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जीवन का मध्यांतर ठहराव से नहीं बदलाव से होगा

औरत की 40-50 साल की आयु यानी जीवन के सफर का अजीब दौर. एक लंबी थकानभरी जिंदगी के बाद विश्राम या फिर एक नई शुरुआत? वह भी उस मोड़ पर, जब औरत कई शारीरिक व मानसिक बदलावों का सामना कर रही हो.

अकसर महिलाएं जीवन के मध्यांतर को ही आखिरी पड़ाव मान कर निष्क्रिय हो जाती हैं. बच्चों की पढ़ाई, शादी व अन्य जिम्मेदारियों से फारिग होतेहोते 40-50 साल की उम्र की दहलीज पार हो जाती है, इस का यह मतलब नहीं कि जिंदगी के सारे माने खत्म हो गए. दरअसल, उम्र का यह मध्यांतर एक नई शुरुआत ले कर आता है. यह जीवन के शुरुआती पहरों में अधूरे बचे कामों, ख्वाहिशों व सपनों को पूरा करने का मौका देता है. अगर अब भी उन सपनों को नई उड़ान न दी तो फिर जिंदगी के आखिरी पल अफसोस व उदासी में ही गुजरेंगे. जीवन में रंग, कला, रचनात्मकता व रुचियों के इतने आयाम हैं कि जिन से हमारी जिंदगी के उदास कैनवास में रंगों की बौछार हो सकती है.

अगर शरीर साथ नहीं देता और बदलते हार्मोन रास्ते की रुकावट बनते हैं तो भी न हार मानें. इस का भी समाधान है. जिस वेग से हार्मोंस एक उम्र में शरीर में प्रवेश करते हैं, उसी वेग से बढ़ती उम्र के साथसाथ कम भी होते जाते हैं और जाते हैं तो लगता है, जैसे शरीर की पूरी ऊर्जा व उत्साह निचोड़ कर जा रहे हैं. पर यह तभी होता है, जब हम उन्हें ऐसा करने देते हैं. क्या हम किसी के वश में आ कर जीवन से हार मान लेंगे? कतई नहीं. मिडलाइफ क्राइसिस यानी मध्यांतर संकट के इस दुश्मन से निबटें.

मुश्किलें तन की

यह मेनोपौज की अवस्था है. स्त्री के स्त्रीत्व के लिए एक विशेष हार्मोन, ऐस्ट्रोजन, जो अब तक प्रचुर मात्रा में था, कम होने लगता है. मासिकधर्म अनियमित होते हुए बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है.

हार्मोन की कमी का असर पूरे शरीर पर दिखना शुरू हो जाता है. कहां इस का क्या असर होता है, एक निगाह इस पर भी डालें. ऐस्ट्रोजन की कमी से हार्ट अटैक की आशंका बढ़ जाती है. ऐसी अवस्था में अमूमन कमरदर्द बना रहता है.

सब से बड़ा खतरा फ्रैक्चर का होता है. जरा सी चोट से हड्डी चटक जाती है और जुड़ने की प्रक्रिया भी लंबी व मुश्किल हो जाती है. त्वचा सिकुड़ कर अपनी चमक खोने लगती है. इसी दौरान झुर्रियां पड़ने लगती हैं. नजर कमजोर होने लगती है क्योंकि मोतियाबिंद अब रफ्तार से आंखों में उतरना शुरू हो जाता है.

धीरेधीरे मस्तिष्क को मिलने वाली औक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है, जिस के कारण भूलने की प्रक्रिया तेज होने लगती है. समझनेबूझने की क्षमता भी कम होने लगती है. पेट का घेरा बढ़ने लगता है. रात में अनिद्रा की स्थिति आम हो जाती है.

मन की उलझन

सब से ज्यादा समस्या तब आती है जब परिवार वाले आप की मनोस्थिति से अनजान रहते हैं. आप का चिड़चिड़ापन, थकावट, मूड के उखड़े रहने की वजह कोई समझ नहीं पाता है. शिथिल, बोझिल काया और उस पर थका मन, आग में घी का काम करता है.

मन और विचलित हो जाता है. किसी के पास आप के लिए समय नहीं है. लंबा जीवन जिन घरवालों के लिए आप ने होम कर दिया, क्या उन्हें आप की परवा नहीं है? समस्या बढ़ती जाती है, गुत्थी है कि सुलझने का नाम नहीं लेती. पर हिम्मत हमें खुद ही जुटानी होगी और अपने शरीर व मन को बांधना होगा. यह अवस्था सब स्त्रियों के जीवन में आती है.

यह ध्यान रखें कि परिवार में सब को आप की जरूरत है. परवा है. बस, यह बताने के लिए शायद उन के पास वक्त की कमी हो. इस स्थिति को स्वीकार करें. बच्चों को उन की जिंदगी जीने दें. अपने फैमिली डाक्टर से कहें कि वे आप के जीवन में आ रहे बदलावों और उन के असर के बारे में घरवालों को बताएं, ताकि वे आप की मनोस्थिति को समझ सकें  और बेहतर ढंग से पेश आएं.

खानपान पर ध्यान

सब से पहले खानपान पर ध्यान दें. आप जानती हैं कि आप को अब चरबी परेशान करने वाली है, तो अपने आहार में वसा की मात्रा बिलकुल हटा दें. मीठे पर नियंत्रण रखें. प्रोटीन का सेवन अधिक मात्रा में करें. फलों में अनार के दाने रोज लें. मीठे फल जैसे केला, सेब लें, तो अच्छा है. पपीता सेहत के लिए फायदेमंद होता है, उसे नियमित लें. 2 गिलास गुनगुना पानी सुबहशाम लेने से चरबी घटती है और पेट साफ रहता है.

नियमित व्यायाम : तंदुरुस्त रहने के लिए यह बहुत अहम भूमिका अदा करता है. रोज सुबह नियमित रूप से व्यायाम करें. इस उम्र में सुबह सैर से बढि़या कोईर् व्यायाम नहीं है. सैर से पूरे दिन के लिए शरीर मे ऊर्जा भरती है, नई ताजगी मिलती है और दिन की शुरुआत यदि अच्छी हो तो दिन पूरा अच्छा बीतता है. हमउम्र साथियों से कुछ पल हंसबोल कर मन हलका हो जाता है.

सलाह डाक्टर की : इस पड़ाव पर नियमित मैडिकल चैकअप जरूरी है. रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग आदि पर नजर रखें. जिस पल आप को डाक्टरी सलाह, दवाई वगैरा की जरूरत पड़े, तो देर न करें.

डाक्टर कहें तो हार्मोनल थेरैपी लेने में भी कोई हर्ज नहीं है. कैल्शियम आप की हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है. 40 की उम्र से ही हड्डियों के प्रति सजग हो जाएं और दूध, दही का भरपूर सेवन करें.

समय का सही इस्तेमाल

इतने सालों की व्यस्तता के बाद अब आप के पास खाली समय है. अब आप वह सब कर सकती हैं, जो करना चाहती थीं. निरर्थक, दिशाहीन जीवन को सार्थक दिशा देने के कई तरीके हो सकते हैं. आप किताबें पढ़ सकती हैं, आसपास के जरूरतमंद बच्चों को पढ़ा सकती हैं, दृष्टिहीन बच्चों के स्कूल में जा कर उन्हें कहानियां पढ़ कर सुना सकती हैं, अनाथाश्रम जा कर बच्चों की देखभाल में मदद कर सकती हैं, कालोनी की साफसफाई, बगीचों का रखरखाव, वृक्षारोपण आदि कर समाज में योगदान दे सकती हैं. संगीत सीखना सिखाना बहुत सुकून देता है.

आप चाहें तो उदास, निरीह, एकाकी जीवन अपना सकती हैं या फिर एक नए सार्थक व उद्देश्यभरे जीवन की नींव रख सकती हैं. इस दोराहे पर आ कर फैसला आप का है.

(स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. विमला जैन, डा अर्चना गुप्ता और डा. अनुपमा जोरवाल से हुई बातचीत पर आधारित)     

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में रघुराम राजन की छाया

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एक ऐतिहासिक यात्रा के रूप में इतिहास में याद की जाएगी.दर असल, ऐसी लंबी यात्रा आज तलक कभी किसी राजनीतिक विभूति अथवा समाजसेवी ने नहीं निकाली थी. दरअसल, राहुल गांधी की यह पदयात्रा भारत में फैलते असहिष्णुता के परिपेक्ष में प्रारंभ की गई है. जिसका संदेश है प्रेम और शांति सद्भाव. और जैसा कि हम जानते हैं इस यात्रा के आगाज के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और केंद्र में बैठी सरकार की मनो कुर्सी हिलने लगी है.

और इसलिए तरह-तरह के आरोप प्रत्यारोप भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने खुलकर भारत जोड़ो यात्रा और राहुल गांधी पर लगाएं, मगर धीरे धीरे सब मानो हवाओं में विलीन हो गए . और आज सिर्फ एक ही चर्चा है कि राहुल गांधी कि यह पदयात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक महत्व की है .इससे देश में एक सद्भाव पूर्ण माहौल का निर्माण होगा. और हम देख रहे हैं कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी जिस तरह आम गरीब लोगों से बच्चों से महिलाओं से मिल रहे हैं उन्हें सीने से लगा रहे हैं उनके साथ चल रहे हैं, ऐसे में माहौल देशभर में राहुल मय हो चुका है. शायद यही कारण है कि विभिन्न सेलिब्रिटी और अपने अपने क्षेत्र के अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत यात्रा में शिरकत कर रहे हैं. इसी तारतम्य में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन बुधवार को राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल हुए. इस समय राजस्थान से गुजर रही यह यात्रा बुधवार 14 दिसंबर को सुबह सवाई माधोपुर के भाड़ौती से शुरू हुई. और अचानक भारत जोड़ो यात्रा में रघुराम राजन इस चरण में राहुल गांधी के साथ चलने लगे. दोनों चलते चलते चर्चा भी करते दिखे. यह वीडियो और फोटो जब मीडिया में प्रसारित होने लगे तो यही संदेश गया कि आज उत्तर से दक्षिण का मेल हो रहा है जैसा कि हम जानते हैं रघुराम राजन जहां जहां रिजर्व बैंक के प्रमुख रहे हैं वही एक बड़े अर्थशास्त्री के रूप में उनका सम्मान विरोधी भी करते हैं. इस परिप्रेक्ष्य में यह हमें याद रखना होगा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी में 2016 में नोटबंदी की घोषणा की थी उसके कुछ समय पहले रघुराम राजन ने रिजर्व बैंक से इस्तीफा दे दिया था.
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राहुल और रघुराम
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रिजर्व बैंक के पूर्व प्रमुख रघुराम राजन के राहुल गांधी के साथ पदयात्रा के बाद कांग्रेस पार्टी ने दोनों की फोटो शेयर करते हुए ट्वीट किया -” भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ कदम मिलाते रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, नफरत के खिलाफ देश जोड़ने के लिए खड़े होने वालों की बढ़ती संख्या बताती है कि हम होंगे कामयाब.”

रघुराम राजन भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से जहां इस यात्रा को एक नई ऊर्जा और ताकत मिली वहीं भारतीय जनता पार्टी कि तिलमिलाहट भी सामने आ गई.रघुराम राजन सितंबर 2013 और सितंबर 2016 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक के 23 वें गवर्नर थे. इससे पहले 2003 से 2006 के बीच वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में मुख्य अर्थशास्त्री रहे .

भाजपा ने रघुराम राजन के भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने के बाद तंज कसते हुए कहा -” भारत की अर्थव्यवस्था पर उनकी टिप्पणी को तुच्छ समझकर खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि वह अवसरवाद का परिचायक थी .” पार्टी के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय के मुताबिक – आरबीआइ के पूर्व गवर्नर और कांग्रेस द्वारा नियुक्त रघुराम राजन का भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.”भाजपा इस तरह लगातार राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर कुछ ना कुछ टिप्पणियां आक्षेप लगाती रहती है और का मकसद स्पष्ट है कि किसी भी तरीके से राहुल गांधी की यह भारत जोड़ो यात्रा अपने रास्ते से भटक जाए. देश के लोकतंत्र के लिए सत्तासीन पार्टी भारतीय जनता पार्टी का ऐसा रूख यह बयान करता है कि भाजपा की सोच किस तरह अलोकतांत्रिक है. gandhishwar.rohra@gmail.com

इंडियन आइडल के सेट पर गोल्डन शरारे में पहुंची शहनाज, फैंस ने किया ये कमेंट

बिग बॉस एक्स कंटेस्टेंट शहनाज गिल आए दिन चर्चा में बनी रहती हैं, हाल ही में शहनाज का एक नया लुक वायरल हो रहा है जिसमें वह बहुत प्यारी लग रही हैं. अदाकारा शहनाज गिल गोल्डन कलर का शरारा पहनी हुई काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं.

शहनाज गिल इस लुक में इंडियन आइडल 13 के मंच पर पहुंची जहां पर उनकी खूब तारीफ हो रही है, शहनाज ने अपने स्टाइलिश अंदाज से सभी का दिल जीत लिया है. अदाकारा शहनाज गिल इंडियन आइडल 13 के सेट पर पहुंची थी.

 

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वायरल हो रही तस्वीर में शहनाज गिल एकदम पटियाली कुड़ी लग रही हैं, फैंस ने भी इस फोटो पर जमकर कमेंट किए हैं. इन दिनों शहनाज गिल अपने ग्लैमरस अवतार से फैंस का दिल जीत ले रही हैं. फैंस भी उनकी खूब तारीफ कर रहे हैं.

एक लंबे वक्त के बाद से शहनाज गिल का ऐसा अवतार देखने को मिला है. सोशल मीडिया पर शहनाज की यह तस्वीर छाई हुई है, लोग भी इस तस्वीर को देखना पसंद कर रहे हैं.

दरअसल, अदाकारा ने अपनी सॉन्ग के प्रमोशन के लिए वहां पहुंची थीं, जहां उन्हें काफी ज्यादा तारीफ सुनने को मिली .

बता दें कि सिद्धार्थ शुक्ला के जाने के बाद से शहनाज ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है. अब शहनाज गिल अपनी लाइफ में आगे बढ़ रही हैं.

तेरे सुर और मेरे गीत-भाग 1: श्रुति और वैजयंति का क्या रिश्ता था

“आंटी, आप के घर में कोई ‘बाई’ आती हो, तो मुझे भी…” मैं बोल ही रही थी कि वह महिला बोल पड़ी, “डोंट कौल मी आंटी, माई नेम इज हेमा. सो, यू कैन कौल मी हेमा.” यह बोल कर एकदम से उस ने अपना मुंह फेर लिया और मैं ठिसुआई सी देखती रह गई. बड़ा बुरा लगा मुझे. अरे, कौन सा मैं उसे गाली दे रही थी जो इतना भड़क गई. यही तो पूछ रही थी कि उस के घर ‘बाई’ आती हो तो मुझे भी काम करवाना है, पर ये तो… लेकिन, उस से ज्यादा गुस्सा मुझे खुद पर आया.

कितना समझाया था शेखर ने मुझे ‘श्रुति, थोड़ीबहुत इंग्लिश बोलनी भी आनी चाहिए. जगहजगह हमारा ट्रांसफर होता रहता है. जाने कौन सा पड़ोसी कैसा मिल जाए. इसलिए कह रहा हूं, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स का क्लास कर लो तुम.’ उस पर मैं ने कहा था, ‘नहीं सीखनी मुझे कोई इंग्लिश-विंग्लिश. मैं तो हिंदी में ही बात करूंगी. हिंदी हमारी अपनी भाषा है. और जब हम ही हिंदी का अपमान करेंगे, तो बाहर वाले क्या ख़ाक इस की इज्जत करेंगे. इसलिए मैं तो भई, अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बात करूंगी. जिसे बात करनी हो करे, वरना जाए अपने रास्ते.’

मैं ने तन कर यह कहा था. लेकिन आज लगता है, काश, शेखर की बात मान ली होती. वैसे भी, कोई भाषा सीखने में बुराई ही क्या है? इंग्लिश न जानने के कारण कितनी बार मैं अपने पति, बच्चों के सामने बेवकूफ बनी हूं. कुछ उलटापुलटा खा लेने की वजह से जब एक रोज नकुल के पेट में तेज दर्द शुरू हो गया तब मैं उसे दवाई देने लगी तो लगा एक बार देख लूं दवाई बिगड़ तो नहीं गई. बेवजह लेने के देने न पड़ जाएं. इसलिए मैं ने अपने बड़े बेटे अतुल से कहा, ‘जरा देख तो बेटा, दवाई इंस्पायर तो नहीं हो गयी. मेरी बात पर नकुल हंस पड़ा और अपना पेट पकड़ते हुए बोला, ‘इंस्पायर नहीं मम्मी, एक्सपायर बोलते हैं.’

खैर, उस मद्रासन की बातों से इतना तो समझ में आ गया मुझे कि उसे आंटी सुनना अच्छा नहीं लगा और उस का नाम हेमा है. बड़ी हेमा मालिनी बनने चली है बुढ़िया कहीं की. अपनी उम्र देखी है. मैं ने विचारों में अपने मन की भड़ास निकाली और वापस अपने घर में घुस गई. दरअसल, अभी हफ्ते पहले ही हम पटना से दिल्ली शिफ्ट हुए हैं. शेखर तो आते ही हैदराबाद ट्रेनिंग के लिए चले गए और मुझे यहां फंसा दिया. फोन पर जब मैं ने अपनी परेशानी बताई तो कहने लगे, ‘श्रुति, आसपड़ोस से जानपहचान बढ़ाओ. धीरेधीरे सब पता चल जाएगा. गुस्से से मैं ने कहा भी, हर दो साल पर यही तो करती आई हूं. उस पर हंसते हुए शेखर बोले, ‘अब तुम्हें ही शौक है मेरे साथ नगरीनगरी द्वारेद्वारे घूमने का तो मैं क्या करूं.’

फिर कुछ न बोल कर फोन रख मैं घर के कामों में लग गई. चारा भी क्या था. एक तो ये मूवर्स पैकर्स वाले…जाने कौन सा सामान कहां रख देते हैं कि ढूंढतेढूंढते महीना लग जाता है. ऊपर से नया शहर, कुछ आतापता भी नहीं पड़ता. सुबह दरवाजे की घंटी बजी और जब मैं ने आंखें मींचते हुए दरवाजा खोला तो वही महिला, अरे, भई हेमा… हां, वही खड़ी थी. उस के हाथ में एक डब्बा था. “वनक्कम.” उस ने यह शब्द बोला, तो मैं लगभग चीख पड़ी.

“क्या…” मुझे लगा वह मुझ से लड़ने आई है कल की बात के लिए. लेकिन जब उस ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर वही शब्द दोहराया, तो मैं समझ गई कि इस का मतलब नमस्ते होता है. और फिर मैं ने भी हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते कहा.

“एप्पटीइरुक्कीरिर्कल,” उस ने यह कहा, तो मैं ने सोचा अब यह क्या बला है. मुझे परेशान देख हंसती हुई वे आगे बोलीं, “तुम कैसा है?” फिर अपने साथ लाया डब्बा टेबल पर रखती हुई बोलीं, “इस में इडली है. मई इडली बहुत अच्छा बनाती. तुम खाना.”

“अरे, आप ने इतनी तकलीफ क्यों की,” मैं ने कहा.

“इस में तकलीफ कईसा,” वह बोली, “चलो, मई चलती. खा कर बताना इडली कईसा बना.” जब मैं ने उन्हें चाय के लिए रोका, तो बोलीं, “इल्लई…मैं चाय नहीं पीती, कौफी पीती, पर फिर कभी.” और यह कह कर वे चली गईं. शायद, समझ में आ गया उन्हें कि मुझे उन की भाषा समझ में नहीं आती और न ही मैं इंग्लिश बोल पाती हूं. इसलिए वे मुझ से हिंदी में बात करने की कोशिश करने लगीं. जातेजाते पलट कर उन्होंने मेरा नाम पूछा और बोलीं कि कल से ‘बाई’ आ जाया करेगी. लेकिन एक काम के 1,000 रुपए लेती है. “चलेगा,” मैं ने कहा, तो वे यह बोल कर चली गईं कि वैजंती को औफिस जाना है.

 

ये प्यार न कभी होगा कम: अनाया की रंग लाती कोशिश

प्यार का वो अंधेरा मोड़

राजस्थान के जिला हनुमानगढ़ के गांव बड़ोपल का रहने वाला युवा राजेंद्र बावरी बीते 3-4 साल से
फोटोग्राफर का काम कर रहा था. हालांकि उस के नैननक्श साधारण थे, पर उस की व्यावहारिकता, बौडी लैंग्वेज व खिलखिला कर हंसने की आदत उसे निखरानिखरा रूप देती थी.राजेंद्र ने माणकथेड़ी गांव में फोटोग्राफी की दुकान खोल रखी थी, पर वह मोबाइल फोटोग्राफी को ज्यादा पसंद करता था.
रंगीन तबीयत का धनी राजेंद्र विपरीत लिंगी को पहली मुलाकात में ही दोस्त बना लेता था. शादियों में उस के पास एडवांस बुकिंग रहती थी.

अक्तूबर 2021 में राजेंद्र बावरी नजदीक के एक गांव में विवाह समारोह की फोटो कवरेज के लिए आया हुआ था. वधू वक्ष से जानपहचान व सजातीय होने के कारण राजेंद्र बेहिचक कैमरा उठाए अंदरबाहर आजा रहा था. बारात दरवाजे पर पहुंच चुकी थी.रिबन कटाई की रस्म होने को थी. गले में कैमरा लटकाए राजेंद्र ने एक स्टूल पर खड़े हो कर अपनी पोजीशन ले ली थी. घोड़ी से उतर कर दूल्हा मुख्य दरवाजे पर पहुंच चुका था. अंदर से वधू के परिजन महिलाओं व सहेलियों का समूह भी दरवाजे पर आ जुटा था.प्लेट में कैंची ले कर आई युवती के चेहरे पर टपक रहे नूर व लावण्य को देखते ही राजेंद्र सुधबुध खो बैठा. क्रीम कलर के प्लाजो सूट (गरारा शरारा) में सजधज के वहां पहुंची युवती का गेहुंआ रंग भी दमक रहा था.

राजेंद्र ने महसूस किया कि युवती पर पड़ने वाली फ्लैश लाइट दोगुनी रिफ्लेक्ट हो रही थी. युवती की मांग भरी हुई थी. कैमरे के क्लिक स्विच पर गई राजेंद्र की अंगुली एकबारगी रुक सी गई थी. महिलाओं का झुंड लंबाचौड़ा था. पर राजेंद्र के कैमरे के फोकस में वही युवती बारबार आ रही थी.युवती ने फ्लैश की बौछारों को महसूस कर लिया था. रिबन कटाई रस्म संपन्न होते ही युवतियां आंगन में लौट गईं.स्टूल से उतर कर राजेंद्र भी कैमरा उठाए आंगन की तरफ बढ़ा चला था. बाहर डीजे पर ‘जादूगर सैयां, छोड़ मेरी बहियां…’ गाना वातावरण में मादकता बढ़ा रहा था. सामने आ रही युवती को देखते ही राजेंद्र का चेहरा दमक उठा था और अंगुली क्लिक कर चुकी थी. फ्लैश के प्रकाश में नहाई युवती मुड़ी और उस के सामने आ कर प्रश्न दाग दिया, ‘‘आप ने मेरी फोटो क्यों खींची?’’

‘‘मैडम, दिल के हाथों मजबूर हो गया था,’’ राजेंद्र ने कहा.‘‘अपने दिल व दिमाग को काबू रखो. आप का दिल तो मेरा मोबाइल नंबर भी मांग सकता है. अगर ऐसा किया तो सीखचों के पीछे भिजवा दूंगी, समझे?’’ बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए युवती ने कहा.राजेंद्र भी कहां चूकने वाला था. जेब से कलम निकाल कर अपनी हथेली आगे करते हुए कहा, ‘‘बंदे को राजेंद्र कहते हैं. प्यार से लोग मुझे राजू कहते हैं. मैं माणकथेड़ी में दुकान करता हूं. प्लीज, नंबर लिख दो. दिल नंबर के लिए बेकाबू हो रहा है.’’
माणकथेड़ी का नाम सुनते ही चेहरे पर चौंकने वाले भावों के साथ खुशी दमक उठी थी. युवती ने फुरती से कलम पकड़ कर अपना नंबर राजेंद्र की हथेली पर लिख दिया.

‘‘यह नंबर हथेली पर नहीं, अब दिल में छप गया है.’’ राजेंद्र मुसकराते हुए बोला.
‘‘सिर्फ नंबर या मैं भी… मैं माणकथेड़ी की बहू हूं.’’ कह कर युवती आंगन में लौट गई.
एकांत में हुए इस वार्तालाप व संक्षिप्त मुलाकात ने दोनों के दिलोदिमाग में खुशी की हिलोरें भर दी थीं.
शादी संपन्न होते ही राजेंद्र माणकथेड़ी लौट आया था. उसी शाम राजेंद्र ने युवती को वीडियो काल लगा दी. अंजान नंबर को देखते ही युवती ने काल रिसीव कर ली. वह बोली, ‘‘राजेंद्र बाबू, अभी बिजी हूं. रात के 10 बजे मैं आप को काल करूंगी.’’

कहने के साथ ही युवती ने काल डिसकनेक्ट कर दी.राजेंद्र व युवती ने एकदूसरे के नंबर दिल में उतारने के साथ ही दोस्त व सहेली के फरजी नाम से सेव कर लिए थे. राजेंद्र अपने फन में माहिर था. वहीं युवती भी इस फन में इक्कीस थी.2 अंजान युवकयुवती एक संक्षिप्त मुलाकात के बाद घनिष्ठता के बंधन में बंध चुके थे. 2 दिन बाद युवती भी माणकथेड़ी लौट आई थी.युवती का नाम गोपी (काल्पनिक) था. वह रावतसर तहसील के गांव 12 डीडब्ल्यूडी निवासी सोहनलाल की बेटी थी और इसी साल उस की माणकथेड़ी के धोलूराम बावरी से शादी हुई थी. मैट्रिक पास गोपी के ख्वाब ऊंचे थे.

अपने किए वादे के अनुसार, रात के 10 बजे गोपी ने राजेंद्र को फोन किया. दोनों मोबाइल पर लंबे समय तक बतियाते रहे, ‘‘गोपी, तुम्हें विधाता ने मेरे लिए बनाया था पर उस से कहीं चूक रह गई होगी, जिस से तुम धोलू के पल्ले बंध गई.’’राजेंद्र ने कहा तो गोपी के तनमन के तार झनझना उठे थे. उस की चुप्पी को पढ़ते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘देखो गोपी, मैं तुम्हारा कान्हा तो नहीं पर कान्हा से कम भी नहीं रहूंगा.’’
‘‘देखो राजू, शादीब्याह तो किस्मत के तय किए होते हैं. प्रेम प्रणय को बुलंदियां देना तो प्रेमियों के ही हाथों में होता है.’’ गोपी ने राजेंद्र के सामने जैसे दिल खोल कर रख दिया था. आखिरी कथन ने दोनों प्रेमियों के भविष्य की मंजिल तय कर दी थी. गोपी ने यह भी बता दिया था कि वह रात के 10 बजे के बाद ही फोन कर पाएगी.

राजेंद्र की दुकान पनघट के रास्ते में थी. पानी लाने या अन्य किसी बहाने गोपी राजेंद्र के दीदार कर लेती थी. घूंघट प्रथा सख्त होने के बावजूद गोपी चोरीछिपे अपना चेहरा राजेंद्र को दिखा देती थी.इश्क और मुश्क कभी छिपाए नहीं रखे जा सकते. यही उन दोनों प्रेमियों के साथ हुआ था. किसी ने गोपी के पति धोलू तक बात पहुंचा दी थी. शांतिप्रिय व खुद में मस्त रहने वाले धोलू के लिए यह खबर विचलित करने वाली साबित हुई.कोई राह नहीं सूझी तो उस ने अपने बड़े साले इंद्रपाल, जो दबंग प्रवृत्ति का था, के साथ यह बात साझा कर ली. अगले दिन इंद्रपाल माणकथेड़ी पहुंच गया.

उस ने अपनी बहन गोपी को समझाया और राजेंद्र की दुकान पर पहुंच गया. उस ने राजेंद्र को ओछी हरकत से बाज आने व भविष्य में देख लेने की धमकी दे डाली. वहां से लौटते समय इंद्रपाल गोपी का मोबाइल फोन भी छीन ले गया.दोनों प्रेमियों के बीच कई महीने तक बात होनी तो दूर दर्शन तक दुर्लभ हो गए. होली के दिन रंग में सराबोर हुआ राजेंद्र गोपी तक एक मोबाइल फोन पहुंचाने में सफल हो गया था. अब सावधानी के साथ दोनों प्रेमी 3-4 दिनों के अंतराल से बात करने लगे थे. लेकिन यह बात किसी तरह इंद्रपाल को पता चल गई.

24 जून को इंद्रपाल के ममेरे भाई की शादी थी. बारात में इंद्रपाल, राधेश्याम, मांगीलाल, सोनू आदि दोस्तों की ड्राइवरों के साथ लड़ाई हो गई. उक्त सभी पुलिस से बचने के लिए अपने जीजा धोलू के पास जा पहुंचे. वहां पर बहन और राजेंद्र की हकीकत जान कर इंद्रपाल का खून खौल उठा. पर धोलू ने कोई लफड़ा नहीं करने की हिदायत दे डाली थी.

2 महीने गुजर चुके थे. राजेंद्र की गुस्ताखी उसे अशांत किए हुए थी. पर उसे कोई राह नहीं सूझ रही थी. उस की योजना थी कि राजेंद्र को किसी अज्ञात स्थान पर बुला कर उस की जबरदस्त पिटाई की जाए, पर राजेंद्र को बुलाने की कोई तरकीब नहीं सूझ रही थी.अगले ही पल उस की आंखें चमक उठीं. संगरिया में उस की एक महिला दोस्त संजू धानक रहती थी. संजू इंद्रपाल के लिए शरीर तो क्या जान देने को भी तैयार रहती थी. उस ने उसी समय संजू को राजेंद्र का मोबाइल नंबर दे कर राजेंद्र को प्रेम जाल में फांसने को कह दिया.

इंद्रपाल ने संजू को यह भी समझा दिया कि वह राजेंद्र को यह विश्वास दिला दे कि गोपी उस की पक्की सहेली है और वह उसी के कहने पर खुद को राजेंद्र को सौंप रही है.संजू ने उसी समय राजेंद्र को फोन किया. राजेंद्र ने काल रिसीव कर कहा, ‘‘हैलो, कौन बोल रहे हैं? किस से बात करनी है?’’सामने नारी कंठ की मीठी व आकर्षक आवाज में जवाब मिला, ‘‘प्यारे जीजाजी, घबराओ मत. हम भी आप को चाहने वाले हैं.’’ राजेंद्र की घबराहट भांप कर उस ने खुलासा कर दिया, ‘‘देख यार जीजा, मैं संजू और गोपी 2 बदन एक जान हैं. उसी ने आप का नंबर मुझे दिया है. वह कई दिन आप से संपर्क नहीं कर पाएगी,’’ संजू ने कहा.
‘‘संजू, मैं तो डर गया था. गोपी मेरा कितना खयाल रखती है.’’

‘‘देखो जीजाजी, जब भी आप को महिला बदन की तलब लगे, मुझे घंटी मार देना. लेकिन याद रखना, मैं 10-12 दिन में एक बार ही मिल सकूंगी. मेरी मजबूरी है.’’ संजू ने राजेंद्र को फांसने के लिए पासा फेंक दिया था.प्रणय निवेदन का पासा फेंकने में संजू वास्तव में गोल्ड मैडलिस्ट थी. हकीकत यह थी कि विवाहिता संजू जो एक बच्चे की मां थी, पति से खटपट होने के कारण 2 साल से संगरिया स्थित पीहर में रह रही थी. गुजरबसर के लिए वह एक कपड़े की दुकान पर सेल्सगर्ल के रूप में काम कर रही थी.
इंद्रपाल के प्लान के मुताबिक, संजू अपने फोन में रिकौर्ड हर बातचीत इंद्रपाल तक पहुंचा देती थी. अब राजेंद्र संजू की सैक्सी बातों से प्रभावित हो कर उस का गुलाम बन चुका था.

इंद्रपाल का प्लान अब सही राह पकड़ चुका था. वह अपनी बहन गोपी का बचाव करने के लिए संजू को मोहरे के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. 16 जुलाई, 2022 को इंद्रपाल ने अपने दोस्तों राधेश्याम जीतराम, सोनू, मांगीलाल व एक नाबालिग प्रेम को अपनी ढाणी में बुला लिया.इंद्रपाल ने संजू से कह दिया कि वह राजेंद्र को किसी तरह 17 जुलाई को रावतसर स्थित खेतरपाल मंदिर बुला ले. संजू ने ऐसा ही किया. उस ने 17 जुलाई की सुबह ही राजेंद्र को फोन कर कहा, ‘‘यार, आज मिलन का मूड है. मैं फ्री हूं. दोपहर तक रावतसर के खेतरपाल मंदिर पहुंच जाओ. वहां होटल में मौजमस्ती के लिए कमरा आराम से मिल जाता है.’’

हालांकि उस दिन राजेंद्र की शाम के समय एक समारोह की बुकिंग थी पर संजू से मिलने की चाहत में उस ने हां कर दी.जेब में नकदी, एटीएम कार्ड, कैमरा आदि ले कर राजेंद्र रावतसर पहुंच गया था. खेतरपाल मंदिर तक पहुंचाने के लिए उस ने अपने ममेरे भाई सुभाष बावरी, जो नजदीकी गांव कणवाणी में रहता था, को फोन कर मोटरसाइकिल सहित रावतसर बुला लिया था.सुभाष के साथ राजेंद्र बावरी 3 किलोमीटर दूर खेतरपाल मंदिर पहुंच गया था. वहां राजेंद्र व संजू ने फोन के सहारे एकदूसरे को पहचान लिया था. मेकअप से लकदक व मनमोहक कपड़े पहने संजू राजेंद्र को हूर की परी लग रही थी.

संजू ने साथ में खड़े प्रेम को अपना भाई बताया. संजू ने चायपानी के बाद प्रेम को नजदीक गांव 4 सीवाईएम में छोड़ आने की बात कही थी.इंद्रपाल की योजना के मुताबिक, प्रेम संजू और राजेंद्र को मोटरसाइकिल पर बिठा कर गांव के लिए चल पड़ा था. तब तक अंधेरा घिर आया था. जैसे ही कच्ची सड़क पर मोटरसाइकिल उतरी, वहीं घात लगाए बैठे पांचों दोस्त राजेंद्र पर टूट पड़े. लाठियां व ठोकरें लगने से घायल हुआ राजेंद्र बेहोश हो गया था. उन्होंने उसे घसीट कर झाडि़यों में डाल दिया. उसी दौरान राजेंद्र ने दम तोड़ दिया था.

सुबह एक अज्ञात राहगीर ने झाडि़यों में शव पड़े होने की सूचना रावतसर थाने में दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रविंद्र नरूका मौके पर पहुंच गए. लोगों ने उस की शिनाख्त गांव बड़ोपल निवासी धर्मपाल बावरी के बेटे फोटोग्राफर राजेंद्र के रूप में की.पुलिस ने शव बरामद कर उस के घर वालों को सूचना दे दी थी. राजेंद्र के फोन में आखिरी काल संजू की थी. अत: पुलिस ने तुरंत संजू को हिरासत में ले लिया.
सख्ती से की गई पूछताछ में संजू ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. तब पुलिस ने संजू के बताए अनुसार, अन्य मुलजिमों की पहचान कर उन के खिलाफ भादंसं की धारा 302, 364, 382, 201 व 120बी के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

रावतसर की डीएसपी सुश्री पूनम चौहान के निर्देश पर प्रकरण की जांच थानाप्रभारी रविंद्र नरूका ने अपने हाथ में ले ली थी.पुलिस ने दबिश दी मगर संजू के अलावा अन्य आरोपी फरार हो गए थे. आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस की 8 टीमों ने अथक भागदौड़ कर शेष आरोपियों जीतराम, सोनू, मांगीलाल, इंद्रपाल, राधेश्याम व नाबालिग प्रेम को अलगअलग जगहों से गिरफ्तार कर लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस ने लाठियां, मोटरसाइकिल आदि बरामद कर प्रेम के अलावा सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भिजवा दिया था. प्रेम को बाल न्यायालय में पेश कर बाल सुधार गृह भेज दिया. सभी आरोपी बावरी जाति से हैं जबकि संजू पत्नी शिवलाल निवासी संगारिया धानक है.
निर्मम हत्याकांड का चश्मदीद गवाह सुभाष बावरी है, जो अपने ममेरे भाई राजेंद्र को मंदिर छोड़ने पहुंचा था. सुभाष ने संजू व प्रेम के अलावा वहां संदिग्ध लग रहे अन्य आरोपियों को देखा था.
अपनी बहन गोपी के दांपत्य जीवन को बचाने के लिए इंद्रपाल के अविवेकपूर्ण निर्णय ने न केवल अपना बल्कि 6 अन्य नौजवानों का भविष्य भी अंधकारमय कर दिया.

लड़कियां मुझसे इंप्रैस भी हो जाती हैं लेकिन मुझे ही कोई लड़की नहीं भाती, क्या करूं?

सवाल

मैं 12वीं क्लास का स्टूडैंट हूं. मेरे सब फ्रैंड्स की गर्लफ्रैंड्स हैं. एक मैं ही हूं जिस की गर्लफ्रैंड नहीं. दोस्त कहते हैं कि मैं झूठ बोलता हूं क्योंकि मैं देखने में अच्छाखासा दिखता हूं. लड़कियां मुझसे इंप्रैस भी हो जाती हैं लेकिन मुझे ही कोई लड़की नहीं भाती. दरअसल जिस लड़की को मैं पसंद करता हूं वह मुझे इग्नोर करती है. लेकिन मुझे उस के अलावा दूसरी कोई और लड़की भाती ही नहीं. मैं ऐसा क्या करूं कि वह मुझे पसंद करने लगे.

जवाब

यह एक आम बात है. आजकल हर स्कूल जाने वाला लड़का चाहता है कि उस की भी कोई गर्लफ्रैंड हो पर लड़की उसे भाव ही नहीं देती, लगातार इग्नोर करती है.

जिसे आप पसंद करते हैं उस से बात करें तो हमेशा आई कौंटैक्ट बना कर करें. जब भी उसे कोई परेशानी आए या उसे किसी की जरूरत हो तो आप सब से पहले उस के लिए खड़े हो जाएं जिस से कि उसे लगे आप उस से प्यार करने के साथसाथ उस की केयर भी करते हैं. ऐसे में वह जरूर आप की ओर अट्रैक्ट होगी क्योंकि जब हम किसी की खुद से ज्यादा परवा करते हैं तो वह भी हमारे लिए फील करने लगता है.

पाई को सलाम : मुश्किलों में इस तरह होती है सच्चे दोस्त की पहचान

सऊदी अरब के एक अस्पताल में काम करते हुए मुझे अलगअलग देशों के लोगों के साथ काम करने का मौका मिला. मेरे महकमे में कुल 27 मुलाजिम थे, जिन में 13 सऊदी, 5 भारतीय, 6 फिलीपीनी और 3 पाकिस्तानी थे.

यों तो सभी आपस में अंगरेजी में ही बातें किया करते थे, लेकिन हम भारतीयों की इन तीनों पाकिस्तानियों से खूब जमती थी. एक तो भाषा भी तकरीबन एकजैसी थी और हम लोगों का खानापीना भी एकजैसा ही था.

हमारे महकमे का सब से नापसंद मुलाजिम एक पाकिस्तानी कामरान था, जिसे सभी ‘पाई’ के नाम से बुलाते थे.

क्या सऊदी, क्या फिलीपीनी, यहां तक कि बाकी दोनों पाकिस्तानी भी उस को पसंद नहीं करते थे.

वैसे तो ‘पाई’ हमारे साथ ही रहता और खातापीता था, लेकिन कोई भी उस की हरकतें पसंद नहीं करता था. काम में तो वह अच्छा था, लेकिन जानबूझ कर सब से आसान काम चुनता और मुश्किल काम को कम ही हाथ लगता.

अब मैडिकल ट्रांसक्रिप्शन है ही ऐसा काम, जिस में मुश्किल फाइल करना कोई भी पसंद नहीं करता, लेकिन चूंकि काम तो खत्म करना ही होता है, तो सभी लोग मिलबांट कर मुश्किल काम कर लेते. लेकिन मजाल है, जो ‘पाई’ किसी मुश्किल फाइल को हाथ में ले ले.

‘पाई’ कुरसी पर बैठ कर आसान फाइल का इंतजार करता रहता और जैसे ही कोई आसान फाइल आती, झट से उस को अपने नाम कर लेता. उस की इसी हरकत की वजह से सभी उस से चिढ़ने लगे थे.

भारतीय पवन हो या फिलीपीनी गुलिवर या फिर सऊदी लड़की सैनब, सभी उस की इस बात पर उस से नाराज रहते. इस के अलावा ‘पाई’ एक नंबर का कंजूस था. कभीकभार सभी लोग मिल कर किसी साथी मुलाजिम को कोई पार्टी देते, तो ‘पाई’ एक पैसा भी न देता.

वह बोलता, ‘‘मैं यहां क्या इन लोगों के लिए कमाने आया हूं?’’

पार्टी के लिए एक पैसा भले ही न देता हो, पार्टी में खानेपीने में सब से आगे रहता. ‘पाई’ खुद भी जानता था कि कोई उस को पसंद नहीं करता, लेकिन इस से उस को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

शुक्रवार को सऊदी अरब में छुट्टी रहती है. मैं भी उस दिन अपने घर में ही था कि पवन का फोन आया.

फोन पर उस के रोने की आवाज सुन कर मैं परेशान हो गया. उस की सिसकियां कुछ कम हुईं, तो उस ने बताया कि उस का 10 साल का बेटा घर से गायब है. पता नहीं, किसी ने उस को किडनैप कर लिया है या वह खुद ही कहीं चला गया है, किसी को भी नहीं पता था.

मैं तुरंत पवन के कमरे में पहुंचा. जल्दी ही सरफराज, गुलिवर और नावेद भी वहां पहुंच गए. सभी पवन को तसल्ली दे रहे थे.

तभी पवन के घर से फोन आया. किसी ने उस के घर खबर दी कि उस का बेटा कोचीन जाने वाली बस में देखा गया है. सभी की राय थी कि पवन को तुरंत भारत जाना चाहिए.

मैनेजर सुसान से बात की गई. उन्होंने तुरंत पवन के जाने के लिए वीजा का इंतजाम किया. सरफराज अपनी गाड़ी में पवन और मुझे ले कर हैड औफिस गए और वीजा ले आए.

अब बड़ा सवाल था भारत जाने के लिए टिकट का इंतजाम करना. महीने का आखिरी हफ्ता चल रहा था और हम सभी अपनीअपनी तनख्वाह अपनेअपने देश को भेज चुके थे. सभी के पास थोड़ेबहुत पैसे बचे हुए थे, जो कि टिकट की आधी रकम भी नहीं होती.

मैं और सरफराज अपनेअपने जानने वालों को फोन कर रहे थे कि तभी वहां ‘पाई’ आ गया. हम में से किसी ने भी उस को पवन के बारे में नहीं बताया था. एक तो शायद इसलिए कि ‘पाई’ और पवन की कुछ खास बनती नहीं थी, दूसरे, इसलिए भी कि उस से हमें किसी मदद की उम्मीद भी नहीं थी.

‘पाई’ पवन से उस के बेटे के बारे में पूछताछ कर रहा था. बातोंबातों में उस को पता चला कि भारत जाने के लिए टिकट के पैसे कम पड़ रहे हैं. हम लोग अपनेअपने फोन पर मसरूफ थे और पता ही नहीं चला कि कब ‘पाई’ उठ कर वहां से चला गया.

‘‘उस को लगा होगा कि उस से कोई पैसे न मांग ले,’’ फिलीपीनी गुलिवर ने अपने विचार रखे.

तकरीबन 10 मिनट बाद ‘पाई’ आया और पवन के हाथ में 5 हजार रियाल रख दिए और कहने लगा, ‘‘जाओ, जल्दी से टिकट ले लो, ताकि आज की ही फ्लाइट मिल जाए. अगर और पैसों की जरूरत हो, तो बेझिझक बता देना. मैं अपने पैसे इकट्ठा 2-3 महीने में ही भेजता हूं, इसलिए अभी मेरे पास और भी पैसे हैं.’’

यह सुन कर पवन भावुक हो गया और ‘पाई’ को गले लगा लिया, ‘‘शुक्रिया ‘पाई’, मुसीबत के समय में मेरी मदद कर के तुम ने मुझे जिंदगीभर का कर्जदार बना लिया है.’’

‘‘कर्ज कैसा, हम सब एक परिवार ही तो हैं. मुसीबत के समय अगर हम एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?’’

‘पाई’ का यह रूप देख कर मेरे मन में उस के प्रति जितनी भी बुरी भावनाएं थीं, तुरंत दूर हो गईं.

किसी ने सच ही कहा है कि दोस्त की पहचान मुसीबत के समय में ही होती है. और मुसीबत की इस घड़ी में पवन की मदद कर के ‘पाई’ ने अपने सच्चे दोस्त होने का सुबूत दे दिया.

‘पाई’ के इस अच्छे काम से मेरा मन उस के लिए श्रद्धा से भर गया.

विंटर स्पेशल : ऐसे बनाएं आंवले का मुरब्बा

आज आपको आंवला मुरब्बा बनाने की रेसिपी बताते हैं. आंवला का मुरब्बा बेहद हेल्दी होता है और टेस्‍टी होता है. तो चलिए झट से जानते हैं आंवला मुरब्बा बनाने की रेसिपी.

 सामग्री :

आंवला (पके और दागरहित)

शक्कर  (1.5 किलो)

इलाइची  (10 छील कर पिसी हुई)

काली मिर्च पाउडर  (1/2 छोटा चम्मच)

काला नमक  (01 छोटा चम्मच)

फिटकरी  (1/2 बड़ा चम्मच)

 

बनाने की विधि :

सबसे पहले आंवला को धो कर 2 दिन के लिये पानी में भिगो दें.

इसके बाद उन्हें पानी से निकालें और अच्छी तरह से कांटे से गोद दें. अब आंवलों को 2 दिन तक फिटकरी के पानी में भिंगो दें.

2 दिन बाद आंवलों को पानी से निकालें और अच्छी तरह से धो लें.

अब एक भगोना लेकर उस में एक लीटर पानी गरम करें.

पानी खौलने पर उसमें आंवले डाल दें और 2-3 मिनट उबालने के बाद गैस बंद कर दें (आंवलों को पानी में ज्यादा देर तक पकाने से वे टूट जायेंगे) और भगोने का ढ़क्कन से बंद दें.

10-12 मिनट बाद आंवलों को पानी से निकालें और उन्हें किसी दूसरे बर्तन में रख दें, जिससे उनका पानी पूरी तरह से निकल जाए.

इसके बाद एक स्टील का भगोना लें और उसमें 1/2 लीटर पानी लेकर शक्कर डाल दें. साथ ही उसमें आंवलें भी डाल दें और गैस पर रखकर पकायें.

जब शक्कर घुलकर गाढ़ी चाशनी में बदल जाये और आंवले अच्छी तरह से गल जायें, तो गैस बंद कर दें और ढ़क कर रख दें.

2 दिन बाद बर्तन को खोल कर देखें. अगर चाशनी पतली हो, तो उसे पका कर गाढ़ी कर लें. अगर ठीक हो, तो उसमें इलाइची पाउडर, काली मिर्च पाउडर और काला नमक डाल दें और और अच्छी तरह से चला दें.

आपका स्‍वादिष्‍ट आंवले का मुरब्बा तैयार है. इसे किसी कांच के बर्तन में रख दें और जब भी आपका मन हो निकाल कर खाएं.

पाकिस्तानी फिल्मों में काम करना चाहते हैं रणबीर, इंटरव्यू में किया खुलासा

बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर अक्सर अपनी बयानों को लेकर सुर्खियों में छाए रहते हैं, हाल ही में रणबीर ने एक और ऐसा बयान दे दिया है जो चर्चा का विषय बना हुआ है. रणबीर हाल ही में रेड सी इंटरनेशल फेस्टिवल में शामिल हुए थें.

जिसमें उन्होंने बताया कि उन्हें पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री में काम करने को लेकर कोई झिझक नहीं हैं, अगर कभी उन्हें ऑफर मिलेगा तो वह जरुर उसे एक्सेप्ट करेंगे. रणबीर ने बताया कि कलाकारों की कला की कोई सीमा नहीं होती है और मैं जरुर काम करना चाहूंगा.

आगे रणबीर ने द लीजैंड ऑफ मौला फिल्म के लिए पाकिस्तानी कलाकारों की सराहना कि, उन्होंने कहा कि वाकई यह फिल्म काफी ज्यादा अच्छी है, उम्मीद करता हूं कि आगे इससे भी अच्छी फिल्मों में काम करने का मौका मिलेगा.

गौरतलब है कि पिछले 6 सालों से पाकिस्तानी कलाकार भारत में बैन हैं तो वही भारतीय कलाकार भी वहां के सिनेमा में काम करने को लेकर बैन हैं, हालांकि अब लोगों को रणबीर कपूर का जवाब बहुत ज्यादा खटक रहा है,

इस फिल्म फेस्टिवल में रणबीर कपूर ने न तो वैराइटी ऑफ फिल्मों के बारे में बात की बल्कि उन्हें फिल्म फेस्टिवल द्वारा वैराइटी इंटरनेशनल वैन गार्ड एक्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया.

वहीं रणबीर कपूर की वर्कफ्रंट की बात करें तो हाल ही में उन्हें ब्रह्मशास्त्र में देखा गया था, जिसमें उनकी एक्टिंग को खूब पसंद किया गया था.

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