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पेरेंट्स को करें राज़ी, चुने अपनी पसन्द का करियर

हर बच्चे में कोई ना कोई काबिलियत छिपी होती है बच्चा हर क्षेत्र में परफेक्ट हो ऐसा हमेशा मुमकिन नहीं होता । लेकिन यदि बच्चा अपने अंदर छिपी प्रतिभा और कमियों को पहचान ले तो उसे सफ़लता अवश्य हासिल होती है. क्योंकि अपना करियर बनाने के लिए जरूरी ही है कि आप आत्मविश्वास से भरें हों। साथ ही आपके अंदर हुनर हो अपनी कमियों को समय रहते दूर करने का और खूबियों को और अधिक निखारने का ।अक्सर ऐसा देखा जाता है कि माता पिता अपने बच्चे को पढ़ाई मे अव्वल देखना चाहते हैं लेकिन बच्चे की रुचि पढ़ाई मे कम व अपने पसंद के काम यानी रचनात्मक, खेल कूद, कला साहित्य, संगीत, थिएटर आदि में होती है ऐसे में जरूरी है कि बच्चा अपने माता पिता को अपनी रुचि के बारे मे स्पष्ट रूप से समझाएं और उसमे कुशलतापूर्वक आगे बढ़ें। इस के लिए अपनाए ये तरिके जिनके द्वारा आप अपने माता पिता को अपने पसंदिता कोर्स को चुनने के लिए राज़ी सकते हैं ।

अपनी रूचि बताएं
किसी भी काम को अच्छे से करने के लिए यह जरुरी है की वह आपकी पसंद का हो |लेकिन अगर आप माता पिता के दबाव मे आकर वह कोर्स चुन लेते है जिसे करना आपको पसंद नहीं है तो आपके लिए उसे करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है इसलिए उन्हें समझाएं की यदि आप अपनी पसंद के क्षेत्र मे आगे बढ़ते हैं तो उस काम को आप मजे के साथ परफेक्ट तरीके से कर सकेंगे और आप उसमें कदम दर कदम सफल हो सकेंगे |

भविष्य में संभावनाएं
जिस भी क्षेत्र मे आपकी रुचि है उसे सिर्फ आज में देखकर न चुने बल्कि आने वाले समय में उस क्षेत्र में किस तरह की संभावनाए हैं यह जरूर जांच लें | क्योंकि तकनीक के इस दौर में हमें दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा। इसलिए भविष्य को देखते हुऐ करियर का चुनाव करें।

महारथ हासिल करने का हो ज़ज्बा
आप जिस भी विषय मे रुचि रखते हैं उसके बारे में अपने माता पिता को समझाने से पहले अकादमिक, और कॉलेज के बारे में सभी आवश्यक जानकारी इकट्ठा कर लें व उन्हें समझाएं की आप उस विषय में प्रवेश लेने के लिए आपके पास सभी योग्यताएं हैं। जिसके लिए आप आवेदन करना चाहते हैं। आप जिस भी क्षेत्र में रूचि रखते हैं उसका रोजाना अभ्यास करें। आपकी लगन व मेहनत को देख आपके माता पिता भी निश्चित रूप से इस पर विचार करेंगे और वह आपकी प्रतिभा को देख आप से प्रभावित होंगे।

करियर के लाभ पर जोर दें
सभी जानकारी एकत्रित कर के उन्हें विशिष्ट क्षेत्र से जुड़े अवसरों के बारे में जोर दें ,यदि उस क्षेत्र से जुड़े किसी कामयाब व्यक्ति को आप जानते हैं तो उसके बारे में भी उन्हें बताएं । भविष्य से जुड़े उससे मिलने वाले लाभ व उससे होने वाली इनकम के बारे में साफ तोर पर समझाएं क्योंकि हर माता पिता चाहते है कि उसके बच्चे का भविष्य उज्जवल हो। और जरूरी है कि आप अपने रूचि में महारत हासिल करने के साथ साथ अपनी औपचारिक पढ़ाई पर भी अवश्य ध्यान दें।
करियर काउंसलर की लें मदद

बच्चों और उनके पेरेंट्स की करियर के बारे में असमंजस की स्थिति को देखते हुए करियर काउंसलर की मदद लेना लाभदायक होता है। क्योंकि वह बच्चे की योग्यता व रुचि को देखते हुए बच्चे व पेरेंट्स को उससे जुड़े कोर्सेज के बारे मे करियर बनाने की सलाह देते हैं। ऐसे में उन बच्चो के पेरेंट्स को समझाने में सहयता मिलती है जो बच्चो की पसंद से विपरीत करियर चुनने पर अड़े होते हैं।

‘दृश्यम 2’ फेम इशिता दत्ता जल्द मां बनने वाली हैं, शादी के 6 साल बाद दी गुड न्यूज

ऑनस्क्रिन अजय देवगन की बेटी इशिता दत्ता  के घर जल्द बेबी का आगमन होने वाला है, बता दें कि इशिता दत्ता शादी के 6 साल बाद मां बनने वाली है, इस खबर के आते ही दृश्यम गर्ल को फैंस बधाई देने लगें हैं.

बता दें कि इशिता की एक्टिंग को दृश्यम 2 में खूब पसंद किया गया था, दरअसल इशिता के गूड न्यूज का खुलासा मुंबई एयरपोर्ट पर हुआ, जहां इशिता बेबी बंप फ्लॉट करते नजर आईं, इशिता ब्राउन कलर की ड्रेस में काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं, वह फोटो में जमकर पोज देती नजर आ रही हैं.

 

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बता दें कि इशिता एक्ट्रेस तनुश्री दत्ता की बहन हैं, बता दें कि इशिता ने अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्ट नहीं किया है, हालांकि अब उन्हें सोशल मीडिया पर ढ़ेर सारी बधाइंया आ रही हैं.

इशिता दत्ता की फोटो को देखते हुए एक यूजर ने लिखा है कि वाह कितनी प्यारी लग रही है, तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है बहुत बहुत बधाई हो, हालांकि वहीं कुछ लोग है कि वीडियो को सामने आने के बाद से उन्हें ट्रोल भी कर रहे हैं.

इशिता अपनी मैरेड लाइफ में खूब मस्ती करती नजर आती हैं, बता दें कि इशिता आए दिन पति के साथ फोटो शेयर करती रहती हैं.

Swara- Fawad के रिसेप्शन में शामिल हुए राजनीति से लेकर बॉलीवुड तक की ये नामी हस्तियां

बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वारा भास्कर और फहद अहमद ने बीते दिनों रिसेप्शन पार्टी रखा जिसमें कई दिग्गज हस्तियां सिरकत करती नजर आईं. इस पार्टी में बॉलीवुड से लेकर राजनीति तक के लोग शामिल होते नजर आएं.

 

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बता दें कि स्वारा भास्कर और फहद अहमद ने अपने रिसेप्शन पार्टी के दौरान खूब सारे पोज देते नजर आएं, जिसमें वह लोग एक साथ खूब शानदार लग रहे थें, एक्ट्रेस जहां पिक लहंगा में खूबसूरत लुक दे रही थीं, वहीं फहाद अहमद शेरवानी में नजर आएं.

 

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बता दें कि मीडिया के सामने स्वारा और फहद एक दूसरे की आंखों में खोते हुए नजर आएं, दोनों की मुस्कान काफी ज्यादा अच्छी लग रही थी. स्वारा और फहद एक दूसरे के साथ काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे थें. बता दें कि एनआरसी प्रर्दशन के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी. जहां से दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई थी.

बता दें कि फहद औऱ स्वारा निकाह और फेरे ना करके कोर्ट के जरिए एक-दूसरे के साथ बंधे हैं, कोर्ट मैरिज के बाद से फहद और स्वारा ने अपने फैंस को इसकी जानकारी दी है.

स्वारा के रिसेप्शन पार्टी में राहुल गांधी और जया बच्चन भी सिरकत करती नजर आईं,उन्होंने रिसेप्शन में पहुंचकर खूब पोज दिया.

क्लिष्ट हिंदी में हिंदी कम पढ़ों के लिए साजिश

हिंदी की 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम की एक कविता की बानगी देखें-

लक्ष अलक्षित चरण तुम्हारे चिह्न निरंतर,
छोड़ रहे हैं जंग के विक्षत वक्षस्थल पर.
शतशत फेनोच्छवासित, स्फीत फुत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर
मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पांतर,
अखिल विश्व ही विवर, वक्र कुंडल, दिक्मंडल
शत सहस्त्र शशि, असंख्य ग्रहउपग्रह, उड़गण,
जलतेबुझते हैं स्फुलिंग से तुम में तत्क्षण,
अचिर विश्व में अखिल दिशावधि, कर्म, वचन, भव,
तुम्हीं चिरंतन, अहे विवर्तन हीन विवर्तन

यह प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत की कविता निष्ठुर परिवर्तन है. इस में संदेह नहीं कि कविता में बिंब और प्रतीकों का खूबसूरती से चित्रण किया गया है. पर ऐसी कविता पढ़ने या पढ़ाने से पहले यह समझना जरूरी है कि 12वीं कक्षा के विद्यार्थी इसे आसानी से समझ सकते हैं या नहीं.

सच कहा जाए तो स्टूडैंट्स को इस में कुछ भी समझ नहीं आता. उन्हें तो कविता पढ़ने से पहले हर शब्द के अर्थ के लिए शब्दकोश खोल कर बैठना होगा. फिर ऐसी कविता पढ़ाने का क्या फायदा? क्या हम कवि की दूसरी अपेक्षाकृत आसान कविताएं नहीं रख सकते ताकि बच्चे ऊंची क्लास में पहुंचते ही हिंदी छोड़ कर, फ्रैंच या दूसरी किसी विदेशी भाषा की तरफ न भागें.

ऐसा नहीं हैं कि हिंदी में आज की नई पीढ़ी के समझ में आने लायक कविताएं या रचनाएं नहीं हैं पर हिंदी का पाठ्यक्रम तय करने वालों को या हिंदी साहित्य पढ़ाने वाले प्राध्यापकों को जब तक संस्कृतनिष्ठ, क्लिष्ट हिंदी की पंक्तियां नहीं मिलतीं, उन्हें कविता या किसी रचना में भाषागत सुंदरता दिखाई नहीं देती. उन्हें लगता है कि सहज, सपाट रचना या कविता को पाठ्यक्रम में क्या पढ़ाना जो बिना प्राध्यापक के भी समझ में आ जाए.

यह हाल सिर्फ हिंदी विषय के पाठ्यक्रम में ही नहीं है बल्कि कमोबेश सभी विषयों का यही हाल रहता है. विज्ञान और तकनीकी विषयों का हाल तो और भी बुरा होता है. उन में इतने कठिन शब्द होते हैं कि हिंदी के बजाय इंग्लिश में उन शब्दों को समझना आसान लगने लगता है.

कुछ और उदाहरण

क्लास 12

भौतिकी (अध्याय 10)
तरंग प्रकाशिकी
मुख्यतया न्यूटन के प्रभाव के कारण तरंग सिद्धांत को सहज ही स्वीकार नहीं किया गया. इस का एक कारण यह भी था कि प्रकाश निर्वात में गमन कर सकता है और यह महसूस किया गया कि तरंगों के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक संचरण के लिए सदा माध्यम की आवश्यकता होती है. इस संबंध में जब टामस यंग ने वर्ष 1801 में अपना व्यतिकरण संबंधी प्रसिद्ध प्रयोग किया तब यह निश्चित रूप से प्रमाणित हो गया कि वास्तव में प्रकाश की प्रकृति तरंगवत है. दृश्यप्रकाश की तरंगदैर्घ्य को मापा गया तो यह पाया गया कि यह अत्यंत छोटी है.

उदाहरण के लिए पीले प्रकाश की तरंग दैर्घ्य लगभग पौइंट सिक्स है. दृश्यप्रकाश की तरंगदैर्घ्य छोटी होने के कारण प्रकाश को लगभग सरल रेखा में गमन करता हुआ माना जा सकता है. यह ज्यामितीय प्रकाशिकी का अध्ययन क्षेत्र है. वास्तव में प्रकाशिकी की वह शाखा जिस में तरंगदैर्घ्य की परिमितता को पूरी तरह से नग्न्य मानते हैं, ज्यामितीय प्रकाशिकी कहलाती है तथा किरण को ऊर्जा संचरण के उस पथ की भांति परिभाषित करते हैं जिस में तरंगदैर्घ्य का मान की ओर प्रवृत्त होता है.

अध्याय 7
प्रत्यावर्ती धारा
अब तक हम ने दिष्टधारा स्रोतों एवं दिष्टधारा स्रोतों से युक्त परिपथों पर विचार किया है. समय के साथ इन धाराओं की दिशा में परिवर्तन नहीं होता. हालांकि, समय के साथ परिवर्तित होने वाली धाराओं और वोल्टताओं का मिलना आम बात है. हमारे घरों व दफ्तरों में पाया जाने वाला मुख्य विद्युतप्रदाय एक ऐसी ही वोल्टता का स्रोत है जो समय के साथ जया फलन की भांति परिवर्तित होता है. ऐसी वोल्टता को प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा किसी परिपथ में इस के द्वारा अचालित धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं. आजकल जिन विद्युत युक्तियों का हम उपयोग करते हैं उन में से अधिकांश के लिए एसी वोल्टता की ही आवश्यकता होती है. इस का मुख्य कारण यह है कि अधिकांश विद्युत कंपनियों द्वारा बेची जा रही विद्युत ऊर्जा प्रत्यावर्ती धारा के रूप में संप्रेषित एवं वितरित होती है.

ज्योग्राफी
क्लास 12 (दूसरा अध्याय) प्रवास

प्रवास के परिणाम

आर्थिक
सकारात्मक परिणाम
उद्धव क्षेत्र प्रवासियों द्वारा भेजी गई राशि से लाभ प्राप्त करना. अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा भेजी गई हुंडियां विदेशी विनिमय के प्रमुख स्रोत में से एक है. पंजाब, केरल, तमिलनाडु अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों से महत्त्वपूर्ण राशि प्राप्त करते हैं. यह रकम क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है. प्रवासियों द्वारा भेजी गई राशि का उपयोग भोजन, ऋणों की अदायगी, उपचार, विवाह, बच्चों की शिक्षा, कृषि में निवेश इत्यादि के लिए किया जाता है. बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश इत्यादि के हजारों निर्धन गांवों की अर्थव्यवस्था के लिए यह रकम जीवनदायक रक्त का काम करती है. हरित क्रांति की सफलता के पीछे प्रवासी श्रम शक्ति की बहुत बड़ी भूमिका रही है.

समाजशास्त्र

क्लास 11 (अध्याय 2)

सामाजिक नियंत्रण के प्रकार
औपचारिक नियंत्रण
जब नियंत्रण के संहिताबद्ध व्यवस्थित और अन्य औपचारिक साधन प्रयोग किए जाते हैं तो उसे औपचारिक सामाजिक नियंत्रण के रूप में जाना जाता है.

अनौपचारिक नियंत्रण
यह व्यक्तिगत, अशासकीय और असंहिताबद्ध होता है. उदाहरण के लिए धर्म, प्रथा, परंपरा आदि ग्रामीण समुदाय में जाति नियमों का उल्लंघन करने पर हुक्कापानी बंद कर दिया जाता है.

सामाजिक नियंत्रण के दृष्टिकोण

प्रकार्यवादी दृष्टिकोण
व्यक्ति और समूह के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए बल का प्रयोग करना. समाज में व्यवस्था बनाए रखने के लिए मूल्यों और प्रतिमानों को लागू करना.

संघर्षवादी दृष्टिकोण
समाज के प्रभावी वर्ग के बाकी समाज पर नियंत्रण को सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में देखते हैं. कानून को समाज में शक्तिशालियों और उन के हितों के औपचारिक दस्तावेज के रूप में देखना‌.

मानदंड
व्यवहार के नियम जो संस्कृति के मूल्यों को प्रतिबिंबित या जोड़ते हैं.
मानदंडों को हमेशा एक तरह से या किसी अन्य की स्वीकृति से समर्थित किया जाता है जो अनौपचारिक अस्वीकृत से शारीरिक संज्ञा या निष्पादन में भिन्न होता है.

प्रतिबंध
ईनाम या दंड का एक तरीका जो व्यवहार के सामाजिक रूप से अपेक्षित रूपों को मजबूत करता है.

संघर्ष
यह किसी समूह के भीतर उत्पन्न घर्षण या असहमति के कुछ रूपों को संदर्भित करता है जब समूह के एक या एक से अधिक सदस्यों की मान्यताओं या कार्यों को या तो किसी अन्य समूह के एक या अधिक सदस्यों से प्रतिस्पर्ध या अस्वीकार किया जाता है.

समुच्चय
यह केवल उन लोगों का संग्रह है जो एक ही स्थान पर है लेकिन एकदूसरे के साथ निश्चित संबंध साझा नहीं करते हैं.

कक्षा 11
गणित (अध्याय 8)

एनसीईआरटी समाधान

द्विपद प्रमेय
द्विपद प्रमेय एक ऐसा बीजगणितीय सूत्र है जिस से हम x + y रूप के द्विपद के किसी धन पूर्णांक घातांक का मान x एवं y के nवें घात के बहुपद के रूप में निकाल सकते हैं. द्विपद जब बड़े रूप में होता है उस समय पद के गुणक ही द्विपद गुणक होते हैं. हम a + b एवं a – b जैसे पदों का वर्ग एवं घन निकालना पहले से ही जानते हैं.

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
प्राचीन भारतीय गणितज्ञ (x + y)ⁿ, 0 छोटा है या बराबर है n ≤ 7, के प्रसार में गुणांकों को जानते थे. ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में पिंगल ने अपनी पुस्तक ‘छंद शास्त्र’ (200 ई० पू०) में इन गुणांकों को एक आकृति, जिसे मेरुप्रस्त्र कहते हैं, के रूप में दिया था. 1303 में चीनी गणितज्ञ चुसी की के कार्य में भी यह त्रिभुजाकार विन्यास पाया गया.

धन पूर्णांकों के लिए द्विपद प्रमेय
गणित में द्विपद प्रमेय एक महत्त्वपूर्ण बीजगणितीय सूत्र है जो x + y प्रकार के द्विपद के किसी धन पूर्णांक घातांक का मान x एवं y के nवें घात के बहुपद के रूप में प्रदान करता है.

द्विपद विस्तार विधि
द्विपद विस्तार में गुणांक से तात्पर्य है, किसी विशिष्ट घात का गुणांक ज्ञात करना. द्विपद प्रसार में विशिष्ट घात का गुणांक ज्ञात करने के लिए व्यापक पद के सूत्र का प्रयोग किया जाता है. व्यापक पद के सूत्र द्वारा विशिष्ट घात के पद को ज्ञात कर के उस का गुणांक ज्ञात किया जा सकता है.
निम्नलिखित सर्वसमिकाओं पर हम विचार करें:
(a + b)⁰ = 1; a + b ≠¬ 0

द्विपद प्रसारों के गुणधर्म

इन प्रसारों में हम देखते हैं कि-
(i) प्रसार में पदों की कुल संख्या, घातांक से 1 अधिक है. उदाहरणतया (a +b)² के प्रसार में (a+b)² का घात 2 है जबकि प्रसार में कुल पदों की संख्या 3 है.
(ii) प्रसार के उत्तरोत्तर पदों में प्रथम a की घातें एक के क्रम से घट रही हैं जबकि द्वितीय राशि b की घातें एक के क्रम से बढ़ रही हैं.

(iii) प्रसार के प्रत्येक पद में a तथा b की घातों का योग समान है और a +b की घात के बराबर है. एक द्विपद की उच्च घातों का प्रसार भी पास्कल के त्रिभुज के प्रयोग द्वारा संभव है. आइए, हम पास्कल त्रिभुज का प्रयोग कर के (2x + 3y) ⁵का विस्तार करें. घात 5 की पंक्ति है.

जाहिर है इस तरह की क्लिष्ट भाषा में कोई भी विषय पढ़ना आसान नहीं. बात गणित की हो, समाजशास्त्र की हो, भूगोल या इतिहास की हो, ऐसी भाषा स्टूडैंट्स की उस विषय में रुचि कम करती है. वह पढ़ाई से उकताने लगता है. उसे कुछ समझ नहीं आता तो नंबर भी अच्छे नहीं आते और फिर वह हर मामले में पिछड़ता चला जाता है.

हिंदी भाषा को अगर ज़िंदा रखना है तो पहली कक्षा की नर्सरी राइम्स से ले कर एम ए के पाठ्यक्रम तक में पूरी तरह बदलाव किए जाने की जरूरत है. हमें ऐसा पाठ्यक्रम रखना चाहिए जिस से बच्चे कुछ सीख सकें और जिन की भाषा बहुत क्लिष्ट न हो. जनसाधारण की भाषा को बढ़ावा मिलना चाहिए. हमारे पाठ्यक्रम बदल रहे हैं मगर रचनाओं का चुनाव करते समय पढ़ाई के मूल उद्देश्य से खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए.

इंग्लिश के बाद हिंदी ही विश्व की दूसरे नंबर पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. विदेशियों में हिंदी भाषा सीखने और जानने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. इस के विपरीत हमारे अपने देश में दूसरी कक्षा में जब उन्हें क ख ग सिखाया जाता है तो पेरैंट्स हिंदी को अहमियत ही नहीं देते. हमारे यहां इंग्लिश भाषा के धुरंधर बच्चे कालेज में पहुंच कर भी हिंदी में मात्राओं और हिज्जों की गलतियां करते हैं. उन्हें सही हिंदी नहीं आती जब कि हिंदी सीखना दूसरी अन्य भाषाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है. फिर इस में दोष किस का है?

दरअसल, भारत में अपनी भाषा की दुर्दशा के लिए सब से पहले तो हिंदी के प्रति हमारी सोच जिम्मेदार है. हम ने इंग्लिश को एक उच्चवर्ग की भाषा मान रखा है. जवाहरलाल नेहरू ने सालों पहले यह बात कही थी, ‘मैं इंग्लिश का इसलिए विरोधी हूं क्योंकि इंग्लिश जानने वाला व्यक्ति अपने को दूसरों से बड़ा समझने लगता है और उस की दूसरी क्लास बन जाती है. यह इलीट क्लास होती है.’

बहुत से परिवारों में बच्चे अपने मांबाप से इंग्लिश में बात करते हैं और नौकर या आया से हिंदी में क्योंकि उन्हें यह लगता है कि हिंदी मजदूर तबके की ही भाषा है. बच्चों को नर्सरी स्कूल में भेजने से पहले यह जरूरी हो जाता है कि इंटरव्यू में पूछे गए इंग्लिश सवालों का वे सही उत्तर दे सकें और एकाध नर्सरी राइम्स सुना सकें. मातापिता उन्हें इस इंटरव्यू के लिए तैयार करने में अपनी सारी ऊर्जा खपा डालते हैं.

हम ने खुद ही तो अपने बच्चों को इंग्लिश माध्यम से पढ़ाया है. उन के बोलना सीखते ही ‘ट्विंकलट्विंकल लिटिल स्टार’ और ‘जौनी जौनी यस पापा’ जैसी कविताएं रटवाई हैं. हिंदी माध्यम के स्कूलों को म्यूनिसिपल स्कूलों जैसा दोयम दर्जा दे दिया है.

दरअसल, आज हमारी पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि हमारी नई पीढ़ी कैसे हिंदी की ओर आकर्षित हो. हिंदी भाषा से उसे उकताहट व झुंझलाहट न हो. हिंदी एक आम भारतीय आदमी की भाषा है, फिर भी आज तक इस की अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई. आज भी इंग्लिश बोलने वाले लोग श्रेष्ठता का दंभ भरते हैं और हिंदीभाषी लोग अकसर हीनता की ग्रंथि से ग्रस्त प्रतीत होते हैं.

इस का एक बड़ा कारण है हिंदी का संस्कृतभरा तत्सम रूप जो सिर्फ भाषाई पंडितों को रास आता है, आम आदमी को नहीं. हिंदी का तद्भव रूप वह है जिस में उर्दू, अरबी, फारसी, इंग्लिश और तमाम भाषाओं के शब्द मिले हुए हैं. यही हिंदी आम आदमी की बातचीत की भाषा रही है. मगर हिंदी का एक शुद्धीकरण अभियान चल रहा है. अकसर जारी की जा रही सरकारी विज्ञप्तियों, बहुत से कानूनों के हिंदी अनुवाद और सरकारी आदेशों की भाषा में हिंदी को विचित्र काटछांट कर तोड़मरोड़ कर, पेंचदार भाषा में अजीब रूप में पेश किया जाता है. इस तरह जब हिंदी को क्लिष्ट रूप में लोगों के समक्ष लाया जाएगा तो लोगों में इस के प्रति अरुचि ही पैदा होगी.

कम पढ़ेलिखे लोगों के लिए क्लिष्ट हिंदी एक बड़ी समस्या है. ऐसी हिंदी जब अच्छेखासे पढ़ेलिखे लोग नहीं समझ पाते तो भला हम यह कैसे अपेक्षा कर सकते हैं कि कम पढ़ेलिखे लोग इसे समझ पाएंगे. यह तो एक तरह से उन के खिलाफ साजिश ही है. इंग्लिश उन्हें आती नहीं और हिंदी अपनी भाषा होने के बावजूद जब समझ में न आए तो कितनी दयनीय हालत होती होगी. आवश्यक है कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने के लिए हम हिंदी को सरल और सुगम रूप में प्रस्तुत करें.

इस संदर्भ में आर जे, एंकर, ऐक्टर और राइटर अरुण कोचर कहते हैं, “क्लिष्ट हिंदी कम पढ़ेलिखे लोग समझ ही नहीं पाते. इसलिए वे उस से उतना दूर भागते हैं जितना इंग्लिश से भी नहीं. बच्चे भी उसी तरफ आकर्षित होते हैं जो उन्हें समाज में रुतबा दिलाए. हमारे हिंदीभाषी ही क्लिष्ट हिंदी से परहेज करते हैं. वैसे भी, ऐसी हिंदी ज्यादा उपयोग में नहीं आती. केवल नाटकों में, रामलीला मंचनों या क्लास रूम में ही इस का प्रयोग होता है.

“”हम जब धाराप्रवाह बोलते हैं तो बीच में इंग्लिश या उर्दू के शब्द आ ही जाते हैं. दैनिक जीवन में क्लिष्ट हिंदी का कभी इस्तेमाल नहीं होता. यह एक तरह से इंग्लिश में लिखी दवा के नाम जैसा हो जाता है जो न समझ आती है और न जिस में हमें कोई रुचि ही होती है.

“”देखा जाए तो हमारे समाज में इंग्लिश का चलन है. जब आप इंग्लिश में जवाब देते हैं तो आप को सम्मान की नजरों से देखते हैं. ज्यादातर पुस्तकें इंग्लिश में हैं. जैसे अकाउंट, इनकम टैक्स, मर्केंटाइल लौ आदि की पुस्तकें इंग्लिश में ही हैं. बाहर के देशों से कानून आए हैं, उन्हें हिंदी में समझ पाना कठिन है. सारा कामकाज इंग्लिश में होता है. क्लिष्ट हिंदी में अनुवाद करें तो भी उसे समझना कठिन हो जाता है. सरकार ने भी हिंदी के प्रचारप्रसार पर उतना ध्यान नहीं दिया है.”

सरल हिंदी के विकास में एक बड़ी बाधा है नेता तथा उच्चवर्ग की दोहरी नीति. स्थानीय नेता जो इंग्लिश को कोसते नहीं थकते, वहीं, अपने बच्चों को इंग्लिश में तुतलाते देख कर उस की बलैया लेते हैं. इसी तरह उच्च और संपन्न वर्ग वाले भी इंग्लिश से चिपके रहते हैं. उन के बच्चे ए,बी,सी,डी पहले सीखते हैं, क, ख, ग बाद में. नर्सरी राइम पहले, कविता पीछे. उन्हें डर लगता है कि बच्चे को कहीं हिंदी का रोग न लग जाए, इसलिए बचपन से ही उन्हें इंग्लिश का चस्का लगा दिया जाता है.

यही नहीं, हिंदी में सरल भाषा में तकनीकी पाठ्यपुस्तकों का भी अभाव है. लेखन में लेखक की स्वाभाविक शैली का बहुत प्रभाव पड़ता है. कुछ लेखक लेखन में तत्सम शब्दावली एवं इंग्लिश लेखन में यूएस इंग्लिश के क्लिष्ट शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं. इस से विषयवस्तु को समझने में कठिनाई उत्पन्न होती है.

यही नहीं, हमारे अदालती दस्तावेज, जमीन के कागज और सिनेमा के गाने उर्दू-फारसी शब्दों से भरे हुए हैं. इसी तरह इंग्लिश शासन के प्रभाव से हमारे संविधान, सभी तरह के कानून और उच्चशिक्षा हेतु तकनीकी विषयों की पाठ्यपुस्तकें इंग्लिश में ही उपलब्ध हैं. तकनीकी विषयों, जैसे डाक्टरी, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, प्रबंधन, आदि सब की पढ़ाई इंग्लिश मंत ही होती है. इंग्लिश आज निश्चित रोजगार की भाषा मानी जा रही है.

ऐसे में सरल हिंदी का विकास जरूरी है. आवश्यक है कि तकनीकी विषयों, जैसे मैडिकल इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, कौमर्स, मैनेजमैंट आदि की पुस्तकें अगर हिंदी में उपलब्ध नहीं हैं तो उन का सरल हिंदी अनुवाद करवाया जाए ताकि भारतीयों को अपनी भाषा में उच्चशिक्षा दी जा सके. हिंदी की पत्रिकाओं का प्रचारप्रसार हो.

शब्द महज ध्वनियां नहीं होते. हर शब्द का अपना एक संसार होता है. जब वे अपने संसार के साथ हम तक नहीं पहुंचते, वे अपना अर्थ खो देते हैं. किसी भी शब्द को स्वीकार या खारिज करने का सरल तरीका यह है कि वह हमें कितना स्वाभाविक लगता है.

हिंदी ने बड़ी सहजता और सरलता से समय के साथ चलते हुए कई बाहरी भाषाओं के शब्दों को भी अपने अंदर समेट लिया है. इस से हिंदी का शब्द भंडार बहुत समृद्ध हो गया है. वास्तव में हिंदी जीवंत भाषा है. वह समय के साथ बहती रही है, कहीं ठहरी नहीं.

यह बात अलग है कि हिंदी के ‘सरलीकरण’ के नाम पर उसे ‘हिंग्लिश’ बना दिया गया है. हिंदी में अन्य भाषाओं, खासकर इंग्लिश, के शब्दों को जबरन ठूंसा जा रहा है. किसी भी भाषा के विकास, उस के जीवित बने रहने और जनसामान्य की भाषा बनी रहने के लिए दूसरी भाषा के शब्दों का योगदान निश्चित तौर पर महत्त्वपूर्ण होता है. लेकिन आवश्यकता से अधिक उपयोग से मूलभाषा ही परिवर्तित होने लगती है. यह परिवर्तन उस के अस्तित्व के लिए संकट बन जाता है.

सोच: आखिर कैसे अपनी जेठानी की दीवानी हो गई सलोनी

‘‘तो कितने दिनों के लिए जा रही हो?’’ प्लेट से एक और समोसा उठाते हुए दीपाली ने पूछा.

‘‘यही कोई 8-10 दिनों के लिए,’’ सलोनी ने उकताए से स्वर में कहा.

औफिस के टी ब्रेक के दौरान दोनों सहेलियां कैंटीन में बैठी बतिया रही थीं.

सलोनी की कुछ महीने पहले ही दीपेन से नईनई शादी हुई थी. दोनों साथ काम करते थे. कब प्यार हुआ पता नहीं चला और फिर चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर अब दोनों शादी कर के एक ही औफिस में काम कर रहे थे, बस डिपार्टमैंट अलग था. सारा दिन एक ही जगह काम करने के बावजूद उन्हें एकदूसरे से मिलनेजुलने की फुरसत नहीं होती थी. आईटी क्षेत्र की नौकरी ही कुछ ऐसी होती है.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि तुम रह कैसे लेती हो उस जगह? तुम ने बताया था कि किसी देहात में है तुम्हारी ससुराल,’’ दीपाली आज पूरे मूड में थी सलोनी को चिढ़ाने के. वह जानती थी ससुराल के नाम से कैसे चिढ़ जाती है सलोनी.

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‘‘जाना तो पड़ेगा ही… इकलौती ननद की शादी है. अब कुछ दिन झेल लूंगी,’’ कह सलोनी ने कंधे उचकाए.

‘‘और तुम्हारी जेठानी, क्या बुलाती हो तुम उसे? हां भारतीय नारी अबला बेचारी,’’ और दोनों फक्क से हंस पड़ीं.

‘‘यार मत पूछो… क्या बताऊं? उन्हें देख कर मुझे किसी पुरानी हिंदी फिल्म की हीरोइन याद आ जाती है… एकदम गंवार है गंवार. हाथ भरभर चूडि़यां, मांग सिंदूर से पुती और सिर पर हर वक्त पल्लू टिकाए घूमती है. कौन रहता है आज के जमाने में इस तरह. सच कहूं तो ऐसी पिछड़ी औरतों की वजह से ही मर्द हम औरतों को कमतर समझते हैं… पता नहीं कुछ पढ़ीलिखी है भी या नहीं.’’

‘‘खैर, मुझे क्या? काट लूंगी कुछ दिन किसी तरह. चल, टाइम हो गया है… बौस घूररहा है,’’ और फिर दोनों अपनीअपनी सीट पर लौट गईं.

सलोनी शहर में पलीबढ़ी आधुनिक लड़की थी. दीपेन से शादी के बाद जब उसे पहली बार अपनी ससुराल जाना पड़ा तो उसे वहां की कोई चीज पसंद नहीं आई. उसे पहले कभी किसी गांव में रहने का अवसर नहीं मिला था. 2 दिन में ही उस का जी ऊब गया. उस ठेठ परिवेश में 3-4 दिन रहने के लिए दीपेन ने उसे बड़ी मुश्किल से राजी किया था. शहर में जींसटौप पहन कर आजाद तितली की तरह घूमने वाली सलोनी को साड़ी पहन घूंघट निकाल छुईमुई बन कर बैठना कैसे रास आता… ससुराल वाले पारंपरिक विचारों के लोग थे. उसे ससुर, जेठ के सामने सिर पर पल्लू लेने की हिदायत मिली. सलोनी की सास पुरातनपंथी थीं, मगर जेठानी अवनि बहुत सुलझी हुई थी. छोटी ननद गौरी नई भाभी के आगेपीछे घूमती रहती थी. सलोनी गांव की औरतों की सरलता देख हैरान होती. वह खुद दिल की बुरी नहीं थी, मगर न जाने क्यों पारंपरिक औरतों के बारे में उस के विचार कुछ अलग थे. सिर्फ घरगृहस्थी तक सीमित रहने वाली ये औरतें उस की नजरों में एकदम गंवार थीं.

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शहर में अपनी नई अलग गृहस्थी बसा कर सलोनी खुश थी. यहां सासननद का कोई झंझट नहीं था. जो जी में आता वह करती. कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. दीपेन और सलोनी के दोस्त वक्तबेवक्त धमक जाते. घर पर आए दिन पार्टी होती. दिन मौजमस्ती में गुजर रहे थे.

कुछ दिन पहले ही दीपेन की छोटी बहन गौरी की शादी तय हुई थी. शादी का अवसर था. घर में मेहमानों की भीड़ जुटी थी.

गरमी का मौसम उस पर बिजली का कोई ठिकाना नहीं होता था. हाथपंखे से हवा करतेकरते सलोनी का दम निकला जा रहा था. एअरकंडीशन के वातावरण में रहने वाली सलोनी को सिर पर पल्लू रखना भारी लग रहा था. गांव के इन पुराने रीतिरिवाजों से उसे कोफ्त होने लगी.

एकांत मिलते ही सलोनी का गुस्सा फूट पड़ा, ‘‘कहां ले आए तुम मुझे दीपेन? मुझ से नहीं रहा जाता ऐसी बीहड़ जगह में… ऊपर से सिर पर हर वक्त यह पल्लू रखो. इस से तो अच्छा होता मैं यहां आती ही नहीं.’’

‘‘धीरे बोलो सलोनी… यार कुछ दिन ऐडजस्ट कर लो प्लीज. गौरी की शादी के दूसरे ही दिन हम चले जाएंगे,’’ दीपेन ने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की.

सलोनी ने बुरा सा मुंह बनाया. बस किसी तरह शादी निबट जाए तो उस की जान छूटे. घर रिश्तेदारों से भरा था. इतने लोगों की जिम्मेदारी घर की बहुओं पर थी. सलोनी को रसोई के कामों का कोई तजरबा नहीं था. घर के काम करना उसे हमेशा हेय लगता था. अपने मायके में भी उस ने कभी मां का हाथ नहीं बंटाया था. ऐसे में ससुराल में जब उसे कोई काम सौंपा जाता तो उस के पसीने छूट जाते. जेठानी अवनि उम्र में कुछ ही साल बड़ी थी, मगर पूरे घर की जिम्मेदारी उस ने हंसीखुशी उठा रखी थी. घर के सब लोग हर काम के लिए अवनि पर निर्भर थे, हर वक्त सब की जबान पर अवनि का नाम होता. सलोनी भी उस घर की बहू थी, मगर उस का वजूद अवनि के सामने जैसे था ही नहीं और सलोनी भी यह बात जल्दी समझ गई थी.

घर के लोगों में अवनि के प्रति प्यारदुलार देख कर सलोनी के मन में जलन की भावना आने लगी कि आखिर वह भी तो उस घर की बहू है… तो फिर सब अवनि को इतना क्यों मानते.

‘‘भाभी, मेरी शर्ट का बटन टूट गया है, जरा टांक दो,’’ बाथरूम से नहा कर निकले दीपेन ने अवनि को आवाज दी.

सलोनी रसोई के पास बैठी मटर छील रही थी. वह तुरंत दीपेन के पास आई. बोली, ‘‘यह क्या, इतनी छोटी सी बात के लिए तुम अवनि भाभी को बुला रहे हो… मुझ से भी तो कह सकते थे?’’ और फिर उस ने दीपेन को गुस्से से घूरा.

‘‘मुझे लगा तुम्हें ये सब नहीं आता होगा,’’ सलोनी को गुस्से में देख दीपेन सकपका गया.

‘‘तुम क्या मुझे बिलकुल अनाड़ी समझते हो?’’ कह उस के हाथ से शर्ट ले कर सलोनी ने बटन टांक दिया.

धीरेधीरे सलोनी को समझ आने लगा कि कैसे अवनि सब की चहेती बनी हुई है. सुबह सब से पहले उठ कर नहाधो कर चौके में जा कर चायनाश्ता बना कर सब को खिलाना. बूढ़े ससुरजी को शुगर की समस्या है. अवनि उन की दवा और खानपान का पूरा ध्यान रखती. सासूमां भी अवनि से खुश रहतीं. उस पर पति और

2 छोटे बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी निभाते हुए भी मजाल की बड़ों के सामने पल्लू सिर से खिसक जाए. सुबह से शाम तक एक पैर पर नाचती अवनि सब की जरूरतों का खयाल बड़े प्यार से रखती.

घर आए रिश्तेदार भी अवनि को ही तरजीह देते. सलोनी जैसे एक मेहमान की तरह थी उस घर में. अवनि का हर वक्त मुसकराते रहना सलोनी को दिखावा लगता. वह मन ही मन कुढ़ने लगी थी अवनि से.

घर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए अब सलोनी हर काम में घुस जाती थी, चाहे वह काम करना उसे आता हो या नहीं और इस चक्कर में गड़बड़ कर बैठती, जिस से उस का मूड और बिगड़ जाता.

‘ठीक है मुझे क्या? यह चूल्हाचौका इन गंवार औरतों को ही शोभा देता है. कभी कालेज की शक्ल भी नहीं देखी होगी शायद… दो पैसे कमा कर दिखाएं तब पता चले,’ सलोनी मन ही मन खुद को तसल्ली देती. उसे अपनी काबिलीयत पर गुमान था.

सलोनी के हाथ से अचार का बरतन गिर कर टूट गया. रसोई की तरफ आती अवनि फिसल कर गिर पड़ी और उस के पैर में मोच आ गई. घर वाले दौड़े चले आए. अवनि को चारपाई पर लिटा दिया गया. सब उस की तीमारदारी में जुट गए. उसे आराम करने की सलाह दी गई. उस के बैठ जाने से सारे काम बेतरतीब होने लगे.

बड़ी बूआ ने सलोनी को रसोई के काम में लगा दिया. सलोनी इस मामले में कोरा घड़ा थी. खाने में कोई न कोई कमी रह जाती. सब नुक्स निकाल कर खाते.

अवनि सलोनी की स्थिति समझती थी. वह पूरी कोशिश रती उसे हर काम सिखाने की पर अभ्यास न होने से जिन कामों में अवनि माहिर थी उन्हें करने में सलोनी घंटों लगा देती.

मझली बूआ ने मीठे में फिरनी खाने की फरमाइश की तो सलोनी को फिरनी पकाने का हुक्म मिला. उस के पास इतना धैर्य कहां था कि खड़ेखड़े कलछी घुमाती, तेज आंच में पकती फिरनी पूरी तरह जल गई.

‘‘अरे, कुछ आता भी है क्या तुम्हें? पहले कभी घर का काम नहीं किया क्या?’’ सारे रिश्तेदारों के सामने मझली बूआ ने सलोनी को आड़े हाथों लिया.

मारे शर्म के सलोनी का मुंह लाल हो गया. उसे सच में नहीं आता था तो इस में उस का क्या दोष था.

‘‘बूआजी, सलोनी ने ये सब कभी किया ही नहीं है पहले. वैसे भी यह नौकरी करती है… समय ही कहां मिलता है ये सब सीखने का इसे… आप के लिए फिरनी मैं फिर कभी बना दूंगी,’’ अवनि ने सलोनी का रोंआसा चेहरा देखा तो उस का मन पसीज गया. ननद गौरी की शादी धूमधाम से निबट गई. रिश्तेदार भी 1-1 कर चले गए. अब सिर्फ घर के लोग रह गए थे.

अवनि के मधुर व्यवहार के कारण सलोनी उस से घुलमिल गई थी. अवनि उस के हर काम में मदद करती.

2 दिन बाद उन्हें लौटना था. दीपेन ने ट्रेन के टिकट बुक करा दिए. एक दिन दोपहर में सलोनी पुराना अलबम देख रही थी. एक फोटो में अवनि सिर पर काली टोपी लगाए काला चोगा पहने थी. फोटो शायद कालेज के दीक्षांत समारोह का था. उस फोटो को देख कर सलोनी ने दीपेन से पूछा, ‘‘ये अवनि भाभी हैं न?’’

‘‘हां, यह फोटो उन के कालेज का है. भैया के लिए जब उन का रिश्ता आया था तो यही फोटो भेजा था उन के घर वालों ने.’’

‘‘कितनी पढ़ीलिखी हैं अवनि भाभी?’’ सलोनी हैरान थी.

‘‘अवनि भाभी डबल एमए हैं. वे तो नौकरी भी करती थीं. उन्होंने पीएचडी भी की हुई है. शादी के कुछ समय बाद मां बहुत बीमार पड़ गई थीं. बेचारी भाभी ने कोई कसर नहीं रखी उन की तीमारदारी में. अपनी नौकरी तक छोड़ दी. अगर आज मां ठीक हैं तो सिर्फ भाभी की वजह से. तुम जानती नहीं सलोनी, भाभी ने इस घर के लिए बहुत कुछ किया है. वे चाहतीं तो आराम से अपनी नौकरी कर सकती थीं. मगर उन्होंने हमेशा अपने परिवार को प्राथमिकता दी.’’

सलोनी जिस अवनि भाभी को निपट अनपढ़ समझती रही वह इतनी काबिल होगी, इस का तो उसे अनुमान भी नहीं था. पूरे घर की धुरी बन कर परिवार संभाले हुए अवनि भाभी ने अपनी शिक्षा का घमंड दिखा कर कभी घरगृहस्थी के कामों को छोटा नहीं समझा था.

सलोनी को अपनी सोच पर ग्लानि होने लगी. उस ने आधुनिक कपड़ों और रहनसहन को ही शिक्षा का पैमाना माना था.

‘‘अरे भई, कहां हो तुम लोग, बिट्टू के स्कूल के प्रोग्राम में चलना नहीं है क्या?’’ कहते हुए अवनि भाभी सलोनी के कमरे में आईं.

‘‘हां, भाभी बस अभी 2 मिनट में तैयार होते हैं,’’ सलोनी और दीपेन हड़बड़ाते हुए बोले.

बिट्टू को अपनी क्लास के बैस्ट स्टूडैंट का अवार्ड मिला. हर विषय में वह अव्वल रहा था. उसे प्राइज देने के बाद प्रिंसिपल ने जब मांबाप को स्टेज पर दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया तो सकुचाते हुए बड़े भैया बोले, ‘‘अवनि, तुम जाओ. मुझे समझ नहीं आता कि क्या बोलना है.’’

बड़े आत्मविश्वास के साथ माइक पकड़े अवनि भाभी ने अंगरेजी में अभिभावक की जिम्मेदारियों पर जब शानदार स्पीच दी, तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

घर लौटने के बाद दीपेन से सलोनी ने कहा, ‘‘सुनो, कुछ दिन और रुक जाते हैं यहां.’’

‘‘लेकिन तुम्हारा तो मन नहीं लग रहा था… इसीलिए तो इतनी जल्दी वापस जा रहे हैं,’’ दीपेन हैरान होकर बोला.

‘‘नहीं, अब मुझे यहां अच्छा लग रहा है… मुझे अवनि भाभी से बहुत कुछ सीखना है,’’ सलोनी उस के कंधे पर सिर टिकाते हुए बोली.

‘‘वाह तो यह बात है. फिर तो ठीक है. कुछ सीख जाओगी तो कम से कम जला खाना तो नहीं खाना पड़ेगा,’’ दीपेन ने उसे छेड़ा और फिर दोनों हंस पड़े.

सत्यकथा: पत्नी के साथ की हैवानियत की हद पार

छत्तीसगढ़ में बेमेतरा जिला मुख्यालय से महज 3 किलोमीटर दूर बीजाभाट गांव की रहने वाली माधुरी सरकारी स्कूल में टीचर थी. बात साल 2019 की है. कोरोना के चलते स्कूल बंद था. मार्च महीने से ही घर में पड़ीपड़ी ऊब गई थी. बच्चों की औनलाइन क्लासेज लेने के सिलसिले में वह स्मार्टफोन और इंटरनेट फ्रैंडली हो गई थी.

खाली समय में मोबाइल पर ही औनलाइन शौपिंग, फैशनेबल कपड़े, खानेपीने की रेसिपी या दूसरे वायरल वीडियो देख कर मन बहला लिया करती थी. इस दौरान जब भी मेट्रोमोनियल साइटों के विज्ञापन आते तो उस का ध्यान उन की ओर चला जाता था.

32 साल की उम्र हो चुकी थी. वह अविवाहित थी. इस की चिंता जितनी उस के बेहद बुजुर्ग हो चुके मातापिता और भाईभाभी को सता रही थी, उस से अधिक अपने जीवनसाथी के लिए वह खुद चिंतित थी. उस ने टीचर बन कर अपना करियर तो बना लिया था, लेकिन ब्याह नहीं हो पाया था और उम्र काफी तेजी से निकलती जा रही.

घरपरिवार और गांव के लोग अकसर टोक देते थे, ‘‘अरे माधुरी, कुछ अपनी जिंदगी के बारे में भी सोच लिया करो. बच्चों के भविष्य की चिंता करती हो, अपने भविष्य पर भी ध्यान दो.’’

कई लोग तो मातापिता और परिवार को ले कर ऐसा कमेंट कर देते थे कि माधुरी का मनमिजाज कड़वा हो जाता था. इसी बीच साथ काम करने वाली कुछ दोस्तों ने सलाह दी, ‘‘अगर पैरेंट्स उस के लिए योग्य वर नहीं तलाश पा रहे हैं, तो इस के लिए उसे खुद कोशिश करनी चाहिए. मेट्रोमोनियल साइटों पर अपनी पसंद का जीवनसाथी तलाश कर शादी कर लेनी चाहिए.’’

यही सोच कर माधुरी ने जीवनसाथी डौटकाम पर मेल आईडी रजिस्टर कर दिया था. इस के बाद आए दिन उस के मेल पर लड़कों के शादी के प्रस्ताव आने लगे थे.

उम्र अधिक होने के कारण मनपसंद प्रस्ताव नहीं मिल पा रहा था. अधिकतर प्रस्ताव विधुर के ही थे, जिन की उम्र का अंतर भी काफी अधिक था. कुछ जाति और अलग धर्म के होने के कारण उस ओर ध्यान नहीं देती थी.

सितंबर, 2019 में एक प्रस्ताव 2 दिन के गैप पर लगातार आया. हर बार मेल में काफी बोल्ड में लिखा होता था, ‘मेरा नाम राजेश विश्वकर्मा है. मेरा डेट औफ बर्थ 1985 का है. मुझे शराब से सख्त नफरत है. मैं डाइवोर्सी भी हूं. मैं बिल्डर हूं, जहां मेरी सालाना आय एक करोड़ से ज्यादा है.’

इस प्रोफाइल के साथ लड़के की तसवीर में पर्सनैलिटी देख कर माधुरी एक नजर में ही उस पर फिदा हो गई. अभी तक आए प्रस्तावों में एक यही था, जो उस की उम्र से मेल खाने वाला था. उस ने इस बारे में अपने परिवार के लोगों से बात कर मेल का जवाब दे दिया.

अपनी कुछ शर्तों के साथ पूरे परिवार की तसवीर पोस्ट कर दी. उस ने अपने पोस्ट में लिखा कि उस के घर वाले शादी में साधारण खर्च कर पाएंगे. दहेज की कोई राशि नहीं देंगे. मेरी सरकारी नौकरी है. इसे ही दहेज समझ लें.

राजेश माधुरी के सारे प्रस्ताव को मानते हुए सादगी के साथ कम से कम अतिथियों की उपस्थिति में शादी करने को राजी हो गया. किंतु इस से पहले उस ने परिवार समेत उस से मुलाकात करने की इच्छा जताई.

माधुरी तैयार हो गई और अपने मातापिता को ले कर राजेश से मिलने के लिए सितंबर 2019 में इंदौर चली गई. वहां राजेश ने उन की खूब आवभगत की और लगे हाथों अगले महीने अक्तूबर माह में  शादी की 24 तारीख भी तय कर दी.

शादी की जगह रायपुर रखी गई. राजेश ने शादी का पूरा खर्च उठाने का जिम्मा अपने सिर ले लिया. लड़की की शादी की शुरुआती रस्में छत्तीसगढ़ में करने के बाद केवल अपने जरूरत के सामान और कपड़े के साथ आने को कहा. सब कुछ निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार चल रहा था.

रायपुर के होटल में 24 तारीख को माधुरी की फैमिली के सारे लोग शादी में मौजूद थे. जबकि राजेश के परिवार की तरफ से कोई नहीं आया था. उस की ओर से उस के 4-5 दोस्त और 2-3 नौकरचाकर थे. बाकी सारा इंतजाम होटल वालों ने इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के द्वारा करवाया था.

माधुरी के घर वालों को यह बात अटपटी लगी कि राजेश की फैमिली से कोई नहीं था. उन्होंने इस पर सवाल किया, तब राजेश ने बताया कि वह यह शादी अपनी फैमिली वालों की मरजी के खिलाफ कर रहा है. वे उस की शादी कहीं और करना चाहते थे, वह इस के लिए तैयार नहीं था. इस कारण फैमिली के लोग शादी में नहीं आए. दूसरा कारण कोरोना को ले कर भी अधिकतर लोग शादीब्याह के फंक्शन में जाने से बचना चाहते हैं.

भव्य शादी समारोह देख कर और राजेश की बातों पर विश्वास करते हुए माधुरी के परिवार वाले कोई ज्यादा ऐतराज नहीं कर पाए. शादी अच्छी तरह संपन्न हो गई. उस के अगले दिन राजेश नवविवाहिता माधुरी को ले कर इंदौर चला आया. जबकि उस की फैमिली वाले छत्तीसगढ़ लौट गए.

शादी के बाद माधुरी सुखद वैवाहिक जीवन के सपने बुनती हुई राजेश के साथ इंदौर चली आई. वहां दोनों 4 दिनों तक एक होटल में ठहरे. इन 4 दिनों में ही माधुरी को सैक्सअुल लाइफ को ले कर सपने दरकने का अहसास हो गया था.

उसे राजेश की कुछ आदतें पसंद नहीं आई थीं, जिसे उस ने नजरंदाज करने की कोशिश की, लेकिन दिमाग में मैरिटल रेप का कीड़ा कुलबुलाने लगा था. उस के बाद माधुरी मांगलिया इलाके में स्थित युवराज फार्महाउस में रहने चली गई थी.

माधुरी शादी के लंबे अंतराल के बाद 15 जनवरी, 2022 को इंदौर के क्षिप्रा थाने में थी. वह थानाप्रभारी के सामने अपने और पूरे परिवार के प्राणों की रक्षा की गुहार कर रही थी. हालांकि इस की शिकायत वह छत्तीगढ़ के बेमेतरा में भी कर चुकी थी, लेकिन उसे अपनी व फैमिली की सुरक्षा की बेहद चिंता थी.

वहां उस ने अपनी शिकायत में लिखवाया था कि उस के पति के दोस्त विपिन उसे और उस के परिवार को जान से मारने की धमकी दे रहे हैं. उस के साथ एक और गुंडा भी धमकाने आया था. दोनों पति राजेश के भेजे हुए थे.

माधुरी ने पुलिस से यह भी शिकायत की कि वह 16 सितंबर, 2021 को किसी तरह से अपनी जान बचा कर वह इंदौर से छत्तीसगढ़ में अपने मातापिता के पास लौट पाई थी. कारण राजेश के साथ विवाह करना उस के लिए एक बेहद डरावना और भयावह बन चुका था.

माधुरी का वैवाहिक जीवन पूरी तरह नर्कमय हो चुका था. आए दिन पति के दोस्त उस का बलात्कार करते थे. कई बार गैंगरेप भी किया गया था. इस कारण उस ने आत्महत्या तक करने का मन बना लिया था. लेकिन राजेश ने जब उसे और उस के घर वालों को मारने के लिए गुंडे घर भेजे, तब वह हिम्मत जुटा कर पुलिस में शिकायत करने इंदौर आई है.

इसी के साथ माधुरी ने यह भी कहा कि जब तक राजेश के खिलाफ काररवाई नहीं होती, वह पकड़ा नहीं जाता, तब तक थाने में ही बैठी रहेगी.

विवाहिता माधुरी के पति द्वारा गैंगरेप करवाए जाने की शिकायत सुन कर थानाप्रभारी के कान खड़े हो गए. उन्होंने माधुरी से उस की वह दास्तान विस्तार से सुनते हुए रिकौर्ड कर ली, जिसे उस ने बीते 2 सालों में भोगा. फिर राजेश और उस के साथियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली.

थानाप्रभारी ने माधुरी को पूरी तरह से उस की सुरक्षा का वादा करते हुए राजेश के खिलाफ तुरंत काररवाई शुरू करने का आश्वासन दे कर घर जाने को कहा.

इतना ही नहीं, पुलिस ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ अगले रोज ही काररवाई की तैयारी पूरी भी कर ली. इस से पहले क्षिप्रा थाने की पुलिस ने उस के द्वारा बेमेतरा थाने में दर्ज करवाई गई शिकायत के बारे में मालूम किया. राजेश के पुराने पुलिस रिकौर्ड निकलवाए गए. उस का अध्ययन करते हुए पुलिस चौंक गई.

चौंकने की एक वजह राजेश का पुराना आपराधिक रिकौर्ड था. न केवल उस के, बल्कि उस के फार्महाउस के खिलाफ भी कई शिकायतें पहले से ही दर्ज थीं. फिर क्या था, जांच की प्रक्रिया का सिलसिला चल पड़ा.

पुलिस रिकौर्ड में राजेश विश्वकर्मा बिल्डर था और वह उसी फार्महाउस का मालिक था, जहां शादी के बाद माधुरी ने करीब 2 साल गुजारे थे. पुलिस ने माधुरी की शिकायत के मुताबिक राजेश के अलावा उस के 3 दोस्तों और 1 नौकर पर भी एफआईआर दर्ज कर ली.

हालांकि राजेश के एक दोस्त विपिन भदौरिया को बेमेतरा (छत्तीसगढ़) पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. उस पर 2 दरजन से ज्यादा केस बेमेतरा और दूसरे थानों में दर्ज बताए गए. उसे बेमेतरा की हाउसिंग बोर्ड कालोनी से पकड़ा गया था.

इधर इंदौर पुलिस ने राजेश को भी उस के फार्महाउस से हिरासत में ले लिया. उस के साथ नौकर अंकेश बघेल भी पकड़ा गया. अगले रोज जब थाने में उस का सामना माधुरी से हुआ, तब वह समझ गया कि वह यह सब किस का कियाकराया है. चूंकि उस पर पत्नी पर जुल्म ढाने, अननैचुरल सैक्स, रेप आदि करने के आरोप लगाए गए थे, इस कारण उस की गिरफ्तारी गैरजमानती थी.

यही नहीं, पुलिस को इंदौर के मांगलिया इलाके में बने युवराज फार्महाउस के खिलाफ भी कई बातें मालूम हो चुकी थीं. उस लिहाज से फार्महाउस में जमीन कब्जा, नशाखोरी, अय्याशी के लिए न्यूड डांस पार्टी से ले कर वहां होने वाले कई अनैतिक काम शामिल थे.

उसी फार्महाउस आनेजाने वालों में राजेश के खास दोस्तों में अंकेश बघेल, विवेक विश्वकर्मा और विपिन भदौरिया भी थे. माधुरी सभी की परिचित ही नहीं, उन के यौनाचार की शिकार भी हो चुकी थी. सभी ने उस के साथ कई बार रेप किया किया था. उधर छत्तीसगढ़ पुलिस ने भी राजेश विश्वकर्मा, आनंद साहनी, सिद्दीक को आरोपी बना लिया था.

छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक मुख्य आरोपी राजेश विश्वकर्मा ने विपिन भदौरिया, आनंद साहनी, सिद्दीक को बेमेतरा में पीडि़ता की हत्या के लिए भेजा था. तीनों पहचान छिपा कर कुछ दिनों तक सबेरा लौज में पान मसाला के एजेंट बन कर ठहरे हुए थे.

विपिन भदौरिया आगरा जिले में जैतपुर स्थित प्रकाश नगर का रहने वाला है. उस पर करीब एक दरजन आपराधिक मामले दर्ज हैं. यही नहीं विपिन हथियारों का भी शौकीन बताया गया. उस ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर बंदूक थामे हुए फोटो लगा रखा है. यहां तक कि विपिन के पिता दिनेश पर भी एक दरजन आपराधिक मामले दर्ज हैं.

इंदौर पुलिस द्वारा दर्ज गैंगरेप के इस मामले के चारों आरोपी मूलत: नागदा के रहने वाले हैं. उन में मुख्य आरोपी राजेश विश्वकर्मा के पिता जगदीश विश्वकर्मा का नागदा में इंजीनियरिंग वर्क्स का अच्छाखासा कारोबार स्थापित है.

राजेश के बारे में जुटाई गई जानकारी के अनुसार वह शुरू से आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहा है. इस कारण उस के पिता ने कभी भी उसे पसंद नहीं किया.

यहां तक कि ऊब कर उन्होंने  साल 2018 में उसे घर से निकाल दिया था. उस के बाद से उस ने अपना रहने का ठिकाना इंदौर में बना लिया था. वहीं उस की दोस्ती अंकेश बघेल, विपिन भदौरिया और विवेक विश्वकर्मा से हुई थी.

सभी आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म की धाराओं 376 (2जी), 376 (2एन) सहित धारा 377, 323, 594, 206 व 25 आर्म्स एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया गया. इस मामले में गिरफ्त में आए चारों आरोपी नागदा के रहने वाले हैं.

राजेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस के युवराज नाम से मशहूर फार्महाउस में गहन छानबीन की गई. कुल एक लाख वर्गफीट पर बने युवराज फार्महाउस के 27 हजार वर्गफीट पर निर्माण किया गया था. यह राजेश का एक ऐशगाह बना हुआ था.

बड़े अधिकारियों से उस के अवैध कब्जे को ढहाने के आदेश भी ले लिए गए. कलेक्टर मनीष सिंह ने फार्महाउस को ढहाने के आदेश दिए थे, हालांकि उसे ढहाना कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए नगर निगम ने 4 से ज्यादा जेसीबी और बुलडोजर लगा कर फार्महाउस को ढहाया.

एसडीएम रविश श्रीवास्तव और एसडीओपी पंकज दीक्षित की मौजूदगी में 16 जनवरी की दोपहर सवा बजे काररवाई शुरू हुई थी. मौके पर सुबह से ही प्रशासन, निगम और पुलिस की टीमें जुट गई थीं. काररवाई से पहले जिला प्रशासन और पुलिस अफसरों ने मुआयना किया. इस के लिए भारी पुलिस बल लगाया गया.

सब से पहले अंदर से सारा सामान बाहर किया गया. बुलडोजर से बाउंड्रीवाल गिरा दी गई. उस के बाद अंदर के हिस्से को ढहाया गया. इस बीच मुख्य आरोपी राजेश को सांवेर तहसील जेएमएफसी कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत पर भेजा गया.

पुलिस को फार्महाउस से राजेश के अय्याशी के कई सामान मिले, उन में महंगी शराब की बोतलें और सैक्स टौय तक थे. फार्महाउस में बार काटेज बना रखा था. घूमने के लिए छोटी ट्रैवल गाड़ी और औडी जैसी लग्जीरियस कार तक उस के पास थीं. फार्महाउस से आर्टिफिशियल हथियार भी मिले, जो चाइना के बने थे. उन में आर्टिफिशियल चाकू और कुल्हाड़ी सेट समेत दूसरे सामान थे. वहां लगे सीसीटीवी कैमरे और डीवीआर भी जब्त कर लिए गए.  लाखों रुपए खर्च कर इस फार्महाउस का निर्माण गलत तरीके से कराया गया था. साथ ही इंटीरियर पर भी काफी पैसे खर्च किए थे.

पुलिस और निगम के वरिष्ठ अधिकारियों ने फार्महाउस के दस्तावेजों की जांच कराई. बताते हैं कि यह सब उस ने अपनी पुश्तैनी जमीन बेच कर बनाया था. उस की कीमत कीमत 50 करोड़ से भी अधिक आंकी गई.

फार्महाउस के नजदीक एक जमीन का टुकड़ा उस ने कुछ साल पहले करोड़ों में बेचा था. वह रंगीनमिजाजी और अय्याशी के शौक पूरे किया करता था. राजेश का एक बड़ा भाई भी है, जो पिता का बिजनैस संभालता है.

मैं दुआ करती हूं कि किसी औरत को राजेश जैसा पति न मिले. यह कामना उस औरत की है, जिस ने शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न से भी बेहाल बनी जिंदगी का सामना किया.

दरअसल, माधुरी ने जब बिल्डर पति से शादी रचा कर दांपत्य जीवन यात्रा शुरू की, तब उस ने व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक तौर पर कई सपने बुने थे.

हालांकि उस की बेमेल शादी हो गई थी. पति तलाकशुदा था और उम्र में उस से 13-14 साल बड़ा भी था. जीवनसाथी डौटकाम पर उस ने अपनी उम्र 1974 के बजाय 1985 बताई थी. विवाह नहीं हो पाने के मानसिक दबाव के चलते माधुरी ने राजेश की मक्कारी पर ध्यान नहीं दिया था. उस के द्वारा बताई जन्म की तारीख की कोई तहकीकात तक नहीं की.

इस बारे में माधुरी द्वारा थाने में दर्ज करवाई गई शिकायत में लिखवाया कि वह छत्तीसगढ़ में सरकारी स्कूल में टीचर थी. साल 2019 में जीवनसाथी डौटकाम पर राजेश विश्वकर्मा का प्रपोजल आया था. अपनी प्रोफाइल में उस ने डेट औफ बर्थ 1985 लिखी थी, जोकि असल में 1974 है. उस ने खुद को डाइवोर्सी, नौन ड्रिंकर बताया और इनकम एक करोड़ से ज्यादा बताई थी.

माधुरी ने बताया कि उसे यह प्रस्ताव पसंद आ गया तो 24 अक्तूबर, 2019 को दोनों की रायपुर के होटल में शादी हो गई. इस शादी में माधुरी की फैमिली के सारे लोग मौजूद थे. राजेश की फैमिली से कोई नहीं आया था.

माधुरी के घर वालों ने इस पर ऐतराज किया, पर बात इज्जत की थी. इसलिए चुप हो गए. शादी के बाद इंदौर के एक होटल में माधुरी को 4 दिन ठहराया. इस के बाद राजेश अपने फार्महाउस ले गया.

माधुरी ने शादी के बाद एक छोटे से घर में परिवार के सदस्यों के बीच रहने के सपने देखे थे. किंतु फार्महाउस का माहौल उस से बिल्कुल ही उलट था. युवराज फार्महाउस में शुरुआती 5 दिन उसे कमरे में बंद कर रखा गया. उस से कहा कि परिवार के लोग शादी से नाराज हैं.

शादी के 15 दिन तक राजेश ठीक रहा, इस के बाद शुरू हुआ माधुरी के उत्पीड़न का दौर. माधुरी के पास मोबाइल नहीं था. अपने मोबाइल से सामने बैठा कर वह बात कराता था. काल रिकौर्डिंग पर होती थी. फार्महाउस में न्यूड पार्टियां हुआ करती थीं. नौकर निगरानी करते थे.

राजेश माधुरी को पोर्न मूवी दिखा कर उसी तरह रिलेशन बनाने के लिए कहता था. अननैचुरल सैक्स करता था. मना करने पर टौर्चर करता. फार्महाउस पर उसे बिना कपड़ों के या अंडरगारमेंट में अधनंगे रखने लगा.

सर्दी के समय में भी उसे ठिठुरते हुए या फिर बैडशीट या तौलिया लपेट कर रहना पड़ा था. नौकर को कह कर उस के कपड़े छिपा दिए. उस के बाद से उस का माधुरी के प्रति नजरिया बदल गया. नौकर भी उस के साथ गलत हरकतें करने लगा.

राजेश विपिन से उस पर ठंडा पानी डलवाता और दोस्तों के सामने बिना कपड़ों के डांस करवाता था. वे सारे कुरसी पर सिगरेट के कश लगाते हुए उसे घूरते रहते थे.

डांस के बाद सभी उस के साथ रेप करते थे. सिगरेट से प्राइवेट और बौडी के दूसरे पार्ट दागते थे. दांतों से काटते थे. उस ने इस के वीडियो भी बना रखे थे.

माधुरी ने पुलिस को बताया कि उसे आशंका है कि उस ने उस के न्यूड डांस और सैक्सुअल हैरसमेंट का वीडियो पोर्न साइटों पर डाल दिया हो. एक बार वह सिगरेट से दागने पर काफी जख्मी भी हो गई थी.

यह सब करीब 2 सालों तक चलता रहा. उसे वे लोग फार्महाउस से बाहर निकलने नहीं देते थे. एकदो बार बाहर जाना भी हुआ तो नौकरों और दोस्तों के साथ ही गई. उन दिनों उस की सेहत भी खराब हो गई थी.

16 सितंबर, 2021 को वह वहां से किसी तरह से निकल भागने में सफल हो गई. फिर सीधी छत्तीसगढ़ लौट गई. घर आ कर वह आत्मग्लानि से भर गई थी. उसे अपने मांबाबूजी से नजर मिलाने में भी शर्म आती थी. वह एकदम गुमसुम हो गई थी. सोचा कि नौकरी जौइन कर लूं, लेकिन घर से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी. आत्महत्या का मन बना चुकी थी.

तभी  राजेश ने एक दिन उस के पास अपने 2 गुंडे भेज दिए. वे घर आ कर उस से साथ चलने की जिद करने लगे. जब माधुरी ने उन के साथ जाने से मना कर दिया तो वे उसे और उस के घर वालों को जान से मारने की धमकी दे कर चले गए. यह बात घर वालों को नहीं मालूम थी.

किंतु जब बात परिवार पर आई, तब माधुरी ने हिम्मत जुटा कर पहले छत्तीसगढ़ में अपनी जान की सुरक्षा के साथ राजेश और उस के दोस्तों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई. संयोग से दोनों गुंडे तुरंत पकड़े गए. उस के बाद माधुरी ने हिम्मत कर इंदौर आ कर थाने में शिकायत की.

राजेश के दिमाग में अय्याशी और अनैतिकता लबालब भरी हुई थी. खुराफाती मानसिकता वाले राजेश के तार सैक्स रैकेट से भी जुड़े थे. वह कहीं न कहीं मानव तसकरी से जुड़ा हुआ था, जिस के लिए सैक्स के अलगअलग तरीके अपनाया करता था. यह सब करने के लिए उस ने मेट्रोमोनियल साइट का इस्तेमाल भी किया. उस पर फरजी प्रोफाइल दे कर लड़की को शादी के जाल में फांस लेता था.

बताया जाता है कि शहर के 3 बड़े होटल में आने वाले फारेन एस्कौर्ट के ट्रैवल टिकट राजेश अपने दोस्त से बुक करवाता था. एस्कौर्ट की लड़कियों को अपने फार्महाउस पर भी ठहराता था. क्षिप्रा पुलिस को इस के सबूत गैंगरेप मामले की जांच के दौरान मिले.

इस बारे में छत्तीसगढ़ पुलिस को पता चल गया है कि गैंगरेप से जुड़े आरोपियों के तार राज्य में मानव तसकरों से जुड़े हैं. मध्य प्रदेश के गृह विभाग ने इंदौर स्पैशल ब्रांच  से इस मामले में रिपोर्ट मांगी है.

यह भी पता चला कि विदेशी लड़कियां राजेश की कमजोरी थीं. वह पोर्न एडिक्ट भी था. विदेशी लड़कियों को रिझाने के लिए जहां शराब और नशे का सहारा लेता था, वहीं पोर्न मूवी की तरह सैक्स संबंध बनाने में भी काफी दिलचस्पी लेता था.

अननैचुरल सैक्स और ग्रुप सैक्स के लिए भी उत्सुक रहता था. वह जब भी कहीं बाहर घूमने जाता था तो ऐसे होटल में ठहरता, जहां विदेशी लड़कियों का आनाजाना अधिक होता हो.

इंदौर, गोवा और जयपुर के होटलों में वह कमरे बुक करवा कर रखता था. इंदौर के कुछ होटलों में सीधे कमरे बुक होते थे. शहर के 3 होटलों में उस का काफी आनाजाना होता था.

वैसे साल में एक से 2 बार गोवा और जयपुर का टूर बनाता था. वहां भी होटलों में उस के रूम बुक रहते थे. वह ऐसे होटलों में ठहरता था, जहां पब के साथ बार भी होता था. इस सिलसिले में वह दुबई और बैंकाक भी घूम आया था.

क्षिप्रा पुलिस के मुताबिक, राजेश को बचाने के लिए उस के 2 मास्टरमांइड दोस्तों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण थी. उन में एक ट्रैवल्स का काम करता है, जबकि दूसरा आईटी एक्सपर्ट है.

दरअसल, गैंगरेप में शामिल एक आरोपी विवेक ही आईटी एक्सपर्ट है. उस ने ही राजेश के मोबाइल और दूसरे गजेट्स से पूरा डाटा डिलीट कर दिया था. पुलिस अब डाटा निकालने के लिए आईटी एक्सपर्ट की मदद ले रही है.

विवेक अपनी पत्नी से तलाक ले चुका है. उसे भी अय्याशी का शौक था. राजेश के साथ वह सब से ज्यादा फार्महाउस पर समय बिताता था.

दूसरा ट्रैवल एजेंट दोस्त होटल में एयर टिकट बुक कराने से ले कर होटल में कमरों तक का इंतजाम कराता था. राजेश कौन से शहर में कब, कहां और किस होटल में ठहर चुका है या ठहरेगा, सारी जानकारी उस के पास होती थी.

इस गैंगरेप की चर्चा मीडिया में खूब हुई. पुलिस ने राजेश की अय्याशी का ठिकाना बने फार्महाउस को जमींदोज कर दिया और सभी आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया है. पीडि़ता भी अपने मायके छत्तीसगढ़ लौट चुकी है.

उस के दिल पर से भले ही कुछ बोझ कम हो गया हो, लेकिन जब तक राजेश और उस के दोस्तों को सजा नहीं मिल जाती, तब तक माधुरी ने चैन से नहीं बैठने की कसम खा रखी है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में माधुरी परिवर्तित नाम है.

मेरी बेटी की उम्र 15 साल है उसे लगातार वैजाइनल इंफैक्शन होता है, इसे ठीक करने का उपाय बताएं?

सवाल

मेरी बेटी की उम्र 15 साल है. उस के साथ प्रौब्लम यह है कि उसे वैजाइनल इंफैक्शन बारबार  हो जाता है. दवाइयां खाती है तो ठीक रहता है. दवाइयां छोड़ देती है, तो फिर कुछ न कुछ प्रौब्लम हो जाती है. मुझे उसे खाने में क्या देना चाहिए जिस से उस की वैजाइना की सेहत को बनाए रखने में मदद मिले.

जवाब

वैजाइना शरीर का एक संवेदनशील अंग है. बाहरी हाइजीन के साथसाथ ब्लैडर को अंदर से स्वस्थ रखना भी जरूरी है. कई ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो वैजाइना की सेहत को बनाए रखने में मदद करते हैं. दही प्रोबायोटिक्स का एक बेहतरीन स्त्रोत है. प्रोबायोटिक्स एक प्रकार के गुड बैक्टीरिया होते हैं जो हमारी सेहत के लिए कई रूपों में कारगर हो सकते हैं. ऐसे में इस का सेवन ब्लैडर और पाचनक्रिया को स्वस्थ रखने के साथ ही वैजाइना की पीएच वैल्यू को बनाए रखता है. साथ ही, यह होने वाले वैजाइनल इंफैक्शन की संभावना को भी कम कर देता है.

दही को कई रूप में इस्तेमाल करें, जैसे फ्रूट योगर्ट तैयार करें. 1 कटोरी दही में 4 चम्मच शहद डाल कर ब्लेंड करें. उस में संतरास्ट्राबेरीआमकीवीकेला आदि फल को छोटेछोटे पीसेज में काट कर मिला दें. दही और शहद वैजाइना के माइक्रोबायल फ्लोरा को मेंटेन रखने में मदद करते हैं.

एवोकाडो योगर्ड डीप बनाएंएवोयडो को छील करउस के बीच निकाल करदही में उस के टुकड़ों को मसल दें. अब लहसुन की 10-12 कलियों को छोटाछोटा चौप कर इस मिश्रण में डाल दें. स्वादानुसार नमकनीबू का रसकालीमिर्च पाउडर डालें. यह डीप चपाती और ब्राउन ब्रैड के साथ भी स्वादिष्ठ लगती है.

क्रैनबेरी जूस दें. क्रैनबेरी में मौजूद एंटीऔक्सीडैंट और विटामिन के सेवन से यूरिनरी ट्रैक इन्फैक्शन का खतरा कम हो जाता है. क्रैनबेरी में मौजूद कंपाउंड वैजाइना की पीएच वैल्यू के स्तर को सामान्य रखते हैं, वहीं, इस की एसिडिक प्रौपर्टी संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया से लड़ती हुई वैजाइना को प्रोटैक्ट करती है.

परेशान पति : पति पत्नी का रिश्ता कैसे सही हो?

दहेज की कोई भी खबर पढ़ कर लोगों, खासतौर से औरतों, को तमाम मर्द मारपीट करने वाले नजर आने लगते हैं. आम राय यह बनती है कि मर्द समुदाय पैसों के लिए पत्नियों को परेशान करता है. दहेज कानून की बनावट चाहे ऐसी हो कि अगर एक बार कोई पत्नी पति की क्रूरता की शिकायत कर दे तो पति वाकई कुसूरवार है या नहीं, यह देखनेसमझने के पहले ही उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है पर इस से औरतों को कुछ नहीं मिलता क्योंकि वे न ससुराल की रहती हैं, न मायके की, न कुंआरों, न शादीशुदा मर्द के साथ रहने वाली.

भोपाल के नजदीक सीहोर जिले के परिवार परामर्श केंद्र के अफसर और सदस्य इस बात को ले कर हैरानपरेशान हैं कि पिछले 5 सालों से औरतों के मुकाबले मर्द ज्यादा तादाद में अपना रोना रोते आ रहे हैं. औरतों की लड़ाई के खिलाफ इतनी सख्ती बरतने के लिए कोई कानून ऐसा नहीं है जो उन्हें सबक सिखा सके.

परिवार परामर्श केंद्रों का अहम मकसद घरेलू झगड़ों को निबटाना है. पति दोषी होता है या उस के खिलाफ शिकायत आती है तो तुरंत उसे दहेज और प्रताड़ना कानूनों का हौवा दिखा कर समझाइश दी जाती है कि समझौता कर लो, वरना पहले हवालात, फिर जेल जाना तय है.

आरोप कितना सच्चा है कितना झूठा, इस की जांच की जहमत आमतौर पर नहीं उठाई जाती. आम मर्द अपने को जेल से बचाने के लिए राजीनामा कर लेता है पर घोड़े को पानी तक ले जाया जा सकता है, उसे पानी पिलाया नहीं जा सकता. घर में रह कर वह बीवी की धौंस सहता है, पर प्यार नहीं करता.

आज हालात पत्नियों की क्रूरता की दास्तां बयान करते नजर आते हैं. साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के आशियाना थाना क्षेत्र में एक शख्स अपनी पत्नी की शिकायत ले कर पहुंचा. पति का आरोप है कि उस की पत्नी महंगेमहंगे गिफ्ट की मांग करती है. डिमांड पूरी न होने पर उसे मानसिक टौर्चर करती है.

पीड़ित व्यक्ति का नाम जितेंद्र है. उस ने बताया कि पीड़ित ने बताया कि उस की और सोनम की मुलाकात फेसबुक पर हुई थी. उस के बाद वर्ष 2021 में दोनों ने शादी कर ली. फिर आशियाना स्थित रजनीखंड इलाके में दोनों जितेंद्र के घर में रहने लगे. लेकिन कुछ ही समय में सोनम ने उस से कहा कि वह ससुराल वालों के साथ नहीं रह सकती. पत्नी की जिद को देखते हुए उस ने दूसरी जगह ले ली. फिर दोनों वहीं रहने लगे.

जितेंद्र ने बताया, ”मेरी पत्नी सोनम कभी लग्जरी कार खरीदने को कहती है तो कभी पैसे मांगती रहती है. हद तो तब हो गई जब उस ने मेरी मां का घर अपने नाम करने को कह दिया. जब मैं ने उस की यह डिमांड पूरी नहीं की तो वह मुझे मानसिक रूप से टौर्चर करने लगी. उस ने मुझे तलाक देने की धमकी दी है. इस से मुझे डिप्रैशन हो गया है.””

पिछले साल सितंबर महीने में गाजियाबाद में सुसाइड का एक परेशान कर देने वाला मामला सामने आया. वहां पर एक व्‍यक्ति ने अपनी पत्नी की हरकतों से परेशान हो फांसी लगा कर जान दे दी. घटना की जानकारी मिलने के बाद पहुंची पुलिस को जांच के दौरान मृतक के पास से सुसाइड नोट मिला जिस में उस ने पत्नी पर कई गंभीर आरोप लगाते हुए सुसाइड का कारण बताया.

पुलिस ने मृतक के पास से जो सुसाइड नोट बरामद किया, उस में लिखा था, ‘तुम मुझे बगैर बताए अकेले छोड़ कर चली गईं और अब बारबार बुलाने के बाद भी वापस नहीं आ रही हो. तुम न तो मेरी बात मानती हो और न ही मेरा साथ दे रही हो, इसलिए मैं अपनी जिंदगी खत्म कर रहा हूं और इस की जिम्मेदार सिर्फ तुम हो.’ इस सुसाइड नोट में मृतक ने अपनी पत्‍नी के साथ उस की बहनों पर भी कई गंभीर आरोप लगाए हैं. जाहिर है, बहुत बार मायके वालों के बहकावे या उकसावे में पत्नियां पति को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती हैं.

अकसर ज्यादातर मामलों में मर्दों की शिकायत यही रहती है कि उन की बीवियां उन्हें परेशान करती हैं, मातापिता से अलग रहने को कहती हैं, डांटतीडपटती हैं और उन की मांग पूरी न करने पर मायके चली जाती हैं. गौरतलब है कि परिवार परामर्श केंद्र पुलिस महकमे द्वारा चलाए जाते हैं.

जाहिर है, परेशान पति जागरूक हो रहे हैं और पत्नियों की बेजा हरकतें बरदाश्त नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए इज्जत, खयाल और मर्दानगी का रुतबा छोड़ पत्नियों की शिकायत कर रहे हैं.

पतिपत्नी में विवाद आम बात है मगर पत्नी जब शिकायत करती है तो उसे जरूरत से ज्यादा हमदर्दी औरत होने की वजह से मिलती है. पति ज्यादा शिकायत दर्ज करा रहे हैं, तो इस पर एक वकील का कहना है, ‘‘मुमकिन है पत्नियों पर अत्याचार करने के लिए वे पहले से ही बचाव का रास्ता इख्तियार कर रहे हों. मगर इतने मामले देख ऐसा लगता नहीं कि सभी ऐसा करते होंगे.’’

इन परेशान शौहरों की खास मदद परिवार परामर्श केंद्र नहीं कर पा रहा. वजह, पत्नियों को बुलाने के लिए सख्त कानून नहीं है. वे आ भी जाएं तो बजाय अपनी गलती मानने के, पति की ही शिकायत करने लगती हैं. इस से मामला बजाय सुलझने के, और उलझता है.

लेकिन अच्छी बात यह है कि पति अपनी बात कहने में हिचक नहीं रहे. एक समाजसेविका मानती हैं कि पत्नियां भी पति को परेशान करती हैं. मगर इज्जत बचाने के लिए पति खामोश रह जाते हैं.

एक पीड़ित पति दयाराम (बदला नाम) का कहना है पत्नी जबतब बेवजह कलह करने लगती है. उसे समझाता हूं तो मायके चली जाती है. रोजरोज की हायतौबा से जिंदगी नर्क बनती जा रही है. दयाराम तलाक नहीं चाहता बल्कि घर की सुखशांति बनाए रखने में पत्नी का सहयोग चाहता है. उस के पास इतने पैसे भी नहीं कि वह कोई नौकरानी रख सके या बाहर का खाना खा सके.

इस हालत के लिए उन टीवी समाचारों को दोष दिया जाता है जिन में थप्पड़ मारते दिखाया जाता है. जिन्हें आप पसंद नहीं करते. आजकल समाज में धर्म और जाति के नाम हर कोई लट्ठ ले कर खड़ा होने लगा है.

सच कुछ भी हो मगर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पति का सुखचैन बीवी जरा सी कलह से छीन सकती है. कलह और तानों से परेशान पति या तो शराब पीने लगता है या दूसरी औरतों के चक्कर में फंस जाता है. असल में अब बुलडोजर संस्कृति चलने लगी है कि जरा सी बात पर पूरा घर ढहा दो. जो सरकार कर रही है, वही बीवियां अपने मर्दों के साथ कर रही हैं.

बुलडोजरवाद: लोकतंत्र को रौंदती विचारधारा

आप ने कई बार खबरों में एक तथाकथित नई न्यायिक परिभाषा, जिस को ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में परिभाषित करने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, के बारे में सुना होगा. ‘राष्ट्रवाद’, ‘साम्यवाद’ और ‘समाजवाद’ पढ़ और सुन लेने के बाद राजनीतिक और न्यायिक परिक्षेत्र में लगातार खलबली मचाए रखने वाला एक नया ‘वाद’ सामने आया है- ‘बुलडोजरवाद’.

‘न्यूजलांड्री’ के अनुसार मध्य प्रदेश में पिछले डेढ़ साल के दौरान इस बुलडोजर अभियान के तहत अब तक ध्वस्त की गईं 331 संपत्तियों में से अधिकांश ‘संगठित अपराधियों’ की नहीं, बल्कि सामान्य लोगों की हैं जिन में से अधिकांश गरीब और मुसलिम हैं.

एक परिवार, एक इंसान के लिए घर एक आशियाने से ज्यादा होता है जो कि भारतीय सामाजिक परिवेश में एक महत्त्वपूर्ण वस्तु माना जाता है. भारतीय संविधान में मौजूद अनुच्छेद 300 (अ), जोकि संपत्ति का अधिकार प्रदान करता है, सीधेतौर पर इस प्रशासनिक कुव्यवस्था द्वारा धूमिल किया जा रहा है.

हाल ही में कानपुर देहात के मैथा तहसील क्षेत्र के मड़ौली पंचायत के चालहा गांव में ग्राम समाज की जमीन से कब्जा हटाने के लिए एक सरकारी टीम पुलिस एवं राजस्व कमचारियों के साथ पहुंची. आरोप है कि टीम ने जेसीबी से घर और मंदिर तोड़ने के साथ ही छप्पर गिरा दिया. इस से छप्पर में आग लग गई और वहां मौजूद प्रमिला (44) व उन की बेटी नेहा (21) की आग की चपेट में आने से जल कर मौके पर ही मौत हो गई. जबकि कृष्ण गोपाल गंभीर रूप से झुलस गए. प्रशासन का कहना है कि यह आत्महत्या है पर ग्रामीणों के अनुसार यह प्रशासन की गलती है.

मध्य प्रदेश के पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने हाल ही में संपन्न हुए पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के निजी क्षेत्र राघोगढ़ के नगर पालिका चुनाव के प्रचार के दौरान इस ‘बुलडोजरवाद’ की सोच को जाहिर किया. चुनावी सभा में उन्होंने कुछ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को धमकाते हुए कहा कि, “चुपचाप खिसक जाओ कांग्रेसियो, मामा का बुलडोजर तैयार खड़ा है.”

इस बयान से साफ पता चलता है कि बुलडोजर का उपयोग न केवल दोषियों के खिलाफ बिना ‘उचित न्याय प्रक्रिया’ के न्याय देने में किया जा रहा है बल्कि राजनीतिक द्वेष एवं निजी मंसूबों को अंजाम देने के लिए भी इसे उपयोग में लाया जा रहा है. इस से न केवल अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों व अधिकारों को भी नुक्सान पहुंचगा.

बुलडोजर अन्याय प्राकृतिक न्याय (नैचुरल जस्टिस) के सिद्धांत के खिलाफ है. इस सिद्धांत को विस्तृत कर मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त के मामले में अदालत ने कहा कि निष्पक्षता की अवधारणा हर कार्रवाई में होनी चाहिए चाहे वह न्यायिक, अर्धन्यायिक, प्रशासनिक और अर्धप्रशासनिक कार्य हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उचित और न्यायसंगत निर्णय पर पहुंचना न्यायिक और प्रशासनिक निकायों का उद्देश्य है. प्राकृतिक न्याय का मुख्य उद्देश्य न्याय के गर्भपात को रोकना है. लेकिन न तो कोई सुनवाई है न कोई शिकायत निवारणतंत्र. हजारों सालों से अनुसरण में रहे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत को पूर्णरूप से निरंकुश बुलडोजर न्याय की कुव्यवस्था तारतार करती नजर आ रही है.

एक ऐतिहासिक केस बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य  में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 14 को ध्यान में रखते हुए कहा गया कि ‘कानून का शासन’ और ‘कानून के समक्ष समानता’ लोकतांत्रिक देशों के सब से महत्त्वपूर्ण प्रावधानों में से एक है. राज्य में प्रत्येक कार्यवाही मनमानी से मुक्त होनी चाहिए वरना अदालत उस अधिनियम को असंवैधानिक करार दे कर रद्द कर देगी.

ठीक कुछ ऐसा ही वर्ष 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत संघ के अब तक के सुप्रसिद्ध मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के  दायरे की व्याख्या करते हुए कहा था. बुलडोजर अन्याय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19, 21 और 300 (अ) को रौंदता हुआ वह वाहन है जो सरकार को ‘सत्तावादी’ और जनतंत्र को ‘अन्याय तंत्र’ में तबदील करते जा रहा है.

दूसरा घटनाक्रम भी मध्य  प्रदेश के ही उज्जैन शहर का है जहां जिला प्रशासन ने चायना डोर (जिस का उत्पादक भारत है) के बेचने और उपयोग करने को ले कर धारा 144 के तहत रोक लगा दी थी. रोक के बावजूद 2 आरोपी कारोबारी- हितेश भोजवानी (40) एवं मुहम्मद इक़बाल (35) चायना डोर का व्यापार कर रहे थे. दोनों आरोपियों के घर पर एक दिन पहले नोटिस आता है और दूसरे दिन बुलडोजर चला दिया गया और उन के अवैध हिस्से को गिरा दिया गया.

यहां सवाल खड़े होते हैं कि क्या हर छोटीबड़ी आपराधिक घटना पर बुलडोजर का इस्तेमाल करना सही है? क्या आरोप सिद्ध होने से पहले इस प्रकार का न्याय चाहे किसी भी संस्था के द्वारा किया गया हो या करवाया गया हो, वैध है? क्या आरोपी का घर तोड़ कर उस के परिवार या उस पर आश्रित परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यह न्यायिक ज्यादती नहीं है? बिना कानूनी प्रक्रिया का उचित पालन किए बिना उचित एवं वैध अनुमति के घर गिराना न्यायसंगत है?

 

न्यायपालिका और बुलडोजरवाद में फर्क     

  • न्यायपालिका का कार्य आरोपी का अपराध सिद्ध होने पर दंड देना है जबकि बुलडोजरवाद आरोपी को प्रत्यक्ष रूप से अपराधी मान कर दंडित करता है.
  • न्यायपालिका के न्यायसंगत प्रक्रिया एवं न्यायिक सिद्धांतों का अनुसरण कर कई मापदंडों पर नापतौल कर न्याय करता है जबकि बुलडोजर न्याय आमतौर पर लोकप्रिय जनमत पर आधारित रहता है.
  • न्यायपालिका पुनर्स्थापनात्मक / सुधारात्मक न्याय व्यवस्था के मूल्यों के अनुसार न्याय करने की कोशिश करती है जबकि बुलडोजरवाद प्रतिशोधात्मक न्याय करता है जोकि एक ऐसी न्याय व्यवस्था है जिस का आधार ‘आंख के बदले आंख’ और ‘हाथ के बदले हाथ’ है, अर्थात, जो प्रतिशोध के सिद्धांत पर आधारित है.

 

न्याय संहिता में कहीं भी कानून तोड़ने पर किसी अपराधी के घर या निर्माण को तोड़ने का प्रावधान नहीं है. बुलडोजरवाद में अपराधी की निजी या वह संपत्ति तोड़ी जाती है जिस से वह जुड़ा हुआ हो. उत्तर प्रदेश के दंगे के आरोपी जावेद मोहम्मद की बीवी के नाम घर होने के बावजूद उसे धराशायी कर दिया गया. न्यायालय मात्र मूकदर्शक रह गए. एक आरोपी जिस के आरोप सिद्ध भी नहीं हुए उस के परिवार से उस का आशियाना छीन लिया गया. उस महिला के परिप्रेक्ष्य से देखें तो शायद संविधान महज एक धूल खाती किताब और न्यायपालिका महज एक खोखला ढांचा नजर आए.

न्यायपालिका ने भी इस संदर्भ में कई कोशिशें कीं. 20 नवंबर, 2022 को गोहाटी उच्च न्यायालय ने खुद संज्ञान लेते हुए असम राज्य एवं अन्य याचिका  पर सुनवाई करते हुए पुलिस अधीक्षक को आगजनी के 5 आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलवाने के कारण फटकार लगाई. कोर्ट की शिनाख्त से पता चला कि तलाश के आदेश पर घर पर बुलडोजर चला दिया गया जो की पूर्णतया गैरन्यायिक है.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसी संदर्भ में कहा है कि किसी व्यक्ति को बिना नोटिस के सुबह या देर शाम उन के दरवाजे पर बुलडोजर से बेदखल नहीं किया जा सकता. वे पूरी तरह से आश्रयहीन हैं, उन्हें वैकल्पिक स्थान प्रदान किया जाना चाहिए.

बौम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में पश्चिम रेलवे को आदेशित करते हुए कहा है कि ‘अतिक्रमण एक गंभीर मुद्दा है, बुलडोजर इस का समाधान नहीं.’

बुलडोजरवाद का उदगम तथाकथित ‘शीघ्र न्याय’ से होते हुए महज कुछ वर्षों में राजनीतिक हथकंडे और न्यायिक प्रक्रिया को लांघ कर त्वरित न्याय करने के रूप में बदल गया है. बुलडोजर न्याय धीरेधीरे एक विचारधारा का रूप लेता जा रहा है जो ठोस न्यायिक उपायों के भाव में एक ऐसा विकल्प बन गया है जो प्राकृतिक न्याय के मूल्यों के विपरीत है.

इस नए न्यायिक अभियान ने ‘अतिक्रमण रोधी अभियान और सामूहिक न्याय’ का चोला ओढ़ कर ‘सामूहिक अन्याय’ का रूप ले लिया है. वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बिना पूर्ण जांचपड़ताल, बिना आरोपसिद्ध हुए, न्यायपालिका और लोकतांत्रिक मूल्यों को रौंदते हुए ‘बुलडोजरवाद’ ने अपना स्थान मूल राजनीति में बना लिया है.

न्याय व्यवस्था में त्रुटि एवं दोष सिद्ध होने में लंबा विलंब होने के कारण त्वरित न्याय के लिए उत्सुक देश की जनता ने इस बुलडोजरवाद को सहीगलत के परे कुछ हद तक एक न्यायिक स्वीकृति दे दी है. ऐसा न होता तो उत्तर प्रदेश से ‘बुलडोजर न्याय’ की हवा गुजरात, दिल्ली, मध्य प्रदेश तक न आती और न ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री इस ‘अनुचित न्यायिक विकल्प’ को अपने उपनाम ‘मामा’ के साथ जोड़ते और ‘बुलडोजर मामा’ कहने/कहलवाने में गर्व महसूस करते.

लेखकनंदेश यादव

निष्पक्ष निर्वाचन देश मौन क्यों

देश में आवश्यकता है चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाए रखने की. आज देश में लोकतंत्र के, मानो, उलटी गंगा बहा रही है. चाहे न्यायापालिका हो या सूचना आयोग अथवा निर्वाचन आयोग, हरेक संवैधानिक संस्था को कमजोर करने का सत्ताधारियों का प्रयास स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिस का सीधा मतलब है लोकतंत्र को कमजोर करना.

चुनाव आयोग द्वारा देश की अवाम और राजनीतिक दलों के भरोसे को जिस तरह सेंध लगाई जाती दिखाई दे रही है वह रेखांकित करनी जरूरी है. यह इसलिए जरूरी है क्योंकि सवाल लोकतंत्र का है. आज देश में भीतर ही भीतर यह सवाल उठ रहा है कि भारत का निर्वाचन आयोग अपनेआप में कितना निष्पक्ष है.

क्योंकि सवाल है- साख का. जब किसी संस्था पर सवाल खड़े होने लगते हैं तो आने वाले समय में स्थितियां कुछ इस तरह बिगड़ जाती हैं कि फिर संभाले नहीं संभलतीं. जैसा कि, हम ने बीते समय में श्रीलंका में देखा और आज पाकिस्तान में देख रहे हैं. ये विस्फोटक स्थितियां एक दिन में प्रकट नहीं होतीं बल्कि भीतर ही भीतर आग के सुलगने लगने का परिणाम होती हैं. ‌‌

सबकुछ इस परिप्रेक्ष्य में हमें और ज्यादा समझना चाहिए कि राजनीतिक दल और उन्हें संचालित करने वाले लोग हमारे बीच के हैं, उन की मंशा यह रहती है कि सत्ता के लिए रास्ता निकालने वाले इस संवैधानिक तंत्र पर हमारा वर्चस्व बना रहे. इस नाते इस संस्था को कई दफा कमजोर कर दिया गया. अब एक बार फिर देश में एक निष्पक्ष चुनाव आयोग के अवतरित होने की संभावना उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बन गई है जिस का स्वागत किया जाना चाहिए. मगर आश्चर्यजनक तरीके से दिखाया जा रहा है कि देश के अनेक राजनीतिक दल देश के सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद मौन हो गए हैं.

आयोग की ‘अग्नि परीक्षा’
मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने कहा है, ‘हमेशा निर्वाचन आयोग चुनाव अग्नि परीक्षा देता है.’ एक सवाल के जवाब में मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार ने अत्यंत महत्त्वपूर्ण बात कही है, उन्होंने कहा, ‘“3 राज्यों के चुनावों के बाद निर्वाचन आयोग ने 400 चुनाव कराने का कीर्तिमान बनाया है. निर्वाचन आयोग ने 2023 में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में चुनाव कराए हैं.”

इसी संदर्भ में राजीव कुमार ने अपनी बात को विस्तार से और महत्त्वपूर्ण शब्दों में कहा. दरअसल, निर्वाचन आयोग अब तलक देश में 17 बार संसद का चुनाव और 16 बार राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का चुनाव करा चुका है. राजीव कुमार ने कहा कि चुनावदरचुनाव परिणाम स्वीकार किए जाते हैं और सत्ता का परिवर्तन हर बार मतपत्र द्वारा सुचारु रूप से किया जाता रहा है.

दूसरी तरफ राजीव कुमार के मुताबिक हाल ही में कई विकसित देशों में जो कुछ हो रहा है, यह उस की तुलना में काफी अधिक है. पिछले 70 वर्षों में भारत ने अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक, भाषाई मुद्दों को शांतिपूर्वक और संवाद के माध्यम से मुख्य रूप से स्थापित लोकतंत्र के कारण स्थिर किया है. जो केवल इसलिए संभव है क्योंकि लोग चुनाव परिणामों पर भरोसा करते हैं. फिर भी चुनाव आयोग प्रत्येक चुनाव के बाद हर बार ‘अग्नि परीक्षा’ देता है.

देश के आज के चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को देखते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का यह सब कहना बहुत महत्त्वपूर्ण है और इस की विवेचना की जानी चाहिए. उन्होंने एक बड़े परिप्रेक्ष्य में कहा, ‘“मतदान चाहे बैलेट से हुए हों या ईवीएम से, जनता और राजनीतिक दलों ने निर्णय स्वीकार किए हैं और शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरण हुए हैं. आयोग के लिए जनता की ओर से मिला इतना बड़ा प्रमाणपत्र बहुत है जो दिखाता है कि हरेक नागरिक आयोग और उस की कार्यप्रणाली पर कितना अटूट भरोसा रखता है.”’

उन्होंने अंतिम में कहा, ‘दुनिया में ऐसी मिसाल कम ही मिलती है. यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि यहां लोकतंत्र की जड़ें काफी गहरी और विस्तृत हैं.’

कुल मिला कर उन्होंने जो कहा है वह देश की आजादी से ले कर अभी तक के निर्वाचन पर अपनी बात को रखा है. सवाल सिर्फ यह है कि आप अपने कार्यकाल के साथ बीते 6 दशकों के निर्वाचन की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी कर रहे हैं और एक तरह से सभी चुनाव को आप ने एक समानांतर रेखा में प्रस्तुत कर दिया.

देश यह भी जानना व समझना चाहता है कि आप आखिर ऐसा क्यों कह रहे हैं. निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार उच्चतम न्यायालय की नई व्यवस्था के बाद और पहले की परिस्थितियों पर खामोश क्यों हैं? उन्हें इन बातों पर भी टिप्पणी करनी चाहिए की हाल ही में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद क्या परिस्थितियां बनेंगी और उस से पहले देश में क्या हुआ था.

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