देश में आवश्यकता है चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाए रखने की. आज देश में लोकतंत्र के, मानो, उलटी गंगा बहा रही है. चाहे न्यायापालिका हो या सूचना आयोग अथवा निर्वाचन आयोग, हरेक संवैधानिक संस्था को कमजोर करने का सत्ताधारियों का प्रयास स्पष्ट दिखाई दे रहा है जिस का सीधा मतलब है लोकतंत्र को कमजोर करना.

चुनाव आयोग द्वारा देश की अवाम और राजनीतिक दलों के भरोसे को जिस तरह सेंध लगाई जाती दिखाई दे रही है वह रेखांकित करनी जरूरी है. यह इसलिए जरूरी है क्योंकि सवाल लोकतंत्र का है. आज देश में भीतर ही भीतर यह सवाल उठ रहा है कि भारत का निर्वाचन आयोग अपनेआप में कितना निष्पक्ष है.

क्योंकि सवाल है- साख का. जब किसी संस्था पर सवाल खड़े होने लगते हैं तो आने वाले समय में स्थितियां कुछ इस तरह बिगड़ जाती हैं कि फिर संभाले नहीं संभलतीं. जैसा कि, हम ने बीते समय में श्रीलंका में देखा और आज पाकिस्तान में देख रहे हैं. ये विस्फोटक स्थितियां एक दिन में प्रकट नहीं होतीं बल्कि भीतर ही भीतर आग के सुलगने लगने का परिणाम होती हैं. ‌‌

सबकुछ इस परिप्रेक्ष्य में हमें और ज्यादा समझना चाहिए कि राजनीतिक दल और उन्हें संचालित करने वाले लोग हमारे बीच के हैं, उन की मंशा यह रहती है कि सत्ता के लिए रास्ता निकालने वाले इस संवैधानिक तंत्र पर हमारा वर्चस्व बना रहे. इस नाते इस संस्था को कई दफा कमजोर कर दिया गया. अब एक बार फिर देश में एक निष्पक्ष चुनाव आयोग के अवतरित होने की संभावना उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद बन गई है जिस का स्वागत किया जाना चाहिए. मगर आश्चर्यजनक तरीके से दिखाया जा रहा है कि देश के अनेक राजनीतिक दल देश के सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद मौन हो गए हैं.

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