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Valentine’s Special- सबसे बड़ा गिफ्ट: नेहा ने राहुल को कौन-सा तोहफा दिया?

Writer- Dr.Shashikant Kapoor

राहुल रविवार के दिन सुबह जब नींद से जागा तो टैलीफोन की घंटी लगातार बज रही थी. अकसर ऐसी स्थिति में नेहा टैलीफोन अटैंड कर लेती थी. रोज जो बैड टी, बैड के पास के टेबल पर रख कर उसे जगाया जाता था, आज वह भी मिसिंग थी.

नेहा को आवाज लगाई तो भी कोई उत्तर न पा राहुल खुद बिस्तर से उठ कर टैलीफोन तक गया.

‘‘हैलो, मैं नेहा बोल रही हूं,’’ दूसरी तरफ से नेहा की ही आवाज थी.

‘‘कहां से बोल रही हो?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘मैं ने एक अपार्टमैंट किराए पर ले लिया है. अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती.’’

‘‘देखो, तुम ऐसा नहीं कर सकतीं,’’ राहुल ने कहा.

‘‘मैं वैसा ही करूंगी जैसा मैं सोच चुकी हूं,’’ नेहा ने बड़े इतमीनान से कहा, ‘‘तुम चाहते हो कि तुम कोई काम न करो, मैं कमा कर लाऊं और घर मेरी कमाई से ही चले, ऐसा कब तक चलेगा? मैं तुम से तलाक नहीं लूंगी. बस तब तक अकेली रहूंगी, जब तक तुम कोई काम नहीं ढूंढ़ लोगे. मैं तुम्हें जीजान से चाहती हूं, मगर तुम्हें इस स्थिति में नहीं देखना चाहती कि तुम मेरे रहमोकरम पर ही रहो. मैं तुम्हारे नाम के साथ तभी जुड़ूंगी, जब तुम कुछ कर दिखाओगे.’’

‘‘तुम अपने मांबाप के घर भी तो रह सकती हो. वे बहुत अमीर हैं. वहां आराम से और सब सुखसुविधाओं के बीच रहोगी,’’ राहुल ने सलाह दी तो बगैर तैश में आए नेहा का उत्तर था, ‘‘मैं उन के पास तो बिलकुल नहीं जाऊंगी. मेरे आत्मसम्मान को यह मंजूर नहीं है. हां, मैं संपर्क सब के साथ रखूंगी, लेकिन तुम्हारे साथ रहना मुझे तभी मंजूर होगा जब तुम जिंदगी में किसी काबिल बन जाओगे.’’

क्षण भर के लिए राहुल किंकर्तव्यविमूढ हो  गया. उस ने ऐसा कभी सोचा भी न था कि नेहा इस तरह उसे अचानक छोड़ कर अकेले जीवन बिताने का कदम उठा लेगी. उस ने नेहा से कहा, ‘‘यदि तुम ने अलग रहने का फैसला कर ही लिया है तो अपने पापा को इस विषय में सूचना दे दो.’’

नेहा ने राहुल की सलाह मान ली. उस के पापा ने जब उसे मायके आने के लिए कहा तो नेहा ने कहा, ‘‘पापा, आप ने पढ़ालिखा कर मुझे इस काबिल बनाया है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. मैं राहुल को तलाक नहीं दे रही हूं. आप को पता है कि मैं राहुल को बहुत चाहती हूं. आप के और ममा के विरोध के बावजूद मैं ने राहुल से विवाह किया. मैं तो बस इतना चाहती हूं कि राहुल को उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दूं, जहां वह कुछ बन कर दिखाए.’’

नेहा की बात उस के पापा की समझ में आ गई. उन्होंने कहा, ‘‘नेहा, इस रचनात्मक कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूं. फिर भी यदि कभी सहायता की जरूरत हो तो संकोच न करना, मुझे बता देना.’’

राहुल को इस तरह नेहा का अचानक उसे छोड़ कर जाना अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसे इस बात से बहुत राहत मिली कि नेहा ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि स्थिति बदली और राहुल ने या तो कोई व्यवसाय कर लिया या अपनी काबिलीयत के आधार पर कोई अच्छी नौकरी कर ली, तो वह उस की जिंदगी में फिर वापस आएगी. नेहा ने राहुल को यह भी स्पष्ट कर दिया कि उसे सारा ध्यान अपने बेहतर भविष्य और कैरियर पर लगाना चाहिए. वह उस से मिलने की भी कोशिश न करे, न ही मोबाइल पर लंबीचौड़ी बातें करे. राहुल को तब बहुत बुरा लगा जब उस ने अपना पता तो बता दिया, लेकिन साथ में यह भी कह दिया कि वह उस के घर पर न आए. वह तब ही आ कर उस से मिल सकता है, जब आय के अच्छे साधन जुटा ले और जिंदगी में उस की उपलब्धियां बताने लायक हों.

नेहा को इस बात का बहुत संतोष था कि अब तक उस की कोई औलाद नहीं थी और वह स्वतंत्रतापूर्वक दफ्तर के कार्य पर पूरा ध्यान और समय दे सकती थी. नेहा के बौस उम्रदराज और इंसानियत में यकीन रखने वाले सरल स्वभाव के व्यक्ति थे, इसलिए नेहा को दफ्तर के वातावरण में पूरी सुरक्षा और सम्मान हासिल था. एक योग्य, स्मार्ट और आधुनिक महिला के रूप में उस की छवि बहुत अच्छी थी, दफ्तर के सहकर्मी उस का आदर करते थे.

कालेज की कैंटीन में राहुल ने नेहा को पहली बार देखा था. वह अपनी बहन सीमा का दाखिला बी.ए. में करवाने के लिए वहां गया था. पहली नजर में नेहा उसे बहुत सुंदर लगी. वह अपनी सहेलियों के साथ कैंटीन में थी. बाद में उसे देखने के लिए वह सीमा को कालेज छोड़ने के बहाने से जाने लगा. नेहा को भी बारबार दिखने पर राहुल का व्यक्तित्व, चालढाल, तौरतरीका आकर्षक लगा. फिर सीमा से कह कर उस ने नेहा से परिचय कर ही लिया. बाद में जब उन्होंने शादी की तब राहुल पोस्ट ग्रैजुएट था लेकिन कोई नौकरी नहीं कर रहा था और नेहा एम.बी.ए. करने के बाद नौकरी करने लगी थी.

राहुल से अलग रहने में नेहा ने कोई कष्ट अनुभव नहीं किया, क्योंकि यह उस का अपना सोचासमझा फैसला था. दृढ़ निश्चय और स्पष्ट सोच के कारण अपने बौस की पर्सनल सैक्रेटरी का काम वह बखूबी कर रही थी. धीरेधीरे औफिस में बौस के साथ उस की नजदीकियां बढ़ रही थीं. ऐसे में उन्हें कोई गलतफहमी न हो जाए, इस के लिए उस ने अपने संबंध के विषय में स्पष्ट करते हुए एक दिन उन से कहा, ‘‘सर, मैं अपने पति से अलग भले ही रह रही हूं किंतु मेरा पति के पास वापस जाना निश्चित है. फ्लर्टिंग में मैं यकीन नहीं रखती हूं. हां, महीने में 1-2 बार डिनर या लंच पर मैं आप के साथ किसी अच्छे रेस्तरां में जाना पसंद करूंगी. वह भी इस खयाल से कि अगर इस बात की खबर राहुल को पहुंची या कभी आप के साथ आतेजाते उस ने देख लिया तो या तो उसे आप से ईर्ष्या होगी या इस बात का टैस्ट हो जाएगा कि वह मुझ पर कितना विश्वास करता है. दूर रहने पर संदेह पैदा होने में देर नहीं लगती.’’

उधर अपनी योग्यता के बल पर और कई इंटरव्यू दे कर राहुल एक अच्छी नौकरी पा चुका था. एक मल्टीनैशनल कंपनी में उसे पब्लिक रिलेशन औफिसर के पद पर काम करने का अवसर मिल चुका था.

नौकरी शुरू करने के 2 महीने बाद राहुल ने नेहा को फोन पर इस विषय में सूचना दी, ‘‘नेहा, मैं पिछले 2 महीने से नौकरी कर रहा हूं.’’

‘‘बधाई हो राहुल, मुझे पता था कि तुम्हारी अच्छाइयां एक दिन जरूर रंग लाएंगी.’’

राहुल को बहुत समय बाद नेहा से बात करने का मौका मिला था. उस की खुशी फोन पर बात करते समय नेहा को महसूस हो रही थी. वह भी बहुत खुश थी. राहुल ने कहा, ‘‘अभी फोन मत काटना, कुछ और भी कहना चाहता हूं. बातें और करनी हैं. नेहा, वापस मेरे पास आने के बारे में जल्दी फैसला करना…’’

राहुल अपने विषय में बहुत कुछ बताना चाहता था लेकिन नेहा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘मेरे बौस अपने चैंबर में मेरा इंतजार कर रहे हैं. एक मीटिंग के लिए मुझे पेपर्स तैयार करने हैं. जो बातें तुम पूछ रहे हो, उस विषय में मैं बाद में बात करूंगी.’’

जिस तरह सोना आग में तपतप कर कुंदन बनता है, ठीक वैसे ही राहुल ने जीजान से मेहनत की. उसे कंपनी ने विदेशों में प्रशिक्षण के लिए भेजा और 1 वर्ष के भीतर ही पदोन्नति दी. राहुल, जिस में शुरुआत में आत्मविश्वास व इच्छाशक्ति की कमी थी, अब एक सफल अधिकारी बन चुका था. उस के पास आने की बात का नेहा से कोई उत्तर न मिलने पर उस में क्रोध जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह नेहा को उस के प्रति छिपे प्यार को पहचान रहा था.

मन से नेहा उस के पास आने को आतुर थी, मगर इस बात के लिए न तो वह पहल करना चाहती थी, न ही जल्दबाजी में कोई निर्णय लेना चाहती थी.

नेहा के पापा और ममा ने कभी ऐसी भूमिका नहीं अदा की कि वे नेहा और राहुल के आत्मसम्मान के खिलाफ कोई काम करें. नेहा को पता भी नहीं चला कि उस के पापा राहुल को फोन कर के उस का हालचाल जानते रहते हैं और अपनी तरफ से उसे उस के अच्छे कैरियर के लिए मार्गदर्शन देते रहते हैं. राहुल के पिता का देहांत उस के बचपन में ही हो चुका था. राहुल के घर पर उस की मां और बहन के अलावा और कोई नहीं था. बहुत छोटी फैमिली थी उस की.

नेहा के बौस ने एक दिन नेहा को बताया कि उसे उन के साथ एक मीटिंग में दिल्ली चलना है. लैपटौप पर कुछ रिपोर्ट्स बना कर साथ ले जानी हैं और कुछ काम दिल्ली के कार्यालय में भी करना होगा. वहां जाने पर कामकाज की बेहद व्यस्तता होने पर भी वे समय निकाल कर नेहा को डिनर के लिए कनाट प्लेस के एक अच्छे रेस्तरां में ले गए. डिनर तो एक बहाना था. दरअसल, वे संक्षेप में अपने जीवन के बारे में कुछ बातें नेहा के साथ शेयर करना चाहते थे.

‘‘नेहा, तुम ने एक दिन मुझ से स्पष्ट बात की थी कि तुम फ्लर्ट करने में विश्वास नहीं करती हो. लेकिन किसी को पसंद करना फ्लर्ट करना नहीं होता. मैं तुम्हारे निर्मल स्वभाव और अच्छे कामकाज की वजह से तुम्हें पसंद करता हूं. तुम स्मार्ट हो, हर काम लगन से समय पर करती हो, दफ्तर में सब सहकर्मी भी तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं.’’ बौस के ऐसा कहने पर नेहा ने बहुत आदर के साथ अपने विचार कुछ इस तरह व्यक्त किए, ‘‘सर, जो बातें आप बता रहे हैं उन्हें मैं महसूस करती हूं. आप को ले कर मुझे औफिस में कोई असुरक्षा की भावना नहीं है. आप ने मेरा पूरा खयाल रखा है.’’

वे आगे बोले, ‘‘मैं अपनी पर्सनल लाइफ किसी के साथ शेयर नहीं करता. लेकिन न जाने क्यों दिल में यह बात उठी कि तुम से अपने मन की बात कहूं. तुम में मुझे अपनापन महसूस होता है. अगर मेरा विवाह हुआ होता तो शायद तुम्हारी जैसी मेरी एक बेटी होती. बचपन में ही मांबाप का साया सिर से उठ गया था. तब से अब तक मैं बिलकुल अकेला हूं. घर पर जाता हूं तो घर काटने को दौड़ता है. दोस्त हैं लेकिन कहने को. सब स्वार्थ से जुड़े हैं. कोई रिश्तेदार शहर में नहीं है. शायद तुम्हें मेरे हावभाव या व्यवहार से ऐसा लगा हो कि मेरी तरफ से फ्लर्ट करने जैसी कोई कोशिश जानेअनजाने में हो गई है. लेकिन ऐसा नहीं है. मैं ने मांबाप को खोने के बाद मन में कभी यह बात आने नहीं दी कि मैं विवाह करूंगा. मेरी जिंदगी में किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है.’’

नेहा भी थोड़ी भावुक हो गई. उसे लगा कि जिंदगी में सच्चे मित्र की आवश्यकता सभी को होती है. उस ने अपने पति में भी एक सच्चे दोस्त की ही तलाश की थी.

मीटिंग के बाद नेहा अपने बौस के साथ चंडीगढ़ लौट आई. अपने बौस जैसे इंसान को करीब से देखने, परखने का यह अवसर उसे जीवन के अच्छे मूल्यों और अच्छाइयों के प्रति आश्वस्त करा गया. उन्होंने नेहा से यह भी कहा कि जहां तक संभव होगा वे उसे राहुल के जीवन में वापस पहुंचाने में पूरी मदद करेंगे. नेहा मन ही मन बहुत खुश थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे बौस के रूप में उसे एक सच्चा दोस्त मिल गया हो.

वे दिल्ली में मैनेजिंग डायरैक्टर से विचारविमर्श कर के नेहा को पदोन्नति देने के विषय में निर्णय ले चुके थे. लेकिन यह बात उन्होंने गुप्त ही रखी थी. सोचा था किसी अच्छे मौके पर वह प्रमोशन लैटर नेहा को दे देंगे.

कंपनी की ऐनुअल जनरल मीटिंग की तिथि निश्चित हो चुकी थी, जो सभी कर्मचारियों और शेयर होल्डर्स द्वारा अटैंड की जानी थी. भव्य प्रोग्राम के दौरान उन्होंने प्रमोटेड कर्मचारियों के नामों की घोषणा की, जिस में नेहा का नाम भी था. नेहा ने देखा कि उस का पति राहुल भी हौल में बैठा था. नेहा की खुशी का ठिकाना न था. नेहा ने बौस से इस विषय में पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि राहुल को मैं ने आमंत्रित किया है. वैसे इस कंपनी के कुछ शेयर्स भी इस ने खरीदे हैं. आज का दिन तुम्हारे लिए आश्चर्य भरा है. जरा इंतजार करो. मैं वास्तव में तुम्हारे गार्जियन की तरह कुछ करने वाला हूं. नेहा कुछ समझ नहीं पाई. उस ने चुप रहना बेहतर समझा.

घोषणाओं का सिलसिला चलता रहा. फिर नेहा के बौस ने घोषणा की, ‘‘फ्रैंड्स, आप को जान कर खुशी होगी कि यहां आए राहुल की योग्यता और अनुभव के आधार पर उस का चयन हमारी कंपनी में असिस्टैंट जनरल मैनेजर पद के लिए हो चुका है. राहुल और उस की पत्नी नेहा को बधाई हो.’’

नेहा की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली. सब आमंत्रित लोगों के जाने के बाद, राहुल और नेहा दोनों उन के पास गए और उन को धन्यवाद प्रकट किया. खुशनुमा माहौल था.

‘‘कैन आई हग यू?’’ उन्होंने नेहा से पूछा.

‘‘ओ श्योर, वाई नौट’’ कहते हुए नेहा उन से ऐसे लिपट गई, जैसे वह अपने पापा से लाड़प्यार में लिपट जाया करती थी. उन की आंखें भर आई थीं. उन्हें लगा जैसे एक पौधा जो मुरझा रहा था, उन्होंने उस की जड़ें सींच दी हैं.

आंसुओं के बीच उन्होंने नेहा से कहा, ‘‘आज की शाम का सब से बड़ा गिफ्ट मैं तुम्हें दे रहा हूं. राहुल के साथ आज ही अपने घर लौट जाओ. अब तुम दोनों की काबिलीयत प्रूव हो चुकी है.’’

तारक मेहता में नए टप्पू की एंट्री, क्या जीत पाएंगे दर्शकों का दिल

टीवी के पॉपुलर शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा देखने वाले दर्शकों को काफी बड़ा झटका लगा है, जब राज आनदकट यानि टप्पू ने शो को अलविदा कह दिया है, इस खबर के आते ही इनके फैंस काफी ज्यादा दुखित हो गए थें.

खैर अब शो में नए टप्पू की एंट्री हो चुकी है, शो के मेकर्स ने कहा है कि जल्द ही शो में नए टप्पू का आगमन होगा, वह नए टप्पू के साथ शो को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, मेकर्स ने नीतीश भलूनी को शो के लिए फाइनल किया है. अब वह टप्पू बनकर दर्शकों को एटरटेन करते नजर आएंगे.

खबर है कि नीतिश जल्द शो कि शूटिंग भी शुरू करेंगे, देखते हैं जेठालाल के बेटे बनकर टप्पू ऑडियंस का दिल जीत पाते हैं या नहीं. क्योंकि पिछले 14 साल से यह शो दर्शकों की मन पसंद शो बनी हुई है, इस शो को देखने के लिए फैंस हमेशा इंतजार में बने रहते हैं.

इससे पहले नीतिश मेरी डोली मेरे अंगना सीरियल में काम कर चुके हैं, वैसे देखते हैं कि टप्पू बनकर ऑडियंस का दिल जीतने में कामयाब होते हैं या नहीं. टीवी इंजस्ट्री में नीतिश का यह बहुत बड़ा ब्रेक हो सकता है. क्योंकि पिछले 4 सालों में यह शो लोगों का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ा  है.

 

Valentine’s Special : जब चुनें डेटिंग ड्रेस और मेकअप

वैलेंटाइन डे एक ऐसा मौका है जब हवाओं में रंग और रोमांस का महकामहका सा एहसास होता है. आप किसी भी उम्र की हों, 16 से 76 तक की, इस दिन अपने पति या बौयफ्रैंड के साथ किसी रोमानी डेट पर जाएं और इस के लिए कुछ अलग तरह से तैयार होना न भूलें ताकि यह डेट आप के लिए यादगार बन जाए.

परिधान हो खास

इस संदर्भ में पेश हैं ऐलिगैंजा रिजूविनेशन क्लीनिक ऐंड ऐंपायर औफ मेकओवर्स की फाउंडर आशमीन मुंजाल के कुछ टिप्स:

ड्रैस हो खास: आप बौयफ्रैंड के साथ डेट पर जा रही हैं तो शौर्ट फ्लैयर्ड ड्रैस पहनें. यह आप को गर्लिश लुक देंगी. शादीशुदा हैं तो खूबसूरत साड़ी बेहतर विकल्प है, जो फैमिनिन लुक देती है. फ्लोरल प्रिंटेड, जौर्जेट फैब्रिक में लाइट पिंक या रैड कलर की साड़ी बिलकुल यशराज फिल्म्स की हीरोइनों की तरह आप को रोमांस के रंगों और एहसासों से भर देगी. जौर्जेट की साड़ी हलकी और कंफर्टेबल होती हैं जबकि हैवीवर्क वाली साड़ी पहनने पर आप उसे ही संभालती रह जाएंगी.

सेम कलर थीम: आप चाहें तो अपने जीवनसाथी के साथ सेम कलर थीम ट्राई कर सकती हैं. आजकल मेड फौर ईचअदर टी शर्ट्स/ड्रैसेज भी मिलती हैं. इसे पहन कर आप अपने जीवनसाथी के साथ चलेंगी तो आप को तो पूर्णता का एहसास होगी ही, देखने वाले भी आप की बौंडिंग के कायल हो जाएंगे.beauty

क्रिएटिविटी: ऐसे मौके पर आप शौल या पूरी बाजू का परिधान पहनने से बचें. साड़ी पहनी है तो ब्लाउज के साथ ऐक्सपैरिमैंट करें. हौल्टरनैक, नूडल्स स्ट्रैपी या स्वीट हार्टनैक वाली ड्रैसेज काफी आकर्षक लगेंगी.

बौडी शेप: परिधान के चयन में अपनी बौडी का भी ध्यान रखें. अगर आप की हाइट अधिक है तो लौंग फ्लोइंग अनारकली सूट या गाउन खूब जमेगा और यदि हाइट कम है, तो वनपीस ड्रैस या मिडी अच्छी लगेगी.

मैक्स फैशन की डिजाइनर कामाक्षी कौल के मुताबिक वैलेंटाइन डे के दिन पहनें कुछ ट्रैंडी और स्टाइलिश. जैसे:

ऐडवैंचरस डेट के लिए ड्रैस: यदि आप ने आउटडोर वैलेंटाइन डे प्लान किया है यानी किसी ट्रिप पर जा कर या स्पोर्टी इवैंट में हिस्सा लेते हुए इस दिन का आनंद लेना चाहती हैं, तो आप के लिए जींस और टौप बेहतर विकल्प हैं. जींस पहनने में कंफर्टेबल होती है. उस पर चिक टौप और लैदर की जैकेट स्मार्टनैस बढ़ाएगी. डार्क वाश स्किनीज, टौल राइडिंग बूट और कलर ब्लौक स्वैटर में भी आप स्मार्ट लुक के साथ ऐडवैंचरस डेट का मजा ले सकती हैं.

ज्वैलरी और ऐक्सैसरीज: आशमीन मुंजाल कहती हैं कि इस मौके पर कभी हैवी ज्वैलरी न पहनें. हलकी ज्वैलरी और खुले बाल आप को अलग ही आकर्षक लुक देंगे. बालों को नैचुरल लुक में रखें. चाहें तो कलर्स, रिबौंडिंग, परमानैंट वैव आदि करा कर बिलकुल अलग नजर आएं. थोड़ा स्टाइलिश दिखने के लिए सनग्लासेज, हलकी हील्स, कलरफुल बैंगल्स, स्कार्फ, नेलआर्ट, नेल ऐक्सटैंशन आदि अच्छे विकल्प हैं.beauty

लौंग जैकेट या केप: आजकल लौंग जैकेट का दौर चल रहा है. यह स्टाइलिश दिखने के साथसाथ हर तरह की ड्रैस पर फबती भी है. वैलेंटाइन डे के मौके पर साधारण कुरती के साथ भी इसे पहन कर आप स्टाइलिश लुक पा सकती हैं.

प्लाजो या धोतीपैंट: प्लाजो और धोतीपैंट  कुरती के साथ पहनी जाए तो बिलकुल डिफरैंट लुक देती है. आप चाहें तो एक पुरानी कुरती को बैलबौटम जींस के साथ भी पहन सकती हैं.

इनोवेटिव ब्लाउज: इस मौके पर क्लासिक साड़ी ब्लाउज के बजाय कुछ नया ऐक्सपैरिमैंट करें. एक पुराने क्रौप टौप को साड़ी या धोतीपैंट के साथ ब्लाउज की तरह पहन कर आप स्टाइलिश और डिफरैंट दिख सकती हैं.

सीक्वैंस: सीक्वैंस और लेयर्स हमेशा स्टाइल में रहे हैं. जब बात वैलेंटाइन डे की हो तो इन्हें अनदेखा कैसे किया जा सकता है. ऐंब्रौयडर्ड स्लिप या कोल्ड शोल्डर टौप के साथ डेनिम या फिर लैदर की पैंट देर रात की पार्टी में पहनी जा सकती है.

वैलेंटाइन डे स्पैशल मेकअप टिप्स

वीएलसीसी की संगीता विज के मुताबिक वैलेंटाइन डे के दिन कुछ यों तैयार हों:

– मेकअप की शुरुआत हलके फाउंडेशन से करें. फिर एक सौफ्ट पेस्टल या ब्राउन या फिर पिंक आईशैडो का प्रयोग करें. फैशनेबल दिखने के लिए फाल्स आईलैशैज का विकल्प भी चुन सकती हैं.

– मैट फिनिश लिप कलर्स भी इस सीजन की पहली पसंद हैं. अपने गालों के लिए पारंपरिक गुलाबी या फिर मौव कलर चुन सकती हैं.

– यदि आप को शाम के समय डेट पर जाना है तो स्मोकी आईज लुक कैरी करें. एक अच्छे बेस के साथ शुरुआत करें और डार्क ब्राउन कलर के साथ मिला कर एक इफैक्ट पैदा करें. ब्लैक को नजरअंदाज करते हुए स्मोकी आईशैडो का चयन करें.

– अपने आईकलर को हलके गुलाबी या मौव लिप कलर के साथ और खूबसूरत बनाएं. गालों के लिए ब्लशर प्लेट में से डार्क शेड्स चुनें. नियमित आईशैडो को ग्लिटर पिगमैंट से हलका टच दें. रैड लिपस्टिक के साथ मेकअप पूरा करें.

Valentine’s Special : प्यार का उपहार

सुबह उठने के साथ ही स्वीटी ने अपना मोबाइल उठाया. व्हाटसऐप पर प्रियांशु ने उसे वैलेंटाइन डे पर कई सारी रोमांटिक बातें, दोनों की फोटोग्राफ्स, सौंग्स सैंड किए हुए थे. शाम को वे दोनों मिल कर अपना वैलेंटाइन डे मनाने वाले थे लेकिन प्रियांशु ने सुबहसुबह ही उसे इतना स्पैशल फील करा दिया था कि वह इतनी ज्यादा रोमांटिक हो गई कि झट उसे कौल लगा दिया. फोन पर दोनों ने शाम को और भी इंट्रैस्ंिटग बनाने के सारे प्लान बना लिए.

शाम को जब स्वीटी प्रियांशु से मिली तो उस के लिए बहुत सुंदर सी रैड टाई विद ब्रौच ले जाना न भूली. प्रियांशु उस का फेवरेट परफ्यूम लाया था. गिफ्ट के मामले में दोनों ने एकदूसरे की पसंद का खयाल रखा था.

‘‘अच्छा बाबा, तुम्हें पसंद न आए तो बदल लेना पर एक बार देख तो लो,’’ निखिल के बारबार सम झाने पर भी रश्मि ने वैलेंटाइन डे का गिफ्ट खोल कर देखा तक नहीं और मुंह फुलाए बैडरूम में जा कर लेट गई. दरअसल, वह गिफ्ट अपनी पसंद से ही लेना चाहती थी. अपनी नासम झी से उस ने पति के लाए तोहफे का तो अपमान किया ही, साथ ही अपना व पति दोनों का वैलेंटाइन डे खराब भी कर लिया.

22 वर्षीय अमन अपना वैलेंटाइन डे अपनी दादीमां को उन का पसंदीदा गिफ्ट दे कर मनाता है. वह उस दिन उन के साथ ढेर सारी मस्ती व डांस करता है. दादी खुश हो कर उसे ढेरों आशीष देती हैं.

54 वर्षीया सिंगल मदर मधु अपनी बेटी के साथ अनाथ आश्रम जा कर अनाथ बच्चों के साथ वैलेंटाइन डे मनाती हैं. उन्हें उपहार दे कर उन के चेहरों पर बिखरती खुशियां देख कर उन्हें अपना वैलेंटाइन डे सार्थक लगता है.

उपरोक्त उदाहरण ये दर्शाने हेतु काफी हैं कि वैलेंटाइन डे पर अपने प्यार का इजहार करने के लिए लोग व तरीके अलगअलग हो सकते हैं, पर प्यार का रंग एक ही होता है और उस से मिली संतुष्टि व खुशी भी एकजैसी होती है. वैलेंटाइन डे की खुशियां मनाने के लिए आप के पास एक अदद रिश्ते का होना जरूरी है और वह रिश्ता किसी भी रूप में हो सकता है. इस वैलेंटाइन डे पर अपनों को दें खास तोहफा और करें उन से मिले तोहफे का दिली सम्मान. तो आइए जानें कि उपहार देते व लेते समय हमें किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

जब देना हो उपहार

उपहार खरीदते समय व्यक्ति की जरूरत व रुचि का ध्यान रखें ताकि वह उसे उपयोग कर खुशी का अनुभव कर सके और आप संतुष्टि का.

उपहार का चुनाव अपनी हैसियत को देख कर करें. हैसियत से बढ़ कर खरीदा गया तोहफा बाद में आप की महीनों की नींद उड़ा सकता है. इसलिए जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाएं.

सामने वाले को इस बात का एहसास कराने की कोशिश कभी न करें कि आप ने  उस के लिए कितना महंगा या खूबसूरत उपहार लिया है अर्थात उपहार दे कर शब्दों व भावों से एहसान न जताएं. याद रखें उपयोगिता उपहार की नहीं, बल्कि रिश्तों के माधुर्य की है.

उपहार देते समय आप के चेहरे की सौम्यता व मुसकान आप के उपहार की कीमत को कई गुना बढ़ा देती है. देने वाले के दिल की खुशी लेने वाले के दिल तक पहुंच भावों की अभिव्यक्ति को खूबसूरती से दर्शाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

उपहार दे कर बदले में उपहार मिलने की उम्मीद रखना बेहद गलत रवैया है. किसी को उपहार दे कर यह सोचना कि वह भी आप को उसी कीमत का उपहार दे, रिश्तों के प्रति आप के गणित को दर्शाता है. रिश्तों का यह मोलभाव भविष्य में आप के अच्छेभले रिश्ते में खटास पैदा कर सकता है.

उपहार देते समय क्वांटिटी नहीं क्वालिटी पर ध्यान दें. यानी उपहार ऐसा हो जो लेने वाले के लिए उस की उपयोगिता सिद्ध करे. सिर्फ अपनी सहूलियत के हिसाब से दिया गया तोहफा सामने वाले के घर में सिर्फ स्टोररूम की शोभा बढ़ाएगा.

जब मिले अपनों से उपहार

अपने पति या प्रेमी से मिले उपहार की कीमत को रुपयों से न तोलें, बल्कि देखें उस के पीछे छिपी प्यार की अनमोल भावना. मसलन, उपहार महंगा है या सस्ता, यह देखने के बजाय देखें तो सिर्फ उन का प्यारभरा दिल.

उपहार मिलने पर उत्साहपूर्वक उन का शुक्रिया अदा कर के अपनी खुशी व्यक्त करने में कंजूसी न करें. तोहफा देने वाले की खुशी सौगुना बढ़ जाती है, आप का तोहफा स्वीकार करने के तरीके से. तो दिलबर के तोहफे को दिल से स्वीकार कर उन पलों को हसीन बना उन का पूरा लुत्फ उठाएं.

इस मौके पर पिछले मिले उपहारों से उस की तुलना कर इस वक्त खुशी और प्यार को हरगिज न गंवाएं. इस खूबसूरत मौके पर अगलेपिछले उपहारों का ब्योरा खोल कर न बैठें, बल्कि अपने प्यारभरे अंदाज से इस मौके को हमेशा के लिए यादगार बना दें.

तुनकमिजाज न बनें. बेवजह रिश्ते को शक की दुकान न बनाएं. प्रियतम पर विश्वास रखें और अपने प्यार की गरमाहट से उन का दिल जीत लें.

प्यार से दिए गए तोहफे का मखौल उड़ाना रिश्तों में तनाव पैदा करता है, साथी के दिए उपहार का सम्मान करें, न कि उपहास उड़ाएं. अगर साथी द्वारा दिया गया उपहार आप को पसंद नहीं आया तो भी उसे शालीनता से ले कर साथी की भावनाओं का सम्मान करें.

तो इस वैलेंटाइन डे पर आप भी अपनों को दें अपने प्यार की निशानी के रूप में एक खूबसूरत तोहफा जो आप के दिल की कहानी खुद बयां करे और आप के वैलेंटाइन डे को एक खुशनुमा याद में तबदील कर दे.

Valentine’s Special : इन खास टिप्स को करें फौलो

वैलेंटाइन डे पर अपने लुक को परफैक्ट आउटफिट और मेकअप के साथ कुछ इस तरह संवारें कि पार्टनर की नजर आप की खूबसूरती पर थम जाए. जानिए, मेकअप आर्टिस्ट क्रिस्टल फर्नांडिस के टिप्स :

सैक्सी आंखें

आंखों को सैक्सी लुक देने के लिए स्मोकी आई मेकअप सब से बढि़या औप्शन है, इस के लिए ब्लैक शेड का आईशैडो, फिर ब्लैक आई लाइनर और आखिर में ब्लैक मस्कारा लगाएं. अगर आप की आंखें छोटी हैं तो पहले आंखों के इनर कौर्नर पर व्हाइट आईशैडो लगाएं. फिर आई लाइनर, आईशैडो से आई मेकअप को स्मोकी लुक दें.

फ्लर्टी आईलैशेस

आईलैशेस को फ्लर्टी इफैक्ट देने के लिए आईशैडो और आई लाइनर लगाने के बाद फाइनल फिनिश के लिए आईलैशेस पर मस्कारा लगा कर कर्ल करें.

आईकैची आईब्रोज

आकर्षक आईब्रोज के लिए पहले आईब्रोज को शेप में बना लें. फिर ब्राउन शेड का आईशैडो लगा कर आईब्रोज को सही और आकर्षक शेप दें. अगर आप चाहती हैं कि आप के आईब्रोज उठे हुए दिखाई दें तो आई मेकअप और आईब्रोज अच्छी तरह सैट हो जाने पर आइब्रो बोन पर हाईलाइटर अप्लाई करें.

हौट पाउट

अपने लिप्स को हौट लुक देने के लिए बोल्ड शेड की लिपस्टिक का चुनाव करें, जैसे रैड, औरेंज आदि. आप रैड के बजाय एवरग्रीन पिंक शेड के डिफरैंट शेड्स का चुनाव भी कर सकती हैं. ग्लौसी के बजाय मैट टैक्स्चर वाली लिपस्टिक खरीदें. यह लौंग लास्टिंग होती है और इस का इफैक्ट भी काफी फ्रैश नजर आता है.

शाइनी फेस

शाइनी फेस के लिए चेहरे पर मौइश्चराइजर लगाने के बजाय शिमरी लोशन लगाएं. अगर आप का रंग सांवला है, तो बेस मेकअप के लिए गोल्डन पाउडर लगाएं, इस से चेहरा ग्लो करेगा. मेकअप कंपलीट करने के बाद चेहरे पर लिक्विड हाईलाइटर लगाना न भूलें.

रोमांटिक हेयरस्टाइल

हेयरस्टाइल से आप अपनी पर्सनैलिटी को जैसा चाहें वैसा लुक दे सकती हैं, रोमांटिक लुक के लिए बालों को कर्ल करवाएं और ओपन कर्ल हेयर के साथ ऐंबेलिश्ड हैड बैंड, हेयर बो या बोहो बैंड लगाएं.  सैक्सी नजर आने के लिए मेसी अपडू, लो मेसी बन, सल्ट्री अपडू, क्लीन पोनी टेल जैसी हेयरस्टाइल लें.

एक युवक मुझे एकटक देखता रहता है, मैं कैसे उस से प्रेम की बात करूं?

सवाल

एक युवक जो मेरे ही कालेज में थर्ड ईयर का छात्र है कई बार मुझ से टकराता है और एकटक देखता रहता है. कभी उस ने मुझ से बात करने की हिम्मत नहीं दिखाई. कभीकभी वह अपने दोस्तों, जिन में युवतियां भी होती हैं, संग भी होता है और मुझे देखने के बाद उन से कट लेता है. मैं भी मन ही मन उसे प्यार करती हूं, पर समझ नहीं पा रही कि उस का बारबार मुझ से टकराना मेरे प्रति आकर्षण के कारण है या इत्तफाकन. मैं कैसे उस से प्रेम की बात करूं?

जवाब

वह आप से बारबार टकराता है अर्थात जहां भी आप जाती हैं वहीं आप से मिलने पहुंच जाता है यानी आप के मन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है. उस का एकटक आप को देखना और दोस्तों के साथ होने पर कटना व आप की तरफ आना बताता है कि वह आप के प्रति आकर्षित है और बारबार मिलने की चाह से जहां आप जाती हैं वहां पहुंच कर ऐसे जताता है जैसे इत्तफाक से यह मिलन हुआ है.

इधर आप के मन में भी उस के प्रति सौफ्ट कौर्नर पनप रहा है. हो सकता है डर, झिझक या कहीं आप मना न कर दें, के कारण वह आप को ‘आई लव यू’ न कह पा रहा हो और मिलतेमिलते प्यार हो जाएगा का फार्मूला अपना रहा हो. आप भी उस से मिलिए. वह आप का सीनियर है तो पढ़ाई में सहायता, किताब मांगने आदि से शुरू कर उस का मोबाइल नंबर ले लीजिए. फिर दिल की बात बिना कहे व्हाट्सऐप आदि से शेयर कर सकती हैं. यकीन मानिए, प्यार की आग इधर भी है उधर भी, बस इजहारे इश्क की चिनगारी जलाने की देर है.

 

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Valentine’s Special- कितना करूं इंतजार: क्या मनोज और रति की शादी हुई?

मुझे गुमसुम और उदास देख कर मां  ने कहा, ‘‘क्या बात है, रति, तू इस तरह मुंह लटकाए क्यों बैठी है? कई दिन से मनोज का भी कोई फोन नहीं आया. दोनों ने आपस में झगड़ा कर लिया क्या?’’

‘‘नहीं, मां, रोजरोज क्या बात करें.’’

‘‘कितने दिनों से शादी की तैयारी कर रहे थे, सब व्यर्थ हो गई. यदि मनोज के दादाजी की मौत न हुई होती तो आज तेरी शादी को 15 दिन हो चुके होते. वह काफी बूढ़े थे. तेरहवीं के बाद शादी हो सकती थी पर तेरे ससुराल वाले बड़े दकियानूसी विचारों के हैं. कहते हैं कि साए नहीं हैं. अब तो 5-6 महीने बाद ही शादी होगी.

‘‘हमारी तो सब तैयारी व्यर्थ हो गई. शादी के कार्ड बंट चुके थे. फंक्शन हाल को, कैटरर्स को, सजावट करने वालों को, और भी कई लोगों को एडवांस पेमेंट कर चुके थे. 6 महीने शादी सरकाने से अच्छाखासा नुकसान हो गया है.’’

‘‘इसी बात से तो मनोज बहुत डिस्टर्ब है, मां. पर कुछ कह नहीं पाता.’’

‘‘बेटा, हम भी कभी तुम्हारी उम्र के थे. तुम दोनों के एहसास को समझ सकते हैं, पर हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. मैं ने तो तेरी सास से कहा भी था कि साए नहीं हैं तो क्या हुआ, अच्छे काम के लिए सब दिन शुभ होते हैं…अब हमें शादी कर देनी चाहिए.

‘‘मेरा इतना कहना था कि वह तो भड़क गईं और कहने लगीं, आप के लिए सब दिन शुभ होते होंगे पर हम तो सायों में भरोसा करते हैं. हमारा इकलौता बेटा है, हम अपनी तरफ से पुरानी मान्यताओं को अनदेखा कर मन में कोई वहम पैदा नहीं करना चाहते.’’

रति सोचने लगी कि मम्मी इस से ज्यादा क्या कर सकती हैं और मैं भी क्या करूं, मम्मी को कैसे बताऊं कि मनोज क्या चाहता है.

नर्सरी से इंटर तक हम दोनों साथसाथ पढ़े थे. किंतु दोस्ती इंटर में आने के बाद ही हुई थी. इंटर के बाद मनोज इंजीनियरिंग करने चला गया और मैं ने बी.एससी. में दाखिला ले लिया था. कालिज अलग होने पर भी हम दोनों छुट्टियों में कुछ समय साथ बिताते थे. बीच में फोन पर बातचीत भी कर लेते थे. कंप्यूटर पर चैट हो जाती थी.

एम.एससी. में आते ही मम्मीपापा ने शादी के लिए लड़का तलाशने की शुरुआत कर दी. मैं ने कहा भी कि मम्मी, एम.एससी. के बाद शादी करना पर उन का कहना था कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखो, शादी कौन सी अभी हुई जा रही है, अच्छा लड़का मिलने में भी समय लगता है.

शादी की चर्चा शुरू होते ही मनोज की छवि मेरी आंखों में तैर गई थी. यों हम दोनों एक अच्छे मित्र थे पर तब तक शादी करने के वादे हम दोनों ने एकदूसरे से नहीं किए थे. साथ मिल कर भविष्य के सपने भी नहीं देखे थे पर मम्मी द्वारा शादी की चर्चा करने पर मनोज का खयाल आना, क्या इसे प्यार समझूं. क्या मनोज भी यही चाहता है, कैसे जानूं उस के दिल की बात.

मुलाकात में मनोज से मम्मी द्वारा शादी की पेशकश के बारे में बताया तो वह बोला, ‘‘इतनी जल्दी शादी कर लोगी, अभी तो तुम्हें 2 वर्ष एम.एससी. करने में ही लगेंगे,’’ फिर कुछ सोचते हुए बोला था, ‘‘सीधेसीधे बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी…पर अभी मुझे सैटिल होने में कम से कम 2-3 वर्ष लगेंगे.’’

प्रसन्नता की एक लहर तनमन को छू गई थी, ‘‘सच कहूं मनोज, जब मम्मी ने शादी की बात की तो एकदम से मुझे तुम याद आ गए थे…क्या यही प्यार है?’’

‘‘मैं समझता हूं यही प्यार है. देखो, जो बात अब तक नहीं कह सका था, तुम्हारी शादी की बात उठते ही मेरे मुंह पर आ गई और मैं ने तुम्हें प्रपोज कर डाला.’’

‘‘अब जब हम दोनों एकदूसरे से चाहत का इजहार कर ही चुके हैं तो फिर इस विषय में गंभीरता से सोचना होगा.’’

‘‘सोचना ही नहीं होगा रति, तुम्हें अपने मम्मीपापा को इस शादी के लिए मनाना भी होगा.’’

‘‘क्या तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे?’’

‘‘देखो, अभी तो मेरा इंजीनियरिंग का अंतिम साल है. मेरी कैट की कोचिंग भी चल रही है…उस की भी परीक्षा देनी है. वैसे हो सकता है इस साल किसी अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट मिल जाए क्योंकि कालिज में बहुत सी कंपनियां आती हैं और जौब आफर करती हैं. अच्छा आफर मिला तो मैं स्वीकार कर लूंगा और जैसे ही शादी की चर्चा शुरू होगी मैं तुम्हारे बारे में बता दूंगा.’’

प्यार का अंकुर तो हमारे बीच पनप ही चुका था और हमारा यह प्यार अब जीवनसाथी बनने के सपने भी देखने लगा था. अब इस का जिक्र अपनेअपने घर में करना जरूरी हो गया था.

मैं ने मम्मी को मनोज के बारे में बताया तो वह बोलीं, ‘‘वह अपनी जाति का नहीं है…यह कैसे हो सकता है, तेरे पापा तो बिलकुल नहीं मानेंगे. क्या मनोज के मातापिता तैयार हैं?’’

‘‘अभी तो इस बारे में उस के घर वाले कुछ नहीं जानते. फाइनल परीक्षा होने तक मनोज को किसी अच्छी कंपनी में जौब का आफर मिल जाएगा और रिजल्ट आते ही वह कंपनी ज्वाइन कर लेगा. उस के बाद ही वह अपने मम्मीपापा से बात करेगा.’’

‘‘क्या जरूरी है कि वह मान ही जाएंगे?’’

‘‘मम्मी, मुझे पहले आप की इजाजत चाहिए.’’

‘‘यह फैसला मैं अकेले कैसे ले सकती हूं…तुम्हारे पापा से बात करनी होगी…उन से बात करने के लिए मुझे हिम्मत जुटानी होगी. यदि पापा तैयार नहीं हुए तो तुम क्या करोगी?’’

‘‘करना क्या है मम्मी, शादी होगी तो आप के आशीर्वाद से ही होगी वरना नहीं होगी.’’

इधर मेरा एम.एससी. फाइनल शुरू हुआ उधर इंजीनियरिंग पूरी होते ही मनोज को एक बड़ी कंपनी में अच्छा स्टार्ट मिल गया था और यह भी करीबकरीब तय था कि भविष्य मेें कभी भी कंपनी उसे यू.एस. भेज सकती है. मनोज के घर में भी शादी की चर्चा शुरू हो गई थी.

मैं ने मम्मी को जैसेतैसे मना लिया था और मम्मी ने पापा को किंतु मनोज की मम्मी इस विवाह के लिए बिलकुल तैयार नहीं थीं. इस फैसले से मनोज के घर में तूफान उठ खड़ा हुआ था. उस के घर में पापा से ज्यादा उस की मम्मी की चलती है. ऐसा एक बार मनोज ने ही बताया था…मनोज ने भी अपने घर में ऐलान कर दिया था कि शादी करूंगा तो रति से वरना किसी से नहीं.

आखिर मनोज के बहनबहनोई ने अपनी तरह से मम्मी को समझाया था, ‘‘मम्मी, आप की यह जिद मनोज को आप से दूर कर देगी, आजकल बच्चों की मानसिक स्थिति का कुछ पता नहीं चलता कि वह कब क्या कर बैठें. आज के ही अखबार में समाचार है कि मातापिता की स्वीकृति न मिलने पर प्रेमीप्रेमिका ने आत्महत्या कर ली…वह दोनों बालिग हैं. मनोज अच्छा कमा रहा है. वह चाहता तो अदालत में शादी कर सकता था पर उस ने ऐसा नहीं किया और आप की स्वीकृति का इंतजार कर रहा है. अब फैसला आप को करना है.’’

मनोज के पिता ने कहा था, ‘‘बेटा, मुझे तो मनोज की इस शादी से कोई एतराज नहीं है…लड़की पढ़ीलिखी है, सुंदर है, अच्छे परिवार की है… और सब से बड़ी बात मनोज को पसंद है. बस, हमारी जाति की नहीं है तो क्या हुआ पर तुम्हारी मम्मी को कौन समझाए.’’

‘‘जब सब तैयार हैं तो मैं ही उस की दुश्मन हूं क्या…मैं ही बुरी क्यों बनूं? मैं भी तैयार हूं.’’

मम्मी का इरादा फिर बदले इस से पहले ही मंगनी की रस्म पूरी कर दी गई थी. तय हुआ था कि मेरी एम.एससी. पूरी होते ही शादी हो जाएगी.

मंगनी हुए 1 साल हो चुका था. शादी की तारीख भी तय हो चुकी थी. मनोज के बाबा की मौत न हुई होती तो हम दोनों अब तक हनीमून मना कर कुल्लूमनाली, शिमला से लौट चुके होते और 3 महीने बाद मैं भी मनोज के साथ अमेरिका चली जाती.

पर अब 6-7 महीने तक साए नहीं हैं अत: शादी अब तभी होगी ऐसा मनोज की मम्मी ने कहा है. पर मनोज शादी के टलने से खुश नहीं है. इस के लिए अपने घर में उसे खुद ही बात करनी होगी. हां, यदि मेरे घर से कोई रुकावट होती तो मैं उसे दूर करने का प्रयास करती.

पर मैं क्या करूं. माना कि उस के भी कुछ जजबात हैं. 4-5 वर्षों से हम दोस्तों की तरह मिलते रहे हैं, प्रेमियों की तरह साथसाथ भविष्य के सपने भी बुनते रहे हैं किंतु मनोज को कभी इस तरह कमजोर होते नहीं देखा. यद्यपि उस का बस चलता तो मंगनी के दूसरे दिन ही वह शादी कर लेता पर मेरा फाइनल साल था इसलिए वह मन मसोस कर रह गया.

प्रतीक्षा की लंबी घडि़यां हम कभी मिल कर, कभी फोन पर बात कर के काटते रहे. हम दोनों बेताबी से शादी के दिन का इंतजार करते रहे. दूरी सहन नहीं होती थी. साथ रहने व एक हो जाने की इच्छा बलवती होती जाती थी. जैसेजैसे समय बीत रहा था, सपनों के रंगीन समुंदर में गोते लगाते दिन मंजिल की तरफ बढ़ते जा रहे थे. शादी के 10 दिन पहले हम ने मिलना भी बंद कर दिया था कि अब एकदूसरे को दूल्हादुलहन के रूप में ही देखेंगे पर विवाह के 7 दिन पहले बाबाजी की मौत हमारे सपनों के महल को धराशायी कर गई.

बाबाजी की मौत का समाचार मुझे मनोज ने ही दिया था और कहा था, ‘‘बाबाजी को भी अभी ही जाना था. हमारे बीच फिर अंतहीन मरुस्थल का विस्तार है. लगता है, अब अकेले ही अमेरिका जाना पडे़गा. तुम से मिलन तो मृगतृष्णा बन गया है.’’

तेरहवीं के बाद हम दोनों गार्डन में मिले थे. वह बहुत भावुक हो रहा था, ‘‘रति, तुम से दूरी अब सहन नहीं होती. मन करता है तुम्हें ले कर अनजान जगह पर उड़ जाऊं, जहां हमारे बीच न समाज हो, न परंपराएं हों, न ये रीतिरिवाज हों. 2 प्रेमियों के मिलन में समाज के कायदे- कानून की इतनी ऊंची बाड़ खड़ी कर रखी है कि उन की सब्र की सीमा ही समाप्त हो जाए. चलो, रति, हम कहीं भाग चलें…मैं तुम्हारा निकट सान्निध्य चाहता हूं. इतना बड़ा शहर है, चलो, किसी होटल में कुछ घंटे साथ बिताते हैं.’’

जो हाल मनोज का था वही मेरा भी था. एक मन कहता था कि अपनी खींची लक्ष्मण रेखा को अब मिटा दें किंतु दूसरा मन संस्कारों की पिन चुभो देता कि बिना विवाह यह सब ठीक नहीं. वैसे भी एक बार मनोज की इच्छा पूरी कर दी तो यह चाह फिर बारबार सिर उठाएगी, ‘‘नहीं, यह ठीक नहीं.’’

‘‘क्या ठीक नहीं, रति. क्या तुम को मुझ पर विश्वास नहीं? पतिपत्नी तो हमें बनना ही है. मेरा मन आज जिद पर आया है, मैं भटक सकता हूं, रति, मुझे संभाल लो,’’ गार्डन के एकांत झुटपुटे में उस ने बांहों में भर कर बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया था. मैं ने भी आज उसे यह छूट दे दी थी ताकि उस का आवेग कुछ शांत हो किंतु मनोज की गहरीगहरी सांसें और अधिक समा जाने की चाह मुझे भी बहकाए उस से पूर्व ही मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘अपने को संभालो, मनोज. यह भी कोई जगह है बहकने की? मैं भी कोई पत्थर नहीं, इनसान हूं…कुछ दिन अपने को और संभालो.’’

‘‘इतने दिन से अपने को संभाल ही तो रहा हूं.’’

‘‘जो तुम चाह रहे हो वह हमारी समस्या का समाधान तो नहीं है. स्थायी समाधान के लिए अब हाथपैर मारने होंगे. चलो, बहुत जोर से भूख लगी है, एक गरमागरम कौफी के साथ कुछ खिला दो, फिर इस बारे में कुछ मिल कर सोचते हैं.’’

रेस्टोरेंट में बैरे को आर्डर देने के बाद मैं ने ही बात शुरू की, ‘‘मनोज, तुम्हें अब एक ही काम करना है… किसी तरह अपने मातापिता को जल्दी शादी के लिए तैयार करना है, जो बहुत मुश्किल नहीं. आखिर वे हमारे शुभचिंतक हैं, तुम ने उन से एक बार भी कहा कि शादी इतने दिन के लिए न टाल कर अभी कर दें.’’

‘‘नहीं, यह तो नहीं कहा.’’

‘‘तो अब कह दो. कुछ पुराना छोड़ने और नए को अपनाने में हरेक को कुछ हिचक होती है. अपनी इंटरकास्ट मैरिज के लिए आखिर वह तैयार हो गए न. तुम देखना बिना सायों के शादी करने को भी वह जरूर मान जाएंगे.’’

मनोज के चेहरे पर खुशी की एक लहर दौड़ गई थी, ‘‘तुम ठीक कह रही हो रति, यह बात मेरे ध्यान में क्यों नहीं आई? खाने के बाद तुम्हें घर पर छोड़ देता हूं. कोर्ट मैरिज की डेट भी तो पास आ गई है, उसे भी आगे नहीं बढ़ाने दूंगा.’’

‘‘ठीक है, अब मैरिज वाले दिन कोर्ट में ही मिलेंगे.’’

‘‘मेरे आज के व्यवहार से डर गईं क्या? इस बीच फोन करने की इजाजत तो है या वह भी नहीं है?’’

‘‘चलो, फोन करने की इजाजत दे देते हैं.’’

रजिस्ट्रार के आफिस में मैरिज की फार्र्मेलिटी पूरी होने के बाद हम दोनों अपने परिवार के साथ बाहर आए तो मनोज के जीजाजी ने कहा, ‘‘मनोज, अब तुम दोनों की शादी पर कानून की मुहर लग गई है. रति अब तुम्हारी हुई.’’

‘‘ऐ जमाई बाबू, ये इंडिया है, वह तो वीजा के लिए यह सब करना पड़ा है वरना इसे हम शादी नहीं मानते. हमारे घर की बहू तो रति विवाह संस्कार के बाद ही बनेगी,’’ मेरी मम्मी ने कहा.

‘‘वह तो मजाक की बात थी, मम्मी, अब आप लोग घर चलें. मैं तो इन दोनों से पार्टी ले कर ही आऊंगा.’’

होटल में खाने का आर्डर देने के बाद मनोज ने अपने जीजाजी से पूछा, ‘‘जीजाजी, मम्मी तक हमारी फरियाद अभी पहुंची या नहीं?’’

‘‘साले साहब, क्यों चिंता करते हो. हम दोनों हैं न तुम्हारे साथ. अमेरिका आप दोनों साथ ही जाओगे. मैं ने अभी बात नहीं की है, मैं आप की इस कोर्ट मैरिज हो जाने का इंतजार कर रहा था. आगे मम्मी को मनाने की जिम्मेदारी आप की बहन ने ली है. इस से भी बात नहीं बनी तो फिर मैं कमान संभालूंगा.’’

‘‘हां, भैया, मैं मम्मी को समझाने की पूरी कोशिश करूंगी.’’

‘‘हां, तू कोशिश कर ले, न माने तो मेरा नाम ले कर कह देना, ‘आप अब शादी करो या न करो भैया भाभी को साथ ले कर ही जाएंगे.’’’

‘‘वाह भैया, आज तुम सचमुच बड़े हो गए हो.’’

‘‘आफ्टर आल अब मैं एक पत्नी का पति हो गया हूं.’’

‘‘ओके, भैया, अब हम लोग चलेंगे, आप लोगों का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘कुछ देर घूमघाम कर पहले रति को उस के घर छोडं़ ूगा फिर अपने घर जाऊंगा.’’

मेरे गले में बांहें डालते हुए मनोज ने शरारत से देखा, ‘‘हां, रति, अब क्या कहती हो, तुम्हारे संस्कार मुझे पति मानने को तैयार हैं या नहीं?’’

आंखें नचाते हुए मैं चहकी, ‘‘अब तुम नाइंटी परसेंट मेरे पति हो.’’

‘‘यानी टैन परसेंट की अब भी कमी रह गई है…अभी और इंतजार करना पडे़गा?’’

‘‘उस दिन का मुझे अफसोस है मनोज…पर अब मैं तुम्हारी हूं.’’

Valentine’s Special- हमेशा की तरह : सुमन को उस दिन कौन-सा सरप्राइज मिला

सुबह जब गुलशन की आंख खुली तो सुमन मादक अंगड़ाई ले रही थी. पति को देख कर उस ने नशीली मुसकान फेंकी, जिस से कहते हैं कि समुद्र में ठहरे जहाज भी चल पड़ते हैं. अचानक गुलशन गहरी ठंडी सांस छोड़ने को मजबूर हो गया.

‘काश, पिछले 20 वर्ष लौट आते,’’ गुलशन ने सुमन का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा.

‘‘क्या करते तब?’’ सुमन ने हंस कर पूछा.

गुलशन ने शरारत से कहा, ‘‘किसी लालनीली परी को ले कर बहुत दूर उड़ जाता.’’

सुमन सोच रही थी कि शायद गुलशन उस के लिए कुछ रोमानी जुमले कहेगा. थोड़ी देर पहले जो सुबह सुहावनी लग रही थी और बहुतकुछ मनभावन आशाएं ले कर आई थी, अचानक फीकी सी लगने लगी.

‘‘मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं?’’ सुमन ने शब्दों पर जोर देते हुए पूछा, ‘‘आज के दिन भी नहीं?’’

‘‘तुम ही तो मेरी लालनीली और सब्जपरी हो,’’ गुलशन अचानक सुमन को भूल कर चादर फेंक कर उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘अरे बाबा, मैं तो भूल ही गया था.’’

सुमन के मन में फिर से आशा जगी, ‘‘क्या भूल गए थे?’’

‘‘बड़ी जरूरी मीटिंग है. थोड़ा जल्दी जाना है,’’ कहतेकहते गुलशन स्नानघर में घुस गया.

सुमन का चेहरा फिर से मुरझा गया. गुलशन 50 करोड़ रुपए की संपत्ति वाले एक कारखाने का प्रबंध निदेशक था. बड़ा तनावभरा जीवन था. कभी हड़ताल, कभी बोनस, कभी मीटिंग तो कभी बोर्ड सदस्यों का आगमन. कभी रोजमर्रा की छोटीछोटी दिखने वाली बड़ी समस्याएं, कभी अधकारियों के घोटाले तो कभी यूनियन वालों की तंग करने वाली हरकतें. इतने सारे झमेलों में फंसा इंसान अकसर अपने अधीनस्थ अधिकारियों से भी परेशान हो जाता है. परामर्शदाताओं ने उसे यही समझाया है कि इतनी परेशानियों के लिए वह खुद जिम्मेदार है. वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों में पूरा विश्वास नहीं रखता. वह कार्यविभाजन में भी विश्वास नहीं रखता. जब तक स्वयं संतुष्ट नहीं हो जाता, किसी काम को आगे नहीं बढ़ने देता. यह अगर उस का गुण है तो एक बड़ी कमजोरी भी.

जल्दीजल्दी उस ने एक टोस्ट खाया और एक गिलास दूध पी कर ब्रीफकेस उठाया. सुमन उस के चेहरे को देख रही थी शायद अभी भी कुछ कहे. पर पति के चेहरे पर केवल तनाव की रेखाएं थीं, कोमल भावनाओं का तो नामोनिशान तक न था. गलशन की कार के स्टार्ट होने की आवाज आई. सुमन ने ठंडी सांस ली. जब गुलशन छोटा अधिकारी था और वेतन भी मामूली था, तब उन का जीवन कितना सुखी था. एक अव्यक्त प्यार का सुखद प्रतीक था, आत्मीयता का सागर था. परंतु आज सबकुछ होते हुए भी कुछ नहीं. दोपहर के 12 बजे थे. प्रेमलता ने घर का सारा काम निबटा दिया था. सुमन भी नहाधो कर बालकनी में बैठी एक पत्रिका देख रही थी. प्रेमलता ने कौफी का प्याला सामने मेज पर रख दिया था.

टैलीफोन की घंटी ने उसे चौंका तो दिया पर साथ ही चेहरे पर एक मुसकान भी ला दी. सोचा, शायद साहब को याद आ ही गया. सिवा गुलशन के और कौन करेगा फोन इस समय? पास रखे फोन को उठा कर मीठे स्वर में कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय, सुमन,’’ गुलशन ही था.

‘‘सुनो,’’ सुमन ने कहना चाहा.

‘‘देखो, सुबह मैं भूल गया था. और अब मुझे समय नहीं मिलेगा. मिक्की को फोन कर देना. आज उस का जन्मदिन है न,’’ गुलशन ने प्यार से कहा, ‘‘तुम बहुत अच्छी हो.’’ गुलशन ने फोन रख दिया था. सुमन हाथ में पकड़ी उस निर्जीव वस्तु को देखते हुए सोचने लगी, ‘बस, इतना ही याद रहा कि मिक्की का जन्मदिन है.’ मिक्की गुलशन की बहन है. यह एक अजीब संयोग था कि आज सुमन का भी जन्मदिन था. दिन तो दोनों का एक ही था, बस साल अलगअलग थे. शुरू में कई वर्षों तक दोनों अपने जन्मदिन एकसाथ बड़ी धूमधाम से मनाती थीं. बाद में तो अपनअपने परिवारों में उलझती चली गईं. साल में एक यही ऐसा दिन आता है, जब कोई अकेला नहीं रहना चाहता. भीड़भाड़, शोरगुल और जश्न के लिए दिल मचलता है. मांबाप की तो बात ही और है, पर जब अपना परिवार हो तो हर इंसान आत्मीयता के क्षण सब के साथ बांटना चाहता है. गुलशन के साथ बिताए कई आरंभिक जन्मदिन जबजब याद आते, पिछले कुछ वर्षों से चली आ रही उपेक्षा बड़ी चोट करती.

आज भी हमेशा की तरह…

‘कोई बात नहीं. तरक्की और बहुत ऊंचा जाने की कामना अनेक त्याग मांगती है. इस त्याग का सब से पहला शिकार पत्नी तो होगी ही, और अगर स्त्री ऊंची उड़ान भरती है तो पति से दूर होने लगती है,’ सुमन कुछ ऐसी ही विचारधारा में खोई हुई थी कि फोन की घंटी ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘हैलो,’’ उस ने उदास स्वर में कहा.

‘‘हाय, मां,’’ अलका ने खिलते फूल की तरह उत्साह से कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो.’’

बेटी अलका मसूरी में एक स्कूल में पढ़ती है और वहीं होस्टल में रहती है.

‘‘धन्यवाद, बेटी,’’ सुमन ने पुलकित स्वर में कहा, ‘‘कैसी है तू?’’

‘‘अरे, मुझे क्या होगा मां, पहले यह बताओ, क्या पक रहा है जन्मदिन की खुशी में?’’ अलका ने हंस कर पूछा, ‘‘आ जाऊं?’’

‘‘आजा, बहुत याद आ रही है तेरी,’’ सुमन ने प्यार से कहा.

‘‘मां, मुझे भी तुम्हारी दूरी अब अच्छी नहीं लग रही है,’’ अलका ने चौंकने के स्वर में कहा, ‘‘अरे, साढ़े 12 बजने वाले हैं. चलती हूं, मां. कक्षा में जाना है.’’

‘‘ठीक है, बेटी, अच्छी तरह पढ़ना. अच्छे नंबरों से पास होना. अपनी सेहत का ध्यान रखना और रुपयों की जरूरत हो तो फोन कर देना,’’ सुमन ने जल्दीजल्दी से वह सब दोहरा दिया जिसे दोहराते वह कभी थकती नहीं.

अलका खिलखिला पड़ी, ‘‘मां, क्या सारी माएं तुम्हारी तरह ही होती हैं? कभी तो हम मूर्ख संतानों को अपने हाल पर छोड़ दिया करो.’’

‘‘अभी थोड़ी समझेगी तू…’’

अलका ने बात काटते हुए कहा, ‘‘जब मां बनेगी तो जानेगी. अरे मां, बाकी का संवाद मुंहजबानी याद है. ठीक है, जा रही हूं. देर हो रही है.’’ सुमन के चेहरे पर खिन्न मुसकान थी. ‘ये आजकल के बच्चे तो बस.’ धीरे से सोचते हुए फोन बंद कर के रख दिया, ‘कम से कम बेटी को तो याद आई. इतनी दूर है, पर मां का जन्मदिन नहीं भूलती.’ संध्या के 5 बज रहे थे. ‘क्या गुलशन को जल्दी आने के लिए फोन करे? पर नहीं,’ सुमन ने सोचा, ‘जब पति को न तो याद है और न ही इस के प्रति कोई भावना, तो उसे याद दिला कर अपनी मानहानि करवाएगी.’

दरवाजे की घंटी बजी. सुमन भी कभीकभी बौखला जाती है. दरवाजे की नहीं, फोन की घंटी थी. लपक कर रिसीवर उठाया.

‘‘हैलो,’’ सुमन का स्वर भर्रा गया.

‘‘हाय, मां, जन्मदिन मुबारक,’’ न्यूयार्क से बेटे मन्नू का फोन था.

सुमन की आंखों में आंसू आ गए और आवाज भी भीग गई, ‘‘बेटे, मां की याद आ गई?’’

‘‘क्यों मां?’’ मन्नू ने शिकायती स्वर में पूछा, ‘‘दूर होने से क्या तुम मां नहीं रहीं? अरे मां, मेरे जैसा बेटा तुम्हें कहां मिलेगा?’’

‘‘चल हट, झूठा कहीं का,’’ सुमन ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘शादी होने के बाद कोई बेटा मां का नहीं रहता.’’

‘‘मां,’’ मन्नू ने सुमन को सदा अच्छा लगने वाला संवाद दोहराया, ‘‘इसीलिए तो मैं ने कभी शादी न करने का फैसला कर लिया है.’’

‘‘मूर्ख बनाने के लिए मां ही तो है न,’’ सुमन ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बजा है तेरे देश में?’’

‘‘समय पूछ कर क्या करोगी मां, यहां तो 24 घंटे बस काम का समय रहता है. अच्छा, पिताजी को प्रणाम कहना. और हां, मेरे लिए केक बचा कर रख लेना,’’ मन्नू जल्दीजल्दी बोल रहा था, ‘‘मां, एक बार फिर, तुम्हारा जन्मदिन हर साल आए और बस आता ही रहे,’’ कहते हुए मन्नू ने फोन बंद कर दिया था.

थोड़ी देर बाद फिर फोन बजा.

‘‘हैलो,’’ सुमन ने आशा से कहा.

‘‘मैडम, मैं हैनरीटा बोल रही हूं,’’ गुलशन की निजी सचिव ने कहा, ‘‘साहब को आने में बहुत देर हो जाएगी. आप इंतजार न करें.’’

‘‘क्यों?’’ सुमन लगभग चीख पड़ी.

‘‘जी, जरमनी से जो प्रतिनिधि आए हैं, उन के साथ रात्रिभोज है. पता नहीं कितनी देर लग जाए,’’ हैनरीटा ने अचानक चहक कर कहा, ‘‘क्षमा करें मैडम, आप को जन्मदिन की बधाई. मैं तो भूल ही गई थी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ सुमन ने निराशा से बुझे स्वर में पूछा, ‘‘साहब ने और कुछ कहा?’’

‘‘जी नहीं, बहुत व्यस्त हैं. एक मिनट का भी समय नहीं मिला. जरमनी के प्रतिनिधियों से सहयोग के विषय में बड़ी महत्त्वपूर्ण बातें हो रही हैं,’’ हैनरीटा ने इस तरह कहा मानो ये बातें वह स्वयं कर रही हो.

‘‘ओह,’’ सुमन के हाथ से रिसीवर लगभग फिसल गया.

घंटी बजी. पर इस बार फोन की नहीं, दरवाजे की थी. प्रेमलता को जाते देखा. उसे बातें करते सुना. जब रहा नहीं गया तो सुमन ने ऊंचे स्वर में पूछा, ‘‘कौन है?’’ प्रेमलता जब आई तो उस के हाथ में फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता था. खिले गुलाब देख कर सुमन का चेहरा खिल उठा. चलो, इतना तो सोचा श्रीमान ने. गुलदस्ते के साथ एक कार्ड भी था, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम स्वरूप.’ स्वरूप गुलशन का मित्र था.

सुमन ने एक गहरी सांस ली और प्रेमलता को उस से मेज पर रखने का आदेश दिया. सुमन सोचने लगी, ‘आज स्वरूपजी को उस के जन्मदिन की याद कैसे आ गई?’ अधरों पर मुसकान आ गई, ‘अब फोन कर के उन्हें धन्यवाद देना पड़ेगा.’

कुछ ही देर बाद फिर दरवाजे की घंटी बजी. प्रेमलता ने आने वाले से कुछ वार्त्तालाप किया और फिर सुमन को एक बड़ा सा गुलदस्ता पेश किया, ‘जन्मदिन की बधाई. भेजने वाले का नाम अनवर.’

गुलशन का एक और दोस्त. सुमन ने गहरी सांस ली और फिर वही आदेश प्रेमलता को. फिर जब घंटी बजी तो सुमन ने उठ कर स्वयं दरवाजा खोला. एक बहुत बड़ा गुलदस्ता, रात की रानी से महकता हुआ. गुलदस्ते के पीछे लाने वाले का मुंह छिपा हुआ था. ‘‘जन्मदिन मुबारक हो, भाभी,’’ केवलकिशन ने गुलदस्ता आगे बढ़ाते हुए कहा. गुलशन का एक और जिगरी दोस्त.

‘‘धन्यवाद,’’ निराशा के बावजूद मुसकान बिखेरते हुए सुमन ने कहा, ‘‘आइए, अंदर आइए.’’

‘‘नहीं भाभी, जल्दी में हूं. दफ्तर से सीधा आ रहा हूं. घर में मेहमान प्रतीक्षा कर रहे हैं. महारानी का 2 बार फोन आ चुका है,’’ केवलकिशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता मत करिए. फिर आऊंगा और पूरी पलटन के साथ.’’

यही बात अच्छी है केवलकिशन की. हमेशा हंसता रहता है. अब दूसरा भी कब तक चेहरा लटकाए बैठा रहे. रात की रानी को सुमन ने अपने हाथों से गुलदान में सजा कर रखा. खुशबू को गहरी सांस ले कर अंदर खींचा. फिर से घंटी बजी. सुमन हंस पड़ी. फिर से दरवाजा खोला. हरनाम सिंह गुलदाऊदी का गुलदस्ता हाथ में लिए हुए था.

‘‘जन्मदिन की बधाई, मैडम,’’ हरनाम सिंह ने गुलदस्ता पकड़ाते हुए कहा, ‘‘जल्दी जाना है. मिठाई खाने कल आऊंगा.’’

इस से पहले कि वह कुछ कहती, हरनाम सिंह आंखों से ओझल हो गया. वह सोचने लगी, ‘क्लब में हमेशा मिलता है पर न जाने क्यों हमेशा शरमाता सा रहता है. हां, इस की पत्नी बड़ी बातूनी है. क्लब के सारे सदस्यों की पोल खोलती रहती है, टांग खींचती रहती है. उस के साथ बैठो तो पता ही नहीं लगता कि कितना समय निकल गया.’

गुलदस्ते को सजाते हुए सुमन सोच रही थी, ‘क्या उस के जन्मदिन की खबर सारे अखबारों में छपी है?’ इस बार यकीनन घंटी फोन की थी.

‘‘हैलो,’’ सुमन की आंखों में आशा की चमक थी.

‘‘क्षमा करना सुमनजी,’’ डेविड ने अंगरेजी में कहा, ‘‘जन्मदिन की बधाई हो. मैं खुद न आ सका. वैसे आप का तोहफा सुबह अखबार वाले से पहले पहुंच जाएगा. कृपया मेरी ओर से मुबारकबाद स्वीकार करें.’’

‘‘तोहफे की क्या जरूरत है,’’ सुमन ने संयत हो कर कहा, ‘‘आप ने याद किया, क्या यह कम है.’’

‘‘वह तो ठीक है, पर तोहफे की बात ही अलग है,’’ डेविड ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब देखिए, हमें तो कोई तोहफा देता नहीं, इसलिए बस तरसते रहते हैं.’’

‘‘अपना जन्मदिन बताइए,’’ सुमन ने हंसते हुए उत्तर दिया, ‘‘अगले 15 सालों के लिए बुक कर दूंगी.’’

‘‘वाहवाह, क्या खूब कहा,’’ डेविड ने भी हंस कर कहा, ‘‘पर मेरा जन्मदिन एक रहस्य है. आप को बताने से मजबूर हूं, अच्छा.’’ डेविड ने फोन रख दिया. वह एक सरकारी कारखाने का प्रबंध निदेशक था. हमेशा क्लब और औपचारिक दावतों में मिलता रहता था. गुलशन का घनिष्ठ मित्र था. रात्रि के 2 बज रहे थे. गुलशन घर लौट रहा था. आज वह बहुत संतुष्ट था. जरमन प्रतिनिधियों से सहयोग का ठेका पक्का हो गया था. वे 30 करोड़ डौलर का सामान और मशीनें देंगे. स्वयं उन के इंजीनियर कारखाने के विस्तार व नवीनीकरण में सहायता करेंगे. भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षण देंगे और 3 साल बाद जब माल बनना शुरू हो जाएगा तो सारा का सारा स्वयं खरीद लेंगे. कहीं और बेचने की आवश्यकता नहीं है. इस से बढि़या सौदा और क्या हो सकता है. अचानक गुलशन के मन में एक बिजली सी कौंध गई कि पता नहीं सुमन ने मिक्की को फोन किया या नहीं? उस के जन्मदिन पर वह सुबह उठ कर सब से पहले यही काम करता था. आज ही गलती हो गई थी. जरमन प्रतिनिधि मंडल उस के दिमाग पर भूत की तरह सवार था. जरूर ही मिक्की आज नाटक करेगी.

तभी एक और बिजली कड़क उठी. कितना मूर्ख है वह. अरे, सुमन का भी तो जन्मदिन है. आंख खुलते ही उस ने इतने सारे इशारे फेंके, पर वह तो जन्मजात मूर्ख है. बाप रे, इतनी बड़ी भूल कैसे कर दी. अब क्या करे? गुलशन ने फौरन कार को वापस होटल की ओर मोड़ दिया. जल्दीजल्दी कदम बढ़ाते हुए अंदर पहुंचा.

प्रबंधक ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या कुछ भूल गए आप?’’

‘‘हां, जो काम सब से पहले करना था, वह सब से बाद में याद आया,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘मुझे एक बहुत अच्छा गुलदस्ता चाहिए और एक केक… जन्मदिन का.’’

‘‘किस का जन्मदिन है?’’ प्रबंधक ने पूछा.

गुलशन ने उदास हो कर कहा, ‘‘वैसे तो कल था, पर गलती सुधर जाए, कोशिश करूंगा.’’

‘‘फूलों की दुकान तो खुलवानी पड़ेगी,’’ प्रबंधक ने कहा, ‘‘इस समय तो कोई फूल लेता नहीं. वैसे किस का जन्मदिन है?’’

‘‘मेरी पत्नी का,’’ गुलशन के मुंह से निकल पड़ा.

‘‘ओह, तब तो कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा,’’ प्रबंधक ने कहा.

गुलशन इस होटल का पुराना ग्राहक था. साल में कई बार कंपनी का खानापीना यहां ही होता था. आधे घंटे बाद प्रबंधक बहुत बड़ा गुलदस्ता ले कर उपस्थित हुआ. सहायक के हाथ में केक था.

‘‘हमारी ओर से मैडम को भेंट,’’ प्रबंधक ने हंस कर कहा.

गुलशन का हाथ जेब में था. पर्स निकालता हुआ बोला, ‘‘नहीं, आप दाम ले लें.’’

‘‘शर्मिंदा न करें हम को,’’ प्रबंधक ने मुसकरा कर कहा.

घंटी की मधुर आवाज भी गहरी नींद में सोई सुमन को बड़ी कर्कश लगी. धीरेधीरे जैसे नींद की खुमारी की परतें उतरने लगीं तो उसे होश आने लगा. प्रेमलता तो बाहर पिछवाड़े में अपने कमरे में सो रही थी. वैसे भी उसे जाने के लिए कह रखा था. वह दरवाजा खोलने कहां से आएगी.

उसे अचानक हंसी भी आई, ‘‘लगता है, एक और गुलदस्ता आ गया.’’

दरवाजा खोलने से पहले पूछा, ‘‘कौन है?’’

‘‘गुल्लर, तुम्हारा गुल्लर. देर आया, पर दुरुस्त आया,’’ गुलशन ने विनोद से कहा.

सुमन के चेहरे पर लकीरें तन गईं. हंसी लुप्त हो गई और क्रोध झलक आया. दरवाजा खोला तो गुलशन ने हंसते हुए कहा, ‘‘जन्मदिन मुबारक हो. हर साल, हर साल, हर साल इसी तरह आता रहे. यह भेंट स्वीकार करिए.’’

सुमन ने मुंह बना दिया और बिना कुछ लिए अंदर आ गई. नाराजगी बढ़ती जा रही थी. इतनी देर से डब्बे में बंद गुबार बाहर आ गया.

‘‘भई, क्षमा कर दो, बड़ी भूल हो गई,’’ गुलशन ने केक मेज पर रखा और गुलदस्ता सुमन की ओर बढ़ा दिया.

‘‘नहीं चाहिए मुझे,’’ सुमन ने तड़प कर कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए.’’

‘‘इतनी नाराज मत हो,’’ गुलशन ने खुशामदी स्वर में कहा, ‘‘जन्मदिन की खुशी में अगले महीने तुम्हें जरमनी की सैर कराने ले जाऊंगा.’’

‘‘कहा न, न मुझे कुछ चाहिए और न ही कहीं जाना है,’’ सुमन ने दूर हटते हुए कहा.

अचानक गुलशन की निगाह कार्निस व कोने में सजे हुए गुलदस्तों पर पड़ी. उस ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, इतने सारे गुलदस्ते… कहां से आए? किस ने दिए?’’

‘‘इस दुनिया में कुछ लोग हैं जो तुम्हारी तरह लापरवाह और बेगैरत नहीं हैं,’’ सुमन ने कड़वाहट से कहा.

‘‘देखूं तो सही, वे महान लोग कौन हैं?’’ गुलशन पास जा कर कार्ड पढ़ने लगा…केवलकिशन…अनवर…हरनाम सिंह…स्वरूप…डेविड…’’

फिर गुलशन ठठा कर हंस पड़ा. सुमन आश्चर्य से उस को देखने लगी. जब वह हंसता ही रहा तो सुमन ने गुस्से से पूछा, ‘‘इस में हंसने की क्या बात है?’’

‘‘तुम्हें याद है, पिछले महीने हम कहां गए थे?’’ गुलशन ने पूछा.

‘‘हां, याद है.’’

‘‘वहां तुम तो अपनी महिला समिति में तल्लीन हो गईं और मैं अपने दोस्तों के साथ कौफी पी रहा था. अरे, यही लोग तो थे,’’ गुलशन ने कहा.

‘‘तो फिर?’’

‘‘बस, बातों ही बातों में जन्मदिन की बात निकल आई. सब का एक ही मत था कि कभी न कभी ऐसी बात हो जाती है जब जन्मदिन, वह भी पत्नी का, बड़ा बदमजा हो जाता है,’’ गुलशन ने कहा, ‘‘और मैं ने कहा कि मैं अकसर जन्मदिन भूल जाता हूं.’’

‘‘तो फिर?’’ सुमन ने दोहराया.

‘‘तो फिर क्या, मैं ने उन सब से तुम्हारा जन्मदिन उन की डायरी में लिखवाया और कहा कि अगर हमेशा की तरह मैं भूल जाऊं तो वे जरूर मेरी ओर से तोहफा भिजवा दें,’’ गुलशन ने स्पष्ट किया.

‘‘पर उन्होंने यह तो नहीं कहा,’’ सुमन ने शिकायत की.

‘‘यह उन की शरारत है,’’ गुलशन हंसा, ‘‘पर हम इतनी छोटी सी बात पर लड़ेंगे तो नहीं.’’

अब तो सिवा हंसने के सुमन के पास और कोई रास्ता न था.

अगर तुम न होते -भाग 2 : अपूर्व ने संध्या मैडम की तस्वीर को गले से क्यों लगाया?

जौन अपूर्व का दोस्त है, कहें तो बेस्ट फ्रैंड. जब अपूर्व यहां अमेरिका आया था तब जौन ही था जिस ने उसे पूरी तरह से सपोर्ट किया था और जब उस का ऐक्सिडैंट हुआ, तब जौन ही था जिस ने पूरी रात जागजाग कर उस की सेवा की थी.

“ओके ओके, सौरी. अब यह बताओ कि बात क्या है क्योंकि इतना हंसते तो मैं ने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा?” जौन बोला.

“वह इसलिए मेरे दोस्त, कि मैं हमेशा के लिए अपनी मां के पास इंडिया जा रहा हूं,” बोलते हुए अपूर्व के चेहरे पर अजीब सी खुशी झलक रही थी. लेकिन अपूर्व के इंडिया जाने की बात सुन कर जौन एकदम से उदास हो गया.

“अब इस में इतना उदास होने वाली क्या बात है? और इंडिया जा रहा हूं, दुनिया से तो नहीं,” अपूर्व बोला तो जौन ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया कि ‘प्लीज, ऐसी बातें वह अपने मुंह से न निकाले.’

“तो फिर खुश हो जाओ. और एक अच्छा सा हिंदी गाना सुना दो.” जौन भले ही हिंदी गाने में अटकता था पर उसे हिंदी गाना बहुत पसंद था, खासकर, किशोर कुमार और मुकेश दा के गानों का तो वह फैन था.

“अच्छा, एक बात बताओ, तुम्हें सिर्फ अपनी मां से मिलने की खुशी है या फिर कोई और भी है जिस से मिलने की गुदगुदी हो रही है दिल में?” उस की आंखों को पढ़ते हुए जौन हंसा, तो अपूर्व की मुसकराहट निकल पड़ी. “यानी, मैं सही हूं. कोई है न, कोई है न, बोलो? मुझ से मत छिपाओ,” जौन तो उस के पीछे ही पड़ गया.

“तुम भी न, जौन, कुछ भी बोलते हो. ऐसी कोई बात नहीं है.”

अपूर्व साफ झूठ बोल गया क्योंकि उस का दिल आज भी सुनिधि के लिए ही धड़कता है. सुनिधि के प्यार के एहसासों का समुद्र आज भी उस के दिल में वैसे ही बह रहा है. 2012 में 10+2 की परीक्षा के बाद मैडिकल की पढ़ाई के लिए जब वह अमेरिका जा रहा था तब सुनिधि से उस की आखिरी बार मुलाकात हुई थी. संध्या के साथ वह भी आई थी उसे एयरपोर्ट छोड़ने. भावपूर्ण नजरों से देखते हुए जब हौले से अपूर्व बोला था, ‘फोन तो करोगी न, मुझे?” तब सुनिधि के गाल आरक्त हो गए थे. उस के होंठों से मंदमंद झरती मुसकान का उजास आज भी अपूर्व को उत्साह से भर देता है. मन ही मन वह भी अपूर्व को चाहने लगी थी. तभी तो फोन पर कहा था कि वह उस के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही है. अपूर्व के दिल में भले ही सुनिधि बसी है पर शादी तो वह वहीं करेगा जहां संध्या कहेगी. लेकिन उसे यह नहीं पता कि खुद संध्या भी सुनिधि को अपनी बहू बनाने के सपने देख रही है.

सुनिधि, संध्या की सहेली गीता की बेटी है और वकालत की पढ़ाई कर अभी प्रैक्टिस कर रही है. लेकिन संध्या को इस बात का डर है कि कहीं अपूर्व इस शादी के लिए मना न कर दे. यह सोच कर कभी उस ने अपूर्व के सामने शादी की बात नहीं छेड़ी. एक बार गीता ने कहा भी था कि क्यों न हम दोस्त से रिश्तेदार बन जाएं. पर उस की बात को संध्या ने हंसी में उड़ा दिया था. लेकिन आज अपूर्व ने यह बात कह कर कि शादी तो वह अपनी मां की पसंद की लड़की से ही करेगा, संध्या का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया. अब जा कर वह अपनी सहेली गीता से कह सकती है कि चल, हम अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें.

“बट आई कांट अंडरस्टैंड कि इतनी अच्छी जौब छोड़ कर तुम इंडिया क्यों जाना चाहते हो? इतने बड़े हौस्पिटल में जौब पाने के लिए लोग तरसते हैं और तुम हो कि…क्या तुम्हें नाम, फेम और पैसा नहीं चाहिए?” जौन बोला.

“नाम, फेम और पैसों की भूख नहीं है मुझे, जौन. मैं ने तो डाक्टरी की पढ़ाई ही इसलिए की है ताकि गरीबों की सेवा कर सकूं. मेरी मां का सपना है कि अपने गांव में एक अच्छा अस्पताल हो जहां गरीबों का मुफ्त इलाज हो सके. आज भी गांव के लोग अपने इलाज के लिए शहर भागते हैं क्योंकि हमारे गांव में ढंग का कोई अस्पताल नहीं है. जानते हो जौन, कोरोनाकाल में अच्छा अस्पताल और डाक्टर्स न होने की वजह से कितने लोग बिना दवाई और इलाज के मर गए. यह बात मुझे आज भी सालती है. लेकिन अब मैं अपने गांव के लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं जो वहां जा कर ही संभव है.”

“वेल, जो तुम्हें ठीक लगे. लेकिन अपनी शादी में तो बुलाओगे न मुझे,” अपूर्व के कंधे को थपथपा कर जौन बोला.

“अरे, यह भी कोई पूछने वाली बात है. औफकोर्स, बुलाऊंगा ब्रो. और नहीं आए न, तो समझ लेना…” कह कर अपूर्व ने जौन के पेट में एक घूंसा मारा तो उस के मुंह से ‘आउच’ निकल गया. “जानते हो जौन, मेरी मां का सपना था कि एक दिन मैं बहुत बड़ा डाक्टर बनूं. और आज मैं ने अपनी मां का सपना पूरा कर दिखाया,” बोलते हुए खुशी से अपूर्व की आंखें चमक उठीं.

“यू लव योर मौम, वेरी मच न?” जौन की बात पर अपूर्व ने ‘हां’ में सिर हिलाया. “यू आर सो लकी ब्रो दैट यू हैव अ मौम,” बोलते हुए जौन की आंखें भर आईं.

जौन जब 8 साल का था, तभी एक ऐक्सिडैंट में उस की मां चल बसी थी. और यह बात अपूर्व जानता था. इसलिए उस ने उस का कंधा थपथपाते हुए कहा, “आर यू ओके?”

“इया, आई एम औलराइट,” एक लंबी सांस भरते हुए जौन बोला, “तुम ने ही बताया था कि तुम्हारी मौम ने गांव के बच्चों को शिक्षित करने के लिए बहुत स्ट्रगल किया. मुझे उन के बारे में और कुछ बताओ न. अच्छा लगता है सुनना.” गोद में कुशन रख आराम से बैठते हुए जौन ने यह कहा.

“क्या बताऊं उन के बारे में. क्योंकि, उन के बारे में जितना भी बताऊंगा, कम ही होगा,” ऊपर छत की तरफ देखते हुए अपूर्व कहने लगा, “उन्होंने भले ही मुझे अपनी कोख से जन्म नहीं दिया लेकिन वे मेरे लिए मेरी मां से भी बढ़ कर हैं.”

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