कानून मानसिक रोग से पीडि़त व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध को इस आधार पर माफ करता है कि वह अपराध की प्रकृति और परिणाम सम?ाने में असमर्थ है पर उसे उकसाने वाले व्यक्ति को वही दंड दिया जाता है. मानसिक रोगियों के अपराध को ले कर कानून में क्या कानूनी उपचार हैं, जानें. अखिलेश प्रसाद सिंह सेवानिवृत्त प्राचार्य थे. उन के छोटे पुत्र विमलेश का दिमागी संतुलन ठीक नहीं था. छोटेबड़े सभी डाक्टरों से इलाज करवा लिया लेकिन अपेक्षानुरूप सुधार नहीं हुआ. वे विमलेश के भविष्य को ले कर चिंतित थे. अभी तो वह 17 साल का ही हुआ था.
अखिलेश प्रसाद सेवेरे अखबार पढ़ रहे थे कि एक पुलिस इंस्पैक्टर दलबल सहित उन के मकान पर आ धमका. जैसे ही इंस्पैक्टर ने उन्हें बताया कि विमलेश ने भरे बाजार पत्थर मार कर एक दुकानदार का सिर फोड़ दिया है. दुकानदार की रिपोर्ट पर वे विमलेश को गिरफ्तार करने आए हैं. बेचारे अखिलेश प्रसाद के तो हाथों के तोते उड़ गए. कुछ कहते नहीं बना. उस समय विमलेश अपने कमरे में बड़े आराम से अकेला कैरम खेल रहा था. उस ने पुलिस को देख कर तालियां बजानी शुरू कर दीं. पुलिस इंस्पैक्टर विमलेश को सम?ाबु?ा कर थाने में ले गए. जब विमलेश को अदालत में पेश किया तो विमलेश के वकील ने डाक्टर का प्रमाणपत्र पेश कर दलील दी कि विमलेश को मानसिक रोगी घोषित किया गया है.
इसलिए उसे सजा नहीं दी जा सकती. अदालत ने वकील की दलील को मानते हुए कहा कि दुकानदार को पत्थर मारने का अपराध करते समय विमलेश विकृतचित्त था. वह अपनी विकृतत्ता की वजह से सोचनेसम?ाने की शक्ति खो चुका था. उसे कार्य के परिणाम की जानकारी नहीं थी. इसलिए विमलेश का केस खारिज कर दिया गया. भारतीय दंड संहिता की धारा 84 में प्रावधान किया गया है कि ‘कोई बात अपराध नहीं है जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है जो उसे करते समय चित्तविकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति या जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ है.’ मनुष्य की सोचनेसम?ाने की शक्ति दिमाग में संकलित होती है.
जो व्यक्ति दिमाग की बीमारी से इस हद तक पीडि़त हो कि उस का दिमाग ही फेल हो चुका हो तो ऐसे व्यक्ति को सजा के दायरे में बाहर रखना ही उचित है. पागल को तो सजा नहीं दी जा सकती, परंतु पागल को अपराध करने के लिए दुष्प्रेरित करने वाले व्यक्ति को तो अपराध की सजा भुगतनी ही होगी. इसी कानून के तहत आफताब को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. द्य आफताब के पड़ोस में मोहसिन नामक एक पागल व्यक्ति रहता था. आफताब का किराएदार का मकान खाली नहीं कर रहा था. दोतीन बार दोनों में ?ागड़ा भी हो चुका था. वह किसी भी तरह मकान खाली करवाना चाहता था. एक दिन उस ने मोहसिन को मिठाई खिलाई और उस से कहा कि यदि वह इस चाकू से उस कमरे में सो रहे व्यक्ति के सिर में छेद कर दे तो उसे रोजाना मिठाई खाने को मिलेगी. मोहसिन मानसिक रोगी था.
वह एक मिनट में इस काम के लिए तैयार हो गया. उस ने नींद में सो रहे किराएदार को जोर से चाकू मारा. अचानक हुए इस घटनाक्रम ने किराएदार को संभलने का कोई मौका नहीं दिया. थोड़ी देर तड़पने के बाद उस की मृत्यु हो गई. मोहसिन ने पूरे महल्ले में ऐलान कर दिया कि आज उस ने एक आदमी के सिर में चाकू से छेद कर दिया है. जब पुलिस ने मोहसिन को फुसला कर पूछा तो उस ने सहीसही बात बता दी. मोहसिन तो पागल होने से सजा से बच गया लेकिन आफताब को हत्या के दुष्प्रकरण का दोषी घोषित किया गया और आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.
इस प्रकार कानून पागल व्यक्ति को तो इस आधार पर माफ कर देता है कि वह अपराध की प्रकृति और परिणाम सम?ाने में असमर्थ है लेकिन पागल को आपराधिक कार्य के लिए उकसाने वाले व्यक्ति को वही दंड दिया जाएगा मानो उसी ने ही अपराध किया है. इसी नियम के आधार पर हत्या तो मोहसिन ने की थी लेकिन आजीवन कारावास की सजा आफताब को दी गई. अपराध के लिए दोषी घोषित किए जाने के लिए आरोपी का आपराधिक कार्य करने का मकसद और इच्छा होना जरूरी है. विक्षिप्त व्यक्ति की सम?ा इतनी विकसित नहीं होती कि वह कार्य की प्रकृति और परिणाम को सम?ा सके. किसी कार्य को अपराध की श्रेणी में लाने हेतु यह जरूरी है कि आरोपी कार्य की प्रकृति को सम?ो. यदि वह कार्य की प्रकृति को मानसिक रोग के कारण नहीं सम?ाता है तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. मानसिक रोगियों के कृत्यों से समाज की रक्षा करने हेतु भी कानून बनाया गया है. इसी कानून का लाभ विनय को दिया गया. द्य बृजेश लाइलाज मानसिक रोग से पीडि़त था.
वह चौराहे पर डंडा लिए खड़ा हुआ आनेजाने वाले राहगीरों को गालियां निकाल रहा था. जैसे ही विनय स्कूटर से चौराहे को पार करने लगा वैसे ही बृजेश ने उस पर हमला कर दिया. वह विनय पर हमला करने ही वाला था कि विनय ने उस के हाथ से डंडा छीनने की कोशिश की. दोनों में छीना?ापटी होने लगी. इसी दौरान विनय ने बृजेश की कलाई मोड़ कर डंडा छीनने के लिए जोर लगाया तो उस के फ्रैक्चर हो गया. बृजेश के पिता ने विनय के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया. यहां विनय को बृजेश के शरीर में फ्रैक्चर करने के अपराध में सजा नहीं होगी. उस ने जो कुछ भी किया अपने शरीर की हिफाजत के लिए किया. यदि वह डंडा नहीं छीनता तो बृजेश उसे घायल कर देता.
कानून ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने शरीर की हिफाजत करने का अधिकार दे रखा है. इस अधिकार का इस्तेमाल करते समय हमलावर को चोट आने पर भी कोई अपराध नहीं बनता है. मानसिक रोगी तो अपने कार्य की प्रकृति और परिणाम नहीं सम?ा पाता है इसलिए उसे तो सजा नहीं दी जा सकती परंतु पीडि़त व्यक्ति को भारतीय दंड विधान की धारा 98 यह अधिकार देती है कि वह अपने शरीर की हिफाजत करे, समुचित बल का प्रयोग करे. द्य दयाभाई छगनभाई ठक्कर के मामले में वकीलों ने इस अभियुक्त को मानसिक रोगी ठहराने की कोशिश की जबकि उस ने अपनी पत्नी को 44 बार छुरा घोंप कर हत्या की थी.
बचाव पक्ष की दलील थी कि वह आपे से बाहर था और वह क्या कर रहा है, निर्णय नहीं ले पा रहा था, ऊपर तक कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. द्य बिहारीलाल के खिलाफ धोखाधड़ी करने का मुकदमा चल रहा था. आर्थिक तंगी की वजह से उस का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. उस के वकील ने अदालत को बताया कि बिहारीलाल मानसिक रोग का शिकार हो गया है. सो, मुकदमे की कार्रवाई रोक दी जाए. अदालत ने मानसिक रोग विशेषज्ञ से बिहारीलाल की जांच करवाई तो पता लगा कि वह विक्षिप्त हो चुका है. सो अदालत ने उस के खिलाफ चल रहे मुकदमे की कार्रवाई को उस के स्वस्थ होने तक रोक दिया. कानून का नियम है कि आरोपी को अपने बचाव का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए.
मानसिक रोगी मुकदमे की कार्रवाई को सम?ा नहीं सकता, इसलिए उस के स्वस्थ होने तक मुकदमे की कार्रवाई को रोका जाना न्यायिक सिद्धांतों के अनुरूप है. द्य राखी को बचपन से ही मिर्गी के दौरे पड़ते थे. उस के मातापिता किसी तरह उस का विवाह कर अपनी जिम्मेदारी से फारिग होना चाहते थे और उन्होंने उस का विवाह स्वरूपचंद के साथ कर दिया. विवाह के समय इस रहस्य को नहीं खोला गया कि राखी मिर्गी के रोग से ग्रसित है. ससुराल में उसे मिर्गी का दौरा पड़ा तो यह रहस्य खुद ही खुल गया. मिर्गी को असाध्य रोग माना जाता है. हिंदू विवाह अधिनियम के तहत स्वरूपचंद को अदालत से तलाक लेने का अधिकार है. कानून यह मानता है कि मिर्गी के रोगी के साथ जीवननिर्वाह करना सुरक्षित नहीं है.
– 1993 में लोरेना बौबिट ने अपने पति जोन बौबिट का लिंग काट डाला क्योंकि वह उस के साथ डोमैस्टिक वायलैंस करता था. लोरेना बौबिट को मानसिक रोगी ठहराया गया और सजा नहीं मिली. द्य 2017 में रिचर्ड रोजास नाम के एक अश्वेत व्यक्ति ने न्यूयौर्क में टाइम्स स्क्वायर पर अपनी गाड़ी भीड़ पर चढ़ा दी. जिस में एक पर्यटक समेत कई घायल हो गए पर वह मानसिक रोगी मान लिया गया और जेल की जगह मानसिक अस्पताल में अब इलाज करा रहा है जहां जेल जैसा आतंक नहीं होता.
– वर्ष 1959 के नानावती केस में के एम नानावती को अपनी पत्नी की हत्या करने पर सजा नहीं मिली क्योंकि उसे हत्या के समय मानसिक रोगी माना गया. यह सही है कि विवाह के पक्षकारों की सम?ा इतनी विकसित होनी चाहिए कि वे अपना भलाबुरा सम?ाने में सक्षम हों. यही कारण है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 कानूनी विवाह के लिए कुछ शर्तें अधिरोपित करती है जिन की पूर्ति करना आवश्यक है. उपधारा 2 के अनुसार यदि विवाह के समय दोनों पक्षकारों में से कोई पक्ष चित्तविकृति के परिणामस्वरूप विधिमान्य सहमति देने में समर्थ न हो या फिर वह मानसिक विकार की वजह से विवाह और संतानोत्पति के अयोग्य हो तो उसे विवाह करने में सक्षम नहीं माना गया है.
यदि कोई पक्ष इस नियम का उल्लंघन कर के विवाह करता है तो दूसरा पक्ष अदालत से उस विवाह को शून्य घोषित करने का अनुरोध कर सकता है. मुसलिम कानून में भी इस तरह के प्रावधान हैं. मानसिक रोगियों के अधिकारों की सुरक्षा हेतु बनाए गए कानूनों की जानकारी बहुत कम लोगों को है. इस के लिए हर राज्य के विधिक सेवा प्राधिकरण 10 अक्तूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाते हैं. इस पूरे सप्ताह न्यायिक अधिकारी मानसिक रोगियों के कल्याण हेतु बनाए गए कानूनों की जानकारियां आम जनता को देते हैं. न्यायिक अधिकारियों के प्रयासों के सार्थक परिणाम भी सामने आने लगे हैं.