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तेरे सुर और मेरे गीत-भाग 4: श्रुति और वैजयंति का क्या रिश्ता था

“देख लो, तुम्हारे सामने ही हूं,” अपना सीना चौड़ा कर वह बोला, “मौसी, मेरी पहली कमाई से मैं आप को क्या दूं, बताओ?”

“कुछ नहीं, बस तू खुश रह” मैं ने कहा. रोज वह शेखर के साथ ही औफिस के लिए निकल जाता था और कभी बस से तो कभी ट्रेन से घर आ जाता था. लेकिन आते समय उसे बहुत परेशानी उठानी पड़ती थी, क्योंकि बसट्रेन छूट जाने से उसे घंटों इंतजार करना पड़ता था. फिर शेखर अपने औफिस की गाड़ी से औफिस जाने लगे और अपनी गाड़ी उन्होंने वेदांत को दे दी. वेदांत को अब कोई समस्या नहीं थी. आराम से वह औफिस आनेजाने लगा था. उस के यहां आ जाने से मुझे भी काफी आराम हो गया था. बाहर के कई काम वह कर दिया करता या उस के साथ जा कर मैं ख़रीदारी कर लेती थी. उस दिन हेमा जी को परेशान देख जब मैं ने पूछा कि क्या हुआ तो कहने लगीं कि अभी तक वैजंती घर वापस नहीं आई है. “अरे, तो आती ही होगी. आप चिंता मत करिए,” मैं ने कहा. लेकिन अब मुझे भी उस की चिंता होने लगी थी क्योंकि रात के 9 बज चुके थे और अब तक वह नहीं आई थी. वैसे भी, दिल्ली अब लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गई थी. तभी मैं ने देखा, कंधे पर बैग टांगे वह चली आ रही है. “ये लो, आ गई आप की वैजंती. आप नाहक ही परेशान हो रही थीं.” लेकिन वैजंती बताने लगी कि औफिस में ज्यादा काम होने की वजह से उस की बस छूट गई. और दूसरी बस के इंतजार में घंटों लग गए. सुबह वैजंती को परेशान देख पूछा कि क्या हुआ? तो वह बोली कि आज बसऔटो की हड़ताल है तो औफिस कैसे जाएगी. ट्रेन भी निकल गई होगी अब तो.

“अरे, तो चिंता क्यों करती हो, वेदांत छोड़ देगा न तुम्हें. उसे भी तो औफिस जाना ही है,” बोल कर मैं ने वेदांत को आवाज लगाई. वह तैयार ही बैठा था औफिस जाने के लिए. दोनों गाड़ी में बैठ कर निकल गए और मैं ‘बाय’ बोल कर कर अंदर आ गई. जाने क्यों वैजंती के लिए मुझे एक मां जैसी फीलिंग आने लगी थी. अपनापन सा हो गया था उस से. हो भी क्यों न, एक बेटी की तरह उस ने भी तो मुझे थोड़ीबहुत इंग्लिश में बात करना सिखाया था. उस पर शेखर बोले भी थे, ‘चलो, देर आए दुरुस्त आए. सीख तो लिया न तुम ने इंग्लिश में बात करना. साथसाथ उन की भी भाषा सीख ली तुम ने, तो अच्छा है न.’ लेकिन अपनी मां वाली फीलिंग शेखर से तो मैं बिलकुल भी शेयर नहीं करना चाहती थी. वरना, कहेंगे, ‘श्रुति, ज्यादा इमोशन में मत हो जाओ. क्योंकि 2 साल बाद यहां से भी हमें उड़नछू हो जाना है. दोनों का परिचय कराते हुए जब मैं ने कहा था कि वेदांत बहुत अच्छी कविताएं लिखता है और वैजंती गाना बहुत अच्छा गाती है. उस पर हंसते हुए मज़ाकिया वेदांत ने कहा था, ‘तेरे सुर और मेरे गीत, दोनों मिल कर बनेंगे…’ फिर अपनी बात पर ही वह सकपका कर चुप हो गया और वैजंती ने मुसकरा कर अपनी नजरें झुका ली थीं. हमें भी हंसी आ गई थी कि यह लड़का भी न.

जब कभी वैजंती की बस छूट जाती, वह वेदांत के साथ गाड़ी में औफिस चली जाया करती थी और साथ में आ भी जाती. कोई मार्क करे न करे लेकिन मैं देख रही थी, वैजंती को देखते ही वेदांत के चेहरे पर अजीब सी खुशी उभर आती थी. बहाने ढूंढता वह वैजंती से बात करने का. चाहता कि मैं उसे अपने घर बुलाऊं या उसे किसी काम से उस के घर जाने को बोलूं. कभी चाय के बहाने तो कभी पानी के बहाने वह किचन का फेरा लगाते रहता था ताकि खिड़की से वैजंती को देख सके. एक रोज किचन में खाना बनाते समय वेदांत पीछे से मेरे गले से लग कर कहने लगा, “मौसी, कितना काम करती हो आप? थक जाती होगी न? मेरी शादी हो जाने दो. सारा काम मेरी पत्नी किया करेगी और आप आराम करना.”

“अच्छा, सच में?” मैं ने पलट कर पूछा, “और तेरी बीबी मानेगी तेरी बात…कहेगी नहीं कि मैं क्यों काम करूंगी?”

“आप मेरी शादी तो करवा दो. म…म मेरा मतलब है, हो जाने दो, फिर देखना कैसे मैं उस से काम करवाता हूं.” देख रही थी मैं बातें करते हुए उस की नजर सामने वाली खिड़की पर ही होती थी. एक दिन प्यार से कान मरोड़ते हुए जब मैं ने उस से पूछा कि क्या छिपा रहा है मुझ से? तो कहने लगा कि वह वैजंती से प्यार करता है. “और वैजंती? क्या वह भी तुम से?” मैं ने पूछा तो सिर झुका कर उस ने कहा कि उसे नहीं पता, पर वह उस से प्यार करता है. जान कर खुशी से गुदगुदा उठी मैं कि वैजंती और वेदांत… कितनी सुंदर जोड़ी लगेगी न दोनों की. लेकिन दूसरे पल ही यह सोच कर सिहर उठी कि दीदी… नहीं, वे कभी भी इस रिश्ते को अपनी स्वीकृति नहीं देंगी. वे वैजंती को कभी भी अपनी बहू स्वीकार नहीं करेंगी. लेकिन वेदांत कहने लगा कि वह शादी करेगा तो वैजंती से वरना किसी से नहीं. मुझे भी लगा, अगर वेदांत वैजंती से प्यार करता है तो हर्ज ही क्या है शादी में? और दीदी भी एक न एक दिन मान ही जाएंगी. आखिर वे अपने बेटे से इतना प्यार जो करती हैं. लेकिन उस से पहले मुझे हेमा जी और उस के पति का मन टटोलना था. सुनते ही वे तो भावविभोर हो गए. कहने लगे कि अगर ऐसा हो गया तो उन की तो सारी चिंताएं ही खत्म हो जाएंगी. वेदांत उन्हें बहुत पसंद है लेकिन पता नहीं वैजंती न माने तो. सुन कर वैजंती ने चुप्पी साध ली. लेकिन ‘न’ भी नहीं कहा उस ने. इस का मतलब उसे भी वेदांत पसंद है पर डर रही है. लाजिमी है, क्योंकि एक बार वह अपने जीवन में धोखा खा चुकी थी. दूध का जला इंसान छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. शादी का निर्णय कोई छोटा निर्णय नहीं होता. यह बहुत बड़ा फैसला है. कहा भी गया है, शादी इलैक्ट्रिक करंट की तरह होती है. अगर सही तार जुड़ गया तो जीवन में रोशनी ही रोशनी. लेकिन अगर गलत तार जुड़ गया तो पूरी ज़िंदगी शौक पर शौक मिलते रहते हैं.

लेकिन शादी का निर्णय लेने के पहले एक बार वैजंती अकेले में वेदांत से बात करना चाहती थी. जानना चाहती थी कि वह क्या चाहता है. लेकिन वेदांत ने जब उस का हाथ थाम कर, उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा कि, “बनोगी मेरी प्रीत? करोगी मुझ से शादी?” तो उस के चेहरे पर शर्मीली मुसकराहट खिल आई और धीरे से उस ने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया. दुनिया के मेले में भले ही लाखों हसीनाएं होंगी पर वेदांत के दिल में तो वैजंती ही समाई हुई थी. बेटे की शादी की बात सुनते ही मालती दीदी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने पूरा घर अपने सिर पर उठा लिया. फोन कर के मुझे झाड़ने लगीं कि इसीलिए उन्होंने वेदांत को यहां भेजा था ताकि उस की ज़िंदगी बरबाद कर सके? “कैसी बातें कर रही हो दीदी आप. मैं करूंगी वेदांत की ज़िंदगी बरबाद? अरे, मैं तो उस की खुशियों के लिए दुनिया से लड़ जाऊंगी. दीदी, वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं, तो जातपांत के चक्कर में क्यों पड़ रही हो आप और क्या हो गया जो वह तलाकशुदा है तो?” मेरी बात पर उन्होंने मुझे डांट कर चुप करा दिया और बोलीं कि क्या मैं अपने बेटों की शादी किसी तलाकशुदा और गैरजाति की लड़की से करवाऊंगी? “क्यों, नहीं दीदी, अगर मेरा बेटा चाहेगा तो मैं जरूर उसे अपनी बहू बनाऊंगी. दीदी, एक बार वैजंती से मिलो तो सही, आप को भी उस से प्यार हो जाएगा. बड़ी ही मासूम बच्ची है. ट्राय टू अंडरस्टैंड दीदी, समझने की कोशिश करो आप.” मेरी इस बात पर कस कर उन्होंने मुझे झाड़ लगाई.

 

मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं, मैं अब तक गर्भवती नहीं हो सकी हूं इसका क्या कारण हो सकता है?

सवाल

मेरी शादी को 2 साल हो गए हैं. मैं अब तक गर्भवती नहीं हो सकी हूं. चिकित्सक जांच में मेरी रिपोर्ट ठीक थी, जबकि पति के शुक्राणुओं की संख्या 32 मिलियन पाई गई है. चिकित्सकों के अनुसार यह संख्या संतोषजनक है. बावजूद इस के मैं गर्भधारण नहीं कर पा रही हूं. बताएं इस का क्या कारण हो सकता है?

जवाब

चूंकि आप के पति के शुक्राणुओं की संख्या संतोषजनक है और आप की जांच रिपोर्ट भी नौर्मल है, इसलिए किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पूर्व मैं आप को यही सलाह दूंगा कि आप हताश न हो कर प्रयास करते रहें. माना अगर आप के पीरियड की डेट पहली तारीक है तो आप दोनों को चाहिए कि 8 से ले कर 20 तारीख के बीच आप संबंध अवश्य स्थापित करें. अगर इस के बाद भी समस्या रहती है तो आप आईयूआई जैसी तकनीक का सहारा ले सकती हैं.

सोच समझ कर लें पावर औफ अटौर्नी

पावर औफ अटौर्नी यानी मुख्तारनामा ऐसा कानूनी दस्तावेज है जिस के तहत इसे देने वाला अपनी जायदाद के कानूनी अधिकार किसी भरोसेमंद व्यक्ति को ट्रांसफर कर देता है और वह व्यक्ति आमतौर पर नजदीकी रिश्तेदार ज्यादा होता है.

जो लोग बढ़ती उम्र, अशक्तता विकलांगता, बीमारी या दूसरी किसी अहम वजह के चलते कोर्टकचहरी की भागादौड़ी नहीं कर सकते उन के लिए पावर औफ अटौर्नी वाकई सहूलियत वाला जरिया है. अभी तक प्रिंसिपल यानी पावर औफ अटौर्नी देने वालों को खूब टिप्स और सलाह दी जाती रही हैं कि इसे हर किसी को न दें, इस के बेजा इस्तेमाल से बचने को यह और वह करें वगैरहवगैरह. लेकिन कभीकभी होता इस के उलट भी है कि कई बार पावर औफ अटौर्नी लेने वाले को लेने के देने पड़ जाते हैं. भोपाल के एक 35 वर्षीय भुक्तभोगी नाम आशुतोष की मानें तो उन्होंने इंदौर में रह रहे अपने 65 वर्षीय चाचा से भोपाल की एक जमीन बेचने के लिए पावर औफ अटौर्नी ली थी क्योंकि चाचा लकवाग्रस्त हैं और उन की बेटी अमेरिका में रहती है.

जब आशुतोष इंदौर के रजिस्ट्रार दफ्तर से मुख्तारनामा ले कर आए तो बड़े खुश थे कि चलो, पितातुल्य चाचा के किसी काम तो आएंगे. लेकिन जब वे जमीन पर पहुंचे तो पता चला कि उस पर कच्चेपक्के कब्जे हो चुके हैं. एकाधदो को तो उन्होंने पुलिस वालों की सहायता से हटवा दिया लेकिन बाकियों पर उन का जोर नहीं चला क्योंकि उन्होंने जमीन का टैक्स भर उसे नगरनिगम में अपने नाम करा लिया था. पुलिस वालों ने मदद करने के एवज में जो मोटा नजराना लिया उस के बाबत चाचा कुछ नहीं बोले पर जोर देने पर बोले कि जब जमीन बिक जाए तो उस में से अपना खर्च काट लेना. आज 5 साल हो गए हैं लेकिन उस जमीन का एक टुकड़ा भी विवादित होने के चलते नहीं बिका है.

जिन्होंने बेजा कब्जे कर लिए थे उन से मुकदमेबाजी अब निचली अदालतों से होते हाईकोर्ट तक पहुंच गई है. मुकदमों को ले कर जो तनाव वे भुगत रहे हैं उस की तो भरपाई कोई कर ही नहीं सकता. अपने चाचा का लिहाज करने वाले आशुतोष अब उखड़ने लगे हैं क्योंकि चाचा हर पेशी के बाद मुकदमे की जानकारी तो ले लेते हैं लेकिन खर्चों की बाबत चुप्पी साध जाते हैं. अब हाल यह है कि आशुतोष न तो मुकदमे छोड़ पा रहे हैं और न ही सलीके से लड़ पा रहे हैं. कानूनी रूप से उन का पक्ष मजबूत है लेकिन पारिवारिक रूप से टूटन आने लगी है. इंसाफ कब मिलेगा, यह किसी को नहीं मालूम. अब वे हर मिलने वाले को यह सलाह देने से नहीं चूकते कि कभी किसी की पावर औफ अटौर्नी मत लेना.

रोजाना 2 घंटे बात करने के बाद भी मेरी पत्नी की शिकायत दूर नहीं होती, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं सेना में कार्यरत विवाहित पुरुष हूं. समस्या यह है कि रोजाना अपनी पत्नी से 2 घंटे बात करने के बाद भी मेरी पत्नी की शिकायत दूर नहीं होती, जबकि ऐसा करने से न तो मेरी नींद पूरी हो पाती है और न ही मैं अपनी कार्यालय संबंधी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभा पाता हूं.

मैं अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता हूं लेकिन रोजाना ज्यादा से ज्यादा उस से बात करने की उस की ख्वाहिश को पूरा न करने के कारण हमारे बीच अधिकतर लड़ाई हो जाती है. मैं क्या करूं ताकि हमारा प्यार बना रहे व पत्नी मेरी परेशानी को समझ भी सके.

जवाब

आप की समस्या का कारण आप की पत्नी का अकेलापन और आप दोनों के बीच की दूरी है जिस की वजह से आप की पत्नी को आप से शिकायत रहती है. आप अपनी पत्नी को अपनी मजबूरी प्यार से समझाएं, साथ ही उस की मनोस्थिति को भी समझें.

चूंकि सेना की नौकरी के कारण आप अपनी पत्नी से कम ही मिल पाते हैं. ऐसे में आप की पत्नी उस कमी को आप से ज्यादा से ज्यादा बात कर के पूरा करना चाहती है. आप अपनी पत्नी को सुझाव दें कि वह स्वयं को अपनी किसी रुचि के कार्य में व्यस्त करे ताकि उस को आप की कमी न खले. ऐसा करने से उस का अकेलापन दूर होगा और आप दोनों के बीच का प्यार बना भी रहेगा.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अलिया भट्ट ने बेटी के जन्म बाद शेयर की पहली तस्वीर, फैंस ने किया कमेंट

बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट ने 6 नवंबर को अपनी बेटी को जन्म दिया था, इस खबर के आने से पूरी इंडस्ट्री में खुशी की लहर दौड़ गई थी. सभी आलिया और रणबीर को बधाई दे रहे थें. बेटी के जन्म के कुछ समय बाद आलिया ने एक तस्वीर साझा की है.

इस तस्वीर को देखने के बाद से फैंस खूब कमेंट कर रहे हैं, दरअसल, इस तस्वीर में आलिया अपने हाथ में एक मग ली हैं और उसमें लिखा है मम्मा जिसे देखकर फैंस खूब कमेंट कर रहे हैं. आलिया ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है ये मैं हूं.

 

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रणबीर आलिया कि इस तस्वीर पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं, एक ने लिखा है आपके नए सफर के लिए मैं प्रार्थना करती हूं. एक ने लिखा है प्लीज हमें बेबी की फोटो दिखाओ हम देखना चाहते हैं. आलिया भट्ट का यह पोस्ट हमें खूब पसंद आ रहा है.

एक्ट्रेस की इस तस्वीर की लोग खूब पसंद कर रहे हैं अभी तक 4 लाख से जेयादा इस फोटो पर आ चुके हैं. बता दें कि आलिया और रणबीर ने इसी साल अप्रैल में शादी की थी, शादी के 2 महीने बाद ही इन्होंने अपनी प्रेग्नेंसी की अनाउंसमेंट कर दी थी.

आलिया ने नवंबर में एक प्यारी सी बच्ची की मां बन गई है. इस खबर से कपूर और भट्ट परिवार खूब खुश हैं.

Bigg Boss 16: साजिद खान बने घर के नए कैप्टन, टीना दत्ता को दिया झटका

छोटे पर्दे का सबसे चर्चित रियलिटी शो बिग बॉस 16 में आए दिन नए-नए ड्रामें देखने को मिलते रहते हैं, यह शो दिन ब दिन मजेदार होते जा रहा है, हाल ही में अर्चना गौतम की वापसी हुई है, जिससे उनके चाहने वालों में खुशी की लहर दौड़ गई है.

कुछ दिनों पहले शालीन भनोट को भी बिग बॉस ने सजा दी है कि वह घर के कैप्टन नहीं बन सकते, वहीं अगले एपिसोड में घरवालों को टॉस्क दिया गया है, जिसें साजिद खान को कैप्टन बनाया गया है, स्पेशल टॉस्क के दौरान साजिद खान ने सभी घरवालों को बताया कि उन्हें जब स्टैच्यू की आवाज सुनाई दे तो सभी घरवाले जो जहां रहेंगे वहीं रुक जाएंगे.

 

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मालूम हो कि बिग बॉस भी खूब गेम खेल रहे हैं, साजिद खान जैसे ही कैप्टन बने हैं बिग बॉस के घर में गेम होना शुरू हो गया है. उन्होंने बताया कि कैप्टन राजा या रानी होगा, ये सदस्य कभी नॉमिनेट नहीं होंगे.

पहले दौर में निमृत कौर आहूवालिया और शालीन भनोट को दौरे के लिए चुना, दोनों ने कैप्टेंसी की रेस में गौतम विज ,प्रियंका चौधरी और सौदर्या शर्मा को बाहर कर दिया. दूसरे दौर में साजिद और सुंबुल तौसीर खान और टीना दत्ता को चुना. इन दोनों ने अंकित गुप्ता , अर्चना गौतम और अब्दु रोजिक को इस रेस से बाहर कर दिया है.

आखिरी झूठ: जब सपना ने किया अपने झूठ का खुलासा

दिल्ली रेलवे स्टेशन से नंगलडैम शहर के लिए जैसे ही राहुल रेलगाड़ी के कंपार्टमैंट में चढ़ा, उस ने नजर खाली बर्थ की तरफ दौड़ाई, लेकिन स्लीपिंग कंपार्टमैंट में अधिकतर सीटें खाली पड़ी थीं. उस ने अपना सामान एक बर्थ पर रख कर देखा तो एक युवती खिड़की के पास वाली लंबी बर्थ पर अकेली बैठी थी. उस की उम्र यही कोई 22-23 के आसपास की रही होगी. वह गुलाबी रंग के सूट में थी. दिसंबर का महीना था. वह आकर्षण और रूपलावण्य से भरपूर इतनी सुंदर लग रही थी मानो जैसे कोई अप्सरा धरती पर उतर आई हो.

टिकट चैकर के पास जा कर राहुल ने उस लड़की के पास वाली सीट अपने लिए बुक करवा ली. राहुल एक कंपनी में जौइन करने के लिए नंगल जा रहा था. असिस्टैंट मैनेजर का पद था. गाड़ी रात को 10 बजे चल कर नंगल सवेरे 5 बजे पहुंचती थी. वह खुश था, ‘काफी समय के लिए यात्रा में इतनी सुंदर युवती का साथ रहेगा,’ ऐसा वह मन ही मन सोचने लगा.

राहुल लगभग 25 वर्ष के आसपास था. एक क्षण के लिए उस ने सोचा, ‘क्यों न वह अपना परिचय देते हुए, उस युवती के पास बैठ कर उस से नजदीकी बढ़ाए.’

‘‘मेरा नाम राहुल है. मैं नंगल जौब जौइन करने जा रहा हूं. आप का क्या नाम है? आप कहां जा रही हैं?’’ पूछते हुए उस की बेसब्री जाहिर थी. वह उस के चेहरे को गौर से देख रहा था.

‘‘हम दोनों हमउम्र हैं, पहले तो मैं यह कहूंगी कि आप की जगह तुम शब्द का इस्तेमाल कीजिए. मेरा नाम सपना है. मैं नंगल डैम शहर में सिविल अस्पताल में इंटर्नशिप के लिए जा रही हूं. 3 महीने मैं नंगल शहर में ही रहूंगी.’’

राहुल को सपना का अनौपचारिक होना अच्छा लगा. उसे भी लड़कियों को तुम कह कर संबोधित करना अच्छा लगता था. सपना की सीट पर बैठ कर उस से बातें करना उसे बहुत अच्छा लगा. सपना ने बताया उस का परिवार दिल्ली में रहता है. दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने परिवार के बारे में विस्तार से बताते हुए बातचीत शुरू की. दोनों के ही परिवार दिल्ली में रहते थे.

राहुल के पिता पुस्तक प्रकाशक थे, उन का अच्छाखासा व्यापार था. मां हाउसवाइफ थीं. सपना के पिता तलाकशुदा थे, मां झगड़ालू और क्लेश करने वाली थीं इसलिए मां और पिता का तलाक कई वर्ष पहले ही हो चुका था. बचपन से यौवनावस्था तक सपना का जीवन संघर्षमय रहा था. वह पिता के साथ दिल्ली में रहती थी. डाक्टरी की पढ़ाई भी उस ने दिल्ली में ही की और अब इंटर्नशिप के लिए नंगल जा रही थी.

यह सब सुन कर राहुल का मन सपना के लिए सहानुभूति से भर उठा और भावविभोर हो कर उस ने कहा, ‘‘सपना, मुझे तुम्हारे संघर्षमय जीवन के बारे में जान कर बहुत दुख हुआ है. तुम बहुत बहादुर और सैल्फमेड लड़की हो. मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि तुम कैरियर बनाने के प्रति जागरूक और प्रयत्नशील हो. नंगल पहुंच कर अपनी इंटर्नशिप शुरू करो. मुझे तुम कभी भी किसी भी प्रकार की सहायता के लिए बगैर हिचकिचाहट के कह सकती हो. हम अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे देते हैं,’’ राहुल ने जेब से एक कागज निकाल कर उस पर अपना मोबाइल नंबर लिखा और सपना को दे दिया, ‘‘फील फ्री टू कौंटैक्ट मी.’’

सपना ‘थैंक्स’ कहते समय बहुत खुश दिखाई दी. सोने से पहले कानों में हैडफोन लगा कर उस ने अपना मनपसंद संगीत सुना. राहुल ने देखा सपना उनींदी आंखों से उस की ओर मुसकरा कर निहार रही थी. मधुर आवाज में ‘गुडनाइट’ कहते हुए उस ने कंबल ओढ़ लिया.

यों तो एमबीए की पढ़ाई के दौरान कई युवतियों के संपर्क में रहने वाला राहुल आश्चर्यचकित था कि इतनी सुंदर युवती उस के जीवन में अब तक नहीं आई थी. अपनी बर्थ पर लेटे हुए टकटकी लगाए वह सपना को देख कर खुश हो रहा था. उसे इस बात की भी प्रसन्नता थी कि 3 महीने नंगल में सपना का साथ मिलेगा. भविष्य के विषय में सोचते हुए कब उसे नींद आ गई पता ही नहीं चला.

सवेरे 4 बजे गाड़ी आनंदपुर साहब स्टेशन पर 15 मिनट के लिए रुकी. सपना अभी सो ही रही थी. राहुल 2 कप चाय ले आया. सपना गहरी नींद में थी. राहुल ने उस के गाल पर हलके स्पर्श के साथ उसे जगाया. सपना को अच्छा लगा. ‘‘गुडमौर्निंग,’’ कहते हुए सपना ने चाय का गिलास राहुल से ले लिया. राहुल का बरसों के इंतजार के बाद इतनी सुंदर युवती से जो सामना हुआ था. उस ने मन में सोचा, ‘पापा को फोन पर बताएगा कि उन के लिए बहू तलाश ली है,’ दूसरी तरफ मन में यह बात भी आई कि अभी बहुत जल्दी होगी. सब्र करना ठीक होगा. अभी एकदूसरे को जानना बाकी है.

नंगल स्टेशन पर पहुंचने के बाद राहुल कंपनी के गैस्ट हाउस की ओर चला गया.

‘‘सपना, तुम अपने वूमन होस्टल पहुंच कर फोन करना,’’ राहुल ने कहा.

‘‘ठीक है, लैटअस विश ईच अदर बैस्ट औफ लक’’ सपना ने मुसकराते हुए कहा और अस्पताल से आई हुई वैन में बैठ गई.

दोनों ने अपनीअपनी जौब जौइन कर ली. राहुल और सपना दोनों के लिए नए शहर में रहना एक अद्भुत अनुभव था. एकदूसरे से मिलना और साथसाथ समय बिताना उन्हें अच्छा लगने लगा. नंगल डैम पर एक रेस्तरां था. वहां से चारों ओर का बहुत ही सुहावना दृश्य दिखता था. रविवार के दिन इसी रेस्तरां में वे दोनों घंटों साथसाथ समय बिताते थे. लंच यहीं पर करते थे. कभीकभी सपना राहुल के साथ उस के गैस्ट हाउस में भी घंटों बैठी रहती थी. ज्योंज्यों नजदीकियां बढ़ रही थीं त्योंत्यों उन का रिश्ता स्वाभाविक रूप से गहरा होता जा रहा था.

एक दिन राहुल ने सपना से कहा, ‘‘तुम अपने पापा का पूरा पता मुझे दे दो ताकि मैं दिल्ली जा कर उन से मिल सकूं या फिर मैं अपने मातापिता को तुम्हारे पापा के पास भेज कर उन की जानपहचान करवा सकूं.’’

सपना बोली, ‘‘अभी पापा से मिलवाना या तुम्हारा दिल्ली जा कर उन से मिलना जल्दबाजी होगी. मैं अभी पता नहीं देना चाहती.’’

राहुल की समझ में नहीं आया कि ऐसी क्या बात है, जो वह अपने पापा का पता उसे नहीं दे रही है.

समयसमय पर जब कभी मौका मिलता, राहुल अपना प्रेम व्यक्त करता रहता. वह सपना से कहा करता कि जब हम दोनों एकदूसरे के इतने नजदीक आ चुके हैं, तो समझ में नहीं आता कि क्यों तुम उन बातों से परहेज करती हो जो इस उम्र में नौजवान युवकयुवतियां करते हैं. राहुल ने अपनी जेब से सोने की एक अंगूठी निकाली और सपना को पहनाते हुए कहा, ‘‘यह मेरा तुम्हारे लिए पहला गिफ्ट है. मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब तुम से प्यार करने लगा. मेरे जीवन में यह पहला अनुभव है,’’ उस ने भावुक हो कर सपना को गले लगाना चाहा, लेकिन सपना ने उसे मना करते हुए अनुरोध किया, ‘‘नहीं, राहुल अभी ऐसा कुछ मैं स्वीकार नहीं करूंगी. जब कभी हम विवाह के बंधन में बंध जाएंगे तो मैं प्रौमिस करती हूं कि तुम्हें जी भर कर प्यार करूंगी. अभी बस इतने से ही काम चलाना होगा,’’ कहते हुए उस ने राहुल का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाया और चूम लिया, ‘‘इन हाथों ने मुझे अंगूठी पहनानी चाही इसलिए इन्हें चूम कर मैं अपने प्यार का इजहार कर रही हूं.’’

एक दिन दोनों गैस्ट हाउस के लौन में बैठे चाय का आनंद ले रहे थे. दोनों एकदूसरे को अपने कालेज के दिनों के बारे में विस्तार से बता रहे थे. सपना ने बताया कि कैसे लड़के उस के करीब आने का प्रयत्न करते थे, लेकिन वह किसी के प्रति आकर्षित नहीं होती थी. अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर के अपना टौप करने का उद्देश्य वह पूरा करना चाहती है.

‘‘सपना, मैं एक बार फिर तुम से कह रहा हूं कि मुझे अपने डैडी का ऐड्रैस और मोबाइल नंबर दे दो. जैसा तुम ने बताया था कि डैडी बिलकुल अकेले हैं, तुम्हारी मां उन्हें छोड़ कर जा चुकी हैं. मेरा उन से मिलना जरूरी है, कहीं ऐसा न हो कि वे कोई और लड़का तुम्हारे लिए देख लें,’’ राहुल ने सपना को समझाते हुए कहा.

‘‘मुझे भी पापा की चिंता है कि कैसे वे मेरी अनुपस्थिति में समय गुजारते होंगे. उन्हें खाना भी बाहर से मंगाना पड़ता होगा. पहली बार उन से दूर आ कर मैं यहां रह रही हूं,’’ सपना ने कहा.

राहुल बोला, ‘‘मुझे तुम से पूरी सहानुभूति है. मैं जानता हूं कि मां के बिना तुम्हारा जीवन कितना कष्टमय रहा होगा. सपना, मैं तो यही कामना करता हूं कि तुम्हारी मां वापस तुम्हारे घर आ जाए. तुम्हारी शादी का इंतजाम वे संभाल लें.’’

सपना का उदास चेहरा राहुल से देखा नहीं जाता था. अपना प्यार, अपने हावभाव उस पर उडे़लता हुआ वह यही कहता था, ‘‘मैं तुम्हारे जीवन को खुशियों से भर दूंगा. यह मेरी दिली तमन्ना है.’’

सपना की इंटर्नशिप का 2 महीने का समय बीत चुका था और वह 2-3 दिन की छुट्टी ले कर दिल्ली अपने पापा के पास जा रही थी. राहुल ने जोर दे कर सपना को बताया कि वह भी उस के साथ दिल्ली जाएगा. बेशक सपना ने आनाकानी की लेकिन वह नहीं माना और दोनों ने टिकट बुक करा लिए.

राहुल यह नहीं समझ पा रहा था कि हर बार सपना इस बात पर हिचकिचाती क्यों है कि राहुल उस के पापा से दिल्ली जा कर न मिलें. राहुल के दृढ़निश्चय का परिणाम यह हुआ कि दोनों दिल्ली सपना के पापा के पास पहुंच गए.

राहुल को इस बात का अनुमान था कि सपना अपने साथ राहुल को दिल्ली लाने के बारे में अपने पापा को फोन पर बता चुकी होगी. उस के घर पहुंचने पर राहुल आश्चर्यचकित था. सपना के पापा के साथ उस की मम्मी भी घर पर मौजूद थीं.

राहुल ने प्रश्न किया, ‘‘सपना, तुम ने तो बताया था कि तुम्हारे मम्मीपापा का तलाक हो चुका है. मम्मी साथ नहीं रहती हैं.’’

सपना ने कहा, ‘‘मुझे भी सरप्राइज हुआ था जब पापा ने फोन पर बताया था कि तलाक की प्रक्रिया पूरी होने से पहले उन का मम्मी से समझौता हो गया है और वे खुशीखुशी उन के साथ रहने के लिए चली आई हैं. मैं इस बात से बहुत खुश हूं,’’ वह अपनी मां के गले लग कर बहुत रोई. सपना के पापा की आंखें भी आंसुओं से भर आई थीं.

सब ने मिलबैठ कर एकसाथ नाश्ता किया. चाय पी कर माहौल को अनुकूल देख कर सपना ने शरारत भरी मुसकराहट के साथ राहुल से कहा, ‘‘मेरी पूरी बात धैर्य से सुन लो. प्रतिक्रिया बाद में देना. मम्मीपापा में कभी कोई मतभेद या तलाक हुआ ही नहीं था. मैं ने तुम से झूठ बोला था. तुम से सहानुभूति प्राप्त करने और प्यार पाने के लिए मैं ने ऐसा किया था. तुम से मिलते ही पहली नजर में ही मैं ने तुम्हें चुन लिया था. दुनिया में तुम से बेहतर जीवन साथी तो हो ही नहीं सकता,’’ क्षण भर को वह रुकी, फिर राहुल से पूछा, ‘‘क्या तुम मुझे माफ कर सकोगे. मेरा तरीका गलत हो सकता है पर मेरा मकसद अपने लिए योग्यप्रेमी को पाना था. यह मेरा आखिरी झूठ था. भविष्य में कभी झूठ का सहारा नहीं लूंगी.’’ सपना के मातापिता हक्केबक्के हो कर अपनी पुत्री को निहार रहे थे. सपना ने कहा, ‘‘पापा, आई एम सौरी.’’

राहुल की खुशी उस के चेहरे पर झलक रही थी. ‘‘तुम्हारे अब तक के मधुर व्यवहार और प्रगाढ़ प्रेम को देखते हुए यह गलती माफ करने योग्य है,’’ अपनी स्वीकृति व्यक्त करते हुए उस ने सपना के मातापिता के पैर छूकर आशीर्वाद लिया.

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उच्चतम न्यायालय और देश

नए-नए मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित उच्चतम न्यायालय के पदभार ग्रहण करते ही मंगलवार 30 अगस्त को, देश के दो महत्वपूर्ण मामले- बाबरी मस्जिद और गोधरा कांड में जो फैसले आए हैं वह देश के लिए एक नजीर बन जाएंगे. आने वाले समय में ऐसे बहुत से मामले जो राजनीति और समाज को प्रभावित करने वाले हैं जिनमें 1984 का दंगा भी है अब  चाहे सरकार भारतीय जनता पार्टी की हो अथवा अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस या किसी अन्य दल की आगे भी ऐसे संवेदनशील मामलों में “फैसलों के राजमार्ग” बन गए हैं.

दरअसल, इससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं सबसे पहला सवाल है न्याय का.  देश की उच्चतम न्यायालय तक किसी व्यक्ति या मामले का पहुंचना कोई आसान बात नहीं है. यह न्यायालय भी जानती है. जब नीचे के सारे कोर्ट, सरकार मौन हो जाते हैं तब कोई मामला देश की उच्चतम न्यायालय की देहरी पर पहुंचता है. और अगर वहां 20 और 30 साल तक अगर न्याय मिल सके तो अनेक सवाल खड़े हो जाते हैं. वस्तुत: जिनका जवाब न्यायालय को और  देश की संसद को ढूंढने चाहिए.

क्योंकि कहा गया है कि देर से मिला न्याय भी न्याय नहीं होता. ऐसे में गोधरा कांड जैसे गंभीर मामले कि अगर फाइल ही बंद कर दी जाए तो जो पीड़ित लोग, जो उस त्रासदी से  गुजरे हैं उन्हें तो न्याय नहीं मिला, उन पर क्या गुजरेगी.

आइए, आपको पहले बाबरी मस्जिद के मामले में जानकारी दें-

उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी , विनय कटियार आदि के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को उच्चतम न्यायालय में मंगलवार को बंद कर न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा कि अवमानना मामले में याचिकाकर्ता का निधन हो चुका है.

अब इस मामले में अब कुछ नहीं है.जब अयोध्या फैसले  की पीठ पहले से बड़े मुद्दे पर फैसला कर चुकी  है . अवमानना का यह मामला 1992 का है .पीठ ने कहा  उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ मोहम्मद असलम द्वारा सुप्रीम कोर्ट में  याचिका दायर की गई थी.

लोकतांत्रिक देश भारत में माननीय न्यायालय से देश की आवाम यह पूछ रही है कि 19 92  का मानना मामला आखिर 30 वर्षों तक कैसे  और क्यों चलता रहा उसका परिणाम आखिर इतनी देर से और वह भी सिफर क्यों आया, क्या यह न्याय है.

गोधरा काण्ड और सुलगते सवाल

जैसा कि सभी जानते हैं गुजरात के गोधरा में दंगा भड़क उठा था. इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने एक आयोग नियुक्त किया था. जिसका मानना था कि यह महज एक दुर्घटना थी इस निष्कर्ष से बवाल खड़ा हो गया और आयोग को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया.

गोधरा काण्ड  में 28 फरवरी, 2002 को 71 दंगाई गिरफ्तार किए गए थे.गिरफ्तार लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया था. आगे, 25 मार्च 2002 को सभी आरोपियों पर से पोटा हटा लिया गया था.

सुनवाई के दौरान एसआईटी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पीठ को बताया कि नरोदा गांव क्षेत्र से संबंधित केवल एक मामले की सुनवाई अभी लंबित है और अंतिम बहस के चरण में है. अन्य मामलों में, ट्रायल पूरे हो गए हैं और मामले हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपीलीय स्तर पर हैं. पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से वकीलों अपर्णा भट, एजाज मकबूल और अमित शर्मा ने एसआईटी के बयान को निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया है.

महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि

पीठ ने कहा- सभी मामले अब निष्फल हो गए हैं. हमारा विचार है कि इस न्यायालय को अब इन याचिकाओं पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है इसलिए मामलों को निष्फल होने के रूप में निपटाया जाता है और यह निर्देश दिया जाता है कि नरोदा गांव के संबंध में मुकदमे को कानून के अनुसार निष्कर्ष निकाला जाए और उस हद तक इस अदालत द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल निश्चित रूप से कानून के अनुसार उचित कदम उठाने का हकदार होगा.

अपर्णा भट ने पीठ को बताया कि सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़, जिनके एनजीओ सिटीजन फार पीस एंड जस्टिस ने दंगों के मामलों में उचित जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया था, की सुरक्षा की मांग करने वाली एक याचिका लंबित है.अपर्णा ने कहा कि उसे सीतलवाड़ से निर्देश नहीं मिल सका है. क्योंकि वह इस समय गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज एक नए मामले में हिरासत में है.

हालांकि यह सच है कि देश का उच्चतम न्यायालय विद्वान न्यायाधीशों के अधीन है और लोगों की आशा आकांक्षाओं का प्रतिबिंब जाहिर करता है. मगर इस फैसले से आने वाले समय में पुराने कई मामले जिनमें 1984 का दंगों का मामला है क्या वह  प्रभावित नहीं होगा.

हिम्मत-भाग 1 : सही दिशा दे पाने की सोच

बचपन में सुना था और उस के बाद कई बार महसूस भी किया था कि अपने मन की आवाज दबाना आसान नहीं होता. सच भी है नमनुष्य दुनिया से मुंह छिपा सकता हैलेकिन अपनी ही चेतना को झूठ समझना और उसे ठगना आसान नहीं होता. जब से बैंक में नौकरी मिली हैकुछकुछ ऐसा महसूस होने लगा है जैसे एक परिवार से निकल कर किसी दूसरे परिवार में चला आया हूं. 2 दिन का सफर तय कर मैं यहां चला आयापंजाब की एक शाखा में. मेरा घरपरिवार तो दूर हैलेकिन वह भी मेरा परिवार ही हैजो मेरे आसपास रहता है.

हम 3 साथी एक घर में रहते हैं और ठीक सामने रहता है हमारे ही बैंक का एक अधिकारीकेशव. घर के दरवाजे आमनेसामने हैंइसलिए आतेजाते उस से आमनासामना होना लाजिमी है.इतवार की छुट्टी थी और हम तीनों सहयोगी हफ्तेभर के कपड़े आदि धोने में व्यस्त थेतभी केशव आया और अपने कपड़ों से भरी बालटी रख गया. किसी जरूरी काम से वह जालंधर जा रहा था.

‘‘मेरे कपड़े धो देना और सामने इस्तिरी वाले को दे देना. मुझे शायद देर हो जाए,’’ कह कर जाते समय वह इतना भी नहीं रुका कि मैं कुछ कह सकूं. यह देख मेरे दोनों सहयोगी मुसकराते हुए मुझ से बोले, ‘‘आज जरूरी काम तो होना ही थारीना जो वापस आ गई हैसाहब की लैला. बेचारा जालंधर तो जाएगा ही न.’’

‘‘क्या…कौन रीना…?’’ उन की बात काटता हुआ मैं बोला.‘‘अरे वहीजो आजकल नकदी पर बैठती हैवही पिंजरे की मैना… और कौन?’’ कह कर उचटती सी नजर डाल दोनों अपने काम में व्यस्त हो गए.बेमन से मैं ने केशव के कपड़े धो तो दिएलेकिन अच्छा नहीं लगा था कि केशव ने क्या सोच कर अपने गंदे कपड़े मेरे आगे पटक दिए.

वह रात को देर से आया और मेरा खाना भी चट कर गया. मैं मां को फोन करने गया था. लौटने पर जब खाने का डब्बा खोला तो उस में रोटियां नहीं थीं. हैरान रह गया मैं. ‘‘क्या बाई ने आज मेरी रोटियां नहीं बनाई?’’ मैं ने जोर से कहा.‘‘बनाई थीं यारकेशव खा गयाखुद तो घर पर था नहीं. रोटियां बना कर जब बाई लौट गईतब वह यहां आया और तुम्हारी रोटियां खा गया.’’

‘‘तोमैं क्या खाऊंगा?’’ अवाक रह गया मैं. केशव से मेरी बातचीत बहुत कम होतीक्योंकि उस इनसान का व्यवहार ही असहनीय था मेरे लिए. मैं नयानया थाशायद इसीलिए केशव ने मुझ पर ऐसा काम लादा था. उस के बाद भी कर्ई बार उस ने अनुचित कामों के लिए मेरी तरफ घूर कर देखा था. मैं कुछ इस तरह से ना कहते हुए बोला, ‘क्षमा कीजिएगाकेशवजीयह काम मेरा नहीं है.

तुम्हारा अधिकारी हूं मैं,’ वह रोब से बोला.अधिकारी हैं तो क्या आप गंदगी हम से साफ कराएंगेकैसी बचकानी बातें करते हैं आपसाहबऐसी छोटी बातें करना आप को शोभा नहीं देता. समय आने पर हम भी अधिकारी बन जाएंगेतब क्या नए आए लड़कों से बदतमीजी से पेश आएंगे. अगर आप अधिकारी हैंतो आप को अपना बड़प्पन नहीं खोना चाहिए.

निरुत्तर हो गया केशव. उस ने तब तो कुछ नहीं कहामगर बैंक में उस का व्यवहार मेरे साथ दिनप्रतिदिन कड़वा ही होता गया.विचित्र मानसिकता थी केशव की. हमारी ही एक सहयोगी रीना के साथ उस का प्रेमप्रसंग चल रहा था. उस के साथ अकसर वह बतियाता रहता था और छुट्टी का दिन तो वह सदा जालंधर जा कर ही बिताता था.

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