अखिला के वकील ने तर्क दिया, ‘‘मी लार्ड, ये सारे सुबूत झूठे हैं और जानबूझ कर फैब्रिकेट किए गए हैं. इन की कोई फोरैंसिक जांच नहीं हुई है. इन को रिकौर्ड पर ले कर माननीय न्यायालय अपना समय बरबाद कर रहा है. इन की बिना पर मुलजिम को जमानत नहीं दी जा सकती.’’
न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप चाहते हैं कि इस की फ़ोरैंसिक जांच हो? अगर हां, तो वादी और उस के तथाकथित प्रेमी की आवाज के सैंपल ले कर जांच करवाई जाए.’’
इस पर वकील ने अखिला और उस के मांबाप की तरफ देखा. अखिला तो अपना सिर इस तरह नीचे झुकाए खड़ी थी जैसे किसी ने उस के ऊपर थूक दिया था. उस के मातापिता ने इनकार में सिर हिला दिया. वकील ने उन के पास आ कर पूछा, ‘‘जांच करवाने में क्या हर्ज है?’’
अखिला के पिता ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं, ये सारे सुबूत सही हैं. आगे जांच करवा कर मैं और फजीहत नहीं करवाना चाहता. इस लडक़ी ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. आप इस मामले को यहीं समाप्त कर दें.’’
हालांकि कोई वकील ऐसा नहीं चाहता. वह किसी न किसी तरीके से मामलों को बढ़ाते रहना चाहता है लेकिन यहां उस का तर्क किसी काम नहीं आया. अखिला के पिता से स्वयं न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप को मुलजिम की जमानत पर कोई एतराज है?’’
‘‘नहीं, मी लार्ड.’’
‘‘वादी का क्या कहना है?’’
अखिला थोड़ा आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मुझे कोई एतराज नहीं, परंतु मैं अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती.’’
‘‘यह बात मुकदमे के दौरान कहना. आज केवल प्रतिवादी की जमानत की सुनवाई हो रही है.’’
अखिला ने सहमति दे दी. कोर्ट ने प्रियांशु की जमानत मंजूर कर ली. शाम को वह जेल से छूट कर घर आ गया.
अब सारी चीजें शीशे की तरफ साफ थीं. आसमान से धुंध छंट चुकी थी. अखिला के असामान्य व्यवहार का कारण पता चल गया था. रमाकांत के परिवार के पास ऐसे सुबूत आ गए थे कि वे अगली दोतीन सुनवाई में मामले में बाइज्जत बरी हो सकते थे. मामले में बहुत ज्यादा गवाह भी नहीं थे. अखिला का बयान अहम था, परंतु सुबूतों के मद्देनजर उस के बयान की धज्जियां उड़ जाएंगी.
रमाकांत को अखिला के मातापिता की चुप्पी खल रही थी. वे उन से बात करना चाहते थे. जब उन्हें पता था कि उन की बेटी जिद्दी और क्रोधी है, हर प्रकार से अपनी बात मनवा लेती है, तो फिर उन के बेटे से शादी कर के उन्हें क्यों मुसीबत में डाला. शादी भी हो गई, तो क्यों नहीं अपनी बेटी को समझा पाए. घरेलू हिंसा का मामला दर्ज होने के बाद भी उन्हें सचाई से अवगत नहीं कराया. अपनी बेटी का ही पक्ष लेते नजर आए.
रमाकांत ने अवनीश को फोन किया, ‘‘भाईसाहब, हम आप से कुछ बात करना चाहते हैं? क्या आप हमारे घर आ सकते हैं?’’
अवनीश ने शर्मिंदगी के साथ कहा, ‘‘भाईसाहब, मुझे खेद है कि अखिला की वजह से आप के परिवार को इतनी मुसीबत झेलनी पड़ी.’’
‘‘आप चाहते तो यह मुसीबत कम हो सकती थी,’’ रमाकांत ने कुछ तल्खी के साथ कहा.
‘‘मैं समझता हूं कि मुझ से बहुत बड़ी गलती हुई है, परंतु आप मेरी मजबूरी समझ सकते हैं. कोई भी बाप अपनी बेटी को जानबूझ कर बरबादी के गड्ढे में नहीं धकेल सकता. वह जिस लडक़े के साथ शादी करना चाहती थी, उस की न तो कोई सामाजिक हैसियत है, न कोई अच्छा कमानेखाने वाला है.’’
‘‘आप मुझे तो अपने दिल की बात बता सकते थे,’’ रमाकांत ने कहा.
‘‘भाईसाहब, शादीब्याह में कौन मांबाप अपनी बेटी के प्रेम के बारे में बताता है, ये सब बातें तो छिपाई जाती हैं. परंतु मुझे नहीं पता था कि अखिला उस लडक़े के बहकावे में आ कर इस हद तक गिर जाएगी. उसे तलाक चाहिए था तो और भी तरीके थे. आप के खिलाफ हिंसा का मामला दर्ज करवा कर जेल भिजवा दिया. मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’
‘‘आप उसे यह झूठा मुकदमा दर्ज करने से तो रोक सकते थे?’’
‘‘इसी बात का तो मुझे मलाल है. वह आप के घर से निकलने के बाद सीधे थाने गई थी. मुकदमा दर्ज करवा कर ही घर आई थी. मुझे पता ही नहीं चला.’’
‘‘चलिए, अब आप के शर्मिंदा होने से भी क्या फर्क पड़ता है. आप के ऊपर जो कीचड़ उछलना था, वह उछल चुका. हमारे जीवन में जो कष्ट लिखे थे, वह हम भुगत चुके. अब सोचिए, आगे क्या करना है? आप की बेटी क्या चाहती है?’’
‘‘आप लोग क्या चाहते हैं?’’ अवनीश ने बहुत विनम्रता से पूछा.
‘‘अभी हम कुछ नहीं कह सकते. मुकदमा खत्म होगा, तभी कुछ विचार करेंगे. आप क्या समझते हैं कि इतना कष्ट झेलने के बाद, जेल की हवा खाने के बाद क्या हम इतना उदार होंगे कि अखिला को अपने घर की बहू बना कर रख सकें?’’
‘‘हां, भाईसाहब, ऐसा तो मुमकिन नहीं लगता, परंतु आप बहुत उदार हैं, क्षमाशील हैं. अखिला की नादानी को भूल कर उसे माफ कर सकते हैं. उस ने अपने दांपत्य जीवन को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, परंतु आप चाहेंगे, तो…’’ अवनीश ने जानबूझ कर वाक्य को अधूरा छोड़ दिया.
‘‘आप एक बार अखिला से बात कर के देखिए. अगर वह तलाक चाहती है, तो हम सहर्ष उसे देने के लिए तैयार हैं.’’
‘‘अगर वह आप के घर जाना चाहे तो…?’’
‘‘वह तो भरी अदालत में कह चुकी है कि हमारे यहां नहीं आना चाहती. फिर भी हमें प्रियांशु से बात करनी होगी. सबकुछ उस के ऊपर निर्भर करता है. एक बार हम उस की जिंदगी नर्क बना चुके हैं. दोबारा उसे नर्क में नहीं धकेल सकते.’’
‘‘ठीक है, हम अखिला से बात कर के एकदो दिनों में आप से मिलते हैं.’’
उचित अवसर पर अवनीश ने अखिला को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने भविष्य के लिए तुम ने जो रास्ता चुना है, वह तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगा. तुम ने देख लिया कि अब तुम मुकदमा नहीं जीत सकतीं. झूठे तथ्यों के आधार पर तुम्हें प्रियांशु से तलाक भी नहीं मिल सकता. अगर वे देना चाहेंगे, तभी यह संभव है, परंतु इतनी मक्कारी और फरेब के बाद भी क्या तुम्हें अक्ल नहीं आएगी कि इज्जतपूर्ण वैवाहिक जीवन अच्छा है या सारे नातेरिश्तों को तोड़ कर एक अजनबी व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत करना. प्रेम विवाह में जीवन की कठिनाइयां बाद में दिखाई देती हैं. मातापिता की सहमति से तय वैवाहिक संबंधों में कठिनाइयों को दूर करने के रास्ते तलाशे जा सकते हैं, लेकिन प्रेम विवाह में पतिपत्नी ही इन्हें दूर कर सकते हैं. कोई और रिश्तेदार उन के बीच में नहीं आता. अब तुम सोचो, तुम्हें क्या करना है?’’
अखिला मानसिक रूप से परेशान थी. वह समझती थी कि लड़ाईझगड़े से मामले सुलझ जाते हैं और पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से तलाक मिल जाता है. यहां तो मामला ही उलटा पड़ गया था. उस की सारी गोटियां उलटी पड़ गई थीं. कुछ भी आसान नहीं लग रहा था. कोर्ट में मामला पता नहीं कितने दिन तक चलेगा? तब तक वह बूढ़ी नहीं हो जाएगी? उस का प्रेमी कब तक उस का इंतजार करेगा? वह समझती थी, सबकुछ ढकाछिपा रहेगा और घरेलू हिंसा की आड़ में उसे तलाक मिल जाएगा. परंतु उस की सारी पोल खुल गई थी.
अब अगर वह अपने मामले को वापस ले लेती है, तब भी प्रियांशु से तलाश लेने का उस के पास कोई आधार नहीं बनता. उस का मामला झूठ साबित हो गया था. मांगने से क्या प्रियांशु उसे तलाक देगा? उसे और उस के मातापिता को जेल भिजवा कर उस ने अच्छा तो नहीं किया था, परंतु यही बात उस के पक्ष में जाती थी. उस के कर्म का देखते हुए शायद वह उसे तलाक दे दे. प्रियांशु उस के साथ बाकी जीवन क्यों व्यतीत करेगा? क्या उसे माफ कर देगा? ऐसा भला कौन होगा जो अखिला की गलती को माफ कर सकता था. उसे अभी भी आशा की किरण नजर आ रही थी.
उस की मानसिक स्थिति कुछ ऐसी थी कि वह सही निर्णय नहीं ले पा रही थी. उस ने पापा से कहा, ‘‘इतना सब होने के बाद क्या मैं प्रियांशु के साथ सामान्य जीवन व्यतीत कर पाऊंगी.’’
‘‘लगता तो नहीं है, परंतु अगर तुम स्वयं को सुधार सकती हो, तो मैं समझता हूं कि रमाकांतजी का परिवार तुम्हें माफ कर देगा. वे बहुत अच्छे लोग हैं.’’
वह सोच में पड़ गई, फिर बोली, ‘‘अगर वे मुझे तलाक दे दें?’’
अवनीश ने आंखें चौड़ी कर उसे देखा, ‘‘प्रेम का भूत अभी तक तुम्हारे सिर से नहीं उतरा.’’
‘‘पापा, आप ने शादी के पहले मेरी कोई बात नहीं सुनी, इसीलिए मुझे इतना प्रपंच करना पड़ा. अब मेरी सुन लीजिए, शायद बात बन जाए. मुझे नहीं लगता कि मैं प्रियांशु के साथ खुश रहूंगी. मैं ने उसे इतना कष्ट दिया है, उस के मांबाप को जेल भिजवाया है. ऊपर से भले वे लोग कुछ न कहें, परंतु अंदर से कभी माफ नहीं करेंगे.’’
‘‘तुम नहीं सुधरोगी,’’ अवनीश गुस्से से उठ कर अपने कमरे में चले गए. अखिला की मम्मी की समझ में नहीं आ रहा था, कैसी बेटी उन्होंने जनी थी. वे अंदर ही अंदर गुस्से से उफन रही थीं, परंतु कुछ करने की स्थिति में नहीं थीं. बेटी उन्हें अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही थी.
घर का माहौल बहुत विषैला हो गया था.
अवनीश अपनी बेटी के कृत्य से बहुत दुखी थे. वे अकेले ही रमाकांत के घर गए. सब के सामने उन्होंने हताश स्वर में कहा, ‘‘रमाकांत भाई, बुजुर्ग सही कह गए हैं, आदमी अपनी औलाद से हार जाता है. मैं हार गया, अखिला को समझाना किसी के भी वश में नहीं है.’’
‘‘क्या चाहती है वह?’’ रमाकांत ने स्पष्ट रूप से पूछा.
‘‘किसी भी तरह प्रियांशु से तलाक चाहती है.’’
कुछ पल के लिए सब के बीच डरावना सन्नाटा पसरा रहा. इस सन्नाटे के बीच सब के दिल, बस, धडक़ रहे थे और सांसों की सरसराहट इस बात का यकीन दिला रही थी कि सभी जिंदा थे.
रमाकांत का दिल पहले से ही चकनाचूर था. अखिला के अंतिम निर्णय से पारिवारिक जीवन के सुखचैन की अंतिम किरण भी बुझ गई थी. मरे से स्वर में उन्होंने कहा, ‘‘अब भी अगर वह नहीं सुधरना चाहती तो कोई कुछ नहीं कर सकता. उसे आग से खेलने का शौक है, तो अंगारे खाती रहे. बस, हमें छुटकारा दे दे. हमारी तरफ से कोई अड़चन नहीं है. हम संबंध विच्छेद कर लेंगे.’’
‘‘नहीं पापा,’’ अचानक प्रियांशु की गंभीर आवाज गूंजी.
‘‘क्यों?’’ रमाकांत के मुंह से निकला.
‘‘क्योंकि ऐसी झूठी और फरेबी लड़कियों को सबक सिखाना बहुत आवश्यक है. विवाह एक सोचासमझा बंधन माना जाता है. सुखी दांपत्य जीवन एक अच्छे परिवार और समाज की सुदृढ़ नींव बनता है. हम अखिला जैसी लड़कियों के ओछे व्यवहार से विवाह जैसी संस्था को नष्ट नहीं कर सकते. उसे यह बताना जरूरी है कि वैवाहिक संबंधों को बिना कारण तोडऩा इतना आसान नहीं है कि वह आजाद हो कर अपने प्रेमी से शादी कर ले. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा.’’
‘‘बेटा, यह क्या कह रहे हो तुम?’’ अखिला हमारे साथ नहीं रहना चाहती है, तो हम क्यों उस की राह का रोड़ा बने? इस से हमें भी परेशानी होगी.’’
‘‘परेशानी तो होगी, परंतु उस की राह का रोड़ा बन उसे सुधारा भी नहीं जा सकता. वह बेवकूफ है. उस ने मेरे साथ ब्याह किया है. फिर भी दांपत्य जीवन में आग लगा कर वह प्रेमी के साथ घर बसाने के सपने देख रही है. उसे समझना होगा, यह इतना आसान नहीं है. तलाक मिलने तक वह बूढ़ी हो जाएगी. हमारी न्यायिक प्रक्रिया बहुत जटिल है. तलाक लेने की प्रक्रिया तो और भी अधिक जटिल है. हमारा कानून विवाह को महत्त्व होता है, तलाक को नहीं,’’ प्रियांशु ने कहा.
‘‘इस से तो हम भी सालोंसाल कानूनी पचड़े में फंसे रहेंगे. हमारा पारिवारिक जीवन कष्टप्रद हो जाएगा,’’ रमाकांत ने कुछ सोचते हुए कहा.
‘‘परंतु हम गलत परंपरा को बढ़ावा भी नहीं दे सकते. अखिला शादी के पहले कुछ भी कर लेती, परंतु एक बार वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद उस की गलत हरकतों को हम मान्यता नहीं दे सकते. हमारे परिवार से उसे कोई तकलीफ नहीं थी, फिर भी उस ने हमें मुसीबत के जाल में फंसा दिया. इस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.”
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