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मैं 28 साल का एक लड़का हूं, मैं एक शादीशुदा लड़की से प्यार करता हूं, क्या मैं सही कर रहा हूं?

सवाल
मैं 28 वर्षीय युवक हूं. मेरे घर में 2 वर्षों से मेरी शादी की बात चल रही है लेकिन मैं साफ इनकार कर देता हूं क्योंकि मैं एक विवाहिता से प्यार करता हूं और हम कई बार सैक्स भी कर चुके है. हम शादी करने के बारे में भी सोच रहे हैं. आप मुझे सही गाइड करिए कि मैं क्या करूं?

जवाब
कब किसी को किसी से प्यार हो जाए, कहा नहीं जा सकता, लेकिन आप का यह फैसला कई जिंदगियां तबाह कर देगा. छिपछिप कर मिलना और शादी का फैसला लेना सही नहीं है. विवाहिता को पति से तलाक आसानी से नहीं मिलता और इतने साल आप अधर में लटके रहेंगे. बीच में हो सकता है कि वह आप को धोखा दे दे, और कह दे कि आप ने उसे यूज किया है. इसलिए, आप को शादी के जो प्रस्ताव मिल रहे हैं वहां अगर आप को सब चीजें सही लग रही हैं, तो हां कर दें. धीरेधीरे सब चीजें खुद ठीक हो जाएंगी और वह युवती भी अपनी गृहस्थी पर ध्यान दे पाएगी. विवाहिता से दोस्ती बनाए रखें पर सैक्स संबंध न रखें.

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युवाओं में प्रेम होना एक आम बात है. अब समाज धीरेधीरे इसे स्वीकार भी कर रहा है. माता- पिता भी अब इतना होहल्ला नहीं मचाते, जब उन के बच्चे कहते हैं कि उन्हें अमुक लड़की/लड़के से ही शादी करनी है, लेकिन अगर कोई बेटी अपनी मां से आ कर यह कहे कि वह जिस व्यक्ति को प्यार करती है, वह शादीशुदा है तो मां इसे स्वीकार नहीं कर पाती.

ऐसे में बेटी से बहस का जो सिलसिला चलता है, उस का कहीं अंत ही नहीं होता लेकिन बेटी अपनी जिद पर अड़ी रहती है. मां समझ नहीं पाती कि वह ऐसा क्या करे, जिस से बेटी के दिमाग से इश्क का भूत उतर जाए.

ऐसे संबंध प्राय: तबाही का कारण बनते हैं. इस से पहले कि बेटी का जीवन बरबाद हो, उसे उबारने का प्रयास करें.

कारण खोजें : मौलाना आजाद मेडिकल कालिज में मनोचिकित्सा विभाग के निदेशक, डा. आर.सी. जिलोहा का कहना है कि इस तरह के मामले में मां एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं.

मां के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि बेटी का किसी अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षण का कारण घरेलू वातावरण तो नहीं है. कहीं यह तो नहीं कि जिस प्यार व अपनेपन की बेटी को जरूरत है, वह उसे घर में नहीं मिलता हो और ऐसे में वह बाहर प्यार ढूंढ़ती है और हालात उसे किसी विवाहित पुरुष से मिलवा देते हैं.

यह भी संभव है कि वह व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन से संतुष्ट न हो. चूंकि दोनों के हालात एक जैसे हैं, सो वे भावुक हो एकदूसरे के साथ न जुड़ गए हों. यह भी संभव है कि अपनी पत्नी की बुराइयां कर के और खुद को बेचारा बना कर लड़कियों की सहानुभूति हासिल करना उस व्यक्ति की सोचीसमझी साजिश का एक हिस्सा है.

सो, बेटी से एक दोस्त की तरह व्यवहार करें व बातोंबातों में कारण जानने का प्रयास करें, तभी आप अगला कदम उठा पाएंगी.

सही तरीका अपनाएं : डा. जिलोहा का कहना है कि बेटी ने किसी शादीशुदा से प्यार किया तो अकसर माताएं उन को डांटतीफटकारती हैं और उसे उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए कहती हैं, पर ऐसा करने से बेटी मां को अपना दुश्मन मानने लगती है. बेहतर होगा कि प्यार से उसे इस के परिणाम बताएं. बेटी को बताएं कि ऐसे रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. व्यावहारिक तौर पर उसे समझाएं कि उस के संबंधों के कारण बहुत सी जिंदगियां तबाह हो सकती हैं.

फिर जो व्यक्ति उस के लिए अपनी पत्नी व बच्चों को छोड़ सकता है, वह किसी और के लिए कभी उसे भी छोड़ सकता है, फिर वह क्या करेगी?

मदद लें : आप चाहें तो उस व्यक्ति की पत्नी से मिल कर समस्या का हल ढूंढ़ सकती हैं. अकसर पति के अफेयर की खबर सुनते ही कुछ पत्नियां भड़क जाती हैं और घर छोड़ कर मायके चली जाती हैं. उसे समझाएं कि वह ऐसा हरगिज न करे. बातोंबातों में उस से यह जानने का प्रयास करें कि कहीं उस के पति के आप की बेटी की ओर झुकाव का कारण वह स्वयं तो नहीं. ऐसा लगे तो एक दोस्त की तरह उसे समझाएं कि वह पति के प्रति अपने व्यवहार को बदल कर उसे वापस ला सकती है.

प्लान बनाएं

आप की सभी तरकीबें नाकामयाब हो जाएं तो उस की पत्नी से मिल कर एक योजना तैयार करें, जिस के तहत पत्नी आप की बेटी को बिना अपनी पहचान बताए उस की सहेली बन जाए. उसे जताएं कि वह अपने पति से बहुत प्यार करती है. उस के सामने पति की तारीफों के पुल बांधें. अगर वह व्यक्ति अपनी पत्नी की बुराई करता है तो एक दिन सचाई पता चलने पर आप की बेटी जान जाएगी कि वह अब तक उसे धोखा देता रहा है. ऐसे में उसे उस व्यक्ति से घृणा हो जाएगी और वह उस का साथ छोड़ देगी. यह भी हो सकता है कि उन का शादी का इरादा न हो और अपने संबंधों को यों ही बनाए रखना चाहते हों. ऐसे में बेटी को बारबार समझाने या टोकने से वह आप से और भी दूर हो जाएगी. उस को दोस्त बना कर उसे समझाएं और प्रैक्टिकली उसे कुछ उदाहरण दें तो शायद वह समझ जाए.

अगर आपको भी है मोबाइल की लत, तो हो जाएं सावधान

आजकल के वक्त में स्मार्टफोन और सोशल मीडिया लोगों की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं. हालात ये हैं कि अगर आपके पास स्मार्टफोन नहीं है तो आपको ऐसा लगता है जैसे दुनिया ही खतम हो गई, यहां तक कि अगर आपका मोबाइल खराब हो जाए तो आप उसको जल्द से जल्द ठीक कराने की कोशिश करते हैं. जितना कि आप अपने तबियत को लेकर भी परेशान नहीं होते उतना तो मोबइल फोन के खराब होने से हो जाते हैं. लोगों की दुनिया आजकल फोन के इर्द गिर्द घूमने लगी है. कहीं भी जाएं , कुछ भी खाएं सबकुछ सोशल मीडिया पर अपलोड करना आजकल लोगों के लिए बहुत जरूरी सा हो गया. लेकिन मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से शारीरिक और मानसिक नुकसान होता है, रिसर्च में खुलासा हुआ. क्योंकि सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बड़ों के मानसिक संतुलन के लिए भी हानिकारक है मोबाइल और व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ज्ञान.

स्मार्टफोन और सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने का मतलब है कि आप अपनी निजी जिंदगी से ज्यादा फोन की दुनिया में गुम हैं. जिसके कारण आप बाहरी दुनिया से आप बिल्कुल अंजान हो जाते हैं. अपने घर-परिवार बच्चों पर भी ध्यान नहीं जाता.

ऐसे में आपको डिजिटल डिटॉक्सिफिकेशन की जरूरत हो सकती है. नई तकनीक और सोशल मीडिया हमें अनोखे और रचनात्मक तरीकों से संवाद स्थापित करने का मौका देती है. लेकिन, तकनीक में हो रहे बदलावों को समझने में बहुत बार आप गलती कर जाते हैं. क्योंकि इसका गलत उपयोग भी होता है. आजकल सोशल मीडिया के जरिए आपको मदद, के साथ नेम और फेम मिलता है. तो वहीं दूसरी तरफ इसका खूब गलत इस्तेमाल भी होता है. लोग सोशल मीडिया के जरिए क्राइम करते हैं, गलत काम करके ब्लैकमेलिंग करते हैं.

अगर देखा जाए तो एक व्यक्ति दिन में करीब 150 से 200 बार फोन चेक करता है, हर छह मिनट में फोन चेक करता है. कई बार सोते वक्त भी जैसे बेचैन होता है. जब-जब नींद खुलती है तब-तब फोन चेक करता है. भले ही कोई अपडेट ना हो लेकिन ये एक आदत सी बन गई है या कहें की फोन की लत या बीमारी हो गई है. ऐसे लोगों में हम और आप भी आते हैं. डिजिटल तरीकों से मनोरंजन करना, घंटों फोन पर बात और चैट करना आपको कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं आप.

एक रिपोर्ट के मुताबिक स्वीडन और दुनिया भर में युवाओं के बीच मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं. लोग सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तनों से बिल्कुल दूर हो चुके हैं.
मोबाइल फोन के जल्दी विकास और और ज्यादा उपयोग से लोगों के शरीर और दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. नकारात्मक शक्तिायं इंसान को जकड़ रही हैं.

रिसर्च के मुताबिक मोबाइल फोन का उपयोग करने से आमतौर पर सिरदर्द, मानसिक तनाव, कान का दर्द और गर्माहट महसूस होती है क्योंकि कान में आप ईयर फोन का इस्तेमाल करते हैं. कई बार आपके बच्चे भी आपको देख कर यही सीखते हैं. फिर वो भी फोन लेने की जिद करते हैं जिससे उन पर और बुरा असर पड़ता है. कई बार कपल्स की दूरियों में भी फोन का बहुत बड़ा रोल होता है. एक ही बेड पर लेटे-लेटे पति-पत्नी भी फोन में लगे रहते हैं, एक-दूसरे को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते.

अगर आप भी उन लोगों में से हैं, जिन्हें बार-बार यह महसूस होता है कि निजी, पारिवारिक और सामाजिक जिंदगी में संतुलन और समन्वय नहीं है, तो आपको मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी बनानी होगी. कई अध्ययन और शोध में यह बात साबित हो चुकी है कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी या दूसरे डिजिटल उपकरणों के साथ हद से ज्यादा वक्त बिताना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. जिसके भयानक परिणाम हो सकते हैं.

अगर आप डिजिटल जिंदगी में बहुत ज्यादा उलझ गए हैं, तो परिवार, दोस्त, घर, बिजनेस बच्चे इन सब पर आपको अब ध्यान देना होगा. क्योंकि ये ही आपके जिंदगी के डिजिटल दुनिया से ज्यादा करीब और सच होते हैं.

मेरी आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं, चेहरे की रौनक दोबारा लौटाने के लिए कोई समाधान बताएं?

सवाल
मैं 29 वर्षीय महिला हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरी आंखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं और मेरी त्वचा भी डल हो गई है. चेहरे की रौनक दोबारा लौटाने के लिए कोई समाधान बताएं?

जवाब
आंखों के नीचे के काले घेरे न केवल किसी को भी उस की उम्र से अधिक बड़ा दिखाते हैं, बल्कि चेहरे की खूबसूरती को भी खराब कर देते हैं. आंखों के नीचे काले घेरे होने की वजह लंबे समय तक अनुचित आहार, कंप्यूटर पर ज्यादा देर तक काम करना, त्वचा में पानी की कमी होना, नींद पूरी न होना आदि होते हैं. आंखों के नीचे के काले घेरों को दूर करने के लिए बादाम के तेल से आंखों के नीचे हलके हाथों से मसाज करें. आप चाहें तो बाजार में मिलने वाली अंडरआई क्रीम का भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

अगर आप की त्वचा तैलीय है, तो चेहरे की रौनक को लौटाने के लिए चंदन पाउडर में गुलाबजल मिला कर फेस पैक बना कर चेहरे पर लगाएं. सूखने पर ठंडे पानी से धो लें. आप चाहें तो दही को भी चेहरे पर लगा सकती हैं. दही त्वचा के भीतर छिपी गंदगी को दूर कर के चेहरे के दागधब्बों और झुर्रियों आदि से मुक्ति दिलाता है.

मुझे अपनी सेक्रेटरी से प्यार हो गया है, मैं न तो अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता हूं और न ही उसे, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल
मेरी उम्र 28 वर्ष है और मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं. मेरी पत्नी काफी अच्छी है. लेकिन पिछले 3 महीनों से मुझे अपनी सहकर्मी से प्यार हो गया है और वह भी मुझ से प्यार करने लगी है जिस से मैं अब अपनी पत्नी को इग्नोर करने लगा हूं. इस बात से वह बहुत दुखी है. मैं न तो अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता हूं और न ही उसे. आप ही बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए.

जवाब
देखिए, जिस राह पर आप चल रहे  हैं उस में डूबने की आशंका है क्योंकि आप विवाहित हैं. आप एक नहीं बल्कि कई जिंदगियों से खेल रहे हैं. जब आप की पत्नी अच्छी है, तो आप को बाहर किसी दूसरी महिला की तरफ देखना ही नहीं चाहिए. और अगर आप आकर्षित हो भी गए हैं तो उस महिला को प्यार से समझाएं कि मेरी पत्नी है जिसे मैं ऐसा कर के धोखा दे रहा हूं और तुम्हें भी. इसलिए मुझे मेरी गलती के लिए माफ कर दो और पत्नी को भी भरोसा दिलाएं कि आगे से ऐसा नहीं होगा. वरना आप की एक भूल आप की जिंदगी खराब कर देगी जिस का पछतावा आप को जीवनभर रहेगा.

जनता संपत्ति कमाए व सरकार नजरें गड़ाए, आखिर क्यों

भारत में केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी अपनी संपत्तियों के अलावा आम लोगों की संपत्तियों पर भी दृष्टि जमाए रखती हैं. आज तो आलम यह है कि अपराधियों की संपत्ति को तो वे, बिना कानूनी खानापूर्ति किए ही, बुलडोजर से ध्वस्त करा देती हैं. यह और बात है कि सत्ताधारी पार्टी में शामिल अपराधियों की संपत्ति को कोई छू भी नहीं सकता.

अपराधियों ही नहीं बल्कि अवैध संपत्ति के नाम पर तमाम दूसरे लोगों के मकान भी सरकारों ने ध्वस्त किएहैं और नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिनको कोई छूता भी नहीं है. यह मनमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा की सरकारेंहैं वहां यह ज्यादा किया जा रहा है.

 ऐसे नजर रखती है सरकार

संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इसकी शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गईथी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिनके पास ज्यादा जमीन है उनसे ली जाएगी. सरकार ने इसके तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.

छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उनके मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग करके मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.

केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उनके पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकतेहैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उसने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.

संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इसके फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इससे अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.

        जेवर और जमीन पर भी हुकूमत की मंशा

सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को लेकर भी कानून लाने वाली है जिसमें यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.

इसके पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सबसे बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनों में इसका हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस परभी है.

जेवर या गहने जब भी खरीदें उसकी रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिशकरें कि उसकी रसीद आपके पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उसको उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिएआधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इसके बिना जेवर नहीं देतीं. इसके अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमैंट का रास्ता अपनाती है. इसमें आपका फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.

ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आपके पास नहीं हो सकती.

इस प्रकार, सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उसके जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें वरना आप की संपत्ति भी कहीं किसी ‘अडानी’ की झोली में न चली जाए.

अंजाम-ए-मोहब्बत: बेमानी हुए प्यार का यही नतीजा होता है

अनमोल और योगेश ने भले ही एकदूसरे से प्यार किया था. लेकिन अलगअलग शादी के बंधन में बंध जाने के बाद उन्हें अपने प्यार को भुला देना  चाहिए था. बेमानी हुए  प्यार का कमोबेश यही  नतीजा होता है, जो हुआ.

मौत कभीकभी बिन बुलाए मेहमान की तरह चुपके से आती है और चील की तरह झपट्टा मार कर किसी को भी साथ ले जाती है. ऐसा नहीं है कि मौत आने से पहले दस्तक नहीं देती. असल में मौत दस्तक तो देती है, पर लोग उस पर ध्यान नहीं देते. कोई नहीं जानता कि वक्त कब करवट लेगा और खुशियां गम में बदल जाएंगी. ऐसा ही कुछ योगेश के साथ भी हुआ था.

आगरा के थाना सिकंदरा क्षेत्र में एकगांव है अटूस. राजन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस का गांव में ही दूध का व्यवसाय था. वह बाहर से तो दूध खरीदता ही था, उस की अपनी भी कई दुधारू भैंसे थीं. राजन गांव का खातापीता व्यक्ति था. वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहता था.

उस का बड़ा बेटा पढ़ाई में काफी तेज था. इसलिए परिवार को उस से काफी उम्मीदें थीं. राजन के घर से कुछ ही दूरी पर रिटायर्ड फौजी नरेंद्र का घर था. एक ही गांव के होने की वजह से दोनों परिवार के लोगों में आतेजाते दुआसलाम तो हो जाती थी, पर ज्यादा नजदीकियां नहीं थीं. दोनों परिवारों के बच्चे गांव के दूसरे बच्चों की तरह साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे. वक्त के साथ फौजी नरेंद्र की बेटी अनमोल जवान हुई तो मांबाप ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह लड़की है और लड़की को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए.

दरअसल, फौजी की बेटी अनमोल और राजन का बेटा योगेश एक ही कालेज में पढ़ते थे. आए दिन होने वाली मुलाकातों की वजह से दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे थे. धीरेधीरे दोनों में दोस्ती हो गई और उन्हें लगने लगा कि उन के मन में एकदूसरे के लिए कोमल भावनाएं विकसित हो रही हैं.

दोनों बीए में में पढ़ रहे थे. एक दिन अनमोल जब आगरा जाने के लिए सड़क पर किसी वाहन का इंतजार कर रही थी तो योगेश अपनी बुलेट पर वहां आ गया. वह बाइक रोक कर अनमोल से बोला, ‘‘आओ बैठो.’’

‘‘नहीं तुम जाओ, मैं औटो से जाऊंगी.’’ जवाब में अनमोल ने कहा.

‘‘छोड़ो यार, ये क्या बात हुई. मैं भी तो कालेज ही जा रहा हूं.’’ कहते हुए योगेश बेतकल्लुफ हो गया और अनमोल का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बैठो.’’

अनमोल उस के साथ बुलेट पर बैठ गई. उस के लिए यह एक नया अनुभव था, फिर भी वह यह सोच कर डरी हुई थी कि किसी ने देख लिया तो खबर घर तक पहुंच जाएगी. अनमोल इसी सोच में डूबी थी कि योगेश ने काफी शौप के सामने बाइक रोक दी.

‘‘बाइक क्यों रोक दी. कालेज चलने का इरादा नहीं है क्या?’’

‘‘कालेज भी चलेंगे, पहले एकएक कप कौफी पी लें.’’ कहते हुए वह अनमोल को कौफी शौप में ले गया. कौफी पीने के दौरान दोनों के बीच खामोशी छाई रही. अनमोल जहां डरी हुई थी वहीं योगेश उस से वह सब कहना चाहता था, जो काफी दिनों से उस के दिल में था.

अचानक उस ने अनमोल का हाथ पकड़ा तो वह कांप उठी. उस ने गहरी नजरों से योगेश को देखा और अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. योगेश थोड़ा गंभीर हो कर बोला, ‘‘अनमोल मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हें हर वक्त आंखों के सामने रखना चाहता हूं.’’

अनमोल खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘लगता है, तुम्हारी शामत आने वाली है. जानते हो मेरे पिता फौजी हैं. उन्हें पता चला तो…’’

‘‘जानता हूं, उन्हें छोड़ो तुम्हें तो पता चल गया न, तुम बताओ क्या करने वाली हो?’’

‘‘मैं क्या करूंगी, तुम तो जानते हो कि लड़कियां अपने दिल की बात आसानी से नहीं कह पातीं.’’ कहते हुए अनमोल मुसकराई तो योगेश के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

उस ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए था, तुम्हें मेरी मोहब्बत कुबूल है न?’’

अनमोल को योगेश अच्छा लगता था. उस ने सहजभाव से योगेश की मोहब्बत कुबूल कर ली. उस दिन के बाद तो जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई.

एक दिन अनमोल और योगेश ताजमहल देखने गए, जहां उन्हें देर तक पासपास बैठने का मौका मिला. उस दिन दोनों ने एकदूसरे से खुल कर बातें कीं. उस दिन के बाद धीरेधीरे दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी.

दोनों समाज की नजरों से छिप कर मिलने लगे. साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा कर दोनों ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए दोनों शादी करेंगे और अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.

हालांकि अनमोल जानती थी कि उस का फौजी पिता किसी भी सूरत में उन की मोहब्बत को मंजिल तक नहीं पहुंचने देगा. लेकिन अनमोल और योगेश ने तय कर लिया कि जमाना लाख विरोध करे, लेकिन वे अपनी मोहब्बत के रास्ते पर चल कर अपने परिजनों को यह मानने के लिए मजबूर कर देंगे कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

प्यार में बदली दोस्ती

यह प्रेमी युगल की सोच थी लेकिन मोहब्बत की इस राह पर इतने कांटे थे कि उन के लिए मंजिल तक पहुंचना आसान नहीं था. अनमोल के पिता के भाई गांव के पूर्व प्रधान थे. इस नाते इस परिवार का इलाके में काफी दबदबा था. लेकिन उन दोनों की आशिकी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा था.

उन का मिलनाजुलना चलता रहा. एक दिन किसी ने नरेंद्र को बताया कि उस ने उस की बेटी को राजन के बेटे से बातचीत करते देखा है. यह सुनते ही नरेंद्र का खून गर्म हो गया. वह गुस्से में घर पहुंचा और अपनी पत्नी सरोज से अनमोल के बारे में पूछा कि वह कहां है. पत्नी ने बताया कि अनमोल अभी कालेज से नहीं लौटी है.

‘‘पता है तुम्हारी बेटी कालेज जाने के बहाने क्या गुल खिला रही है?’’ नरेंद्र ने सरोज से कहा, तो वह बोली, ‘‘क्या बात है, अनमोल ने कुछ किया है क्या? वह तो सीधीसादी लड़की है, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती है.’’

‘‘जानता हूं, पर आज पता चला है कि वह राजन के बेटे से दोस्ती बढ़ाए हुए है, जानता हूं कालेज में बच्चे एकदूसरे से बातें करते हैं, लेकिन सोचो बात इस से आगे बढ़ गई तो क्या करेंगे?’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम चाय पियो वह आती ही होगी. पूछ लेना.’’ कह कर सरोज ने चाय का प्याला नरेंद्र के आगे रख दिया. थोड़ी देर में अनमोल आ गई. पिता को देख कर वह अपने कमरे में जाने लगी तो नरेंद्र ने टोका, ‘‘कहां से आ रही हो?’’

‘‘कालेज से.’’ अनमोल ने जवाब दिया.

‘‘ये योगेश कौन है?’’ नरेंद्र ने पूछा तो अनमोल चौंकने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कौन योगेश?’’ अनमोल ने कहा, ‘‘पापा, कालेज में तो कई लड़के पढ़ते हें, मुझे हर किसी का नाम थोड़े ही पता है.’’

नरेंद्र समझ गया कि लड़की उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी उसे समझा जाता है. लड़की पर ध्यान देना जरूरी है.

अपने कमरे में जा कर अनमोल ने किताबें मेज पर पटकीं और सोचने लगी कि जरूर पिता को शक हो गया है. अब सतर्क रहना होगा. वह काफी तनाव में आ गई.

अनमोल जानती थी कि जाति एक होने के बावजूद उस के मांबाप योगेश को कभी नहीं अपनाएंगे. वजह यह कि हैसियत में उस का परिवार योगेश के परिवार के मुकाबले काफी संपन्न था. देर रात फोन कर के उस ने यह बात योगेश को बता दी. योगेश ने कहा, ‘‘ठीक है, आगे क्या करना है देखेंगे.’’

  • निगाह रखी जाने लगी अनमोल पर

दूसरी ओर नरेंद्र निश्चिंत नहीं था. अगले कुछ दिनों में उसे पता चल गया कि लड़की गलत राह पर जा रही है. इसी के मद्देनजर उस ने सरोज से कहा, ‘‘अनमोल अब घर रह कर ही पढ़ाई करेगी. इम्तिहान आएंगे तो देखेंगे क्या करना है.’’

अनमोल ने पिता की बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है पापा?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम ने क्या किया है. इस से पहले कि तुम समाज में हमारा सिर नीचा करो, मैं तुम्हारे लिए रिश्ता देख कर तुम्हारी शादी कर दूंगा.’’

लेकिन इस से पहले कि नरेंद्र अपने सिर से बोझ उतार पाता, अनमोल और योगेश ने घर मे भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का फैसला कर लिया. एक दिन रात में जब सब सो रहे थे, अनमोल ने घर छोड़ दिया और योगेश के साथ चली गई. सुबह घर वालों ने देखा तो सन्न रह गए. बाहर वाला दरवाजा खुला था और अनमोल घर से लापता थी.

इस के बाद तमाम जगहों पर फोन किए गए लेकिन अनमोल का कहीं पता नहीं चला. कोई रास्ता न देख नरेंद्र अपने घर वालों के साथ योगेश के पिता राजन से मिला. उन की बात सुन कर राजन हैरान रह गया उसे कुछ भी पता नहीं था. राजन ने विश्वास दिलाया कि वह उन की बेटी को सही सलामत वापस लाएगा.

राजन जानता था कि बेटे की ये हरकत उस के परिवार को मुसीबत में डाल सकती है. उस ने अपनी रिश्तेदारियों में फोन मिलाए तो पता चला कि योगेश और अनमोल उस के एक करीबी रिश्तेदार के घर पर मौजूद हैं. उस ने अपने उस रिश्तेदार को सारी बात बता कर कहा कि वह तुरंत दोनों को साथ ले कर अटूस आ जाए.

ऐसा ही हुआ. अनमोल अपने मांबाप के घर आ गई. वह समझ गई थी कि योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा. अब उस पर बंदिशें भी बढ़ गईं. साथ ही नरेंद्र अनमोल के लिए लड़का भी तलाशने लगा. आखिर एक रिश्ता मिल ही गया. अनमोल का रिश्ता गाजियाबाद के भोपुरा निवासी नेत्रपाल से तय कर दिया गया.

नेत्रपाल एक दवा कंपनी का प्रतिनिधि था. 4 साल पहले अनमोल की शादी नेत्रपाल के साथ हो गई. वह रोतीबिलखती खाक हुए अपने प्यार के सपनों की राख समेटे सुसराल चली गई.

  • अनमोल नहीं भूली अपने प्यार को

मांबाप ने सोचा कि चलो सब कुछ ठीक हो गया. लेकिन यह उन की भूल थी. 3 साल के प्रेमसंबंधों को भला प्रेमी प्रेमिका कैसे भूल सकते थे. समाज ने उन्हें जबरन अलग किया था. सीधीसादी दिखने वाली अनमोल अब विद्रोही हो गई थी. ससुराल में उस का मन नहीं लगता था. उसे अपनी स्थिति एक कैदी जैसी लगती थी. मौका पा कर वह योगेश से फोन पर बात कर लेती थी.

अपने काम में व्यस्त रहने वाला नेत्रपाल इस सब से बेखबर था. इसी बीच अनमोल गर्भवती हो गई, लेकिन वह अपने पति के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एक दिन नेत्रपाल से कहा कि अभी वह बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं है. पत्नी बच्चे को जन्म देने की इच्छुक नहीं थी. न चाहते हुए भी नेत्रपाल मान गया. उस ने पत्नी का गर्भपात करा दिया.

अनमोल की शादी के बाद घर वालों के दबाव में योगेश भी एक अन्य लड़की से शादी करने को तैयार हो गया. उस की शादी वंदना के साथ हो गई. वंदना को इस बात की भनक तक नहीं थी कि उस का पति किसी दूसरी लड़की से प्यार करता था और उसे ले कर भाग भी गया था. वह खामोशी के साथ पत्नी धर्म निभाती रही. बाद में वह एक बच्चे की मां भी बनी.

इसी बीच कंपनी ने नेत्रपाल को आगरा क्षेत्र का काम सौंप दिया. नेत्रपाल ने थाना सिकंदरा क्षेत्र की कालोनी शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहते दवा कंपनी का काम करने लगा. वह सुबह घर से निकलता और शाम को लौटता. अपनी पत्नी के प्यार से वह बेखबर था. उसे नहीं मालूम था कि पत्नी शादी से पहले किसी से प्यार करती थी.

शादी के बाद अनमोल जब तब पति के साथ मायके आती और उस के साथ ही वापस चली जाती. योगेश से मिलने का मौका ही नहीं मिलता था. लेकिन अब शास्त्रीपुरम में पति के काम पर चले जाने के बाद वह घर में अकेली रह जाती थी.

उस का अकेलापन एक ऐसे गुनाह को जन्म देगा, जिस में पूरा परिवार तबाह हो जाएगा, यह अनमोल नहीं समझ पाई. उस ने आगरा आ जाने की खबर अपने प्रेमी योगेश को फोन पर दे दी और अपना पता भी बता दिया. उस ने योगेश से मिलने की इच्छा भी व्यक्त की.

प्रेमिका के आमंत्रण ने योगेश में जोश भर दिया. वह भूल गया कि अब उस की भी शादी हो चुकी है और वह एक बच्ची का पिता है. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी प्रेमिका से जरूर मिलेगा.

नरेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटी फिर से कोई गुल खिलाने वाली है. बेटा जूनियर डाक्टर था और बेटी की उस ने एक अच्छे परिवार में शादी कर दी थी. जबकि अनमोल इसी सब का फायदा उठाना चाहती थी. एक दिन दोपहर को योगेश अनमोल के पास जा पहुंचा.

  • दोनों ने आगापीछा नहीं सोचा

लंबे अलगाव के बाद अनमोल उस के आगोश में सिमट गई. योगेश ने अनमोल को समझाने की कोशिश की कि अब कुछ नहीं हो सकता. वह एक जिम्मेदार पिता और पति बनना चाहता है. उस ने यह बात कही जरूर लेकिन चाहता वह भी वही था जो अनमोल चाहती थी. नतीजा यह हुआ कि दोनों समाज की आंखों में धूल झोंक कर एक ऐसे रिश्ते को निभाने लगे जिस के कुछ मायने नहीं थे.

अनमोल और योगेश जिस रास्ते पर चल पड़े थे, वह फिसलन भरा था, जो धीरेधीरे दलदल बन गया. ऐसी दलदल जहां से निकल पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव था. अनमोल का दिल दिमाग बेकाबू था. वह चाहती थी कि वह नेत्रपाल के साथ वैवाहिक बंधन से मुक्त हो कर एक बार फिर आजाद जिंदगी जिए और योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाए.

यह अलग बात थी कि योगेश के पास अपनी निजी आय का कोई साधन नहीं था और न ही वह अपनी पत्नी और बेटी की जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकता था. योगेश जानता था कि वह अपनी बेटी और पत्नी का गुनहगार है, लेकिन यह नहीं जानता था कि यह गुनाह उस की जिंदगी ही छीन लेगा.

18 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे एक युवती बदहवास सी थाना सिकंदरा पहुंची. उस से थानाप्रभारी अजय कौशल से कहा, ‘‘सर, जल्दी चलिए, वो लोग उसे कार में कहीं ले गए हैं और उसे मार डालेंगे.’’ युवती थाना इंचार्ज को समझा नहीं पा रही थी कि कौन किसे मार डालेगा. अजय कौशल ने संतरी को पानी लाने को कहा. युवती ने पानी पी लिया तो अजय कौशल ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या बात है?’’

इस के बाद युवती ने जो कुछ बताया उसे सुन कर थानाप्रभारी के होश उड़ गए. उन्होंने ड्राइवर से तुरंत गाड़ी तैयार करने को कहा और पुलिस टीम के साथ उस युवती को ले कर शास्त्रीपुरम पहुंचे. तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. इलाके में गहरा सन्नाटा था. आसपास के मकानों के दरवाजे बंद थे.

अनमोल ने दरवाजा खोला तो अजय कौशल ने अंदर जा कर देखा. कमरे का फर्श गीला था. अनमोल ने बताया कि फर्श का खून उसी ने साफ किया है. अब तक वह सामान्य हो चुकी थी.

उस ने थानाप्रभारी को फिर पूरी कहानी सुनाई कि कालेज के समय से वह योगेश से प्यार करती थी. दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन समाज के आगे उन की एक नहीं चली.

योगेश की भी शादी हो चुकी थी. दोनों का मिलनाजुलना मुश्किल हो गया था, पर जब नेत्रपाल का तबादला आगरा हो गया तो हम ने शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया. यहां आ कर योगेश से मिलने का रास्ता भी साफ हो गया था. जब भी मौका मिलता हम मिल लेते थे. नेत्रपाल दोपहर में कम ही आता था. जब उसे आना होता था तो वह फोन करता था.

आगे की पूछताछ में जो बातें पता चलीं, उन के अनुसार, 19 अगस्त, 2018 को अनमोल ने योगेश के वाट्सऐप पर मैसेज भेजा कि वह आ जाए. योगेश अपने लिए नौकरी ढूंढ रहा था. नौकरी के लिए उस ने कई फार्म भी भरे थे. वह दोपहर को घर से यह कह कर निकला कि फार्म भरने आगरा जा रहा है. लेकिन वह गया तो वापस नहीं लौटा उस के घर वाले परेशान थे. बहरहाल, अनमोल ने पुलिस को पूरी बात बता दी. उसी के आधार पर पुलिस ने छानबीन की.

  • आशिक की मौत

हालांकि अनमोल के अनुसार उस ने फर्श से खून साफ कर दिया था, लेकिन दीवारों पर खून के धब्बे थे. पुलिस की क्राइम टीम ने उन धब्बों को उठा लिया.

अनमोल ने आगे जो बताया उस के अनुसार क्राइम की तसवीर कुछ इस तरह बनी.

अनमोल ने योगेश को घर बुला लिया था. जब दोनों प्यार के क्षणों में डूबे थे, तभी नेत्रपाल आ गया. दरअसल उसे पिछले कुछ दिनों से पत्नी पर शक हो गया था. पति को आया देख अनमोल घबरा गई. उस ने योगेश को स्टोररूम में छिपा दिया. नेत्रपाल ने कई बार घंटी बजाई, लेकिन अनमोल ने दरवाजा नहीं खोला. वह काफी घबराई हुई थी, कपड़े अस्तव्यस्त थे.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो नेत्रपाल ने पूछा, ‘‘दरवाजा खोलने में देर क्यों हुई?’’

‘‘मैं नहा रही थी.’’ अनमोल ने कहा.

‘‘ऐसा लग तो नहीं रहा.’’ नेत्रपाल ने कहा. तभी उस की नजर स्टोर के अधखुले दरवाजे पर पड़ी तो उस का शक बढ़ गया. उस ने स्टोर का दरवाजा खोलने की कोशिश की तो अंदर से जोर लगा कर किसी ने दरवाजा खोलने नहीं दिया. नेत्रपाल समझ गया कि उस का शक सही है.

तभी अनमोल ने कहा, ‘‘उसे छोड़ दो प्लीज, उसे जाने दो वह निर्दोष है. मैं ने ही उसे बुलाया था.’’ गुस्से में भरे नेत्रपाल ने अपने ससुर नरेंद्र को फोन पर सारी बात बताई. कुछ ही देर में नरेंद्र और उस के भाई का बेटा वहां पहुंच गए. इस के बाद योगेश को स्टोर से बाहर निकाला गया. तीनों सरिया और लोहे की रौड से योगेश पर टूट पड़े. अनमोल ने उसे बचाने की कोशिश की तो उस की भी पिटाई की गई. तीनों ने पिटाई से खूनोंखून हुए योगेश को देखा तो उन के होश उड़ गए. वह बेहोश हो गया था. इस बीच अनमोल को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. उसे यह पता नहीं था कि योगेश मर गया था या जिंदा था.

8 बजे के करीब तीनों ने जब योगेश को कमरे में डाला तब वह मर चुका था. अब उन्हें पुलिस का डर सताने लगा था. कमरे का दरवाजा खोल कर अनमोल को बाहर निकाला और उस से चुप रहने को कहा गया. फिर वे चले गए. अनमोल ने कमरे से बाहर आ कर खून सना फर्श साफ किया और थाना सिकंदरा पहुंच गई.

उधर राजन और उस का बेटा शिशुपाल योगेश की तलाश कर रहे थे. दूसरी ओर पुलिस को योगेश की बुलेट मोटरसाइकिल पड़ोस के एक घर के सामने मिल गई. रात भर पुलिस तीनों को आगरा की सड़कों पर तलाशती रही. आखिर अगले दिन दोपहर को पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर नेत्रपाल और नरेंद्र को दबोच लिया. पुलिस ने राजन को भी घटना को सूचना दे दी थी.

आरोपियों ने बताया कि उन्होंने योगेश को मारापीटा और बेहोशी की हालत में उसे जऊपुरा के जंगल में फेंक आए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने योगेश का शव जऊपुरा के जंगल से बरामद कर लिया. आरोपियों ने कत्ल में इस्तेमाल सरिया और लोहे की रौड भी बरामद करा दी.

पुलिस ने तीसरे अभियुक्त अनमोल के चचेरे भाई को भी गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों को अदालत में पेश किया गया. उन के साथ अनमोल को भी अदालत में पेश किया. उस पर सबूत नष्ट करने का आरोप था. इन सभी के खिलाफ राजन ने भादंवि की धारा 302, 201, 364, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करा दिया था. अदालत ने आरोपियों को जेल भेज दिया.

अपनेअपने जीवनसाथियों से असंतुष्ट योगेश और अनमोल ने विवाह के बाद भी टूटे सपनों को फिर से संजोने का प्रयास किया, जो गलत था. इस का नतीजा भी गलत ही निकला. इस चक्कर में कई जिंदगियां बरबाद हो गई.     ?

 -कथा में सरोज नाम बदला हुआ है

Father’s Day 2023: पिता की भूमिका मां से कम नहीं

समाज बदल रहा है, महिलाएं बाहर निकल पुरुषों से कंधे से कंधा मिला रही हैं. ऐसे में पुरुषों को महज वीर्यदान और संसाधन जुटानेभर तक सीमित रखना ठीक नहीं है, उन्हें पितृत्व का एहसास कराया जाना भी जरूरी है.

भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली पहली बार पिता बने तो ऐसे में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से ब्रेक लेने का फैसला किया. इस का समर्थन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने भी किया और इस के लिए उस ने उन्हें पितृत्व अवकाश भी दिया. ऐसे ही न्यूजीलैंड टीम के क्रिकेटर केन विलियमसन ने भी पहली बार पिता बनने पर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से ब्रेक लेने का फैसला किया.

एक गर्भवती औरत बच्चा होने के पहले ही उस के बारे में सोचना शुरू कर देती है. बच्चा होने के बाद उस की चिंता और बढ़ जाती है कि सब कैसे हैंडल करेगी. ऐसे में अगर पिता भी छुट्टियां ले ले और अपनी पत्नी के साथ रहे तो मां की चिंता काफी हद तक कम हो जाती है.

ऐक्टर इमरान खान ने भी कुछ ऐसा ही किया था. जब उन की बेटी पैदा होने वाली थी तब उन्होंने भी कुछ समय के लिए फिल्मों से अवकाश ले लिया था. इमरान के मुताबिक, ऐसी चीजें आप की जिंदगी में एक या दो बार होती हैं. ऐसे में किसी भी कीमत पर ये पल गंवाने नहीं चाहिए.

उन का कहना था कि एक पिता होने के नाते उन्होंने महसूस किया कि बेटी को ले कर वे हमेशा नर्वस रहते थे कि क्या मैं सही कर रहा हूं? क्या मैं गलत कर रहा हूं? क्या मैं ने बच्चे को ठीक से खिलाया? कहीं वह भूखा तो नहीं रह गया? कहीं मैं ने उसे ओवरइटिंग तो नहीं करवा दिया? ऐसे तमाम सवाल उन के मन में आते रहते थे. उन्होंने शिद्दत से महसूस किया कि बच्चा होने के समय एक पति को अपनी पत्नी के पास होना चाहिए. बच्चे पैदा करना एक मां को नए जीवन मिलने जैसा होता है.

रितेश देशमुख की पत्नी जेनेलिया डिसूजा का कहना है, ‘‘रितेश ग्रेट फादर हैं. वे अपने बेटे के डायपर तक चेंज करते थे. उसे नहलाते थे. यहां तक कि रात में उठ कर रोते बच्चे को हाथों में ?ाला ?ालाते थे.’’

यह सही भी है कि अपने बच्चे के प्रति जितनी जिम्मेदारी एक मां की होती है, उतनी पिता की भी होनी चाहिए. फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने भी अपनी बेटी के जन्म के बाद 2 महीने का पितृत्व अवकाश लिया था और अपनी नवजात बच्ची के साथ खुशनुमा पल बिताए थे.

लेकिन क्या एक आम भारतीय पिता ऐसा करने की सोच सकता है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि एक बच्चे को पालने की भूमिका तो मां ही अदा करती है, पिता तो परिवार और बच्चों को सुखसुविधा मुहैया कराता है. यह सोच पूरे देश में व्याप्त है कि घरपरिवार और बच्चों की देखभाल तो घर की औरतें ही कर सकती हैं. पुरुषों का काम तो बाहर जा कर कमाना और महत्त्वपूर्ण फैसले लेना है. लेकिन यह मिथ्या है कि एक पिता अपने नवजात बच्चे की उस तरह से देखभाल नहीं कर सकता, जैसे एक मां.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया रिवर साइड के मनोवैज्ञानिकों ने 18 हजार से ज्यादा लोगों पर रिसर्च की. रिसर्च के मुताबिक, मां की तुलना में पिता बच्चे की देखभाल न केवल बेहतर ढंग से कर पाते हैं, बल्कि वे बच्चों की देखभाल को ले कर अधिक सक्रिय भी होते हैं. यह शोध बतलाता है कि एक पिता भी मां की तरह नवजात बच्चे की देखभाल कर सकता है.

इसराईल के शोधकर्ता रूथफील्डमेन ने अपने शोध में यह पाया कि बच्चे की देखभाल के समय जिस तरह से हार्मोनल बदलाव मां में होते हैं, वैसे पिता में भी देखने को मिले हैं. जब उन का मस्तिष्क यह बात स्वीकार कर लेता है कि बच्चा संभालने का दायित्व उन पर है तो बच्चे के साथ उन का लगाव एक मां जैसा ही होने लगता है.

बच्चे और पिता की ऐसी रिलेशनशिप को ले कर हमेशा से ही रिसर्च होती रही हैं. रिसर्च के अनुसार, पिता और बच्चे की रिलेशनशिप बहुत खास होती है. बच्चे को पालना मांपिता दोनों की जिम्मेदारी होती है. इस से बच्चे के विकास में अच्छा प्रभाव पड़ता है. लेकिन पेरैंटिंग में पिता की भूमिका खास होती है. साइंस भी इस बात की पुष्टि करती है कि जो पिता मां की तरह बच्चे के सारे काम करते हैं, वे आगे चल कर सोशल लाइफ में सक्सैसफुल भूमिका निभाते हैं.

पुराने जमाने में जब महिलाएं मां बनने वाली होती थीं तब उन्हें मायके भेज दिया जाता था. एक प्रथा थी, इस में पिता की कोई भूमिका नहीं रहती. पहले के जमाने में घर में ही दाई के हाथों बच्चे पैदा करवाए जाते थे. कम उम्र में मां बनने के कारण कई बार प्रसूति के दौरान ही महिलाओं की मौत भी हो जाती थी. लेकिन आज ऐसा नहीं है. फिर भी बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी औरतों की ही मानी जाती है.

आज भी समाज के बड़े हिस्से में यह सोच दिखती है कि पिता को बच्चे के पास रहने की क्या जरूरत है? हमारे देश में पितृत्व अवकाश परंपरागत रूप से स्वीकार्य नहीं और न ही इस की आवश्यकता सम?ा जाती है. यह स्पष्ट है कि ऐसा न मानने का कोई तार्किक या वैज्ञानिक कारण नहीं है, सिवा उन सामाजिक व परंपरागत मान्यताओं के जो पुरुषों को यह दायित्व स्वीकार नहीं करने देती हैं.

बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के आंकड़े भी यही दिखाते हैं. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में दोतिहाई पिता ऐसे हैं जिन्हें बच्चा होने पर एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती. एक साल से कम उम्र के करीब 9 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन के पिता को ‘पेड लीव’ यानी काम से बिना तनख्वाह कटे छुट्टी नहीं मिली.

ये आंकड़े 92 देशों के हैं. जहां बच्चा होने पर पुरुषों के लिए ‘पेड लीव’ का कोई प्रावधान नहीं है. यूनिसेफ ने इन देशों से गुजारिश की है कि वे परिवार के हक में नीतियां बनाएं.

यूनिसेफ के कार्यकारी निर्देशक हेंरिएटा का कहना है कि शुरू में ही मातापिता का साथ सकारात्मक और सार्थक संपर्क जीवनभर के लिए बच्चों के दिमागी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है. इस से वे ज्यादा स्वस्थ और सुखी रह पाते हैं और उन के सीखने की क्षमता भी बढ़ती है.

लेकिन सरकार मातृत्व अवकाश की तरह पितृत्व अवकाश जरूरी नहीं सम?ाती. अगर महिलाओं के लिए छुट्टी के प्रावधान हैं तो पुरुषों को पितृत्व अवकाश न देना एक तरह से जैंडर भेदभाव को बढ़ावा देना है.

बच्चे की देखभाल करना बेशक मां का काम है लेकिन पिता को इस जिम्मेदारी से दूर रखना भी तो गलत है. 4 साल पहले जब मेनका गांधी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का पदभार संभाल रही थीं तब उन्होंने पितृत्व अवकाश का मजाक उड़ाते हुए कहा था, ‘‘भारतीय पुरुषों के लिए यह छुट्टी मनाने का समय होगा.’’

अगर हम वास्तव में स्त्रीपुरुष समानता चाहते हैं तो हमें यह सोच बदलनी होगी. अभी तक हम यही मान कर चलते आए हैं कि बच्चों को पालना प्राकृतिक रूप से औरतों का काम है और पुरुषों का काम उन्हें इस की सुविधा उपलब्ध कराना है.

आइसलैंड जैसे प्रगतिशील देश इसे बदल रहे हैं. वहां दोनों अभिभावकों को समानरूप से 3 महीने की छुट्टी दी जाती है. इस के अलावा दोनों में से किसी एक को 3 महीने की अतिरिक्त छुट्टी भी मिल सकती है. यह छुट्टी मातापिता दोनों में से कौन लेंगे, मिल कर तय करते हैं. अभिभावकों को बराबर छुट्टियां मिलने से बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से हो सकता है.

बहुत जगहों पर बच्चों, बूढ़ों की देखभाल और घर के सारे कामकाज औरतों के ऊपर डाल दिए जाते हैं. लेकिन फिर भी इन कामों को वह दर्जा और सम्मान नहीं मिल पाता है जो बाहर जा कर किए जाने वाले कामों को मिलता है.

मैकिंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने अपने एक अध्ययन में पाया था कि भारत में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 10 गुना ज्यादा अवैतनिक काम करती हैं. अगर पुरुषों को भी पितृत्व अवकाश मिलता है तो इस से एक मां को तो भावनात्मक संबल मिलेगा ही, साथ में पुरुषों में सौम्यता और विनम्रता आएगी. पुरुष केवल साधन या सुविधाएं प्रदान करने भर को नहीं रह जाएंगे, बल्कि वे एक जिम्मेदार पिता और पति भी बनेंगे.

वैसे कई मामलों में खुद महिलाएं भी मातृत्व अवकाश लेना नहीं चाहतीं. उन्हें लगता है कि कहीं उस वजह से उन्हें कम पेशेवर या कम स्पर्धी न मान लिया जाए या मातृत्व अवकाश के कारण कहीं ऐसा न सोचने लगें कि उस के बिना काम चल सकता है. कई जगह तो नौकरी छूट जाने का भी डर बना रहता है. लेकिन अगर पतिपत्नी दोनों समान छुट्टियां लें तो यह डर खत्म हो सकता है.

एक भ्रामक धारणा यह है कि लड़कियों को जन्म से ही बच्चे पालना आता है. लड़कियां जब मां बनती  हैं और चीजें उन के सिर पर पड़ती हैं तब वे सारी चीजें सीख जाती हैं. लेकिन बच्चे के जन्म के समय मां भी उतनी ही अनपढ़ और नासम?ा होती है जितना पिता.

वैसे धीरेधीरे पितृत्व अवकाश को ले कर निजी क्षेत्र में भी जागरूकता बढ़ रही है. कुछ साल पहले खबर आई थी कि दिल्ली के एक निजी स्कूल के शिक्षक ने पितृत्व अवकाश की अपनी कानूनी लड़ाई जीत ली थी. इस शिक्षक ने अपने बच्चे पैदा होने पर स्कूल से 15 दिनों की छुट्टी ली थी. लेकिन काम पर लौटने पर पता चला कि उन का 15 दिनों का वेतन काट लिया गया.

पिछले साल ही फूड एग्रीगेटर कंपनी जोमैटो ने पितृत्व अवकाश के मामले में नई पहल की थी. उस ने बच्चे का पिता बनने वालों के लिए 26 दिन पेड लीव देने का निर्णय लिया था. दिलचस्प था कि कंपनी के मुताबिक, यह पितृत्व अवकाश सैरोगेसी, बच्चे गोद लेने और यहां तक कि समलैंगिक शादियों के मामले में भी कायम रहेगा.

अब जमाना पहले जैसा नहीं रह गया, जहां भरापूरा परिवार होता था. जन्म के बाद नवजात बच्चे के पालनपोषण के लिए दादी, चाची, बूआ हुआ करती थीं तो मां को उतनी समस्या नहीं होती थी. आज एकल फैमिली का जमाना है, जहां सिर्फ पति और पत्नी होते हैं और दोनों कामकाजी. इसलिए अब समय आ गया है कि मातृत्व अवकाश की तरह पितृत्व अवकाश के बारे में भी सोचा जाना चाहिए.

पिता को भी उतनी ही छुट्टियां मिलें जितनी मां को मिलती हैं क्योंकि बच्चे को 9 महीने गर्भ में रखने, प्रसव और स्तनपान के अलावा भी असंख्य ऐसे काम होते हैं. अभी तक ज्यादातर पिता सिर्फ वीर्यदान और संसाधन जुटाने में ही अपनी जिम्मेदारी निभाते आए हैं. जबकि बदलते वैश्विक सामाजिक परिवेश में मांएं मातृत्व की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ संसाधन जुटाने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं. ऐसे में पिता का भी दायित्व बनता है कि वे भी बच्चों के लालनपालन में अपनी भूमिका तय करें. समाज का भी कर्तव्य बनता है कि इस दायित्व को निभाने में उन की मदद करे.

दुनियाभर में 109 देश ऐसे हैं जहां पैटर्निटी लीव यानी बच्चा होने पर पुरुषों को छुट्टी दी जाती है. जरमनी इन में सब से आगे है. हालांकि, छुट्टी मिलने पर पिताओं को पूरा वेतन नहीं मिलता. कुल 14 महीने की छुट्टी में मातापिता आपस में मिल कर निर्धारित कर सकते हैं कि कौन कितना वक्त दफ्तर से दूर रहना चाहता है.

इस के बाद फिनलैंड, आइसलैंड, नौर्वे, दक्षिण कोरिया और स्वीडन का नंबर आता है. इस के विपरीत अमेरिका में न ही महिलाओं को पेड लीव मिलती है और न ही पुरुषों को. नौकरी से छुट्टी लेने पर मातापिता को वेतन नहीं दिया जाता.

भारत में महिलाओं को 12 हफ्ते की छुट्टी मिला करती थी जिसे साल 2017 में आए मैटरनिटी अमैंडमैंट बिल के बाद इसे बढ़ा कर 26 हफ्ते कर दिया गया है. इस के अलावा महिलाओं को घर से काम करने का विकल्प भी दिया गया है. लेकिन पुरुषों के लिए ऐसी कोई नीति अब तक देश में नहीं बनाई गई है.

Father’s Day 2023: पिता का दर्द- सुकुमार के बेटे का क्या रहस्य था?

टैलीफोन की घंटी से सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. रिसीवर उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘बाबा, मैं सुब्रत बोल रहा हूं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘हां बेटा, बोलो कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? रश्मि कैसी है?’’ एक सांस में सुकुमार ने कई प्रश्न कर डाले. ‘‘बाबा, हम सब ठीक हैं. आप की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘ठीक ही है, बेटा. अब इस उम्र में तबीयत का क्या है, कुछ न कुछ लगा ही रहता है. अब तो जिंदगी दवा के सहारे चल रही है. बेटा, बहुत दिन बाद आज मेरी याद आई है?’’ ‘‘बाबा, क्या करूं? इतनी व्यस्तता हो गई है कि समय ही नहीं मिल पाता. रोज ही सोचता हूं, फोन करूं परंतु किसी न किसी काम में व्यस्तता हो जाती है.’’ ‘‘सच कह रहे हो बेटा. जैसेजैसे तुम्हारी पदोन्नति होगी, जिम्मेदारियां भी बढ़ेंगी और व्यस्तता भी.’’ ‘‘बाबा, आप से एक बात कहना चाहता हूं, बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

‘‘कहो न, बेटा, बुरा मानने की क्या बात है?’’ ‘‘मैं सोच रहा था, मां के चले जाने के बाद आप बिलकुल अकेले हो गए हैं. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग भी आप से मिलने कभीकभार ही कोलकाता आ पाते हैं. अगर आप ठीक समझें तो कोलकाता का मकान बेच कर आप भी अमेरिका चले आएं. यहां गुडि़या और राज के साथ आप का समय भी कट जाएगा और हम लोग भी आप की ओर से निश्ंिचत हो सकेंगे.’’ सुब्रत का प्रस्ताव सुकुमार को ठीक ही लगा. सोचने लगे, ‘नौकरी से रिटायर हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं और कितने दिन चलूंगा. किसी दिन आंख बंद हो जाने पर सुब्रत मेरी अरथी को कंधा भी देने नहीं आ पाएगा.’ लिहाजा सुकुमार ने अपनी सहमति दे दी. सुकुमार ने पेपर में विज्ञापन दे कर मकान का सौदा कर लिया और निश्चित समय पर कोलकाता आ कर सुब्रत ने पैसों का लेनदेन कर लिया. पोस्ट औफिस से एमआईएस और बैंक में जो कुछ सुकुमार ने रखा था, उस का भी ड्राफ्ट सुब्रत ने अपने नाम से बनवा लिया. कोलकाता की संपत्ति बेचने के बाद वे लोग अमेरिका जाने के लिए तैयार थे.

निश्चित समय पर वे लोग दमदम एअरपोर्ट पर पहुंच गए. सुब्रत ने कहा, ‘‘बाबा, आप यहां सोफे पर बैठिए. मैं चैकइन कर के आता हूं, फिर आप को ले कर चलूंगा.’’ सोफे पर सुकुमार बैठ गए. उन का मन अतीत में खो गया. जिंदगी के एकएक पन्ने खुलने लगे. जिस मकान को इतने शौक से बनवाया था, उसे बेचते समय मन कचोट रहा था. सर्विस में रहते हुए सुकुमार ने पत्नी चंद्रा से कहा था, ‘तुम्हारी इच्छा हो तो कंपनी का क्वार्टर ले लेते हैं. आराम से रहेंगे,’ परंतु चंद्रा तैयार नहीं थी, कहने लगी, ‘आज हम आराम से रह लेंगे, परंतु रिटायर होने पर फिर तो फुटपाथ पर आना पड़ेगा. बच्चे कहां रहेंगे? चाहे जैसे भी हो, एक छोटामोटा मकान या फ्लैट कंपनी से ऋण ले कर ले लो. कम से कम बुढ़ापे में इधरउधर भटकना तो नहीं पड़ेगा.’

कितने शौक के साथ सुकुमार ने यह मकान बनवाया था. चंद्रा भी तो थोड़े ही दिन मकान में रह पाई. अचानक एक दिन रात को उस की तबीयत ज्यादा खराब हो गई. सुकुमार ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करवाया था. उस के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी चंद्रा को बचाया नहीं जा सका और उस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. चंद्रा की मौत के बाद सुब्रत और रश्मि कोलकाता आए और कुछ ही दिनों बाद वे वापस चले गए. उन के जाने के बाद इस बार सुकुमार बिलकुल अकेले हो गए थे. कहीं पर भी मन नहीं लगता था. इतने बड़े घर में अकेले रहना मानो घर काटने के लिए दौड़ता हो. खाना पकाने और झाड़ूपोंछा आदि के लिए एक महिला को पार्टटाइम रखा था, जो घर का सारा कामकाज करती थी.

अचानक सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. उन्हें लगा कि काफी देर हो चुकी है. सुब्रत चैकइन कर के अभी तक आया नहीं था, घड़ी पर नजर डाली, तो लगभग 2 घंटे का समय निकल गया था. सुकुमार ने अमेरिका जाने वाली फ्लाइट के काउंटर पर जा कर पूछा, ‘‘मैडम, मेरा नाम सुकुमार बनर्जी है. मेरे बेटे का नाम सुब्रत बनर्जी है. हमें अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी. वह चैकइन के लिए आया होगा?’’ काउंटर पर कार्यरत महिला ने यात्रियों की लिस्ट देख कर बताया, ‘‘जी हां, सुब्रत बनर्जी नाम के यात्री ने चैकइन किया था.

अमेरिका की फ्लाइट निकले हुए 1 घंटे से अधिक हो गया है.’’ ‘‘परंतु मैडम, उसी फ्लाइट से तो मुझे भी अमेरिका जाना था. ऐसा कैसे हो सकता है कि मुझे बिना लिए ही फ्लाइट चली गई?’’ ‘‘अंकलजी, जितने भी यात्री उस फ्लाइट में जाने वाले थे, सभी गए हैं. कोई यात्री छूटा नहीं है, अन्यथा हमारी ओर से घोषणा जरूर की जाती है,’’ महिला ने कहा. ‘‘तो क्या मुझे बिना लिए ही सुब्रत अमेरिका चला गया? इस का मतलब तो यह हुआ कि उस ने मेरा टिकट लिया ही नहीं था. यह कैसी जालसाजी है?’’

सुकुमार के पैरों तले मानो जमीन ही खिसक गई. वे सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गए. सोचने लगे, ‘सुब्रत क्या इतना निष्ठुर हो सकता है, जिस को पढ़ानेलिखाने में हम ने अपने जीवन के सुनहरे दिन न्योछावर कर दिए. हर तरह की कटौती कर के सुब्रत की पढ़ाईलिखाई में कोई भी कमी हम ने नहीं आने दी. लेदे कर सुब्रत हमारा इकलौता बेटा है. मैं और चंद्रा हमेशा ही उस की सुखसुविधा का खयाल रखते थे. आज जब मुझे उस के सहारे की जरूरत थी तो वह मुझे बेसहारा छोड़ कर धोखा दे गया.’ इसी उधेड़बुन में सुब्रत के बचपन की याद ताजा हो गई और एकएक दृश्य उन के मानसपटल पर प्रतिबिंबित होने लगा. बचपन से ही सुब्रत काफी मेधावी था. अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आता. उस की पढ़ाई से सुकुमार और चंद्रा संतुष्ट थे. इसलिए दोनों अपना पूरा ध्यान सुब्रत और उस की पढ़ाई की ओर लगाते थे. उन का एक ही उद्देश्य था कि सुब्रत पढ़लिख कर एक कामयाब इंसान बने. सुब्रत परीक्षाओं में पोजिशन लाता गया और हायर सैकंड्री में तो वह मैरिट लिस्ट में आया. सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने पर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी जाना चाहता था. सुकुमार की इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि उसे पढ़ने के लिए विदेश भेज सकें. सुब्रत को बाहर भेजने के चक्कर में सुकुमार ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले? किस के सामने हाथ नहीं पसारे?

तब तो बस एक ही धुन सवार थी कि सुब्रत किसी तरह अमेरिका चला जाए. इसी बात को ले कर उन की छोटे भाई संदीप से झकझक भी हो गई थी. उस ने कोई भी सहायता करने से मना कर दिया था. कहने लगा, ‘जब सामर्थ्य नहीं है, तो क्यों विदेश भेज रहे हो? क्या अपने देश में पढ़ाई नहीं होती? यहां पढ़ कर क्या बच्चे नौकरी नहीं करते? अरे, जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए. मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’ संदीप के आचरण से सुकुमार को काफी तकलीफ हुई. उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब मदद के लिए भाई के दरवाजे पर कदम नहीं रखेंगे. तभी से दोनों भाइयों के बीच एक कटुता आ गई थी और आपसी संबंध ही एक तरह से टूट गया. सुकुमार सोचने लगे कि चाहे जैसे भी हो, सुब्रत को बाहर भेजना ही है. कुछ सरकारी छात्रवृत्ति, कुछ पीएफ से ऋण और कुछ अन्य स्रोतों से व्यवस्था कर के आखिर में वे सुब्रत को विदेश भेजने में कामयाब हो गए. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी सुब्रत का एकेडैमिक कैरियर उज्ज्वल रहा, जिस से वहीं पर उसे जौब भी मिल गई और वह अपना ध्यान वहीं लगाने लगा.

सिक्योरिटी कर्मचारी की आवाज सुन कर सुकुमार का ध्यान टूटा. वह पूछने लगा, ‘‘सर, आप को कहां जाना है? मैं देख रहा हूं, काफी समय से आप यहां पर बैठे हुए हैं?’’ ‘‘बेटा, मैं कहां जाऊंगा, यह तो मैं भी नहीं जानता. मुझे बेटे के साथ अमेरिका जाना था, परंतु वह तो मुझे छोड़ कर चला गया है. अब तकदीर मुझे जहां ले जाएगी वहीं जाना पड़ेगा.’’ इतना कह कर सुकुमार खड़े हो गए और सोचने लगे, ‘इस मुसीबत की घड़ी में किस के पास जाऊं? कौन मुझे सहारा देगा?’ उन्होंने दिमाग पर काफी जोर दिया, परंतु कुछ भी सूझ नहीं रहा था. चहलकदमी करते हुए वे एअरपोर्ट से बाहर निकल गए और बस पकड़ने के लिए आगे बढ़ते गए. अचानक उन के जेहन में बचपन के दोस्त दीपंकर की याद आई. दोनों साथसाथ स्कूल व कालेज में पढ़े थे और उन का आपस में पारिवारिक संबंध भी था. वे सोचने लगे, ‘क्या दीपंकर मेरी मदद करेगा? क्या उस ने मुझे माफ कर दिया होगा? वैसे मैं ने तो कोई अपराध नहीं किया था. सिर्फ सुब्रत के कैरियर की वजह से मैं दीपंकर की पत्नीमालिनी की बात नहीं मान सका.

‘मालिनी चाहती थी कि उन की बेटी देवयानी की शादी सुब्रत से हो जाए, ताकि वह अपनी आंखों के सामने बेटी का घर बसता देख ले. मालिनी को मालूम था कि उसे जो बीमारी लग गई है, अब वह ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है. उस ने शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा था परंतु उसी समय सुब्रत विदेश जाने की तैयारी कर रहा था, इसलिए यह प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था और हम ने इतनी जल्दी में शादी करने से मना कर दिया था.’ फिर भी, दीपंकर के अलावा उसे कोई नहीं सूझ रहा था. सोचा, ‘चल कर देखने में हर्ज ही क्या है. हो सकता है, अब तक उस ने माफ कर दिया हो. उस के सामने रोऊंगागिड़गिड़ाऊंगा और अपनी मजबूरी बताऊंगा तो शायद उस का मन पिघल जाए. एक बार दीपंकर के घर चलता हूं, फिर जैसा होगा देखा जाएगा.’ यह सोचते हुए वे दीपंकर के घर की ओर चल दिए.

थोड़ी ही देर पश्चात दीपंकर के घर वे पहुंच गए और दरवाजे पर लगी कौल बैल का स्विच दबा दिया. कौल बैल की आवाज सुन कर दीपंकर की नौकरानी काजल ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’ ‘‘दीपंकर है घर में?’’ ‘‘जी हां, बाबू तो हैं घर में. पर आप कौन हैं?’’ ‘‘उन से कहो कि उन का दोस्त सुकुमार बनर्जी आया है.’’ काजल ने जा कर दीपंकर से कहा, ‘‘कोई सुकुमार बनर्जी नामक सज्जन आप से मिलना चाहते हैं. उन्होंने आप को अपना मित्र बताया है.’’ सुकुमार बनर्जी का नाम सुनते ही दीपंकर ने कहा, ‘‘उन्हें अंदर बुला कर सोफे पर बैठाओ.’’ जैसे ही दीपंकर ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, सुकुमार के धैर्य का बांध टूट गया और वे फूटफूट कर रोने लगे. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. जबान नहीं खुल रही थी. उन का मन अपने बचपन के साथी के सामने जीभर कर रो लेने को कह रहा था. दीपंकर ने पास जा कर सुकुमार के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘सुकुमार, क्या बात है? इस तरह जारजार रोए जा रहे हो? यह क्या हालत बना रखी है?’’ सुकुमार की घिग्घी बंध गई. जबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था.

था तो सिर्फ आंसुओं का सैलाब. दीपंकर ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लो, पहले थोड़ा जल पियो. शांत हो. अब तुम मेरे पास हो, अपने जिगरी दोस्त के पास.’’ सुकुमार ने पानी का गिलास ले कर एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया. उन्हें लगा कि उन का तनमन शीतल हो रहा है. तनाव भी धीरेधीरे कम हो रहा है और उन्होंने एक गहरी सांस ली. और बोल उठे, ‘‘यार, मैं क्या बताऊं तुझे. इस उम्र में आ कर मैं अपनों के द्वारा ही छला गया. मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इस प्रकार का दिन देखना पड़ेगा, जहां चारों तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार है.’’ ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. कुछ खोल कर भी बताओगे या इसी प्रकार सिर्फ पहेलियां ही बुझाते रहोगे. तुम्हारी हालत देख कर मेरे जेहन में तरहतरह के प्रश्न उठने लगे हैं.’’ इस के बाद सुकुमार ने सारी घटना दीपंकर के सामने बयां कर दी. दीपंकर ने गहरी सांस लेते हुए सुकुमार की एकएक बात बड़े ध्यान से सुनी. अब सुकुमार के इस हालत में पहुंचने का कारण स्पष्ट हो चुका था. दीपंकर कहने लगे, ‘‘यह कैसी विडंबना है?

जिस पिता ने अपने बेटे को पढ़ाने और एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया हो उस के साथ ऐसा सुलूक? उस को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अपनों से भी जिस ने संबंध खराब कर लिए, उसे ऐसा करते हुए जरा सा भी संकोच नहीं हुआ? क्या मांबाप इसी दिन के लिए अपने बच्चों को पालतेपोसते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें धोखा मिले? आजकल के बच्चे कितने स्वार्थी हो गए हैं? मांबाप अपने 4 बच्चों को पालपोस कर, पढ़ालिखा कर कामयाब बनाते हैं, परंतु 4-4 बच्चे एक मांबाप की देखभाल नहीं कर सकते. जब उन्हें सहारे की जरूरत होती है तो बच्चे उन के साथ इस तरह का सुलूक करते हैं.’’

दीपंकर का मन ग्लानि से भर गया. सोचने लगे, इस से अच्छी तो लड़कियां होती हैं, जो पराए घर जा कर भी जीवनभर मांबाप के सुखदुख को बांटने की कोशिश करती हैं. उन्हें अपनी बेटी देवयानी की याद आ गई. दूर रहते हुए भी बाबा का हालचाल पूछे बगैर सोती नहीं. फोन पर ही एक हजार हिदायतें देती रहती है-बाबा, नाश्ता व भोजन समय पर कर लेना, दवा समयसमय पर लेते रहना, सुबहशाम पार्क में टहलना जरूर, सेहत का खयाल रखना, खाली समय का उपयोग पुस्तकें पढ़ कर, टीवी देख कर करना, आजकल क्रिकेट का मैच भी हो रहा है, उसे देखना… आदिआदि. सुकुमार कहने लगे, ‘‘दीपंकर, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बेहतर हो मुझे किसी वृद्धाश्रम में भेज दो.’’ ‘‘क्या कह रहे हो, सुकुमार? मेरे रहते तुम्हें वृद्धाश्रम में जाने की जरूरत नहीं है. यहां मैं भी अकेला रहता हूं. शादी के बाद देवयानी के पूना चले जाने से मैं भी तो अकेला हो गया हूं. मेरी मदद करने के लिए काजल है, जो चौबीसों घंटे मेरे सुखदुख का खयाल रखती है. अच्छा है, तुम आ गए हो. अब हम दोनों का समय आराम से कट जाएगा. पुरानी बातें हमें जीवन जीने की प्रेरणा देंगी. मुझे उम्मीद है, तुम ना नहीं करोगे.’’ सुकुमार का सिर कृतज्ञता से झुक गया था. उन्हें लगा कि आकाश के गहन अंधकार में आशा की एक किरण दिखाई दे रही है.

Father’s Day Special- चौथापन: बाबूजी का असली रूप क्या था?

बेटेबहू और पोतेपोतियों की तरफ से उपेक्षित व्यवहार और बारबार वृद्ध होने का एहसास कराए जाने पर बाबूजी टूट चुके थे. लेकिन एक दिन उन्होंने मुन्ना को अपना असली रूप दिखाया तो उस के होश ही उड़ गए.

चावल के आटे से बनाएं पौष्टिक राइस रोल

आज नाश्ते में क्या बनाऊँ ये यक्ष प्रश्न हर गृहिणी के सामने प्रतिदिन सुबह बहुत बड़ी समस्या बनकर खड़ा रहता है. रोज रोज तला भुना खाने से आजकल बड़े ही नहीं बच्चे भी नाक भौं सिकोड़ने लगे हैं. कोरोनाकाल में हर महिला आज अपने परिवार के सदस्यों को पौष्टिकता से भरपूर खाद्य पदार्थ खिलाना चाहती है तो आज हम आपको एक ऐसा ही नाश्ता बनाना बता रहे हैं जो बनाने में बहुत आसान होने के साथ साथ बहुत पौष्टिक भी है. इसे हम चावल के आटे से बनाएंगे. चावल का आटा बाजार में बड़ी ही सुगमता से मिल जाता है परन्तु आप इसे घर पर भी बड़ी आसानी से इस प्रकार बना सकतीं हैं.
ऐसे बनाएं चावल का आटा

1 किलो घर में प्रयोग होने वाले चावल को 2 लीटर पानी में रात भर के लिए भिगो दें. सुबह इनका पानी बदलकर पुनः 2 लीटर पानी डाल कर भिगो दें. रात को भी यही प्रक्रिया दोहराएं. सुबह छलनी से पानी निकालकर चावलों को एक साफ सूती कपड़े पर छांव में ही 2 दिन तक सुखाएं. अब इन्हें मिक्सी में पीसकर चलनी से छान कर एयरटाइट डिब्बे में भरकर प्रयोग करें. चावल का 12 घण्टे बाद पानी बदलना आवश्यक है अन्यथा उनमें बदबू आ जायेगी.

राइस रोल
कितने लोंगों के लिए 6
बनाने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
चावल का आटा 2 कप
घी 1 टेबलस्पून
पानी 1/2 लीटर
नमक 2 टीस्पून
शिमला मिर्च 1 बारीक कटी
किसी गाजर 1
बारीक कटा प्याज 1
कटी हरी मिर्च 4
बारीक कटा टमाटर 1
कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1/2 टीस्पून
जीरा 1/4 टीस्पून
गरम मसाला पाउडर 1/4टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/4टीस्पून
तेल 2 टीस्पून

विधि
पानी में 1/2 चम्मच नमक और 1/2 टीस्पून घी डालकर उबालें. अब पानी को चावल के आटे में धीरे धीरे मिलाएं. केवल उतना ही पानी मिलाएं जितने में आटा मुठ्ठी में बंधने लगे. इसे आधा घण्टे के लिए ढककर रख दें.

आधे घण्टे बाद चावल के आटे को शेष घी डालकर हाथों से मसलकर चिकना कर लें. इसमें सभी सब्जियां और मसाले मिलाकर तीन चार मोटे मोटे रोल बना लें. एक भगौने में 2 लीटर पानी गर्म करें. उस पर छलनी रखकर तीनों रोल रख दें. 20 मिनट तक ढककर पकाएं. 20 मिनट बाद इन्हें ठंडा करके आधे आधे इंच के गोल टुकड़ों में काट लें. एक नॉनस्टिक पैन में तेल डालकर इन रोल्स को तेज आंच पर सुनहरा होने तक शैलो फ्राई करें. टिश्यू पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

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