Download App

कांग्रेस: खड़गे युग का आगाज

एक वयोवृद्ध, अतीत में मजदूर परिवार के मलिकार्जुन खड़गे का अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनना‌ भाजपा के लिए यह एक सदमे से कम नहीं है . देश की राजनीतिक फिजा में यह घटना सहज सामान्य प्रतीत होती है, मगर साफ दिखाई दे रहा है भाजपा के माथे पर सिलवटें पड़ गई हैं. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचन के बाद भारतीय जनता पार्टी को मानो पाला पड़ गया है उसे थुकते बन रहा है और नहीं निगलते हुए.

मलिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा कर श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल द्वारा मानो भारतीय जनता पार्टी को अस्त्र-शस्त्र विहीन कर दिया गया है. 2024 के लोकसभा समर में इन परिस्थितियों के बीच भाजपा की क्या रणनीति होगी यह देश जाने के लिए बेताब है.दरअसल,देश के लिए यह एक ऐतिहासिक घटना है- अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लंबे समय बाद एक गैर गांधी नेहरू परिवार से, एक मजदूर परिवार में जन्म लेकर कांग्रेस अध्यक्ष बनने का इतिहास मलिकार्जुन खड़गे द्वारा लिख दिया गया है.

कांग्रेस में एक विख्यात और विश्वसनीय नेता के रूप में स्थापित हो चुके मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान संभाल एक इतिहास रचा दिया है. कांग्रेस मुख्यालय में हुए कार्यक्रम में सोनिया गांधी, राहुल गांधी के साथ ही कई दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में खड़गे की ताजपोशी हो गई है. कांग्रेस पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे ने जो कहा उससे यह संकेत गया है कि सोनिया गांधी के ब्लूप्रिंट को आगे बढ़ाने और राहुल गांधी के विजन को लेकर चलने का संकेत है.

खड़गे ने अपने संबोधन से एक बड़े तबके का मानोदिल जीत लिया है वहीं भारतीय जनता पार्टी की धड़कन बढ़ गई है क्योंकि एक बड़ा मुद्दा भाजपा के हाथ से निकल गया है कि कांग्रेस मां बेटे की पार्टी है, यह आरोप लगाकर के भाजपा देश की जनता को आकर्षित करती थी मगर अब यह एक बड़ा मुद्दा भाजपा के हाथ से फिसल गया है और इस तरह भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं की बोलती बंद हो गई है. क्योंकि मलिकार्जुन खड़गे एक दलित परिवार से हैं ऐसे में खड़गे पर बिना सर पैर का आक्रमण भाजपा को भारी नुकसान पहुंचा सकता है.

खड़गे, सोनिया, राहुल एक चुनौती
देश में अब कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी में मल्लिकार्जुन खड़गे युग का आगाज हो गया है. कांग्रेस मुख्यालय में खड़गे ने पदभार ग्रहण किया . खड़गे ने बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपने पहले संबोधन में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की जमकर तारीफ की. फिर चाहे वह सोनिया की यूपीए सरकारों पर छाप हो या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा. खड़गे के मुताबिक इन दोनों शख्सियतों ने अपनी जिंदगी के बहुमूल्य दिन देश और कांग्रेस पार्टी को दिए हैं. जहां तक बात मलिकार्जुन खड़गे की है उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा 1969 में ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में शुरू की थी, उसे आपने आज कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को शोभायमान किया है.

यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि कांग्रेस की हालत आज बहुत अच्छी नहीं है एक समय में संपूर्ण देश में कांग्रेस की तूती बोलती थी मगर आज भारतीय जनता पार्टी की रणनीति के सामने और आक्रामक व्यवहार से कांग्रेस सिमटती चली जा रही है. भाजपा की रणनीति यह है कि देश में विपक्ष नाम मात्र का रह जाए और उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस पार्टी की ही है क्योंकि संपूर्ण देश में कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और काग्रेस से प्रेम करने वाले लोगों की तादाद करोड़ों में है और जब तक देश में कांग्रेस का अस्तित्व है भाजपा के लिए यह एक चुनौती है और वह चैन की नींद नहीं सो सकती. यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी साम, दाम, दंड, भेद करके काग्रेस को नेस्तनाबूत कर देना चाहती है. और भाजपा की इस योजना के सामने अब नये स्वरूप में मलिकार्जुन खड़गे के साथ खड़े हैं श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी.

Bigg Boss 16 : तलाकशुदा हैं गौतम विज , खुशी जैन ने किया खुलासा

बिग बॉस के घर में गौतम विज और सौदर्य शर्मा का नयन मटाका चल रहा है, इन दोनों की नजदीकियां लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रही है. वहीं कुछ लोगों को लग रहा है कि गेम खेलने के लिए गौतम विज और सौदर्य शर्मा एक दूसरे के साथ गेम खेल रहे हैं.

ये बात तो हर कोई जानता है कि गौतम विज तलाकशुदा हैं, लेकिन शो में आने के बाद से गौतम ने इस बात का खुलासा नहीं किया है, इसी बीच गौतम विज की बहन खुशी जैन ने इस बात का खुलासा कर दिया है कि गौतम विज तलाकशुदा हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ColorsTV (@colorstv)

लेकिन गौतम ने अभी तक इस बारे में कुछ नहीं कहा है. खुशी ने कहा कि गौतम शो में अपनी शादी के बारे में क्यों नहीं बता रहे हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि मुद्दे को क्यों दबा दिया गया है. हालांकि कुछ लोगों को लग रहा है कि गौतम अब तलाक के बारे में बात करके क्या करेगा.

खुशी जैन यहीं नहीं चुप रही उन्होंने कहा कि गौतम और सौदर्य इतने करीब हैं लेकिन उन्होंने अभी तक अपने तलाक के बारे में उन्हें भी नहीं बताया. सौदर्य शर्मा ने बताया कि वह नेशनल टीवी पर इस बारे में बात नहीं करना चाहते हैं.

आगे उन्होंने बताया कि वह इस बात को एक मुद्दा नहीं बनाना चाहते हैं, दरअसल, गौतम विज एक प्राइवेट पर्सन हैं वह नेशनल टीवी पर इस बारे में बात करना पसंद नहीं करते हैं. अगर गौतम विज की फिलिंग्स सही है तो वह उनकी बातों को जरूर समझेगी.

हालांकि जब गौतम विज ने तलाक लिया था तब इस खबर कि ज्यादा चर्चा नहीं थी, यहां तक की गौतम विज ने कभी ये नहीं कहा कि वह अपनी पत्नी से तलाक लेने जा रहे हैं.

बिग बॉस के घऱ में भूत बन पहुंची कैटरीना दिखा एक नया लुक

टीवी  शो बिग बॉस 16 इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में बना हुआ है, इस शो को हर कोई देखना पसंद करता है, हाल ही में डेंगू होने के कारण इस शो के होस्ट सलमान खाल को अपने काम से कुछ वक्त का ब्रेक लेना पड़ा है.

जिसके चलते इस शो में करण जौहर वापसी करने वाले हैं, इस शो में करण जौहर को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि शो पहले से भी काफी ज्यादा मजेदार होने वाला हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Katrina Kaif (@katrinakaif)

वहीं खबर है कि इस बार वीकेंड का वार एपिसोड को सलमान खान होस्ट करने वाले हैं. इस शो में जानी मानी एक्ट्रेस गेस्ट बनकर आने वाली हैं. सलमान का शो बिग बॉस 16 इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में बना हुआ है.

बता दें कि कैटरीना कैफ अपनी फिल्म फोन भूत के प्रमोशन के लिए आने वाली हैं, इस दौरान कैटरीना कैफ के साथ सिद्धांत चतुर्वेदी और ईशान खट्टर भी साथ में नजर आएंगे. बता दें कि इनकी फिल्म फोन भूत 4 नवंबर को रिलीज होगी.

कैटरीना इसके साथ ही सलमान खान की फिल्म टाइगर 3 में भी नजर आने वाली हैं. यह पहली बार होगा कि कैटरीना कैफ सलमान खान के साथ स्टेज शेयर करती नजर आएंगी. सलमान और कैटरीना की जोड़ी को फिर से एक बार देखऩे का मौका मिलेगा.

ये प्यार न कभी होगा कम -भाग 2: अनाया की रंग लाती कोशिश

नलिनी भले ही स्कूल टीचर हो, लेकिन है वह शांत स्वभाव की. नलिनी ने माहौल को शांत करना चाहा, “जाने दो न… कौन सा हमें बड़े भैया के परिवार के साथ रहना है. सौम्या और स्निग्धा को किसी सहारे की जरूरत नहीं, ये दोनों कितनी भी शांत हों, स्मार्ट हैं.”

सौम्या ने सब को चुप कराया.

“अरे, आप लोग तब से परेशान हैं. सब तो अकेले ही बाहर जा कर कैरियर बना रहे हैं. ग्वालियर कोई गांव नहीं है. और मैं कोई भोंदू नहीं हूं.”

“दीदी घर में भले ही भोंदू दिखती हैं, लेकिन बाहर बहुत स्मार्ट हैं पापा,” स्निग्धा ने बहनापा से लाड़ जताया, तो सौम्या ने स्निग्धा पर झूठा रोष जताया, “एई चुप… सिन्ना नातोली.”

“ये क्या है…?” नलिनी ने मुसकरा कर पूछा.

“देखो न मम्मा, दीदी मुझे इस नाम से बुलाती हैं, क्योंकि मुझे वह छोटी मछली कहना चाहती हैं. जब हम केरल घूमने गए थे, तब से दीदी मुझे स्निग्धा की जगह अकसर सिन्ना कहती हैं, केरल में छोटी को सिन्ना और मछली को नातोली कहते हैं.”

इन के पापा ने इन सब बातों के बीच कुछ सोच लिया था. कहा, “अलग से कमरा ले कर रहना महंगा पड़ेगा. सौम्या, तुम आज से ही नेट पर मुंबई में तुम्हारे कालेज के आसपास पीजी ढूंढ़ना शुरू करो. मैं भी अपने कुछ दोस्तों को कहता हूं.”

सौम्या ने हामी भरी, और चारों कुछ संतुष्ट हुए कि उन के लिए कुछ रास्ता तो निकल ही आएगा.

मितेश मंझले भाई हैं इस परिवार के. बड़े अरुणेश और छोटे जीतेश भी इसी घर में रहते थे.

गोविंदपुरी का यह घर दरअसल इन के मातापिता का है, जो अब इस दुनिया में रहे नहीं.

यह घर वैसे भी तीनों भाइयों के रहने के लिए पर्याप्त था. ऊपरनीचे 4-4 बड़े बेडरूम के अलावा दोनों तलों में 1-1 स्टोररूम, बैठक, अलग रसोई और नीचे वाले हिस्से में एक सीमेंट का चौरस आंगन, ऊपर बालकनी और सब से ऊपर बड़ी सी छत.

तीनों भाई यहीं पैदा हुए, पलेबढ़े और नौकरीशादी में यहीं रह कर सैटल हुए. मातापिता की मौत के बाद बड़े भाई अरुणेश का एक्जीक्यूटिव डायरैक्टर के पद पर जैसे ही प्रमोशन हुआ, वे कंपनी के दिए 3,000 स्क्वायर फुट के बंगले में शिफ्ट हो कर इसी शहर में गांधीनगर के पौश एरिया में रहने लगे.

जीतेश का ब्याह हुआ था अरबपति की इकलौती बेटी आयशा के साथ.

आयशा के पापा बिजनैस के सिलसिले में अरब, ईरान जाते थे, वहीं एक ईरानी खूबसूरत लड़की से उन्हें प्रेम हुआ. अरबपति प्रेमी पा कर वह भी खुशी से उस से विवाह कर भारत आ गई. तो आयशा इसी ईरानी मां की बला की खूबसूरत बेटी है.

उसे एक भाई भी हुआ था, लेकिन किसी बीमारी की वजह से वह भाई बचपन में ही चल बसा था.

आयशा को उस के पापा ने अच्छा पढ़ायालिखाया और उस से भी ज्यादा अपने व्यवसाय को संभालने लायक तैयार किया. इसी दौरान जीतेश आयशा के पापा की कंपनी में लीगल एडवाइजर की नौकरी करता था.

मेलजोल और बिजनैस के सिलसिले में उन दोनों में प्रेम हुआ और दोनों की शादी हो गई.

इधर कायदे से जीतेश अपनी बीवी आयशा को अपने घर ला चुका था, जब मितेश छोटे भाई से 3 साल बड़ा होते हुए भी अभी तक नौकरी ढूंढ़ रहा था, तो शादी अभी दूर की बात थी.
मितेश, दोनों भाइयों के पैसे, शादी और रुतबे के अनकहे से धौंस के आगे खुद को हमेशा ही लाचार पाता रहा था. अब दोनों भाइयों की बीवी या उन के बच्चों के रहते भाइयों से अपनी जरूरत भी नहीं कह पाता, जो कभी पहले कह भी लिया करता.

मितेश नौकरी की तलाश में जीजान से जुट गया था, और तबजब उसे पान मसाला कंपनी में 25,000 की नौकरी मिली. वह दौड़ कर उसे अपनी मुठ्ठी में भींच लिया. अब वह नौकरी करता था, खुद कमाता था, कुछ हद तक भाइयों के सामने तसल्ली मिली. लेकिन, तसल्ली उस का वहम ठहरा. बड़े भाई तो बड़े भाई, छोटे भाई की तुलना में भी आर्थिक दृष्टि से कमतर होने की वजह से हमेशा जीतेश और उस की पत्नी आयशा से तल्खी झेलनी ही पड़ती. यहां तक कि मितेश के रिश्ते में जेठ होने के बाद भी आयशा से कभी नरमी और इज्जत नहीं मिली उसे.

 

‘महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना है जरूरी’: स्मिता मिश्रा

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले देवरिया की रहने वाली स्मिता मिश्रा के पिता पेशे से टीचर थे. वह चाहते थे कि उनकी बेटी पढलिख कर आगे बढे. स्मिता बचपन से ही बेहद समझदार थी . उन्हें बचपन से ही ज़रूरतमंद और बेसहारा लोगों की सहायता करना अच्छा लगता है . बचपन में जो भी पैसा मिलता था उसे गुल्लक में रखती थी और दीपावली के त्यौहार मॆ इकट्ठा किए गए पैसों को गरीब बच्चों में बांट देती थी. 12 वीं की पढाई के बाद स्मिता मिश्रा ने वाराणसी और इलाहाबाद से आगे की पढाई पूरी की. वह अपने पिता की तरह ही टीचर बनकर समाज की सेवा करना चाहती थी. अपनी शिक्षा पूर्ण कर प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से उच्च शिक्षा में अर्थशास्त्र विषय मे असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयनित होकर वर्तमान में आजमगढ जिले के श्री अग्रसेन महिला महाविद्यालय में लडकियों को पढाने का काम कर रही है. लडकियों की शिक्षा और समाज की हालत पर पेश  है स्मिता मिश्रा के साथ एक खास बातचीत:–

आमतौर पर लड़कियां अर्थशास्त्र जैसे विषय में पढाई कम ही करती है. आपको यह शौक़ कैसे हुआ ?

– मेरे पिता टीचर से रिटायर हुये है. उनका मेरे जीवन पर बहुत प्रभाव रहा है. उनका मानना था कि लडकियों को अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ ही साथ आत्मनिर्भर होना चाहिये. लडकियां जब खुद आत्मनिर्भर होगी तो उनको कोई आगे बढने से रोक नहीं पायेगा. वह अपने पसंद के फैसले खुद कर सकती है.मेरा भी यही मानना है.हर लड़की को शिक्षित होने के साथ-साथ आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना बहुत आवश्यक है .

– लड़कियों को अर्थशास्त्र विषय पढ़ने के क्या फ़ायदे हैं ?

– लड़कियाँ बीए (ऑनर्स) इकनॉमिक्स के बाद इसी विषय में मास्टर्स भी करती हैं तो बैंकिंग, फाइनैंशल और इन्वेस्टमेंट सेक्टर, इंश्योरेंस, टीचिंग, मैनेजमेंट, आदि क्षेत्रों में जॉब के अवसर हो सकते हैं. इसके अलावा घर को चलाने का सबसे बडा जिम्मा महिलाओं पर ही होता है. बैंक के काम हो या होम लोन या और भी जरूरी काम. जब फाइनेंस में महिलाओं की रूचि होगी तो वह बेहतर तरह से अपनी जिम्मेदारी संभाल सकती है. इससे पति की भी मदद हो सकेगी. गणित विषय में रूचि कम होने के कारण महिलाओं को फाइनेंस और अर्थशास्त्र जैसे विषय पसंद नहीं आते है. पर महिलाओं को इनमें रूचि लेनी चाहिये.

– गांव और पिछडे जिलों में लडकियों की शिक्षा की क्या स्थिति है ?

– पहले के मुकाबले आज लडकियों की शिक्षा काफी बेहतर हालत में है.लेकिन आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में हायर एजूकेशन में लडकियां पीछे है. इसके लिये सरकार बेहतर प्रयास कर रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सरकार में लडकियों की पढाई को प्रोत्साहित करने के लिये अनेकों योजनाएँ चलाई हैं .लडकियों को टैबलेट, स्मार्टफोन और लैपटाप देने का काम किया है ताकि उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई करने में मदद मिल सके . उन्हें कॉलेज आने में किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिये कानून व्यवस्था का मजबूत किया गया है. इसका प्रभाव दिख रहा है. स्कूल कालेज में लडकियों की तादाद बढती दिखने लगी है.

– सोशल मीडिया का लडकियों पर क्या प्रभाव पड रहा है ?

– सोशल मीडिया ने लडकियो को आजादी दी है. इसके जरीये वह तमाम जानकारियां घर बैठे हासिल कर सकती है. जो उनके कैरियर को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है. साथ ही वह अपने हुनर को लोगो तक पहुँचा सकती है

जिन लडकियां की रूचि गाना और डांस में होती है उनको भी सोशल मीडिया से मदद मिलती है. जरूरी यह है कि लडकियां इसका सही तरह से प्रयोग करें.

– आपकी हौबीज क्या है ?

– मुझे गाडर्निग, फ़ोटोग्राफ़ी , गजल सुनने और किताबे पढने का शौक है. मैं लडकियों से कहती हॅू कि वह अपने कोर्स की किताबों के साथ ही साथ समाचारपत्र और पत्रिकाएं ज़रूर पढे.बाग़वानी करें .

– आप कालेज में पढाती है, दो छोटे बच्चे है एक साथ घर परिवार सब कैसे मैनेज कर लेती है. ?

– पौजिटिव सोच और टाइम मैनेजमेंट के जरीये ही यह सब मैनेज हो रहा है. मेरा मानना है कि महिलाएँ अत्यंत क्षमतावान एवं ऊर्जावान होती हैं जिसका सदुपयोग करके वह कठिन से कठिन राह को भी सरल बना सकतीं हैं .

अच्छे लोग -भाग 5 :कुछ पल के लिए सभी लोग क्यों डर गए थें

अखिला के वकील ने तर्क दिया, ‘‘मी लार्ड, ये सारे सुबूत झूठे हैं और जानबूझ कर फैब्रिकेट किए गए हैं. इन की कोई फोरैंसिक जांच नहीं हुई है. इन को रिकौर्ड पर ले कर माननीय न्यायालय अपना समय बरबाद कर रहा है. इन की बिना पर मुलजिम को जमानत नहीं दी जा सकती.’’

न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप चाहते हैं कि इस की फ़ोरैंसिक जांच हो? अगर हां, तो वादी और उस के तथाकथित प्रेमी की आवाज के सैंपल ले कर जांच करवाई जाए.’’

इस पर वकील ने अखिला और उस के मांबाप की तरफ देखा. अखिला तो अपना सिर इस तरह नीचे झुकाए खड़ी थी जैसे किसी ने उस के ऊपर थूक दिया था. उस के मातापिता ने इनकार में सिर हिला दिया. वकील ने उन के पास आ कर पूछा, ‘‘जांच करवाने में क्या हर्ज है?’’

अखिला के पिता ने कहा, ‘‘मैं जानता हूं, ये सारे सुबूत सही हैं. आगे जांच करवा कर मैं और फजीहत नहीं करवाना चाहता. इस लडक़ी ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. आप इस मामले को यहीं समाप्त कर दें.’’

हालांकि कोई वकील ऐसा नहीं चाहता. वह किसी न किसी तरीके से मामलों को बढ़ाते रहना चाहता है लेकिन यहां उस का तर्क किसी काम नहीं आया. अखिला के पिता से स्वयं न्यायाधीश ने पूछा, ‘‘क्या आप को मुलजिम की जमानत पर कोई एतराज है?’’

‘‘नहीं, मी लार्ड.’’

‘‘वादी का क्या कहना है?’’

अखिला थोड़ा आगे बढ़ कर बोली, ‘‘मुझे कोई एतराज नहीं, परंतु मैं अपनी ससुराल नहीं जाना चाहती.’’

‘‘यह बात मुकदमे के दौरान कहना. आज केवल प्रतिवादी की जमानत की सुनवाई हो रही है.’’

अखिला ने सहमति दे दी. कोर्ट ने प्रियांशु की जमानत मंजूर कर ली. शाम को वह जेल से छूट कर घर आ गया.

अब सारी चीजें शीशे की तरफ साफ थीं. आसमान से धुंध छंट चुकी थी. अखिला के असामान्य व्यवहार का कारण पता चल गया था. रमाकांत के परिवार के पास ऐसे सुबूत आ गए थे कि वे अगली दोतीन सुनवाई में मामले में बाइज्जत बरी हो सकते थे. मामले में बहुत ज्यादा गवाह भी नहीं थे. अखिला का बयान अहम था, परंतु सुबूतों के मद्देनजर उस के बयान की धज्जियां उड़ जाएंगी.

रमाकांत को अखिला के मातापिता की चुप्पी खल रही थी. वे उन से बात करना चाहते थे. जब उन्हें पता था कि उन की बेटी जिद्दी और क्रोधी है, हर प्रकार से अपनी बात मनवा लेती है, तो फिर उन के बेटे से शादी कर के उन्हें क्यों मुसीबत में डाला. शादी भी हो गई, तो क्यों नहीं अपनी बेटी को समझा पाए. घरेलू हिंसा का मामला दर्ज होने के बाद भी उन्हें सचाई से अवगत नहीं कराया. अपनी बेटी का ही पक्ष लेते नजर आए.

रमाकांत ने अवनीश को फोन किया, ‘‘भाईसाहब, हम आप से कुछ बात करना चाहते हैं? क्या आप हमारे घर आ सकते हैं?’’

अवनीश ने शर्मिंदगी के साथ कहा, ‘‘भाईसाहब, मुझे खेद है कि अखिला की वजह से आप के परिवार को इतनी मुसीबत झेलनी पड़ी.’’

‘‘आप चाहते तो यह मुसीबत कम हो सकती थी,’’ रमाकांत ने कुछ तल्खी के साथ कहा.

‘‘मैं समझता हूं कि मुझ से बहुत बड़ी गलती हुई है, परंतु आप मेरी मजबूरी समझ सकते हैं. कोई भी बाप अपनी बेटी को जानबूझ कर बरबादी के गड्ढे में नहीं धकेल सकता. वह जिस लडक़े के साथ शादी करना चाहती थी, उस की न तो कोई सामाजिक हैसियत है, न कोई अच्छा कमानेखाने वाला है.’’

‘‘आप मुझे तो अपने दिल की बात बता सकते थे,’’ रमाकांत ने कहा.

‘‘भाईसाहब, शादीब्याह में कौन मांबाप अपनी बेटी के प्रेम के बारे में बताता है, ये सब बातें तो छिपाई जाती हैं. परंतु मुझे नहीं पता था कि अखिला उस लडक़े के बहकावे में आ कर इस हद तक गिर जाएगी. उसे तलाक चाहिए था तो और भी तरीके थे. आप के खिलाफ हिंसा का मामला दर्ज करवा कर जेल भिजवा दिया. मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘आप उसे यह झूठा मुकदमा दर्ज करने से तो रोक सकते थे?’’

‘‘इसी बात का तो मुझे मलाल है. वह आप के घर से निकलने के बाद सीधे थाने गई थी. मुकदमा दर्ज करवा कर ही घर आई थी. मुझे पता ही नहीं चला.’’

‘‘चलिए, अब आप के शर्मिंदा होने से भी क्या फर्क पड़ता है. आप के ऊपर जो कीचड़ उछलना था, वह उछल चुका. हमारे जीवन में जो कष्ट लिखे थे, वह हम भुगत चुके. अब सोचिए, आगे क्या करना है? आप की बेटी क्या चाहती है?’’

‘‘आप लोग क्या चाहते हैं?’’ अवनीश ने बहुत विनम्रता से पूछा.

‘‘अभी हम कुछ नहीं कह सकते. मुकदमा खत्म होगा, तभी कुछ विचार करेंगे. आप क्या समझते हैं कि इतना कष्ट झेलने के बाद, जेल की हवा खाने के बाद क्या हम इतना उदार होंगे कि अखिला को अपने घर की बहू बना कर रख सकें?’’

‘‘हां, भाईसाहब, ऐसा तो मुमकिन नहीं लगता, परंतु आप बहुत उदार हैं, क्षमाशील हैं. अखिला की नादानी को भूल कर उसे माफ कर सकते हैं. उस ने अपने दांपत्य जीवन को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, परंतु आप चाहेंगे, तो…’’ अवनीश ने जानबूझ कर वाक्य को अधूरा छोड़ दिया.

‘‘आप एक बार अखिला से बात कर के देखिए. अगर वह तलाक चाहती है, तो हम सहर्ष उसे देने के लिए तैयार हैं.’’

‘‘अगर वह आप के घर जाना चाहे तो…?’’

‘‘वह तो भरी अदालत में कह चुकी है कि हमारे यहां नहीं आना चाहती. फिर भी हमें प्रियांशु से बात करनी होगी. सबकुछ उस के ऊपर निर्भर करता है. एक बार हम उस की जिंदगी नर्क बना चुके हैं. दोबारा उसे नर्क में नहीं धकेल सकते.’’

‘‘ठीक है, हम अखिला से बात कर के एकदो दिनों में आप से मिलते हैं.’’

उचित अवसर पर अवनीश ने अखिला को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटा, अपने भविष्य के लिए तुम ने जो रास्ता चुना है, वह तुम्हें कहीं नहीं ले जाएगा. तुम ने देख लिया कि अब तुम मुकदमा नहीं जीत सकतीं. झूठे तथ्यों के आधार पर तुम्हें प्रियांशु से तलाक भी नहीं मिल सकता. अगर वे देना चाहेंगे, तभी यह संभव है, परंतु इतनी मक्कारी और फरेब के बाद भी क्या तुम्हें अक्ल नहीं आएगी कि इज्जतपूर्ण वैवाहिक जीवन अच्छा है या सारे नातेरिश्तों को तोड़ कर एक अजनबी व्यक्ति के साथ जीवन व्यतीत करना. प्रेम विवाह में जीवन की कठिनाइयां बाद में दिखाई देती हैं. मातापिता की सहमति से तय वैवाहिक संबंधों में कठिनाइयों को दूर करने के रास्ते तलाशे जा सकते हैं, लेकिन प्रेम विवाह में पतिपत्नी ही इन्हें दूर कर सकते हैं. कोई और रिश्तेदार उन के बीच में नहीं आता. अब तुम सोचो, तुम्हें क्या करना है?’’

अखिला मानसिक रूप से परेशान थी. वह समझती थी कि लड़ाईझगड़े से मामले सुलझ जाते हैं और पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से तलाक मिल जाता है. यहां तो मामला ही उलटा पड़ गया था. उस की सारी गोटियां उलटी पड़ गई थीं. कुछ भी आसान नहीं लग रहा था. कोर्ट में मामला पता नहीं कितने दिन तक चलेगा? तब तक वह बूढ़ी नहीं हो जाएगी? उस का प्रेमी कब तक उस का इंतजार करेगा? वह समझती थी, सबकुछ ढकाछिपा रहेगा और घरेलू हिंसा की आड़ में उसे तलाक मिल जाएगा. परंतु उस की सारी पोल खुल गई थी.

अब अगर वह अपने मामले को वापस ले लेती है, तब भी प्रियांशु से तलाश लेने का उस के पास कोई आधार नहीं बनता. उस का मामला झूठ साबित हो गया था. मांगने से क्या प्रियांशु उसे तलाक देगा? उसे और उस के मातापिता को जेल भिजवा कर उस ने अच्छा तो नहीं किया था, परंतु यही बात उस के पक्ष में जाती थी. उस के कर्म का देखते हुए शायद वह उसे तलाक दे दे. प्रियांशु उस के साथ बाकी जीवन क्यों व्यतीत करेगा? क्या उसे माफ कर देगा? ऐसा भला कौन होगा जो अखिला की गलती को माफ कर सकता था. उसे अभी भी आशा की किरण नजर आ रही थी.

उस की मानसिक स्थिति कुछ ऐसी थी कि वह सही निर्णय नहीं ले पा रही थी. उस ने पापा से कहा, ‘‘इतना सब होने के बाद क्या मैं प्रियांशु के साथ सामान्य जीवन व्यतीत कर पाऊंगी.’’

‘‘लगता तो नहीं है, परंतु अगर तुम स्वयं को सुधार सकती हो, तो मैं समझता हूं कि रमाकांतजी का परिवार तुम्हें माफ कर देगा. वे बहुत अच्छे लोग हैं.’’

वह सोच में पड़ गई, फिर बोली, ‘‘अगर वे मुझे तलाक दे दें?’’

अवनीश ने आंखें चौड़ी कर उसे देखा, ‘‘प्रेम का भूत अभी तक तुम्हारे सिर से नहीं उतरा.’’

‘‘पापा, आप ने शादी के पहले मेरी कोई बात नहीं सुनी, इसीलिए मुझे इतना प्रपंच करना पड़ा. अब मेरी सुन लीजिए, शायद बात बन जाए. मुझे नहीं लगता कि मैं प्रियांशु के साथ खुश रहूंगी. मैं ने उसे इतना कष्ट दिया है, उस के मांबाप को जेल भिजवाया है. ऊपर से भले वे लोग कुछ न कहें, परंतु अंदर से कभी माफ नहीं करेंगे.’’

‘‘तुम नहीं सुधरोगी,’’ अवनीश गुस्से से उठ कर अपने कमरे में चले गए. अखिला की मम्मी की समझ में नहीं आ रहा था, कैसी बेटी उन्होंने जनी थी. वे अंदर ही अंदर गुस्से से उफन रही थीं, परंतु कुछ करने की स्थिति में नहीं थीं. बेटी उन्हें अपनी सब से बड़ी दुश्मन लग रही थी.

घर का माहौल बहुत विषैला हो गया था.

अवनीश अपनी बेटी के कृत्य से बहुत दुखी थे. वे अकेले ही रमाकांत के घर गए. सब के सामने उन्होंने हताश स्वर में कहा, ‘‘रमाकांत भाई, बुजुर्ग सही कह गए हैं, आदमी अपनी औलाद से हार जाता है. मैं हार गया, अखिला को समझाना किसी के भी वश में नहीं है.’’

‘‘क्या चाहती है वह?’’ रमाकांत ने स्पष्ट रूप से पूछा.

‘‘किसी भी तरह प्रियांशु से तलाक चाहती है.’’

कुछ पल के लिए सब के बीच डरावना सन्नाटा पसरा रहा. इस सन्नाटे के बीच सब के दिल, बस, धडक़ रहे थे और सांसों की सरसराहट इस बात का यकीन दिला रही थी कि सभी जिंदा थे.

रमाकांत का दिल पहले से ही चकनाचूर था. अखिला के अंतिम निर्णय से पारिवारिक जीवन के सुखचैन की अंतिम किरण भी बुझ गई थी. मरे से स्वर में उन्होंने कहा, ‘‘अब भी अगर वह नहीं सुधरना चाहती तो कोई कुछ नहीं कर सकता. उसे आग से खेलने का शौक है, तो अंगारे खाती रहे. बस, हमें छुटकारा दे दे. हमारी तरफ से कोई अड़चन नहीं है. हम संबंध विच्छेद कर लेंगे.’’

‘‘नहीं पापा,’’ अचानक प्रियांशु की गंभीर आवाज गूंजी.

‘‘क्यों?’’ रमाकांत के मुंह से निकला.

‘‘क्योंकि ऐसी झूठी और फरेबी लड़कियों को सबक सिखाना बहुत आवश्यक है. विवाह एक सोचासमझा बंधन माना जाता है. सुखी दांपत्य जीवन एक अच्छे परिवार और समाज की सुदृढ़ नींव बनता है. हम अखिला जैसी लड़कियों के ओछे व्यवहार से विवाह जैसी संस्था को नष्ट नहीं कर सकते. उसे यह बताना जरूरी है कि वैवाहिक संबंधों को बिना कारण तोडऩा इतना आसान नहीं है कि वह आजाद हो कर अपने प्रेमी से शादी कर ले. मैं ऐसा नहीं होने दूंगा.’’

‘‘बेटा, यह क्या कह रहे हो तुम?’’ अखिला हमारे साथ नहीं रहना चाहती है, तो हम क्यों उस की राह का रोड़ा बने? इस से हमें भी परेशानी होगी.’’

‘‘परेशानी तो होगी, परंतु उस की राह का रोड़ा बन उसे सुधारा भी नहीं जा सकता. वह बेवकूफ है. उस ने मेरे साथ ब्याह किया है. फिर भी दांपत्य जीवन में आग लगा कर वह प्रेमी के साथ घर बसाने के सपने देख रही है. उसे समझना होगा, यह इतना आसान नहीं है. तलाक मिलने तक वह बूढ़ी हो जाएगी. हमारी न्यायिक प्रक्रिया बहुत जटिल है. तलाक लेने की प्रक्रिया तो और भी अधिक जटिल है. हमारा कानून विवाह को महत्त्व होता है, तलाक को नहीं,’’ प्रियांशु ने कहा.

‘‘इस से तो हम भी सालोंसाल कानूनी पचड़े में फंसे रहेंगे. हमारा पारिवारिक जीवन कष्टप्रद हो जाएगा,’’ रमाकांत ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘परंतु हम गलत परंपरा को बढ़ावा भी नहीं दे सकते. अखिला शादी के पहले कुछ भी कर लेती, परंतु एक बार वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद उस की गलत हरकतों को हम मान्यता नहीं दे सकते. हमारे परिवार से उसे कोई तकलीफ नहीं थी, फिर भी उस ने हमें मुसीबत के जाल में फंसा दिया. इस की सजा तो उसे मिलनी ही चाहिए.”
****

वो भूली दास्तां- भाग 3: अमित और रविश के बीच लड़ाई क्यो हुई

एक दिन उस ने रवीश से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस ने कभी उसे दोस्त से ज्यादा कुछ नहीं माना. रवीश ने उसे यह भी बताया कि अमित उस से बहुत प्यार करता है और उसे उस के बारे में एक बार सोच लेना चाहिए.उसे लगता था कि रवीश अमित की वजह से उस के प्यार को स्वीकार

नहीं कर रहा, क्योंकि रवीश और अमित में बहुत गहरी दोस्ती थी. वह अमित से जा कर लड़ पड़ी कि उस की वजह से ही रवीश ने उसे ठुकरा दिया है और साथ में यह भी इलजाम लगाया कि कैसा दोस्त है वह, अपने ही दोस्त की गर्लफ्रैंड पर नजर रखे हुए है.

इस बात पर अमित को गुस्सा आ गया और उस के मुंह से गाली निकल गई. बात इतनी बढ़ गई कि वह किसी और के कहने पर, जो इन तीनों की दोस्ती से जला करता था, उस ने अमित के औफिस में शिकायत कर दी कि उस ने मुझे परेशान किया. इस वजह से अमित की नौकरी भी खतरे में पड़ गई.

इस बात से रवीश बहुत नाराज हुआ और अपनी दोस्ती तोड़ ली. यह बात उस से सही नहीं गई और वह शहर से कुछ दिन दूर चले जाने का मन बना लेती है, जिस की वजह से वह आज यहां है.

यह सब बता कर उस ने मुझ से पूछा, ‘अब बताओ, मैं ने क्या गलत किया?’

‘गलत तो अमित और रवीश भी नहीं थे. वह थे क्या?’ मैं ने उस के सवाल के बदले सवाल किया.

‘लेकिन, रवीश मुझ से प्यार करता था. जिस तरह से वह मेरी केयर करता था और हर रात पार्टी के बाद मुझे महफूज घर पहुंचाता था, उस से तो यही लगता था कि वह भी मेरी तरह प्यार में है.’

‘क्या उस ने कभी तुम से कहा कि वह तुम से प्यार करता है?’

‘नहीं.’

‘क्या उस ने कभी अकेले में तुम से बाहर चलने को कहा?’

‘नहीं. पर उस की हर हरकत से मुझे यही लगता था कि वह मुझे प्यार करता है.’

‘ऐसा तुम्हें लगता था. वह सिर्फ तुम्हें अच्छा दोस्त समझ कर तुम्हारा खयाल रखता था.’

‘मुझे पता था कि तुम भी मुझे ही गलत कहोगे,’ उस ने थोड़ा गुस्से से बोला.

‘नहीं, मैं सिर्फ यही कह रहा हूं कि अकसर हम से भूल हो जाती है यह समझने में कि जिसे हम प्यार कह रहे हैं, वो असल में दोस्ती है, क्योंकि प्यार और दोस्ती में ज्यादा फर्क नहीं होता.’

‘लेकिन, उस की न की वजह अमित भी तो सकता है न?’

‘हो सकता है, लेकिन तुम ने यह जानने की कोशिश ही कहां की. अच्छा, यह बताओ कि तुम ने अमित की शिकायत क्यों की?’

‘उस ने मुझे गाली दी थी.’

‘क्या सिर्फ यही वजह थी? तुम ने सिर्फ एक गाली की वजह से अपने दोस्त का कैरियर दांव पर लगा दिया?’

‘मुझे नहीं पता था कि बात इतनी बढ़ जाएगी. मैं सिर्फ उस से माफी मंगवाना चाहती थी?

‘बस, इतनी सी ही बात थी?’ मैं ने उस की आंखों में झांक कर पूछा.

‘नहीं, मैं अमित को हर्ट कर के रवीश से बदला लेना चाहती थी, क्योंकि उस की वजह से ही रवीश ने मुझे इनकार किया था.’

‘क्या तुम सचमुच रवीश से प्यार करती हो?’

मेरे इस सवाल से वह चिढ़ गई और गुस्से में खड़ी हो गई.

‘यह कैसा सवाल है? हां, मैं उस से प्यार करती हूं, तभी तो उस के यह कहने पर कि मैं उस के प्यार के तो क्या दोस्ती के भी लायक नहीं. यह सुन कर मुझे बहुत हर्ट हुआ और मैं घर क्या अपना शहर छोड़ कर जा रही हूं.’

‘पर जिस समय तुम ने रवीश से अपना बदला लेने की सोची, प्यार तो तुम्हारा उसी वक्त खत्म हो गया था, प्यार में सिर्फ प्यार किया जाता है, बदले नहीं लिए जाते और वह दोनों तो तुम्हारे सब से अच्छे दोस्त थे?’

मेरी बात सुन कर वह सोचती हुई फिर से कुरसी पर बैठ गई. कुछ देर तक तो हम दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला. कुछ देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी और बोली, ‘मुझ में क्या कमी थी, जो उसे मुझ से प्यार नहीं हुआ?’ और यह कहतेकहते वह मेरे कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

‘हर बार इनकार करने की वजह किसी कमी का होना नहीं होता. हमारे लाख चाहने पर भी हम खुद को किसी से प्यार करने के लिए मना नहीं सकते. अगर ऐसा होता तो रवीश जरूर ऐसा करता,’ मैं ने भी उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

‘सब मुझे बुरा समझते हैं,’ उस ने बच्चे की तरह रोते हुए कहा.

‘नहीं, तुम बुरी नहीं हो. बस टाइम थोड़ा खराब है. तुम अपनी शिकायत वापस क्यों नहीं ले लेतीं?’

‘इस से मेरी औफिस में बहुत बदनामी होगी. कोई भी मुझ से बात तक नहीं करेगा?’

‘हो सकता है कि ऐसा करने से तुम अपनी दोस्ती को बचा लो और क्या पता, रवीश तुम से सचमुच प्यार करता हो और वह तुम्हें माफ कर के अपने प्यार का इजहार कर दे,’ मैं ने उस का मूड ठीक करने के लिए हंसते हुए कहा.

यह सुन कर वह हंस पड़ी. बातों ही बातों में वक्त कब गुजर गया, पता ही नहीं चला. मेरी फ्लाइट जाने में अभी 2 घंटे बाकी थे और उस की में एक घंटा.

मैं ने उस से कहा, ‘बहुत भूख लगी है. मैं कुछ खाने को लाता हूं,’ कह कर मैं वहां से चला गया.

थोड़ी देर बाद मैं जब वापस आया, तो वह वहां नहीं थी. लेकिन मेरी सीट पर मेरे बैग के नीचे एक लैटर था, जो उस ने लिखा था:

‘डियर,

‘आज तुम ने मुझे दूसरी गलती करने से बचा लिया, नहीं तो मैं सबकुछ छोड़ कर चली जाती और फिर कभी कुछ ठीक नहीं हो पाता. अब मुझे पता है कि मुझे क्या करना है. तुम अजनबी नहीं होते, तो शायद मैं कभी तुम्हारी बात नहीं सुनती और मुझे अपनी गलती का कभी एहसास नहीं होता. अजनबी ही रहो, इसलिए अपनी पहचान बताए बिना जा रही हूं. शुक्रिया, सहीगलत का फर्क समझाने के लिए. जिंदगी ने चाहा, तो फिर कभी तुम से मुलाकात होगी.’

मैं खत पढ़ कर मुसकरा दिया. कितना अजीब था यह सब. हम ने घंटों बातें कीं, लेकिन एकदूसरे का नाम तक नहीं पूछा. उस ने भी मुझ अजनबी को अपने दिल का पूरा हाल बता दिया. बात करते हुए ऐसा कुछ लगा ही नहीं कि हम एकदूसरे को नहीं जानते और मैं बर्गर खाते हुए यही सोचने लगा कि वह वापस जा कर करेगी क्या?

फोन की घंटी ने मुझे मेरे अतीत से जगाया. मैं अपना बैग उठा कर एयरपोर्ट से बाहर निकल गया. लेकिन निकलने से पहले मैं ने एक बार फिर चारों तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वह मुझे नजर आ जाए. मुझे लगा कि शायद जिंदगी चाहती हो मेरी उस से फिर मुलाकात हो. यह सोच कर मैं पागलपन पर खुद ही हंस दिया और अपने रास्ते निकल पड़ा.

अच्छा ही हुआ, जो उस दिन हम ने अपने फोन नंबर ऐक्सचेंज नहीं किए और एकदूसरे का नाम नहीं पूछा. एकदूसरे को जान जाते, तो वह याद आम हो जाती या वह याद ही नहीं रहती.

अकसर ऐसा होता है कि हम जब किसी को अच्छी तरह जानने लगते हैं, तो वो लोग याद आना बंद हो जाते हैं. कुछ रिश्ते अजनबी भी तो रहने चाहिए, बिना कोई नाम के.

एक मुकाम दो रास्ते : भाग 3

‘‘मैं अभी जा कर अपनी किताब के लीनियर प्रोग्रामिंग के चैप्टर की फोटोकौपी करवा कर ले आता हूं, आप पढ़ लेना. मेरी मिड टर्म की परीक्षाएं 2 हफ्ते बाद ही हैं.’’

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘आप अपने घर मत जाना अभी,’’ कह कर मैं ने आंटी को रोका.

मैं ने अपना कोट और जूते पहने और फार्मेसी की ओर चल पड़ा. वहां फोटोकौपी की मशीन थी, जिस में ‘7 सेंट’ पर पन्ने की फोटोकौपी कराई जा सकती है.

फार्मेसी हमारे घर से एक किलोमीटर दूर थी. फोटोकौपी कर के घर लौटने में 40 मिनट तो लग ही गए. निशा आंटी मेरा इंतजार कर रही थीं.

‘‘तुम शुक्रवार की शाम को 7-8 बजे आ जाना. तुम्हारे अंकल तो ब्रिज खेलने जाएंगे. अच्छा है, मेरा समय ठीकठीक कट जाएगा बजाय टीवी प्रोग्राम देखने के,’’ निशा आंटी ने कहा.

‘‘और अगर जरूरत हो तो रमन बुधवार की शाम को भी आ सकता है तुम्हारे पास, निशा. उस दिन भी तो इन लोगों की ब्रिज की शाम होती है,’’ मम्मी बोली.

‘‘बस, आंटी, 2 हफ्ते की ही तो बात है. मिड टर्म के बाद इस कोर्स में जो विषय पढ़ाए जाएंगे, वे इतने मुश्किल नहीं हैं,’’ मैं बोला.

निशा आंटी मुसकरा दीं. शायद कह रही थीं कि बच्चे, एक बार जब ट्यूशन का चसका लग जाता है, तो मुश्किल से ही छूटता है.
शुक्रवार को खाना खा कर मैं ने अपनी औपरेशन मैनेजमेंट की किताब और क्लास नोट्स इकट्ठे किए और अपने मोबाइल से निशा आंटी को बताया कि मैं घर से चल रहा हूं. उन से उन के घर के रास्ते की जानकारी भी ले ली. उन के घर मैं पहली बार ही अकेला जा रहा था, वह भी पैदल. हमेशा ही मम्मीडैडी के साथ कार में गया था उन के यहां.
20 मिनट तो लग ही गए पैदल जाने में. साढ़े 8 बज गए थे. जब मैं उन के घर पहुंचा था तब माधवेश अंकल तो घर से चले गए थे ब्रिज खेलने.

निशा आंटी मेरा इंतजार कर रही थीं. वह मुश्किल से 27-28 साल की लग रही थीं. बहुत ही स्मार्ट. उन्हें देख कर लगता था कि उन्होंने अपनी काया पर अवश्य ही परफ्यूम लगाया होगा. मुझे उस शाम वह उम्र में सिसिल से ज्यादा बड़ी नहीं लगीं.

मैं उन्हें क्यों आंटी कहता हूं? क्या इसीलिए ही क्योंकि वह मेरे पापा के मित्र की पत्नी हैं या मेरी मम्मी की सहेली? जब वह भारत से शादी के बाद यहां आई थीं, तब तो मैं 13 साल का ही था. उस समय आंटी कहता तो ठीक लगता था, पर अब क्या कहना उचित है. मैं सोचने लगा.

‘‘तुम कोट उतार कर स्टडीरूम में जाओ. कुछ चाय वगैरह पीओगे तो बना देती हूं,’’ निशा आंटी बोलीं.

“मैं खाना और चाय पी कर ही आया हूं, आंटी.’’

स्टडीरूम में लीनियर प्रोग्रामिंग से संबंधित निशा आंटी के नोट्स पड़े हुए थे. उन्होंने पिछले 2 दिनों में काफी मेहनत की होगी.

‘‘आई एम सौरी, आंटी, आप को काफी मेहनत करनी पड़ी,’’ मैं बोला.

‘‘मैं तुम्हें कुछ पढ़ाऊं इस से पहले तुम मुझे आंटी कहना बंद करो, रमन. तुम अब बच्चे नहीं रहे, जवान हो गए हो. 6 फुट के हो गए हो तुम. कम से कम अकेले में तो तुम मुझे निशा ही कहा करो,’’ निशा आंटी बोलीं. मैं ने उन की बात का कोई उत्तर नहीं दिया. मैं स्टडीरूम में चला गया.
शायद वह मुझ से मम्मीपापा और माधवेश अंकल के सामने आंटी का रिश्ता निभाना चाहती हैं और अकेले में केवल निशा का. एक ट्यूटर और ट्यूशन पढ़ने वाले विद्यार्थी का रिश्ता या एक मर्द और उस की सहेली का रिश्ता. यह खयाल आते ही मेरे मस्तिष्क की नसें तमतमा गईं. मेरी आवाज कुछ लड़खड़ा सी गई. पसीना आ गया अक्तूबर के महीने में. 20 साल के युवक की जो हालत होती है, किसी सुंदर नौजवान स्त्री के इतने करीब बैठने में. वही मेरी भी हो रही थी. निशा आंटी मेरे कितने करीब थी कि उन की लटेें मुझे छू रही थीं. उन के बदन की खुशबू ने मुझे पागल कर दिया. वह मुझे लीनियर प्रोग्रामिंग जैसा कठिन विषय समझाती रहीं, परंतु मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया. कब 10 बज गए, पता भी नहीं चला.

मम्मी के फोन ने मुझे चौंका दिया. वह मेरा इंतजार कर रही थीं. वह मुझ से बात करना चाहती थीं. निशा ने फोन पर बुलाया. मैं उठा तो अपनी ओर देख कर बैठ गया कि निशा क्या सोचेगी मुझे देख कर. निशा के दूसरी बार बुलाने पर मुझे उठना ही पड़ा. मैं ने अपनी किताब से अपनी उलझन छिपाने की कोशिश की, परंतु असफलता ही हाथ लगी. निशा भांप गई थीं कि मैं क्यों उठ कर उन के सामने आने से हिचकिचा रहा था. पुरुष अपनी उत्तेजना छिपा भी तो नहीं सकते.

‘‘आज की पढ़ाई यहीं खत्म करते हैं. तुम ये प्रश्न हल करने की कोशिश करना. अगले बुधवार को फिर आज के समय पर ही आ जाना, रमन,’’ कहते हुए निशा ने चाय का पानी गैस पर रख दिया था.

बुधवार को 8 बजे ही मैं निशा के घर पहुंच गया. माधवेश अंकल ब्रिज खेलने जा चुके थे. आज निशा कुछ और भी अधिक सुंदर लग रही थी. मेरी मनोदशा पिछली बार से तो कहीं अधिक खराब थी.

पढ़ाते समय पेंसिल मेज से गिर कर मेरी गोद में आ गिरी. निशा के बढ़ते हाथ रुक गए. मैं बेहद झेंप गया.
‘‘तुम्हारी मम्मी तुम्हें अभी तक बच्चा समझती हैं, परंतु तुम में बच्चे जैसा शायद कुछ भी नहीं,’’ निशा बोलीं.

‘‘आई एम सौरी, निशा,’’ मैं मुश्किल से ही कह पाया.
‘‘मुझे मालूम है, तुम क्या चाहते हो इस समय. इस समय तुम्हारे पल्ले लीनियर प्रोग्रामिंग का एक शब्द भी नहीं पड़ रहा है. जब तक तुम वह नहीं पा लोगे जो हासिल करना चाहते हो, तुम मेरे साथ अपना वक्त ही बरबाद करोगे,’’ निशा बोली और स्टडीरूम से चली गई.

थोड़ी देर बाद मैं स्टडीरूम से बाहर निकला. मुझ में इतना ज्ञान तो अवश्य हो गया था कनाडा में पल कर कि इस समय निशा कहां होंगी. मेरे कदम अपनेआप ही निशा के बेडरूम की ओर बढ़ने लगे.

निशा के फोन ने मुझे गहरे सोच में डाल दिया था. शाम के 4 बज गए थे. बस, 8 बजने में 4 घंटे ही रह गए थे. निशा मेरे फोन की बेकरारी से प्रतीक्षा कर रही होगी. उस ने मुझे 7 बजे तक का समय दिया था. 7 बजे तक मेरा फोन न आने पर उस ने हमारे घर आने का निश्चिय कर लिया था.

निशा के फोन के अनुसार, उसे मैं ने जिंदगी के उस मुकाम पर ला कर खड़ा कर दिया था, जिस पर उस के सामने केवल 2 ही रास्ते रह गए थे.

बरसों पहले माधवेश अंकल एक एक्सीडेंट के बाद संतान उत्पन्न करने के काबिल नहीं रहे थे, यह उन्होंने निशा को शादी से पहले ही बता दिया था. उस समय भी निशा के सामने शायद 2 ही रास्ते थे, आजन्म कुंआरी रहने का या माधवेश अंकल से शादी करने का. अब भी उन के सामने 2 ही रास्ते हैं, गर्भपात करा के माधवेशजी के साथ निसंतान जीवन बिताने का या फिर उन्हें छोड़ कर अपने होने वाले बच्चे को पालपोस कर बड़ा करने का.

निशा ने माधवेशजी को छोड़ने का निश्चय कर लिया था. अब वह अपने और उन के बीच के कटु रहस्य को और ज्यादा समय तक नहीं छिपा सकती थीं. आज शाम को निशा उन का घर हमेशाहमेशा के लिए छोड़ कर अपनी निजी इस्तेमाल की कुछ जरूरी चीजें ले कर हमारे घर कुछ दिन के लिए शरण लेने आ रही थीं. हमारे यहां कुछ दिन रह कर वह ‘क्या करना है,’ निश्चय करेंगी.

निशा के फोन ने मुझे उस मुकाम पर ला कर अचानक ही खड़ा कर दिया था. मेरे सामने 2 ही रास्ते थे कि या तो मूक रह कर कुछ दिन बाद निशा को अपने घर से जाने दूं या एक जिम्मेदार व्यस्क की तरह निशा के पेट में पल रही अपनी संतान के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाऊं. पता नहीं क्यों, मुझे अपनी इस दिमागी उलझन में सिसिल का तो खयाल भी नहीं आया.
साढे 4 बज गए थे. मेरा बस स्टाप आ गया. भारी कदमों से मैं अपने घर को जाने वाली सड़क की ओर मुड़ गया.

अदरक की खेती

अदरक जिंजिबर औफिसिनेल रोस जाति के पौधे का जमीन के अंदर रहने वाला रूपांतरित तना यानी प्रकंद है. इन प्रकंदों को फसल की कटाई के बाद हरे और सुखा कर दोनों रूपों में इस्तेमाल करते हैं. ताजा अदरक व्यंजनों को खुशबूदार और चरपरा बनाने व मुरब्बा बनाने के काम आता है. चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए खासतौर पर सर्दियों में अदरक का इस्तेमाल एक आम बात है. अदरक या इस के रस का कई देशी दवाओं में इस्तेमाल होता है.

यह सर्दीजुकाम और पेट संबंधी रोगों में दिया जाता है. अदरक का छिलका उतारने के बाद 10-12 दिनों तक धूप में सुखाने पर सूखा अदरक बनता है, जो तेल व अदरक चूर्ण वगैरह बनाने के काम में आता है.

भारत में अदरक पैदा करने वाले सूबों में केरल, मेघालय, आंध्र प्रदेश, ओडि़शा, हिमाचल प्रदेश व पश्चिम बंगाल खास हैं.

जलवायु व जमीन

अदरक समशीतोष्ण से गरम जलवायु वाले क्षेत्रों तक में उगाया जाता है. यही वजह है कि उत्तरी पर्वतीय इलाकों से ले कर दक्षिण की पूर्वी व पश्चिमी घाटियों तक इस की खेती की जाती है. इस की खेती समुद्री सतह से 1500 मीटर ऊंचाई तक की जा सकती है. फसल का सही समय बारिश की शुरुआत से उस के आखिर तक होता है.

ज्यादा बारिश व गरमी से इस की उपज पर बुरा असर पड़ता है. 150 से 200 सैंटीमीटर बारिश वाले इलाकों में बिना सिंचाई के इसकी खेती की जा सकती है. बारिश कम होने पर इस की सिंचाई करनी पड़ती है. अदरक के लिए दोमट और बलुई मिट्टी मुनासिब रहती है. मिट्टी से पानी का निकास ठीक होना चाहिए और जीवांश काफी मात्रा में होना चाहिए. क्षारीय मिट्टी में इस की फसल अच्छी नहीं होती.

उन्नत किस्में

अदरक की उन्नत किस्मों का पूरा ब्योरा तालिका में दिया गया है.

खेत की तैयारी

अदरक की खेती के लिए खेत की तैयारी गरमी का मौसम शुरू होते ही करें. गरमी में खेत जोत कर छोड़ देना चाहिए, ताकि मिट्टी उपजाऊ और पानी जज्ब करने लायक हो जाए.

गरमी की जुताई से जिंजर रोग (गलन) लगने का खतरा भी कम हो जाता है. मई के शुरू में खेत में प्रति हेक्टेयर लगभग 200 क्विंटल अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद और

10 क्विंटल अरंडी की खली डाल कर अच्छी तरह जुताई करें. इस के बाद पलेवा कर के सिंचाई के लिहाज से मुनासिब क्यारियां बनाएं.

खेत की 5-6 बार जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खाद भी अच्छी तरह मिल जाए. अदरक मेंड़ों पर और समतल क्यारियों में बोया जाता है. अदरक की फसल को बहुत ज्यादा भोजन तत्त्व चाहिए, लिहाजा इसे दूसरी फसलों के चक्र में बोते हैं.

खाद व उर्वरक

अदरक एक लंबा वक्त लेने वाली व अधिक खाद व उर्वरक चाहने वाली फसल है. इस के लिए 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद के अलावा भूमि की उर्वराशक्ति व अदरक की किस्म के मुताबिक 80 से 120 किलोग्राम नाइट्रोजन,

30 से 50 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. फास्फोरस की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा जुताई के समय दें. पोटाश की बाकी बची मात्रा व नाइट्रोजन की पूरी मात्रा खड़ी फसल में 2 समान भागों में पहली बोआई के 2 महीने बाद व दूसरी मात्रा इस के 1 महीने बाद खड़ी फसल में दें. उर्वरक छिड़कने के बाद अगर बारिश न हो, तो सिंचाई जरूर करें.

देशी खाद या कंपोस्ट खाद अगर बोआई के बाद खेत में पलवार के रूप में दी जाए, तो यह भोजन तत्त्व मुहैया करने के साथसाथ अंकुरों को धूप से बचाएगी और जमीन पर पपड़ी भी नहीं बनने देगी. लिहाजा, जहां पलवार लगाने के लिए पत्तियों का इंतजाम न हो, वहां गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद को बोआई के तुरंत बाद पलवार की परत के रूप में लगा देते हैं, ताकि खाद का काम भी हो जाए और पलवार भी लग जाए.

बोआई का समय

अदरक की बोआई अलगअलग जगहों पर 15 अप्रैल से 15 जून तक की जाती है. हिमालय के तराई वाले इलाकों में इस की बोआई मई में की जाती है, जबकि केरल में मानसून के पूर्व बारिश के साथ अप्रैल में बोआई करना बेहतर पाया गया है. फसल की बोआई सही समय पर करना जरूरी है, ताकि सर्दी आने से पहले फसल बढ़ने के लिए काफी समय मिल जाए.

बीज व बोआई

बोआई के लिए डेढ़ से 2 इंच आकार के टुकड़े सही रहते हैं. एक हेक्टेयर के लिए तकरीबन 700 से 1,000 किलोग्राम बीज के टुकड़े की जरूरत होती है. अगर बोआई के लिए डेढ़ इंच से छोटे टुकड़े इस्तेमाल किए जाएं, तो उपज घट जाती है. केरल में इस से भी ज्यादा मात्रा (1,200 से 1,400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) बीज के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

अगर बीज ठंडे गोदाम में रखे हों, तो बोने से काफी समय पहले उन्हें सामान्य तापमान में रखना चाहिए. ऐसा न करने से बीजों के सड़ने का डर रहता है. बीज के टुकड़ों को क्यारियों में 22×22 सैंटीमीटर की दूरी पर खुरपी की मदद से तकरीबन 5 सैंटीमीटर गहरा बोना चाहिए. कुछ परीक्षणों में 22×15 सैंटीमीटर कतारों व पौधों की दूरी से अच्छे नतीजे हासिल हुए हैं. कहींकहीं पर अदरक की बोआई 30×20 सैंटीमीटर पर भी करते हैं.

बीजों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए. बोने के फौरन बाद खेत को पत्तियों से ढक देना चाहिए और जमीन में नमी की कमी हो तो पानी भी देना चाहिए.

पलवार लगाना

अदरक के लिए पलवार लगाना जरूरी है. पलवार से बारिश के अंत में बनने वाली पपड़ी का डर नहीं रहता. इस के अलावा जमीन या नए अंकुरों पर सूरज की किरणें भी सीधी नहीं पड़तीं और मिट्टी काफी समय तक नम बनी रहती है, जिस से अदरक का अंकुरण अच्छा व कम समय में होता है.

पलवार से खरपतवार भी नहीं उग पाते. पलवार की पत्तियां बाद में सड़ कर जीवांश के रूप में बदल जाती हैं. लिहाजा, बोआई के बाद क्यारियों में हरी पत्तियों की पलवार लगा देनी चाहिए. एकएक महीने के अंतराल से 3 बार पलवार लगाना ठीक रहता है. एक बार पलवार लगाने के लिए प्रति हेक्टेयर 5,000 किलोग्राम हरी पत्तियों की जरूरत पड़ती है.

सिंचाई

बरसात के मौसम में पानी न बरसने पर ही सिंचाई करें. बारिश शुरू होने तक और बारिश के बाद 4-5 बार सिंचाई करनी चाहिए. अदरक की गहरी सिंचाई की जाती है. अदरक के खेत में पानी नहीं भरना चाहिए. पानी भरने से रोगों का खतरा बढ़ जाता है. लिहाजा, खेत में सही जल निकास जरूरी है.

निराईगुड़ाई

पलवार की वजह से आमतौर पर खेत में खरपतवार नहीं उगते. अगर खरपतवार उगे हों, तो उन्हें निकाल देना चाहिए. जब पौधे तकरीबन 20 सैंटीमीटर ऊंचे बढ़ जाएं, तो उन की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. जब अदरक के कंद बनने लगते हैं, तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलने लगते हैं. उन कल्लों को खुरपी से काट देना चाहिए. ऐसा करने से कंद बड़े बनते हैं.

बीमारियां व रोकथाम

प्रकंद गलन : यह बीमारी पीथियम वंश की कवक प्रजातियों से होती है. मैगट व नेमाटोड्स भी इस बीमारी से संबंधित पाए गए हैं. बीमार पौधे की पत्तियां शुरू में छोटी और किनारों पर पीली पड़ जाती हैं. बाद में सारी पत्तियां पीली पड़ कर झुक जाती हैं व आखिर में सूख जाती हैं. बीमारी से प्ररोह कालर सड़ जाता है. नतीजतन, रोग प्रकंद में पहुंच जाता है. रोगग्रसित प्रकंद का रंग बिगड़ जाता है और वह धीरेधीरे सड़ने लगता है.

यह बीमारी अदरक को सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. रोगग्रसित बीज सामग्री या जमीन में मौजूद कवक बीजाणु से यह बीमारी फैलती है. इस बीमारी की रोकथाम का कोई सही इलाज तो नहीं है, पर स्वस्थ बीज सामग्री को इस्तेमाल करने, बीमारी की शुरुआत में खेत में डेक्सोन, केप्टाफोल या चेस्टनट मिश्रण के (0.2 फीसदी) घोल का छिड़काव करने, खेत में जल निकास का सही इंतजाम करने और सही फसलचक्र अपनाने से बीमारी का असर कम हो जाता है.

अगर बीज सामग्री में रोग के बीजाणु मौजूद होने का अंदाजा हो तो उन को इस्तेमाल करने से पहले डाईथिन एम 45 के 0.2 फीसदी घोल में डुबो लेना चाहिए, ताकि कवक बीज खत्म हो जाएं.

पीलिया (यैलो डिजीज) : यह बीमारी फ्यूजेरियम औक्सीस्पोरम उपजाति जिंजिबर और फ्यूजेरियम सोलेनाई के आक्रमण से होती है. रोग के असर वाले पौधों की नीचे की पत्तियां किनारों से पीली पड़नी शुरू होती हैं. बाद में यह पीलापन सारी पत्तियों में फैल जाता है और पौधा सूख जाता है.

प्रकंद गलन रोग की तरह यह बीमारी भी रोगग्रसित बीज सामग्री व भूमि में मौजूद कवक बीजाणुओं से फैलती है. स्वस्थ बीज सामग्री इस्तेमाल करने और बीज प्रकंदों को डाईथिन एम 45 या बेनलेट या बाविस्टीन के 0.3 फीसदी घोल में 2 घंटे तक उपचारित कर के इस्तेमाल करने से रोग की रोकथाम की जा सकती है.

अगर अदरक की बोआई के लिए चुने हुए खेत में रोग के बीजाणुओं की मौजूदगी का अंदाजा हो, तो ऐसे खेतों में बोआई के समय और उस से 15 दिन पहले 2 बार ऊपर बताई गई दवाओं के 0.3 फीसदी घोल से 6 लिटर प्रति वर्गमीटर की दर से छिड़काव करें. सही फसलचक्र अपनाने से जमीन में रोग के बीजाणु कम हो जाते हैं.

कीट व नेमाटोड

ऊतक छेदक कीट व प्रकंद मेगट अदरक के मुख्य हानिकारक कीट हैं. अभी तक इन का प्रकोप खासतौर पर केरल तक ही सीमित है. इन के अलावा केरल में नेमाटोड मेलाडोगाइनी और रोडोफोलस भी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. इन कीटों व नेमाटोड्स की रोकथाम के लिए खोज चल रही है.

प्रकंदों की खुदाई

अदरक लंबा समय लेने वाली फसल है, जो 8 से 10 महीने में तैयार होती है. पकने पर इस की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और मुरझा कर सूखने लगती हैं. यही खुदाई का सही समय होता है. खुदाई के समय अगर जमीन में नमी न हो, तो हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. खुदाई खुरपी या फावड़े से करनी चाहिए.

खोदते समय कंदों को कटने या टूटने न दें. कंदों को इकट्ठा कर के पानी से 2-3 बार धो कर साफ कर लें, फिर एक दिन तक धूप में रख कर हरे कंदों को बाजार में भेज दिया जाता है या उन से सूखी अदरक या सोंठ बना ली जाती है.

इस साधारण खुदाई के अलावा फसल जब तकरीबन 3 महीने की हो जाती है, तो उस पर मिट्टी चढ़ाते समय बीज कंद को निकाला जा सकता है. 3 महीने की फसल से बीज कंद को निकालने से फसल की बढ़ोतरी पर कोई बुरा असर नहीं होता है.

बीज कंदों को बाजार में बेच कर अतिरिक्त मुनाफा कमाया जा सकता है.

सूखी अदरक व सोंठ बनाने की विधि

सूखी अदरक : धुलाई करने के बाद प्रकंदों को रातभर साफ पानी में डुबो कर रखते हैं. दूसरे दिन प्रकंदों को हाथ से ही पानी के अंदर अच्छी तरह मसल कर साफ कर लेते हैं. साफ किए हुए प्रकंदों का ऊपरी छिलका बांस की खपच्चियों से छील कर उतारते हैं.

ध्यान रहे, न तो छिलका ही बचे और न छिलाई गहरी हो. छिलाई गहरी होने से वाष्पशील तेल में कमी आ जाती है, क्योंकि वाष्पशील तेल छिलके के ठीक नीचे ही रहता है. चाकू का इस्तेमाल करने से अदरक का रंग बिगड़ने का डर रहता है.

छिले हुए प्रकंदों को फिर धो कर तकरीबन एक हफ्ते तक धूप में सुखा कर जलविहीन कर लेते हैं.

सोंठ : ऊपर बताई गई विधि से सुखाई हुई अदरक का रंग थोड़ा फीका (क्रीमी) होता है. चमकदार सफेद रंग पाने के लिए अदरक को पूरी तरह सूखने से पहले 4-5 बार चूने के पानी में डुबोया जाता है. चूने के पानी से उपचारित सूखी अदरक का रंग सफेद चमकदार होता है. इस सूखी अदरक को सोंठ कहते हैं. देश के बाजार में सुखाई हुई अदरक की तुलना में सोंठ की मांग ज्यादा है.

थोड़ीबहुत मात्रा में सोंठ का ब्रिटेन और जर्मनी को निर्यात किया जाता है. भारत में अदरक के लिए ज्यादातर अविकसित विधि ही इस्तेमाल की जाती है. यही वजह है कि विदेशों में भारतीय अदरक को गुणवत्ता के लिहाज से मध्यम दर्जे का ही माना जाता है. लिहाजा, अदरक के निर्यात को बढ़ाने के लिए इस की गुणवत्ता को बढ़ाने के साथसाथ उत्पादन की सही विधियां भी विकसित करनी और अपनानी होंगी.

उपज

हरे अदरक की उपज तकरीबन 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है, जो सुखाने के बाद 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बैठती है.

छोटा घर: बाहर जाने के अवसर कम, पति पत्नी के बीच कलह

‘‘हम पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं. अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं. घर खरीदने की स्थिति नहीं हैं. बजट के मुताबिक 2 कमरों का ही घर किराए पर ले सका हूं. बच्चे ड्रांइगरूम में सो जाते हैं. हालांकि बैडरूम में अलमारियां और अन्य सामान रखने के बाद इतनी जगह नहीं बचती कि आराम से चलफिर सकें लेकिन जिंदगी ठीक से ही कट रही थी जैसे एक मध्यवर्गीय परिवार की होती है.

“इस बीच, कोरोना वायरस आ गया और सबकुछ बदल गया. शुक्र है कि हमारी नौकरियां बची रहीं. लेकिन वर्क फ्रौम होम, बच्चों की औनलाइन क्लासेस और हम सब के हर समय घर में रहने से तनाव व छोटीबड़ी हर तरह की परेशानियां बढ़ गईं. लौकडाउन खत्म हो गया है, पर सुरक्षा की दृष्टि से तो घर में अभी भी रहना ही है.

“मैं और पति फ्रस्टेट हो चुके हैं इसलिए कि हमें साथ गुजारने के कुछ पल भी नहीं मिल पाते हैं. बच्चे सारा दिन घर पर हैं तो उन के सामने सैक्स संबंध कैसे कायम करें. प्राइवेसी नाम की चीज नहीं रह गई है. बड़ा घर होता, तो बात अलग थी. छोटा घर होने के कारण तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है,’’ यह कहना है 35 वर्षीया मधुरिमा गोयल का.

‘‘मुझे नीचे खेलना जाना है. आप मुझे पार्क क्यों ले जा रहे? मैं स्कूल जाना चाहता हूं. सारे दिन घर में क्यों रहना है? मैं कहां खेलूं? घर में तो साइकिल भी नहीं चला सकता, बौल से भी नहीं खेल सकता. आप डांटते हो कि सामान टूट जाएगा. घर भी तो इतना छोटा है.’’ 6 साल का अंकित लगातार ये सवाल अपनी मां से पूछता रहता है. उस की मां नीता कहती हैं कि हालांकि इतने महीनों से घर पर रहने और हर समय टीवी पर देखने व हमारे मुंह से सुनते रहने के कारण उसे पता है कि घर से बाहर जाने से हम क्यों उसे रोकते हैं, लेकिन उस की झुंझलाहट उस के सवालों के रूप में बाहर निकलती रहती है. बड़ा घर होता जिस में बरामदा होता तो कम से कम वह साइकिल चला सकता था.

बदल गई जिंदगी : मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले असंख्य परिवार ऐसे हैं जो एकतरफ तो कोरोना की वजह से उत्पन्न अलगअलग तरह की परेशानियां झेल रहे हैं, तो दूसरी तरफ घर छोटा होने के कारण उन की दिक्कतें कई गुना बढ़ गई हैं.

70 के दशक में जया भादुड़ी और अनिल धवन की एक फिल्म आई थी- ‘पिया का घर’. इस फिल्म में घर छोटा होने के कारण पतिपत्नी को साथ वक्त गुजारने और सैक्स संबंध बनाने का मौका नहीं मिल पाता. वे होटल जाते हैं तो वहां पुलिस की रैड हो जाती है. हालांकि वह स्थिति कोरोना के साथ नहीं जुड़ी थी, लेकिन समस्या छोटे घर की ही थी.

आज एक अदृश्य वायरस आया और उस ने पूरी दुनिया के जीने के ढंग, उस की सोच और रिश्तों के समीकरणों को बदल दिया. आर्थिक व सामाजिक रूप से जो बड़े बदलाव आए, उन्होंने हर किसी के जीवन को झिंझोड़ दिया. और पारिवारिक स्तर पर पड़े उस के प्रभाव ने पतिपत्नी के रिश्ते में गहरा तनाव पैदा कर दिया है. दूसरी तरफ बच्चे सारा दिन घर में रहने के कारण मां को परेशान करते रहते हैं. उन के लिए सारा दिन खाना बनाने में जुटी मां उन की शिकायतों को सुलझाए या काम के बढ़ गए बोझ से जूझे.

अपनेअपने घरों में कैद और बिगड़े रूटीन के शिकार लोगों के लिए अब समय एक अनंत विस्तार है जिसे कैलेंडर की तारीखों और दिनों से परिभाषित नहीं किया जा सकता. किसे ध्यान रहता है कि कब वीकैंड है या कब नया सप्ताह शुरू हो गया है.

घर में पहनने वाले कपड़ों में टीवी देखते हुए और लैपटाप पर काम करते हुए क्या सचमुच कोई फर्क पड़ता है कि सुबह है या शाम? छोटे से घर में सिमटी जिंदगी बोझ बनती जा रही है.

बच्चे लड़ रहे हैं एक अलग लड़ाई :

बच्चे एक अलग लड़ाई लड़ रहे हैं. वे तमाम तरह की दुश्चिंताओं से त्रस्त हैं. पढ़ाई करने का तरीका बदल गया है जिस से तालमेल बिठाने में समय लग रहा है. घर छोटा हो तो बच्चों का अलग से अपना कमरा होना मुश्किल ही होता है. ड्रांइगरूम में ही ज्यादातर उन के रहने और पढ़ने की व्यवस्था होती है या अगर बालकनी हो तो उसे स्टडीरूम बना दिया जाता है. लेकिन अगर इस तरह की भी व्यवस्था नहीं है तो वे कहां बैठ कर पढ़ें.

औनलाइन क्लास के लिए उन्हें या तो पापा का मोबाइल लेना पड़ रहा है या उन का कंप्यूटर या लैपटॉप. ऐसे में पापा कैसे काम करेंगे, जो खुद इस समय घर से काम कर रहे हैं. हर चीज 2 हों, जो यह एक मध्यवर्गीय परिवार में मुमकिन नहीं. चाहिए भी स्मार्टफोन, जो जरूरी नहीं कि सब के पास हो. फिर मोबाइल से पढ़ाई करो, तो आंखों पर असर होता है. इंटरनैट भी पूरे दिन चाहिए.

और अगर घर में 2 बच्चे हों तो उन के लिए अलग चीजें कहां से जुटाएं. फिर रसोई से आती आवाजें या पापा का फोन पर औफिस के काम के सिलसिले में बात करना. उस शोर में बच्चों के लिए पढ़ पाना तो मुश्किल होता ही है, साथ ही उन्हें इस बात से बहुत शर्मिंदगी होती है कि उन के घर में क्या चल रहा है, वह दूसरे बच्चों व टीचर को भी पता चल जाएगा. पढ़ाई चल रही है और साथ ही घर का काम भी हो रहा है, दरवाजे पर घंटी भी बज रही है, पापा भी किसी काम के न होने पर चिल्ला रहे हैं. ऐसे में बच्चा पढ़ाई पर ध्यान कैसे दे सकता है.

सारा समय बच्चों के लिए एक तनाव का सा रहता है. पहले घर से बाहर चले जाते थे, दोस्तों से मिल कर दिल के बहुत से बोझ हलके कर लेते थे, खेलनाकूदना, फिल्म देखना, रैस्तरां में जा कर पार्टी करना या यों ही मौजमस्ती करना… रोमांच था जीवन में. घर में रहते हुए अब उन का दम घुटता है, एक कमरे से दूसरे कमरे तक सिमट कर रह गई है उन की दुनिया. पापामम्मी सारा दिन घर में हैं, वे काम कर रहे हैं, तो मुंह पर ताला लगा कर बैठो.

अभिभावकों के साथसाथ बच्चों की प्राइवेसी भी खत्म हो गई. फोन पर अपने दोस्तों से बात करने को तरस रहे हैं क्योंकि छोटे घर के उन कमरों से आवाज मातापिता के पास पहुंच जाएगी. ऐसी स्थिति में अकेले पड़े बच्चे पढ़ाई और मनोरंजन के नाम पर मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर पर अपना अधिकतर समय बिताने को मजबूर हैं, वह भी उस सूरत में जब छोटे घर में अभिभावकों के वर्क फ्रौर्म होम के मद्देनजर उन्हें ऐसा करने का अवसर मिल सके.

घर से बाहर जा नहीं सकते और घर इतना छोटा है कि सिवा एक जगह बैठे रहने के वे और कुछ नहीं कर सकते. घुटन, लाचारी और कैदी बन जाने की भावनाओं से उग्र होते बच्चे अपनी ही तरह से लड़ रहे हैं.

एकांत को तरसते युगल : सब घर में हैं. कुछ समय के लिए भी बच्चे या परिवार के अन्य सदस्य घर से निकल नहीं पा रहे. ऐसे में पतिपत्नी साथ समय कैसे बिताएं. घर छोटा है, निजता नहीं है. सैक्स संबंधों पर इस का बहुत असर पड़ा है.

पहले बच्चे स्कूल जाते थे या शाम को खेलने चले जाते थे, तो युगल अंतरंग पल जी लेते थे. एकदूसरे से अपने मन की बातें कह लेते थे. अब प्यार भरी बातें भी करना मुश्किल हो गया है. आखिर बच्चों के सामने फुसफुसाते हुए या इशारों में बात करना अच्छा नहीं लगता. पहले ही तमाम तरह की परेशानियों और अनिश्चित भविष्य से डरे पतिपत्नी सैक्स संबंधों के न बन पाने से जहां एक तरफ शारीरिक संतुष्टि के लिए तरस रहे हैं, वहीं इस की वजह से अवसाद भी उन्हें घेर रहा है. बाहर जा कर कुछ समय बिता नहीं सकते और छोटे घर में बच्चों के सामने संबंध न बना पाने की मजबूरी उन्हें लगातार चिड़चिड़ा बना रही है.

खाने, सोने या अन्य जरूरतों की तरह शारीरिक जरूरत की पूर्ति होना भी इंसान को खुश व तनावमुक्त रहने के लिए जरूरी है. बातबात पर उन के बीच बढ़ते झगड़े और घर में बनी रहने वाली कलह की यह भी बहुत बड़ी वजह है. मारपीट और घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले इस बात का द्योतक हैं कि किस तरह छोटे घर में एक ही जगह सिमटे पतिपत्नी एकदूसरे पर अपना आक्रोश निकाल रहे हैं. सैक्ससुख से वंचित पति की झुंझलाहट कैसे निकले, दोस्तों से मिल नहीं सकता, तो पत्नी पर ही हाथ उठ जाता है.

गुजरात के वडोदरा में एक परिवार में घर से न निकल पाने और पत्नी के साथ संबंध न बना पाने के कारण पति ने मन बहलाने के लिए के पत्नी के साथ औनलाइन लूडो खेलना तय किया, ताकि इसी बहाने दोनों साथ वक्त गुजार लें, लेकिन यही कलह का कारण बन गया. औनलाइन लूडो के खेल में पत्नी ने पति को हरा दिया तो दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. झगड़ा यहां तक बढ़ा कि पति ने पत्नी की पीटपीट कर कर रीढ़ की हड्डी तोड़ दी.

अनुराधा एक टीचर हैं. सारे दिन उन्हें औनलाइन क्लासेस लेनी पड़ती हैं. इस वजह से वे थक जाती हैं. घर का सारा काम भी वे खुद कर रही हैं. वे कहती हैं, ‘‘ इस शहर में हम छोटे घर में रहने को मजबूर हैं, क्योंकि खर्चे ही इतने हैं. मेरे और मेरे पति के बीच कम ही लड़ाई होती थी, होती भी थी तो शाम तक सुलझ जाती थी क्योंकि सब लोग घर से बाहर निकल जाते थे, ध्यान बंट जाता था. लेकिन अब एकदूसरे के सामने ही रहना है. अब झगड़े बहुत होने लगे हैं. गुस्सा अंदर ही कहीं रहता है, एकदूसरे पर ही निकालते हैं. साथ ही, इस महामारी के लिए हम किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहरा सकते. बस, सारे दिन खीझते रहते हैं.

“बहुत अधिक साथ समय बिताने के अतिरिक्त, निजी स्पेस होने के अभाव की वजह से भी घर में कलह बढ़ती जा रही है. आमतौर पर घरेलू रिश्तों के तनाव से बचने के लिए हम दोस्तों और सहकर्मियों का सहारा लेते हैं. लेकिन, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के चलते लोगों का यह सपोर्ट सिस्टम भी दूर हो गया है. लोगों से मिलनाजुलना, जिम जाना और बाहर खानापीना बंद हो गया है. तो हम दूसरे लोगों से जुड़ने के लिए डिजिटल नैटवर्क, जैसे सोशल मीडिया, वीडियो कौल, मैसेज वगैरह के भरोसे रह गए हैं. लेकिन, घर छोटा होने के कारण इन सब सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि इस से एकदूसरे को डिस्टर्बेंस होता है.”

कोरोना न हो जाए : वायरस संक्रमित न कर दे, यह डर हर किसी को सता रहा है. और हो गया तो इलाज में जो खर्च आएगा वह तो इंसान का आर्थिक बजट बिगाड़ेगा ही, साथ ही इलाज कौन व कैसे कराएगा. अगर घर में ही आइसोलेशन करना पड़ा तो छोटे घर में यह करना कैसे संभव होगा. बड़ा घर हो तो आप मरीज को एक कमरा दे सकते हैं. उस के नहाने व टौयलेट की अलग व्यवस्था हो सकती है, पर जिस घर में जगह की कमी है, वहां एक कमरा कहां से जुटेगा. अगर अस्पताल में भरती कराना पड़ा तो घर कैसे संभालेंगे, बच्चों को कौन देखेगा, न जाने कितने ऐसे प्रश्न हैं जिन से लोग जूझ रहे हैं.

आजकल टीवी और सोशल मीडिया पर चारों तरफ कोरोना वायरस से जुड़ी खबरें ही देखने को मिल रही हैं. खबरों में कितनी सचाई है, किसी को नहीं मालूम, लेकिन उस से लोगों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि वे एक ही तरह की बातें सुन, देख व पढ़ रहे हैं और फिर सोच भी वैसा ही रहे हैं. हर क्षण कोरोना होने का डर तनाव दे रहा है और घर के माहौल को खराब कर रहा है.

ऊब, जो इस समय बुरी तरह से हम पर हावी है, तनाव व कलह को चिंगारी देती है. ऐसे में रिश्तों को नुकसान पहुंचेगा ही.

कोशिश तो की जा सकती है : घर छोटा है, निजी स्पेस नहीं है, खुल कर बोल नहीं पा रहे, कि कहीं बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान न पड़े या पतिपत्नी अगर घर से काम कर रहे हैं तो शोर न हो, इसलिए हमेशा मानसिक तनाव बना रहता है, कलह का माहैल रहता है, तो भी पौजीटिव रहने की कोशिश करें. झगड़ने के बजाय समाधान ढूंढे. समय ठीक होने की प्रतीक्षा एकमात्र विकल्प है.

दिनचर्या में बदलाव आए बहुत महीने हो चुके हैं, इसलिए अब नए सिरे से रूटीन बनाएं. खासकर, बच्चों के सोनेजागने के समय में थोड़ेबहुत बदलाव के साथ बाकी के कार्यों के लिए समय निश्चित करें और उन्हें व्यस्त रखें. बच्चों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ कर उन्हें ऊब और अवसाद में घिरने से बचाया जा सकता है.

बढ़ते औनलाइन तलाक : कोरोना वायरस के रिश्तों पर पड़े बुरे प्रभाव की सब से बड़ी मिसाल चीन के शांक्ची प्रांत में देखने को मिली है. यहां के शियान शहर में तलाक के मामलों की बाढ़ सी आ गई है. दुनिया में औनलाइन शियान डिवोर्स नाम से हैशटैग पर करीब सवा तीन करोड़ पोस्ट किए गए.

वुहान शहर, जहां से इस महामारी की शुरुआत हुई, में भी दांपत्य जीवन खतरे में नजर आ रहा है. वहां भी में सोशल मीडिया पर तलाक के मामलों की भारी संख्या देखने को मिली है. लौकडाउन के दौरान घरों में साथसाथ ज्यादा समय गुजारने को मजबूर दंपतियों के बीच घरेलू हिंसा और तलाक के मामले बढ़े हैं. घरेलू हिंसा के मामले तो यूरोप में भी बढ़ गए हैं. इन से बचने की हैल्पलाइन पर कौल की तादाद में बेतहाशा वृद्धि हुई है. चीन और हौंगकौंग में भी यही स्थिति देखी जा रही है. घरेलू हिंसा से बचने के लिए महिलाएं अपने बच्चों के साथ शैल्टर होम में पनाह ले रही हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें