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वे 20 दिन-भाग 2: क्या राजेश से शादी करना चाहती थी रश्मि?

‘‘बाद में भाभी.’’

इतने में भैया बोले, ‘‘शरमा गया है. लगता है कि उस ने हमारी बातें सुन ली हैं. चलो, इतनी भी जल्दी क्या है? आराम से बात कर लेंगे,’’ भैया यह कह कर बाहर चले गए और मांभाभी अपनेअपने काम में व्यस्त हो गईं.

छत पर जाना तो मेरा बस, एक बहाना था. मैं फिर उस की यादों में खो गया और सोचने लगा, ‘कल तो कुछ भी हो जाए, मैं उस से अवश्य बात करूंगा.’

‘‘चाचूचाचू, कहां ध्यान है आप का. डोर तो ठीक से पकड़ो. हमारी पतंग कट जाएगी.’’

‘‘अच्छाअच्छा, तू ढील तो छोड़,’’ छत पर काफी देर हो गई. भाभी से रहा नहीं गया तो वे नाश्ता ले कर ऊपर छत पर ही आ गईं. भाभी से मेरा बचपन से ही गहरा लगाव था.

बचपन में मुझे नहलानेधुलाने की सारी जिम्मेदारी उन्हीं की होती थी. भाभी से रहा नहीं गया और बोलीं, ‘‘राजेश, नाश्ता कर ले. कब तक भूखा रहेगा? आखिर ऐसी क्या नाराजगी है. अब तो दोपहर के खाने का समय होने वाला है.’’

‘‘हां, भाभी, रख दो. खा लूंगा.’’

‘‘नहींनहीं. पहले खा क्योंकि तब तक मैं जाने वाली नहीं. तेरे भैया ने सुन लिया तो दोनों को डांट पड़ेगी.’’

‘‘क्या बनाया है भाभी?’’

‘‘आलू के परांठे और आम की चटनी है.’’

‘‘अरे वाह,’’ और फिर मैं खाने पर टूट पड़ा.

भाभी मेरे बदले व्यवहार से परेशान थीं, इसलिए वह अकेले में मुझ से बात करने का बहाना तलाश रही थीं, ‘‘अरे, राजू, कब तक भाभी से छिपाता फिरेगा. मैं तुझ से बहुत बड़ी हूं. जिंदगी की समझ मुझे तुझ से ज्यादा है.’’

‘‘नहींनहीं, भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘कहीं तेरा कोई प्यारव्यार का चक्कर तो नहीं है. मुझे बता दे. अब तो घर में तेरी शादी की बातें होने लगी हैं. तुझे कोई लड़की पसंद है तो मुझे बता दे. तेरे भैया को बता दूंगी. वे आधुनिक विचारों के हैं. मान जाएंगे. हां, सासूजी को मैं मना लूंगी. बाकी जैसी तेरी मरजी. मैं चलती हूं दोपहर के खाने का समय हो गया है. तुम दोनों भी जल्दी नीचे

आ जाना और सोनू को स्कूल का होमवर्क करा देना.’’

‘‘ठीक है भाभी, हम दोनों आते हैं.’’

खाना खाने के बाद मैं बिस्तर पर लेट गया. नींद तो कोसों दूर थी. रात के खाने पर मां ने शादी की बात छेड़ने की कोशिश की. मैं बोला, ‘‘इतनी भी जल्दी क्या है?’’

इतने में भाभी बोल पड़ीं, ‘‘ठीक है, मैं राजेश को समझा दूंगी. अभी उसे खाना तो खा लेने दो. सप्ताह में एक दिन तो घर पर रहता है.’’

मैं भतीजे को ले कर अपने कमरे में चला गया. भाभी मेरा कितना खयाल रखती हैं. उन से कोई बात छिपानी नहीं चाहिए. लेकिन पहले उस लड़की से बात तो हो जाए. सोमवार से सोचतेसोचते शुक्रवार बीत गया. इस बीच उस से बात करने का मौका नहीं मिला. अब तो मुझे सोमवार का इंतजार करना पड़ेगा. शनिवाररविवार को तो उस का अवकाश होता है. आज शनिवार था इसलिए मुझे उठने की जल्दी नहीं थी.

सुबह का नाश्ता मैं ने आराम से किया. मैट्रो स्टेशन पहुंचा तो उसे देख कर चौंक पड़ा. वह पीछे वाले कोच की तरफ जा रही थी. आज कोच में कम लोग थे. मैं फौरन उस की बगल वाली सीट पर जा बैठा.

मैं कांपती आवाज में उस से बोल पड़ा, ‘‘मैं राजेश.’’

उस ने पहले मेरे चेहरे की ओर देखा और बोल पड़ी, ‘‘आई एम रश्मि. तुम भी रोजाना राजीव चौक जाते हो. कई बार तुम्हें देखा है. क्या करते हो?’’

‘‘एमबीए किया है मैं ने. एक पीआर कंपनी में नौकरी करता हूं.’’

‘‘मैं भी एक टायर कंपनी में काम करती हूं. वैसे शनिवार को छुट्टी होती है, लेकिन आज औफिस में काम कुछ ज्यादा था इसलिए आना पड़ा.’’

कब राजीव चौक आ गया पता ही नहीं चला.

‘‘अच्छा, चलती हूं.’’

आज पूरे 13 दिन के तनाव व बेचैनी के बाद मुझे राहत मिली. ‘अब तो भाभी को बता ही दूंगा. नहींनहीं,’ आज तो पहली बार बात हुई है. 2-3 बार मिलेगी तो खुल कर बात करने का मौका मिल जाएगा,’ मैं ने मन ही मन सोचा.

सोमवार को वह दिखाई नहीं दी. लगता है कि पहले निकल गई होगी. जब 2-3 दिन ऐसे ही गुजर गए तो मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. ’कहां गई होगी? काश, मैं ने उस से मोबाइल नंबर मांग लिया होता.’ सोचसोच कर मैं परेशान हो उठा. शाम को पूरी तरह से निराश था. उम्मीद ही नहीं थी कि रश्मि से मुलाकात हो जाएगी.

रश्मि का चेहरा कुछ थकाथका सा लग रहा था. पास पहुंचा तो बोल पड़ी, ‘‘अरे, राजेश, कैसे हो.’’

‘‘ठीक हूं. क्या बात है 3-4 दिन…’’

‘‘हां, मैं हैदराबाद गई थी. मामाजी का देहांत हो गया था. आज सुबह की फ्लाइट से दिल्ली लौटी हूं.’’

मैट्रो तेज रफ्तार पकड़ चुकी थी. बातचीत में सफर कब कट गया, पता ही नहीं चला. नेहरू प्लेस स्टेशन आते ही वह उतरी और तेज कदमों से आटो ले कर घर चली गई. मैं भी अपने घर चला गया. घर पहुंचा तो भाभी मेरी चालढाल से समझ गईं. ‘‘देवरजी, आज तो चेहरे पर रौनक नजर आ रही है. क्या कोई खुशखबरी है?’’

‘‘नहीं भाभी, आप तो…’’

‘‘चल, चाय बना कर लाती हूं. हाथमुंह धो ले.’’

मां भी आ गईं. मां कुछ पूछें उस से पहले ही मैं कपड़े बदलने का बहाना बना कर अपने कमरे में चला गया. भतीजा भी मेरे पीछेपीछे हो लिया.

‘‘चाचू, 10 रुपए…’’

‘‘क्यों, कुछ लेना है. ठीक है, लेकिन मम्मीपापा को मत बताना.’’

आज दिल बहुत खुश था. सबकुछ अच्छा लग रहा था. भाभी को बताना चाहता था इसलिए किचन में चला गया.

‘‘अरे, देवरजी, किचन में क्यों आ गए.’’

‘‘क्यों, मैं यहां नहीं आ सकता भाभी?‘‘

’’क्यों नहीं. कोई न कोई बात होगी. पहले तो कभी नहीं आया था. तेरे पास हमारे साथ बात करने का तो समय ही नहीं होता. बोल, खाने में क्या बनाऊं तेरे लिए.’’

‘‘पनीर खाने का मन हो रहा है, भाभी.’’

‘‘ठीक है,’’ भाभी ने कहा, ‘‘बाजार से खरीद कर ले आ. मैं बना देती हूं. बहुत

दिन से सोनू भी पनीर खाने की जिद कर रहा था.’’

अचानक मां आ गईं और बोलीं, ‘‘क्या बातचीत हो रही है दोनों देवरभाभी में.’’

‘‘कुछ नहीं मां, मैं भाभी से कह रहा था कि पनीर की सब्जी बना दो.’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं. ठीक है, पालक भी ले आना. पालकपनीर की सब्जी तेरे भाई को पसंद है.’’

मैं फौरन बाजार की तरफ निकल पड़ा. बाजार क्या पहुंचा? पुराने दोस्तों की टोली मिल गई. मैं चाह कर भी उन से पीछा नहीं छुड़ा पाया. फिर तो मेरी खिंचाई का दौर शुरू हो गया. ’घर में बैठेबैठे क्या करते हो.’ ’शादी के लिए कोई लड़की पसंद की है कि नहीं,’ एकसाथ कई सवालों ने मेरा दिमाग खराब कर दिया…

’’अरे भाई, अब जाने भी दो. भाभी ने पनीर और पालक के लिए भेजा है. भैया भी आते होंगे. देर हो गई तो मुझे डांट पड़ेगी.’’

‘‘आज तो तुझे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे बच्चू. बहुत दिन बाद बड़ी मुरगी जाल में फंसी है. नौकरी की पार्टी हमें अभी तक नहीं मिली है.’’

‘‘सब ठीक है अगली बार… पक्का.’’

‘‘रविवार को हम सब इंतजार करेंगे.’’

बाप रे, पीछा छूटा, और कोई पुराना दोस्त मिले इस से पहले घर भागता हूं. सब्जी की दुकान पर पहुंचा तो नीता अपने पापा और छोटी बहन के साथ खड़ी थी. नजरें मिलीं तो शरमा गई और मुंह फेर लिया. उसे इस बात की भनक लग चुकी थी कि मेरे साथ उस के रिश्ते की बात चल रही है. इस से पहले कि उस के पापा की नजर मुझ पर पड़ती, मैं फौरन घर भाग लिया. मैं घर के अंदर कदम रख ही रहा था कि भैया नीता के रिश्ते के बारे में मां से पूछ रहे थे, ‘‘मां, राजू से बात की.’’

लेखक- किशोर

कर्ज के नाम पर औनलाइन धोखाधड़ी

आज के समय में अधिकतर ट्रांजैक्शन औनलाइन होते हैं. हर चीज औनलाइन शिफ्ट होने लगी है. यह सहूलियत तो दे देता है पर रिस्क के चांस भी बढ़ा देता है. इसी मौके को ताड़ते साइबर जालसाजों के ऐसे गुट खड़े हो गए हैं जो लोगों को अपने चंगुल में फंसा कर धोखाधड़ी को अंजाम दे रहे हैं. ये गैंग लोगों को तत्काल कर्ज देने के नाम पर धोखाधड़ी करते हैं. हाल ही में मैनपुरी कोतवाली पुलिस ने ऐसे ही तत्काल कर्ज देने के नाम पर लोगों से ठगी करने वाले गिरोह को पकड़ा.

यह गैंग मैनपुरी ही नहीं बल्कि आसपास जिलों में भी ठगी करता था. लोगों को जब पता चलता तब तक उन की कमाई ले कर गैंग के ठग फरार हो जाते. इस तरह की ठगी छोटेछोटे कर्जों की शक्ल में हो रही हैं. अगर कोई सोशल मीडिया पर विज्ञापन देख कर 5 हजार रुपए का कर्ज लेता है तो उसे 7 दिनों के भीतर 7 हजार रुपए चुकाने पड़ते हैं. यहां तक तो ठीक है पर दिक्कत इस के बाद खड़ी होती है. जिस एप्लीकेशन प्लेटफौर्म के माध्यम से यह सारा खेल चल रहा होता है उस के माध्यम से ही देनदारों के पास लेनदार की सारी निजी डिटेल पहुंच जाती है. उस के पास वे प्राइवेट पिन कोड भी पहुंच जाते हैं जो उस के खातों से जुड़े होते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इंस्टैंट लोन एप्लीकेशन से बचने हेतु अलर्ट जारी किया है.

पुलिस ने जिस गैंग को पकड़ा है उस में ज्यादा अनधिकृत लोग हैं जिन्हें रिजर्व बैंक से लोन देने का कोई अधिकार नहीं मिला है. इस के बावजूद वे खुलेआम मिनटों में लोन का औफर दे कर लोगों को फंसा रहे हैं. लौकडाउन के दौरान से ये सारे एप्लीकेशन एक्टिवेट हुए हैं. साइबर क्रिमिनल पैसों की कमी से जू झ रहे लोगों को सस्ते दर पर लोन मुहैया कराने का झांसा दे कर अपने जाल में फंसा रहे हैं. ऐसे में जरूरी है कि ग्राहक ऐसे झांसों में न फंसें.

जहां से भी कर्ज लिया जा रहा है उस की पूरी जानकारी ले लें. औनलाइन लोन औफर करने वाली या मोबाइल ऐप्स के जरिए लोन दे रही कंपनी के बारे में जानकारी और पहले किए उस के काम को वैरिफाई करें. अगर किसी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार की औनलाइन ठगी हो जाती है तो वह तुरंत नैशनल साइबर कंप्लैंट पोर्टल पर औनलाइन अथवा हैल्पलाइन नंबर 1930 या 112 पर कौल कर शिकायत दर्ज करवा सकता है. इस के अलावा नजदीकी पुलिस स्टेशन में जा कर साइबर हैल्प डैस्क से भी मदद ले सकते हैं. –

खोखले चमत्कार : संजू किस बात पर ध्यान नहीं दिया?

संजू की दादी का मन सुबह से ही उखड़ा हुआ था. कारण यह था कि जब वे मंदिर से पूजा कर के लौट रही थीं तो चौराहे पर उन का पैर एक बुझे हुए दीए पर पड़ गया था. पास ही फूल, चावल, काली दाल, काले तिल तथा सिंदूर बिखरा हुआ था. वे डर गईं और अपशकुन मनाती हुई अपने घर आ पहुंचीं .

घर पर संजू अकेला बैठा हुआ पढ़ रहा था. उस की मां को बाहर काम था. वे घर से जा चुकी थीं. पिताजी औफिस के काम से शहर से बाहर चले गए थे. उन्हें 2 दिन बाद लौटना था.

दादी के बड़बड़ाने से संजू चुप न रह सका. वह अपनी दादी से पूछ बैठा, ‘‘दादी, क्या बात हुई? क्यों सुबहसुबह परेशान हो रही हो?’’

अंधविश्वासी दादी ने सोचा, ‘संजू मुझे टोक रहा है.’ इसलिए वे उसे डांटती हुई फौरन बोलीं, ‘‘संजू, तू भी कैसी बातें करता है. बड़ा अपशकुन हो गया. किसी ने चौराहे पर टोनाटोटका कर रखा था. उसी में मेरा पैर पड़ गया. उस वक्त से मेरा जी बहुत घबरा रहा है.’’

संजू बोला, ‘‘दादी, अगर ऐसा है तो मैं डाक्टर को बुला लाता हूं.’’  पर दादी अकड़ गईं और बोलीं, ‘‘तेरा भेजा तो नहीं फिर गया कहीं. ऐसे टोनेटोटके में डाक्टर को बुलाया जाता है या ओझा को. रहने दे, मैं अपनेआप संभाल लूंगी. वैसे भी आज सारा दिन बुरा निकलेगा.’’

संजू ने उन की बात पर कोई ध्यान न दिया और अपना होमवर्क करने लगा. संजू स्कूल चला गया तो दादी घर पर अकेली रह गईं. पर दादी का मन बेचैन था. उन्हें लगा कि कहीं किसी के साथ कोई अप्रिय घटना न घट जाए, क्योंकि जब से चौराहे में टोनेटोटके पर उन का पैर पड़ा था, वे अपशकुन की आशंका से कांप रही थीं. तभी कुरियर वाला आया और उन से हस्ताक्षर करवा उन्हें एक लिफाफा थमा कर चला गया. अब तो उन का दिल ही बैठ गया. लिफाफे में एक पत्र था जो अंगरेजी में था और अंगरेजी वे जानती नहीं थीं. उन्हें लगा जरूर इस में कोई बुरी खबर होगी.

इसी डर से उन्होंने वह पत्र किसी से नहीं पढ़वाया. दिन भर परेशान रहीं कि कहीं इस में कोई बुरी खबर न हो. शाम को जब संजू और उस की मां घर लौटे, तब दादी कांपते हाथों से संजू की मां जानकी को पत्र देती हुई बोलीं, ‘‘बहू, जरूर कोई बुरी खबर है. अपशकुन तो सुबह ही हो गया था. अब पढ़ो, यह पत्र कहां से आया है और इस में क्या लिखा है? जरूर कोई संकट आने वाला है. हाय, अब क्या होगा?’’

जानकी ने तार खोल कर पढ़ा लिखा था, ‘‘बधाई, संजय ने छात्रवृत्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है.’’

पढ़ कर जानकी खिलखिला उठीं और अपनी सास से बोलीं, ‘‘मांजी, आप बेकार घबरा रही थीं, खबर बुरी नहीं बल्कि अच्छी है. हमारे संजू को छात्रवृत्ति मिलेगी. उस ने जो परीक्षा दी थी, उत्तीर्ण कर ली.’’ तब दादी का चेहरा देखने लायक था. किंतु दादी अंधविश्वास पर टिकी रहीं. वे रोज मंदिर जाया करती थीं. एक रोज सुबहसुबह दादी मंदिर गईं. थाली में नारियल, केला और लड्डू ले गईं. थाली मूर्ति के सामने ही रख दी और आंखें बंद कर के मन ही मन जाप करने लगीं. इसी बीच वहीं पेड़ पर बैठा एक बंदर पेड़ से उतरा और चुपके से केला व लड्डू ले कर पेड़ पर चढ़ गया.

दादी ने जब आंखें खोलीं और थाली में से केला व लड्डू गायब पाया तो खुश हो कर अपनेआप से बोलीं, ‘‘प्रभु, चमत्कार हो गया. आज आप ने स्वयं ही भोजन ग्रहण कर लिया.’’ वे खुशीखुशी मंदिर से घर लौट आईं. घर पर जब उन्हें सब ने खुश देखा तो संजू कहने लगा, ‘‘दादी, आज तो लगता है कोई वरदान मिल गया?’’

दादी प्रसन्न थी, बोलीं, ‘‘और नहीं तो क्या?’’

फिर दादी ने सारा किस्सा कह सुनाया. संजू खिलखिला कर हंस पड़ा तथा यह कहता हुआ बाहर दौड़ गया, ‘‘इस महल्ले में चोरउचक्कों की भी कमी नहीं है. फिर पिछले कुछ समय से यहां काफी बंदर आए हुए हैं लगता है प्रसाद कोई बंदर ही ले गया होगा.’’ सुन कर दादी ने मुंह बिचकाया. फिर सोचने लगीं कि आज शुभ दिन है. आज मेरी मनौती पूरी हुई. मैं चाहती थी कि मेरा बुढ़ापा सुखचैन से बीते. रोज की तरह उस शाम को दादी टहलने निकल गईं. वे पार्क में जाने के लिए सड़क के किनारे चली जा रही थीं. साथ ही सुबह हुए चमत्कार के बारे में सोच रही थीं.

तभी एक किशोर स्कूटी सीखता हुआ आया और दादी को धकियाता हुआ आगे बढ़ गया. दादी को पता ही नहीं चला, वे लड़खड़ा कर हाथों के बल सड़क पर जा गिरीं. हड़बड़ाहट में उठ तो गईं, पर घर आतेआते उन के दाएं हाथ में सूजन आ गई. वे दर्द के मारे कराहने लगीं. उन्हें फौरन डाक्टर को दिखाया गया. एक्सरे करने पर पता चला कि कलाई की हड्डी चटक गई है.

एक माह के लिए प्लास्टर बंध गया. दादी ‘हाय मर गई, हाय मर गई’ की दुहाई देती रहीं.संजू चुटकी लेता हुआ दादी से बोला, ‘‘दादी, यही है वह चमत्कार, जिस के लिए आप सुबह से ही खुश हो रही थीं. तुम्हारी दोनों बातें गलत निकलीं. इसलिए भविष्य में ऐसे अंधविश्वासों के चक्कर में मत पड़ना.’’  दादी रोंआसी हो कर बोलीं, ‘‘हां बेटा, तुम ठीक कहते हो. हम ने तो सारी जिंदगी ही ऐसे भ्रमों में बिता दी पर मैं अब कभी शेष जीवन में इन खोखले चमत्कारों के जाल में नहीं पडूंगी.’’

हिंदुस्तानी भाऊ की धमकी से नाराज हुईं उर्फी जावेद दिया ये जवाब

उर्फी जावेद अपने कपड़ों के लिए काफी ज्यादा मशहूर हैं इंडस्ट्री में हर वक्त वह अपने कपड़ो को लेकर लाइमलाइट में बनी रहती हैं, ऐसे में हिन्दुस्तान भाऊ ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें वह कह रहे हैं कि तू ऐसे कपड़े पहनकर घूमना बंद कर दें, ऐसे कपड़ों का बहुत बुरा असर पड़ रहा है हमारे समाज में वरना मैं तुम्हें सुधार दूंगा.

जिसके बाद से उर्फी जावेद ने भी हिन्दुस्तानी भाऊ को करारा जवाब दिया है, उर्फी ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए वीडियो में हिन्दुस्तानी भाऊ को दोगला कहा है, उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तानी भाऊ की टीम ने एक मामले में उनसे मदद मांगी थी लेकिन जब मैंने मना किया तो उनकी पूरी टीम मेरे पीछे पड़ गई.

 

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उर्फी जावेद ने वीडियो शेयर करते हुए हिंदुस्तानी भाऊ पर निशाना साधा है, उर्फी ने वीडियो शेयर करते हुए एक नोट लिखा है जिसमें वह कह रही हैं कि उफ आप गालियां देते हैं तो आपकी गालियों ने कितने को सुधार दिया है यह आपको खुद भी पता होगा. आप मुझे खुलेआम धमकी दे रहे हैं पता है न मैं आपको जेल की हवा भी खिला सकती हूं,

लेकिन एक मिनट आप तो कई बार जा चुके हैं, ये तो कितना अच्छा है न युथ के लिए जेल जाना अपने से आधी उम्र की लड़की को धमकी देना. आगे एक्ट्रेस ने लिखा कि हिन्दुस्तानी भाऊ अपना प्रमोशन करवाना चाहते थें लेकिन एक्ट्रेस ने मना कर दिया. जिसके बाद वह ऐसी हरकत करने लगी.

Bigg Boss 16: एंजाइटी और डिप्रेशन से परेशान निमृत कौर की बिग बॉस में हालत हुई खराब

बिग बॉस कंटेस्टेंट निमृत कौर बीते कुछ दिनों से बिग बॉस के घर में परेशान चल रही हैं, हालांकि उन्होंने अपनी परेशानी अभी तक किसी को शेयर नहीं कि है. लेकिन बाकी कंटेस्टेट के अलावा निमृत पहले से ज्यादा चुप रहने लगी हैं.

बिग बॉस ने उन्हें कंफेशन रूम में बुलाया और परेशानी की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से वह उदास महसूस कर रही हैं.

दरअसल, बिग बॉस का घर जितना आसान दिखता है उतना ही कठिन होता है वहां रहना, बिग बॉस के घर में अंजाने लोगों के साथ बंद रहने से अच्छे- अच्छे लोग प्रेशर में आ जाते हैं, बीते दिनों एक्ट्रेस निमृत कौर को पहले से ज्यादा डाउन देखा गया.

निमृत कौर ने अभी तक अपनी परेशानी की वजह नहीं बताई हैं, जब बिग बॉस ने निमृत से कहा कि वह खुलकर बताएं कि वह कैसा महसूस कर रही हैं.निमृत ने कहा कि मैं वो इंसान नहीं हूं जो अपने मन में चीजों को रखकर आगे बढूं मुझे पता नहीं आप लोग मुझे समझ पा रहे हैं या नहीं , मैं रात को सो नहीं रही हूं.

आगे निमृत ने कहा कि मैं ये महसूस कर रही हूं कि मेरा दिमाग थका हुआ है. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि मैं स्ट्रांग नही हूं.

प्रौपर्टी: घर खरीदें, छले न जाएं

अभी तक जमीनजायदाद खरीदने की जिम्मेदारी मर्दों पर होती थी, मगर समय बदल रहा है. पढ़ाईलिखाई और अच्छी नौकरी के साथ अब महिलाएं भी प्रौपर्टी के मार्केट में नजर आने लगी हैं. ऐसे में हर तरह की जानकारी जरूरी है ताकि बिल्डर और ब्रोकर के हाथों वे छली न जाएं. कामिनी भटनागर साउथ दिल्ली के संतनगर इलाके में गली नंबर 3 में रहती हैं. 7 साल पहले उन की शादी केशव भटनागर से हुई थी. दोनों का एक पुत्र रवि है जो अभी 5 साल का है. घर में केशव की मां भी थीं. कामिनी का परिवार आराम से जिंदगी बसर कर रहा था मगर कोविडकाल ने सबकुछ तबाह कर दिया.

कोरोना इस परिवार पर कहर बन कर टूटा. बेटे को छोड़ सभी कोरोना की चपेट में आ गए. कामिनी तो किसी तरह रिकवर कर गई मगर सास और पति इस की पकड़ से नहीं निकल पाए. 19 फरवरी, 2021 को कामिनी की सास रमावती भटनागर की मौत हो गई और उस के एक महीने बाद ही उन के पति भी कोरोना के कारण चल बसे. दोनों के इलाज में कामिनी की सारी जमापूंजी खर्च हो गई. अब कामिनी अपने नन्हे बेटे के साथ अकेली हैं. उन के पास नौकरी नहीं है. रुद्रपुर की रहने वाली कामिनी दिल्ली शहर से ज्यादा वाकिफ भी नहीं हैं. वे संतनगर वाला फ्लैट बेच कर बेटे के साथ अपने मायके रुद्रपुर लौट जाना चाहती हैं, मगर इस में सब से बड़ी बाधा बन रहा है अनऔथोराइज जमीन पर बना उन का फ्लैट. उन्होंने कई ब्रोकरों के चक्कर काटे, मगर फ्लैट के लिए कोई ग्राहक नहीं मिल रहा है.

कोई औनेपौने दामों में भी खरीदने को तैयार नहीं है. इस बात को ले कर कामिनी भटनागर बहुत परेशान हैं. हैदराबाद की आशा चिलपैया ने शादी नहीं की. वे 44 साल की हैं और एक एनजीओ में कार्यरत हैं. उन के मातापिता हैदराबाद में हैं मगर आशा दिल्ली में ही रहना चाहती हैं. बीते 15 सालों से वे किराए के घरों में रह रही हैं. मगर दिल्ली में अब किराया आसमान छू रहा है. ऐसे में उन्होंने सोचा कि क्यों न वन रूम का फ्लैट या छोटा घर खरीद लें. जब वे अपना सपना ले कर रियल स्टेट की दुनिया में उतरीं तो उन के सामने कई ऐसी चीजें आईं जिन की उन्हें कतई कोई जानकारी नहीं थी. ग्रेटर नोएडा में बनी गगनचुंबी इमारतों के बीच एक बिल्ंिडग के 22वें माले के फ्लैट में सतगुरु शाह अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहते हैं. 18 साल पहले जब इस सोसाइटी में फ्लैट बनने शुरू हुए थे तब बिल्डर ने उन से 16 लाख रुपए में वन बीएचके फ्लैट 4 साल के भीतर देने का वादा किया था. मगर न तो फ्लैट तय समय में तैयार हो पाया और न ही तय दामों पर मिला. शाह एडवांस रकम जमा कर चुके थे. वे किसी भी तरह यह फ्लैट चाहते थे. नौकरी छोड़ कर कोर्टकचहरी के चक्कर में उल?ाना भी उन के बस में नहीं था. मगर इस फ्लैट को पाने के लिए उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ी. बिल्डर ने जबजब पैसा मांगा, वे भरते गए. आखिरकार 11 साल बाद उन को अपना फ्लैट 60 लाख रुपए में मिला और वह भी आधेअधूरे वुड वर्क के साथ. अभी तक जमीनजायदाद खरीदने की जिम्मेदारी मर्दों पर होती थी.

मगर समय बदल रहा है. पढ़ाईलिखाई और अच्छी नौकरी के साथ अब महिलाएं भी प्रौपर्टी के मार्केट में नजर आने लगी हैं. वे प्रौपर्टी खरीदबेच रही हैं. महानगरों में ऊंचे पदों पर काम करने वाली बहुतेरी महिलाएं ऐसी मिलेंगी जिन्होंने शादी नहीं की या जिन का पति से तलाक हो गया. ये महिलाएं, जो आर्थिक रूप से सबल हैं, किसी की गुलाम बन कर नहीं रहना चाहती हैं. वे नहीं चाहतीं कि कोई हर वक्त उन के सिर पर हुक्म का डंडा चलाता रहे, फिर चाहे वह उन के मातापिता ही क्यों न हों. ये महिलाएं अपना एक अलग घर चाहती हैं जहां वे खुल कर सुकून से रह सकें. पर आज के समय में प्रौपर्टी खरीदना या बेचना बच्चों का खेल नहीं है. कई बार महिला को अकेला देख कर बिल्डर या ब्रोकर उस के साथ छल कर जाते हैं. वे जो सुविधाएं दिखा कर मकान या फ्लैट बेचते हैं, पता चलता है कि वे सुविधाएं तो हैं ही नहीं. यही नहीं, कई बार तो अपने रिश्तेदार तक धोखा कर जाते हैं और क्रेता व विक्रेता दोनों से फायदा उठा लेते हैं. ऐसे में अचल संपत्ति के क्रयविक्रय के बारे में महिलाओं को खुद पूरी जानकारी रखना बहुत जरूरी है. आप को जितनी ज्यादा जानकारी होगी, अच्छा मकान या फ्लैट खरीदने में उतनी ही आसानी होगी.

हाल ही में नोएडा में ट्विन टावर ढहा दिए जाने के बाद लोगों के मन में यह खौफ भी पैदा हो गया है कि जिस बिल्ंिडग में वे रह रहे हैं, कहीं वह गैरकानूनी तरीके से तो नहीं बनी है. अगर उन की बिल्ंिडग ढहा दी गई तो उन का फ्लैट भी खत्म हो जाएगा. ऐसे में वे कहां जाएंगे? सारी पूंजी तो फ्लैट लेने में लगा दी, अब आगे क्या होगा? किस से शिकायत करेंगे? किस के आगे हाथ फैलाएंगे? इन सारी शंकाओं के अलावा बाढ़ और भूकंप के खतरे भी होते हैं. घर किस जमीन पर बना है, जमीन विवाद में तो नहीं है, उस पर कोई केस तो नहीं चल रहा है, कहीं वह जमीन आदिवासी की तो नहीं है जिस को खरीदाबेचा नहीं जा सकता है. ऐसे बहुतेरे सवाल हैं जिन का जवाब पहले ही जान लेना चाहिए.

मकान लेने से पहले क्याक्या परखें रेरा रजिस्ट्रेशन नंबर : आप जिस प्रोजैक्ट (सोसाइटी) में फ्लैट खरीद रही हैं वह रेरा यानी रियल एस्टेट रैगुलेटरी अथौरिटी में रजिस्टर होनी चाहिए. रियल एस्टेट का एक कानून है जो भारतीय संसद से पारित है. इस का मकसद रियल एस्टेट में आम जनता के हितों की रक्षा करना और उसे धोखाधड़ी से बचाना है. अलगअलग राज्यों में रेरा के नियमों में कुछ फर्क हो सकता है. 500 वर्ग मीटर से कम जमीन पर बने अपार्टमैंट पर रेरा के नियम लागू नहीं होते. अमूमन हर राज्य में रेरा की अपनी वैबसाइट है. इस वैबसाइट पर हर डैवलपर को रजिस्ट्रेशन कराना होता है. रजिस्ट्रेशन के दौरान डैवलपर को बिल्ंिडग प्लान, सैक्शन प्लान, कौमन एरिया, मिलने वाली सुविधाएं, पजेशन कब मिलेगा जैसी तमाम डिटेल्स डालनी होती हैं. रजिस्टर करने के बाद डैवलपर को प्रोजैक्ट नंबर मिलता है. संबंधित राज्य की रेरा की वैबसाइट पर जा कर उस नंबर को डालने से डैवलपर और प्रोजैक्ट के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है. इस में प्रोजैक्ट के लेआउट प्लान से ले कर प्रोजैक्ट को कौनकौन से क्लीयरैंस मिले हैं, इस की भी जानकारी होती है. हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजैक्ट बनाने वाले डीडीए, जीडीए जैसे संगठन भी इस कानून के दायरे में आते हैं.

जमीन का स्टेटस : दिल्ली में मकान या फ्लोर खरीदने से पहले यह जरूर पता कर लें कि कहीं वह अनऔथराइज्ड तो नहीं है. काफी लोग अनाधिकृत जमीन पर कब्जा कर के मकान बना कर बेच देते हैं. कई बार काफी सस्ते में भी बेच कर निकल जाते हैं. पता चलने पर एमसीडी उस कंस्ट्रक्शन को तोड़ देती है और उस के रजिस्ट्रेशन से जुड़ी जानकारी सबरजिस्ट्रार को सौंप दी जाती है. जब कोई शख्स ऐसी जमीन या मकान की रजिस्ट्री करने पहुंचता है तो पता चलता है कि वह जमीन या मकान अनऔथराइज्ड है और इस की रजिस्ट्री नहीं हो सकती है. किसी भी सोसाइटी में फ्लैट खरीदने से पहले यह जरूर देख लें कि जिस जमीन पर सोसाइटी बन रही है वह जमीन लीज होल्ड वाली है या फिर सेल डीड यानी रजिस्ट्री वाली है.

लीज होल्ड वाली है तो लीज कितने सालों के लिए है. इस के बदले में जो चार्ज संबंधित अथौरिटी ने लगाया था वह बिल्डर ने चुकाया है या नहीं. यदि बिल्डर ने वह नहीं चुकाया है तो बिल्ंिडग सील भी हो सकती है. घर के कागज : आप बिल्डर से प्रोजैक्ट लेआउट की कौपी मांग सकती हैं. फिर लेआउट प्लान का मिलान रेरा की वैबसाइट या संबंधित अथौरिटी में जा कर पास हुए नक्शे से कर सकती हैं. यह देखें कि बिल्डर ने जो लेआउट प्लान और नक्शा दिया है, उसी के मुताबिक निर्माण हुआ है या नहीं. अगर बिल्डर को संबंधित अथौरिटी ने औक्यूपेशनल सर्टिफिकेट या पार्शल औक्यूपेशनल सर्टिफिकेट नहीं दिया है और सोसाइटी में गलत तरीके से बिजली आदि का कनैक्शन जोड़ा गया है तो उस कनैक्शन को बंद किया जा सकता है. इस से आप परेशानी का सामना करेंगी.

रजिस्ट्री पेपर जरूर देखें. दिल्ली जैसे शहर में कोई मकान या फ्लोर खरीद रही हैं तो उस मकान की रजिस्ट्री से जुड़े पुराने कागज जरूर चैक कर लें. अगर बायर और सेलर की एक चेन बनी हुई है तो संभव है कि वह मकान या फ्लोर लीगल है. संबंधित जिले के सबरजिस्ट्रार औफिस में जा कर जमीन से जुड़े रजिस्ट्री पेपर चैक कर सकती हैं. मालिकाना हक : किसी भी जमीन पर मालिकाना हक 2 तरह से हो सकता है- पहला, पुश्तैनी या पैतृक जमीन- यह जमीन किसी को उस के पिता या दादा से मिली हुई होती है. ऐसी जमीनों में कई बार सेल डीड यानी रजिस्ट्री के पेपर नहीं होते. लेकिन उन के पास जमाबंदी (सरकार हर 5 से 6 साल पर इलाके के पटवारी से सर्वेक्षण करवाती है और जमीन को असल मालिक के नाम से दर्ज करती है) होती है. पुश्तैनी जमीन खरीदने पर पिछले 5 या 6 जमाबंदी यानी 30 साल के कागजात जरूर देखें. दूसरा, खुद खरीदी गई जमीन- ऐसी जमीनों की सेल डीड होती है यानी इन की रजिस्ट्री होती है.

इसलिए जिस से भी जमीन खरीद रहे हैं उस से कागजात की कौपी ले कर वहां के रजिस्ट्रार औफिस में जाइए और वहां से जमीन के पेपर निकलवा कर चैक करिए. उस का मूल कागजात से मिलान करिए और देखिए कि उस पर जिस का नाम दर्ज है वह सही है या नहीं. रजिस्ट्री की सर्टिफाइड कौपी भी निकलवा सकती हैं. इस के लिए भी वही प्रोसैस है जो ऊपर बताया गया है. क्या क्या करें प्रौपर्टी खरीदने के बाद आप ने जिस प्रोजैक्ट में अपना फ्लैट बुक करवाया है उस प्रोजैक्ट के कंस्ट्रक्शन पर नजर रखें. सप्ताह में एक बार साइट विजिट कर के जरूर आएं. इस दौरान इन चीजों पर नजर रखें : द्य अपने टावर में प्रस्तावित फ्लोर और बन चुके फ्लोर की संख्या. द्य सामने ओपन स्पेस बता कर छोड़ी गई जगह पर अगर कोई निर्माण होता मिले तो उस पर भी सवाल उठाएं. द्य फ्लैट के साथ जिन जनसुविधाओं का वादा बिल्डर ने किया है, उन की भी जानकारी लें.

इन के अलावा पार्क का काम कब से शुरू होगा, इमरजैंसी एग्जिट किधर रहेगा, स्विमिंग पूल, क्लब, प्ले ग्राउंड व दूसरी सुविधाओं की भी जानकारी लेनी चाहिए और पूछना चाहिए कि इन का निर्माण कब शुरू होगा. द्य अगर कुछ भी प्रस्तावित लेआउट से अलग मिलता है तो बिल्डर से सवाल करें. इस के बाद अथौरिटी से शिकायत कर सकती हैं. संबंधित अथौरिटी से पूरी जानकारी लें अगर आप ने फ्लैट खरीद लिया है और आप कुछ समय से उस में रह रही हैं तो यह भी चैक करें कि जिस प्रोजैक्ट के तहत फ्लैट बना है वह प्रोजैक्ट कानूनी है या गैरकानूनी. इस की जानकारी संबंधित अथौरिटी या विभाग से ले सकती हैं. बिल्डर ब्लैकलिस्टेड है या नहीं, इस के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिए. अगर गैरकानूनी है तो रेरा में शिकायत करें. 5 साल तक बिल्डर की जिम्मेदारी बिल्डर कोई प्रोजैक्ट तैयार करता है तो उस के स्ट्रक्चर की 5 साल की गारंटी देता है. स्ट्रक्चर में खराबी होने पर उसे दुरुस्त कराने का जिम्मा बिल्डर का होता है.

अगर आरडब्लूए (रैजिडैंट वैलफेयर एसोसिएशन) नहीं बना है तो 5 साल के बाद भी बिल्डर ही देखरेख करता है. ऐसे में वह मेंटिनैंस चार्ज लेता है. रेडी टू मूव फ्लैट खरीदते समय ये बातें जरूर जांचें द्य सब से पहले तो बिल्डर व बायर एग्रीमैंट को अच्छी तरह पढ़ लें. द्य फ्लैट लेने से पहले बिल्डर के लाइसैंस को देखें, प्रोजैक्ट का रेरा नंबर है या नहीं, उस के दस्तावेज देखें और उस का औक्यूपेशन सर्टिफिकेट चैक करें. द्य यह चैक कर लें कि बिल्डर ने स्थायी बिजली कनैक्शन लिया है या नहीं. द्य लेआउट प्लान की भी जांच करें. द्य अगर बिल्डर ये सब दस्तावेज नहीं दिखा रहा है तो संबंधित अथौरिटी के औफिस से इन सभी चीजों की जानकारी ली जा सकती है. द्य यह भी जांचें कि बिल्डर ने इस जमीन पर पहले कोई लोन तो नहीं लिया है. अगर जमीन या बिल्ंिडग पर बैंक लोन है तो रजिस्ट्री कराने में दिक्कत होती है. बिल्ंिडग की मजबूती जरूर परखें द्य बिल्ंिडग को सरकार से मान्यताप्राप्त स्ट्रक्चर इंजीनियर से पास कराना होता है. उस के द्वारा सर्टिफिकेट दिया जाता है कि बिल्ंिडग भूकंप रोधी है या नहीं.

संबंधित अथौरिटी में जा कर इन सर्टिफिकेट की जांच की जा सकती है. द्य आर्किटैक्ट काउंसिल से अप्रूव्ड आर्किटैक्ट से भी यह जांच कराई जा सकती है. द्य बिल्ंिडग के मैटीरियल की क्वालिटी, मजबूती आदि की जांच के लिए अच्छे आर्किटैक्ट की मदद ली जा सकती है. द्य टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के माध्यम से भी किसी बिल्ंिडग का स्ट्रक्चर औडिट कराया जा सकता है. द्य फ्लैट की मजबूती की जांच खुद से भी करवा सकते हैं. 800-900 स्क्वायर फुट वाले साइज के फ्लैट के लिए लगभग 10 हजार रुपए में जांच करवाई जा सकती है और रिपोर्ट एक सप्ताह में मिल जाती है. अगर प्रोजैक्ट में गड़बड़ है तो बिल्डर पर कार्रवाई : प्रोजैक्ट रजिस्टर कराने का मतलब यह माना जाना चाहिए कि बिल्डर ने जो घोषणाएं की हैं वे खरीदार के लिए ही नहीं, सरकार के लिए भी मानी जाएंगी. ऐसे में अगर बिल्डर अपनी घोषणा से पीछे हटता है तो यही उस के खिलाफ सुबूत माना जाएगा.

इस के अलावा अगर बिल्डर की ओर से दी गई जानकारी पर किसी को संदेह है तो वह रैग्युलेटर के सामने शिकायत कर सकता है. इस शिकायत पर भी जांच होगी और अगर संदेह सही पाया जाता है तो बिल्डर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. कोर्ट जा सकते हैं : अगर शिकायतकर्ता रेरा के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह इस के खिलाफ अपीलीय अथौरिटी में जा सकता है. अगर अपीलीय अथौरिटी से भी शिकायतकर्ता संतुष्ट नहीं होता तो वह राज्य के हाईकोर्ट में जा सकता है. ऐसे लें रिफंड अगर आप को लगता है कि बिल्डर नियम के मुताबिक प्रोजैक्ट का निर्माण नहीं कर रहा है और प्रोजैक्ट पूरा करने में अतिरिक्त समय लगा रहा है तो आप संबंधित अथौरिटी में शिकायत कर सकती हैं. अथौरिटी में सुनवाई न होने पर रेरा में भी शिकायत की जा सकती है. अगर समय पूरा हो चुका है तो आप बिल्डर से रिफंड मांग सकती हैं.

बिल्डर रिफंड देने को तैयार नहीं है तो रेरा में उस के खिलाफ शिकायत की जा सकती है या कोर्ट जा सकती हैं. कानून से ऊपर कोई नहीं नोएडा के ट्विन टावर जैसे उदाहरण बिल्डरों के लिए हैं. फ्लैट बायर्स को बिलकुल सोचने की जरूरत नहीं है. बिल्डर अगर मनमानी करता है तो परेशान होने के बजाय कानूनी लड़ाई लड़ें. अपने प्रोजैक्ट पर नजर रखें और नियमों के बारे में भी जानकारी रखें. अगर बिल्डर मनमानी करे तो फ्लैट बायर्स एकजुट हो कर कानूनी लड़ाई लड़ें. विश्वास रखें, कानून से ऊपर कोई नहीं है. समय जरूर लगता है लेकिन कानूनी लड़ाई बहुत मुश्किल नहीं होती है.

होम लोन का फायदा अगर आप मकान या फ्लैट खरीदने का प्लान बना रही हैं तो उस के लिए सरकारी बैंक से लोन जरूर लें. चाहे आप के पास उस मकान या फ्लैट को खरीदने के लिए पर्याप्त रकम ही क्यों न हो. कम से कम 10 फीसदी रकम होमलोन के रूप में जरूर लें. इस का सब से बड़ा फायदा यह होता है कि होम लोन लेने के दौरान बैंक का वकील उस जगह की पूरी छानबीन करता है. अगर वकील को जमीन या फ्लैट में जरा सा भी संदेह होता है तो वह यह बात बैंक को बताता है. अगर बैंक आप को लोन देने से मना कर रहा है तो सम?ों कि उस के वकील द्वारा की गई जांचपड़ताल यह इशारा करती है कि इस प्रोजैक्ट में कोई न कोई कमी है. ऐसे में बेहतर है कि आप उस जमीन या फ्लैट को खरीदने से बचें.

ये प्यार न कभी होगा कम -भाग 3: अनाया की रंग लाती कोशिश

तब मितेश को लगा कि भाइयों के परिवार के सामने उस की औकात अदना सी है, वह अगर एक शांत और समझदार बीवी ले आए तो उस का भी अपना परिवार हो सके.

मितेश के लिए अब ये दिक्कत की बात थी कि भाइयों को बिना बताए वह खुद के लिए लड़की ढूंढ़ने निकले.

उसे अरुणेश को बताना पड़ा, और जैसे ही दोनों भाइयों को उस ने बताया, उस के लिए ऐसी लड़की ढूंढी जाने लगी, जो दोनों भाइयों की बीवी से कमतर हो.

और तब मितेश को नलिनी के बारे में पता चला.

नलिनी जब शादी हो कर आई, तब आयशा का बेटा गौरव 3 साल का था.
नलिनी छोटी देवरानी की यथासंभव सेवा करती, बच्चे को संभालती और बदले में झिड़की, अपमान ही मिलता रहा.

यद्यपि आयशा ने नलिनी का सुखचैन छीन रखा था, तब भी जीतेश इस घर को छोड़ कर जाने की आयशा की बात पर तवज्जुह नहीं देता. उसे लगा, इतना बड़ा घर उन के चले जाने से मितेश अकेला कहीं इस घर पर कब्जा कर के दोनों भाइयों का हक न मार ले,
गरीब को बेईमान समझने की पुरानी मानसिकता होती ही है कइयों में.

मितेश की शादी के बाद इस तरह गुजरे 19 साल. गौरव अब इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में था.

इस घर में 16-17 साल कैसे बीते, नलिनी ही जानती है. फिर एक बार आयशा ने ऐसा हंगामा मचाया कि मितेश ने पूरी तैयारी कर ली कि अब किराए के मकान में जाना उचित रहेगा, लेकिन इस घर में अब और नहीं.

19 साल के गौरव को यह बात पता चली, तो उस ने उस वक्त दिल्ली में पढ़ रहे अरुणेश के बेटे 23 साल के अर्णव भैया से बात की, फिर दोनों ने मिल कर अरुणेश से कहा कि गौरव के नाना की इतनी बड़ी हवेली में जीतेश और आयशा को शिफ्ट हो जाना चाहिए, क्योंकि नाना की अभीअभी मौत के बाद नानी को सहारा तो मिलेगा ही, वहां रह कर नाना के बिजनैस की व्यवस्था भी आसानी से हो सकेगी. साथ ही, मितेश काकू के परिवार पर अतिरिक्त खर्च नहीं बनेंगे. उन की बेटियां भी अपने घर में सुरक्षित रहेंगी. काकू पर यह शक करना नाइंसाफी होगी कि वे घर हड़प लेंगे, जैसा उस ने मां को कहते सुना है.

आखिर गौरव के समझाने और अर्णव के जोर देने पर अरुणेश की सम्मति से जीतेश ससुराल विंडसर हिल के बंगले पर जाने को राजी हुए. यद्यपि ससुर की 3 कार और उन के ड्राइवर जब हाथ बांधे हमेशा खड़े मिलते, तो जीतेश को यहां आना ज्यादा सुहाया.

जीतेश सिर्फ काम में अतिव्यस्त रहने की वजह से मितेश के परिवार से दूर रहता. ऐसा तो कम ही था. दरअसल, वह अरुणेश के रुतबे, ऊंचे ओहदे और ज्यादा वेतन की नौकरी करती शीना भाभी के संपर्क में रहना ही पसंद करता था. समाज में नाक की बात थी. भारतीय समाज तो जैसे गरीबों और तथाकथित निम्न जातियों को मनुष्य समझ कर अपनी इज्जत खराब नहीं करना चाहता.

इधर गौरव ने मितेश काकू को समझाया कि वे ऊपर केे पूरे हिस्से में रहें और नीचे का हिस्सा किराए पर उठा दें, वह अपने पापा और बड़े पापा को अर्णव भैया से कहला देगा.

मितेश का परिवार ऊपर के पूरे हिस्से में रहा तो सही, लेकिन नीचे को उन्होंने रहने लायक व्यवस्थित कर खाली छोड़ रखा कि कभी भाई आएं तो उन्हें रहने की सुविधा रहे.

एक दिन सौम्या का गिटार में 5 साल का कोर्स पूरा हो गया, और वह प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गई.

कहीं रियाज छूट न जाए, सौम्या ने छोटे बच्चों की क्लास लेने की ठानी.

कुछ ही दिनों में नीचे के एक कमरे में छोटे बच्चों का गिटार क्लास शुरू हुआ.
इन 10 बच्चों की क्लास में 13 साल का एक बच्चा ऐसा था, जो अपने चचेरे बड़े भाई के साथ रोज उस की बाइक में गिटार सीखने आता.

इस बड़े भाई का नाम रूपक था, और वह एमएससी फाइनल ईयर का छात्र था.

रूपक अपने भाई हर्ष को रोज सौम्या के क्लास में छोड़ता और डेढ़ घंटे बाद लेने आता.

जैसा कि बच्चों की मांओं या उन के साथ आने वालों से थोड़ीबहुत बातचीत सौम्या की थी ही,
रूपक के साथ भी सौम्या की बात होती.

सीधासादा रूपक बहुत ही स्मार्ट व खूबसूरत था. उस की उम्र 23 साल से कुछ महीने ज्यादा थी. उस की आंखों में कशिश थी, और होंठों पर बला की चुप्पी. वह आंखों से बात कहने में माहिर था, और सौम्या जैसी शांत लड़की उस के प्रति अनचाहे ही आकर्षित होती जा रही थी.

हर्ष 13 साल का था, और सौम्या और रूपक की मीठी सी असहज बातचीत का मर्म समझने लगा था.
एक दिन वापसी में उस ने ही रूपक से कहा, “भैया, सौम्या दीदी बहुत मीठी हैं, और आप से उन का स्वभाव कितना मिलता है. आप उन से दोस्ती क्यों नहीं करते?”

“दोस्ती तो है,” रूपक ने हर्ष को ऐसी बातों से अलग करना चाहा.

“इस तरह दोस्ती खत्म भी हो जाएगी. आप उन्हें कहीं घूमने और खानेपीने के लिए बुला लो. तभी दोस्ती पक्की होगी,” हर्ष बड़े भाई की तरह सलाह दे रहा था.

बाइक में पीछे बैठे हर्ष को रूपक ने बांए हाथ से घुमा कर एक चपत लगाते हुए कहा, “बंदर… तू तो बड़ा आगे भाग रहा है.”

उसे झिड़क तो दिया, लेकिन रूपक को यह आइडिया बड़ा अच्छा लगा. सौम्या से दोस्ती बढ़ाना चाहता है वह, लेकिन झिझक चीज ही ऐसी है कि हिम्मत नहीं पड़ती. हां, मगर चाहत क्या न करवाए. उस ने धीरेधीरे सौम्या से व्हाट्सएप में बातचीत शुरू की.

 

मुश्किल होता है अपराध करके बचना

आज के तकनीकी समय में ऐसे कई उपकरण ईजाद हो गए हैं जिन से किसी अपराधी की भागीदारी या मौजूदगी का पता आसानी से लगाया जा सकता है. ऐसे में अपराध कर बच निकल जाने की भूल बेवकूफी है. अमरमणि त्रिपाठी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री थे. बाहुबलि छवि के इस नेता को कविताएं पढ़ने वाली युवा लड़की मधुमिता त्रिपाठी से लगाव हो गया. यह लगाव मोहब्बत में बदल गया. अमरमणि की पत्नी मधुमणि को इस पर एतराज था. परेशानी तब खड़ी हो गई जब मधुमिता गर्भवती हो गई.

उस पर अमरमणि और उस की पत्नी मधुमणि की तरफ से गर्भपात कराने के लिए दबाव पड़ने लगा. मधुमिता ने इनकार किया. इस हालत में ही एक दिन मधुमिता की हत्या उस के ही आवास पर कर दी गई. पुलिस को मधुमिताअमरमणि मसले की जानकारी थी. हत्या का आरोप अमरमणि त्रिपाठी व उन की पत्नी मधुमणि पर लगा. लोकल पुलिस ने घटना को छिपाने का काम किया. अमरमणि का रसूख भारी पड़ रहा था. लोकल पुलिस ने जांच में यह साबित करने का प्रयास किया कि मधुमिता के पेट में पल रहा बच्चा किसी और का था. पुलिस ने मीडिया के कुछ लोगों के साथ मिल कर मधुमिता की शादी किसी लड़के के साथ साबित करने का प्रयास किया. सारी कोशिश अमरमणि त्रिपाठी को बचाने की थी. मधुमिता के परिवार के लोगों ने हार नहीं मानी. मधुमिता हत्याकांड की जांच सीबीआई को देने के लिए अदालत में गुहार लगाई. कोर्ट ने जांच सीबीआई को दे दी.

सीबीआई ने जांच में अमरमणि त्रिपाठी व उन की पत्नी मधुमणि सहित कई अन्य लोगों को घटना का जिम्मेदार माना. सीबीआई के पास सब से मजबूत सुबूत यह था कि मधुमिता के पेट में पल रहे बच्चे के डीएनए का मिलान अमरमणि से किया गया तो वह अमरमणि का बच्चा ही पाया गया. इस सुबूत के आधार पर अमरमणि व उन की पत्नी मधुमिता को आजीवन उम्रकैद की सजा दे दी गई. दोनों जेल में हैं. अपने अंतिम दिनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं. सामान्य उम्रकैद की सजा 14 साल की होती है. रातदिन मिला कर 7 साल रहती है, जिस का मतलब यह होता है कि कैदी 7 साल के बाद आजाद हो जाता है. अमरमणि और उन की पत्नी मधुमणि को आजीवन उम्रकैद की सजा मिली जिस का अर्थ यह होता है कि उन को अब अपना बचा हुआ जीवन जेल के अंदर ही काटना है.

वे जिंदा रहते बाहर नहीं आ सकते. बहुत ही अलग किस्म के अपराध में कोर्ट इस तरह की सजा सुनाती है. अमरमणि ने मधुमिता हत्याकांड में खुद को बचाने के लिए हर हथकंडा प्रयोग किया. मधुमिता की हत्या में उस के कपोलकल्पित प्रेमी को फंसाने की योजना बनाई. मधुमिता की बहन और परिवार के लोगों को धमकी देने का काम किया. उत्तर प्रदेश पुलिस पर मनमाना दबाव बनाया. बहुत सारे बाहुबल का प्रयोग करने के बाद भी वह खुद को सजा से बचा नहीं सका. एक गलती ने अमरमणि के राजनीतिक कैरियर को एक झटके में खत्म कर दिया, उस को तिलतिल कर मरने के लिए मजबूर कर दिया. अमरमणि जैसे न जाने कितने अपराधी हैं जो यह सोचते हैं कि अपराध कर के बच जाएंगे. द्य उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में 2 दलित बहनों की रेप कर के हत्या कर दी गई. दोनों लड़कियों को पेड़ से लटका दिया गया. यह साबित करने का प्रयास किया गया कि लड़कियों के प्रेमसंबंध थे. प्रेमियों ने शादी करने से इनकार किया तो दोनों ने आत्महत्या करने के लिए पेड़ पर लटक कर अपनी जान दे दी. पुलिस की छानबीन में यह सामने आ गया कि लड़कियों को मार कर पेड़ पर लटकाया गया है.

हत्या करने वाले और उस में साथ देने वाले 6 लड़कों को पुलिस ने पकड़ लिया. कहने का मतलब यह है कि अपराध कर के बचना अब बहुत मुश्किल है. इसलिए अपराध करने के पहले 100 बार सोचें. यह कभी न सोचें कि अपराध कर बच सकते हैं. हालात बदल गए अगर 20 से 25 साल पहले की बात करें तो अपराध को छिपाना थोड़ा सरल था. जैसेजैसे निगरानी करने वाले नएनए साधन आने लगे हैं वैसेवैसे अब अपराध कर बचना बेहद मुश्किल हो गया है. आमतौर पर होटल, अपार्टमैंट, सड़क, बस, रेलवे और एयरपोर्ट पर लगे कैमरों की नजर से बचना सरल नहीं होता. इस के बाद सब से अहम होता है मोबाइल की लोकेशन का ट्रेस होना. उन्नाव में कुलदीप सेंगर मोबाइल लोकेशन को ले कर ही सवालों के घेरे में हैं. पुलिस 90 फीसदी अपराधों का पता मोबाइल लोकेशन से लगाती है.

कई बार अपराधी इस से बचने के लिए मोबाइल या सिमकार्ड को तोड़ कर फेंक देता है. इस के बाद भी वह कोई न कोई हरकत कर जाता है. पुलिस अपराधी को पकड़ने के लिए केवल अपराधी के मोबाइल पर ही नजर नहीं रखती है, वह उस के करीबी मित्रों, रिश्तेदारों, घरवालों के नंबर पर भी नजर रखती है. अपराधी देरसवेर किसी न किसी नंबर पर फोन कर कुछ न कुछ संदेश देने की गलती कर जाता है. हर प्लान होता है फेल द्य बाराबंकी जिले का रहने वाला एक लड़का और एक लड़की भाग कर गोवा चले गए. दोनों के फोन बंद हो गए. लोकेशन का पता पुलिस को नहीं चल रहा था. 10 दिनों बाद लड़के ने दूसरे फोन से अपने घर फोन कर के बात की. पुलिस ने उस के घर वालों के फोन सर्विलांस पर लगा रखे थे. उसे लड़के की लोकेशन का पता चल गया.

24 घंटे के अंदर पुलिस ने दोनों को गोवा में हिरासत में ले लिया. द्य लखनऊ में रहने वाले एक लड़के ने अपनी प्रेमिका की हत्या कर के लाश के कई टुकड़े कर दिए. पुलिस को लाश के आखिरी टुकड़े के पास से एक नया बड़ा चाकू मिला. पुलिस ने आसपास के बाजार में यह पता किया कि चाकू किस के यहां से बेचा गया है. पुलिस की छानबीन में दुकानदार का पता चल गया. दुकानदार ने बताया कि हत्या के एक दिन पहले महल्ले का ही लड़का चाकू खरीद कर ले गया था.

दुकानदार की निशानदेही पर लड़का पकड़ा गया. उस ने जांच में सारे राज खोल दिए. द्य मोहनलालगंज इलाके में एक आदमी ने अपनी पत्नी की हत्या कर के लाश पुराने कुंए में डाल दी. इस के बाद कुएं को पुराने घर की मिट्टी से भरवा दिया. पत्नी की गुमशुदगी लिखा दी. पुलिस ने छानबीन में पति के मोबाइल की लोकेशन पत्नी के मोबाइल के साथ देखी. इस के बाद पति को पकड़ कर पूछा. पति ने गोलमोल जवाब दिया. पुलिस ने सप्ताहभर पहले गिराए गए घर व उस के मलवे से दबाए गए कुएं को खोदने का काम शुरू किया.

36 घंटे की खुदाई के बाद कुएं से पत्नी की लाश मिली. इस तरह की घटनाएं हर जगह होती हैं. पुलिस को अंदाजा होता है कि कब क्यों क्या कैसे हुआ होगा. पुलिस अगर घटना को खोलना चाहती है तो वह अपराध छिपा नहीं रह सकता. पुलिस के लिए मिलीभगत कर के भी घटना को छिपाना सरल नहीं होता. ऐसे में अपराध करने से पहले सौ बार सोचें. उस के अंजाम को सोच लें. अपने कृत्य के जिम्मेदार आप खुद होंगे. यह केवल हत्या पर ही नहीं, कई तरह के अपराधों पर लागू होता है.

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