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सोशल मीडिया होता अनसोशल

पूनावाला और श्रद्धा के मामले में हिंदूमुसलिम सवाल इतना उछाला गया है कि अब हिंदू प्रचारकों को एक और तरीका मिल गया है कि जिस से वे विधर्मियों को सोशल मीडिया के माध्यम से दलदल में घसीट सकें. अब सोशल मीडिया महारथी किसी भी ऐरेगैरे का इंटरव्यू एक माइक ले कर कर रहे हैं और अगर धर्म का मुद्दा भुनाया जा सके तो कहीं न कहीं उसे जगह मिल जाती है.

दिल्ली के किसी सोशल मीडिया पर न्यूज चलाने वाले ने इंटरव्यू किया ऐसे जने से जो कह रहा था कि अगर मूड खराब हो तो किसी के 35 क्या, 36 टुकड़े भी किए जा सकते हैं. यह सोशल मीडिया पर चल रहे न्यूज चैनलों का कमाल है कि वे किस का इंटरव्यू कर रहे हैं, यह न जानते हुए भी क्लिप वायरल कर देते हैं. गैरजिम्मेदार इंटरव्यू करने वाले ने यह बकवास करने वाले की पृष्ठभूमि जानने की कोशिश भी न की.

जब उस से नाम पूछा गया तो उस ने वीडियो में अपना नाम रशीद खां, बुलंदशहर से बताया. वीडियो देखने के बाद पुलिस हरकत में आई और इस रशीद खां को पकड़ लिया गया. वह एक छोटामोटा चोर निकला जिस का नाम विकास कुमार है.

हिंदूमुसलिम भेद भुनाने के लिए सिकंदराबाद पुलिस के थानेदार ने इंडियन पीनल कोड की धारा 295 ए, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए आजकल भरपूर इस्तेमाल की जा रही है, में एक केस भी दर्ज कर लिया.

बड़ी शिकायत न पूनावाला से है न रशीद खां यानी विकास कुमार से है, बड़ी शिकायत तो सोशल मीडिया से है जो अफवाहों को रिकौर्ड कर के यूट्यूब जैसे माध्यम से देश की शांति में खलल मचाने के लिए डाल देते हैं. सोशल मीडिया आज पावरफुल है पर केवल तोडफ़ोड़ करने वाली भीड़ की तरह, पत्थरबाजों की तरह जो बिना सोचेसमझे कुछ भी कहीं भी फेंक सकते हैं.

पूनावाला के कांड के बाद ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिन में शवों के टुकड़े कर के फेंके गए पर चूंकि उन में हिंदूमुसलिम मामला सोशल मीडिया पर नहीं गरमाया गया,  सो वे सिर्फ आम अपराध बन कर रह गए.

सोशल मीडिया पर अंकुश लगना चाहिए पर सरकार के हाथों नहीं, लोगों के खुद द्वारा. सोशल मीडिया की वीडियो क्लिप फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर न देखी जाएं और जिम्मेदार अखबारों व चैनलों पर भरोसा किया जाए. यह बात दूसरी है कि आज के भक्त मीडिया के जमाने में कौन से अखबार या चैनल की खबर में चटपटी नकली बातें नहीं जा रहीं, कहां नहीं जा सकता.

मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता था और उस के साथ शादी करना चाहता था, लेकिन उसकी शादी कही और हो गई?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवक हूं. मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता था और उस के साथ शादी करना चाहता था. लेकिन उस के दादाजी उस की शादी कहीं और करना चाहते थे. लड़की ने कहीं और शादी करने की बात पर खुदकुशी करने की धमकी दी तो उस की बूआ और दादी ने फोन कर के मुझ से कहा कि मैं उसे भगा कर ले जाऊं. दादी व बूआ के कहने पर मैं लड़की को जैसे ही ले कर उन के घर से निकला, पुलिस ने मुझे लड़की को भगाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, लड़की के दादाजी ने पहले से ही मुझ पर केस कर दिया था. कुछ समय बाद जब कोर्ट में केस के दौरान लड़की से बयान देने के लिए कहा गया तो उस ने उसे भगाने के लिए मुझे दोषी ठहराया जिस के परिणामस्वरूप मुझे 7 साल की सजा हो गई.

अब करीब 4 साल की सजा काट कर मैं जमानत पर बाहर निकला हूं. लेकिन मैं आज भी उस लड़की को उतना ही चाहता हूं जितना पहले चाहता था. वर्तमान स्थिति में मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं, उस से मिलूं या नहीं, सलाह दें.

जवाब

आप ने यह नहीं बताया कि लड़की और आप की उम्र क्या है? आप दोनों बालिग हैं या नाबालिग? और दूसरी बात लड़की ने अदालत में आप के खिलाफ बयान क्यों दिया था जिस की वजह से आप को 4 साल की सजा जेल में काटनी पड़ी.

एक संभावना यह भी हो सकती है कि लड़की ने उस समय अदालत में आप के खिलाफ बयान अपने परिवार वालों के दबाव में आ कर दिया हो. वर्तमान स्थिति में अगर आप उस लड़की को अभी भी चाहते हैं और सारी बात साफ करना चाहते हैं तो आप एक बार उस लड़की से मिल कर सारी बात साफ कर लें और उस के बाद ही निर्णय लें कि आप को उस के साथ कोई संबंध रखना है अथवा नहीं.

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धक्का : मनीषा के त्याग को लेकर जितेन ने क्या कहा

‘‘खैर, खुशी तो हमें तुम्हारी हर सफलता पर होती रही है और यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन) द्वारा तुम्हारे चुने जाने पर अब हमें गर्व भी हो रहा है मगर एक बात रहरह कर खटक रही है,’’ उदयशंकर अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए बीच में थोड़ा रुक गए, ‘‘तुम्हारे इतने दूर जाने के बाद तुम्हारी मम्मी एकदम अकेली रह जाएंगी.’’

‘‘छोडि़ए भी, उदय भैया, अकेली रह जाऊंगी? आप सब जो हैं यहां,’’ मनीषा जल्दी से बोली. अपने मन की बात उदयशंकर की जबान पर आती देख कर वह विह्वल हो उठी थी.

‘‘हम तो खैर मरते दम तक यहीं रहेंगे. लेकिन हम में और जितेन में बहुत फर्क है.’’

‘‘वह फर्क तो आप की नजरों में होगा, चाचाजी. पापा के गुजरने के बाद मैं ने आप को ही उन की जगह समझा है. आप को अपना बुजुर्ग और मम्मी का संरक्षक समझता हूं,’’ जितेन बोला.

‘‘लीजिए, उदय भैया. अब आप केवल राजन के मित्र ही नहीं, जितेन द्वारा बनाए गए मेरे संरक्षक भी हो गए हैं,’’ मनीषा हंसी.

‘‘उस में मुझे कोई एतराज नहीं है, मनीषा. मुझ से जो भी हो सकेगा तुम्हारे लिए करूंगा. मगर, मनीषा, मैं या मेरे बच्चे हमेशा गैर रहेंगे. सोचता हूं अगर जितेन यूनेस्को की नौकरी का विचार छोड़ दे तो कैसा रहे?’’

‘‘क्या बात कर रहे हैं, चाचाजी? लोग तो ऐसी नौकरी का सपना देखते रहते हैं, इस के लिए नाक रगड़ने को तैयार रहते हैं और मुझे तो फिर इस नौकरी के लिए खास बुलाया गया है और आप कहते हैं कि मैं न जाऊं. कमाल है,’’ जितेन चिढ़ कर बोला.

‘‘लेकिन, तुम्हारी यह नौकरी भी क्या बुरी है? यहां भी तुम्हें खास बुलाया गया था और आगे तरक्की के मौके भी बहुत हैं. भविष्य तो तुम्हारा यहां भी उज्ज्वल है.’’

‘‘चाचाजी, आप ने अपने क्लब का स्विमिंग पूल भी देखा है और समुद्र भी. सो, दोनों का फर्क भी आप समझते ही होंगे,’’ जितेन मुसकराया.

‘‘मैं तो समझता हूं, बरखुरदार, लेकिन लगता है तुम नहीं समझते. क्लब के स्विमिंग पूल का पानी अकसर बदला जाता है, सो साफसुथरा रहता है. मगर समुद्र में तो दुनियाजहान का कचरा बह कर जाता है. फिर उस में तूफान भी हैं, चट्टानें भी और खतरनाक समुद्री जीव भी. यूनेस्को की नौकरी का मतलब है पिछड़े देशों में जा कर अविकसित चीजों का विकास करना, पिछड़ी जातियों का आधुनिकीकरण करना. काफी टेढ़ा काम होगा.’’

‘‘जिंदगी में तरक्की करने के लिए टेढ़े और मुश्किल काम तो करने ही पड़ते हैं, चाचाजी. और फिर जिन्हें समुद्र में तैरने का शौक पड़ जाए वे स्विमिंग पूल में नहीं तैर पाते.’’

‘‘यही सोच कर तो कह रहा हूं, बेटे, कि तुम समुद्र के शौक में मत पड़ो. उस में फंस कर तुम मनीषा से बहुत दूर हो जाओगे. माना कि अब संपर्क साधनों की कमी नहीं, लगता है मानो आमनेसामने बैठ कर बातें कर रहे हैं. फिर भी, दूरी तो दूरी ही है. राजन के गुजरने के बाद मनीषा सिर्फ तुम्हारे लिए ही जी रही है. तुम्हारा क्या खयाल है? सिर्फ आपसी बातचीत के सहारे वह जी सकेगी, टूट नहीं जाएगी?’’

‘‘जानता हूं, चाचाजी. तभी तो मम्मी को आप के सुपुर्द कर के जा रहा हूं. मैं कोशिश करूंगा कि जल्दी ही इन्हें वहां बुला लूं.’’

‘‘और भी ज्यादा परेशान होने को. यहां की इतने साल की प्रभुत्व की नौकरी, पुराने दोस्त और रिश्ते छोड़ कर नए माहौल को अपनाना मनीषा के लिए आसान होगा? अगर कोई अच्छी जगह होती तो भी ठीक था, लेकिन तुम तो अफ्रीकी या अरब इलाकों में ही जाओगे. वहां खुश रहना मनीषा के लिए मुमकिन न होगा.’’

‘‘फिर भी हालात से समझौता तो करना ही पड़ेगा, चाचाजी. महज इस वजह से कि मेरे जाने से मम्मी अकेली रह जाएंगी, इत्तफाक से मिला यह सुनहरा अवसर मैं छोड़ने वाला नहीं हूं.’’

‘‘बहुत अच्छा हुआ, यह बात तू ने मम्मी के जाने के बाद कही,’’ उदयशंकर ने एक गहरी सांस खींच कर कहा.

‘‘क्यों? मम्मी तो स्वयं ही यह नहीं चाहेंगी कि उन की वजह से मेरा कैरियर खराब हो या मैं जिंदगी में आगे न बढ़ सकूं.’’

‘‘बेशक, लेकिन जो बात तुम ने अभी कही थी न, वही तुम्हारे पापा ने उन्हें आज से 25 वर्षों पहले बताई थी.’’

उसे सुन कर उन्हें राजन की याद आ जाना स्वाभाविक ही था. दरवाजे के पीछे खड़ी मनीषा का दिल धक्क से हो गया.

‘‘क्या बताया था पापा ने मम्मी को?’’ जितेन आश्चर्य से पूछ रहा था.

नीषा ने चाहा कि वह जा कर उदयशंकर को रोक दे. उस ने जो बात उदयशंकर को अपना घनिष्ठ मित्र समझ कर बताई थी उसे जितेन को बताने का उदय को कोई हक नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि यह बात सुन कर जितेन उदारता अथवा एहसान के बोझ से दब जाए और मनीषा के प्रति उतना कृतज्ञ न हो पाने की वजह से उस के दिल में अपराधभावना आ जाए, मगर मनीषा के पैर जैसे जमीन से चिपक कर रह गए.

उदयशंकर बता रहे थे, ‘‘तुम्हारी मम्मी कितनी मेधावी थीं, शायद इस का तुम्हें अंदाजा भी नहीं होगा. उन जैसी प्रतिभाशाली लड़की को इतनी जल्दी प्यार और शादी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए था और अगर शादी कर भी ली थी तो कम से कम घर और बच्चों के मोह से तो बचे ही रहना चाहिए था. पर मनीषा ने घर और बच्चों के चक्कर में अपनी प्रतिभा आम घरेलू औरतों की तरह नष्ट कर दी.’’

‘‘खैर, यह तो आप ज्यादती कर रहे हैं, चाचाजी. मम्मी आम घरेलू औरत एकदम नहीं हैं,’’ जितेन ने प्रतिवाद किया, ‘‘मगर पापा ने क्या कहा था, वह बताइए न?’’

‘‘वही बता रहा हूं. तुम्हारी मम्मी ने कभी तुम से जिक्र भी नहीं किया होगा कि उन्हें एक बार हाइडलबर्ग के इंस्टिट्यूट औफ एडवांस्ड साइंसैज ऐंड टैक्नोलौजी में पीएचडी के लिए चुना गया था. तुम्हारी दादी और राजन ने तुम्हारी पूरी देखभाल करने का आश्वासन दिया था.  फिर भी मनीषा जाने को तैयार नहीं हुईं, महज तुम्हारी वजह से.’’

‘‘मैं उस समय कितना बड़ा था?’’

‘‘यही कोई 5-6 महीने के यानी जिस उम्र में मां ही होती है जो दूध पिला दे. और दूध तुम बोतल से पीते थे. सो, तुम्हारी दादी और पापा तुम्हारी देखभाल मजे से कर सकते थे. लेकिन तुम्हारी मम्मी को तसल्ली नहीं हो रही थी. उन के अपने शब्दों में कहूं तो ‘इतने छोटे बच्चे को छोड़ने को मन नहीं मानता. वह मुझे पहचानने लग गया है. मेरे जाने के बाद वह मुझे जरूर ढूंढ़ेगा. बोल तो सकता नहीं कि कुछ पूछ सके या बताए जाने पर समझ सके. उस के दिल पर न जाने इस का क्या असर पड़ेगा? हो सकता है इस से उस के दिल में कोई हीनभावना उत्पन्न हो जाए और मैं नहीं चाहती कि मेरा बेटा किसी हीनभावना के साथ बड़ा हो. मैं, डा. मनीषा, एक जानीमानी औयल टैक्नोलौजिस्ट की जगह एक स्वस्थ, होनहार बच्चे की मां कहलाना ज्यादा पसंद करूंगी.’’’

मनीषा और ज्यादा नहीं सुन सकी. उसे उस शाम की अपनी और राजन की बातचीत याद हो आई.

‘तुम्हारा बच्चा अभी तुम्हें ढूंढ़ने, कुछ सोचने और ग्रंथि बनाने की उम्र में नहीं है. पर जब वह कुछ सोचनेसमझने की उम्र में पहुंचेगा तब वह अपनी ही जिंदगी जीना चाहेगा और तुम्हारी खुशी के लिए अपनी किसी भी खुशी का गला नहीं घोंटेगा. यह समझ लो, मनीषा,’ राजन ने उसे समझाना चाहा था.

‘उस की नौबत ही नहीं आएगी, राजन. मेरी और मेरे बेटे की खुशियां अलगअलग नहीं होंगी. बेटे की खुशी ही मेरी खुशी होगी,’ उस ने बड़े दर्द से क था.

‘यानी तुम अपना अस्तित्व अपने बेटे के लिए ऐसे ही लुप्त कर दोगी. याद रखो, मनीषा, चंद सालों के बाद तुम पाओगी कि न तुम्हारे पास बेटा है और न अपना अस्तित्व, और फिर तुम अस्तित्वविहीन हो कर शून्य में भटकती फिरोगी, खुद को और अपने बेटे को कोसती जिस के लिए तुम ने स्वयं को नष्ट कर दिया.’

‘नहीं, मैं बेटे की ख्याति, सुख और समृद्धि के सागर में तैरूंगी. जब मेरा बेटा गर्व से यह कहेगा कि आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मम्मी की वजह से हूं तो उस समय मेरे गौरव की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती.’

‘यह सब तुम्हारी खुशफहमी है, मनीषा. जब तक तुम्हारा बेटा बड़ा होगा उस समय तक अपनी सफलता का श्रेय दूसरों को देने का चलन ही नहीं रहेगा. तुम्हारा बेटा कहेगा कि मैं जो कुछ भी हूं अपनी मेहनत और अपनी बुद्धि के बल पर हूं. यदि मांबाप ने बुद्धि के विकास के लिए कुछ सुविधाएं जुटा दी थीं तो यह उन की जिम्मेदारी थी. उन्होंने अपनी मरजी से हमें पैदा किया है, हमारे कहने से नहीं.’

‘चलिए, आप की यह बात भी मान ली. लेकिन दूर से चुप रह कर भी तो अपने बेटे की सुखसमृद्धि का आनंद उठाया जा सकता है.’

‘हां, अगर दूर और तटस्थ रह कर उस की खुशी में खुश रह सकती हो, तो बात अलग है. लेकिन अगर तुम चाहो कि तुम ने उस के लिए जो त्याग किया है उस के प्रतिदानस्वरूप वह भी तुम्हारे लिए कुछ त्याग कर के दे, तो नामुमकिन है. जहां तक मेरा खयाल है, वह अधिक समय तक तुम्हारे पास भी नहीं रहेगा. आजकल पढ़ाई काफी विस्तृत हो रही है.’

‘चलिए, बेटा रहे न रहे, बेटे के पापा तो मेरे पास ही रहेंगे न?’ मनीषा ने कहा था और सफाई से बात बदल दी थी. ‘वैसे मूर्खताओं में साथ देने के पक्ष में मैं नहीं हूं लेकिन तुम्हारा साथ तो देना ही पड़ेगा,’ राजन हंस कर बोले थे.

लेकिन, कहां दे पाए थे राजन साथ. जितेन अभी कालेज के प्रथम वर्ष में ही था कि एक दिन सड़क दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो कर वे उस का साथ छोड़ गए थे.

‘‘मम्मी, कहां हो तुम?’’ जितेन के उत्तेजित स्वर से मनीषा चौंक पड़ी. कर दिया न उदयशंकर ने सर्वनाश. जितेन को बता दिया और अब वह कहने आ रहा है कि यूनेस्को की नौकरी से इनकार कर देगा. मनीषा ने मन ही मन फैसला किया कि वह उसे क्या कह कर और क्याक्या कसमें दे कर जाने को मजबूर करेगी.

‘‘हां, बेटे, क्या बात है?’’

‘‘उदय चाचा कह रहे थे कि तुम ने मेरे लिए जीवन में आया एक सुनहरा मौका खो दिया?’’

‘‘हां, मगर वह मैं ने तुम्हारे लिए नहीं, अपनी ममता के लिए किया था. उस का तुम पर कोई एहसान नहीं है.’’

‘‘तुम एहसान की बात कर रही हो, मम्मी, और मैं समझता हूं कि इस से बड़ा मेरा कोई और उपकार नहीं कर सकती थीं,’’ जितेन तड़प कर बोला, ‘‘मैं आप को काफी समझदार औरत समझता था, लेकिन आप भी बस प्यार में ही बच्चे का भला समझने वाली औरत निकलीं. उस समय आप ने शायद यह नहीं सोचा कि आप की ज्यादा लियाकत का असर आप के बेटे के भविष्य पर क्या पड़ेगा?’’

जितेन की बात सुन कर मनीषा चुप रही, तो वह फिर बोला, ‘‘आज अगर आप के पास डौक्टरेट की डिगरी होती तो शायद पापा के गुजरने के बाद आप की पुरानी यूनिवर्सिटी आप को बुला लेती. हम लोग वहीं जा कर रहने लगते और मैं बजाय अफ्रीकीएशियाई देशों में जा कर, एक पश्चिमी औद्योगिक देश में काम करने का मौका पाता. यही नहीं, मेरी पढ़ाई पर इस का काफी असर पड़ता. निश्चित ही आप की आय तब ज्यादा होती. घर में ही एक प्रयोगशाला बनाने की जो मेरी तमन्ना थी, वह अगर हमारे पास ज्यादा पैसा होता तो पूरी हो जाती और उस का असर मेरे रिजल्ट पर भी पड़ता.’’ जितेन के स्वर में भर्त्सना थी.

‘‘हमेशा ही विश्वविद्यालय में फर्स्ट आता है. अरे छोड़ भी. उस से ज्यादा अच्छा रिजल्ट और क्या लाता?’’ मनीषा ने हंस कर बात टालनी चाही.

‘‘वही तो आप समझने की कोशिश नहीं करतीं. 85 प्रतिशत अंकों की जगह 95 प्रतिशत अंक पाना क्या बेहतर नहीं है? खैर, आप जो भी कहिए, आप ने वह फैलोशिप अस्वीकार कर के मेरा जो अहित किया है उस के लिए मैं आप को कभी माफ नहीं कर सकता,’’ कह कर जितेन तेजी से बाहर चला गया.

मनीषा जैसे टूट कर कुरसी पर गिर पड़ी. जितेन की कृतघ्नता या उदासीनता के लिए वह अपने को बरसों से तैयार करती आ रही थी, पर उस के इस आरोप के धक्के को सह सकना जरा मुश्किल था.

आखिर कितना घूरोगे?-भाग 1: गांव से दिल्ली आई वैशाली के साथ क्या हुआ?

कालीकजरारी, बड़ीबड़ी मृगनयनी आंखें किस को खूबसूरत नहीं लगतीं. लेकिन उन से ज्यादा खूबसूरत होते हैं उन आंखों में बसे सपने, कुछ बनने के, कुछ करने के. सपने लड़कालड़की देख कर नहीं आते. छोटाबड़ा शहर देख कर नहीं आते.

फिर भी, अकसर छोटे शहर की लडकियां उन सपनों को किसी बड़े संदूक में छिपा लेती हैं. उस संदूक का नाम होता है ‘कल’. कारण, वही पुराना. अभी हमारे देश के छोटे शहरों और कसबों में सोच बदली कहां है? घर की इज्ज़त हैं लड़कियां. जल्दी शादी कर उन्हें उन के घर भेजना है जहां की अमानत बना कर मायके में पाली जा रही है. इसलिए लड़कियों के सपने उस कभी न खुलने वाले संदूक में उन के साथसाथ ससुराल और अर्थी तक की यात्रा करते हैं.

जो लड़कियां बचपन में ही खोल देती हैं उस संदूक को, उन के सपने छिटक जाते हैं. इस से पहले कि वे छिटके सपनों को बिन पाएं, बड़ी ही निर्ममता से वे कुचल दिए जाते हैं, उन लड़कियों के अपनों द्वारा, समाज द्वारा.

कुछ ही होती हैं जो सपनों की पताका थाम कर आगे बढती हैं. उन की राह आसान नहीं होती. बारबार उन की स्त्रीदेह उन की राह में बाधक महसूस है. अपने सपनों को अपनी शर्त पर जीने के लिए उन्हें चट्टान बन कर टकराना होता है हर मुश्किल से. ऐसी ही एक लड़की है वैशाली.

हर शहर की एक धड़कन होती है. वह वहां के निवासियों की सामूहिक सोच से बनती है. दिल्लीमुंबई में सब पैसे के पीछे भागते मिलेंगे. एक मिनट भी जाया करना जैसे अपराध है. छोटे शहरों में इत्मीनान दिखता है. ‘हां भैया, कैसे हो?’ के साथ छोटे शहरों में हालचाल पूछने में ही लोग 2 घंटे लगा देते हैं.

देवास की हवाओं में जीवन की सादगी और भोलेपन की धूप की खुशबु मिली हुई थी. बाजारवाद ने पूरे देश के छोटेबड़े शहरों में अपनी जड़ें जमा ली थीं. लेकिन देवास में अभी भी वह शैशव अवस्था में था. कहने का मतलब यह है कि शहर में आए बाजारवाद का असर वैशाली पर भी था. लिबरलिज्म यानी बाजारवाद की हवाओं ने ही तो बेहिचक इधरउधर घूमतीफिरती वैशाली को बेफिक्र बना दिया था. उम्र हर साल एक सीढ़ी चढ़ जाती. पर बचपना है कि दामन छुड़ाने का नाम ही नहीं लेता.

वैसे भी, मांबाप की एकलौती बेटी होने के कारण वह बहुत लाड़प्यार में पली थी. जो इच्छा करती, झट से पूरी कर दी जाती. यों छोटीमोटी इच्छाओं के आलावा एक इच्छा जो वैशाली बचपन से अपने मन में पाल रही थी वह थी आत्मनिर्भर होने की. वह जानती थी कि इस मामले में मातापिता को मनाना जरा कठिन है. पर उस ने मेहनत और उम्मीद नहीं छोड़ी. वह हर साल अपने स्कूल में अच्छे नंबर ला कर पास होती रही. मातापिता की इच्छा थी कि पढ़लिख जाए, तो जल्दी से ब्याह कर दें और गंगा नहाएं.

एक दिन उस ने मातापिता के सामने अपनी इच्छा जाहिर कर दी कि वह नौकरी कर के अपने पंखों को विस्तार देना चाहती है. शादी उस के बाद ही. काफी देर मंथन करने के बाद आखिरकार उन्होंने इजाजत दे दी. वैशाली तैयारी में जुट गई. आखिरकार उस की मेहनत रंग लाई और दिल्ली की एक बड़ी कंपनी का अपौइंटमैंट लैटर उस के हाथ आ गया.

वैशाली की ख़ुशी जैसे घर की हवाओं में अगरबत्ती की खुशबू की तरह महकने लगी. यह अपौइंटमैंट लैटर थोड़ी ही था, उस के पंखों को परवाज पर लगी नीली स्याही की मुहर थी. मातापिता भी उस की ख़ुशी में शामिल थे, पर अंदरअंदर डर था कि इतनी दूर दिल्ली में अकेली कैसे रहेगी. आसपास के लोगों ने डराया भी बहुत… ‘दिल्ली है, भाई दिल्ली, लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. जरा देखभाल के रहने का इंतजाम कराना.’ वे खुद भी तो आएदिन अख़बारों में दिल्ली की खबरें पढ़ते रहते थे. यह अलग बात है कि छोटेबड़े कौन से शहर लड़कियों के लिए सुरक्षित हैं, पर खबर तो दिल्ली की ही बनती है.

लेखिकावंदना बाजपेयी

पिता बनने के बाद रणबीर को सता रहा है इस बात का डर, उम्र को लेकर कही ये बात

अभी 1 महीेने पहले रणबीर कपूर और आलिया भट्ट नए एक बेटी के माता-पिता बने हैं, बेटी के जन्म के बाद से इनकी जिंदगी खुशियों से भर गई हैं. क्वालिटी टाइम बिताने के बाद से रणबीर वापस अपने पर वापस लौट आएं हैं.

इसी बीच एक इंटरव्यू में रणबीर ने बताया है कि इस खूबसूरत पल को जीने के लिए मैंने इतना इंतजार क्यों किया अब मैं 40 साल का हो गया हूं, जबतक मेरी बेटी 20,21 साल की होगी तब तक मैं 60 साल का हो जाउंगा ऐसे में मैं क्या उसके साथ फूटबॉल खेल पाउंगा.

 

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रणबीर की इस बात ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है, रणबीर के कहने का सीधा मतलब था कि मुझे उन्हें थोड़ा पहले बच्चा पैदा कर लेना चाहिए था. ताकी वह और जवान रहते अपने बच्चों के साथ.

बता दें कि इसी साल रणबीर और आलिया ने चट मंगनी और पट ब्याह किया था, फिल्म स्टार 40 की उम्र में पापा बने हैं, ऐसे में यह पल उनके लिए खास होगा,जल्द ही रणवीर कपूर लव रंजन की फिल्म में श्रद्धा कपूर के साथ नजर आएंगे, इसके अलावा वह ब्रम्हाशास्त्र  2में भी आलिया के साथ नजर आएंगे.

पेरेट्स बनने के बाद से रणबीर कपूर काफी ज्यादा खुश हैं,

 

Bigg Boss 16 : प्रियंका-अर्चना करेंगी नागिन 7 में एंट्री, सोशल मीडिया पर हुआ खुलासा!

एकता कपूर को पॉपुलर शो नागिन 6 इन दिनों चर्चा में बना हुआ है, हर दिन इस सीरियल में नए- नए ट्विस्ट आते रहते हैं, लेकिन यह सीरियल अब पहले जैसा लोग देखना पसंद नहीं कर रहे हैं, इस सीरियल की टीआरपी भी खत्म हो गई है,

इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए एकता कपूर ने इस सीरियल में कुछ बदलाव लाने की सोची है, वह इस सीरियल में नए चेहरे की एंट्री करवाना चाहती हैं, एकता ने इस सीरियल में बिग बॉस फेम अर्चना गौतम और प्रियंका चाहर चौधरी की एंट्री करवाने वाली हैं. इस बात की खबर आ रही है.

अब इस शो के मेकर्स इस शो में नजर आ रही सबसे दमदार कंटेस्टेंट अर्चना और प्रियंका को अप्रोच करने वाले हैं. उन्हें लगता है कि इनकी एंट्री से शो में जान आ जाएगी. हालांकि अभी तक इस बात को लेकर कोई ऑफिशियली बयान नहीं आया है. लेकिन देखते हैं कि इस शो में नया क्या होने वाला है.

 

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इससे पहले एकता ने तेजस्वी प्रकाश को इस शो के लिए चुना था, अब सलमान खान के शो बिग बॉस 16 कि बात करें तो यहां हर दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिल रहा है, इस शो को देखने के लिए फैंस इंतजार में बैठे रहते हैं. कुछ देर पहले ही शो का नया प्रोमो सामने आया है, जिसमें सभी एक-दूसरे को नॉमिनेट करते नजर आ रहे हैं.

कमीशन-भाग 1 : क्यों लड़कियों को ठगता था कृपानिधान

शूल पाणी

अखबार एक किनारे को सरका दिया मैं ने. सरकार की झूठी वाहवाही,’चीन में हम ने यह करा दिया’, ‘उस राष्ट्रपति ने उठ कर स्वागत कर दिया’, ‘वहां कौरीडोर बन गया’, ‘वहां एक हिंदू लङकी अगवा हो गई…’ आधी झूठी खबरें.

छुट्टी का दिन था. मन हलका करने के लिए मोबाइल खोला. जयदत्त का मैसेज फिर से देखा. घुटन सी होने लगी. जयदत्त बचपन में मेरा सहपाठी था. बड़ा ही भावुक, हिम्मती और आदर्शवादी. मैं सीधासादा और कुछकुछ दब्बू. साम्राज्यवाद के पैर उखाड़ फेंक देने का मार्क्सवाद और समाजवाद महात्मा गांधी का नारा देशभर में गूंज उठा था. मैं डर कर अलग रहा. जयदत्त आकंठ आंदोलन में कूद पड़ा. इस के लिए उस ने भरपूर कीमत चुकाई. पुलिस का घोर आतंक, जिन दिनों सहपाठी अच्छी नौकरियों पर लग रहे थे, वह हड़तालों, तोङफोङ करने वालों का सरगना बना था।

बूढ़े मांबाप कष्ट में मरे. पत्नी भी उसे वहीं मिली पर एक बार भागते हुए सिर पर गहरा घाव हो गया. ज्यादा साथ न दे सकी. एक पुत्री को छोड़ चल बसी. बिना मां की लङकी, बाप लंबे समय तक कभी इस राज्य में तो कभी कहीं. सीधीसादी मौसी ने उस का ब्याह रचाया.

जिन के हाथ में बाद में समाजवादी शासन आया, वे जनता की समस्याएं सुलझाने के बजाए खुद उसी के लिए एक समस्या बन गए. जयदत्त जैसे लोग, जिन का स्वाभिमान और देश और गरीबों के लिए त्याग की भावना बना रही, वहीं रह गए, जहां वे थे. सिर्फ कुर्क हुई जमीन उसे अपने साथ के अब मंत्री बन गए दोस्त की वजह से वापस मिल गई. लङकी की सालों के अरमान के बाद संतान हुई, लेकिन वह स्वयं दुखी जीवन से मुक्ति पा गई. क्योंकि सरकारी अस्पताल में नकली दवा रिएक्शन कर गई.

मांबाप और पत्नी को जो ममता, जो स्नेह जयदत्त नहीं दे पाया था, वह उस ने ब्याज सहित नातिन पर न्यौछावर कर दिया. अपने लिए कोई चाह उसे न थी. उस ने छोटामोटा व्यापार शुरू किया. लेकिन नातिन को आंख का तारा बना कर पालापोसा और पढ़ाया. उसी नातिन के लिए आज वह बेहद परेशान है.

मैसेज में उस के हृदय की वेदना फूट पड़ी. वह इतना ही चाहता है कि उस के ममेरे भाई ने उस की नातिन का ब्याह जहां ठहराया है, उस में कृपानिधान की मैट्रीमोनियल ऐजैंसी को घपला करने से जिस तरह भी हो, रोकूं.

छोटे कसबे में जयदत्त बेचारे को क्या खबर, वह किस के फंदे में फंस गया है. जयदत्त का ममेरा भाई कहां जा पड़ा कृपानिधान के घर में. लङकी वालों से कमीशन लेने के बाद भी वह और उस की फर्म कितनों की जिंदगियां चौपट कर चुकी है, इस की कोई गिनती नहीं है. उस का भाई और भाई का लङका, जिस से जयदत्त की नातिन की शादी तय हुई है, क्या बात करूं इस कृपानिधान से? मैं आगे बढ़ूं और वर भी खराब हुआ, बदमाश निकला, तो अनजाने में एक गलत काम का भागीदार बन जाने की ग्लानि मुझे नहीं कचोटेगी?

बात काफी आगे बढ़ चुकी है. लङकी का नाजुक मामला. समय निकलता जा रहा है. जयदत्त जानता था कि मैं इस मैट्रीमोनियल ऐजैंसी की रगरग पहचानता हूं क्योंकि कभी कृपानिधान मेरे दफ्तर में काम करता था.

अचानक मैसेज मिला. कृपानिधान का था,’आज दिन में आप से मिलने आऊंगा. कुछ काम है.’ व्हाट्सऐप मैसेजों को जिस जगह पर छोड़ा था, उस के आगे देखने ही जा रहा था कि बाहर किसी के आने की आहट सुनाई पङने लगी. तेजी से जा कर दरवाजा खोला तो कृपानिधान था। भरा शरीर, पेट कुछ बाहर निकला हुआ, चमकती आंखें, चूभती नजरें, दबी नाक, मोटे होंठ, मुंह फैला हुआ, सफेद शर्ट, काली पैंट, टाई भी लगाए हुए और डबल सोल वाले जूते.

लेखक- शूल पाणी

विंटर स्पेशल : सर्दियों में अस्थमा के मरीज बरतें सावधानी

सर्दियों का मौसम जितना सुहावना और सेहत के लिए लाभकारी होता है, उतना ही दमा यानी अस्थमा के मरीजों के लिए कष्टकारक भी होता है. इस दौरान सर्दी, जुकाम जोड़ों के दर्द के साथसाथ सांस की परेशानी भी बढ़ जाती है, जिस से दमा के रोगियों को काफी कष्ट होता है. इसलिए सर्दियों के मौसम में अस्थमा के मरीजों को सतर्क और सावधान रहने की जरूरत होती है.

विशेषज्ञों का मानना है कि ठंड का मौसम स्वास्थ्य के लिहाज से तो काफी अच्छा रहता है, लेकिन कुछ खास बीमारियों जैसे अस्थमा, हृदयरोग व कैंसर से पीडि़त लोगों के लिए यह मौसम कुछ समस्याएं ले कर आता है. यदि रोगी कुछ बातों पर ध्यान दें तो इस समस्या से नजात पा सकते हैं.

डाक्टरों का कहना है कि सर्दियों में अस्थमा के रोगियों की सांस संबंधी परेशानियां बढ़ जाती हैं. इस के साथ ही सर्दियों में त्वचा संबंधी ऐलर्जी आदि परेशानियां भी बढ़ जाती हैं.

विशेषज्ञ कहते हैं कि ठंड में श्वास नलिकाएं सिकुड़ने लगती हैं और कफ ज्यादा बनने लगता है. इस मौसम में प्रदूषण भी वातावरण में फैल जाता है और ये कण एलर्गन का काम करते हैं. इस की वजह से सर्दियों के मौसम में अस्थमा की समस्या ज्यादा बढ़ जाती है.

बचाव के टिप्स

  •  इस से बचाव के लिए घर को धुंए और धूल से बचाएं.
  •  खुद को गरम कपड़ों से पूरी तरह ढक कर रखें.
  •  पंखे और एयर कंडीशनर के नीचे न बैठें.
  •  इन्हेलर हमेशा अपने साथ रखें और स्टेरौयड का इस्तेमाल डाक्टर की सलाह पर ही करें.
  •  शरीर को जितना गरम रख सकें रखने का प्रयास करें.
  • सावधानी ही अस्थमा से लड़ने का बेहतर उपाय

दमा को जड़ से खत्म करना असंभव है, हां, इसे कुछ सावधानी बरत कर कम जरूर किया जा सकता है. बचाव की सावधानी ही अस्थमा से लड़ने का कारगार उपाय है.

अस्थमा के रोगियों को सर्दियों में सांस लेने में दिक्कत होती है, उन का दम फूलता है और बलगमयुक्त खांसी आती है. यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है. वैसे तो दमे के मरीज को रात में ज्यादा परेशानी होती है. बढ़े हुए दमे में मरीज को खांसी का दौरा भी पड़ सकता है, जो कुछ घंटों तक जारी रह सकता है. यही नहीं, कई बार इस से मरीज की मौत भी हो सकती है. यह रोग पुरुषों में अधिक पाया जाता है. बच्चे इस रोग की गिरफ्त में ज्यादा आते हैं.

ईएनटी विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे शरीर में सांस नली का व्यास 2 से 3 सैंटीमीटर होता है. यह 2 ब्रोकाई में विभाजित होती हैं और दोनों फेफड़ों में जा कर फिर बंट जाती हैं. इस में मांसपेशियां होती हैं जो सिकुड़तीफैलती रहती हैं. अगर मांसपेशियां सिकुड़ जाती हैं तो मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. कुछ लोगों में सर्दीजुकाम और गले में सूजन पैदा करने वाले बैक्टीरिया व वायरल भी इस बीमारी को बढ़ाते हैं.

अस्थमा से कैसे बचें

विशेषज्ञों का मानना है कि अस्थमा का इलाज डाक्टर से ही कराएं और इस के बढ़ने के कारणों से बचें. धूम्रपान न करें, यदि कोई कर रहा है तो उस से दूर रहें. ठंड और ठंडेपेय का सेवन करने से बचें. थकान वाला काम न करें, जिस से सांस फूलती है. इन्हेलर्स का इस्तेमाल करें यह श्वसन तंत्र की सूजन को कम करता है और इस से रोगी को सांस लेने में तुरंत आराम मिलता है.

अस्थमा के लक्षण

अस्थमा से सांस लेने में परेशानी होती है.

  •  सांस लेते समय गले में आवाज होना.
  •  छाती में भारीपन लगना, जैसे अंदर कुछ जमा है.
  •  खांसने पर चिकना कफ निकलना.
  •  मेहनत का काम करने पर सांस फूलना.
  •  परफ्यूम, सुगंधित तेल, पाउडर आदि से ऐलर्जी होना.

सर्दियों का मौसम दमा के रोगियों के लिए काफी तकलीफदेह होता है. इस का कारण है कि इस मौसम में नाइट्रोजन डाइऔक्साइड गैस, सल्फर डाइऔक्साइड और ओजोन गैस की मात्रा प्रदूषण के कारण बढ़ जाती है.

सरकार दे दबाव में कोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश कि सभी रेलवे स्टेशनों, सडक़ों, पार्को व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बने नितांत गैरकानूनी मंदिर हटा कर उत्तर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार न्यायालय को सूचित करें, अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा है. पर इसे मान लिया जाएगा, इस में संदेह है. मंदिर, मजार, क्रौस चौराहों व सार्वजनिक स्थानों पर बना कर चांदी काटना एक अच्छा धंधा है और धर्म के दुकानदार इस धंधे को चौपट नहीं होने देंगे. अगर किसी एक न्यायाधीश ने संविधान व कानून को लागू करते हुए ऐसा आदेश दिया भी, तो भी उस की नहीं सुनी जाएगी.

राममंदिर के फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने बाबरी मसजिद को गिराया जाना अवैध माना लेकिन फिर भी वह जमीन राममंदिर बनाने के लिए दे दी. जब सुप्रीम कोर्ट मंदिरों के आगे इस तरह झुक सकती है तो उच्च न्यायालयों की यह क्या हिम्मत कि वे अवैध मंदिर हटवा सकें. दिल्ली में चांदनी चौक में सडक़ के बीच बने मंदिर का उदाहरण भी सामने है कि लाख कोशिशों के बाद भी वह जमीन लोगों के लिए चलने लायक नहीं बनी है.

मंदिर, मसजिद, चर्च तो जब जहां बन जाएं, वे हमेशा के लिए हो जाते हैं. ऐसा माहौल धर्म के दुकानदारों ने बनाया है ताकि वे भक्तों को बहका सकें कि भगवान का कोई बाल बांका नहीं कर सकता और मंदिर जहां भी बने वह समझो हमेशा के लिए बन गया.

इजिप्ट के शहर लक्सर में कर्णक टैंपल नाम का एक भव्य भवनों का कौंपलैक्स है जिस का निर्माण ईसा पूर्व 1550 से 1069 में अलगअलग तब के राजाओं ने किया और उंगली दांतों तले दबाने लायक पत्थर के विशाल स्तंभ, राजाओं की मूर्तियां, दीवारों पर चित्र बनवाए. मानव इतिहास में इन की तुलना कम जगहों से की जा सकती है. रैमसैस द्वितीय और आमेनोटेप तृतीय के नाम से अब जाने जानेवाले राजाओं ने नील नदी के किनारे यह कैसा भव्य निर्माण किया था जो कई वर्ग मील में फैला हुआ एक अजूबा है.

यहां एक मसजिद भी 11वीं सदी की है, यानी यह रैमसैस के मंदिरों के 200 साल बाद की है और यह ऊंचाई पर है क्योंकि तब तक रेगिस्तान के फैलाव व फैरो राजाओं के राज्यों के पतन के बाद इन मंदिरों में रेत भर गई थी.

किसी ने सपाट जमीन पर पत्थरों की कतार देख कर वहां मसजिद बना ली. अब 2 सदी पहले कर्णक इलाके की पुरातत्त्वी विशेषज्ञों ने खुदाई की तो मसजिद से 20 फुट नीचे तक जमीन पर बनी रैमसैस युग का निर्माण देखा गया. पुरातत्व की दृष्टि से मसजिद के नीचे भी कुछ होगा पर पुरातत्व विशेषज्ञों की लाख कोशिशों के बाद मसजिद न हटी. यह आज भी भव्य भवनों के पेबंद की तरह है.

देश में हर मील पर इस तरह के मंदिरमसजिद दिख जाएंगे जो जनता की इस्तेमाल की जमीन पर बने हैं और जनता के काम में रुकावट हैं पर उन्हें लक्सर की मसजिद की तरह कोई हटा नहीं पा रहा.

देश में तो अब हर मंदिर चमकने लगा है, गुरुद्वारों पर सोने की परतें लगने लगी है, कहींकहीं मसजिदों की भी मरम्मत हो रही है, चर्च सीधेसादे ही हैं क्योंकि हिंदू बिग्रेड मसजिदों और चर्चों को ठीक करने पर भी उन के फैलाव का हल्ला करने लगती है.

जब ऐसा माहौल हो तो सिर्फ इलाहाबाद कोर्ट के आदेश पर देशभर के हजारों मंदिर, जो रेल की संपत्ति पर बैठे हैं, हट जाएंगे, असंभव है. खासतौर पर तब जब आज की सरकार का विकास का मंत्र मंदिरों का विकास हो और जनता उसे ही अपना विकास मानती हो.

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