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लेजर वैजाइनल टाइटनिंग का बढ़ रहा क्रेज

महिलाओं में सुंदर और स्मार्ट दिखने के साथ ही साथ अपनी सैक्सलाइफ को भी अच्छा बनाने का प्रयास बढ़ता जा रहा है. इस में वैक्सिंग के साथ ही हेयर लेजर रिमूवल की चाहत भी बढ़ने लगी है. जहां वे अपने ब्रेस्ट के शेप को अच्छा बनाए रखना चाहती हैं वहीं अब वे वैजाइनल टाइटनिंग के लिए भी डाक्टर के पास जाने लगी हैं.

इस का कारण यह है कि अब सैक्सलाइफ बढ़ती जा रही है. 50 से 60 साल की उम्र में भी महिलाएं खुद को कम कर के नहीं आंकती हैं. पहले यह काम बड़े शहरों तक सीमित था, अब छोटे शहरों की महिलाएं भी इस दिशा में सोच रही हैं. सोशल मीडिया के आने के बाद अब बड़े डाक्टर भी सलाह देने के लिए उपलब्ध हैं.

लखनऊ की डाक्टर लिंकी अग्रवाल कहती हैं कि अब महिलाएं खुल कर इस बारे में अपनी राय देने/लेने लगी हैं. उन को जब इस बात का भरोसा हो जाता है कि वे अच्छे डाक्टर के पास हैं तो इस को कराने का फैसला लेने में देरी नहीं लगातीं. वे यह जरूर चाहती हैं कि उन की गोपनीयता बनी रहे जिस से उन के पति को भी यह न पता चले कि उन के साथ क्या हुआ है. कई बार शादी करने जा रही लड़कियां भी अपना कौमार्य वापस पाने के लिए इस का सहारा लेती हैं.

लेजर वैजाइनल टाइटनिंग एक नौन-सर्जिकल प्रक्रिया है जो योनि के ढीलेपन को दूर कर उस की प्राकृतिक कसावट को वापस लाती है. योनि में ढीलापन कई कारणों से आता है, जिन में सैक्सुअल ऐक्टिविटी करना, शिशु को जन्म देना, मेनोपौज से पीड़ित होना, ढेर सारे पार्टनर्स के साथ सैक्स करना आदि शामिल हैं.

योनि का ढीलापन महिलाओं के जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है. योनि में ढीलापन होने के कारण महिलाएं अपना आत्मविश्वास खो देती हैं क्योंकि सैक्स के दौरान पुरुष अधिक रुचि या रोमांस नहीं दिखाते हैं.

डाक्टर लिंकी अग्रवाल कहती हैं, “अब घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि लेजर वैजाइनल टाइटनिंग सर्जरी की मदद से योनि की नैचुरल इलास्टिसिटी को बहुत ही आसानी से फिर से वापस लाया जा सकता है. वैजाइनल टाइटनिंग की सर्जिकल प्रक्रिया 4-5 सैशंस में पूरी होती है. एक सैशन को पूरा होने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है और एक से दूसरे सैशन के बीच लगभग 25 दिनों का अंतराल होता है. इस मौडर्न और एडवांस सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान मरीज को कट या टांके नहीं आते हैं और ब्लीडिंग तथा दर्द भी नहीं होता है.

“मरीज को हौस्पिटलाइजेशन और बेड रेस्ट की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है. लेजर वैजाइनल टाइटनिंग सर्जरी के ढेरों फायदे हैं. इस सर्जरी की मदद से योनि के ढीलेपन को दूर कर योनि को टाइट और जवान बनाने के साथसाथ यूरिनरी लीकेज, योनि में सूखापन, योनि में खुजली या योनि की असंवेदनशीलता जैसी समस्याओं को भी बहुत ही आसानी से दूर किया जा सकता है.”

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नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाने में असफल अखिलेश

लोकतंत्र में विपक्षी दल को प्रतिपक्ष कहा जाता है. यह प्रतिपक्ष भी सरकार का हिस्सा होता है. संविधान ने सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष को भी बराबर का महत्त्व दिया है. विधानसभा की बात हो या लोकसभा की, विपक्ष के नेता सदन को उतना ही महत्त्व दिया जाता है जितना सत्ता पक्ष के नेता सदन का.
प्रतिपक्ष के नेता को भी सरकारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं. इसका अर्थ यह होता है कि प्रतिपक्ष के नेता की भी भूमिका तय होती है. वह बजट सत्र में आने वाले बिलों पर चर्चा कर सकता है. शून्य काल यानी ‘जीरो आवर’ में वह प्रदेश की समस्याओं को उठा सकता है. सदन में नेता प्रतिपक्ष को भी अहम स्थान हासिल होता है.

ऐसे में विपक्ष की भूमिका सत्ता पक्ष जितनी ही अहम हो जाती है. विपक्ष का मतलब केवल सदन में होहल्ला करना या सदन का बायकौट करना ही नहीं होता. उसे अपने तर्कों से सत्ता पक्ष को सदन में घेरना चाहिए और धरनाप्रदर्शन से सड़क पर सत्ता को घेरना चाहिए. गैरकांग्रेसवाद का नारा देने वाले जय प्रकाश नारायण की बात हो या समाजवादी नेता डाक्टर राममनोहर लोहिया की, इंदिरा गांधी को इस कदर परेशान कर दिया था कि वे इमरजैंसी लगाने जैसे फैसले लेने के लिए मजबूर हो गईं.

राजनरायण से सीखें आज के विपक्षी नेता
1971 में कांग्रेस की नेता इंदिरा गांधी सबसे ताकतवर नेता बन कर उभरी थीं. बंगलादेश विजय के रथ पर सवार इंदिरा गांधी को ‘लेडी आयरन’ कहा जाता था. राजनरायण ने अपने संघर्ष के दम पर इंदिरा गांधी को घुटनों पर ला दिया था. जबकि विपक्ष का दमन करने के लिए इंदिरा गांधी ने 19 महीने विपक्षी नेताओं को जेल में भेर दिया था. विपक्ष को दबाने के लिए कोई ऐसा काम नहीं बचा था जो न किया हो. अदालत को भी प्रभावित करने का पूरा प्रयास किया गया. देश में इमरजैंसी लगाने के लिए पद का मनमाना प्रयोग किया गया. इसके बाद भी विपक्ष ने सत्तापलट कर ही दिया.

आज विपक्ष में उस ताकत और एकजुटता का अभाव है. 2014 से 2023 तक 9 साल होने को आ रहे हैं और विपक्ष एकजुट नहीं हो पा रहा है. 9 सालों में विपक्ष ने नरेंद्र मोदी पर तमाम तरह के आरोप लगाए गएलेकिन उस लड़ाई को वह उस तरह से अंजाम तक नहीं पहुंचा पाया जैसे राजनारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ लड़ी थी. आज के नेताओं के मुकाबले राजनरायण के पास संसाधनों का अभाव था लेकिन वे अपनी हिम्मत से आगे बढ़ते रहे. नतीजा यह कि इंदिरा गांधी को अदालत के सामने पेश होना पड़ा.

विपक्ष के सामने ढेर हुईं ताकतवर इंदिरा गांधी
यह बात शुरू होती है साल 1971 से. उस साल रायबरेली के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने जीत हासिल की. उनकी जीत को उनके प्रतिद्वंद्वी राजनरायण ने कोर्ट में चुनौती दी. भारतीय राजनीति के इतिहास में इस मुकदमे को इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण के नाम से जाना जाता है.
1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया. 12 जून, 1975 की सुबह 10 बजे से पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोर्टरूम नंबर 24 खचाखच भर चुका था. जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा पर पूरे देश की नजरें थींक्योंकि वे राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी के मामले में फैसला सुनाने जा रहे थे.

मामला 1971 के रायबरेली चुनावों से जुड़ा था. यह वही लोकसभा चुनाव थाजिसमें इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी को जबरदस्त कामयाबी दिलाई थी. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव जीती थीं. उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण को भारी अंतर से हराया था.लेकिन राजनारायण अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त थे कि नतीजे घोषित होने से पहले ही उनके समर्थकों ने विजय जुलूस निकाल दिया था. जब परिणाम घोषित हुआ तो राजनारायण के होश उड़ गए. नतीजों के बाद राजनारायण शांत नहीं बैठे, उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया.

राजनारायण ने कोर्ट में अपील दाखिल की थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए. जब इस मामले में फैसला सुनाने के लिए जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ठीक 10 बजे अपने चैंबर से कोर्टरूम में आए. सभी लोग उठकर खड़े हुए. शुरुआत में ही उन्होंने साफ कर दिया कि राजनारायण की याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दों को उन्होंने सही पाया है. राजनारायण की याचिका में जो 7 मुद्दे इंदिरा गांधी के खिलाफ गिनाए गए थे, उनमें से 5 में तो जस्टिस सिन्हा ने इंदिरा गांधी को राहत दे दी थी, लेकिन 2 मुद्दों पर उन्होंने इंदिरा गांधी को दोषी पाया था.

फैसले के अनुसार, जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत अगले 6 सालों तक इंदिरा गांधी को लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहरा दिया गया. मार्च 1975 का महीना. कोर्ट में दोनों तरफ से दलीलें पेश होने लगीं. दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उनका बयान दर्ज कराने के लिए अदालत में पेश होने का आदेश दिया. तारीख तय की गई 18 मार्च, 1975. भारत के इतिहास में यह पहला मौका था.

अदालत में इंदिरा गांधी को करीब 5 घंटे तक सवालों के जवाब देने पड़े. इंदिरा गांधी और उनके समर्थकों को अंदाजा लगने लगा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला उनके खिलाफ जा सकता है. ऐसे में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को प्रभावित करने की कोशिशें शुरू हुईं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डीएस माथुर, इंदिरा गांधी के निजी डाक्टर केपी माथुर के करीबी रिश्तेदार थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा गांधी की पैरवी के लिए मशहूर वकील पालखीवाला को लाया गया.

जस्टिस सिन्हा ने अपने आदेश में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में भारत सरकार के अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया. जन प्रतिनिधित्व कानून में इनका इस्तेमाल भी चुनाव कार्यों के लिए करना गैरकानूनी था. इन्हीं 2 मुद्दों को आधार बनाकर जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोकसभा के लिए हुआ चुनाव निरस्त कर दिया. साथ ही, जस्टिस सिन्हा ने अपने फैसले पर 20 दिन का स्थगन आदेश दे दिया. न सिर्फ यह भारत में, बल्कि दुनिया के इतिहास में भी पहला मौका था, जब किसी हाईकोर्ट के जज ने किसी प्रधानमंत्री के खिलाफ इस तरह का कोई फैसला सुनाया हो. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा गांधी की तरफ से पैरवी करने के लिए मशहूर वकील एन पालखीवाला को बुलाया गया.

आखिरकार इंदिरा गांधी की तरफ से अपील सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई. 22 जून, 1975 को वैकेशन जज जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर के सामने यह अपील आई. इंदिरा गांधी की तरफ से पालखीवाला ने बात रखी. राजनारायण की तरफ से शांति भूषण अदालत में आए.24 जून, 1975 को जस्टिस अय्यर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन आदेश तो दे दिया, लेकिन यह पूर्ण स्थगन आदेश न होकर आंशिक स्थगन आदेश था. जस्टिस अय्यर ने फैसला दिया था कि इंदिरा गांधी संसद की कार्यवाही में भाग तो ले सकती हैं लेकिन वोट नहीं कर सकतीं. यानी, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मुताबिक, इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता चालू रह सकती थी.

जस्टिस अय्यर के इस फैसले के बाद विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर अपने हमले तेज कर दिए.25 जून को जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान में रैली की. देशभर में इंदिरागांधी के खिलाफ महौल बन गया. इससे घबरा कर 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में इमरजैंसी की घोषणा कर दी गई. विरोधी नेताओं को जेल में डाल दिया गया.23 मार्च, 1977 तक देश में इमरजैंसी लागू रही. 1977 में आमचुनाव हुए जिसमें कांग्रेस बुरी तरह हार गई. कांग्रेस को 153 सीटें ही मिल सकीं. 23 मार्च, 1977 को 81 साल की अवस्था में मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने. देश की आजादी के 30 साल बाद देश में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार बनी.

सड़क पर उतरा एकजुट विपक्ष
इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी जीत के 2 प्रमुख आधार थे. पहला, इंदिरा गांधी के खिलाफ कानूनी लड़ाई, दूसरा,सड़क पर इंदिरा गांधी के खिलाफ पूरे देश को एकजुट करना. वर्तमान में केंद्र में नरेंद्र मोदी ही नहीं, उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ भी विपक्ष मजबूत लड़ाई नहीं लड़ सका. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सामने रखते हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने एक आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया. हर विधानसभा क्षेत्र से 20 हजार ओबीसी और 20 हजार मुसलमानों के नाम वोटर लिस्ट से काट दिए जिससे सपा चुनाव हार गई.

यह चुनाव का ऐसा बिंदु था जिसको लेकर अगर समाजवादी पार्टी कोर्ट तक जाती और पुख्ता सुबूत रखती तो कोर्ट के फैसले से योगी सरकार को कुरसीछोड़नीपड़ सकती थी. सपा ने कोर्ट और सड़कदोनों ही जगहों पर लडाई नहीं लड़ी. वह केवल बयानबाजी और ट्वीट करती रही.2017 से लेकर 2023 तक उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव मजबूती से सड़क पर उतर कर संघर्ष करते नहीं दिखे. विधानसभा में वे जो सवाल करते हैं उन से सत्ता पक्ष परेशानी में नहीं पड़ता. सदन से लेकर सड़क और अदालत तक जिस तरह से राजनारायण ने लड़ाईलड़ी, उस तरह से आज के विपक्षी नेता सत्ताधारी मोदी और योगी के खिलाफ लड़ नहीं पा रहे हैं.

इसके साथ ही, विपक्ष में एकजुटता नहीं है जैसे इंदिरा गांधी को हराने के लिएविपक्ष उस समय एकजुट हुआ था. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा एक ऐसी पहल थी जिसको जयप्रकाश नारायण की पदयात्रा जैसा प्रभावशाली बनाया जा सकता था पर एकजुटता के अभाव में ऐसा नहीं हो सका. मोदी पर सत्ता और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप हर नेता बयानों में लगाता है. कोई भी नेता इस मुददे पर अदालत नहीं जाना चाहता. अगर राजनरायण भी केवल बयान देते रहते, अदालत और सड़क पर लड़ाई न लड़ते तो क्या वे उस समय की सबसे ताकतवर नेता हो हरा पाते. नरेंद्र मोदी कितने भी ताकतवर हो जाएं पर इंदिरा गांधी के मुकाबले कम ही हैं. आज विपक्ष नकारा और बिखरा हुआ है. उसे लगता है कि केवल जाति और धर्म पर बयान देकर चुनावी मैदान मार लेंगे.

बड़ीलड़ाई से डर रहे अखिलेश यादव
देश का सबसे बड़ा प्रदेश उत्तर प्रदेश है. 2014 से लेकर 2022 तक हर छोटेबड़े चुनाव में विपक्ष तमाम समीकरण बनाने के बाद भी असफल रहा है. 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 10, कांग्रेस 21, सपा 23 और बीएसपी को 20 सीटें मिली थीं. उस समय उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी.
2014 में यह गणित बदल गया. 72 सीटें भाजपा और सहयोगी दलों के खाते में गईं, विपक्ष को केवल 8 सीटें मिल सकीं. इस समय समाजवादी पार्टी की प्रदेश में सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. समाजवादी पार्टी केवल अपने परिवार के 5 लोगों को ही चुनाव जिता पाई थी. अगर अखिलेश यादव 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस गठंबधन के साथ चुनाव लड़ते तो भाजपा को यह सफलता न मिलती.

2014 की हार के बाद 2017 में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में वे हार गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन किया पर उस में भी सफलता न मिली. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस या बसपा को छोड़ कर छोटेछोटे दलों के साथ गठबंधन बनाया क्योंकि उस को यह पक्का यकीन था कि वह चुनाव जीत ही जाएगी. अखिलेश कांग्रेस या बसपा को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं देना चाहते थे, सो, 2022 का चुनाव भी वे हार गए.

एकजुटता का यही अभाव परेशानी का सबब है. इसके अभाव में अखिलेशसड़क पर संघर्ष नहीं करते. उपचुनाव में वे अपनी पार्टी का प्रचार करने नहीं जाते. तमाम आलोचनाओं के बाद मैनपुरी उपचुनाव में वे प्रचार करने गए जहां उनकी पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ रही थीं. अखिलेश यादव के पास पैसा, जनता, अफसर और वकील सबकुछ है. इसके बाद भी किसी भी मुददे को लेकर उनहोंने राजनारायण की तरह से लड़ाई नहीं लड़ी. इसके विपरीत, कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में 1988 के बाद से सत्ता नहीं है. उस का संगठन भी मजबूत नहीं है. किसी तरह का बड़ा समर्थन भी साथ नहीं है. इसके बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी सड़क से लेकर लोकसभा तक अपनी बात मजबूती से रख रहे हैं.

अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में नेताविपक्ष होने के बाद भी पूरी मजबूती से लड़ाई नहीं लड़ पा रहे. सीएए और एनआरसी के खिलाफ आंदोलन के समय कांग्रेस ने अच्छी लड़ाईलड़ी थी. इसके बाद योगी के बुलडोजर को लेकर भी सपा सड़कों पर नहीं उतर पाई. विपक्ष के नेता के रूप में अखिलेश यादव एक बड़ीलड़ाई लड़ने में चूक गए. इसका असर यह रहा कि 2012 के मुकाबले 2022 में वे 32 फीसदी मत पाने के बाद भी 111 सीटें ही जीत सके. 2014 के बाद वे लगातार चुनाव हार रहे हैं. इसके बाद भी उनके अंदर का अहं खत्म नहीं हो रहा.

यही वजह है कि भाजपा और योगी सरकार की तमाम तानाशाही के बाद भी वे जनसमर्थन जुटाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं. नेताप्रतिपक्ष के रूप में बात केवल ‘तू तड़ाक’ तक ही रह पाती है. जो सुर्खियां तो बटोरती है पर जमीनी असर नहीं डाल पाती. जिसकारण नेताप्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी वे सही तरह से नहीं निभा पा रहे हैं.

शिक्षा विशेष: महंगी शिक्षा टूटते सपने

प्राइवेट कोचिंग देने वाली कंपनियां अपना बड़ा आकार ले रही हैं. कुछ तो इतनी बड़ी हो गई हैं कि उन्होंने दूसरे सैक्टर की कई कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया. कोचिंग सैंटर्स का व्यापार इस कदर फैल चुका है कि शिक्षा महंगी होती जा रही है और पेरैंट्स व छात्रों के सपने टूटते जा रहे हैं. कैसे, पेश है रिपोर्ट. पांच साल के अतुल्य की मां का सपना है कि वह अपने बेटे को डाक्टर बनाएगी, इसलिए स्कूल के अलावा उसे अभी से ट्यूशन लगा रखी है जहां उसे किताबों से भरे भारीभरकम बैग के साथ 2 घंटे ट्यूशन में बैठ कर पढ़ना पड़ता है, जबकि पहले से वह स्कूल में 5 घंटे पढ़ कर आ चुका होता है.

यह रोज की बात है, कोई एकदो दिन की नहीं. लेकिन स्कूल व ट्यूशन की पढ़ाई के बाद भी अतुल्य को मुश्किल से 30 तक ही गिनती आती है और इंग्लिश के अक्षरों को पढ़ते समय ‘क्यू’ पर अटक जाता है. यह स्कूल और ट्यूशन की भीषण पढ़ाई तब तक उस के साथ चलेगी जब तक कि वह 12वीं पास करने के बाद प्रीमैडिकल नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरैंस टैस्ट नहीं दे देता. केवल अतुल्य ही अकेला ऐसा बच्चा नहीं है जो कम उम्र में ही स्कूल/ट्यूशन के बो?ा तले दबा जा रहा है, बल्कि आज मातापिता अपने 3-4 साल की बहुत छोटी उम्र के बच्चों को भी ट्यूशन पढ़ने को भेजते हैं.

बचपन से ही बच्चों के दिमाग में ट्यूशन वाला फार्मूला बैठा दिया जाता है कि अगर वह ट्यूशन नहीं जाएगा तो दूसरे बच्चों से पीछे रह जाएगा, फेल हो जाएगा. किसी अच्छे कालेज में उस का एडमिशन नहीं हो पाएगा और फिर वह बड़ा आदमी कैसे बनेगा? एक प्राइवेट कंपनी में मार्केटिंग का काम करने वाले शिवशंकर यादव कहते हैं कि वे अपने बेटे आयुष को कक्षा 3 से ही ट्यूशन क्लास भेज रहे हैं जिस से उस की पढ़ाई की नींव मजबूत रहे. आयुष इस कड़ाके की ठंड में भी अपनी ट्यूशन क्लास के लिए निकल जाता है और फिर उधर से ही स्कूल चला जाता है. आयुष के पापा का कहना है कि उन्होंने अपने बेटे का एडमिशन सीबीएसई बोर्ड के स्कूल में कराया है और 4 हजार रुपए प्रतिमाह स्कूल की फीस जमा करते हैं. 2 हजार रुपए कोचिंग के लिए अलग से देते हैं.

उन का सोचना है कि बेटा भविष्य में कुछ बेहतर कर पाए तो जीवन सुधर जाएगा. उन का कहना है कि स्कूल में इतने सारे बच्चे होते हैं कि टीचर सभी बच्चों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते. इसलिए कोचिंग बहुत जरूरी है, वरना बच्चा औरों से पीछे रह जाएगा. शिवशंकर का साढ़े 3 साल का और एक बेटा है और वे इस बात से चिंतित हैं कि अगले साल से उसे भी ट्यूशन में भेजना पड़ेगा और जिस का सीधा असर उन की आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा. आज मातापिता के दिमाग में यह बात स्क्रू की तरह फिट बैठ गई है कि अगर वे अपने बच्चों को किसी अच्छे कोचिंग या ट्यूशन में पढ़ने नहीं भेजेंगे तो उन का बच्चा दूसरे बच्चों से पीछे रह जाएगा. एक समय था जब किसी छात्र का स्कूल के अलावा ट्यूशन लगाना समाज में शर्म का विषय हुआ करता था क्योंकि ट्यूशन यानी आप का बच्चा पढ़ने में कमजोर है,

इसलिए ट्यूशन लगवानी पड़ी. लेकिन आजकल ट्यूशन, कोचिंग क्लासेस जाना ‘स्टेटस सिंबल’ बन गया है. इस में भी ब्रैंडेड कोचिंग इंस्टिट्यूट होना और भी ऊंचे रुतबे की बात है. हैरानी की बात यह है कि ब्रैंडेड कोचिंग में वही बच्चे पढ़ने जाते हैं जो पहले से ही नामचीन स्कूलों में पढ़ रहे हैं. बच्चों को ट्यूशन/कोचिंग पढ़ने भेजना कुछ मातापिता की मजबूरी हो सकती है क्योंकि उन्हें अपने बच्चों का होमवर्क कराने का समय नहीं मिलता होगा. लेकिन आज तो हरेक मातापिता अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे कोचिंग में भेजने की होड़ में लगे हैं. सिर्फ महानगरों में ही नहीं, गांवकसबे में भी भारी तादाद में कोचिंग सैंटर खुलते जा रहे हैं. ट्यूशन के बिना बच्चे खुद को असहाय और असुरक्षित महसूस करते हैं. उन्हें लगता है ट्यूशन की बैसाखी के बिना वे पास ही नहीं हो पाएंगे परीक्षा में.

इसी का फायदा कोचिंग सैंटर वाले उठाते हैं. कई टीचर्स तो इस शर्त पर ट्यूशन देते हैं कि बच्चे अगले शैक्षणिक सत्र में भी उन से ही ट्यूशन पढ़ेंगे. कोचिंग सैंटरों के नाम से बनी दुकानें एक तरह से छात्रों में भी असमानता के बीज ही बो रही हैं. अलग बस्ता, अलग ड्रैस, अलग टीशर्ट, अलग वैन आदि सब कोचिंग संस्थानों के नाम से छपी हुई होती हैं. कहना गलत नहीं होगा कि आज शिक्षा पूरी तरह से व्यवसाय बन चुकी है. शिक्षा का कारोबार एसोसिएटेड चैंबर्स औफ कौमर्स एंड इंडस्ट्री औफ इंडिया (एसोचैम) के एक सर्वे के अनुसार, मैट्रो शहरों में प्राइमरी स्कूल के 87 फीसदी और हाईस्कूल के 95 फीसदी बच्चे निजी ट्यूशन लेते हैं. एसोचैम के अनुसार, भारत में निजी कोचिंग इंडस्ट्री हर साल 35 फीसदी की दर से बढ़ रही है. मध्यवर्गीय अपनी आय का एकतिहाई कोचिंग पर खर्च करता है ताकि उन के बच्चे प्रोफैशनल कोर्स में दाखिले के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं निकाल सकें.

राजस्थान का कोटा शहर निजी कोचिंग का सब से बड़ा केंद्र है. प्राइवेट कोचिंग सैंटर या ट्यूशन की प्रवृत्ति एक या दो शहरों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में बहुत तेजी से फैल रही है. दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, चंडीगढ़, हैदराबाद, बेंगलुरु, तिरुअनंतपुरम, मुंबई आदि कई छोटेबड़े शहरों में आज कोचिंग सैंटरों की भरमार है. इसी साल 18 जनवरी को आई ‘एनजीओ प्रथम’ की शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2022 में 1 से 8वीं तक की कक्षाओं में पढ़ने वाले सरकारी स्कूलों के लगभग 31 फीसदी, जबकि प्राइवेट स्कूलों के लगभग 30 फीसदी छात्र पैसे दे कर प्राइवेट कोचिंग या ट्यूशन जाते हैं.

दोनों को मिला कर देखें तो 30.5 फीसदी छात्र प्राइवेट कोचिंग या ट्यूशन जाते हैं. 2018 में यह आंकड़ा 26.4 फीसदी ही था. 2010 से 2022 के बीच पैसे दे कर प्राइवेट कोचिंग में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 2010 में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों के 22.5 फीसदी छात्र स्कूल के बाहर पैसे दे कर पढ़ाई कर रहे थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और ?ारखंड में निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चों के अनुपात में 2018 की अपेक्षा 8 फीसद पौइंट या उस से अधिक की वृद्धि हुई है. पुणे की कंसल्टैंसी फर्म इनफिनियम ग्लोबल रिसर्च ने वर्ष 2022 में एक रिसर्च जारी की.

उन्होंने इंडिया स्पैंड को मेल पर बताया कि भारत के कोचिंग उद्योग का बाजार वर्ष 2021 में 58,088 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है और इस इंडस्ट्री का पूरा कारोबार 2028 तक 1,33,955 करोड़ रुपए तक पहुंचने का अनुमान है. इस दौरान इस का कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (सीएजीआर) 13.03 फीसदी तक रह सकता है. इनफिनियम ने आगे बताया कि उस ने बड़े कोचिंग संचालकों से बात कर के और उन की सालाना रिपोर्ट, ट्रेड जर्नल, रिसर्च एजेंसी और सरकारी रिपोर्ट्स के आधार पर यह रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है. वैसे तो केंद्र सरकार दावा करती है कि देशभर में छात्र शिक्षकों का अनुपात मानकों से बेहतर है.

सरकार के अनुसार 2020-21 में छात्र शिक्षक अनुपात प्रति शिक्षक 26 छात्र रहा पर उसी साल 6 दिसंबर 2021 लोकसभा में शिक्षा मंत्रालय टीडीपी के सांसद जयदेव गल्ला ने देशभर में शिक्षकों का ब्यौरा मांगा, जिस पर सरकार ने 10 लाख शिक्षकों की कमी बताई. सरकार की मानें तो सब से ज्यादा कमी उत्तर प्रदेश में है जहां 2 लाख शिक्षकों की कमी है. कहीं न कहीं स्कूलों में खराब पढ़ाई का फायदा कोचिंग संस्थान उठा रहे हैं. आज अगर कुल कोचिंग मार्केट 58,000 करोड़ रुपए का है, जैसा कि ऊपर बताया गया है तो कुछ वर्षों में इस का आकार और बड़ा होगा. बिहार की राजधानी पटना के बोरिंग रोड चौराहे के पास 8×10 फुट के कमरे में रहने वाले 17 वर्षीय कुंदन कुमार ने अभी 10वीं ही पास की है और वह आईआईटी क्लीयर करने का सपना ले कर पूर्णिया जिले से पटना आ गया. उस का कहना है कि उस के गांव में बहुत से लोग सरकारी नौकरी में हैं,

इसलिए उन लोगों की तरह उस ने अभी से सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी है और बिहार बोर्ड के सहारे तो कुछ हो ही नहीं सकता, इसलिए अभी से पटना आ गया. सिर्फ कुंदन कुमार ही क्यों, बल्कि विभिन्न जिलों से पटना में बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई करने आते हैं. सामान्य पढ़ाई के साथ ही बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र पटना में रह कर अध्ययन करते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, पटना में लगभग 4,000 से अधिक कोचिंग सैंटर हैं लेकिन उन में से महज 400 ही सरकारी बहीखाते में रजिस्टर्ड हैं. पहलीदूसरी क्लास से ही बच्चों को ट्यूशन की लत लगा दी जाती है और यहीं से कोचिंग संस्थानों का व्यापार का विस्तार शुरू हो जाता है.

8वीं के बाद बच्चे अलगअलग विषयों के ट्यूशन लेने लगते हैं और हर विषय की अलग फीस देनी पड़ती है. इस तरह आप कमाई का कुल 12 प्रतिशत हिस्सा बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर देते हैं लेकिन इस के बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि आप का बच्चा परीक्षा में अच्छे नंबरों से पास होगा ही. हां, इस की गारंटी जरूर है कि कोचिंग संस्थानों को दिन दूना रात चौगुना मुनाफा जरूर होगा. सरकार ने कई इंग्लिश मीडियम स्कूल खोल दिए हैं लेकिन इस बात की गारंटी लेने वाला कोई भी नहीं है कि इंग्लिश मीडियम स्कूल में अच्छे स्तर की शिक्षा दी भी जाती है या नहीं. अकसर मातापिता अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में डालते हैं ताकि वे अच्छी इंग्लिश बोल सकें और उन का कैरियर इस लैंग्वेज की वजह से ठप न हो जाए. लेकिन इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ने के बावजूद 50 फीसदी बच्चे इंग्लिश में कमजोर रह जाते हैं. ऐसे बच्चे न तो ठीक से हिंदी में पारंगत हो पाते हैं, न ही इंग्लिश में. कैसे समझें कि बच्चा टैंशन में है कोटा से कोचिंग कर के वापस आए करीब 200 बच्चों का इलाज कर चुके डा. संजय चुग का कहना है कि उन में भारी स्ट्रैस की समस्या देखने को मिली.

जब भी बच्चों में इन लक्षणों को देखें, मातापिता सतर्क हो जाएं- द्य नींद और भूख कम लगना. द्य बच्चे का गुमसुम रहना. द्य स्वभाव में भारी बदलाव, जैसे खोया हुआ रहना, चिड़चिड़ा हो जाना आदि. ऐसे किसी लक्षण को देखते ही सम?ा जाना चाहिए कि बच्चे को मदद की जरूरत है. यह तथ्य है कि कोचिंग का हब बन चुके कोटा में हर वर्ष देशभर से लाखों बच्चे इंजीनियरिंग और मैडिकल परीक्षाओं की तैयारी के लिए आते हैं. सभी का सपना आईआईटी और मैडिकल संस्थानों में एडमिशन पाना होता है. इस के लिए उन के मातापिता कोचिंग संस्थानों को भारी रकम चुकाते हैं और संस्थानों द्वारा छात्रों को सौ फीसदी सफलता की गारंटी भी दी जाती है. लेकिन सचाई यह है कि ये संस्थान छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा देने के बजाय उन के सपनों से खेलते हैं. वहां छात्रों का शैड्यूल इतना बो?िल होता है कि वे ठीक से सो भी नहीं पाते हैं. हर छात्र को तकरीबन हर दिन 6 घंटे कोचिंग क्लास में बिताने पड़ते हैं. इस के अलावा, 10 घंटे स्वयं अध्ययन करना पड़ता है. ऐसे में वे अवसादग्रस्त न हों तो क्या करें.

मातापिता भी कम दोषी नहीं कोचिंग संस्थानों पर एक नजर डालें तो आज ये शिक्षा का कम, कारोबार के केंद्र ज्यादा नजर आते हैं. आज की तारीख में कोटा में पसरे संस्थानों का कारोबार डेढ़ हजार करोड़ रुपए से अधिक का है. कोटा में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से तकरीबन डेढ़ करोड़ से अधिक छात्र जुड़े हुए हैं और एक छात्र की सालाना औसत कोचिंग फीस करीब एक से 2 लाख रुपए होती है. बाकी अन्य खर्चे अलग से जोड़ लीजिए तो एक छात्र को तकरीबन ढाई लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं. वहां छात्रों का सिर्फ मानसिक और आर्थिक शोषण ही नहीं होता, बल्कि उन की सेहत के साथ भी खिलवाड़ होता है.

छात्रावास में उन्हें अपौष्टिक खाना परोसा जाता है, जबकि इस के लिए वे मनमाना पैसा वसूलते हैं, फिर भी उन्हें मनमुताबिक खाना नहीं मिल पाता है. जिले के खाद्य सुरक्षा सेल द्वारा जब भी मान्यताप्राप्त भोजनालय और फूड सैंटर पर खाने की क्वालिटी को परखा जाता है तो उस में कमियां पाई जाती हैं. वहां छात्रों के अनुपात में संसाधनों की भी भारी कमी है. कक्षाओं में इतनी भीड़ होती है कि पढ़ने के लिए छात्रों को जगह नहीं मिल पाती है. सब से खतरनाक बात यह है कि कोचिंग केंद्रों में छात्रों को विषयों को ठीक से पढ़ाने के बजाय शौर्टकट सफलता हासिल करने के मंत्र दिए जाते हैं.

कहना गलत नहीं होगा कि छात्रों को रट्टू तोता बनाया जा रहा है. आज उसी का परिणाम है कि मुट्ठीभर छात्रों के हाथ सफलता हाथ लगती है. असफलता से घबराए छात्र मौत को गले लगा लेते हैं. लेकिन इस के लिए सिर्फ कोचिंग संस्थानों को ही गलत नहीं ठहरा सकते, बल्कि बच्चे के मातापिता भी कम जिम्मेदार नहीं हैं इस बात के लिए. वे अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को जांचेपरखे बिना उन्हें इंजीनियर/डाक्टर बनाने पर तुले रहते हैं. बच्चों पर प्रैशर डालते हैं कि वे उन का सपना पूरा करें.

कोटा के मनोचिकित्सक डा. एमेल अग्रवाल के अनुसार, इन कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चे अन्य बच्चों के मुकाबले 25 फीसदी ज्यादा अवसाद के शिकार होते हैं. इस के कई कारण हैं- डर, मातापिता से दूर रहने की वजह से तनाव, अवसाद, परेशानियां, पढ़ाई का शैड्यूल इतना बिजी कि घर न जा पाना और कुछ हद तक पारिवारिक पृष्ठभूमि भी. कोटा के कैरियर पौइंट के निदेशक ओम माहेश्वरी के मुताबिक, आर्थिक मंदी का कोटा पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि यहां मकान किराए पर चढ़ रहे हैं, निर्माण चल रहा है, दुकानों पर भीड़ है, धोबी, नाई, बावर्ची, रिकशा, औटो सभी के पास काम है. उन के मुताबिक, शहर की खुशहाली की वजह कोचिंग के लिए बाहर से आने वाले लाखों छात्र हैं.

कोचिंग के पैसे से रियल एस्टेट और छात्रावास निर्माण का कारोबार चरम पर पहुंच चुका है क्योंकि जब इतने बड़े पैमाने पर वहां छात्र कोचिंग कर रहे हैं तो उन के रहने के लिए आवास तो चाहिए न. बात सिर्फ कोटा की नहीं है, भारतीय कोचिंग इंडस्ट्री इतने मुनाफे की इंडस्ट्री बनती जा रही है कि अब तो इस में विदेशी निवेश तक होने लगा है. शिक्षा में सौदा शिक्षा क्षेत्र की सब से बड़ी औनलाइन कंपनी बायजूस और आकाश एजुकेशन इंस्टिट्यूट के बीच एक बहुत बड़ी डील हुई, जिस के तहत बायजूस ने आकाश इंस्टिट्यूट को एक अरब डौलर यानी साढ़े 7 हजार करोड़ रुपए में खरीद लिया. यह कीमत ईकौमर्स की ‘नायका’ और ‘लेंस्कार्ट’ जैसी कंपनियों की कुल नैटवर्थ से भी ज्यादा है. जिस देश में 15 लाख सरकारी स्कूल हैं, एक हजार यूनिवर्सिटी हैं और 33 हजार से ज्यादा प्ले स्कूल हैं, वहां प्राइवेट कोचिंग देने वाली कंपनी इतनी बड़ी हो गई कि उस ने दूसरी कंपनियों को भी पीछे छोड़ दिया.

कतर एयरवेज, किआ और बायजूस, इन तीनों कंपनियों के बीच क्या आम है? क्योंकि ये तीनों कंपनियां फीफा 2022 विश्व कप की प्रायोजक थीं. बायजूस पहली कंपनी है जो इतने बड़े खेल का आयोजन का आधिकारिक प्रायोजक थी. बायजूस एप्पल और फेसबुक जैसी सार्वजनिक कंपनी बनने वाली थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बायजूस कंपनी फेल क्यों होने लगी? देश की आईटी कंपनी में से एक बायजूस में लगातार लोगों की नौकरियां जा रही हैं. आज देश में महंगाई चरम पर है और ऐसे समय में जौब चले जाना चिंता का विषय है. कंपनी ने अब तक सैकड़ों लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया तो बाकी कई सौ लोगों को जल्द ही अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. आखिर इस की वजह क्या है? वजह जो भी हो पर फिलहाल बायजूस चर्चा का विषय बनी हुई है. कभी फंडिंग में दिक्कत होने की खबरें सामने आ रही हैं तो कभी बड़ी संख्या में कर्मचारियों से रिजाइन मांगने की.

हाल ही में खबर आई कि कंपनी ने केरल में स्थित एक कार्यालय को बंद कर दिया और कर्मचारियों से रिजाइन करने के लिए कहा. रिपोर्ट्स के अनुसार, बड़ी संख्या में कर्मचारियों को निकालने के पीछे बड़ी वजह कंपनी में होने वाला घाटा है. एक रिपोर्ट के अनुसार कंपनी को साल 2021 में 4,588 करोड़ रुपए का नुकसान ?ोलना पड़ा. पेरैंट्स को मिल रही धमकी एडटेक कंपनी बायजूस पर बड़ा आरोप लगा है कि वह बच्चों और उन के पेरैंट्स के फोन नंबर खरीद रही है और उन्हें धमकी दे रही है कि अगर उन्होंने कोर्स नहीं खरीदा तो उन का भविष्य बरबाद हो जाएगा.

बायजूस कोर्स को बेचने के लिए सेल्स एक्जीक्यूटिव्स पर भी काफी दबाव बनाया जाता है. दबाव इतना ज्यादा होता था कि कई बार सेल्स एक्जीक्यूटिव्स अपने प्रबंधकों को यह दिखाने के लिए अपनी बिक्री के आंकड़े नकली कर के दिखाते हैं कि उन्होंने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है. कई बार अपनी नौकरी बचाने के लिए सभी टीमों को अपनीअपनी जेब से भुगतान करना पड़ता था ताकि उन की नौकरी बची रहे. इन फर्जी बिक्री का उल्लेख बायजूस के वित्तीय विवरणों में भी किया गया था. यही वजह है कि बायजूस के रैवेन्यू में एक साल में 60 फीसदी की गिरावट आई.

भारत में जिस तरह से कोचिंग संस्थान बढ़ रहे हैं और उन में लाखों की संख्या में छात्र रजिस्टर हो रहे हैं यह दिखाता है कि भारत में पेरैंट्स बच्चों के कैरियर को ले कर ज्यादा सजग हो गए हैं. अब इस के दूसरे हिस्से को देखा जाए तो पता चलेगा कि वे ऐसे भंवर में फंस गए हैं. जहां अगर वे अपने बच्चों को महंगी और बाकियों से अच्छी शिक्षा नहीं देंगे तो रेस में पिछड़ जाएंगे. यह समझते हुए भी कि महंगी पढ़ाई पढ़ाने के बाद भी बच्चों का कैरियर शर्तिया नहीं कि बन ही जाए, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि 2016-17 में सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कालेजों से डिग्री ले कर निकलने वाले छात्रों में सिर्फ 46 प्रतिशत ही नौकरी पा सके. इन में से कई छात्रों के पेरैंट्स थे जिन्होंने बच्चों की पढ़ाई के लिए बैंकों से भारी कर्जा लिया.

2017 के एक आंकड़े के मुताबिक देशभर में एजुकेशन लोन की 6,356 करोड़ रुपए की रकम 3,45,340 बट्टा खातों में यानी एनपीए में जा चुकी हैं. इस रेस में जीतने के लिए भले उन्हें अपने बच्चों को प्राइमरी लैवल से ही क्यों न तैयार करना पड़े, भारी लोन व कर्जा न उठाने पड़े, वे हर नामुमकिन कोशिश से गुजर जाने को तैयार हैं क्योंकि यही हकीकत है कि आजकल मांबाप अपने बच्चों से ज्यादा प्रतिस्पर्धी हो चुके हैं. वे महंगी शिक्षा झेलने को तैयार हो चुके हैं.

सरोगेसी की चमक पर काला बादल : भाग 2

उस की शादी अभी पिछले जून में हुई थी. सुना है, बहुरिया पेट से है. अब तुम लोग भी जल्दी कुछ अच्छी खबर सुनाओ. एक लल्ला का मुंह देख लूं तो चैन से ऊपर जाऊं.’ ऐसी बातें हर दूसरे दिन मां या तो प्रभाष या माधुरी से कहती. पड़ोसी और दोस्तों ने भी गाहेबगाहे पूछना शुरू कर दिया था. पड़ोस के कुशवाहाजी अकसर सुबह टहलते समय प्रभाष से पूछ बैठते,

‘बेटा, जल्दी से मु झे ताऊजी बोलने वाला घर में लाओ. घर पूरा हो जाएगा.’ शादी के 5 साल बाद भी माधुरी की गोद सूनी ही रही. दोनों को अब चिंता होने लगी थी. प्रभाष ने इस बारे में अपने प्रिय मित्र रोहन खत्री से चर्चा की तो उस ने शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ डाक्टर सुहासिनी शर्मा को दिखाने का सु झाव दिया. मित्र की सलाह मानते हुए दोनों ने डा. सुहासिनी को दिखाया. पूरे 3 साल इलाज चला. दोनों की कई सारी जांचें हुईं, कई सारी दवाएं चलीं.

डा. सुहासिनी ने बहुत प्रयास किए कि माधुरी की सूनी गोद प्राकृतिक रूप से भर जाए पर सफलता हाथ न लगी. आखिर में उन्होंने प्रभाष को नई तकनीक का सहारा लेने की सलाह दी और इस बाबत अपनी मित्र डा. लतिका गुप्ता से बात भी की. डा. लतिका देश की मशहूर आईवीएफ विशेषज्ञ हैं. उन्होंने पहली ही मुलाकात में प्रभाष-माधुरी को सम झाया कि, ‘संतान के लिए पुरुष का शुक्राणु स्त्री के डिम्ब से मिलता है और एंब्रियो यानी कि भ्रूण बनाता है. यह भ्रूण स्त्री के गर्भ में 9 महीने पलता है और फिर बच्चे का जन्म होता है. इस प्रक्रिया के पूर्ण नहीं होने के 3 मुख्य कारण होते हैं- या तो पुरुष के शुक्राणु में कमी है या स्त्री के डिम्ब, जिसे हम आम बोलचाल में अंडे कहते हैं, कमजोर हैं या फिर स्त्री की कोख में दिक्कत है. मैं ने तुम दोनों की सारी रिपोर्टें देखी हैं. तुम्हारे मामले में तीनों ही सही हैं.’

‘फिर हम संतानविहीन क्यों हैं मैम?’ प्रभाष ने पूछा. ‘अकसर बाहरी कारणों से भी भ्रूण नहीं बन पाते या स्त्री गर्भाधान नहीं कर पाती. यह प्रक्रिया जितनी आसानी से मैं ने तुम्हें सम झाई है, उतनी आसान नहीं है. एक सफल गर्भाधान के लिए सैकड़ों अन्य बातें भी जरूरी हैं. तुम दोनों की आयु देखते हुए पहले हम तुम्हारे शुक्राणु और माधुरी के अंडे ले कर उन्हें लैब में प्रोसैस करेंगे, लैब में भ्रूण बनाएंगे और उसे नियत समय पर माधुरी की कोख में डालेंगे. ज्यादातर मामलों में कोख उस भ्रूण को स्वीकार करती है और स्त्री गर्भवती हो जाती है.’ ‘इस में हमें क्या करना होगा?’ प्रभाष ने पूछा. ‘

तुम दोनों को कुछ खास नहीं करना है, सिर्फ अगले एक महीने कुछ दवाएं खाओ जिस से कि तुम्हारे शुक्राणु मजबूत हों और माधुरी के अंडे विकसित हों. इस के बाद मैं पीरियड से नियत दिन गिन कर माधुरी को बुलाऊंगी. उसी दिन मैं माधुरी के अंडे निकालूंगी और तुम अपना वीर्य देना. फिर हम लैब में उन को प्रोसैस करेंगे. भ्रूण बनने की दशा में उस के अगले महीने मैं उसे माधुरी की कोख में डालूंगी.

इस पूरी प्रक्रिया में 3 महीने लगते हैं.’ तय प्रक्रिया के तहत दोनों ने एक महीने दवाएं खाईं. उस के बाद दोनों के जरूरी तत्त्व लिए गए. लैब में भ्रूण बनाया गया. उस के महीनेभर बाद माधुरी के गर्भ में उस भ्रूण को डाला गया पर गर्भ ने उसे स्वीकार नहीं किया और यह पूरी प्रक्रिया असफल रही. दोनों बहुत परेशान हुए. डा. लतिका ने उन्हें सम झाया- ‘आईवीएफ में साधारणतया 30 से 40 फीसदी मामले सफल होते हैं. हम फिर कोशिश करेंगे. चूंकि प्रक्रिया जटिल है और असफल होने पर मानसिक रूप से तोड़ देती है,

 

Mollaki : जल्द बंद हो जाएगा टीवी का ये मशहूर सीरियल, जानें क्या है वजह

टीवी सीरियल मोल्लकी के फैंस के लिए एक बुरी खबर सामने आई है, दरअसल ये सीरियल जल्द बंद होने वाला है. इस खबर के सुनते ही फैंस के दिल टूट गए हैं. बीते कुछ दिनों से ये शो ऑफ एयर होेने वाला है इसकी खबर लगातार आ रही थी.

हाल ही में इस सीरियल के अभिनेता अणर उपाध्याय ने जानकारी दी है कि यह सीरियल अब बंद होने वाला है, उन्होंने बताया कि हमारे क्रिएटीव आएं थें, उन्होंने बताया कि फरवरी मार्च तक इस शो को बंद कर दिया जाएगा. हालांकि चैनल औऱ प्रॉडक्शन टीम ने इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं दी है.

 

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ऐसे में मैं यह बोल सकता हूं कि हमारे शो को सिर्फ कुछ माह ही बचे हुए हैं, बता दें कि मोल्की एक निर्धन लड़की की कहानी है, जिसमें वह लड़की काफी खुशमिजाज रहती है, बता दें कि शो के लीड एक्टर अमर उपाध्याय है जिन्होंने बताया कि कही न कही हम ऑफ द रिकॉर्ड हमारा शो काम कर रहा है.

आगे उन्होंने कहा कि मेरा सीरियल अनुपमा को टक्कर देता है. लेकिन पता नहीं क्यों इस सीरियल को बंद करने की बात कह रहे हैं. इस सीरियल के बंद होने की खबर से काफी ज्यादा लोग दुखी भी हैं. फैंस का कहना है कि इस सीरियल के लिए .

YRKKH: अक्षरा ने किया अभिमन्यु को इंकार तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए-नए ड्रामे देखने को मिल रहा है, इस सीरियल में दिखाया गया है कि अब अक्षरा अपने पुराने आशियाने वापस लौटने की बात कर रही है तो ऐसे में अभिमन्यु को इस बात का एहसास हो रहा है कि अक्षरा उससे दूर ना जाए.

वहीं अक्षरा जाते हुए काफी ज्यादा इमोशनल नजर आ रही है, अक्षरा लेकिन अपना मन बना ली है कि वह अपनी जीवन अभिनव के साथ बीताएगी. अक्षरा को जाते देख अभिमन्यु उससे कहता है कि जिस हालत में तुम मुझे छोड़कर गई थी, उसी हालत में मैं आज भी हूं,प्लीज मुझे छोड़कर ना जाओ. तब अक्षरा उससे कहती है कि तुम ये शायद भूल रहे हो कि मैं किसी की पत्नी हूं किसी की बीवी हूं.

 

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इसके साथ ही अक्षु उसके साथ आने के लिए मना कर देती है, जिसके बाद से फैंस लगातार सोशल मीडिया पर कमेंट कर रहे हैं.इसके बाद से अभि वहीं अक्षु को आई लव यू कहता है,इस पर फैंस कह रहे हैं कि प्यार का इजहार करने के बाद भी अगर अक्षरा वापस नहीं आती है तो वह अभि के साथ सही कर रही है. उसे अभिमन्यु को आइना दिखाना जरुरी था.

Short Story : महकती विदाई

अम्मां की नजरों में शारीरिक सुंदरता का कोई मोल नहीं था इसीलिए उन्होंने बेटे राज के लिए अंजू जैसी साधारण लड़की को चुना. खाने का डब्बा और कपड़ों का बैग उठाए हुए अंजू ने तेज कदमों से अस्पताल का बरामदा पार किया. वह जल्द से जल्द अम्मां के पास पहुंचना चाहती थी. उस की सास जिन्हें वह प्यार से अम्मां कह कर बुलाती है, अस्पताल के आई.सी.यू. में पड़ी जिंदगी और मौत से जूझ रही थीं. एक साल पहले उन्हें कैंसर हुआ था और धीरेधीरे वह उन के पूरे शरीर को ही खोखला बना गया था. अब तो डाक्टरों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी.

आज जब वह डा. वर्मा से मिली तो वह बोले, ‘‘आप रोगी को घर ले जा सकती हैं. जितनी सांसें बाकी हैं उन्हें आराम से लेने दो.’’

पापा मानने को तैयार नहीं थे. वह बोले, ‘‘डाक्टर साहब, आप इन का इलाज जारी रखें. शायद कोई चमत्कार हो ही जाए.’’

‘‘अब किसी चमत्कार की आशा नहीं है,’’ डा. वर्मा बोले, ‘‘लाइफ सपोर्ट सिस्टम उतारते ही शायद उन्हें अपनी तकलीफों से मुक्ति मिल जाए.’’

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पिछले 2 माह में अम्मां का अस्पताल का यह चौथा चक्कर था. हर बार उन्हें आई.सी.यू. में भरती किया जाता और 3-4 दिन बाद उन्हें घर लौटा दिया जाता. डाक्टर के कहने पर अम्मां की फिर से घर लौटने की व्यवस्था की गई लेकिन इस बार रास्ते में ही अम्मां के प्राणपखेरू अलविदा कह गए.

घर आने पर अम्मां के शव की अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू हुई. वह सुहागन थीं इसलिए उन के शव को दुलहन की तरह सजाया गया. अंजू ने अम्मां के खूबसूरत चेहरे का इतना शृंगार किया कि सब देखते ही रह गए.

अंजू जानती थी कि अम्मां को सजनासंवरना कितना अच्छा लगता था. वह अपने रूप के प्रति हमेशा ही सजग रही थीं. बीमारी की अवस्था में भी उन्हें अपने चेहरे की बहुत चिंता रहती थी.

उस दिन तो हद ही हो गई जब अम्मां को 4 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ा था. कैंसर ब्रेन तक फैल चुका था इसलिए वह ठीक से बोल नहीं पाती थीं. अंजू जब उन के कमरे में पहुंची तो नर्स ने मुसकरा कर कहा, ‘दीदी, आप की अम्मां मुझ से कह रही थीं कि मैं पार्लर वाली लड़की को बुला कर लाऊं. पहले तो मुझे समझ में नहीं आया, फिर उन्होंने लिख कर बताया तो मुझे समझ में आया. आंटी मरने वाली हैं फिर भी पार्लर वाली को बुलाना चाहती हैं.’

यह बता कर नर्स कमरे से चली गई तो अंजू ने पूछा, ‘अम्मां, क्या चाहिए?’

अम्मां ने इशारे से बताया कि थ्रेडिंग करवानी है. जब से उन की कीमोथेरैपी हुई थी उन के सिर के बाल तो खत्म हो गए थे पर दाढ़ीमूंछ उगनी शुरू हो गई थी. घर में थीं तो वह अंजू से प्लकिंग करवाती रहती थीं पर अस्पताल जा कर उन्होंने महसूस किया कि 4-5 बाल चेहरे पर उग आए हैं इसलिए वह पार्लर वाली लड़की को बुलाना चाहती थीं.

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अम्मां की तीव्र इच्छा को देख कर अंजू ने ही उन की थे्रडिंग कर दी थी. फिर उन के कहने पर भवों को भी तराश दिया था. एक संतोष की आभा उन के चेहरे पर फैल गई थी और थक कर वह सो गई थीं.

नर्स जब दोबारा आई तो उस ने अम्मां के चेहरे को देखा और मुसकरा दी. उस ने पहले तो अम्मां को गौर से देखा फिर एक भरपूर नजर अंजू पर डाल कर बोली, ‘दीदी, आप की लवमैरिज हुई थी क्या?’

‘नहीं.’

‘ऐसा नहीं हो सकता,’ नर्स बोली, ‘अम्मां तो इतनी गोरी और सुंदर हैं फिर आप जैसी साउथ इंडियन लगने वाली लड़की को उन्होंने कैसे अपनी बहू बनाया?’

ऐसे प्रश्न का सामना अंजू अब तक हजारों बार कर चुकी थी. सासबहू की जोड़ी को एकसाथ जिस किसी ने देखा उस ने ही यह प्रश्न किया कि क्या उस का प्रेमविवाह था?

यह तो आज तक अंजू भी नहीं जान पाई थी कि अम्मां ने उसे अपने बेटे राज के लिए कैसे पसंद कर लिया था. जितना दमकता हुआ रूप अम्मां का था वैसा ही राज का भी था, यानी राज अम्मां की प्रतिमूर्ति था. जब अंजू को देखने अम्मां अपने पति और बेटे के साथ पहुंची थीं तो उन्हें देखते ही अंजू और उस के मातापिता ने सोच लिया था कि यहां से ‘ना’ ही होने वाली है पर उन के आश्चर्य का तब ठिकाना नहीं रहा था जब दूसरे दिन फोन पर अम्मां ने अंजू के लिए ‘हां’ कह दी थी.

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अम्मां कुंडली के मिलान पर भरोसा रखती थीं और परिवार के ज्योतिषी ने अम्मां को इतना भरोसा दिला दिया था कि अंजू के साथ राज की कुंडली मिल रही है. लड़की परिवार के लिए शुभ है.

अंजू कुंडली में विश्वास नहीं रखती थी. हां, कर्तव्य पालन की भावना उस के मन में कूटकूट कर भरी थी इसीलिए वह अम्मां के लिए उन की बेटी भी थी, बहू भी और सहेली भी. सच है कि दोनों ही एकदूसरे की पूरक बन गई थीं. उन के मधुर संबंधों के कारण परिवार में हमेशा ही खुशहाली रही.

अम्मां के रूप को देख कर अंजू के मन में कभी भी ईर्ष्या उत्पन्न नहीं हुई थी. कहीं पार्टी में जाना होता तो अम्मां, अंजू की सलाह से ही तैयार होतीं और अंजू को भी उन को सजाने में बड़ा आनंद आता था. अंजू खुद भी बहुत अच्छी तरह से तैयार होती थी. उस की सजावट में सादगी का समावेश होता था. अंजू की सरलता, सौम्यता और आत्म- विश्वास से भरा व्यवहार जल्दी ही सब को अपनी ओर खींच लेता था.

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घर में भी अंजू ने अपनी सेवा से अम्मां को वशीभूत कर रखा था. जबजब अम्मां को कोई कष्ट हुआतबतब अंजू ने तनमन से उन की सेवा की. 10 साल पहले जब अम्मां का पांव टूट गया था और वह घर में कैदी बन गई थीं, ऐसे में अंजू 3 सप्ताह तक जैसे अम्मां की परछाई ही बन गई थी.

उन्हीं दिनों अम्मां एक दिन बहुत भावुक हो गईं और उन की आंखों में अंजू ने पहली बार आंसू देखे थे. उन को दुखी देख कर अंजू ने पूछा था, ‘अम्मां क्या बात है? क्या मुझ से कोई गलती हो गई है?’

‘नहींनहीं, तेरे जैसी लड़की से कोई गलती हो ही नहीं सकती है. मैं तो अपने बीते दिनों को याद कर के रो रही हूं.’

‘अम्मां, जितने सुंदर आप के पति हैं, उतना ही सुंदर और आज्ञाकारी आप का बेटा भी है. घर में कोई आर्थिक तंगी भी नहीं है फिर आप के जीवन में दुख कैसे आया?’

‘अंजू, दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, यह कहावत तो तुम ने भी सुनी होगी. मेरी ओर देख कर सभी सोचते हैं कि मैं सब से सुखी औरत हूं. मेरे पास सबकुछ है. शोहरत है, पैसा है और एक भरापूरा परिवार भी है.’

‘अम्मां, साफसाफ बताओ न क्या बात है?’

‘आज तेरे सामने ही मैं ने अपना दिल खोला है. इस राज को राज ही बना रहने देना.’

‘हां, अम्मां, आप बताओ. यह राज मेरे दिल में दफन हो जाएगा.’

‘जानना चाहती है तो सुन. राज के पापा की बहुत सारी महिला दोस्त हैं जिन पर वे तन और धन दोनों से ही न्यौछावर रहते हैं.’

‘आप जैसी सुंदर पत्नी के होते हुए भी?’ अंजु हैरानी से बोली.

‘हां, मेरा रूप भी उस आवारा इनसान को बांध नहीं पाया. यही मेरी तकदीर है.’

‘आप को कैसे पता लगा?’

‘खुद उन्होंने ही बताया. शादी के 2 साल बाद जब एक रात बहुत देर से घर लौटे तो पूछने पर बोले, ‘राज की मां, औरतें मेरी कमजोरी हैं. पर तुम्हें कभी कोई कमी नहीं आएगी. लड़नेझगड़ने या धमकियां देने के बदले यदि तुम इस सच को स्वीकार कर लोगी तो इसी में हम दोनों की भलाई है.’

‘और जल्दी ही यह सचाई मुझे समझ में आ गई. मैं ने अपने इस दुख को कभी दुनिया के सामने जाहिर नहीं किया. आज पहली बार तुम को बता रही हूं. मैं उसी दिन समझ गई थी कि शारीरिक सुंदरता महत्त्वपूर्ण नहीं है इसीलिए जब तुम्हें देखा तो न जाने तुम्हारे साधारण रंगरूप ने भी मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं तुम्हें बहू बना कर घर ले आई. राज भी इस सच को शायद जानता है इसीलिए उस ने भी तुम्हें स्वीकार कर लिया. यह बेहद अच्छी बात है कि बाप की कोई भी बुरी आदत उस में नहीं है.’

अम्मां की आपबीती सुन कर अंजू को इस घर की बहू बनने का रहस्य समझ में आ गया. राज अपनी मां से भावनात्मक रूप से इतना अधिक जुड़ा हुआ था कि उस की मां की पसंद ही उस की पसंद थी.

‘अरे, तू क्यों रो रही है पगली. इन्हीं विसंगतियों का नाम तो जीवन है. हर इनसान पूर्ण सुखी नहीं है. परिस्थितियों को जान कर उन्हें मान लेना ही जीवन है.’

‘अम्मां, आप ने यह सब क्यों बरदाश्त किया? छोड़ कर चली जातीं.’

‘सच जानने के बाद मैं ने अपने जीवन को अपने हाथों में ले लिया था. अपने दुखों के ऊपर रोते रहने के बदले मैं ने अपने सुखों में हंसना सीख लिया. मैं ने अपना ध्यान अपनी कला में लगा दिया. कला का शौक मुझे बचपन से था. मैं ने अपने चित्रों की प्रदर्शनियां लगानी शुरू कर दीं. जरूरतमंद कलाकारों को प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया. कला और सेवा ने मेरे जीवन को बदल दिया.’

‘सच, अम्मां, आप ने सही कदम उठाया. मुझे आप पर गर्व है.’

‘मुझे स्वयं पर भी गर्व है कि एक आदमी के पीछे मैं ने अपना जीवन नरक नहीं बनाया,’ अम्मां बोलीं, ‘ऐसी बात नहीं थी कि वह मुझ से प्यार नहीं करते थे. जब एक बार मुझे टायफाइड और मलेरिया एकसाथ हुआ तो वे मेरे पास ही रहे. जैसे आज तुम मेरी सेवा कर रही हो वैसे ही 21 दिन इन्होंने दिनरात मेरी सेवा की थी.’

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अब जब से अम्मां को कैंसर हुआ था तब से पापा ही दिनरात अम्मां की सेवा में लगे थे. आज उन की मृत्यु पर वे ही सब से ज्यादा रो रहे थे. उन के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. अम्मां के अंतिम दर्शन पर वे बोले, ‘‘अंजू बेटा, तुम ने अपनी मां को सजा तो दिया है पर एक बात तुम बिलकुल भूल गई हो.’’

‘‘पापा, क्या बात?’’

‘‘परफ्यूम लगाना भूल गई हो. वह बिना परफ्यूम लगाए कभी बाहर नहीं जाती थीं. आज तो लंबी यात्रा पर जा रही हैं. उन के लिए एक बढि़या परफ्यूम लाओ और उन पर छिड़क दो. मेरे लिए उन की यही पहचान थी. जब भी किसी बढि़या परफ्यूम की खुशबू आती तो मैं बिना देखे ही समझ जाता था कि मेरी पत्नी यहां से गुजरी है. आज भी जब वह जाए तो बढि़या परफ्यूम की खुशबू मुझ तक पहुंचे. मैं इसी महक के सहारे बाकी के बचे हुए दिन निकाल लूंगा,’’ इतना कह कर पापा फफकफफक कर रो पड़े. अंजू ने परफ्यूम की सारी शीशी अम्मां के शव पर छिड़क दी और 4 लोग उन की अर्थी को उठा कर अंतिम मुकाम की ओर बढ़ चले.

कभी कभी ऐसा भी-भाग 3: पूरबी के साथ आखिर क्या हुआ

काफी समय यों ही खड़ेखड़े निकल गया. तभी 2 लड़के मसीहा बन कर प्रकट हो गए. उन में से एक बाइक से उतर कर बोला, ‘मे आई हेल्प यू, मैडम?’

समझ में ही नहीं आया कि एकाएक क्या जवाब दूं. बस, मुंह से स्वत: ही निकल गया, ‘यस…प्लीज.’ और फिर 10 मिनट में ही दोनों लड़कों ने मेरी समस्या हल कर मुझे इतने बड़े संकट से उबार लिया. मैं तो तब उन दोनों लड़कों की इतनी कृतज्ञ हो गई कि बस, थैंक्स…थैंक्स ही कहती रही. रुंधे गले से आभार व्यक्त करती हुई बोली थी, ‘‘तुम लोगों ने आज मेरी इतनी मदद की है कि लगता है कि इनसानियत और मानवता अभी इस दुनिया में हैं. इतनी देर से अकेली परेशान खड़ी थी मैं. कोई नहीं रुका मेरी मदद को.’’ थोड़ी देर बाद फिर श्रेयस का फोन आया तो उन्हें जब उन लड़कों के बारे में बताया तो वह भी बहुत आभारी हुए उन के. बोले, ‘जहां इस समाज में बुरे लोग हैं तो अच्छे लोगों की भी कमी नहीं है.’

और आज मेरे वे 2 मसीहा, मेरे मददगार इस हालत में थे. पहचानते ही तुरंत उन के पास आ कर बोली, ‘‘अरे, यह सब क्या है? तुम लोग इस हालत में. इंस्पेक्टर साहब, इन्हें क्यों पकड़ रखा है? ये बहुत अच्छे लड़के हैं.’’

‘‘अरे, मैडम, आप को नहीं पता. ये वे बाइक सवार हैं जिन की शिकायतें लेले के आप लोग आएदिन पुलिस थाने आया करते हैं. बमुश्किल आज ये पकड़ में आए हैं. बस, अब इन के संगसंग इन के पूरे गिरोह को भी पकड़ लेंगे और आप लोगों की शिकायतें दूर कर देंगे.’’

इतना बोल कर वे दोनों पुलिस वाले उन्हें खींचते हुए अंदर ले गए. मैं भी उन के पीछेपीछे हो ली. मुझे अपने साथ खड़ा देख कर वे दोनों मेरी तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘मैडम, यकीन कीजिए, हम ने कुछ नहीं किया है. आप को तो पता है कि हम कैसे हैं. उन मैडम का पर्स झपट कर हम से आगे बाइक सवार ले जा रहे थे और उन मैडम ने हमें पकड़वा दिया. हम सचमुच निर्दोष हैं. हमें बचा लीजिए, प्लीज…’’

एक लड़का तो बच्चों की तरह जोरजोर से रोने लगा था. दूसरा बोला, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, हम तो वहां से गुजर रहे थे बस. आप ने हमें पकड़ लिया. वे चोर तो भाग निकले. हमें छोड़ दीजिए. हम अच्छे घर के लड़के हैं. हमारे मम्मीपापा को पता चलेगा तो उन पर तो आफत ही आ जाएगी.’’

हालांकि मैं उन्हें बिलकुल नहीं जानती थी. यहां तक कि उन का नामपता भी मुझे मालूम नहीं था लेकिन कोई भी अच्छाबुरा व्यक्ति अपने कर्मों से पहचाना जाता है. मेरी मदद कर के उन्होंने साबित कर दिया था कि वे अच्छे लड़के हैं और अब उन की मदद करने की मेरी बारी थी. ऐसे कैसे ये पुलिस वाले किसी को भी जबरदस्ती पकड़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे और गुनाहगार शहर में दंगा मचाने को आजाद घूमते रहेंगे.

अब जो भी हो, मुझे उन की मदद करनी ही है, सो मैं ने कहा, ‘‘इंस्पेक्टर साहब, मैं इन्हें जानती हूं. ये बड़े अच्छे लड़के हैं. मेरे भाई हैं. आप गलत लोगों को पकड़ लाए हैं. इन्हें छोड़ दीजिए.’’

‘‘अरे मैडम, इन के मासूम और भोले चेहरों पर मत जाइए. जब चोर पकड़ में आता है तो वह ऐसे ही भोला बनता है. बड़ी मुश्किल से तो ये दोनों पकड़ में आए हैं और आप कहती हैं कि इन्हें छोड़ दें… और फिर ये आप के भाई कैसे हुए? दोनों तो मुसलिम हैं और अभी आप ने चालान की रसीद पर पूरबी अग्रवाल के नाम से साइन किया है तो आप हिंदू हुईं न,’’ बीच में वह पुलिस वाला बोल पड़ा जिस से मैं ने अपनी गाड़ी छुड़वाई थी.

उस के बेढंगे बोलने के अंदाज पर मुझे बहुत ताव आया और बोली, ‘‘इंस्पेक्टर, कुछ इनसानियत के रिश्ते हर धर्म, हर जाति से बड़े होते हैं. वक्त पड़ने पर जो आप के काम आ जाए, आप का सहारा बन जाए, बस उस मानवतारूपी धर्म और जाति का ही रिश्ता सब से बड़ा होता है. कुछ दिन पहले मैं एक मुसीबत में फंस गई थी, उस समय मेरी मदद करने को तत्पर इन लड़कों ने मुझ से मेरी जाति और धर्म नहीं पूछा था. इन्होंने मुझ से तब यह नहीं कहा था कि अगर आप मुसलिम होंगी तभी हम आप की मदद करेंगे. इन्होंने महज इनसानियत का धर्म निभाया था और मुश्किल में फंसी मेरी मदद की थी.’’

‘‘इंस्पेक्टर साहब, शायद मेरी समझ से जो इस धर्म को अपना ले, वह इनसान सच्चा होता है, निर्दोष होता, बेगुनाह होता है, गुनहगार नहीं. उस वक्त अपनी खुशी से मैं ने इन्हें कुछ देना चाहा तो इन्होंने लिया नहीं और आप कह रहे हैं कि…’’

मेरी उन बातों का शायद उन पुलिस वालों पर कुछ असर पड़ा. लड़के भी मेरी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखने लगे थे. एक बोला, ‘‘मैडम, आप बचा लीजिए हमें. यह जबरदस्ती की पकड़ हमारी जिंदगी बरबाद कर देगी.’’

मैं ने भरोसा दिलाते हुए उन से कहा, ‘‘डोंट वरी, कुछ नहीं होगा तुम लोगों को. अगर उस दिन मैं ने तुम्हें न जाना होता और तुम ने मेरी मदद नहीं की होती तो शायद मैं भी कुछ नहीं कर पाती लेकिन किसी की निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का फल तो मिलता ही है. इसीलिए कहते हैं न कि जिंदगी में कभीकभी मिलने वाले ऐसे मौकों को छोड़ना नहीं चाहिए. अपनी तरफ से पूरी कोशिश करनी चाहिए कि आप के हाथों किसी का भला हो जाए.’’

मेरी बातों के प्रभाव में आया एक पुलिस वाला नरम लहजे में बोला, ‘‘देखिए मैडम, इन लड़कों को उस पर्स वाली मैडम ने पकड़वाया है. अब अगर वह अपनी शिकायत वापस ले लें तो हम इन्हें छोड़ देंगे. नहीं तो इन्हें अंदर करने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.’’

‘‘तो वह मैडम कहां हैं? फिर उन से ही बात करते हैं,’’ मैं ने तेजी से कहा. ऐसा लग रहा था जैसे कि कुछ अच्छा करने के लिए ऊर्जा अंदर से ही मिल रही थी और रास्ता खुदबखुद बन रहा था.

‘‘वह तो इन लोगों को पकड़वा कर कहीं चली गई हैं. अपना फोन नंबर दे गई हैं, कह रही थीं कि जब ये उन के पर्स के बारे में बता दें तो आ जाएंगी.’’

‘‘अच्छा तो उन्हें फोन कर के यहां बुलाइए. देखते हैं कि वह क्या कहती हैं? उन से ही अनुरोध करेंगे कि वह अपनी शिकायत वापस ले लें.’’

पुलिस वाले अब कुछ मूड में दिख रहे थे. एक पुलिस वाले ने फोन नंबर डायल कर उन्हें थाने आने को कहा.

फोन पहुंचते ही वह मैडम आ गईं. उन्हें देखते ही मेरे मुंह से निकला, ‘‘अरे, मिसेज सान्याल…’’ वह हमारे आफिसर्स लेडीज क्लब की प्रेसीडेंट थीं और मैं सेके्रटरी. इसी चक्कर में हम लोग अकसर मिलते ही रहते थे. आज तो इत्तफाक पर इत्तफाक हो रहे थे.

मुझे थाने में देख कर वह भी चौंक गईं. बोलीं, ‘‘अरे पूरबी, तुम यहां कैसे?’’

‘‘मिसेज सान्याल, मेरी गाड़ी को पुलिस वाले बाजार से उठा कर थाने लाए थे, उसी चक्कर में मुझे यहां आना पड़ा. पर ये लड़के, जिन्हें आप ने पकड़वाया है, असली मुजरिम नहीं हैं. आप देखिए, क्या इन्होंने ही आप का पर्स झपटा था.’’

‘‘पूरबी, पर्स तो वे मेरा पीछे से मेरे कंधे पर से खींच कर तेजी से चले गए थे. एक बाइक चला रहा था और दूसरे ने चलतेचलते ही…’’ इत्तफाक से मेरे पीछे से एक पुलिस जीप आई, जिस में ये दोनों पुलिस वाले बैठे थे. मेरी चीख सुन के इन्होंने मुझे अपनी जीप में बिठा लिया. तेजी से पीछा करने पर बाइक पर सवार ये दोनों मिले और बस पुलिस वालों ने इन दोनों को पकड़ लिया. मुझे लगा भी कि ये दोनों वे नहीं हैं, क्योंकि इतनी तेजी में भी मैं ने यह देखा था कि पीछे बैठने वाले के, जिस ने मेरा पर्स झपटा था, घुंघराले बाल नहीं थे, जैसे कि इस लड़के के हैं. वह गंजा सा था और उस ने शाल लपेट रखी थी, जबकि ये लड़के तो जैकेट पहने हुए हैं.

‘‘इन पुलिस वाले भाईसाहब से मैं ने कहा भी कि ये लोग वे नहीं हैं मगर इन्होंने मेरी सुनी ही नहीं और कहा कि अरे, आप को ध्यान नहीं है, ये ही हैं. जब मारमार के इन से आप का कीमती पर्स निकलवा लेंगे न तब आप को यकीन आएगा कि पुलिस वालों की आंखें आम आदमी से कितनी तेज होती हैं.’’

फिर मिसेज सान्याल ने तेज स्वर में उन से कहा, ‘‘क्यों, कहा था कि नहीं?’’

पुलिस वालों से तो कुछ कहते नहीं बना, लेकिन बेचारे बेकसूर लड़के जरूर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए बोले, ‘‘मैडम, अगर हम आप का पर्स छीन कर भागे होते तो क्या इतनी आसानी से पकड़ में आ जाते. अगर आप को जरा भी याद हो तो आप ने देखा होगा कि मैं बहुत धीरेधीरे बाइक चला रहा था क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था. आप चाहें तो शहर के जानेमाने हड्डी रोग विशेषज्ञ डा. संजीव लूथरा से पता कर सकते हैं, जिन्होंने मेरा इलाज किया था.

‘‘हम दोनों यहां के एक मैनेजमेंट कालिज से एम.बी.ए. कर रहे हैं. आप चाहें तो कालिज से हमारे बारे में सबकुछ पता कर सकती हैं. इंस्पेक्टर साहब, आप की जरा सी लापरवाही और गलतफहमी हमारा कैरियर चौपट कर देगी. देश का कानून और देश की पुलिस जनता की रक्षा के लिए है, उन्हें बरबाद करने के लिए नहीं. हमें छोड़ दीजिए, प्लीज.’’

अब बात बिलकुल साफ हो चुकी थी. पुलिस वालों की आंखों में भी अपनी गलती मानने की झलक दिखी. मिसेज सान्याल ने भी पुलिस से अपनी शिकायत वापस लेते हुए उन लोगों को छोड़ देने और असली मुजरिम को पकड़ने की प्रार्थना की. मुझे भी अपने दिल में कहीं बहुत अच्छा लग रहा था कि मैं ने किसी की मदद कर एक नेक काम किया है.

सचमुच, जिंदगी में कभीकभी ऐसे मोड़ भी आ जाते हैं जो आप के जीने की दिशा ही बदल दें. पुलिस के छोड़ देने पर वे दोनों लड़के वाकई मेरे भाई जैसे ही बन गए. बाहर निकलते ही बोले, ‘‘आप ने पुलिस से हमें बचाने के लिए अपना भाई कहा था न, आज से हम आप के बस भाई ही हैं. अब आप को हम मैडम नहीं ‘दीदी’ कहेंगे और हमारे अलगअलग धर्म कभी हमारे और आप के पाक रिश्ते में आड़े नहीं आएंगे. हमारा मोबाइल नंबर आप रख लीजिए, कभी भी, कहीं भी, किसी भी समय अच्छीबुरी कोई बात हो, अपने इन भाइयों को जरूर याद कर लेना दीदी, हम तुरंत आप की सेवा में हाजिर हो जाएंगे.’’

उन का मोबाइल नंबर अपने मोबाइल में फीड कर के मैं मुसकरा दी थी और अपनी पकड़ी गई गाड़ी को ले कर घर आ गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत में मेरे साथ हुआ, लग रहा था कि जैसे किसी फिल्म की शूटिंग देख कर आ रही हूं. घर पहुंच कर, इत्मीनान से चाय के सिप लेती हुई श्रेयस को फोन किया और सब घटना उन्हें सुनाई तो खोएखोए से वह भी कह उठे, ‘‘पूरबी, होता है, कभीकभी ऐसा भी जिंदगी में…’

मैं 56 साल का हूं, मुझे रोजाना सैक्स करने की इच्छा होती है प्लीज बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 56 साल है. अच्छी कदकाठी है. अपनी सेहत के प्रति जागरूक रहता हूंइसलिए शायद शरीर को कोई बीमारी नहीं लगी है. अपने अंदर मैं पूरी चुस्तीफुरती महसूस करता हूं और मुझे रोजाना सैक्स करने की इच्छा होती है. पत्नी मेरा पूरा साथ देती है लेकिन कहती है कि इस उम्र में तो थोड़ा सब्र किया करो. अब हमें सोशल एक्टिविटीज में ध्यान लगाना चाहिए. मुझे बहुत बुरा लगता है. आप ही बताइएक्या बढ़ती उम्र में रोजाना सैक्स करने की इच्छा होना गलत बात है?

जवाब

बढ़ती उम्र में रोजाना सैक्स करने की इच्छा होना कोई गलत बात नहीं हैबल्कि यह तो आप की एक हैल्दी सैक्सुअल स्ट्रैंथ हैजो एक अच्छे स्वास्थ्य को दर्शाती है. यह किसी भी व्यक्ति के लिए एक सामान्य बात है जो 50-60 की उम्र में भी अपनी सैक्सुअल इच्छाओं को बरकरार रखता है. यह उम्र के बजाय किसी व्यक्ति की सामान्य स्थिति को दर्शाती है.

सैक्स पतिपत्नी के आपसी सामंजस्य और इच्छा पर निर्भर करता है कि वे 24 घंटे में कब और कितनी बार सैक्स करते हैं. अपने पार्टनर से भावात्मक रूप से जितना अधिक जुड़ेंगेउतनी ही उस की इच्छा बढ़ेगी.

आप अपनी पत्नी को समझाएं कि कुछ सोशल एक्टिविटी अपनी जगह है और आप दोनों की सैक्सलाइफ की अपनी अहमियत है. पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएंसिर्फ सैक्स करने के लिए ही उस के पास न आएं बल्कि वैसे भी दोनों साथसाथ बैठेंबातें करें. पत्नी के हर काम में उस का साथ दें. यदि वह आप को अपने साथ बैठने को कहती है तो उस में भी उस का साथ देंवह खुश होगी. जहां तक आप की सैक्स की इच्छा है तो सैक्स को आनंददायक बनाने के लिए रोजाना सैक्स के एक ही तरीके न अपना कर कुछ नए एक्सपैरिमैंट करें.

अपनी पत्नी से सैक्स से संबंधित बातें करें. फोरप्ले में नएनए तरीके अपनाएं. इंटीमेट होते हुए पत्नी की तारीफ करें. खुशनुमा माहौल में पौर्न फिल्म देख कर मूड बनाएं और हमेशा टैंशनफ्री हो कर रिलैक्स भाव से सैक्स का आनंद लें. इस से पत्नी का सपोर्ट भी आप को मिलेगा और दोनों को संतुष्टि भी मिलेगी.

 

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