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BIGG BOSS 16: वीकेंड का वार में होगी अर्चना की वापसी, प्रियंका के साथ लेगी दोबारा एंट्री!

बिग बॉस 16 में धमाल मचा हुआ है, शो में बीते गुरुवार को निकाल दिया गया, दरअसल अर्चना गौतम ने बहस के दौरान शिव ठाकरे पर हाथ उठा दिया है. अर्चना गौतम के बाहर आते ही लोगों ने धणाल मचा दिया है.

आम लोगों के साथ-साथ सेलेब्स ने भी अर्चना को सपोर्ट किया है, लोगों ने उनकी वापसी की मांग भी कि थी, हाल ही में अर्चना की एक फोटो सेट से वायरल हो रही है जिसमें वह सलमान खान से बात करती नजर आ रही है.

अर्चना गौतम की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है.जिसे देखकर आप अंदाज लगा सकते हैं कि अर्चना की जल्द वापसी होने वाली है.

वहीं एक यूजर ने अर्चना की तस्वीर साझा करते हुए लिखा है कि सरप्राइज-सरप्राइज रानी वापसी कर रही हैं. यहीं नहीं एक्ट्रेस शैफाली बग्गा के फैन पेज ने भी अर्चना गौतम को सपोर्ट किया है. फैंस कह रहे है शिव ही बेघर होने लायक हैं.

खबरों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अर्चना जल्द वापसी करेंगी इस घर में. वहीं फैंस भी अर्चना के इंतजार ें हैं. इस घर में हर रोज नए- नए ड्रामें होते रहते हैं. जिससे दर्शक एंटरटे होते हैं.

Bigg Boss 16 : अब्दू रोजिक ने निमृत को बोला आंटी तो घर में मची खलबली

बिग बॉस 16 को शुरुआत में बोरिंग बताकर ना देखने वाले लोगों को यह शो अब पसंद आने लगा है, वह दिल लगाकर इस शो को देख रहे हैं. बीते कुछ दिनों से यह शो दर्शकों को खूब एंटरटेन कर रहा है.

इस शो के सबसे क्यूट कंटेस्टेंट और सबके दुलारे कंटेस्टेंट अब्दू रोजिक तो धीरे-धीरे अपने पत्ते खोलते जा रहे हैं. बिग बॉस 16 में बातों बात में अब्दू रोजिक ने निमृत कौर को आंटी बोल दिया है, बता दें कि अब्दू रोजिक निमृत कौर को धीरे-धीरे पसंद करने लगे हैं.

ऐसे में अब्दू रोजिक को निमृत कौर को समझाने भी लगी है. दरअसल अब्दू रोजिक ने बीतों बात में निमृत कौर को आंटी कह दिया. जिसके बाद से सभी घरवाले इस बात का मजा लेने लगे तो निमृत अब्दू को अकेले में समझाने लगी कि आप ये बताओ कि अगर आपको कोई अंकल कहने लगे और किसी को आंटी तो अच्छा लगेगा.

 

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जिसके बाद अब्दू रोजिक ने निमृत से मांफी मांगने लगें, बिग बॉस 16 में आज रात टीना दत्ता और प्रियंका चहल चौधरी में जमकर बहस होगी. दोनों में किचन के काम को लेकर हमेशा तानातनी बनी रहती है. इसी बीच अर्जुन बिजलानी सन्नी लियोनी के साथ स्पीट्सवीला के नए सीजन को प्रमोट करने के लिए बिग बॉस 16 के घर पहुंचे.

यारी से रिश्तेदारी -भाग 2: तन्मय की चाहत

पता नहीं क्या जादू था उस की पर्सनेलिटी में कि प्रथम बार में ही मानो वह उन्हें अपना दिल दे बैठी. कुछ दिनों के बाद ही पापा का तबादला दूसरे शहर में हो गया और बात आईगई हो गई. धीरेधीरे पुराने शहर की यादें भी मनमस्तिष्क से धूमिल होने लगी थी. इन 4 वर्षों में वह बालिका से किशोरी हो गई थी और 11वीं कक्षा में आ गई थी. तभी एक दिन पापा ने बताया, ‘‘शर्माजी का बेटा प्रदीप अब अपनी एमए की पढ़ाई यहीं रह कर करेगा.’’

उसे पापा की बातों पर आश्चर्य तो हुआ, पर यकीन नहीं हो पाया. वह पापा से बोली, ‘‘पापा वो… शर्माजी का बेटा…’’

पापा ने कहा, ‘‘हां वही, जो तुम्हें 8वीं में गणित पढ़ाया करते थे.’’

आजकल की भांति उस समय टीवी, मोबाइल फोन और सोशल मीडिया जैसी तकनीक तो थी नहीं जो मैसेज कर पाती और न ही वेलेंटाइन डे जैसे कोर्ई दिवस होते थे, जो प्यार का मतलब उम्र से पहले से समझ आ जाए. आजकल तो जराजरा से बच्चे प्रपोज करते, बौयफ्रैंडगर्लफ्रैंड बनाते नजर आते हैं.

12वीं में पढ़ने वाली रागिनी उस समय ‘‘प्यार’’ नामक शब्द के बारे में बहुतकुछ तो नहीं जानती थी, पर हां, शर्माजी के बेटे प्रदीप का आना उसे अच्छा लग रहा था. न जाने क्यों दिल में गुदगुदी और कानों में मधुर घंटियां बजने लगीं थीं.

प्रदीप की कक्षाएं प्रारंभ हो गई थीं. वे होस्टल में रह कर अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे थे. जबतब घर भी आ जाया करते थे. अप्रत्यक्ष रूप से प्रदीप ने रागिनी और 10वीं में पढ़ने वाली उस की बहन को पढ़ाने की जिम्मेवारी भी ले ली थी. किशोरवय की रागिनी एवं युवा प्रदीप के मध्य न जाने कब प्यार की बयार बहने लगी थी. उन दोनों को ही इस का आभास नहीं हुआ.
तभी उस की समधिन रीना ने आ कर उसे झकझोर दिया, ‘‘अरे, भाभीजी कहां खो गईं, कोई परेशानी है क्या?’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो बस ऐसे ही घर में आने वाली बहू को ले कर रोमांचित हो रही थी,’’ रागिनी ने अपनी झेंप मिटाते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, चलिए भोजन तो ले लीजिए,’’ हंसते हुए कह कर रीना उसे खाने की टेबल तक ले गई.

‘‘अच्छा बताओ तो भाभी, कहां खो गई थी?’’ रीना ने खाना खातेखाते पुन: पूछा.

‘‘तनु और तन्मय की शादी ने मुझे मेरी युवावस्था में पहुंचा दिया था,’’ रागिनी मुसकराते हुए कहा.

‘‘अरे, वो कैसे…?’’ रीना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जैसे, आज तनु और तन्मय का प्यार हमारे परिवारों की छांव तले पिछले 15 सालों से पनप रहा था, ठीक वैसी ही तो मेरी और प्रदीप की स्थिति थी,’’ रागिनी ने अपने सुर्ख होते चेहरे के भावों को छिपाते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, ये दोनों तो अभी से ही एक हो गईं,’’ तन्मय की खनखनाती आवाज ने उन दोनों की बातचीत को भंग कर दिया. उस के साथ तनु भी खड़ी हंस रही थी. दोनों बच्चे अपनी मांओं के पास आ कर खड़े हो गए. रागिनी ने दोनों को प्यार से गले से लगा लिया. फिर रीना अपने मेहमानों से मिलने में व्यस्त हो गई और बच्चे अपने दोस्तों के पास चले गए. पर रागिनी का मन था कि रुकने को तैयार ही नहीं था.

उसे याद आया कि जब भी उन दिनों घर में कुछ नया बनता, उस का मन करता कि वह प्रदीप को भी खिलाए, पर संस्कारों की बेड़ियां और मां की नसीहतों के कारण वह अपना मन तो मार लेती, परंतु छोटी बहन को उकसा देती. मां छोटी बहन के प्रति उदार थीं, सो उस का काम हो जाता. वह खुश हो जाती कि उस ने नहीं खिला पाया तो क्या कम से कम प्रदीप ने खा तो लिया. उन का एकदूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था. कभीकभी प्रदीप पढ़ातेपढ़ाते ही मौका देख कर उस का हाथ सहला लेते थे, तो उस का चेहरा लज्जा से लाल हो उठता.

स्नातकोत्तर करने के बाद प्रदीप आगरा में ही रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगे. इस बीच रागिनी की भी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी हो गई. प्रदीप का राजपत्रित अधिकारी के पद पर चयन हो गया, तो वे चले गए. उन के जाने के बाद वह बहुत उदास हो गई थी. पर दोनों के मध्य का प्यार तो परवान चढ़ ही चुका था और अब ये घर वालों से भी छिपा नहीं था.

‘‘चलो भई घर नहीं चलना,’’ प्रदीप ने उस के पास आ कर कहा. तनु और तन्मय दूसरी गाड़ी में पहले ही चले गए थे. वह भी मन ही मन पुरानी यादों में डूबतीइतराती हुई चुपचाप आ कर गाड़ी में बैठ गई.

‘‘अरे, कहां खो गईं मोहतरमा, कहीं अपनी जवानी के दिन तो याद नहीं आ गए,’’ प्रदीप ने गाड़ी ड्राइव करते हुए उसे छेड़ते हुए कहा.

जब मियांबीवी राजी तो: दादू की समझदारी से किसका भला हुआ

‘‘दादू …’’ लगभग चीखती हुई झूमुर अपने दादू से लिपट गई.

‘‘अरेअरे, हौले से भाई,’’ दादू बैठे हुए भी झूमुर के हमले से डगमगा गए, ‘‘कब बड़ी होगी मेरी बिटिया?’’

‘‘और कितना बड़ी होऊं? कालेज भी पास कर लिया, अब तो नौकरी भी लग गई है मुंबई में,’’ झूमुर की अपने दादू से बहुत अच्छी घुटती थी. अब भी वह मातापिता व अपने छोटे भाई के साथ सपरिवार उन से मिलने अपने ताऊजी के घर आती, झूमुर बस दादू से ही चिपकी रहती. ‘‘अब की बार मुझे बीकानेर भी दिल्ली जितना गरम लग रहा है वरना यहां की रात दिल्ली की रात से ठंडी हुआ करती है.’’

‘‘चलो आओ, खाना लग गया है. आप भी आ जाएं बाबूजी,’’ ताईजी की पुकार पर सब खाने की मेज पर एकत्रित हो गए. मेज पर शांति से सब ने भोजन किया. अकसर परिवारों में जब सब भाईबहन इकट्ठा होते हैं तो खूब धमाचौकड़ी मचती है. लेकिन यहां हर ओर शांति थी. यहां तक कि पापड़ खाने में भी आवाज नहीं आ रही थी. ऐसा रोब था राधेश्याम यानी सब से बड़े ताऊजी का. यों देखने में उन्हें कोई इतना सख्त नहीं मान सकता था- साधारण कदकाठी, पतली काया. किंतु रोब सामने वाले के व्यक्तित्व में होता है, शरीर में नहीं. राधेश्याम का रोब पूरे परिवार में प्रसिद्घ था. न कोई उन से बहस कर सकता था और न ही कोई उन के विरुद्घ जा सकता था. कम बोलने वाले मगर अमिताभ बच्चन की स्टाइल में जो बोल दिया, सो बोल दिया.

हर साल एक बार सभी ताऊ, चाचा व बूआ अपनेअपने परिवार सहित बीकानेर में एकत्रित हुआ करते थे. पूरे परिवार को एकजुट रखने में इस एक हफ्ते की छुट्टियों का बड़ा योगदान था. चूंकि दादाजी यहीं रहते थे राधेश्याम के परिवार के साथ, इसलिए यही घर सब का हैड औफिस जैसा था. राधेश्याम के फैक्टरी जाते ही सब भाईबहन अपने असली रंग में आ गए. शाम तक खूब मस्ती होती रही. सारी महिलाएं कामकाज निबटाने के साथ ढेर सारी गपें भी निबटाती रहीं. झूमुर के पापा व चाचा अखबार की सुर्खियां चाट कर, थोड़ी देर सुस्ता लिए.  इसी बीच झूमुर फिर अपने दादू के पास हो ली,  ‘‘कुछ बढि़या से किस्से सुनाओ न दादू.’’ बुजुर्गों को और क्या चाहिए भला. पोतेपोतियां उन के जमाने के किस्से सुनना चाहें तो बुजुर्गों में एक नूतन उमंग भर जाती है.

‘‘बात 1950 की है जब मैं हाईस्कूल में पढ़ता था. हमारे एक मास्साब थे, मतलब टीचर हरगोविंद सर. एक बार…,’’ इस से पहले कि दादू आगे किस्सा सुनाते, झूमुर बीच में ही कूद पड़ी, ‘‘स्कूल का नहीं दादू, कोई और किस्सा. अच्छा यह बताइए, आप दादी से कैसे मिले थे. आप ठहरे राजस्थानी और दादी तो बंगाल से थीं. तो आप दोनों की शादी कैसे हुई?’’ ‘‘अच्छा, तो आज दादूदादी की प्रेमकहानी सुननी है?’’ कह दादू हंसे. दादी को इस जग से गए काफी समय बीत चुका था. कई वर्षों से वे अकेले थे, बिना जीवनसाथी के. अब केवल दादी की यादें ही उन का साथ देती थीं. पूर्ण प्रसन्नता से उन्होंने अपनी कहानी आरंभ की, ‘‘बात 1957 की है. मैं ने अपना नयानया कारोबार शुरू किया था. बाजार से ब्याज पर 3,500 रुपए उठा कर मैं ने यहीं बीकानेर में बंधेज के कपड़ों का कारखाना शुरू किया था. लेकिन राजस्थान का काम राजस्थान में कितना बिकता और मैं कितना  मुनाफा कमा लेता? फिर मुझे बाजार से उठाया असल और सूद भी लौटाना था, और अपने पैरों पर खड़ा भी होना था…’’

‘‘ओहो दादू, आप तो अपने कारोबार के किस्सों में उलझ गए. असली मुद्दे पर आओ न,’’ झूमुर खीझ कर बोली.

‘‘थोड़ा धीरज रख, उसी पर आ रहा हूं. कारोबार को आगे बढ़ाने हेतु मैं कोलकाता पहुंचा. वहां तुम्हारी दादी के पिताजी की अपनी बहुत बड़ी दुकान थी कपड़ों की, लाल बाजार में. उन से मुलाकात हुई. मैं ने अपना काम दिखाया, बंधेज की साडि़यों व चुन्नियों के कुछ सैंपल उन के पास छोड़े. कुछ महीनों में वहां भी मेरा काम चल निकला.’’

‘‘और दादी? वे तो अभी तक पिक्चर में नहीं आईं,’’ झूमुर एक बार फिर उतावली हो उठी. ‘‘तेरा नाम शांति रखना चाहिए था. जरा भी धैर्य नहीं. आगे सुन, दादी के पिताजी ने ही हमारी शादी की बात चलाई. मेरे पिताजी को रिश्ता भा गया और हमारी शादी हो गई.’’

‘‘धत्त तेरे की. इस कहानी में तो कोई थ्रिल नहीं- न कोई विलेन आया और न ही कोई व्हाट नैक्स्ट मोमैंट. इतनी सहजता से हो गया सब? और जो कोई न मानता तो?’’ पूछने के साथ झूमुर का उत्साह कुछ फीका पड़ गया.

‘‘ओहो बिटिया, तू तो अपने दादू के किस्सों में उलझ गई. असली मुद्दे पर आ,’’ दादू झूमुर की नकल उतारते हुए बोले. आखिर उन्होंने बाल धूम में सफेद नहीं किए थे. उन के पास वर्षों का अनुभव तथा पारखी नजर थी. ‘‘तेरे दादू उड़ती चिरैया के पर गिन लेते हैं, समझी?’’ झूमुर की उत्सुकता, उस का अचानक दादूदादी की कहानी में रुचि दिखाना देख दादू भांप गए थे कि झूमुर उन से कुछ कहना चाहती है, ‘‘बात क्या है?’’

शाम ढलने को थी. राधेश्याम फैक्टरी से घर लौट चुके थे. हर तरफ फिर शांति थी. रात के भोजन के समय एक बार फिर ताईजी की पुकार पर सब मेज पर पहुंच गए. इस पूरे परिवार में झूमुर सब से निकट अपने दादू से थी. शुरू से ही उस ने दादू को सब से सरल , समझदार और खुले विचारों का पाया था. कैसी अजीब बात है कि ऐसे दादू के बेटे, अगली पीढ़ी के होते हुए भी संकीर्ण सोच के वारिस थे. उसे याद है कि छोटे ताऊजी की बेटी, रेणु दीदी, ने अपने कालेज के एक जाट लड़के को पसंद कर लिया था किंतु परिवार का कोई सदस्य नहीं माना था. उन्हें समाज में कमाई गई अपनी इज्जत और रुतबे की चिंता ज्यादा थी. राधेश्याम के कहने पर आननफानन रेणु की शादी अपनी जाति के एक परिवार में तय कर दी गई थी. हालांकि उस की शादी परिवार की इच्छा से की गई थी, फिर भी आज तक उसे माफ नहीं किया गया था. परिवार में सब ओर उस की बेशर्मी के किस्से बांचे जाते थे. उस ने भी कभी इस परिवार के किसी समारोह में हिस्सा नहीं लिया था.

अगली सुबह झूमुर बगीचे में झूले पर गुमसुम बैठी थी कि वहां दादू पहुंच गए, ‘‘बताई नहीं तूने मुझे असली बात.’’ वे भी झूमुर के साथ झूले पर बैठ गए.

‘‘एक आप ही हो दादू जिस से मैं अपने मन की बात…’’

‘‘जानता हूं. असली बात पर आ, वरना फिर कोई आ धमकेगा और हमारी बात बीच में ही रह जाएगी.’’

‘‘कालेज में मेरे साथ एक लड़का पढ़ता था- रिदम.  अच्छा लड़का है, नौकरी भी बहुत अच्छी लग गई है हैदराबाद में.’’

‘‘समझ गया. तुझे वह लड़का पसंद है. तो दिक्कत क्या है?’’

‘‘वह लड़का हमारे धर्म का नहीं है, ईसाई है.’’

‘‘हूं…’’ कुछ क्षण दोनों के बीच चुप्पी छाई रही. मुद्दा वाकई गंभीर था. दूसरे प्रांत या दूसरी जाति का ही नहीं, बल्कि दूसरे धर्म का प्रश्न था. उस पर इन के परिवार की गिनती शहर के जानेमाने रईस, इज्जतदार खानदानों में होती है.

‘‘हम ने अपने कालेज के दीक्षांत समारोह में दोनों परिवारों को मिलवाया. रिदम के परिवार को कोई एतराज नहीं है. मम्मी को रिदम व उस का परिवार बहुत पसंद आया है. किंतु पापा राजी नहीं हैं. उन की मजबूरी है- परिवार जो रजामंद नहीं होगा.’’ झूमुर की चिंता का कारण वाजिब था, ‘‘मैं ने पापा की काफी खुशामद की, काफी समय से उन्हें मना रही हूं. दादू, यदि रिदम नहीं तो कोई नहीं-यह बात मैं ने पापामम्मी से कह भी दी है.’’ आजकल की पीढ़ी अपनी बात रखने में कोई झिझक, कोई संकोच नहीं दिखाती है. झूमुर ने भी साफतौर से अपने दादू को सब बता दिया.

‘‘तो मामला गंभीर है. देख बिटिया, वैसे तो उम्र के इस पड़ाव में, सबकुछ देख चुकने के बाद मैं यह मानता हूं कि जो कुछ है, यही जीवन है. इसे अच्छे से जियो, खुश रहो, बस. यदि तुझे विश्वास है कि तू उस लड़के के साथ खुश रहेगी तो मैं दूंगा तेरा साथ किंतु तुझे मेरी एक बात माननी होगी-एकदम चुप रहना होगा.’’ दादू की बात मान कर झूमुर ने अपने होंठ सिल लिए. उसे अपने दादू पर पूरा विश्वास था. दादू ने भी बिना समय गंवाए अपने बेटे बृजलाल से इस विषय में बात की. बृजलाल अचरज में थे कि पिताजी को यह बात किस ने बता दी. ‘‘मुझ से यह बात स्वयं झूमुर ने साझा की है. अब तू यह बता कि परिवार की खुशी के आगे क्या अपनी इकलौती बिटिया की खुशी खोने को तैयार है?’’

‘‘पिताजी, यही तो दुविधा है. मैं झूमुर को उदास भी नहीं देख सकता हूं और अपने परिवार को नाराज भी नहीं कर सकता हूं.’’

‘‘और यदि दोनों ही न रूठें तो?’’ दादू के दिमाग में खिचड़ी पक रही थी. उन्होंने बृजलाल से अपना आइडिया बांटा. उन के कहने पर झूमुर ने उसी शाम परिवार वालों के लिए फिल्म की टिकटें मंगवा दीं. जब सभी खुशीखुशी फिल्म देखने चल पड़े तो अचानक दादू ने तबीयत नासाज होने की बात कर अपने संग राधेश्याम और बृजलाल को घर में रोक लिया. अब सब जा चुके थे. सो, दादू चैन से अपने दोनों बेटों से बात कर सकते थे. ‘‘देखो भाई, मुझे तुम दोनों से एक बहुत ही गंभीर विषय में बात करनी है. मेरी एक समस्या है और इस का उपाय तुम दोनों के पास है,’’ कहते हुए उन्होंने पूरी बात राधेश्याम और बृजलाल के समक्ष रख दी.  दोनों मुंह खोले एकदूसरे को ताकने लगे. इस से पहले कि कोई कुछ बोलता, दादू आगे बोले, ‘‘मैं पहले ही एक पोती को अपनी जिंदगी से खो चुका हूं सिर्फ इसी सिलसिले में. झूमुर मेरी सब से प्यारी पोती है और सब जानते हैं सूद असल से प्यारा होता है. मैं नहीं चाहता हूं कि झूमुर को भी खो दूं या हमारी झूठी शान और इज्जत के चक्कर में झूमुर अपनी हंसीखुशी खो बैठे. इस परेशानी का हल तुझे निकालना है राधे, और वह भी ऐसे कि किसी को कानोंकान खबर न हो.’’

‘‘मैं, पिताजी?’’ राधेश्याम हतप्रभ रह गए. एक तो विधर्म विवाह की बात से वे परेशान थे, ऊपर से पिताजी इस का हल निकालने का बीड़ा उन्हें ही दे बैठे थे.

‘‘बस, यह समझ ले कि मेरे परिवार के हित में मेरी यह आखिरी इच्छा है. मेरी पोती की खुशी और घरपरिवार की इज्जत-दोनों का खयाल रखना है,’’ पिताजी की आज्ञा सर्वोपरि थी. राधेश्याम ने बहुत सोचा-पहले तो बृजलाल से आंखोंआंखों में मूक शिकायत की लेकिन उस की झुकी गरदन के आगे वे भी बेबस थे. दोनों भाइयों ने मिल कर सोचा कि रिदम के परिवार से मिला जाए और आगे की बात तय की जाए. परिवार के बाकी सदस्यों को बिना खबर किए दोनों दूसरे शहर रिदम के घर चले गए. वहां बातचीत वगैरा हो गई और अपने घर लौट कर दोनों भाइयों ने बताया कि एक अच्छा रिश्ता मिल गया. सो, बात पक्की कर दी गई. शादी की तैयारियां आरंभ हो गईं.

किंतु रिश्तेदारों से कोई बात छिपाना ऐसे है जैसे धूप में बर्फ जमाना. रिश्तेनाते मकड़ी के जालों की भांति होते हैं. बड़े ताऊजी ने बूआ को कह डाला, साथ ही ताकीद की कि वह आगे किसी से कुछ नहीं बताएगी. बूआ के पेट में मरोड़ उठी तो उन्होंने अपनी बेटी को बता दिया. और सब रिश्तेदारों में बात फैल गई कि यह रिश्ता झूमुर की पसंद का है, तथा लड़का ईसाई है लेकिन सभी चुप थे. यह बवाल अपने सिर कौन लेता कि बात किस ने फैलाई.

बड़े संयुक्त परिवारों की यह खासीयत होती है कि मुंह के सामने ‘हम साथसाथ हैं’ और पीठ फिरते ही ‘हम आप के हैं कौन?’ सभी रिश्तेदार शादी वाले घर में एकदूसरे का काम में हाथ बंटवाते, स्त्रियां बढ़चढ़ कर रीतिरिवाज निभाने में लगी रहतीं, कोई न कोई रिवाज बता कर उलझउलझाती रहतीं परंतु जहां मौका पड़ता, कोई न कोई कह रहा होता, ‘‘अब हमारे बच्चों पर इस का क्या असर होगा, आखिर हम कैसे रोक पाएंगे आगे किसी को अपनी मनमानी करने से. ऐसा ही था तो छिपाने की क्या आवश्यकता थी. बेचारी रेणु के साथ ऐसा क्यों किया था फिर…’’ दादू के कानों में भी खुसुरफुसुर पड़ गई. यह तो अच्छा नहीं है कि पता सब को है, सब पीठ पीछे बातें भी बना रहे हैं किंतु मुंह पर मीठे बने हुए हैं. दादू को पारिवारिक रिश्तों में यह दोगलापन नहीं भाया. उन के अनुभवी मस्तिष्क में फिर एक विचार आया किंतु इस बार उन्होंने स्वयं ही इसे परिणाम देने की ठानी. न किसी दूसरे को कुछ करने हेतु कहेंगे, न वह किसी और से कहेगा, और न ही बात फैलेगी.

नियत दिन पर बरात आई. धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ. फिर कुछ ऐसा हुआ जिस की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. अचानक विवाह समारोह में एक व्यक्ति आए हाथ में रजिस्टर कलम पकड़े. उन के लिए एक कुरसी व मेज लगवाई गई. और दादू ने हाथ में माईक पकड़ घोषणा करनी शुरू कर दी, ‘‘मेरी पौत्री के विवाह में पधारने हेतु आप सब का बहुतबहुत आभार…आप सब ने मेरी पौत्री को पूरे मन से आशीष दिए. हम सब निश्चितरूप से यही चाहते हैं कि झूमुर तथा रिदम सदैव प्रसन्न रहें. इस अवसर पर मैं आप सब को एक खुशखबरी और देना चाहता हूं. मेरा परिवार इस पूरे शहर में, बल्कि आसपास के शहरों में भी काफी प्रसिद्ध श्रेणी में आता है किंतु मेरे परिवार के ऊपर एक कलंक है, अपनी एक बेटी की इच्छापालन न करने का दोष. आज मैं वह कलंक धोना चाहता हूं. हम कब तक अपनी मर्यादाओं के संकुचित दायरों में रह कर अपने ही बच्चों की खुशियों का गला घोंटते रहेंगे? जब हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षादीक्षा प्रदान करते हैं तो उन के निर्णयों को मान क्यों नहीं दे सकते?’’

‘‘मेरी झूमुर ने एक ईसाई लड़के  को चुना. हमें भी वह लड़का व उस का परिवार बहुत पसंद आया. और सब से अच्छी बात यह है कि न तो झूमुर अपना धर्म बदलना चाहती है और न ही रिदम. दोनों को अपने संस्कारों, अपनी संस्कृतियों पर गर्व है. कितना सुदृढ़ होगा वह परिवार जिस में 2-2 धर्मों, भिन्न संस्कृतियों का मेल होगा. लेकिन कानूनन ऐसी शादियां सिविल मैरिज कहलाती हैं जिस के लिए आज यहां रजिस्ट्रार साहब को बुलाया गया है.’’ दादू के इशारे पर झूमुर व रिदम दोनों रजिस्ट्रार के पास पहुंचे और दस्तखत कर अपने विवाह को कानूनी तौर पर साकार किया.

इस प्रकार खुलेआम सारी बातें स्पष्ट रूप से कहने और स्वीकारने से रिश्तेदारों द्वारा बातों की लुकाछिपी बंद हो गई तथा आगे आने वाले समय के लिए भी बात खुलने का डर या किसी प्रकार की शर्मिंदगी का प्रश्न समाप्त हो गया. दादू की दूरंदेशी और समझदारी ने न केवल झूमुर के निर्णय की इज्जत बनाई बल्कि परिवार में भी एकरसता घोल दी. पूरे शहर में इस परिवार की एकता व हौसले के चर्चे होने लगे. विदाई के समय झूमुर सब के गले मिल कर रो रही थी. किंतु दादू के गले मिलते ही, उन्होंने उस के कान में ऐसा क्या कह दिया कि भीगे गालों व नयनों के बावजूद वह अपनी हंसी नहीं रोक पाई. जब मियांबीवी राजी तो क्यों करें रिश्तेदार दखलबाजी.

शर्मिंदगी : जब उस औरत ने मुझे शर्मिंदा कर दिया

विंटर स्पेशल : अगर रहना चाहते हैं फिट तो जरूर अपनाएं ये 5 टिप्स

फिट रहना कौन नहीं चाहता. आज के समय में पुरुष हो या महिला खुद को एक पर्फेक्ट शेप में देखने की चाह रखते हैं. हर कोई एक ऐसा शरीर चाहता है जो एकदम फिट, चुस्त और स्वस्थ हो. लेकिन सवाल यह उठता है फिट रहें तो कैसे? अधिकतर महिलाएं कामकाजी हैं और जिम जाने का समय वे निकाले तो कैसे? घर और बाहर के काम में महिलाएं खुद को इस कदर बांध लेती है कि खुद पर ध्यान देना ही भूल जाती हैं.

वे खुद को पर्फेक्ट शेप में देखना तो चाहती हैं, लेकिन घूम फिर कर इनका एक ही जवाब होता है “समय नहीं मिल पाता’, बहुत बीजी रहने लगी हूं जबकि फिट रहने के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी पड़ेगी.

आइए जानते हैं डाइटीशियन अनुपमा मालिक से खुद को फिट रखने का कुछ आसान टिप्स.

डाइटीशियन अनुपमा ने बताया कि “ महिलाओं का फिट न रहने का मुख्य कारण है लापरवाही. अधिकतर महिलाएं सुबह जल्दी तो उठती हैं लेकिन रसोई में जाने के लिए. परिवार का तो ध्यान बखूबी रखती हैं लेकिन खुद का ध्यान में कंजूसी कर जाती है. अगर महिलाएं अपने जीवनशैली में कुछ बदलाव ले आएं तो यह आसानी से खुद को स्वस्थ एवं फिट रख सकती है. बदलाव के लिए जरूरी है:

सुबह जल्दी उठना

फिट रहने की शुरुआत होती है सुबह जल्दी उठने से. हालांकि सुबह जल्दी उठने में आलस सभी को आता है लेकिन इस के फायदे भी अनेक है. अगर आप सुबह जल्दी उठकर ताजा हवा में कुछ वक्त बिताते हैं तो इससे आप कई तरह की बीमारियों से खुद को दूर रख सकते हैं. दरअसल, सुबह की हवा फेफड़ों के लिए बहुत फायदेमंद होती है और शरीर में से विषैले टौक्सिन को साफ करती है. सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति एनर्जी से भरपूर रहता है, जिससे काम में भी मन लगा रहता है.

संतुलित आहार लेना

फिट रहने के लिए स्वस्थ आहार बेहद जरूरी है. आज की जीवनशैली की बात करें तो सभी जंक फूड की तरफ भागते नजर आते है. अगर आप फिट रहना चाहती हैं तो सबसे पहले बाहर का जंक फूड खाना बंद कर दें और अपनी डाइट में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन व मिनरल युक्त आहार को शामिल करें. मीठे और तैलीय पदार्थों का सेवन कम करें.

एक्सरसाइज जरूर करें

एक्सरसाइज हमारे स्वस्थ्य के लिए बेहद जरूरी है, यह जानते हुए भी हम दस तरह के बहाने बनाना शुरू कर देते है. कभी समय का रोना रोते है तो कभी खुद को आलस में बांध लेते है. लेकिन एक्सरसाइज करने से शरीर को कई तरह के लाभ मिलते हैं.

रोज़ाना कार्डियोवैस्कुलर एक्सरसाइज़ करने से हमारी ब्रीदिंग कैपिसिटी बढ़ती है और हम ज़्यादा एनर्जेटिक महसूस करते हैं. यह ह्रदय व मांसपेशियों को स्वस्थ रखता है और रक्त के बहाव को बनाए रखता है.

रोजाना एक्सरसाइज करने से हमारा स्टेमिना यानी काम करने की क्षमता बढ़ती है और हम ज़्यादा अच्छे तरीके से अपना काम कर पाते हैं. रेग्युलर एक्सरसाइज करने से तनाव से भी दूरी बनी रहती है. एक्सरसाइज़ करने से शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है जिससे सभी इंटरनल और्गन को सही मात्रा में ब्लड सप्लाई मिल पाता है और हमारा दिमाग सही तरी़के से काम करता है. यह हमारे शरीर के बनावट को भी बनाएं रखने में भी मदद करता है.

खूब पानी पीएं

शरीर को स्वस्थ और फिट रखने के लिए पानी खूब पीएं पानी शरीर के अंगों और ऊतकों की रक्षा करता हैं. साथ ही कोशिकाओं तक पोषक तत्व और आक्सिजन पहुंचाने का काम करता है. फिट रहने के लिए सही मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है. पानी से कई तरह के फायदे देखने को मिलते हैं. पानी वजन कम करने में मदद करता है, इससे मेटाबोलिज्म मजबूत रहता है, चेहरे पर ग्लो बरकरार रहता है. यदि कभी थकान और कमजोरी हो तो ऐसे पानी पीना आपके लिए फायदेमंद होगा. पानी से ब्लड सर्कुलेशन भी सही रहता है.

पर्याप्त नींद जरूर लें

स्वस्थ जीवन के लिए सेहतमंद नींद लेना बहुत जरूरी है पर सबसे ज्यादा जरूरी है कि आपके सोने का समय निर्धारित हो. पूरे सप्ताह एक ही वक्त पर सोना और उठना एक बेहतरीन आदत है. कई लोगों को सोने के घंटों को लेकर भी दु‍वि‍धा होती है. पर न तो बहुत ज्यादा सोना अच्छा है और न ही कम सोना. छह से सात घंटे की नींद पर्याप्त है. अगर आप नींद पूरी लेती हैं तो इससे आप मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से फिट महसूस करती हैं.

यदि महिलाएं सिर्फ इन 5 फिटनेस मंत्र को अपना ले तो वह परिवार के साथ खुद को भी फिट एंड फाइन रख सकेंगी. इस में परिवार का साथ भी जरूरी है. यदि परिवार में सभी सदस्य कुछकुछ काम बांट ले तो घर की महिलाओं पर इतना प्रेशर नहीं पड़ेगा. क्योंकि गृहणी स्वस्थ तो परिवार स्वस्थ.

वेदना के स्वर-भाग 1 : शची ने राजीव का हाथ क्यों थामा

‘जन्मजन्मांतर से ऋणी हूं तुम्हारा. तुम ने मुझे प्रेम करना सिखाया. तुम ने मुझे त्याग की परिभाषा समझाई. स्वार्थ की कंटीली बाड़ पार कर के मैं मखमली हरियाली पर चैन की नींद सो सका, तुम्हारे कारण. यह कोमल एहसास न होता तो होता एक शून्य जिस में विलीन हो जाती हर आशा, हर उमंग, हर प्रतीति,’ शची के कानों में बरसों बाद गूंज रहे ये संवाद उस के मन में टकराटकरा कर वापस लौट रहे थे.

इन संवादों में वह कसक, वह पैनापन था जो किसी के हृदय में प्रविष्ट हो सकें, लेकिन स्वयं उसी का मन दूरदूर तक एक रेगिस्तान बन चुका है जिस में कोई भाव सोखने की शक्ति नहीं बची.

कभी ये संवाद सुनते ही उस का मनमयूर उमंग से नाच उठता था. मन में आनंद की तरंगें उठने लगतीं. आंतरिक उल्लास के भाव चेहरे पर अनायास ही आ जाते और तालियों से सैट गूंज उठता, ‘शची गजब की ऐक्ट्रेस है. और प्रशांत भी.’

प्रशांत उस फिल्म में एक कवि का किरदार निभा रहा था. उस के काव्यात्मक संवाद मानो शची तक उस के भावसंप्रेषण का जरिया थे.

‘तुम बहुत दूर तक जा सकती हो. तुम्हारा फ्यूचर ब्राइट है,’ कह निर्देशक भावातिरेक में शची के हाथ थाम लेता.

प्रशांत, बस, आंखों ही आंखों में उस की तारीफ जताता. उस की सम्मोहक आंखों की ऊष्मा जैसे उस के तनमन से लिपट जाती.

दोनों ही अभिनय के क्षेत्र में अभी नवोदित थे, संघर्षरत थे. अभी बहुत समय था पर यह सर्वविदित था कि देरसवेर दोनों जीवनसाथी बनेंगे.

प्रशांत के घर जब शची जाती तो उस के पिता तहेदिल से उस का स्वागत करते, लेकिन उस की मां की निगाहें उसे चीर कर रख देतीं, ‘शची, उस फिल्म में तुम ने इतने कम कपड़े क्यों पहन रखे हैं? क्या यह जरूरी था?’

‘हुंह, अभी सास बनी नहीं कि लगीं हक जताने,’ कहती शची तुनक जाती तो फिर प्रशांत ही मोरचा संभालता, ‘मम्मी, यह सब जरूरी है आजकल. सफलता के लिए इतना समझौता तो करना ही पड़ता है.’

‘मैं यह सब नहीं जानती. हम लोग अभी इतने आधुनिक नहीं हैं कि हमारी बहूबेटियां खुलेआम ऐसे परिधान पहनें.’

प्रशांत मध्यवर्ग से था तो शची नौकरीपेशा वर्ग से, पर उस के पिता के आर्मी अफसर होने से परिवार आजादखयाल था.

 

दोनों तरफ से आग : लक्ष्मी में श्याम जी को क्या नजर आता था

64 साल के श्यामजी इस शहर में अकेले रहते हैं. उन का एक मात्र लङका अमेरिका पढ़ने गया और वहीं एक कंपनी में नौकरी कर ली. इस के बाद वहीं की एक युवती से शादी कर वहीं बस गया. श्यामजी ने तो बेटे को भारत मेंं रहने की सलाह दी मगर उस ने यह कह कर खारिज कर दिया कि पापा, इंडिया में जौब का कोई स्कोप नहीं है. तब श्यामजी ने आगे कहना उचित नहीं समझा. उसे अपने हाल पर छोड़ दिया. एक मात्र बेटी निशा शादीशुदा जीवन बिता रही है. श्यामजी खुद 4 साल पहले एसडीओ पद से सेवानिवृत्त हो कर उज्जैन में एक छोटे से मकान खरीद कर वहीं बस गए.

उन की पत्नी सुलोचना का 15 साल पहले निधन हो चुका था, तब से वे अकेले हैं. सेवानिवृत्ति के बाद एक बार बेटा उन्हें अमेरिका ले गया. 2 महीने का विजा था. मगर बोर हो कर 15 दिन में ही वे वापस आ गए.
सेवानिवृत्ति के बाद चौकेचूल्हे का काम स्वयं करने लगे. मगर 3 साल के भीतर ही वे इस से बोर हो गए.

इस काम से जब उन्हें थकान होने लगी तब उन्होंने सोचा कि क्यों न एक कामवाली रख लें. एक दिन उन्होंने अपने पड़ोसी प्रभाकर से कहा, “भाई, अब मुझ से चौकेचूल्हे का काम नहीं होता है.”

‘‘नहीं होता है तो बेटे के पास अमेरिका चले जाओ। वह तो बुला ही रहा है.’’

‘‘कितनी बार कह चुका हूं कि मुझे यहीं जीनामरना है.’’

‘‘ठीक है, अगर ऐसा ही है तो शादी क्यों नहीं कर लेते हो…’’ प्रभाकर ने जब यह सलाह दी तब वे नाराज हो कर बोले,” कैसी बात करते हो, इस उम्र में शादी करूं? लोग क्या कहेंगे?”

‘‘अरे, लोग क्या कहेंगे, मैं ने तो 80 साल के आदमी को जवान लङकी के साथ शादी करते अखबार में पढ़ा है.”

‘‘हां करी होगी, करते हैं.’’

‘‘तब तुम भी क्यों न कर लेते हो? बेटा तो अब अमेरिका से आने से रहा, कौन होगा बुढ़ापे का सहारा? इसलिए कहता हूं कि शादी कर लो.’’

‘‘बसबस, रहने दो, मुझे कोई ऐसी कामवाली तलाश कर दो जो सुबहशाह आ कर घर का सारा काम कर जाए,’’ बीच में ही बात काट कर श्यामजी ने अपनी बात रखी. तब प्रभाकर ने आश्वस्त कर दिया.

दिन तो मित्रों के साथ गुजर जाता मगर रात को उन्हें अपनी पत्नी सुलोचना की याद सताती. इसी बीच 50 साल की एक विधवा महिला लक्ष्मी को प्रभाकर ने उन के यहां काम पर लगवा दिया. वह 2 बेटे और 1 बेटी की मां थी. बेटों और बेटी की शादी कर के गृहस्थी वगैरा से मुक्त हो चुकी थी वह. सासबहू में नहीं बनी, इसलिए दोनों बेटे अलग हो गए.

लक्ष्मी अकेली रहती थी और दूसरों के घरों में काम कर के अपना जीवनयापन करती थी. लक्ष्मी अधेड़ जरूर थी मगर अब भी 30 साल के आसपास लगती है. मांसल देह, गोरा बदन श्यामजी को आकर्षित करने लगा. लक्ष्मी में उन्हें अपनी सुलोचना दिखती. जितनी देर लक्ष्मी घर में रहती वे उन में रोमांच पैदा करती. लक्ष्मी भी तो रोटी बोलते समय, झाङू लगाते समय, पोंछा लगाते समय या बरतन धोते समय आंचल गिरा लेती और पेटीकोट घुटनों तक चढ़ा लेती जिस से उभार के साथ मांसल देह स्पष्ट दिखाई दे ताकि श्यामजी के भीतर उत्तेजना पैदा हो. वे कनखियों से लक्ष्मी को जरूर देख लेते थे. लक्ष्मी भी भांप लेती थी कि श्यामजी उस के अंगों को देख रहे हैं.

मतलब आग दोनों तरफ से लगी हुई थी, मगर पहले पहल कौन करे… उन्होंने यह भी देखा कि वह हमेशा काम के समय के कपड़े अलग रखती थी और काम करने के बाद अच्छे और साफ कपड़े पहनती थी.

लक्ष्मी को श्यामजी के यहां काम करतेकरते 3 महीने गुजर गए. मगर इन 3 महीनों में दोनों के बीच कई आंधीतूफान गुजरे। दोनों ही अपनी सीमा में रहे. तब एक दिन लक्ष्मी ने खुद ही पूछ लिया,” साहब, जब से मैं काम करने आई हूं, मैं ने कई बार आप को बाईजी की तसवीर के सामने गुमसुम खड़ा देखा.”

‘‘सच कहूं लक्ष्मी, तुम में ही मुझे सुलोचना दिखती है.’’

‘‘तो मुझे ही बाईजी मान लो,’’ लक्ष्मी ने जब यह कहा तब श्यामजी हाथ पकड़ते हुए बोले,”मतलब, दोनों तरफ से आग लगी हुई है…”

‘‘तो साहब, इस आग को आज बुझा ली जाए,’’ लक्ष्मी ने खुला आमंत्रण दे कर गेंद उन के पाले में डाल दी। वे लक्ष्मी को बैडरूम में ले गए. दोनों ने कर्ई सालों की अतृप्त प्यास बुझा ली. लक्ष्मी में मिली इत्र की खुशबू आ रही थी. वह आम कामवालियों से अलग थी. फिर क्या, दोनों के बीच लज्जा की दीवार गिर गई. अब लक्ष्मी जब भी आती उसे वे बैडरूम में ले जाते और अपनी प्यास जम कर बुझा लेते. यह खेल कई दिनों तक चलता रहा. मगर उन के भीतर एक डर भी बैठा रहा कि कहीं समाज वाले उन पर उंगलियां न उठाएं.

यह डर उन के भीतर बैठा हुआ था कि लक्ष्मी के साथ वे जो कुछ कर रहे हैं वह गलत कर रहे हैं. लक्ष्मी तो निम्नवर्ग में आती है, वह बदनाम होगी तो असर नहीं पड़ेगा. मगर वे तो उच्चवर्गीय हैं.

वे सोचा करते कि कालोनी वालों को शंका जरूर है कि उन के बीच अनैतिक संबंध चल रहे हैं. क्या लक्ष्मी से शादी कर लें या रखैल बना कर रखें? उन के एकाकी जीवन में लक्ष्मी सुलोचना की जरूरत जरूर पूरी कर रही थी मगर यह सब कब तक चलता?

एक दिन लक्ष्मी ने कहा,”साहब, इस तरह कब तक चलेगा?”

‘‘क्या कहना चाहती हो लक्ष्मी?’’ श्यामजी ने पूछा.

‘‘छिपछिप कर हम बिस्तर पर कब तक सोते रहेंगे?’’ जब लक्ष्मी ने यह कहा तब श्यामजी बोले,”कहती तो ठीक हो लक्ष्मी.”

‘‘तब हम शादी क्यों न कर लें?’’ लक्ष्मी ने जब यह कहा तब श्यामजी सोचने पर मजबूर हो गए? लक्ष्मी का प्रस्ताव तो अच्छा है. मगर वह एक निम्नवर्ग में आती है.

‘‘साहब, जब आप ने मुझे हमबिस्तर बनाया तब नहीं सोचा कि मैं निम्नवर्ग की औरत हूं,’’ लक्ष्मी ने जब यह व्यंग्य कसा तब उन की आंखें खुल गईं.

लक्ष्मी बोली,”साहब, औरत के साथ यही होता है. उस के शरीर से तो हर कोई खेलना चाहता है. मगर नीच समझ कर कोई अपनाना नहीं चाहता है,” यह कह कर लक्ष्मी ने समूची पुरुष जाति को चुनौती दे डाली.

मतलब लक्ष्मी खुद को समर्पित कर ब्याज सहित अब वसूलना चाहती है. लक्ष्मी की बात का श्यामजी ने कोई जवाब नहीं दिया. लक्ष्मी फिर बोली,”साहब, आप ने जवाब नहीं दिया?”

‘‘मुझे सोचने दो,’’ श्यामजी ने जब यह कहा तब लक्ष्मी फिर बोली,”अब इस में क्या सोचना साहब. आप भी अकेले मैं भी अकेली. आप का बेटा विदेश में नौकरी कर रहे हैं. मेरे दोनों बेटों से मुझेे अब कोई आस नहीं है। हां, मैं निम्नवर्ग की औरत और कम पढ़ीलिखी जरूर हूं. मगर आप को विश्वास दिलाती हूं कि बाईजी की कमी को पूरी करती रहूंगी।”

‘‘ठीक है लक्ष्मी, मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं,’’ जब श्यामजी ने अपनी स्वीकृति दी तब लक्ष्मी खुश हो कर बोली,”सच साहब, कब करें शादी?”

‘‘देखो लक्ष्मी, सादे समारोह में शादी करेंगे,’’ उन के इस कथन के साथ लक्ष्मी ने कोर्ई जवाब नहींं दिया. वह खुशीखुशी चली गई मगर श्यामजी स्वीकृति दे कर बाद में बहुत पछताए. उन्होंने कैसा निर्णय ले लिया. समाज उन के मुंह पर थूकेगा… उन को कितना भलाबुरा कहेगा. यहां टकराहट उच्च और नीची जाति के बीच है मगर यह सब सोचने के पहले लक्ष्मी के शरीर से क्यों खेेले? उस समय तो इस का भान नहीं आया. आगे वे सोच न सके।

तभी प्रभाकर आ कर बोले, “किस सोच में डूबे हुए हो श्यामजी?”

‘‘मैं एक मुसीबत में फंस गया हूं, भाई.’’

‘‘मुसीबत… कैसी मुसीबत?’’

‘‘मैं ने लक्ष्मी को शादी करने का वचन दे दिया है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा किया. लक्ष्मी वैसे भी काम के मामले में खरी उतरी है,’’ प्रभाकर समर्थन करते हुए बोले,”कर लो शादी. पत्नी के रूप में भी खरी उतरेगी.”

‘‘अरे प्रभाकर, तुम तो ऐसे ही कह रहे हो शायद।’’

‘‘मैं आप का मतलब समझ गया,’’ बीच में ही बात काट कर प्रभाकर बोले,”तुम यह कहना चाहते हो कि लक्ष्मी निम्न जाति की है. मगर जब शादी कर लोगे तब एक नया आदर्श स्थापित करोगे. समाज में एक नया संदेश जाएगा. कब कर रहे हो शादी?”

‘‘बस सादे समारोह में कर लेते हैं?’’

जब श्यामजी ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी तब सारे कालोनी वालों को पता चल गया कि श्यामजी कामवाली लक्ष्मी के साथ शादी कर रहे हैं. इस से कालोनी वाले इसलिए खुश हुए कि दोनों का बुढ़ापा एकदूसरे के सहारे कट जाएगा. मगर कुछ लोगों का मत था कि कहीं श्यामजी से शादी कर के लक्ष्मी उन की संपत्ति ले कर न भाग जाए. इन छोटे लोगों की नियत बदलने में क्या देर लगेगी?

आखिर शादी की तारीख निश्चित दिन में तय हो गई. इस शादी में प्रभाकर के साथ कालोनी के अन्य लोगों ने पूर्ण रूप से सहयोग दिया। दोनों ने कोर्टमैरिज कर ली। सभी दोनों को शुभकामनाएं दे रहे थे विशेषकर श्याजीजी को इस क्रांतिकारी कदम के कारण विशेष बधाईयां मिल रही थीं. इस शादी में अमेरिका से लङका तो नहीं आया मगर बेटी निशा जरूर इस शादी की सहभागी थी. अपनी नई मां पा कर खुश थी. उसे भी कोई गम नहीं था कि लक्ष्मी कभी झाङूपोंछे का काम करती थी.

जरी वाली नई साड़ी पहने, मेकअप में लक्ष्मी अच्छेअच्छों को मात देती थी. उसे अमीर औरतों के तौरतरीके भी मालूम थे क्योंकि बरसों उन के यहां काम किया था।

कानूनी जानकारी: आपराधिक अपीलें

न्यायपालिका का पहला कर्तव्य न्याय देना है. कोई निरपराधी जेल में बंद न हो जाए, इस का ध्यान भी रखना होता है. इसी के चलते आपराधिक मामलों में अपील करने का अधिकार मुलजिम को दिया गया है. सुरेंद्र ने बैंक से कर्ज ले कर स्कूटर खरीदा. जिस दिन स्कूटर शोरूम से निकल कर आया उसी दिन वह अपने दोस्त के घर मिलने जाने लगा. रास्ते में ट्रैफिक पुलिस ने ड्राइविंग लाइसैंस न होने के कारण उस का चालान कर दिया. अदालत ने उसे 2,000 रुपए के जुर्माने की सजा दे दी.

लोगों ने उस के मन में डर बैठा दिया कि वह सरकारी कर्मचारी है, इस सजा के कारण उस के खिलाफ विभाग भी कार्यवाही करेगा. उस ने इस जुर्माने की सजा के खिलाफ अपील पेश की. उस की अपील को अदालत ने यह कहते खारिज कर दिया कि जिस मामले में मुलजिम ने खुद जुर्म को मंजूर किया हो उस मामले में अपील किया जाना संभव नहीं है. अदालत में पुलिस जब चालान पेश कर देती है तब मुलजिम से अदालत द्वारा यह पूछा जाता है कि वह जुर्म को मंजूर करना चाहता है या मुकदमा लड़ना चाहता है. इस तरह यह मुलजिम पर निर्भर है कि वह चाहे तो जुर्म को मंजूर करे और चाहे तो मुकदमा लड़े. सुरेंद्र से पूछा गया तो उस ने लाइसैंस न होना स्वीकार कर लिया.

सुरेंद्र के जुर्म मंजूर करने पर अदालत ने उस पर जुर्माना कर दिया. इस प्रकार अदालत का फैसला सुरेंद्र के जुर्म मंजूर करने के बाद हुआ. इस देश में आपराधिक मामलों में अपीलें करना न केवल बहुत मुश्किल है, बल्कि महंगा भी है. इस में होने वाली देरी से मुलजिम का अपील का अधिकार ही लगभग समाप्त हो जाता है. अपराधियों की लगभग 1.83 लाख अपीलें आज उच्च न्यायालय में लंबित पड़ी हैं. जहां जमानत मिल चुकी हो, वहां तो ठीक है पर जहां जमानत न मिली हो वहां आरोपी बिना कानूनी अधिकार उपयोग कर पाए वर्षों जेलों में सड़ता है और कोड औफ क्रिमिनल प्रोसीजर के अपील के प्रावधान, कुंडली में लिखे सुखमय भविष्य की तरह धरे रह जाते हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 2000 से 2021 तक 1,71,481 अपीलें आपराधिक मामलों की दर्ज की गईं. इस दौरान 31,044 का ही निबटारा हुआ जिन में पिछली बकाया अपीलें शामिल हैं.

7,214 आरोपी तो 10 साल से ज्यादा की कैद अपनी अपीलों के दौरान भुगत रहे हैं. बड़ी अदालतों का बोझ कम करने के लिए कानून में यह प्रावधान भी किया गया है कि छोटे मामलों में एक अदालत का फैसला हो जाने पर उस फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी. जब हाईकोर्ट किसी आपराधिक मामले में 6 महीने की कैद की सजा या एक हजार रुपए का जुर्माना कर दे या सैशन न्यायालय 3 महीने तक की कैद या 200 रुपए का जुर्माना कर दे और मजिस्ट्रेट 100 रुपए का जुर्माना कर दे तो इन फैसलों के खिलाफ अपील नहीं होती है. रहमान के खिलाफ सरकारी रकम के गबन का मुकदमा चलाया गया. उसे अदालत ने एक साल कैद की सजा और जुर्माने का दंड दिया.

लेकिन सरकार इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुई. उस ने सजा बढ़ाने के लिए बड़ी अदालत में अपील पेश कर दी. बड़ी अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए 2 साल कैद की सजा सुना दी. कल्याणकारी राज्य में यह माना जाता है कि जुर्म किसी आदमी के खिलाफ न किया जा कर सरकार के खिलाफ किया गया है. यही कारण है कि पीडि़त आदमी की तरफ से सरकार पूरे मामले की पैरवी करती है. पीडि़त आदमी को अपनी तरफ से वकील नियुक्त करने की कोई जरूरत नहीं है. सरकारी वकील उस की ओर से खुद मुकदमे की पैरवी करते हैं. सो, जिस मामले में मुलजिम बरी हो जाता है या उसे कम सजा दी जाती है तो सरकार ही बड़ी अदालत में अपील पेश करती है.

अपील का पूरा खर्चा सरकारी खजाने से किया जाता है. रिपोर्ट लिखने में आनाकानी कई बार पुलिस रिपोर्ट लिखने में आनाकानी करती है या फिर रिपोर्ट लिखने से साफ मना कर देती है तो रिपोर्ट अदालत में दर्ज कराई जा सकती है. राकेश के साथ भी ऐसा ही हुआ. उस के पड़ोसी ने बच्चों के झगड़े की रंजिश की वजह से उस के घर में घुस कर मारपीट की. वह पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाने गया तो पुलिस ने रिपोर्ट नहीं लिखी. राकेश ने वकील से सलाह ले कर अदालत में रिपोर्ट पेश कर दी. अदालत ने राकेश और उस के गवाहों के बयान लिए और पूरी सुनवाई के बाद इस नतीजे पर पहुंची कि चश्मदीद गवाहों ने मारपीट की तस्दीक नहीं की. सो, मुलजिमों को बरी कर दिया. यदि राकेश इस फैसले से संतुष्ट न हो तो उसे अपील करने के लिए उच्च न्यायालय से विशेष इजाजत लेनी पड़ेगी. उसे वकील भी खुद को ही नियुक्त करना पड़ेगा. सरकार इस मामले में राकेश की कोई मदद नहीं करेगी.

इस की वजह यह है कि राकेश ने निजी हैसियत से मुकदमा दर्ज कराया था. यही मुकदमा पुलिस के मारफत अदालत में आया होता तो सरकारी वकील ही पूरा मुकदमा लड़ते. फरियादी को ही बरी के फैसले के खिलाफ अपील पेश करने का अधिकार है. अगर किसी मामले में फैसले के बाद अपील पेश करने से पहले ही फरियादी का देहांत हो जाए तो उच्च न्यायालय फरियादी के वारिस या अन्य चश्मदीद गवाहों को अपील पेश करने की इजाजत दे देते हैं. आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हर मामले में अपील नहीं की जा सकती. जब किसी मामले में मुलजिम को निचली अदालत ने बरी कर दिया हो और अपील की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने उसे 10 साल से ज्यादा की कैद या फांसी की सजा सुनाई हो तो मुलजिम सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं.

महेश को अदालत ने सजा सुनाई. तब वह जेल में बंद था. उस ने जेलर को पूरे हालात बता दिए. जेलर की सलाह पर उस ने जेलर की मारफत बड़ी अदालत में अपनी अपील की अरजी पेश की. अदालत ने सरकारी खर्च पर उसे वकील मुहैया कराया और उस की अपील की सुनवाई कर फैसला सुनाया. गरीबों और जेल में बंद व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता मुहैया कराने का इंतजाम किया गया है. जो लोग गरीबी के कारण अपनी पैरवी नहीं कर सकते उन्हें भी इंसाफ प्राप्त करने का हक है. न्यायालयों की स्थापना करने का मकसद पीडि़त व्यक्ति को इंसाफ और मुलजिम को सजा देना है ताकि समाज में शांति रह सके. अगर एक अदालत से किसी के हक में फैसला न हुआ हो और उस फैसले की अपील करने का कानूनी प्रावधान हो तो अपील की जानी चाहिए. आज मुलजिम को सजा देने से पहले उसे सुनवाई का मौका देना जरूरी है. इस सुनवाई के समय वह अपने हालात को बयान कर अदालत से कम सजा दिए जाने की गुजारिश कर सकता है. सोहनलाल और माखन सिंह के खिलाफ एक ही तरह की मारपीट करने के मुकदमे अलगअलग अदालतों में चले. सोहनलाल को तो 3 महीने कैद की सजा हुई. मगर माखन सिंह को एक साल तक सदाचरण के लिए पाबंद कर छोड़ दिया गया.

इस तरह की अलगअलग सजाएं होने की वजह मुलजिमों की आयु, मुकदमे की सुनवाई के दौरान उस का बरताव और उस पर आश्रितों की संख्या का भी खयाल रखा जाना है. माखन सिंह की आयु 65 साल के करीब थी. इस वजह से अदालत ने उसे एक साल के लिए नेक चालचलन की जमानत ले कर पाबंद किया व छोड़ दिया. अपील की अदालतों को वास्तविक न्याय करने के मकसद से बहुत सी शक्तियां दी गई हैं. ये अदालतें जब अपील की सुनवाई के दौरान यह महसूस करती हैं कि मुकदमे के सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया है तो अनसुने पहलुओं पर विचार करने के लिए मुकदमे को उसी अदालत को वापस भेज देती हैं. जहां तक संभव हो सके वहां तक अपील जल्दी से जल्दी करनी चाहिए. अपील के लिए भी एक निश्चित समय तय किया गया है. इस समय के गुजर जाने के बाद पेश की गई अपील को सामान्य हालात में नहीं सुना जाता है.

अगर अपील करने का समय निकल गया हो तो देरी के सभी कारणों को अदालत में साबित किए जाने पर अदालत देरी को माफ करती है. यह नहीं भूलना चाहिए कि एक व्यक्ति को गलत तरह से जेल में भेज देने पर सजा वह व्यक्ति ही नहीं भुगतता, उस का पूरा परिवार भुगतता है. जेलों का आतंक तो एक तरफ है ही, दूसरी तरफ सामाजिक बहिष्कार है जो जेल में बंद या जमानत में बाहर व्यक्ति के घरवालों, पत्नी, बच्चों, मांबाप को सहना पड़ता है. जेलों में भ्रष्टाचार छिपा नहीं है. अपील का अधिकार न हो या आधाअधूरा हो तो यह तानाशाही युग की वापसी नजर आती है. हर जज को इस बात का ध्यान रखना होता है कि कोई निरपराधी जेल में बंद न हो, अपीलों का प्रावधान इसीलिए है.

विंटर स्पेशल : ऐसे बनाएं अमृतसरी तंदूरी चिकन

अगर आप नौनवेज के शौकिन हैं, तो अमृतसरी तंदूरी चिकन नाम जरूर सुना होगा. जी हां यही डिश जो चिकन में दही, मक्खन, सरसों तेल और ढेर सारे मसालों के साथ मैरिनेट कर ओपन ग्रिलर में ग्रिल किया जाता है. इसका स्वाद बहुत टेस्टी होता है. तो चलिए बताते हैं, अमृतसरी तंदूरी चिकन की रेसिपी.

सामग्री

सरसों तेल 3 चम्मच

धनिया के बीज 1 चम्मच

तेज पत्ता 2

काली मिर्च 2 चम्मच

लौंग 6

काली इलायची 2

गाढ़ी खट्टी दही डेढ़ कप

अदरक लहसुन का पेस्ट 2 चम्मच

हल्दी आधा चम्मच

चिकन 750 ग्राम

लाल मिर्च पाउडर 2 चम्मच

नींबू का रस 2 चम्मच

दालचीनी 1 टुकड़ा

नमक स्वादानुसार

हरी इलायची 3

मक्खन 2 चम्मच

बनाने की वि​धि

सबसे पहले चिकन को टुकड़ों में काट लें.

उसके बाद एक बड़े से बाउल में सरसों का तेल, लाल मिर्च पाउडर, दही, नमक, अदरक लहसुन का पेस्ट, नींबू का रस डालें और अच्छी तरह से मिक्स करें.

तैयार मिश्रण को ब्रश की मदद से चिकन के पीसेस पर अच्छी तरह से लगाएं ताकि पूरा चिकन इस मसाले से कोट हो जाए.

अब जीरा, काली मिर्च, हल्दी पाउडर, दालचीनी का टुकड़ा, तेजपत्ता, लौंग और इलायची को मिक्सर में डालकर अच्छी तरह से पीस लें.

इसका बारीक पाउडर बनाना है.

अब इस तैयार पाउडर को भी ब्रश की मदद से चिकन के पीसेस पर लगाकर एक रात के लिए छोड़ दें.

ऐसा इसलिए करना है ताकि मसाले चिकन में अच्छी तरह से अंदर तक चले जाएं।

अगली सुबह मैरिनेटेड चिकन के पीसेस को ग्रिलर पर रखें और दोनों तरफ से अच्छी तरह से ब्राउन कलर का होने तक ग्रिल करें.

चिकन को ग्रिल करते वक्त थोड़ी थोड़ी देर में उसके ऊपर मक्खन लगाते रहें ताकि चिकन ड्राई न हो जाए.

आपका तंदूरी चिकन तैयार है, इसे गर्मा गर्म सर्व करें

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