नन्ही खुशी उदास बैठी थी. आज स्कूल में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेते समय वह गिर पड़ी थी. एक तो दौड़ से बाहर हो गई दूसरे सभी दोस्तों ने उस का खूब मजाक उड़ाया.
‘‘अरे मेरी परी, तू तो मेरी रानी बेटी है. बहादुर बच्चे ऐसे हिम्मत हार कर नहीं बैठते. अगली बार तुम पक्का फर्स्ट आओगी, मुझे पूरा विश्वास है,’’ मां के इन चंद प्यारे बोलों ने उस पर जादू सा असर किया और वह उछलतीकूदती फिर चल पड़ी बाहर खेलने.
15 वर्षीय होनहार छात्र मयंक अपना 10वीं कक्षा का रिजल्ट आने पर बहुत दुखी था. उस के उम्मीद के मुताबिक 90% से कम मार्क्स आए थे. अपने पेरैंट्स और टीचर्स का प्यारा आज अकेले बैठे आंसू बहा रहा था. उसे अपने मम्मीपापा की आशाओं पर पूरा न उतर पाने का बहुत दुख था. वह हताशा के भंवर में पूरी तरह डूब चुका था. तभी उस के दादाजी का उस के घर आना हुआ. अपने कमरे में उदास बैठे मयंक के कंधे पर जैसे ही दादाजी ने हाथ रखा वह चौंक गया. उस का मुरझाया चेहरा देख दादाजी ने बड़े प्यार से कारण पूछा, तो अपने दादा से लिपट कर रोने लगा और बोला कि उस जैसे हारे हुए लड़के को जिंदगी जीने का हक नहीं है. वह मर जाना चाहता है.
मासूम मयंक के मुंह से ऐसी बातें सुन कर दादाजी को बहुत हैरानी हुई. फिर बोले, ‘‘अरे तेरे 82% मार्क्स सुन कर ही तो मैं तुझे बधाईर् देने आया हूं और तू इस तरह की बातें कर रहा है. बेटा तूने बहुत अच्छे नंबर लिए हैं. हम सभी को तुझ पर गर्व है. आइंदा कभी ऐसे विचार मन में मत लाना,’’ कह कर दादाजी ने उसे गले से लगा लिया. दादाजी की इतनी सी तारीफ ने मयंक में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया. वह जिंदगी को सकारात्मक तरीके से जीने लगा. अगर उस वक्त मयंक अपने दादाजी से नहीं मिला होता तो निराशा और हताशा की उस स्थिति में शायद आत्महत्या ही कर लेता.
‘‘अरे मां, भाभी की बात का क्या बुरा मानना. वे दूसरे घर से आई हैं. आप को अभी अच्छी तरह जानती नहीं. मुझे पूरा विश्वास है धीरेधीरे आप उन्हें सब सिखा देंगी. मेरी मां हैं ही इतनी प्यारी, वे सब से तालमेल बैठा लेती हैं,’’ स्नेहा द्वारा कहे गए तारीफ के चंद शब्दों ने उस की मां अलका का खोया विश्वास वापस ला दिया.
इन सभी स्थितियों में जरा सी तारीफ या प्रशंसा भरे बोलों से इनसान में सकारात्मक बदलाव आते देखा. उम्र बचपन की हो या फिर 56 की अथवा युवावस्था आखिर प्रोत्साहन सभी को चाहिए. अपनों के स्नेह में पगे दो बोल व्यक्तिविशेष पर जादू सा असर करते हैं.
आज आधुनिकतम सुविधाओं और तकनीकों से लैस हमारा जीवन बहुत व्यस्त तथा प्रतिस्पर्धी हो चुका है. फलस्वरूप हमें कई बार बेहद जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. इस के चलते हम अत्यधिक तनाव में जीने लगते हैं और निराशावादी हो जाते हैं. यदि कोई कार्य हमारे मनमुताबिक नहीं होता या किसी कार्य में मेहनत करने के बाद भी हमें आशातीत सफलता नहीं मिलती तो जीवन के प्रति हम उदासीन हो जाते हैं और कई बार यह उदासीनता आगे बढ़ कर विकराल रूप धारण कर लेती है, जो आत्महत्या जैसे दुखांत परिणाम के रूप में सामने आती है.
होता यों है कि जब नकारात्मकता हम पर पूरी तरह हावी हो जाती है, तो जिंदगी के प्रति हमारी सोच और नजरिया भी पूरी तरह बदल जाता है. अचानक जिंदगी से सभी खुशियां रूठी हुई सी लगती हैं. चारों ओर दुख व निराशा के बादल मंडराते से नजर आते हैं. दुखी मन नकारात्मक विचारों के प्रवाह को जन्म देता है. ये नकारात्मकता हमारे आसपास निराशा की एक ऐसी चादर बुन देती है, जिस से एक अनजाना सा भय पैदा हो जाता है और अपने आसपास की कोई भी खुशी हमें नजर नहीं आती. हम कुछ भी करने में अपनेआप को असमर्थ पाते हैं.
हम सभी के जीवन में कभी न कभी ऐसा एक पल जरूर आता है जब हम अपनेआप को अकेला महसूस करते हैं. खुद को दुनिया का सब से बेकार इनसान समझते हैं, जिस की जरूरत किसी को नहीं है. उस वक्त किसी के द्वारा की गई जरा सी तारीफ हमारे भीतर एक नया जोश भर देती है. प्रशंसा में कहे उस के शब्द संजीवनी बूटी का काम करते हैं, जिस से हमारे भीतर का डर नष्ट हो जाता है तथा आशा की किरण स्फुटित होती दिखाई देती है.
अपनों को जरा सा तारीफ का तोहफा दे कर हम उन्हें अवसाद में जाने से बचा सकते हैं. जिंदगी बहुमूल्य होती है, पर अवसाद में घिरा व्यक्ति इतना दुखी व व्यथित होता है कि उसे जीवन के दूसरे सकारात्मक पहलू दिखाई ही नहीं देते. वक्त के थपेड़ों से वह इतना भयक्रांत हो जाता है कि उसे जिंदगी जीने की तुलना में मौत को गले लगाना अधिक सरल लगता है.
कई लोगों को लगता है कि सिर्फ छोटे बच्चों को ही तारीफ या प्रोत्साहन की जरूरत होती है, जबकि सचाई यह है कि तारीफ और प्रोत्साहन किसी उम्र विशेष से संबंधित नहीं है, बल्कि हर उम्र के इनसान को इस की दरकार होती है. इस का सीधा सा कारण है कि हम कितने भी बड़े हो जाएं मन में भावनाएं ज्यों की त्यों ही रहती हैं. हां, बड़े हो कर हम कुछ हद तक उन पर काबू रखना अवश्य सीख जाते हैं. लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में जब हम अपने को कमजोर व अकेला महसूस करते हैं तब हमारी तारीफ में कहे गए किसी के दो शब्द भी हमारी तकलीफ व तनाव को कम करने के लिए काफी होते हैं. उस से अवसाद की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है. यहां तक कि भयंकर तनाव के बीच आत्महत्या करने का मन बना चुका व्यक्ति भी अगर किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ जाए जो उसे पौजिटिव ऐनर्जी दे, तो वह बड़ी आसानी से उक्त विचार को त्याग सकता है.
सारिका के केस में ऐसा ही हुआ. 17 वर्षीय सारिका आधुनिक खयालात की मस्त बिंदास लड़की थी. उस के इसी खुले व्यवहार का फायदा उठा कर उस के क्लासमेट अंकित ने पहले तो उस से दोस्ती की और फिर उसी दोस्ती को प्यार का जामा पहना कर उसे फुसला कर उस से प्रेम संबंध बनाए. यही नहीं अपने बीच बने संबंधों का वीडियो बना कर उस ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. हर समय हंसतीखिलखिलाती रहने वाली सारिका अचानक बुझीबुझी व उदास सी रहने लगी.
सारिका के स्वभाव में अचानक हुआ यह परिवर्तन उस की मां की अनुभवी आंखों से छिप न सका. उन के बहुत पूछने पर भी सारिका उन्हें उस हादसे के बारे में बताने की हिम्मत न जुटा सकी. ऐसे में उस की समझदार मां ने उस की तारीफ कर न सिर्फ अपनी बेटी का हौसला बढ़ाया, बल्कि उसे विश्वास भी दिलाया कि जिंदगी के हर कदम, हर परेशानी में वे उस के साथ खड़ी हैं.
मां से जरा सा स्नेह और सहारा मिलने पर सारिका बच्चों की तरह फफक पड़ी और उस ने अपनी मां को सारी हकीकत बता दी. उस की मां यह जान कर और भी हैरत से भर उठीं जब उन्हें सारिका ने बताया कि कोई और रास्ता न निकलता देख इस जिल्लत से तंग आ कर वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने की सोच रही है.
तारीफ करनी होगी सारिका की मां की जिन्होंने अपनी बेटी पर नजर रख कर उसे आत्महत्या जैसा संगीन जुर्म करने से बचा लिया. और फिर अपनी कोशिशों से कुसूरवार अंकित को न सिर्फ सजा दिलवाई, बल्कि सारिका का खोया आत्मविश्वास भी लौटाया. प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. सुनील मित्तल के अनुसार हमारे देश में आज डिप्रैशन इतना आम हो चुका है कि लोग इसे बीमारी के तौर पर नहीं लेते. लेकिन समस्या अगर वाकई बड़ी हो तो काउंसलर के पास पीडि़त को ले जाने में ही भलाई होती है अन्यथा नतीजा घातक सिद्ध हो सकता है. इसी बारे में मनोचिकित्सक डा. समीर कलानी कहते हैं कि आज के आधुनिक जीवन की जटिलताओं एवं सामाजिक व आर्थिक समस्याओं के कारण डिप्रैशन की स्थितियों में तेजी आई है. अत: आज जरूरत इस बात की है कि हम अपनों की समस्याओं को समझने के तौरतरीकों व दृष्टिकोण में बदलाव लाएं. साथ ही अपनों की तारीफ में कुछ बातें कह उन के साथ मस्ती के कुछ पल अवश्य बिताएं.
आप को जान कर आश्चर्य होगा कि अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में तो हर साल 6 फरवरी का दिन तारीफ के लिए ही होता है. उन लोगों द्वारा यह दिन एक विशेष अंदाज में मनाया जाता है. इस दिन लोग अपनों को बाकायदा ग्रीटिंग कार्ड्स भेंट कर उन की तारीफ करते हैं. इतना ही नहीं कार्यालयों में भी इस दिन ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि अधिकारी व अधीनस्थों के बीच संवाद और विश्वास की नींव मजबूत हो सके. तो अब किसी की तारीफ करने में कंजूसी क्यों? हम सब भी आज से ही बल्कि अभी से देना शुरू कर सकते हैं, अपनों को तारीफ का अनमोल तोहफा.
सवाल
मेरी 26 साल की बेटी को स्कीजोफ्रेनिया है. उस की 3 साल से दवा चल रही है. वह स्कूल में टीचर है. हम उस की दवा का पूरा ध्यान रखते हैं. उस का रोग कंट्रोल में है. क्या उस का विवाह करना ठीक होगा? परिवार के कुछ लोगों का कहना है कि विवाह करने से मनोरोग ठीक हो जाता है? यह बात कहां तक सच है?
जवाब
स्कीजोफ्रेनिया गंभीर रोग है. आप को खुश होना चाहिए कि चाहे दवा के साथ ही सही, आप की बेटी का मानसिक स्वास्थ्य इस अनुकूल स्थिति में है कि वह अध्यापिका के दायित्व का निर्वाह कर पा रही है और अपने पांवों पर खड़ी है. उस का मानसिक संतुलन इसी प्रकार संतुलित बना रहे सभी परिवार वालों के लिए इस से बड़ी खुशी की कोई बात नहीं हो सकती. इस संभावना के प्रति सदा सावधान रहें कि यह रोग किसी भी घड़ी दवा में थोड़ी सी भी ढील बरतने या थोड़ा सा भी तनाव होने पर अचानक बिगड़ सकता है. उस स्थिति में बिटिया को प्यार, समझ, विवेक के साथ संभालने की जरूरत होगी.
मनोरोगों में लोग प्राय: यह बात नहीं समझ पाते कि रोगी के बेतुके, अटपटे व्यवहार की जड़ में वह मानसिक घमासान होता है जिस पर रोगी का कोई वश नहीं चलता. इसी से बात बिगड़ती है. लोग सोचते हैं कि रोगी जानबूझ कर गलत ढंग से पेश आ रहा है, जबकि यह उलटपुलट व्यवहार वास्तविक रूप से मनमस्तिष्क के असंतुलन के कारण उपजता है. घरपरिवार वाले यह सच समझ भी लें, कोई नया परिवार यह बात समझ लेगा यह संभावना न के बराबर है.
यह सोच कि विवाह से स्कीजोफ्रेनिया जैसा गंभीर रोग ठीक हो जाएगा बिलकुल गलत है. सच तो यह है कि विवाह के बाद रोग के पहले से कहीं अधिक गंभीर होने की पूरी आशंका रहती है. इस के अपने स्वाभाविक कारण हैं. वैवाहिक जीवन में पांव रखने पर वरवधू दोनों को एकसाथ कई नई भावनात्मक चुनौतियों से गुजरना पड़ता है, दोनों के सामाजिक दायित्व पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ जाते हैं और दोनों के सामने जीवन में अनगिनत नए तनाव आ खड़े होते हैं.
इतना ही नहीं, अधिकांश मामलों में ससुराल वालों को जब रोग के बारे में पता चलता है तो उन्हें यह सच स्वीकार नहीं होता, बल्कि अधिकांश परिवारों का यही नजरिया होता है कि उन के साथ छल किया गया है. यह अनबन कब अदालत में पहुंच जाए कुछ पता नहीं. यदि आप विवाह से पहले ससुराल वालों से बिटिया के रोग की बात छिपा जाते हैं, तो कानूनी तौर पर फैसला बिटिया के विरुद्ध ही लिखा जाएगा. यह स्थिति किसी के लिए भी सुखदाई नहीं होगी.
अच्छा होगा कि आप बिटिया के विवाह का इरादा छोड़ कर उस के खुश और स्वस्थ बने रहने के लिए यथासंभव प्रयत्न करते रहें. बिटिया के व्यवहार में कैसे भी उतारचढ़ाव आएं, आप को उस का पूरा साथ देना होगा. इलाज के प्रति जरा सी भी लापरवाही बरतने से रोग हाथ से निकल सकता है.
गर्मियों में खरबूज सब से ज्यादा पसंद किया जाने वाला फल है. तरबूज की तरह ही खरबूज में भी पानी काफी मात्रा में पाया जाता है, जो गर्मियों में शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता. यही नहीं खरबूज में भरपूर मात्रा में शर्करा, कैल्सियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन ए, विटामिन सी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर में कई पोषक तत्वों की कमी को दूर करते हैं. ज्यादातर लोग खरबूज का जूस बना कर पीना पसंद करते हैं, आइए, जानते हैं इस के फायदे –
खरबूजा: मस्तिष्क तक ऑक्सीजन पहुंचाता है
खरबूजे में पाए जाने वाला तत्व पोटेशियम मस्तिष्क तक ऑक्सीजन सप्लाई को बढ़ाने में मदद करता है. इसे खाने से दिमागी तनाव कम होता है. इस के अलावा इस में कई तरह के सुपरऑक्साइड गुण भी पाए जाते हैं जो रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं. जिस से दिल से संबंधित रोगों का खतरा कम हो जाता है.
विटामिन ए की कमी होती है दूर
खरबूजे का नियमित सेवन करने से शरीर में विटामिन ए की कमी दूर होती है. प्रदूषण की वजह से शरीर में विटामिन की मात्रा बहुत कम हो जाती है, इसलिए खरबूज खाने से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं, जो लोग धूम्रपान करते हैं, उन के लिए भी खरबूजा लाभदायक होता है.
कैंसर सेल्स को फैलने से रोकता है खरबूज
खरबूज में पाए जाने वाले बीटा कैरटिन और विटामिन सी शरीर के कई घातक कणों (रेडिकल्स) को शरीर से बाहर करने में मदद करते हैं. ये घातक कण शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं और कैंसर को पनपने में मदद करते हैं, इसलिए कैंसर पीड़ित लोगों को भी खरबूज का सेवन करना चाहिए.
आंखों की रोशनी बढ़ाए
आंखों की रोशनी यदि कमजोर हो तो खरबूज खाना फायदेमंद होता है. खरबूज में मौजूद विटामिन ए आंखों की कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है. गाजर की तरह खरबूज भी विटामिन ए का मुख्य स्रोत है. यदि रोज खरबूज का सेवन करें तो मोतियाबिंद की बीमारी का खतरा बहुत ही कम हो जाता है.
खरबूजा वजन कम करने में भी सहायक
खरबूजे में कैलोरी बहुत कम मात्रा में पाई जाती है, इसलिए जो लोग वजन घटाना चाहते हैं, वे इस का सेवन नियमित रूप से करेंगे तो इस से पेट काफी समय तक भरा हुआ महसूस होगा, जिस से भूख कम लगेगी. इस के अलावा इस में फाइबर की मौजूदगी के कारण शरीर का मेटाबॉलिज्म भी बढ़ेगा, जिस से वजन कम होगा. खरबूजे में फाइबर की अधिकता की वजह से शरीर का पाचन भी बेहतर होगा.
अपच और सर्दीबुखार में फायदेमंद
खरबूजे का बीज मौसमी बीमारियों में फायदा करता है. इस के नियमित सेवन से अपच, सर्दी, बुखार और जुकाम आदि सभी बीमारियां जल्दी ठीक हो जाती हैं. दरअसल, खरबूज आसानी से पचने वाला फल है, जो छोटी व बड़ी आंत की सफाई भी करता है, जिस से कब्ज, अपच और गैस जैसी समस्या नहीं होती है.
खून में गाढ़ापन कम करता है
खरबूजे में मौजूद पोटेशियम हृदय के लिए काफी फायदेमंद है. इस से रक्तचाप संतुलित होता है, खरबूजे में कई प्रकार के मिनरल्स हाइपर टेंशन की समस्या को भी ठीक करते हैं. खरबूजे में पोटेशियम बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है. पोटेशियम शरीर में सोडियम के नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है. इस में एडेनोसिन नामक तत्त्व खून के गाढ़ेपन को भी कम करता है, जिस से हार्ट अटैक आने की आशंकाएं कम हो जाती हैं. इस प्रकार खरबूजे का सेवन दिल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. खरबूजा दिल के रोगियों को नियमित रूप से खाना चाहिए.
‘‘अजय, हम साधारण इनसान हैं. हमारा शरीर हाड़मांस का बना है. कोई नुकीली चीज चुभ जाए तो खून निकलना लाजिम है. सर्दी गरमी का हमारे शरीर पर असर जरूर होता है. हम लोहे के नहीं बने कि कोई पत्थर मारता रहे और हम खड़े मुसकराते रहें.
‘‘अपने को सर्वश्रेष्ठ समझने की भूल करेंगे तो शायद सामने वाले का सम्मान ही न कर पाएं. हम प्रकृति के विरुद्ध न ही जाएं तो बेहतर होगा. इनसानी कमजोरी से ओतप्रोत हम मात्र मानव हैं, महामानव न ही बनें तो शायद हमारे लिए उचित है.’’
बड़ी सादगी से श्वेता ने समझाने का प्रयास किया. मैं उस का चेहरा पढ़ता रहा. कुछ चेहरे होते हैं न किताब जैसे जिन पर ऐसा लगता है मानो सब लिखा रहता है. किताबी चेहरा है श्वेता का. रंग सांवला है, इतना सांवला कि काले की संज्ञा दी जा सकती है…और बड़ीबड़ी आंखें हैं जिन में जराजरा पानी हर पल भरा रहता है.
अकसर ऐसा होता है न जीवन में जब कोई ऐसा मिलता है जो इस तरह का चरित्र और हावभाव लिए होता है कि उस का एक ही आचरण, मात्र एक ही व्यवहार उस के भीतरबाहर को दिखा जाता है. लगता है कुछ भी छिपा सा नहीं है, सब सामने है. नजर आ तो रहा है सब, समझाने को है ही क्या, समझापरखा सब नजर आ तो रहा है. बस, देखने वाले के पास देखने वाली नजर होनी चाहिए.
‘‘तुम इतनी गहराई से सब कैसे समझा पाती हो, श्वेता. हैरान हूं मैं,’’ स्टाफरूम में बस हम दोनों ही थे सो खुल कर बात कर पा रहे थे.
‘‘तारीफ कर रहे हो या टांग खींच रहे हो?’’
श्वेता के चेहरे पर एक सपाट सा प्रश्न उभरा और होंठों पर भी. चेहरे पर तीखा सा भाव. मानो मेरा तारीफ करना उसे अच्छा नहीं लगा हो.
‘‘नहीं तो श्वेता, टांग क्यों खींचूंगा मैं.’’
‘‘मेरी वह उम्र नहीं रही अब जब तारीफ के दो बोल कानों में शहद की तरह घुलते हैं और ऐसा कुछ खास भी नहीं समझा दिया मैं ने जो तुम्हें स्वयं पता न हो. मेरी उम्र के ही हो तुम अजय, ऐसा भी नहीं कि तुम्हारा तजरबा मुझ से कम हो.’’
अचानक श्वेता का मूड ऐसा हो जाएगा, मैं ने नहीं सोचा था…और ऐसी बात जिस पर उसे लगा मैं उस की चापलूसी कर रहा हूं. अगर उस की उम्र अब वह नहीं जिस में प्रशंसा के दो बोल शहद जैसे लगें तो क्या मेरी उम्र अब वह है जिस में मैं चापलूसी करता अच्छा लगूं? और फिर मुझे उस से क्या स्वार्थ सिद्ध करना है जो मैं उस की चापलूसी करूंगा. अपमान सा लगा मुझे उस के शब्दों में, पता नहीं उस ने कहां का गुस्सा कहां निकाल दिया होगा.
‘‘अच्छा, बताओ, चाय लोगे या कौफी…सर्दी से पीठ अकड़ रही है. कुछ गरम पीने को दिल कर रहा है. क्या बनाऊं? आज सर्दी बहुत ज्यादा है न.’’
‘‘मेरा मन कुछ भी पीने को नहीं है.’’
‘‘नाराज हो गए हो क्या? तुम्हारा मन पीने को क्यों नहीं, मैं समझ सकती हूं. लेकिन…’’
‘‘लेकिन का क्या अर्थ है श्वेता, मेरी जरा सी बात का तुम ने अफसाना ही बना दिया.’’
‘‘अफसाना कहां बना दिया. अफसाना तो तब बनता जब तुम्हारी तारीफ पर मैं इतराने लगती और बात कहीं से कहीं ले जाते तुम. मुझे बिना वजह की तारीफ अच्छी नहीं लगती…’’
‘‘बिना वजह तारीफ नहीं की थी मैं ने, श्वेता. तुम वास्तव में किसी भी बात को बहुत अच्छी तरह समझा लेती हो और बिना किसी हेरफेर के भी.’’
‘‘वह शायद इसलिए भी हो सकता है क्योंकि तुम्हारा दृष्टिकोण भी वही होगा जो मेरा है. तुम इसीलिए मेरी बात समझ पाए क्योंकि मैं ने जो कहा तुम उस से सहमत थे. सहमत न होते तो अपनी बात कह कर मेरी बात झुठला सकते थे. मैं अपनेआप गलत प्रमाणित हो जाती.’’
‘‘तो क्या यह मेरा कुसूर हो गया, जो तुम्हारे विचारों से मेरे विचार मेल खा गए.’’
‘‘फैशन है न आजकल सामने वाले की तारीफ करना. आजकल की तहजीब है यह. कोई मिले तो उस की जम कर तारीफ करो. उस के बालों से…रंग से…शुरू हो जाओ, पैर के अंगूठे तक चलते जाओ. कितने पड़ाव आते हैं रास्ते में. आंखें हैं, मुसकान है, सुराहीदार गरदन है, हाथों की उंगलियां भी आकर्षक हो सकती हैं. अरे, भई क्या नहीं है. और नहीं तो जूते, चप्पल या पर्स तो है ही. आज की यही भाषा है. अपनी बात मनवानी हो या न भी मनवानी हो…बस, सामने वाले के सामने ऐसा दिखावा करो कि उसे लगे वही संसार का सब से समझदार इनसान है. जैसे ही पीठ पलटो अपनी ही पीठ थपथपाओ कि हम ने कितना अच्छा नाटक कर लिया…हम बहुत बड़े अभिनेता होते जा रहे हैं…क्या तुम्हें नहीं लगता, अजय?’’
‘‘हो सकता है श्वेता, संसार में हर तरह के लोग रहते हैं…जितने लोग उतने ही प्रकार का उन का व्यवहार भी होगा.’’
‘‘अच्छा, जरा मेरी बात का उत्तर देना. मैं कितनी सुंदर हूं तुम देख सकते हो न. मेरा रंग गोरा नहीं है और मैं अच्छेखासे काले लोगों की श्रेणी में आती हूं. अब अगर कोई मुझ से मिल कर यह कहना शुरू कर दे कि मैं संसार की सब से सुंदर औरत हूं तो क्या मैं जानबूझ कर बेवकूफ बन जाऊंगी? क्या मैं इतनी सुंदर हूं कि सामने वाले को प्रभावित कर सकूं?’’
‘‘तुम बहुत सुंदर हो, श्वेता. तुम से किस ने कह दिया कि तुम सुंदर नहीं हो.’’
सहसा मेरे होंठों से भी निकल गया और मैं कहीं भी कोई दिखावा या झूठ नहीं बोल रहा था. अवाक् सी मेरा मुंह ताकने लगी श्वेता. इतनी स्तब्ध रह गई मानो मैं ने जो कहा वह कोरा झूठ हो और मैं एक मंझा हुआ अभिनेता हूं जिसे अभिनय के लिए पद्मश्री सम्मान मिल चुका हो.
बॉलीवुड एक्टर आशीष विद्यार्थी अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहते हैं, इन दिनों वह अपनी दूसरी शादी को लेकर चर्चा में बने हुए हैं. कुछ दिनों पहले कलकता कि फैशन इंटरप्रयोनर रूपाली से वह शादी रचाए हैं. जिसे लेकर लगातार वह चर्चा में बने हुए हैं.
57 साल की रूपाली से शादी के बाद आशीष को खूब ट्रोल किया जा रहा है. इसी दौरान आशीष ने एक इंटरव्यू में अपनी पहली पत्नी के साथ अलग होने के बाद का दर्द साझा किया है. यही नहीं उन्होंने रूपाली को लेकर अपना दर्द भी साझा किया है.
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उन्होंने बताया कि रूपाली से उनकी मुलाकात एक बॉलगिंग के जरिए हुई थीं, जहां पर वह जानें थें कि रूपाली काफी ज्यादा दर्द से गुजर रही है, उसके बाद से उन्होंने रूपाली की मदद करने की कोशिश की थी, फिर उन्होंने अपनी पहली पत्नी से भी रूपाली के बारे में बताया था कि वह काफी ज्यादा परेशान हैं उन्हें एक पार्टनर की जरुरत है. जिसके बाद उन्होंने रूपाली को लेकर हां कहा था.
आशीष अपनी शादी से काफी ज्यादा खुश हैं, बता दें कि 5 साल पहले रूपाली के पति का निधन हो गया था, जिसके बाद से रूपाली काफी ज्यादा परेशान रह रही थीं. आशीष ने उनकी प्रॉब्लम को समझते हुए उनके साथ शादी करने का फैसला लिया था.
द कपिल शर्मा शो में जाने के लिए हर कोई एक्साइटेड रहता है, हाल ही में आमिर खान और कपिल शर्मा की मुलाकात एक शो के जरिए हुई है, जहां पर उन लोगों ने एक-दूसरे से बात किया. जहां पर कपिल शर्मा ने आमिर खान से सवाल पूछा कि आप क्यों नहीं आते हैं हमारे शो में .
इस पर आमिर खान ने हंसते हुए बोला की मुझे पता था कि आप मुझसे यह सवाल करेंगे, बता दें कि एक इवेंट में आमिर खान जट्टा3 के प्रमोशन में पहुंचे थें, जहां पर उनकी मुलाकात आमिर खान से हुई.
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अभी तक आमिर खान द कपिल शर्मा शो का हिस्सा नहीं बने हैं, जिस वजह से कपिल शर्मा उनसे यह बात कह रहे हैं. द कपिल शर्मा शो में आए दिन कुछ न कुछ नए मेहमान देखने को मिलते रहते हैं. हाल ही में द कपिल शर्मा शो में नए-नए मेहमान नजर आते रहते हैं.
हालांकि आमिर खान इस शो का हिस्सा नहीं है यह सवाल लोगों के मन में गुत्थी बना हुआ है कि आखिर वह इस शो का हिस्सा क्यों नहीं बने हैं. खबर है कि जल्द आमिर खान अपने दिए हुए बयान के ममुताबिक इस शो में आएगें.
आमिर इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्म को लेकर चर्चा में बने हुए हैं, आमिर कि यह फिल्म काफी चर्चा में बनी हुई है.