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परिवार: पति-पत्नी में जब हो विचारों का भेद

यह सच है कि विचारों के भेद आपस में टकराव पैदा करते हैं पर बात जब जीवनसाथी के विचारों से भेद की हो तो समस्या ज्यादा खड़ी हो जाती है. शलभ की आज नाइट शिफ्ट थी. पूरी रात औफिस की भागदौड़ के बाद सुबह 11 बजे जब वह घर पहुंचा तो पूरे घर में धुएं और बड़े से हवनकुंड से आती तेज गंध ने उसे विचलित कर दिया. उसे याद आया कि 2 दिन पहले श्वेता ने बताया था कि वह घर में कोई अनुष्ठान करवाने वाली है. उसे नहीं पता था कि यह सब इतने बड़े पैमाने पर होने वाला है.

सामने दाढ़ीमूंछ, लंबी जटाओं और गेरुए वस्त्रों में एक बाबा और दो चेले हवन करवा रहे थे. आसपास ढेर सारी हवन की सामग्री और प्रसाद रखे हुए थे. तेज आवाज में बाबा मंत्रजाप कर रहा था. पास ही हाथ जोड़े श्वेता और उस की बहन बैठी हुई थी. इस माहौल को देख शलभ के सिर में तेज दर्द होने लगा. वह अपने कमरे में जा कर दरवाजा बंद कर बैठ गया. मगर आवाज और धुएं ने उस का पीछा नहीं छोड़ा था. कहां तो उस ने सोचा था कि जाते ही श्वेता को कौफी बनाने को कहेगा और थोड़ा आराम करेगा. मगर यहां तो बैठना भी कठिन हो रहा था. किसी तरह उस ने खुद को संभाला.

फिर नहाधो कर छत पर जा कर बैठ गया. उस की आंखों के आगे पुराने दिन नाचने लगे. तब शलभ और श्वेता एक ही औफिस में काम करते थे. श्वेता बेहद खूबसूरत और स्मार्ट थी और उस की एक प्यारभरी नजर के लिए शलभ बेचैन रहता था. समय के साथ शलभ ने अपने प्यार का इजहार किया जिसे श्वेता ने खुले दिल से स्वीकार कर लिया. दोनों औफिस में ज्यादातर समय साथ बिताने लगे. कभी कैंटीन तो कभी औफिस के सामने वाले पार्क में जा कर बैठ जाते और एकदूसरे की आंखों में खो जाते. फिर दोनों दो से एक बन गए. मगर शादी के बाद शलभ को एहसास हुआ कि वे दोनों बहुत अलग हैं. शलभ ने केवल सुंदरता देख कर श्वेता को चाहा था. मगर अब साथ रहते हुए श्वेता की कुछ आदतें उसे परेशान करने लगी थीं. दरअसल श्वेता बहुत धार्मिक थी. उस की सुबह की शुरुआत पूजा से होती थी.

लगभग हर रोज कोई न कोई व्रत रहता और सप्ताह में दो दिन वह एक गुरु के पास जाती और पूरा दिन उन के आश्रम में बिताती. समयसमय पर घर में भी धार्मिक कर्मकांड के लिए स्वामी को बुलाती रहती. इतनी कम उम्र में श्वेता का इतना धार्मिक होना शलभ को हजम नहीं हो रहा था. धीरेधीरे शलभ को पता चला कि श्वेता का पूरा परिवार ही गुरुभक्त और हद से ज्यादा धार्मिक है. शलभ पछता रहा था कि शादी से पहले उस ने श्वेता का रूप तो देखा मगर उस के व्यक्तित्व और सोच से पूरी तरह वाकिफ नहीं हो सका था. कहीं न कहीं उस ने यह शादी जल्दी में कर ली थी. वैसे, श्वेता से वह बहुत प्यार करता था और इसलिए उस की हर ज्यादती माफ कर देता. मगर सब्र की भी सीमा होती है.

उस दिन शाम 4 बजे जा कर हवन संपन्न हुआ. फिर श्वेता ने बाबा और चेलों को खाना खिलाया. उन की विदाई से पहले श्वेता शलभ के पास आई और 5 हजार रुपए मांगने लगी. शलभ ने नाराजगी के साथ रुपए दिए. बाद में पता चला कि शलभ को बताए बिना श्वेता ने गुरु को 11 हजार और चेलों को 2-2 हजार रुपए दक्षिणा में दिए थे. यह सुन कर शलभ के अंदर दबा गुस्सा फट पड़ा. वह चिल्लाता हुआ बोला, ‘‘यार, यह क्या तरीका है? मैं अकेला कमाने वाला हूं और तुम ने इतनी रकम बाबा और उस के चेलों को बैठेबिठाए थमा दी.’’ श्वेता को भी बात चुभ गई, चीख कर बोली, ‘‘ये केवल तुम्हारे रुपए नहीं हैं बल्कि हमारे रुपए हैं. तुम मु?ो खर्च करने से रोक नहीं सकते.

3 साल पहले तक मैं भी नौकरी कर ही रही थी. तुम्हारे कहने पर मैं ने नौकरी छोड़ी. सो, अब मु?ो कमाने की धौंस मत दिखाओ. तुम से ज्यादा कमा सकती हूं मैं.’’ ‘‘मैं कमाने की धौंस नहीं दे रहा मगर फुजूलखर्ची नहीं सह सकता. कोई बड़ा खर्च करती हो तो मु?ा से बात करो. फालतू के बाबाओं पर रुपए फेंकना बंद करो श्वेता. हमारी जिंदगी सुधारने के लिए इन का आशीर्वाद नहीं, बल्कि हमारे कर्म जिम्मेदार हैं. जब देखो तो कभी अनुष्ठान, कभी हवन, कभी पाठ, कभी भजनकीर्तन तो कभी सत्संग लगा रहता है. मैं ने कभी कुछ नहीं कहा. तुम ने अपनी मरजी से आश्रम जाना या गुरु को घर पर बुलाना जारी रखा. मगर हर चीज की लिमिट होती है. तुम जानती हो, मैं धार्मिक पाखंडों में विश्वास नहीं करता. थोड़ा मैं ने सामंजस्य बिठाया है, थोड़ा तुम कोशिश करो.

तभी हम दो अलगअलग सोच वाले लोग एकसाथ रह सकेंगे.’’ श्वेता को शलभ की बात सम?ा आने लगी थी. उस रात देर तक शलभ और श्वेता ने इस मसले पर चर्चा की और बीच का रास्ता निकाला. उन्होंने एकदूसरे की बातें ध्यान से सुनीं और सम?ां. इसलिए उन की गृहस्थी टूटने से बच गई. मगर कई दफा लोग आवेश में एकदूसरे को इतना कुछ बोल जाते हैं कि फिर रिश्ते को संभालना मुश्किल हो जाता है. देखा जाए तो अकसर लोग अपने अपोजिट स्वभाव वाले के प्रति अट्रैक्ट हो जाते हैं. हमें लगता है कि घर में दो तरह की सोच वाले लोग रहेंगे तो जिंदगी जीने में मजा आएगा. मगर कभीकभी कुछ अपोजिट बातें परेशानी का सबब बन जाती हैं. शादी के बाद अगर वाइफ कहती है कि किराए के घर में रहेंगे और हसबैंड अपना घर खरीदने की बात करे तो तकरार होगी.

वाइफ जौब करने की डिमांड रखे जबकि हसबैंड कहे कि क्या जरूरत है. पति बच्चों की फरमाइश करे और पत्नी फैमिली प्लान करने की बात कहे. इस तरह की बातें पतिपत्नी की अलग सोच को दिखाती हैं. ऐसा ही एक अलग सोच का मुद्दा धर्म भी है. पति धर्म और कर्मकांडों में विश्वास न करे जबकि पत्नी आले दरजे की धार्मिक हो तो बात बिगड़ सकती है. अगर धर्म के मामले में दोनों पार्टनर बिलकुल अलग सोच के हैं तो उन का रिश्ता मुश्किल में पड़ सकता है. ऐसे में धार्मिक शख्स अपने जीवनसाथी से छिपा कर अकसर धर्म और अंधविश्वास के चक्कर में समय और पैसा खर्च करता है. यहीं से बात लड़ाई?ागड़े तक पहुंच जाती है. आप के साथ ऐसा न हो, इसलिए जरूरी है कि आप कुछ बातों का खयाल रखें. जीवनसाथी की सहमति जरूरी पतिपत्नी के जीवन को खुशहाल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि दोनों एकदूसरे की बातें सुनें और उसे अहमियत दें. पतिपत्नी दोनों को एकसाथ मिल कर फैसले लेने चाहिए.

अगर किसी विषय पर दोनों के विचार आपस में मेल नहीं खा रहे तो भी आपसी सहमति से एक फैसले पर पहुंचना जरूरी है, खासकर, धार्मिक अनुष्ठानों या बाबाओं और धर्मगुरुओं पर पैसा खर्च करने से पहले एक बार अपने जीवनसाथी से बात जरूर करें. आप जो कर रहे हैं वह सब जीवनसाथी की नजरों में ला कर और उस की सहमति के बाद ही करें. जीवनसाथी की सहमति के बिना किसी भी कार्य में इन्वौल्व न हों. रुपए बरबाद न करें धार्मिक पाखंडों पर एक औसत दंपती हर साल लाखों रुपए की रकम बरबाद कर देते हैं. लोगों को एहसास भी नहीं होता कि कैसे वे अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा इस नौनप्रोडक्टिव कार्य में लगाए जा रहे हैं. अगर आप का जीवनसाथी धार्मिक नहीं है और धार्मिक कर्मकांडों पर विश्वास नहीं करता तो आप को भी इन चीजों पर अंधाधुंध खर्च करने से बचना चाहिए.

यही नहीं, धर्म के पीछे अपने परिवार या बच्चों की अवहेलना न करें. एक सीमा में रह कर ही यह सब करें, तभी आप का जीवन खुशहाल रह पाएगा. आपसी सम?ा विकसित करें याद रखिए, पतिपत्नी के रिश्ते में आपसी सम?ा होनी जरूरी है. एकदूसरे के व्यक्तित्व को सम?ों, एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रखें. जब आप एकदूसरे को अच्छी तरह से सम?ाने लगेंगे तो रिश्ता मजबूत होता जाता है और आप एकदूसरे के लिए त्याग करने को तैयार रहेंगे. अगर आप का जीवनसाथी धार्मिक गतिविधियों में रुचि नहीं लेता या उन का विरोध करता है तो उस पर जबरन यह सब मानने के लिए जोर न डालें. उसे उस के हिसाब से चलने दें और अपने क्रियाकलापों से उसे परेशान न करें. विश्वास किसी भी रिश्ते की बुनियाद विश्वास और भरोसे पर ही टिकी होती है. यही वजह है कि पतिपत्नी के रिश्ते में भी विश्वास का होना बेहद जरूरी है. पति और पत्नी दोनों अगर अपने रिश्ते को मजबूत और खूबसूरत बनाए रखना चाहते हैं तो उन्हें एकदूसरे का विश्वास कभी नहीं तोड़ना चाहिए.

अपनी हर बात जीवनसाथी से शेयर करें. अपनी धार्मिक गतिविधियों के बारे में जीवनसाथी को पहले से बताएं और उस की सहमति लें तभी कुछ करें. प्यार और रोमांस से भरपूर पतिपत्नी का रिश्ता प्यार और रोमांस से भरपूर होना चाहिए. इस रिश्ते में प्यार और रोमांस को जितनी जगह मिलेगी वह उतना ही मजबूत होगा. प्यार जीवन में सुख, शांति और खुशहाली ले कर आता है. इस के विपरीत यदि आप अपने जीवनसाथी की मरजी के खिलाफ खुद को धार्मिक कर्मकांडों, व्रतउपवास और बाबाओं की सेवा में इन्वौल्व रखेंगे तो जाहिर है कि आप के पास जीवनसाथी के लिए समय नहीं बचेगा और यह दूरी आप के रिश्ते में एक अनचाही खटास पैदा करेगी. इसलिए धर्म को जिंदगी में ऐसी अहमियत न दें कि उम्रभर का रिश्ता ही टूट जाए. याद रखें, रिश्ता खूबसूरत बना कर रखने के लिए व्रतउपवास या हवन और पूजा नहीं, बल्कि एकदूसरे के साथ अच्छा वक्त बिताना जरूरी है.

एकदूसरे का सम्मान पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे की सोच या नजरिए का सम्मान करना चाहिए. अगर आप के जीवनसाथी का नजरिया धर्म के प्रति आप से भिन्न है तो भी उस की किसी बात का मजाक उड़ाने या उसे गलत साबित करने के प्रयास से बचें. उस की सोच को सम्मान दें और बेकार की बहस में न पड़ें. भावनाओं का खयाल रखें पतिपत्नी के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए एकदूसरे की भावनाओं को सम?ाना जरूरी है. कई बार ऐसा होता है कि किसी एक विषय पर पतिपत्नी के विचार मेल नहीं खाते. ऐसे में दोनों को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए एकदूसरे का साथ देना चाहिए. इस से रिश्ता गहरा होता है और अनबन की आशंका कम हो जाती है. उदाहरण के लिए पत्नी बहुत धार्मिक है और पति को यह सब बिलकुल पसंद नहीं. ऐसे में पत्नी को अपने अनुसार चलाने की कोशिश से बेहतर है कि पति अपनी पत्नी को अपनी धार्मिक मान्यताओं को मानने का हक दे.

उस की सोच को बदलने की कोशिश में रिश्ते में कड़वाहट आएगी. ?ाठ न बोलें अच्छे से अच्छे रिश्ते की नींव को ?ाठ कमजोर कर देता है. इसी वजह से पतिपत्नी को कभी भी एकदूसरे से ?ाठ नहीं बोलना चाहिए. बेहतर होगा कि दोनों एकदूसरे से ?ाठ न बोलें और न ही कभी कुछ छिपाएं. अगर पत्नी किसी बाबा या गुरु से मिलने जाती है या इन कामों में रुपए खर्च करती है तो उसे यह बात छिपानी नहीं चाहिए. सब बात क्लीयर रखनी चाहिए. जिम्मेदारियों को समझें देर से घर आना, धार्मिक कार्यों में हद से ज्यादा मशगूल रहना, जबतब धर्मगुरुओं को घर में बिठा कर रखना, ये ऐसी कुछ बातें हैं जो मैरिड लाइफ में तनाव पैदा कर सकती हैं. हर पतिपत्नी को यह सम?ाना चाहिए कि वह अकेले नहीं हैं. अब उन के साथ कोई और भी है जो इस समय घर में बैठ कर उन का इंतजार कर रहा है. ज्यादातर महिलाएं ज्यादा धार्मिक होती हैं. मगर इस के पीछे उन्हें अपनी जिम्मेदारियां नहीं भूलनी चाहिए.

मेरी बहू वीगन डाइट पर है , वह प्रेग्नेंट भी है क्या इस डाइट से बच्चे को संपूर्ण आहार मिल सकता है?

सवाल

मेरी बहू वीगन डाइट लेती है. अभी तक तो सब ठीक था लेकिन अब वह प्रैग्नैंट हो गई है. अब मुझे चिंता हो रही है कि क्या वीगन डाइट से बच्चे को संपूर्ण पोषण मिल सकेगा मुझे बहू और होने वाले बच्चे दोनों की चिंता हो रही है.

जवाब

आप की चिंता बिलकुल जायज है क्योंकि प्रैग्नैंसी कंसीव करने के बाद महिलाओं को अपने आहार पर बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है. उस दौरान महिलाओं को ऐसी डाइट का सेवन करना चाहिए जो उसे स्वस्थ रखे और वजन को भी कंट्रोल करे.

वीगन डाइट ऐसा डाइट प्लान है जो शरीर को पर्याप्त पोषक तत्त्व देता हैसाथ हीमां और बच्चे की सेहत को हैल्दी भी रखता है. वीगन डाइट एक ऐसी डाइट है जिस में पशु और पशु उत्पाद का सेवन करने से परहेज किया जाता है. इस डाइट में पौधेअनाजबीजफलसब्जियांनट्स और ड्राईफ्रूट्स को शामिल किया जाता है.

प्रैग्नैंसी में महिलाओं की इम्यूनिटी का स्ट्रौंग होना बहुत आवश्यक होता है और वीगन डाइट का सेवन इम्यूनिटी को स्ट्रौंग बनाता है और बौडी को हैल्दी रखता है. केलापपीताकिशमिश और अदरक जैसे खाद्य पदार्थ ऐसे प्रीबायोटिक्स हैं जो पेट में स्वस्थ रोगाणुओं के निर्माण को बूस्ट करते हैं जिस से इम्यूनिटी मजबूत होती है. इसलिए आप चिंता न करें और आने वाली खुशी पर ध्यान दें.

Short Story : औरत पैर की जूती

मैं  अपने चैंबर में बैठ कर मेज पर रखी फाइलों को निबटा रहा था. उसी समय नरेश एक रौबदार मूंछ वाले व्यक्ति के साथ कमरे में घुसा. लंबा कद और घुंघराले बालों वाले उस व्यक्ति की उम्र कोई 40 साल के आसपास की लग रही थी. चेहरे से परेशान उस व्यक्ति का परिचय नरेश ने कराया, ‘‘यह कैलाशजी हैं, गुजराती होटल के मैनेजर. इन के मकानमालिक ने इन का सारा सामान घर से निकाल कर सड़क के किनारे रखवा दिया है. बेचारे, बहुत मुसीबत में हैं. सर, इन की मदद कर दें.’’

‘‘इन्होंने मकान का भाड़ा नहीं दिया होगा?’’

‘‘अजी, किराया तो मैं पहली तारीख की शाम को एडवांस में ही दे देता हूं, अपुन मर्द आदमी है. किसी का उधार नहीं रखते.’’

‘‘तो फिर उस की बहन या लड़की को छेड़ा होगा?’’

‘‘सर, इस उम्र में किसी की बहन या लड़की को क्यों छेड़ेंगे.’’ कैलाश बोला, ‘‘मैं पिछले 10 सालों से उस का किराएदार हूं, अब मकानमालिक को लगता है कि कहीं मैं उस का मकान न हड़प लूं. इसलिए पिछले एक साल से डरा रहा है कि मकान खाली करो, वरना सामान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

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‘‘अब उस ने सामान बाहर फेंक कर अपनी धमकी पूरी कर दी,’’ मैं बोला.

‘‘जी, आप ने बिलकुल ठीक सोचा. अपुन मर्द आदमी है. चाहे तो मकान मालिक का सिर फोड़ सकता है, पर नरेश ने समझाया कि ऐसा बिलकुल नहीं करना. अब नरेश ही आप के पास मुझे ले कर आया है,’’ कैलाश ने उत्तर दिया.

नरेश मेरे पास पिछले 5 महीनों से वकालत का काम सीख रहा था. नरेश और कैलाश आपस में अच्छे मित्र थे. मैं ने नरेश को आदेश दिया कि वह कैलाश को साथ ले कर थाने जाए और पहले वहां कैलाश की रिपोर्ट दर्ज करा कर उस रिपोर्ट की कापी मेरे पास ले कर लौटे.

उन दोनों के जाने के बाद मैं ने कैलाश के इलाके के थाने में गणपतराव थानेदार को फोन कर के आग्रह किया कि वह कैलाश की रिपोर्ट लिखवा लें और कैलाश का मकानमालिक के साथ कोई उचित समझौता करवा दें.

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गणपतराव मेरा कोर्ट का साथी है. अत: गणपतराव और मुझ में अकसर बातचीत होती रहती थी.

मेरी छोटी सी सहायता के चलते कैलाश का अपने मकानमालिक से सम्मानजनक समझौता हो गया. कैलाश को एक साल की मोहलत मिल गई. कैलाश को उम्मीद थी कि इस एक साल के भीतर ही वह अपने प्लाट पर खुद का मकान बनवा लेगा.

फीस के रूप में कैलाश ने मुझे 5 हजार रुपए की एक गड्डी पेश की. मैं ने इसे लेने से इनकार कर दिया क्योंकि मेरा जमीर इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा था. पर इस व्यवहार से कैलाश इतना प्रभावित हुआ कि वह मेरा मित्र बन गया. वह खुद भी बहुत मिलनसार था और उस के दोस्तों की शहर में कमी न थी.

उस ने मेरे छोटेमोटे कई काम किए थे. अच्छा भुगतान करने वाले कुछ मुवक्किल भी मुझे दिलाए थे. अत: उस के प्रति स्नेह और सम्मान का भाव मेरे मन में पैदा होना स्वाभाविक था.

कैलाश की यह एक बात मुझे बहुत चुभती थी कि वह हर बात छिड़ने पर कहता था, ‘अपुन मर्द आदमी है. किसी का उधार नहीं रखता.’ शायद इस तरह का संवाद बोलना उस का तकिया कलाम बन चुका था.

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उस का यह तकियाकलाम सुनते- सुनते मैं अब तंग आ चुका था. अत: एक दिन जब कैलाश ने यही संवाद दोहराया तो मैं मुसकराते हुए बोला, ‘‘क्या तुम भाभीजी के सामने भी इसी तरह का संवाद बोल कर अपनी मर्दानगी दिखाते रहते हो? वह बरदाश्त कर लेती हैं क्या तुम्हारी हेकड़ी?’’

बस, फिर क्या था. कैलाश चालू हो गया, बोला, ‘‘अरे, तुम्हारी भाभी क्या कर लेगी? अपुन मर्द आदमी है. घर पर पूरा पैसा देता है, किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ता,’’ और जोर से होहो कर हंसते हुए बोला, ‘‘औरत को ताज चाहिए न तख्त……झापड़ चाहिए सख्त. पैर की जूती होती है, औरत.’’

मुझे कैलाश की बात पर बहुत हंसी आ रही थी और गुस्सा भी. मैं ने पूछा, ‘‘तुम औरत के बारे में इतने पिछड़े विचार आज के आधुनिक जमाने में रखते हो. आजकल तो औरतें आदमी को उंगली पर नचा रही हैं. तुम इतना सबकुछ पत्नी को सुनाने के बाद घर में शांति से खाना खा लेते हो?’’

‘‘वकील साहब, मेरी होटल की नौकरी है. रात को 1 बजे घर पहुंचता हूं तो वह मुझे ताजी रोटी बना कर खिलाती है. मैं बीवी को सिर पर नहीं चढ़ाता. पैर की जूती है वह,’’ कैलाश बहुत ही अभिमान के साथ बोला.

मेरी आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं. मुझे लगता था कि मेरी पढ़ाई और मेरा अनुभव बेकार है. मेरी वकालत पर कैलाश के अभिमान से आंच आने लगी थी. मेरी खुद की हिम्मत ऐसी नहीं थी कि मैं अपनी पत्नी या किसी दूसरी औरत के बारे में इतना खुला वक्तव्य दे सकूं.

यदि वह अपनी पत्नी से ऐसी बातें करे तो क्या इस के घर में झगड़ा नहीं होता होगा. क्या इस की पत्नी ऐसी बातें बरदाश्त कर लेती होगी? आखिर मैं अपना संयम रोक नहीं सका. उस से पूछ ही बैठा, ‘‘तब तो तुम्हारे घर में रोज ही खूब झगड़ा होता होगा?’’

‘‘झगड़ा…?’’ कैलाश अपनी आंखें चौड़ी कर के बोला, ‘‘बिलकुल नहीं होता. तुम्हारी भाभी की हिम्मत नहीं होती मेरे से झगड़ा करने की. अपुन मर्द आदमी है. औरतों का क्या, पैरों की जूतियां होती हैं. तुम्हारी भाभी को भी मैं ऐसे ही रखता हूं, जैसे पैर की जूती.’’

मेरे मन में उस समय कई तरह के प्रश्न उठ रहे थे. यदि कैलाश के दावे में दंभ अधिक नहीं है तो जरूर उस की पत्नी कोई असाधारण औरत होगी. यदि ऐसा नहीं है तो कैलाश के दावे का परीक्षण करना होगा. यह सोचते हुए मैं ने किसी समय कैलाश के घर जाने का फैसला लिया.

यह सुअवसर भी जल्दी ही मिल गया. कैलाश के 10 वर्षीय बेटे अजय का जन्मदिन था और इस मौके पर कैलाश अपने मित्रों को शाम का खाना घर पर ही खिलाना चाहता था. अत: उस ने अपने खासखास मित्रों को दावत पर बुलाया. मैं भी अपने जूनियर नरेश के साथ दावत में पहुंच गया.

कैलाश के घर का एकएक सामान करीने से लगा हुआ था. ड्राईंग रूम, बेड रूम, किचन और यहां तक कि टायलेट भी बहुत साफसुथरे थे. पता चला कि यह सब उस की पत्नी माला का कमाल था. मैं और नरेश तो कैलाश के छोटे भाई गोपाल के साथ उस का घर देख रहे थे.

इस के बाद हम घर के पीछे बने मैदान में गए. वहां एक शानदार शामियाना लगा हुआ था. वहीं कैलाश और उस की पत्नी माला आने वाले मेहमानों का स्वागत करते मिले.

मैं ने माला को देखा. वह 34-35 साल की उम्र में भी बहुत सुंदर लग रही थी. मैरून रंग की साड़ी और मैच करता ब्लाउज, गले में लाल रंग के मोतियों की माला, गोल चेहरा और शालीन व्यक्तित्व.

कैलाश ने परिचय कराया, ‘‘यह मेरी धर्मपत्नी माला देवी हैं.’’

मैं ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ कर माला को नमस्कार किया.

कैलाश ने माला से कहा, ‘‘ये वकील साहब राजेंद्र कुमारजी हैं.’’

‘‘अच्छा…अच्छा…समझ गई,’’ माला ने तुरंत कहा और मुझे हाथ के इशारे से आगे मेजकुरसी दिखाते हुए बोली, ‘‘आइए, भाई साहब, आप तो हमारे खास मेहमान हैं.’’

माला के साथ आगे बढ़ते हुए मैं ने पूछा, ‘‘लगता है कि आप मुझे जानती हैं?’’

‘‘देखा तो आज ही है, पर नाम से परिचित हूं क्योंकि इन की जबान पर हमेशा आप का ही नाम रहता है.’’

माला ने मुझे एक सोफे पर बैठने का इशारा किया और 1-2 मिनट के लिए इजाजत ले कर चली गई. जब वह वापस लौटी तो उसके हाथ की ट्रे में संतरे का जूस 2 गिलासों में मौजूद था. उस के आग्रह पर मैं ने और नरेश ने जूस का एकएक गिलास थाम लिया. फिर वह बहुत ही कोमल लहजे में हम से इजाजत ले कर कैलाश के पास चली गई.

मैं और नरेश आपस में बातचीत करते रहे. पता चला कि माला ने हिंदी साहित्य में एम.ए. किया है. घर में कैलाश के 2 बच्चे, (एक लड़का व एक लड़की) कैलाश की विधवा बहन तथा एक कुंवारा छोटा भाई मिल कर रहते हैं.

शामियाना थोड़ी ही देर में खचाखच भर गया तो कैलाश मेरे पास आया और केक की टेबल पर चलने का आग्रह किया. कैलाश का बेटा, पत्नी माला और निकट संबंधी भी केक की टेबल पर पहुंचे. ‘तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हों कई हजार’ गाने की ध्वनि के साथ कैलाश के बेटे ने केक काटा. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ मेहमानों ने उसे बधाई दी. उपहार दिए. फोटोग्राफर फोटो लेने लगे. इस के साथ ही भोजन का कार्यक्रम शुरू हो गया.

कैलाश ने पहली प्लेट मुझे पकड़ाई. मैं प्लेट में खाना डालने लगा. तभी कैलाश को निकट संबंधियों की सेवा में जाना पड़ा. कुछ देर बाद कैलाश की पत्नी माला मेरे पास आई. मैं ने उस से आग्रह किया कि वह भी साथ में खाना ले ले. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘सारे मेहमानों के बाद इन के साथ ही खाना लूंगी. आप के साथ सलाद ले लेती हूं,’’ और इतना कह कर उस ने एक गाजर का टुकड़ा उठा लिया.

मैं ने भी उसी मुसकराहट के साथ उत्तर दिया, ‘‘हांहां, आप अपने पति के साथ ही खाना, मेरे साथ सलाद लेने के लिए आप का बहुतबहुत धन्यवाद. लगता है कि उम्र के इस मोड़ पर भी आप अपने पति को बहुत चाहती हैं?’’

‘‘बढ़ती उम्र के साथ तो पतिपत्नी के बीच प्यार भी बढ़ना चाहिए न?’’ माला बोली.

‘‘आप दिल से कह रही हैं या असलियत कुछ और है?’’

‘‘भाई साहब, आप के मन में कोई शंका हो तो साफसाफ बताइए न, पहेलियां क्यों बूझ रहे हैं? हमारा जीवन तो खुली किताब है.’’

मैं थोड़ा संकोच के साथ बोला, ‘‘कैलाशजी मेरे परम मित्र हैं पर जब वह स्त्री जाति के बारे में कहते हैं कि वह तो पैर की जूती होती है, तब मुझे बहुत बुरा लगता है. वह कहते हैं कि मैं अपनी पत्नी को भी पैर की जूती समझता हूं. आप बताइए, अपने बारे में इतना जान कर आप कैसा महसूस कर रही हैं?’’

‘‘आप का प्रश्न कोई अनोखा नहीं है. इस तरह के प्रश्न अकसर लोग मुझ से पूछते रहते हैं. शुरू में यह सुन कर मुझे भी बहुत तकलीफ हुई थी पर अब तो आदत सी पड़ गई है. मैं ने इन को समझाया भी कि ऐसी गंदी बातें मत किया करो लेकिन यह सुधरते नहीं. अब तो मैं ने इन्हें इन के हाल पर छोड़ दिया है. वक्त ही इन्हें सुधारेगा. यदि मैं लोगों के उकसाने पर चलती तो शायद इन से मेरा तलाक हो जाता पर मैं ने बहुत ही गंभीरता से सारी परिस्थितियों पर विचार किया है.’’

‘‘अच्छा.’’

‘‘हां, इन से झगड़ा कर के अपने घर की सुखशांति भंग करने के बजाय मैं बात की तह में गई कि यह ऐसे संवाद आखिर क्यों बोलते हैं?’’

‘‘कुछ मिला?’’

‘‘हां, इन के बूढ़े पिता, जिन का अब स्वर्गवास हो चुका है, अपने जातिगत एवं पुरातनपंथी संस्कारों से पीडि़त थे. अपनी जवानी क्या, बुढ़ापे तक वह शराब का सेवन करते रहे. वह अपनी बीवी यानी मेरी सास की पिटाई भी किया करते थे.

‘‘अपनी मां को मार खाते देख कर इन्हें गुस्सा बहुत आता था. पर इन्होंने कभी मुझे मारा नहीं. ये शराब भी नहीं पीते. फिर भी अपने पिता की तरह खुद को बड़ा मर्द समझते हैं. बड़ीबड़ी मूंछें पिता की तरह ही रखी हुई हैं. कहते हैं कि मूंछें  रखना हमारी खानदानी परंपरा है. अपने पिता की तरह बारबार दोहराते हैं, ‘ढोर, गंवार, शूद्र, पशु, नारी ये सब ताड़न के अधिकारी.’

‘‘डींग हांकते हुए कहते हैं कि औरत तो मर्द के पैर की जूती होती है. अगर मैं इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लूं तो हम दोनों एक पल भी साथ नहीं रह सकते. इन में यही एक कमी है. इसलिए मैं ने इन को अधिक से अधिक प्यार दे कर हिंसक नहीं बनने दिया. पर इन के तकियाकलाम और नारी जाति के बारे में ऐसे संवादों पर रोक नहीं लगा पाई.’’

मेरी प्लेट का खाना खत्म हो चुका था. जूठी प्लेट एक बड़ी प्लास्टिक की टोकरी में डालते हुए मैं बोला, ‘‘भाभीजी, यदि आप जैसी समझदार महिलाओं की संख्या समाज में बढ़ जाए तो व्यर्थ के घरेलू झगड़े कम हो जाएं. कैलाश को तो वक्त ही ठीक करेगा.’’

‘‘अच्छा, मै चलता हूं,’’ कहते हुए मैं ने उन से इजाजत ली.

इस के बाद कैलाश से कई मुलाकातें हुईं, वह अपनी पत्नी को ले कर मेरे घर भी आया. मेरी पत्नी को भी माला का स्वभाव अच्छा लगा.

जून माह के बाद मुझे कैलाश कई दिनों तक नहीं मिला. अपना मकान बनवाने के कारण नरेश भी 2 महीने की छुट्टी पर था. छुट्टी के बाद नरेश काम पर आया तो मैं ने उस से पूछा, ‘‘कैलाश की कोई खैरखबर है? पिछले 3 महीनों से वह दिखाई नहीं दिया.’’

‘‘सर, वह तो महाराजा यशवंतराव अस्पताल में भरती है.’’

‘‘आश्चर्य की बात है. मुझे  किसी ने खबर नहीं दी. तुम्हारा भी कोई फोन इस संबंध में नहीं आया?’’

‘‘सर, मुझे खुद परसों पता लगा है.’’

मैं शाम को अस्पताल में पहुंच कर कैलाश के बारे में पूछतेपूछते उस के वार्ड तक जा पहुंचा. वार्ड में अभी मैं कैलाश का बेड ढूंढ़ ही रहा था कि मुझे माला ने देख लिया और बोली, ‘‘आइए, भाई साहब.’’

माला मुझे आवाज न देती तो शायद मैं उसे पहचान भी नहीं पाता. वह सूख कर कांटा हो गई थी. उस के गोरे गाल किशमिश की तरह पिचक गए थे.

मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अरे, तुम इतनी बीमार कैसे हो गईं? मैं ने तो सुना था कि कैलाशजी बीमार हैं.’’

‘‘आप ने ठीक सुना था, भाई साहब, मैं नहीं आप के भाई बीमार हैं. देखिए, वह पड़े हैं पलंग पर, लेकिन अब पहले से बहुत ठीक हैं.’’

मुझे देख कर कैलाश पलंग पर ही उठ बैठा. मैं स्टूल खींच कर उस के पास बैठ गया.

‘‘क्या हो गया था, कैलाश? तुम ने या माला ने तो कोई सूचना भी नहीं भेजी. क्या तुम लोगों के लिए मैं इतना गैर हो गया,’’ कैलाश को कमजोर हालत में देख कर मैं ने शिकायत की.

कैलाश की पीठ के पीछे बड़ा सा तकिया लगाते हुए माला बोली, ‘‘भाई साहब, अभी तक तो हम लोग ही इन्हें संभाल रहे थे. यदि कोई कठिनाई आती तो आप के पास ही आते.

‘‘इन्हें पीलिया हो गया था. इन का न तो कोई खाने का समय है और न ही सोने का. लिवर पर तो असर पड़ना ही था. पीलिया का इलाज चल रहा था कि इन्हें टायफाइड हो गया. अब इन्हें आवश्यक रूप से बिस्तर पर आराम करना पड़ रहा है,’’ यह कहते हुए माला को हंसी आ गई.

मुझे लग रहा था कि मेरे पहुंचने से इन दोनों को बहुत राहत मिली थी. अत: माला के उदास चेहरे पर भी बहुत दिनों बाद हंसी की रेखा फूटी होगी.

कैलाश भी मुसकाराया और बोला, ‘‘वकील साहब, यह मेरी सेवा करतेकरते खुद बीमार हो गई है. इस ने मुझे मरने से बचा लिया है. बहन और रिश्तेदार तो आतेजाते रहते थे पर माला मुझे छोड़ कर एक पल के लिए भी घर नहीं गई.’’

‘‘अरे, आप कम बोलो ना? डाक्टर ने ज्यादा बोलने के लिए मना किया है,’’ माला ने कैलाश को रोका.

कैलाश रुका नहीं, बोलता रहा, ‘‘मैं बुखार में चीखताचिल्लाता था. माला पर अपना गुस्सा उतारता था. पर यह औरत ठंडे पानी की पट्टियां मेरे सिर और बदन पर रखते हुए हर समय मुझे बच्चा मान कर दिलासा देती रहती थी. मैं इस का यह कर्ज इस जीवन में उतार नहीं पाऊंगा,’’ इतना बतातेबताते कैलाश की आंखों में आंसू आ गए थे.

वह एक पल को रुक कर बोला, ‘‘यह कब जागती थी और कब सोती थी, मुझे नहीं पता. लेकिन जब भी रात में मेरी आंख खुलती  थी तो यह मेरी सेवा करते मिलती. मेरे कारण देखो इस का शरीर कितना कमजोर हो गया है.’’

‘‘यह ठीक हो गए. अब घर जाने पर मैं भी अपनेआप ठीक हो जाऊंगी,’’ माला बोली.

मैं अपने साथ कुछ फल लाया था. उस में से एक संतरा निकाल कर छीला और फांके कैलाश को दी. माला को भी दिया. इस के बाद हम लोेग गपशप करने लगे. जब माहौल पूरी तरह से प्रसन्नता का हो गया तो मैं ने कैलाश से चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘कैलाश, तुम तो कहते थे, औरत पैर की जूती होती है. माला भी इसी दरजे में आती है. अब तुम माला को महान कह रहे हो. तुम्हारी यह राय सचमुच बदल गई है या सिर्फ अस्पताल तक सीमित है.’’

‘‘आप, वकील साहब सुधरेंगे नहीं, यहां अस्पताल में भी अपनी वकालत दिखा कर रहेंगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ मैं चौंका.

‘‘मतलब यह है कि आप मेरे गुनाहों को सब के सामने कबूलने के लिए कहेंगे?’’

‘‘मेरी ओर से कोई जोरजबरदस्ती नहीं है. मुजरिम भी तुम खुद हो और यह अदालत भी तुम्हारी है, जो मर्जी में आए फैसला लिख लो.’’

‘‘अगर ऐसी बात है तो वकील साहब मेरा फैसला भी सुन लो. मैं अपने दंभ और झूठे घमंड के कारण औरत को पैर की जूती कहता था. अब जमाना बदल गया है. कई मामलों में औरत आदमी से आगे निकल गई है. उसे सलाम करना होगा. उस का स्थान पैरों पर नहीं दिल और माथे पर है.

जीवनशैली: लौट चलें पत्रों की दुनिया में

डिजिटल तकनीक आने के चलते हम पत्रों से संवाद करना भूलते जा रहे हैं. इस से हमारी फीलिंग्स और भाषा का तो नुकसान हो ही रहा है, साथ में आपसी संबंधों पर भी असर पड़ रहा है. हम और आप इनकार नहीं कर सकते कि आज से कुछ साल पहले एकदूसरे तक संदेश पहुंचाने के लिए पत्र लिखा करते थे. वे संदेश या तो प्रेम का इजहार करने वाले, शादी, मृत्यु के समाचार, बधाई देने वाले, माफी मांगने वाले या फिर हालचाल जानने के लिए हो सकते थे. लेकिन जब से हम ने इंटरनैट की दुनिया में कदम रखा है, संदेश भेजने के तरीके में काफी बदलाव आ चुका है. अब हम किसी भी प्रकार के संदेश को पहुंचाने के लिए व्हाट्सऐप, फेसबुक, ईमेल आदि का उपयोग कर रहे हैं.

पत्रों की दुनिया से काफी दूर हो गए हैं. ऐसे में क्या हमें आज भी पत्र लिखना चाहिए या फिर इस नए जमाने की आधुनिक तकनीक का उपयोग करना चाहिए. आखिर दोनों में क्या अंतर है? क्या हमें आज के तकनीक युग में भी पत्र लिखना चाहिए? यदि हां तो क्या हैं इस के फायदे? भला इंटरनैट और मोबाइल के जमाने में पत्र लिखने का क्या काम, लेकिन याद रहे कई बार कुछ बातें हम किसी को सामने से कहने में डरते हैं या अपनेआप को असहज महसूस करते हैं या किसी से प्यार हो जाता है,

आत्मविश्वास डगमगा रहा हो, किसी से शिकायत हो या गुस्सा आए, बच्चों को सम?ाइश देनी हो, तब पत्र से अच्छा कोई माध्यम हो ही नहीं सकता. पत्र लिखना एक कला है. इस में हम हमारी भावनाओं और विचारों को शब्दों के जरिए लिखते हैं. पत्रों के माध्यम से हम अपनी बातों को लिख कर दूसरों तक पहुंचा सकते हैं व अपने शब्दों के जादू से अपने भावों को आसानी से व्यक्त कर सकते हैं. ऐसा होता है कि- किसी से प्यार हो जाता है : यदि आप आज की डिजिटल दुनिया में व्हाट्सऐप, ईमेल का उपयोग करेंगे तो हो सकता है आप केवल ‘आई लव यू’ लिखेंगे और प्यार वाले इमोजी सैंड कर देंगे. लीजिए हो गया प्यार का इजहार. लेकिन यदि आप प्यार के इजहार के लिए पत्र लिखेंगे तो यकीन मानिए,

आप अपनी भावनाएं बहुत अच्छे से उन तक पहुंचा पाएंगे और आप के द्वारा लिखे हुए शब्द उन पर गहरा असर डालेंगे क्योंकि कई बार डिजिटल मीडिया हमारे मन के ऊपर वह प्रभाव नहीं डाल पाता है जो एक लिखा हुआ पत्र डाल देता है. जब आप किसी को पत्र लिखते हैं तो दिल की गहराइयों से और बहुत सोचसम?ा कर लिखते हैं और कुछ शब्द हमारे दिल में हमेशा के लिए बस जाते हैं. आजकल हम कुछ भी कहने के लिए इमोजी का उपयोग करते हैं लेकिन यकीन मानिए, आप के शब्दों में जो जादू है वह एक इमोजी कभी भी नहीं ले सकती.

प्रेमपत्र प्रेम करने वालों के लिए एक अनमोल चीज है जिसे वे सालोंसाल सहेज कर रखना चाहते हैं. पत्र एहसास कराते हैं हमेशा पास होने का ताकि जब भी आप को उन की याद आए, आप तुरंत पत्र उठा कर पढ़ सकें. जबकि व्हाट्सऐप और ईमेल को खोलने व ढूंढ़ने में वक्त लग सकता है और यदि नैटवर्क की समस्या है तो आप चाह कर भी उसे नहीं पढ़ पाएंगे. यही नहीं, प्रेमपत्र आप सालोंसाल सहेज कर रख सकते हैं जबकि व्हाट्सऐप और ईमेल डिलीट भी हो सकते हैं.

उन्हें कोई भी हैक कर सकता है. याद रहे आप के प्रेमपत्र में से जो खुशबू, जोकि आप अपने प्यारभरे शब्दों से या फिर परफ्यूम या इत्र के इस्तेमाल से डाल सकते हैं, आती है उस का मुकाबला आधुनिक तकनीक नहीं कर सकती है.

जब हो किसी से शिकायत या आए गुस्सा : कई बार ऐसा होता है कि हम को किसी से बहुत शिकायत होती है, कोई बात हम को नागवार गुजरती है तो बहुत गुस्सा आता है लेकिन हम चाह कर भी कुछ नहीं बोल या कह पाते. उस से शिकायत नहीं कर पाते. जैसे कि आप के बौस, क्योंकि ‘बौस इज औलवेज राइट.’ तब हमारा चुप रहना ही बेहतर होता है और उस दौरान मजबूरन हम मन कचोट कर रह जाते हैं और मन ही मन घुटते रहते हैं जिस से हम को तनाव हो जाता है और कई बार बिना बात का हमें गुस्सा आता है. आप चाहें तो इस के लिए मेल और व्हाट्सऐप का भी उपयोग कर सकते हैं. इस से आप का संदेश या मैसेज तुरंत ही पहुंच जाएगा लेकिन ध्यान रहे, जब आप गुस्से में होते हैं तो आप कुछ अपशब्दों का भी उपयोग कर सकते हैं और यदि आप ने कुछ गलत लिख दिया तो इसे बाद में डिलीट करना कई बार मुश्किल हो सकता है, जब तक आप डिलीट करें, मैसेज पढ़ लिया हो और यदि ईमेल किया तो डिलीवर होने के बाद इसे वापस लेना संभव नहीं. लेकिन जब आप किसी को पत्र लिखते हैं तो सोचसम?ा कर पूरा समय ले कर लिखते हैं एवं बारबार पढ़ते हैं.

हो सकता है जब आप लिख रहे हों तो एक अच्छी भाषा शैली का उपयोग करें जिस से बात बिगड़े नहीं. यकीन मानिए, यह तरीका बहुत कारगर साबित होगा और आप के बीच की लड़ाई मिनटों में खत्म हो जाएगी और आप काफी रिलैक्स महसूस करेंगे.

जब आप का आत्मविश्वास डगमगा रहा हो : कई बार हमारे जीवन में ऐसे अवसर आते हैं कि हम अपना लक्ष्य हासिल करने में विफल हो जाते हैं और हम हमारा आत्मविश्वास एवं भरोसा खो देते हैं तो यह एक सही समय है खुद को पत्र लिखने का. आप के मन में जो कुछ भी चल रहा हो उसे एक कागज पर लिखने का और आप की अभी तक की सारी सफलताएं लिखने का क्योंकि आप की हर एक सफलता से आत्मविश्वास का मार्ग प्रशस्त होता है. यह आप का मनोबल बढ़ाने में काफी सहयोग प्रदान करेगा और आप को एक आतंरिक मजबूती देगा और बारबार लिखिए, ‘मैं यह कर सकता हूं, मैं यह कर सकता हूं’ और फिर बारबार पढि़ए.

यह आप के आत्मबल को मजबूती देगा, आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा. यह काम आप ईमेल या व्हाट्सऐप द्वारा नहीं कर सकते क्योंकि डिजिटल स्क्रीन पर छपे शब्द हमारे ऊपर वह प्रभाव नहीं डाल पाते जोकि आप के द्वारा कागज पर लिखे हुए शब्द. आप अपनी बात बेहतर सुन पाएंगे. यकीनन शब्दों की दयालुता और प्रभाव आत्मविश्वास पैदा करता है. जब देनी हो बच्चों को सम?ाइश : आजकल के बढ़ते इंटरनैट और मोबाइल के जमाने में हमारे बच्चे कहीं न कहीं अपने संस्कारों से दूर होते जा रहे हैं और उन के ऊपर आधुनिकता हावी हो रही है. वे कई बार गलत रास्ते पर चलने लगते हैं और अनजाने में कई नए संबंध बनाने लगते हैं. उस समय हम को सम?ा नहीं आता कि अपने बच्चों से कैसे बातचीत की जाए. बच्चों के साथ ईमेल और व्हाट्सऐप का उपयोग करना उपयुक्त नहीं है क्योंकि ईमेल और व्हाट्सऐप दिलों को जोड़ने का काम नहीं कर सकते.

पत्र हमेशा अपनेपन का एहसास कराते हैं जोकि कोई भी आधुनिक तकनीक नहीं करा सकती. इसलिए ऐसे समय पत्र लिखना एक अच्छा माध्यम हो सकता है. पत्र आप के और बच्चे के बीच सेतु का काम करेगा क्योंकि हम सभी विषयों पर बच्चों से बात करने में संकोच करते हैं. पत्र के माधयम से हम बिना किसी संकोच व हिचकिचाकट के अपनी बात रख सकते हैं. उन को अच्छे और बुरे में फर्क बहुत ही आसानी से शब्दों द्वारा सम?ा सकते हैं और अपने रिश्तों को सुदृढ़ बना सकते हैं.

आप के शब्द बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डाल सकते हैं. जबकि कोई भी बात स्क्रीन पर पढ़ने के बाद उसे याद रखना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि दिनभर में न जाने कितनी स्क्रीन हम स्क्रौल कर लेते हैं लेकिन लिखी हुई हर बात हमारे मन पर गहरा प्रभाव डालती है और कागज पर लिखे शब्द लंबे समय तक याद रहते हैं.

जब किसी से मांगनी हो माफी : जब हमें किसी से माफी मांगना हो तो आमनेसामने इस में हम कई बार असहज महसूस करते हैं और सोचते हैं, यदि माफी मांग लेंगे तो अपनेआप को छोटा महसूस करेंगे और फिर हम माफी मांगने के लिए डिजिटल मीडिया का उपयोग करेंगे तो बहुत ज्यादा विस्तार से कुछ नहीं लिख पाएंगे. बस, ‘आई एम सौरी’ लिख कर इतिश्री कर देंगे या फिर कुछ इमोजीस सैंड कर देंगे और ओके रिप्लाई मिल जाएगा. याद रहे, यहां न तो आप ने दिल से माफी मांगी है और न ही सामने वाले ने आप को दिल से माफ किया है. लेकिन यदि हम पत्र लिख कर माफी मांगेंगे तो आप को भी माफी मांगने में बिलकुल भी हिचकिचाहट नहीं होगी.

यदि कोई गलतफहमी हो गई हो, वह आप विस्तार से लिख सकते हैं और उसे दूर कर सकते हैं व माफी मांग सकते हैं. सामने वाले को भी बहुत अच्छा महसूस होगा और आप के माफीभरे पत्र के शब्द यकीन मानिए उन के दिल को छू जाएंगे. वे आप को दिल से माफ कर देंगे. याद रहे पत्र में लिखी हुई बात लंबे समय तक याद रहती है. पत्र में लिखे शब्द हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ते हैं. ईमेल और व्हाट्सऐप पर पढ़ी हुई बात को हम जल्द ही भूल जाते हैं क्योंकि हम दिनभर में न जाने कितनी स्क्रीन्स को स्क्रौल करते हैं, उस पर पढ़ते हैं और फिर याद रखने में खुद को असमर्थ पाते हैं. ईमेल और व्हाट्सऐप ने हमारी जिज्ञासा को खत्म कर दिया है. याद है न, जब पहले पोस्टमेन दरवाजे पर आ कर आवाज लगाता और कहता था, ‘चिट्ठी’. हम सभी आतुर हो जाते यह जानने के लिए कि किस की चिट्ठी आई है और क्या लिखा है. फिर कोई एक पढ़ता और सब सुनते. लेकिन अब यह खत्म हो चुका है.

कोई भी मेल या व्हाट्सऐप आता है हम को तो तुरंत नोटिफिकेशन आ जाता है. कई बार हम बहुत सी चीजें बिना पढ़े डिलीट कर देते हैं. अब पत्र लिखना हमारी भूलीबिसरी यादों में अतीत का एक हिस्सा बन कर रह गया है. अब केवल स्कूल के बच्चे परीक्षा में अंक पाने के लिए पत्र पढ़ते व लिखते हैं. इसलिए डिजिटल तकनीक की दुनिया में भी कभीकभी पत्र लिखें ताकि हम इन्हें भूलें नहीं. हो सकता है आज के डिजिटल युग में भी पत्र लिखना एक सुखद अनुभव रहे.

औफिस पौलिटिक्स बिगाड़ न दे मैंटल हैल्थ रौनक बेहद खुशमिजाज पर्सनैलिटी का व्यक्ति था. वह घर और औफिस दोनों में बेहतर सामंजस्य बनाए रखता. औफिस में बौस खुश और घर में परिवार वाले. लेकिन पिछले कुछ दिनों से वह बेहद उखड़ाउखड़ा, चिड़चिड़ा रहने लगा था, जिस का कारण था औफिस पौलिटिक्स का शिकार होना. हर किसी के औफिस में अलगअलग मिजाज के लोग होते हैं. कुछ एकदूसरे की सफलता को देख कर खुश होते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं जो जलन महसूस करते हैं जिस कारण वह दूसरों को नकारा साबित करना, गौसिपिंग या खुद को सर्वश्रेष्ठ घोषित करने की आड़ में उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं.

इस वजह से अच्छी परफौरमैंस वाला व्यक्ति भी तनाव में रहने लगता है. ऐसे में जरूरी है कि आप को इस परेशानी से बाहर निकलने के गुर आते हों. यहां हम ऐसे टिप्स सा?ा कर रहे हैं जो आप के लिए मददगार साबित होंगे. खुद पर भरोसा रखें : किसी भी परिस्थिति में खुद पर विश्वास न खोएं. कहीसुनी बातों पर ज्यादा ध्यान देने की जगह अपने काम पर पहले से ज्यादा ध्यान लगाएं. हर टास्क समय पर पूरा करें.

नकारात्मकता से बचें : ऐसे व्यक्ति बहुत खतरनाक सिद्ध होते हैं जो दूसरे की पीठ पीछे बुराई करते हैं. ऐसी नकारात्मक सोच रखने वाले व्यक्तियों से दूरी बनाएं क्योंकि यही वे लोग होते हैं जो औफिस पौलिटिक्स में महारत रखते हैं. इन की गौसिप में खुद शामिल होने से बचें. सही जानकारी हासिल करें : पुरानी कहावत है कि हमें आंखों देखी बातों पर विश्वास करना चाहिए, न कि दूसरों की बातों में आना चाहिए. जब तक आप के पास सही जानकारी न हो तब तक रिऐक्ट न करें.

बौस से करें चर्चा : यदि आप सही हैं और बात बहुत बढ़ गई है तो अपने बौस से उस विषय पर चर्चा अवश्य करें क्योंकि कई बार ऐसी परिस्थितियों में औफिस का माहौल भी बिगड़ जाता है. प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ में अंतर : प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ को एकदूसरे पर हावी न होने दें. कोशिश करें कि औफिस में हर किसी के साथ अपनी पर्सनल लाइफ का जिक्र न करें. साथ ही, घर में आते ही औफिस के कामों से दूरी बनाएं और अपने परिवार के साथ वक्त बिताएं. लेकिन यदि आप औफिस की किसी बात से परेशान हैं तो किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें जो भरोसेमंद भी हो और आप की बात को सम?ा सके.

तन्हाई में जागी पुरानी मोहब्बत

बात इसी साल के 24 जनवरी की है. सर्दी का मौसम था. 3 दिनों से रुकरुक कर बारिश हो रही थी. तापमान काफी नीचे गिर गया था. बर्फीली हवाएं चल रही थीं. सुबहसुबह प्रदीप पाल जल्द घर लौट आया था. घर पर मातम पसरा हुआ था. उस की पत्नी सीमा सिर झुकाए सिसक रही थी. 2-3 पड़ोसी उसे चुप करवा रहे थे. पिता कमरे में बेजान से बैड पर बैठे हुए थे. पास के दूसरे बैड पर उस की मां मृत पड़ी थीं.

प्रदीप को सीमा ने ही फोन कर जल्द घर आने को कहा. उस ने फोन पर बताया, ‘‘लगता है मांजी को रात में दिल का दौर पड़ा है… वह उठ नहीं रही हैं. तुम जल्दी आ जाओ.’’

कुछ समय में आसपड़ोस के कुछ और लोग आ गए थे. उन्होंने भी कहा, ‘‘लगता है, उन को रात में हार्ट अटैक आया. अकसर अधिक सर्दी के मौसम में बूढ़ों को हार्ट अटैक पड़ जाता है.’’

सीमा ने भी रोरो कर मोहल्ले के लोगों को बताया, ‘‘मांजी को हार्ट अटैक आया और मुझे कुछ पता ही नहीं चल पाया. वह अंतिम बार बात भी नहीं कर पाईं.’’

प्रदीप पाल ने जल्दी से मां के अंतिम क्रियाकर्म की तैयारी शुरू की और बिना किसी डाक्टरी परीक्षण के उसी रोज मां का दाह संस्कार भी कर दिया गया. कोरोना के कारण लगी कुछ पाबंदियों की वजह से प्रदीप मां की अंतिम शव यात्रा के लिए अधिक लोगों को बुला नहीं पाया था.

मां की मौत को एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि सीमा के परिवार में एक और बड़ा हादसा हो गया. वह हादसा उस के पति प्रदीप पाल के साथ ही हुआ था. प्रदीप 21 फरवरी, 2022 की सुबह बाइक से गौशाला जाने के लिए निकला था. रोहिणी इलाके के सेक्टर 24 के आगे हेलीपैड रोड पर पहुंचा ही था कि उसे कुछ लोगों ने गोली मार दी.

बाइक सवार बदमाशों ने बरसाईं प्रदीप पर गोलियां

उसे काफी नजदीक से 3 गोलियां दागी गई थीं. जिस के चलते घटनास्थल पर ही उस की मौत हो गई. मामला काफी सनसनीखेज था. 2 बाइक पर सवार 5 लोगों ने पिस्तौल लहराते हुए खुलेआम इस वारदात को अंजाम दिया था. दिल्ली के थाना बेगमपुर क्षेत्र में घटी इस घटना से आसपास के क्षेत्र में दहशत फैल गई थी.

सूचना मिलने पर बेगमपुर थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. रोहिणी के डीसीपी प्रणव तायल को जब इस घटना की जानकारी मिली तब उन्होंने तुरंत स्पैशल सेल के एसीपी ब्रह्मजीत सिंह के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने का जिम्मा सौंप दिया.

टीम में इंसपेक्टर ईश्वर सिंह, एसआई सुशील, जगदीश, एएसआई सुरेश, रूपेश, रविंदर और हैड कांस्टेबल सौराज को शामिल किया.

घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण करने और चश्मदीदों के बयान नोट करने के बाद लाश का पंचनामा कर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

लाश की जेब से मिले आईकार्ड और अन्य दस्तावेजों के आधार पर जब पुलिस प्रदीप के घर पहुंची और घटना की जानकारी दी तो वहां रोनाधोना मच गया. बूढ़ा बाप, जिस ने 3 हफ्ते पहले ही अपनी पत्नी को खो दिया था, अब जवान बेटे की हत्या का समाचार सुन कर जमीन पर गिर पड़े.

उधर सीमा भी पति की मौत का समाचार सुन कर पछाड़ें खाने लगी. तीनों बच्चे एकदूसरे का हाथ थामे रोने लगे. पुलिस ने किसी तरह पूरे परिवार को ढांढस बंधाया और आवश्यक जानकारी जुटा कर लौट गई.

अपने कार्यालय पहुंच कर एसीपी सिंह ने सब से पहले प्रदीप के मोबाइल फोन का डाटा निकालने के आदेश दिए. स्पैशल टीम के इंसपेक्टर ईश्वर सिंह ने जांच शुरू की, तो पाया कि एक फोन नंबर पर प्रदीप के फोन से काफी काल किए गए थे. उस पर लंबी बातें भी हुई थीं.

पता चला कि गौरव तेवतिया के नाम से रजिस्टर वह नंबर उत्तर प्रदेश का है. सीमा से गौरव के बारे में पूछने पर मालूम हुआ कि वह उन का किराएदार है, लेकिन हत्या की घटना के दिन से ही गायब है. उसी दिन से उस का फोन भी स्विच्ड औफ था.

उस पर पुलिस का शक गहरा गया. उस के फोन की भी काल डिटेल्स निकाली गई. पता चला कि उस के फोन से कुछ नंबरों पर लंबीलंबी बातचीत हुई थी.

घटना से पहले की रात जिस नंबर पर देर तक बात हुई, वह नंबर विशन कुमार उर्फ वासु का था. विशन के फोन नंबर को ट्रैक करते हुए पुलिस ने उसे दिल्ली के सुलतानपुरी स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर विशन से पूछताछ की गई. पुलिस की सख्ती के आगे वह ज्यादा देर नहीं टिक पाया. प्रदीप हत्याकांड के बारे में सब कुछ बताने को राजी हो गया.

इसी के साथ उस ने यह भी बता दिया कि प्रदीप की मां की भी हत्या हुई थी, जिसे सभी ने हार्ट अटैक समझा था. उन दोनों हत्याओं में वह शामिल था.

हत्या का गुनाह स्वीकार करने के बाद विशन ने जो कहानी सुनाई, वह काफी हैरान करने वाली थी. यानी प्रदीप के मर्डर से पहले हुई उस की मां की मौत भी हत्या ही थी. विशन ने इतनी बड़ी साजिश और क्रूरता का जो रहस्योद्घाटन किया था, उस का सूत्रधार कोई और नहीं, बल्कि प्रदीप की पत्नी सीमा ही थी.

विशन ने बताया कि प्रदीप और उस की मां की मौत का जिम्मेदार वह अकेले नहीं, बल्कि इस में गौरव तेवतिया भी शामिल था. उन्होंने सीमा के इशारे पर सब कुछ किया था. दोनों ने मिल कर गहरी नींद में सो रही मां का गला दबा कर मार डाला था.

उस की चीख तक नहीं निकल पाई थी. विशन ने पैसे के लिए यह काम किया,

लेकिन गौरव के बारे में वह बहुत जानकारी नहीं दे पाया.

विशन ने प्रदीप पाल की हत्या के लिए रचे गए चक्रव्यूह के बारे में बताया कि 21 फरवरी, 2022 की सुबह जैसे ही प्रदीप अपनी गौशाला जाने के लिए अपनी बाइक (डीएल 85एनबी 1220) पर निकला, सीमा ने तुरंत फोन से इस की सूचना गौरव को और गौरव ने विशन को दे दी.

खबर पाते ही 2 मोटरसाइकिलों पर विशन कुमार, परमिंदर उर्फ पम्मी, रिंकू पवार, सौरभ चौधरी और प्रशांत निकल पड़े. जल्दी ही उन्होंने हैलीपैड रोड पर प्रदीप के पीछे अपनी बाइक लगा दी और एक जगह काफी करीब आ कर उन्होंने उस पर फायर झोंक दिए.

गोली लगते ही प्रदीप पाल बाइक से गिर कर छटपटाने लगा और देखते ही देखते उस के प्राणपखेरू उड़ गए. वारदात को अंजाम दे कर हत्यारे तेजी से फर्राटा मारते हुए निकल भागे.

विशन के पुलिस की गिरफ्त में आने के कुछ समय बाद ही गौरव तेवतिया समेत दूसरे 4 हत्यारे पम्मी, रिंकू, सौरभ और प्रशांत भी गिरफ्तार कर लिए गए. उन की उम्र 22 से 27 साल थी. वे छटे हुए बदमाश थे. उन में कोई दादरी, नोएडा और गाजियाबाद तो कोई बुलंदशहर के निवासी हैं. इन के साथ ही हत्या की साजिश करने वाली सीमा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

सीमा और गौरव तेवतिया को आमनेसामने बिठा कर जब सख्ती से पूछताछ की गई, तब उन्होंने भी विशन की तरह अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस के बाद पुलिस ने सातों आरोपियों पर हत्या का मामला दर्ज कर जेल भेज दिया.

जाग उठा 8 साल पुराना प्यार

सीमा और गौरव ने जो बातें बताईं, उस में उन के बीच करीब 8 साल पुरानी लव स्टोरी सामने आई. उन की उस प्रेम कहानी में

बीते कुछ माह पहले एक बार फिर बहार आ गई थी.

हालांकि सीमा की शादी उत्तरी दिल्ली के रिठाला निवासी प्रदीप पाल के साथ

10 साल पहले तब हुई थी, जब वह 21 साल की थी.

सीमा की ननिहाल गौतमबुद्ध नगर के दादरी क्षेत्र के चमरावली रामगढ़ गांव में थी. वहीं सीमा के मामा का घर है. शादी के बाद इसी गांव के रहने वाले अपने से छोटे 19 साल के गौरव तेवतिया से सीमा को प्यार हो गया था. दरअसल, ननिहाल आतेजाते सीमा की गौरव से पहले मुलाकात हुई, फिर बातें और हंसीमजाक.

जल्द ही उन के बीच अनैतिक संबंध भी बन गए. वह यौवन की दहलीज पर यह भूल गई थी उस की शादी हो चुकी है.

शादी के बाद उत्तर प्रदेश से दिल्ली आ जाने के कुछ समय तक सीमा के जेहन में गौरव की यादें बसी रहीं. उन का मिलनाजुलना तो दूर की बात, बातचीत तक बंद हो गई. इस बीच सीमा 3 बच्चों की मां भी बन गई.

हालांकि सीमा और गौरव दिल्ली एनसीआर में रहते थे. दोनों का परिवार दिल्ली से सटे गाजियाबाद और नोएडा की सीमा में अलगअलग गांवों में रहता है.

सीमा ब्याह कर दिल्ली आ गई, लेकिन गौरव अपने मांबाप के पैसे से ऐश कर रहा था. वह कोई कामधंधा नहीं करता था.

सीमा की ससुराल कहने को दिल्ली के एक ग्रामीण इलाके में थी, लेकिन रहनसहन शहरी था. ससुर द्वारा बनवाए हुए घर के ऊपरी हिस्से में दरजन भर कमरे थे. उन्हें पति प्रदीप ने किराए पर दे रखे थे. उन से उस की अच्छी आमदनी हो जाती थी.

प्रदीप पाल का दूध का बिजनैस था. भैंसें पाल रखी थीं और दूध सप्लाई का काम करता था. इस काम में वह काफी बिजी रहता था.

घर में उस के बूढ़े मातापिता थे. पिता अकसर बीमार रहते थे. इसलिए घर की देखभाल की जिम्मेदारी सीमा पर आ गई थी. सीमा ससुराल आ कर अपनी घरगृहस्थी में जल्द ही रम गई थी. गौरव कब उस की जेहन से निकल गया, पता ही नहीं चला.

साल बीततेबीतते उस की गोद में एक प्यारी सी बेटी आ गई. अगले कुछ सालों में उस ने एक और बेटी और उस के बाद एक बेटे को भी जन्म दिया.

मगर उस के बाद सीमा अपनी जिंदगी से उकताने लगी थी. बच्चों की देखभाल और सासससुर की सेवा बोझ लगने लगी. इस की एक वजह और भी थी. वह यह कि उस के पति का अधिकतर समय गौशाला और दूध के कारोबार में ही बीतता था.

यहां तक कि प्रदीप रात में भी सीमा के साथ समय नहीं गुजारता था. वह बाहरी दिल्ली के बेगमपुर एक्सटेंशन इलाके में बनी अपनी गौशाला में ही रहता था.

पत्नी की भावनाओं का नहीं रखा ध्यान

घर कुछ समय के लिए ही आता था और फटाफट घरेलू कामकाज निपटा कर फिर कारोबार के सिलसिले में चला जाता था.

प्रदीप के पास 3 भैंसे थीं, जिन्हें वह घर से दूर गौशाला में रखता था. रात को भैंसों की देखरेख और रखवाली के लिए वह गौशाला चला जाता था. सुबह भैंसों को चारापानी देने और दूध दूहने के बाद ग्राहकों को दूध बेचने चला जाता था. सारा काम निपटाने के बाद ही घर लौटता था.

उस के पीछे सीमा अपने बच्चों और सासससुर की देखभाल में लगी रहती थी. उस की रातें बिस्तर पर करवटें बदलते बीत रही थीं. उस के मन और शरीर की जरूरतें जस की तस थीं.

सैक्स की चाहत में सुलगती सीमा एक दिन अपने बीते दिनों को याद करने लगी. उसी सिलसिले में उसे पिछले प्यार की यादें ताजा हो आईं.

बारबार पूर्व प्रेमी का चेहरा नजरों के सामने से गुजरने लगा. उस के गुजारे हसीन लम्हे याद आने लगे. उस की चुलबुलाती बातें, हंसीमजाक, देह से छेड़छाड़. चूमनासहलाना और बहुत कुछ सिनेमा के फ्लैश बैक की तरह फटाफट दिमाग में घूम गया.

गौरव की फिर से यादें ताजा होने के बाद मन उस से मिलने के लिए छटपटा उठा. जब बेचैनी हद से ज्यादा होने लगी, तब उस ने गौरव का फोन नंबर पता किया.

संयोग से पुराने फोन में उस का नंबर मिल भी गया… और फिर एक दिन सीमा के दिमाग में क्या सूझी कि उस ने गौरव को फोन मिला दिया.

‘‘हैलो गौरव, मैं सीमा बोल रही हूं. सुन रहा है न तू… तू तो याद करता नहीं, इसलिए मैं ने आज तुझे ही याद कर लिया..’’

फोन पर काफी समय बाद अचानक सीमा की आवाज सुन कर गौरव अचकचा गया. उस के मुंह से निकल पड़ा, ‘‘साली, तुझे अब मेरी याद आई है… इतने दिनों बाद… हरामजादी कहां थी इतने दिनों…’’

‘‘गौरव देख, गालियां मत दे. मानती हूं तुझे बहुत दिनों तक भुलाए रही. लेकिन मैं आज भी तुझ से उतना ही प्यार करती हूं, जितना पहले किया करती थी. भला मैं तुझे कैसे भूल सकती हूं. तू तो मेरा पहला प्यार है. कोई पहले प्यार को भूल पाया है, जो मैं भूलूंगी?’’ सीमा प्यार से बोली.

‘‘मैं कैसे मान लूं. साली, मैं जानता हूं कि तू तो अब सेठानी बन गई है. मालदार है. पति का बड़ा बिजनैस है. पैसा है… मुझे झूठा दिलासा दे रही है. क्योंकि मैं ठहरा निकम्मानिठल्ला…’’ गौरव लगातार बोलता ही जा रहा था.

सीमा बीच में टोकती हुई बोली, ‘‘तू अपनी ही बात कहे जा रहा है. मेरी बात को समझने की कोशिश तो कर. जो बात तुझ में है वह प्रदीप में नहीं है. तू मिलेगा तो मैं सब कुछ बताऊंगी तुझे. देख, पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मुझे आज भी तेरा ही इंतजार है.’’

‘‘बोल तो फिर कब मिलेगी? यहां तो फिर से लौकडाउन लग गया है. रात का कर्फ्यू है,’’ गौरव बोला.

‘‘मैं बाद में बताऊंगी. इतना समझ ले कि तेरी मुझे बहुत याद सता रही है,’’ सीमा बोली और फोन डिसकनेक्ट कर दिया.

बिछुड़े दिल में आया उछाल

लंबे अरसे बाद फोन पर सीमा की बातें सुन कर गौरव बेचैन हो उठा. बीते दिनों का बिछुड़ा प्यार दिल में उछाल मारने लगा. मन फिर से बिछुड़ी प्रेमिका से मिलने के लिए बेचैन हो गया.

भले ही प्रेमिका शादीशुदा थी, मगर उस के लिए तो वह अभी भी वही कमसिन सुकुमारी ही थी, जिसे प्यार से ‘सैक्सी सिम्मी’ कह कर बुलाता था.

क्योंकि उस के सैक्सी अंदाज पर वह कलेजा निकाल कर रख देता था. वह भी उसे आहें भरने तक की नौबत ही नहीं आने देती थी. मिलते ही झट से गले लग जाती थी और गौरव उसे चूम लेता था.

जब सालों बाद उस ने कहा कि उस का आज भी इंतजार है, तब वह खुद को रोक नहीं पाया. उस का नंबर अपने फोन में सेव कर लिया.

सीमा जिसे प्यार से गौरव बुलाती थी, उस का पूरा नाम गौरव तेवतिया है. सीमा से फोन पर बात होने के बाद वह उस से मिलने के लिए बेचैन हो उठा. उस की अगली काल का इंतजार करने लगा.

अपना गांवघर छोड़ कर गौरव दिल्ली आने की योजनाएं बनाने लगा, लेकिन समस्या किसी सही ठौरठिकाने की थी. वह दिल्ली में ही कोई काम भी करना चाहता था.

अगले रोज ही उस ने सीमा को मिस काल की. तुरंत उधर से सीमा की काल भी आ गई, ‘‘कैसा है, दिल्ली आने का मन बना लिया?’’

‘‘मन तो बहुत है, मगर…’’

‘‘मगर क्या? मनी प्राब्लम है?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘नहीं, दिल्ली में मेरा रहने का कोई इंतजाम नहीं है. पैसा तो वहां कोई काम कर के कमा ही लूंगा,’’ गौरव बोला.

‘‘उस का समाधान मेरे पास है. मैं जैसा कहूंगी तू वैसे ही करना,’’ सीमा बोली.

‘‘अरे तू तो समझदार भी हो गई है.’’

‘‘चलचल चापलूसी मत कर,’’ कहती हुई सीमा ने फोन कट कर दिया.

सीमा के इस फोन ने गौरव के दिल में एक बार फिर गुदगुदी पैदा कर दी. उस से मिलने की बेचैनी बढ़ गई. वह उस के खयालों में खो गया.

ऐसा ही हाल सीमा का भी था. उस ने दोचार बातें करने के बाद फोन कट तो कर दिया था, लेकिन गौरव की पहले जैसी नजदीकियां पाने के लिए वह उतावली थी.

वह उस के मुंह से एक बार फिर ‘सैक्सी सिम्मी’ सुनना चाहती थी. पति की अनदेखी से आसमान छूती शारीरिक ख्वाहिशों को जल्द से जल्द पूरी करना चाहती थी.

सीमा प्रेमी से मिलने को थी बेताब

उसी दिन रात को घर का सारा काम निपटा कर सीमा ने गौरव को फोन किया, ‘‘गौरव, तू मुझ से मिलने दिल्ली आ जा. मैं ने तेरे रहने का सारा बंदोबस्त कर दिया है.’’ सीमा ने फोन पर मनुहार की.

‘‘पर तेरा पति..?’’ गौरव ने शंका जाहिर की.

‘‘वह शाम को गौशाला चला जाता है, रात में वहीं सोता है. उस की जिंदगी तो भैंसों के बीच चलती है,’’ सीमा चिढ़ते हुए बोली.

‘‘कल आ जाऊं? किस मैट्रो स्टेशन पर आना है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘रिठाला. दिन में एक बजे गेट नंबर 3 से बाहर निकलना. मैं तुझे वहीं नीचे कुलचे वाले के पास मिल जाऊंगी. मुझे पहचान लेना. मैं फैंसी मास्क पहने रहूंगी,’’ सीमा ने समझाया.

‘‘साली, तू तो एकदम दिल्ली वाली टनाटन हो गई है, क्या बात है,’’ गौरव चहकते हुए बोला.

‘‘बसबस ज्यादा बहकने की जरूरत नहीं है. यहां हम अनजान बन कर मिलेंगे, इस का खयाल रखना,’’ सीमा ने समझाया.

काल काटने के बाद गौरव को ऐसा लगा जैसे उस की कई दबी हुई इच्छाएं एक साथ पूरी होने वाली हैं. उस की बांछें खिल गईं.

अगले रोज वह दिल्ली आ गया. सीमा की बताई जगह पर समय पर पहुंच गया. सीमा ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ. वह सीमा के शहरी लुक और चेहरे पर मास्क लगे होने के चलते नहीं पहचान पाया, लेकिन सलवारसूट के पहनावे और हाथ में दुपट्टा लपेटने के स्टाइल से पहचान लिया.

सीमा गौरव को देखते ही पहचान गई. तुरंत बोल पड़ी, ‘‘तू तो पहले जैसा ही है, जरा भी नहीं बदला.’’

‘‘कहां चलना है?’’ गौरव बोला.

‘‘फोन पर तो बहुत चहक रहा था, यहां सिट्टीपिट्टी गुम  हो गई.’’ सीमा ने मजाक किया.

‘‘ऐसा नहीं है, मैं तेरे बदलाव को देख रहा हूं. तू तो बहुत बदल गई है और समझदार भी हो गई,’’ गौरव बोलने लगा.

लेकिन सीमा बीच में ही टोकती हुई बोल पड़ी, ‘‘यहां से पास में ही मेरी ससुराल है. दूध वाले का घर पूछेगा तो कोई भी बता देगा. मेरे मकान में किराए के लिए कई कमरे खाली हैं. किराया बहुत अधिक नहीं है. तू एक कमरा किराए पर ले लेना. मेरा पति तुझे किराए पर रख लेगा. उस से कहेगा तो तुझे कोई काम भी दिलवा देगा,’’ सीमा बोली.

‘‘तू पति से कह कर किराया थोड़ा कम करवा देना,’’ गौरव बोला.

‘‘पागल है क्या! तू पति की नजरों में अनजान बने रहना. वहां उसे जरा भी एहसास नहीं होना चाहिए कि तू मुझे पहले से जानता है.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है,’’ गौरव बोला.

‘‘तू उस से आज ही 5 बजे से पहले मिल कर किराया हाथ पर रख देना. पूरा नहीं तो कुछ एडवांस ही दे देना. वह कमरा दे देगा. बस, ध्यान रहे उस के सामने न तू मुझे जानता है और न मैं तुझे. समझ गया न?’’ सीमा बोली.

‘‘हां, बिलकुल समझ गया मेरी सैक्सी सिम्मी,’’ गौरव धीमे से बोला.

‘‘मैं यही सुनने के लिए कब से बेचैन थी. धीरे से ही सही, बोला तो…’’

‘‘एडवांस कितने महीने का देना होगा?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘कुछ भी दे देना, वह मान जाएगा. कई कमरे खाली हैं. पैसे नहीं हैं तो बोल. मैं लाई हूं,’’ सीमा बोली.

‘‘नहीं, उस की जरूरत नहीं है.’’

सीमा के कहने के मुताबिक गौरव प्रदीप से मिला और 2 महीने का एडवांस किराया दे कर कोने का कमरा किराए पर ले लिया. क्योंकि उस कमरे से सीमा की रसोई साफसाफ दिखती थी.

सासससुर को देती थी नींद की गोलियां

कमरा किराए पर ले कर वह उसी रोज अपने गांव लौट गया. अगले रोज कुछ जरूरी सामान के साथ वापस आ गया. आते ही उस ने प्रदीप से मुलाकात की. उस से कोई काम दिलवाने के लिए भी कहा.

उस के बाद से सीमा और गौरव को एकदूसरे की झलक पाने के लिए तरसना नहीं पड़ता था. दोनों हर वक्त एकदूसरे की नजरों के सामने थे.

दिन में गौरव सीमा को दूर से निहारता था और रात होते ही वह उस के कमरे में पहुंच जाता था. वहां दोनों रंगरलियां मनाते थे. सुबह प्रदीप के लौटने से पहले सीमा कमरे को दुरुस्त करती हुई पतिव्रता बन जाती.

उन की रासलीला में बाधा केवल उस के सासससुर ही थे. उसे उन की नजरों से भी बचना था.

सीमा ने इस का रास्ता निकाल लिया था. वह सासससुर को रात के खाने और पानी में नींद की गोलियां मिला देती थी. गोलियां गौरव ला कर देता था.

सीमा के ससुर पहले ही बीमार रहते थे, नींद की दवा मिला खाना खाने के बाद वह तुरंत गहरी नींद में सो जाते थे. मगर सीमा की सास पर दवा का असर कुछ कम ही रहता था. वह अकसर नींद से जाग जाती थीं.

ऐसे ही एक रात जब गौरव सीमा के कमरे में था, प्रदीप की मां की आंखें खुल गईं. कमरे में धीमे स्वर में बातें करने की आवाज आई तो उन्हें कमरे में किसी के होने का संदेह हुआ.

सुबह उस ने सीमा से पूछा, तब वह बहाना बना कर निकल गई. मगर वह समझ गई कि   बुढि़या को उस पर शक हो गया है. उस ने गौरव से सावधान रहने को कह दिया.

उस के बाद सीमा सासससुर के गहरी नींद में सोने का पक्का इत्मीनान होने के बाद ही गौरव को बुलाती थी. 7 महीने तक यही सब चलता रहा. मगर उस की यह चालाकी बहुत दिनों तक नहीं चली.

एक सुबह सीमा की सास की आंखें मुंहअंधेरे ही खुल गईं और उस ने गौरव को सीमा के कमरे से निकलते देख लिया.

गौरव ने भी देख लिया कि उस की चोरी पकड़ी गई है.

सास ने सीमा को धमकाया कि वह अपनी हरकतों से बाज आ जाए, वरना प्रदीप को सारी बात बता देगी. इस पर सीमा ने हाथपैर जोड़ कर सास से माफी मांग ली और उन्हें मना लिया कि आगे से ऐसा नहीं होगा.

फिर भी जब सीमा को एहसास हुआ कि सास उस पर नजर रखती है, तब उस ने उसे अपने प्यार के रास्ते से हटाने का खतरनाक इरादा बना लिया.

23 जनवरी की सर्द रातों में प्रदीप शाम ढले गौशाला चला गया था. उस रात सीमा ने खाने में नींद की दवा अधिक मात्रा में मिला दी. खाना खाने के बाद उस के सासससुर गहरी नींद में सो गए.

दोनों के सो जाने के बाद सीमा ने गौरव को बुलाया. उस दिन गौरव के साथ उस का दोस्त विशन कुमार उर्फ वासु भी ठहरा हुआ था. दोनों ने आ कर सीमा की सास को गला दबा कर मार डाला.

इस के बाद सीमा ने सास की चुन्नी उस के गले में इस तरह लपेट दी कि निशान नजर नहीं आए. फिर लाश को सोई हुई स्थिति में लिटा कर कमरे का दरवाजा भिड़ा दिया और अपने कमरे में जा कर सो गई.

सुबह उस ने प्रदीप को फोन कर जल्दी घर आने के कहा. प्रदीप आया तब उस ने भी मां के कमरे में जा कर जगाना चाहा,

मगर वहां तो मां मुर्दा पड़ी थी. शरीर ठंडा पड़ चुका था.

वहां मौजूद सभी लोगों ने एक ही बात हार्ट अटैक की बात दुहराई. मगर प्रदीप की हत्या के बाद यह सच उजागर हुआ कि वह भी हत्या थी, जिस को बहू के इशारे पर उस के प्रेमी ने अंजाम दिया था.

सीमा अब अपनी बाकी की जिंदगी प्रेमी गौरव तेवतिया के साथ ऐश के साथ बिताना चाहती थी, इसलिए अपने मिशन में रोड़ा बने पति प्रदीप को भी हमेशा के लिए हटाना चाहती थी. इस बारे में उस ने अपने प्रेमी गौरव से बात की तो वह भी इस के लिए तैयार हो गया.

दादरी निवासी गौरव तेवतिया ने इस बारे में प्रेमिका सीमा के साथ योजना बनाई. यह काम गौरव अकेला नहीं कर सकता था. इस संबंध में उस ने अपने ही गांव के रहने वाले परविंदर से बात की. परविंदर उस का साथ देने को तैयार हो गया.

परविंदर की मार्फत बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश निवासी रिंकू (22 वर्ष), सौरभ चौधरी (23 वर्ष), प्रशांत (22 वर्ष) व दिल्ली के सुलतानपुरी निवासी विशन कुमार (18 वर्ष) से बात हुई. इन सभी को 4-4 लाख रुपए देने तय हुए.

गौरव तेवतिया की पिछले दिनों रेलवे ने कुछ जमीन अधिग्रहीत की थी, जिस के बदले में उसे मोटा पैसा मिला था. इसलिए उस ने प्रेमिका से कह दिया था कि सुपारी के 20 लाख वह अपने पास से दे देगा.

योजना के अनुसार 21 फरवरी, 2022 को सभी आरोपी 2 मोटरसाइकिलों से उसी रास्ते में पहुंच गए, जहां से प्रदीप अपनी गौशाला जाता था. फिर मौका देख कर उन्होंने प्रदीप की गोली मार कर हत्या कर दी.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर वारदात में प्रयुक्त 2 मोटरसाइकिलें, 3 पिस्टल, 10 जीवित कारतूस, 6 मोबाइल फोन आदि बरामद कर लिए.

इस के बाद पूछताछ कर सभी को रोहिणी स्थित कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया.

इस पूरे घटनाक्रम से प्रदीप के बीमार पिता गहरे सदमे में आ गए. उन के कंधों पर प्रदीप के 3 छोटेछोटे बच्चों की जिम्मेदारी आ गई.

सौजन्य: – मनोहर कहानियां

(लोकेशन- रोहिणी, दिल्ली)

शिक्षा विशेष: सैलिब्रिटी बन गए कोचिंग गुरु

कोचिंग गुरु देशभर में हजारों कोचिंग सैंटरों का जाल बिछा है मगर उन कोचिंग सैंटरों में कुछेक ही ऐसे मुकाम तक पहुंच पाए जिन्होंने ऐसे शिक्षकों को जन्म दिया जो अपने नाम की ब्रैंडिंग कर छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं. उन्हीं में खान सर और डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति हैं. कोचिंग और ट्यूशन का बाजार बढ़ रहा है तो वहीं कोचिंग चलाने वाले टीचर सैलिब्रिटी बन गए हैं. कोचिंग पढ़ाने वालों ने अपने यूट्यूब चैनल बना कर भी शोहरत हासिल की है. खान सर और डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति के नाम इन में सब से ऊपर हैं. ये अपने अलगअलग कामों से भी चर्चा में बने रहते हैं.

इन की शोहरत का ही असर है कि टीवी के बड़ेबड़े शो में इंटरव्यू के लिए ये बुलाए जाते हैं. सोशल मीडिया पर इन के करोड़ों फौलोअर्स हैं जिस के कारण यूट्यूब पर इन के देखने वालों की संख्या बहुत है. वीडियो अपलोड होते ही करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है. इस से इन की आमदनी लाखों में होती है. पहले कोचिंग क्लासेस में लिखने और नोट्स बनाने की आदत डाली जाती थी, अब कोचिंग संस्थाओं द्वारा बनेबनाए नोट्स दे दिए जाते हैं. इस के अलग से पैसे लिए जाते हैं.

खुद के नोट्स न बनाने के कारण छात्रों के पढ़ने व लिखने की आदत छूटती जा रही है. वे केवल परीक्षा को पास करने का ही हुनर जानते हैं. ऐसे में जो छात्र परीक्षाओं में सलैक्ट नहीं होते वे लिखनेपढ़ने का कोई कैरियर नहीं बना पाते हैं. ऐसे छोटेबड़े कोचिंग गुरु हर शहर में होते हैं. कोचिंग से बड़ी इन की अपनी पहचान होती है. तमाम कोचिंग इन के नाम पर ही चलती हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सड़कों पर तमाम बोर्डों पर लिखा मिल जाता है, ‘इंजीनियर डाक्टर बनने के हैं सपने तो रघुवंशी सर हैं अपने’. अशोक सिंह रघुवंशी लखनऊ में रघुवंशी कोचिंग चलाते हैं. डाक्टर बनने के लिए जो भी बच्चे नीट परीक्षा की तैयारी करने आते हैं, रघुवंशी सर उन की पहली पसंद होते हैं.

ऐसे तमाम नाम हैं जो शहरों में मिल जाते हैं. ये टीचर कोचिंग सैंटर से अधिक पहचाने जाते हैं. छात्रों के बीच ये काफी लोकप्रिय होते हैं. ट्यूशन क्लास से कोचिंग सैंटर तक खान सर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चों के बीच ‘खान सर’ बहुत मशहूर हैं. ‘खान सर’ का असली नाम ‘फैजल खान’ है. खान सर खुद असल नाम बताने से बचते हैं. वे इस सवाल को किसी न किसी तरह से टाल जाते हैं. खान सर अपना असल नाम ही नहीं, पर्सनल जीवन पर भी चर्चा नहीं करते हैं. इस का एक कारण निजी प्राइवेसी के साथ ही साथ कारोबारी प्रतिद्वंद्विता भी है. खान सर पहले के कोचिंग टीचरों की तरह नहीं हैं. यूट्यूब चैनल की सफलता के बाद खान सर सैलिब्रिटी बन चुके हैं.

ऐसे में उन की प्राइवेसी भी खुल गई है. लोग इन के बारे में जानकारी देना और रखना दोनों ही पसंद करते हैं. खान सर का जन्म 1993 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में रहने वाले एक छोटे से परिवार में हुआ था. बचपन में वे बहुत ही शरारती थे. इस से उन की मम्मी और बाकी परिवार के लोग बहुत परेशान रहते थे. खान सर को बचपन में गुल्लीडंडा खेलना बेहद पसंद था. इस में रोज किसी न किसी से लड़ाई कर लिया करते थे. परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. इस के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था उन्हें. परिवार वालों को चिंता रहती थी कि उन का लड़का क्या करेगा? उन के पापा शिप बिल्ंिडग, पाइप लाइनिंग, विदेश में नौकरी जैसे अलगअलग काम करते थे. कोई एक काम न होने के कारण परिवार आर्थिक परेशानियों में रहता था. खान सर ने जब 8वीं क्लास पास की तो उन को फौज में जाने का जनून था. जिस के लिए 9वीं क्लास में सैनिक स्कूल का एग्जाम दिया. जिस में वे सफल नहीं रहे. इस के बाद उन्होंने पौलिटैक्निक का एग्जाम दिया, जिस में उन के नंबर अच्छे नहीं आए. इस के बाद इंटरमीडिएट यानी 12वीं की परीक्षा पास की. ग्रेजुएट करने के बाद जियोग्राफी में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. बचपन में खेलने के दौरान उन के हाथ में चोट लग गई थी जिस से उन का हाथ टेढ़ा है और यह कारण बना उन के सेना में न जा पाने का.

गोरखपुर से वे बिहार की राजधानी पटना रहने के लिए आ गए. खान सर का सब से अधिक साथ उन के 3 दोस्तों ने दिया. जिन का नाम सोनू, हेमंत और पवन है. हेमंत ने उन का साथ पढ़ाने में दिया. हेमंत ने ही पहली बार खान सर के लिए होम टयूशन का इंतजाम किया. खान सर ने जिस बच्चे को पहली बार पढ़ाया उस का परफौरमैंस काफी अच्छा रहा. उस के बाद खान सर ने एक कोचिंग में पहली बार 6 बच्चों को पढ़ाया. कुछ दिन पढ़ाने के बाद उन की क्लास बच्चों को काफी पसंद आने लगी और बच्चों की संख्या लगातार बढ़ती गई. बच्चों को खान सर का पढ़ाना अच्छा लगने लगा और खान सर को बच्चों का साथ. यहीं से खान सर का नाम उन को मिला. पटना में खान सर ने ‘खान सर रिसर्च सैंटर’ नाम से अपना कोचिंग सैंटर खोला. इस कोचिंग सैंटर में उन के पार्टनर भी थे,

जिन से जल्द ही एक विवाद हो गया. कोचिंग सैंटर पर बम से हमला कर दिया गया. इस के बाद खान सर बेहद डर गए और उन्होंने पटना छोड़ने की तैयारी कर ली. लेकिन खान सर के छात्र उन के साथ खड़े हो गए. उन का कहना था कि वे सब साथ हैं, वे कोचिंग बंद कर के कहीं न जाएं. खान सर की जेब में घर वापस जाने के लिए टिकट लेने भर का भी पैसा नहीं था. बच्चों की बात मान कर खान सर ने पटना में फिर सैंटर खोलने का मन बना लिया. अपनी मेहनत से खान सर ने कोचिंग शुरू की. उसे आगे बढ़ाते गए. धीरेधीरे उन्होंने पटना में सब से बड़ी कोचिंग और लाइब्रेरी खोल दी. कोरोना के दौर में भी उन्हें एक बार फिर से प्रौब्लम हुई. कोचिंग बंद हो गई. उसी बीच औनलाइन क्लास चलने लगी. खान सर को डिजिटल शिक्षा की कोई जानकारी नहीं थी. बहुत मेहनत कर के उस को सीखा. औनलाइन क्लास शुरू की. कोरोना की चुनौतियों को उन्होंने अवसर में बदला. यहां से उन को नई पहचान मिली. आज डिजिटल दुनिया में खान सर का बड़ा नाम है. सोशल मीडिया पर उन के करोड़ों फौलोअर्स हैं. खान सर दिल छू लेने वाली बातें करते हैं जो लोगों और उन के छात्रों को पसंद आती हैं, उन के पढ़ाने का तरीका सब को बहुत पसंद आता है.

वे कहते हैं, ‘जीवन में कभी भी अहंकार नहीं करना चहिए और न ही दूसरे की बुराई करनी चाहिए.’ खान सर के कई यूट्यूब चैनल हैं, जिन के 20.3 मिलियन से अधिक सब्सक्राइबर हैं. 2020 में उन का नाम भारत के टौप 10 यूट्यूबर्स की लिस्ट में शामिल था जिस से उन की कमाई करोड़ों में होती है. नैशनल स्तर पर उन के तमाम इंटरव्यू हो चुके हैं. वे अपनी वीडियो खुद शूट करते हैं और खुद ही उन को अपलोड करते हैं. वीडियो अपलोड करते ही वह लाखों लोगों तक पहुंच जाता है. बच्चे बड़ी तेजी से उन के वीडियो देखते हैं. खान सर की सफलता का राज उन के व्यवहार में ही छिपा है. जहां ज्यादातर कोचिंग सैंटर चलाने वाले बच्चों से बहुत फीस लेते थे, वहीं खान सर सब से कम फीस लेते हैं. यूपीएससी की तैयारी के लिए बाकी कोचिंग सैंटर हजारोंलाखों रुपए लेते हैं पर खान सर 7 हजार रुपए में ही तैयारी कराते हैं. उन की शुरुआती फीस 200-300 रुपए थी. खान सर जिस अंदाज में पढ़ाते हैं वह बच्चों को बहुत पसंद आता है. उन की क्लास में इतनी भीड़ हो जाती है कि बच्चों को खड़ेखड़े भी पढ़ना पड़ता है. करंट अफेयर उन का पसंदीदा विषय है.

उन को मानचित्र विशेषज्ञ के रूप में भी जाना जाता है. खान सर के पढ़ाने का तरीका बेहद मजाकिया अंदाज का है. वे छात्रों से ठेठ बिहारी बोली में देशी कहावतों के जरिए अपनी बात सम झाते हैं. खान सर एक अच्छे स्टोरीटेलर की तरह हर विषय पढ़ाते हैं. भारतपाकिस्तान युद्ध की सभी घटनाओं के उन के वीडियो सब से अधिक देखे जाते हैं. वे कहते हैं, ‘हम छात्रों को उन की सम झ के अनुसार पढ़ाने का काम करते हैं जिस से उन को पढ़ाई बो झ न लगे. जैसे ही पढ़ाई बो झ लगती है, छात्र का मन पढ़ने में नहीं लगता. नोट्स छात्र बनाते हैं. कोर्स के बाहर का पढ़नालिखना कम होता है. कारण, उन के ऊपर परीक्षा को पास कर नौकरी पाने का दबाव होता है.’ आईएएस की जौब छोड़ विकास दिव्यकीर्ति बने शिक्षक डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति यूट्यूब पर एक बहुत ही मशहूर शिक्षक हैं. विकास दिव्यकीर्ति ने आईएएस औफिसर की नौकरी छोड़ कर शिक्षा और लेखन को अपनाया. विकास दिव्यकीर्ति का जन्म 1973 में हरियाणा के एक छोटे से गांव में हुआ था.

वहां से अपनी पढ़ाई को खत्म करने के बाद वे 1996 में यूपीएससी की परीक्षा को पास कर के आईएएस के पद पर नियुक्त हुए. सिविल सेवा की तैयारी के लिए डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति को आज सब से बेहतरीन शिक्षक माना जाता है. उन की कोचिंग का नाम ‘दृष्टि कोचिंग सैंटर’ है. विकास दिव्यकीर्ति शिक्षक और लेखक हैं. अपनी शिक्षण संस्था शुरू करने से पहले विकास दिव्यकीर्ति आईएएस औफिसर थे. आज के दौर में वे अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी बहुत सारे लोगों को अलगअलग विषयों की शिक्षा देते हैं. आज भारत में अगर किसी भी छात्र को लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करनी है तो विकास दिव्यकीर्ति का यूट्यूब चैनल और उन की शिक्षण संस्था उन की पहली पसंद होती है.

विकास दिव्यकीर्ति ने इस परीक्षा के लिए अपने रिश्तेदारों के दबाव में आ कर आवेदन किया था. इस वजह से उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में आईएएस का पद हासिल करने के बाद भी कुछ दिनों में नौकरी छोड़ दी. नौकरी छोड़ने से पहले कुछ महीनों तक उन्होंने अपनी एक कोचिंग संस्था चलाई जिस में बच्चों ने उन्हें खूब प्यार दिया. इस के बाद नौकरी छोड़ कर कोचिंग संस्था चलाने का दृढ़ संकल्प उन के मन में बैठ गया. यही वह समय था जब विकास दिव्यकीर्ति ने दृष्टि कोचिंग संस्था की शुरुआत की और आज यह यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्था बन चुकी है. दृष्टि कोचिंग संस्था के शुरू होने के बाद भी इस संस्था को सही तरीके से चलाना और बाजार में मौजूद बाकी कोचिंग संस्थानों से ज्यादा बेहतर सुविधा देना एक बहुत बड़ा संघर्ष था.

विकास दिव्यकीर्ति के पढ़ाने के तरीके ने छात्रों को बहुत आकर्षित किया. यूपीएससी परीक्षा को बेहतरीन अंकों से पास करने वाले शिक्षक के नेतृत्व में हर कोई पढ़ना चाहता था, जिस वजह से धीरेधीरे दृष्टि एक प्रचलित कोचिंग संस्था के रूप में उभरने लगा. भारत में इंटरनैट की धूम के बाद दिव्यकीर्ति सर ने दृष्टि के नाम से अपना एक यूट्यूब चैनल शुरू किया. इस चैनल पर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए विभिन्न प्रकार के कंटैंट अपलोड किए जिन्होंने बहुत बड़ी मात्रा में लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया. इस यूट्यूब चैनल ने उन के संघर्ष के दिनों को खत्म कर दिया और उन की कोचिंग दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ आईएस बनाने वाली संस्था में से एक मानी जाने लगी. विकास दिव्यकीर्ति बचपन से ही पढ़ने में बहुत अच्छे थे. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद हिंदी साहित्य से स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा प्राप्त की.

इस के बाद विकास सर ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में बीए की डिग्री हासिल की. इस के बाद फिलौसोफी में एमफिल की पढ़ाई पूरी की. आखिरकार, उन्हें हिंदी साहित्य दोबारा अपनी तरफ आकर्षित करने लगा. उन्होंने हिंदी साहित्य में पीएचडी के साथ अपनी शिक्षा को पूरा किया. विकास दिव्यकीर्ति बहुत ही सरल व्यक्तित्व के मालिक हैं. वे अपने परिवार के साथ अधिकतर समय बिताना पसंद करते हैं. डाक्टर विकास सर एक विवाहित व्यक्ति हैं जिन का विवाह एक अध्यापिका तरुणा वर्मा के साथ 1998 में हुआ. इन का एक पुत्र है जिस का नाम सात्विक दिव्यकीर्ति है. इन की पत्नी तरुणा दिव्याकीर्ति दृष्टि कोचिंग संस्था की सह संस्थापक के रूप में कार्य करती हैं. दिव्यकीर्ति अपनी पढ़ाई को पूरा करने के बाद 1996 में आईएएस के रूप में नियुक्त हुए. कुछ महीनों में ही उन्हें यह पता चल गया कि इस नौकरी में उन को संतुष्टि नहीं मिल रही है.

इस वजह से उन्होंने आईएएस की नौकरी छोड़ दी. विकास दिव्यकीर्ति सर बताते हैं कि वे 20 महीनों तक बेरोजगार रहे और उस वक्त उन्होंने उस नौकरी के लिए लोगों को तैयारी करते हुए देखा. इस के बाद जब लोगों ने इन के अजीब से फैसले पर इन से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछने शुरू किए तो इन्होंने उन्हें आईएएस परीक्षा के लिए मार्गदर्शन देना शुरू किया. इन के बताए गए तरीके और पढ़ाने की शैली ने लोगों को इस कदर अपनी तरफ आकर्षित किया कि छात्रछात्राओं की मात्रा बहुत ही कम समय में तेजी से बढ़ने लगी. इसी को संभालने के लिए उन्होंने दृष्टि कोचिंग संस्था की शुरुआत की. शुरुआत में इस संस्था को दिल्ली जैसी जगह पर चलाना बहुत संघर्षपूर्ण था. मगर 2017 में विकास दिव्यकीर्ति ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया और बच्चों को यूपीएससी परीक्षा की तैयारी से जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारी देना शुरू किया जिस ने इन्हें भारतभर में तेजी से प्रचलित कर दिया.

विकास दिव्यकीर्ति ने 1996 में दृष्टि कोचिंग सैंटर की स्थापना की थी जो वर्तमान समय में भारत की टौप 5 यूपीएससी की तैयारी करवाने वाली संस्थाओं में से एक है. आज के दौर में डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति भी किसी सैलिब्रिटी से कम नहीं हैं. वे भी कोचिंग के साथ ही साथ यूट्यूब पर अपने वीडियो बनाते हैं. खान सर के मुकाबले ज्यादा प्रोफैशनल तरह से काम करते हैं. डाक्टर विकास दिव्यकीर्ति, खान सर, अशोक सिंह रघुवंशी जैसे तमाम शिक्षक कोचिंग क्लासेस के साथ ही साथ अपने व्यवहार के कारण लोकप्रिय हैं.

छात्रों को इन की जरूरत इस कारण होती है क्योंकि कालेजों में सही तरह से पढ़ाया नहीं जाता है. कालेज में जिस तरह से छात्रों को पढ़ाया जा रहा है उस से वे प्रतियोगी परीक्षाएं पास नहीं कर सकते. इस कारण कोचिंग गुरु ही उन का सहारा होते हैं. सोशल मीडिया का सहारा ले कर ये कोचिंग गुरु सैलिब्रिटी बन गए हैं. इन के फौलोअर्स आज इन की सब से बड़ी ढाल बने हुए हैं.

व्रत-भाग 3: क्या अंधविश्वास में उलझी वर्षा को अनिल निकाल पाया?

शाम को दफ्तर से छुट्टी कर के वह एक्टिवा पर आ रहा था कि पीछे से एक ट्रक वाले ने उसे टक्कर मारी. उस की एक्टिवा ट्रक के भारी पहियों के नीचे आ कर चकनाचूर हो गई और वह उछल कर पटरी पर जा गिरा. पत्थर से सिर टकराया और खून के फौआरे छूट पड़े. वह गिरते ही बेहोश हो गया. लोगों की भीड़ लग गई. ट्रकचालक को पकड़ लिया गया. पुलिस आई और चालक को पकड़ कर थाने ले गई. अनिल को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. किसी ने उस की जेब में से मोबाइल ढूंढ़ निकाला और पत्नी को फोन कर दिया. वर्षा ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवाचौथ का व्रत रखा था. उस से यह दुखद समाचार सहन न हो सका. एक तो वह दिनभर की भूखीप्यासी थी, ऊपर से यह वज्रपात. दुर्घटना का समाचार सुनते ही वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. उस की पड़ोसिनों को जब पता चला तो सभी दौड़ी आईं. बड़ी मुश्किल से उसे होश में लाया गया. जब उस की हालत कुछ सुधरी तो एक पड़ोसिन के साथ वह अस्पताल पहुंची. अनिल की हालत नाजुक थी. वह अभी तक अचेत पड़ा था. वर्षा दहाड़े मारमार कर रोने लगी. डाक्टरों ने अनिल को होश में लाने की कोशिश की. 3 घंटे बाद उस ने आंखें खोलीं. दर्द के मारे वह चिल्लाने लगा. पीठ और टांगों पर प्लास्टर बांध दिया गया और सिर में 3 टांके लगे.

वर्षा को जब यह पता चला कि अब उस का पति खतरे से बाहर है तो उस ने अनदेखी शक्ति का इस बात के लिए धन्यवाद किया कि उस ने उस के पति की जान बख्श दी. फिर करवाचौथ के व्रत की महानता का गुणगान करने लगी जिस के कारण उस के पति की आयु सचमुच लंबी हो गई थी. यह भगवान कैसा है जो पहले उस के पति को ट्रक से टक्कर लगवा कर अस्पताल भिजवाता है और अब धन्यवाद का पात्र बनता है. धन्यवाद तो डाक्टर व अस्पताल को देना चाहिए जिन्होंने उस के पति की जान बचा ली. वह घर पहुंची. चांद कभी का निकल चुका था. उस ने चांद को अर्ध्य दिया और मुंह में केवल सेब का एक टुकड़ा ही डाला और व्रत खोल लिया. रातभर उसे किसी करवट चैन न मिला. वह रातभर रोती रही और अपने पति की सेहत के लिए चिंतित रही. वह रात उस की सब से दुखद रात थी.

मुसीबत की रात समाप्त होने को नहीं आती. उस ने बड़ी मुश्किल से वह रात काटी और सुबह ही सुबह पति को देखने के लिए अस्पताल दौड़ पड़ी. अपने साथ वह चाय और ब्रैड भी ले गई. पति की बीमारी में उसे पूजापाठ करने का होश भी न रहा. जब अनिल ने उस से पूछा कि आज वह पूजा पर क्यों नहीं बैठी और चाय बना कर कैसे ले आई है तो उस ने कहा, ‘‘पूजापाठ तो बाद में भी हो जाएगा, पहले मुझे तुम्हारी सेहत की चिंता है.’’ अब अनिल ठीक होता जा रहा था. वह अभी हिलनेडुलने के योग्य तो नहीं हुआ था किंतु उसे 5 दिन के बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वर्षा अपने पति को घर ले आई. अनिल ने अपने मातापिता को इस दुर्घटना के बारे में कोई खबर न होने दी थी. उस का खयाल था कि इस से वे बेकार परेशान होंगे.

दूसरे दिन मंगलवार था. अनिल ने कहा, ‘‘वर्षा, तुम तो हनुमानजी का व्रत रखोगी ही, आज मैं भी व्रत रखूंगा. क्या पता बजरंगबली मुझे जल्दी अच्छा कर दें.’’

‘‘नहींनहीं, तुम कमजोर हो, तुम से व्रत नहीं रखा जाएगा.’’ ‘‘इतनी कमजोर होने पर तुम सारे व्रत रख लेती हो तो क्या मैं एक व्रत भी नहीं रख सकता? मैं आज अवश्य व्रत रखूंगा.’’

‘‘मेरी बात और है, तुम्हारे शरीर से इतना खून निकल चुका है कि उस की पूर्ति करने के लिए तुम्हें डट कर पौष्टिक भोजन करना चाहिए, न कि व्रत रखना चाहिए,’’ वर्षा ने तर्क दिया.

‘‘तुम मुझे धार्मिक कार्य करने से क्यों रोकती हो? क्या तुम नास्तिक हो? फिर बजरंगबली मुझे कमजोर क्यों होने देंगे? मैं खाना न खाऊं, तब भी वे अपने चमत्कार से मुझे हट्टाकट्टा बना देंगे,’’ अनिल ने मुसकरा कर कहा.

‘‘अब तो तुम मेरी बातें मुझे ही सुनाने लगे. मैं कह रही हूं कि अभी तुम्हारे शरीर में इतनी शक्ति नहीं है कि व्रत रख सको. जब हृष्टपुष्ट हो जाओगे तो रख लेना व्रत,’’ वर्षा ने तुनक कर कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं जानता. मैं तो आज हनुमानजी का व्रत अवश्य रखूंगा.’’ वर्षा के अनुनयविनय के बाद भी अनिल ने कुछ नहीं खाया और व्रत रख लिया. यद्यपि वर्षा ने स्वयं व्रत रखा था, पति के व्रत रखने पर उसे गहरी चिंता हो रही थी. वह सोच रही थी कि अनिल के शरीर में खून की कमी है, खाली पेट रहने से और नुकसान होगा. यदि डाक्टर के दिए कैप्सूल और दवाएं खाली पेट दी जाएंगी तो लाभ की जगह हानि हो सकती है. वह करे तो क्या करे?

उस ने कहा, ‘‘अब तुम खाली पेट कैप्सूल कैसे खाओगे?’’

‘‘मैं दवा भी नहीं खाऊंगा. जैसा कड़ा व्रत तुम रखा करती हो, वैसा ही मैं भी रखूंगा. आखिर बजरंगबली इतना भी नहीं कर सकते हैं?’’ अनिल ने दृढ़ता से कहा.

‘‘देखो जी, तुम्हें कुछ हो गया तो?’’

 

विराम: क्या मोहिनी अपने पति को भूल पाई?

आज महेश सुबह बिना नहाएधोए ही उपन्यास पढ़ने बैठ गया. यकायक उस की नजर एक शब्द पर आ कर रुक गई और चेहरे का उजास उदासी में बदल गया. ‘उस का’ नाम उपन्यास की एक पंक्ति में लिखा हुआ था. उदास मन से वह सोचने लगा कि आज मोहिनी को उस से बिछड़े हुए एक अरसा हो गया और आज उस का नाम इस तरह से क्यों उस के मन में दस्तक दे रहा है? यह मात्र संयोग है या और कुछ? वैसे तो एक जैसे हजारों नाम होते हैं मगर महेश ने लंबे समय से उस का नाम कहीं पढ़ासुना नहीं था, तो इस प्रकार की बेचैनी स्वाभाविक थी. अचानक ही उस का बेचैन मन उस से मिलने की हूंक भरने लगा. मगर यह इतना आसान कहां था? उस ने दिल की इस अभिलाषा को पूरा करने का काम दिमाग को सौंप दिया. उस को अपने रणनीति विशेषज्ञ दिमाग पर पूरा भरोसा था.

महेश की एक कजिन थी विशाखा. विशाखा मोहिनी की पड़ोसिन थी. वह मोहिनी की खास सहेली थी मगर महेश कभी उस से मोहिनी के विषय में बात करने का साहस नहीं जुटा पाया. पर एक दिन बातोंबातों में ही उस ने विशाखा से मोहिनी के पति का नाम वगैरह जान लिया. फिर महेश ने मोहिनी के पति शाम को फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी. श्याम ने उस की रिक्वैस्ट स्वीकार कर ली. उस की हसरतों को एक खुशनुमा ठहराव मिला. यहां से महेश और श्याम फेसबुकफ्रैंड बन गए. अब मिशन शुरू हो चुका था.

महेश श्याम की फेसबुक पोस्ट्स पर कमैंट्स या लाइक्स जरूर देता. अब लाइक और कमैंट की वजह से महेश और श्याम में जानपहचान भी हो चुकी थी. वैचारिक रूप से भी काफी करीब आ चुके थे दोनों.

एक दिन महेश ने श्याम से उस का पर्सनल नंबर मांगा, ‘‘मेरे सभी फेसबुक फ्रैंड्स का नंबर मेरे पास है. आप भी दे दें. कभी न कभी मुलाकात भी होगी.’’

इस पर श्याम ने कहा, ‘‘कभी हमारे शहर आना हो तो जरूर मिलिएगा. मुझे खुशी होगी.’’ महेश तो इसी मौके की तलाश में था. अगले हफ्ते सैकेंड सैटरडे था. महेश को वह दिन उपयुक्त लगा और उस दिन महेश उस के शहर पहुंच गया. उस ने मोहिनी के पति को कौल किया कि मैं अपनी कंपनी के किसी काम से आया हुआ था. सोचा आप से भी मिलता चलूं. आप कृपया अपना पता बता दें.’’ ‘‘आप वहीं रुकिए, मैं अभी पहुंचता हूं,’’ कह कर श्याम ने फोन रख दिया.

‘‘बस चंद मिनट का फासला है मेरे और मोहिनी के बीच,’’ महेश सोच रहा था. इसी मौके का तो बेसब्री से इंतजार कर रहा था वह. एक सपना सच होने जा रहा था. ‘‘उसे करीब से देखूंगा तो कैसा महसूस होगा, वह अब कैसी दिखती होगी, उस ने क्या पहना होगा…?’’ ढेर सारी अटकलों में घिरा उस का बावरा मन व्याकुल हुआ जा रहा था.

तभी श्याम उसे लेने आ गए. दोनों ने एकदूसरे के हालचाल पूछे. फिर वे महेश को ले कर अपने साथ अपने घर पहुंचे और पानी लाने के लिए अपनी पत्नी को आवाज दी.

अपने दिल की धड़कनों पर काबू करते हुए महेश ने दरवाजे की ओर आंखें गड़ा दी

थीं कि अब मोहिनी ही पानी ले कर आएगी. लेकिन पल भर में ही उम्मीदों पर पानी फिर गया. पानी नौकरानी ले कर आई. इतने में

श्याम बोले, ‘‘मैं ने आप की फेसबुक प्रोफाइल देखी है. आप तो राजनीति पर अच्छाखासा लिख लेते हैं.’’ ‘‘आप भी तो कहां कम हैं जनाब,’’ महेश ने हंसते हुए जवाब दिया.

फिर सिलसिला चल पड़ा चर्चाओं का… लोकल पौलिटिक्स, गांव और शहर की समस्या, आतंकवाद और न जाने क्याक्या. बातों ही बातों में महेश का स्वर एकदम से रुक गया. आंखें पथरा गईं. चेहरे पर सन्नाटा छा गया. सोफे और कुरसी की हलचल थम सी गई. श्याम महेश की भावभंगिमा परख तो पा रहे थे, मगर समझ नहीं पा रहे थे.

यह क्या? अपने हाथों में चाय की ट्रे पकड़े हुए वह महेश के सामने खड़ी थी. उस की आंखों में अनुराग की अकल्पनीय असीमता थी. उस का चेहरा चंचलता की स्वाभाविक आभा से अलौकित हो रहा था और उस के होंठों पर मधुरिमा मुसकान थी. महेश की रगों में उसे छूने की अतिउत्सुकता जाग उठी. उस का मन कर रहा था कि इसी पल उसे आलिंगनबद्ध कर ले. किंतु यह संभव नहीं था. वह ज्योंज्यों महेश के करीब आ रही थी त्योंत्यों महेश की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. ‘‘कैसे हो?’’ उस ने महेश को चाय का प्याला थमाते हुए पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं और आप कैसी हो?’’ महेश ने पूछा. उस का जी और महेश का आप नाटकीयता का प्रकर्ष था.

मोहिनी ने कहा, ‘‘मैं भी ठीक हूं.’’ मोहिनी के पति आश्चर्य से दोनों का चेहरा देख रहे थे. उन के मन में उठते हुए भावों को मोहिनी पढ़ चुकी थी. इसलिए उस ने कहा, ‘‘अरे हां, मैं आप को बताना भूल गई, मैं इन को जानती हूं… मेरी जो सहेली है विशाखा, जिस से मैं ने आप को अपनी शादी में मिलवाया था, ये उस के कजिन हैं. इन से एकदो बार विशाखा के घर पर ही मुलाकात हुई थी. तभी से जानती हूं.’’

प्रेम अपने वास्तविक धरातल पर आ ही जाता है. महेश को यकीन नहीं हो रहा था और

शायद मोहिनी को भी. 2 प्रेमी आमनेसामने खड़े थे और महेश चाह कर भी उसे छू नहीं सकता था. दोनों के बीच अब समाज की दीवार थी. महेश श्याम से बात कर रहा था और कोशिश कर रहा था कि सब सही रहे. फिर भी महेश की आंखें उसी की चंदन सी काया को निहार रही थीं. ‘‘ढेर सारी बातें और किस्से हो गए. अब चलूंगा, आज्ञा दीजिए,’’ कह कर महेश जाने के लिए उठने लगा.

‘‘अरे, कहां जा रहे हो? खाना तैयार है. आप पता नहीं फिर कब आओगे,’’ श्याम ने कहा. एक अजब सी कशमकश थी मन में. महेश आत्मीय निवेदन ठुकराने का दुस्साहस नहीं कर सका और बैठ गया. महेश को जब भोजन परोसा जा रहा था तब वह रसोई से आतीजाती मोहिनी को बड़े ध्यान से देख रहा था और सोच रहा था, ‘‘कितनी खूबसूरत लग रही है… वैसे ही तेज कदमों से चलना, हाल बदले थे पर चाल वैसी ही थी… उस के हाथ का बना खाना बहुत स्वादिष्ठ था.’’

भोजन किया और निकलने लगा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप अपना नंबर दे दो. विशाखा को दे दूंगा. आप को बहुत मिस करती है.’’ मोहिनी ने पति की तरफ देखा और स्वीकृति मिलने पर नंबर दे दिया. इसी के साथ महेश की यह अंतिम इच्छा भी पूरी हो गई.

पूरी रात मोहिनी सोचती रही कि महेश उस का नंबर ले कर गया है तो कौल भी जरूर करेगा. महेश से कैसे मिले और कैसे उस को समझाए कि अब हालात बदल गए हैं? महेश उस को अगले दिन से ही फोन करने लगा. मोहिनी 4-7 दिन तक तो उस की कौल को अवौइड करती रही, पर बाद में महेश से बात करने का निश्चय किया.

महेश, ‘‘क्या इतनी पराई हो गई हो कि मिलने भी नहीं आ सकतीं?’’ मोहिनी, ‘‘अब मेरा नाम किसी और के नाम के साथ जुड़ चुका है.’’

महेश, ‘‘ये दूरियां जिंदगी भर की होंगी, ये सोचा न था.’’ मोहिनी, ‘‘तुम ही तो चाहते थे ऐसा. याद करो तुम ने ही कहा था कि यह मेरी गलतफहमी है. प्यार नहीं है तुम्हें मुझ से. और हो भी नहीं सकता. साथ ही यह भी कहा था कि मुझ से प्यार कर के कुछ नहीं पाओगी. क्यों अपनी जिंदगी खराब कर रही हो. अच्छा लड़का देखो और शादी कर के जाओ यहां से. मेरा क्या है.’’

महेश, ‘‘सब याद है मुझे,’’ कई बार जिंदगी में कुछ ऐसे फैसले करने पड़ते हैं कि आप चाह कर भी उन को बदल नहीं सकते. मेरे पास कुछ नहीं था उस समय तुम्हें देने के लिए, खोखला हो चुका था मैं.’’ मोहिनी, ‘‘ऐसा क्यों हुआ अब सोचने से कोई फायदा नहीं.’’

महेश, ‘‘तुम तो जानती हो मेरे मातापिता अपनी पसंद की लड़की से ही मेरा विवाह कराना चाहते थे. मां की जिद थी कि उन की सहेली की लड़की से ही मेरा विवाह हो.’’ मोहिनी, ‘‘तुम ने उन्हें मेरे बारे में नहीं बताया.’’

महेश, ‘‘बताना चाहता था, पर उन को अपनी जिद के आगे मेरी खुशी नहीं दिखाई दे रही थी. मुझे उन्हें समझाने के लिए कुछ वक्त चाहिए था. मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहता था.’’ मोहिनी, ‘‘और मेरे दिल का क्या होगा? मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा.’’

महेश, ‘‘सोचा था, बहुत सोचा था, लेकिन जिंदगी के भंवर में बुरी तरह फंस चुका था. जब तक वे मानते तब तक तुम्हारा विवाह हो चुका था. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता. अब तो इस भंवर से बाहर आ कर मेरे साथ चल पड़ो. तुम भी अपने पति से प्यार नहीं करती हो, यह मैं जान गया हूं.’’ मोहिनी, ‘‘वे बहुत अच्छे हैं. अब मैं उन का साथ नहीं छोड़ सकती.’’

महेश, ‘‘क्यों बेनामी के रिश्ते को जी रही हो, घुटघुट के जीना मंजूर है तुम्हें?’’ मोहिनी, ‘‘समाज ने नाम दिया है इस रिश्ते को. तो बेनामी कैसे हुआ? मैं उन के साथ बहुत खुश हूं.’’

महेश, ‘‘प्लीज छोड़ दो सब कुछ और भाग चलो मेरे साथ. हम अपनी एक नई दुनिया बसाएंगे. चले जाएंगे यहां से बहुत दूर. मैं तुम्हें इतना प्यार करूंगा जितना किसी ने आज तक न किया हो.’’ मोहिनी, ‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. अब मेरे साथ मेरी ही नहीं, किसी और की भी जिंदगी जुड़ी है.’’

महेश, ‘‘इस का मतलब तुम मेरा प्यार भूल गई हो या फिर वह सब झूठ था.’’ मोहिनी, ‘‘प्यार एक एहसास होता है उन ओस की बूंदों की तरह जो धरती में समा जाती हैं और फिर किसी को नजर नहीं आतीं. हमारा प्यार भी ओस की बूंदों की तरह था, जो हमेशा मेरे दिल की जमीन पर समाहित रहेगा. इस एहसास को किसी रिश्ते का नाम देना जरूरी तो नहीं. तुम्हारे साथ कुछ पलों के लिए जिस राह पर चली थी. वह बहुत ही खुशगवार थी. उन राहों में लिखी कहानी शायद मैं कभी नहीं मिटा पाऊंगी. लेकिन अब और उन राहों पर नहीं चल पाऊंगी. मैं तुम से बहुत प्यार करती थी और शायद आज भी करती हूं और करती रहूंगी पर…’’

महेश, ‘‘पर क्या?’’ मोहिनी, ‘‘अब हम एक नहीं हो सकते. तुम्हारा प्यार हमेशा याद बन कर मेरे दिल में रहेगा. अब तुम कोई दूसरा हमसफर ढूंढ़ लो. मैं 4 कदम चली तो थी मंजिल पाने के लिए पर कुदरत ने मेरी राह ही बदल दी.’’

महेश, ‘‘तुम चाहो तो फिर से राह बदल सकती हो.’’

मोहिनी, ‘‘प्यार का एहसास ही काफी है मेरे लिए. प्यार को प्यार ही रहने दो. कभीकभी जीवन में कुछ रिश्तों को नाम देना जरूरी नहीं होता. क्या हम दोनों के लिए इतना ही काफी नहीं कि हम दोनों ने एकदूसरे से प्यार किया.’’

‘‘सब कह दिया है तुम ने. बस एक आखिरी सवाल का जवाब भी दे दो,’’ महेश ने कहा. ‘‘हां, पूछो,’’ मोहिनी बोली.

‘‘आज तक, कभी एक मिनट या एक सैकंड के लिए भी तुम मुझे भूल पाईं,’’ महेश ने पूछा. ‘‘नहीं,’’ अपनी हिचकियों को रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए मोहिनी बोली.

महेश, ‘‘एक वादा चाहता हूं तुम से.’’ मोहिनी, ‘‘क्या?’’

महेश, ‘‘वादा करो जिंदगी में जब कभी तुम्हें मेरी जरूरत महसूस होगी, तुम मुझे फौरन याद करोगी. मैं दुनिया के किसी भी कोने में होऊंगा, तो भी जरूर आऊंगा. चलो खुश रहना. कोशिश करूंगा कि दोबारा कभी तुम्हें परेशान न करूं. लेकिन दोस्त बन कर तो तुम से मिलने आ ही सकता हूं?’’ मोहिनी, ‘‘नहीं अब हम कभी नहीं मिलेंगे. दोस्ती को प्यार में बदल सकते हैं पर प्यार दोस्ती में नहीं. मेरे जीवन की आखिरी सांस तक मैं तुम्हें नहीं भूलूंगी.’’

मोहिनी, इतने पर ही नहीं रुकी, ‘‘सवाल तो बहुत से थे, मन में. बस आज उन सवालों पर विराम लगाती हूं. मेरे लिए इतना ही काफी है कि तुम मुझे प्यार करते हो.’’ महेश, ‘‘यह कैसा प्यार है. चाह कर भी मैं तुम्हें छू नहीं सकता. तुम्हें देख नहीं सकता. तुम से बात नहीं कर सकता.’’

मोहिनी, ‘‘यह फैसला तुम्हारा था. अब तुम्हें अपने फैसले का सम्मान करना चाहिए. बहुत देर हो गई. बस यही चाहूंगी कि तुम सदा खुश रहो और कामयाबी की ओर बढ़ते रहो, बाय.’’ महेश, ‘‘बाय.’’

महेश को दूर से आते एक गीत के बोल सुनाई दे रहे थे, ‘क्यों जिंदगी की राह में मजबूर हो गए इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए…’

चुनौती-भाग 2: मीना और शिल्पी में किस बात को लेकर बहस हुई थी?

शिल्पा की आंखों में अचानक मेरा मजाक उड़ाने वाले भाव पैदा हुए और उस ने चुभते स्वर में कहा, ‘‘मम्मी, नीला रंग मुझ पर जितना खिलेगा उतना आप पर नहीं, क्योंकि चटक रंग एक उम्र के बाद औरतों पर ज्यादा फबते नहीं. कल शाम समारोह में मेरे नाम की धूम होगी. देख लेना, लोग आप से मुझ को नहीं, बल्कि मेरे कारण आप को पहचानेंगे.’’

शिल्पा की बात सुन कर मैं स्तब्ध रह गई. मेरे कुछ कहने से पहले उस ने सूट का डब्बा उठाया और बड़ी अकड़ से चलती हुई बाहर निकल गई.

मुझे ऐसा लगा कि शिल्पा ने जानबूझ कर मुझ से अशिष्टता की और वह सोच कर मेरा पारा चढ़ने लगा. पर फौरन शिल्पा के पीछेपीछ उसे डांटने नहीं गई, यह अच्छा ही हुआ. गुस्से में बेकाबू हो जान से पहले ही मैं अपनी बेटी के अनुचित व्यवहार का कारण समझने में सफल हो गई थी.

मैं ने उसे नई ड्रेस दिलाए जाने का विरोध किया था, इस कारण वह मुझ से नाराज थी. अब इसी नई ड्रेस के बूते पर विवाह समारोह में मुझे से बेहतर दिखने को उस ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर मुझे चुनौती दे डाली थी.
उस की आंखों और उस की मुसकराहट में मैं ने अकड़ और घमंड के भाव देखे थे. तभी उस की चुनौती दोस्ताना या हंसीमजाक के अंदाज में दी गई चुनौती नहीं लग रही थी मुझे.
उस के घमंड में डूबे शब्दों ने मुझे सारी शाम परेशान रखा. रात में राजीव के सोने के बाद भी मैं बहुत देर तक जागती रही. अपनी बेटी के मन को समझाने के लिए मैं गहन सोचविचार करने में जुटी थी.

अंतत: मैं इस नतीजे पर पहुंच गई कि मेरी बेटी होने के बावजूद शिल्पा अपने रंगरूप और व्यक्तित्व की तुलना मुझ से करती है. हम दोनों 24 घंटे साथ रहती हैं. उस की अपनी तुलना मुझ से करना एक तरह से मेरे रंगरूप और व्यक्तित्व की प्रशंसा करने जैसा है. मुझे इस बात की खुशी भी होती, अगर उस के हावभाव में घमंड और मुझे नीचा दिखाने की इच्छा शामिल न होती.

यह सच है कि जैसेजैसे मेरा रंगरूप ढलेगा, शिल्पा की खूबसूरती में चार चांद लगते जाएंगे. लेकिन अभी वह वक्त नहीं आया था कि मेरी घमंडी बेटी मुझे आसानी से नीचा दिखाने में सफल हो जाती.

घमंडी और बदतमीज बन जाने भर से कोई ऊंचा नहीं उठ जाता, शिल्पा को यह सबक सिखाने का फैसला कर लेने के बाद ही मैं उस रात सो सकी थी.

अपनी बेटी से ज्यादा खूबसूरत दिखने के लिए मैं अगली सुबह ब्यूटीपार्लर का चक्कर लगा आई. जब शिल्पा भी मेरी देखादेखी ब्यूटीपार्लर जाने को तैयार हुई, तो मैं मन ही मन मुसकरा उठी थी.

ब्यूटीपार्लर की सेवाओं की बदौलत अगर शिल्पा का युवा चेहरा दमक उठा था, तो मेरे चेहरे पर मौजू उम्र दर्शाने वाले चिह्न भी अपना अस्तित्व खो चुके थे. मेरे चेहरे पर छाई गंभीरता को देख कर शिल्पा तनावग्रस्त नजर आने लगी थी. उस ने दोपहर का खाना भी बेमन से खाया और उस के स्वभाव का चिड़चिड़ापन भी बढ़ गया.

‘‘अरे, जब राजमा तुम्हें पसंद है तो खाना क्यों नहीं खा रही हो, शिल्पा?’’ राजीव ने बेहद आत्मीय भरे स्वर में उस से पूछा था.

‘‘मुझे भूख नहीं है पापा,’’ मेरी तरफ तिरछी निगाह से देखने के बाद वह अपने कमरे की तरफ चली गई.

‘‘मीना, शिल्पा आज बहुत ज्यादा तनावग्रस्त नजर आ रही है. तुम इसे समझाओ कि बहुत ज्यादा कुढ़ना इस के चेहरे की आभा को हर लेगा,’’ राजीव की आंखों में बेटी के प्रति चिंता के भाव मुझे स्पष्ट नजर आए.

जाने से पहले शिल्पा की आंखों में मुझे तनाव और चुनौती के साथसाथ अजीब से डर के भाव भी नजर आए थे. मैं ने अंदाजा लगाया कि मुझ से हार जाने की कल्पना कर के ही वह डर रही थी.

एकाएक ही मुझे अपना मन बुझाबुझा सा लगने लगा. शिल्पा की चुनौती को अति गंभीरता से लेने का अपना फैसला मुझे बचकाना लगने लगा था. मेरे रवैए के कारण ही शिल्पा इस वक्त परेशान व डरी हुई नजर आ रही थी. शिल्पा तो जिंदगी का कम अनुभव रखने वाली एक किशोरी थी, पर कम से कम मुझे तो हारनेजीतने के चक्कर में न पड़ कर, अपनी मानसिक परिपक्वता का सुबूत देना चाहिए था.

खुद तैयार होने से पहले मैं ने शिल्पा के कमरे में जा कर उस से पूछा, ‘‘शिल्पा, तैयार होने में तुम्हें कुछ सहायता चाहिए क्या…?’’

‘‘नहीं, मम्मी, अब मैं खुद अच्छी तरह से तैयार हो सकती हूं. पर पूछने आने का कष्ट करने के लिए आप का धन्यवाद,’’ उस के स्वर का रुखापन मेरे दिल को चोट पहुंचा गया था.

मेरा खुद को सजानेसंवारने का दिल नहीं रहा था. मैं ने राजीव से मिली नीली साड़ी जरूर पहनी, पर अपनेआप को तैयार बड़े सादे ढंग से किया. मेकअप भी बड़ा हलका रखा. परफ्यूम भी हलकी खुशबू वाला लगाया और फिर कमरे से बाहर आ गई.

मुझे यों सादे ढंग से तैयार हुआ देख शिल्पा और राजीव दोनों ही चौंके.
मैं खुद शिल्पा को देख कर स्तब्ध रह गई थी. मेरी बेटी परी सी खूबसूरत लग रही थी. उस का दमकता रंगरूप देख कर मेरा हृदय गर्व से फूल उठा.

‘‘मम्मी, आप तो बिलकुल ‘बहनजी’ बन कर शादी में चल रही हो. कोई देखेगा तो आप को पहचान भी नहीं पाएगा,’’ शिल्पा की जीत की खुशी में डूबी आवाज में मेरा मजाक उड़ाने के भी भाव थे.

‘‘मेरी पहचान आज तुझ से होगी, शिल्पा,’’ मैं ने सहज भाव से जवाब दिया और फिर राजीव की तरफ घूम कर पूछा, ‘‘क्या मैं बहुत बदसूरत लग रही हूं?’’

‘‘मेरे लिए तो तुम हर रूप में संसार की सब से रूपवती औरत हो,’’ राजीव की आंखों में चमके प्रशंसा के भाव मेरा दिल गुदगुदा गए.

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ मम्मी, आज जरा भी नहीं जंच रही हैं आप. पापा, आप को ख्वाहमख्वाह मम्मी को मक्खन लगा रहे हैं,’’ शिल्पा ने नाक चढ़ा कर टिप्पणी की और दरवाजे की तरफ बढ़ गई.

मैं ने उस के कहने का बिलकुल बुरा नहीं माना. उस के मनोभावों को मैं भली प्रकार समझ रही थी. उस ने मुझ से बेहतर दिखने की चुनौती मुझे दी और वह मुझे हराने में कामयाब रही थी और अपनी जीत पर खुश भी थी.

मैं भी उस की खुशी में खुश थी. उस से किसी तरह की प्रतिस्पर्धा न करने का फैसला मैं कर चुकी थी. लोगों की निगाहों में अपनी बेटी से जयादा अच्छा नहीं दिखना चाहती थी मैं.

शिल्पा की आंखों में तनाव, बेचैनी और डर के भाव अब बिलकुल नजर नहीं आ रहे थे. यह देख कर मेरा मन बड़ी शांति महसूस कर रहा था. अपनी बेटी से टकराव का रास्ता त्याग कर मैं ने समझदारी दिखाई है, इस बात को ले कर फिर कोई शक नहीं रहा था मेरे दिमाग में.

मेरे परिचितों का दायरा बहुत बड़ा है. उस शाम शिल्पा को हर जगह अपने से आगे रखते हुए मैं ने उसे बहुत से लोगों से मिलवाया. पार्टी के आरंभ में वह जरूर लोगों से बातें करने में कुछ झिझक रही थी, पर मेरे सहयोग व सहायता के बल पर उस का आत्मविश्वास जल्दी ही लौट आया था.
मैं ने अधिकतर अपना मुंह शिल्पा की तारीफ करने के लिए ही खोला था. कोई उस की सुंदरता की प्रशंसा करता तो मैं उसे बताती कि मेरी बेटी पढ़ाई में भी अव्वल है. जब किसी ने उस के प्रभावशाली व्यक्तित्व की तारीफ की तो मैं उस के खिलेखिले रूप और सुंदर नैननक्श की तारीफ कर डालती.

शिल्पा बहुत खुश नजर आ रही थी. सभी की निगाहों के आकर्षण का केंद्र बनना उस के मन को बहुत भा रहा था. दूसरे, उस की प्रशंसा करते तो मेरी छाती गर्व से फूल जाती.

वह पार्टी का भरपूर आनंद उठा रही थी और मैं ऊपर से अधिकतर खामोश बनी, पर अंदर से मुसकाराती हुई अपनी बेटी के फूल से खिले चेहरे को देखती रही.

‘‘आज बहुत चुपचुप नजर आ रही हो, मीना. तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?’’ मेरी एक सहेली ने मुझे अस्वाभाविक रूप से शांत देख कर यह पूछा भी था.

ऐसे अवसरों पर शिल्पा माथे में बल डाल कर मुझे घूरने लगती, तो मैं फौरन कुछ देर को हंसनेबोलने लगती. मैं उस के दिमाग में यह शक नहीं पैदा होने देना चाहती थी कि मैं ने जानबूझ कर उसे बढ़ावा देने के लिए खामोशी अख्तियार कर रखी है.

शिल्पा का ध्यान जल्दी ही बंट जाता और वह फिर से हंसनेबोलने में लीन हो जाती. उस को सब की प्रशंसा भरी नजरों का केंद्र बनाए रखने के लिए मैं दोबारा चुप्पी साथ लेती.

अपनीअपनी प्लेटों में खाने की चीजें डाल कर जब हम दोनों एक तरफ खड़ी थीं, तब बरात में आई शिल्पा की 3 सहेलियों ने हमें घेर लिया.

‘‘शिल्पा, तू कितनी सुंदर लग रही है,’’ उन तीनों ने एक स्वर में जब मेरी बेटी की तारीफ की, तो उस का सिर गर्व से और ज्यादा ऊंचा उठ गया.

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