड़की के लिए. लड़के के लिए शादी न कल सजा थी न आज, पर लड़की के लिए…वे खुद भी कामकाजी रही हैं. अंदरबाहर की जिम्मेदारियों में बुरी तरह पिसी हैं. पति ने भी इतना साथ नहीं दिया. कितने ही क्षण ऐसे आए जब नौकरी बचाना भी मुश्किल हो गया था. कामकाजी होते हुए भी उन से एक संपूर्ण गृहिणी वाली उम्मीद की गई.’

ऐसे विचार कई बार उन के हृदय को भी आंदोलित करते थे. पर गलत को गलत कहने की उच्चशिक्षित होते हुए यहां तक कि आर्थिकरूप से आत्मनिर्भर होते हुए भी उन की पीढ़ी ने हिमाकत नहीं की. उन्हें लग रहा था जैसे उन की पीढ़ी का मौन अब अवनी की पीढ़ी की लड़कियों के मुंह से मुखरित हो रहा है. अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की दिनचर्या अपने हिसाब से शुरू होती है और अपने हिसाब से खत्म होती है. यह देख कर उन्हें अच्छा भी लगता. अवनी की पीढ़ी की लड़की का जीवन पतिरूपी पुरुष के जीवन के खिलने व सफल होने के लिए आधार मात्र नहीं है बल्कि दोनों ही बराबर के स्तंभ थे. एक भी कम या ज्यादा नहीं. वे अपने बेटे को अवनी से ज्यादा बदलते हुए देख रही थीं शादी के बाद.

वह पहले से जल्दी उठता. दोनों भागदौड़ कर तैयार होते. बैडरूम ठीक करते. अपनेअपने कपड़े प्रैस करते, उन्हें अलमारियों में लगाते. नाश्ते के लिए एक टोस्ट सेंकता तो दूसरा कोल्ड कौफी बनाता. एक कौर्नफ्लैक्स बाउल में डालता तो दूसरा दूध गिलास में. एक औमलेट बनाता तो दूसरा टोस्ट पर बटर लगाता. सुजाता खुद कामकाजी थीं. इसलिए उन की बहुत अधिक मदद नहीं कर सकती थीं. बस, घर की व्यवस्था उन्हें ठीकठाक मिल रही थी. राशनपानी, सब्जी कब कहां से आएगा, कामवाली कब काम करेगी, खाना कब बनेगा, इस का सिरदर्द न होना भी बहुत बड़ी मदद थी. इसलिए व्यक्तिगत स्तर पर मदद को ले कर वे चुप ही रहती थीं.

लेकिन परिमल को हर कदम पर अवनी का साथ व स्वतंत्रता देते देख, सुजाता को अपना जीवन व्यर्थ जाया जाने जैसा लगता. वे खुद तो कभी नौकरी व घर के बीच पूरी ही नहीं पड़ीं. ऊपर से सारे रिश्तेनाते. अवनी को तो रिश्तेनाते निभाने की कोई फिक्र ही नहीं थी. यहां तक तो उस की न तो सोच जाती न ही समय था. उस पर भी अब परिवार छोटे. एक टाइम की चाय भी नहीं पिलानी है. और फिर व्हाट्सऐप…चाय की प्याली भी गुडमौर्निंग के साथ व्हाट्सऐप पर भेज दो, और जरूरत पड़ने पर बर्थडे केक भी, यह सब सोच कर सुजाता मन ही मन मुसकराईं.

अवनी की पीढ़ी की लड़कियों ने जैसे एक युद्ध छेड़ रखा है. वर्षों से आ रही नारी की पारंपरिक छवि के विरुद्ध सुजाता सोचतीं, भले ही कितना कोस लो आजकल की लड़कियों को, सच तो यह है कि सही मानो में वे अपना जीवन जी रही हैं. मुखरित हो चुकी हैं, यह पीढ़ी ऐसा ही जीवन शायद उन की पीढ़ी या उन से पहले और उन से पहले की भी पीढ़ी की लड़कियों ने चाहा होगा पर कायदे और रीतिरिवाजों में बंध कर रह गईं. पुरुषों के बराबर समानता स्त्रियों को किसी ने नहीं दी. लेकिन यह पीढ़ी अपना वह अधिकार छीन कर ले रही है.

फिर विकास तो अपने साथ कुछ विनाश तो ले कर आता ही है. गेहूं के साथ घुन तो पिस ही जाता है. अवनी और परिमल दोनों आजकल अत्यधिक व्यस्त थे. रात में भी देर से लौट रहे थे. वर्कलोड बहुत था. दोनों के रिव्यू होने वाले थे. घर आ कर दोनों जैसातैसा खा कर दोचार बातें कर के औंधेमुंह सो जाते. छुट्टी के दिन भी दोनों लैपटौप पर आंखें गड़ाए रहते.

मानसी की बेचैनी सीमा पार कर रही थी. उस में सुजाता जैसा धैर्य नहीं था. न ही वह सुजाता की तरह व्यस्त थी. इसलिए नई पीढ़ी की अपनी बहू के क्रियाकलापों को भी सहजता से नहीं ले पाती और अपनी भड़ास निकालने के लिए बेटी के कान भी उपलब्ध नहीं थे. मां के दुखदर्द सुनना अवनी की पीढ़ी की लड़कियों की न आदत है न फुरसत. पर बेटी से मोह कम कर बहू से मोह बढ़ाना मानसी जैसी महिलाओं को भी नहीं आता.

यदि अवनी ससुराल में न रह कर कहीं अलग रह रही होती तो मानसी अब तक आ धमकती. पर नएनए समधियाने में जा कर रहने में पुराने संस्कार थोड़े आड़े आ ही जाते थे. बेटी तो 2-4 बातें कर के फोन रख देती पर जबतब सुजाता से बात कर वह अपनी भड़ास निकाल लेती.

उन का इस कदर पुत्रीमोह देख कर सुजाता को अजीब तरह का अपराधबोध सालने लगता. जैसे उन की बेटी को उन से अलग कर के उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो. उन्हें कभी मानसी की फोन पर कही अजीबोगरीब बातों से चिड़चिड़ाहट होती तो कभी खुद भी एक बेटी की मां होने के नाते द्रवित हो जातीं.

बेटी से प्यार तो सुजाता को भी बहुत था. पर उस की व्यस्तता उन्हें प्यार जताने तक का समय नहीं देती, मोह की कौन कहे. पर मानसी की हालत देख कर उन्हें लगता कि सच ही कहते हैं, ‘खाली दिमाग शैतान का घर.’ हर इंसान को कहीं न कहीं व्यस्त रहना चाहिए. नौकरी ही जरूरी नहीं है और भी कई तरीके हैं व्यस्त रहने के. उस का दिल करता किसी दिन इतमीनान से समझाए मानसी को कि बच्चों से मोह अब कुछ कम करे और खुद की जिंदगी से प्यार करे.

अभी 55-56 वर्ष की उम्र होगी उन की. बहुत कुछ है जिंदगी में करने के लिए अभी. हर समय बेटीबेटी कर के, उस के मोह में फंस कर, वह खुद की भी जिंदगी बोझ बना रही है और बेटी की जिंदगी में भी उलझन पैदा कर रही है. अवनी की पीढ़ी

की लड़कियों की जिंदगी व्यस्तताभरी है. इस पीढ़ी को कहां फुरसत है कि वह मातापिता, सासससुर के भावनात्मक पक्ष को अंदर तक महसूस करे. लेकिन समझा न पाती, रिश्ता ही ऐसा था.

इसी बीच, कंपनी ने अवनी को 15 दिन की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई भेज दिया. अवनी जाने की तैयारी करने लगी. घर में किसी के मन में दूसरा विचार ही न आया. एक आत्मनिर्भर लड़की को औफिस के काम से जाना है, तो बस जाना है. लेकिन अवनी की मम्मी बेचैन हो गई.

‘‘कैसे रहेगी तू वहां अकेली इतने दिन. कभी अकेली रही नहीं तू. दिल्ली में भी तू अपनी फ्रैंड के साथ रहती थी,’’ मानसी कह रही थी. सुजाता को भी मोबाइल की आवाज सुनाई दे रही थी.

‘‘अकेले का क्या मतलब मम्मी. नौकरी में तो यह सब चलता रहता है. कंपनी मुझे भेज रही है. आप हर समय चिंता में क्यों डूबी रहती हैं. ऐसा करो आप और पापा कुछ दिनों के लिए कहीं घूम आओ या ऐसा करो गरीब बच्चों को इकट्ठा कर के आप पढ़ाना शुरू कर दो,’’ अवनी भन्नाती हुई बोली. अवनी की बात सुन कर सुजाता की हंसी छूटने को हुई.

‘‘तू हर समय बात टाल देती है. मैं तुझे अकेले नहीं जाने दे सकती. मैं चलती हूं तेरे साथ.’’

‘‘आफ्फो मम्मी, आप का वश चले तो मुझे वाशरूम भी अकेले न जाने दो. मेरी शादी हो गई है अब. जब यहां किसी को एतराज नहीं तो आप क्यों परेशान हो रही हैं. मेरे साथ जाने की कोई जरूरत नहीं.’’

‘‘मां की चिंता तू क्या जाने. जब मां बनेगी तब समझेगी,’’ मानसी की आवाज भर्रा गई.

‘‘मां, अगर इतनी चिंता करती हैं तो मुझे मां ही नहीं बनना. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. मैं फोन औफ कर रही हूं. मुझे औफिस का जरूरी काम खत्म करना है.’’

‘‘अच्छा, फोन औफ मत कर. जरा मम्मी से बात करा अपनी.’’

अवनी ने फोन सुजाता को पकड़ा दिया. आज मानसी की बातें सुन कर सुजाता का दिल किया कि बुरा ही मान जाए मानसी पर वे अब चुप नहीं रहेंगी, अपनी बात बोल कर रहेंगी. वे फोन पर बात करतेकरते अपने कमरे में आ कर बैठ गईं.

‘‘देख रही हैं आप. कैसे रहेगी वहां अकेली. मुझे भी मना कर रही है. आप परिमल से कहिए न कि छुट्टी ले कर उस के साथ जाए.’’ उस की बेसिरपैर की बात पर झुंझलाहट हो गई सुजाता को.

‘‘परिमल के पास इतनी छुट्टी कहां है मानसीजी. और फिर यह तो शुरुआत है. जैसेजैसे नौकरी में समय होता जाएगा, ऐसे मौके तो आते रहेंगे. आप चिंता क्यों कर रही हैं. आप ने उच्च शिक्षा दी है बेटी को तो कुछ अच्छा करने के लिए ही न. घर बैठने के लिए तो नहीं. समझदार व आत्मविश्वासी लड़कियां हैं आजकल की. इतनी चिंता करनी छोड़ दीजिए आप भी.’’

‘‘कैसी बात कर रही हैं आप. कैसे छोड़ दूं चिंता. आप नहीं करतीं अपनी बेटी की चिंता?’’

‘‘मैं चिंता करती हूं मानसीजी, पर अपनी चिंता बच्चों पर लादती नहीं हूं.’’ सुजाता का दिल किया, अगला वाक्य बोले, ‘और न बेटी की सास को जबतब कुछ ऐसावैसा बोल कर परेशान करती हूं,’ पर स्वर को संभाल कर बोलीं, ‘‘बच्चों की अपनी जिंदगी है. यदि बच्चे अपनी जिंदगी में खुश हैं तो बस मातापिता को चाहिए कि दर्शक बन कर उन की खुशी को निहारें और खुद को व्यस्त रखें. आज की पीढ़ी बहुत व्यस्त है, इन की तुलना अपनी पीढ़ी से मत कीजिए. इस का मतलब यह नहीं कि बच्चों को हम से प्यार नहीं, पर उन की दिनचर्या ही ऐसी है कि कई छोटीछोटी खुशियों के लिए उन के पास समय ही नहीं है या कहना चाहिए खुशियों के मापदंड ही बदल गए हैं उन की जिंदगी के.’’

मानसी एकाएक रो पड़ी फोन पर. सुजाता का दिल पसीज गया. लेकिन सोचा, आखिर बेटी से मोह भंग तो होना ही चाहिए मानसी का.

‘‘मानसीजी, क्यों दिल छोटा कर रही हैं. अवनी आप की बेटी है और जिंदगीभर आप की बेटी रहेगी. लेकिन एक बच्ची आप के पास भी है. उसे भी अवनी के नजरिए से देखेंगी तो वह भी उतनी ही अपनी लगेगी. प्यार कीजिए बच्चों से, पर अपना प्यार, अपना रिश्ता लाद कर उन की जिंदगी नियंत्रित मत कीजिए. बल्कि, अपनी जिंदगी खुशी से जीने के तरीके ढूंढि़ए. अभी हमारी ऐसी उम्र नहीं हुई है. खूबसूरत उम्र है यह तो. सब जिम्मेदारियों से अब जा कर फारिग हुए हैं. अपने छूटे हुए शौक पूरे कीजिए. अब वे दिन लद गए कि बच्चों की शादी की और बुढ़ापा आ गया. अब तो समय आया है एक नई शुरुआत करने का.’’

मानसी चुप हो गई. सुजाता को समझ नहीं आ रहा था कि मानसी उन की बात कितनी समझी, कितनी नहीं. उसे अच्छा लगा या बुरा. ‘‘आप सुन रही हैं न,’’ वे धीरे से बोलीं.

‘‘हूं…’’

‘‘मैं आप का दिल नहीं दुखाना चाहती, बल्कि बड़ी बहन की तरह आप का साथ देना चाहती हूं. अवनी खुश है अपनी जिंदगी में. व्यस्त है अपनी नौकरी में. आप के पास कम आ पाती है, कम बात कर पाती है तो क्या आप सोचती हैं कि वह हमारे पास रहती है, तो हमारी बहुत बातें हो जाती हैं. आप दूर हैं, फिर भी फोन पर बात कर लेती हैं, लेकिन मैं तो जब उसे अपने सामने थका हुआ देखती हूं तो खुद ही बातों में उलझाने का मन नहीं करता. छुट्टी के दिन बच्चे काफी देर से सो कर उठते हैं. फिर उन के हफ्ते में करने वाले कई काम होते हैं. शाम को थोड़ाबहुत इधरउधर घूमने या मूवी देखने चले जाते हैं.

‘‘यदि इस तरह से हम हर समय अपनी खुशियों के लिए बच्चों का मुंह देखते रहेंगे तो हमारी खुशियां रेत की तरह फिसल जाएंगी मुट्ठी से और हथेली में कुछ भी न बचेगा. इसीलिए कहा इतना कुछ. अगर मेरी बात का बुरा लगा हो तो क्षमा चाहती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आप की बात का बुरा नहीं लगा मुझे. बल्कि आप की बात पर सोच रही हूं. बहुत सही कह रही हैं. अवनी भी जबतब कुछ ऐसा ही समझाती है मगर झल्ला कर. मैं भी कोई नई राह ढूंढ़ती हूं. आप नौकरी में व्यस्त हैं, इसीलिए जिंदगी को सही तरीके से समझ पा रही हैं शायद.’’

‘‘नौकरी के अलावा भी बहुत से रास्ते हैं जिंदगी में व्यस्त रहने के. मैं भी रिटायरमैंट के बाद कोई नया रास्ता ढूंढ़ूंगी. आप भी सोच कर ढूंढि़ए और ढूंढ़ कर सोचिए,’’ कह कर सुजाता हंस दी.

‘‘हां जी, आप बिलकुल ठीक कह रही हैं. कब जा रही है अवनी?’’

‘‘परसों सुबह की फ्लाइट से.’’

‘‘ठीक है. कल रात उसे ‘गुड विशेज’ का मैसेज कर दूंगी,’’ कह कर मानसी खिलखिला कर हंस पड़ी और साथ ही सुजाता भी.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें