Download App

नोरा फतेही और जैकलीन फर्नांडिस के बीच कोल्ड वार, नोरा ने किया 200 करोड़ ठगी का मुकदमा

सुकेश चंद्रशेखकर से जुड़े मामले हर दिन नया मोड़ ले रहा है, इस 200 करोड़ रुपये के मामले में नोरा फतेही ने एक नया कदम उठाया है, नोरा ने जैकलीन के खिलाफ 200 करोड़ रुपये की मानहानी की केस दर्ज करा दी है, जिसके बाद से लगातार मामला बढ़ते जा रहा है.

मीडिया रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नोरा ने यह कदम इसलिए उठाया है कियोंकि जबरन उनका नाम आ रहा था और उनकी छवि इस वजह से खराब हो रही थी, इसलिए नोरा ने यह कदम उठाया

मिली जानकारी में खुलासा हुआ है कि नोरा ने दिल्ली के पटियाला कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराया है, उन्होंने कहा है कि उनका सुकेश के साथ कोई संबंध नहीं है कुछ वक्त पहले सुकेश ने उन्हें 65 लाख की बीएमडब्ल्यू कार ऑफर किया था.

लेकिन नोरा ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था, नोरा ने आगे बताया है कि इस घटना कि वजह से उनकी छवि को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचा है. वह नहीं चाहती है कि आगे उनके साथ कुछ भी ऐसा हो इस वजह से उन्होंने सख्त कदम उठाया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Nora Fatehi (@norafatehi)

दोनों अभिनेत्रियों से ईडी ने पूछताछ की थी लेकिन इसके बावजूद भी कोई सफलता हासिल नहीं हुई है. अब देखना है कि फैसला किसके हक में होगा किसकी हार होगी किसकी जीत.

बेवफा बेगम का खूनी सरप्राइज

जफरुद्दीन पेशे से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर था. इस समय वह नोएडा के पावर प्लांट में नौकरी कर रहा था. उस के साथ ही उस की पत्नी शहनाज परवीन और 10 साल और 4 साल के 2 बेटे रह रहे थे. जफरुद्दीन की ससुराल पटना के फुलवारी शरीफ के कर्बला ताजनगर में थी. ससुराल के पास में ही उस ने अपने  परिवार के लिए एक आलीशान मकान बनवा रखा था.

3 मई, 2022 को ईद थी. इस बार जफरुद्दीन ने ईद अपने घर पर और अपने घर वालों के बीच मनाने का फैसला किया. इसलिए पहली मई को वह नोएडा से पटना अपने घर आ गया. घर काफी समय से बंद था, इसलिए काफी गंदा था. उस की साफसफाई की गई.

देर शाम रोजा इफ्तार के बाद जफरुद्दीन अपने बेटे के साथ बाजार खरीदारी के लिए गया. वापस लौटने पर सभी लोगों के साथ बैठ कर खाना खाया. फिर सभी लोग सोने चले गए.

2 मई की सुबह करीब 7 बजे ड्राइंगरूम में फर्श पर जफरुद्दीन की लाश पड़ी मिली. बड़ा बेटा अपनी ननिहाल गया और अपने पिता की लाश घर में पड़े होने की सूचना दी. जिस के बाद वहां के लोग और आसपड़ोस के लोग भी वहां इकट्ठा हो गए. संबंधित थाना फुलवारी शरीफ को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर थानाप्रभारी इकरार अहमद पुलिस टीम के साथ मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

ड्राइंगरूम में फर्श पर 40 वर्षीय जफरुद्दीन की लाश पड़ी थी. सिर बुरी तरह कुचला हुआ था. पूरे फर्श पर खून ही खून था. लाश से कुछ दूरी पर खून से सना प्रेशर कुकर पड़ा था. हत्यारों ने जफरुद्दीन को ठिकाने लगाने के लिए घर में काम आने वाले उसी प्रेशर कुकर का इस्तेमाल किया था.

थानाप्रभारी इकरार अहमद ने जफरुद्दीन की पत्नी शहनाज परवीन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात में खाना खा कर सभी लोग सो गए थे. रात 3 बजे उस ने कुछ आवाजें सुनीं तो जाग गई. उठ कर ड्राइंगरूम में गई तो वहां उस ने अपने शौहर को 2 चोरों से भिड़ते देखा. वह अपने पति को बचाने के लिए उन चोरों से भिड़ गई. जिस पर उन चोरों ने उस के गले की चेन निकाल ली और उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गई. सुबह जब होश आया तो उस ने अपने शौहर की लाश पड़ी देखी.

दोनों बेटों से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उन की तो सुबह 7 बजे आंखें खुलीं. रात में क्या हुआ, उन को नहीं पता.

जफरुद्दीन के घर में आनेजाने का रास्ता एक ही था, फिर चोर कैसे घर में घुस गए. इस सवाल पर शहनाज ने कहा कि हो सकता है कि रात में मेनगेट खुला रह गया हो.

घर का सारा सामान घर में मौजूद था. शहनाज अपने गले की चेन ले जाने की बात कर रही थी. चोर घर में घुसे और मकान मालिक की हत्या करने के बाद केवल चेन ले जाए, ये विश्वास करने वाली बात नहीं थी.

बीवी के मोबाइल ने खोला राज

मामला लूटपाट का नहीं है, थानाप्रभारी समझ चुके थे. पूरा मुआयना और पूछताछ के बाद उन का शक शहनाज परवीन पर था. लेकिन बिना सबूत उस पर हाथ नहीं डाल सकते थे. उन्होंने शहनाज का मोबाइल मांगा तो शहनाज ने बेखटक अपने शौहर का दिया हुआ आईफोन थानाप्रभारी अहमद को दे दिया. फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद वह थाने वापस आ गए.

थानाप्रभारी इकरार अहमद ने उस मोबाइल को खंगाला तो कोई सुबूत हाथ नहीं लगा. मोबाइल के कुछ नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो कोई भी खास जानकारी नहीं मिली.

इसी बीच जफरुद्दीन के रिश्तेदारों और पड़ोसियों से उन को पता चल गया कि जफरुद्दीन और शहनाज में अकसर झगड़ा होता रहता था. उस की वजह थी शहनाज का अफेयर. जिस की वजह से जफरुद्दीन शहनाज को नोएडा में अपने साथ 4 साल से रखे हुए था. 2 साल से शहनाज का पटना आना बिलकुल बंद था.

थानाप्रभारी अहमद ने दोबारा जफरुद्दीन के बेटों से पूछताछ की तो इस बार छोटे बेटे ने अपनी अम्मी के पास 2 मोबाइल होने की बात बताई. शहनाज ने दूसरे मोबाइल के बारे में पुलिस को नहीं बताया था. इस पर उन्होंने शहनाज पर दबाव डाल कर दूसरा मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया.

उस मोबाइल में जो सिम कार्ड था, वह कमाल उर्फ नन्हे के नाम पर था. उस नंबर से जिस फोन नंबर पर बात की जाती थी, वह नंबर भी नन्हे का था. यह जानकारी मिलने के बाद उन्हें मामला समझते देर न लगी. मामला प्रेम प्रसंग का था. इस के बाद 27 जून को थानाप्रभारी ने शहनाज परवीन और नन्हे उर्फ कमाल को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों से जफरुद्दीन की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

शहनाज जब कक्षा 6 में पढ़ रही थी, उस समय उस की उम्र 15 साल थी. उसी के साथ कमाल उर्फ नन्हे भी पढ़ता था. साथ पढ़ने के दौरान दोनों में दोस्ती हो गई. यह दोस्ती समय के साथ गहरी होती गई. दोनों को एकदूसरे का साथ इतना भाता था कि वे ज्यादा से ज्यादा समय एकदूसरे के साथ बिताना पसंद करते थे.

धीरेधीरे बात दोस्ती की सीमा से आगे निकलने लगी. दोनों के दिलों में प्यार के अंकुर फूटने लगे. यह बात दोनों महसूस भी करने लगे थे. वैसे तो दिल की हर बात बेहिचक एकदूसरे से कह देते थे, लेकिन अपनी चाहत की बात बताने में हिचक रहे थे. आंखों से साफ झलकने वाला प्यार जुबां से शब्दों के जरिए बाहर नहीं आ रहा था.

प्यार करते हो तो उसे जताना भी होता है, यह बात दोनों जानते तो थे, लेकिन जुबां साथ नहीं दे रही थी. प्यार जब जोर मारता है, दिल में उमंगें उठती हैं तो इंसान की बेचैनी भी

बढ़ती है. यही बेचैनी इंसान को मजबूर कर देती है. इसी बेचैनी में एक दिन नन्हे की जुबां से प्यार के अनमोल शब्द बाहर आ जाते हैं.

उस दिन शहनाज और नन्हे कमरे में बैठे कोई रोमांटिक फिल्म देख रहे थे. उस फिल्म में भी हीरोहीरोइन की ठीक वैसी ही स्थिति थी, जैसी शहनाज और नन्हे की थी. फिल्म में हीरो हीरोइन से प्यार के मीठे बोल बोलता है तो नन्हे भी अपने प्यार का इजहार करने को मचल उठा.

मौका भी था, दस्तूर भी था. उस ने शहनाज का हाथ पकड़ा. शहनाज भी उस के हाथ पकड़ने से समझ गई कि आज नन्हे भी उस से अपने दिल की बात कह देना चाहता है. वह भी उस पल के लिए तैयार हो गई. जैसे ही फिल्म में प्यार का इजहार कर के हीरोहीरोइन गले लगे, वैसे ही नन्हे ने शहनाज को अपने गले से लगा लिया.

शहनाज एक पल के लिए चौंकी, लेकिन फिर मन ही मन बहुत खुश हुई. तभी नन्हे के प्यार भरे मीठे बोल उस के कानों में रस घोलने लगे, ‘‘आई लव यू…आई लव यू शहनाज. मैं तुम्हें अपनी जान से भी ज्यादा चाहता हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता और तुम्हें पूरी जिंदगी अपने साथ रखना चाहता हूं. क्या तुम भी यही चाहती हो? क्या तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

शहनाज का मुंह नन्हे की पीठ की तरफ था. शहनाज आंखें बंद किए नन्हे की प्यार भरी बातों का आनंद ले रही थी. उस के होंठों पर हलकी सी मुसकान तैर रही थी.

नन्हे ने उस से पूछा और उसे खींच कर अपने से अलग किया तो शहनाज का चेहरा उस के सामने आ गया. उस समय उस के चेहरे पर हया के बादल साफ नजर आ रहे थे. आंखें झुकी हुई थीं.

यकायक शहनाज ने अपनी आंखें खोलीं और नन्हे की आंखों में देखते हुए बोली, ‘‘मैं तो कब से तुम्हारी होने को व्याकुल थी. इंतजार में थी कि तुम जाने किस दिन मुझ से अपने प्यार का इजहार करोगे और मेरे प्यार को कुबूल करोगे. नन्हे, मैं भी तुम से बेइंतहा मोहब्बत करती हूं. मैं ने तुम्हारी मोहब्बत को कुबूल कर लिया, क्या तुम भी मेरी मोहब्बत को कुबूल करते हो?’’

‘‘कुबूल है, कुबूल है, कुबूल है, हजार बार कुबूल है. तुम्हारी मोहब्बत से ही मेरी यह जिंदगी है, मेरी यह जान है.’’ यह सुन कर शहनाज नन्हे से लिपट गई. नन्हे ने भी शहनाज को अपनी बांहों में ले लिया और प्यार से उस के होंठों को चूम कर अपने प्यार की मुहर लगा दी.

प्यार की वजह से निकाला स्कूल से

उन का प्यार इस कदर बढ़ा कि पूरे स्कूल में उन के प्यार की चर्चा होने लगी. स्कूल प्रबंधन तक बात पहुंची तो दोनों को स्कूल से निकाल दिया गया. इस के बाद शहनाज घर में रह कर ही पढ़ाई करने लगी. दूसरी ओर नन्हे ने आगे की पढ़ाई नहीं की, बल्कि बिजली मिस्त्री का काम सीखने लगा. जिस से जल्द से जल्द अपना काम शुरू कर सके. उस ने सोचा कि आमदनी होने लगेगी तो वह शहनाज से निकाह कर सकेगा.

दूसरी ओर शहनाज के घर वाले शहनाज के इश्क की खबर लगने के बाद उस के लिए कोई अच्छा लड़का देख कर उस का निकाह करने की तैयारी में लग गए.

जल्द ही उन की तलाश पूरी हो गई. शहनाज के घर वालों को शहनाज के लिए जफरुद्दीन पसंद आ गया.

जफरुद्दीन पेशे से इलैक्ट्रिकल इंजीनियर था और उस समय सऊदी अरब में नौकरी कर रहा था. वह लखीसराय का रहने वाला था. अच्छी नौकरी वाला लड़का मिल रहा था, अच्छा रिश्ता था. यह सोच कर घर वालों ने शहनाज का निकाह उस से तय कर दिया गया.

शहनाज बला की खूबसूरत थी. शहनाज की खूबसूरती पर जफरुद्दीन लट्टू हो गया था. शहनाज को देखते ही जफरुद्दीन ने रिश्ते के लिए हां कह दी थी. जबकि शहनाज को जफरुद्दीन पसंद नहीं था.

जफरुद्दीन मौलाना था, नापसंदगी की वजह यह भी थी. वैसे भी वह नन्हे से प्यार करती थी, उसी से निकाह करना  चाहती थी. लेकिन घरवालों के दबाव में न चाहते हुए उसे जफरुद्दीन से निकाह करना पड़ा.

निकाह के कुछ समय बाद जफरुद्दीन वापस सऊदी अरब चला गया. शहनाज मायके में ही रहने लगी. मायके में रहते हुए अपने प्रेमी नन्हे से मिलती रही. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ते भी कायम रहे. कहने को वह जफरुद्दीन की पत्नी थी, लेकिन पत्नी की तरह प्रेमी नन्हे के साथ रहती थी.

जफरुद्दीन साल में एक महीने के लिए घर आता था. एक महीने पति के साथ तो 11 महीने प्रेमी के साथ पत्नी के रूप में रहती थी शहनाज. समय के साथ शहनाज 2 बच्चों की मां बन गई. जफरुद्दीन ने शहनाज के मायके के पास ही एक आलीशान मकान बनवा दिया. इसी मकान में वह अपने दोनों बच्चों के साथ रहने लगी. शहनाज के साथ ही मकान में उस का प्रेमी नन्हे रहता था.

बच्चों से प्रेमी को अब्बू कहलवाती थी शहनाज

नन्हे ने शहनाज का नाम ‘शहनाज गिल’ रखा था. वह उस से कहता था कि वह उसे शहनाज गिल लगती है और उन दोनों का प्यार शहनाज गिल और सिद्धार्थ की तरह रहेगा. नन्हे ने शहनाज से अपने संबंध के कारण ही विवाह नहीं किया था, वह पूरी तरह से अपने प्यार के लिए समर्पित था.

दोनों का इश्क आखिर कब तक छिपता. एक दिन बड़े बेटे अब्दुल्लाह ने फोन पर बात करते हुए नन्हे के बारे में अपने पिता को बता दिया. जिस के बाद जफरुद्दीन और शहनाज में काफी झगड़ा हुआ.

वैसे शहनाज अपने बेटों को पट्टी पढ़ाए रहती थी. उन से कहती थी कि उन के 2-2 पिता हैं. प्रेमी नन्हे को अपने बेटों से अब्बू कहलवाती थी. छोटे बेटे को तो वह नन्हे का ही मानती थी.

दूसरी ओर जब शहनाज की हकीकत जफरुद्दीन को पता लगी तो वह बेचैन रहने लगा. बात तलाक तक पहुंच गई. शहनाज उस से तलाक मांगने लगी. लेकिन जफरुद्दीन उस के लिए तैयार नहीं हुआ. इस सब को देखते हुए जफरुद्दीन ने अपनी सारी संपत्ति अपने कब्जे में ले ली.

जफरुद्दीन 2 साल पहले सऊदी अरब से वापस आ गया और नोएडा में एक पावर प्लांट में नौकरी करने लगा. वह शहनाज और दोनों बेटोें के साथ नोएडा में रहने लगा. वहां रहते हुए भी शहनाज और नन्हे के बीच संपर्क बना रहा. दोनों फोन पर बातें करते रहते थे. शहनाज को वह पटना भी नहीं भेजता था.

3 मई, 2022 को ईद थी. इस बार की ईद जफरुद्दीन ने अपने घर और अपनों के बीच मनाने का इरादा बनाया. उस ने सोच लिया था कि 2 साल का वक्त गुजरने के बाद शहनाज नन्हे को भूल गई होगी. उस से न मिल पाने पर उस के संबंध टूट गए होंगे.

यही सोच कर उस ने पटना में ईद मनाने का मन बनाया था. लेकिन यह उस की भूल थी. और यह भूल उस पर कितनी भारी पड़ने वाली थी, उस ने सपने में भी नहीं सोचा होगा.

जफरुद्दीन के फैसले की जानकारी शहनाज को हुई तो वह खुश हो उठी. उस ने फोन पर नन्हे से बात की और कहा कि इस बार ईद पर जफरुद्दीन घर आ रहा है, उसे हर हाल में ठिकाने लगाना है, जिस से उस की मौत के बाद दोनों एक साथ जिंदगी जी सकें. नन्हे खुश होते हुए इस के लिए तैयार हो गया.

जफरुद्दीन परिवार के साथ नोएडा से दिल्ली आया और दिल्ली से पटना फ्लाइट से पहली मई की दोपहर में पहुंचा. घर की साफसफाई की. रात में रोजा इफ्तार के बाद जफरुद्दीन बेटे के साथ बाजार खरीदारी के लिए गया. इस बीच शहनाज ने प्रेमी नन्हे को बुला कर अपने घर में छिपा लिया.

जफरुद्दीन रात 11 बजे घर लौटा. सभी ने खाना खाया. इस के बाद शहनाज ने जफरुद्दीन से किसी बात को ले कर झगड़ा कर लिया. जिस के बाद जफरुद्दीन ड्राइंगरूम में सोने चला गया. उस के सोने के बाद रात 3 बजे शहनाज ने नन्हे को बाहर निकाला और घर में रखे प्रेशर कुकर को उठाया. फिर दोनों सोते हुए जफरुद्दीन के पास पहुंच गए.

जफरुद्दीन अपनी मौत से बेखबर सो रहा था. नन्हे ने प्रेशर कुकर का एक तेज प्रहार जफरुद्दीन के सिर पर किया. जिस से जफरुद्दीन नीचे फर्श पर गिर गया और बेहोश हो गया. इस के बाद दोनों बारीबारी से उस पर तब तक प्रहार करते रहे, जब तक उस की मौत नहीं हो गई.

आवाज सुन कर दोनों बेटे जाग गए, लेकिन शहनाज ने उन को ड्राइंगरूम तक नहीं आने दिया. उस ने नन्हे के कपड़ों पर लगा खून साफ किया. फिर सुबह जल्दी नन्हे को घर से भेज दिया.

पुलिस के पूछने पर शहनाज ने चोरों द्वारा लूटपाट के उद्देश्य से हत्या किए जाने की झूठी कहानी गढ़ दी.

लेकिन मामले की स्क्रिप्ट काफी कमजोर थी, जिस से पुलिस के सामने ठहर न सकी और दोनों पकड़े गए.

पुलिस ने शहनाज और कमाल उर्फ नन्हे के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

जानकारी: मानसिक रोग के कानूनी उपचार

कानून मानसिक रोग से पीडि़त व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध को इस आधार पर माफ करता है कि वह अपराध की प्रकृति और परिणाम सम?ाने में असमर्थ है पर उसे उकसाने वाले व्यक्ति को वही दंड दिया जाता है. मानसिक रोगियों के अपराध को ले कर कानून में क्या कानूनी उपचार हैं, जानें. अखिलेश प्रसाद सिंह सेवानिवृत्त प्राचार्य थे. उन के छोटे पुत्र विमलेश का दिमागी संतुलन ठीक नहीं था. छोटेबड़े सभी डाक्टरों से इलाज करवा लिया लेकिन अपेक्षानुरूप सुधार नहीं हुआ. वे विमलेश के भविष्य को ले कर चिंतित थे. अभी तो वह 17 साल का ही हुआ था.

अखिलेश प्रसाद सेवेरे अखबार पढ़ रहे थे कि एक पुलिस इंस्पैक्टर दलबल सहित उन के मकान पर आ धमका. जैसे ही इंस्पैक्टर ने उन्हें बताया कि विमलेश ने भरे बाजार पत्थर मार कर एक दुकानदार का सिर फोड़ दिया है. दुकानदार की रिपोर्ट पर वे विमलेश को गिरफ्तार करने आए हैं. बेचारे अखिलेश प्रसाद के तो हाथों के तोते उड़ गए. कुछ कहते नहीं बना. उस समय विमलेश अपने कमरे में बड़े आराम से अकेला कैरम खेल रहा था. उस ने पुलिस को देख कर तालियां बजानी शुरू कर दीं. पुलिस इंस्पैक्टर विमलेश को सम?ाबु?ा कर थाने में ले गए. जब विमलेश को अदालत में पेश किया तो विमलेश के वकील ने डाक्टर का प्रमाणपत्र पेश कर दलील दी कि विमलेश को मानसिक रोगी घोषित किया गया है.

इसलिए उसे सजा नहीं दी जा सकती. अदालत ने वकील की दलील को मानते हुए कहा कि दुकानदार को पत्थर मारने का अपराध करते समय विमलेश विकृतचित्त था. वह अपनी विकृतत्ता की वजह से सोचनेसम?ाने की शक्ति खो चुका था. उसे कार्य के परिणाम की जानकारी नहीं थी. इसलिए विमलेश का केस खारिज कर दिया गया. भारतीय दंड संहिता की धारा 84 में प्रावधान किया गया है कि ‘कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो उसे करते समय चित्तविकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति या जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है.’ मनुष्य की सोचनेसम?ाने की शक्ति दिमाग में संकलित होती है.

जो व्यक्ति दिमाग की बीमारी से इस हद तक पीडि़त हो कि उस का दिमाग ही फेल हो चुका हो तो ऐसे व्यक्ति को सजा के दायरे में बाहर रखना ही उचित है. पागल को तो सजा नहीं दी जा सकती, परंतु पागल को अपराध करने के लिए दुष्प्रेरित करने वाले व्यक्ति को तो अपराध की सजा भुगतनी ही होगी. इसी कानून के तहत आफताब को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. द्य आफताब के पड़ोस में मोहसिन नामक एक पागल व्यक्ति रहता था. आफताब का किराएदार का मकान खाली नहीं कर रहा था. दोतीन बार दोनों में ?ागड़ा भी हो चुका था. वह किसी भी तरह मकान खाली करवाना चाहता था. एक दिन उस ने मोहसिन को मिठाई खिलाई और उस से कहा कि यदि वह इस चाकू से उस कमरे में सो रहे व्यक्ति के सिर में छेद कर दे तो उसे रोजाना मिठाई खाने को मिलेगी. मोहसिन मानसिक रोगी था.

वह एक मिनट में इस काम के लिए तैयार हो गया. उस ने नींद में सो रहे किराएदार को जोर से चाकू मारा. अचानक हुए इस घटनाक्रम ने किराएदार को संभलने का कोई मौका नहीं दिया. थोड़ी देर तड़पने के बाद उस की मृत्यु हो गई. मोहसिन ने पूरे महल्ले में ऐलान कर दिया कि आज उस ने एक आदमी के सिर में चाकू से छेद कर दिया है. जब पुलिस ने मोहसिन को फुसला कर पूछा तो उस ने सहीसही बात बता दी. मोहसिन तो पागल होने से सजा से बच गया लेकिन आफताब को हत्या के दुष्प्रकरण का दोषी घोषित किया गया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

इस प्रकार कानून पागल व्यक्ति को तो इस आधार पर माफ कर देता है कि वह अपराध की प्रकृति और परिणाम सम?ाने में असमर्थ है लेकिन पागल को आपराधिक कार्य के लिए उकसाने वाले व्यक्ति को वही दंड दिया जाएगा मानो उसी ने ही अपराध किया है. इसी नियम के आधार पर हत्या तो मोहसिन ने की थी लेकिन आजीवन कारावास की सजा आफताब को दी गई. अपराध के लिए दोषी घोषित किए जाने के लिए आरोपी का आपराधिक कार्य करने का मकसद और इच्छा होना जरूरी है. विक्षिप्त व्यक्ति की सम?ा इतनी विकसित नहीं होती कि वह कार्य की प्रकृति और परिणाम को सम?ा सके. किसी कार्य को अपराध की श्रेणी में लाने हेतु यह जरूरी है कि आरोपी कार्य की प्रकृति को सम?ो. यदि वह कार्य की प्रकृति को मानसिक रोग के कारण नहीं सम?ाता है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. मानसिक रोगियों के कृत्यों से समाज की रक्षा करने हेतु भी कानून बनाया गया है. इसी कानून का लाभ विनय को दिया गया. द्य बृजेश लाइलाज मानसिक रोग से पीडि़त था.

वह चौराहे पर डंडा लिए खड़ा हुआ आनेजाने वाले राहगीरों को गालियां निकाल रहा था. जैसे ही विनय स्कूटर से चौराहे को पार करने लगा वैसे ही बृजेश ने उस पर हमला कर दिया. वह विनय पर हमला करने ही वाला था कि विनय ने उस के हाथ से डंडा छीनने की कोशिश की. दोनों में छीना?ापटी होने लगी. इसी दौरान विनय ने बृजेश की कलाई मोड़ कर डंडा छीनने के लिए जोर लगाया तो उस के फ्रैक्चर हो गया. बृजेश के पिता ने विनय के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया. यहां विनय को बृजेश के शरीर में फ्रैक्चर करने के अपराध में सजा नहीं होगी. उस ने जो कुछ भी किया अपने शरीर की हिफाजत के लिए किया. यदि वह डंडा नहीं छीनता तो बृजेश उसे घायल कर देता.

कानून ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर की हिफाजत करने का अधिकार दे रखा है. इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय हमलावर को चोट आने पर भी कोई अपराध नहीं बनता है. मानसिक रोगी तो अपने कार्य की प्रकृति और परिणाम नहीं सम?ा पाता है इसलिए उसे तो सजा नहीं दी जा सकती परंतु पीडि़त व्यक्ति को भारतीय दंड विधान की धारा 98 यह अधिकार देती है कि वह अपने शरीर की हिफाजत करे, समुचित बल का प्रयोग करे. द्य दयाभाई छगनभाई ठक्कर के मामले में वकीलों ने इस अभियुक्त को मानसिक रोगी ठहराने की कोशिश की जबकि उस ने अपनी पत्नी को 44 बार छुरा घोंप कर हत्या की थी.

बचाव पक्ष की दलील थी कि वह आपे से बाहर था और वह क्या कर रहा है, निर्णय नहीं ले पा रहा था, ऊपर तक कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. द्य बिहारीलाल के खिलाफ धोखाधड़ी करने का मुकदमा चल रहा था. आर्थिक तंगी की वजह से उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. उस के वकील ने अदालत को बताया कि बिहारीलाल मानसिक रोग का शिकार हो गया है. सो, मुकदमे की कार्रवाई रोक दी जाए. अदालत ने मानसिक रोग विशेषज्ञ से बिहारीलाल की जांच करवाई तो पता लगा कि वह विक्षिप्त हो चुका है. सो अदालत ने उस के खिलाफ चल रहे मुकदमे की कार्रवाई को उस के स्वस्थ होने तक रोक दिया. कानून का नियम है कि आरोपी को अपने बचाव का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए.

मानसिक रोगी मुकदमे की कार्रवाई को सम?ा नहीं सकता, इसलिए उस के स्वस्थ होने तक मुकदमे की कार्रवाई को रोका जाना न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप है. द्य राखी को बचपन से ही मिर्गी के दौरे पड़ते थे. उस के मातापिता किसी तरह उस का विवाह कर अपनी जिम्मेदारी से फारिग होना चाहते थे और उन्होंने उस का विवाह स्वरूपचंद के साथ कर दिया. विवाह के समय इस रहस्य को नहीं खोला गया कि राखी मिर्गी के रोग से ग्रसित है. ससुराल में उसे मिर्गी का दौरा पड़ा तो यह रहस्य खुद ही खुल गया. मिर्गी को असाध्य रोग माना जाता है. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत स्वरूपचंद को अदालत से तलाक लेने का अधिकार है. कानून यह मानता है कि मिर्गी के रोगी के साथ जीवननिर्वाह करना सुरक्षित नहीं है.

– 1993 में लोरेना बौबिट ने अपने पति जोन बौबिट का लिंग काट डाला क्योंकि वह उस के साथ डोमैस्टिक वायलैंस करता था. लोरेना बौबिट को मानसिक रोगी ठहराया गया और सजा नहीं मिली. द्य 2017 में रिचर्ड रोजास नाम के एक अश्वेत व्यक्ति ने न्यूयौर्क में टाइम्स स्क्वायर पर अपनी गाड़ी भीड़ पर चढ़ा दी. जिस में एक पर्यटक समेत कई घायल हो गए पर वह मानसिक रोगी मान लिया गया और जेल की जगह मानसिक अस्पताल में अब इलाज करा रहा है जहां जेल जैसा आतंक नहीं होता.

– वर्ष 1959 के नानावती केस में के एम नानावती को अपनी पत्नी की हत्या करने पर सजा नहीं मिली क्योंकि उसे हत्या के समय मानसिक रोगी माना गया. यह सही है कि विवाह के पक्षकारों की सम?ा इतनी विकसित होनी चाहिए कि वे अपना भलाबुरा सम?ाने में सक्षम हों. यही कारण है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 कानूनी विवाह के लिए कुछ शर्तें अधिरोपित करती है जिन की पूर्ति करना आवश्यक है. उपधारा 2 के अनुसार यदि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्ष चित्तविकृति के परिणामस्वरूप विधिमान्य सहमति देने में समर्थ न हो या फिर वह मानसिक विकार की वजह से विवाह और संतानोत्पति के अयोग्य हो तो उसे विवाह करने में सक्षम नहीं माना गया है.

यदि कोई पक्ष इस नियम का उल्लंघन कर के विवाह करता है तो दूसरा पक्ष अदालत से उस विवाह को शून्य घोषित करने का अनुरोध कर सकता है. मुसलिम कानून में भी इस तरह के प्रावधान हैं. मानसिक रोगियों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु बनाए गए कानूनों की जानकारी बहुत कम लोगों को है. इस के लिए हर राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण 10 अक्तूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाते हैं. इस पूरे सप्ताह न्यायिक अधिकारी मानसिक रोगियों के कल्याण हेतु बनाए गए कानूनों की जानकारियां आम जनता को देते हैं. न्यायिक अधिकारियों के प्रयासों के सार्थक परिणाम भी सामने आने लगे हैं.

विंटर स्पेशल : गोंद के लड्डू ऐसे आसान तरीके से घर पर बनाएं

अक्सर हम अपने घरों में देखते हैं कि सर्दी के मौसम में गोंद के लड्डू बनाएंं जाते हैं जिससे बच्चों और बुढों को ठंड नहीं लगती है.ऐसे में आपको आज गोंद के लड्डू बनाना बताते हैं.

समाग्री

बादाम 1 कप

घी 2 कप

खाने वाली गोंद

गेंहूं के आटा

दरदरी पिसा हुआ शक्कर

विधि

एक कड़ाही गर्म करके कुछ देर तक उसमें बादाम को भूनें, इसमें घी नहीं डालें, अब कड़ाही में घी गर्म करके गोंद को भूनें, जब गोंद फूल जाएं तो उसे ठंड़ा करने के लिए रख दें.

अब उस कड़ाही में आटा डाले और मध्यम आंच पर कुछ देर तक भूने, जब तक आटा लाल न हो जाए, जब आटा भून जाएगा तो उसमें सोंधी खूशबू आने लगती है. अब आटा और गोंद को मिक्स करके रख दें, उसमें शक्कर और घी मिक्स कर दें.

बदाम को भी ग्राइडर में दरदरा पिस लें और गोंद और आटा में मिक्स कर लें, अब उसका गोल-गोल लड्डू बना लें.

इंडियन आइडल 13 को मिले टॉप 10 कंटेस्टेंट , जानें कौन हुआ बाहर

टीवी के रियलिटी शो इंडियन आइडल 13 में आएं दिन कुछ न कुछ देखने को मिलते रहता है, वहीं शो में आने वाले गेस्ट परफॉर्मेंस देखकर जमकर तारीफ करते नहीं थक रहे हैं. पिछले एपिसोड में इस शो की हिस्सा बनी थी एक्ट्रेस हेमा मालिनी और उनकी बेटी ईशा देओल जिन्हें देखकर सभी कंटेस्टेंट ने अच्छा परफॉर्म किया था.

वहीं लेटेस्ट एपिसोड में एक कंटेस्टेंट का सफर यहां से खत्म हो गया है, इस शो में सभी कंटेस्टेंट ने हेमा मालिन की फिल्मों के गाएं और हेमा ने सभी कंटेस्टेंट की जमकर तारीफ करती दिखीं.

इसके साथ ही हेमा ने पुराने किस्से भी शेयर किए जिसे सुनकर सभी ने खूब एंजॉय किया, अब इंडियन आइडल में मात्र 10 कंटेस्टेंट बचे हुए हैं, इन्हीं में से कोई एक फाइनल विनर के लिए.

इंडियन आइडल में दिखाया गया है कि सभी कंटेस्टेंट ने एक से बढ़कर एक पर्फॉर्मेंस दी है. जिसे देखकर फैंस उनकी खूब तारीफ कर रहे हैं.

वहीं गायिका अनुष्का पात्रा को कम नंबर मिले थें, जिस वजह से उन्हें शो से बाहर जाना पड़ा था, हालांकि उनकी विदाई से सभी फैंस काफी ज्यादा दुखी थें, वहीं शो पर भी माहौल थोड़ा गमगीन था.

वहीं हेमा और इशा ने सभी कंटेस्टेंट के साथ जमकर मस्ती करते दिखें.

 

धनिया उत्पादन की उन्नत तकनीक

लेखक- डा. मनीष कुमार सिंह,

विषय वस्तु विशेषज्ञ (उद्यान विज्ञान) ] डा. सोमेंद्र नाथ, विषय वस्तु विशेषज्ञ (शस्य विज्ञान) ध निया मसालों वाली फसलों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है. इस के दानों में पाए जाने वाले वाष्पशील तेल के कारण यह भोज्य पदार्थों को स्वादिष्ठ एवं सुगंधित बनाती है. भारत में इस की खेती मुख्यत: राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में की जाती है. जलवायु और भूमि धनिया की फसल को शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अनुकूल होता है.

बीजों के अंकुरण के लिए 25-26 सैल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है. धनिया शीतोष्ण जलावायु की फसल है. इस की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली अच्छी दोमट भूमि सब से अच्छी मानी जाती है, जिस का पीएच मान 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए. असिंचित दशा में काली भारी भूमि अच्छी होती है. धनिया की फसल क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नहीं करती है. भूमि की तैयारी बोआई के समय सही नमी न हो, तो भूमि की तैयारी पलेवा दे कर करनी चाहिए, जिस से जमीन में जुताई के समय ढेले न बनें. 2 जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. बोआई का समय और तापमान धनिया की फसल रबी मौसम में बाई जाती है. धनिया की बोआई 15 अक्तूबर से 15 नवंबर तक की जाती है. धनिया की फसल के लिए दिन का उपयुक्त तापमान 20 डिगरी सैल्सियस से कम आते ही बोआई शुरू कर देनी चाहिए. फसल चक्र धनियाभिंडी, धनियासोयाबीन, धनियामक्का, धनियामूंग आदि फसल चक्र लाभदायक पाए जाते हैं.

बीज की मात्रा 10-15 किलोग्राम बीज के लिए और 18-20 किलोग्राम बीज पत्ती के लिए प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है. बोआई की विधि और दूरी इस की 2 विधियां प्रचलित हैं :

1. छिड़काव विधि : सुविधाजनक क्यारियां बना कर, बीज को एकसमान मात्रा में छिड़क कर मिट्टी 3 सैंटीमीटर गहरी तह से ढक देते हैं.

2. पंक्ति विधि : अधिक उपज लेने के लिए पंक्तियों में बोआई करना लाभदायक रहता है. पंक्ति की दूरी 10-15 सैंटीमीटर और बीज की गहराई 3 सैंटीमीटर होनी चाहिए. बीज का शोधन बोने से पहले बीजों को पैरों से हलका दबा कर 2 भागों में कर लेना चाहिए. इस के बाद बीज को कार्बंडाजिम थाइरम (2:1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या कार्बंडाजिम 37.5 फीसदी थाइरम 37.5 फीसदी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. खाद्य व उर्वरक कंपोस्ट की खाद 18-20 टन प्रति हेक्टेयर, 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देने पर अच्छी उपज प्राप्त होती है. उक्त उर्वरकों में नाइट्रोजन की एकतिहाई मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के पूर्व आधार खुराक के रूप में दें और बाकी बची नाइट्रोजन की मात्रा को 2 भागों में बांट कर क्रमश: 40-45 दिन पर पौधों की छंटनी करने के बाद एवं दाना बनना शुरू होने के समय सिंचाई के साथ दें. सिंचाई और जल निकास पहली सिंचाई 30 से 35 दिन बाद (पत्ती बनने की अवस्था), दूसरी 50-60 दिन बाद (शाखा निकलने की अवस्था), तीसरी सिंचाई 70-80 दिन बाद (फूल आने की अवस्था) और चौथी सिंचाई 90-100 दिन बाद (बीज बनने की अवस्था) में करनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण व अंत:शस्य क्रियाएं धनिया की फसल में खरपतवार प्रतिस्पर्धा की क्रांतिक अवधि 35-40 दिन है. इस अवधि में खरपतवार की निराई नहीं करते हैं, तो धनिया की उपज 40-45 फीसदी कम हो जाती है. इस में पेंडीमिथलीन 1,000 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 600-700 लिटर पानी में डाल कर छिड़काव करें. फसल संरक्षण बीमारी और रोकथाम उकठा रोग यह रोग पौधों की जड़ में लगता है, जिस से पौधा सूख कर मर जाता है.

रोकथाम : * ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएं.

* बीज की बोआई नवंबर के पहले हफ्ते से ले कर दूसरे हफ्ते करें.

* उकठा रोग के लक्षण दिखाई देने पर कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 2.0 ग्राम प्रति लिटर का छिड़काव करें. चूर्णिल आसिता रोग रोग की शुरुआती अवस्था में पौधों की पत्तियों व टहनियों पर सफेद चूर्ण नजर आता है. रोगी पौधे में बीज या तो बनते ही नहीं हैं या फिर बहुत छोटे बनते हैं.

रोकथाम : * बोआई के पहले बीजों को कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्राइकोडर्मा विरडी 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोआई करें.

* कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी 2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर का छिड़काव करें. तने की सूजन इस बीमारी में पौधे के तने पर सूजन आ जाती है, जिस से पौधा नष्ट हो जाता है.

रोकथाम : * रोगरोधी किस्मों की बोआई करनी चाहिए, जैसे आरसीआर-41, पंत हरीतिमा आदि.

* रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्ट्रैप्टोमाइसिन 0.04 फीसदी (0.4 ग्राम प्रति लिटर) का 20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें. कीट और रोकथाम धनिया की फसल में पौधों पर रस चूसक कीट माहू, चैंपा का प्रकोप होता है, जिस से उपज में 70-80 फीसदी तक भारी कमी आ जाती है.

मुख्यत: पुष्पण व बीज बनते समय माहू कीट का भारी आक्रमण होता है.

रोकथाम : * इस की रोकथाम के लिए औक्सीडेमेटानमिथाइल 25 ईसी प्रति हेक्टेयर- 0.03 (1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर)

* डाइमेथोएट 35 ईसी प्रति हेक्टेयर- 0.20 (2.0 मिलीलिटर प्रति लिटर) 3. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल प्रति हेक्टेयर-0.025 (0.25 मिलीलिटर/लिटर) कटाई हरे धनिया के लिए पौधों की बोआई के 30 दिन बाद कटाई शुरू कर देते हैं. बीज की फसल 120-130 दिन में तैयार हो जाती है.

जैसे ही दाने पीले पड़ने लगें, फसल की कटाई कर देनी चाहिए. उस के बाद हलकी धूप में सुखा कर दाने अलग कर लेते हैं. उपज और भंडारण धनिया का बीज उत्पादन 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. वैज्ञानिक तरीके से व्यावसायिक स्तर पर की गई खेती से 18-20 क्विंटन बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है. पूरी तरह सुखाई हुई धनिया के बीजों को साफ बोरियों में भर कर नमीरहित गोदाम में रखना चाहिए.

धनिया की उन्नत किस्में हिसार सुगंध : यह प्रजाति 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. दाना मध्यम आकार का, अच्छी सुगंध, पौधे की मध्यम ऊंचाई, उकठा रोग, स्टेमगाल प्रतिरोधक. इस की उपज 19-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

पंत हरीतिमा : यह प्रजाति पत्ती व दानों के लिए उगाई जाती है. 130-135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. दाना गोल, सुडौल व छोटा होता है. इस की उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. तना सूजन के प्रति मुक्त है.

कुंभराज : इस की पकने की अवधि 115-120 दिनों की है. इस के दाने छोटे सफेद फूल, उकठा स्टेमगाल प्रतिरोधी, भभूतिया रोग सहनशील प्रजाति है. पौधे मध्यम ऊंचाई के होते हैं और इस की उपज क्षमता 14-15 हेक्टेयर प्रति क्विंटल है.

आरसीआर 728 : यह प्रजाति 125-130 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के दाने छोटे गोल, सफेद फल, भभूतिया सहनशील, उकठा, स्टेमगाल निरोधक, सिंचित, असिंचित एवं हरी पत्तियों के लिए उपयुक्त है. जेडी 1 : यह प्रजाति 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस के दाने गोल मध्यम आकार के, पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल, भभूतिया सहनशील, सिंचित एवं असिंचित के लिए उपयुक्त है.

उपज : सिंचित फसल की वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर 15-18 क्विंटल बीज एवं 100-125 क्विंटल पत्तियों की उपज और असिंचित फसल की 5.7 क्विंटल उपज प्राप्त होती है.

सिंपो एस 33 : यह प्रजाति लंबे समय के लिए होती है. इस की पकने की अवधि 140-150 दिनों की है. इस के दाने बड़े, अंडाकार, पौधे मध्यम ऊंचाई के, उकठा, स्टेमगाल प्रतिरोधक, भभूतिया सहनशील, बीज के लिए यह सब से उपयुक्त प्रजाति है और इस की उपज क्षमता 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

नरेंद्र मोदी का “आशीर्वाद” क्यों जरूरी है

देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली नगर निगम के चुनाव में लाख चाहने और हजार कोशिशों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की और उनकी भारतीय जनता पार्टी के साथ पूरी सेना और विचारधारा को करारी हार का सामना करना पड़ा है. जग जाहिर है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली नगर निगम के आधिपत्य के अथक प्रयास किए. यह राजनीति की क, ख, ग जानने समझने वाले अच्छी तरह समझते हैं. उन्होंने दिल्ली नगर निगम का पूरा स्वरूप ही बदल डाला केंद्र की सारी ताकत लगाकर एक नए स्वरूप में दिल्ली नगर निगम खड़ा करके यह सोचकर चुनाव करवाया गया कि अब तो भारतीय जनता पार्टी की जीत सुनिश्चित है. मगर अब जब चुनाव के परिणाम हमारे सामने हैं यह कहा जा सकता है कि यह करारी हार भारतीय जनता पार्टी की पराजय नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की हार है. इधर,जीत से गदगद आम आदमी पार्टी (आप) ने जीत के पश्चात जो संबोधन दिया है वह कई अर्थों को प्रतिध्वनित कर रहा है उन्होंने नागरिक सुविधाओं में सुधार का वादा किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को यह आत्मविश्वास था कि वह फिर जीत दर्ज करेगी.मगर नतीजा पूर्व सर्वेक्षण में करारी हार के अनुमान के बावजूद 100 से अधिक सीट मिलने पर मतदाताओं का आभार व्यक्त कर अब विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए तैयार खड़ी है.
——————
लोकतंत्र में आशीर्वाद, दुखद और शर्मनाक

——————-
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने नतीजों के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही वह यही है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का “आशीर्वाद” चाहिए. यह आशीर्वाद अनेक अर्थों में आज देश भर में गूंज रहा है और सबसे बड़ा सत्य तो यह है कि लोकतंत्र में किसी मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री का आशीर्वाद किसी भी निर्वाचित संवैधानिक पदाधिकारियों और संस्था को क्यों चाहिए?

अगर देश में लोकतंत्र है तो संस्थाएं स्वयं संविधान के अनुरूप जनहित के कार्य करेंगी. यह आशीर्वाद आखिर है क्या चीज़ और किस महाशक्ति की ओर इशारा करती है. देश के राजनीतिक प्रेक्षक और बौद्धिक वर्ग इस पर विचार करें तो स्पष्ट हो जाता है कि या आशीर्वाद निरंकुशता का पर्याय है. शायद यही कारण है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप’ के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पार्टी कार्यालय में समर्थकों से कहा – वह लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करेंगे और दिल्ली को बेहतर बनाने के लिए सभी दलों से एक साथ आने का आग्रह करेंगे। उन्होंने कहा, ‘हमें दिल्ली की स्थिति में सुधार करना है और भाजपा, कांग्रेस के सहयोग तथा केंद्र और प्रधानमंत्री के आशीर्वाद की भी जरूरत है।’
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया, ‘दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे नकारात्मक पार्टी को हराकर दिल्ली की जनता ने कट्टर ईमानदार और काम करने वाले अरविंद केजरीवाल को जिताया है. हमारे लिए ये सिर्फ जीत नहीं बड़ी जिम्मेदारी है.”
‘आप’ के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा- महज 10 साल पुरानी पार्टी ने देश की सबसे बड़ी पार्टी (भाजपा) को उसी के गढ़ में ‘मात’ दे दी. उन्होंने कहा, ‘परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि ‘आप’ एक बेहद ईमानदार पार्टी है.’ पंजाब के मुख्यमंत्री एवं ‘आप’ के नेता भगवंत मान ने इसे दिल्ली के आम लोगों की जीत बताई. अब सबसे बड़ा सच यही है कि दिल्ली नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है एक ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा है अब इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा यह तो समय के गर्भ में है मगर यह भी सच है कि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के आशीर्वाद का मुद्दा उठाकर यह संकेत दे दिया है कि चाहे दिल्ली की सरकार हो या नगर पाली की सत्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नरम रुख के बगैर वह नहीं चला सकते और यह अपने आप में लोकतंत्र के लिए बड़ी अंधेरी और काली बातें है. यहां यह बताना लाजिमी है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस गुजरात में नरेंद्र मोदी की भाजपा को बहुमत मिली है,कुल मिलाकर तीनों नेताओं को अपने अपने गृह राज्य में मतदाताओं ने विजय दिलाकर सत्ता की चाबी सौंपी है .

ये प्यार न कभी होगा कम -भाग 6: अनाया की रंग लाती कोशिश

अनाया आज रात को पार्टी के मूड में थी. अपने करीबी 5 कलीग को उस ने बुलाया था, जिन में 2 लड़की और 3 लड़के थे.

2 कमरे, छोटा एक हाल, जिस में ड्राइंगरूम और डाइनिंग करीने से सजा था, एक ओपन किचन और किचन के पीछे वाशिंग प्लेस, सबकुछ सौम्या ही संवार कर रखती,भले ही वह अनाया के मना करने के बावजूद इस फ्लैट के 20,000 रुपए किराए में से 8,000 रुपए जबरदस्ती अनाया के कमरे की अलमारी में रख ही देती.

सौम्या यहां पीजी से बेहतर थी और 20 साल की सौम्या से अनाया 5 साल बड़ी होते हुए भी अपनी सारी बातें दोस्त सी सौम्या से साझा करती.

पार्टी की पूरी तैयारी सौम्या ने कर ली थी, और अनाया ने सब की पसंद से स्नैक्स, साइड डिशेज और खाना मंगवा लिया था.

अनाया एक मैरून वेलवेट की मिनी रैप टाइप मिडी में कमाल लग रही थी. इस के ऊपर उस ने स्पाइरल डिजाइन की थ्री क्वार्टर बांह वाली बिसकुट कलर क्रौप टौप पहने थी, जो उस के पीठ तक लटके घुंघराले ब्राउन बालों के साथ खूब मैच कर रहे थे.

सौम्या ने लाइट पिंक कलर की फ्लेयर्ड हाफ स्लीव की नी लेंथ वन पीस पहनी हुई थी, जिस पर लखनऊ की चिकनकारी के काम सजे थे, उस के कंधे तक स्टेप में कटे बाल उस के सौम्य रूप को मौर्डन लुक दे रहे थे.
कमरे की लाइट औलिव रंग के परदे सोफे के क्रीम कवर के साथ शानदार थे.

और इन सब के बीच कुछ रंगीन बल्ब और रोशनियां गजब का आकर्षण पैदा किए हुए थीं.

अनाया के कुछ दोस्त गाने पर थिरक रहे थे, और कुछ अपने फोन पर एकदूसरे के साथ कुछ देखदिखा रहे थे. ये सारे अनाया के मौडलिंग, फोटोग्राफी और स्क्रिप्ट राइटिंग ग्रुप के कलीग थे.

सौम्या को अनाया के इन से इंट्रोड्यूस कराने के बाद से सौम्या भी इन के साथ घुलमिल गई थी.

अचानक अनाया ने कहा, “दोस्तो, अच्छा बताओ, अगर मैं अपनी शादी की बात सोचने का मन बनाऊं तो कैसा रहे?”

“खूब… कौन है वो बदनसीब?” एक फोटोग्राफर लड़के ने कहा.

एक सहेली ने तपाक से कहा, “ये आज से नहीं, कई जमाने सेे है कि लोमड़ी को अंगूर खट्टे लगते हैं.”

ठहाके के बीच अनाया ने अपने मोबाइल में एक तसवीर निकाली और दोस्तों की ओर बढ़ाया. तसवीर देखने के लिए जैसे सब मोबाइल में घुसे चले जा रहे थे. सौम्या रुक गई, वो तो घर की है, देख लेगी आराम से, यद्यपि उत्सुकता उस की भी छलकी जा रही थी.

सौम्या ने खुद को रोका, लेकिन उत्सुकता इतनी थी कि अनाया के दोस्तों के बीच से उस ने अपना चेहरा घुसा कर मोबाइल में झांका.

इधर ग्वालियर में अरुणेश ने आज छुट्टी का दिन देख कर राघव को अपने घर बुला लिया था.

अरुणेश जैसे दबंग, मुंहफट अधिकारी के आगे राघव की तरह शांत, कम बोलने वाले नरम स्वभाव के व्यक्ति की चलेगी क्या. राघव को उन के घर जाना पड़ा.

अरुणेश के घर से वापस आ कर राघव ने अपने बेटे रूपक, उस की बहन और अपनी पत्नी को बैठक में बुलाया और कहा, “अरुणेशजी ने रूपक के लिए यह सारा उपहार भेजा है. शर्टपैंट, सूट का कपड़ा, बेटी के लिए सूट का कपड़ा, और पत्नी के नाम से यह कांजीवरम साड़ी भेजी है, देखो.”

पत्नी आश्चर्य मे थी. पूछा, “क्यों…? और आप ने लिया ही क्यों…?”

राघव ने आगे जोड़ा, “रूपक के लिए सोने की अंगूठी और चैन भी भेजी है. साथ में 21,000 का नेग भी मुझे थमाया. उन्होंने अपनी बेटी के साथ मेरे रूपक का रिश्ता तय कर लिया है. हम मना नहीं कर सकते.”

“अरे, यह क्या बात हुई पापा? मना नहीं कर सकते का क्या मतलब?” अकसर शांत रहने वाला रूपक अब उग्र हो रहा था.

राघव की पत्नी ने कहा, “यह तो अच्छी बात हुई. अफसर है इस का क्या मतलब कि हम ने अपना सर ही गिरवी रख दिया. यह नहीं हो सकता. आप साफ मना कर दीजिए.”

“तुम क्या समझती हो कि मैं ने मना नहीं किया. मेरी यह सारी चीजें लेने की बिलकुल भी इच्छा नहीं थी, मैं ने कहा, ‘मैं पहले रूपक से पूछ लूं.’ कहता है कि तुम बाप हो, कोई दुमछल्ले नहीं. मर्द हो, घर में अपनी बात चलाओ, मिमियाते रहते हो.

“कहता है कि वह कुछ नहीं सुनेगा. शादी उस की बेटी से ही करनी पड़ेगी. अगर उस की इच्छा से शादी हुई, तो वह हमें मालामाल कर देगा.”

“नहीं पापा, आप उस की बात ना मानें. मैं यहां शादी नहीं कर सकता.”

“पर, एक बार सोच सकते हो. ऐसा भी बुरा क्या है. आज नहीं तो कल एक अच्छी लड़की से तुम्हारी शादी होनी ही है, तो अरुणेशजी की बेटी से हुई तो बुरा क्या.”

पत्नी ने समझाया, “ऐसे लोग सही नहीं होते. इन से रिश्ता करना जिंदगीभर का दुख मोल लेना है. पिता का व्यवहार ऐसा है तो बेटी को कौन संभाले. शादी का रिश्ता जबरदस्ती तो नहीं हो सकता.

“रही बात नौकरी की, तो आप समय से पहले ही रिटायरमेंट ले लेना, लेकिन रूपक के सिर पर यह परेशानी चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं. आप कल ही उन का सामान वापस कर देना.”

अरुणेश जैसे लोग किसी की ‘न’ को अपना तौहीन ही नहीं समझते, अपनी सत्ता पर कटार की वार समझते हैं. राघव ने जैसेतैसे सामान वापस किया और अपनी मजबूरी बता कर चले आए.

अरुणेश का दिमाग पिघला हुआ गरम लोहा बन चुका था. चाहे यह दिमाग अब जो कर ले, चाहे वह जो बन जाए.

अरुणेश शादी के मामले को ले कर अनाया से अब बात करने लगे कि रूपक को फांसने के लिए वह क्याक्या कर सकती है, ताकि रूपक अनाया के सिवा दूसरा कोई विकल्प ना सोच पाए.

अनाया के ऊपर उस के मम्मीपापा की ओर से लगातार दबाव बनाया जा रहा था. अनाया चुपचाप सुनती और सहती. सौम्या सब समझ रही थी. जाने कैसे सौम्या और अनाया के बीच एक तनाव सा बनता जा रहा था.

एक दिन अनाया झल्ला पड़ी. कहा, “यह शादी नहीं हो सकती. आप लाख चाहो, मैं नहीं करूंगी यह शादी, लड़का किसी और का प्यार है , मेरी तो जिंदगी नरक हो जाएगी. मेरे लिए क्या एक ही लड़का रखा है. अब फोन मत करना, वरना ब्लौक कर दूंगी आप दोनों को.”

अरुणेश ने बेटी से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन वे आपे में रहे भी नहीं. उन का दिमाग बेहिसाब तरीके से चलता था. उन्होंने सोचा कि अभी लड़के को छोड़ दिया जाए, मितेश की बेटी के बारे में पता लगाया जाए. आखिर ऐसा क्या हुआ कि अनाया को उस लड़के के बारे में इतनी छुपी हुई बात साफ पता चली. अरुणेश ने पत्नी शीना के साथ मशवरा किया.

शीना इतनी तेज दिमाग की तो नहीं थी, लेकिन पति की खुराफात में उसे मजा आता था.

आपस में कुछ तय कर के शीना ने गौरव को फोन किया. कहा, “बेटा, अपनी बेटी के लिए हम तो एक लड़का ढूंढ़ चुके, लेकिन सौम्या भी अपनी बेटी ही है, लगे हाथ अभी बहुत सारे लड़कों की खबर आई है, पर बहुत पहले सौम्या किसी लड़के को पसंद करती थी, कहीं उस के मन में अभी भी वही हो, तुम को सब मानते हैं. तुम जरा पता करो ना. अभी वह लड़का क्या करता है और अभी भी दोनों एकदूसरे को चाहते हैं या नहीं? अनाया की शादी के बाद सौम्या के स्नातक पूरा करते ही अगर वह चाहे तो उस की पसंद से शादी तय कर देंगे.”

गौरव ने कहा, “बड़ी मां, पूछना क्या है? वह लड़का तो ग्वालियर का ही है. रूपक नाम है उस का, पढ़लिख कर वह प्रोफैसर बन गया है. जहां तक मुझे स्निग्धा से पता चला है, दोनों अब भी एकदूसरे को पसंद करते हैं.”

“अच्छा, फिर तो बड़ी अच्छी बात है. चलो, देखते हैं फिर.”

बात निकल आई थी, अरुणेश को बात पता चल गई.

गौरव ने खुश हो कर उसी रात अनाया को फोन किया और उस की मां से हुई सारी बातें उसे बताईं.

अनाया ने दुखी होते हुए गौरव से कहा, “कुछ पता नहीं चल रहा सौम्या का. 2 महीने पहले हम ने रात को एक पार्टी रखी थी अपने दोस्तों के साथ. उसी दिन पापा ने मुझे उस लड़के की तसवीर भेजी थी, जिस से मेरी शादी उन्होंने तय करनी चाही थी. तसवीर मैं ने सभी को दिखाई. शायद सौम्या ने भी देखी. उस रात उसे बुखार आया और यह बुखार 5 दिन तक रहा. उस के बाद से ही जाने क्या उस के और मेरे बीच में खो सा गया है. लगता है, जैसे दिल की डोर कमजोर हो गई है.
तुम सौम्या से बात करो, प्लीज. उस ने मुझे बताया कुछ भी नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया है. क्या सौम्या उस लड़के से प्यार करती है, जिस का नाम रूपक है?”

“हां, रूपक है, लेकिन क्यों?”

“पापा ने जबरदस्ती मेरी जिस से शादी तय करने की बात सोच रखी है, वह भी रूपक ही है.”

“हो सकता है कि वह कोई दूसरा रूपक हो.”

“हो सकता था, पर है नहीं. जब से उस ने मेरे मोबाइल पर उस लड़के की तसवीर देखी है, वह उदासी में रहने लगी थी और एक दिन मैं ने उसे सोएसोए उस के अपने मोबाइल में एक तसवीर को देखते हुए पाया, जो रूपक की ही तसवीर थी. मैं तब से पूरी तरह कंफर्म हो गई. तुम सौम्या से बात करो कि मेरी तरफ से वह निश्चिंत हो जाए. मैं उस से इस मामले में खुल कर बोल नहीं सकती. उसे मेरे पापा पर भरोसा नहीं है. उसे ऐसा लगता है कि पापा की जबरदस्ती के आगे किसी की नहीं चलेगी.”

“सोचती तो वह ठीक ही है. बड़े पापा जैसे लोग दूसरों के लिए बोझ जैसे होते हैं. बुरा नही मानना अनाया. वैसे, रूपक तो जीवाजी कालेज में प्रोफैसर हो गया है, वह चाहे तो अपना फैसला ले सकता है. चलो, मैं उस से बात करता हूं. पहले रूपक से बात करना सही रहेगा. सौम्या से बाद में बात करूंगा.”

गौरव ने स्निग्धा के जरीए रूपक से बात की.

सौम्या समझने लगी थी कि गरीब और मजबूर को अपना हाजमा ठीक रखना ही पड़ता है, क्योंकि बहुत सारी अनचाही बातें उसे पचानी पड़ती ही हैं.

इस घर में उस के पिता सब से ज्यादा आर्थिक रूप से मजबूर ही तो हैं. उसे अनाया पर गुस्सा बिलकुल भी नहीं है. वह तो सौम्या को बहुत प्यार करती है. वह अपनी जिंदगी को कोसती है. रूपक को चाहती है, लेकिन उसे बिलकुल हक नहीं है कि वह दिल खोल कर इस बात को सब के सामने स्वीकार कर सके. और रूपक, वह क्या कर रहा है? प्रेम की गहरी बातों को, अपने व्यक्तित्व को वह छोड़ चुका है.

“कोई बात नहीं. वह अपनी जिंदगी इस तरह बिताएगी कि रूपक शर्मसार रहे.
उस ने भौतिक सुखों के लिए प्रेम जैसे विलक्षण गुण को ठुकरा दिया.

और कुछ दिनों बाद अचानक रूपक को अपनी कंपनी में आया देख अनाया एक बेहद खूबसूरत सरप्राइज से रूबरू थी. आधे दिन की छुट्टी ले कर रूपक के साथ वह निकल गई.

दोपहर 3 बजे तक वे दोनों मुंबई के कई जगहों पर घूमते रहे. शाम 4 बजे अनाया ने रूपक को अपने फ्लैट में पहुंचा दिया और रात 8 बजे तक के लिए औफिस चली गई.

सौम्या अपने कमरे में कुरसी पर बैठ पढ़ाई की टेबल पर छूटे हुए नोट्स लिखने में जुटी थी. उसे एहसास हुआ कि पीछे से उस के कमरे का दरवाजा खोल कर कोई अंदर आया है.

सौम्या ने कलम चलाते हुए ही कहा, “दीदी, आप की कंपनी वाले आ कर अब मुझे ही पीट जाएंगे. एक तो वे जल्दी छुट्टी देते नहीं हैं. और आप ने पहले से ही मेरी तबीयत खराब देख कर बहुत सारी छुट्टियां ले चुकी हैं.”

किसी ने कहा, “तुम्हारे लिए तो जान हाजिर है, छुट्टी क्या बड़ी बात है.”

सौम्या चौंकते हुए पीछे मुड़ी. रूपक, सच में पीछे तुम ही खड़े थे.

सौम्या को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं था. हो सकता है कि रूपक सौम्या से आखिरी बार मिलने आया हो. उस ने अपने दिल को सख्त कर लिया. पक्का है कि वह नहीं रोएगी, न ही टूटेगी.

पर, यह सब धरा ही रह गया. रूपक सौम्या से लग कर खड़ा हो गया था और उस की पीठ पर अपना एक हाथ रख दिया. जाने यह कैसी युगों की बिछड़ी हुई आसक्ति थी.

सौम्या ने रूपक की कमर पर अपना चेहरा टिका दिया और फूटफूट कर रो पड़ी.

“मैं सिर्फ तुम्हारा हूं सुमी. मेरी प्यारी सुमी. तुम ने मुझ पर अपना विश्वास बनाए रखा. मुझे पता चला है कि तुम उदास थी, चिंतित थी.”

“अनाया दी का दिल मैं तोड़ नहीं सकती थी. उस ने अपने मम्मीपापा के खिलाफ जा कर मुझे इस अजनबी शहर में सहारा दिया है. मुझे अपना लगाव दिया है. तो क्यों न चिंतित होऊं?” सौम्या उदास सी कह रही थी.

“अरे पगली, अनाया ने ही मुझे तुम्हारे पास पहुंचाया है. मैं तो पहले उस से ही मिलने गया था, ताकि उसे अपनी और तुम्हारी सचाई बता सकूं. मगर उस ने ही पहले मुझे तुम्हारी बात बताई और मुझ से शादी करने से साफ इनकार कर दिया.”

सौम्या ने एक मीठी मुसकान के साथ विश्वास भरा दिल संजो कर रूपक की आंखों में देखा.

अनाया के वापस आने पर तीनों ने एकसाथ खूबसूरत शाम बिताई और डिनर के बाद रूपक ग्वालियर जाने के लिए रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़ा.

अब फिर से गौरव की जिम्मेदारी निभाने की बारी आ चुकी थी.

गौरव ने अर्णव को वीडियो कौल किया. अर्णव ने अनाया को जोड़ा. अनाया ने स्निग्धा और सौम्या को. अर्णव गौरव और अनाया ने यह निर्णय लिया कि रूपक और सौम्या को मिलाने की कोशिश की जाए. जब उन्होंने खुद में बात साफ कर ली, तो अनाया ने रूपक को भी इस कौल में जोड़ने की सलाह दी.

और फिर एक दिन यह हो गया, जो अरुणेश और जितेश कभी सोच भी नहीं सकते थे. उन के बच्चों ने यह साबित कर दिया कि दुनिया का दीन यानी महानता इनसान के ईमान में है, रुतबे और पैसे की औकात में नहीं.

रूपक ने ही तय किया था कि फिर कहीं कोई उलझन आ जाए, इस से पहले सौम्या को वह अपना लेना चाहेगा.

सौम्या शादी के बाद आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखेगी और कैरियर बनाने में रूपक उस की पूरी मदद करता रहेगा.

और फिर वह दिन आया, जब रूपक की शादी की पार्टी में अरुणेश, जितेश, शीना,आयशा मेहमान बने, सिर्फ खाने का आनंद ही ले पाए. शादी और पार्टी की पूरी व्यवस्था का भार अर्णव, गौरव और अनाया ने उठा रखा था. चाहे बिंदास अनाया हो या जिम्मेदार स्निग्धा, दमदार अर्णव हो या सुलझा हुआ गौरव, सभी रूपक और सौम्या पर इस तरह प्यार बरसा रहे थे कि अरुणेश और जितेश ठगे से रह गए.

रूपक और सौम्या जब वरवधू के वेश में सिंहासन पर बैठे थे, गौरव सभी भाईबहनों के साथ आया और उन दोनों को तोहफा देते हुए कहा, “यह प्यार ना कभी होगा कम.”

सौम्या और रूपक ने अर्णव, गौरव, अनाया और स्निग्धा को गले से लगा लिया.

मितेश, नलिनी, रूपक के मम्मीपापा और बहन इन लोगों की एकता पर निहाल थे.

फर्ज : क्या उस्मान निभा पाया अपने बेटे होने का फर्ज

जयपुर के सिटी अस्पताल में उस्मान का इलाज चलते 15 दिनों से भी ज्यादा हो गए थे लेकिन उस की तबीयत में सुधार नहीं हो रहा था.

आईसीयू वार्ड के सामने परेशान सरफराज लगातार इधर से उधर चक्कर लगा रहे थे. बेचैनी में कभी डाक्टरों से अपने बेटे की जिंदगी की भीख मांगते तो कभी फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लग जाते.

उधर, अस्पताल के एक कोने में खड़ी उस्मान की मां फरजाना भी बेटे की सलामती के लिए नर्सों की खुशामद कर रही थी. तभी आईसीयू वार्ड से डाक्टर बाहर निकले तो सरफराज उन के पीछेपीछे दौड़े और उन के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहने लगे, ‘‘डाक्टर साहब, मेरे उस्मान को बचा लो. कुछ भी करो. उस के इलाज में कमी नहीं होनी चाहिए.’’

डाक्टर ने उन्हें उठा कर तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘देखिए अंकल, हम आप के बेटे को बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उस की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है. औपरेशन और दवाओं को मिला कर कुल 5 लाख रुपए का खर्चा आएगा.’’

 

‘‘कैसे भी हो, आप मेरे बेटे को बचा लो, डाक्टर साहब. मैं 1-2 दिनों में पैसों का इंतजाम करता हूं,’’ सरफराज ने हाथ जोड़ कर कहा.

काफी भागदौड़ के बाद भी जब सरफराज से सिर्फ 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका तो निराश हो कर उस ने बेटी नजमा को मदद के लिए दिल्ली फोन मिलाया. उधर से फोन पर दामाद अनवर की आवाज आई.

‘‘हैलो अब्बू, क्या हुआ, कैसे फोन किया?’’

‘‘बेटा अनवर, उस्मान की हालत ज्यादा ही खराब है. उस के औपरेशन और इलाज के लिए 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. हम से 2 लाख रुपयों का ही इंतजाम हो सका. बेटा…’’ और सरफराज का गला भर आया.

इस के पहले कि उन की बात पूरी होती, उधर से अनवर ने कहा, ‘‘अब्बू, आप बिलकुल फिक्र न करें. मैं तो आ नहीं पाऊंगा, लेकिन नजमा कल सुबह पैसे ले कर आप के पास पहुंच जाएगी.’’

दूसरे दिन नजमा पैसे ले कर जयपुर पहुंच गई. आखिरकार सफल औपरेशन के बाद डाक्टरों ने उस्मान को बचा लिया.

धीरेधीरे 10 साल गुजर गए. इस बीच सरफराज ने गांव की कुछ जमीन बेच कर उस्मान को इंजीनियरिंग की पढ़ाई करवाई और मुंबई एअरपोर्ट पर उस की नौकरी लग गई. उस ने अपने साथ काम करने वाली लड़की रेणु से शादी भी कर ली और ससुराल में ही रहने लगा.

इस के बाद उस्मान का मांबाप से मिलने आना बंद हो गया. कई बार वे बीमार हुए. उसे खबर भी दी, फिर भी वह नहीं आया. ईद, बकरीद तक पर भी वह फोन पर भी मुबारकबाद नहीं देता.

एक दिन सुबह टैलीफोन की घंटी बजी. सरफराज ने फोन उठाया उधर से उस्मान बोल रहा था, ‘‘हैलो अब्बा, कैसे हैं आप सब लोग? अब्बा, मुझे एक परेशानी आ गई है. मुझे 10 लाख रुपयों की सख्त जरूरत है. मैं 1-2 दिनों में पैसे लेने आ जाता हूं.’’

‘‘बेटा, तेरे औपरेशन के वक्त नजमा से उधार लिए 3 लाख रुपए चुकाने ही मुश्किल हो रहा है. ऐसे में मुझ से 10 लाख रुपयों का इंतजाम नहीं हो सकेगा. मैं मजबूर हूं बेटा,’’ सरफराज ने कहा.

इस के आगे सरफराज कुछ बोलते, उस्मान गुस्से से भड़क उठा, ‘‘अब्बा, मुझे आप से यही उम्मीद थी. मुझे पता था कि आप यही कहोगे. आप ने जिंदगी में मेरे लिए किया ही क्या है?’’ और उस ने फोन काट दिया.

अपने बेटे की ऐसी बातें सुन कर सरफराज को गहरा सदमा लगा. वे गुमसुम रहने लगे. घर में पड़े बड़बड़ाते रहते.

एक दिन अचानक शाम को सीने में दर्द के बाद वे लड़खड़ा कर गिर पड़े तो बीवी फरजाना ने उन्हें पलंग पर लिटा दिया. कुछ देर बाद आए डाक्टर ने जांच की और कहा, ‘‘चाचाजी की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हें बड़े अस्पताल ले जाना पड़ेगा.’’

डाक्टर साहब की बात सुन कर घबराई फरजाना ने बेटे उस्मान को फोन कर बीमार बाप से मिलने आने की अपील करते हुए आखिरी वक्त होने की दुहाई भी दी.

जवाब में उधर से फोन पर उस्मान ने अम्मी से काफी भलाबुरा कहा. गुस्से में भरे उस्मान ने यह तक कह दिया, ‘‘आप लोगों से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं है. आइंदा मुझे फोन भी मत करना.’’

यह सुन कर फरजाना पसीने से लथपथ हो गई. वो चकरा कर जमीन पर बैठ गई. कुछ देर बाद अपनेआप को संभाल कर उस ने नजमा को दिल्ली फोन किया, ‘‘हैलो नजमा, बेटी, तेरे अब्बा की तबीयत बहुत खराब है. तू अनवर से इजाजत ले कर कुछ दिनों के लिए यहां आ जा. तेरे अब्बा तुझे बारबार याद कर रहे हैं.’’

नजमा ने उधर से फौरन जवाब दिया, ‘‘अम्मी आप बिलकुल मत घबराना. मैं आज ही शाम तक अनवर के साथ आप के पास पहुंच जाऊंगी.’’

शाम होतेहोते नजमा और अनवर जब  घर पर पहुंचे तो खानदान के लोग सरफराज के पलंग के आसपास बैठे थे. नजमा भाग कर अब्बा से लिपट गई. दोनों बापबेटी बड़ी देर तक रोते रहे.

‘‘देखो अब्बा, मैं आ गई हूं. आप अब मेरे साथ दिल्ली चलोगे. वहां हम आप को बढि़या इलाज करवाएंगे. आप बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे,’’ नजमा ने रोतेरोते कहा.

आंखें खोलने की कोशिश करते सरफराज बड़ी देर तक नजमा के सिर पर हाथ फेरते रहे. आंखों से टपकते आंसुओं को पोंछ कर बुझी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘नजमा बेटी, अब मैं कहीं नहीं जाऊंगा. अब तू जो आ गई है. मुझे सुकून से मौत आ जाएगी.’’

‘‘ऐसा मत बोलो, अब्बा. आप को कुछ नहीं होगा,’’ यह कह कर नजमा ने अब्बा का सिर अपनी गोद में रख लिया. अम्मी को बुला कर उस ने कह दिया, ‘‘अम्मी आप ने खूब खिदमत कर ली. अब मुझे अपना फर्ज अदा करने दो.’’

उस के बाद तो नजमा ने अब्बा सरफराज की खिदमत में दिनरात एक कर दिए. टाइम पर दवा, चाय, नाश्ता, खाना, नहलाना और घंटों तक पैर दबाते रहना, सारी रात पलंग पर बैठ कर जागना उस का रोजाना का काम हो गया.

कई बार सरफराज ने नजमा से ये सब करने से मना भी किया पर नजमा यही कहती, ‘‘अब्बा, आप ने हमारे लिए क्या नहीं किया. आप भी हमें अपने हाथों से खिलाते, नहलाते, स्कूल ले जाते, कंधों पर बैठा कर घुमाते थे. सबकुछ तो किया. अब मेरा फर्ज अदा करने का वक्त है. मुझे मत रोको, अब्बा.’’

बेटी की बात सुन कर सरफराज चुप हो गए. इधर, सरफराज की हालत दिन पर दिन गिरती चली गई. उन का खानापीना तक बंद हो गया.

एक दिन दोपहर के वक्त नजमा अब्बा का सिर गोद में ले कर चम्मच से पानी पिला रही थी. तभी घर के बाहर कार के रुकने की आवाज सुनाई दी.

कुछ देर बाद उस्मान एक वकील को साथ ले कर अंदर आया. उस के हाथ में टाइप किए हुए कुछ कागजात थे. अचानक बरसों बाद बिना इत्तला दिए उस को घर आया देख कर सभी खुश हो रहे थे.

दरवाजे से घुसते ही वह लपक कर सरफराज के नजदीक जा कर आवाज देने लगा, ‘‘अब्बा, उठो, आंखे खोलो, इन कागजात पर दस्तखत करना है. उठो, उठो,’’ यह कह कर उस ने हाथ पकड़ कर उन्हें पैन देना चाहा.

नजमा ने रोक कर पूछा, ‘‘भाईजान, ये कैसे कागजात हैं?’’

लेकिन वह किसी की बिना सुने अब्बा को आवाजें देता रहा.

सरफराज ने आंखें खोलीं. उस्मान की तरफ एक नजर देखा. और अचानक उन के हाथ में दिए कागजात और पैन नीचे गिर पड़े. उन का हाथ बेदम हो कर लटक गया. यह देख नजमा चिल्लाई, ‘‘अब्बा, अब्बा, हमें अकेला छोड़ कर मत जाओ.’’ और घर में कुहराम मच गया. नजमा बोली, ‘‘भाईजान जो मकान आप अपने नाम कराना चाहते थे वह तो 10 साल पहले अब्बू ने आप के नाम कर दिया था. आप अब फिक्र न करो.’’

ये सब देख कर उस्मान ने फुरती से अब्बा के बिना दस्तखत रह गए कागजात उठाए और वकील के साथ बिना पीछे देखे बाहर निकल गया.

फरजाना, नजमा और अनवर भाग कर पीछेपीछे आए लेकिन तब तक कार रवाना हो गई.

तीनों दरवाजे में खड़े कार की पीछे उड़ी धूल के गुबार में चकाचौंधभरी शहरी मतलब परस्त दुनिया की आंधी में फर्ज और रिश्तों की मजबूत दीवार को भरभरा कर गिरते हुए देखते रह गए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें