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शीजान और तुनीषा के बीच में आ गई थी दूसरी लड़की, इसलिए टूटा था रिश्ता!

टीवी एक्टर तुनीषा शर्मा की मौत को लेकर कई तरह की बातें इन दिनों होने लगी है, वह अपने को एक्टर शीजान खान के साथ रिलेशन में थी, लेकिन जैसे ही इनका ब्रेकअप हुआ वह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

शीजान से ब्रेकअप के बाद से तुनीषा लगातार डिप्रेशन की शिकार हो रही थी, वह सीरियल दास्तान ए काबुल की शूटिंग के दौरान शीजान के मेकअप रूम में फांसी लगाकर जान दे दी. जिसके बाद से लगातार उनकी मौत की खबर चल रही है.

अब इस मामले में शीजान के मामा ने एएनआई को बयान दिया है जिसमें उन्होंने बताया है कि शीजान के कई दूसरी औरतों के साथ संबंध थें इसलिए तुनीषा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी. शीजान से मिलने के बाद से अदाकारा में कई बदलाव आएं थें वह हिजाब पहनने लगी थी.

 

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इधर पुलिस ने शीजान को गिरफ्तार करके कस्टडी में पेश किया है, जहां पर लगातार शीजान से पूछताछ चल रही है. शीजान को पहले 3 दिन के लिए हिरासत में लिया गया था, अब 2 दिन और कस्टडी बढ़ा दी गई है. वहीं  तुनीषा की मम्मी का रो रोकर बुरा हाल है.

वह बार बार  तुनीषा का नाम लेकर उसे याद कर रही हैं, जब आखिरी विदाई अपनी बेटी को दे रही थी उस वक्त भी   तुनीषा की मां की हालत काफी ज्यादा खराब लग रही थी. बार-बार अपनी बेटी को याद करके रो रही हैं.

नवीन कुमार ने डिजिटेलाइजेशन के दौर में शुरू किया कुछ नया

निर्माताः टीवीएफ
निर्देशकः वैभव वंधू
लेखक:प्रशांत कुमार और शुभम शर्मा
कलाकारःनवीन कस्तुरिया , अरुणाभ कुमार , अभय महाजन , अभिषेक बनर्जी , ऋद्धि डोगरा , सिकंदर खेर और
आशीष विद्यार्थी आदि
अवधिः पांच एपीसोड, पांच घंटे,हर एपीसोड लगभग एक घंटा
ओटीटी प्लेटफार्म: जी 5

डिजिटिलाइजेशन के दौर में हर क्षेत्र में नौकरियों का अकाल पड़ गया है.डिजिटल के जमाने में अब चार
व्यक्तियों का काम एक इंसान करने लगा है.ऐसे वक्त में युवा पीढ़ी आत्म निर्भर बनने के लिए अपना ‘स्टार्ट अप’ बिजनेसशुरू कर रही है.स्टार्ट अप क्या है? आसान भाषा में यह एक ऐसा व्यापार है,जिसका उद्देश्य लोगों की सेवा करते हुए उनकी जरूरतों को पूरा कर खुद के लिए मुनाफा कमाना है.

स्टार्टअप का अर्थ होता है, एक या एक से ज्यादा लोगो द्वारा स्थापित की गई कंपनी और इस कंपनी का उदेश्य शुरूआती दिनों में लोगों की समस्याओं को हल करना होता है और फिर आगे चलकर ऐसी ही कंपनियां एक बड़ी कारोबारी कंपनी में बदल जाती हैं.पर उसके इस कदम में उसे किस तरह
की समस्याओं का सामना करना पड़ता है.कहां भावनाएं मर जाती हैं? इन सभी को केंद्र में रखकर टीवीएफ वेब सीरीज ‘पिचर्स सीजन 2’ लेकर आया है.जो कि 23 दिसंबर से ‘जी 5’ पर स्ट्ीम हो रही है.इसका पहला सीजन 2015 में आया था.

कहानीः
‘पिचर्स‘ के पहले सीजन में चार दोस्तों की कहानी थी,जिन्होने अपनी स्थायी नौकरी छोड़कर अपना स्टार्ट अप शुरू करते हुए एक साथ ‘प्रगति’ कंपनी शुरू करते हैं.लेकिन सीजन 2 में उनमंे से एक जीतू ने उनका साथ छोड़ दिया है.अब तीन युवक बचे हैं,पर अब ‘प्रगति’ में 24 लोगों की टीम शामिल हो गई है.‘प्रगति’ के संस्थापक नवीन (नवीन कस्तूरिया) , सौरभ मंडल (अभय महाजन) व योगेंद्र कुमार पांडे उर्फ योगी ( अरुणाभ कुमार)अपनी कंपनी के विस्तार के लिए सतत प्रयासरत हैं. पर कंपनी के साथ नए लोग जुड़े हैं,तो नई परेशानियां भी हैं.कंपनी को आगे बढ़ाने और स्टार्टअप की गलाकाट दुनिया में कंपनी के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए चुनौतियां भी हैं और संघर्ष भी.नवीन का मानना है कि जहां संघर्ष नहीं,वहां प्रगति नहीं.’’

नवीन बंसल अपने पार्टनर मंडल और योगी के साथ एक बड़े उद्योगपति के सी शर्मा के पास अपनी कंपनी में इंवेस्टमेंट करने की बात करने जाते हैं,तो के सी शर्मा ,नवीन बंसल और उसके दोस्तों से कहते हैं कि ‘ऑनलाइन कंपनी का भविष्य उज्ज्वल नहीं है.’पर अंततः के सी शर्मा इस शर्त पर नवीन की कंपनी ‘प्रगति’ में पैसा लगाने के लिए राजी होते हैं कि अगर नवीन बंसल 90 दिनों के अंदर अपनी कंपनी में 50 करोड़ रूपए ले आएं,तो वह कंपनी में इन्वेस्ट कर देंगे.

बिना कुछ सोचे ही नवीन हामी भर देता है.उसके दोस्तों को लगता है कि 90 दिन के अंदर 50 करोड़ रुपये कहां से आएंगे.उतावलेपन में लिया गया निर्णय अक्सर नुकसान ही पहुंचता है.लेकिन नवीन अपने दोस्तों को समझाता है कि किसी भी काम के लिए धैर्य और आत्मविश्वास बहुत ही जरूरी है.उसके बाद नवीन अपनी दोस्त प्राची से मदद मांगता है,मगर प्राची के सामने भी अपनी कंपनी को राजी करना आसान नही है.नवीन बंसल की प्राची मदद कर पाती,उससे पहले ही के सी शर्मा एक दूसरी कंपनी ‘अल्फा वन’ के साथ डील कर लेते हैं.नवीन बंसल को अब नए सिरे से इंवेस्टर की तलाश में जुटना पड़ता है.वह अपने दोस्तों को समझाता है कि जीवन में बहुत सारी समस्याएं आती रहती हंै.प्रगति के
सामने समस्याएं हैं.

उनके पास धन की कमी हैं.कंपनी के खर्चे हैं.24 लोगों को सैलरी भी देनी है.मगर नवीन बंसल हार
मानने वालों में से नही है.पांचवे एपीसोड में कहानी पहुॅचते पहुॅचते ‘प्रगति’ का कुनबा बिखरता हुआ नजर आता है.आधे लोग ‘प्रगति’ छोड़कर ‘अल्फा वन’ से जुड़ने जा रहे हैं.हालात ऐसे बनते है कि नवीन,मंडल व योगी भी अलगाव की नौबत आ जाती है.तभी ‘अल्फा वन’ की तरफ से ‘प्रगति’ को खरीदने का आफर आता है.नवीन हामी भर देता है कि कागज तैयार करो,लेकिन उससे पहले नवीन अपने दोनों नाराज दोस्तों योगी व मंडल को पवई झील के पास मिलने बुलाता है.

जहां तीनों पुनः भावुक हो जाते हैं और तय करते हैं कि ‘प्रगति’ नहीं बेचनी है.अब पुनः ‘शून्य’ से षुरूआत
करेंगे.उसके बाद खर्च कम करने के लिए वह अपना बड़ा आलीशान आफिस छोड़ने का फैसला कर लेते हैं.आफिस का फर्नीचर बेचा जाता है.तभी के सी षर्मा आकर ‘प्रगति’ में तीन सौ करोड़ इंवेस्ट करने की बात करते हैं और बताते हैं कि उन्होेने ‘अल्फा वन’ से संबंध तोड़ दिए हैं.

समीक्षाः
इस वेब सीरीज की सबसे बड़ी यूएसपी यही है कि यह दर्शक को स्टार्ट-अप कल्चर को बहुत यथार्थ परक ढंग से दिखाती है. कहानी दमदार है.आम जीवन जीने वाले लोगों की जमीन से उठकर व्यापार शुरू करने,उसकी कठिनाइयों से जूझने की यात्रा से दर्शक खुद को जुड़ा हुआ पाता है.

लेखक व क्रिएटर के तौर पर अरुणाभ कुमार की खूबी यह है कि वह अपनी कहानी खोजने के लिए दूर-दूर तक नहीं जाते,बल्कि अपने पड़ोसी के बारे में लिखते हैं.वह हवा बाजी करने की बजाय यथार्थ परक कहानी को जन्म देते हैं,जिसमें इंसानी भावनाओं का जज्बा होता है.यह एक अलग बात है कि पहले
सीजन की बनिबस्त ‘पिचर्स सीजन 2’ में भावनाओ ंकी जगह तकनीक ने ले ली है.अरुणाभ और उनके लेखकीय टीम
(प्रशांत कुमार, शुभम शर्मा, और तल्हा सिद्दीकी) ने ऐसी पटकथा तैयार की है,जो एंटरप्रेन्योर्स के जीवन की बारीकियों को गहराई से सामने लाती है.लंबे एपीसोड के बावजूद कहानी और पटकथा दर्षकों को बांधकर रखती है.लेखन की खूबी के चलते परदे पर जो कुछ दर्षक देखता है,उस पर वह यकीन करने लगता है. नवीन जिस तरह से ‘प्रगति’ को बर्बाद करने वाले ‘अल्फा वन’ के ेसामने घुटने टेकने का निणर््ाय लेते हैं,वह इसकी कमजोर कड़ी है.

इस तरह के निर्णय से अपना व्यापार षुरू करने व जिन्होने व्यापार या स्टार्ट अप षुरू करने
के बाद उसे स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं,ऐसे लोगों को नवीन का निर्णय निराष करता है.
सीरीज के निर्देशक वैभव बंधु ने ‘पिचर्स‘ के रूप में ऐसा विषय चुना है,जो युवा पीढ़ी को कुछ न कुछ करने की प्रेरणा देता है.ओटीटी प्लेटफार्म पर जो भी सीरीजअब बन रही हैं वह वास्तविकता के बहुत करीब होती जा रही हैं.

वैभव बंधु ने इस सीरीज के जरिए एक अच्छी कहानी कहने की कोशिश की है.सीरीज का पहला एपिसोड
थोड़ा सा धीमा है,लेकिन आप जैसा जैसे सीरीज को आगे देखते जाते हैं, उत्सुकता बनी रहती है.
अर्जुन कुकरेती की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.

अभिनयः
हमेशा जोखिम उठाने और सभी बड़े निर्णय लेने की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहने वाले टीम लीडर नवीन के किरदार मेें नवीन कस्तूरिया खूब जंचे हैं.उन्होने इस किरदार में जान डाल दी है. तेजतर्रार, लेकिन उजड्ड स्वभाव वाले योगी के किरदार मेे अरुणाभ भी जंचते हैं. मार्केटिंग हेड की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही हर मुसीबत के समय 24 लोगों की टीम को एकजुट रखने वाले मंडल के किरदार में अभय महाजन ने बड़ा स्वाभाविक अभिनय किया है.

नवीन की दोस्त और एक इंवेस्टर कंपनी में कार्यरत प्राची के किरदार में रिद्धि डोगरा अपनी छाप छोड़ जाती हैं.विलेन और ‘अल्फा वन’ कंपनी के मालिक के अति छोटे किरदार में भी सकंदर खेर असफल हैं.के सी कंपनी के मालिक के तौर पर छोटे किरदार में आशीष विद्यार्थी अपना रंग जमाने मेें सफल हो जाते हैं.यूट्यूबर रवि राम रस्तोगी के किरदार में गोपाल दत्त
लोगों को हंसाने में कामयाब रहते हैं.

 

बच्चों की परवरिश में 24 घंटे न लगाएं

पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था ‘महान सपने देखो और उन्हें पूरा करने में जुट जाओ, क्योंकि महान सपने जरूर पूरे होते हैं.’ सो, जरूरी है कि हर बच्चा बड़े सपने देखे. तभी वह उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा सकता है. अभिभावकों को अपने बच्चों को बड़े सपने देखने और उस के लिए जरूरी मेहनत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए. लेकिन इन्हीं सपनों को पूरा करवाने के लिए अगर पेरैंट्स अपने कामकाज छोड़ कर उन की परवरिश में लग जाएं तो ये पेरैंट्स के लिए नहीं, बल्कि बच्चों के लिए बो?ा बन जाता है क्योंकि हर समय उन पर नजर रखना, उन की किसी समस्या का तुरंत समाधान खोज लेना पेरैंट्स की आदत बन जाती है. ऐसा अधिकतर महिलाएं ही करती हैं क्योंकि इसे वे सही मान कर अपने कीमती समय को बच्चों पर गंवाती रहती हैं.

अपनी काबिलियत को जाने न दें

मुंबई की एक मल्टीस्टोरी बिल्ंिडग में रहने वाली वर्किंग महिला सुनीता प्रैग्नैंट होने पर औफिस जाती रही. डिलीवरी के करीब आने पर उन्होंने मैटरनिटी लीव ले कर औफिस जाना बंद कर दिया. करीब 25 दिनों बाद उस की बेटी हुई. पतिपत्नी की खुशी का ठिकाना न रहा. दोनों ने उस की परवरिश का जिम्मा लिया. सुनीता की मां भी नातिन की परवरिश में बेटी का हाथ बंटाने आ गई. बेटी 3 महीने की हो गई तो सुनीता ने औफिस जौइन कर लिया. लेकिन उस का मन बेटी को याद करता रहा. दिन में कई बार फोन कर वह बेटी का हालचाल पूछती पर फिर भी सुनीता का काम में मन न लगता था. अंत में वह काम छोड़ बच्चे की देखभाल करने लगी.

काम से लगता है डर

अनीता ने भी अपने दोनों बेटों की परवरिश अच्छे तरीके से की. बच्चे बड़े हो कर जौब भी करने लगे. अब अनीता अकेली सोच नहीं पाती है कि उसे करना क्या है. वह कई बार कह चुकी है कि वह एक अच्छी क्लासिकल सिंगर थी. कई बार वह रेडियो स्टेशन पर गा भी चुकी है. शादी के बाद से उस ने अपने जीवन में कुछ नहीं किया. शादी के 2 साल बाद बच्चा हुआ और वह उस की परवरिश में जुट गई. उम्र के इस पड़ाव में कुछ भी आगे बढ़ कर करने से वह हिचकिचाती है और उसे डर लगता है, क्योंकि वह आज के परिवेश से अनभिज्ञ है.

एक बार साहस कर कुछ करने गई. किसी ने पूछ लिया कि आप इतने दिनों तक क्या कर रही थीं? इस बात से उसे दुख हुआ क्योंकि उस ने आज तक संगीत का रियाज भी सही तरीके से नहीं किया है. वह कहती है, ‘‘मैं ने जीवन में बहुत गलतियां कीं, चाहती तो गाने को बच्चों के साथ भी जिंदा रख सकती थी क्योंकि एक घंटा सुबह रियाज काफी होता है और मु?ो पूरे 24 घंटे में 2 घंटे रियाज के लिए निकालना मुश्किल नहीं था. हालांकि मेरे दोनों बेटों में अंतर अधिक नहीं है लेकिन मेरी मां मेरे पास रहती थी, जिस से बच्चों को पालने में अधिक कठिनाई नहीं हुई. मैं ने अपने हाथों से खुद की जिंदगी को बरबाद कर दिया है. अब कुछ करने की इच्छा नहीं होती.’’

न लें सारी जिम्मेदारी

यह सही है कि महिलाएं शादी के बाद न चाहते हुए भी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेती हैं. उन को यह सम?ाने में काफी समय लगता है कि उन के रोज 3 से 4 घंटे खुद पर लगाने में कोई हर्ज नहीं. बच्चे की देखभाल फिर भी हो जाएगी. छोटे बच्चे की सम?ादारी कम होती है, उस पर घंटों खाना खिलाने से ले कर सोने तक अपना पूरा समय बरबाद न करें.

कई बार वह जौब कर भी रही है तो अपराधबोध से ग्रस्त हो कर खुद को ही कोसती रहती है. घर आने पर बच्चे की किसी भी जिद को पूरा करने के लिए वह तैयार रहती है. इस से बच्चा जिद्दी और आत्मनिर्भर नहीं बन पाता.

एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा टाइम मैनेजमैंट अच्छी तरह से कर लेती हैं और एक समय में कई काम कर लेती हैं, यह अच्छी बात है. इस बारे में काउंसलर राशिदा कपाडि़या कहती हैं, ‘‘महिलाएं बहुत अधिक भावनात्मक और सैंसिटिव होती हैं और हमेशा सबकुछ बैस्ट करना चाहती हैं. इस से परिवार वालों की उम्मीदें भी उन से काफी बढ़ जाती हैं. सासससुर से ले कर पति और रिश्तेदार भी एक महिला से सबकुछ की उम्मीद लगा बैठते हैं. ऐसे में महिला भी काफी प्रैशर में आ जाती है.’’

बच्चे को दें नौर्मल लाइफ

आज बच्चों में भी काफी प्रतियोगिता है. स्कूल जाने के अलावा बच्चे कराटे, गेम्स, डांस, स्विमिंग आदि में भी भाग लेते हैं, ऐसे में दूसरी मांओं को बुरा लगता है कि उन का बच्चा तो केवल स्विमिंग में ही जा रहा है, उसे भी कुछ और सीखना है और यही प्रैशर उन में स्ट्रैस लाता है. सोशल मीडिया भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं. आज कुछ भी होने पर लोग सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं. इस से महिला खुद को कमतर सम?ाती है और खुद पर ध्यान दिए बिना बच्चों की सही परवरिश करने में लग जाती है. वह खुद की केयर करना भूल जाती है. इस से उस में कई तरह की बीमारियां आ जाती हैं, मसलन लंग्स कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, डिप्रैशन, पेट की बीमारी आदि.

राशिदा कहती हैं, ‘‘वर्कप्लेस में भी सुधार की जरूरत है क्योंकि वहां पुरुष को अधिक सैलरी, जल्दी प्रमोशन मिलता है, जबकि महिला को नहीं. यही बातें घरपरिवार में भी होती हैं. महिला को सभी कामों में निपुण होना पड़ता है. पुरुष कुछ थोड़ा कर ले, शाबाशी मिलती है.

‘‘देखा जाए तो एक महिला ही दूसरी महिला को लैवल देती है. मैं उन महिलाओं को सु?ाव देना चाहती हूं कि परफैक्ट काम करने की कोशिश न कर खुद के लिए कुछ समय निकालें और अपनी पसंद के काम, जैसे किताबें पढ़ना, हौबी पूरी करना, संगीत सुनना या कुछ क्रिएटिव काम आदि करें. इस से उन में नियमित एक ही जैसे काम करने की बोरियत नहीं आएगी और आगे चल कर वे इसे प्रोफैशन का रूप दे सकती हैं. बहुत अधिक बच्चे की परवरिश पर ध्यान देने से बच्चे मां की बात को इग्नोर करने लगते हैं, जिद्दी बन जाते हैं, जो उन के भविष्य के लिए ठीक नहीं होता.’’

कुछ टिप्स नई मांओं के लिए

  • आजकल औनलाइन का जमाना है. हमेशा कुछ ऐसा काम करती रहें ताकि बच्चे की उम्र 8 साल होने पर आप अपने मन का काम बाहर जा कर कर सकें. मसलन, 24 घंटे में से कुछ समय निकाल कर साइंस पढ़ाएं, स्पोर्ट्स में दिलचस्पी हो तो उसे देखें, उस पर अपनी कुछ प्रतिक्रिया दें.
  • आर्किटैक्ट का या क्रिएटिव वर्क भी घर बैठे किया जा सकता है. इसे करने के लिए कुछ शोध वर्क पर ध्यान दें और कुछ डिजाइन बना कर औनलाइन पोस्ट करें.
  • अगर अपने ज्ञान को बढ़ाना है तो उस विषय पर औनलाइन जा कर कुछ कोर्स करें.
  • कानून की पढ़ाई की है तो उस के नोट्स बना कर कानूनी सलाह दें.
  • इस के अलावा बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, क्राफ्ट वर्क आदि के छोटेछोटे ड्राइंग बना कर भी औनलाइन डाल सकती हैं, इस से आप की क्रिएटिविटी बढ़ेगी और आप को काम मिलना आसान होगा.

पोस्ट कोविड के असर से न रहें बेखबर

कोरोना भले ही अब घातक रूप में सामने न हो पर उस का असर अभी भी लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है. ऐसे में छोटी से छोटी बीमारी को बहुत ही गंभीरता से लें. कोरोना ने अपना असर बौडी के अंदर छोड़ दिया है जिस से फेफड़े, सांस लेने की प्रक्रिया और लिवर कमजोर हो चुके हैं. ऐसे में जैसे ही कोई छोटी सी बीमारी होती है, उस के इलाज में लापरवाही होते ही जान का जोखिम होने लगा है.

हाल के दिनों में ऐसी तमाम घटनाएं घट चुकी हैं जिन में अच्छाखासा स्वस्थ शरीर चलतेचलते गिर जा रहा है. राजू श्रीवास्तव ही नहीं, कई ऐसे कलाकारों के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं जिन में वे डांस करतेकरते स्टेज पर ही गिर कर दम तोड़ देते हैं. सरकारी आंकडे़ बताते हैं कि कोरोना के बाद से टीबी यानी क्षयरोग के मामले बढ़ गए हैं. कोरोना के मरीज ठीक होने के बाद दिल और फेफड़े की बीमारी से जू?ा रहे हैं.

कोरोना का असर है कि करीब 50 हजार मरीजों को हार्ट की जरूरत है. कोरोना से पहले यह संख्या 35 हजार से 40 हजार तक होती थी. यही हालत फेफड़ों की है. हार्ट के मरीजों के लिए केवल ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प है. मरीजों को जिंदा रखने के लिए लंग्स ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता बचता है. हार्ट की पंपिंग कम हो गई है. जिन मरीजों की हार्ट की पंपिंग 25 फीसदी से कम होती है उन्हें हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है.

कोरोना के दौरान जिन मरीजों के लंग्स में 100 फीसदी इन्वौल्वमैंट हुआ था वे भी अब लंग्स ट्रांसप्लांट के भरोसे पर हैं. कोरोना के इलाज में दी जाने वाली दवाइयां भी फेफड़े, हार्ट, किडनी और लिवर पर बहुत बुरा प्रभाव डालती हैं. रेमडेसिवीर, स्टेरौयड आदि से शुगर की बीमारी तेजी से बड़ी है और यह हार्ट के लिए नुकसानदायक है.

कोरोना वायरस से फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो जाता है. फाइब्रोसिस से फेफड़े की लेयर पतली और कमजोर हो जाती है. इलाज के दौरान यह फट जाती है. फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं. पोस्ट कोविड की समस्याएं मरीजों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं. कोरोना से रिकवर हुए मरीजों में मानसिक बीमारियों, जैसे एंग्जाइटी, डिप्रैशन, पैनिक डिसऔर्डर के कारण हार्टबीट बढ़ जाती है जिस से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है.

कोरोना हार्ट समेत सभी जरूरी अंगों की मसल्स को गंभीर रूप से डैमेज करता है. यह दिल और फेफड़े दोनों के लिए खतरनाक है. कोरोना से ब्लड गाढ़ा हो जाता है, जिस से थक्के बनने लगते हैं. हार्ट की नसें ब्लौक होने लगती हैं. धीरेधीरे यह समस्या गंभीर होती जाती है.

मैं अपने ब्वायफ्रैंड से जब भी शादी की बात आती है तो वह बिदक जाता है, बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 25 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत प्यार करता है पर जब भी शादी की बात आती है तो वह बिदक जाता है. कहता है कि अभी घर में उस की शादी की बात नहीं चल रही. इस के अलावा वह यह भी स्पष्ट कर चुका है कि उस की मां अंतर्जातीय विवाह के लिए राजी नहीं होंगी. उसे उन्हें मनाने के लिए वक्त चाहिए. इस के अलावा वह अभी किराए के मकान में रहता है. पहले वह अपना घर बनाएगा उस के बाद शादी के बारे में सोचेगा. उस की उम्र 29 साल हो चुकी है. यदि इसी तरह वह शादी की बात टालता रहा तो शादी की उम्र ही निकल जाएगी. बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

आप दोनों की उम्र शादी के लायक है, बावजूद इस के यदि आप को लगता है कि आप का बौयफ्रैंड विवाह (आप के साथ) के लिए गंभीर है और वह अपनी मां को इस शादी के लिए राजी कर लेगा तो आप उसे कुछ समय दे सकती हैं. अपना घर बनाने का फैसला भी कुछ हद तक सही है, क्योंकि विवाह के बाद वैसे भी जिम्मेदारियां और खर्च बढ़ जाते हैं, तब घर बनाना थोड़ा कठिन होता है. यदि फिलहाल शादी को टाल रहा है, तो सही है. जहां तक शादी की उम्र की बात है तो साल 2 साल कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बशर्ते वजह यही हो.

 

विंटर स्पेशल : अदरक के पानी में है ये 7 गुण, आज ही पीना शुरू करें

अदरक घर की सबसे जरूरी चीजों में से एक है. कई लोग इसे मसाले के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो कुछ गार्निशिंग के लिए. इसकी खुशबू और स्वाद से खाना और अधिक जायकेदार बन जाता है.

इसके अलावा इसमें जलनरोधी. एंटीफंगल, एंटीवायरल और एंटीबैक्टीरियल जैसे गुणों से ये और अधिक खास बन जाता है.

खाने के अलावा लोग अदरक की चाय काफी चाव से पीते हैं. सर्दियों में अदरक की चाय काफी लाभकारी होती है. पर क्या आपको पता है कि अदरक का पानी भी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. इस खबर में हम आपको अदरक के पानी की खूबियों के बारे में बताएंगे.

त्वचा के लिए है बेहद लाभकारी

अदरक का पानी पीने से खून साफ रहता है. इसके अलावा त्वचा काफी चमकदार रहती है और पिंपल्स और स्किन इंफेक्शन जैसी परेशानियां दूर रहती है.

बढ़ती है इम्यूनिटी

अदरक का पानी नियमित रूप से पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. हर रोज इसे पीने से सर्दी-खांसी और वायरल इंफेक्शन जैसी बीमारियों के खतरे कम हो जाता है. इसके अलावा यह कफ की समस्या को भी दूर करता है.

पाचन में है लाभकारी

अदरक का पानी पाचन में काफी लाभकारी है. इसके नियमित सेवन से डाइजेस्टिव जूस का निर्माण होता है, जिससे पाचन क्रिया अच्छी रहती है.

काबू में रहता है वजन

वजन कम रखने में अदरक का पानी काफी असरदार है. इससे शरीर का मेटाबौलिज्म ठीक रहता है. इसे रोज पीने से शरीर का अतिरिक्त फैट भी खत्म हो जाता है.

कैंसर से करता है रक्षा

अदरक में ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर से लड़ने में काफी असरदार होते हैं. . इसका पानी फेफड़ें, प्रोस्टेट, ओवेरियन, कोलोन, ब्रेस्ट, स्किन और पेन्क्रिएटिक कैंसर से रक्षा करता है.

शुगर रहता है कंट्रोल में

शुगर के मरीजों के लिए अदरक का पानी काफी फायदेमंद है. इसके नियमित सेवन से शरीर का ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल होता है. इतना ही नहीं इससे आम लोगों में डायबिटीज होने का खतरा भी कम होता है.

दर्द में देता है राहत

अदरक का पानी नियमित रूप से पीने से खून का संचार अच्छा रहता है. मांसपेशियों में होने वाले दर्द में भी ये काफी लाभकारी होता है. इसके अलावा सिरदर्द में ये काफी असरदार होता है.

Year Ender 2022: सलमान के भाई से लेकर TV के कृष्ण तक, इस साल हुआ इन 6 सेलेब जोड़ियों का तलाक!

साल 2022 खत्म होने में महज चद दिन ही बचे हैं, यह साल कुछ लोगों के लिए खुशियां लेकर आया तो कुछ लोगों की जिंदगी उतार चढ़ाव से भरी रही, 2 साल बाद फिल्म जगत की गुलजार वापस लौटी थी, जिसमें काफी कुछ नया ताजा देखने को मिला तो वहीं कुछ सितारों की जिंदगी में बदलाव दिखें.

फिल्म इंडस्ट्री में कई सितारे ऐसे हैं जिनके सालों पुराने रिश्ते में दरार आ गई है, तो आइए जानते हैं उनके नाम.

1. धनुष- एश्वर्या

अपनी शानदार एक्टिंग से लोगों का दिल जीतने वाले एक्टर धनुष और उनकी पत्नी एश्वर्या का तलाक हो गया है, साल 2004 में इन दोनों की शादी हुई थी, हालांकि खबर ये है कि परिवार वालों के समझाने पर इन्होंने अपने रिश्ते को एक मौका दिया है.

2. हनी सिंह -साक्षी तलवार

सिंगर रैपर हनी सिंह 11 साल के बाद अपनी पत्नी साक्षी तलवार से अलग हो गए हैं, इससे पहले दोनों की तनातनी और अनबन की खबरें सोशल मीडिया पर आती रहती थीं, इसके बाद अब दोनों अलग हो गए हैं.

 

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3. सोहेल खान- सीमा सचदेवा

सलमान खान के छोटे भाई सोहेल खान और सीमा सचदेवा ने अपनी 24 साल की शादी को खत्म कर दिया है, इन लोगों की तलाक की खबर से बहुत लोगों को झटका लगा है. हालांकि इस पूरे साल दोनों अपनी तलाक की खबर को लेकर चर्चा में रहे हैं.

4. रफ्तार – कोमल बोहरा

सिंगर रफ्तार औऱ उनकी पत्नी कोमल को भी प्यार हासिल नहीं हो सका इन लोगों का भी रिश्ता आपसी अनबन की वजह से इस साल टूट गया.

 

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5 नीतिश भारद्वाज- स्मिता गेट

अपनी दमदार एक्टिंग से महाभारत में पहचान बनाने वाले नीतिश भारद्वाज और स्मिता गेट का भी रिश्ता इस साल खत्म हो गया है. इस साल इन लोगों ने अपनी 13 साल पुरानी शादी को खत्म किया है.

6 सना आमिन शेख -एजाज शेख

टीवी एक्टर सना आमिन शेख और एजाज शेख ने इस साल 13 सितंबर को अपनी डिवोर्स की एनाउंसमेंट कर दी है, पिछले 6 साल से एक दूसरे के साथ थें.

 

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तुनीषा शर्मा की मौत पर मुकेश खन्ना का विवादित बयान, इन्हें बताया जिम्मेदार

बॉलीवुड एक्टर राजेश खन्ना ने शक्तिमान और भीष्मपितामह एक्टिंग के जरिए अपनी खास पहचान बनाई है, इस सीरियल में उन्हें खूब पसंद किया गया था लेकिन इसके साथ ही मुकेश खन्ना को उनके विवादित बयान के लिए भी खूब जाना जाता है.

वह कई ऐसी तमाम मुद्दो पर बात करते नजर आते हैं, जिससे लोग उन्हें लेकर खबरे बनाने लगते हैं. हाल ही में मुकेश खन्ना ने तुनीषा आत्महत्या पर अपनी बयान दी है. जिसें उन्होंने तुनीषा के माता पिता को आरोपी बताया है.

 

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उन्होंने कहा है कि हर किस्से में एक बॉयफ्रेंड ऐसा होता है जो लड़की उसपर पूरी तरह से डिपेंड होती है और जब वह उसका साथ छोड़ता है तो वह कमजोर बन जाती है और हार मानकर आत्महत्या कर लेती है. ऐसे में मां बाप को  बताया है कि सब लोग बॉयफ्रेंड को लेकर बात कर रहे हैं लेकिन यहां तो मासला ही कुछ और है, जिससे सीधा पता चल रहा है .

आगे मुकेश खन्ना ने कहा कि कम उम्र कि लड़कियां ऐसे ही लोगों के प्रति आकर्षित होती हैं और फिर वह लोग उनका फायदा उठाते हैं . लड़कियां अपने बॉयफ्रेंड को सबकुछ मान लेती है, जहां से उनकी लाइफ खराब होनी शुरू हो जाती है.

तुनीषा ने एक खतरनाक फैसला लिया जिससे उसका परिवार परेशान हो गया.

बेटी की आखिरी तस्वीर देखकर बेसुध हुई तुनीषा शर्मा की मां

एक्ट्रेस तुनीषा शर्मा ने 24 सितंबर को आत्म हत्या कर ली थी, जिसके बाद से लगातार उनकी आत्हत्या को लेकर कई तरह की बातें की जा रही थीं, इसके बाद से मंगलवार को तुनीषा शर्मा का अंतिम संस्कार कर दिया गया .

तुनीषा के इस तरह से चले जाने से पूरा टीवी इंडस्ट्री सदमें में हैं. पोस्टमार्टम के बाद से तुनीशा शर्मा का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. तमाम लोग उनके अंतिम संस्कार पर पहुंचे थें,

 

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वहीं तुनीषा शर्मा की मां का बुरा हाल था बेटी को आखिरी विदाई देते समय वह बार- बार बेहोश हो रही थी, इतनी कम उम्र में उनकी बेटी उनका साथ छोड़कर चली गई भला उनका क्या हाल होगा.

तुनीषा के अंतिम संस्कार में तमाम लोग आएं थें, जहां तुनीषा की मां की हालत को देखकर सभी इमोशनल हो रहे थें. तुनीषा अपनी मां की एकलौत बेटी थी, अपनी मां की काफी ज्यादा करीब थी तुनीषा.

 

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तुनीषा की मां की हालत ये थी कि वह चल भी नहीं पा रही थी, बार बार बेटी का नाम लेकर बेसुध हो रही थीं. यह दृश्य काफी ज्यादा इमोशनल लग रहा था. तुनीषा की मां को भरोसा नहीं हो रहा था कि तुनीषा उन्हें छोड़कर चली गई है. वह बार बार यह कह रही है कि प्लीज वापस आ जाओ.

लोग उन्हें सहारा देकर कार में बैठा रहे थें , वहीं कुछ लोग उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थें.

धार्मिक सरकारों का दखल

एक आम आदमी या औरत की जिंदगी में सरकार और धर्म दोनों के दखल की ज्यादा जरूरत नहीं है पर दोनों ही कोशिश करते हैं कि वे लोगों के निजी मामलों में भी टांग अड़ाते रहें ताकि इस के बहाने उन से एक तो टैक्स या पैसा वसूल किया जा सके और दूसरे उन को जबरन सरकार व धर्म के आदेश मानने को मजबूर किया जा सके. इतिहास साक्षी है कि बीचबीच में जब भी सरकार और धर्म की ताकतें एक हाथ में हो जाती हैं, जनता गुलाम से भी ज्यादा बदतर हो जाती है.

ईरान में आज यही हाल है. वहां की राजशाही, जिसे अमेरिका का समर्थन मिला था, 1979 में धार्मिक क्रांति के बाद ध्वस्त हो गई और उस देश में इसलाम को घरघर पर थोप दिया गया जिस में एक यह नियम भी था कि औरतों को हिजाब पहनना होगा. 1979 से पहले ईरान की शहरी औरतें आजादी से घूमती थीं चाहे गांवों में परदा चलता रहता हो क्योंकि वहां स्थानीय मुल्ला की ज्यादा चलती थी. क्रांति के बाद ईरान पर इसलामिक नियम थोप दिए गए और आज ईरानी अपने घर में कैद हो गया.

ईरान में गश्ते इरशाद यानी नैतिक पुलिस बना दी गर्ई जिस की हरी वरदी में पुरुष पुलिस और काली चादर में महिला पुलिस हर औरतआदमी पर नजर रखने लगे कि वे क्या पहन रहे हैं, कैसे बरताव कर रहे हैं. पूरा ईरान एक खुली जेल हो गया.

इस साल एक कुर्दिश औरत म्हासा अमीनी को अपने स्कार्फ से निकले कुछ बालों के कारण पीट कर मार डाला गया तो पूरा ईरान भडक़ गया. ढाई महीने से वहां लगातार धरनेप्रदर्शन हो रहे हैं. 300 लोग मारे जा चुके हैं. 15 हजार लोगों को गिरफ्तार कर यातनाएं भी दी गईं. पर जब मामला शांत नहीं हुआ तो दिसंबर में प्रैसिडैंट इब्राहिम रईसी ने कहा कि हालांकि ईरान का संविधान इसलामिक सिद्धातों पर टिका है लेकिन उन को लागू करने में कुछ लचीलापन तो हो ही सकता है.

इसी बात की पुष्टि अटौर्नी जनरल मोहम्मद जफर मुन्तज़री ने की कि नैतिक पुलिस का न्यायव्यवस्था से कुछ लेनादेना नहीं है और इसे भंग किया जा रहा है. यह अभी पक्का नहीं है कि सरकार के ये आदेश केवल कूटनीति का हिस्सा हैं या दबाव के कारण झुक जाना है. यह याद रहे कि  इसी साल कतर में हो रहे वर्ल्ड फुटबौल कप मैचों में ईरानी टीम ने भरे स्टेडियम में ईरान के राष्ट्रीय गान के समय होंठ बंद कर रखे जबकि परंपरा है कि सारे खिलाड़ी राष्ट्रगान की माइक की धुन के साथ अपना राष्ट्रगान गाते हैं. यह संकेत था कि बहुत हो चुका है.

इसलामिक देशों ही नहीं, चीन जैसे तानाशाही देश में विरोध की आवाजें उठने लगी हैं. जो कट्टरता हमारे यहां लाई जा रही है, वह कुछ दिन चल सकती है, ज्यादा दिन नहीं. यह ईरान का रुख स्पष्ट कर रहा है. आज धर्म की पोलपट्टी खोलना एक अपराध हो गया है क्योंकि धर्म के दुकानदार चाहते हैं कि लोग जागरूक न हों. आज धर्म के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं पर बढ़ते धार्मिक अंधविश्वासों की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा. औरतें ईरान में भी पहली शिकार बनीं, अफगानिस्तान में भी और अब भारत में भी बनने लगी हैं.

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