एक आम आदमी या औरत की जिंदगी में सरकार और धर्म दोनों के दखल की ज्यादा जरूरत नहीं है पर दोनों ही कोशिश करते हैं कि वे लोगों के निजी मामलों में भी टांग अड़ाते रहें ताकि इस के बहाने उन से एक तो टैक्स या पैसा वसूल किया जा सके और दूसरे उन को जबरन सरकार व धर्म के आदेश मानने को मजबूर किया जा सके. इतिहास साक्षी है कि बीचबीच में जब भी सरकार और धर्म की ताकतें एक हाथ में हो जाती हैं, जनता गुलाम से भी ज्यादा बदतर हो जाती है.
ईरान में आज यही हाल है. वहां की राजशाही, जिसे अमेरिका का समर्थन मिला था, 1979 में धार्मिक क्रांति के बाद ध्वस्त हो गई और उस देश में इसलाम को घरघर पर थोप दिया गया जिस में एक यह नियम भी था कि औरतों को हिजाब पहनना होगा. 1979 से पहले ईरान की शहरी औरतें आजादी से घूमती थीं चाहे गांवों में परदा चलता रहता हो क्योंकि वहां स्थानीय मुल्ला की ज्यादा चलती थी. क्रांति के बाद ईरान पर इसलामिक नियम थोप दिए गए और आज ईरानी अपने घर में कैद हो गया.
ईरान में गश्ते इरशाद यानी नैतिक पुलिस बना दी गर्ई जिस की हरी वरदी में पुरुष पुलिस और काली चादर में महिला पुलिस हर औरतआदमी पर नजर रखने लगे कि वे क्या पहन रहे हैं, कैसे बरताव कर रहे हैं. पूरा ईरान एक खुली जेल हो गया.
इस साल एक कुर्दिश औरत म्हासा अमीनी को अपने स्कार्फ से निकले कुछ बालों के कारण पीट कर मार डाला गया तो पूरा ईरान भडक़ गया. ढाई महीने से वहां लगातार धरनेप्रदर्शन हो रहे हैं. 300 लोग मारे जा चुके हैं. 15 हजार लोगों को गिरफ्तार कर यातनाएं भी दी गईं. पर जब मामला शांत नहीं हुआ तो दिसंबर में प्रैसिडैंट इब्राहिम रईसी ने कहा कि हालांकि ईरान का संविधान इसलामिक सिद्धातों पर टिका है लेकिन उन को लागू करने में कुछ लचीलापन तो हो ही सकता है.
इसी बात की पुष्टि अटौर्नी जनरल मोहम्मद जफर मुन्तज़री ने की कि नैतिक पुलिस का न्यायव्यवस्था से कुछ लेनादेना नहीं है और इसे भंग किया जा रहा है. यह अभी पक्का नहीं है कि सरकार के ये आदेश केवल कूटनीति का हिस्सा हैं या दबाव के कारण झुक जाना है. यह याद रहे कि इसी साल कतर में हो रहे वर्ल्ड फुटबौल कप मैचों में ईरानी टीम ने भरे स्टेडियम में ईरान के राष्ट्रीय गान के समय होंठ बंद कर रखे जबकि परंपरा है कि सारे खिलाड़ी राष्ट्रगान की माइक की धुन के साथ अपना राष्ट्रगान गाते हैं. यह संकेत था कि बहुत हो चुका है.
इसलामिक देशों ही नहीं, चीन जैसे तानाशाही देश में विरोध की आवाजें उठने लगी हैं. जो कट्टरता हमारे यहां लाई जा रही है, वह कुछ दिन चल सकती है, ज्यादा दिन नहीं. यह ईरान का रुख स्पष्ट कर रहा है. आज धर्म की पोलपट्टी खोलना एक अपराध हो गया है क्योंकि धर्म के दुकानदार चाहते हैं कि लोग जागरूक न हों. आज धर्म के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं पर बढ़ते धार्मिक अंधविश्वासों की जिम्मेदारी कोई नहीं ले रहा. औरतें ईरान में भी पहली शिकार बनीं, अफगानिस्तान में भी और अब भारत में भी बनने लगी हैं.