फिल्म ‘गोलमाल-3’ का एक सीन आप को याद होगा, जिस में अजय देवगन और अरशद वारसी की पटाखों की दुकान में एक चिंगारी से आग लग जाती है और लाखों रुपए देखते ही देखते स्वाहा हो जाते हैं. ऐसा ही एक सीन फिल्म ‘चाची-420’ में भी था, जहां रौकेट के गलत इस्तेमाल से इस की चपेट में कमल हसन और तब्बू की बेटी आ जाती है. हम इस तरह की घटनाएं सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, दीवाली के अगले दिन के अखबारों में भी देखते हैं. लेकिन क्या यह सब देख कर हम अपने दीवाली मनाने के तरीके में बदलाव लाते हैं? कई लोगों का कहना होता है कि साल में एक बार ही तो बच्चे पटाखे की जिद करते हैं. यह कुतर्क हर दूसरे घर में सुनने को मिल जाएगा. बच्चे भी ढेर सारे पटाखों की डिमांड करते हैं और खुश हो कर ढेर सारे पटाखे ले आते हैं. दीवाली दीपों का त्योहार न रह कर धूमधड़ाके, शोरगुल और धुएं वाले पटाखों का त्योहार हो गई है.

सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली के प्रदूषण पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली की हवा में इतना प्रदूषण है कि उन का पोता मुंह पर मास्क बांध कर घूमता है. उन्होंने कहा कि यह ऐसा मामला है जिस की रिपोर्टिंग फ्रंट पेज पर होनी चाहिए. मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी कई मानों में गंभीर है पर प्रदूषण की समस्या को हम हलके में ले कर फुलझडि़यां और पटाखों से हवा को जहरीला बना देते हैं. ग्रीनपीस की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा दर से प्रदूषण बढ़ता रहा तो 2020 तक दिल्ली सीएनजी से पहले के समय के बराबर प्र्रदूषित हो जाएगी. दीवाली के दिन देशभर में लाखोंकरोड़ों रुपए के पटाखे फोड़े जाते हैं. इस से एकसाथ वायु और ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. एक अनुमान के मुताबिक सामान्य दिनों के मुकाबले दीवाली के दिन शहरों का प्रदूषण 5 गुना बढ़ जाता है. दीवाली की रात प्रदूषण का ग्राफ 1200 से 1500 माइक्रोग्राम मीटर क्यूब के स्तर तक पहुंच जाता है. जबकि दीवाली के अगले दिन यह करीब 1100, तीसरे दिन 800 और 4-5 दिन बाद 284 से 425 माइक्रोग्राम मीटर क्यूब के स्तर तक आता है.

दीवाली के अगले दिन बारूद की गंध और धुएं की परत इतनी मोटी होती है कि अस्थमा के मरीज घर से बाहर तक नहीं निकल सकते हैं. यही हाल दीवाली की रात कान और कमजोर दिल के मरीजों का भी होता है.त्योहारों के बिगाड़ने में हमारी ही भूमिका है और हम ही इसे बेहतर कर सकते हैं. शहरों में रहने वाले लोग अपने पड़ोसियों या कालोनी वालों के साथ मिल कर इसे सैलिबे्रट कर सकते हैं. इस में व्यक्तिगत खर्च के साथ ही प्रदूषण भी कम होगा और आपसी मेलजोल भी बढ़ेगा. इस दौरान महल्लों या सोसाइटी में बच्चों के लिए संगीतमय कार्यक्रम और खेलकूद का आयोजन भी कर सकते हैं, ताकि उन का ध्यान पटाखों से हटाया जा सके. कोशिश करें कि इस दौरान दूसरे धर्म और जाति के लोगों को भी अपने साथ शामिल करें. इस से आपसी मेलजोल और सौहार्द बढ़ेगा. अपने आसपास पौधे लगाएं, जिस से सुंदरता बढ़े और प्रदूषण से लड़ने में भी मदद मिले. प्रदूषण के अलावा दीवाली के दौरान कई बार गलत खानपान भी त्योहार में मजे को किरकिरा कर देता है.

सेहत का भी रखें खयाल

कभी वाकई घी, दूध की नदियां बहती होंगी, यह दीवाली पर साबित हो जाता है. दूध, मावा और पनीर की खपत दीवाली के दिनों में इतनी होती है कि नकली माल भी कम पड़ जाता है. डा. अरविंद कहते हैं, ‘‘कई और वजहों से भी रोशनी का त्योहार अंधेरे में बदल सकता है और वह है मिलावटी मिठाइयां. दीवाली के दौरान बाजारों में मिलावटी मिठाइयों का भंडार लग जाता है. इस से कई बीमारियां जन्म लेती हैं, जैसे फूड पौइजनिंग, पेट का दर्द, बदहजमी, डायरिया, गले व पेट की एलर्जी, इन्फैक्शन आदि. इसलिए जहां तक मुमकिन हो घर में बनी मिठाइयों का ही सेवन करें और सेहतमंद दीवाली मनाएं.’’ त्योहार किसी किस्म का अनुशासन नहीं सिखाते उलटे अनुशासनहीनता के लिए उकसाते हैं. दीवाली पर यह बात समझ आती है जब हर कोई पेट को गोदाम समझते ठूंसठूंस कर खाता है. अब 500 से ले कर 2 हजार रुपए किलो तक की लाई या आई मिठाई यों ही तो नहीं फेंकी जा सकतीं. लिहाजा उसे पचाने या खपाने के लिए पहले पेट को तकलीफ दी जाती है जिसे वह बरदाश्त नहीं कर पाता. परिणाम यह कि 1000 रुपए डाक्टरों और दवाओं पर भी खर्चे जाते हैं. लेकिन जीभ पर लगाम कसने की जरूरत कोई नहीं समझता. दीवाली खानेखिलाने का त्योहार है, लेकिन इसे शुगर बढ़ाने का पर्व भी कहना गलत न होगा.  

मनाएं सुरक्षित दीवाली

श्री बालाजी एक्शन मैडिकल इंस्टिट्यूट, दिल्ली के सीनियर कंसलटैंट डा. अरविंद अग्रवाल कहते हैं, ‘‘बच्चों के लिए दीवाली का मतलब केवल पटाखे व मिठाइयां ही होता है. परंतु सावधानी न बरतने से यही उत्सव हादसे में बदल सकता है. इसलिए जहां तक मुमकिन हो पटाखों का प्रयोग न करें. यदि करें तो घर के बड़ों की निगरानी में ही पटाखे जलाएं. घर में यदि किसी को अस्थमा, धुएं से एलर्जी या कोई दिल की तकलीफ हो तो पटाखे उन के लिए नुकसानदेय साबित हो सकते हैं, साथ ही नवजात बच्चों को भी इस के शोर व धुएं से तकलीफ हो सकती है.’’

– डा. अरविंद अग्रवाल

 

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