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अगर तुम न होते : अपूर्व ने संध्या मैडम की तस्वीर को गले से क्यों लगाया?

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की पत्नी ने मैनेजर पर लगाया बेटी को लेकर ये आरोप

एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी की लाइफ में इन दिनों काफी ज्यादा उथल-पुथल चल रही है, नवाज की एक्स वाइफ आलिया ने हाल  ही में एक्टर पर रेप के आरोप लगाए थें, इसके बाद से उनकी लाइफ में काफी ज्यादा परेशानी चल रही थीं.

जिसके बाद से एक्टर ने कहा था कि मुझे हर जगह गलत बताया जा रहा है, मुझे कोई सफाई नहीं देनी है, नवाज ने अपनी पत्नी को लेकर कहा था कि वह उसके बच्चों को भी बंधक बनाकर रखी है और वह सिर्फ पैसों के लिए ऐसा कर रही है. वह मेरे बच्चों को स्कूल भी नहीं भेज रही है.

वहीं आलिया ने नवाज के इस इंटरव्यू पर रिएक्ट करते हुए कहा है कि तुम एक गैर जिम्मेदार पिता हो,जिसके अपनी नबालिक बेटी को होटल में मैनेजर के साथ ठहराया था, मैनेजर ने उसे गलत तरीके से उसे गले लगाया था.मेरी बेटी उसके साथ असहज महसूस कर रही थी. आप हमारी बेटी के साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं.

आलिया ने नवाज को 10 लाख रुपये के बयान पर कहा कि मुझे हर महीने दुबई में पैसे के लिए भीख मांगनी पड़ती थी.10 तो छोड़ों उन्होंने हमें 3-4 लाख रुपय तक नहीं दिए हैं. हालांकि इस बयान के बाद से अभी तक नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.

रणबीर कपूर ने आलिया की तारीफ में कही ये बात

बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर  अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बने रहते हैं,  लेकिन इन दिनों वह अपनी पत्नी आलिया को लेकर काफी ज्यादा तारीफ करते नजर आएं हैं,  रणबीर कपूर ने आलिया भट्ट को लेकर कहा है कि आलिया भट्ट एक बेहतरीन मां है, वह अपनी बेटी का काफी ज्यादा ध्यान रखती हैं.

आगे उन्होंने कहा कि मैं डायपर बदलने का काम आसानी से कर लेता हूं, वहीं आलिया भट्ट एक अच्छी मां की तरह अपनी बेटी का फीड कराती हैं, वह अपनी बेटी का बेहतरीन  तरीके से ध्यान रखती हैं, मैं उन दोनों को खुश देखकर खुश रहता हूं.

 

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इसके साथ ही रणबीर कपूर अपनी अपकमिंग फिल्म तू झूठी मैं मक्कार को लेकर भी काफी ज्यादा चर्चा में बने हुए हैं. रणबीर कपूर के साथ इस फिल्म में श्रद्धा कपूर भी हैं. इन दोनों की जोड़ी लोगों को खूब पसंद आ रही है.

ऐसा पहली बार हुआ है जब रणबीर कपूर अपनी बेटी राहा को लेकर बात करते नजर आएं हैं, रणबीर कपूर की बेटी राहा काफी ज्यादा सुंदर हैं उनके बात से लगा.

वहीं यह पहली बार हुआ है कि रणबीर कपूर ने अपनी पत्नी और बेटी को लेकर बात करती नजर आए हैं. रणबीर कपूर अपनी लाइफ को लेकर बहुत ज्यादा प्राइवेसी रखते हैं.

चटनी -भाग 3 : रेखा को अचानक सुरुचि की याद क्यों आ गई?

सुरुचि कालेज की पढ़ाई और नौकरी साथसाथ करने लगी. उस की कड़ी मेहनत रंग लाई और 3 साल बाद उस ने स्नातक की डिग्री प्राप्त कर ली, वह भी पहेली श्रेणी से. इतना ही नहीं, उस ने अपनी कक्षा में टौप भी किया. वह बहुत खुश थी क्योंकि वह अपने लक्ष्य की ओर एक कदम बढ़ा चुकी थी. अब उस ने ‘बैंकिंग एंड फाइनैंस कोर्से’ में एडमिशन ले लिया. ऋण अधिकारी बनने के लिए यह कोर्स करना जरूरी था. इस कोर्स को करते समय उस ने फिर से वही भेदभाव महसूस किया जो उसे डिपार्टमैंटल स्टोर और कालेज में देखने को मिला था. लेकिन सुरुचि ने अपने जीवन की लड़ाई को जारी रखा.

कोर्स पूरा होने के 3 महीने बाद सुरुचि को दिल्ली के ही एक प्रतिष्ठित बैंक में ऋण अधिकारी की नौकरी मिल गई. दिल्ली आने के 8-10 सालों में उसे बहुत से कटु अनुभव हुए पर उस ने अपना लक्ष्य नहीं छोड़ा.

4-5 साल बाद सुरुचि का लोन मैनेजर के रूप में पहला दिन था. वह बहुत खुश थी क्योंकि उस का सपना पूरा हो गया था. वह आज उस जगह थी जहां का सपना उस ने देखा था. सुबह से 5 लोग लोन की प्रक्रिया में उस से मिल चुके थे. कुछ देर बाद बैंक में एक दंपती दाखिल हुआ. सुरुचि को वह दपती जानापहचाना लगा. लेकिन फिर भी वह उन्हें पहचानने में असफल रही. कुछ देर सोचने के बाद उसे याद आया कि ये तो रेखा और मनोज शर्मा हैं जिन के घर में वह नौकरानी का काम किया करती थी. सुरुचि को एक अधिकारी से पता चला कि वे पिछले 2 हफ्ते से बैंक के चक्कर काट रहे है. वे बैंक से कार लोन लेना चाहते है लेकिन किसी वजह से उन का कार लोन पास न हो सका. ऋण अधिकारी के पद पर बैठी एक महिला को देखते ही वे दोनों उस ओर आए. “मैडम, हम आप के बैंक से कार लोन लेना चाहते हैं. हमारे पास सभी जरूरी कागज हैं. आप इन्हें देख ले और हमारी मदद करें.’’

दरअसल, पढ़ाईलिखाई और शादी के बाद सुरुचि की पर्सनैलिटी पूरी तरह बदल गई थी. इसलिए वे उसे पहचान न सके. लेकिन सुरुचि उन्हें पहचान चुकी थी.

सुरुचि यह सोचने लगी कि यही वह मौका है जब वह इन से अपने भेदभाव का बदला ले सकती है. लेकिन दूसरी ओर उस की पढ़ाईलिखाई थी जो उस को किसी भी तरह भेदभाव करने से रोक रही थी. अपनी नकारात्मक सोच से निकलते हुए उस ने सभी जरूरी कागज वैरीफाई कर कार लोन पास कर दिया. इस समय तक लंच भी हो चुका था. चूंकि सुरुचि का घर बैंक के पास ही था, इसलिए वह खाना खाने घर ही जाया करती थी.

जब वह बाहर गई तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. रेखा और मनोज अपनी स्कूटी पर बैठे सोच रहे हैं कि वे कैसे घर जाएं, तभी वहां सुरुचि आ गई और उस ने सोचा, ये भीग जाएंगे, क्यों न इन्हें मैं अपनी कार से घर छोड़ दूं.

‘‘आइए, मैं आप को घर छोड़ देती हूं, बहुत तेज बारिश हो रही है, आप भीग जाएंगे,’’ सुरुचि ने कहा. ‘‘नहींनहीं, हम चले जाएंगे,” मनोज ने जवाब दिया.

‘‘देखिए, बारिश बहुत तेज हो रही है और ऐसे में स्कूटी से जाने पर आप दोनों भीग जाएंगे जिस से आप बीमार भी पड़ सकते हैं. मेरी विनती है कि आप मेरे साथ चलें.’’

यह सुन कर रेखा और मनोज एकदूसरे को देखने लगे और आंखों ही आंखों में इशारा करते हामी भरी और सुरुचि की कार में बैठ गए. करीब 10 मिनट के बाद कार तीनमंजिला घर के सामने आ कर रुकी.

‘‘सर, मुझे लगता है, बारिश अभी नहीं रुकेगी. आइए, आप लोग मेरे घर चलिए. हम साथ में खाना खाते हैं. इस के बाद मैं आप को आप के घर छोड़ दूंगी,’’ सुरुचि ने कहा.

“नहींनहीं मैडम, इस की कोई जरूरत नहीं है. आप का बहुतबहुत धन्यवाद,” मनोज ने कहा. “मैडम, मुझे बहुत अच्छा लगेगा अगर आप लोग मेरे साथ खाना खाएगे,’’ सुरुचि रेखा की ओर देखती हुई बोली.

सुरुचि अब उन्हें अपने घर के अंदर ले आई. आप लोग बैठें, मैं पानी ले कर आती हूं,” यह कहती हुई सुरुचि रसोईघर में चली गई.

‘वाह, कितना सुंदर घर है, यह तो हमारे घर से भी बड़ा है, यहां की तो पेंटिग भी हमारे घर की पेंटिग से बड़ी है और वह डाइनिंग टेबल तो देखो, ऐसे लग रहा है जैसे विदेश से मंगाया गया हो. काश, हमारे पास भी ऐसी डाइनिंग टेबल होती.’

“लीजिए, पानी पीजिए,” ‘पानी के 2 गिलास उन की तरफ करती हुई सुरुचि ने कहा.

रेखा और मनोज ने पानी पिया और अपने बारे में बताया. सुरुचि उन के बारे में पहले से जानती थी, इसलिए उसे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. जब रेखा ने उसे अपने बारे में बताने को कहा तो सुरुचि ने बताया, ‘‘6 महीने पहले शादी हुई है. पति बेंगलुरु के एक होटल में मैनेजर हैं. शादी के बाद उन्होंने अपनी पिछली बचत और लोन से यह कार व मकान लिए हैं.” इस के बाद सुरुचि खाना लेने रसोई में चली गई.

“कितनी भली लडक़ी है यह. इस ने पहले हमारा रुका हुआ काम करवाया और अब हमें खाना खाने के लिए आमंत्रित किया. हो न हो, यह किसी बड़े घर की होगी,” रेखा ने मनोज से कहा.

“आइए, खाना खाते हैं,” कहती हुई सोफे पर बैठे रेखा और मनोज को सुरुचि ने खाने की टेबल पर आमंत्रित किया. खाने में सुरुचि ने मटरपनीर की सब्जी, चटनी, खीरे का रायता और रोटी बनाई थी. खाना परोसते हुए सुरुचि ने कहा, “आप लोग खाइए, मैं अभी आती हूं.”

जैसे ही रेखा ने चटनी को चखा वैसे ही उस के मन में कई प्रश्नों ने घर कर लिया, यह चटनी, यह चटनी तो बिलकुल वैसी ही है जैसी सुरुचि शांता को बताया करती थी और फिर वह बनाती थी. वही रंग, वही स्वाद. ऐसा कैसे हो सकता है, कोई इतनी नकल कैसे कर सकता है. “सुनो, क्या आप ने इस लडक़ी का नाम पूछा,” हैरान होते हुए रेखा ने मनोज से पूछा.

“नहीं, इस सब का तो वक्त ही नहीं मिला. जैसे ही हमारा बैंक का काम हुआ, हम घर की ओर निकल पड़े कि तभी बारिश होने लगी और इस भली लडक़ी ने हमें घर छोडऩे के लिए कहा. इस बीच, मैं उस का नाम नहीं पूछ सका.”

सुरुचि रसोई में खड़ी हो कर ये सब बातें सुन रही थी. जैसे ही वह खाने की टेबल पर आई, रेखा उसे हैरानी से देखती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

“सुरुचि जाटव,” यह सुनते ही रेखा और मनोज के पैरोंतले जमीन खिसक गई. वे हैरान हो कर एकदूसरे को देखने लगे.

‘‘हां. मैं वही हूं जो आप लोग समझ रहे हैं,’’ सुरुचि ने कहा.

‘‘लेकिन तुम, तुम यहां और इतना बड़ा घर, कैसे?’’ रेखा ने हैरानी से पूछा.

‘‘कहते हैं न, मेहनत से सब हासिल किया जा सकता है और देखिए, आज जो कुछ भी मेरे पास है वह सब मेरी मेहनत का ही नतीजा है. आप ने तो कभी मुझे खाने में आलूमटर की सब्जी भी नहीं दी और देखिए, आज मैं अपनी पसंद का खाना खा रही हूं, अपनी पसंद के कपड़े पहन रही हूं, यह सब मेरी जाति से नहीं है, मेरी मेहनत से है. आप ने मेरी जाति को चटनी से आंका था जो कि किसी भी लिहाज से सही नहीं था. मैं अपनी मेहनत से कहां से कहां पहुंच गई. खैर छोडि़ए, चलिए चटनी खाइए.”

यह सुनते ही रेखा और मनोज शर्म से पानीपानी हो गए. अब वे समझ चुके थे कि सामाजिक भेदभाव कर के उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है.

बदलते मौसम : आदित्य की जिंदगी में क्या बदलाव आ रहे थें?

खामोशी के बाद-भाग 1: आखिर क्यों उसे अपनी बेटी से नफरत थी?

आज भोर की उजास ने कमरे में प्रवेश नहीं किया था. खिडकी से परदे को सरका कर सूरज की किरणों को कमरे में आमंत्रित करने वाली अंकिता अब इस घर में नहीं थी. पलंग के बगल के गोल टेबल पर आज चाय का प्याला भी नहीं था. आज से नया जीवन शुरू हो रहा था, मेरा भी उस का भी. 7 बज गए थे. सुबह 6 बजे उठ कर मौर्निंग वौक जाने का क्रम भी आज टूट गया था.

पिछले 15 सालों से किसी सीखीसिखाई विधि से मेरे आगेपीछे घूमा करती थी अंकिता. कभी कोई संबोधन नहीं था उस के मुंह में मेरे लिए. न ही मैं कभी उसे कोई संबोधन दे पाया. एक विचित्र रिश्ता जोड़ गई थी सुमेधा.

अंकिता के लिए सुमेधा मां थी। इसी संबोधन से उसे पुकारा करती थी वह। रोहित भैया था और मैं कुछ भी नहीं. मेरे लिए अंकिता सदैव पराई ही रही. मैं बेहद कठोर था इस बात को ले कर कि मेरे निर्णय का सदैव पालन हो. सुमेधा ने अपने जीवनकाल में कभी ऐसा कोई काम नहीं किया था जो मेरे चेहरे के भाव बदल दे. बेटे रोहित को एक साहसी और जिम्मेदार इंसान बनाया उस ने. पिछले साल ही रोहित कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स के लिए लंदन गया है. कोर्स पूरा होने के बाद वहीं का स्थायी निवासी होने की उस की इच्छा है.

रोहित के इस निर्णय पर न मुझे न सुमेधा को कोई आपत्ति थी. बच्चे को अपने निर्णय और आकांक्षा के अनुरूप जीने देना है, इस का निर्णय हम ने काफी पहले ही कर लिया था। मेरी हर बात को शांति से स्वीकार करने वाली सुमेधा ने जीवन में एक ही बार मेरा विरोध किया था अंकिता के लिए. 16 साल पहले अपनी बीमार सहेली को देखने गई सुमेधा जब अस्पताल से लौटी तो इस 7 साला बच्ची का हाथ थामे घर आई थी, यह कहते हुए कि इस का कोई नहीं। उस ने निर्णय सुनाया था कि वह यहीं रहेगी… इसी घर में.

‘‘तुम्हारी सहेली?‘‘ मैं ने पूछा था.

‘‘वह नहीं रही,” भर्राए स्वर में सुमेधा ने जवाब दिया. लड़की की पकड़ उस के हाथों में सख्त होने लगी थी. एक हाथ से उस ने लडकी का हाथ थाम रखा था और दूसरे हाथ से उस की हथेली को सहला रही थी. लड़की लगातार रोए जा रही थी.

सुमेधा के चेहरे का भाव सख्त था, कुछ ऐसा कि मुझे यह एहसास होने लगा कि वह इस लङकी को अब अपने से दूर नहीं करेगी.

‘‘इस का पिता नहीं है क्या?‘‘ सुमेधा पर मैं ने क्रोध से चिल्लाते हुए पूछा था और भयभीत सी अंकिता सुमेधा के पल्लु में छिप गई थी.

प्रेम पर भगवाइयों की काली छाया

आगरा, 14 फरवरी, 2022 आगरा में वैलेंटाइन डे पर छात्राओं से अभद्रता. हिंदूवादी संगठनों ने पार्कों में पकडे लड़केलड़कियां, वीडियो बनाए. मोहब्बत की नगरी आगरा में वैलेंटाइन डे पर कुछ संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पार्कों में छात्रछात्राओं को पकड़ लिया. उन के साथ अभद्रता की गई. राष्ट्रीय बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने दोपहर को शहर के पालीवाल पार्क में लड़केलड़कियों को पकड़ लिया. उन के बैगों की तलाशी भी ली गई, बाद में पुलिस भी पहुंच गई.

छात्राओं के घर वालों से फोन पर बात की, इस के बाद जाने दिया. इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने रामबाग, महताब बाग और अन्य पार्कों में प्रेमी जोड़ों की जम कर खबर ली. उन के वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिए. पालीवाल पार्क में कार्यकर्ताओं ने छात्रछात्राओं को भारतीय संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया. इस के बाद पार्कों में प्रेमी जोड़ों की संख्या कम हो गई. कन्नौज, 14 फरवरी, 2022 वैलेंटाइन डे पर शहर के लोहिया पार्क में चहलपहल दिखाई दे रही थी. कई प्रेमी जोड़े सुबह से ही पार्क गए थे. उन्होंने गुनगुनी धूप में हरी घास पर बैठ कर अपने प्रेम का इजहार किया.

उसी समय बजरंग दल के कार्यकर्ता वंदेमातरम तथा भारत माता की जय के नारे लगाते पहुंच गए तो प्रेमी जोड़े वहां से चुपचाप खिसक लिए. इसी तरह शहर के बाबा गौरी शंकर मंदिर में बने पार्क में भी कई प्रेमी जोड़े पहुंचे लेकिन वहां मंदिर प्रशासन ने पार्क बंद करवा दिया. भोपाल, 13 फरवरी, 2022 वैलेंटाइन डे पर प्रेमी जोड़ों के प्यार पर शिवसेना का पहरा रहा. नूतन कालेज स्थित शिव मंदिर पर शिवसेना कार्यकर्ताओं ने प्रेमी जोड़ों को सबक सिखाने के लिए कालिका शक्तिपीठ मंदिर में डंडों की पूजा की और चेतावनी दी कि अगर कोई पार्क में कुछ करते दिखे बेबी, बाबू और शोना तो तोड़ देंगे शरीर का कोनाकोना. शिवसेना कार्यकर्ताओं ने यह भी कहा कि वैलेंटाइन डे के दिन हम पंडितजी, बैंड और घोड़ी साथ में ले कर चलेंगे. इस दौरान प्रेमी जोड़े कहीं भी अश्लीलता करते हुए पकड़े गए तो हम वहीं पर उन की शादी करा देंगे.

भोपाल में शिवसेना ने पब, रैस्टोरैंट और होटल संचालकों को भी चेतावनी देते कहा है कि वे वैलेंटाइन डे पर कोई आयोजन न करें. मुजफ्फरपुर, 14 फरवरी, 2022 वैलेंटाइन डे के मौके पर बिहार के मुजफ्फरपुर के मिठनपुरा इलाके के एक मौल में कुछ लोगों द्वारा एक प्रेमी जोड़े के साथ मारपीट करने का मामला सामने आया. रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ शरारती तत्त्व वैलेंटाइन डे का विरोध कर रहे थे. उन्होंने फूड कोर्ट पहुंच कर जोड़े को वहां से भगाने की कोशिश की. उसी दौरान विवाद हो गया जिस के बाद उन्होंने प्रेमी जोड़े की पिटाई कर दी. होटल के जीएम संजय कुमार ने बताया कि अचानक बजरंग दल के 8-10 कार्यकर्ता नारेबाजी करते हुए होटल के अंदर आ गए और ग्राहकों से हाथापाई करने लगे.

ग्वालियर, 14 फरवरी, 2022 चिडि़याघर में वैलेंटाइन डे पर घूमने आए प्रेमी युगलों पर वैलेंटाइन डे विरोधियों का कहर टूट पड़ा. इन लोगों ने चिडि़याघर में न केवल उत्पात किया बल्कि जो भी जोड़े मिले उन से मारपीट व अभद्रता भी की. काफी देर तक हंगामा होता रहा. बाद में पुलिस व चिडि़याघर प्रबंधन सक्रिय हुआ. लेकिन उपद्रव की खबर फैलते ही बाद में प्रेमी जोड़े नहीं आए. पिछले साल के ये चंद उदाहरण बताते हैं कि इस साल भी यही सबकुछ होगा बल्कि और ज्यादा हिंसक भी होने का डर है क्योंकि भगवाइयों की तूती इन दिनों देशभर में बोल रही है. प्यार के इन दुश्मनों को वैलेंटाइन डे का इंतजार अब प्रेमी जोड़ों से ज्यादा रहता है.

वजह, इस दिन इन्हें धर्म और संस्कृति की आड़ में दहशत फैलाने व खुलेआम गुंडागर्दी करने का लाइसैंस मिल जाता है. कौन हैं ये लोग इन हुड़दंगियों को हर कोई जानता है कि ये लोग बजरंग दल, शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद और दूसरे छोटेबड़े कट्टरवादी हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ता होते हैं. गले में ?ालता भगवा गमछा, माथे पर लंबा तिलक, भगवा लिबास और जबां पर हरहर महादेव व जय श्रीराम के नारे इन की दूसरी पहचान है. वैलेंटाइन डे के दिन इन के हाथों में तेलपिलाई लाठियां होती हैं जिन की पूजा ये किसी न किसी मंदिर में कर प्यार करने वालों को सबक सिखाने के लिए निकल पड़ते हैं. शिकारियों की तरह ये उन्मादी, जिन में युवा ज्यादा होते हैं, पार्कों, होटलों, पबों, बीच और हर उस जगह गश्त लगाते और गुंडागर्दी करते नजर आते हैं, जहां प्रेमी अपने प्यार का इजहार कर सकते हों.

दहशत फैलाना है मकसद भगवा गैंग के इस यूथ विंग का मकसद दहशत बनाए रखना होता है जिस से लोग इन के खोखले उसूलों व इशारों पर नाचते रहें. लोगों को डराधमका कर ये और इन के धार्मिक आका तरहतरह से आम और खास लोगों से पैसा वसूलने के उपाय रचते रहते हैं. इस बाबत वैलेंटाइन डे इन के लिए मुफीद साबित होता है. युवा पीढ़ी इन के मुताबिक चलेगी तो इन के धर्मगुरुओं और राजनीतिक आकाओं का हिंदू राष्ट्र का एजेंडा भी पूरा होता है. सनातन धर्म प्यार और प्यार करने वालों का कितना बड़ा दुश्मन है, यह हर साल 14 फरवरी को साबित होता रहता है. आमतौर पर अर्धशिक्षित ये लोग फुरसतिए होते हैं जो संगठित हो कर प्यार करने वालों को डराते रहते हैं. पुलिस प्रशासन और राजनेता तो रहते ही हैं साथ ही, खासतौर से लड़कियों के रूढि़वादी पेरैंट्स का भी अप्रत्यक्ष सपोर्ट इन्हें मिला रहता है, इसलिए ये लोग वैलेंटाइन डे पर लाठियों को तेल पिला कर उन की पूजा भी करते हैं. युवतियों पर ज्यादा कहर शूद्र और मुसलमानों से भी पहले इन के निशाने पर युवतियां होती हैं.

वह महज इसलिए कि इन की और इन के धर्म की नजर में उन्हें प्यार करने का हक नहीं है. सनातन धर्म महिलाओं का कितना बड़ा दुश्मन और शोषक है, यह उन के मनुस्मृति सहित तमाम धर्मग्रंथों में इफरात से लिखा है कि महिलाओं को कब क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. अगर लड़कियां अपनी मरजी से प्यार करें तो ये कानून और संविधान तो वैसे भी ताक में रखते ही हैं फिर व्यक्तिगत स्वतंत्रता तो दूर की बात है. वैलेंटाइन डे पर लड़कियां अपने प्यार का इजहार कर कोई गुनाह नहीं करतीं लेकिन चूंकि हिंदू धर्म की निगाह में औरतों की आजादी और इच्छा के कोई माने नहीं, इसलिए ये लोग जल्लाद बन कर उन्हें सजा देने को निकल पड़ते हैं.

इन दिनों देशभर में लव जिहाद को ले कर आएदिन हल्ला मचता रहता है. अगर कोई हिंदू लड़की मुसलमान लड़के से प्यार करे तो इन का धर्म और संस्कृति खतरे में पड़ जाता है, लेकिन अफसोस तो इस बात का है कि ये हिंदू लड़की को हिंदू लड़के से भी प्यार करने का हक नहीं देते. वैलेंटाइन के दिन पकड़े गए अधिकतर कपल्स हिंदू ही होते हैं. दरअसल इन के दिमागों में जातिवाद भी तबीयत से ठुंसा पड़ा है. ये लोग नहीं चाहते कि इंटरकास्ट मैरिज हो क्योंकि धर्म इस की इजाजत नहीं देता. अगर इंटरकास्ट मैरिज आम हो जाएंगी तो युवाओं के दिलोदिमाग से धार्मिक पाखंड और इन का खौफ खत्म हो जाएगा और फिर इन की दुकानें खतरे में पड़ जाएंगी.

अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कई बार भाजपा और आरएसएस को निशाने पर लेते हुए जिस नफरत का जिक्र किया वह इसी, मनुवादी कह लें या जातिवादी, मानसिकता को ले कर था. प्यार ?ाकता नहीं तमाम हथकंडों के बाद भी अच्छी बात यह है कि प्रेमी इन के सामने ?ाक नहीं रहे. ये लोग कितनी ही मनमानी और गुंडागर्दी कर लें, वैलेंटाइन डे हर साल और जोरशोर से मनता है. वजह साफ है कि वह प्यार ही है जो लोगों को जोड़ता है, उन्हें जीने का सलीका और अनुशासन सिखाता है, एनर्जी देता है और एकदूसरे को जोड़े रखता है फिर चाहे वे सरहदें ही क्यों न हों.

कई हिंदी फिल्मों में आखिर में प्यार को जीतते इसीलिए दिखाया गया है कि यह वाकई एक पाक एहसास और जज्बा है जिस में जाति, धर्म, अमीरीगरीबी और दीगर फैक्टर्स के कोई माने नहीं होते. इस के बाद भी वैलेंटाइन डे पर भगवा कहर प्रेमियों पर टूटता रहता है तो यह एक खास तरह की साजिश आतंक फैलाए रखने की है जो बहुत ज्यादा दिनों तक चलेगी, ऐसा कहने व सोचने की कोई वजह नहीं क्योंकि प्रेमियों के लिए तो प्यार से बड़ा कोई धर्म होता नहीं.

सोने की चिड़िया: सुहासिनी को हुआ अपनी भूल का एहसास

बड़े से मौल में अपनी सहेली शिखा के साथ चहलकदमी करते हुए साड़ी कार्नर की ओर बढ़ गई थी सुहासिनी. शो केस में काले रंग की एक साड़ी ने उस का ध्यान आकर्षित किया पर सेल्स- गर्ल की ओर पलटते ही वह कुछ यों चौंकी मानो सांप पर पांव पड़ गया हो.

‘‘अरे, मानसी तुम, यहां?’’ उस के मुंह से अनायास ही निकला था.

‘‘जी हां, मैं यहां. कहिए, किस तरह की साड़ी आप को दिखाऊं? या फिर डे्रस मेटीरियल?’’ सेल्स गर्ल ने मीठे स्वर में पूछा था.

‘‘नहीं, कुछ नहीं चाहिए मुझे. मैं तो यों ही देख रही थी,’’ सुहासिनी के मुख से इतना भी किसी प्रकार निकला था.

मानसी कुछ बोलती उस से पहले ही सुहासिनी बोल पड़ी, ‘‘मानसी, क्या मैं तुम से कुछ देर के लिए बातें कर सकती हूं?’’

‘‘क्षमा कीजिए, मैम, हमें काम के समय व्यक्तिगत कारणों से अपना स्थान छोड़ने की अनुमति नहीं है. आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगी,’’ मानसी ने धीमे स्वर में उत्तर दिया था और अपने कार्य में व्यस्त हो गई थी.

‘‘क्या हुआ? इस तरह प्रस्तरमूर्ति बनी क्यों खड़ी हो? चलो, जल्दी से भोजन कर के चलते हैं. लंच टाइम समाप्त होने वाला है,’’ शिखा ने उसे झकझोर ही दिया था और मौल की 5वीं मंजिल पर स्थित रेस्तरां की ओर खींच ले गई थी.

‘‘क्या लोगी? मैं तो अपने लिए कुछ चाइनीज मंगवा रही हूं,’’ शिखा ने मीनू पर सरसरी निगाह दौड़ाई थी.

‘‘मेरे लिए एक प्याली कौफी मंगवा लो और कुछ खाने का मन नहीं है,’’ सुहासिनी रुंधे गले से बोली थी.

‘‘बात क्या है? कैंटीन में खाने का तुम्हारा मन नहीं था इसीलिए तो हम यहां तक आए. फिर अचानक तुम्हें क्या हो गया?’’ शिखा अनमने स्वर में बोली थी.

‘‘साड़ी कार्नर के काउंटर पर खड़ी सेल्सगर्ल को ध्यान से देखा तुम ने?’’

‘‘नहीं. मैं ने तो उस पर ध्यान नहीं दिया. मैं दुपट्टा खरीदने लगी थी पर तुम ने तो उस से बात भी की थी और उसे ध्यान से देखा भी था.’’

‘‘ठीक कह रही हो तुम. मेरे मनमस्तिष्क पर इतनी देर से वही छाई हुई है. पता है कौन है वह?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘वह मेरी ननद मानसी है, शिखा.’’

‘‘क्या कह रही हो? वह यहां क्या कर रही है?’’

‘‘साडि़यों के काउंटर पर साडि़यां बेच रही है और क्या करेगी.’’

‘‘पर क्यों?’’

‘‘यही तो जानना चाहती थी मैं पर उस ने तो बात तक नहीं की.’’

‘‘बात नहीं की तो तुम उसे गोली मारो. क्यों अपनी जान हल्कान कर रही हो. वैसे भी तुम तो उस घर को 3 वर्ष पहले ही छोड़ चुकी हो. जब पीयूष ही नहीं रहा तो तुम्हारा संपर्क सूत्र तो यों भी टूट चुका है,’’ शिखा ने समझाया था.

‘‘संपर्क सूत्र तोड़ना क्या इतना सरल होता है, शिखा? उस समय पीयूष का संबल छूट जाने पर मैं कुछ भी सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. मातापिता, भाईभाभी ने विश्वास दिलाया कि वे मेरे सच्चे हितैषी हैं और मैं अपनी ससुराल छोड़ कर उन के साथ चली आई थी. उन्हें यह डर सता रहा था कि पीयूष के बीमे और मुआवजे आदि के रूप में जो 20  लाख रुपए मिले थे उन्हें कहीं मेरे ससुराल वाले न हथिया लें.’’

‘‘उन का डर निर्मूल भी तो नहीं था, सुहासिनी?’’

‘‘पता नहीं शिखा, पर मेरे और पीयूष के विवाह को मात्र 3 वर्ष हुए थे. परिवार का बड़ा, कमाऊ पुत्र हादसे का शिकार हुआ था…उन पर तो दुखों का पहाड़ टूटा था…मैं स्वयं भी विक्षिप्त सी अपनी 2 वर्ष की बेटी को सीने से चिपकाए वास्तविकता को स्वीकार करने का प्रयत्न कर रही थी. ऐसे में मेरे परिवार ने क्या किया जानती हो?’’

‘‘क्या?’’

‘‘मेरे दहेज की एकएक वस्तु वापस मांग ली थी उन्होंने. मेरी सास ने विवाह में उन्हें दी गई छोटीमोटी भेंट भी लौटा दी थी. सिसकते हुए कहने लगीं, ‘मेरा बेटा ही चला गया तो इन व्यर्थ की वस्तुओं को रख कर क्या करूंगी?’ पर जब मैं अपनी बेटी टीना को उठा कर चलने लगी तो वे तथा परिवार के अन्य सदस्य फफक उठे थे, ‘मत जाओ, सुहासिनी और तुम जाना ही चाहती हो तो टीना को यहीं छोड़ जाओ. पीयूष की एकमात्र निशानी है वह. हम पाल लेंगे उसे. वैसे भी वह तुम्हारे भविष्य में बाधक बनेगी.’’’

‘‘तो तुम ने क्या उत्तर दिया था, सुहासिनी?’’

‘‘मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही बड़ी भाभी ने झपट कर टीना को मेरी गोद से छीन लिया था और टैक्सी में जा बैठी थीं. मैं निशब्द चित्रलिखित सी उन के पीछे खिंची चली गई थी.’’

‘‘जो हुआ उसे दुखद सपना समझ कर भूल जाओ सुहासिनी. उन दुख भरी यादों को याद करोगी तो जीना दूभर हो जाएगा,’’ शिखा ने सांत्वना दी थी.

‘‘जीना तो वैसे ही दूभर हो गया है. तब मैं कहां जानती थी कि धन के लालच में ही मेरा परिवार मुझे ले आया था. छोटे भाई सुहास ने कार खरीदी तो मुझ से 2 लाख रुपए उधार लिए थे. वादा किया था कि वर्ष भर में सारी रकम लौटा देंगे पर लाख मांगने पर भी एक पैसा नहीं लौटाया. अब तो मांगने का साहस भी नहीं होता. सुहास उस प्रसंग के आते ही आगबबूला हो उठता है.’’

‘‘चल छोड़ यह सब पचड़े और थोड़ा सा चाऊमीन खा ले. भूख लगी होगी,’’ शिखा ने धीरज बंधाया था.

‘‘मैं लाख भूलने की कोशिश करूं पर मेरे घर के लोग भूलने कहां देते हैं. अब बडे़ भैया को फ्लैट खरीदना है. प्रारंभिक भुगतान के लिए 10 लाख मांग रहे हैं. मैं ने कहा कि सारी रकम टीना के लिए स्थायी जमा योजना में डाल दी है तो कहने लगे, खैरात नहीं मांग रहे हैं, बैंक से ज्यादा ब्याज ले लेना.’’

‘‘ऐसी भूल मत करना, तुम्हें अपने लिए भी तो कुछ चाहिए या नहीं. मुझे नहीं लगता उन की नीयत ठीक है,’’ शिखा ने सलाह दी थी.

‘‘मुझे तो पूरा विश्वास है कि मेरे प्रति उन का पे्रेम केवल दिखावा है. टीना बेचारी तो बिलकुल दब कर रह गई है. हर बात पर उसे डांटतेडपटते हैं. मैं बीच में कुछ बोलती हूं तो कहते हैं कि तुम टीना को बिगाड़ रही हो.’’

‘‘तुम्हारे मातापिता कुछ नहीं कहते?’’

‘‘नहीं, वे तो अपने बेटों का ही पक्ष लेते हैं. जब से मैं ने बड़े भैया को फ्लैट के लिए 10 लाख देने से मना किया है, मां मुझ से बात तक नहीं करतीं,’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा गए थे.

‘‘क्यों अपने को दुखी करती है, सुहासिनी. अलग फ्लैट क्यों नहीं ले लेती. मैं ने तो पहले भी तुझे समझाया था. क्या नहीं है तेरे पास? सौंदर्य, उच्च शिक्षा, मोटा बैंक बैलेंस. दूसरे विवाह के संबंध में क्यों नहीं सोचती तू?’’

‘‘मेरे जीवन में पीयूष का स्थान कोई और नहीं ले सकता और मैं टीना के लिए सौतेला पिता लाने की बात सोच भी नहीं सकती.’’

‘‘इसीलिए तुम ने योगेश जैसे योग्य युवक को ठुकरा दिया?’’ शिखा ने अपना चाऊमीन समाप्त करते हुए कहा था.

‘‘नहीं, मैं खुद दूसरा विवाह नहीं करना चाहती. यों भी उसे मुझ से या टीना से नहीं मेरे पैसे और नौकरी में अधिक रुचि थी.’’

‘‘चलो, ठीक है, तुम सही और सब गलत. बहस में तुम से कोई जीत ही नहीं सकता,’’ शिखा ने पटाक्षेप करते हुए बिल चुकाया और दोनों सहेलियां मौल से बाहर आ गईं.

कार्यालय में व्यस्तता के बीच भी मानसी का भोलाभाला चेहरा सुहासिनी की आंखों के सामने तैरता रहा था.

5 बजते ही सुहासिनी अपना स्कूटर उठा कर मौल के सामने आ खड़ी हुई. उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. कुछ ही देर में मानसी आती नजर आई थी.

‘‘अरे, भाभी, आप अभी तक यहीं हैं? आप तो मुझे देख कर बिना कुछ खरीदे ही लौट गई थीं?’’ मानसी ने उसे देख कर नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़ दिए थे.

‘‘मैं तब से यहीं नहीं हूं, मैं और मेरी सहेली शिखा यहां लंच के लिए आए थे. मैं कार्यालय से यहां फिर से केवल तुम्हारे लिए आई हूं. चलो बैठो, कहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ सुहासिनी ने अपने स्कूटर की पिछली सीट की ओर इशारा किया था.

‘‘नहीं भाभी, मेरी बस छूट जाएगी. देर हो जाने पर मां बहुत चिंता करने लगती हैं,’’ मानसी संकुचित स्वर में बोली थी.

‘‘बैठो मानसी, मैं तुम्हें घर तक छोड़ दूंगी,’’ सुहासिनी का अधिकारपूर्ण स्वर सुन कर मानसी ना नहीं कह सकी थी.

‘‘अब बताओ, तुम्हें मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने की क्या आवश्यकता पड़ गई?’’ रेस्तरां में आमने- सामने बैठते ही पूछा था सुहासिनी ने.

‘‘समय हमेशा एक सा तो नहीं रहता न भाभी. पीयूष भैया का सदमा पापा सह नहीं सके. पक्षाघात का शिकार हो गए. जो कुछ भविष्य निधि मिली उन के इलाज और अमला दीदी के विवाह में खर्च हो गई. पेंशन से फ्लैट की कि स्त दें या घर का खर्च चलाएं. उस पर रोहित भैया की डाक्टरी की पढ़ाई. रोहित भैया पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करने जा रहे थे. मैं ने ही कहा कि मैं तो प्राइवेट पढ़ाई भी कर सकती हूं. रोहित भैया ने पढ़ाई पूरी कर ली तो पूरे परिवार का सहारा बन जाएंगे. इसीलिए नौकरी कर ली. 7 हजार भी बड़ी रकम लगती है आजकल,’’ पूरी कहानी बताते हुए रो पड़ी थी मानसी.

‘‘इतना सब हो गया और तुम लोगों ने मुझे सूचित तक नहीं किया. एकदम से पराया कर दिया अपनी भाभी को?’’ सुहासिनी के नेत्र डबडबा आए थे.

‘‘पराया तो आप ने कर दिया, भाभी. भैया क्या गए आप भी हमें भूल गईं और जैसे ही आप घर छोड़ कर गईं मां तो बिलकुल बुझ सी गई हैं. सदा एक ही बात कहती हैं, ‘मैं ने सुहासिनी को अपनी बहू नहीं बेटी समझा था पर उस ने तो पीयूष के बाद पलट कर भी नहीं देखा.’ टीना को देखने को तड़पती रहती हैं. उस के जन्मदिन पर बधाई देना चाहती थीं पर पापा ने मना कर दिया. कहने लगे, आप सोचेंगी कि पैसे के चक्कर में बच्ची को बहका रहे हैं ससुराल वाले,’’ मानसी किसी प्रकार अपने आंसू रोकने का प्रयत्न करने लगी थी.

सुहासिनी ने खाने के लिए जो हलकाफुलका, मंगाया था वैसे ही पड़ा रहा. चाय भी ठंडी हो गई पर दोनों में से किसी ने छुआ तक नहीं.

‘‘मुझे घर छोड़ दो, भाभी. मां सदा यही सोचती रहती हैं कि कहीं कुछ अशुभ न घट गया हो,’’ मानसी उठ खड़ी हुई थी.

सुहासिनी मानसी को बाहर से ही छोड़ कर चली आई थी. घर के अंदर जा कर किसी का सामना करने का साहस उस में नहीं था. वैसे भी कहीं एकांत में बैठ कर फूटफूट कर रोने का मन हो रहा था उस का. अनजाने में ही कैसा अन्याय हो गया था उस से.

पीयूष की पत्नी होने के नाते ही उसे मुआवजा मिला था. उसी के स्थान पर नौकरी मिली थी और वह सारे बंधन तोड़ कर मुंह फेर कर चली आई थी.

‘‘लो, आ गईं महारानी,’’ सुहासिनी को देखते ही मां ने ताना कसा था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? आप इतने क्रोध में क्यों हैं,’’ सुहासिनी ने पूछ ही लिया था.

‘‘पूछ रही हो तो सुन भी लो. तुम दिन भर गुलछर्रे उड़ाओ और हम तुम्हारी बिटिया को संभालें, यह हम से नहीं होगा.’’

‘‘आप को लगता है कि मैं गुलछर्रे उड़ा कर आ रही हूं? टीना आप से नहीं संभलती यह तो आप ने कभी कहा नहीं. आप कहें तो स्कूल के बाद के्रच में डाल दूंगी,’’ सुहासिनी सीधेसपाट स्वर में बोली थी.

‘‘तो डाल दो न. मना किस ने किया है. अब अम्मां की सेवा करने की नहीं करवाने की उम्र है,’’ बड़े भैया चाय पीते हुए बोले थे और बड़ी भाभी हंस दी थीं.

‘‘मुझे भी एक प्याली चाय दे दो, बहुत थक गई हूं,’’ सुहासिनी ने बात का रुख मोड़ना चाहा था.

‘‘बना लो न बीबी रानी. आज मैं भी बहुत थक गई हूं. वैसे तुम थीं कहां अब तक? आफिस तो 5 बजे बंद होता है और अब तो 7 बजने वाले हैं.’’

‘‘मानसी मिल गई थी, उस से बातें करने में देर हो गई.’’

‘‘मानसी कौन?’’ बड़ी भाभी पूछ बैठी थीं.

‘‘अरे, वही मन्नो, इस की छोटी ननद. वह क्या लेने आई थी तुझ से?’’ मां बिफर उठी थीं.

‘‘कुछ लेने नहीं आई थी. मैं ने ही उसे मौल में देखा था. बेचारी आरोहण के साड़ी कार्नर में सेल्सगर्ल क ा काम करती है.’’

‘‘मां, आप नहीं जानतीं, वहां तो अलग ही खिचड़ी पक रही है. हम ने फ्लैट के लिए केवल 10 लाख मांगे तो मना कर दिया. वहां जाने कितने लुटा कर आई है,’’ अब बड़े भैया भी क्रोध में आ गए थे.

‘‘ठीक है. मेरा पैसा है, जैसे और जहां चाहूंगी खर्च करूंगी,’’ सुहासिनी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया था.

‘‘फिर यहां क्यों पड़ी हो? वहीं जा कर रहो जहां पैसा लुटा रही हो.’’

‘‘भैया…’’ सुहासिनी इतने जोर से चीखी थी कि घर में हलचल सी मच गई थी.

‘‘चीखोचिल्लाओ मत. माना कि तुम बहुत धनी हो. पर घर में रहना है तो नियमकायदे से रहना होगा. नहीं तो जहां सींग समाएं वहां जाने को स्वतंत्र हो तुम,’’ बड़े भैया अपना निर्णय सुना कर भीतर अपने कमरे में चले गए. सुहासिनी पत्थर की मूर्ति बनी वहीं बैठी रही थी.

तभी अंदर से टीना के रोने की आवाज आई.

‘‘टीना कहां है?’’ सुहासिनी के मुख से अनायास ही निकला था.

‘‘अंदर सो रही है. थोड़ी चोट लग गई है. बड़ी जिद्दी हो गई है. बारबार सीढि़यां चढ़उतर रही थी कि फिसल गई. सिर और चेहरे पर चोट आई है,’’ मां ने अपेक्षाकृत सौम्य स्वर में कहा था.

सुहासिनी लपक कर कमरे में गई और टीना को गोद में उठा लिया. टीना उस के कंधे से लग कर देर तक सिसकती रही थी. सुहासिनी चुपचाप अपने आंसू पीती रही थी.

कुछ ही देर में माथे पर किसी स्पर्श का अनुभव कर वह पलटी थी. मां बड़े प्यार से उस के माथे और कनपटी पर मालिश कर रही थीं.

‘‘भैया की बात का बुरा मान गई क्या बेटी?’’

‘‘नहीं मां, तकदीर ने जो खेल मेरे साथ खेला है उस में भलाबुरा मानने को बचा ही क्या है?’’

‘‘मां हूं तेरी, इतना भी नहीं समझूंगी क्या? इसीलिए तो तुझे यहां ले आई थी. आंखों के सामने रहेगी तो संतोष रहेगा कि सबकुछ ठीकठाक है. सब तुझे बरगलाने का प्रयत्न करेंगे पर तू विचलित मत होना, थकहार कर सब चुप हो जाएंगे.’’

‘‘पर मां, वहां से इस तरह आना कुछ ठीक नहीं हुआ. आप को पता है क्या पीयूष के पिता को पक्षाघात हुआ है…परिवार मुसीबत में है. उन्हें मेरी आवश्यकता है.’’

‘‘कुत्ते की दुम को चाहे कितने दिनों तक दबा कर रखो निक ालने पर टेढ़ी ही रहेगी. तू ने वहां जाने की ठान ली है तो जा पर थोड़े ही दिनों बाद रोतीगिड़गिड़ाती हुई मत आना,’’ मां पुन: क्रोधित हो उठी थीं.

सुहासिनी ने टीना की देखभाल के लिए छुट्टी ले ली थी पर घर में अजीब सी चुप्पी छाई हुई थी मानो सुहासिनी से कोई अपराध हो गया हो.

एक सप्ताह बाद सुहासिनी प्रतिदिन की भांति तैयार हो कर आई थी. उस की सहेली शिखा भी आ गई थी.

‘‘आज टीना भी स्कूल जा रही है क्या?’’ मां ने पूछा था.

‘‘नहीं मां, आज हम दोनों पीयूष के घर जा रहे हैं, अपने घर. मां, हो सके तो मुझे क्षमा कर देना. उन लोगों को इस समय मेरी आवश्यकता है,’’ सुहासिनी ने घर में सभी के गले मिल कर विदा ली थी और बाहर खड़ी टैक्सी में जा बैठी थी. सुहासिनी की मां जहां खड़ी थीं वहीं सिर पकड़ कर बैठ गई थीं.

‘‘देखो मां, तुम्हारी सोने की चिडि़या तो फुर्र हो गई. क्यों दुखी होती हो. पराया धन ही तो था. पराए घर चला गया,’’ व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर भैया ने ठहाका लगाया था जिस की कसैली प्रतिध्वनि देर तक दीवारों से टकरा कर गूंजती रही थी.

बदलते मौसम-भाग 1: आदित्य की जिंदगी में क्या बदलाव आ रहे थें?

औफिस के गेट पर सारा सीनियर स्टाफ उन का स्वागत करने के लिए खड़ा था. आज वे महीने भर बाद औफिस आए थे. जैसे ही वे कार से उतरे, गार्ड ने तुरंत व्हीलचेयर दरवाजे के पास लगा दी. कितने ही लोग उन की मदद करने के लिए आगे बढ़े पर उन्होंने हाथ से मना कर दिया. ड्राइवर ने थोड़ा सहारा दिया और वे व्हीलचेयर पर बैठ गए. व्हीलचेयर आराम से ऊपर जा सके, इस के लिए सीढि़यों के पास रैंप बना दिया गया था.

मेहुलजी ने आगे बढ़ कर उन के गले में फूलमाला डालते हुए कहा, ‘‘वैलकम, सर.’’

‘‘अरे मेहुलजी, आप कब से ऐसी औपचारिकताओं में विश्वास करने लगे. अपने ही तो औफिस में आया हूं. बस, आया 1 महीने बाद हूं, फिर क्यों मुझे पराया बना रहे हैं?’’ उन्होंने थोड़ा मजाकिया अंदाज में कहा तो मेहुलजी मुसकरा उठे, ‘‘सर, तमाम मुश्किलों के बीच भी हंसीमजाक सिर्फ आप ही कर सकते हैं, वरना…’’

‘‘मेहुल, काम तो ठीकठाक चल रहा है न?’’ उन्होंने बीच में ही उन की बात काट दी.

‘‘जी सर, सब आप के आदेशानुसार चल रहा है,’’ मेहुल अब थोड़ा खिसिया गए थे और अपनी भूल का भी उन्हें एहसास हो गया था कि इस तरह की बात उन्हें नहीं करनी चाहिए थी.

रिसैप्शन पर नई रिसैप्शनिस्ट और नए पीबीएक्स बोर्ड को देख उन्होंने राजन साहब की ओर प्रश्नभरी निगाहों से देखा तो वे तुरंत बोले, ‘‘सर, पुराना सिस्टम खराब हो गया था, इसलिए नया पीबीएक्स खरीदा है और यह लड़की इस सिस्टम को औपरेट करने में माहिर है, इसलिए इसे अपौइंट किया है, लेकिन पुरानी रिसैप्शनिस्ट नेहा को नौकरी से हटाया नहीं है, सर. हमें पता है कि आप किसी को भी नौकरी से निकालना पसंद नहीं करते हैं, इसलिए उसे दूसरे डिपार्टमैंट में शिफ्ट कर दिया गया है.’’

‘‘कितने में आया नया पीबीएक्स? ठीक तो है न यह?’’ ऐसे ही कितने सवाल करते वे लिफ्ट की ओर बढ़े तो लिफ्टमैन ने उन्हें सलाम ठोंका, ‘‘बहुत खुशी हो रही है, साहब, आप को देख कर.

‘‘कैसे हो, रामदीन? अरे यह क्या, लिफ्ट में कितने जाले लगे हैं. कब से सफाई नहीं की तुम ने? शायद ध्यान नहीं गया होगा, चलो कोई बात नहीं. पर आज सफाई कर देना,’’ उन्होंने बहुत ही नरमाई से कहा.

लिफ्ट से बाहर निकलते ही उन की निगाह दीवार पर लगी पेंटिंग्स पर गई. कुछ पेंटिंग्स टेढ़ी लगी थीं, तो कुछ पर धूल चमक रही थी, उस ओर संदीपन का ध्यान दिलाते हुए वे आगे बढ़े तो पाया कि उन का सारा स्टाफ, जिस की संख्या 500 से कम न थी, उन से मिलने के लिए लालायित खड़ा है.

उन्हें देख कर सब के चेहरों पर रौनक आ गई थी. वे केबिन तक जातेजाते सब से हालचाल पूछते जा रहे थे. एक से पूछा कि तुम्हारा बेटा अब कैसा है, 1 महीने पहले वह बीमार था न? किसी से उस के परिवार के बारे में पूछा तो किसी से तबीयत के बारे में. मानो वे हर किसी का हाल, उन के परिवार के बारे में जानते हों और चिंता भी करते हों.

असल में ऐसा था भी. फिर भी आज सब को हैरानी हो रही थी. भौचक्के से खड़े सब अपने मालिक को देख रहे थे, जो इस हाल में भी, जबकि वह स्वयं 25 दिनों तक अस्पताल में थे, अपने स्टाफ को ले कर इतने उत्सुक थे. उन्हें नियति ने जितने घाव दिए थे, उस के बाद तो कोई भी आदमी टूट सकता था, पर उन की जिंदादिली में कोई अंतर नहीं आया था. उन के काम के प्रति कमिटमैंट के तो सब कायल थे.

वे औफिस को एकदम साफ व व्यवस्थित रखना भी पसंद करते थे और इस के लिए वे स्वयं आगे बढ़ कर दिलचस्पी लेते थे. स्टाफ की हर समस्या को धैर्य से सुनते थे और उस का समाधान करते थे. यहां तक कि उन की पारिवारिक परेशानियों में भी हरसंभव सहायता करते थे, फिर चाहे वह आर्थिक हो या मनोबल बढ़ाने की. यही वजह थी कि काम के प्रति लापरवाही न बरतने और सख्त होने के बावजूद उन का स्टाफ उन की बहुत इज्जत करता था और लगन व ईमानदारी से काम भी.

केबिन में प्रवेश करते हुए उन्होंने राजन साहब से फाइलें लाने को कहा. केबिन में चारों ओर उन्होंने नजरें दौड़ाईं. सब कुछ यथास्थान व व्यवस्थित था, जैसा कि वे पसंद करते हैं. करीने से हर चीज लगी हो, ऐसा ही निर्देश वे अपने स्टाफ को देते हैं. अपनी बड़ी सी आयताकार टेबल पर लगे शीशे पर उन्होंने उंगली घुमाई. धूल का एक कण तक न था. कमरे की चारों दीवारों पर नामी चित्रकारों की पेटिंग्स लगी हुई थीं.

शुरू से ही उन के अंदर कलात्मक चीजों के प्रति रुचि रही है. हमेशा से वे यही मानते रहे हैं कि जिंदगी को खुल कर और नफासत के साथ जीना चाहिए. उतारचढ़ाव तो जीवन के अभिन्न अंग हैं, उन से घबराने के बजाय उन का मुकाबला करना चाहिए. विडंबना तो देखो कि जिंदगी तो उन के साथ निरंतर खेल खेलती आई है और वह…

टेबल पर रखी फैमिली फोटोग्राफ को देख उन की आंखें नम हो आईं. उन्हें देख कर हर कोई कहता था, ‘हैप्पी फैमिली’, ‘परिवार हो तो आदित्य साहब जैसा’, ‘हम दो हमारे दो…आदित्य साहब ने सच में इसे अपनाया है,’ यह कहने वाले कहते थकते नहीं थे. वैसे भी उन के जिंदादिल स्वभाव और हर समय खुश रहने की आदत की वजह से उन के दोस्त और परिचितों की कतार बहुत लंबी थी. जीवनसंगिनी मिली तो वह भी वैसी ही थी.

कितना सुखी था उन का जीवन. शायद उन की अपनी ही नजर लगी होगी, वरना क्या सबकुछ इस तरह बिखरता? इतना बड़ा कारोबार, दिल्ली के एक पौश इलाके में आलीशान कोठी और 2 प्यारे बेटे. सारी सुखसुविधाएं और आपसी प्यार का लहराता समुद्र…सबकुछ अच्छा था. जीवन बहुत ही सहज गति से चल रहा था. लोग उन के परिवार की मिसालें दिया करते थे कि पतिपत्नी हों तो ऐसे, बेटे हों तो आदित्य साहब के जैसे. मानो कोई परी कथा सी हो उन की जिंदगी…

केबिन के दरवाजे पर दस्तक हुई तो झट से आदित्य ने अपनी नम हो आई आंखों को पोंछ डाला. अपनी चेयर पर पीठ टिकाते हुए बोले, ‘‘प्लीज कम इन.’’

आगे पढ़ें- राजन साहब फाइलें ले कर आए थे और लगभग 1 घंटे तक वे दोनों…

नौकरी: शेकी पोर्टफोलियो न बनने दें

किसी के लिए भी जौब छोड़ना आसान नहीं होता. जौब छोड़ने के कुछ कारण होते हैं. यदि कोई जौब सिर्फ शेकी पोर्टफोलियो बनाने के लिए छोड़ रहा है तो यह भूल से कम नहीं. इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म करने के बाद मोहनीश को अच्छी जौब मिल गई. 6 महीने की नौकरी के बाद उन्हें अच्छा औफर मिला तो पहली नौकरी छोड़ कर इसे जौइन कर लिया. कोविड के दौरान उन्हें कोई समस्या नहीं आई. काम ज्यों का त्यों चलता रहा. लेकिन एक साल बाद उन्हें तीसरी स्टार्टअप कंपनी में मनमुताबिक सैलरी और पोस्ट मिली. उन्होंने उसे जौइन कर लिया. लेकिन इस बार कंपनी ने जो वादा किया था, पोस्ट नहीं मिली. साथ ही, किसी प्रकार की जौब स्पैशियलिटी, जो पहले की 2 कंपनियों में थी, वह भी नहीं मिली.

मोहनीश अब परेशान होने लगा और आगे जौब बदलने की फिर से सोचने लगा. हर दिन वह अपना सीवी अलगअलग कंपनियों में पोस्ट करता रहता. लेकिन जौब कोई ढंग का नहीं मिल रहा था. करे तो करे क्या? इस जौब को छोड़ नहीं सकता था क्योंकि उस के परिवार वाले पहले से ही बारबार जौब छोड़ने से नाराज थे. ऐसे में वह अपने स्ट्रैस को किसी से शेयर भी नहीं कर पा रहा था. उस का मन काम पर भी नहीं लग रहा था. लेकिन कोई बोल्ड स्टैप लेना उस के लिए कठिन था. ऐसी समस्या केवल मोहनीश को ही नहीं, पास में रहने वाले धीरज को भी थी. उसे भी बारबार जौब चेंज करने का भूत सवार था. उस की सोच रही कि अगर कंपनी उस की मेहनत का सही मूल्य नहीं देती तो उसे वहां काम करना ही नहीं है.

लेकिन अब उसे लगने लगा है कि उस की इस सोच ने उसे अपने दोस्तों के बीच में पीछे धकेल दिया है. उस के दोस्त भले थोड़ा कम कमाते हों लेकिन धीरेधीरे उन्होंने काम के तरीके को समझा है. आगे क्या करना है, वे जानते हैं. उन की सैलरी और पोस्ट दोनों ही अच्छी हो चुकी हैं और कभी उन्हें जौब छोड़नी पड़े तो वे सोच -समझ  कर ही फैसला लेंगे क्योंकि हर जगह काम में नयापन और रिसर्च वर्क जरूरी होता है. आज धीरज भी एक जगह पर टिक कर काम करने के बारे में सोचता है.

बारबार जौब न बदलें किसी के लिए भी नौकरी छोड़ना असामान्य नहीं है. वास्तव में पिछले सालों की तुलना में अधिक लोग बेहतर अवसरों की तलाश में अपनी नौकरी छोड़ चुके हैं. साल 2021 में कम से कम हर चार में से एक आदमी अपनी नौकरी छोड़ दूसरी कंपनी में गया और विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या आने वाले महीनों में बढ़ भी सकती है. देखा गया है कि बारबार जौब छोड़ने पर व्यक्ति का पोर्टफोलियो अच्छा होने के बजाय कमजोर पड़ जाता है और उस का असर नए जौब पर कई बार दिखता है क्योंकि अधिक मेहनताना दे कर बड़ी पोस्ट पर रखने वाले से कंपनी अपनी ग्रोथ का आकलन बीचबीच में करती है.

उस में सही उत्तर न पाने की स्थिति में कंपनी भी कर्मचारी की छंटाई करती है. इस के अलावा, बारबार जौब छोड़ने पर कंपनी को आप की कुछ आदतों के विषय में पता चलता है. कंपनी को लगता है कि आप केवल अच्छी सैलरी और पोजीशन की चाह रखते हैं या नौकरी को ले कर आप गंभीर नहीं हैं. हालांकि इस में दोराय नहीं कि डैवलपमैंट के लिए सभी जगहों के कार्य का एक्सपीरियंस होना बेहद जरूरी है. किसी भी कैरियर में एक अवधि ऐसी भी होनी चाहिए जहां आप खुद को जांच सकें कि अगर आप को मदद करने वाला वातावरण मिले तो आप का प्रदर्शन कैसा होगा.

कंपनी किसी को भी हायर करने से पहले कुछ खास संकेतों का ध्यान रखती है जिस पर व्यक्ति का कैरियर निर्भर करता है. होती है चुनौती कोविड के बाद से हर कंपनी कमोबेश घाटा सह रही है. कुछ बड़ी कंपनियों ने तो अपने कर्मचारियों को लेऔफ भी कर दिया है. ऐसे हालात में बारबार नौकरी छोड़ना किसी कर्मचारी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं. ठोस वजह होना जरूरी मुंबई की कैरियर काउंसलर वर्षा कहती हैं, ‘‘बारबार जौब छोड़ना ठीक नहीं. नौकरी छोड़ने की हमेशा कोई ठोस वजह होना जरूरी होता है. इस से कोई भी कंपनी आप को रखने से पहले काफी छानबीन कर सकती है. मैं किसी भी पर्सन की रुचि के हिसाब से स्किल बढ़ाने की दिशा में काम करने की सलाह देती हूं. हौबी को कैरियर बनाने पर व्यक्ति उस में अधिक सफलता हासिल कर पाता है.

जब तक व्यक्ति एक कंपनी में कुछ समय तक काम नहीं करता, वह उस कंपनी की रणनीति को सम?ा नहीं पाता. चाहे टैक्निकल ज्ञान हो या कोई और जौब. सभी में कुछ दिनों तक टिके रहने के बाद ही आप के द्वारा लिया गया निर्णय सही हो सकता है.’’

पहली जौब को दें

अहमियत असल में जब कोई पहली जौब शुरू करता है तो उसे यह समझना मुश्किल होता है कि उसे कौन सा काम करना है और कैसे करना है क्योंकि एकेडमिक और जौब में बहुत बड़ा अंतर होता है. अगर किसी को अपनी रुचि और उसे जौब में प्रयोग करने का तरीका मालूम है तो वह अधिक दिनों तक टिक कर काम कर सकता है. लेकिन कई बार औफिस का वातावरण सही न होने, शारीरिक शोषण होने, काम का अधिक प्रैशर महसूस करने की वजह से उन्हें जौब करना मुश्किल होता है.

इस के अलावा सही कौन्ट्रैक्ट के न मिलने से भी व्यक्ति के काम की गारंटी नहीं होती और वह असुरक्षित महसूस करता है और एक जगह रह कर मन लगा कर काम न कर कई जगह अपना पोर्टफोलियो भेजता रहता है.

होता है कंपनियों को लौस

वर्षा कहती हैं, ‘‘किसी कर्मचारी को ले कर ट्रेनिंग देने के बाद अगर व्यक्ति 6 महीने में जौब छोड़ कर दूसरी कंपनी में चला जाता है तो इस से कंपनी को लौस का सामना करना पड़ता है. इसलिए किसी भी व्यक्ति को बारबार जौब छोड़ कर किसी दूसरी कंपनी में जाना ठीक नहीं होता, क्योंकि बड़ी कंपनियां अकसर 6 महीने की एक्सपर्ट से ट्रेनिंग देती हैं.’’

जौब चुनने से पहले रखें कुछ खास ध्यान .

जौब सूटेबल है या नहीं.

– कैरियर इंटरैस्टेड है या नहीं.

– कैरियर स्किल्स है या नहीं, लेकिन रुचि होने पर स्किल्स की ट्रेनिंग ली जा सकती है.

-वेतन अधिक पाने के लिए आजकल आईटी सैक्टर का रुख करें,

-जौब सैटिस्फैक्शन के लिए अपनी रुचि को फौलो करना सही होता है. पहली जौब मिलने पर आप का व्यवहार हो कैसा

-अधिक से अधिक सीखने की कोशिश करना.

– खुद में ट्रू रहने की कोशिश करना. कब जौब छोड़ने के बारे में सोचें.

– अधिक मानसिक स्ट्रैस होने पर.

-वर्क कल्चर ठीक न होने पर.

– फिजिकल और मैंटल एब्यूज का सामना होने पर क्योंकि एब्यूज अधिक होने पर व्यक्ति कई बार आत्महत्या भी कर लेता है.

-ग्रोथ का ग्राफ ठीक न होने पर आदि. समझों ग्रोथ की चाल को वर्षा कहती हैं, ‘‘असल में कई बार यह समझना मुश्किल हो जाता है कि व्यक्ति की ग्रोथ सही हो रही है या नहीं, क्योंकि टीचर का काम हर साल एकजैसा ही होता है और उन के ग्रोथ को ट्रेस करना मुश्किल होता है. ऐसे में काम को करने में अगर आप को बोरियत महसूस हो तो काम को कभी न छोड़ें. उस में ही कुछ नयापन लाने की कोशिश करें. ‘‘जो काम अपने जिम्मे लिया है उसे समय पर पूरा कर लें. अपने लिए शौर्ट टर्म और लौंग टर्म गोल्स तय करें. इस से आप को अपनी मंजिल तक पहुंचने में आसानी होगी. अगर आप के दिमाग में अपने लक्ष्यों को ले कर स्पष्टता नहीं होगी तो आप आगे नहीं बढ़ पाएंगे.’’

अपने अनुभव के बारे में वर्षा कहती हैं, ‘‘एक 30 साल की लड़की ने अपनी सहेली की वजह से एचआर में जौब ले लिया पर उसे अब यह प्रोफैशन अच्छा नहीं लग रहा था. कंपनी में उस की ग्रोथ उस के हिसाब से सही नहीं लग रही थी और उस ने जौब छोड़ने का मन बना लिया था.

‘‘साईकोमैट्रिक टैस्ट के द्वारा उस की रुचि का पता किसी दूसरे फील्ड में चला. इस प्रकार उस महिला ने खुद के कुछ साल और कंपनी के कुछ सालों को खराब किया. अगर वह पहले अपनी जौब इंटरैस्ट जान लेती तो वह खुद के अलावा कंपनी के समय को बरबाद न करती. जिन्हें भी अपने काम से संतुष्टि या समझना नहीं है उन्हें तुरंत कैरियर काउंसलर से संपर्क करना आवश्यक होता है.’

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